‘बेटा, 100 साल जिओ.’

‘भगवान तुम्हें लंबी उमर दे.’

‘दूधों नहाओ पूतों फलो.’

आप को ये आशीर्वादी वचन कैसे लगे?

आप सोचेंगे कि क्या प्रश्न है. आशीर्वाद तो आशीर्वाद ही है. इस में अच्छा या बुरा लगने जैसा कुछ भी नहीं है, पर आज के जमाने में ये आशीर्वाद अपना अर्थ खो चुके हैं. आज ये आशीर्वाद एक बददुआ से कम नहीं है. आप को भी जब इन का छिपा अर्थ समझ में आएगा तो आप भी मेरे साथ सहमत हो जाएंगे.

‘बेटा, 100 साल जिओ’ अर्थात इतने बूढ़े हो जाओ कि सभी इसी इंतजार में रहें कि बूढ़ा कब पीछा छोड़ेगा. आप कल्पना कर सकते हैं कि 100 साल तक पहुंचतेपहुंचते आदमी की क्या हालत हो जाती है. कमर झुक जाती है. आंखें धुंधला जाती हैं, कान आप का साथ नहीं देते और दांत तो कब के अलविदा कह चुके होते हैं. झुर्रियों से भरा चेहरा कैसा लगता होगा, जरा कल्पना कीजिए.

आज के एकल परिवारों में ऐसा बूढ़ा आदमी किसी श्राप से कम नहीं है. ऐसे में वृद्ध स्वयं भी और परिवार वाले भी बस एक ही दुआ मांगते हैं कि अब तो उठा ले. आज तो एकल परिवार के बूढ़े वृद्धाश्रम में भर्ती कर दिए जाते हैं, जहां वे अपनों का चेहरा देखने तक को तरस जाते हैं. आज के महंगाई के जमाने में वे सब के लिए बोझ बन जाते हैं. यह सब जानने के बाद भी आप अपने बड़ों से यह आशीर्वाद लेना चाहेंगे कि ‘बेटा 100 साल जिओ?’ अब यह आशीर्वाद भी बददुआ से कम नहीं है. इसलिए जरा रुकिए और सोचिए तभी कोई आशीर्वाद मुंह से निकालिए.

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