Download App

फेकबुक से मुझे बचाओ

भई जैसा नाम वैसा काम. अब फेकबुक में फेस की फोटो नहीं डाली तो क्या डाली. फिल्टर कैमरा, टेढ़ी गरदन, होंठ मिचका कर कर दो क्लिक. लेकिन बीमारी की हालत में पोज देना, तौबा, भई मार डाला हमें इस फेकबुक ने.

य ह फेसबुक, बोले तो फेकबुक, भी बड़े कमाल की बूटी है, भाईसाहब. आम आदमी तक को चैन से जीने तो देती नहीं, आराम से मरने भी नहीं देती.

अब देखिए न, 20 दिनों से घर का बिस्तर छोड़ ठीक होने के चक्कर में अस्पताल की चारपाई पर पड़ा हूं. जैसे ही ठीक होने लगता हूं, पता नहीं डाक्टर कौन सी दवाई दे देते हैं कि फिर वहीं जा पहुंचता हूं जहां 20 दिन पहले था.

अस्पताल में आ कर कुछ ठीक हुआ हो या न हुआ हो पर एक बात जरूर हुई है कि बीवी मेरे सारे काम छोड़ मेरी सेहत का हर घंटे सचित्र बुलेटिन फेकबुक पर डालना नहीं भूलती, ताकि हमारे दोस्तों, रिश्तेदारों को मेरी बीमारी के घर बैठे लेटेस्ट अपडेट्स मिलते रहें. इस चक्कर में वह भले ही मुझे समय पर दवाई देना भूल जाए, तो भूल जाए.

अभीअभी डाक्टर, पता नहीं ठीक होने का या स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहने का, इंजैक्शन दे कर गया है. हाय, किस बेदर्दी से उस ने इंजैक्शन लगाया कि मानो वह इंजैक्शन नहीं बाजू में कील ठोंक रहा हो.

इंजैक्शन के दर्द से न हंसा जा रहा है न रोया. मैं हंसी और पीड़ा के बीच जरा आराम करना चाहता हूं. पर बीवी चाहती है कि हर घंटे के तय मेरे स्वास्थ्य के अपडेट्स फेकबुकी दोस्तों, रिश्तेदारों को पूर्ववत निर्विरोध मिलते रहें, चाहे वे मेरा हालचाल पूछने अस्पताल में आएं या न आएं. वैसे भी, जब से फेकबुक ईजाद हुआ है, लोग लाइव मिलने से बेहतर फेकबुक पर ही मिलना ज्यादा बेहतर समझते हैं. अच्छा भी है, फेकबुक पर मिलने में हींग लगे न फिटकरी, रंग तो वैसे भी नहीं चढ़ता.

तो मित्रो, कराहट के बीच फेकबुक पर मेरी बीमारी के ताजा अपडेट्स का समय हो चुका है. मेरा पूरा बदन बिस्तर पर पड़े हुए कांप रहा है. बीमारी से या फेकबुक पर अपलोड करने के लिए खींचे जाने वाले फोटो को ले कर, मुझे मालूम नहीं. आंखें खुल नहीं रहीं. जबान तो खैर विवाह करने के बाद से ही बंद हो गईर् थी. समय के बड़े बलवान होते हैं वे जो विवाह के बाद कम से कम अपनी जबान को बचाए रखते हैं.

बीवी हाथ में मेरा फोटो खींचने को मोबाइल ले चुकी है. इस वक्त वह फिल्मसिटी स्टूडियो के किसी फोटोग्राफर से कम नहीं लग रही. लगता है, अब वह मेरा एक बार फिर लाइव करने लायक फोटो ले कर ही दम लेगी. वैसे मुझे नहीं याद कि अब तक कोई ऐसा लमहा गया हो जिस में उस ने मेरा दम न लिया हो.

यह कैसे लेटे हो मरे हुए की तरह. यों लेटो न. घर की चारपाई पर तो आज तक ठीक एंगल से लेटना नहीं आया, पर सरकारी चारपाई पर भी ठीक ढंग से नहीं लेट रहे हो. इस ढंग से ली तुम्हारी फोटो जो फेकबुक पर चली गई न, तो वे सारे फ्रैंड हमें ही अनफ्रैंड कर देंगे जिन्हें तुम अनफ्रैंड करने को बिदकते रहते हो.

ऐसे में बीवी के ये जुमले. इसे मेरे दर्द की फिक्र नहीं, फेकबुक के फ्रैंडों के अनफ्रैंड होने का खतरा अधिक है. हो भी क्यों? असल जिंदगी में तो सच पूछो तो हम अपने भी दोस्त नहीं.

मैं जैसेतैसे अपने चेहरे पर मौत की उड़ती हवाइयों के बीच जीने की ललक लाने की बेहद कोशिश में हूं कि, दोस्तों तक और तो मेरा कुछ भी आज तक सही नहीं गया, कम से कम बीमारी की एक फोटो तो सही चली जाए, ताकि वे उसे देख कर वाहवाह कर उठें कि वाह, क्या कमाल का बंदा है. चारपाई पर मरते हुए चेहरे पर ऐसी लालिमा.

‘‘अब ठीक है?’’ कह कर मैं ने अपनी तरफ से हजार पीड़ाओं के बाद भी अपने चेहरे पर हंसी लाने की पूरी कोशिश की.

‘‘नहीं, ऐसे नहीं. लगता ही नहीं कि तुम बीमार होने के बाद भी प्रसन्न हो.’’

‘‘बीमार होने के बाद भी आज तक प्रसन्न कौन रहा? आजकल तो लोग प्रसन्न होने के बाद भी प्रसन्न नहीं दिखते. और तुम हो कि… आखिर बीमार की हंसती हुई फोटो फेकबुक पर डाल तुम साबित क्या करना चाहती हो? यहां लोगों को आज किसी की सच्ची हंसती हुई सूरत भी पसंद नहीं, तो ऐसे में… मैं तो कहता हूं कि दोस्तों की बीमारी में संवेदनाएं अर्जित करना चाहती हो तो मेरी तरह मरियल सी फोटो ही फेसबुक पर डालो. हो सकता है कुछ दोस्तों का दिल पसीज जाए,’’ मैं ने उसे व्यावहारिक दुनिया के सचों से अवगत करवाना चाहा पर वह नहीं मानी, तो नहीं मानी. ये फेकबुकी दुनिया भी कितनी शरीफ फेकबुकी दुनिया है, कमबख्त.

‘‘देखो, अपने को कतई दार्शनिक मत समझो. मैं जानती हूं कि तुम में कितनी अक्ल है,’’ बीवी ने मुझे वास्तविकता से परे करते कहा, ‘‘जैसा मैं कहती हूं, बस, वैसे करो. लोगों को आज किसी की बीमारीसीमारी से कोई सरोकार नहीं. उन के पास अपनी ही बीमारियों का रोना पहले ही क्या कम है जो अब दोस्तों के भी बीमार चेहरे देखें.’’

मुझे पता था कि यह अब सुंदर सी फोटो को ले कर चारपाई पर पड़े का भी दम निकाल कर रहेगी. सो, अपने को पूरी तरह से बीवी के फेकबुक के लिए उस के हवाले कर दिया. जब मैं ने उस के आगे लंगर डाल दिए तो वह मुसकराते हुए फेकबुक पर डालने वाली फोटो को तैयार करती मेरे दर्द की परवा किए बिना चारपाई सजाने लगी, उस से अधिक खुद भी सजने लगी. मुझे बीमारी के हाल में बीमार होने के बाद भी चेहरे पर कैसे दर्दभरे मुसकराते इंप्रैशन लाने चाहिए, खुद कर के बताने लगी.

आखिर पूरे 30 मिनट की कड़ी रिहर्सल के बाद वह जैसा मेरा चेहरा फेकबुक के लिए चाहती थी, वैसा मैं बनाने में समर्थ हो गया. तो मत पूछो, उस ने कितनी चैन की सांस लेते कहा, ‘‘हां, बस, ऐसे ही. अब जरा भी मत हिलना, वरना मेरी आधे घंटे की मेहनत पर पानी फिर जाएगा.’’ मैं ही जानता हूं कि तब मैं चारपाई पर पड़ा अपनी बीसियों पीड़ाओं की सांसें रोके कैसे पड़ा रहा था.

