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गंदे कमेंट से परेशान रश्मि देसाई ने ‘sidnaaz’ के फैंस को किया ब्लॉक, दिया ये बयान

रश्मि देसाई को इन दिनों काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, जहां एक तरफ वह अपने परिवार वालों के बीच प्यार बांटने की कोशिश कर रही हैं वहीं दूसरी तरफ sidnaaz के फैंस की तकरार भी झेलनी पड़ रही है. रश्मि देसाई ने अपने फैंस को बताया है कि सिदार्थ शुक्ला और शहनाज के फैंस उन्हें लगातार ट्रोल कर रहे हैं.

आगे रश्मि ने बताया ट्रोलर्स उन्हें इतना ज्यादा परेशान करने लगे थे. गंदे-गंदे कमेंट्स कर रहे थे. जिस वजह से परेशान होकर रश्मि ने उन्हें ब्लॉक कर दिया. इतना ही नहीं रश्मि के लिए भद्दे शब्द का इस्तेमाल भी कर रहे थें.

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दरअसल, रश्मि ने कुछ दिनों पहले अपनी फ्रेंड देवोलीना भट्टाचार्या को सपोर्ट किया था. जब देवोलीना सिदार्थ और शहनाज के रिश्ते पर आलोचना की थी. जिसके बाद फैंस लगातार रश्मि को परेशान करना शुरू कर दिए.

रश्मि ने इस बात पर कहा यह जो कुछ भी हो रहा है वह बहुत गलत है. उन्हें अपने शब्दों पर काबू रखना चाहिए. जिस समय मैंने ऑडियो सुना और उसके बाद मुझे ट्रोल किया जाने लगा. मेरे निजी जीवन पर सवाल उठाने वाले वो कौन होते है. पुरानी बातों को घसीटने से अच्छा है हम आने वाले कल के बारे में सोचें. इससे हम अपना बेहतर भविष्य बना सकेंगे.

इस तरह के कमेंट्स पढ़ना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था इसलिए मैंने ब्लॉक कर दिया. अगर कोई मुझसे आराम से और ईमानदारी से सवाल करे तो मुझे जवाब देने में कोई दिक्कत नहीं है. फिलहाल रश्मि सेल्फ आइसोलेशन में है.

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रश्मि देसाई बिग बॉस का भी हिस्सा रह चुकी हैं. वहां लोगों ने रश्मि के काम को खूब सराहा था. रश्मि इन दिनों अपनी मां के साथ और घर के काम करते हुए वीडियो पोस्ट करती रहती है. उनके फैंस को भी रश्मि के वीडियो का खूब इंतजार रहता है.

#coronavirus: कनिका कपूर के फैंस के लिए खुशखबरी, जल्द होगी घर वापसी

पूरी दुनिया में हाहाकार मचाने वाला कोरोना वायरस अब भारत में भी पूरी तरह से फैल चुका है. लॉकडाउन के बाद सभी लोग अपने घर में कैद होकर अपने परिवार के साथ समय बीता रहे हैं. इन सभी के बीच चौकाने वाली बात यह थी की जब सिंगर कनिका कपूर को कोरोना पॉजिटीव होने की खबर आई तब बॉलीवुड के सभी सितारे हैरान हो गए थे.

बता दें ,अभी तक कनिका के जितने भी टेस्ट हुए है सभी पॉजिटीव आएं हैं. लोग कनिका की सलामती के लिए दुआ कर रहे हैं. कनिका इन दिनों अपने होमटाउन लखनऊ के संजय गांधी पीजीआई अस्पताल में भर्ती हैं.

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कनिका कपूर के फैंस के लिए एक राहत की खबर है. दरअसल, कनिका के परिवार वालों का कहना है कि अभी तक कनिका के पांच टेस्ट हो चुके हैं लेकिन इन सबमें  कनिका के कोई भी टेस्ट में कोविड 19 के लक्षण नहीं नजर आएं हैं.

 

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Thank you @judithleiberny Love my #Camera #bag ?

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कनिका के परिवार वालों को इंतजार है अगले टेस्ट का उसके बाद उन्हें घर ले जाया जा सकता है. कनिका इन दिनों अपने परिवार और बच्चों को काफी मिस कर रही हैं.

सभी को उम्मीद है कि अगले टेस्ट के बाद कनिका अपने घर पर अपने परिवार वालों के साथ होंगी. कनिका का पूरा परिवार हर वक्त उनके घर आने के लिए दुआ कर रहा है. वहीं बच्चें भी अपनी मां को बहुत मिस कर रहे हैं.

 

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She’s cute?? @tanyaganwani

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कनिका होली पार्टी के लिए लखनऊ आई थी. आने के बाद लगातार तीन पार्टीयों में कनिका शामिल हुई जिसमें बॉलीवुड और कई बड़े नेता शामिल थें. जिनमें से कुछ लोग अभी भी आइसोलेशन में रह रहे हैं. उन्हें भी अपने परिवार से दूर रहने की सलाह दी गई है.

 

#coronavirus: कोरोना ने मचाई दुनिया में हाहाकार

कोरोना का कहर देश ही नहीं दुनिया को घेर चुका है. संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव अंटोनिओ गुटर्स ने कहा है  कि द्वितीय महायुद्ध के बाद यह सबसे बड़ी आपदा विश्व के सामने है पर चाहे द्वितीय विश्व युद्ध में मृतकों की संख्या कहीं  ज्यादा थी, वह युद्ध न पूरे विश्व  झेलना पड़ा था न हर घर उससे प्रभावित हुआ था. आज सारा विश्व   लौकडाउन  का शिकार हो चुका है. अब न शहर बचे हैं, न कस्बे और न ही गांव। कोरोना आज घरघर में घुस गया है, उस घर में भी जहाँ कोई बीमार नहीं है.

विश्व की 7 अरब की आबादी में अभी तक 9 लाख लोग बीमार हैं पर यह संक्रमण वाली बिमारी ऐसी है कि इसने  अपने से ज्यादा मारने वाले कैंसर, हार्टफेल को इसने हरा दिया है और हर घरवाली से लेकर हर राष्ट्रपति, डिक्टेटर, प्रधानमंत्री के माथे पर गहरी चिंता की लाईने डाल चुकी है. 2018  में कैंसर से 96  लाख लोग मरे थे यानी हर रोज 26000. दिल की बिमारियों से और भी ज्यादा मृत्यु हुईं पर फर्क यह है कि कैंसर या दिल की बीमारी या कोई और बीमारी दूसरे  से नहीं फैलती और मरने वाले के अपने शरीर के रोगों से मृत्यु  होती है जबकि कोरोनावायरस से होने वाली हर मृत्यु किसी और की देन है और मरने वाला जिम्मेदार नहीं है.

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इस बिमारी ने आज विश्व की  तिहाई जनता घरों में बंद है. इनमें औरतें और बच्चे भी हैं जिन्हें कई सप्ताह घर में बंद रखा जा रहा है. यह एक तरह से वैसी ही जेल है जैसी में कश्मीर की जनता 5 अगस्त 2019 से अब तक बंद रही है. अब जब थोड़ी ढील का समय आने लगा था कोरोना से डर कर बंद चालू रहा है. रूस, पाकिस्तान जैसे देश जो किसी भी कारण पूरा लौकडाउन नहीं कर रहे पछता सकते हैं. पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान जैसे देश ऐसे ही कोरोना से प्रभावित हो सकते हैं जैसे दिल्ली के तबलीगी जमात के लोग निजामुद्दीन इलाके में इस जानकारी के बावजूद जमा हुए और खुद को भी  और दूसरों को भी पकड़ा गए. इन 3000 तबलीगी भक्तों में से बहुत की मौत हो सकती है क्योंकि ये निजामुद्दीन की मस्जिद से निकल कर लॉकडाउन के कारण अपने देशों में न जा सके. इनमें विदेश से से आये थे इस बीमारी को अनजाने में एयरपोर्ट या अपने देश के बाजार से ले आए थे.

फ़िलहाल इसकी एक ही दवा है–घर में रहो. पर यह आसान नहीं क्योंकि कहने से करना ज्यादा मुश्किल है. घर में रहने का मतलब यह नहीं की दफ्तर या फैक्ट्री की तरह न खर्च न आमदनी का फार्मूला चलेगा. घर में सब के रहने का अर्थ है घर का खर्च चालू, नई, वर्तमान या भविष्य की आय पर ग्रहण लग गया. यह घरवालियों का काम तो बढ़ा ही रहा है, यह उनके हाथ भी तंग कर रहा है. करोंड़ो घरों में आय का स्रोत ऐसी नौकरी से है जो काम बंद होते ही रूक जाती है. इसमें फ़िल्मी सितारें भी हैं, रेस्ट्रा शेफ भी, ब्यूटी पार्लर मालकिनें भी और घरों की बाइयें भी.

इससे ज्यादा वह मानसिक तनाव है जो आम छोटे घर में कम जगह में ज्यादा लोगों के एक साथ रहने के कारण पैदा हो रही हैं. हजारों लोग तो व्हाट्सएप्प जैसे संदेशों के डर से भयभीत हैं कि कोरोना अब आया अब आया. बड़े शहरों में रेजिडेंट वेलफेयर एसोशियनों ने कुछ ज्यादा ही हल्ला मचा दिया है और तर्क व व्यवहारिकता को परे छोड़ कर अनावश्यक भय पैदा कर दिया है.

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अब तो ऐसा लग रहा है मानो कोरोना ने आपके घर पर कब्ज़ा कर लिया है, वह पर्स में भी घुस गया, किचेन में भी, खिड़की में भी, मोबाइल पर भी. टीवी में सिर्फ कोरोना पुराण है. जिससे बात करो वह कोरोना की करेगा. रसोई का सामान जुटाना कठिन हो गया है क्योंकि पूरी सप्लाई चेन रूक गई है. आपके घर तक जो सामान आता है वह 30 लाख ट्रक आपके घरों तक पहुंचते हैं जो सड़कों पर खड़े हैं. इनमें बहुतों के ड्राइवर भरालदा ट्रक सड़क पर छोड़ कर अपने गांव चल दिए हैं और पैदल ही. अब कहने को चाहे खाने पीने का सामान  आ सकता है सच यह है कि ट्रक पर तो कोरोना का कब्ज़ा है जो आपका सामान नहीं चलने देगा. ट्रक ड्राइवर जो वहीँ हैं, भूखे प्यासे हैं क्योंकि सारे ढाबे बंद हो गए. कहीं बेहद गर्मी है, कहीं ठंड और कोरोना की मेहरबानी से ये ड्राइवर शिकार हो गए चाहे उन्हें बीमारी नहीं हों.

एक मिलीमीटर के 10000 वां हिस्से वाले कोरोना ने मन और तन से आप पर कब्ज़ा कर लिया है. जब घर के चप्पे चप्पे पर कोरोना का असर हो तो यह स्वाभाविक ही है. हमारे देश में मकानों का साइज़ वैसे ही बहुत छोटा है. जहाँ अमेरिका में एक औसत घर 2687 वर्ग फुट का है, भारत में 5 सदस्यों वाले 32 % घर केवल 258 वर्ग फुट के हैं. यह आंकड़ा नेशनल सैंपल सर्वे के 63 वें सर्वे का है. ऐसे घर में 21 या उससे ज्यादा दिन जब 5 या ज्यादा लोग लगातार रहेंगे तो क्या होगा, इसका अंदाजा लगाना आसान है. बहुत घरों में बिना पार्टीशन के आदमी औरत दोनों रहते हैं. पहले आदमी जानते थे कि औरतों को कपड़े बदलने नहाने के लिए प्राइवेसी चाहिए और वे बाहर चले जाते थे पर अब यह संभव नहीं है. मध्यम परिवारों में पति पत्नी को अब दिन भर सुकून नहीं मिल रहा.

अब कोरोना की वजह से न  कोई घर आ पा रहा है न कोई जा पा रहा है. इससे मानसिक तनाव कोरोना जैसा दबाव दाल रहा है. जहां बच्चों को कम्प्यूटरों से पढ़ाने की कोशिश हो रही है वहां भी हजार मुसीबतें हैं क्योंकि घर के इकलौते लैपटौप पर एक समय में या तो खेल खेले जा सकते हैं या पढाई की जा सकती है वह भी तब जब टीवी चीख नहीं रहा हो. कौन किसकी सुनेगा इसका फैसला अब तो कोरोना के हाथों में चला गया है.

जिन लोगों के पास पक्की नौकरी थी उनके सामने भी  एकदम अंधेरा छा गया है. बहुत सी नौकरियां खतरे में हैं. देश की 6.9 करोड़ छोटे व्यापारों में से आधे नहीं तो एक चौथाई बंद हो सकते हैं और सवा करोड़ नौकरियां जा सकती हैं. इसी वजह से लगभग 60 मजदूर परिवार के साथ पैदल 200 से 800 किलोमीटर  चलने को तैयार हो गए जिनको पुलिस ने रास्ते में बेरहमी से पिता, लूटा, भूखा बंद कर दिया. कोरोना हर दरवाजे पर खटखट की दस्तक दे रहा है. अगर पैसे नहीं होंगे तो देश ही नहीं दुनिया भर में भयानक स्तिथि पैदा हो सकती है और जिसका सीधा असर घर घर पर पड़ेगा.

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इस समस्या को किसी देश की सरकार ने ढंग से सुलझाया हो ऐसा लगता नहीं क्योंकि यह समस्या हुई ही पहली बार है. किसी सरकार के पास इस दुश्मन  से निपटने का तरीका नहीं है. बिना फैक्ट्रियां चलाए, बिना बाजार खोले, बिना लोगों को बाहर निकलने देकर कैसे घर घर में रोज की जरूरतों का सामान उनको भी पहुंचाया जा  जिनके पास पैसे हैं. कभी बाजार में सैनिटरी पैड काम पैड रहे हैं तो कभी कंडोम। ये सब एक घर की जरूरते हैं. सरकार ने लोगों को राहत देने के लिए आर्थिक पैकेज दिया है पर अभी तो यह सिर्फ गरीबों को दिया है पर उनके हाथ में 500 700 रूपए आ जाएंगे या बैंकों में फंसे रह जाएंगे पता नहीं.

अभी तक देश में या दुनिया भर में कहीं कानून व्यवस्था इस वायरस की वजह से ख़राब नहीं हुई पर 20 25 दिन बाद क्या होगा पता नहीं. भारत जैसे देश में अगर मुंबई की धारावी जैसी घनी बस्ती में कोरोना फैला तो खोलियों को तो काले दिन देखने ही होंगे, इनके मरीजों का असर वित्तीय राजधानी पर बहुत गंभीर पड़ सकता है.

आज विज्ञान व् तकनीक के युग में सभी को बहुत आशा है कि प्रयोगशालाओं से जल्द ही उपाय बाहर निकलेगा. आज का मानव बहुत चुनौतियां देख चुका है और उसे विश्वास है कि उसके घर पर कब्ज़ा कर रहे कोरोना का उत्तर ढूंढ लेगा. आर्थिक हानि जो एक दो माह के बंद ने की है वह बाद की डबल मेहनत से पूरी करी जा सकती है. घरों में हालत सामान्य होंगे क्योंकि वैसे ही व्यक्तिगत स्तर पर हर परिवार हर तरह की समस्या झेलने और निपटने के लिए आदि होता है. इस बार  समस्या सामूहिक है, वैश्विक है, इसलिए घुसपैठिए से डर लग रहा है.

#coronavirus: कोरोना : बिगड़ रहे हैं अमेरिका के हालात

अमेरिका में दो लाख से अधिक लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और अब तक मरने वालों की तादात 4700 का आंकड़ा पार कर चुकी है. यहाँ मरने वालों की तादाद अब कोरोना का केंद्र रहे चीन से भी ज्यादा हो गई हैं.अमेरिका के इतिहास में बीते सौ सालों में इतनी ज़्यादा जानें जाने का रिकॉर्ड नहीं है. यहां तक कि 9/11 के आतंकी हमले में भी इतने नागरिक हताहत नहीं हुए जितने कोरोना संक्रमण के कारण मारे गए हैं.अमेरिका के लिए यह सबसे बड़ी मानवीय आपदाओं में से एक है.मौत के इस आंकड़े ने 2001 के 9/11 आतंकी हमले जिसमे 2,996 नागरिक मारे गए, 1906 के सैन फ्रांसिस्को भूकंप जिसमे 3389 लोग हताहत हुए और 1989 के साइक्लोन जिसमे 3,000 लोगों की मौत हुई, इन तमाम आंकड़ों को पीछे छोड़ दिया है.

संक्रमण के आधे से अधिक मामले अकेले न्यूयोर्क शहर में हुए हैं. न्यूयोर्क के गवर्नर एंड्रू कुओमो का कहना है कि आने वाले चंद दिनों में बाकी प्रदेशों में भी स्थिति भयावह हो सकती हैं.दो दिन पहले अमेरिका के उप राष्ट्रपति ने भी चेतावनी दी थी कि अमरीका में महामारी का स्वरूप कुछ वैसा हो सकता है जैसा इटली में हुआ है.गौरतलब है कि पूरे विश्व में कोरोना के कारण सबसे अधिक मौतें इटली में हुई हैं.इटली में कोरोना अब तक 13,155 लोगों की जानें ले चुका है जबकि 110,500 से अधिक लोग इससे संक्रमित हैं.
खुद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ट्वीट करके अपने नागरिकों से कहा है – ‘अमेरिका बी प्रिपेयर’ यानी अमेरिका तैयार रहो. ट्रम्प के मुताबिक़ अमेरिका के लिए आने वाले दिन काफी भयावह हो सकते हैं और अमरीकियों को डरना नहीं चाहिए बल्कि डट कर तैयार रहना चाहिए.

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अमेरिका के जाने माने इंफेक्शियसस डिज़ीज़ेज़स एक्सपर्ट एंटोनी फाउची की मानें तो कोरोना से बचाव का सबसे कारगर तरीक इसका टीका ही होगा. ये कहना कि ये वायरस गर्मी से ख़तम हो जाएगा, सिर्फ एक संभावना भर है.टीके पर काम चल रहा है और टीके का टेस्ट भी इंसानों पर हो रहा है, लेकिन आम लोगों के लिए बाज़ार में कोरोना से बचाव का टीका आने में कम से कम डेढ़ साल लगने वाले हैं इसलिए लोगों से दूरी बनाये रखना ही अपनी जान बचाने का एकमात्र रास्ता है.

अमेरिका ने अभी तक लॉक डाउन का रास्ता इख्तियार नहीं किया है और ऐसा करके अपनी अर्थव्यवस्था को चौपट करने का उसका कोई इरादा भी नहीं दिखता है.ये बात खुद राष्ट्रपति ट्रम्प ने कही है कि वो फिलहाल देश में ट्रेनें और देश के भीतर चल रही उड़ानों को रद्द करने पर कोई विचार नहीं कर रहे हैं.
ट्रम्प का कहना है कि ये बड़ा फ़ैसला है और इसका असर सीधे देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है, इसलिए लॉक डाउन की बजाय वो लोगों की अधिक जांच पर विचार कर रहे हैं.

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स्वीडन का ज़िक्र करते हुए ट्रम्प ने कहा कि देश में आम जनजीवन का चलते रहना ज़रूरी है. जिन देशों ने अपने देश को पूरी तरह लॉक डाउन किया है उनके सामने दूसरी तरह की समस्याएं खड़ी हो गई हैं.
उधर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि बीते एक सप्ताह में जिस तरह पूरी दुनिया में कोरोना के कारण होने वाली मौतों की संख्या में बड़ा उछाल आया है और ये लगभग दोगुना हो गई हैं, उससे इस बीमारी के जल्दी ख़तम होने के आसार कम ही हैं.जल्दी ही इस वायरस संक्रमण के मामले 1 मिलियन (10 लाख) हो जाएंगे और मौतों का आंकड़ा 50,000 तक पहुंच जाएगा. विकासशील देश इस महामारी से कारगर रूप से निपट सकें और इसके बाद अपनी अर्थव्यवस्था को भी बचा सकें इसके लिए उनके कर्ज को माफ़ किया जाना ज़रूरी है.

#lockdown: पुदीना कांजी बड़ा : चटपट खाया झटपट पचाया

गर्मी के दिनों में बहुत उपयोगी होता है.यह खाने को चटपटे ढंग से झटपट पचा देता है. पुदीना और लाल तीखी मिर्च का स्वाद इसको और मजेदार बना देता है.लखनऊ में के रॉयल कैफे के शेफ़ और चाट किंग के नाम से मशहूर हरदयाल मौर्य कहते है यह गर्मियों में स्वाद और सेहत दोनो के लिए उपयोगी होता है”.

कांजी बनाने के लिए सामग्री में पानी – 2 लीटर (10 गिलास)
हींग – 2 -3 पिंच, हल्दी पाउडर- 1 छोटी चम्मच, लाल मिर्च, पाउडर – 1/4-1/2 छोटी चम्मच
पीली सरसों – 2 छोटी चम्मच
सादा नमक – 1 छोटी चम्मच
काला नमक – 1 छोटी चम्मच
सरसों का तेल – 1-2 टेबिल स्पून
बड़े बनाने के लिए सामग्री में
मूंग की दाल – 100 ग्राम,
नमक – (1/4 छोटी चम्मच)
तेल तलने के लिये

कांजी बनाने के लिए –
पानी को किसी बर्तन में डालकर उबाल आने तक गरम कीजिए.अब पानी को ठंडा कीजिए और कांच या प्लास्टिक के किसी कन्टेनर में डाल लिजिए. अब इस पानी में हींग, हल्दी पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, पीली सरसों, सरसों का तेल और दोनों प्रकार के नमक डाल कर अच्छे से मिला लिजिए.

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अब कंटेनर का ढक्कन बंद करके इसे 3 दिन के लिए रख दीजिए. ध्यान रहे, इस मिश्रण को रोजाना एक बार चम्मच से अच्छे से जरूर मिलाना है.तीसरे दिन कांजी का स्वाद टेस्ट कीजिए. कांजी हल्की-हल्की खट्टी हो जाएगी. आप चाहें तो इसे भी पी सकते हैं। चौथे दिन इसका स्वाद और खट्टा और टेस्टी हो जाएगा.अब कांजी तैयार है.

बड़े बनाने के लिए :
दाल को साफ करके अच्छे से धो लें और दो घंटे के लिए भिगोकर रख दें.दो घंटे को बाद दाल को पानी से निकाल कर हल्की दरदरी पीस लें. अब पिसी हुई दाल को बर्तन में निकाल कर अच्छी तरह स्पंजी होने तक फैट लें. अब कढ़ाई में तेल गरम कीजिए. हाथ से छोटी-छोटी बड़ियां बनाइए और तल लिजिए.

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फूल कर गोल हो जाने पर इन्हें पलट-पलट कर हल्का भूरा होने तक तलें. इस तरह सारी बड़ियां तल लें और एक प्लेट में निकाल लें.अब बड़ियों को गुनगुने पानी में 15 मिनट के लिए भिगो कर रख दें और फिर निकाल कर हाथ से हल्का-सा दबा अतिरिक्त पानी निकाल कर रख लें. अब कांजी को गिलास में डालिए . कांजी के साथ बूंदी और पुदीना भी मिला ले.

#coronavirus: कोरोना से भी घातक है प्रलय की ‘कट पेस्ट’ भविष्यवाणियों का कहर

पूरी दुनिया कोरोना वायरस के कहर से कराह रही है.अमरीका जैसा शक्तिशाली देश भी इसके आगे लाचार नजर आ रहा है. भारत में तमाम कोशिशों के बाद भी यह संक्रमण दूसरे स्‍टेज में पहुंच गया है.इसके बाद अब हर कोई यही दुआ कर रहा है कि किसी भी तरह यह तीसरे स्‍टेज में न पहुंचे. इसके लिए डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ से लेकर रोजमर्रा की जिंदगी को गति देने वाला हर शख्स मुस्तैद है.लेकिन कुछ अंधविश्वासी इस दहशत के वक्त अपनी भविष्यवाणियों के डरावने धंधे को चमकाने में लगे हैं.ये लोग लगातार दावा कर रहे हैं कि आगामी 29 अप्रैल को दुनिया नष्ट हो जायेगी.करोना के मौजूदा कहर को ये अपनी भविष्यवाणी के हथियार की तरह पेश कर रहे हैं.

हालांकि इस तरह की अफवाहों का कारोबार करने वाले हमेशा ही दुनिया में रहे हैं,लेकिन इतिहास के मुकाबले आजकल ये अफवाह वीर कहीं ज्यादा ताकतवर इसलिए हो गए हैं क्योंकि सूचना तकनीक के इस युग में ये बड़ी होशियारी से उन्हीं सूचना सन्दर्भों का तोड़-मरोड़कर इस्तेमाल कर रहे हैं,जिन सन्दर्भों से पहले इनको गलत ठहराया जाता रहा है.कहने का मतलब यह है कि आजकल ये बड़ी चालाकी से अपने तकनीकी कौशल का इस्तेमाल करते हुए सही सूचनाओं को घातक तरीके से ट्वीस्ट कर उसे अंधविश्वास के परमाणु बम में बदल देते हैं.

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इन दिनों ये बड़े जोरशोर से एक सवालिया माहौल बना रहे हैं कि आगामी 29 अप्रैल को दुनिया खत्म तो नहीं हो जायेगी ? हालांकि होशियारी से सूचनाओं को तोड़-मरोड़कर ये पूरी कोशिश तो आम लोगों के दिलो-दिमाग में यह डर बिठाने की कर रहे हैं कि 29 अप्रैल को दुनिया खत्म हो जायेगी,लेकिन अपने दावे से बच निकलने का एक सुरक्षित रास्ता बनाये रखने के लिए ये अपनी बात को एक सवाल की शक्ल में पेश कर रहे हैं,ताकि 29 अप्रैल को यह कह सकें,‘शुक्र है आशंकाएं निर्मूल साबित हुईं.’ जबकि अगर ये ईमानदारी से चीजों को देखें तो बिलकुल साफ़ है कि ऐसी कोई बात ही नहीं है,जिससे हम इस तरह की आशंका बनाएं कि 29 अप्रैल 2020 को दुनिया खत्म हो जायेगी.

दुनिया को डराने की भूमिका बनाने वाले ये भविष्यवक्ता कह रहे हैं कि एक एस्टेरोइड [क्षुद्रग्रह] जो कि “हिमालय” के जितना बड़ा है, आगामी 29 अप्रैल 2020 को पृथ्वी से टकराएगा और महाविनाश होगा यानी  दुनिया खत्म हो जाएगी.’ अब इस पूरे संदर्भ में इनकी होशियारी देखिये कि कैसे ये एक सच को दहशत के सवालिया खोल में प्रस्तुत कर रहे हैं.ये बात सच है कि 29 अप्रैल, 2020 एक एस्टेरोइड  धरती के निकट से गुजरेगा. … लेकिन ये दहशत बनाने वाले भविष्यवक्ता यह बताने की जरूरत नहीं समझ रहे कि इस निकट से गुजरेगा का मतलब कितने निकट से है.जबकि जिस नासा का नाम लेकर ये अपनी डरावनी भविष्यवाणी में दहशत का तड़का लगा रहे हैं,उसी नासा ने यह बिलकुल  साफ़ साफ़ बताया है कि 29 अप्रैल, 2020 को जो एस्टेरोइड

अजीब दास्तान: भाग 3

‘‘जिस दिन मैं ने सेल्वी को बताया कि मैं ने सारी प्रौपर्टी तुम्हारे नाम कर दी है उसी दिन से उस ने झगड़ा करना शुरू कर दिया था. वह उस फ्लैट को, जिस में हम रह रहे थे, अपने नाम करवाना चाहती थी पर जिस दिन उसे यह पता चला कि उस फ्लैट में भी मैं ने तुम्हारा नाम साथ में रखा है, उस दिन तो उस का असली रूप सामने आ गया. अब वह मेरे साथ नहीं रहना चाहती. इस बीच, राजन ने भी तलाक के पेपर भेज दिए थे. उसे दोनों तरफ से ही अपनी नैया डूबती नजर आई, इसलिएवह फिर राजन के पास लौट गई थी. आखिर, वह उस का मामा भी था.’’

इतना कह कर वासन खामोश हो गया था. उस के चेहरे पर गंभीरता आ गई थी पर पर्सनैलिटी में अभी भी स्मार्टनैस बाकी थी. उस का पहनावा, बोलना, चलना बहुत प्रभावशाली था. इन्हीं सब को देख कर तो लीना ने उस से विवाह किया था.

विवाह के बाद ही लीना जान पाई थी कि सब बाहर का दिखावा है. वह एक नंबर का शराबी और चेनस्मोकर था. लीना को शराब और सिगरेट की गंध से भी नफरत थी. उसे शादी के बाद अपनी पहली रात याद आई जब भोर होने पर शराब और सिगरेट की गंध से भभकता हुआ वासन कमरे में आया था. उस के चेहरे के भावों को देख कर बोला था, ‘मेरे पास से बदबू आ रही हो तो बाहर जा कर सो जाओ. यह मेरा कमरा है.’ इतना कहतेकहते वह बिस्तर पर गिर कर सो चुका था. लीना की सारी भावनाएं तहसनहस हो चुकी थीं. उस के बाद तो यह रोजमर्रा की बात हो गई थी. उस ने अपने घर जा कर अपने मांबाबा को यह सब कभी नहीं बताया. वह अपने बूढ़े मांबाबा को दुखी नहीं करना चाहती थी. उस ने यह बात बाहर भी किसी को नहीं बताई. उस में आत्मसम्मान की भावना बहुत अधिक थी. वह औरों की सहानुभूति का पात्र नहीं बनना चाहती थी. उसे अपनी समस्या से खुद ही लड़ना था.

2 माह ऐसे ही बीत गए. वासन ने उसे कभी पत्नी की नजर से नहीं देखा. स्त्रीत्व का इतना घोर अपमान. लीना सहन नहीं कर पाई थी. उस ने ही पत्नीधर्म निभाने की पहल की थी. लीना को अब जीने के लिए कोई तो आधार चाहिए था. वासन जाने किस मिट्टी का बना था. उस ने लीना की इस पहल को भी बिना किसी भावना के स्वीकार कर लिया था. जिस दिन लीना को पता लगा कि वह गर्भवती है उस ने वासन को नकार दिया था. वासन को तो कभी लीना की चिंता थी ही नहीं. उस ने तो अपनी मां को खुश करने के लिए विवाह किया था. उस की मां लीना को गर्भवती जान कर खुश हो गई और उस की देखभाल में जुट गई. समय पर मंगला पैदा हुई.

समय बीतता गया, फिर इसी प्रकार शुभम भी पैदा हुआ. अब दोनों बच्चों की देखभल में लीना ऐसी रमी कि वह वासन की ओर से बिलकुल लापरवा हो गई. वासन के औफिस में जब भी कोई पार्टी होती, वह लीना को ले कर जाता. लीना हमेशा सजधज कर जाती. उस के औफिस में सब लीना से बहुत प्रभावित होते थे. तब वासन को भी बहुत गर्व होता और वह बोलता, ‘आई लव माई फैमिली, आई एम अ फैमिलीमैन.’राजन का घर में आनाजाना भी शुरू हो गया था. दोनों बचपन के दोस्त थे. शादी के बाद सेल्वी का भी आनाजाना शुरू हो गया था. सेल्वी की शादी की दास्तान तो और भी दुखभरी थी. वे लोग बेंगलुरु में रहते थे. औफिस की ओर से वासन हफ्ते में 2 बार बेंगलुरु जाता था. इन सब के बीच कब सेल्वी और वासन के बीच नजदीकियां बढ़ गईं, लीना नहीं जान पाई.

एक फैमिलीमैन ने अपनी फैमिली को छोड़ कर सेल्वी के साथ रहना शुरू कर दिया. दोनों एक फ्लैट में एकसाथ रहते थे. सेल्वी पीने में भी वासन का साथ देती थी. दोनों की खूब जमती थी. सेल्वी की किसी बात ने वासन को सचेत कर दिया था. वासन ने जब सेल्वी को बताया कि उस ने अपना सबकुछ लीना के नाम कर दिया है तो उस के रंग बदलने लगे. और वासन के प्रौपर्टी देने के काम ने स्वयं को उस की नजरों में नीचे नहीं गिरने दिया था, उस ने कभी भी बच्चों को उस के विरुद्ध नहीं किया था. एक दिन फिर से वासन आया. उस की आवाज सुन कर लीना अतीत से वर्तमान में लौट आई. उस ने मंगला का फोन नंबर और पता मांगा. वह आस्ट्रेलिया जाने वाला था. लीना ने उस से कहा, ‘‘मंगला के यहां ध्यान से जाना. वहां दामाद का मामला है. दामाद के मातापिता भी उसी शहर में अलग रहते हैं. वह पूरा परिवार ही डाक्टरों का परिवार है.’’

‘‘तुम चिंता मत करो. मैं जानता हूं कि मुझे किस प्रकार बात करनी है.’’

आस्ट्रेलिया जा कर वासन मंगला के घर गया. दामाद दामोदर और नाती श्रेय से मिला. उन दोनों के ऊपर भी वासन का जादू चल गया. दामाद को तो उस ने अपने ज्ञान से आकर्षित कर लिया था. वासन को आर्थिक मामलों की बहुत जानकारी थी. दामोदर के पास पैसा था पर उसे निवेश करने का ज्ञान नहीं था. ससुर का अनुभव उस को रास आ गया था. नाती को तो उस ने उपहारों से लाद दिया था. उस के साथ बाहर लौन में क्रिकेट भी खेला. घर में अकेला रहने वाला बच्चा अपने साथखेलने वाले नाना को पा कर बोल उठा था, ‘ग्रैंड पा, आप हमारे साथ ही रह जाओ.’

मंगला पिता के पास नहीं आई. उस ने मां को दुख उठाते देखा था. वह इतनी आसानी से सबकुछ नहीं भूल सकती थी.

आस्ट्रेलिया से लौट कर वासन फिर लीना के पास आया. उस ने फिर से लीना को धन्यवाद दिया और बोला, ‘‘तुम बहुत अच्छी मां हो, तुम ने मंगला को बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं. बहुतबहुत धन्यवाद.’’

‘‘इस की जरूरत नहीं है. मैं ने अपना कर्तव्य निभाया है. मेरे बच्चे ही मेरा सबकुछ हैं.’’

कुछ देर तक बातचीत करने के बाद वासन वहां से चला गया.

लीना ने फोन पर मंगला को भी वही सलाह दी जो उस ने बेटे शुभम को दी. वे दोनों अपनी समझ के अनुसार अपने पिता के साथ रिश्ता रखने के लिए आजाद थे.

इधर, कुछ दिनों से लीना के मन में यूरोप घूमने की इच्छा बलवती हो उठी थी. बच्चों के पास समय नहीं था और अकेले वह जाना नहीं चाहती थी. दोनों बच्चों ने योजना बनाई और मांपिता के लिए 2 टिकटें भेज दीं. दोनों ने फोन पर मां को बोला, ‘इस से अच्छा मौका और इस से अच्छा गाइड आप को दोबारा नहीं मिलेगा.’

इस बार लीना स्वार्थी बन गई और अपनी इच्छा को पूरी करने के लिए उस ने वासन के साथ जाने की बात स्वीकार कर ली. जब यह बात वासन को पता चली तो उस ने मना नहीं किया. कुछ ही दिन पश्चात दोनों यूरोप ट्रिप के लिए निकल पड़े. वासन ने तो बहुत बार वहां का चक्कर लगाया हुआ था, इसलिए वह बहुत अच्छा गाइड बना. सब होटलों के रजिस्टरों में वेमिस्टर और मिसेज वासन के नाम से ही जाने गए. बस, लीना ही जानती थी कि वे दोनों केवल जानकार थे इस से अधिक और कुछ नहीं. उस के मन के जख्म इतने गहरे थे कि वे अभी भी रिसते थे.

यूरोप घूम कर जब वे दोनों वापस आए तो अड़ोसपड़ोस व रिश्तेदारों के मन में यह उत्सुकता थी कि क्या वे फिर से साथ रहने लगेंगे? पर ऐसा नहीं हुआ. लीना ने अपनी बहन के साथ ही रहना जारी रखा. हां, अब वासन फोन पर अकसर बात करने लगा.

आज लीना का जन्मदिन था. वासन ने फोन किया और बोला, ‘‘हैपी बर्थडे माई फेयर लेडी.’’

लीना ने थैंक्यू कह कर फोन रख दिया. फिर से उसे अतीत की बातें याद आने लगीं, शादी के बाद उस का पहला जन्मदिन आया. मां ने सुबह ही वासन से बोला, ‘आज बहू को बाहर ले जाना.’लीना शाम से ही सजधज कर तैयार बैठी थी. वह बाहर किसी होटल में जा कर भोजन करना चाहती थी. शाम रात में ढल गई और रात भोर में पर वासन नहीं आया. जब आया तो एक बार भी लीना की ओर नहीं देखा और न ही कोई बात की. उस  की बेरुखी देख कर वह अंदर तक जल गई थी.

बड़ी बहन ने जब आवाज लगाई तो वह वर्तमान में लौट आई. बड़ी बहन से उस का अकेलापन देखा नहीं जा रहा था. वह अकसर उसे सलाह देती, ‘‘अब तो सारी उमर बीत गई, वह भी बूढ़ा हो गया है. उसे माफ कर दे, उसे अपने पास बुला ले या फिर तू ही उस के पास चली जा.’’ ‘‘नहीं, मैं दोनों ही बातें नहीं कर सकती. उस ने अपने कर्मों से ही अपना जीवन बिगाड़ा है. उसे अपने कर्मों की सजा तो मिलनी ही चाहिए.’’

दोनों के जन्मदिन में केवल 10 दिन का अंतर था. दोनों ही जीवन के 75 साल पूरे कर चुके थे. वासन आज भी सब के सामने यही बोलता, ‘आई एम अ फैमिलीमैन. आई लव माई फैमिली’, पर लीना की नजर में यह स्लोगन मात्र था. वासन बस, रटारटाया नारा दोहरा देता था पर वह ही जानता था कि उस ने जो भी किया हो, किसी भी राह पर भटका हो, उस का परिवार उस के दिमाग में रहा. जबजब बच्चों ने पढ़ाई में अच्छा किया उस की छाती गर्व से फूली. जबजब समाज में लीना की तारीफ हुई वह खुशी से झूम उठा. आज भी उस का परिवार ही उस के लिए सबकुछ है. दोनों की दास्तान भी अजीब दास्तान बन गई. वे दोनों रेल की पटरियों की तरह समानांतर चलते रहे पर कभी मिल नहीं पाए.

#coronavirus: ये चार दीवारें

कोरोना वायरस ने सभी की जिंदगियों को कितना बदल दिया है. अभी तीन दिन पहले ही तो बर्षा और अभिलाषा कालेज के कैम्पस में मदमस्त घूम रहीं थीं और आज अपने रूम में बंद मुंह बनाएं अपनेअपने फोन में लगी हुईं हैं. दोनों दिल्ली विश्वविद्यालय के नामी कालेज में पढ़ती हैं. अभिलाषा लाइफ साइंसेस के छ्ठे सेमेस्टर में है तो बर्षा बीबीए के चौथे सेमेस्टर में. दोनों के इंटर्वल्स चल रहे थे और जल्द ही एनुएल एग्जाम भी होने वाले थे कि कोरोना वायरस के चलते पहले कालेज 31 मार्च तक बंद हुआ और फिर देश भर में लौकडाउन की घोषणा हो गई. लौकडाउन के चलते वे दोनों अपने पीजी में बंद हैं. अभिलाषा इस पीजी में पहले से रह रही थी और सेमेस्टर की शुरुआत में ही बर्षा इस में शिफ्ट हुई थी. बर्षा और अभिलाषा एकसाथ रहती तो थीं पर दोस्त नहीं थीं होती भी कैसे दोस्ती करने का समय था किस के पास.

बर्षा मदमस्त लड़की थी लेकिन कालेज में कोई खास दोस्त नहीं था उस का. नासिक की रहने वाली बर्षा 3 साल से पार्थ के साथ रिलेशनशिप में थी. पार्थ नासिक में ही था और बर्षा यहां दिल्ली में. बर्षा के लिए दोस्ती का मतलब था पार्थ, प्यार का मतलब था पार्थ और परिवार का मतलब भी था तो सिर्फ पार्थ. बर्षा का परिवार रसूखदार था. नौकरीपरस्त मातापिता उस की जरूरतों को तो समझते थे पर उस के मन को कभी नहीं समझ पाए. छोटी बहन से उसे प्यार तो बहुत था लेकिन उम्र में 4 साल छोटी बहन उसे समझती भी तो कैसे. सो, वह बड़ी भी कुछ इसी तरह हुई कि अपने मन की बातें अपने मन में ही रखती थी.

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वहीं, अभिलाषा सोनीपत की रहने वाली थी. बचपन से हमेशा परिवार की लाड़ली. दोनों भाई उस से बेहद प्यार करते थे और मम्मीपापा की तो जान थी वह. यहां कालेज में भी उस के कई दोस्त थे. हमेशा दोस्तों से घिरी अभिलाषा के लिए शांत पर हमेशा चिड़चिड़ी बर्षा को झेलना मुश्किल हो जाता था. उस ने बर्षा के इस रूम में शिफ्ट होने पर उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, वह उस से कालेज के बाद हैंगआउट करने के लिए भी पूछती थी लेकिन बर्षा कभी पार्थ के साथ फोन पर बात कर रही होती तो कभी चैटिंग. एक बार जब अभिलाषा ने बर्षा से उस की क्लासमेट से नोट्स लाने के लिए कहा था तो बर्षा ने यह कह कर टाल दिया था कि पार्थ दिल्ली आ रहा है और वह उस से मिलने स्टेशन जा रही है. अभिलाषा ने उसे कहा भी कि नोट्स लेने में उसे 5 मिनट से ज्यादा वक्त नहीं लगेगा लेकिन बर्षा नहीं मानी और कालेज से बिना नोट्स लिए ही निकल गई.

उस दिन से ही ऐसी कितनी ही छोटी बड़ी चीजें थीं जिन पर दोनों झगड़ती रहतीं. कभी अभिलाषा के दोस्तों की पीजी पार्टियों से बर्षा परेशान हो जाती तो कभी बर्षा के गंदे पड़े कपड़ों को अपनी कुर्सी पर देख अभिलाषा बिफर पड़ती. एक बार अभिलाषा को जब बहुत भूख लगी थी तो उस ने लंच में आए बर्षा के टिफिन से आलू का परांठा खा लिया था. बर्षा जब कालेज से लंच के लिए लौटी तो खाली टिफिन देख कर उस का मूड खराब हो गया.
‘तुम ने मेरा लंच खाया है?’ बर्षा ने गुस्से से अभिलाषा से पूछा.

‘हां, मुझे भूख लगी थी. तू मुझ से पैसे ले कर कैंटीन से कुछ खा ले,’ अभिलाषा बोली.

‘यार, क्या बदतमीजी है ये. एक कौल कर देती तो मैं कुछ खा लेती वहीं पर. 25 मिनट तक चलते हुए तो नहीं आना पड़ता न मुझे वो भी इस खाली डब्बे के लिए,’ बर्षा चिल्लाने लगी.
अभिलाषा की आवाज भी अब तेज हो गई. ‘मुझ पर चिल्लाने की जरूरत नहीं है. भूख लगी थी खा लिया और कौल करना भूल गई, सौरी. पर मुझ पर आज के बाद चिल्लाने की कोशिश भी मत करियो. छोटी है, छोटी बन कर रह.’‘स्टौप टौकिंग, मेरा अभी तुम्हारी शक्ल देखने का भी मन नहीं है.’

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‘मैं तो मरी जा रही हूं जैसे तेरी शक्ल देखने के लिए. जा यहां से,’ अभिलाषा अपनी चप्पल पहन बालकनी में जा कर खड़ी हो गई थी.
बर्षा और अभिलाषा हर दिन किसी न किसी बात पर लड़ती थीं. उन दोनों के लिए खुशी की बात यही थी कि वे जबजब लड़तीं तो दोनों में से कोई एक कमरे से बाहर निकल जाया करती थी. बर्षा को अपने कमरे में ही रहना पसंद होता था तो ज्यादातर अभिलाषा ही अपनी किसी दोस्त के पीजी चली जाती थी और कभीकभी वहीं नाइट स्टे करती.

अभिलाषा और बर्षा का पीजी कालेज से 25 मिनट की दूरी पर था. उन के पीजी के पास उन के किसी क्लासमेट या फ्रेंड का पीजी नहीं था. उन के पीजी वाली गली संकरी थी लेकिन आसपास के घरों की ऊंचाई ज्यादा नहीं थी. रात में जब बालकनी में बर्षा खड़ी होती तो उसे खुला आसमान नजर आता था. तारे टिमटिमाते तो उन्हें देख वह खुश हो जाया करती थी, अपने फोन से एक पिक्चर क्लिक करती और पार्थ को भेजा करती. कितनी खुशी मिलती थी उसे पार्थ को अपने हर पल से जोड़ते हुए. जबजब उस से लड़ाई करती तो इतनी उदास हो जाया करती कि अभिलाषा से लड़ना भी उसे व्यर्थ लगता.

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अभिलाषा को बर्षा की जिंदगी से कोई मतलब नहीं था, वह उसे उदास देख कर एक पल को कुछ पूछने के बारे में सोचती भी तो दूसरे ही पल उसे बर्षा से अपनी लड़ाइयां याद आ जातीं और वह चुप अपनी किताबों में घुस जाती. लड़ाइयों से अभिलाषा को सब से ज्यादा वह दिन याद आता जब बर्षा ने किचन में आ उस की मैगी के पैन में पानी डाल दिया था और अभिलाषा का खून खोल गया था. हुआ यह था कि अभिलाषा किचन में मैगी बना रही थी और रूम में रखा उस का फोन बज उठा. अपना फोन उठाने की जल्दी में अभिलाशा किचन से मैगी हिलाने वाला चमचा हाथ में पकड़ तेजी से निकली और गलती से कुर्सी पर सूख रहे बर्षा के कपड़ों पर उस ने चमचा लगा दिया. बर्षा नहा कर बाहर आई तो उस ने देखा उस के टौप पर पीला निशान पड़ा हुआ है. उसे लगा कि अभिलाषा ने यह जानबूझ कर किया क्योंकि उसे पता था आज बर्षा को क्लास में प्रेसेंटेशन देनी है.

बर्षा गुस्से से लाल होती हुई किचन की तरफ बड़ी और बोतल खोल कर जितना पानी उस में था उस ने अभिलाषा की मैगी में उड़ेल दिया. अभिलाषा को भूख बिलकुल बर्दाश्त नहीं थी. सो, बर्षा से लड़ाई और चिल्लमचिल्ली के बाद भी उसे पानी वाली बेस्वाद मैगी खानी पड़ी थी. यह वाक्य उसे जब भी याद आता वह गुस्से से भर जाती थी और उस का मन होता कि बर्षा को खींच कर तमाचा मार दे. वैसे, एक बार जब बर्षा सोतेसोते पलंग के बिलकुल किनारे सरक आई थी तो उसे सरकाने या गिरने से बचाने के बजाय अभिलाषा फोन का विडियो रिकौर्डर खोल कर बैठ गई थी और उस ने बर्षा के गिरने की विडियो बनाई भी थी और अपने दोस्तों में खूब वायरल भी की थी.

अब जब से लौकडाउन हुआ है तब से दोनों इस बात से कम कि बाहर नहीं जा सकते, इस बात से ज्यादा परेशान हैं कि अगले 21 दिन उन्हें एक साथ, एक ही कमरे में काटने हैं. दोनों का लंच और डिनर का खाना भी आना बंद हो गया था, कुछ और्डर वे कर नहीं सकती थीं तो एक ही उपाय था कि दोनों खाना बना कर खाएं. खाना बनाने, बर्तन धोने, झाड़ू पोछा करने आदि को ले कर दोनों सुबह शाम लड़ती रहती थीं. अभिलाषा अपनी मम्मी से फोन पर हर दिन बात कर उन्हें हर पल की खबर देती. दूसरी तरफ बर्षा की पार्थ से लड़ाई होती रहती. अभिलाषा ने बर्षा को अभी कल ही फोन पर चिल्लाते सुना था, ‘नहीं करनी मुझे तुम से बात अब, जाओ उस मालविका से ही बातें करो मुझ से करने की जरूरत नहीं है.’
अब कोरोना वायरस के चलते वे दोनों कहीं आ जा नहीं सकतीं, दोनों ही परेशान हैं. दोनों के अकाउंट में पैसे हैं तो दोनों को कुछ खास चिंता नहीं लेकिन घुटन तो उन्हें भी महसूस हो रही है इस चार दीवारी में. आज सुबह से ही बर्षा का मूड कुछ ठीक नहीं यह अभिलाषा को महसूस तो हुआ लेकिन वह उस से कुछ पूछनाजानना नहीं चाहती.

अभिलाषा ‘लव इन द टाइम औफ कोलेरा’ किताब पढ़ रही थी जब उसे बर्षा के रोने की आवाज आई. बर्षा अपने बेड पर थी जो अभिलाषा के बेड से चार कदम दूर ही था. बर्षा का चेहरा चादर से ढका हुआ था तो अभिलाषा को बस उस की आवाज सुनाई दे रही थी. वह बारबार फरमीना और फ्लोरेंटिनो के रोमांस पर फोकस करती और बारबार बर्षा की आवाज उस के ध्यान में बाधा डालती.

“सुन,” अभिलाषा ने कहा.

बर्षा ने अभिलाषा की आवाज सुन कर भी उसे अनसुना कर दिया तो अभिलाषा ने फिर आवाज लगाई, “ओए बर्षा, सुन.”

“हूं,” बर्षा ने जवाब में कहा.
“थोड़ा धीरे रो, मुझे बुक पढ़ने में डिस्टर्बेंस हो रही है,” अभिलाषा कहने लगी.

“तुम कितनी हार्टलेस हो, कितनी बुरी हो. तुम्हें दिख रखा है मैं रो रही हूं पर तुम्हें फर्क नहीं पड़ रहा न. तुम्हारा ब्रेकअप होता तो क्या तब भी तुम यही कहती,” बर्षा सुबकते हुए कहने लगी.
“मेरा ब्रेकअप होता तो मैं ब्रेकअप पार्टी देती. वैसे भी लड़के इस लायक होते भी नहीं कि उन के लिए आंसू बहाए जाएं, कोई समझदार लड़की उन पर आंसू नहीं बहाती. हां, तू समझदार भी तो नहीं है तो तुझ से ऐसी उम्मीद भी नहीं लगा सकते.”
“प्लीज, मुझ से बात करने की कोई जरूरत नहीं है,” बर्षा अब भी सुबक रही थी.

“हां, जैसे मैं तो मरी जा रही हूं,” अभिलाषा ने मुंह बनाते हुए कहा.

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बर्षा अपने बेड से उठी और बाथरूम में जा कर शावर के नीचे बैठ रोने लगी. बर्षा और पार्थ का ब्रेकअप हो गया था. पार्थ से बर्षा बेहद प्यार करती थी लेकिन जब से उसे यह पता चला था कि मालविका के पार्थ को प्रोपोज करने के बाद भी वह उस से दोस्ती बनाए हुए है तो बर्षा का शक पार्थ पर गहराता जा रहा था. इस शक और बर्षा की इन्सेक्योरिटी के चलते ही पार्थ ने बर्षा से ब्रेकअप कर लिया था. बर्षा बाथरूम में बैठ कर दिल खोल कर रो रही थी, उस के आंसू पानी की बौछार के साथ मिलते हुए नाली में बह रहे थे और हर एक आंसू के साथ उसे ऐसा लगता मानो उस के दिल के छोटेछोटे टुकड़े भी बह रहे हैं और उस के सीने से दर्द हलका होता जा रहा है.

अभिलाषा बाहर अपने पलंग पर बैठी बर्षा के रोने की आवाज सुन रही थी. तभी अभिलाषा बाहर से ज़ोर से चिल्लाई, “पानी कम खर्च कर, न्यूज़ नहीं सुनती क्या, पानी की बचत कर. ऐसे ही हमारा देश कोरोना के बाद पानी की किल्लत से ही जूझने वाला है. कम पानी बहा.” बर्षा अपने आंसुओं के साथसाथ अभिलाषा के तानों का घूंट भी पी गई.

शाम के 7 बज रहे थे जब बर्षा अपने बेड पर आंखें बंद किए लेटी थी. बर्षा अपने और पार्थ के हर उस पल के बारे में सोच रही थी जिन में उसे महसूस होता था कि वे दोनों एकदूजे के लिए ही बने हैं और उन के बीच कभी कोई नहीं आ सकता. अचानक अभिलाषा का फोन बजा तो बर्षा की तंद्रा भंग हुई.

“हां पापा, बोलिए क्या हुआ,” अभिलाषा फोन पर बोली. “क्या…..,” अभिलाषा लगभग चीख पड़ी.

अभिलाषा की आवाज सुन कर बर्षा चादर हटा अपने बेड पर बैठ गई. उस की नजरें अभिलाषा के चहरे पर टिक गईं जो धीरेधीरे रूआंसा होने लगा था.
“कहां…कहां हैं मम्मी….मैं…मैं…मैं आ रही हूं….पापा….” कहते हुए अभिलाषा जोरजोर से रोने लगी. अभिलाषा को इतनी बुरी तरह रोते बर्षा ने पहले कभी नहीं देखा था. वह तेजी से अपने बेड से उठी और अभिलाषा को थामने लगी. अभिलाषा बस रोए जा रही थी और फोन से लगातार उस के पापा की आवाज आ रही थी.

“अभिलाषा…अभिलाषा….” फोन से निकलती हुई आवाज अभिलाषा के कानों तक पहुंच तो रही थी लेकिन शब्दों ने जैसे उस की जबान पर आने से मना कर दिया था.

“अभिलाषा क्या हुआ? बताओ तो हुआ क्या है?” बर्षा अभिलाषा से लगातार पूछ रही थी. बर्षा ने अभिलाषा के हाथ से फोन ले लिया.
“हैलो, अंकल…क्या हुआ है,” बर्षा ने अभिलाषा के पापा से पूछा.

“बेटा, व…वो….अभिलाषा की मम्मी काफी जल गईं है बेटा. किचन में पूड़ियां तलते हुए कड़ाई का खौलता हुआ तेल उन के गले से पैर तक छिटक गया. ज्यादा जल गईं हैं होस्पिटल में भर्ती हैं पर अभिलाषा को मत कहना की बहुत ज्यादा जलीं हैं. उस से कहना कि थोड़ा बहुत जली हैं और कुछ दिन में ठीक हो जाएंगी. उस का ध्यान रखना बेटा… वो पागल है, अपनी मम्मी से बहुत प्यार करती है, रोरो कर अपना हाल बुरा कर लेगी, उस का ध्यान रखना. उस की मम्मी ठीक हैं… तुम दोनों अपना ध्यान रखना.”

“ओके…अंकल,” बर्षा ने कहा और फोन काट दिया.

अभिलाषा बिना रुके बस रोए जा रही थी. बर्षा उसे ले कर बेड पर बैठी और उसे चुप कराने लगी. “आंटी अब ठीक हैं अभिलाषा, अंकल ने कहा है वे जल्दी ठीक हो जाएंगी.”

अभिलाषा अब भी कुछ नहीं सुन रही थी बस रोए जा रही थी. बर्षा उठ कर गई और गिलास में पानी ले आई. अभिलाषा ने पानी पिया और दोनों हथेलियां आंखों पर रख रोने लगी. वह बिलकुल बच्चों की तरह रो रही थी.
“आंटी ठीक हो जाएंगी जल्दी,” बर्षा दिलासा देते हुए बोली.

“मुझे मम्मी के पास जाना है,” अभिलाषा सुबकते हुए बोल पड़ी.
“लौकडाउन खत्म होते ही चले जाना. अभी संभालो खुद को.”

अभिलाषा ने अपना फोन उठाया और पापा को कौल लगा दिया.

“पापा, मम्मी को होश आ गया तो बात करा दीजिए, मुझे उन से बात करनी है,” एक मिनट रुक अभिलाषा कहने लगी, “हैलो, हैलो…मम्मी आप ठीक हैं न….आप ठीक हैं न. आप को ज्यादा चोट तो नहीं आई….” मम्मी से बात करते हुए अभिलाषा का रोना शांत हो गया था. बर्षा को यह देख कर राहत मिली. वह उठी और बालकनी में जा कर बैठ गई.

बाहर अंधेरा छा चुका था. कोरोना वायरस से लोग इतने डरे हुए हैं कि अपने घरों से बाहर कोई दिखाई ही नहीं देता अब. अंधेरे में बालकनी के एक कोने में बैठी बर्षा खुले आसमान को ताक रही थी. आज न फोन उस के हाथ में था और न फोन के दूसरी तरफ पार्थ. अभिलाषा की मम्मी के साथ जो कुछ हुआ था उसे सुन कर बर्षा को अपना ग़म बहुत छोटा लगने लगा था. वह घुटनों के दोनों तरफ बाहें बांधे बैठी हुई थी कि तभी अभिलाषा कमरे से निकल कर आई और उस के बगल में आ कर बैठ गई.

“आंटी ठीक हैं?” बर्षा ने पूछा.
“हां,” अभिलाषा ने जवाब दिया. अभिलाषा की आंखें अब भी नम थीं और आंखों की किनारी से ऐसा लग रहा था मानो दो बूंदे बस छलकने ही वाली हैं.

“तुम ठीक हो?” बर्षा अभिलाषा की ओर देखते हुए पूछ पड़ी.
“नहीं.”
“हम्म.”
“और तुम,” अभिलाषा ने आसमान की ओर देखते हुए कहा.
“नहीं,” बर्षा ने कहा और वह भी उसी आसमान में उसी ओर देखने लगी जिस ओर अभिलाषा की नजरें थीं.
“बर्षा….”
“हां?”
“सौरी…एंड…थैंक यू…”
“कोई बात नहीं.”

“अगर तुम न होती तो पता नही यह रात कैसे कटती. यह दीवारें काटने को दौड़ती मुझे और मैं घुटघुट कर मर जाती,” अभिलाषा बोली.

“जबतक मैं हूं तबतक तुम्हें काटने और मारने का हक सिर्फ मुझे है,” बर्षा ने कहा और हलकी सी हंसी हंस दी.

बर्षा की बात सुन अभिलाषा की हंसी भी छूट गई. दोनों अपलक आसमान में चांद को निहार रही थीं. अभिलाषा ने आंखें बंद कर लीं और बर्षा के कांधे पर सिर रख लिया. बर्षा ने अपना सिर अभिलाषा के सिर की तरफ झुका लिया. दोनों की आंखें नम अपनेअपने गम से भरी हुई थीं. बर्षा गुनगुनाने लगी, ‘रात का शौक है….रात की सौंधी सी खामोशी का शौक है….शौक है…

#coronavirus: उपज देर से बेचने पर मिलेगा फायदा

देश में रबी की फसल ज्यादातर इलाकों में पक कर तैयार हो चुकी है. कुछ जगह पकने की तैयारी में है. सरकार की तरफ से भी कृषि क्षेत्रों में लौक डाऊन से छूट दे दी गई है. लेकिन कोरोना से बचाव के सभी सुरक्षित उपायों को भी ध्यान में रख कर काम करने होंगे.
देश भर की मंडियों से रोकथाम हटा दी गई है. कृषि यंत्रों की आवाजाही को छूट दे दी है. लेकिन इस सब के बाद भी खेती के कामों में देरी हो रही है. चाहे मजदूरों की समस्या हो, मौसम का मिजाज या कोरोना का कहर.
इन्हीं सब कारणों के चलते ज्यादातर किसान अपनी उपज को मंडी नहीं पहुंचा पा रहे हैं.

कुछ किसान उपज ले कर मंडी पहुंच भी रहे हैं तो उन्हें सही दाम नहीं मिल रहे क्योंकि अभी मंडी में खरीदार ही नहीं हैं. फसलों की कीमतों का एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल रहा है.

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मंडियों में अभी सरकारी खरीद भी शुरू नहीं हुई है इसी का फायदा वहां के व्यापारी दलाल उठाना चाहते हैं. लेकिन सरकारी घोषणा से ऐसे लोगों को धक्का लगा है,जो किसानों से ओनेपौने दामों पर खरीद करते हैं.
अब सरकार ने घोषणा की है कि उपज देर से बेचने पर किसान को प्रोत्साहन राशि भी मिलेगी. इसलिए अब किसान अपनी उपज को अपनी सुविधा के अनुसार बेच सकेंगे. जिस के लिए उन्हें अलगअलग राज्य अपने हिसाब से फायदा दे सकेंगे.

देरी से पैदावार बेचने पर ज्यादा रकमः

हरियाणा के किसान जितनी देरी से अपनी उपज मंडी में बेचेंगे उतना ही अधिक प्रोत्साहन राशी उन्हें दी जाएगी. उत्तर प्रदेश में अनाज को सुरक्षित स्टोर करने के लिए एकमुश्त रकम मिलेगी.
राष्ट्रीय पैमाने पर भी ग्रामीण भंडारण योजना चल रही है जिस का फायदा किसान उठा सकते हैं. इसलिए किसानों को अब अपनी उपज बेचने में जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं है. आप अपनी सुविधा के अनुसार फसल बेच सकते हैं.

अब बात करते हैं जमीनी हकीकत की, सरकार ने तो किसानों के लिए एलान कर दिया. लेकिन किसान कितने दिनों तक उपज को स्टोर कर पाएगा. बड़े किसान तो इस का फायदा ले सकते हैं, लेकिन छोटी जोत वाला किसान, मध्यम दर्जे वाला किसान कब तक अपनी उपज को स्टोर कर के रखेगा. उस ने तो सेठसाहूकारों से जो कर्जा ले रखा है , वह भी देना है. खेत पानी, खादबीज का भी तकादा निपटाना है .सभी कर्जदार उस की फसल बिकने का इंतजार थोड़े ही करेंगे वह तो अपना कर्ज मांगेगे ही.
इस के अलावा किसान के घर परिवार के खर्चे शादीब्याह आदि भी फसल के इंतजार में रूके होते हैं.जो फसल आने के समय ही चुकाने होते हैं.

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किसान इन्हीं सब बातों को ले कर औनेपौने दामों पर ही फसल बेचने को मजबूर हो जाता है और सेठसाहूकारों और व्यापारियों के हाथ की कठपुतली बना रहता है.अगर सरकार को किसान के हालात सुधारने हैं तो सब से पहले उसे अपने सिस्टम को सुधारना होगा. किसान और सरकार के बीच के दलालों पर लगाम कसनी होगी. साथ ही सरकार द्वारा समयसमय पर चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी किसानों तक पहुंचानी होगी.किसान को भी जागरूक होना होगा. अन्यथा बिचैलिए ही किसानों को बहलाफुसला कर अपना उल्लू सीधा करते रहेंगे.

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