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मेरी शादी को 8 साल हो चुके हैं, पहले मैं हफ्ते में 10 बार संबंध बना लेता था, पर अब 3 बार ही बना पाता हूं. ऐसा क्यों है?

सवाल
मेरी शादी को 8 साल हो चुके हैं. पहले मैं हफ्ते में 10 बार तक संबंध बना लेता था, पर अब 2 या 3 बार ही बना पाता हूं. ऐसा क्यों है?

जवाब
यह देखने में आया है कि वक्त के साथसाथ हमबिस्तरी का जज्बा व दायरा सिकुड़ जाता है. हमबिस्तरी गिन कर नहीं की जाती. वक्त, मूड और माहौल के हिसाब से ही संबंध बनाने चाहिए.

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बढ़ती उम्र में सैक्स

इंसान की जिंदगी में सैक्स का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान होता है. मगर 46-48 वर्ष के बाद या इस उम्र के दहलीज पर पहुंचतेपहुंचते आदमी और औरत दोनों में सैक्स का आवेग उदासीन होने लगता है. उम्र के इस पड़ाव पर यह दीये में पड़ी बाती की बुझती हुई लौ के समान होता है. सैक्स की इच्छा तो हर इंसान को ताउम्र होती है मगर इस रसगर्भित आनंद में मन का साथ तन नहीं दे पाता है. अकसर पुरुष या स्त्री इस उम्र में  सैक्स के प्रति इच्छा रहते हुए भी शारीरिक ऊर्जा समाप्त होने के कारण भीतर से अवसादग्रस्त रहने लगते हैं. अवसाद सैक्स को और खत्म कर देता है. डाक्टरों के अनुसार, पुरुष में आए इस ठहराव में शरीर में मौजूद ‘प्रोस्टेट ग्रंथि’ का बहुत बड़ा हाथ होता है. यह ग्रंथि पुरुष की पौरुषता की निशानी है. यह गं्रथि यौवनारंभ से 50-55 वर्ष की आयु तक सक्रिय रहने के बाद अपनेआप आकार में घटने लगती है. मनुष्य में होने वाली यह एक सामान्य प्रक्रिया है.

हजारों मनुष्यों में से एक में पौरुषता की यह निशानी ‘प्रोस्टेट ग्रंथि’ घटने के बजाय बढ़ने लगती है. ऐसे लोगों का आरंभिक अवस्था में संभोग करने को बारबार मन करता है. ऐसे पुरुष जो सप्ताह में एक बार समागम करते थे वे रोज या 2-3 बार संभोग करने को उत्सुक रहते हैं. मगर बाद में वे संभोग करने के योग्य नहीं रह जाते. ऐसे में स्त्री या पत्नी को पति की इस मनोदशा को समझना होगा. पति की उम्र के साथसाथ पत्नी की भी उम्र बढ़ रही है. सैक्स के प्रति अनिच्छा उसे भी हो रही है. लेकिन वह घर के विभिन्न कामधंधों में फंस कर अपने को भुलाए रखती है. यह भी होता है कि स्त्री अपनेआप में यह हार मान लेती है कि अब सैक्स करने की उम्र नहीं रही. साधारणतया स्त्रियों का ऐसा ही विचार होता है, लेकिन उन का यह सोचना गलत होता है. वे अपनी गलत धारणा के कारण प्रकृतिप्रदत्त सैक्स का भरपूर आनंद बढ़ती उम्र के साथ नहीं उठा पातीं. सैक्स एक रति क्रिया है जिस में 2 विपरीत लिंग आपस में एकदूसरे के साथ शारीरिक समागम करते हैं. इस रति क्रिया से शारीरिक ऊर्जा मिलती है. उस से उक्त दोनों शरीर को भरपूर आनंद व संतुष्टि प्राप्त होती है. शरीर फिर से आगे काम करने के लिए रिचार्ज हो जाता है.

समस्याओं का पिटारा

एक दोस्त की पत्नी का कहना है कि सैक्स तो जरूरी है ही लेकिन इस के लिए मन का साथ होना बहुत जरूरी है. मन का साथ तभी होता है जब घरगृहस्थी के झंझटों से छुटकारा मिले. अशांत मन से सैक्स करने का मजा किरकिरा हो जाता है. एक सवाल के जवाब में उन का कहना है कि 45 प्लस के बाद सैक्स का अनोखा आनंद प्राप्त होता है क्योंकि यौवनावस्था में सैक्स उत्तेजित रहता है जबकि प्रौढ़ावस्था में सैक्स परिपक्व होता है विवेक बताते हैं कि यौवनावस्था में उन की सैक्स की इच्छा चरम पर थी. एक रात में 3-3 बार संबंध बना लेते थे. मगर अब प्रौढ़ावस्था में सैक्स का आनंद सिमट कर हफ्तों और महीनों में चला गया है. अब सैक्स की हार्दिक अभिरुचि एकसाथ कमरे के एक बैड पर साथ में लिपट कर रहने पर भी पैदा नहीं हो पाती है.

इस संबंध में 46 वर्षीय रमेश का कहना है कि पहले वे रोज अपनी पत्नी के साथ सैक्स करते थे लेकिन अब वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं. ऐसा भी नहीं है कि इस में उन की अभिरुचि समाप्त हो गई है. रमेश बताते हैं कि उन्हें सैक्स करने की इच्छा तो होती है. बिस्तर पर साथ लेटी पत्नी के कोमल अंगों को सहलाते भी हैं मगर जहां पहले उत्तेजना तुरंत बढ़ जाती थी, अब उस में शिथिलता आ गई है. सैक्स के लिए आतुर मन को शरीर का साथ नहीं मिल पा रहा है. लिहाजा, वे सैक्स का आनंद नहीं उठा पाने के कारण काफी निराश हैं. 47 वर्षीय मनोज का किस्सा तो वाकई खराब है. उन्हें जब सैक्स की इच्छा होती है तब पत्नी की नहीं होती और जब पत्नी की इच्छा है तो उन की नहीं होती. इन दिनों उन्हें रात में सैक्स करने की अपेक्षा दिन में सैक्स करने की इच्छा ज्यादा बलवती रहती है. जबकि दिन में यह संभव नहीं है. वे बताते हैं कि पहले बच्चे छोटेछोटे थे. दिन में भी यह कभीकभी संभव हो जाता था मगर अब बच्चे बड़े हो गए हैं. रात में सैक्स में अभिरुचि नहीं होने की वजह वे बताते हैं कि रात के अंधेरे में पत्नी के शरीर के कोमल अंगों का साफ न दिख कर केवल छू कर अनुभव करना होता है जोकि रोमांच नहीं पैदा कर पाता है. सैक्स से एकदम मन हट जाता है.

मनोज आगे कहते हैं कि एक कारण और भी है कि दिनभर के कामधाम के बाद पत्नी जब थक कर चूर हो जाती है और रात को बिस्तर पर निढाल पड़ जाती है, ऐसी स्थिति में सैक्स करना संभव नहीं है. पत्नी ही नहीं, पति भी तो दिनभर दफ्तर के कामों से थकहार कर जब वापस घर लौटता है, उसे सोने के अलावा दूसरे कामों की इच्छा नहीं होती. वहीं, दिन में पत्नी घर में इधरउधर इठलाती, बलखाती, ठुमकती हुई नजर आती है तो बरबस उसे देखपकड़ कर सीने से भींच लेने को जी चाहता है. ऐसे में पत्नी जब तिरछी नजरों के बाण छोड़ती है वह क्षण पूरे शरीर में गुदगुदी पैदा कर देने वाला होता है तथा पत्नी की तरफ से सैक्स के लिए मौन आमंत्रण होता है. यह माना भी जाता है कि रात की अपेक्षा दिन में स्त्री की भावभंगिमाएं एक मर्द को सैक्स के लिए कुछ ज्यादा ही उत्तेजित कर देती हैं. फलस्वरूप, पुरुष बहक जाता है. उम्र के इस पड़ाव पर पत्नी को भी अपने पति का साथ देना चाहिए. ऐसे में पत्नी की जरा सी उपेक्षा गुजरे 45 वर्षों के वैवाहिक जीवन को अशांत कर सकती है.

