जी हां , लोगों के जीवन में खुशी का रंग भरते फूलों ने इन दिनों किसानों के जीवन को रंगहीन कर दिया है .फल , सब्जी या फूलों की खेती की खेती. ये सभी नगदी फसलें हैं .फसल तैयार होने के बाद अगर इन्हें तुरंत बाजार में ना भेजा जाए तो यह खराब हो जाती हैं , इन का मोल दो कौड़ी का भी नहीं रह जाता.
आज फूल पैदा करने वाले किसानों के सामने ऐसा ही दौर आया है .खेतों में लदे इन फूलों की खुशबू किसानों का दम घोंट रही है . अपने हाथों से किसान खुशबू बिखेरती अपनी फसल को काट कर फेंकने को मजबूर हैं, क्योंकि कोरोना के कहर ने किसी को नहीं छोड़ा .
देश की मंडियां बंद हैं, कारोबार बंद हैं, कारखाने बंद हैं, देश का किसान भुखमरी के कगार पर है. किसानों को फसल से मिलने वाली आमदनी तो दूर, उनकी लागत लागत भी डूब चुकी है .फूलों की खेती करने वाले मेरठ ततारपुर के किसान ओमबीर ने बताया कि हम तो इस समय बरबाद हो चुके हैं. हम ने 4 एकड़ में फूलों की फसल लगाई थी , 2 एकड़ में गुलाब लगाया था , 2 एकड़ में गुलदावरी और ग्लेडियोलस की फसल लगाई थी. गुलदावरी तैयार है, गुलाब तैयार है ,ग्लेडियोलस भी तैयार है. लेकिन सभी फसलों को हमें अपने हाथों से काट कर फेंकना पड़ रहा है .गुलाब तो काटने के बाद फिर गुलजार हो जाएगा, लेकिन बाकी फसलों को हमें खेत में ही जोतना होगा.
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उन्होंने आगे बताया कि हम हर साल अपनी फसल को दिल्ली की गाजीपुर मंडी में ले जाकर बेचते थे , लेकिन इस समय सब कुछ बंद होने के कारण सब बर्बाद हो गया .फूलों के अलावा हम ने चुकंदर और बंद गोभी भी लगा रखी है , उन फसलों का भी यही हाल है . क्या करें, कुछ समझ नहीं आ रहा. कुल मिलाकर हम आज के समय 17 – 18 लाख रुपए के नीचे आ गए हैं .खीरी लखीमपुर उत्तर प्रदेश के किसान हैं यदुनंदन सिंह ,वह भी फूलों की खेती करते हैं. उन्होंने 5 एकड़ में गैंदा लगाया हुआ है. बातचीत में उन्होंने बताया कि पूरा बाजार बंद है .रोजाना नुकसान हो रहा है ,रोजाना फूलों को तोड़कर फेंकना पड़ रहा है, फूलों को तोड़ना भी जरूरी है ,नहीं तो पौधे खराब हो जाएंगे . लगातार ऐसे ही हालात रहे तो आने वाले समय में हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी .
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गाजियाबाद के बागवानी विशेषज्ञ डा.अनंत कुमार ने बताया कि हमारे इलाके में अनेक किसान जरबेरा और मैरीगोल्ड फूलों की खेती कर रहे हैं. देश भर में इन फूलों के अच्छे दाम मिलते हैं, लेकिन इस बार फसल को खेतों में ही काटकर फेंकना पड़ रहा है.करोल बाग, दिल्ली के एक फूल विक्रेता ने बताया कि इस समय हमारे पास जो थोड़ेबहुत फूल आ रहे हैं ,वो यमुना के किनारे कुछ किसान फूलों की खेती करते हैं वहां से आ रहे हैं. जो माल आ रहा है वह भी नहीं बिक रहा , कोरोना के डर से ग्राहक ही नहीं हैं , लोग डरे हुए हैं. जबकि अभी नवरात्रि का त्यौहार चल रहा है और फूलों की अच्छी मांग होती रही है .ऐसे समय में हमारी अच्छी कमाई होती थी लेकिन अब दाल रोटी के भी लाले पड़े हैं .
यही समय था किसानों की कमाई का : सही मायने में देखा जाए तो फूल पैदा करने वाले किसानों पर दोहरी मार पड़ी है. सितंबर से मार्च तक का समय फूलों की खेती के लिए ही खास होता है. जिस समय का इंतजार किसान महीनों से करते हैं.इस के अलावा फूलों की खेती करने के लिए खेत तैयार करने के लिए 4 से 5 बार तक जुताई करनी होती है. खादबीज ,खरपतवार नाशक, निराईगुड़ाई ,पानी आदि का खर्चा अलग .कुल मिलाकर फूलों की खेती करने में 10 से 15 हजार रु. प्रति एकड़ तक का खर्चा आता है .ऐसे में किसान को मुनाफा तो दूर, उस की लागत भी डूब गई.
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ऐसे किसानों के लिए सरकार द्वारा भी अभी तक ऐसी कोई राहत वाली खबर नहीं आई है, जबकि मजदूरों को , बेरोजगारों को , पेंशनरों को , सरकार द्वारा अनेक राहत दी गई है. सभी को मिलने वाली राशि भी बढ़ाई गई है, लेकिन किसान उस लाइन में कहीं खड़ा नजर नहीं आता , जबकि ऐसे समय में उस किसान को नहीं भूलना चाहिए जो देश का अन्नदाता है. – भानु प्रकाश राणा