सैल्फी में उस का चेहरा, तोबा, मुसकराता देखा तो मैं पलभर को अपना रोता चेहरा भूल गया. मत पूछो, उस ने अब के भी कितनी लगन से मुझ मरते की अपने साथ सैल्फी खींची और फेकबुक पर अपलोड करने के बाद हिदायत देती बोली, ‘‘अब पूरा एक घंटे तक जैसे मन करे, बिस्तर पर पड़े रहो. मर जाऊं जो तुम्हें करवट बदलने को भी कहूं. अब के तो तुम ने फेकबुक पर फोटो के लिए अपनी तो अपनी, मेरी भी जान निकाल कर रख दी, जानू. प्लीज, जब तक अस्पताल में हो, आगे से ऐसा मत करना. मुझे बहुत डर लगता है. तुम्हारी कसम, डियर. मैं इस हालत में तो तुम्हें कतई तकलीफ न देती जो मुआ ये फेकबुक न होता. मुझे माफ करना बेबी,’’ कह वह मेरे पास से उठी और सामने के स्टूल पर बैठ लाइक्स गिनने में मग्न हो गई.

हे, मेरे मित्रो, जब तक मैं ठीक नहीं हो जाता, यह मनाओ कि हर घंटा 60 मिनट के बदले 300 मिनट का हो जाए ताकि मैं कुछ देर अस्पताल में ही सही, चैन की सांस तो ले सकूं.

हे फेकबुक प्रेमियो, रोजरोज के मरने से बेहतर मैं एकबार ही मरना समझता हूं. इसलिए असली के मरने से मैं नहीं डरता. डरता हूं तो, बस, मरते हुए भी फेकबुक के लिए फोटो सैशन से. कहीं मरतेमरते भी बीवी के मनमाफिक चेहरे को लाइक्सजनिक न बना पाया और दोस्तों के लाइक्स बीवी की उम्मीदों के हिसाब से न मिले, तो उस की तो गई न सारी जिंदगी पानी में.

अपनाएं सामाजिक तौर तरीके

समाज एक व्यक्तियों का समूह है जहां हम सभी प्रेम, सौहार्द और एक दूसरे का ख्याल रखते हैं और यही भिन्न भिन्न समाज के समूह मिलकर एक अच्छे और सभ्य देश का निर्माण करते हैं.समाज में सभी को एक दूसरे की भावना, जरूरत और सहूलियत का ध्यान रखना होता है. लेकिन कई बार जब हमारे आसपास कोई नया व्यक्ति आता है तो उसके बोलने से लेकर काम करने की आदतों तक सभी कुछ इतना अजीब होता है और लोग  असहज होने लगते हैं. और सबसे बड़ी बात कि अमुक व्यक्ति को इस बात की कोई भी परवाह नहीं होती है.
सोचे अगर ऐसे ही हर व्यक्ति केवल अपने ही बारें में सोच कर दूसरे को असहज करें तो हमारी सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह अस्त व्यस्त हो जाएगी.आइए बात करते हैं कुछ बेहद ही सामान्य बातों की जिनका ध्यान रखकर हम सभी एक सभ्य समाज का निर्माण कर सकते हैं..-
पड़ोसियों से बात करते समय रखें इन बातों का ध्यान 
हम अपने पड़ोसी या किसी भी व्यक्ति से बात करते समय ध्यान रखे कि आपकी बातें उन पर किसी भी तरह से कोई फब्तियां तो नहीं कस रही है. आम तौर ये आदतें लगभग सभी में पायी जाती है कि हमें जो हमसे बेहतर दिख रहा है या पसंद नहीं आ रहा है.. उसकी हम पीठ पीछे तो मज़ाक बनाते ही है.. साथ ही मौका पाने पर सामने से मज़ाक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. अगर कोई बेहतर है तो मज़ाक बनाने के बजाय उनसे सीखने की कोशिश करें या किसी से आपको परेशानी है तो उससे सीधे जाकर अपनी परेशानी पर बात करें.
ये भी पढ़ें-सिर्फ बेटी ही नहीं बेटों की परवरिश पर भी दे खास ध्यान
मनमुटाव या कटुता रखने से किसी का फायदा नहीं होता लेकिन सकारात्मक सोच से हम खुद और समाज को बेहतर बना सकते हैं.2- आप अपने घर और आसपास की साफ सफाई जरूर करें, मगर साथ ही ये ध्यान रखे कि कचरे को खुले में बिल्कुल न छोड़े कि वो उड़कर दूसरों के दरवाजे, सड़क पर फैल जाए.. खासकर छोटे शहरों में लोग अपनी नाराजगी जताने के लिए भी ऐसा करते हैं.. ऐसी हरकतें न करें और न ही घर में किसी को करने दे.. ये सब आपकी असभ्यता को प्रदर्शित करता है.
साथ ही ऑफिस में भी ध्यान रखे कि कोई भी रैपर या नैपकिन यूँ ही डेस्क पर न छोड़े.. डस्टबिन में डालने की आदत बनाए.. किसी भी ऑफिस पार्टी या ट्रीट पर भी एक डस्टबिन रखवा ले और सबको उसी में used प्लेट, कप डालने को कहें..अपने आसपास स्वच्छ रखना हम सबकी ही जिम्मेदारी हैं.3- मदद के लिए हमेशा तैयार रहें और ऐसी भावना बच्चों में डाले.. क्या पता कब आपको किसी की जरूरत पड़ जाए तो उस समय आपको किसी को बुलाने पर झिझक न महसूस हो. साथ ही अच्छे और मददगार लोगों की एक टीम बनाए ताकि जरूरत पड़ने पर कोई न कोई तो मदद कर ही पाएगा.
बुजुर्गों का भी रखें खास ख्याल
समय समय पर समाज में रह रहे बुजुर्गों से बात करें और उनकी समस्याओं पर विचार कर रास्ता निकालने की कोशिश करें l बुजुर्गों की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं.4- एक आदत जो बड़ों, बच्चों सब में बहुत ज्यादा देखी जाती है कि खांसने, छींकने पर वो मुंह पर हाथ या रुमाल नहीं रखते. ये एक बहुत गलत आदत है. इससे आसपास बैठे लोगों को तो बुरा लगता है और साथ ही आपको खांसी, जुकाम या कोई इन्फेक्शन है तो बैक्टीरिया वातावरण में फैलने से दूसरों को होने का डर रहता है.ऐसा करने से बचें और बच्चों में भी ऐसी आदत न पलने दे. 5- किसी की कोई भी चीज़ छूने या इस्तेमाल करने से पहले उसकी इजाजत जरूर मांगे. अक्सर देखा जाता है कि पड़ोसी के गार्डन में कोई सुन्दर फूल खिला दिखता है तो हम उसे मौका पाते ही तुरंत तोड़ लेते हैं.. जबकि फूल तो बागों की शोभा बढ़ाने के लिए होते हैं . अगर आपको फूलों की जरूरत है भी तो तोड़ने से पहले परमिशन मांगे.
बच्चों में भी देखा गया है कि वो कहीं जाते हैं तो वहां उन्हें सुन्दर पेन, पेंसिल या खिलौना दिख जाता है तो कई बार चुपचाप उठा लेते हैं और कई बार उसे लेने के लिए जिद पर अड़ जातें है.. बच्चों में शुरू से ही ध्यान दे कि ऐसी आदत न पनपे.
ऐसी छोटी छोटी बहुत सी बातें होती हैं जिन पर हमारा ध्यान तो नहीं जाता है मगर उससे दूसरों को दिक्कत होती है.. इसका ध्यान रखें कि आपके किसी काम से किसी को असुविधा या तकलीफ न हो.

शुभारंभ : पार्ट 3

लेखक-कमल कुमार

‘‘बौबी आता, ‘हाय ग्रैंड मां,’ कह कर चला जाता. उस के कानों में हमेशा ईयरफोन लगा रहता. वह या मोबाइल पर होता या आईपैड पर गाने सुन रहा होता. या फिर टीवी देखता, नहीं तो लैपटौप लिए बैठा रहता. उसे कितनी भी आवाजें लगाओ, उस तक आवाज पहुंचती ही नहीं. पहुंचती कैसे?

‘‘वह गलत कहां था? मैं भी गलत कहां थी. वहां घर के अंदरबाहर सायंसायं करता सन्नाटा पसरा रहता. यहां आ गई हूं, तो बीते दिनों की परछाइयों से घिरी रहती हूं. सोचती हूं, यह घर बेच दूं. कोई दूसरा घर ले लूं या ओल्डएज होम चली जाऊं. पर वहां भी जगह नहीं मिली.’’

