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Lockdowm: लॉकडाउन के कारण भतीजे के फ्यूनरल में शामिल नहीं हो पाए सलमान खान

सलमान खान के परिवार के लिए यह समय बेहद ही दुख का है. उनके भतीजे अबदुल्ला खान का निधन हो गया हैं. जिस वजह से पूरा परिवार शोक में डूबा हुआ है. कोरोना की वजह से सलमान और उनका पूरा परिवार अबदुल्ला के अंतिम संस्कार में भी नहीं जा पाया.

बता दें कि अबदुल्ला सलमान खान के बहुत करीब थे. वह अंतिम संस्कार में न पहुंच पाने की वजह से बहुत दुखी है. अबदुल्ला का पूरा परिवार इंदौर में रहता है. इस वक्त वहां पहुंचना बहुत मुश्किल था. लेकिन सलमान बाद में अबदुल्ला के परिवार वालों से मिलने जरूर जाएंगे.

 

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अबदुल्ला कि मौत दिल का दौरा पड़ने से हुआ है. उन्हें लंग इंफेक्शन भी था. यह खबर सलमान के मैनेजर जोर्डी पटेल ने दिया है.

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इन दिनों सलमान खान अपने परिवार के साथ पनवेल फार्महाउस में हैं. वहां अपने परिवार वालों के साथ समय बीता रहे हैं. सलमान को अपने भतीजे से अंतिम समय में नहीं मिलने का बेहद मलाल है.

 

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सलमान अपने सोशल मीडिया पर इन दिनों काफी एक्टिव रहते हैं. अपने परिवार और भांजे के साथ मस्ती करते हुए तस्वीर शेयर करते रहते हैं. उन्हें अपने परिवार वालों के साथ समय बिताना सबसे अच्छा लगता है. शायद यहीं वजह से जो सलमान खान अभी तक अपना पुराना घर गैलेक्सी अपार्टमेंट छोड़ नहीं पाएं है.

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सलमान अपनी बहन अर्पिता से बहुत क्लोज हैं. हाल ही में सलमान की बहन ने सलमान के बर्थ डे के दिन बेटी को जन्म दिया है. जो सलमान खान के लिए सबसे बड़ा गिफ्ट है.

वर्क फ्रंट की बात करें तो सलमान कई नए प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं, लेकिन कोरोना के चलते सभी काम को बंद करके अपने फैमली के साथ हैं.

#coronavirus: एक फोन से एम्स से जुड़ जायेंगे डॉक्टर्स

 केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने बीते सप्ताह  ‘राष्‍ट्रीय दूरभाष-परामर्श केंद्र (कॉनटेक) (CoNTeC)’ का शुभारंभ किया. ‘कॉनटेक’ परियोजना दरअसल ‘कोविड-19 नेशनल टेलीकंसल्टेशन सेंटर’ का संक्षिप्त नाम है. इसकी परिकल्‍पना स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने की है और इसे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा कार्यान्वित किया गया है.

* क्या हैकॉनटेक’ ?

‘कॉनटेक’ एक टेलीमेडिसिन केन्द्र है जिसकी स्थापना अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान., नई दिल्ली के द्वारा की गई है, जिसमें देश भर से विशेषज्ञों के बहु-आयामी सवालों का उत्तर देने के लिए विभिन्न नैदानिक क्षेत्रों के विशेषज्ञ डॉक्टर 24 घंटे उपलब्ध होंगे. यह एक बहु-मॉडल दूरसंचार केन्द्र है जिसके माध्यम से देश के अलावा विश्व के किसी भी हिस्से से दोनों ओर से ऑडियो-वीडियो वार्तालाप के साथ-साथ लिखित संपर्क भी किया जा सकता है. संचार साधनों के रूप में, सरल मोबाइल टेलीफोन के साथ-साथ दोनों और से वीडियो वार्तालापों के लिए व्हाट्सएप, स्काइप और गूगल डुओ का उपयोग किया जाएगा.

कॉनटेकसे संपर्क कैसे करें ?

‘कॉनटेक’ से संपर्क करने के लिए कोविड-19 का उपचार करने वाले चिकित्सकों के द्वारा देश/दुनिया में कहीं से भी एकल मोबाइल नंबर (+91 9115444155) डायल किया जा सकता है जिसमें छह लाइनें हैं जिनका वर्तमान में एक साथ उपयोग किया जा सकता है. भविष्य में जरूरत पड़ने पर लाइनों की संख्या बढ़ाई जा सकती है. इनकमिंग कॉल्स को कॉनटेक प्रबंधकों द्वारा उठाया जाएगा, इसके पश्चात कोविड-19 का उपचार कर रहे विशेषज्ञ चिकित्सकों की इच्छानुसार नैदानिक क्षेत्रों के विशेषज्ञ चिकित्सक से उनकी बात कराई जाएगी.

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आगे प्रबंधक, कॉल करने वालों विशेषज्ञों की इच्छानुसार व्हाट्सएप, स्काइप या गूगल डुओ के माध्यम से दोनों ओर से वीडियो कॉल संपर्क स्थापित करने में मार्गदर्शन करेंगे. एनएमसीएन नेटवर्क से कॉल करने वाले व्यक्त अपनी ओर से किसी भी समय टेलीमेडिसिन बुनियादी सुविधा का उपयोग करके संपर्क कर सकते हैं.

* वास्तविक समय में एम् से जुड़ाव होगा

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि ‘कोविड-19’ के मरीजों के इलाज के लिए देश भर के डॉक्टरों को वास्तविक समय में एम्‍स से जोड़ने के लिए ही एम्‍स में ‘कॉनटेक’ को चालू किया गया है. डॉक्टर चौबीसों घंटे इस केंद्र में उपलब्ध रहेंगे और इसे चौबीसों घंटे चालू भी रखेंगे.  यहां तैनात किए जाने वाले डॉक्टरों के लिए भोजन एवं ठहरने की सुविधा भी उपलब्ध है. इसे एम्स में इसलिए स्थापित किया गया है, ताकि छोटे राज्य भी एम्स के डॉक्टरों के व्‍यापक अनुभवों से लाभ उठा सकें.

देश भर के डॉक्टर आपस में जुड़ेंगे

कोविड-19 के रोगियों के इलाज के लिए दुनिया भर में डॉक्टर अलग-अलग प्रोटोकॉल का उपयोग कर रहे हैं और इस केंद्र का लक्ष्‍य देश भर के डॉक्टरों को आपस में जोड़ना है, ताकि वे एक साथ प्रोटोकॉल पर चर्चा कर सकें और तदनुसार सर्वोत्तम उपचार प्रदान कर सकें.

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टेलीमेडिसिन संबंधी दिशा-निर्देश भी भारत सरकार द्वारा अधिसूचित कर दिए गए हैं और डिजिटल प्लेटफॉर्म एवं प्रौद्योगिकी की मदद से बड़े पैमाने पर जनता को न केवल कोविड-19, बल्कि अन्य बीमारियों के उपचार में भी सहूलियत होगी.

* गरीब से गरीब व्यक्ति को सर्वोत्तम उपचार सुलभ होगा

भारत एक विशाल देश है और गरीबों तक पहुंचने के लिए प्रौद्योगिकी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. देश के गरीब मरीजों को किसी भी परिस्थिति में गुणवत्तापूर्ण इलाज से वंचित नहीं किया जाना चाहिए. वर्तमान परिस्थिति में गरीबों को भी देश के सर्वोच्च डॉक्टरों की सुविधा मिल सकेगा.

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि प्रतिष्ठित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में इस केंद्र को चालू करने का मुख्‍य उद्देश्य देश के गरीब से गरीब व्यक्ति को सर्वोत्तम उपचार सुलभ कराना है. एम्स को एक साथ जोड़ने की आवश्यकता है ताकि वे स्वास्थ्य क्षेत्र में देश के लिए नीति कार्यान्वयन में और अधिक मदद कर सकें. एम्स को अपने बीच परामर्श, टेलीमेडिसिन, शिक्षा, प्रशिक्षण, सहभागिता और प्रोटोकॉल के आदान-प्रदान के लिए जिला अस्पतालों के साथ समन्वय स्थापित कर मानक बनना चाहिए.

‘कॉनटेक’, लखनऊ के एसजीपीजीआई स्थित राष्ट्रीय संसाधन केंद्र के साथ एनएमसीएन के माध्यम से जुड़े 50 मेडिकल कॉलेजों के बीच वीडियो सम्मेलन (वीसी) का संचालन करने के लिए पूरी तरह से राष्ट्रीय मेडिकल कॉलेज नेटवर्क (एनएमसीएन) के साथ एकीकृत है. रोगी प्रबंधन सलाह को एम्स के निदेशक  द्वारा नामित एम्स की टीम द्वारा तैयार किए गए राष्ट्रीय दिशा-निर्देश परिपूरक प्रोटोकॉल के अनुसार मानकीकृत किया जाएगा.