स्वस्थ रहने के लिए सैक्स जरूरी

डाक्टरों का कहना है कि बढ़ती उम्र के साथ सैक्स कमजोर नहीं पड़ता बल्कि शरीर का ‘मेटाबोलिज्म’ खत्म होने लगता है. अपनेआप को स्वस्थ रखने के लिए नियमित सैक्स करना जरूरी है. सैक्स भी एक ऐक्सरसाइज ही है. इस के अलावा एक अनुसंधान से पता चला है कि जांघों की पेशियों में तनाव का यौन समागम से संबंध है. ऐसे व्यायाम, जिस में जांघों की पेशियों का व्यायाम हो, कर के यौन सामर्थ्य को बढ़ाया जा सकता है. डाक्टरों का यह भी कहना है कि यौन सक्रियता के घटने का सब से बड़ा कारण पौष्टिक भोजन का अभाव है. शरीर चुस्त और दुरुस्त तथा ऊर्जावान रखने के लिए सही पौष्टिक खानपान की भी जरूरत होती है. उन के अनुसार बढ़ती उम्र के हिसाब से ज्यादा वसायुक्त भोजन से परहेज करना चाहिए. कभीकभी ऐसा भी होता है कि प्रौढ़ावस्था में पहुंचा व्यक्ति कुछ समय तक जरूरत से ज्यादा संभोग कर चुका हो अथवा बहुत अरसे तक काम के बोझ से दबे रहने के कारण उस का ‘तंत्रिका तंत्’ यानी नर्व सिस्टम थक गया हो, जिस के चलते वह संभोग कार्यों में असफल रह जाता हो. ऐसे समय में उसे कुछ समय तक विश्राम करते हुए पौष्टिक भोजन पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए.

सैक्स जैसे अंतरंग कार्यों में सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका मस्तिष्क की ही होती है. पत्नी का झगड़ालू स्वभाव, चिंताएं, थकान, एकांत वातावरण का अभाव इत्यादि शिश्न में उत्थान कम आने के कारण बन सकते हैं. मधुमेह से पीडि़त व्यक्ति इस उम्र में आ कर सैक्स से वंचित रह जाते हैं. मनोचिकित्सकों के अनुसार दिनभर की भागदौड़ से थक कर शरीर जब आराम की मुद्रा में आता है, ऐसे में तुरंत सैक्स करना एक प्रकार का शरीर के साथ व्यभिचार करने के समान है. सैक्स एक प्रकार का 2 विपरीत लिंगों का एकांतिक शारीरिक व्यायाम है. पति व पत्नी चिंता से पूरी तरह मुक्त हो कर फोरप्ले करते हुए सैक्स का आनंद लें. इस से बढ़ती उम्र का खयाल ही नहीं रहेगा.

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बोहेमियन

अपने चचेरे भाई रजत भैया भी कमाल के आदमी हैं. 50 के हो गए मगर शादी नहीं की. ऐसा नहीं कि बढि़या रिश्ता नहीं मिला. हैरानी की बात है कि कोई भी बात सिरे ही नहीं चढ़ी. आदमी की शादी न हो पाने के 3-4 कारण हो सकते हैं. पहला तो यह कि उस के पास शादी करने की फुरसत ही न हो. होते हैं ऐसे कुछ लोग जो बातबात पर कहते हैं कि उन्हें तो मरने तक की फुरसत नहीं है. ऐसे लोग ही चिरायु होते हैं, जीते चले जाते हैं और अंत में फुरसत पा कर चैन से मरते हैं. हमारी बूआ भी बड़े इत्मीनान से मरी थीं. बहुत बार उन्हें मृत समझ कर जमीन पर लिटा दिया गया, दीयाबाती कर दी गई, रिश्तेदारों को तारफोन भेजे गए. वे लोग दौड़ेदौड़े आए मगर बूआ पता नहीं कैसे जिंदा हो जातीं. वे लोग मायूस हो कर अपनेअपने शहरों को लौट जाते. बूआ जब सच में मरीं तो सिर्फ 2-3 लोग ही पहुंच पाए थे.

एक तरह से रजत भैया को बोहेमियन कहा जाता है. बिंदास जीवनशैली, किसी के साथ बंधन उन्हें स्वीकार नहीं. हां, गाने, लटकों का शौक पर हर बार उन के साथ कोई नया या नई बैठी होती थी. उन के पास बस शादी का जुगाड़ नहीं था. यह नहीं कि वे बहुत व्यस्त थे.रजत भैया के पास फुरसत बहुत थी. सरकारी बंधीबंधाई नौकरी. शनिवार तथा इतवार की छुट्टी. इन छुट्टियों का उपयोग 20 बरसों से उन्होंने अपने लिए सुयोग्य लड़की देखने में किया था शादी न करने का दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि उन्हें प्रेम के मामले में चोट लगी हो. अब तक यह बात राज ही रही. संभावना है भी नहीं कि भैया ने किसी लड़की से प्यार किया हो. तीसरा कारण मैडिकल हो सकता है कि भैया कहीं शारीरिक रूप से अक्षम तो नहीं? इस मामले में मैं उतना ऐक्सपर्ट नहीं हूं.

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मैं ने कई बार रजत भैया से कहा, ‘‘बड़े भाई, बस कर. अब मान जा, शादी कर ले.’’ वे हुमकते हुए बोलते, ‘‘बच्चे, बहुत बढि़या चौइस मिल रही है. एक विधवा को पिछले हफ्ते देखा, 50 लाख की कोठी की वारिस है. खूब घुमायाफिराया उस ने, ऐश की. और चाहिए भी क्या. बाद में वह खुद ही बोली कि उसे कोई करोड़पति मिल गया है. वैसे भी अपने साथ उस की कुंडली नहीं मिल रही थी. कल एक टौप के बिजनैसमैन की लड़की को देखा. लड़की है तो एकदम मौडर्न मगर थोड़ा सा नुक्स है उस में, भेंगी है जरा सी, बस. माल चोखा मिल रहा है. फैक्टरी में 20 फीसदी हिस्सा दे रहे हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘भाई, तो फिर देर किस बात की? कोई दूसरा टपक पड़ेगा. फिर हमेशा की तरह हाथ मलते रह जाओगे.’’

भैया बहुत उत्साह में थे. 45 के होते हुए भी मुझ से ज्यादा जवान लग रहे थे. हम तो जवानी खर्च कर चुके थे.

