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अजीब दास्तान: भाग 2

मां की आवाज की दृढ़ता को सुन कर दोनों बच्चे चुप हो गए थे. वे जानते थे कि मां जो भी बोल रही हैं वह ठीक है. अब उन्हें पीछे मुड़ कर नहीं देखना है और मेहनत कर के मां के सपने को पूरा करना है.एक हफ्ते के अंदर ही वासन वापस आया था. उसे दरवाजे पर देख कर लीना ने उसे अंदर आने को नहीं कहा. वह ही बोला, ‘‘बस, 1 मिनट के लिए तुम से बात करनी है, मैं नहीं चाहता कि तुम्हें किसी प्रकार की कोई तकलीफ हो या बच्चों की प ढ़ाई में कोई कमी आए,’’ इतना कह कर उस ने अपनी प्रौपर्टी के सारे कागजात लीना को सौंप दिए, उस ने अपनी सारी प्रौपर्टी लीना और बच्चों के नाम कर दी थी.उस के जाने के बाद लीना ने सारे कागज देखे, 1 एकड़ जमीन और 3 फ्लैट वासन ने परिवार के नाम कर दिए थे. उस ने फौरन अपने एक एडवोकेट चाचा को फोन मिलाया और सब बताया. चाचाजी ने सलाह दी कि वासन को फोन कर के कोर्ट में  बुलाओ और विधिवत सारे कागज लो. लीना ने ऐसा ही किया.

दूसरे दिन वासन को कोर्ट में आने को कहा. लीना के कहे अनुसार ठीक समय पर वासन वहां पर हाजिर था. जज के सामने विधिवत सारी प्रौपर्टी लीना और बच्चों की हो गई.

जज ने वासन से पूछा, ‘‘तुम ने अपने लिए कुछ नहीं रखा?’’

वासन बोला, ‘‘मैं बहुत अच्छा कमाता हूं. मैं और प्रौपर्टी बना लूंगा. लीना को तो बच्चों को पढ़ाना है और उन के विवाह भी करने हैं, इसलिए उसे सब चीज की जरूरत है. ‘आई लव माई फैमिली’.’’ वही डायलौग उस ने कोर्ट में भी दोहरा दिया था. उस से यह पूछने वाला कोई नहीं था कि फैमिली को प्यार करते हो तो उन्हें क्यों छोड़ा?

जीवन अपनी रफ्तार से चलने लगा. धीरेधीरे सब रिश्तेदारों और दोस्तों को भी पता लग गया कि वासन अब दूसरी औरत के साथ रहता है पर लीना के साथ तलाक नहीं हुआ है. लोग आ कर लीना को बताने की कोशिश करते कि उन्होंने वासन को एक औरत के साथ देखा पर लीना सभी को चुप करा देती कि उसे वासन के बारे में कुछ भी नहीं सुनना है. उस ने वासन का अध्याय ही अपनी जीवनरूपी पुस्तक से फाड़ कर फेंक दिया था. 7 साल बीत गए. मंगला अब डाक्टर बन चुकी थी और आस्ट्रेलिया में प्रैक्टिस कर रही थी जबकि शुभम इंजीनियर बन अमेरिका में रह रहा था. लीना ने अपना कैटरिंग का काम सफलतापूर्वक चलाया हुआ था. दोनों बच्चों के विवाह में वासन को निमंत्रणकार्ड भेजा गया और वह आया भी. बेटी की शादी में तो उस ने पूरा खर्चा उठाया और कन्यादान भी किया. पर लीना ने पलट कर कभी वासन की खोजखबर नहीं ली. वह आत्मसम्मान से भरी हुई थी.

तब, एक दिन फिर वासन ने दरवाजे की घंटी बजाई. लीना ने दरवाजा खोला तो वासन को खड़े पाया. वह स्वयं ही बोला, ‘‘अंदर आने को नहीं कहोगी?’’

‘‘हां, आ जाओ.’’

अंदर आ कर वासन आराम से सोफे पर बैठ गया था. चारों ओर नजर दौड़ा कर कमरे का मुआयना किया और फिर लीना की ओर देख कर बोला, ‘‘सिर्फ बाल सफेद हुए हैं पर तुम वैसी ही दिखती हो.’’

‘‘काम की बात करो, क्यों आए हो?’’

‘‘मुझे शुभम का फोन नंबर और पता चाहिए. मैं अगले हफ्ते स्पेन जा रहा हूं. वहां से अमेरिका जाऊंगा. उस से मिलने का मन कर रहा है. सुना है उस का बेटा बहुत तेज है.’’

लीना ने फोन नंबर और पता दे दिया. वह उठ कर चला गया. लीना ने तुरंत शुभम को फोन मिलाया और बोली, ‘‘तुम्हारे डैडी आए थे और तुम्हारा फोन नंबर व पता ले गए हैं.’’

‘‘आने दो उन्हें, मैं उन्हें दिखा दूंगा कि उन के बिना भी मैं यहां तक पहुंच सकता हूं. आप चिंता मत करो, मैं उन्हें ठीक से देख लूंगा.’’

वासन फोन कर के शुभम के घर पहुंच गया था, आदतन उपहारों से लदा हुआ. शुभम की पत्नी और उस के बेटे के लिए ढेर सारे उपहार, बहू के लिए हीरे के टौप्स और पोते के लिए महंगे खिलौने. वासन से बातों में कोई भी नहीं जीत सकता था. वह बातें करने में माहिर था. उस ने बहू आभा से बातें कीं और पोते आशु के साथ खूब खेला. जब आभा ने खाना बना कर खिलाया तो उस की तारीफ के पुल बांध दिए. आशु को बहुत प्यार किया. वह 3 दिन उन के घर में रहा और सब के दिलों में अपनी जगह बना कर ही निकला. शुभम भी पिता से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा. उस ने मां को फोन किया, ‘‘डैडी जैसे आज हैं वैसे पहले क्यों नहीं थे?’’

‘‘बेटा, अब तुम बड़े हो गए हो. अच्छेबुरे की पहचान कर सकते हो. तुम जैसा चाहो वैसा संबंध अपने डैडी के साथ रख सकते हो. मैं बीच में नहीं आऊंगी.’’

अमेरिका से लौट कर वासन फिर से लीना के घर गया. वह बोला, ‘‘बहुतबहुत धन्यवाद. मुझे अपनी बहू और पोता बहुत अच्छे लगे. शुभम को भी तुम ने अच्छे संस्कार दिए हैं. वह भी मेरे साथ बहुत अच्छी तरह पेश आया. मैं तो डरतेडरते गया था कि कहीं तुम ने मेरे प्रति उस के मन में जहर न भर दिया हो.’’

‘‘मैं ने कभी भी कोई बात बच्चों के साथ नहीं की, मुझ में इतनी दूरदर्शिता तो थी कि मैं भविष्य के लिए तुम्हारी राह मुश्किल न करूं.’’

‘‘लीना, तुम बहुत अच्छी हो, जब मैं ने जाना चाहा तब भी तुम ने कोई हंगामा खड़ा नहीं किया था.’’

‘‘हंगामा खड़ा कर के मुझे क्या मिलता? केवल जगहंसाई, तुम्हें तो जाना ही था, सब के सामने कमजोर बनना मुझे पसंद नहीं. मुझे अपने बच्चों के लिए मजबूत रहने की जरूरत थी.’’

‘‘सच में तुम बहुत अच्छी हो. अब भी तुम ने नहीं पूछा कि क्या मैं अकेला हूं या कोई और भी साथ में है.’’

‘‘मुझे अब तुम से कोई संबंध नहीं रखना है, तुम किसी के साथ रहो या अकेले, मुझे फर्क नहीं पड़ता है.’’

Lockdown: मुझे अपने शहर अपने घर जाना है…

मैं 10 सालों से घर से बाहर हूं, 21वीं सदी में होश संभालने वाली जनरेशन ने शायद की ऐसा कोई दौर देखा हो. लॉकडाउन, जिससे हम सब गुजर रहे हैं. कभी पढ़ाई तो कभी नौकरी लिए मैं कई राज्यों में गई. मैं सेल्प डिपेंडेट और स्ट्रांग लड़की हूं, छोटी-छोटी बातों से घबराना मेरी आदत नहीं. जिंदगी में कई मुश्किलें आईं, जिनका मैनें मजबूती से सामना किया है. शाम के समय मैं न्यूज देख रही थी जब लॉकडाउन की घोषणा हुई. कुछ देर के लिए समझ नहीं आया कि क्या करना है.