सूखे फूलों को भी बना सकते हैं आमदनी का जरिया

आज जिस तरीके से हम फल सब्जी की प्रोसेसिंग करते हैं ,उन्हें सुखाकर रखते हैं चाहे वह घरेलू तौर-तरीके हो या आधुनिक. ऐसे ही कुछ तरीकों से हम फूलों को भी सुखाकर फायदे का सौदा बना सकते हैं .
जानकारों का कहना है कि सूखे फूलों की विदेशों में खासी मांग है और भारत से अनेक देशों में इन्हें निर्यात भी किया जाता है .
शुष्क तकनीक द्वारा खिले हुए फूलों को मुरझाने से पहले ही संरक्षित किया जाता है . फूलों को सुखाने के लिए पौधे से केवल फूल ही नहीं काटा जाता ,बल्कि उसका पूरा तना काटा जाता है , जिसमें, फूल,उसकी पत्तियां ,बीज, कलियां भी शामिल होती हैं.
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क्या है फूल सुखाने  की तकनीक : फूलों को सुखाने ये लिए उन्हें सुबह के समय काट लिया जाता है, उसके बाद उनके छोटेछोटे गुच्छे बना लिए जाते हैं, जिन्हें रस्सी के सहारे किसी अंधेरे कमरे में लटका दिया जाता है. लटकाने के लिए छत पर रस्सी का बांस आदि लगाया जा सकता है, जिस पर उन गुच्छों को लटकाया जाता है. अंधेरे कमरे में गर्मी और हवा का आवागमन भी होना चाहिए , लेकिन एक बात याद रखें कि फूलों को सुखाने के बाद उनका प्राकृतिक रंग कुछ हल्का हो जाता है जिन्हें बाद में खास तरीकों से रंगा भी जा सकता है.
इसके अलावा फुल सुखाने की अनेक तकनीकियां है ,जैसे दाब शुष्कन विधि , बंद चूल्हा शुष्कन विधि , सूर्य की रोशनी में सुखाना, कम तापमान पर सुखाना, ग्लिसरीन शुष्कन विधि.
लेकिन इन सबके लिए आप को ट्रेनिंग लेनी होगी तभी इस काम को कर सकते हैं इस की बारीकियों को समझना होगा.
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किसी काम को शुरू करने के लिए कहीं ना कहीं से शुरुआत करनी होगी प्रकृति के भरोसे, रहकर, या सरकार के भरोसे रहकर यह काम नहीं हो सकते .हमें खुद को मजबूत बनाना होगा, समय के साथ खुद को बदलना होगा ,नई तकनीकियों को सीखना होगा तभी हम अपना आने वाला कल बेहतर बना सकते हैं.

coronavirus: बच्चों की पढाई का रूटीन रखें बरकरार

लॉक डाउन के कारण सब घर में कैद हो कर बैठे हैं. ऑफिस बंद, स्कूल कॉलेज, जरुरत की चीजों की दुकानों के आलावा केवल जीवन सुचारु रूप से चलता रहे, वे सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं. देश के नागरिक होने के नाते हमारा भी कर्तव्य बनता है कि सरकार के इस कदम में उस का साथ दें लेकिन घर में बैठे छोटे बच्चों का क्या करें.

एक तरफ उन की उन की पढाई का हरजा हो रहा है दूसरी तरफ खाली बैठेबैठे उन के दिमाग में नईनई शरारतें सूझती हैं. मातापिता परेशान हैं. बच्चे हैं, अब उन से बड़ों की तरह उपेक्षा भी नहीं की जा सकती है कि समझदारी के साथ घर में बैठ कर बड़ों का सा आचार व्यवहार  करें.

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लेकिन इस का हल मातापिता ही निकलना होगा. बच्चों की दिनचर्या को ट्रैक पर लाना मातापिता का काम है. पढ़ाई का जो वक्त बरबाद हो गया है आगे नहीं होने देना है.

क्या करें

इस में दो राय नहीं कि मातापिता को अब आजकल इस बात की टेंशन नहीं कि बच्चें को स्कूल भेजने के लिए सुबह जल्दीजल्दी उन्हें नींद से जगाना है, रेडी करना है, टाइम से स्कूल भेजना ह, वो अफरातफरी नहीं, लेकिन फिर भी बच्चों की स्कूली दिनचर्या को बरकरार रखनी है

बनाएं टाइमटेबल: बच्चों का जैसे स्कूल में टाइमटेबल था. घर में उन का वैसा ही एक टाइम टेबल बनाएं. स्कूल में जैसे 30-40 मिनट का एक पीरियड होता है, वैसे ही टाइम डूरेशन के हिसाब से उन्हें पढ़ने के लिए बिठाएं.

* दिनचर्या में आए फर्क : बच्चे स्कूल के लिए सुबह 6 बजे उठते थे, तो अब बेशक उन्हें 6 बजे नहीं, पर 7 बजे तक नींद से जगा दें. जैसे पहले फ्रैश होते थे, ब्रश करते थे. नहाधो कर स्कूल के लिए तैयार होते थेर. ठीक वैसे ही घर पर रहे कर करें. अब फर्क होगा कि वे स्कूल ड्रेस में नहीं होंगे. रेडी हो कर वे सीधे अपने स्टडी रूम में जाएंगे.

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* स्कूल सा वातावरण : स्कूल में जैसे सबजक्ट वाइज पीरियड होते हैं वैसे ही बच्चे पढ़ाई करें. जो टाइमटेबल आप ने बच्चों के लिए बनाया है उसी के अनुसार पढ़ाना शुरू करें. यहांमातापिता की भूमिका टीचर की रहेगी. जैसे फस्ट पीरियड हिंदी का है तो बुक के चैप्टर के कठिन शब्दों की डिक्टेशन दें. जो वर्ड गलत हो उसे 10-10 टाइम्स लिखने के लिए बोलिये. ऐसा ही इंगलिश सब्जेक्ट के साथ कर सकते हैं. बाकी सब्जेक्ट भी टेक्सटबुक के अनुसार पढ़ा सकते हैं.

टाइम सलौट बिलकुल स्कूल के जैसा टाइट रखें. मातापिता बच्चों को समझाएं कि उन्हें अपना टाइम बिलकुल वेस्ट नहीं करना है. बताएं कि लौकडाउन के बाद स्कूल में पढ़ाई बहुत स्पीडली कराई जाएगी इसलिए उन्हें पहले से तैयार रहना है.

*पढ़ा हुआ रीशूट करें : बच्चे का रिजल्ट आ गया है, वह पास भी हो गया है लेकिन अभी भी हो सकता है बच्चा अपनी मैथ्स की बुक के कई सवाल अभी भी हल नहीं कर सकता हो. बच्चे को उन्हें रीशूट करने को कहें. इस के अलावा बच्चानेक्स्ट क्लास की अपनी मैथ्स बुक के चैप्टर इंटरनेट में देख सकता है. कुछ चैप्टर इंटरनेट की मदद से सौल्व कर सकता है ताकि स्कूल जाने से पहले वह प्रैक्टिस कर ले.

*समय न हो बरबाद रू बच्चे की पढ़ाई का समय बिलकुल खराब न होने दें- इंग्लिश हिंदी सब्जेक्ट की ग्रामर उन्हें पढ़ा सकते हैं. मैथ्स के सवाल उन्हें हल करने के लिए दें, चाहे तो इंटरनेट की मदद लें या किसी और की. बाहर की टेंशन बच्चों पर न हों. आसपास के माहौल से उन्हें दूर रखें.

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* छुट्टियां न मान कर चलें : स्कूल बंद हैं, स्कूल नहीं जाना तो इस का मतलब यह नहीं कि बच्चे छुट्टियों के मूड में आ जाएं कि अभी तो पढ़ाई नहीं होनी.

टाइम बिलकुल वेस्ट नहीं करना है. बच्चों का धयान पूरी तरह से पढ़ाई की तरफ लगाए रखना है. उन्हें मोटिवेट करना है कि स्कूल बंद है तो घर पर ही पढ़ाई करनी है.

* प्ले टाइम : शाम के वक्त बच्चे अपने दोस्तों के साथ खेलने जाते हैं लेकिन अब क्या करें. बाहर जाना मना है और दोस्त भी साथ नहीं. ऐसे में मातापिता ही बच्चों के दोस्त बन जाएं. उन के साथ घर में इनडोर गेम्स जैसे सांप सीढ़ी, लूडो, कैरम बोर्ड, शतरंज खेलें. दिमागी कसरत के लिएफनी ट्रिकी गेम्स खेलें जैसे तुम मेरे भाई हो, लेकिन मैं तुम्हारा भाई नहीं. हू एम आई?

उत्तर योर सिस्टर

कहां ऐसी रोड मिलेगी जिस पर व्हीकल्स न हो, ऐसा जंगल जहां पेड़ न हो और ऐसा शहर जहां घर न हो

उत्तर – ऑन  ए मैप खेलखेल में जनरल नौलिज के प्रश्न पूछ सकते हैं.

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यानी कि बच्चों के साथ आप को बच्चा भी बनना है, उन का टीचर भी, उन का दोस्त भी बनना है और मातापिता तो आप हैं ही.

इस तरह बच्चों को नईनई एक्टीविटी कराते रहें ताकि उन का मन पढ़ाई की तरफ से डाइवर्ट न हो.

आंखों में इंद्रधनुष: भाग 1

उस की आंखों में इंद्रधनुष था. उस के जीवन में पहली बार वसंत के फूल खिले थे, पहली बार चारों तरफ बिखरे हुए रंग उस की आंखों को चटकीले, चमकदार और सुंदर लगे थे, पहली बार उसे पक्षियों की चहचहाहट मधुर लगी थी, पहली बार उस ने आमों में बौर खिलते देखे थे और रातों को उन की खुशबू अपने नथुनों में भरी थी, पहली बार उस ने कोयल को कूकते हुए सुना था और पहली बार उसे आसमान बहुत प्यारा व शीतल लगा था. अपने चारों तरफ बिखरे हुए प्रकृति के इतने सारे रूप और रंग उस ने पहली बार देखे थे और उन्हें बाहरी आंखों से ही नहीं, मन की आंखों से भी अपने अंदर भर कर उन की सुंदरता और शीतलता को महसूस किया था, क्योंकि वह जवान हो चुकी थी.