रजत भैया हमेशा शोख, कमसिन और जवान लड़कियों की सोहबत में रहते थे इसलिए चुस्तफिट रहते थे. बड़े चाव से बोले, ‘‘गम न कर प्यारे, आज ही एक और लड़की को देखने जा रहा हूं. इनकम टैक्स अफसर है, मंगली होने के कारण उस की वक्त पर शादी नहीं हो पाई. वैसे भी वह पगली किसी आईएएस अफसर के इश्क में पागल थी. गजब की सुंदर है. कार, कोठी, बैंक बैलेंस सबकुछ है. हो सकता है इस बार अपना चक्कर चल जाए.’’ मैं ने बुजुर्गों सरीखा उपदेश दे डाला, ‘‘भाई, जो कुछ करना है, जल्दी कर ले. आधे से ज्यादा बाल सफेद हो चुके हैं. आप के साथ के लोगों के बच्चे शादी कर के हनीमून भी मना चुके. तुम अभी तक कुंआरे हो. कभी आईने में देखा है खुद को, हड्डियों ने मांस का साथ छोड़ दिया है, गाल फूल चुके हैं, बालों पर मेहंदी भी ज्यादा दिन नहीं टिकती. तुम्हारा पेट गर्भवती स्त्री के पेट की तरह आगे की तरफ बढ़ता ही जा रहा है. फटाफट शादी कर लो वरना बाद में बहुत पछताओगे. बचाखुचा माल भी तुम्हारे ऊपर हाथ नहीं धरेगा. अब मियां बूढ़े हो चले हो तुम.  झूठ कहते हैं लोग कि आदमी और घोड़ा कभी बूढ़ा नहीं होता. खूसट हो जाने से पहले किसी के हो जाओ, वरना बुढ़ापे में वह गत होगी कि पूछो मत. तुम बेवकूफी में हुस्नपरी के ख्वाब पाले बैठे हो. गालिब सच कहते हैं, ‘चाहते हो खूबरूओं को असद, अपनी सूरत भी देखना चाहिए.’’’

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रजत भैया पर इन बातों का असर नहीं होता. हर शनि या इतवार को लड़की देखने कहीं न कहीं निकल पड़ते हैं. 100 से ऊपर लड़कियां देख चुके हैं वे. कुछ तो पार्कों, होटलों, कौफी हाउस व दफ्तरों में जा कर तो बहुतों को उन के घर जा कर देखा उन्होंने. नित नई लड़की देखने का चस्का लग गया था उन्हें. उन दिनों यह फिल्मी गीत भी टौप टैन में खूब हिट जा रहा था, ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा जैसे खिलता गुलाब, जैसे शायर का ख्वाब, जैसे उजली किरण, जैसे वन में हिरण, जैसे…’ गाने के अनुरूप ही भैया सरीखे बांके सजीले नौजवान के लिए लड़कियों की तरहतरह की वैरायटी उपलब्ध थी. अखबारों के जरिए हर हफ्ते दर्जनों लड़कियों के फोटो पहुंचते थे उन के पास. कई रिश्ते जानपहचान वाले सुझाते. 3-4 मैरिज ब्यूरो दलाल भी अच्छी रुचि ले रहे थे.

सभी ने हाथ जोड़ लिए कि भैया, अब तो तौबा कर लो. महंगाई बढ़ती जा रही है, शादी कर लो. चाचाजी दिल के मरीज थे. चाहते थे कि मरने से पहले घर में पोता खेलता हुआ देख लूं. रजत भैया घर के कुलदीपक थे. वे वहम और कन्फ्यूजन की चरम स्थिति पर पहुंच गए थे. रजत भैया को लगता था कि हर लड़की एक दूसरी से बढ़ कर है. कुछ था जो उन्हें दूसरी, तीसरी, चौथी, 5वीं लड़की देखने को मजबूर कर रहा था. जब भी रिश्ते की बात उठती, लड़की के परिवार को ले कर मीनमेख निकाले जाते. हर कोई कहता, ‘‘भाई रजत, तुम पहले लड़की देख आओ, शायद पसंद आ जाए, परिवार को बाद में देख लेंगे.’’

‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लग, जैसे खिलता गुलाब…’ यह कमबख्त गाना ही ऐसा था जिस से प्रेरित हो कर रजत भैया हर लड़की को देख कर अजीब सा महसूस करते. कुछ लड़कियां जरूर उन्हें इस गाने की नायिका सरीखी लगीं. सुंदर, सुशील व भरीपूरी. रजत भैया हां कर देते मगर तेजतर्रार चाचीजी बीच में टांग अड़ा देतीं, ‘‘लड़की का पिता एक छोटे से दफ्तर में सुपरिंटैंडैंट है, क्या खाक ढंग से शादी करेगा. नाक कटवा देगा बिरादरी में.’’ कहीं धनी पिता मिल जाता तो जन्मपत्री का अडं़गा आ जाता.

खैर, रजत भैया को कौन सी जल्दी थी. वे उसी निरापद भाव से हफ्ते में 2-3 लड़कियां देख ही आते. उन की शिकायत भी अपनी जगह सही लगती. वे कहते, ‘बिट्टू यार, लड़कियों के मांबाप अब बहुत चंट हो गए हैं. बताते कुछ हैं, निकलता कुछ और है. कहते हैं, पहले लड़की देख लो, यह नहीं बताते कि लड़की को दहेज में नकदनामा क्या देंगे. कितना पैसा खर्च करेंगे शादी में. कहते हैं कि लड़की का मामा आईएएस है, होगा भाई, हमें क्या. सिर्फ लड़की थोड़ा देखने जाता हूं मैं. लड़कियां तो सभी एकजैसी होती हैं. और क्या विशेषताएं हैं, यह देखना पड़ता है.’’

भैया की लड़की देखने की रस्मों में हम भी उन के साथ लपक लेते. कुछ लड़कियां उन्हें मुगल गार्डन, रोज गार्डन व लेक पर मिलवाई जातीं. मांबाप किसी बहाने इधरउधर खिसक लेते. पीछे रह जाते रजत भैया और होने वाली भाभी. क्या गजब का रोमांटिक सीन होता. एक अजनबी हसीना, दिलकश शाम, सुरमयी मौसम, जुल्फों की घनेरी घटाएं, झील का किनारा, दूर तक फैली सपनों की हसीन दुनिया, 2 धड़कते हुए दिल. पता नहीं, दोबारा मुलाकात हो न हो. झील के ठहरे हुए पानी में चप्पू चलाते हुए रजत भैया खुद को शहजादे सलीम से कम नहीं समझते थे. उन का दिल यही करता था कि नित नई लड़की के साथ घूमाघूमी व अस्थायी संयोग का यह हसीन सिलसिला अनंतकाल तक चलता रहे.

शादी का क्या है, करोड़ों लोगों को विवाह की बलिवेदी पर चढ़ कर सारी उम्र दुख भोगना पड़ता है. लड़कियां देखते रहने का यह सुनहरा युग बेहद रोमांचक व आनंदमयी था. सकुचाई, शरमाई, घबराई लड़की उमराव जा या अनारकली से कम नहीं लगती थी. अगले दिन भैया फिर किसी दूसरी छुईमुई सी, सजीसंवरी, प्रफुल्लित दुलहन को देखने किसी फाइवस्टार होटल में विराजते. खूब चमकदमक वाली बातें होतीं. आखिर बड़े सरकारी संस्थान में इंजीनियर की शादी का प्रश्न था यह. कहते भी हैं कि आशिक का जनाजा है, जरा धूम से निकले. चाचाजी सुंदर, सुशील व ऊंचे घराने की बहू चाहते थे. मगर भैया की पसंद सर्वप्रथम थी. लिहाजा, लड़कियां देखते जाने का यह सिलसिला वर्षों से जारी था. खैर, वे लोग लड़की को भैया के पहलू में बिठा कर खिसक लेते. शायर कहता है, ‘डूबने वाला था और साहिल पे चेहरों का हुजूम, पल की मोहलत थी मैं किस को आंख भर कर देखता.’ थोड़े से समय में एक हरीभरी व भरपूर उठान वाली जवान लड़की को रजत भैया कैसे देख पाते, भला. अगले दिन लड़की के घर जा कर उन की फिर मुलाकात करवानी पड़ती. युवा लड़की और अधेड़ होते जा रहे रजत भैया एकदूसरे में कुछ और ढूंढ़ रहे थे. बेचारे मांबाप किसी और ही सोच में रहते थे.