खैर ऑफिस का काम घर से करना था तो रोज कुछ आर्टिकल लिखने शुरू किए, क्योंकि मुझे लिखने से खुशी मिलती है. कुछ दिनों बाद काम करने की इच्छा भी खत्म होने लगी, हालांकि मेरे बॉस काफी सपोर्टिव नेचर के हैं और कंपनी का वर्क कल्चर भी अच्छा है. धीरे-धीरे मन भारी रहने लगा और घर की याद आने लगी. हम हमेशा अपनी फैमिली को अपने बिजी होने का एहसास दिलाते हैं जबकि उनके बिना हम कुछ भी नहीं है.

कई बार ऐसा हुआ कि शाम को 5 या 6 बजे लंच कर रही हूं, घर से फोन आता तो बोल देती हां, खा लिया है. मेरे पापा मुझे रोज शाम को फोन करते हैं शायद ही ऐसा कभी हुआ कि उनका फोन मेरे पास नहीं आता हो, इस बीच इनका दिन में दो से तीन बार फोन आता है. क्या बताउं उनको कि कुछ करने का मन नहीं करता. हां, मुझे सब पता है कि पॉजिटिव सोचें, ये करें, वो करें…अकेले नहीं होता यार.

हम सभी को खुद के लिए टाइम चाहिए, ब्रेक चाहिए लेकिन अकेले कितना टाइम कोई बिताएगा. मैनें गाने भी सुन लिए, किताबें भी पढ़ लीं, डांस भी कर लिया, गार्डेनिंग भी कर लगी, कुंकिंग तो रोज करती ही हूं, दोस्तों को कैचअप कर लिया फिर भी दिमाग शांत नहीं है. शायद मनुष्य प्रजाति कि यही समस्या है कि जब ऑफिस जाना हो तो प्रॉबल्म और अब घर पर रहना है तो प्रॉब्लम. किसी चीज से संतुष्टि नहीं मिलती…

मैं बहुत पॉजिटिव नेचर की हूं लेकिन जो अफने अंदर महसूस कर रही हीं वही अभी लिख रही हूं. शायद कई लोगों को यह निगेटिव लगे, लेकिन अकेले घर में कैद रहकर वर्क फ्रॉम होम इतना भी आसान नहीं है जितना हमें लगता था.

अरे अकेले क्या, अगर हसबेंड-वाइफ दोनों वर्किंग हैं और वर्कफ्रॉम होम पर हैं, तो अक्सर वाइफ सुबह उठकर सीधा किचन में चली जाती है और हसबैंड बेड पर सोए रहते हैं. वो घर का सारा काम निबटाती है, ऑफिस का काम भी करती है और अगर दो मिनट पति के पास जाकर कुछ अपने लिए बोल दे तो उसे सुनने को भी मिल जाता है कि दिख नहीं रहा, मैं ऑफिस का काम कर रहा हूं. जैसे पति के ऑफिस काम महत्वपूर्ण है वाइफ को तो फ्री की सैलरी मिलती हो. हर चीज में बेचारी वाइफ को ही कंप्रमाइज करना पड़ता है. हालांकि कुछ पति शायद अपनी पत्नी का हाथ बटाते हो..,पर कितने?

हालांकि घर में रहना जरूरी है तो मैं भी रोज खुद को सेल्फ मोटिवेट करती हूं. अपने लिए खाना बनाती हूं, काम करती हूं और दोस्तों और फैमिली से टच में रहती हूं…पर शायद कुछ कमी सी लगती है. ऐसा लगता है शायद अपने घर होती …मां के पास, बेटू के साथ खेलती, भाभी के साथ गॉसिप करती, पापा की राजनीतिक- सामाजिक बातें सुनकर हां में हां मिलाती और भाइयों से लड़ती तो यह समय आसानी से कट जाता…

हां मुझे भी घर जाना है. लॉकडाउन ने यह चीज तो सिखा ही दी कि जीने के लिए कुछ नहीं चाहिए, बस आपका परिवार का साथ और घर का खाना मिलता रहे यही काफी है…

# coronavirus: कोरोना ब्रेक बढ़ा देगा आपका वज़न

सुबह-सुबह गोभी और आलू के पराठे, मक्खन मार के, दही और अचार के साथ टेबल पर आये तो सबके मुँह पानी से भर गए. छक्क कर खाया, लम्बी डकार मारी और फिर लस्सी का बड़ा सा गिलास भी गटक गए. नाश्ता करके थोड़ी देर टीवी देखा और फिर लगे खर्राटे बजाने. दोपहर में किचेन से शालू की आवाज़ आई कि लंच तैयार है.सब फ़टाफ़ट उठ कर टेबल पर जम गए.आज लंच में अम्मा और शालू ने मिल कर बिरयानी और कोरमा बनाया था.

‘वाह ! क्या खुशबु ! रायता बना है ना ? और सलाद ?’ अभिषेक ने शालू से पूछा.
‘हाँ, हाँ सब बना है. लाओ प्लेट आगे करो. शालू ने  चहक कर पति को जवाब दिया.जब से कोरोना फैला है सबके मज़े हो गए हैं. बाबूजी, अभिषेक, शालू को कभी ऑफिस से ऐसी लम्बी छुट्टी नहीं मिली जिसमे तनखा भी नहीं कट रही हो और पति, बच्चे, सास, ससुर सब साथ में रहे हों.शालू की शादी को पंद्रह साल हो गए, सरकारी कर्मचारी है. सुबह साढ़े आठ बजे जैसे तैसे बच्चों और पति को स्कूल व ऑफिस भेज कर खुद ऑफिस के लिये भागती है और शाम को लौटते लौटते साढ़े सात बज जाते हैं. किसी से हाल चाल पूछने या बात करने की फुर्सत नहीं होती.लौटते ही बच्चों को होम वर्क करवाने के लिए बैठती और उसके बाद किचन में घुस जाती थी.

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उसको याद नहीं पड़ता कि कभी ऐसा वक़्त आया जब पूरा परिवार एक साथ घर पर इस तरह फुर्सत से रहा हो.जबसे लॉक डाउन हुआ है तब से वो और अभिषेक तो कोरोना कैरल्स ही गा रहे हैं. अम्मा और बाबूजी भी खुश हैं कि बेटा-बहु और पोते-पोती सब घर में उछल-कूद मचाये हैं.कभी आँगन में बैडमिंटन चल रहा है तो कभी सारे कैरमबोर्ड को घेरे बैठे हैं.बाबूजी जिन्होंने कभी कैरम की गोटियों को हाथ नहीं लगाया वो भी लगे हैं अपने हाथ आज़माने.बीच-बीच में शालू कभी पकोड़े तल कर ले आती हैं, कभी मैगी बना कर रख जाती हैं तो कभी बिस्कुट और कुरकुरे.

सुबह से रात तक सबके मुँह चल ही रहे हैं.अभी तो लॉक डाउन हुए हफ्ता ही बीता है.दो हफ्ते और बाकी हैं.छुट्टी का भरपूर लुत्फ़ उठाया जा रहा है.मज़े की बात तो यह है कि इस दौरान मेहमान भी नहीं आएंगे.लिहाज़ा पूरा वक़्त सिर्फ और सिर्फ परिवार के लिए है.बस खाओ पियो, इनडोर गेम्स खेलो, बातें करो और आराम करो. बहुत सालों के बाद शालू को भी अपनी पाक-कला दिखाने का अवसर मिला है. कोरोना के कारण लॉक डाउन तो हुआ है मगर ज़रूरत का सारा सामान उपलब्ध है.उस पर कोई रोक टोक नहीं है.सब्ज़ी-भाजी के ठेले आ रहे हैं.दूध-दही की दुकान खुली है.इसलिए हाथ रोक कर चलने की ज़रूरत ही नहीं पड़ रही है.