‘‘अगर आप चाहेंगी तो इसे बेचने की कोशिश की जा सकती है, तब तक,’’ वह हिचकिचाया था, ‘‘आप मेरे फ्लैट के बाहर वाले हिस्से में रह सकती हैं. आप चाहें तो चल कर देख लें पहले.’’

‘‘चलिए, चलते हैं,’’ कह कर वह उठी थी. हाथमुंह धो कर, साड़ी बदल कर आ गई थी.

उस ने उसे कमरा दिखाया था. कमरे के साथ बालकनी थी. साथ का स्टोर, किचन की तरह इस्तेमाल हो सकता था. ‘‘आइए बैठिए,’’ वह चाय बना लाया था.

‘‘आप का परिवार? पत्नी और बच्चे?’’ वह इधरउधर देख रही थी.

‘‘मैं भी अकेला ही रहता हूं. मेरी पत्नी अब नहीं है. मेरे भी दोनों बच्चे बाहर हैं. मैं भी आप की तरह बेटे के पास से ही लौटा हूं. यह सोच कर कि अब मैं वहां नहीं जाऊंगा. जैसे भी हो, मुझे यहीं रहना है. मेरे पास और कोई दूसरा विकल्प नहीं है.’’

आराधना ने देखा शरद के हाथ में पकड़ा चाय का कप गड़गड़ा रहा था. उस ने उस के हाथ से कप ले कर मेज पर रख दिया था. ‘‘अब चलूं,’’ वह उठी थी, ‘‘मैं कल आ जाऊंगी.’’

‘‘ठहरिए, आप को छोड़ आता हूं.’’ ‘‘मैं चली जाऊंगी. आप कहां बारबार लाएंगे और छोड़ेंगे.’’

‘‘आइए,’’ उस ने अपनी गाड़ी की चाबी उठा ली थी. शरद उसे छोड़ने चल पड़े.

‘‘रुकिए, अंदर तक छोड़ देता हूं,’’ घर के गेट पर पहुंच शरद ने कहा.

‘‘गाड़ी पार्क कर के अंदर आ जाइए.’’ शरद भी घर के अंदर आ गए तो अनुराधा बोली, ‘‘सोच रही हूं, दोपहर कब की ढल गई है. शाम आएगी, रात में बदल जाएगी. मैं बड़ी ही डरपोक हूं, भीतर से. अंधेरे और अकेलेपन दोनों से डरती हूं. जब से लौटी हूं, रात को सो ही नहीं सकी. घर में सारी बत्तियां जला कर रखती हूं. मैं आज भी तो शिफ्ट कर सकती हूं. क्या आप रुकेंगे? बस, 15 मिनट से ज्यादा नहीं.’’ उस ने अखबार ला कर रख दिया था. वह एक सूटकेस ले कर आ गई थी. घर में घूम कर सारी खिड़कियांदरवाजे चैक किए थे. गैस को चैक किया था.

फिर छोटेछोटे खूबसूरत से तकरीबन 10 पौधे कार्टन में डाल रही थी. ‘‘इन को तो ले कर जाना ही पड़ेगा. बहुत मेहनत से बनाए हैं, वह बोली.’’ 10 कार्टन हो गए थे. बाकी चीजें बाद में भी लाई जा सकती हैं. कार्टन कार की डिक्की में रखे, कुछ पिछली सीट पर. अब वे पहुंच गए थे. उस ने सूटकेस दीवार के साथ टिका दिया था. पौधों के कार्टन भी वहीं रखवा लिए थे. वह कुछ सोचती हुई बैठ गई थी. ‘‘आप परेशान न हों. कल तक सब ठीकठाक हो जाएगा. कोई माली भी मिल जाएगा. ठीक से घर की सफाई भी अब कल ही हो सकेगी,’’ शरद ने कहा. वह वैसी ही बैठी रही थी, कुछ सोचते हुए.

‘‘शरदजी, हमारे फ्लैट में एक लड़का और लड़की बिना शादी किए रह रहे हैं. कुछ लोगों ने आपत्ति की थी. फिर लड़की ने समझाया था, ‘हम दोनों एडल्ट हैं. आप को हमारे यहां रहने से कोई तकलीफ है क्या?’ वे दोनों सुबह अपने दफ्तर के लिए निकल जाते थे. रात को ही लौटते थे. शनिवार, इतवार को ही कभी घर में रहते थे. उस लड़की ने आगे कहा, ‘देखिए आंटीजी, इसे लिवइन रिलेशन कहते हैं. कोर्ट ने भी कानून की दृष्टि से इसे ठीक ठहराया है. हम साथसाथ रह रहे हैं. ठीक लगा तो बाद में शादी की जा सकती है. वैसे, अब भी सब ठीक है, पर हमें शादी की जरूरत नहीं लगती.’

‘‘उन्हें कोई कुछ नहीं कहता. आखिर हर व्यक्ति को अपनी तरह जीने का अधिकार है.’’ वह रुकी थी, फिर बोली, ‘‘कोई भी हो, उम्र कितनी हो, वे एकदूसरे का सहारा बन कर साथसाथ नहीं रह सकते. या रह तो सकते हैं. हां, आपसी इच्छा से साथ रहा जा सकता है.’’ वह थोड़ा रुकी, फिर बोली, ‘‘आप की और मेरी स्थिति कुछ ऐसी ही है. हम भी तो एकदूसरे का सहारा बन सकते हैं. आप के साथ 2 दिनों का साथ ऐसा लग रहा है जैसे वर्षों से आप को जानती हूं. आप बहुत संवेदनशील हैं. आप बहुत अच्छे हैं,’’ यह कह कर उस ने धीरे से अपना सिर उस के कंधे पर टिका दिया था और सुबक रही थी.

‘‘प्लीज रिलैक्स,’’ शरद का हाथ उठा था, उंगलियां कांपी थीं. फिर धीरे से उस के बालों में हाथ फिराया था. ‘‘मैडम, निश्चित ही हम दोस्त की तरह साथ रह सकते हैं.’’

उस ने गरदन उठाई थी, ‘‘मेरा नाम आराधना है.’’

‘‘मेरा नाम शरद है.’’ स्टाइल से कही अपनीअपनी बात से दोनों ही हंस पड़े.

‘‘आराधना? घर का डिस्टैंपर हुआ, तो बहुत सी चीजें इधरउधर हो गईं. कोई संभालने वाला भी तो नहीं है न, पत्नी शांति ही घर का मैनेजमैंट करती थी. वह जौब नहीं करती थी. वैसे एमबीए थी. शुरू में जौब करती थी, पर हमारा छोटा बेटा छुटपन में बहुत बीमार रहता था. उसे सिर्फ मेड के सहारे नहीं छोड़ा जा सकता था.

‘‘बच्चा कमजोर था और बारबार बीमार होता था. आखिर, हम ने फैसला लिया था कि हम दोनों में से एक ही नौकरी करेगा. मैं ने कहा था, ‘तुम जाओ बाहर का संभालो, मैं नौकरी छोड़ दूंगा. समय मिलेगा और मैं पेंटिंग करूंगा. मैं तो बनना ही पेंटर चाहता था. पिता के दबाव में पढ़ना पड़ा.’ शांति ने कहा, ‘ठहरो, पहले अपने बेटे से तो पूछो.’

‘‘बेटा सोचता रहा, फिर बोला, ‘मुझे आप दोनों ही चाहिए. दोनों के साथ रहूंगा.’

‘‘शांति हंसी थी, ‘लालच मत कर, एक जना तो जाएगा, घर चलाने के लिए पैसे भी तो चाहिए.’

‘‘आखिर, उस ने अपनी मम्मी को चुना. शांति ने जौब छोड़ दी थी. वह घर के फूड और होमकेयर के अलावा, स्वास्थ्य विभाग और घर की इकोनौमी भी देखती थी. 2 के बजाय एक की सैलरी से घर चल रहा था. पर कोई दिक्कत नहीं आई थी. घर का रखरखाव, बच्चों की देखभाल और पढ़ाई सब वही देखती थी. वह हमारी होम इंडस्ट्री की सीईओ थी. बाद में बच्चे बड़े हो गए थे, तो उस ने एक एनजीओ जौइन कर लिया था.

‘‘अब मैं अकेला हूं, सुबह सैर करने जाता हूं. दिन में फुरसत में पेंटिंग कर लेता हूं. शाम को क्लब में बिलियर्ड खेल आता हूं. बस, समय कट जाता है.’’