खैर, जैसे सभी खूबसूरत सिलसिलों का नसीब होता है, लंबे समय तक रजत भैया का यह सुरमयी सिलसिला नहीं चल पाया. हमारे बड़े से कुनबे के वरिष्ठ जीजाजी रजत भैया के कौतुक को देखदेख कर कुढ़ रहे थे. वे अपने जमाने के ऊंचे व कामयाब खिलाड़ी थे. अपनी शादी के लिए लड़कियां देखने के मामले में उन्होंने भी खूब झक मारी थी. लगभग सभी घाटों का पानी पिया था. उन्हें चिंता हुई कि इस तरह उन के सालेश्री यानी रजत भैया कुंआरे ही न रह जाएं, जो वे कतई नहीं चाहते थे. यों हर हफ्ते नई लड़की देखने का सुख रजत भैया लूटते जा रहे थे, जीजाजी से वह सहन नहीं हो रहा था.

जीजाजी की वास्तविक जलन के पीछे एक कारण और भी था. जीजाजी व बड़ी दीदी सुहासनी की शादी जल्दी फाइनल करवाने में रजत भैया ने सकारात्मक भूमिका निभाई थी. जीजाश्री इसी बात का अब बदला लेना चाहते थे. आखिरकार उन्होंने रजत भैया को अपनी रिश्तेदारी में फांस ही लिया. इत्तफाक से उसी शहर में भैया की 1 माह की टे्रनिंग थी जहां जीजाश्री का कुनबा रहता था. भैया की मूर्खता देखिए कि वे होने वाले ससुर के घर ही टिके. शेर को पिंजरे में कैद कर दिया गया. इस बार भैया ने लड़की को कुछ ज्यादा ही करीब से देख डाला. चतुर सुजान व चंटचालाक कौआ उत्सुकतावश गंदगी में ही चोंच मारता है. भैया समझते थे कि हर झाड़ी में खरगोश ही होते हैं मगर उन्हें मालूम न था कि कुछ झाडि़यों में सांप भी होते हैं. अब उन्हें पता चला कि सपेरा सांप के काटने से क्यों मरता है या घर बरसात में ही क्यों जलते हैं.

उस खुशकिस्मत लड़की को जीजाश्री, द ग्रेट, ने ऐसी पट्टी पढ़ाई थी कि वह तनमनधन से रजत भैया की दीवानी हो गई. महीनाभर भैया उस मायावी विषकन्या के उन्मुक्त प्रेम के गहरे सागर में डुबकी लगाते रहे. चाचाचाची तो पहले ही हां कर चुके थे, रजत भैया की हां क्या हुई कि समझो गई भैंस पानी में.उस के बाद लड़कियां देखने का रजत भैया का सिलसिला टूट गया. कितने ऊंचे ख्वाब देखे थे भैया ने. सबकुछ भूल जाना पड़ा. उन्हें शादी के बंधन में बेरहमी से जकड़ दिया गया. वे विवाह मंडप में अंतिम फेरे तक भागने की कोशिश में रस्सियां तुड़ा ते फिरे मगर अब भागना आसान नहीं था. उन्हें जकड़ा गया और उन की नकेल बुजुर्ग समान चुस्त भाभी के झुर्रियों वाले हाथों में थमा दी गई. अब भैया की उम्र 55 थी तो भाभी 50 से ऊपर तो थीं ही. भाभी हंसतीं तो गालों में गड्ढे पड़ने के बजाय झुर्रियां नजर आतीं. रजत भैया की हालत ऐसी थी जैसे हारा हुआ पोरस सिकंदर के सामने पेश किया जा रहा हो. ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा…’ अब यह गीत सुन कर रजत भैया डिप्रैशन की हद तक उदास हो कर पुरानी दर्दभरी यादों में खो जाते हैं.

आजकल उन्हें अपने होनहार भतीजे यानी हमारे वली अहद, बेटे से जलन होती है जो अपने ग्रेट ताऊ यानी रजत भैया की तरह लड़की देखने के लिए खाक छानने में लगे हैं. भैया जलते थे हमारे बेटे से जो हर रोज नित नई लड़की देखदेख कर धन्यधन्य हो रहा था. ऐसी लड़कियां जिन्हें हिंदी के रसप्रिय, कुंठित व विद्रोही कवियों ने कमसिन, मोहिनी, गजगामिनी आदि उपमाओं से नवाजा हुआ है.

यही सच है

coronavirus : बर्बादी की कगार पर फूड इंडस्ट्री 

दिल्ली-एनसीआर से पूना, बंगलूरू, चेन्नई आदि जगहों पर पनीर और घी भेजने का कारोबार करने वाले छोटे व्यवसाई कोरोना लॉक डाउन की वजह से बर्बाद बैठे हैं.छोटे-छोटे होटल और रेस्टोरेंट चलाने वाले लोगों की चिंता बढ़ने लगी है. यहां काम करने वाले लगभग सारे कर्मचारी लॉक डाउन के चलते अपने अपने गाँव-कस्बों को लौट चुके हैं. लॉक डाउन ख़तम होने के बाद वापस लौटेंगे या नहीं कोई नहीं जानता.एक अनुमान के अनुसार लॉक डाउन यदि लंबा खींचता है तो पचास फ़ीसदी रेस्टोरेंट बंद हो जाएंगे और कई लाख लोगों का रोज़गार छिन जाएगा.इसका सीधा असर फूड डिलिवरी कारोबार पर पडेगा क्योंकि फूड डिलिवरी का कारोबार पूरी तरह से रेस्टोरेंट पर निर्भर है. रेस्टोरेंट्स के बंद होने की वजह से यह कारोबार भी बैठ जाएगा.

 

कोरोना ने पूरी दुनिया के कारोबार को चौपट कर दिया है. भारत में कोरोना वायरस की वजह से कई सेक्टर पूरी तरह से तबाह होने की कागार पर हैं.इसका सबसे ज्यादा असर फूड और ट्रैवल इंडस्ट्री पर पड़ा है.एक अनुमान के अनुसार इस साल फ़ूड इंडस्ट्री को 80 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है. इतना ही नहीं अगर लॉकडाउन लबां चला तो देश के 50 फीसदी रेस्टोरेंट हमेशा के लिए बंद हो सकते हैं क्योंकि आर्थिक नुक्सान से उबार पाना उनके बस में नहीं हैं.

 

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लॉकडाउन से ऑनलाइन फूड डिलिवरी करने वाली कंपनियों का काम भी बहुत कम हो गया है. फूड डिलिवरी चेन जोमैटो और स्विग्गी का कारोबार घटकर 10 फीसदी पर आ गया है। नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया का अनुमान है कि कोरोना की वजह से उसके 5 लाख सदस्यों को साल 2020 में 80 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है. रेस्टोरेंट सेक्टर में करीब 73 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है और एसोसिएशन का अनुमान है कि शुरुआती दौर में ही करीब 15 लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे.एसोसिएशन ने मकान मालिकों, मॉल आदि के मालिकों से अनुरोध किया है कि वे जून तक रेस्टोरेंट ओनर से किराया और मेंंटेनेन्स चार्ज न मांगे.

 

गौरतलब है कि चीन में कोरोना के बाद जब बाजार खुले हैं तो वहां रेस्टोरेंट का कारोबार पहले के मुकाबले एक-तिहाई से भी कम रह गया है.चीन के इस आंकड़े को देख भारत की स्थिति के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है.दिल्ली, मुंबई, पूना, हैदराबाद जैसी जगहों पर ढाबे वाले, रेहड़ी वाले जिन पर मजदूर और कामकाजी वर्ग अपने दोनों वक़्त के खाने के लिए निर्भर हैं, लॉक डाउन के बाद कब तक वापस लौटेंगे कहा नहीं जा सकता है.ऐसे में इनको प्रतिदिन लाखों का फ़ूड मेटेरियल सप्लाई करने वालों का धंधा भी चौपट होता नज़र आ रहा है. कोरोना के बाद जब बाजार खुलेंगे उसके बाद रेस्टोरेंट और स्ट्रीट फ़ूड कारोबार का क्या हाल रहेगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है.