शालू ने एक दिन शकरकंद की खीर बनाई किशमिश बादाम काजू वगैरा डाल कर.सबको बड़ी पसंद आई.पूरी देगची एक ही दिन में सफाचट हो गई. शालू ने सोचा था कि दो-तीन दिन तो खीर चलेगी, मगर स्वादिष्ट इतनी बनी कि सबने कई दफा खाई. एक दिन अम्मा से पूछ-पूछ कर शालू ने रसगुल्ले बनाये वो भी शाम तक सफाचट हो गए.शालू को भी ख़ुशी हुई कि उसकी बनाई चीज़ें सब इतने शौक से खा रहे हैं.जब से कोरोना ब्रेक मिला है ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सबमे कुछ ना कुछ स्पेशल ही बन रहा है.

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माँ बाबूजी भी बहु के हाथ का स्वादिष्ट भोजन खा कर खुश हैं.वरना नौकरानी के हाथ की जली-भुनी सब्ज़ी और आड़ी-तिरछी रोटियां ही इतने साल से मिल रही थीं. शालू तो सुबह जैसे तैसे नाश्ते में अंडा ब्रेड दे कर ऑफिस भागती थी.शाम को भी थकी हारी लौटती तो डिनर में भी बस दाल रोटी ही मिलती थी सबको.इतवार की एक छुट्टी घर साफ़ करने, गंदे कपडे धोने और पेंडिंग काम निपटाने में कब ख़तम हो जाता था पता ही नहीं चलता था. लगता कि इतवार में बाकी दिनों से  ज़्यादा काम सर पर आन पड़ता है.मगर कोरोना ब्रेक ने बड़ा आराम दिया. धीरे-धीरे करके घर भी साफ़ सुथरा हो गया है, परदे-चादरें भी धुल गयी हैं. घर में खाने सोने के अलावा बचे टाइम को शालू और अभिषेक युटीलाइज़ भी कर रहे हैं और इंजॉय भी कर रहे हैं. दोनों को साथ काम  करके खूब खुशी मिल रही है.

कोरोना ब्रेक कामकाजी महिलाओं के लिए बड़ी ख़ुशी ले कर आया है मगर डॉक्टर्स इस ब्रेक को  सेहत के लिए ठीक नहीं मान रहे हैं. कालकाजी में बहल क्लिनिक की डॉक्टर नीना बहल की माने तो इस लम्बे ब्रेक के बाद लोगों का वज़न सात से आठ किलो तक बढ़ जाएगा क्योंकि लोग घर में रह कर सिर्फ खा रहे हैं और आराम कर रहे हैं.गृहणियां आज कल अपनी पाक-विद्या खूब दिखा रही हैं और खुद भी एवं पति, बच्चो और अन्य परिजनों को भी खूब स्वादिष्ट और तला-भुना मसालेदार भोजन खिला रही हैं.

घर में रहने के दौरान बहुत से लोग अपने ज्यादा खाने की आदत से परेशान भी होने लगे हैं.कई लोग लॉकडाउन से जुड़ी चिंताओं से बचने के लिए खुद को व्यस्त रखना चाहते हैं और इस वजह से हर वक्त कुछ न कुछ खाते रहते हैं. मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि अकेलेपन या किसी डर से बचने के लिए लोग स्वादिष्ट भोजन में खुशी ढूंढने लगते हैं.डायटीशियन कहते हैं कि क्वारंटाइन के वक्त पैदा हो रही ऐसी आदतें लोगों का वजन अचानक से बढ़ा सकती हैं, जिससे लॉक डाउन के बाद उन्हें कई शारीरिक समस्याएं पैदा होंगी.

अक्सर परिवारवाले अपने बच्चों को स्नेह में खाने-पीने से टोकते भी नहीं हैं. खा ले बेटा खा ले, और ले ले.पता नहीं फिर कब ऐसे घर में रहने का मौक़ा आएगा. मायें भी अपने लाडले बच्चों को ठूंसा-ठूंसा कर खिला रही हैं कि शरीर की इम्युनिटी पावर अच्छी हो जाए. वयस्क भी अपनी खाने-पीने की आदतों पर नज़र नहीं रख रहे हैं. ऐसे में वज़न बढ़ना तो लाज़िमी है और इसके साथ ही शुरू हो  जाते हैं जैसे डॉयबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, बढ़ता यूरिक एसिड, हिपेरटेन्शन आदि।.तो कोरोना ब्रेक को एन्जॉय करें मगर कुछ  सावधानियों के साथ.

क्या सावधानियां रखें            

अगर आप अभिभावक हैं तो अपने बच्चों के खाने के तरीकों पर ध्यान दें और उन्हें समझाएं. डायटीशियन सलाह देते हैं कि अपने और बच्चों के खाने का एक डायट चार्ट बनाएं.तय समय पर ही खाएं और दो समय के भोजन के बीच अंतराल रखें। बार-बार नमकीन, बिस्कुट न खाएं और इस डायट चार्ट का पूरा पालन करें.

कम संसाधन में जीना सिखाएं
लॉकडाउन के इस वक्त में देश और दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें जीने की जरूरी चीजों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. अपने बच्चों को ऐसे लोगों के बारे में बताएं ताकि वे भोजन का महत्व समझ सकें.उन्हें बताएं कि जब पूरी दुनिया को एक-दूसरे के साथ की जरूरत है तो हम ऐसे वक्त में कम से कम संसाधन में जिएंगे.हम खाने के लिए जीने की जगह जीने के लिए खाएंगे. आप जब घर में इस बात का पालन करेंगे तो आपके बच्चे भी खुद को जिम्मेदार महसूस करेंगे.

खेल-खेल में कसरत कराएं
अपने बच्चों को शारीरिक रूप से घर में सक्रिय रखने के लिए जरूरी है कि वे हर दिन उतना ही खेले जितने स्कूल और पार्क में खेलने जाते थे. इसके लिए अपने घर के सभी सदस्यों का सहयोग लें.सभी साथ में बैठकर ऐसे खेल खेले जिसमें सभी की कसरत भी हो जाए. इस तरह आपका भी समय कटेगा और बच्चे जो भी खाएंगे वो पचता रहेगा.बच्चों के खिलौनों को जरूर संक्रमण रहित करते रहे, जिसके लिए गर्म पानी का इस्तेमाल करें.गर्म पानी पीने से वज़न भी कंट्रोल रहता है.

व्यवहार पर नजर जरूरी  

बच्चों और अपने व्यवहार पर नजर रखें ताकि चिंता के लक्षण नजरअंदाज न होने पाएं। साथ ही ऐसा न हो कि बच्चा टीवी देखते-देखते घंटों खाना खाता रहे या फिर खेल में खाना भूल जाए.उनके मीडिया टाइम पर भी नजर रखें. बच्चे चिड़चिड़े हो रहे हों या कम नींद लें तो सतर्क हो जाएं.बच्चों को बताएं कि स्कूल खुलने पर उनके ऊपर पढ़ाई का कोई बोझ नहीं बढ़ेगा.उन्हें यह समय अलग न लगे इसलिए उन्हें एक तय रूटीन में रखें और रुटीन पालन कराने में उनका रोलमॉडल बनें.

चिंता से बढ़ता है वजन
जब हम चिंता करते हैं तो शरीर में स्टेरॉयड हार्मोन ‘कॉर्टिसॉल’ की मात्रा बढ़ जाती है जो पेट में बसा को बढ़ा देती है. इस तरह शरीर का वजन अनियंत्रित ढंग से बढ़ने लगता है.ऐसे समय में अगर शरीर से ज्यादा काम न लिया जाए तो शरीर की कैलोरी भी बर्न नहीं होती जिससे वजन बढ़ता चला जाता है.इसलिए कोरोना का खौफ खुद पर हावी ना होने दें.

इनका सेवन करें

गाजर: इसमें भरपूर मात्रा में फाइबर पाया जाता है जो पाचन शक्ति बढ़ाता है औ वजन नियंत्रित रखता है.
चुकंदर: इसमें भी वजन घटाने वाला फाइबर पाया जाता है। इसका सलाद या जूस लेने से भूख कम लगती है.
दालचीनी- न्यूट्रीशन साइंस और विटमिनोलॉजी की रिपोर्ट के अनुसार दालचीनी के नियमित सेवन से वजन कम होगा.
मेथी के बीज : यह शरीर के मेटाबॉलिज्म सिस्टम को दुरुस्त रखकर खाने की इच्छा को कम करता है.
अमरूद : फाइबरयुक्त अमरूद आपकी पाचन शक्ति को मजबूत करता है और वजन घटाने में सहायक होता है.