आराधना ने एक मोमबत्ती जलाई और फिर उस का हाथ पकड़ कर पूरे घर में घूम आई. ‘‘यह हमारा शुभारंभ है.’’ हंस कर वह बोली. दूसरे कमरे में उस ने देखा, ‘‘अरे, यह ईजल पर आधी बनी पेंटिंग?’’ उस ने देखा कोने में बहुत सारी पेंटिंग्स रखी थीं. कैनवास में एक स्त्री छवि थी. यह छवि शांति की ही होगी, उस ने सोचा. कईर् पेंटिंग्स कई तरह से, रेखाओं में बिंदुओं में, रंगों के फ्यूजन में. दूसरे और भी प्रकृति के विविध चित्र थे.

‘‘अब आप निश्ंिचत हो कर पेंटिंग बनाओ,’’ आराधना ने कहा तो शरद हंस कर बोला, ‘‘और आप बोनसाई उगाओ. बाद में हम एक प्रदर्शनी लगाएंगे. एक नया प्रयोग होगा. पेंटिंग के साथ बोनसाई रखने का प्रयोग सफल होगा, होना चाहिए.’’

‘‘क्यों नहीं, जो प्रयोग ईमानदारी और निष्ठा से किए जाते हैं वे सफल ही होते हैं, शरद. बस, अब आप मुझे घर के बारे में समझा दीजिए.’’ आराधना बेतरतीब ढंग से बिखरे सामान को सलीके से रखने लगी.

‘‘कुछ नहीं समझना आप को. जैसा चल रहा है, चलने दीजिए. सुबह काम वाली आएगी, सबकुछ कर जाएगी. खाना भी बना जाएगी. आप सिर्फ अपनी पसंद और टेस्ट के बारे में बता देना. फिलहाल आज रात के लिए कुछ कर लेंगे,’’ शरद ने आराधना का हाथ पकड़ा और कुरसी पर बिठा दिया.

‘‘मैं करती हूं, कुछ बना लेती हूं,’’ आराधना कुरसी से उठते हुए बोली थी.

‘‘नहीं, मैं कर लेता हूं. एकदूसरे को धकेलते हुए वे दोनों रसोई में खड़े थे. वह हंसी थी, बोली, ‘‘एकसाथ कुछ कर लेते है.’’ वह हंसा था, बोला, ‘‘हां अब साथ ही कर लिया करेंगे.’’

उन की हंसी घर के अंधेरे कोनों में रोशनी बिखेर रही थी. एकदूसरे का हाथ थामे उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे जिंदगी ने उन्हें खुशी की चाबी थमा दी है. द्य

शुभारंभ : पार्ट 2

लेखक-कमल कुमार

‘‘आप का हैंडबैग टैक्सी में ही रह गया था. उसे ले कर आया हूं. उस दिन आप का घर देख कुछ भी हो, समय हमेशा गुजर ही जाता है. वह उठ कर आया था, वहां खिचपिच में आप कहां बैठेंगी, जाइए, अब आप अपनी सीट पर आराम से बैठिए. उस ने अपने लिए फिल्म लगा ली थी. समय गुजारने के लिए यही अच्छा था.

चायनाश्ते और खाने में समय गुजर जाता है, उस के बाद भी समय रहता है. इस बार वह अपनी पसंद की किताब पढ़ने के लिए लाना भूल गया था. मन में खलबली सी मची थी. बहुत से सवाल उठ रहे थे. शांति के बिना घर में जाने का कोई उत्साह नहीं था. पर अब दूसरा भी तो कोई विकल्प नहीं रहा. पहले जो धुंधली सी आशा की किरण थी कि दोचार महीने संजय के पास बिताए जा सकते हैं, वह यथार्थ के अंधेरे में खो गई थी. फ्लाइट शैड्यूल टाइम से लगभग डेढ़ घंटा लेट थी. वहां से चली ही लेट थी. घड़ी में समय मिलाया था, भारतीय समय के हिसाब से 10 बजे थे.

उस ने आग्रह कर के आराधना का हैंडबैग ले लिया था. सामानपट्टी से सामान लेने के लिए शरद ने उस के लिए भी एक ट्रौली ला दी थी. सामान भी जल्दी ही आ गया था. वह बाहर जाने के लिए आगे बढ़े थे. ग्रीन चैनल से एग्जिट में पहले वह रुका था. ‘‘प्रीपेड टैक्सी लेनी होगी, आप को शायद कोई लेने आएगा?’’

आराधना के कदम थम गए थे. चेहरा लटक गया था. देखा, वह रो रही थी. कहीं गिर ही न जाए. उस ने उसे रोका था. कुछ दूर पड़ी कुरसियों तक ले आया था. उस की ट्रौली से सूटकेस उठा कर अपनी ट्रौली में रख लिया था.

‘‘आप बैठिए, आई एम सौरी.’’

वह टिश्यू पेपर से चेहरा बारबार साफ कर रही थी, पर फिर उस की आंखों से आंसू बहने लगते.

उस ने दोहराया था, ‘‘आई एम सौरी. चलिए, शांत हो जाइए. प्रीपेड टैक्सी ले लेते हैं.’’

वह उठ कर छोटेछोटे कदमों से चलने लगी थी.

‘‘आप यहां रुकिए, मैं ले कर आता हूं.’’

‘‘आप तकलीफ मत कीजिए, मैं अब ले लूंगी.’’

‘‘एक ही बात है, आप बताइए, आप कहां जाएंगी?’’

वह ट्रौली ले कर उस के साथ ही आ खड़ी थी, बोली, ‘‘मुनीरका के लिए बुक कर लीजिए.’’

काउंटर पर बैठा व्यक्ति कह रहा था, ‘‘आप को रुकना पड़ेगा. एकसाथ 3 फ्लाइटें लैंड की हैं. टैक्सी स्टैंड पर टैक्सी 5-10 मिनट में आती होगी.’’

अब उस ने कहा था, ‘‘वसंतकुंज के लिए टैक्सी ले लेते हैं. मैं आप को मुनीरका पर छोड़ कर आगे वसंतकुंज चला जाऊंगा.’’ काउंटर का व्यक्ति थोड़ा चिड़चिड़ा हो रहा था. पर उस ने टिकट बदल लिया था आराधना के बहुत मना करने के बाद उस ने पूरे पैसे उसे दे दिए थे.

‘‘आइए मैम, मुनीरका से वसंतकुंज रास्ते के एवज में मुझे आप को किसी अच्छी जगह कौफी पिलानी पड़ेगी,’ शरद ने कहा तो आराधना बोली, ‘‘कोई बुरा विचार नहीं है.’’

वह बता रही थी. उस का बेटा न्यूयौर्क में है और बेटी शिकागो में है. उस के पति यही चाहते थे कि बच्चे अच्छा करें, जीवन में आगे जाएं. हुआ वही जो वे चाहते थे. बेटे को स्कौलरशिप मिली, वह वहां पढ़ा भी और अब जौब में हैं. पर अब पति नहीं हैं. वह बेचैन हो गई थी. उस के आंसू थम ही नहीं रहे थे. शरद को समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे उसे सांत्वना दे.

जीवनभर उस ने संघर्ष किया. पति शिक्षा मंत्रालय में थे. वहीं से अंडर सैक्रेटरी पद पर रिटायर हुए थे. वह भी दफ्तर की नौकरी छोड़ कर कोर्स कर के स्कूल में अध्यापिका बनी, ताकि बच्चों और परिवार को एकसाथ देख सके. दफ्तर में थी तो सुबह साढ़े 8 बजे निकल घर लौटने में 7 भी बज जाते. कुछ बुरा तो नहीं था, अच्छा भी कुछ नहीं था. अध्यापिका से शुरू किया, अध्यापिका ही रही. उस के साथ की सभी लड़कियां, प्रमोशन होतेहोते अंडर सैक्रेटरी तक तो पहुंच ही गई थीं. तो भी सब ठीक ही रहा.

परिवार के सदस्यों की, बच्चों की, घर की देखभाल ठीक से हो गई. आर्थिकरूप से भी लाभ तो हुआ ही. सरकारी नौकरी की सुविधाएं थीं. सरकारी फ्लैट भी मिल सकता था. पर उन दोनों में से एक को ही मिलना था, सो, पति ने लिया.

मुनीरका पहुंच गए थे. टैक्सी वाले ने उस का सूटकेस बरामदे में रख दिया था. वह उतरी थी. शुक्रिया किया था और हाथ हिला कर जैसे विदा भी दे दी थी.