उस का मन अब पुस्तकों में नहीं लगता था. सफेद कागज पर छपे काले अक्षरों पर अब उस की निगाह नहीं टिकती थी. अब उस का मन पता नहीं कहांकहां, किन जंगलों, पर्वतपहाड़ों, रेगिस्तान, मैदानों और बीहड़ों में भटकता रहता था. उस के मन को निगाहों के रास्ते पता नहीं किस चीज की तलाश थी कि वह रातदिन बेचैन रहती थी, खोईखोई रहती थी. लोगों के टोकने पर उसे होश आता कि वह स्वयं में ही कहीं खो गई थी. उस की अवस्था पर लोग हंसते, परंतु वह तनिक भी विचलित न होती. वह खोई रहती एक ऐसी दुनिया में, जहां केवल वह थी, फूल थे, नाना प्रकार के रंग थे और आंखों को शीतलता प्रदान करने वाला खुला आसमान था.

आसमान पर उस की निगाहें टिकी रहतीं. वहां धुनी हुई रुई से सफेद बादलों के टुकड़े हलकेहलके तैरा करते. उन बादल के टुकड़ों की मंद गति उस के मन को बहुत भाती. देखतेदेखते आषाढ़ आ गया और आसमान में बादलों की घटाएं घिरने लगीं. घटाओं ने नीले आसमान को अपनी काली, घनी जुल्फों से ढक लिया. परंतु उसे बुरा न लगा क्योंकि काली घटाएं भी उस के मन को बहुत भाने लगी थीं. फिर घटाओं ने अपनी जुल्फों को लहराते हुए छोटीछोटी बूंदें प्यासी धरती के आंचल पर बिखरा दीं. बूंदों के धरती पर गिरते ही सोंधी सी खुशबू उस के नथुनों में समा गई और वह बावली सी हो गई. वह और ज्यादा भटक गई और इसी भटकन के दौरान उस ने आसमान में एक शाम को इंद्रधनुष देखा, जो इतना मोहक और सुंदर था कि वह उस इंद्रधनुष के गहरे रंगों में बहुत देर तक खोई रही और फिर उसे पता ही न चला कि धीरेधीरे वह इंद्रधनुष कब उस की आंखों में आ कर बैठ गया. आंखों में इंद्रधनुष के आते ही वह अपने में खो सी गई. उस का मन कुछ पाने की तलाश में भटकता रहा, और फिर एक दिन उस की आंखों के सात रंगों में एक और रंग आ कर बैठ गया, यह उसे बहुत भला लगा, परंतु अपनी आंखों में बसे इंद्रधनुष के कारण वह यह नहीं देख सकी कि जो नया रंग उस की आंखों में आ कर बस गया है, उस का रंग बहुत ही भद्दा और काला सा है. इस अवस्था में एक मासूम और जवान हो रही लड़की के लिए केवल रंग महत्त्वपूर्ण होते हैं. वह उन के प्रभाव से अपरिचित होती है. उसे पता नहीं चलता कि उन रंगों के साथ वह एक खतरनाक खेल खेलने जा रही है.

खैर, उस वक्त उसे वह काला रंग भी इंद्रधनुष के सात रंगों में से एक लगा… इतना मोहक, सुंदर, सुखद और प्यारा कि वह उस के रंग में रंग गई. वह काला रंग उस की आंखों के इंद्रधनुष के रंगों में इस कदर घुलमिल गया था कि वह उसे गुलाबी रंग जैसा लगता. अपनी सपनीली आंखों से जब वह उस काले रंग को देखती तो वह गुलाबी रंग बन कर उस की आंखों के रास्ते दिल में उतर जाता, क्योंकि वह स्वयं सुनहरे रंग की होती हुई भी दूसरों की निगाहों को गुलाबी रंग जैसी लगती थी. उस ने उस रंग को अपने जीवन के हर पल में सम्मिलित कर लिया था. काले रंग ने एक दिन उस से कहा, ‘‘क्या हम यों ही इंद्रधनुष देख कर अपने मन को बहलाते रहेंगे, बादलों के उमड़नेघुमड़ने से क्या हमारे मन को सुख प्राप्त हो सकेगा? बारिश की फुहारों से भीग कर क्या हम अपने मन को तृप्त करते रहेंगे? क्या यही हमारा जीवन है?’’

‘‘तो हम और क्या करें?’’ गुलाबी रंगवाली लड़की ने, जिस की आंखों में इंद्रधनुष था, उदास स्वर में कहा.

आजकल घर में उसे डांट पड़ने लगी थी. उस की उदासीभरी चुप्पी से घर वालों को उस के चरित्र के ऊपर संदेह होने लगा था और कई चौकन्नी आंखें उस के इर्दगिर्द मंडराने लगी थीं. उन सतर्क और जासूस निगाहों से उसे कोई कष्ट नहीं होता था क्योंकि उस की स्वयं की निगाहें ही इस कदर भटकी हुई थीं कि दूसरों की निगाहों को वह देख नहीं पाती थी, परंतु जब उस के आचारव्यवहार को देख कर घर वाले, विशेषकर उस की मां उसे बारबार टोकतीं, बातोंबातों में कुछ ऐसा कह देतीं कि उस के कोमल हृदय को गहरी ठेस लगती और वह कराह कर रह जाती.

उस की कराह को मम्मी नहीं सुन पातीं या सुन कर भी अनसुना कर देतीं और उसे डांटती ही चली जातीं, उस के दिल में होने वाले घावों की परवा किए बिना. तब उस को बेहद कष्ट होता, परंतु अपने दिल का हाल न वह मां को बता सकती थी न किसी और को. अपने मन की तकलीफ को वह काले रंग से भी कैसे कहती, क्योंकि वह जब भी उस से अकेले में मिलता, उस के अपने रंग होते और वह उन रंगों को चटकदार बनाने के प्रयास में लगा रहता. वह कुछ ऐसे रंगों की बात करता जो गुलाबी रंगवाली लड़की के रंगों से मेल नहीं खाते थे.

‘‘प्यार के कुछ रंग हम अपने जीवन में भी भर लें, तो…’’ काले रंग ने उसे अपनी जद में लेते हुए कहा.

‘‘वे तो हमारे जीवन में हैं, इतने सारे रंग, जो चारों तरफ बिखरे पड़े हैं, मेरी आंखों में बस गए हैं, वे सब प्यार के ही तो रंग हैं जिन के सहारे हम जी रहे हैं,’’ उस ने भोलेपन से कहा. वह सचमुच भोली थी, क्योंकि उस का रंग गुलाबी था और गुलाबी रंग प्यार का प्रतीक होता है. इस रंग में छलकपट नहीं होता. परंतु काला रंग बहुत शातिर, चतुर और चालाक था. उसे पता था कि गुलाबी रंग को किस प्रकार मटियामेट कर के काला बनाया जा सकता है. ‘‘तुम बहुत भोली हो,’’ काले रंग ने उस के ऊपर घटाओं की तरह छाते हुए कहा. उस ने उस का हाथ पकड़ लिया और अपने सीने पर रखते हुए आगे कहा, ‘‘इतने सारे रंग जो प्रकृति में चारों तरफ बिखरे पड़े हैं, इन्हें देख कर हम अपने मन को संतोषभरा सुख प्रदान कर सकते हैं, परंतु हमारे तन को सुख देने वाले रंग कुछ और ही होते हैं.’’

#coronavirus: एक अदद वीडियो

रात को सोते सोते फ़ोन उठा मलया , ददन में तो काम कहााँ पीछे छोड़ते हैं , कटरीना कै फ का वीडियो ककसी ने भेजा था जजसमे मैिम बततन धो रही हैं , यह एक वीडियो क्या देख मलया , ददन भर की थकान भूल कर मेरे ददमाग मेंयह महान ववचार आ गया कक बतनत तो मैंभी धो रही हूाँ , वीडियो तो मैंबना ही सकती हूाँ , इसकी तरह कुछ औरतो कर नहीीं सकती , एक वीडियो तो बना ही सकती हैं.

अजीब से उत्साह से भर गया मन , पर इसके मलए तो मोहन और बच्चों की हेल्प लेनी पड़ेगी , ओह्ह , आज ही क्यों कम काम करने पर दिया बच्चों को, पता नहीं कल मेरा वीडियो ठीक से बनाएंगे या नहीीं ।ओह्ह , मोहन से भी एक प्यार दिखाना पड़ेगा.  मैंने देखा , मोहन अभी सोये नहीं हैं , स्वर में जजतनी ममठास घोल सकती थी , घोल  , ”मोहन प्यारे ! सो गए क्या ?”

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लॉक डॉउन के बाद मैंने शायद पहली बार उन्हें अपने ख़ास अींदाज में आवाज दी थी ,शायद उन्हें यकीन नहीीं हुआ मुझे ध्यान से देखा , ”राधा रानी ! उन्होंने भी अपने स्पेशल अंदाज में कहा ,”क्या हुआ , तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ?”मैंने अपने सारी आदते दिखाते हुए कहा ,”कल मेरा एक काम कर दोगे ? मोहन प्यारे !””ओह्ह , अब समझा , काम है ! ओह्ह , बोलो , बतनत तो सारे धो आया हूाँ ।

””अरे , तुम तो लॉक उन में एकदम हाउस वाइफ बन गए , प्रिये !”’अब ड्रामा बींद करो , बताओ , क्या करना हैकल मुझे ! ””कल मेरा एक वीडियो बना दोगे ?””अरे , उसमे क्या है , अभी बना दाँू? जबसे लॉक िाउन हुआ है , नाइटी में ही तो रहती हो ”अभी टाइम नहीीं था कक चचढ जाऊीं , नुकसान मेरा होता । कहा ,” नहीीं , अभी नहीीं , कल जब बततन धोऊीं गी, तब बनाना ”

मोहन को जैसे हसी का दौरा पड़ गया , कफर बोले ,” राधा , तुम्हे हुआ क्या ? आज ज्यादा थक गयी क्या ?””नही, थकान छोड़ो । ये देखो ,”कहकर मैंने उन्हें कटरीना का वीडियो ददखाया , उन्होंने देखकर एक ठीक साींस भरी तो मैं जल उठी , कहा ,” आहें भरो , बस , और क्या ! मदत कहीीं के !”
उन्हें बहुत जोर से हसी आ गयी , यह कौनसी गाली हुई ?”” यह मेरे टाइप की गाली है , ऐसा वीडियो बनाना मेरा कल ””ठीक है , राधा रानी , अब सो जाओ ” मोहन तो सो गए , मैं जरा एक्ससाइटेि हो उठी थी , नीींद ही नहीीं आ रही थी ,

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अपने मन को ही समझाया , राधा , सो जाओ , कल कफर गधे जैसे काम करने हैं , बस ये वीडियो बन जाए.सारी फ्रेंड्स को भेजूींगी , या इीं्टाग्राम और फेसबुक पर ही   बतनत मसफत कटरीना थोड़े ही धो रही है , हम भी धो रहे हैं , भाई ”सुबह उठ कर सबसे पहले बच्चों ववनी और आरुल को प्यार ककया , बच्चे कल की िाींट शायद भूल चुके थे , मलपट गए मुझसे ,” बोले ,”मम्मी , आज भी आपके साथ काम करवाने हैं ?”