रात में जब मैं अपनी गर्लफ्रैंड के साथ होता हूं तो अंग में तनाव नहीं होता है, क्या शादी के बाद भी ऐसा होगा?

सवाल
मैं 24 साल का हूं और हफ्ते में 4-5 बार हस्तमैथुन करता हूं. जब रात में मैं अपनी गर्लफ्रैंड से मिलने जाता हूं तो अंग में तनाव नहीं होता है. क्या शादी के बाद भी ऐसा होगा?

जवाब
जब आप गर्लफ्रैंड के पास जाते हैं, तो आप के मन में गलत काम करने यानी चोरी की भावना होती है, लिहाजा आप का अंग मनोवैज्ञानिक तौर पर जवाब दे देता है. शादी के बाद हमबिस्तरी करते वक्त ऐसा नहीं होगा, क्योंकि वह जायज काम होगा.

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इस उम्र में बढ़ती जाती है सेक्स की इच्छा

60 साल से अधिक उम्र के बुजुर्ग यौन संबंध बनाने को लेकर ज्यादा इच्छुक रहते हैं. हालिया शोध में यह बात सामने आई है. अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. क्रिस्टीन मिलरोड द्वारा किए गए शोध के मुताबिक, 60 की उम्र लांघने के बाद बुजुर्ग यौन संबंध बनाते वक्त अनिवार्य सुरक्षा लेना भी जरूरी नहीं समझते.

पैसे देकर यौन संबंध बनाने वाले 60 से 84 वर्ष के बुजुर्गो में यह देखने को मिला है कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, उनकी यौन संबंध बनाने की इच्छा भी बढ़ती जाती है. वे बार-बार यौन संबंध बनाने के लिए पैसे खर्च करते हैं. वे ज्यादा से ज्यादा बार अपने पेड-पार्टनर के साथ असुरक्षित यौन संबंध बनाने के इच्छुक रहते हैं.

मिलरोड के मुताबिक, लोगों के बीच यह आम धारणा है कि बुजुर्गो में यौन संबंध बनाने के प्रति रुचि कम हो जाती है और वे रुपये खर्च कर संबंध बनाने के लिए साथी की तलाश नहीं करते हैं. परन्तु यह सही नहीं है. युवाओं के मुकाबले बुजुर्ग अपने पेड पार्टनर के साथ संबंध बनाते वक्त कम से कम एहतियात बरतने का प्रयास करते हैं.

डॉक्टर क्रिस्टीन मिलरोड व पोर्टलैंड विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र के प्रोफेसर मार्टिन मोंटो ने 60 से 84 वर्ष की उम्र के बीच के उन 208 बुजुर्गो पर यह सर्वेक्षण किया, जो पैसे देकर यौन सबंध बनाते हैं. अध्ययन के दौरान पाया गया कि 59.2 प्रतिशत बुजुर्ग ऐसे हैं, जो हमेशा सबंध बनाते वक्त कंडोम का इस्तेमाल करना जरूरी नहीं समझते. करीब 95 प्रतिशत बुजुर्ग हस्तमैथुन करते वक्त सुरक्षा नहीं बरतते. जबकि 91 प्रतिशत मुखमैथुन के दौरान सुरक्षा लेना जरूरी नहीं समझते.

31.1 प्रतिशत बुजुर्गों ने बताया कि जीवन काल के दौरान वे यौन संक्रमण का शिकार हुए, जबकि 29.2 प्रतिशत लोगों ने बताया कि वे अपनी पसंदीदा पेड पार्टनर के साथ बार-बार संबंध बनाते हैं.

मिलरोड और मोंटो ने यह सलाह दी कि स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोग बुजुर्गो में संक्रमण संबंधित बीमारी का इलाज करते वक्त उनके पार्टनर के बारे में जरूर पूछें और उनसे सुरक्षित यौन संबंध बनाने के तरीकों के बारे में बताएं. चिकित्सकीय एवं मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों को यह कभी भी मान कर नहीं चलना चाहिए कि व्यक्ति बुजुर्ग है, तो वह पेड-संबंध नहीं बनाएगा.

अजीब दास्तान: भाग 1

कुछ महीनों से लीना महसूस कर रही थी कि उस का पति वासन कुछ बदल सा गया है. पहले, हफ्ते में 2 दिन टूर करता था पर अब हफ्ते में 5 दिन बाहर रहता था. पूछने पर बोलता कि तुम और बच्चे इतना आरामदायक जीवन जी रहे हो, उस के लिए मुझे अधिक काम करना पड़ रहा है. लीना उसे सच मान लेती क्योंकि उसे वासन पर पूरा विश्वास था. टूर से जब वासन वापस आता तो बच्चों के लिए ढेरों उपहार और उस के लिए 2-4 सुंदरसुंदर साडि़यां लाता. उपहार देते समय वासन अपना मनपसंद वाक्य बोलना न भूलता, ‘आई लव माई फैमिली’. ऐसे में वासन पर शक करने की कोई गुुंजाइश ही नहीं थी.

पर आज जब मंगला ने कालेज से वापस घर आ कर पूछा, ‘‘आजकल डैडी का कोई और घर भी है क्या? मेरी एक सहेली ने मुझे आज बताया कि मेरे डैडी कोडमबक्कम में रहते हैं. मैं उस सहेली से लड़ बैठी पर वह अपनी बात की इतनी पक्की थी कि मैं चुप हो गई. अब मैं आप से पूछ रही हूं कि क्या यह सच है?’’ मंगला की इन बातों ने लीना को झकझोर दिया. लीना तो जैसे नींद से जागी हो. लीना के मन में वासन को ले कर कहीं न कहीं ऐसी बात थी पर वह वासन की प्यारभरी बातों में भूल जाती थी. लेकिन आज यह शक सच में बदलता नजर आ रहा था. वह बोली, ‘‘डैडी घर आएंगे तभी सच का पता चलेगा.’’

‘‘मां, इस से पहले ही हम सचाई का पता लगा सकते हैं. उस सहेली का पता मुझे मालूम है. हम वहां चलते हैं,’’ और दोनों मांबेटी कोडमबक्कम जाने के लिए निकल पड़ीं.

वहां जा कर उस बिल्ंिडग में रहने वाले लोगों के नाम वहां लगे बोर्ड पर पढ़े. वासन का नाम वहां नहीं था. वे लौट आईं. 5 दिन बाद जब वासन वापस आया तो परिवार वालों के लिए ढेरों तोहफे लाया. लीना घर में अकेली थी. बच्चे कालेज गए हुए थे. लीना ने आते ही उसे सामने बिठाया और बोली, ‘‘हम लोगों को कब तक गिफ्ट दे कर बहलाओगे? अब मैं सचाई जानना चाहती हूं.’’

‘‘कौन सी सचाई?’’

‘‘अब भी भोले बन रहे हो तुम. क्या जानते नहीं हो कि मैं क्या पूछ रही हूं?’’

‘‘हां, मैं सेल्वी के साथ रहता हूं. हम ने अलग फ्लैट लिया हुआ है. पर यह भी सच है कि मेरा परिवार तो यही है. आई लव माई फैमिली.’’

इतना सुनते ही लीना स्तब्ध रह गई. वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि वासन सेल्वी के साथ रह रहा है सेल्वी उन के सब से करीबी दोस्त राजन की पत्नी थी. वह भी सेल्वी को बहुत अच्छी तरह से जानती थी. लीना जानती थी कि राजन और सेल्वी के बीच बहुत झगड़े होते थे. दोनों की शादी घर वालों ने जबरदस्ती करवाई थी. सेल्वी अपने ही मामा के साथ शादी नहीं करना चाहती थी पर उस की नानी, जो बहुत पैसे वाली थी, अपनी बेटी की बेटी को ही बहू बनाना चाहती थी. उन की जाति में मामा ही पहला उम्मीदवार होता है. बड़ों की जोरजबरदस्ती से विवाह तो हो गया था पर विवाह के बाद सेल्वी का जीवन नारकीय हो गया था. सेल्वी राजन को पति के रूप में कभी स्वीकार नहीं कर पाई. ऐसे में वासन और लीना ही दोनों के झगड़े निबटाते थे. इस दौरान वे दोनों कब करीब आ गए, पता ही नहीं चला.

सेल्वी के पति राजन को खबर थी पर वह अपने गम में शराबी बन चुका था. दिनरात शराब पी कर धुत पड़ा रहता था. ऐसे में वासन और सेल्वी ने एक नया आशियाना बना लिया था. दोनों ने एकसाथ रहना शुरू कर दिया था. पिछले 7 महीने से दोनों एकसाथ एक ही फ्लैट में रह रहे थे और वासन अधिक समय सेल्वी के साथ ही गुजारता था. घर में टूर का बहाना बनाना बहुत आसान था. पर आज जब रहस्य खुल ही गया था तो वासन बोला, ‘‘हां, मैं सेल्वी के साथ रहता हूं. उसे मेरी जरूरत है. वह बहुत दुखी है पर मैं ने तुम्हें और बच्चों को तो किसी भी बात की कमी नहीं होने दी है.’’

‘‘पर अब यह सब नहीं चलेगा. तुम्हें आज ही फैसला लेना होगा कि तुम सेल्वी के साथ रहना चाहते हो या हमारे साथ,’’ लीना क्रोध में बोली.

‘‘एक बार फिर सोच लो.’’

‘‘सोच लिया, मुझे अपने बच्चों का भविष्य देखना है. तुम्हारी इस जीवनशैली का जवान होते बच्चों पर क्या असर पड़ेगा? मैं यह सहन नहीं कर सकती.’’

‘‘तो ठीक है, मैं चला जाता हूं,’’ और वासन अपनी अटैची उठा कर घर से बाहर निकल गया.

लीना जोर से चिल्लाई, ‘‘अब कभी वापस मत लौटना, तुम्हारे लिए यहां जगह नहीं है.’

वासन के जाने के बाद लीना चुप बैठ गई. उस ने स्वयं को कभी भी इतना असहाय नहीं पाया था. वासन को शराब की लत तो बहुत पहले से थी. उस लत को वह किसी प्रकार सहन करती थी. वासन का आधी रात के बाद नशे की हालत में घर लौटना उस ने अपनी आदत में शामिल कर लिया था. पर बच्चों के लिए वह सांताक्लौज जैसा था जो उन्हें उपहारों से लादता रहता था. बच्चों को इस के अलावा वासन से कुछ भी प्राप्त नहीं होता था. उस के पास समय नहीं था बच्चों से बात करने का या उन की कोई समस्या सुलझाने का. वह तो यह भी नहीं जानता था कि बच्चे कौन से कालेज में जाते हैं और क्या पढ़ते हैं. पैसा दे कर ही उस की जिम्मेदारी पूरी हो जाती थी.

ऐसी परिस्थितियों को झेलतेझेलते लीना भी कठोर बन गई थी. वह अब बातबात में रोने वाली लीना नहीं थी. उस ने वासन की इस प्रतिक्रिया को भी सहज रूप से स्वीकार कर लिया था. उस ने मन में निश्चय किया था कि वह वासन को फिर कभी इस घर में वापस नहीं आने देगी. जिस आदमी ने इतनी आसानी से रिश्ता तोड़ लिया हो, ऐसे आदमी के लिए वह न रोएगी और न झुकेगी. मंगला और शुभम ने जब डैडी के लिए पूछा तो लीना ने बिना कुछ भी छिपाए सबकुछ बता दिया. वह बोली, ‘‘अब तुम्हारे डैडी यहां कभी नहीं आएंगे. अब वे अलग घर में सेल्वी आंटी के साथ रहते हैं, अब तुम लोग भी उन का नाम इस घर में मेरे सामने कभी नहीं लोगे. उन के बिना हम अच्छी तरह से जीएंगे. तुम लोग अपनी पढ़ाई करो और मेरा सपना पूरा करो. मंगला को डाक्टर बनना है और शुभम को इंजीनियर बनना है.’’

#coronavirus: कोरोना के कहर में गाँवों का भी दिखने लगा है क्रूर चेहरा

  • ज़िला पुरुलिया के एक गांव में जो श्रमिक चेन्नै से लौटे थे उन्हें अपने आपको पेड़ों की शाखों पर क्वारंटाइन करना पड़ रहा है.शाखों पर ही उन्हें अपने कपड़े आदि बांधने पड़ रहे हैं.
  • सुजीत राव जब पंजाब से ज़िला औरंगाबाद स्थित अपने गांव धनौटी लौटा तो गांव के तीनों प्रवेश मार्गों पर बैरिकेड लगे थे, गांव के ही लड़के डंडे लिए चौकीदारी कर रहे थे – बाहर से लौटने वाले का गांव में प्रवेश वर्जित था.राव ने कुछ दिन पीएचसी पर गुज़ारे, डाक्टरों से ‘क्लीन चिट’ मिलने पर ही वह अपने गांव में प्रवेश कर सका.
  • नोएडा से गांव रामपट्टी (ज़िला मधुबनी) लौटने वाले सज्जन ठाकुर, जो अब शेल्टर बने सरकारी स्कूल में शरण लिए हुए है, का कहना है,“मैं बेसहारा व भूखा जब अपने गांव लौटा तो मुझे मेरे ही घर में घुसने नहीं दिया गया, अब मैं जाऊं तो जाऊं कहां?”

ये तमाम तथ्य बताते हैं देशव्यापी लॉकडाउन के कारण जो सैंकड़ो हजारों श्रमिक भूख व पैदल सफर करने से पड़े पैरों के छालों को बर्दाश्त करते हुए उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड, बिहार व बंगाल स्थित अपने गांव या कस्बों में लौटे हैं,उनकी परेशानियों पर अभी विराम नहीं लगा है.कहीं कहीं तो उन्हें सामाजिक बहिष्कार की स्थिति तक का सामना करना पड़ रहा है.ऐसे कई लोगों को उनके गांव में ही प्रवेश नहीं दिया जा रहा है.कुछ को अपने घर से दूर शेल्टर या क्वारंटाइन केन्द्रों में रहना पड़ रहा है,बशर्ते कि उनके ज़िले में ऐसा कोई केंद्र हो, वर्ना उनके लिए अस्थाई व्यवस्था करनी पड़ रही.

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जो लोग छुपते छुपाते अपने घर पहुंच गये हैं और सामाजिक बहिष्कार जैसी स्थिति से नहीं गुजरना पड़ा है,उनके लिए अन्य प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं.अनेक मामलों में हिंसा के रूप में भी ये समस्या सामने आयी है. इस सिलसिले में यहां दो उदाहरण देना ही पर्याप्त होगा. उत्तर प्रदेश में शैलेन्द्र यादव नोएडा से ज़िला मैनपुरी स्थित अपने गांव अलीपुर लौटा.उसके आगे पीछे ही उसके दो भाई बिजेंद्र यादव व उपेन्द्र यादव और भतीजा गौरव यादव भी गांव लौटे. सभी नोएडा व गुड़गांव में कैब चालक हैं.शैलेन्द्र ने अपने साले विनय यादव को धमकी दी कि वह उनके आने की खबर ज़िला मुख्यालय को न दे ताकि वह टेस्ट व क्वारंटाइन से बच जायें.लेकिन विनय के समक्ष दो बातें थीं – एक यह कि वह ‘रोज़गार सेवक’ है जिसका काम गांव लौटने वाले व्यक्तियों की सूचना प्रशासन को देना है; दूसरा यह कि वह गांव को सुरक्षित रखना चाहता था,यह सुनिश्चित करके कि नोएडा से लौटने वाला कोई कोरोना वायरस से संक्रमित न हो.

ध्यान रहे कि नोएडा से लौटने वाले फैक्ट्री श्रमिक बरेली आदि जगहों पर अपने संबंधियों को संक्रमित कर चुके हैं. इसलिए विनय ने अलीपुर लौटने वाले सभी व्यक्तियों के नाम ज़िला प्रशासन को दे दिए.इस पर शैलेन्द्र भड़क उठा. पुलिस के अनुसार उसने विनय के घर पहुंचकर उसपर गोली चला दी,जो कि पास खड़ी विनय की साली संध्या को लग गयी. 36-वर्षीय संध्या की मौके पर ही मौत हो गई.लॉकडाउन के चलते बढ़ते घरेलू झगड़े भी त्रासदी की एक से एक भयानक पटकथाएं लिख रहे हैं. मसलन, शिकारपुर (ज़िला बुलंदशहर) में पुलिस के अनुसार बॉबी नामक व्यक्ति लॉकडाउन के कारण हरियाणा से घर लौट आया था. 31 मार्च को उसका अपनी पत्नी से झगड़ा हुआ, उसी शाम को उसकी पत्नी अपने दो बच्चों के साथ कमरे में बंद हो गई, बच्चों पर व खुद पर मिट्टी का तेल छिड़का और आग लगा ली.बच्चे मौके पर ही मर गये और बॉबी की पत्नी ने पीएचसी पर जाकर दम तोड़ा.

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दरअसल, घर लौट रहे लोगों को जो कठिनाइयां हो रही हैं,उनको पूरी तरह शब्दों के ज़रिये व्यक्त करना आसान नहीं है.हर जगह अलग अलग प्रकार के दर्द हैं.बंगाल में महाराष्ट्र, केरल व कर्नाटक से हज़ारों की तादाद में मज़दूर लौटे हैं.उनमें से अधिकतर का कहना है कि उन्हें नहीं मालूम कि उन्हें अपना जॉब वापस मिलेगा या नहीं.हुगली में लौटे एक श्रमिक के लिए अपनी पत्नी व तीन बच्चों का पेट भरना मुश्किल हो गया है; उसका कहना है, “मैं पुणे में राज मिस्त्री  का काम करता था.लौटने पर मुझे नये सिरे से काम शुरू करना पड़ेगा.मेरे पास न खेती की ज़मीन है और न ही आय का कोई अन्य साधन.”

अन्य श्रमिकों का कहना है कि जल्दबाजी में लौटने के कारण उन्हें अपना मेहनताना भी नहीं मिल सका था.समस्या सिर्फ आर्थिक नहीं है बल्कि सामाजिक बहिष्कार की भी है. कुछ की स्थिति तो ‘अछूतों’ जैसी हो गई है; कानूनन प्रतिबंधित अस्पर्श्यता नये अवतार में लौट आयी है. उत्तर प्रदेश से बंगाल तक लगभग हर गांव में यही स्थिति है. शेल्टर बने इन स्कूलों में स्थिति बदतर है, मवेशियों की तरह हज़ारों मजदूरों को एक जगह ठूंस दिया गया है, जहां खाने पीने, हाइजीन आदि की कोई व्यवस्था नहीं है.मुंगेर में तो यह मज़दूर इतने त्रस्त हुए कि लोहे का दरवाज़ा तोड़ कर ही ‘फरार’ हो गये.

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एक अनुमान के तहत बिहार में पिछले कुछ दिनों के दौरान 1.86 लाख मज़दूर विभिन्न राज्यों से लौटे हैं.राज्य स्वास्थ विभाग ने वापसी पर सभी के टेस्ट के आदेश दिए हैं.जो लोग अपने घरों में क्वारंटाइन के तहत हैं, उनमें से कुछ के घरों पर पुलिस ने पैम्फलेट चस्पा कर दिए हैं कि कोई उनसे मिलने के लिए न आये. उनके हाथों पर भी क्वारंटाइन में होने की मोहर लगा दी गई है. क्वारंटाइन व सोशल डिस्टेंसिंग आवश्यक है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता, लोग स्वयं भी सावधानी बरत रहे हैं, लेकिन पैम्फलेट व मोहर तो एक तरह से इन मजदूरों को ‘कलंकित’ कर रहे हैं.आशंका यह है कि नेगेटिव की पुष्टि होने पर भी उन्हें सामाजिक बहिष्कार का लम्बे समय तक सामना करना पड़ सकता है.

#lockdown: घर पर ही पूरी करें बच्चों की जिद

भारत में भले ही 14 अप्रैल तक तालाबंदी के चलते बच्चे घरों से बाहर नहीं निकल पा रहे है, लेकिन बच्चों के घर पर रह कर ही उन की मांग पूरी की जा सकती है. वह भी बिना सब्जी के क्योंकि बहुत से बच्चे सब्जी खाना पसंद नहीं करते.

कुछ व्यंजन ऐसे हैं जो आज की पीढी लगभग भूल चुकी है, उन्हें बना कर बच्चों को खिलाने से घरेलू महिलाओं का दिन अच्छे से निकल जाएगा और बच्चों को हर रोज नया डिश खाने को मिलेगा.

यदि घर में मां या दादी हों तो उन से यह व्यंजन जो आप को पता नहीं है, बनाना सीखें और आनन्द लें.

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विकल्प है…
– दही का रायता (प्रतिदिन)
– कढ़ी (हफ्ते में दो बार)
– गट्टे (हफ्ते में दो बार)
– दाल (एक टाइम हफ्ते में )
– राजमा (हफ्ते में दो बार)
– छोले (हफ्ते में दो बार)
– मंगोड़ी
– मूंग भिगो कर अंकुरित कर के
-गोरी मोठ भिगो कर अंकुरित कर के
-चना भिगो कर, छूकना
-दाना मेथी भिगो कर छोंक कर खाना
– सांगरी
-लहसुन की चटनी
-बेसन का चीला
-मूंग मोगर
– नमकीन मट्ठी
-पापड़
– बेसन के सेब
– चना दाल
– हल्वा
– खीर
-खिचड़ी
– दाल ढोकला
-खाटा व लापसी

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इन चीजों को बना कर भी खिलाया जा सकता है. बच्चे भी मजा ले कर खाएंगे. आप को बाजार से सब्जियों के खरीदने के लिए जाने की भी जरूरत नहीं होगी.तो एक बार बना कर देखिए और इन छुट्टियों को बच्चों के साथ एंजॉय कीजिए.

टूटा जाल शिकारी का : भाग 1

28अक्तूबर, 2019 को ग्रेटर नोएडा की फास्ट ट्रैक कोर्ट-2 में काफी भीड़ थी. दोनों पक्षों के वकील, पुलिस और तीनों आरोपी चंद्रमोहन शर्मा, प्रीति नागर, विदेश अदालत में मौजूद थे. उस दिन फास्ट ट्रैक कोर्ट के न्यायाधीश निरंजन कुमार एक ऐसे केस में सजा सुनाने वाले थे, जिस में शातिराना ढंग से खुद को मृत साबित करने के लिए चंद्रमोहन शर्मा ने एक पागल व्यक्ति को अपनी कार में बैठा कर जिंदा जला दिया था.

दोनों पक्षों की बहस पूरी हो चुकी थी. पिछली तारीख पर अदालत चंद्रमोहन को भादंवि की धारा 302 के तहत दोषी भी ठहरा चुकी थी. उस दिन सिर्फ फैसला सुनाया जाना था. प्राथमिक काररवाई निपटाने के बाद न्यायाधीश निरंजन कुमार ने फैसला सुनाते हुए चंद्रमोहन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

दरअसल 28 अक्तूबर, 2019 को ग्रेटर नोएडा की फास्ट ट्रैक कोर्ट-2 के न्यायाधीश निरंजन कुमार ने जो फैसला सुनाया, उस की शुरुआत 7 जून, 2014 की शाम को तब हुई थी, जब शाम करीब 7 बजे अचानक एक लड़की का अपहरण हो गया.

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दिल्ली से सटे गौतमबुद्ध नगर जिले के ग्रेटर नोएडा में अल्फा- 2, सेक्टर के मकान नंबर आई-33 में रहने वाले संतराम नागर की बेटी प्रीति नागर (22) अपने घर के बाहर से रहस्यमय ढंग से गायब हो गई.

प्रीति नागर शाम के अंधेरे में घर के बाहर बिछी चारपाई उठाने आई थी और गायब हो गई. चूंकि उस वक्त इलाके में बिजली नहीं थी इसलिए किसी ने भी प्रीति को कहीं आतेजाते नहीं देखा था. प्रीति को इधरउधर तलाश करने के बाद उस के पिता संतराम ने पुलिस कंट्रोल रूम को 100 नंबर पर फोन कर के इत्तिला दे दी.

सूचना मिलने के बाद कासना थाने की पुलिस मौके पर पहुंच गई. संतराम नागर ने पुलिस को वे सारी बातें बता दीं, जो प्रीति के गायब होने से जुड़ी थीं. पुलिस ने संतराम नागर व आसपड़ोस के लोगों के बयान दर्ज किए. फिर अगली सुबह संतराम की शिकायत पर थाना कासना में धारा 364 के तहत प्रीति के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

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8 जून को प्रीति के अपहरण की जांच का केस एसआई विनय शर्मा के सुपुर्द कर दिया गया. जांच का काम संभालते ही जांच अधिकारी शर्मा अपनी टीम के साथ संतराम के घर पहुंचे और विवेचना शुरू कर दी.

तमाम बिंदुओं पर पूछताछ और जांच करने के बाद विनय शर्मा किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए. प्रीति का कहीं भी कोई सुराग नहीं मिला. अचानक 2 महीने बाद 9 अगस्त, 2014 को प्रीति के पिता संतराम के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से काल आई. काल करने वाले ने अपना नाम बताए बिना कहा कि वह तिरुपति बालाजी से बोल रहा है और उन की बेटी प्रीति उस के पास है.

फोन करने वाले ने बताया कि प्रीति कुछ गलत लोगों के चंगुल में फंस गई थी, लेकिन किसी तरह वह बच गई और अब उस के पास है. फोनकर्ता ने संतराम से आगे कहा कि वह तिरुपति बालाजी पहुंच जाएं, वह उन से बालाजी में मिलेगा और उन की बेटी उन के सुपुर्द कर देगा. काफी अनुरोध करने पर भी उस ने अपना नामपता नहीं बताया.

संतराम ने कासना थाने जा कर इस फोन के बारे में जांच अधिकारी विनय शर्मा को बताया.

शर्मा ने तुंरत उस फोन के बारे में साइबर सेल से जानकारी हासिल की तो पता चला कि जिस नंबर से संतराम को काल आई थी, उस की लोकेशन बंगलुरु के एक पीसीओ की थी.

विनय शर्मा ने थानाप्रभारी समरपाल सिंह और एसएसपी को इस जानकारी से अवगत कराया तो उन्होंने 13 अगस्त, 2014 को विनय शर्मा को कांस्टेबल धामा के साथ बंगलुरु रवाना कर दिया. उन के साथ संतराम भी अपने साले के साथ बंगलुरु पहुंच गए.

बंगलुरु पहुंच कर विनय शर्मा सब से पहले उस पीसीओ पर पहुंचे, जहां से संतराम के मोबाइल पर फोन किया था. लेकिन उस पीसीओ के संचालक से फोन करने वाले की पहचान के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी. संयोग से उसी दिन संतराम के मोबाइल पर लोकल नंबर से एक और काल आई.

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फोन उसी व्यक्ति का था, जिस ने पहले फोन किया था. लेकिन इस बार फोन करने वाला काफी गुस्से में था उस ने पुलिस को साथ ले कर आने के लिए संतराम को खूब खरीखोटी सुनाई. संतराम ने उसे समझाने की कोशिश की कि उस का इरादा गलत नहीं था, लेकिन फोन करने वाला इतने गुस्से में था कि उस ने प्रीति का बुरा अंजाम करने की धमकी दे कर फोन काट दिया.

संतराम ने जब उसी नंबर पर काल बैक की तो फोन स्विच्ड औफ हो चुका था. जांच अधिकारी विनय शर्मा संतराम के साथ ही थे. वे समझ गए कि फोन करने वाला उन पर नजर रख रहा है. जिस नंबर से संतराम को फोन आया था, विनय शर्मा ने वह नंबर नोएडा में बैठी अपनी साइबर टीम को भेज दिया तो पता चला कि वह नंबर बंगलुरु के ही एक पीसीओ का है.

विनय शर्मा ने तत्काल पता नोट किया और बताए गए पते पर पहुंच गए. पीसीओ के मालिक से जब फोन करने वाले की बाबत जानकारी मांगी, तो वह उस के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं दे सका. क्योंकि पीसीओ पर तमाम लोग आते हैं और सब के बारे में जानकारी रखना पीसीओ वाले के लिए संभव नहीं होता.

निराश हो कर 1-2 दिन बाद संतराम बंगलुरु से नोएडा लौट आए. अब जांच के सारे दरवाजे बंद हो चुके थे. लेकिन उच्चाधिकारियों  के आदेश के कारण विनय शर्मा अपने कांस्टेबल धामा के साथ वहीं रुके रहे और अपनी जांचपड़ताल करते रहे.

इस बीच संतराम जब नोएडा पहुंच गए तो 15 अगस्त को उसी अज्ञात फोन करने वाले ने फिर फोन किया. उस ने संतराम से कहा कि उन की लड़की के गिड़गिड़ाने की वजह से वह उसे छोड़ देगा, लेकिन शर्त यह है कि वह इस बार अकेला आए और अगली सुबह तिरुपति बालाजी मंदिर के बाहर उस का इंतजार करे.

संतराम ने तुरंत फ्लाइट पकड़ी और तिरुपति बालाजी मंदिर पहुंच गए. इस दौरान उन्होंने फोन कर के विनय शर्मा को भी ये बात बता दी थी. फलस्वरूप 16 अगस्त की सुबह विनय शर्मा संतराम व उन के साले के साथ फोन करने वाले का इंतजार करने लगे.

लेकिन अज्ञात फोनकर्ता ने इस बार भी धोखा दे दिया . देर शाम तक इंतजार करने के बाद वे फिर निराश हो गए, क्योंकि न तो फोन करने वाला आया और न ही उस की कोई काल आई. हालांकि इस बार जांच अधिकारी ने सावधानी बरतते हुए खुद को संतराम के से दूर रखा था. निराश हो कर संतराम नोएडा लौट आए.

वह यह मान बैठे थे कि उन्हें कोई परेशान करने के लिए ऐसा कर रहा है. लेकिन विनय शर्मा इस बार भी वापस नहीं लौटे. और प्रीति के फोटो के आधार पर थानेथाने जा कर वह उस की तलाश करते रहे.

जिस वक्त पुलिस टीम प्रीति को बंगलुरु में तलाश कर रही थी, 22 अगस्त, 2014 को संतराम ने विनय शर्मा को फोन कर के बताया कि उन के पास फोन करने वाले का एक और धमकी भरा फोन आया है. इस बार उस ने प्रीति को जान से मारने की धमकी दी है.

संतराम ने बताया कि इस बार फोनकर्ता ने एक अन्य नंबर का इस्तेमाल किया था. विनय शर्मा के मांगने पर संतराम ने उन्हें वह नंबर नोट करा दिया.

एसआई विनय शर्मा ने वह नंबर साइबर टीम को भेज कर पता करा लिया कि वह नंबर बंगलुरु में हांसे कोटे इलाके के एक पीसीओ का है.

पता मिलते ही विनय शर्मा पीसीओ मालिक के पास पहुंच गए. यहां भी पीसीओ संचालक से उन्होंने फोनकर्ता की जानकारी जुटाने की कोशिश की, मगर कोई खास सफलता नहीं मिली. फिर भी इस बार उन्हें एक क्लू जरूर मिल गया.

विनय शर्मा की नजर पीसीओ के सामने स्थित एक ज्वैलरी शौप पर पड़ी. ज्वैलरी शौप के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा था. सीसीटीवी कैमरा देखते ही विनय शर्मा का चेहरा खिल उठा. उन्होंने पीसीओ के संचालक के साथ जा कर ज्वैलरी शौप संचालक को अपना परिचय दिया और सीसीटीवी फुटेज दिखाने का अनुरोध किया.

ज्वैलरी शौप के मालिक ने विनय शर्मा को सहयोग करते हुए उक्त समय की वीडियो फुटेज दिखा दी.

संयोग की बात थी कि पीसीओ ज्वैलरी शौप के सीसीटीवी कैमरे की रेंज में था. विनय शर्मा के साथ सीसीटीवी देख रहे पीसीओ संचालक ने सफेद पैंट, काली जैकेट और काले जूते पहने एक गंजे व्यक्ति को देख कर बताया कि उस के पीसीओ पर वही शख्स आया था. काल करने के बाद वह वापस चला गया था. वापस लौटते हुए उस शख्स का चेहरा पूरी तरह कैमरे की जद में आ गया था.

उस आदमी की वेशभूषा देख कर ज्वैलरी शौप के मालिक ने बताया कि यह व्यक्ति जो ड्रेस पहने है, वह कोलार में दुपहिया वाहन बनाने वाली होंडा फैक्ट्री के कर्मचारियों की ड्रेस है. यह सुराग डूबते को तिनके का सहारा मिलने जैसा था.

आगे की छानबीन के लिए विनय शर्मा ने ज्वैलरी शौप के संचालक से उस फुटेज की कौपी ले कर अपनी टीम के साथ कोलार के नस्सापुर स्थित टू व्हीलर बनाने वाली होंडा कंपनी के औफिस में पहुंच गए.

जांच अधिकारी ने मैनेजर को पूरा मामला बताया. उस से पूछा गया कि क्या पिछले कुछ महीनों में उन के यहां किसी उत्तर भारतीय कर्मचारी ने नौकरी जौइन की है. इस के जवाब में मैनेजर ने उन्हें पिछले 3 महीनों में नौकरी जौइन करने वाले 3 कर्मचारियों का फोटो समेत बायोडाटा मिल गया.

तीनों बायोडाटा देखने के बाद विनय शर्मा की नजर एक शख्स पर अटक गई, क्योंकि वह उन का जानापहचाना था.

वह शख्स चंद्रमोहन शर्मा था, लेकिन बायोडाटा में उस का नाम नितिन लिखा था, जिस ने 6 मई, 2014 को फिटर कर्मचारी के रूप में उन के यहां नौकरी जौइन की थी. उस ने अपना मूल पता हरियाणा, हिसार लिखवाया था.

चंद्रमोहन को विनय अच्छी तरह जानते थे. क्योंकि वह नोएडा का एक आरटीआई एक्टिविस्ट था और वह उस से कई बार मिले भी थे. लेकिन उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि चंद्रमोहन यहां क्या कर रहा है और उस ने अपना नाम नितिन क्यों लिखवाया है. साथ ही प्रीति की तलाश करतेकरते उन्हें चंद्रमोहन की बंगलुरु में उपस्थिति समझ नहीं आ रही थी.

जब मेरी जिंदगी में हुआ Lockdown: मिला अपनों का साथ, लौट आया बचपन

लेखक: Divesh Kumar Gola

घर पर रहना हम सभी को अच्छा लगता है, खासकर तब जब आपको परिवार के साथ रहने का समय न मिलता हो. मैं और मेरे मित्रों के साथ भी कुछ ऐसा ही है. मैं और मेरी पत्नी, हम दोनों ही नौकरी करते हैं, और हमें साथ रहने का समय नहीं मिल पाता है, और इस लॉकडाउन ने सिर्फ हमें ही नहीं, हमारे जैसे बहोत से परिवारों को साथ समय बिताने का मौक़ा दिया है.

छूटी बुरी लत…

मेरे कुछ रिश्तेदारों और मित्रों को सिगरेट और शराब की लत थी, लेकिन लॉकडाउन में बाहर न निकल पाने की वजह से उनकी ये लत भी छूट गई है. मैं अपने बेटे के साथ उसकी पसंदीदा खेल खेलता हूं तो बहोत अच्छा लगता है, लगता है जैसे इस लॉकडाउन ने मेरा बचपन मुझे वापस लौटा दिया है.

मिला परिवार का साथ…

एक साथ बैठकर कर हम सभी कार्यक्रमों का आनंद उठाते हैं, और परिवार के बच्चे उनसे जुड़े हुए प्रश्न पूछते हैं, जिससे उन्हें ज्ञान प्राप्त होता है जिसे हम समय के साथ लगभग खो चुके हैं.

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लॉकडाउन के नुकसान भी…

लेकिन ऐसा नहीं है कि इस लॉकडाउन से सिर्फ फायदे ही हुए हैं, इस लॉकडाउन के परिणामस्वरूप बाहर न निकल पाने की वजह से हमें अपनी मूलभूत जरूरतों की चीजों के लिए भी जूझना पड़ रहा है. बच्चों के स्कूल सेशन चालू हो चुके हैं, लेकिन वे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं जिससे उनकी शिक्षा का नुकसान हो रहा है. इसका पूरे देश पर भी बुरे प्रभाव पड़ रहे हैं.

समाजिक और आर्थिक नुकसान…

इसने हमारे देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से ध्वस्त कर दिया है. लोग अपनी दुकानें नहीं खोल पा रहे हैं, अपने कामों पर नहीं जा पा रहे हैं. हमारा परिवार भले ही एक साथ बैठा हो, लेकिन वो लोग जो इस लॉकडाउन का पालन करवाने के लिए अग्रसर हैं, उन्हें चौबीसों घंटे अपने घर से दूर रहना पड़ रहा है. देश में इमर्जेंसी जैसे हालात पैदा हो गए हैं. लोगों के अंतिम समय मे उन्हें चार कंधे भी नहीं मिल पा रहे हैं. लगभग सभी लोगों को छोटी बड़ी, हर तरह की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

जल्दी खत्म हो लॉकडाउन…

बात अगर इस लॉकडाउन को आगे बढ़ाने की की जाए, तो हमें ये समझना होगा कि भले ही मुझे और मेरे परिवार को एक साथ समय बिताने का मौका मिला हो, लेकिन इसकी वजह से होने वाली परेशानियों को देखते हुए और पूरे देश पर पड़ रहे इसके दुष्प्रभावों को देखते हुए, मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करूंगा कि ये लॉकडाउन जल्द से जल्द समाप्त हो और लोगों का जीवन सामन्य हो जाए.

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कोरोनावायरस प्रकोप: विवेक अग्निहोत्री ऑनलाइन मास्टर कक्षाएं संचालित करेंगे

फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री ऑनलाइन मास्टरक्लास के माध्यम से दर्शकों से जुड़ रहे हैं. विशेष रूप से कोरोनवायरस वायरस महामारी के कारण लॉकडाउन के बाद घर से काम करने वालों के लिए.
सूत्रों का कहना है “सामाजिक गड़बड़ी के बीच” यह डिजिटल मार्ग के लिए है.कोई भी शॉर्ट फिल्म घर से बाहर कदम रखे बिना बनाई जा सकती है.अगर वहां कोई भी आपके आस-पास घटने वाली कोई घटना या कोई ऐसी कहानी जो आपके दिमाग में हो इसे बिना किसी परेशानी के बताएं. ” निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ऑनलाइन फिल्म बनाने के लिए मास्टरक्लास ले रहे हैं और लोगों को इस समय का उपयोग करने तथा अपने कौशल को सुधारने के लिए भी बता रहे हैं.
फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री कहते हैं, “मैंने हर बार इन मुफ्त मास्टरक्लास का संचालन करने का फैसला किया है वैकल्पिक दिन जब तक हम अलग हैं.मेरा विचार लोगों को सीखने में मदद करना है नए कौशल और रचनात्मक रूप से अपने समय का उपयोग करने के लिए. पूरे समाज को छोड़ देंगे अवसाद में जाओ.सभी के पास कहानियां हैं लेकिन वे नहीं जानते कि ये कैसे बताएं कहानियों. मेरा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि 15 अप्रैल तक कम से कम कुछ गृहिणियां और 5-6 युवा लोग लघु फिल्में बनाना चाहते हैं एक पैसा खर्च किए बिना अपने घरों में बैठे,”
इससे पहले, फिल्म निर्माता ने दैनिक मजदूरी श्रमिकों के लिए पैसे जुटाने के लिए पेंटिंग बेचने का इरादा घोषित किया था. “उद्योग में बहुत सारे लोग हैं जिनकी आजीविका प्रभावित हुई है. मैं उनके लिए ये पेंटिंग बेचूंगा, ”उन्होंने कहा था.
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