घर पहुंचते देखा तो उस का हैंडबैग वहीं रह गया था. पर अब क्या हो सकता था. कल देखा जाएगा. बंद घर में इतने दिनों बाद आना कितना मुश्किल होता है. समय लगता है उसे ठीकठाक करने में. सफाई, धुलाई, फिर किचन की कुछ जरूरी चीजें भी चाहिए होंगी.

अभी उस ने सिर्फ नहा कर सोने की तैयारी की थी. कमरे गंदे थे पर उस ने सिर्फ अपने बैड की चादर बदली थी. बाकी सुबह देखा जाएगा.

उधर, शरद को ध्यान आया था, 2 दिन हो गए थे आराधना का हैंडबैंग अभी भी यहीं पड़ा था. आज दे कर आना है.

शरद को अपने घर आया देख कर आराधना खुश भी थी और थोड़ी हैरान सी भी थी.

लिया था.’’

‘‘मैं ने सोचा था, फिर लगा था कि शायद यह एयरपोर्ट पर ही रह गया होगा. यह सब छोडि़ए, आइए भीतर.’’

वह अंदर आया था. एमआईजी फ्लैट था. पर सब ठीकठाक सा ही लगा था. आप चाय तो पिएंगे ही. वह दोनों के लिए चाय ले आई. चाय पीते हुए वह फिर उदास हो गईर् थी. ‘‘शरद जी, एक काम और करवा दीजिए. यह घर बिकवा दीजिए. मैं अब इस घर में नहीं रह सकती.’’

‘‘आप ऐसा क्यों कर रही हैं? आप का घर है.’’

‘‘यहां रहना मुश्किल है. मुझे इस में सारा समय मेरे पति चलतेफिरते, बातें करते दिखाई देते हैं. कभी बच्चों की आवाजें सुनाई देती हैं. मैं कल 2 ओल्डएज होम में जा कर आई हूं. वहां भी जगह नहीं है. वेटिंग में नाम लिख लिया है. 6 महीने, एक साल तक भी लग सकता है.

‘‘पर घर को बेच कर आप क्या करेंगी?’’

‘‘कुछ नहीं, किसी वृद्धाश्रम में चली जाऊंगी. वृद्धाश्रम भी तो रहने के लिए अच्छीखासी रकम मांगते हैं.’’

‘‘पर आप ऐसा क्यों करेंगी? आप का घर है. धीरेधीरे सब ठीक भी तो हो ही जाएगा.’’

‘‘भाईसाहब, शुरू में बड़े परिवार में रही. हमारी एक बड़ी हवेली थी जिस में दादादादी, ताया, चाचा, उन के परिवार, विधवा बूआ और उन के बच्चे सब एकसाथ रहते थे. फिर शादी हुई तो भी सासससुर, जेठजेठानी थे. फिर अपने बच्चे हुए. कभी अकेला रहने का मौका ही नहीं आया. भरेपूरे घर में पैदा हुई, पलीबढ़ी और रही. अब इस अकेले घर में नहीं रहा जाएगा. परछाइयों के साथ नहीं रह सकती. आप समझ लीजिए कि मैं बड़ी ही कमजोर हूं,’’ उस ने कहा.

शरद ने सोचा था, फिर कहा था, ‘‘आप चाहें तो मेरे घर के हिस्से में रह सकती हैं. वह इंडिपैंडैंट जैसा है. उस की एंट्री भी बाहर से ही है. अगर आप को ठीक लगे तो. जब तक आप का कोई दूसरा प्रबंध नहीं हो जाता, आप वहां रह सकती हैं.’’

वह सोच रही थी.

शरद भी समझ नहीं पा रहा था कि उसे कैसे आश्वस्त किया जाए. बहरहाल, उस ने पूछा था, ‘‘आप कुछ दिन और अपने बेटे के पास भी रह सकती थीं.’’

आराधना को जैसे किसी ने गरम सलाख से छू दिया था. वह कुरसी के पीछे सिर टिका कर जड़ सी हो गई थी. उसे दुख हो रहा था कि ऐसा गलत सवाल शरद ने क्यों पूछा. वह सुबक रही थी.

‘‘प्लीज, आप शांत हो जाइए, आई एम सौरी. यह सवाल ही गलत है. नहीं पूछना चाहिए था मुझे.’’

वह सिसकी थी, ‘‘आप नहीं पूछते तो भी क्या, दूसरे लोग भी तो सलाह यही देते हैं. यहां से पैकअप कर के वहीं चली जाऊं. बेटा कहता है, ‘आप को मैं डिपैंडैंट घोषित कर दूंगा. आप को पैंशन भी मिलेगी. पर साल में कम से कम आप को 6 महीने यहां रहना होगा.’ पर वहां तो मैं यहां से ज्यादा अकेली हो जाती हूं. वे दोनों सुबह जाते हैं, शाम ढले लौटते हैं. आसपास कोई नहीं जिस से दो बोल बोले जा सकें. बेटा कहता है, ‘आराम से टीवी देखो, डीवीडी पर फिल्म देखो. दोपहर बाद आप का पोता बौबी आ जाएगा. आप का उस के साथ दिल लग जाएगा.’

शुभारंभ: पार्ट 1

लेखक-कमल कुमार

शरद और आराधना उस दौर से गुजर रहे थे जहां अकेलापन उन के लिए असहनीय था. पतझड़ सी दोनों की जिंदगी यदि एक ही राह पर चल पड़ती तो क्या उस में कुछ गलत था?

संजीव उसे चैकइन करवा कर लौट गया था. अभी समय काफी था. तो भी, वह सिक्योरिटी चैक कर के अंदर जा कर ही बैठेगा. लंबा कौरिडोर चल कर वह निर्धारित गेट के सामने लाउंज में आ गया था. पढ़ने के लिए उस ने 2 अखबार उठा लिए थे. उस ने नजर इधरउधर दौड़ाई थी. यह फ्लाइट डायरैक्ट दिल्ली की थी. इस में इंडियन ज्यादा होते हैं. वह संजीव और प्रोमिला के पास 3 महीने से था. पर बेगाने अमेरिका में हर पल भारी लगा था.

पहले जब वह शांति के साथ बेटे के पास आता था तो कुछ ठीक लगता भी था पर अब तो 3 महीने 3 जिंदगियां लगीं. 60 के पार उम्र पहुंच गई है उस की. पत्नी शांति ब्लडप्रैशर की मरीज थी. शादीशुदा जिंदगी के बहुत खूबसूरत लम्हे दोनों ने साथसाथ गुजारे थे. खुश रहने वालों में से थी शांति. उन्हें भी खुश रखती थी. लेकिन बीमारी पर उस का बस नहीं था. 2 साल पहले ही देहांत हुआ था. शांति के बिना जैसे उस की जिंदगी थम सी गई थी. रात तो बेचैनी में बीतती थी, दिन भी काटे नहीं कटता था. सारा दिन बालकनी में चेयर डाल कर बैठे आतेजाते लोगों को देखते. अमेरिका में तो यह भी नहीं कर सकते थे. सारा दिन कमरों में बंद रहो. वीकैंड में संडे को घर की सफाई, ग्रौसरी शौपिंग कर लो. संजीव और प्रोमिला जहां जाते वहां कालेगोरे, इंडियन सब होते थे और वह घुलमिल नहीं पाता. इसलिए, रातें भी अकेले ही रहनी होती थीं. अब जिद कर के घर, दिल्ली लौट रहा था. बेशक दिल्ली के बसंतकुंज एरिया में रहता था और वहां भी अड़ोसपड़ोस में लोग एकदूसरे से ज्यादा मेलजोल नहीं रखते थे लेकिन फिर भी आतेजाते एकदूसरे से हायहैलो तो हो जाती थी. एकदूसरे के घर में क्या हो रहा है, काम करने वाली मेड ही सब खबर दे देती. कालोनी की न्यूज जानने का अच्छा न्यूज चैनल का काम करती थी वह.

ये भी पढ़ें-भ्रष्टमेव जयते

चाय पीने का मन किया तो उठा और  एक डिस्पोजेबल कप में चाय की मशीन से चाय ले आया और बैठ गया. चाय पीतेपीते अखबार पढ़ने लगा लेकिन पढ़ने में ज्यादा मन नहीं लग रहा था. अधिकतर खबरें उस के लिए अप्रासंगिक थीं. अनाउसमैंट हुई थी फ्लाइट एक घंटे लेट हो जाएगी. यह बड़ा अप्रत्याशित लगा था. बोर्डिंग की अनाउसमैंट के बजाय फ्लाइट के लेट होने की सूचना थी.