 

 

#lockdown: लेफ्ट ओवर रेसिपीज ट्वीस्ट दें खाने को

लौकडाउन की वजह से घर में सभी बंद हो कर बैठे हैं. नौकरीपेशा लोग वर्क ऐट होम कर रहे हैं. बच्चे भी जैसेतैसे अपनी पढ़ाई में जुटे हैं. एक हाउसवाइफ हैं जो पहले की तरह अपने काम में जुटी हैं. घर की देखभाल, खानेपीने की व्यवस्था, सब की जरूरतों का ध्यान पहले की तरह ही करना उस की जिम्मेदारी है. एक तरह से कहें तो उस की जिम्मेदारी दोहरी हो गई है.

बच्चे तो बच्चे बड़े भी रोजरोज एक सा खाना खाखा कर तंग आ जाते हैं. आज के माहौल में जब जरूरत की चीजें सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं, रेस्तरा, हलवाई की दुकानें, फूड आउटलेट बंद हैं तो खानेपीने की चीजों के औप्शन भी कम हैं.

घर में बैठेबैठे नईनई डिश बनाने के लिए सोचा भी जाए तो सारा सामान घर में उपलब्ध नहीं होता, न ही बाहर जाना संभव है.

चलिए हाउसवाइफ्स  की इस समस्या का हल हम निकालते हैं. खाना तो आप रोज बना ही रही हैं. ऐसा तो है नहीं कि बनाया हुआ खाना एक बार में ही खत्म हो जाता है. अकसर बच जाता है. तब दोबारा वही खाने में सभी मुंह बनाते हैं. लीजिए बची हुई चीजों से नई डिश बनाएं और खुश कर दें घरवालों को.

बची रोटी की चटपटी भेल:

सामग्री: कुछ बची रोटियां, 2 पिसे टमाटर, 2 पिसी हरी मिर्च, 1-1 चम्मच लाल मिर्च पाउडर और हलदी पाउडर, 1 चम्मच राई, 5-6 लहसुन की कलियां, 3-4 चम्मच तेल, थोड़े करी पŸो.

विधि: कड़ाही में तेल गरम होने पर राई, कटा लहसुन, करी पŸो डालें. अब इस में पिसा टमाटर, हरी मिर्च, नमक, हलदी, लाल मिर्च अच्छी तरह से मिला लें. आधी कटोरी पानी डाल कर उबाल आने दें.

अब बची रोटियों के एक ही साइज के लंबेलंबे टुकड़े चाकू से काट कर कडाही में डालें. मिक्स करें ताकि मसाला रोटियों पर अच्छी तरह से लग जाए. यदि हरा धनिया घर में है तो ऊपर से बुरक दें.

बच्चे बड़े शौक से खाएंगे और रोटियां भी वेस्ट नहीं गईं.

बचे पके चावल के अप्पेः

सामग्री: 1 कप चावल, 1/2 कप सूजी, 1 प्याज, 1 टमाटर, 1 छोटी गाजर, 1 इंज अदरक कटी हुई, 1 चुटकी बेकिंग सोडा, 2-3 हरी मिर्चें, स्वादानुसार नमक, लाल मिर्च पाउडर.

विधि: चावल को पिस कर उस में सभी सब्जियां बारीक काट कर, नमक व लाल मिर्च डाल कर 15 मिनट के लिए रख देने के बाद सोडा डाल कर मिला लंे.

अप्पे पैन को गरम कर के तेल से थोड़ा चिकना कर लें और सांचे में चावल का तैयार पेस्ट चम्मच से डालें. दोनों तरफ से 2-2 मिनट सेंक लें. तैयार हैं अप्पे गरमागरम.

बची कढ़ी की इडली:

सामग्री: 1 बाउल बनी हुई कढ़ी, 1 कप सूजी, 1/2 कप दही, 1/2 चम्मच हलदी पाउडर, 1 चम्मच ईनो पाउडर, स्वादानुसार नमक.

विधि: कढ़ी में अगर पकौड़े हैं तो उन्हें मैश कर लें और सूजी व दही मिला कर अच्छी तरह मिक्स करें. अब इस में नमक, हलदी, ईनो पाउडर भी डाल दें.

इडली स्टैंड के सांचों को तेल से चिकना करें और एकएक चम्मच बैटर उन में डाल दें और 7-8 मिनट पकने दें.

स्वादिष्ट इटली तैयार है. सुबह नाश्ते में खाएं.

बचे बिस्कुट का शेक:

सामग्री: कुछ बचे मिक्स बिस्कुट, 1 चम्मच कोको पाउडर, 1 गिलास दूध, चीनी स्वादानुसार.

विधि: मिक्सर में बिस्कुट को छोटाछोटा तोड़ कर डालें. बाकी सब सामग्री में डाल कर ग्राइंड कर दें. गिलास में ऊपर से ड्राई फ्रूट्स, क्रीम या घर में चाकलेट रखी है तो उसे कद्दूकस कर ऊपर से डाल कर दे सकते हैं.

दाल पाव भाजीः

सामग्री: बची दाल 1 बाउल, कुछ मनपसंद सब्जियां, 1 बड़ा चम्मच अदरक लहसुन पेस्ट, 1 चम्मच पाव भाजी मसाला, स्वादानुसार मक्खन.

विधि: सभी सब्जियों को उबाल कर मैश कर लें. बची हुई दाल को गरम करें, उस में अदरकलहसुन पेस्ट डालें और मैश की सब्जियां भी डालें और गाढ़ा होने तक चलाते रहें. अब पाव भाजी मसाला मिलाएं. मक्खन ज्यादा कम जैसा पसंद करते हैं ऊपर से डालें. लीजिए तैयार है दाल पाव भाजी. ब्रेड, पाव किसी के भी साथ खाएं. VG

क्यों, फिर कैसी लगी ये लेफ्ट ओवर रेसिपीज. आप की कुछ प्रौब्लम तो हल हो जाएगी. बस, फिर आज ही अपनाएं ये रेसिपीज.

#coronavirus: लॉक डाउन में गिरा अपराध का ग्राफ

कोरोना के कारण हुए लॉक डाउन ने चोर-उचक्कों को बदहाली और भुखमरी की कगार पर ला खड़ा किया है. जब हर आदमी अपने घर में है और सड़कों पर दिन-रात पुलिस टहल रही है तो चोरों का बिज़नेस ठप्प होना निश्चित ही है.कोरोना के आने से पहले करोल बाग़ मेट्रो स्टेशन के नीचे बने पब्लिक टॉयलेट की टंकी में हर दिन दस से पंद्रह पर्स पड़े मिलते थे, अब एक भी नहीं मिलता. दरअसल करोल बाग़ मार्किट काफी गुलज़ार रहता था। तिल धरने की जगह नहीं होती थी. कपड़ों, जूतों, आर्टिफीसियल ज्वेलरी और खाने पीने के स्टाल्स पर पब्लिक टूटी पड़ी रहती थी.इनके बीच ही उचक्के अपना काम करते थे.

किसी का पर्स उड़ा लिया, किसी की पॉकेट मार ली.और फिर सीसीटीवी कैमरे के डर से पब्लिक टॉयलेट में घुस कर उसमे से पैसे निकाल कर खाली पर्स वहीँ टंकियों में डाल जाते थे. मगर अब लॉक डाउन ने इनका धंधा पूरी तरह चौपट कर दिया है। मार्किट सुनसान पड़ा है और सड़क पर पुलिस का पहरा है.ये तो महज़ एक जगह का किस्सा भर है. देश भर में लागू लॉकडाउन के बीच अपराध का ग्राफ तेज़ी से गिरने की खबरें आ रही हैं.राज्‍यों के पुलिस विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक उत्‍तर प्रदेश, महाराष्‍ट्र, राजस्‍थान, कर्नाटक समेत कई राज्‍यों में आपराधिक घटनाओं में भारी कमी आई है.

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हालांकि, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्‍यूरो ने अभी इसको लेकर कोई आंकडा जारी नहीं किया है, लेकिन राज्‍यों के पुलिस विभाग से मिली जानकारी के आधार पर उत्‍तर प्रदेश, महाराष्‍ट्र, राजस्‍थान, कर्नाटक समेत कई राज्‍यों में आपराधिक घटनाओं में काफी कमी आ चुकी है. पुलिस का कहना है कि सड़क पर सीआरपीएफ की टुकड़ियां तैनात हैं. जगह-जगह पुलिस की गाड़ियां घूम रही हैं। ऐसे में अपराधी वर्ग की हिम्मत नहीं है कि कोई बाहर निकल भी आये.इस बीच गाड़ियों की चोरी की वारदातें भी लगभग थम गई हैं. वहीँ अपराधियों में भी संक्रमण का खौफ है. इसलिए वे बाहर नहीं निकल रहे हैं. अधिकाँश तो अपने घरों को पलायन कर गए हैं. इसलिए भी अपराध थम गए हैं.कुछ जगहों पर थानों में लॉकडाउन उल्‍लंघन के मामले ही दर्ज किए गए हैं.इसमें धारा-144 का उल्लंघन के साथ ही महामारी अधिनियम के मामले शामिल हैं.इस दौरान हत्या, अपहरण, चोरी-डकैती, लूटपाट, छीना-झपटी में जबरदस्‍त कमी आई है.

दिल्‍ली में घटे अपराध

राष्‍ट्रीय राजधानी की बात करें तो दिल्‍ली-एनसीआर में लॉकडाउन के दौरान आपराधिक वारदातों में जबरदस्‍त गिरावट दर्ज की गई है. दिल्‍ली पुलिस की वेबसाइट बताती है कि इस दौरान घृणित अपराधों की श्रेणी में आने वाला एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ है. सरकारी कामकाज में रुकावट डालने को लेकर ही कुछ मामले दर्ज किए गए है.

यूपी में 99 फीसदी गिरावट

उत्‍तर प्रदेश में भी अपराधियों पर लॉक डाउन का असर साफ दिख रहा है। प्रदेश में लूट, रेप, हत्‍या और डकैती जैसे अपराधों में 99 फीसदी गिरावट आई है. जबकि कोरोना की दस्तक से पहले यूपी में हर दिन महिलाओं के साथ हिंसा, बलात्कार आदि के औसतन 162 मामले दर्ज होते थे. यूपी पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 के पहले 6 महीने में यूपी में 19,761 आपराधिक मामले दर्ज़ हुए थे. इनमें हत्‍या के 1,088, रेप के 1,224, शारीरिक शोषण के 4,883, अपहरण के 5,282, छेडछाड के 293 और घरेलू हिंसा के 6,991 मामले शामिल थे, वहीं, लॉकडाउन के दौरान अब तक यूपी पुलिस ने 3,710 मामले ही दर्ज किए हैं और ये सभी मामले लॉकडाउन उल्‍लंघन से जुडे हुए हैं. इनमें कुछ मामले कालाबाजारी के भी हैं। मुजफ्फनगर में इस बीच गोलीबारी की एक वारदात हुई है.

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महाराष्‍ट्र में लॉकडाउन का असर

महाराष्‍ट्र पुलिस के मुताबिक़ आपराधिक घटनाओं पर लॉकडाउन का असर साफ नजर आ रहा है. इस दौरान राज्‍य में गंभीर और अति-गंभीर श्रेणी के अपराध बंद हो गए हैं. वाहन चोरी की कोई घटना दर्ज नहीं हुई है, वहीँ महिलाओं के प्रति अपराध में भी 99 फ़ीसदी की कमी देखी जा रही है. कोरोना को ले कर मुंबई हाई अलर्ट पर है. हर जगह नाकाबंदी है.पहले जहां रोज चोरी, मारपीट, रेप के मामले दर्ज होते थे, वहीं, अब इस तरह का एक भी मामला दर्ज नहीं हो रहा है. छिटपुट वारदातों को छोडकर अपराधों में जबरदस्‍त कमी आई है. मुंबई में धारा-188 के तहत दर्ज मामलों में 280 से ज्‍यादा लोग गिरफ्तार किए गए हैं.वहीं, 25 से ज्‍यादा लोगों को नोटिस देकर छोड दिया गया है. इसके अलावा 20 से ज्‍यादा आरोपियों की तलाश जारी है.पुलिस का मानना है कि अधिकाँश छोटे अपराधी कोरोना और लॉक डाउन के चलते अपने गाँव-कस्बों को लौट गए हैं, इसकी वजह से भी अपराध रुक गए हैं.

राजस्‍थान में अपराध 75 फीसदी कम

राजस्‍थान के 850 थानों में दर्ज मामलों की संख्‍या के आधार पर साफ है कि अपराध में 75 फीसदी कमी आई है. राजस्थान पुलिस के इतिहास में यह अब तक का सबसे कम आंकडा है. हालांकि, राजस्‍थान में भी लॉकडाउन के उल्‍लंघन के काफी मामले दर्ज किए गए हैं. 3,500 से ज्‍यादा लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है. राज्‍य में 22 मार्च से लेकर आज तक कुल 1,750 मामले दर्ज हुए हैं, जबकि इस महीने के पहले सप्ताह में ही 6,000 से ज्‍यादा मामले दर्ज किए गए थे. राज्य के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध) बीएल सोनी के मुताबिक अपराधों का ग्राफ नीचे गिरा है.

झारखंड में लॉकडाउन उल्‍लंघन के केस ज्‍यादा

झारखंड में लॉकडाउन के बाद और पहले के एक हफ्ते के अपराध के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो काफी अंतर आया है.हत्या, अपहरण, चोरी-डकैती, लूटपाट, छीना-झपटी में बहुत कमी आई है. राजधानी में ही लॉकडाउन के एक सप्ताह पहले इस तरह के 18 मामले दर्ज किए गए.वहीं, लॉकडाउन के बाद ऐसे अपराधों की संख्या शून्य है.

पश्चिम बंगाल में अपराध आधे हुए

पश्चिम बंगाल में लॉक डाउन के दौरान अपराध के मामले लगभग आधे हो गए हैं. राज्‍य में डकैती और छेड़छाड़ जैसे मामलों में भारी गिरावट है.छीना-झपटी, चेन-खींचने, पॉकेट चोरी जैसे मामले शून्य हैं. बीते 11 दिनों में विभिन्न पुलिस थानों में दर्ज मामलों की संख्या 300 से अधिक नहीं है जबकि जनवरी और फरवरी में करीब 600 मामले दर्ज किए गए थे.

कर्नाटक में सड़क हादसों में कमी

पश्चिम बंगाल पुलिस के मुताबिक, कर्नाटक में अपराध में कमी देखने को मिली यही. रोड एक्सीडेंट में होने वाली मौतों में भी गिरावट आई है. ट्रैफिक पुलिस डाटा के मुताबिक, मार्च 2019 में रोड एक्सीडेंट में 82 लोग मारे गए थे, जबकि इस साल मार्च में 52 मामले ही आये हैं.लॉकडाउन के बाद सड़कों पर वाहनों में भी भारी कमी है.ज्यादातर लोगों की मौत लापरवाही और अनदेखी से होती है.वहीं, चेन खींचने के सिर्फ बेंगलुरु में ही मार्च, 2019 में 24 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि इस बार एक भी नहीं हैं.