”हााँ ,बच्चों , जब तक मेड्स नहीीं आती , तब तक तो मम्मी की हेल्प करनी पड़ेगी न , बेटा।” बच्चे मुझे ध्यान से देखने लगे , सुबह सुबह मम्मी इतने प्यार से बोल क्यों रही है ? आरुल ने पूछ ही मलया ,” क्या हुआ , मम्मी ?””कुछ नहीीं ,बेटा , जल्दी से तमु लोग फ्रेश हो जाओ ,”कफर मैंने धीरे से कहा ,”एक काम है , सब इक्कठे हो जाओ ,पापा भी रो हो रहे हैं ।” ”पर क्यों ,मम्मी ?”

” वो मैंबतनत धोने जा रही हूाँ ,तो मुझे अपना वीडियो बनवाना हैबतनत धोते हुए , आजकल देख रहे हो न , सारी सेमलबिटीज घर के काम करते हुए वीडियो बना रही हैं.”बच्चे एक दसू रे को देख कर जैसे मु्कुराये , मन हुआ एक लगा दाँू, पर नहीीं , यह कफर कभी ! बच्चे जब तक फ्रेश होकर आये , मोहन ने कहा , राधा , मेरी एक जरुरी मीदटींग है ,अभी , मुझे जल्दी से नाश्ता दे दो ”

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”पर , मोहन , मेरा वीडियो ?””ववनी बना देगी न ,  वरी” मैंने मोहन को जल्दी से सैंिववच ददए , मोहन ने लैपटॉप खोल ककया ,मैंने कहा , आओ ववनी , अपना फ़ोन ले आओ ””मम्मी , अभी चाजजिंग पर लगाया है , जब तक नाश्ता कर लें ?” मनैं  बुझे मन से नाश्ते का काम ननपटाया , दस बज गए थे , अभी तक मेरे वीडियो का नींबर नहीं आया था , रात को सोचा था , सुबह उठते ही वीडियो शूट होगा । पर अजी कहाीं, यह कटरीना का वीडियो बनाया ककसने था ? लॉक डॉउन में उनकी मेि आ रही थी क्या ? या फुल की होगी ! पर कफर कटरीना बतनत क्यों धोएगी !कौन देगा इसका जवाब , छोड़ो !

मैंने मसैज ठीक पर अपनी पोजीशन बनायीीं , ववनी से कहा , बेटा, जजतनी भी चाजजिंग हो गयी हो , ले आओ अभी ”
वह अपना फ़ोन लेकर आयी , कफर मुझे ऊपर से नीचे देखकर बोली ,”मम्मी , यह टी शटत इस पाजामे पर अच्छीनहीीं लग रही है , चेंज कर लो ”मैं फौरन हाथ धोकर टी शटत चेंज कर आयी , आरुल बोला,” मम्मी , पर मुझे एक चीज समझ नहीीं आ रही , आप अपने वीडियो का क्या करोगी ?”’फ्रेंड्स को भेजूगी ”
”तो उनके मलए कौन सा ये नयी चीज होगी , सब बततन ही तो धो रही हैं ”

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मेरे चेहरे से ववनी को समझ आ गया कक मुझे गु्सा आ रहा है , बोली , आरुल , चुप रहो , वीडियो बनाने दो ,मम्मी उसके बाद वीडियो का कुछ भी करें , तुम्हे क्या ,” कहते कहते ववनी को भी हसी आ गयी तो मैंने चढ़ती ,इससे पहले ही उसने कहा ,” मम्मी , आपका चेहरा बहुत मसपीं ल लग रहा है , थोड़ा बहुत मेक अप कर लो ””सुबह सुबह ? बबना नहाये धोये ?”” तो मम्मी , आप पहले नहा धोकर अच्छी तरह रेिी क्यों नहीीं हो जाती ? जब बनाना ही है तो बदढ़या बनाते हैं.

मैंने मस ींक में पड़े बततन देखे ,” पर ये तो अभी धोने हैं ”तो इन्हे धो लो आप , बततन तो कफर हो जायेंगें ”आज आरुल का टनत पोछा लगाने का था , उसने होमशयारी ददखाई ,” मम्मी , बततन का वीडियो ही जरुरी तो नहीं है आओ , आप पोछा लगा लो , मैंआपका वीडियो बना दींगू ”
मैंने कहा ,”न , बेटा , पोछा तो तुम ही लगाओगे ”

दोनों बच्चे ककचन से ननकल गए , मनैं  टूटे मन से बतनत धो मलए , आज पहली बार सोचा कक कब दोबारा धोऊंगी.बततन , कब वीडियो बनेगा । उसके बाद खाने के काम ननपटाए , दोनों बच्चे सफाई में हेल्प करते रहे , आज मोहन
बच गए थे , ऑकफस के काम ने आज उन्हें बचा मलया था , मैंने मन ही मन दहसाब लगाया कक शाम को उनसेक्या क्या काम करवा सकती हूाँ । नहा धोकर लींच बनाया , दोपहर में सबने साथ ही खाया , मैं अब जल्दी से बततन धोना चाहती थी ,

इतने में मेरी फ्री फ़ोन आ गया , उसे भी बताया कक अभी थोड़ी देर में मेरे इंस्टाग्राम पर मेरा
एक वीडियो जरूर देखना , वो पूछती रही , मैं उसे नचाती, चचढ़ाती रही , आज टाइम नहीीं था , बस आधा घींटा बातकरके फ़ोन रख ददया तो जाकर देखा , तीनो सो रहे थे । मझुे ऐसा झटका लगा कक पूछो मत
गु्से में सारे बतनत खूब आवाज करके धोये पर कोई नहीीं उठा. कुम्भकणत की औलादें ! सब चार बजे सोकर उठे.मैंने ककसी से बात नहीीं की , सबको समझ आ गया. मोहन ने आवाज दी ,” राधा रानी , चाय तो वपला दो , कुछ ्नैक्स भी बना लो , तो बततन कफर हो जायेंगे ,” कहकर जब वे हाँसे तो मुझे आग लग गयी .

चाय का कप उन्हेंदेकर अपनी चाय दसू रे रूम में ले जाकर पीने लगी तो वे वहीं आ गए ,”गु्सा क्यों होती हो ? राधा रानी , ये बततन कहााँ भागे जा रहे हैं ?””इंसान का एक मूि होता हैन कुछ करने का ?”मैं गुरातई
” हााँ ,ये तो है ”मैं कफर सीररयस ही रही , , मोहन बोले , ‘ चलो , तुम ये दो कप धो , मैं बनाता हूं वीडियो ”
”दो कप में मजा नहीीं आएगा , फे क लगेगा ””ठीक है , डिनर के बाद ?””ओके ”

मैं अब ये भी सोच रही थी कक पैपराजी के मारे हैं ये मसतारे , इन्हे आजकल घर में बैठे अटेंशन नहीीं ममल रहा है तो वीडियो ही पो्ट ककये जा रहे हैं , मुझे क्यों शौक चरातया है , शाम होते होते काम के बोझ से मेरा आज वीडियो बनाने का शौक ख़तम होने लगा था , कोई मेि न होने से शाम तक तो हालत खराब हो जाती .डिनर के बाद सब मुझे गींभीर देख वीडियो बनाने की बातें करने लगे ,मोहन ने कहा ,” जाओ , राधा , अच्छी तरह से तैयार हो जाओ ,

सब फ्री हैं , चलो , वीडियो बनाते हैंतुम्हारा ”ववनी ने कहा ,” मम्मी , मैंआपका मेक अप कर दाँगू ी , आप वप ींक टी शटत पहन लो ”मैंने कहा , ” वप ींक टी शटत प्रेस नहीीं है , आरुल , प्रेस कर दो फटाफट ”
‘हााँ , मम्मी , करता हूाँ ”मेरा मन दलु ार से भर उठा , वैसे हैंये प्यारे सब  इतने में अरुल की िरी हुई आवाज आयी , मम्मी , मम्मी , ”सब भागे , देखा , मेरी टी शटत जल चुकी थी , मन हुआ सबको पीट कर रख दाँू सब चुप चाप मेरा मुाँह देख रहे.

थे , मनैं  कुछ नहीीं कहा , मैंथक चुकी थी ,टी शटत  बबन में फें की , नाईट गाउन पहना , कुछ काम ननपटाए ,सोने की तैयारी करने लगी , सन्नाटा सा रहा , मोहन ने ही लेटते हुए दहम्मत की ,” राधा , कल सुबह उठते ही

क्या करूं कि बीवी का व्यवहार बदले और हम दोनों सहवास का पूरा आनंद उठा सकें?