वह उठ कर मैगजीन उलटनेपलटने लगा था. उस ने देखा, एक स्त्री घबरा कर उठी थी और इधरउधर देख रही थी. फिर उस के पास आ गई थी. ‘‘बोर्डिंग का समय तो हो चुका, अब तक एंट्री नहीं खुली,’’ उस ने अपना बोर्डिंग पास दिखाते हुए कहा था.

‘‘शायद आप ने अनाउसमैंट नहीं सुनी, फ्लाइट एक घंटे लेट होगी,’’ उस ने यह कहा तो वह लौट गई पर अभी भी इधरउधर जैसे कुछ ढूंढ़ रही थी. घबराई सी, मेले में खोए बच्चे की तरह लग रही थी वह, अब रोई कि अब रोई. उम्र उस की 55-60 के बीच लग रही थी. लेकिन चेहरे का आकर्षण बरकरार था. बाल कंधे से नीचे तक कटे थे जिसे उस ने सलीके से कलर किए हुए थे. देखने में अच्छी पढ़ीलिखी लग रही थी. बिना दुपट्टे के ब्लैक कलर के सूट में स्मार्ट लुक आ रही थी. शायद उसे कुछ चाहिए होगा. उस ने सोचा कि पूछूं, आगे बढ़ा, लेकिन फिर संकोचवश अपनी कुरसी पर लौट आया था.

‘‘भाईसाहब यहां वाटरकूलर होना चाहिए,’’ उस स्त्री ने कहा तो उस ने कहा, ‘‘जरूर होगा, आप रुकिए, मैं पानी लाता हूं. लेकिन, यहां तो सब जगह वाशबेसिन के टेप से ही पीने के पानी का टेप भी होता है. कौफी वाले से डिस्पोजेबल गिलास लाता हूं.’’

ये भी पढ़ें- गुरु

‘‘जरा रुकिए,’’ उस ने अपने बैग से एक छोटा गिलास निकाल कर दिया था. यहां पीने का पानी अलग से नहीं होता. पानी पीने के बाद उस ने पूछा था, ‘‘आप भी दिल्ली जा रहे हैं क्या?’’

शरद का सवाल आराधना ने पूछ लिया था. उस के लिए स्थिति आसान हो गई थी. ‘‘जी, फ्लाइट लेट है, अगर कुछ चाहिए, तो बता दीजिए, ला देता हूं. खाने के लिए कुछ चाहिए क्या?’’वह चौकन्नी सी हुई थी, ‘‘आप आइए, बैठिए प्लीज.’’ उस ने अपने बैग में से 2 पैकेट निकाले थे.

‘‘आप लीजिए,’’ उस ने एक पैकेट बढ़ाया था. ‘‘यहां का कुछ खाया नहीं जाता, इसलिए यह बना लाई थी. आलू परांठे हैं. आप लीजिए.’’

वह हिचकिचाया था. आराधना ने दोबारा कहा था, ‘‘लीजिए, घर का है.’’

शरद हंसा था, ‘‘बाहर का कैसे हो सकता है. परांठे हैं न.’’ उस ने संकोच के साथ परांठे ले लिए थे. उस ने अल्यूमिनियम फौयल हटाई, आचार का एक टुकड़ा भी उस में था. ‘‘आप औरतें बहुतकुछ अच्छा और व्यावहारिक सोच लेती हैं और कर भी लेती हैं.’’

वह पहले खुश लगी थी. फिर उदासी का धुंधलका सा चेहरे पर घिर आया था. ‘‘हम औरतें हमेशा अपने को असुरक्षित महसूस करती हैं. वैसे भी इस में खास क्या है? अब तो इस की जरूरत भी नहीं रही. देखिए न, यहां खाने के लिए कितना कुछ है. हमारे बच्चों को क्या फर्क पड़ता है.’’

उसे शांति की याद आई थी. जब भी कहीं जाना होता, ट्रेन हो या हवाई जहाज, हमेशा कुछ न कुछ बना कर बैग में रख लेती थी.

उस ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘बेटा हंस रहा था, ‘मम्मा, फ्लाइट में जाना है, लंच होगा ही, आप क्यों परांठे बना रही हैं?’ मैं ने कहा, कोई नहीं बेटा, अब बन ही गए हैं तो रख लेती हूं. तुम्हारे दोनों के लिए भी बना दिए हैं, खा लेना. ‘ओ हो अम्मा, बाहर निकलो, फ्लाइट का समय हो रहा है. चलो, तैयार हो जाओ.’ फिर मैं बस अच्छा ठीक है न ही कह सकी.’’

वे परांठे उन दोनों ने सिंगापुर में घूमते हुए खाए थे. जगहजगह खाने के रैस्तरां तो थे पर खाने में वही सूपी नूडल्स और सीफूड.वह हंसी थी, ‘‘देखा, कितने काम आए ये परांठे. अब यही खाओ. शाम को किसी अच्छे रैस्तरां में बैठेंगे तो शाकाहारी खाना भी मिल ही जाएगा.’’

वह सोच रहा था कि सभी औरतें इतनी व्यावहारिक कैसे होती हैं और आगे का कैसे सोच लेती हैं.

घंटा भी गुजर गया था. बोर्डिंग शुरू हो गई थी. प्लेन में उस की सीट खिड़की के पास थी. चलो, अच्छा हुआ. उसे अपने को बीच में 5 सीटों वाली लाइन में सीट मिली थी. 17 घंटे की फ्लाइट थी. खाने के बाद लाइटें बंद कर दी गई थीं. यात्री अपनीअपनी सीटों पर गरदन लुढ़काए ऊंघने लगे थे. उस ने देखा था वह भी एक तरफ गरदन लुढ़काए आधी सोई आधी जागी स्थिति में थी. वह उठा था, उस ने कहा, ‘‘मेरे साथ की 2 सीटें खाली हैं, मैं आप की सीट पर बैठता हूं. आप बीच में आर्महोल्ड निकाल कर कुछ देर लेट जाइए.’’ वह हिचकिचाई थी. फिर उठ कर चली गई.

वह उस की सीट पर बैठ गया. सीट पीछे खिसका कर सोने के लिए आंखों पर कपड़े की ऐनक पहन ली.

#coronavirus: इन 10 टिप्स के जरिए कोरोना वायरस को रखें स्मार्टफोन से दूर

इस समय जब कोरोना वायरस के चलते स्कूल, कॉलेज, माॅल तक बंद कर दिए गए हैं और सोशल डिसटेंस मेनटेन करने को कहा जा रहा है. समय समय पर हाथों को साफ रखने की बात की जा रही है तो जरूरत हमें अपनी साफ सफाई के साथ इस्तेमाल करने वाली वस्तुओं को भी सैनेटाइज करने की है .

मोबाइल को भी करना होगा सैनेटाइज

डॉक्टर्स की माने तो किसी भी वस्तु को छूने के बाद हाथों को साफ करें या सेनेटाइजर इस्तेमाल करें. मगर सबसे ज्यादा तो हम अपना स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं और हर समय साथ रहते हैं l फिर भी हमारा ध्यान अभी तक मोबाइल को साफ करने की ओर नहीं जा रहा है जबकि सबसे ज्यादा संक्रमण फैलने का डर फोन से ही होता है तो जरूरत इसे साफ सुथरा रखने की है l एक स्टडीज दावा करती है कि टायलेट सीट से ज्यादा कीटाणु मोबाइल फोन पर पाए जाते हैं . क्यू कि हम खाने खाने से लेकर टायलेट जाने तक मोबाइल फोन साथ रखते हैं .

ये भी पढ़ें-सीने में दर्द के हो सकते हैं कई अलग-अलग कारण

  1. नॉर्मल दिनों में मोबाइल स्क्रीन साफ करने वाले जेल की दो बूंदे डालकर कपड़े से साफ रख सकते हैं .मगर इस समय जब कोरोना वायरस फैलने की बात बात कही जा रही है और बार बार हाथों को सैनेटाइज करने की सलाह दी जा रही है तो इस समय अल्कोहल आधारित सेनेटाइजर ही बेहतर होगा. मोबाइल फोन को भी साफ करने के लिए.