हरियाणा, पंजाब, गुजरात, समेत तमाम राज्‍यों में अपराध का ग्राफ नीचे गिरा है.हालांकि बिहार में अपराधियों की कारगुज़ारियों में कुछ ख़ास कमी नहीं आयी है.वहां लॉक डाउन के बीच भी गोलीबारी की कई घटनाएं हुई हैं.

कोरोना सकंट: तब्लीगी जमात ने बढ़ाई देश भर में चिंता और चुनौती

जब पूरी दुनिया में कोरोना ने कोहराम मचा रखा है,  ऐसे में दिल्ली के निजामुद्दीन में तब्लीगी जमात के मरकज में 67 देशों से आए हजारों लोगों में बहुत से कोरोना संक्रमितों के मिलने से देशभर में हड़कंप मच गया है. इस इलाके के हजारों लोगों की जान पर बन आई है.  मरकज में शामिल होने आए हजारों लोगों ने लॉकडाउन की धज्जियाँ उड़ाते हुए इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया और फिर देश में.

जमाती बने इंसानियत के दुश्मन

इन लोगों से बड़ी मुश्किल से मरकज को खाली करवाया गया. लेकिन तब तक काफी सारे लोग वहां से निकल कर देश के अन्य हिस्सों में फैल चुके थे और अधिकतर लोगों को कोरोना से संक्रमित कर चुके थे. जब देश में इनकी धरपकड़ शुरू हुई तो कई जगह से ये कोरोना ग्रस्त लोग मिले.  दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात ने हजारों की संख्या में इकट्ठा होकर देश भर में कोरोना के मामले बढ़ा कर सरकार को सख्ते में डाल दिया है. इन्होंने देश के कोने कोने में एक बार फिर कोरोना का खौफ बढ़ा दिया है और डॉक्टरों के साथ साथ पुलिस वालों के साथ भी अभद्र व बुरा व्यवहार कर रहे हैं. यहां तक कि ये विकृत मानसिकता के लोग नर्सिंग स्टाफ के सामने ही कपड़े बदलते हैं और उन पर थूकते हैं.

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धर्म बना कोरोना का संवाहक

जमात एक ऐसा संगठन है जो देश दुनिया में लोगों को इस्लाम के बारे में बताता है. इसके करीब 51 करोड़ सदस्य हैं. जमात का अपना एक अमीर यानी अध्यक्ष होता है, जिसके कहे अनुसार सब चलते हैं. दुनिया भर के लोग यहां इक्कट्ठा होते हैं और फिर धर्म के प्रचार प्रसार के लिए   निकलते हैं. हर समूह में 10-15 जमाती होते हैं. चिंता कि बात यह है कि मरकज में शामिल लोग उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल सहित देश के कई राज्यों में पहुंच चुके हैं. अब प्रशासन इनकी तलाश में जुटा है और अधिकतर  को पुलिस द्वारा छापेमारी के दौरान पकड़ कर क्वारंटीन किया गया है. इतनी बड़ी संख्या में मरकज से संक्रमितों के पाए जाने के बाद ये जानना जरूरी है कि तब्लीगी जमात में शामिल लोग कहां-कहां से दिल्ली पहुंचे थे.

लॉकडाउन की उड़ी धज्जियां

देश में तब्लीगी जमात का हेडक्वार्टर दिल्ली में हजरत निजामुद्दीन दरगाह के पास मरकज के नाम से जाना जाता है. यहां कुछ समय से तब्लीगी जमात के लोग जुटते रहे और धार्मिक कार्यक्रम (जलसा) भी हुआ. कोरोना वायरस संकट के बीच अब जमात चर्चा में है और सवाल उठ रहे हैं कि कानून की धज्जियां उड़ाते हुए इसने जलसे का आयोजन आखिर किया कैसे? लॉकडाउन और धारा 144 के बीच कैसे यहां इतनी भीड़ जुटी?

दिल्ली पुलिस की ढिलाई

दिल्ली पुलिस ने मरकज के लोगों से बातचीत का 23 तारिख का वीडियो जारी किया है. इसके पहले 21 तारीख को राज्यों को एडवाइजरी भेज कर आगाह किया था.

खुफ़िया विभाग की चूक

निजामुद्दीन मरकज में पर्यटन वीजा पर पहुंचे विदेशियों की केंद्र और राज्यों के खुफिया विभाग ने पुख्ता जानकारी नहीं ली. सरकारों की खुफिया एजेंसी और प्रशासन ने साझा अभियान नहीं चलाया और न ही इन पर कोई कानूनी कार्यवाही की.

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सुस्त प्रतिक्रिया

घोर आपराधिक लापरवाही की जानकारी के बाद भी  इनकी बातों पर भरोसा किया गया. इन्होंने  उन्होंने हुए कार्यक्रम के बाद हजार से ज्यादा लोगों को क्वारन्टीन किया गया है. जब मामला गम्भीर हुआ तब जाकर सुरक्षा एजेंसियों की नीद खुली और उन्होंने हाथपांव मारने शुरू किए. यहां तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को उन्हें मनाने मरकज जाना पड़ा.

सवाल उठता है कि देश संविधान से चलेगा या फतवों से? गहन संकट के इस दौर में धर्मिक और क्षेत्रीय संकीर्णता भी भारी पड़ रही है.

फिलहाल यह कहना कठिन है कि 2 सप्ताह बाद क्या हालात बनेंगे, लेकिन मानकर चला जाए कि 14 अप्रैल के बाद सब कुछ पहले जैसा ही हो जाएगा.

Coronavirus Lockdown: ताली-थाली से दिए की लाली तक, क्या दूर हो पाएगी बेहाली अब?

जब से कोरोना वैश्विक महामारी  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित हुई है, तब से वे 3 बार राष्ट्र के नाम संदेश दे चुके हैं. जनता को प्रधानमंत्री से हर बार की तरह इस बार भी काफी उम्मीदें थीं कि वे गरीबों के लिए कोई राहत देंगे, लोगों के दुखदर्द कम करेंगे, आर्थिक तंगी से जूझ रही कंपनियों को उबारेंगे, कोरोना वायरस या लॉक डाउन से आई मंदी को ले कर कुछ कहेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ.

मोदी जी का अचूक फार्मूला…

उन्होंने कोरोना वायरस को मारने का अचूक फार्मूला बताया कि 5 अप्रैल को 9 मिनट दीजिए. पहले रात 9 बजे 9 मिनट घर की सभी लाइटें बंद कर अंधेरा करो, फिर मोमबत्ती, दीया, टॉर्च या मोबाइल की फ्लश लाइट घर की बालकनी में जलाएं.

इतना ही नहीं, उन्होंने सोशल डिस्टेंस को ले कर कहा, किसी को भी कहीं भी इकट्ठा नहीं होना है. सभी सिर्फ अपने दरवाजे पर खड़े हो कर मोमबत्ती, दीया, टॉर्च या मोबाइल की फ्लश जलाएं.

ऐसा लगता है कि अंधेरा करने से वायरस नहीं दिखेगा तो उस की आंखें फैल जाएंगी. फिर कुछ देर तक तेज दीए या मोबाइल फोन की फ्लश जला दो. इस रोशनी से कोरोना भाग जाएगा.

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सकंट की घड़ी में तमाशा…

यह तो नहीं पता कि इस से कोरोना भागेगा, पर यह क्या तमाशा है कि पहले खुद ही तालीथाली बजाओ, खुद ही अंधेरा करो, खुद ही रोशनी जलाओ. और बेवकूफी भरी हरकत पर गर्व भी करो.

यह तो बेवकूफ बनाने वाली बात है. ऐसा लगता है कि मोदी लोगों को नचा रहे हैं और हम लोग नाच भी रहे हैं देश की एकता के नाम पर.