सवाल

मैं विवाहित युवक हूं. अपनी बीवी की एक असंगत समस्या से परेशान हूं. जब भी रात को हम सहवास करने के लिए बिस्तर पर जाते हैं, तो पत्नी पूछती है कि करोगे क्या? उठो करो. इस से मैं खीज जाता हूं कि न कोई फोरप्ले, न कोई उत्साह. कृपया बताएं कि क्या करूं कि बीवी अपना व्यवहार बदले और हम दोनों सहवास का पूरापूरा आनंद उठा सकें?

जवाब

आप अपनी पत्नी को समझाएं कि सहवास अन्य दैनिक कार्यों से अलग क्रिया है. यह वह कार्य नहीं है जिसे झटपट निबटा लिया जाए. इस में तन के साथ साथ मन से भी सक्रिय होना होता है, इसलिए हड़बड़ी न मचाए. सहवास में प्रवृत्त होने से पहले स्पर्श, आलिंगन, चुंबन आदि रतिक्रीड़ाएं करनी चाहिए. इस से मजा दोगुना हो जाता है. यदि आप पत्नी को प्यार से समझाएंगे तो वह आप की बात पर जरूर गौर करेगी. उस के बाद सहवास दोनों के लिए रुचिकर हो जाएगा.

सवाल

मैं 1 साल से एक लड़के से प्यार करती हूं. वह भी मुझे बेहद चाहता है. हमेशा मेरी इच्छाओं का सम्मान करता है. ऐसा कोई काम नहीं करता जो मुझे नागवार गुजरता हो. मगर अब कुछ दिनों से वह शारीरिक संबंध बनाने को कह रहा है पर साथ ही यह भी कहता है कि यदि तुम्हारी मरजी हो तो. मैं ने उस से कहा कि ऐसा करने से यदि मुझे गर्भ ठहर गया तो क्या होगा? इस पर उस का कहना है कि ऐसा कुछ नहीं होगा. कृपया राय दें कि मुझे क्या करना चाहिए? जवाब

जवाब

दोस्ती में एकदूसरे की इच्छाओं को तवज्जो देना जरूरी होता है. तभी दोस्ती कायम रहती है. इस के अलावा आप का बौयफ्रैंड अभी आप का विश्वास जीतने के लिए भी ऐसा कर रहा है. जहां तक शारीरिक संबंधों को ले कर आप की आशंका है तो वह पूरी तरह सही है. यदि आप संबंध बनाती हैं तो गर्भ ठहर सकता है, इसलिए शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने से हर हाल में बचना चाहिए.

 

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#coronavirus: आंखों में इंद्रधनुष: भाग 3

संसार में बहुत सारे रंग होते हैं और ये सारे रंग सभी को खुशियां प्रदान करते हैं. परंतु कभीकभी कुछ रंग किसी के जीवन में कष्ट और आंखों में आंसू भर जाते हैं. वह काला रंग, जिस ने उस की आंखों से इंद्रधनुष के सारे रंग चुरा लिए थे और उस के बदन के खिले हुए फूलों को तोड़ कर मसल दिया था, आजकल कहीं नजर नहीं आता था. वह उस से मिलने के लिए बेताब थी. बेकरारी से उस से मिलने के लिए निर्धारित स्थल पर इंतजार करती, परंतु वह न आता. वह निराश हो जाती और हताश हो कर घर वापस लौट आती. वह उस की गली में भी कई बार गई परंतु वह एक बार भी अपने कमरे पर नहीं मिला. पड़ोस में किसी से पूछने का साहस वह न कर पाई. फोन पर भी वह नहीं मिलता था. अकसर उस का फोन बंद मिलता, कभी अगर मिल जाता तो बहाना बना देता कि काम के सिलसिले में कुछ अधिक व्यस्त है, खाली होते ही मिलेगा और वह उसे स्वयं ही फोन कर लेगा, वह परेशान न हो.

परंतु वह परेशान क्यों न होती. काले रंग ने उस के लिए परेशान होने के बहुत सारे रास्ते खोल दिए थे. वह उन रास्तों से गुजरने के लिए बाध्य थी. उस के शरीर में व्याप्त काला रंग अपना आकार बढ़ाता जा रहा था. वह इतना ज्यादा चिंतित रहने लगी थी कि उस की सुंदर काली आंखों के नीचे काले घेरे पड़ने लगे थे, चेहरा मुरझाने लगा था, होंठ सूख कर पपडि़यां बन गए थे, जैसे पूरे चेहरे पर किसी ने बहुत सारी बर्फ डाल दी हो. उस की यह स्थिति देख कर उस के घर के लोगों के चेहरों के रंग भी बदल गए थे. उस की निगाह उन लोगों की तरफ नहीं उठ पाती थी, परंतु जब भी उठती तो उसे अपने ही परिजनों के चेहरों पर इतने सारे रंग नजर आते कि वह डर जाती… उन सभी की आंखों में घृणा, क्रोध, आक्रोश, वितृष्णा, तिरस्कार और अविश्वास के गहरे रंग भरे हुए थे और ये सभी रंग उस से एक ही प्रश्न बारबार पूछ रहे थे, ‘क्या हुआ है तुम्हारे साथ? क्या कर डाला है तुम ने? इतना सारा काला रंग कहां से ले आई हो कि हम सब का दम घुटने लगा है. कुछ बताओ तो सही.’ परंतु वह कुछ न बता पाती. किसी भी प्रश्न का उत्तर देने का साहस उस के पास नहीं था. उस ने जो किया था, वह किसी भी तरह क्षम्य नहीं था.

वह एक संपन्न, सुशिक्षित, सुसंस्कृत और सभ्य परिवार था. उस परिवार के लोग भयभीत थे, इस बात से नहीं कि उस के घर के गुलाबी रंग ने अपने ऊपर बहुत सारा काला रंग डाल लिया था और उस ने इस कदर इस रंग को ओढ़ रखा था कि उस का प्राकृतिक गुलाबी रंग कहीं खो गया था. काले रंग के अलावा कोई और रंग उस में नजर भी नहीं आता था. वे इस बात से डर रहे थे कि अगर यह काला रंग घर के बाहर फैल गया तो समाज में किस प्रकार अपना मुंह दिखाएंगे और किस प्रकार अपने सिर को ऊंचा कर के चल सकेंगे. किसी भी परिवार के लिए ऐसे क्षण आत्मघाती होते हैं.

स्थिति दयनीय ही नहीं, भयावह भी थी. सब को किसी न किसी दिन एक विस्फोट की प्रतीक्षा थी. कब होगा यह विस्फोट, कोई नहीं जानता था. विस्फोट हो जाता तो उस के प्रभाव से होने वाले नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता था, परंतु यहां तो सभीकुछ अनिश्चित सा था और अनिश्चय की घडि़यां बहुत कष्टदायी होती हैं. कुछ न कुछ तो करना ही होगा. यों डरेसहमे से, आंखों में संदेह के बादलों का गांव बसा कर किस तरह जिया जा सकता था. उस घर के 3 रंगों-लाल, पीले और हरे ने आपस में सलाह की. नीला रंग अभी छोटा था और वह बहुत सारी चिंताओं से मुक्त था, सो उसे चर्चा में सम्मिलित नहीं किया गया. लाल रंग गुस्सैल स्वभाव का था. उस ने कड़क कर कहा, ‘‘मैं अभी उस की हड्डीपसली तोड़ कर एक कर देता हूं. पूछता हूं कि कौन है वह, जिस के साथ उस ने अपना मुंह काला किया है.’’

‘‘यह कोई समस्या का समाधान नहीं है. इस से बात बिगड़ सकती है और बाहर तक जा सकती है. मैं उस से बात करती हूं,’’ पीले रंग वाली स्त्री ने शांत भाव से कहा. ‘‘मुझे बस एक बार पता चल जाए कि वह कौन कमीना रंग है जिस ने हमारे घर के रंग के साथ काले रंग से होली खेली है, उस को चलनेफिरने लायक नहीं छोड़ूंगा,’’ हरे रंग ने अपनी युवावस्था के जोश में कहा. ‘‘तुम अपने हथियारों को संभाल कर रखो. उन से बाद में काम लेना. अभी तो हमें अहिंसा के साथ मामले को सुलझाने का प्रयास करना है, जब बात नहीं बनेगी तो आप दोनों को कमान सौंप दूंगी.’’ और अंत में, पीले रंगवाली स्त्री ने कमान अपने हाथ में संभाल ली. वह परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए कमर कस कर गुलाबी रंग वाली लड़की, जो उस की बेटी थी, के कमरे में जा पहुंची.

गुलाबी रंग वाली लड़की काले रंग के प्रभाव और चिंता में स्वयं बहुत पीली हो गई थी, जैसे पीलिया की रोगी हो. उस की अधिकतर दिनचर्या उस के कमरे और बिस्तर तक ही सीमित हो कर रह गई थी. उस ने पीले रंग को कमरे में आते देखा तो उस का रंग और अधिक पीला हो गया. वह हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई और अनायास उस के मुख से निकला, ‘‘आप?’’ उस की आंखें हैरत से फट सी गई थीं. ‘‘हां, मैं? क्या मैं तुम्हारे कमरे में नहीं आ सकती?’’ पीले रंग ने कठोर स्वर में कहा. वह सच का सामना करने आई थी और आज उसे किसी भी तरह गुलाबी रंग से सच उगलवाना था. सच प्रकट नहीं होगा तो अनिश्चय की स्थिति में सभी लोग घुलते हुए भयंकर रोगी बन जाएंगे.

गुलाबी रंग की आंखों में भय की परत और अधिक गहरी हो गई. पीला रंग पलंग पर बैठ गया, ‘‘बैठो न, तुम से कुछ बातें करनी हैं.’’ वह बैठ गई, नीची निगाहें, हृदय में असामान्य धड़कन, शरीर में अजीब सी सनसनी भरा कंपन…पता नहीं आज क्या होने वाला है? उस ने इस दिन की कल्पना कभी नहीं की थी, तब भी नहीं जब उस ने अपनी आंखों में इंद्रधनुष के रंग भरने शुरू किए थे और तब भी नही, जब काला रंग उस के जीवन के रंगों के साथ घुलने लगा था और तब भी नहीं जब काले रंग ने मीठीमीठी बातों के रंग उस के ऊपर बिखरा कर उसे मदहोश कर दिया था और उस के कोमल बदन के सारे फूल चुरा लिए थे. वह एक वीरान बगीचे के समान हो गई थी, जहां से अभीअभी पतझड़ गुजर कर गया था.

पीले रंग के चेहरे के भाव और उस के स्वर की कठोरता ने गुलाबी रंग पर यह स्पष्ट कर दिया था कि आज हर प्रकार की ऊहापोह और अविश्वास की डोर कटने वाली थी, अनिश्चय का अंत होने वाला था. आज हर वह बात खुल जाएगी, जिसे उस ने अभी तक अपने हृदय की तमाम परतों के भीतर छिपा रखा था. उस ने भले ही बहुत सारे रहस्य अपने बदन की परतों के अंदर छिपा रखे हों, परंतु उस के बदन में होने वाले बाहरी परिवर्तनों ने बहुत सारे रहस्यों को सुबह की रोशनी की तरह स्पष्ट कर दिया था. सब की धुंधलाई आंखों में चमक आ गई थी. वह डरतेसहमते पीले रंग के पास बैठ गई. आज उसे उस के पास बैठते हुए डर लग रहा था. वह इसी रंग की कोख से पैदा हुई थी, उस के आंचल का दूध पिया था और उस की बांहों में झूलते हुए लोरियों को सुना था. बचपन से ले कर जवान होने तक बहुत सारी बातों को दोनों ने साथ जिया था, परंतु आज इस अनहोनी बात से मांबेटी के बीच की दूरियां बढ़ गई थीं. वे एकदूसरे से अपरिचित हो गई थीं.

मां फिर भी मां होती है. पीले रंग ने उस का सिर सांत्वना देने वाले भाव से सहलाया. गुलाबी रंग कांप गया. पीले रंग का स्थिर स्वर उभरा, ‘‘घबराओ मत, सबकुछ साफसाफ बता दो. अब छिपाने से कोई फायदा नहीं है. घर के सभी लोगों को तुम्हारी स्थिति का आभास है, परंतु हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं कि यह सब कैसे हुआ? क्या किसी ने जोरजबरदस्ती की है तुम्हारे साथ या तुम ने पूरी समझदारी को ताक पर रख कर यह कालिख अपने मुंह पर पोत ली है और अब यह कालिख तुम्हारे पेट में फैल कर बड़ी हो रही है.’’

गुलाबी रंग का बदन कांपने लगा. उस के मन में बहुत सारे चित्र उभरने लगे, जैसे मन के परदे पर बाइस्कोप चल रहा हो. इन विभिन्न चित्रों के रंग उसे और ज्यादा डराने लगे और उस ने एक निरीह चिडि़या, जो बाज के पंजों में फंसी हो, की तरह पीले रंग की आंखों में देखा. पीले रंग वाली स्त्री उस की भयभीत आंखों की बेबसी और लाचारी देख कर पिघल गई और उस ने सिसकते हुए गुलाबी रंग को अपने अंक में समेट लिया. इस के बाद कमरे में केवल करुण कं्रदन का दिल दहला देने वाला स्वर भर गया और पता नहीं चल रहा था कि दोनों महिलाएं एकसाथ इतने सुर, लय और ताल में किस प्रकार रो सकती थीं कि दोनों का स्वर एकजैसा लगे. यह संभव भी था क्येंकि वे दोनों नारियां थीं और सब से बड़ी बात यह थी कि वे दोनों आपस में मांबेटी थीं. वे एकदूसरे के दर्द को बिना किसी शब्द और स्वर के भी तीव्रता के साथ महसूस कर सकती थीं.

‘‘मम्मी, मुझे माफ कर दो. रंगों की चकाचौंध में मैं भटक गई थी. मुझे पता नहीं था कि जीवन के कुछ रंग चमकीले और लुभावने होने के साथसाथ जहरीले भी होते हैं. यौवन के उसी एक रंग ने मुझ में जहर घोल दिया और मैं उसे जीवन का अद्भुत सुख समझ कर जीती रही. जीवन में ऐसी खुशियां भरती रही, जो बाद में मुझे दुख देने वाली थीं.’’ ‘‘जवानी के रंगों के बीच भटक कर लड़कियां जो जहर पीती हैं, वह उन के मुंह पर ही कालिख नहीं पोतता, बल्कि उस के घरपरिवार के ऊपर भी एक बदनुमा दाग छोड़ जाता है. खैर, इन सब बातों पर चर्चा करने का यह उचित समय नहीं है. यह बताओ, वह कौन है, कहां रहता है और क्या करता है?’’ ‘‘पहले मैं ने उस के बारे में अधिक कुछ जानने का प्रयास नहीं किया था. मेरी आंखों में इतने सारे रंग भरे हुए थे कि वह मुझे हर कोण से सुंदर, शिक्षित, सभ्य और सुसंस्कृत लगा, परंतु जब रंग फीके पड़ने लगे और मेरी आंखों के ऊपर से परदे उठे तो पता चला कि वह एक ऐसा युवक था, जिस का कोई सामाजिक या आर्थिक आधार नहीं था. वह एक कंपनी का साधारण सा सेल्समैन है और शहर की एक गंदी बस्ती के एक छोटे से कमरे में किराए पर रहता है.’’

पीले रंग वाली स्त्री यह सुन कर और ज्यादा पीली पड़ गई, परंतु मुसीबत की इस घड़ी में उसे अपने धैर्य को बचाए रखना था. वह मां थी और बेटी के जीवन की सुरक्षा के लिए उसे हर संभव उपाय करने थे, वरना कलंक का अमिट धब्बा उस की बेटी के माथे पर सदा के लिए चिपक कर रह जाता. तब उसे धोना असंभव हो जाता. उस ने पूछा, ‘‘क्या वह तुम से ब्याह करने के लिए राजी है?’’ गुलाबी रंग की आंखों में अविश्वास के रंग तैर गए, ‘‘पता नहीं, कई दिनों से वह मुझ से कतराने लगा है. फोन पर बात नहीं करता. कभी बात हो भी जाए तो मिलने नहीं आता. काम का बहाना बना देता है.’’

‘‘तब तो मुश्किल है,’’ वह चिंतित हो उठी.

‘‘क्या मुश्किल है?’’ बेटी का शरीर फिर कांपने लगा.

‘‘तुम दोनों का मिलन…तुम्हारा कलंक मिटाने के लिए मैं उस साधारण युवक से भी तुम्हारी शादी कर देती, परंतु लगता है कि उस के मन में पहले से ही छल था. वह तुम्हारे यौवन और सौंदर्य का रसपान करना चाहता था. वह उसे प्राप्त हो गया, तो अब तुम से दूर हो गया. जो लड़कियां जवानी में अपनी आंखों में प्रेम का इंद्रधनुष बसा लेती हैं उन की आंखों और बदन के रंगों को चुराने के लिए मानवरूपी दैत्य राजकुमार का भेष बना कर यौवन से भरपूर राजकुमारियों को प्रेम के जादू से अपने वश में कर के उन के सतीत्व का धन छीन कर उन के दीप्त यौवन का रसपान करते हैं. तुम जानेअनजाने, एक दैत्य की कुटिल चालों के जाल में फंस गईं और अपना सबकुछ लुटा बैठीं. इस गलती की सजा केवल तुम्हें ही नहीं, हमें भी जीवनभर भुगतनी पड़ेगी.’’ ‘‘काश, मैं उसे पहचान पाती,’’ गुलाबी रंग ने अफसोस जताते हुए कहा. परंतु अब अफसोस करने से भी क्या फायदा था? जवानी में कोई भी विवेक से काम नहीं लेता.

‘‘गलती हमारी भी है. हर जवान हो रही बेटी की मां को इतना ध्यान रखना ही चाहिए कि जवानी में उस की बेटी के कदम बहक सकते हैं. सचेत रह कर मुझे तुम्हारी हर गतिविधि का ध्यान रखना चाहिए था. तुम्हारी आंखों में गलत रंग भरते, इस के पहले ही अगर हमें पता चल जाता…’’ मां भी अफसोस करने लगीं.

गुलाबी रंग चुप.

‘‘तुम ने उस का कमरा देखा है?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो चलो.’’

उन्हें विश्वास नहीं था, फिर भी अविश्वास की घड़ी में मनुष्य विश्वास का दामन नहीं छोड़ता. वे उस काले रंग के कमरे पर गईं. वहां जा कर पता चला कि वह उस कमरे में अकेला रहता था. कहीं बाहर का रहने वाला था और अब उसे छोड़ कर पता नहीं कहां चला गया था. किसी को भी उस के गांव का पता नहीं मालूम था और न यही मालूम था कि वह कहां गया था. मकानमालिक को भी उस ने कुछ नहीं बताया था. अब तो उस का फोन नियमित रूप से बंद था. काले रंग की मंशा का पता चल गया था. लड़कियां जब अपनी आंखों में इंद्रधनुष के रंग भरती हैं तो रंगों की चकाचौंध में वे उन के पीछे छिपे काले रंग को नहीं देख पाती हैं. काश, वह देख पाती तो उस की आंखों में इंद्रधनुष के रंगों की जगह केवल आंसू न होते.

 

 

#coronavirus: करो ना क्रांति 

आज़ादी का दिन जब पहली बार आयोजित किया गया होगा, कितना उल्लास रहा होगा हर भारतीय के मन में. परन्तु आज आज़ादी के ७० वर्ष बाद यह कोरोना का लौकडाउन महज़ छुट्टी का एक दिन भर रह गया हैं. पुरुष पूरा दिन आदेश देने में व्यतीत करते हैं और स्त्रियाँ उसे पूरा करने में. प्रकृति ने भी स्त्री और पुरुष की रचना करते समय अंतर किया था. सारी पीड़ा तो स्त्री के हिस्सें मे डाल दी और पुरुष को दे दिया कठोर संवेदनहीन दिल. स्त्रियाँ तो १५ अगस्त १९४७ के पूर्व भी पराधीन थीं, और आज भी हैं. स्त्रियाँ भी अपनी इस दशा के लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं क्योंकि पराधीनता को अपनी नियति मान स्वीकार भी तो उन्होंने ही किया है, शायद धर्म के धुरंधर प्रचार के कारण.

“भाभी हल्वे में चीनी कितनी डालूँ ?” विराज के तेज़ी से दोड़ते सोच के घोड़ों को अदिति की आवाज़ के चाबुक ने लगाम लगा कर रोक दिया था.जमीनी हकीकत जानते हुए भी, पता नहीं क्यों उसके मन के भीतर सोयी हुई एक्टिविस्ट गाहे-बगाहे जाग उठती थी.अमर की आदेशों की लिस्ट लंबी होती जा रही थी. घर के काम में उसकी सहायता के लिये आने वाली बाई विमला को भी संक्रमण के खतरे की वजह से उसने छुट्टी दे दी थी. पता नहीं वह कैसे गुजारा कर रही होगी. कहा भी था कि उसे घर पर ही रहने दें, कुछ आराम हो जाएगा और उसको वेतन भी दिया जा सकेगा.
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इन्हें ही लगा थाकि न जाने कहां से कोरोना लें आई हो. मेरी एक नहीं चली. सब ने कहा कि वे खुद काम कर लेंगे. पर अब घर के सभी कामों की जिम्मेदारी विराज और उसकी ननद अदिति के ऊपर आ गयी थी. अदिति दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रैजुवेशन कर रही थी. विराज का प्रयास था कि अदिति पर भी कम से कम काम का दबाव पड़े. इसलिये वो अधिकतर काम स्वयं ही निबटा ले रही थी. उसके दोनों बच्चें १० साल की आन्या और १२ साल का मानव अपने कमरे में वीडियो गेम खेलने में व्यस्त थे. पति अमर अपने कमरे में अधलेटे हुए चाय की चुस्कियां ले रहे थें.
अचानक वहीं से चीख कर बोलें,“सुनो आज नेटफलिक्स पर एक नयी फिल्म आयी है. सब साथ ही देखेंगे.” फिर थोड़ा रुककर बोलें, “ये तुम्हारे बच्चें इतना शोर क्यों कर रहे हैं? देखो जरा !”अन्य दिन तो वर्क फ्रौम होम होता था तो फिर भी अमर समय पर नहा लिया करते थें. लेकिन शनिवार होने के कारण महाशय छुट्टी मोड में चले गये थें. बच्चों की तो खैर, छुट्टियाँ ही थी. “बाबू साहेब सुबह से लेटे-लेटे हुक्म दे रहे हैं. मैं घर के रोजमर्या के कार्यों के साथ बढ़े हुये कामों को भी निबटाने में लगी हूँ, यह नहीं दिख रहा हैं जनाब को. जब कुछ गलत करे तो बच्चें मेरे, परन्तु जब यही बच्चें कुछ अच्छा करते हैं, तो इनके हो जाते हैं.”
सोच तो इतना कुछ लिया विराज ने परन्तु प्रत्यक्ष में इतना भर कह पाई, “जी, बस अभी देखती हूँ.”
सभी काम निबटाने में बारह बज गये थें. पूरा परिवार फिल्म देखने बैठ गया. विराज ने सोचा थोड़ा सुस्ता ले, तभी अमर की आवाज कानों में पड़ी. “अरे विराज कहाँ हो भई?”“थोड़ा थक गयी थी. सोचा लेट लेती हूँ !” विराज अनमनी सी हो गयी थी. “अरे इतनी मुश्किल से तो फैमिली टाइम मिला है. उसमें भी इन्हें सोना है !”
अमर की बात सुनकर विराज को ऐसा मालूम हुआ जैसे गुस्से की एक लहर तनबदन में रेंग गयी हो. मन में आया कि कह दे, “फॅमिली टाइम या पैर फैलाकर ऑर्डर देने का टाइम.” वैसे आम दिनों में भी अमर घर का कोई काम नहीं करते थें. लेकिन विमला और अदिति की सहायता से काम हो जाता था. फिर विराज को थोड़ा मी टाइम भी तो मिल जाया करता था. लेकिन अब तो विराज के पास दो घड़ी बैठकर चाय पीने का भी समय नहीं था.
“अरे कहाँ रह गयी !?” अमर ने जब दुबारा बुलाया विराज को मन मारकर जाना ही पड़ा. फिल्म वाकई में अच्छी थी. विराज को भी अच्छा लग रहा था कि पूरा परिवार एक साथ बैठा था. तभी अचानक अमर ने फरमान सुनाया, “विराज पकोड़े बना लो. फिल्म के साथ सभी को मजा आ जायेगा.”“सभी को या तुम्हें !” विराज के इस अचानक पूछे गये प्रश्न पर अमर चौंक गया था. फिर थोड़ा गुस्से में बोला, “मैं तो सभी के लिये कह रहा था. तुम्हारा मन नहीं तो मत बनाओ.”
“मम्मी प्लीज” अब तो बच्चें भी चिल्लाने लगे थें. विराज उठ कर रसोई में चली गयी थी.
थोड़ी देर बाद अदिति को वहाँ बैठी देखकर, अमर बोल पड़े थे,” अरे तुम कहाँ  बैठ रही हो, अंदर रसोई में जाओ भाभी के साथ.”अदिति के चेहरे पर एक पल की झेंप को पहचान लिया था विराज ने. दोनों की नज़रें मिली और हालें दिल बयां हो गया था. विराज ने इशारे से अदिति को अंदर बुला लिया था.
अंदर रसोई में भी कुर्सियां लगी हुई थी, उनमें से एक पर अदिति को बैठने का इशारा करके विराज ने अपना सारा ध्यान गैस पर रखी हुई कढ़ाई पर लगा दिया था.
“कितनी गर्मी हैं आज!” अदिति ने बात शुरू करने के लिए यह जुमला कहा था शायद.
“हमम! चाहो तो वापस कमरे में जाकर बैठ जाओ, वहां तो ए सी लगा है.”
“नही-नहीं, मैं ठीक हूँ.”“भाभी आपको क्या लगता है, यह लॉकडाउन कब तक रहेगा?” अदिति फिर बोली थी.“देखो कब तक चलता है ! बस देश में सब ठीक रहें !” विराज ने दार्शनिक के अंदाज़ में कहा.
“भाभी मुझे आपके साथ बातें करना बहुत पसंद है.” अदिति ने बात बदल दी थी.
“आजकल हमें समय भी बहुत मिल रहा है. तुम्हारे साथ कितनी विषयों पर बातें हो जाती हैं” विराज ने उसकी बात का अनुमोदन किया था.“आप तो मेरी प्यारी भाभी है !” अदिति ने पीछे से विराज को अपने अंक में भर कर कहा था. “इसी बात पर मेरी तरफ से तुम्हें ट्रीट.” विराज ने मुस्कुराते हुए कहा.
“क्या मिलेगा ट्रीट में ?” अदिति ने पूछा था.“तुम पहले ये पकौड़े दे आओ. खाना तो तैयार ही है. तुम्हें अच्छी सी चाय पिलाती हूँ?”“भाभी आप चाय लेकर बालकोनी में चलो, मैं पकोड़े देकर आती हूँ.” अदिति ने बड़े प्यार से विराज को कहा था.
“लॉकडाउन में भी इन्हें पाँच दिन का काम और दो दिन की छुट्टी मिल रही है, परन्तु हमें कब मिलती हैं छुट्टी? यदि कुछ कहूँगी तो एक ही उत्तर मिलेगा, तुम तो सारा दिन घर में आराम ही करती हो. हमें तो बड़ी मुश्किल से छुट्टियाँ मिलती हैं. उस समय दिल करता हैं की कह दूँ, यह आराम एक दिन के लिए तुम भी लेकर देखो .” “तो कहती क्यों नहीं ?” विराज को पता ही नहीं चला था कि कब उसके मन की आवाज जबान से निकलने लगी थी. अदिति ने सब सुन लिया था. उसके प्रश्न का उत्तर सोचने में विराज को समय लगा. अदिति भी पास आकर बैठ गयी और अपना प्रश्न दोहरा दिया था. इस बार विराज बोली थी.
“अब बात तो उनकी भी पूरी तरह से गलत नहीं हैं. ऑफिस में परेशानी तो कई तरह की होती ही हैं.” अब विराज का स्वर बदल गया था.
“पुरुषों से अपने कार्य के लिए सम्मान की अपेक्षा हम तभी कर सकते हैं जब स्वयं हम अपने कार्य को सम्मानित महसूस करे.” अदिति की आँखों में चमक थी. “हमारे कार्य का कोई आर्थिक महत्व नहीं हैं, सम्मान इस दुनिया में द्रव्य सम्बन्धी हैं.” विराज ने एक आह भरकर अपनी बात रखी थी.
“मैं ऐसा नहीं मानती. कामकाजी स्त्रियों को कौन सा सम्मान ज्यादा मिल जाता हैं? घर आकर उन्हें भी चूल्हा-चौकी की इस आग में जलना ही पड़ता हैं. बाहर से थक कर दोनों ही आते हैं, परन्तु पुरुष के हिस्से आती हैं टीवी का रिमोट और सोफे का आराम. स्त्री के हिस्से आती हैं रसोई और बच्चों की पढाई.” अदिति ने उसकी इस बात का खंडन किया था.
विराज उनकी बातों को अनमने भाव से सुन रही थी कि अनायास ही नीचे की फ्लैट से आ रही एक स्त्री की आवाज ने उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया था. विराज उसे नहीं जानती थी. कभी मिलने का समय ही नहीं मिल पाया था. वो और उसके पति दोनों ही इंजीनियर थें. कभी-कभी बालकोनी से उनके मध्य एक मुस्कान का आदान-प्रदान हो जाया करता था.
वो किसी से फोन पर बात कर रही थी-“मेरी राय में इसमें मर्दों से ज्यादा औरतों की गलती हैं. दोष पुरुष पर डाल कर औरत अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती. बचपन से मर्द को यह बताया जाता हैं की तेरे सारे काम करने के लिए घर में एक स्त्री हैं. उसकी परवरिश ही ऐसी होती हैं की वो स्वभाववश ही आराम पसंद हो जाता हैं. कभी माँ, कभी बहन, कभी बीवी बन कर हम औरतें ही उन्हें आलसी बना देती हैं. अब जब मर्द को यह पता हो की, घर में औरत हैं उसका काम करने को तो फिर वो क्यों अपने शरीर को कष्ट देगा. आराम किसे बुरा लगता हैं? इसलिए वो तो काम नहीं करेगा, तुझे काम करवाना पड़ेगा. उसे समझाने से पहले तुझे खुद समझना होगा की तू भी इन्सान हैं और तुझे भी आराम की उतनी ही जरुरत हैं. तुझे क्या लगता हैं रवि  हमेशा से घर के काम में मेरी मदद करता था ! नहीं, उसे खाना बनाना मैंने सिखाया हैं. अब देख मुझे से भी अच्छी खीर बनाता है. चल अब फ़ोन रखती हूँ, रवि बुला रहा है.”
फ़ोन रख कर न मालूम किस भावना के वशीभूत होकर उसने ऊपर देखा. वहाँ दो जोड़ी आँखों को अपनी ओर घूरता पाया. उन आँखों में इर्ष्या और सम्मान का भाव एक साथ मौजूद था. इर्ष्या इसलिए कि जो बात वे अभी तक सोच भी नहीं पाई थी, उसे वो इतने अच्छे से समझ गयी थी. सम्मान इसलिए कि न केवल समझी थी अपितु अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन भी ले आई थी.उन दोनो की खामोशी ने एक दूसरे से संवाद कर लिया, और एक छोटी सी चिंगारी उसकी आँखों से विराज की आँखों में प्रवेश कर गयी थी. बिना किसी शोर के एक मूक क्रांति का जन्म हुआ था.वो अंदर चली गयी थी. अदिति और विराज दोनों चुप थें.
“मध्यम वर्ग की सोच में बदलाव एक क्रांति ही ला सकती हैं.” अदिति ने चुप्पी तोड़ी थी.“तब तक …” विराज ने प्रश्न ऐसे पूछा था जैसे उत्तर उसे पहले से पता हो.“जो जैसे चल रहा है, वैसे ही चलता रहेगा.” अदिति जैसे स्वयं को समझा रही थी.उसकी बात सुनकर विराज एक मुस्कान के साथ बोली, “ बात किसी वर्ग की नहीं हैं. बात सिर्फ इतनी है कि, जो तू कहता है, बात सही लगती हैं; पर वो मेरे नहीं तेरे होठों पर सजती है.”“आप कहना क्या चाहती हैं !?” अदिति के स्वर में उत्सुकता थी.
“समाज में सकारात्मक परिवर्तन के हम सभी पक्षधर हैं. परन्तु पहला कदम उठाने से डरते हैं.  बदलाव केवल क्रांति ही ला सकती हैं, यह एक भ्रान्ति हैं. आत्मविश्वास के साथ बढे हुए छोटे-छोटे कदम भी परिवर्तन ला सकते हैं.” “जैसे की …” अदिति को विराज की बातों ने जैसे सम्मोहित कर लिया था.
“बच्चों को खाने के लिए बुला लेते हैं.” विराज ने अनायास ही बातों का रुख बदल दिया.
दोनों ही वर्तमान में लौट आये थें.“हाँ, मैं आन्या को बुला लाती हूँ. खाना लगाने में मदद कर देगी.”
“क्यों?” विराज ने अदिति की तरफ बिना देखे पूछ लिया था.??? अदिति के चेहरे पर प्रश्न था.
“मानव क्या करेगा ? पुरुष होने की उत्कृष्टता का लाभ लेगा ! बदलाव अपनी परवरिश में लाना होगा. अपने बेटों को हुक्म देने वाला नहीं, साथ देने वाला पुरुष बनाना होगा, और अपनी बेटियों को गलत का विरोध करना सिखाना होगा. तुम समझ रही हो ना !?”
विराज के इन शब्दों ने जैसे अदिति पर जादू कर दिया था. पहला कदम लेना उतना मुश्किल भी नहीं था.
“भाभी, मैं अभी मानव और आन्या को बुला कर लाती हूँ. आज उन्हें मेज़ पर खाना लगाना सिखाते हैं” लगभग उछलती हुई अदिति अंदर की तरफ चली गयी थी. कुछ सोचकर विराज भी उस तरफ चल दी थी, आखिर बड़े बच्चे को भी तो उसका नया पाठ समझाना था.
जब विराज बैठक में पहुंची तो अमर किसी से फोन पर बात कर रहे थें. टी वी बंद था. बच्चें भी अपने कमरे में जा चुके थें. अमर की स्त्री स्वतंत्रता और सशक्तिकरण पर चर्चा अभी-अभी समाप्त हुई थी. पुरुष बॉस और स्त्री बॉस में कौन ज्यादा प्रभावी होता हैं; इस प्रिय विषय पर वाद-विवाद कई घंटों तक चला था. स्त्रियों की मानसिक क्षमता का भी आंकलन हो चुका था. अभी शेरों-शायरी का दौर जारी था और श्रीमान अमर जी एक शेर सुना रहे थें.
“एक उम्र गुजार दी तेरे शहर में, अजनबी हम आज भी हैं.तेरी ख्वाहिशों के नीचे, मेरे दम तोड़तें ख्वाब आज भी हैं….”अमर ने अपनी पंक्तियाँ अभी समाप्त ही की थी की विराज ने उन्ही पंक्तियों के साथ अपने शब्द जोड़ दिए थें …. “तेरे दर्वाज़ाऐ क़ल्ब पर दस्तक देते मेरे हाँथों को देखा हैं कभी
तेरी गर्म रोटी की चाह में झुलसे मेरे हाथ तब भी थे और आज भी हैं …”
अमर चौंक कर पलट गये थें. अपने स्वप्न में भी विराज से इस तरह के व्यवहार की उम्मीद उन्होंने नहीं की थी. उन्होंने कंधे उचका कर विराज से कारण पूछा. बेपरवाह विराज ने उनके कान पर से फोन हटाया और कॉल काट दी. कमरे में तूफान के बाद वाली शांति पसर गयी थी.अपनी दम्भी आवाज़ में अमर ने पूछा था, “यह क्या हो रहा है विराज !?
 “कुछ नहीं! इस कोरोना फीवर ने मुझे दो बातें समझा दी हैं.”“अच्छा ! जरा मैं भी तो सुनूँ कौन-कौन सी !” अमर के स्वर में तल्खी थी. विराज सामने पड़े सोफ़े पर आराम से बैठकर बोली, “पहली तो ये कि सही शिक्षा किसी भी उम्र में दी जा सकती है; मात्र एक मंत्र पढ़ना है, तुम भी करो ना. दूसरी, फॅमिली टाइम घर की स्त्रियों के लिये भी होता है. घर सभी का तो घर के काम मात्र स्त्री के क्यों ! मुसीबत तो सब पर आयी है, तो उसका सामना भी तो सबको मिलकर ही करना होगा.”
इतना कहकर विराज ने पलट कर पीछे देखा. आन्या और अदिति मेज पर खाना लगा रहे थें और मानव ग्लासों में पानी भर रहा था. अमर की नजर भी विराज की नजर का पीछा करते हुये उधर ही चली गयी थी.
“सुनो !” विराज की आवाज पर अमर ने उसकी तरफ देखा.“खाना तैयार हैं, मेज़ पर लगा दिया हैं. अदिति अपना और मेरा खाना यहीं ले आयेगी.”
अमर चुपचाप अंदर की तरफ जाने लगा था कि विराज ने फिर पुकारा-“सुनो ! बड़े बर्तन तो मैंने धो दिये थें. अपने और बच्चों के बर्तन धोकर अलमारी में रख देना.” इतना कहकर बिना अमर की तरफ देखे, विराज टी वी खोलकर अपना धारावाहिक देखने में तल्लीन हो गयी थी. घर में करो ना क्रांति का बिगुल बज चुका था. टीवी से आवाज़ आ रही थी.
 राजकुमार कुछ देर तक राजकुमारी के विचार परिवर्तन की राह देखता रहा. वह उनके कोमल ह्रदय को लेकर विश्वस्त था. परन्तु राजकुमारी की अनभिज्ञता उसे व्यग्र कर रही थी. उसकी निर्निमेष दृष्टि से अविचलित राजकुमारी अपनी सखियों के साथ आखेट में व्यस्त थी. राजकुमारी की ना को हाँ में बदलने का दम्भ जो उसने अपने मित्रों के सामने भरा था, वह दम तोड़ रहा था. थके क़दमों से वह आगे बढ़ गया था. इस परिवर्तन को उसने अनमने भाव से स्वीकार कर लिया था. अपनी गले में लटकती माला से खेलती हुयी राजकुमारी भी जानती थी कि यह पहला सबक था, पूरी शिक्षा अभी शेष थी.
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