2. सैनेटाइजर की दो बूंदे मोबाइल पर डालें और कॉटन से उसे पूरे फोन पर लगाए दिन में दो से तीन बार इसी तरह मोबाइल को साफ करें.

3. खासकर जब बाहर से घर आए तो सबसे पहला काम मोबाइल को साफ करने का ही करें.

4. इस समय छोटे बच्चों को मोबाइल न दे.

5. इसके अलावा किसी और का भी फोन न इस्तेमाल करें.. न छुए.

6. जिनको सैनेटाइजर नहीं मिल रहा है वो डेटॉल की कुछ बूंदें कॉटन में लेकर मोबाइल पर लगा ले और फिर किसी साफ कपड़े से पोंछ ले.. इससे भी संक्रमण खत्म हो जाएगा..

7. अगर मोबाइल की जरूरत न हो तो उसे डेस्क और टेबल पर हर जगह रखने के बजाय पॉकेट या पर्स में ही रहने दें.

8. खाते समय फोन को दूर रखे और रात को भी बिस्तर पर मोबाइल रखने के बजाय टेबल पर रखें.

9. अलार्म क्लाक भी घड़ी में ही लगा ले तो बे‍हतर होगा.

10. खुद अपना मोबाइल फोन तो साफ करें ही साथ ही घर के बड़े बुजुर्गों का मोबाइल भी समय समय पर सैनेटाइज करते रहे.

कुल मिलाकर मोबाइल को साफ सुथरा रखें और कम इस्तेमाल करें.

Coronavirus : कार्तिक-नायरा के साथ ‘ये रिश्ता…’ टीम ने बढ़ाया लोगों का हौसला, किया अवेयर

पूरे देश में कोरोना का डर देखने को मिल रहा है. ऐसे में सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के सेट पर सभी कलाकार मास्क पहने नजर आएं जिसे देखकर साफ समझ आ रहा है कि लोग खुद को सुरक्षित रखना चाहते हैं.

एक्टर मोहसीन खान और शिवांगी जोशी आपने आपसी नोक-झोंक को भुलाकर सेट पर मौजूद सभी लोगों को कोरोना से बचाव करने के टिप्स बता रहें हैं. फोटो में पूरा क्रू मेंबर मास्क लगाए दिख रहा है. यह तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है.

ये भी पढ़ें-Naagin 4 के सेट पर Coronavirus का टेस्ट करवाती दिखीं Rashami, फैंस

नायरा कार्तिक ने ली सेल्फी….

सीरियल में नायरा और कार्तिक का किरदार निभाने वाले मोहसिन खान और शिंवागी जोशी अपनी पूरी टीम के साथ सेल्फी लेते दिखें. इससे पता चलता है दोनों अपने टीम का खूब ख्याल रखते हैं.

वहीं, शो में नायरा की सास का रोल करने वाली नियती जोशी भी सेट के बाहर आकर सभी मेंबर्स के साथ सेल्फी लेती नजर आ रही हैं. इतने सारे लोग को देखकर आपके मन में जरूर यह सवाल उठ रहा होगा कि पर्दे पर इतने कम लोग नजर आते हैं, लेकिन सेल्फी में इतने सारे लोग कैसे दिख रहे हैं.

बता दें एक सीरियल को खूबसूरत दिखाने के लिए कुछ मेंबर्स पर्दे के पीछे रहकर काम करते हैं. इतने लोगों की मेहनत से रिजल्ट अच्छा आता है.

ये भी पढ़ें-छोटी सरदारनी: शो ने किए 200 एपिसोड्स पूरे, कास्ट संग मेहर-सरब ने

 

View this post on Instagram

 

?

A post shared by शिवांगी जोशी (@shivangijoshi18) on

शो का बैकअप तैयार कर रही है टीम

शिवांगी जोशी अपने शूटिंग के साथ-साथ अपने बचाव का भी खास ख्याल रख रही हैं. खबर यह भी आई है कि 31 मार्च तक टीवी सीरियल की शूटिंग बंद कर दी जाएगी. ऐसे में प्रोड्यूसर्स चाहते है कि जल्दी से जल्दी बैक अप तैयार किया जाए.

इस सीरियल में काम करने वाले हर एक व्यक्ति का मानना है कि कोरोना से डरना नहीं है इसका डटकर सामना करना है.

मिला 1 घंटे का स्लॉट…

इस सीरियल को नया टाइम मिल गया है  अब हर रोज एक घंटे के लिए टीवी पर प्रसारित किया जाएगा. इससे सीरियल की टीआरपी पर भी फर्क पड़ेगा. जिससे टीवी की टीआरपी बढ़ जाएगी. टीम खूब मेहनती कर रही है.

Coronavirus: कोरोना की वजह से आइसोलेशन पहुंचे बिग बॉस कंटेस्टेंट अनूप जलोटा, फैंस को दिया ये मैसेज

भजन सम्राट अनूप जलोटा बिग बॉस 12 के कंटेस्टेंट रह चुके हैं. बिग बॉस में अनूप जोलोटा के साथ जसलीन मथारू की जोड़ी को फैंस ने खूब पसंद किया था. हाल ही में अनूप जलोटा ने एक ट्वीट कर जानकारी दी है कि उन्हें कोरोना वायरस के बचाव के लिए आइसोलेशन में रखा गया है.

अनूप जलोटा ने किया ये ट्वीट…

अनूप जलोटा इस खबर से डरे हुए हैं. उन्होंने ट्वीट में लिखा है. ‘मैं बीएमसी की तरफ से 60 साल तक के बुजुर्ग को दी जा रही सुरक्षा के घेरे में रखा गया हूं. यह सब देखकर मुझे बहुत डर लग रहा है मैंने जैसे ही लंदन से मुंबई के लिए लैंड किया तभी मुझे होटल मिराज से ले जाया गया मेरे जांच के लिए डॉक्टर्स की टीम है जो लगातार जांच कर रही है मैं बाकी अन्य यात्रियों से भी अपील करता हूं कि करोना वायरस को रोकने में मदद करें’

ये भी पढ़ें-Naagin 4 के सेट पर Coronavirus का टेस्ट करवाती दिखीं Rashami, फैंस

कोरोना की चपेट में आने वाले पहले सेलेब अनूप 

अनूप जलोटा के इस खबर ने उनके फैंस के बीच खलबली मचा दी है. वो अभी तक के पहले सेलेब है जो कोरोना वायरस के चपेट में आए हैं. यह वायरस बुजुर्गों के लिए खतरनाक माना जा रहा है. इसके चपेट में अभी तक 3 बुजुर्गों की जान जा चुकी है.

 

View this post on Instagram

 

Support us friends #biggboss12 @jasleenmatharu @anupjalotafai

A post shared by Anup & jasleen bigg boss 12 (@anup_jasleen_bigboss_fanpage) on

सबसे ज्यादा करोना का मामला मंबई से आया है. अभी तक 39 व्यक्ति इस बीमारी से संक्रमित है. वहीं पूरे देश में 130 लोग इस बीमारी के चपेट में आ चुके हैं.

बंद हुए स्कूल-कॉलेज…

देश में इस वायरस के चलते पैनिक माहोल बना हुआ है. इसके बचाव के  लिए सरकार हर तरह के कदम उठा रही है. जिससे जनता को ज्यादा परेशानी का सामना न करना पड़े. कुछ राज्यों में भीड़भाड वाली जगहों को बंद कर दिया गया है. ऑफिस. कॉलेज, सिनेमाघर औऱ बच्चों के स्कूल को 31 मार्च तक बंद करने का ऐलान कर दिया गया है. घर के अंदर रहना सबसे ज्यादा सुरक्षित माना जा रहा है.

ये भी पढ़ें-छोटी सरदारनी: शो ने किए 200 एपिसोड्स पूरे, कास्ट संग मेहर-सरब ने

नींद में प्रशासन, फरार डॉक्टर और बेहाल जनता

गुजरे रविवार यानी 15 मार्च 2020 को उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह ने कहा कि राज्य में लापता 700 सरकारी डॉक्टर जल्द ही बर्खास्त किए जाएंगे. गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में ऐसे 700 चिकित्सक चिन्हित किए गए हैं,जो सरकारी अस्पतालों में नियुक्ति लेने के बाद या तो कहीं दूसरी जगह चले गए हैं या बगैर बताए उच्च शिक्षा लेनी शुरू कर दी है अथवा चुपचाप अपना निजी नर्सिंग होम चला रहे हैं.

