"कोरोना वायरस" के संक्रमण से जनता को बचाने के लिए सरकार ने बड़े बड़े दावे किए. सच्चाई यह है कि गरीब वर्ग इस "लॉक डाउन" के समय सबसे अधिक परेशान हो रहा है. खाने पीने की कमी और परदेश में असुरक्षा की भावना के चलते वो बड़े शहरों से अपने गांव घर की तरफ पैदल ही पलायन करने लगी. सड़को पर देश की आजादी के समय बंटवारे की त्रासदी सा दृश्य दिखने लगा.

देश की हर सड़क पर ऐसे लोग दिख जायेगे जो पैदल एक जगह से दूसरी जगह जाते दिख जायेगे.  यह भले ही बहुत बड़े समूह में इधर से उधर ना जा रहे हो पर इनकी संख्या बहुत बड़ी है. यह सब 100-200 किलोमीटर ही नही इससे अधिक दूरी की यात्रा भी पैदल तय करने का साहस करके अपने घरों से बाहर सड़को पर निकल पड़े.

ऐसा आलम देश की जनता ने पहली बार देखा है. यह बात जरूर है कि ऐसे दृश्य फिल्मों में देखने को मिले थे जब देश के बंटवारे के समय भारत से पाकिस्तान की तरफ और पाकिस्तान से भारत की तरफ लग घर परिवार बीबी बच्चो के साथ पैदल सड़को ले रास्ते चल रहे थे. उस समय भी इनसे मारपीट और बदसलूकी की जाती थी.

आजाद भारत मे इसकी कल्पना मुश्किल थी. 22 मार्च को जब देश भर के शहरों को कॅरोना वायरस के संक्रमण से बचाने के लिए "लोक डाउन" करने की घोषणा हुई तो एक बार फिर से 1947 के पलायन के दृश्य सड़को पर दिखने लगे.

शहरों के लोक डाउन होते ही एक शहर से दूसरे शहर जाने वाली सड़को को बंद कर दिया गया. बस, टैक्सी, रेल गाड़ियों का चलना बन्द कर दिया गया. ऐसे में बड़े बड़े शहरों में रह रहे लोगो मे भय और डर बैठ गया. यह लोग बड़े शहरों को छोड़ कर अपने गांव घर जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े.

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