अगर वे कल को कहेंगे कि इसी आग से अपना घर फूंक लो, क्या आप अपना घर भी फूंक लेंगे? न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी वाली बात हो गई और समस्या ही खत्म. और अंधभक्त ऐसा करने भी लगें तो हैरानी नहीं.

वहीं सोशल मीडिया पर भी इस तरह के तमाम मीम बन रहे हैं.  लोग कह रहे हैं कि पहले थाली बजाने से वायरस बहरा हो गया, अब लाइट बुझाने से अंधा हो जाएगा.

कांग्रेस की प्रतिक्रिया

कांग्रेस सांसद शशि थरूर इस बारे में कह रहे हैं कि आज फिर प्रधान शोमैन को सुना. लोगों के दुख, आर्थिक चोट के बारे में कुछ नहीं कहा गया. लॉक डाउन के बाद क्या होगा, इस पर कुछ नहीं कहा गया. वहीं कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल भी अपने ट्वीट पर लिख रहे हैं, ‘इन मसलों पर सरकार के कदम सुनने को नहीं मिले, वायरस को रोकना-टेस्टिंग किट्स-गरीबों को खाना मुहैया कराना, मजदूरों को आर्थिक मदद करना वगैरह. दीया किसी मकसद से जलाएं, अंधविश्वास के लिए नहीं.

पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम भी कह रहे हैं कि ‘हम आप की बात सुनेंगे और 5 अप्रैल को रात 9 बजे दीया जलाएंगे. लेकिन इस के बदले में आप भी तो अर्थशास्त्रियों की बात सुनें. हमें उम्मीद थी कि आप गरीबों के लिए राहत पैकेज का ऐलान करते, कारोबार को फिर से पटरी पर लाने की बात करते, जिन्हें निर्मला सीतारमण अपने भाषण में भूल गई थीं.

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हर किसी को मदद की जरूरत…

पी. चिदंबरम ने यह भी लिखा कि काम करने वाला हर व्यक्ति, चाहे बिजनेस के क्षेत्र से हो या फिर दिहाड़ी मजदूर, उसे मदद की जरूरत है और आर्थिक शक्ति को रीस्टार्ट करने की जरूरत है. संकेत दिखाना जरूरी है, लेकिन सख्त फैसले लेना भी जरूरी है.

अभी तो एकतरफ के बोल ही सुनने मिले हैं. लेकिन बोल तो कई निकलेंगे, पर दीए जला कर कोरोना को मारने का अचूक उपाय क्या इस से नजात दिलाएगा?  क्या इस तरह से कोरोना के खिलाफ जंग जीती जा सकती है? कोरोना को हराया जा सकता है? आम लोगों में चाहे कारोबारी हो या कामगार की दिक्कतें कम हो सकती हैं, कदापि नहीं. सिवा जनता को बरगलाने के.

गंदे कमेंट से परेशान रश्मि देसाई ने ‘sidnaaz’ के फैंस को किया ब्लॉक, दिया ये बयान

रश्मि देसाई को इन दिनों काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, जहां एक तरफ वह अपने परिवार वालों के बीच प्यार बांटने की कोशिश कर रही हैं वहीं दूसरी तरफ sidnaaz के फैंस की तकरार भी झेलनी पड़ रही है. रश्मि देसाई ने अपने फैंस को बताया है कि सिदार्थ शुक्ला और शहनाज के फैंस उन्हें लगातार ट्रोल कर रहे हैं.

आगे रश्मि ने बताया ट्रोलर्स उन्हें इतना ज्यादा परेशान करने लगे थे. गंदे-गंदे कमेंट्स कर रहे थे. जिस वजह से परेशान होकर रश्मि ने उन्हें ब्लॉक कर दिया. इतना ही नहीं रश्मि के लिए भद्दे शब्द का इस्तेमाल भी कर रहे थें.

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दरअसल, रश्मि ने कुछ दिनों पहले अपनी फ्रेंड देवोलीना भट्टाचार्या को सपोर्ट किया था. जब देवोलीना सिदार्थ और शहनाज के रिश्ते पर आलोचना की थी. जिसके बाद फैंस लगातार रश्मि को परेशान करना शुरू कर दिए.

रश्मि ने इस बात पर कहा यह जो कुछ भी हो रहा है वह बहुत गलत है. उन्हें अपने शब्दों पर काबू रखना चाहिए. जिस समय मैंने ऑडियो सुना और उसके बाद मुझे ट्रोल किया जाने लगा. मेरे निजी जीवन पर सवाल उठाने वाले वो कौन होते है. पुरानी बातों को घसीटने से अच्छा है हम आने वाले कल के बारे में सोचें. इससे हम अपना बेहतर भविष्य बना सकेंगे.

इस तरह के कमेंट्स पढ़ना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था इसलिए मैंने ब्लॉक कर दिया. अगर कोई मुझसे आराम से और ईमानदारी से सवाल करे तो मुझे जवाब देने में कोई दिक्कत नहीं है. फिलहाल रश्मि सेल्फ आइसोलेशन में है.

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रश्मि देसाई बिग बॉस का भी हिस्सा रह चुकी हैं. वहां लोगों ने रश्मि के काम को खूब सराहा था. रश्मि इन दिनों अपनी मां के साथ और घर के काम करते हुए वीडियो पोस्ट करती रहती है. उनके फैंस को भी रश्मि के वीडियो का खूब इंतजार रहता है.

#coronavirus: कनिका कपूर के फैंस के लिए खुशखबरी, जल्द होगी घर वापसी

पूरी दुनिया में हाहाकार मचाने वाला कोरोना वायरस अब भारत में भी पूरी तरह से फैल चुका है. लॉकडाउन के बाद सभी लोग अपने घर में कैद होकर अपने परिवार के साथ समय बीता रहे हैं. इन सभी के बीच चौकाने वाली बात यह थी की जब सिंगर कनिका कपूर को कोरोना पॉजिटीव होने की खबर आई तब बॉलीवुड के सभी सितारे हैरान हो गए थे.

बता दें ,अभी तक कनिका के जितने भी टेस्ट हुए है सभी पॉजिटीव आएं हैं. लोग कनिका की सलामती के लिए दुआ कर रहे हैं. कनिका इन दिनों अपने होमटाउन लखनऊ के संजय गांधी पीजीआई अस्पताल में भर्ती हैं.

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कनिका कपूर के फैंस के लिए एक राहत की खबर है. दरअसल, कनिका के परिवार वालों का कहना है कि अभी तक कनिका के पांच टेस्ट हो चुके हैं लेकिन इन सबमें  कनिका के कोई भी टेस्ट में कोविड 19 के लक्षण नहीं नजर आएं हैं.

 

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Thank you @judithleiberny Love my #Camera #bag ?

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कनिका के परिवार वालों को इंतजार है अगले टेस्ट का उसके बाद उन्हें घर ले जाया जा सकता है. कनिका इन दिनों अपने परिवार और बच्चों को काफी मिस कर रही हैं.

सभी को उम्मीद है कि अगले टेस्ट के बाद कनिका अपने घर पर अपने परिवार वालों के साथ होंगी. कनिका का पूरा परिवार हर वक्त उनके घर आने के लिए दुआ कर रहा है. वहीं बच्चें भी अपनी मां को बहुत मिस कर रहे हैं.

 

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She’s cute?? @tanyaganwani

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कनिका होली पार्टी के लिए लखनऊ आई थी. आने के बाद लगातार तीन पार्टीयों में कनिका शामिल हुई जिसमें बॉलीवुड और कई बड़े नेता शामिल थें. जिनमें से कुछ लोग अभी भी आइसोलेशन में रह रहे हैं. उन्हें भी अपने परिवार से दूर रहने की सलाह दी गई है.

 

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