सरकार या प्रशासन को इनके बारे में कुछ भी पता नहीं है. उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के मुताबिक़ ऐसे डॉक्टरों की बर्खास्तगी की प्रक्रिया शुरू हो गई है और एक डेढ़ महीने में इन सभी की सेवाएं समाप्त कर दी जाएंगी.

ये कहानी न तो आज की है और न ही अकेले उत्तर प्रदेश की है. देश के सभी राज्यों में सरकारी डॉक्टरों की यही कहानी है. अब उत्तराखंड को ही लें. उत्तराखंड में पिछले पांच सालों से 48 सरकारी डॉक्टर ड्यूटी से गायब हैं. जिन्हें पिछले साल बर्खास्त किये जाने की बात सरकार द्वारा कही गयी थी. जिस समय इन 48 को बर्खास्त किये जाने की खबर आयी थी, उसी समय यह बात भी पता चली थी कि उत्तराखंड में इनके अलावा 150 अन्य डॉक्टर हैं, जो पिछले 6 महीनों से गायब हैं. यह स्थिति तब थी जबकि प्रदेश की कुल 2109 स्वास्थ्य यूनिटों में मौजूद डॉक्टरों के 2715 पदों में से पहले ही केवल 1104 डॉक्टर थे.

ये भी पढ़ें- कोरोना को लेकर दुनियाभर में बदहवासी, यह कैसा पागलपन है?

लेकिन किसी एक या दो प्रदेशों को क्यों रोएं जब सबकी यही कहानी हो? देश में कोई भी ऐसा प्रदेश या महानगर नहीं है, जहां रजिस्टरों के हिसाब से ड्यूटी में मौजूद कुछ डॉ. लापता न हों. मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के पास वर्ष 2017 तक कुल 10.41 लाख डॉक्टर पंजीकृत थे. इनमें से सरकारी अस्पतालों में 1.2 लाख डॉक्टर थे. शेष डॉक्टर निजी अस्पतालों में कार्यरत थे अथवा अपनी निजी प्रैक्टिस कर रहे थे.लेकिन कागजों में देशभरके सरकारी अस्पतालों में जितने डॉक्टर थे,हकीकत में इससे करीब 25% कम थे.न जाने डॉक्टर कहां गायब हो जाते हैं.लेकिन हैरानी की बात यह है कि इनके गुमशुदा होने की कहीं कोई रिपोर्ट भी नहीं लिखाई जाती. लगता है इनके घर वालों को भी इनकी चिंता नहीं होती.

विश्व स्वास्थ्य संगठन को आधार मानें तो देश में पहले से ही 600,000 डॉक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी है. डब्लूएचओ के मुताबिक़ हर 1000 की आबादी में औसतन 1 डॉक्टर होना चाहिए. लेकिन हिन्दुस्तान में 11,082 की आबादी पर महज एक डॉक्टर है. इस तरह देखें तो यह अनुपात तय मानकों के मुकाबले 11 गुना कम है.हद तो यह है कि यह अनुपात भी सभी प्रान्तों में नहीं है. बिहार में तो 28,391 लोगों की आबादी पर एक एलोपैथिक डॉक्टर उपलब्ध है. उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की हालत भी इससे कोई बेहतर नहीं है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साल 2016  में एक और डराने वाली तस्वीर दिखाई थी. इसके मुताबिक़ भारत में एलोपैथिक डॉक्टर के तौरपर उस समय प्रैक्टिस कर रहे  एक तिहाई डॉक्टरों के पास मेडिकल डिग्री ही नहीं थी. भारत में स्वास्थ्य के मद में होने वाले खर्च का 67.78 प्रतिशत लोगों की जेब से ही निकलता है,जबकि इस मामले में वैश्विक औसत महज 17.3 प्रतिशत है.ये आंकड़े बताते हैं कि हमारी सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था कितनी बदहाल है.

बदहाल सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था और घोर गरीबी का कॉकटेल आधे से ज्यादा भारतीयों को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित करता है.

ये भी पढ़ें- केजरीवाल ने घोषित किया कोरोना वायरस को महामारी,  क्या ठप हो जाएगी दिल्ली!

विश्व स्वास्थ्य सांख्यिकी रिपोर्ट 2018 के अनुसार,भारत में लगभग 23 करोड़ लोगों को 2007 से 2015 के दौरान अपनी आय का 10 फीसदी से अधिक पैसा इलाज पर खर्च करना पड़ा. यह संख्या ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी की संयुक्त आबादी से भी अधिक है. भारत की तुलना में इलाज पर अपनी आय का दस प्रतिशत से अधिक खर्च करने वाले लोगों का प्रतिशत श्रीलंका में 2.9 फीसदी, ब्रिटेन में 1.6 फीसदी, अमेरिका में 4.8 फीसदी और चीन में 17.7 फीसदी है.डब्लूएचओ के महानिदेशक ट्रेडोस एडहानोम गेबेरियस के मुताबिक़, ‘ भारत में बड़े पैमाने पर लोग उन बीमारियों से मर रहे हैं,जिनका इलाज मौजूद है और जिसे बड़ी आसानी से रोका जा सकता है.’ यही नहीं बहुत से लोग केवल इलाज पर अपनी कमाई खर्च करने के कारण गरीबी में उलझ जाते हैं.

हिन्दुस्तान में कुल आबादी के 3.9 प्रतिशत यानी 5.1 करोड़ लोग अपने घरेलू बजट का एक चौथाई से ज्यादा इलाज पर ही खर्च कर देते हैं. जबकि श्रीलंका में ऐसी आबादी महज 0.1 प्रतिशत है,ब्रिटेन में 0.5 फीसदी, अमेरिका में 0.8 फीसदी और चीन में 4.8 फीसदी है.रोटी, कपड़ा और मकान इंसान की बुनियादी जरूरतें भले ही हैं, लेकिन अच्छा स्वास्थ्य और उसे बनाए रखना भी उतना ही जरूरी है और उसके लिए डाक्टरों की कमी को दूर करना समय की पहली जरूरत है.

यही वजह है कि अमरीका जैसे देश में भी रोगी को उच्च-चिकित्सा सुविधा बिलकुल मुफ्त मिलती है.जबकि भारत में इस वजह से करीब 65 प्रतिशत लोग उच्च-चिकित्सा की सुविधा की सोचे बिना मर जाते हैं.यही नहीं उच्च-चिकित्सा से 5.7 करोड़ लोग गरीबी की रेखा में सिमट जाते हैं.

बड़े पैमाने पर देश में एंटीबायोटिक-उपचार योग्य मौतें हो रही हैं.कहने का मतलब ऐसी मौतें जिन्हें एंटीबायोटिक के उपयोग से बचाया जा सकता था. लेकिन हिन्दुस्तान में बड़ी संख्या में ऐसे मरीज होते हैं जिनके पास एंटीबायोटिक खरीद पाने की क्षमता ही नहीं है. लेकिन भारत में मेडिकल विद्रूपताएं सिर्फ एक जैसी नहीं हैं.कुछ दूसरी तरह की भी समस्याएं हैं जो मेडिकल शिक्षा के बाजारीकरण से पैदा हुई है.

ये भी पढ़ें- हाय! हाय! हम कहां से लाएं दस्तावेज

मसलन देश में एलोपैथी के डॉक्टरों में से करीब 46 फीसदी यानी 5.3 लाख डॉक्टर सिर्फ चार राज्यों में रजिस्टर्ड हैं. 31 जनवरी, 2019 तक अद्यतन किये गए आंकड़ों के मुताबिक, देश में एलोपैथिक डॉक्टरों की संख्या 11.57 लाख हो गयी. जिन चार राज्यों में देश के आधे डॉक्टर रजिस्टर्ड हैं वे हैं-आंध्र प्रदेश (1,00,587), कर्नाटक (1,22,875), महाराष्ट्र (1,73,384) और तमिलनाडु (1,33,918) हैं.

ऐसा नहीं है यह बात सरकार को नहीं पता यह आंकड़ा सरकार का ही है. मगर सवाल है इस असंतुलन को दूर करने के लिए क्या सरकार कुछ करेगी? एकेडमी ऑफ फैमिली फिजीशियंस ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट डॉ.रमन कुमार कहते हैं, ‘ चार राज्यों में इतने डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन मेडिकल शिक्षा के बाजारीकरण का एक नमूना है. महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मेडिकल कॉलेजों में में तीन चौथाई सीटें हैं.’ यह भी एक बीमारी है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें