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19 दिन 19 कहानियां: डोर से कटी पतंग- भाग 1

लेखक- अलंकृत कश्यप

18 अक्तूबर, 2019 को करवाचौथ था. खुशी उर्फ मोहसिना बानो ने भी पहली बार व्रत रखा था. मोहसिना बानो मुसलिम थी. उस ने अपनी मरजी से महेंद्र को पति के रूप में चुना था. चूंकि उस ने महेंद्र से शादी कर ली थी, इसलिए अपना नाम खुशी उर्फ परी रख लिया था. महेंद्र से शादी के बाद वह लखनऊ के थाना सरोजनी नगर क्षेत्र के गांव दादूपुर की नई कालोनी में रहने लगी थी.

पति की दीर्घायु के लिए उस ने पूरे दिन निर्जला व्रत रखा था. पड़ोसी महिलाओं से पूछ कर उस ने दिन में पूजा वगैरह भी की थी.

लाल रंग के जोड़े में सजनेसंवरने के बाद उस ने अपने पैरों में महावर लगाई, मांग में गहरे लाल रंग का सिंदूर भरा. साजशृंगार के बाद वह काफी खूबसूरत लग रही थी.

शाम के 7 बज चुके थे लेकिन महेंद्र घर नहीं लौटा था. भूखे पेट रह कर उस ने महेंद्र का मनपसंद खाना भी बना लिया था. उसे महेंद्र के लौटने का इंतजार था ताकि चंद्रमा निकलने पर वह अर्ध्य दे सके. खुशी मन ही मन काफी उल्लासित थी.

उस ने कई बार महेंद्र को फोन किया, लेकिन बात नहीं हो पाई. शाम को 5 बजे भी उस ने काल रिसीव नहीं की. पति के फोन न उठाने पर खुशी को बहुत गुस्सा आया. काफी देर बाद महेंद्र ने उस की काल रिसीव की तो खुशी ने इतना ही कहा कि तुम घर जल्दी आ जाओ. मैं इंतजार कर रही हूं. इतना कह कर खुशी ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

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चंद्रमा निकल आया, लेकिन महेंद्र घर नहीं लौटा. पड़ोस की सभी महिलाएं अपनेअपने पति को देख कर चंद्रमा को अर्घ्य दे रही थीं. लेकिन खुशी पति के न आने से परेशान थी. वह खुशी की काल भी रिसीव नहीं कर रहा था. खुशी सोचसोच कर परेशान थी कि कम से कम आज पूजा के समय तो उन्हें घर पर होना चािहए था.

चंद्रमा निकलने के 2 घंटे बाद भी महेंद्र घर नहीं लौटा तो खुशी ने उसे गुस्से में वाट्सऐप मैसेज भेजे, उन का भी उस ने कोई जवाब नहीं दिया. रात करीब 12 बजे महेंद्र घर लौटा तो वह इस स्थिति में नहीं था कि पत्नी खुशी से कुछ कह सके.

अगले दिन लखनऊ के ही थाना बंथरा के निकटवर्ती जंगल में पुराहीखेड़ा से नरेरा गांव की तरफ जाने वाले रास्ते पर लोगों ने सुबहसुबह एक युवती का शव पड़ा देखा. शव खेत की सिंचाई के लिए बनाई गई नाली में अर्द्ध नग्नावस्था में था. किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी.

सूचना पा कर थाना बंथरा के थानाप्रभारी रमेश कुमार रावत अपने साथ इंसपेक्टर (क्राइम) प्रहलाद सिंह, एसएसआई शिव प्रताप सिंह, एसआई अरुण प्रताप सरोज, सिपाही जी.एल. सोनकर, हैडकांस्टेबल अरविंद कुमार और अविनाश चौरसिया को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे.

पुलिस ने घटना स्थल का निरीक्षण किया तो देखा,युवती के हाथपैरों में महावर और मेहंदी लगी थी. उस का चेहरा थोड़ा सा झुलसा हुआ था. मेहंदी रची हथेली पर ‘एम’ लिखा हुआ था. माथे पर बिंदी और मांग में सिंदूर था. घटनास्थल पर शव के पास नीले रंग की पालीथिन में एसिड की 3 खाली शीशियां मिली थीं, जिन में से एक शीशी में बचा हुआ थोड़ा सा एसिड था.

लाश के पास ही नीले रंग का एक पर्स भी पड़ा मिला. पर्स की तलाशी ली गई तो उस में एक मोबाइल फोन मिला. पुलिस ने मौके पर मिला फोन और शीशियां अपने कब्जे में ले लीं.

निरीक्षण में पुलिस को युवती के गले पर किसी चीज के कसने के गहरे निशान दिखे. नाक से खून रिस कर सूख चुका था. उस के पैरों में न तो पायल थीं न ही बिछिया. नाक में सोने का एक फूल जरूर नजर आ रहा था. पुलिस ने वहां जमा भीड़ से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि युवती शायद कहीं बाहर की रहने वाली रही होगी. उस की हत्या कहीं और कर, शव यहां ला कर फेंक दिया है.

पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रमेश कुमार रावत ने महिला की बरामद की गई लाश के फोटो जिले के सभी थानों में भेजने के अलावा वाट्सऐप पर डाल दिए ताकि उस की शिनाख्त हो सके. इस के अलावा अज्ञात महिला की लाश बरामद करने की सूचना समाचारपत्रों में भी प्रकाशित करा दी.

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22 अक्तूबर, 2019 को 2 व्यक्ति थाना बंथरा पहुंचे. थानाप्रभारी रमेश कुमार रावत ने उन से पूछा तो उन में एक व्यक्ति ने अपना नाम मुश्ताक अहमद बताया. वह गांव हामी का पुरवा जगदीशपुर, जिला अमेठी का रहने वाला था. उस ने अखबार में छपी युवती की तसवीर दिखाते हुए बताया कि ये जो फोटो छपी है, मेरी बेटी मोहसिना बानो (27) की है.

मुश्ताक अहमद ने आगे बताया कि करीब 8 साल पहले उस ने मोहसिना बानो का निकाह अपने गांव के ही मोहम्मद नसीम के साथ किया था. निकाह के बाद वह अपने शौहर के साथ मुंबई में रहने लगी थी. अब से करीब 4 महीने पहले मोहसिना मुंबई से कहीं गायब हो गई थी.

हम सब ने उसे काफी तलाश किया, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. जब उस की कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो दामाद मोहम्मद नसीम ने 29 जून, 2019 को पवई (मुंबई) थाने में मोहसिना के गुम होने की सूचना लिखाई थी.

मुश्ताक ने आगे बताया कि साथ आए मेरे भतीजे अरमान ने अखबार में छपी तसवीर पहचानी तो हम लोग यहां आए. मुझे विश्वास है कि मोहसिना मुंबई से जिस व्यक्ति के साथ भागी थी, उसी ने उस की हत्या कर लाश खेतों में डाली होगी.

थानाप्रभारी ने मुश्ताक अहमद को मोर्चरी ले जा कर लाश दिखाई तो उस ने लाश की शिनाख्त अपनी बेटी मोहसिना के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने मुश्ताक की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने का मामला दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज हो गया तो थानाप्रभारी ने खुद ही इस केस की जांच शुरू कर दी.

थानाप्रभारी ने सब से पहले मृतका के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि उस की ज्यादा बातें महेंद्र से होती थीं. महेंद्र भेलपुर कालोनी (जगदीशपुर) का रहने वाला था. पुलिस ने महेंद्र के बारे में पूछताछ की तो पता चला वह मोहसिना का पति था.

उसी के साथ मोहसिना मुंबई से भाग कर आई थी और अपना नाम खुशी रख कर उसी के साथ रह रही थी. महेंद्र भी शादीशुदा था. उस की पहली पत्नी गांव में रहती थी.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने महेंद्र की काल डिटेल्स देखी तो पता चला कि संदीप नाम के युवक से महेंद्र की अकसर बातें होती थीं. जांच करने पर पता चला कि संदीप अमेठी जिले के गांव नियावा का रहने वाला था, जो महेंद्र की बोलेरो चलाता था.

इन दोनों से पूछताछ करने के बाद ही जांच आगे बढ़ सकती थी. लिहाजा पुलिस ने इन दोनों की तलाश शुरू कर दी. दोनों में से कोई भी घर पर नहीं मिला तो उन की खोजखबर के लिए मुखबिर लगा दिए गए. मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने 24 अक्तूबर, 2019 को रात करीब 12 बजे दोनों को दादूपुर गांव के शराब ठेके के पास से हिरासत में ले लिया.

महेंद्र और संदीप से मोहसिना के बारे में पूछताछ की गई तो महेंद्र ने बताया कि उस ने मोहसिना की हत्या नहीं की थी. करवाचौथ वाली रात को जब वह घर पहुंचा तो वह मृत अवस्था में थी. उस ने तो उस की लाश केवल ठिकाने लगाई थी. दोनों से विस्तार से पूछताछ के बाद मोहसिना की मौत की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी.

मोेहसिना बानो जनपद अमेठी के गांव हामी का पुरवा, जगदीशपुरके रहने वाले मुश्ताक अहमद की बेटी थी. मोहसिना अपने परिवार में सब से बड़ी थी.

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उस के अलावा उस की 2 बहनें व एक भाई और था. मोहसिना आधुनिक विचारों की महत्त्वाकांक्षी युवती थी. वह बहुत चतुर दिमाग की थी. घर के रोजमर्रा के काम निपटाने के बाद वह वाट्सऐप व फेसबुक पर लगी रहती थी.

फेसबुक पर नएनए लोगों से दोस्ती कर के उन से घंटों बातें करना उस का शगल बन गया था. कभीकभी तो वह किसी से फोन पर घंटों बातें किया करती थी. एक दिन उस की अम्मी नूरजहां ने उस की फोन पर हो रही रोमांस भरी बातें सुन लीं.

तब उन्होंने झल्लाते हुए मोहसिना को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘तुझे दीनमजहब की बातों का बिलकुल डर नहीं है. पता नहीं किसकिस से बतियाती रहती है. तेरी यह बातें ठीक नहीं हैं, इन बातों से बदनामी के सिवा कुछ नहीं मिलता.’’

एक दिन यह बात नूरजहां ने अपने पति मुश्ताक अहमद को बताई और कहा कि मोहसिना के लिए अब कोई लड़का देख लो. कहीं ऐसा न हो कि हम हाथ मलते ही रह जाएं.

पत्नी की बात सुन कर मुश्ताक अहमद की चिंता बढ़ गई. वह मोहसिना के लिए लड़का देखने लगे. इसी दौरान मुश्ताक के भतीजे अरमान ने अपने खानदानी भाई नसीम के बारे में चर्चा की. नसीम मुंबई में रहता था.

इस के बाद मुश्ताक ने नसीम के पिता सुलेमान से बात की. बात परिवार की थी, इसलिए सुलेमान मोहसिना के साथ बेटे का विवाह करने के लिए तैयार हो गए. सामाजिक रीतिरिवाज से सन 2011 में मोहसिना का निकाह नसीम से कर दिया गया.

शादी के कुछ दिनों बाद नसीम मोहसिना को अपने साथ मुंबई ले गया. वह मुंबई के पवई इलाके में रहता था. मोहसिना मुंबई क्या पहुंची, जैसे उसे खुशियों का जहां मिल गया.

उस ने शौहर नसीम के साथ अपनी जिंदगी के 8 साल हंसीखुशी से बिता दिए. इस दौरान वह 3 बेटों की मां बन गई. मुंबई में रह कर वह पूरी तरह आजाद हो गई. नसीम के काम पर चले जाने के बाद वह सैरसपाटा करने निकल जाती और शाम को वापस लौटती.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

अपने पत्रकार होने पर शर्मिंदगी

ज्यादा नहीं कोई 6-7 महीने पहले की बात है, देर रात एक प्रोफेसर मित्र ने फोन पर बताया था फलां चैनल देखो नवकंज लोचन कंजमुख कर…… की तर्ज पर एक नया भक्त पत्रकार अवतरित हुआ है. क्या हाहाकारी तेवर हैं उसके देखना पट्ठा दूसरे चमचों से पहले पद्म पुरुस्कार ले जाएगा.

यूं आमतौर पर मैं टीवी नहीं देखता न्यूज़ चेनल्स तो बिलकुल नहीं, लेकिन प्रोफेसर के कहने या बताने का अंदाज अलग था. ठीक वैसे ही जैसे एक शौकीन दूसरे को बता रहा हो कि मीना बाजार में एक नई जवान हसीन तवायफ आई है. क्या जलवे और हुस्न है उसका, नाचती है तो देखते ही बनते है.

मैंने 2-3 मिनिट उस भक्त चैनल के अधेड़ होते उस श्रद्धावान युवा एंकर के लटके झटके देखे और समझ गया कि भगवा गैंग ने नया पीआरओ या सेल्समेन रख लिया है क्योंकि पुरानों के चहेते कम हो रहे हैं, उनका पत्रकारीय यौवन ढलने लगा है. इसलिए अच्छा किया नया रख लिया इससे मीडिया का बाजार भी गुलजार रहेगा और 4-5 करोड़ भक्तों को भी नयापन दिखता रहेगा.

फिर एक दिन किसी ने बताया कि वह साढ़े तीन लाख रु लेता है एक दिन के, इस बार की आवाज में भी वही कोठों और तवायफ़ों सरीखी गंध और खनक थी कि कोई ऐसी वैसी बाई जी नहीं हैं वे एक मुजरे के लाखों लेती हैं.

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फिर आज सुना कि उसने पद्म पुरुस्कार न मिलने के गम या खीझ में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर कोई आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी है जिस पर कोई दर्जन भर एफआईआर देश भर में दर्ज हुई हैं. एक अपरिपक्व और आक्रोशित पत्रकार अतिरेक उत्साह में इससे ज्यादा भी बहुत कुछ कर सकता है पर इतने से ही उसकी निष्ठा का नवीनीकरण हो गया कि उसे माँ बहिन की गालियां देने के गुनाह से उसके ही भगवा भगवानों ने बचा लिया. यह बात जरूर शुक्र की है .

जाने क्यों मुझे अपने पत्रकार होने पर शर्म हो आई. एक ग्लानि, क्षोभ, अपराधबोध, होने लगा कि कल का वो गला फाड़कर चीखने बाला छोरा दुनिया भर की वाहवाही ले उड़ा और आप 40 साल से कलम घिसने के बाद भी मोहल्ला स्तर का भी पुरुस्कार नहीं कबाड़ पाये. उल्टे समाज और रिश्तेदारी में तिरिस्कृत होते रहे, धर्मांध लोगों की गालियां खाते रहे और एक बार तो आपको भरे चौराहे पर निर्वस्त्र कर एक धर्म विशेष के लोगों ने समारोह पूर्वक ठोक दिया था क्योंकि आपने उनके एक धर्म गुरु के व्यभिचार को मैगज़ीन में फींच कर रख दिया था जबकि आप को इस पाप को ढकने की वाजिब कीमत की पेशकश की गई थी जो आपने ठुकरा दी थी.  इस पर उन्होंने आपको ऐसा फेंटा कि अभी भी कभी कभी पुराने जख्म रिसने लगते हैं.

भाईसाहब आपको अगर निष्पक्ष और ईमानदारी से लिखने की बीमारी है ही तो पहले कोई सियासी माई बाप ढूंढ लेते यकीन मानिए आज राज्यसभा में होते या खैरात में मिले किसी ऊंचे मलाईदार मुकाम पर होते जहां शराब कबाब और शबाब ज़िंदगी को रंगीन बना देते हैं.

आप के ही कुछ साथियों को यह ज्ञान प्राप्त हो गया है और उन्होने ईमान और स्वाभिमान को तिरोहित कर मौजूदा आकाओं के तलवे चोरी छिपे चाटना भी शुरू कर दिये हैं और आप अभी तक प्रतिबद्धता का तार तार हो चुका पल्लू पकड़े तरने का भ्रम पाले बैठे हैं. आपका कुछ नहीं हो सकता आप पत्रकारिता के नाम पर कलंक हैं.

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आज भी अगर आप यह कहेंगे कि एक बड़ी नेत्री के बारे में इस तरह के शब्द इस्तेमाल नहीं किए जाने चाहिए, यह कोई स्वस्थ पत्रकारिता नहीं है तो आप तुरंत कांग्रेसी और वामपंथियों के पिट्ठू करार दे दिये जाएँगे. आप मोदी और राष्ट्र विरोधी तो पहले ही घोषित किए जा चुके हैं. आपको रटते रहना चाहिए कि दौर भड़ुओं और भांड़ों का है और आप भी बूढ़ी तवायफ की तरह पत्रकारिता के बाजार से षडयंत्रपूर्वक गायब किए जा रहे हैं. आपका एक गुनाह यह भी है कि आपने धंधा चमकाने दलाल नहीं रखे न ही कभी खुद दलाल बने क्योंकि आप पत्रकारिता को एक अभियान समझते और मानते रहे.

जिस मूल्य आधारित पत्रकारिता का मुगालता पाले आप लिखे जा रहे हैं उसका अवमूल्यन हुये 6 साल हो चुके हैं फिर भी आप हिम्मत नहीं हार रहे और मैदान नहीं छोड़ रहे तो यह आपकी बेशर्मी और हठधर्मिता है न कि प्रतिबद्धता है. प्रतिबद्ध तो वे हैं जो आज भी द्रौपदी को भरी सभी में निर्वस्त्र कर पुरुषत्त्व दिखा रहे हैं और माता सीता की पवित्रता पर संदेह जताते अपनी मर्यादा का ढिंढोरा पीट रहे हैं. दौर इन्हीं धर्मियों का है आप जैसे विधर्मियों का नहीं जो ज़िंदगी भर समाज सुधार और नवनिर्माण का ढ़ोल पीटते रह गए और समाज को फिर से धर्म की आड़ में बांटने बाले वर्ण व्यवस्था के पेरोकर देश का बंटाढार कर रहे हैं.

दिक्कत ये भी है कि लोग आपसे सहमत तो हैं लेकिन तभी, जब होश में आते हैं वरना तो धर्म की अफीम न्यूज़ चैनल्स के जरिये जमकर परोसी और वितरित की जा रही है और ये नशेड़ी फिर मदहोश हो जाते हैं, बहक जाते हैं कि नहीं हमे उसी भरम में रहने दो जिसमें हम पीढ़ियों से रहते आए हैं. होश में आते हैं तो हम टूटने, बिखरने लगते हैं हमे घबराहट होने लगती है.  हमारा दिल, चेतना और कान जो सुनना चाहते हैं वे इसी तरह की बातें हैं कि महामृत्युंजय मंत्र से कोरोना भाग जाता है. इलाज दवा में नहीं बल्कि गोबर और गौ मूत्र में है, कपूर में है इसलिए आप हमें बहकाओ मत.

तो आप भाईसाहब तार्किक और गंभीर पत्रकारिता छोड़ो, मुख्य धारा से जुड़ो, पाठकों को बताओ कि अति दूरदर्शी और अति मानव और लगभग अवतार मोदी जी ने आज जो कहा उसका वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक महत्व क्या है. आपके पास बुद्धि है जो सच को झूठ और झूठ को सच साबित कर सकती है.

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कैसे घंटे घड़ियाल बजाने से कोरोना उम्मीद से कम फैला इसका प्रचार करो लेकिन आप हैं कि करोड़ों मजदूरों की फिक्र में दुबले हुये जा रहे हैं. अरे ये लोग कोई आदमी नहीं हैं बल्कि बैकवर्ड हैं इनकी नियति, किस्मत, भाग्य वगैरह यही है जो मनु, पाराशर, तुलसी, चाणक्य आदि सदियों पहले लिख गए हैं. ये कीड़े मकोड़े अपने पापों की सजा भुगत रहे हैं इन्हें छोड़िए मरने दीजिये.  दुनिया के सबसे बुद्धिमान शासक का गुणगान कीजिये आप हाथों हाथ लिए जाएँगे.

देश हित में और ज्यादा कुछ करना चाहते हैं तो सोनिया, केजरीवाल ममता बगैरह पर राक्षस होने का, विदेशी एजेंट होने का, सनातन विरोधी होने का आरोप लगाइए. दलितों और मुसलमानों को कोसिये इससे आप महान हों न हों चर्चित जरूर हो जाएँगे. इन दिनों जो 4-5 करोड़ सवर्ण हिन्दू घरों में बैठे पकोड़ी और मिष्ठान उदरस्थ कर रहे हैं वे आपका यह मुजरा जरूर देखेंगे.

किसी संभ्रांत और सम्मानीय नेत्री जिसने महज इसलिए कभी देश का सबसे बड़ा पद इसलिए ठुकरा दिया था कि भाजपा की दो नेत्रियाँ अपने मुंडन की बात करते प्रलाप करने लगीं थीं, उस नेत्री को उसकी इस मूर्खता (त्याग एक तरह की मूर्खता ही होता है) के लिए बेइज्जत कीजिये और फिर 56 इंच का सीना तानकर कहिए कि देखो कलयुगी शूर्पनखा की नाक काट ली तो आप हीरो बना दिये जाएँगे.

और अगर आप ऐसा नहीं कर सकते तो इतमीनान से अपने पत्रकार होने पर शर्मिंदा होते सोचते रहिए कि पढ़ा लिखा बुद्धिजीवी हिन्दू क्यों बौराया जा रहा है. इसे अंत में मिलेगा क्या हाल फिलहाल तो इसे लग रहा है कि वह जातिगत रूप से ही श्रेष्ठ है, भगवा गैंग उसका आत्मविश्वास है और बस अब 2-4 साल में हम विश्वगुरु बनने ही बाले हैं फिर ये जमीन , आसमान, हवा पानी पैसा सब कुछ इसी का होगा जैसा कि वैदिक काल में हुआ करता था.

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आप इन्हें इसके खतरे मत बताइये कि दरअसल में आप ठगे जा रहे हैं, उल्लू बनाए जा रहे हैं.  आप के हाथ सिवाय शंख और घंटे घड़ियाल के कुछ नहीं आना और कभी बहुसंख्यक दलित आदिवासी और मुसलमान भी आप जैसे कट्टर होते एक हो गए तो कोई आपकी दुर्गति की ज़िम्मेदारी लेने आगे नहीं आएगा.

बहरहाल मुद्दे की बात मेरी पत्रकार होने की शर्मिंदगी है जो एक तवायफनुमा महंगे पत्रकार की धूर्तता से पैदा हुई. मौजूदा दौर की पत्रकारिता मकसद से भटक रही है, इसमें जोकरों की भरमार हो चली है जिन्हें राजा और उसे नचाने बाले खूब धन और प्रोत्साहन दे रहे हैं. आप याद करते रहिए कि कभी पत्रकारिता एक सम्मानजनक और प्रतिष्ठित पेशा हुआ करता था.

मुझे इस बात की कुंठा या इच्छा नहीं कि यह सब मुझे क्यों नहीं मिल रहा क्योंकि मैंने कभी ऐसा चाहा ही नहीं. मैं जब तक रहूँगा पत्रकार ही रहूँगा और ढोंग पाखंडों से लोगों को आगाह करता रहूँगा क्योंकि मुझे मालूम है कि देश में लोकतन्त्र जितना भी बचा हुआ है मुझ जैसों की वजह से ही बचा हुआ है.

धार्मिक उन्माद फैलाने वाले, धर्म आधारित शासन थोपने वाले पंडे पुजारी मुझ जैसे पत्रकारों से डरते हैं और इस डर का कायम रहना जरूरी है नहीं तो मुट्ठी भर एक जाति विशेष के लोग फिर जो हाहाकार मचाएंगे वह जरूर देश को गुलामी की भट्टी में पूरी तरह झोंक देगा. अभी तो उम्मीद बाकी है .

कोरोना सर्वाइवर सुमिति सिंह ने ब्लड प्लाज्मा डोनेट किया , कार्तिक ने कहा गर्व है आप पर

कार्तिक आर्यन ने हल ही में अपने यूट्यूब चैनल पर इस लॉकडाउन के दौरान ‘कोकी पूछेगा’ नाम से अपना एक चैट शो शुरू किया है.कार्तिक ने अपने शो के पहले ही एपिसोड में गुजरात से कोरोना सर्वाइवर सुमिति सिंह का इंटरव्यू किया था और उनसे कोरोना पर अहम बातचित की थी. सुमिति भारत में  पूरी तरह स्वस्थ होने वाले शुरूआती कोरोना-पेशेंट्स में से एक हैं. लेकिन अब सुमिति जो करने जा रही हैं वो बहुत बड़ा काम है और इसके लिए उनकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है.सुमिति सिंह अब कोरोना से लड़ रहे पेशेंट्स के लिए खून देने जा रही हैं.

चूंकि कोरोना से पीड़ित पेशेंट को बचाने के लिए, कोरोना से ठीक हुए व्यक्ति का ब्लड प्लाज्मा का उपयोग काफी कारगर है और इससे पेशेंट के जल्द अच्छा होने का चांस बहुत बढ़ जाता है. कोरोना से ठीक हो चुकीं सुमिति ने बाकी लोगों की मदद के लिए ये तरिका चुना है जो कि बहुत काबिलेतारीफ है. कार्तिक से बात करते हुए सुमिति ने कहा था , ‘किसी ने मुझे मैसेज भेजा है और बोला कि क्या आप मुझसे अपना ब्लड प्लाज्मा शेयर करेंगी?’ इसपर कार्तिक ने हँसते हुए कहा था ऐसी बीमारी से लड़ने में सुमिति का योगदान बहुत बड़ा रहेगा, क्योंकि उनका ब्लड प्लाज्मा इस समय बहुत महत्वपूर्ण है.

 

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So proud of @sumitisingh ???? I urge all survivors to check with their doctors and donate their blood plasma if eligible to help critical patients who are on the road to recovery.?? Also a big Thank You Sumiti for spreading awareness #KokiPoochega . . . #Repost @sumitisingh ・・・ I donated my blood plasma today— A person who has recovered from COVID is able to make antibodies against it . Also if you don’t have any pre existing ailments you are considered a healthy body and CAN donate your blood plasma, if willing, for the benefit of patients in a critical condition. With great joy and pride I am able to share that I fit all the necessary criteria to donate plasma and did so today at the Red Cross Ahmedabad. The procedure:- The procedure to donate plasma is the same as when you donate blood. There is one needle that is used to draw blood from your body, and the blood runs through tubes that carry it into a machine. That machine separates the plasma from the blood . The same needle sends back blood to your body while the (yellowish coloured) plasma is collected in a bag. It’s all toO cool. This happens through multiple cycles. I was also informed that the body will replenish the plasma in 24 – 48 hours. Dear Positives/Now Negatives… This was my first blood plasma donation experience. My feelings were oscillating between nervousness and excitement . On one part I was unsure about the procedure and how I’d feel thereafter . On the other hand there was a desire to contribute in any way I could in the war against COVID. If it helped anyone , anywhere I was doing it . Expect 2 needle pricks. The first one to check if you have antibodies .The second one to draw blood out and transfer it back in. The procedure lasted 30-40 minutes. Most of this time I was fine, however for 3- 4 minutes I felt nauseous and light headed. My doctors at the Red Cross, immediately helped me with what I was feeling and put me at ease. I have been completely fine, thereafter. SVP hospital is the first in India to get approvals for trials for Plasma Therapy and I wish them all the luck in the world & thank them for taking me through this. If I can do it…. maybe you can too

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आज समिति सिंह ने अपना ब्लड प्लाज्मा डोनेट किया जिसके बाद उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करते हुए कोरोना पर जागरूकता लाने वाला पोस्ट शेयर किया. अभिनेता कार्तिक आर्यन ने समिति सिंह को धन्यवाद कहते हुए , लिखा आप के लिए गर्व महसूस कर रहा हु. में सभी सर्वाइवर से कहूंगा कि अपने डॉक्टर से चेक करे कि आप अपना ब्लड प्लाज्मा डोनेट कर सकते है , इस समय गंभीर पेशंट्स के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है. जागरूकता बढ़ाने के लिए आप का बहुत धन्यवाद.

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कार्तिक की नई हिट यूट्यूब सीरीज़ ‘कोकी पूछेगा’ सीरीज के तहत वे कोरोना फाइटर्स के इंटरव्यू ले रहे है. इस वैश्विक महामारी के प्रति कार्तिक लगातार लोगों में जागरूकता फ़ैलाने का काम कर रहे हैं .

 

पुलिस ने मांगी छोटी सरदारनी की एक्ट्रेस से मांफी, लॉकडाउन तोड़ने का लगा था आरोप

छोटी सरदारनी में अहम किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस अनीता राज को लेकर बड़ी खबर आई है. अनीता के ऊपर लॉकडाउन के नियमों को तोड़ने का आरोप लगा है. यह आरोप एक्ट्रेस के पड़ोसियों ने लगाया है. इसकी शिकायत उन्होंने पुलिस से भी की है. जिसके बाद पुलिस ने अदाकारा की जांच पड़ताल भी कि है. आइए जानते हैं आखिर क्या है पूरा मामला.

अनीता के पति पेशे से डॉक्टर है. उनके घर पर इलाज के लिए उनके पति के दोस्त आएं थें जिसे वह मना नहीं कर पाई. यह बात सोसाइटी वालों को हजम नहीं हुआ उन्होंने तुरंत इसकी शिकायत पुलिस से की.

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हालांकि अनीता ने इस बात पर सफाई देते हुए कहा है कि वह लोग मेरे पति से मिलने नहीं आएं थें. इलाज के लिए आएं जिसे हम मना नहीं कर सकते थें.

 

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जब पुलिस ने पूरे मामले की छानबीन करी तो पता चला कि उन्होंने किसी नियम को तोड़ा नहीं है. एक मेडिकल स्टाफ होने के नाते उन्होंने अपनी ड्यूटी पूरी की है.

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पुलिस ने अपनी गलती को स्वीकार करते हुए अनीता और उनके पति से अपनी गलती के लिए माफी मांगा है. अगर वर्कफ्रंट की बात करें तो अनीता 80 के दशक में कई हिट फिल्मों में काम कर चुकी हैं. बीते दिन वह छोटे सरदारनी में नजर आ रही थी. फिलहाल खबर आ रही है कि अब यह सीरियल बंड होने वाला है.

#coronavirus: लॉकडाउन की दोगली व्यवस्थाओं पर उठते सवाल

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगाये गये लौक डाउन पर सरकार की दोगली नीतियों पर अब सवाल उठने लगे हैं. देश के नवनिर्माण में मील का पत्थर कहे जाने वाले मजदूरों को भी यह अहसास हो गया है कि  सरकारें अमीर और धन्ना सेठों के लिए ही होती हैं.

कोटा में डाक्टर और इंजीनियर बनने का सपना लिए लाखों रुपए कोचिंग पर खर्च करने वाले अमीरों के लड़के, लड़कियों को घर वापस लाने सरकार करोड़ों रुपए फूंक रही हैं, परन्तु गरीब मजदूर तपती धूप में भूख प्यास के बावजूद  नंगे पांव चलकर सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर रहे हैं.

मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने अमीरों के साहबजादों को घर लाने ग्वालियर से 150 बस कोटा के लिए रवाना की है .और दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों की बात तो छोड़िए  एक जिले से दूसरे जिलों में जाने वाले मजदूरों को घर पहुंचाने की कोई सुध ही नहीं है. सुध कैसे हो आखिर ये ये सरकार अमीर धन्ना सेठों और अफसरों की हिमायती सरकार जो ठहरी.

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मध्यप्रदेश की किसान हितैषी सरकार के पुलिस कर्मियों ने तो हद ही कर दी. तिलहरी गांव में गाय को चारा देने गये 52 साल के किसान वंशीलाल कुशवाहा को इतना बेरहमी से पीटा कि उसके प्राण पखेरू उड़ गए.

वंशीलाल का कसूर सिर्फ इतना था कि वह लौक डाउन में रात दस बजे गांव के बाहर खेत में बंधी अपनी गाय को चारा डालने गया था.

घटना 16 अप्रैल 2020 की रात की है, किसान बंशी कुशवाहा खेत में बंधी गाय को चारा देकर लौट रहा था, तभी वहां पहुंचे गोराबाजार थाना के पुलिस कर्मियों ने किसान से जुआं खेलने वालों का अड्डा पूछा, किसान ने नहीं बताया तो उसकी बेरहमी से पिटाई कर दी . पुलिस उसे तब तक उसे पीटते रहे, जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गया .वहां से गुजर रहे लोगों ने की मदद से घर वालों ने किसान को एक निजी अस्पताल में लाकर भर्ती कराया, जहां रविवार 19 अप्रेल की रात उपचार के दौरान किसान की मौत हो गई.

मृतक किसान के 16 और 14 साल के वेटे रो रोकर शिवराज मामा से पूछ रहे हैं कि आखिर उनके पिता का गुनाह क्या था.?

कोरोना वायरस का संक्रमण जिस तेजी से अपने पैर फैला रहा है, उससे लाक डाउन के बढ़ने की संभावना तो पहले से ही व्यक्त की जा रहीं थी. इन सबके बावजूद लोगों की चिंता इस बात को लेकर रही कि लाक डाउन में  बीमार , बुजुर्ग और महिलाओं की समस्याओं पर  जरा भी ध्यान नहीं दिया गया.

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मध्यप्रदेश के एक छोटे से गांव सेठान में रहने वाले ओमप्रकाश प्रजापति अपनी पत्नी सविता के प्रसव के लिए 12 अप्रैल की सुबह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र साईंखेड़ा पहुंचे , लेकिन वहां ड्यूटी पर कोई डाक्टर उपलब्ध नहीं था. एएनएम और नर्सिंग स्टाफ ने महिला की डिलीवरी की प्रारंभिक तैयारियां शुरू की ही थी कि महिला को ब्लीडिंग ज्यादा होने के कारण तहसील के स्वास्थ्य केंद्र के लिए रिफर कर दिया गया है. अब समस्या थी कि लाक डाउन में 25 किमी दूर गाडरवारा कैसे पहुंचे. काफी मशक्कत के बाद स्थानीय लोगों की मदद से एक वाहन द्वारा महिला और उसके पति को रवाना किया गया, लेकिन तब तक देर हो हो जाने के कारण महिला और उसके होने वाले बच्चे की मौत हो चुकी थी.

लौक डाउन के दौरान होने वाली ये घटनाएं वार वार यही सवाल खड़ा कर रही हैं कि आखिर सरकारों का यह दोहरा चरित्र क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि मजदूरों को घर जाने से रोक कर बड़े बड़े पूंजीपतियों और  उद्योगपतियों के हित पूरे  कर रही हो.क्योंकि यदि  मजदूर घर चले गए तो ऊनकी फैक्ट्री और कारखाने कैसे चलेंगे.

#lockdown: कोरोना पीड़ित होने से मॉ‌‌ब लिंचिंग से बच गया जावेद

मोदी सरकार के कार्यकाल में माब लिंचिंग की घटनाएं थमने का ना नहीं ले रही हैं. कभी मंदिर मस्जिद के नाम पर तो कभी भारत पाकिस्तान के नाम पर देश में शांति और सौहार्द्र का वातावरण खराब करने की घटनाएं आम हो गई हैं. महाराष्ट्र के पालघर में भीड़ द्वारा की गई साधुओं की हत्या को भी सांप्रदायिक रंग देने की खूब कोशिश की गई, लेकिन जल्द ही असलियत उजागर हो गई .इसी तरह मध्यप्रदेश के एक कोरोना पीड़ित के मेडिकल से भागने पर सोशल मीडिया पर  वातावरण कुछ इस तरह बन गया था कि यदि उसे कोरोना की बीमारी नहीं होती तो भीड़ उसे मार ही डालती.

19 अप्रैल 2020 को जबलपुर मेडीकल अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कोरोना पाज़ीटिव जावेद खान पुलिस कर्मचारियों की लापरवाही के कारण भाग निकला.

अपनी जान की परवाह न करते हुए पुलिस की नाक के नीचे से भागने वाला चंदन नगर इंदौर निवासी 30 साल का यह युवक वही जावेद है,जिस पर इंदौर के चंदन नगर इलाके में जांच के लिए ग‌ई मेडिकल टीम पर पत्थर बरसाने का आरोप लगा है.

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इंदौर का यह चंदन नगर इलाका तभी सुर्खियों में आया था ,जब वहां रहने वाले वाशिंदों ने कोरोना टेस्ट न कराने के विरोध में मेडिकल टीम और पुलिस पर हमला बोला था. इंदौर पुलिस द्वारा जब जावेद पकड़ा गया तो  उसके विरुद्ध राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मामला कायम कर जेल भेजा गया था. इंदौर प्रशासन ने ज़ावेद का कोरोना टेस्ट  किए बिना जल्दबाजी में उसे  9 अप्रैल को जबलपर जेल शिफ्ट कर दिया. 11 अप्रैल को जब जावेद की कोरोना रिपोर्ट पाज़ीटिव आई तो जबलपुर जेल में हड़कंप मच गया. आनन फानन में जावेद को जबलपुर मेडिकल कॉलेज के आइसोलेशन वार्ड में पुलिस की निगरानी में रखा गया था.

रविवार 19 अप्रैल को मेडिकल कॉलेज में आइसोलेशन वार्ड के मरीजों को जबलपुर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में शिफ्ट करने का काम चल रहा था.अस्पताल के कमरे खोले गए थे.जावेद के कोरोना पाज़ीटिव होने के कारण पुलिस टीम भी जावेद से दूरी बनाकर निगरानी रखती थी . दोपहर 2 बजे के लगभग जावेद पुलिस को  चकमा देकर वहां से फरार हो गया.शाम 4 बजे जब ड्यूटी पर तैनात चार पुलिस कर्मियों ने उसे वार्ड से नदारत पाया तो उनके पैरों तले से जमीन खिसकने लगी.

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जबलपुर जिला प्रशासन ने जबलपुर की सीमाओं को सील करते हुए आसपास के जिलों में भी अलर्ट कर दिया .एस पी अमित सिंह ने ड्यूटी पर तैनात चारों पुलिस कर्मियों की लापरवाही पर उन्हें बर्खास्त कर दिया और फरार जावेद की गिरफ्तारी पर 11 हज़ार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया.

20 अप्रैल की सुबह साढ़े सात तेंदूखेड़ा पुलिस थाना से 7 किमी दूर रायसेन जिले की सीमा से लगे मदनपुर गांव में बने चैक पोस्ट से कुछ दूरी पर एक मोटरसाइकिल आकर रुकी तो चेक पोस्ट पर तैनात कर्मचारी मुस्तैद हो गये.मोटर सायकिल से आने वाला शख्स अपनी मोटरसाइकिल को किक मारकर स्टार्ट कर रहा था,मगर वह स्टार्ट नहीं हो रही थी. ड्यूटी पर तैनात फारेस्ट के वन रक्षक प्रिंस साहू ने युवक के पास जाकर देखा कि बढ़ी हुई दाढ़ी वाला यह युवक काफी परेशान लग रहा था. प्रिंस ने ध्यान से देखा कि कल वाट्स एप मैसेज में जावेद के फरार होने की जो फोटो डाली गई थी, उससे इस युवक का चेहरा मेल खा रहा था.अंतर केवल इतना था , उस फोटो में दाढ़ी नहीं थी. प्रिंस ने युवक को संदिग्ध जानकर तेंदूखेड़ा पुलिस थाने में सूचना देकर जब सख्ती से पूछताछ की तो युवक घबरा गया . इतने में तेंदूखेड़ा पुलिस थाने के एएसआई बसंत शर्मा और तहसीलदार पंकज मिश्रा भी चैक पोस्ट पहुंच गये थे . पुलिस टीम ने जब उससे पूछताछ की तो  उसने अपना नाम जावेद पिता नासिर खान बताया और जबलपुर मेडिकल कॉलेज से भागने की बात स्वीकार कर ली.

चन्दन नगर इंदौर पुलिस थाने के चंदू वाला रोड की गली नं 10 में रहने वाले जावेद के घर में उसकी मां, बहिन ,बीबी और दो लड़कियां हैं. इंदौर में कोरोना की जांच के लिए ग‌ई मेडिकल टीम पर  उसी इलाके के कुछ लोगों ने पथराव कर दिया . इस खबर को स्थानीय मीडिया ने संप्रदायिक रंग में रंग दिया . जावेद का घर मेन रोड पर होने के कारण पुलिस ने उससे पूछताछ की.जावेद और उसके परिवार के लोग मिन्नतें करते रहे कि उन्होंने पथराव नहीं किया है. पुलिस ने सन्देह के आधार पर उसे गिरफ्तार कर लिया.और रासुका के तहत जबलपुर जेल भेज दिया. जेल अधीक्षक ने जेल में रखने की बजाय उसे कोरोना परीक्षण हेतु विक्टोरिया अस्पताल भेज दिया और जब रिपोर्ट पाज़ीटिव आई तो मेडिकल कॉलेज के आइसोलेशन वार्ड में शिफ्ट कर दिया. रासुका में बंद होने और ऊपर से कोरोना पाज़ीटिव होने की वजह से जावेद बुरी तरह डर गया था. दस दिनों में ही उसे अपने बीबी, बच्चों की चिंता सताने लगी थी.

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कोरोना पीड़ित जावेद के मेडिकल कॉलेज से फरार होने की घटना दिन भर टीवी चैनलों पर छाई रही  और सरकार में बैठे भगवाधारी पंडे मजदूरों की त्रासदी को भूलकर इस घटना के लिए संप्रदाय विशेष पर दोषारोपण करते दिखाई दिए. लौक डाउन में पुलिस प्रशासन और तीन चेक पोस्टों पर तैनात अमला असहाय, लाचार मजदूरों को आगे बढ़ने से तो रोक देता है , परन्तु जावेद को रोकने में कितना लापरवाह रहा .

चटनी न सिर्फ स्वाद बल्कि सेहत भी सुधारती है

चटनी न सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाती है, बल्कि  हमारी सेहत को भी बेहतर बनाने में मदद करती है. आइए, आप भी जानें कि चटनी खाने के क्या फायदे हैं.

यदि आप सोचते हैं कि खाने के साथ चटनी सिर्फ टेस्ट के लिए खाई जाती है तो यह आप की भूल है, क्योंकि चटनी भोजन के पाचन को आसान बनाती है और पेट में गैस बनने से भी रोकती है. यह अपच की समस्या से भी  निजात दिलाती है.

चटनी भारतीय खानपान का एक अभिन्न अंग है  लेकिन चटनी एक तरह की नहीं होती. धनियापुदीना से ले कर अलगअलग दालों को मिला कर कई प्रकार की चटनी तैयार की जाती हैं…

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कच्चे प्याज,हरी मिर्च और पुदीना चटनी

कच्चा प्याज खाने से हमारा ब्लड शुगर नियंत्रित रहता है. इस में सल्फर, कैल्शियम और विटामिन सी मौजूद होता है. जो लू और गर्मी के कारण होने वाली दिक्कतों से हमें बचाता है. साथ ही हरी मिर्च हमारे दिमाग के लिए अच्छी होती हैं. पुदीना भी हमारे हमारे दिमाग को शांत और ठंडा रखने में मदद करता है, साथ ही यह एनर्जी भी बढ़ाता है.

विधि : इस चटनी को बनाने के लिए आप को चाहिए कच्चा प्याज, हरी मिर्च, काला नमक, पुदीना पत्ती, थोड़ा-सा जीरा. सभी को मिला कर एकसाथ पीस लें. टेस्टी और हेल्दी चटनी तैयार है.

कच्चे आम की चटनी

ज्यादातर लोगों को मालूम है कि कच्चे आम का पना हमें लू लगने से बचाता है, लेकिन बहुत कम  लोग ही जानते हैं कि इस की चटनी हमें लूज मोशन, लू, अपच, खट्टी डकार जैसी समस्याओं से भी बचाती है.

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विधि : कच्चे आम की चटनी बनाने के लिए आप को चाहिए हरी मिर्च, जीरा, कच्चा आम, थोड़ा सा प्याज और काला नमक. सब को एक साथ पीस कर चटनी तैयार कर लीजिए. खाने का स्वाद बढ़ जाएगा और जायका भी दुरुस्त हो जाएगा.

टमाटर-प्याज और लहसुन की चटनी

टमाटर में लाइकोपीन नामक ऐंटिऑक्सीडेंट होता है. साथ ही लहसुन भी  एक अच्छा ऐंटिबायॉटिक है. प्याज के बारे  हम आप को बता चुके हैं. जब इन तीनों चीजों को साथ  मिला कर आप चटनी तैयार करते हैं तो यह आप की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है और फंगल इंफेक्शन से बचने में भी मदद करती है.

विधि : इस चटनी को बनाने के लिए आप को प्याज, टमाटर और लहसुन के साथ ही थोड़ी-सी राई, साबुत लाल मिर्च और पिंक सॉल्ट चाहिए. खा कर देखिए इस चटनी का स्वाद मन को भा जाएगा.

चना दाल की चटनी

चने की दाल की चटनी आमतौर पर इडली और डोसा के साथ इंजॉय की जाती है, लेकिन पराठा और पूड़ी के साथ इसे खाना भी लोग उतना ही इंजॉय करते हैं. इस चटनी को बनाने के लिए  चने की दाल रात को पानी में भिगो कर रख दें और सुबह इसे पीस कर चटनी तैयार करें. यह चटनी तरहतरह के इंफेक्श्स से लड़ने में हमारे शरीर की मदद करती है.

विधि: इस चटनी  को बनाने के लिए आप को चाहिए लहसुन, लौंग, काला नमक, जीरा और करी पत्ता. इन सभी चीजों को चने की दाल के साथ पीस कर चटनी तैयार करें.

 

Satyakatha: पत्नी की विदाई

सौजन्या- सत्यकथा

पिछले 2-3 दिनों से 20 वर्षीय नैंसी मानसिक और शारीरिक रूप से बहुत परेशान थी. इस की वजह यह थी कि उस का 21 वर्षीय पति साहिल चोपड़ा उसे प्रताडि़त कर रहा था. इस दौरान उस ने नैंसी की कई बार पिटाई भी कर दी थी.

नैंसी ने यह बात अपने घर वालों तक को नहीं बताई. इस की वजह यह थी कि उस ने घर वालों के विरोध के बावजूद साहिल से लव मैरिज की थी.

साहिल और उस की शादी को अभी 8 महीने ही हुए थे. पति के प्यार की जगह वह उस के जुल्मोसितम सह रही थी. नैंसी ने भले ही यह बात अपने मातापिता को नहीं बताई थी, लेकिन अपनी सहेली प्रांजलि और सरानिया को 10 नवंबर, 2019 को वाट्सऐप पर मैसेज भेज दी थी. इस मैसेज में उस ने पति द्वारा ज्यादा प्रताडि़त करने की जानकारी दी थी. इतना ही नहीं, उस ने सहेलियों को यह भी कह दिया था कि यदि 2 दिनों तक उस का फोन न मिले तो समझ लेना, साहिल ने उस की हत्या कर दी है.

दिल्ली की ही रहने वाली प्रांजलि और सरानिया नैंसी की पक्की सहेलियां थीं. दोनों समझ नहीं पा रही थीं कि नैंसी को बहुत प्यार करने वाला साहिल नैंसी पर हाथ क्यों उठाने लगा. इस की वजह क्या है, यह तो नैंसी से मुलाकात के बाद ही पता चल सकती थी. बहरहाल, वे रोजाना नैंसी से बातें करने लगीं.

लेकिन 2 दिन बाद ही नैंसी का फोन स्विच्ड औफ हो गया. प्रांजलि और सरानिया परेशान हो गईं कि नैंसी का फोन क्यों बंद है. नैंसी पति साहिल चोपड़ा के साथ पश्चिमी दिल्ली के जनकपुरी स्थित बी-1 ब्लौक में रह रही थी. सरानिया और प्रांजलि ने नैंसी की ससुराल देखी थी, इसलिए 13 नवंबर, 2019 को दोनों नैंसी से मिलने उस की ससुराल पहुंच गईं.

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ससुराल में जब नैंसी दिखाई नहीं दी तो उन्होंने उस के बारे में उस की सास रोसी से पूछा. रोसी ने बताया कि नैंसी और साहिल घूमने के लिए हरिद्वार गए हैं. दूसरे कमरे में साहिल के दादा बैठे हुए थे. पूछने पर उन्होंने बताया कि पतिपत्नी फ्रांस घूमने गए हैं.

दादा की बात सुन कर दोनों चौंकीं क्योंकि नैंसी के पास पासपोर्ट नहीं था. फिर वह विदेश कैसे जा सकती है. प्रांजलि और सरानिया जब नैंसी के ससुर अश्विनी चोपड़ा से बात की तो उन्होंने दोनों के जयपुर घूमने जाने की बात बताई.

घर के 3 लोगों द्वारा अलगअलग तरह की बातें दोनों सहेलियों को हजम नहीं हुईं. इस के बाद वे अपने घर चली गईं. उन्होंने इधरउधर फोन कर के नैंसी के बारे में पता लगाने की कोशिश की, पर कोई जानकारी नहीं मिली.

नैंसी की ये दोनों फ्रैंड्स अपनी दुनिया में व्यस्त हो गईं. 28 नवंबर को प्रांजलि व सरानिया ने फिर से नैंसी का नंबर मिलाया तो वह बंद मिला. तब उन्होंने उसी दिन यह जानकारी नैंसी के पिता संजय शर्मा को दे दी.

बेटी के लापता होने की जानकारी पा कर संजय शर्मा के होश उड़ गए. वह पश्चिमी दिल्ली के ही हरिनगर में रहते थे. बेटी नैंसी के बारे में पता करने के लिए वह उसी दिन उस की ससुराल जनकपुरी पहुंच गए. वहां साहिल की मां ने उन्हें बताया कि साहिल और नैंसी घर से 20 लाख से ज्यादा के जेवर ले कर कहीं भाग गए हैं.

संजय शर्मा को उन की बात पर विश्वास नहीं हुआ. काफी पूछताछ करने के बाद भी जब उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो अगले दिन 23 नवंबर को वह थाना जनकपुरी पहुंचे.

संजय शर्मा ने थानाप्रभारी जयप्रकाश से मुलाकात कर बेटी नैंसी के शादी करने से ले कर उस के गायब होने तक की बात विस्तार से बता दी. साथ ही उन्होंने नैंसी के पति साहिल, ससुर अश्विनी चोपड़ा और साहिल की बुआ के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

रिपोर्ट दर्ज करने के कई दिन बाद भी पुलिस ने नैंसी का पता लगाने की कोशिश नहीं की. तब संजय शर्मा ने डीसीपी और एसीपी से संपर्क किया. जब मामला उच्च अधिकारियों के संज्ञान में आया तो थानाप्रभारी को काररवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

थानाप्रभारी जयप्रकाश साहिल के घर पहुंचे तो वह घर पर नहीं मिला. उस के मातापिता यही कहते रहे कि साहिल नैंसी को ले कर कहीं घूमने गया है. लेकिन तब से दोनों के फोन बंद आ रहे हैं. घर वालों को कुछ चेतावनी दे कर थानाप्रभारी लौट आए.

थाने लौटने के बाद उन्होंने नैंसी और साहिल के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. साहिल चोपड़ा की काल डिटेल्स से पुलिस को पता चला कि 11 नवंबर की रात और 12 नवंबर को वह शुभम और बादल नाम के लड़कों के संपर्क में था. इन दोनों के साथ उस की लोकेशन हरियाणा के पानीपत की थी. जांच में पता चला कि शुभम उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर का और बादल करनाल के घरोंडा गांव का रहने वाला है.

ये तीनों पानीपत क्यों गए थे, यह जानकारी तीनों में से किसी से पूछताछ करने पर ही मिल सकती है. साहिल तो घर से लापता था, इसलिए पुलिस टीम सब से पहले करनाल के गांव घरोंडा स्थित बादल के घर पहुंची. वह घर पर मिल गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने शुभम को भी उस के घर से हिरासत में ले लिया. पूछताछ में पता चला कि शुभम साहिल के औफिस में काम करता था और बादल शुभम का ममेरा भाई था.

दिल्ली ला कर जब दोनों से नैंसी के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि नैंसी अब दुनिया में नहीं है. साहिल ने उस की हत्या कर लाश पानीपत में फेंक दी थी. थानाप्रभारी ने यह जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी.

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चूंकि नैंसी के पिता संजय शर्मा ने साहिल और उस के घर वालों के खिलाफ अपहरण और दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था, इसलिए पुलिस ने साहिल के घर वालों को थाने बुलवा लिया.

किसी तरह साहिल चोपड़ा को जब यह खबर मिली कि उस के घर वालों को पुलिस ने थाने में बैठा रखा है तो वह खुद भी थाने पहुंच गया. साहिल को यह पता नहीं था कि पुलिस उस की साजिश का न सिर्फ परदाफाश कर चुकी है बल्कि शुभम और बादल पकड़े भी जा चुके हैं.

पुलिस ने साहिल से नैंसी के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने 11 नवंबर, 2019 को नैंसी को पश्चिम विहार फ्लाईओवर के पास छोड़ दिया था.

थानाप्रभारी जयप्रकाश समझ गए साहिल बेहद चालाक है, आसानी से अपना जुर्म नहीं कबूलेगा. लिहाजा उन्होंने हिरासत में लिए गए शुभम और बादल को साहिल के सामने  बुला लिया. उन दोनों को देखते ही साहिल हक्काबक्का रह गया. उस के चेहरे का रंग उड़ गया.

अब उस के सामने सच बोलने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था, लिहाजा उस ने स्वीकार कर लिया कि वह अपनी पत्नी नैंसी की हत्या कर चुका है. अपने कर्मचारी शुभम और उस के दोस्त बादल के साथ नैंसी की हत्या करने के बाद उन लोगों ने उस की लाश पानीपत में ठिकाने लगा दी थी.

इस के बाद एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा की मौजूदगी में साहिल चोपड़ा, शुभम और बादल से पूछताछ की गई तो नैंसी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह झकझोर देने वाली थी—

पश्चिमी दिल्ली के हरिनगर के रहने वाले संजय शर्मा इलैक्ट्रिक मोटर वाइंडिंग का काम करते थे. उन की बड़ी बेटी नैंसी शर्मा (17 वर्ष) करीब 3 साल पहले विकासपुरी में कंप्यूटर सेंटर में जाती थी. वह कंप्यूटर कोर्स कर रही थी. वहीं पर उस की मुलाकात साहिल चोपड़ा (18 वर्ष) से हुई. साहिल चोपड़ा का पास में ही सेकेंडहैंड कारों की सेल परचेज का औफिस था. साहिल से पहले यह व्यवसाय उस के पिता अश्विनी चोपड़ा संभालते थे.

साहिल चोपड़ा का कार सेल परचेज का व्यवसाय अच्छा चल रहा था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. नैंसी शर्मा और साहिल की मुलाकात धीरेधीरे दोस्ती में बदल गई. दोनों ही जवानी के द्वार पर खड़े थे, इसलिए आकर्षण में बंध कर एकदूसरे को चाहने लगे.

इस के बाद नैंसी साहिल के साथ कार में बैठ कर सैरसपाटे करने लगी. उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. इतना ही नहीं, उन्होंने जीवन भर साथ रहने का वादा भी कर लिया था.

नैंसी उस समय नाबालिग थी, इस के बावजूद वह साहिल के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी. करीब 3 साल तक सुभाषनगर में लिवइन रिलेशन में रहने के बाद दोनों ने 27 मार्च, 2019 को गुरुद्वारे में शादी कर ली.

नैंसी ने शादी अपने घर वालों की मरजी के बिना की थी, इसलिए वह उस से खुश नहीं थे. घर वालों को शादी की सूचना भी उस समय मिली, जब नैंसी ने अपनी ससुराल पहुंच कर वाट्सऐप पर शादी के फोटो भेजे.

दरअसल, नैंसी तब छोटी ही थी, जब उस की मां उसे और पिता को छोड़ कर कहीं चली गई थी. वह अपने साथ छोटे बेटे को ले गई थी. नैंसी की परवरिश उस की दादी और चाची ने की थी. संजय शर्मा बिजनैस के सिलसिले में राजस्थान जाते रहते थे. बाद में उन्होंने दूसरी शादी कर ली.

बेटी बालिग थी. उस ने साहिल चोपड़ा से शादी अपनी मरजी से की थी, इसलिए वह कर भी क्या सकते थे. जवान बेटी के इस तरह चले जाने पर उन्हें बदनामी के साथ दुख भी अधिक हुआ.

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नैंसी जनकपुरी के बी-ब्लौक स्थित अपनी ससुराल में पति के साथ खुश थी. साहिल उस का हर तरह से खयाल रखता था. बहरहाल, उन की जिंदगी हंसीखुशी बीत रही थी. लेकिन उन की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी. नैंसी और साहिल के बीच कुछ महीनों बाद ही मतभेद शुरू हो गए.

इस की वजह यह थी कि नैंसी अकसर फोन पर व्यस्त रहती थी. देर रात तक वह किसी से फोन पर बातें करती थी. साहिल का कहना था कि दिन में वह किसी से भी बात करे, उसे कोई ऐतराज नहीं है लेकिन उस के औफिस से लौटने के बाद उस के पास भी बैठ जाया करे.

साहिल जब नैंसी से पूछता कि वह किस से बात करती है तो वह कह देती कि दोस्तों से बात करती है. पत्नी की यह बात साहिल को गले इसलिए नहीं उतरती थी, क्योंकि शादी से पहले नैंसी ने उसे बताया था कि उस का कोई भी दोस्त नहीं है.

जब शादी से पहले उस का कोई दोस्त नहीं था तो शादी होते ही अब कौन ऐसे नए दोस्त बन गए जो घंटों तक उस से बतियाने लगे. यही बात साहिल के दिल में वहम पैदा कर रही थी. नैंसी की बातों और व्यवहार से साहिल को शक था कि उस की पत्नी का जरूर किसी से कोई चक्कर चल रहा है, जिसे वह उस से छिपा रही है.

पति या पत्नी दोनों के मन में संदेह पैदा हो जाए तो वह कम होने के बजाए बढ़ता जाता है और फिर कभी भी विस्फोट के रूप में सामने आता है. जिस नैंसी को साहिल दिलोजान से प्यार करता था, वही उस के साथ कलह करने लगी थी. कभीकभी तो दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ जाता था कि साहिल उस की पिटाई भी कर देता था.

साहिल का उग्र रूप देख कर नैंसी को महसूस होने लगा था कि साहिल को अपना जीवनसाथी चुनना उस की बड़ी भूल थी. उसे इतनी जल्दी फैसला नहीं लेना चाहिए था.

चूंकि उस ने अपनी पसंद से की शादी थी, इसलिए इस की शिकायत वह अपने पिता से भी नहीं कर सकती थी. हां, अपनी सहेलियों से बात कर के वह अपना दर्द बांट लिया करती थी.

साहिल पत्नी की रोजरोज की कलह से तंग आ चुका था. आखिर उस ने फैसला कर लिया कि रोजरोज की किचकिच से अच्छा है कि नैंसी का खेल ही खत्म कर दे. इस बारे में साहिल ने अपने औफिस में काम करने वाले शुभम (24) से बात की. शुभम साहिल का साथ देने को तैयार हो गया.

साहिल को शुभम ने बताया कि उस का एक ममेरा भाई है बादल, जो करनाल के पास स्थित घरोंडा गांव में रहता है. उसे भी साथ ले लिया जाए तो काम आसान हो जाएगा.

साहिल ने शुभम से कह दिया कि इस बारे में वह बादल से बात कर ले. शुभम ने बादल से बात की तो उस ने हामी भर ली. योजना को कैसे अंजाम देना है, इस बारे में साहिल ने बादल और शुभम के साथ प्लानिंग की. बादल ने सलाह दी कि नैंसी को किसी बहाने पानीपत ले जाया जाए और किसी सुनसान इलाके में ले जा कर उस का काम तमाम कर दिया जाए.

योजना को कहां अंजाम देना है, इस की रेकी के लिए तीनों लोग 10 नवंबर, 2019 को पानीपत गए. काफी देर घूमने के बाद उन्हें रिफाइनरी के पास की सुनसान जगह ठीक  लगी. रेकी करने के बाद तीनों दिल्ली लौट आए.

इसी बीच नैंसी और साहिल के बीच की कलह चरम पर पहुंच गई, तभी नैंसी ने अपनी सहेलियों प्रांजलि और सरानिया को फोन कर के बता दिया था कि आजकल साहिल उस के साथ मारपीट करने लगा है. उस ने उस के घर से बाहर जाने पर भी पाबंदी लगा दी है, उस के साथ कुछ भी हो सकता है.

नैंसी को शायद पति का व्यवहार देख कर अपनी मौत की आहट मिल गई थी, तभी तो उस ने सहेलियों से कह दिया था कि अगर 2 दिनों तक उस का फोन न मिले तो समझ लेना कि साहिल ने उस की हत्या कर दी है.

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चूंकि साहिल को अपनी योजना को अंजाम देना था, इसलिए उस ने 11 नवंबर को सुबह से ही नैंसी के साथ प्यार भरा व्यवहार शुरू कर दिया. पति का बदला रुख देख कर नैंसी भी खुश हो गई. दोनों ने खुशी के साथ लंच किया.

लंच करने के दौरान ही साहिल ने नैंसी से कहा, ‘‘नैंसी, आज मुझे पानीपत में किसी से उधार की रकम लानी है. रकम ज्यादा है, इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम भी पिस्टल ले कर मेरे साथ चलो.’’

नैंसी के पास एक पिस्टल थी, जो उसे उस के किसी दोस्त ने 2 साल पहले गिफ्ट में दी थी. नैंसी ने उस पिस्टल के साथ कई फोटो भी खिंचवा रखे थे. पति के कहने पर नैंसी उस के साथ पानीपत जाने को तैयार हो गई.

शाम करीब साढ़े 6 बजे साहिल पत्नी को ले कर घर से अपनी कार में निकला. शुभम और बादल को भी उस ने घर पर बुला रखा था. शुभम कार चला रहा था और बादल शुभम के बराबर वाली सीट पर बैठा था. जबकि साहिल और नैंसी कार की पिछली सीट पर थे. कार में ही साहिल ने पत्नी से पिस्टल ले कर उस में 2 गोलियां डाल ली थीं.

नैंसी को यह पता नहीं था कि उस का पति उस के सामने ही मौत का सामान तैयार कर रहा है. उन्हें पानीपत पहुंचतेपहुंचते रात हो गई. शुभम कार को रिफाइनरी के पास ददलाना गांव की एक सुनसान जगह पर ले गया. वहीं पर साहिल ने बाथरूम जाने के बहाने कार रुकवा ली. इस से पहले कि नैंसी कुछ समझ पाती, आगे की सीट पर बैठे शुभम और बादल ने उसे दबोच लिया.

तभी साहिल ने नैंसी के सिर से सटा कर गोली चला दी, लेकिन गोली नहीं चली और हड़बड़ाहट में साहिल के हाथ से पिस्टल छूट कर नीचे गिर गई. नैंसी अब पूरा माजरा समझ गई थी कि पति उसे यहां मारने के लिए लाया है. वह साहिल के सामने अपनी जान बचाने की गुहार लगाने लगी, लेकिन पत्नी के गिड़गिड़ाने का उस पर असर नहीं हुआ.

साहिल ने फुरती से कार में गिरी पिस्टल और गोली उठाई. गोली उस ने दोबारा लोड की और नैंसी के सिर से सटा कर गोली चला दी. इस बार गोली उस के सिर के आरपार हो गई. तभी उस ने दूसरी गोली भी मार दी.

गोली लगते ही नैंसी के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा और वह सीट पर ही लुढ़क गई. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. फिर तीनों ने उस की लाश उठा कर झाडि़यों में फेंक दी. साहिल ने उस का मोबाइल अपने पास रख लिया. लाश ठिकाने लगा कर तीनों दिल्ली लौट आए. साहिल अपने घर जाने के बजाए दोनों साथियों के साथ जनकपुरी सी-1 ब्लौक और डाबड़ी के बीच स्थित एक लौज में रुका.

अपनी कार उस ने पास में ही स्थित सीतापुरी इलाके में ऐसी जगह खड़ी की, जहां स्थानीय लोग अपनी कारें खड़ी करते थे. यह इलाका चानन देवी अस्पताल के नजदीक है. नैंसी का मोबाइल साहिल ने सुभाषनगर मैट्रो स्टेशन के पास फेंक दिया था.

अगले दिन शुभम और बादल अपनेअपने घर चले गए. साहिल भी इधरउधर छिपता रहा.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस उन्हें ले कर पानीपत में उसी जगह पहुंची, जहां उन्होंने नैंसी की लाश ठिकाने लगाई थी. उन की निशानदेही पर पुलिस ने ददलाना गांव की झाडि़यों से नैंसी की सड़ीगली लाश बरामद कर ली. जरूरी काररवाई कर पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए नैंसी की लाश पानीपत के सरकारी अस्पताल में भेज दी.

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इस के बाद पुलिस के तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश कर उन का 2 दिन का रिमांड लिया. रिमांड अवधि में आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने चानन देवी अस्पताल के नजदीक खड़ी साहिल की कार बरामद की. कार की मैट के नीचे छिपाई गई वह पिस्टल भी पुलिस ने बरामद कर ली, जिस से नैंसी की हत्या की गई थी. पुलिस नैंसी का मोबाइल बरामद नहीं कर सकी.

आरोपी साहिल चोपड़ा, शुभम और बादल से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

19 दिन 19 टिप्स: इन आसान कसरतों से ठीक करें कमर दर्द

जिस तरह की हमारी जीवनशैली हो गई है उसके कारण हमें कई तरह की परेशानियां होने लगी हैं. इनमें कमर दर्द कुछ प्रमुख परेशानियों में से एक हैं. सुस्त लाइफस्टाइल और लंबे समय तक औफिस में बैठने से कमर दर्द की परेशानी होती है. पर अगर आपकी लाइफस्टाइल एक्टिव है, आप एक्सरसाइजेज करते रहते हैं तो आप इस परेशानी से निजात पा सकते हैं.  पर जिस तरह की लोगों की जिंदगी भागदौड़ वाली हो गई है, सबके लिए एक्सरसाइज कर पाना मुश्किल होता है. लोगों के पास उतना वक्त नहीं होता.  ऐसे में हम आपको कुछ बेहद आसान एक्सरसाइजेज बताने वाले हैं जिसमें बिना पसीना बहाए, सिर्फ घर में बैठ कर आप कमर दर्द को दूर सर सकते हैं.

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  • कुर्सी पर बैठ कर एक हाथ ऊपर की ओर ले जाएं और दूसरे हाथ की ओर झुकें. कम से कम 20 सेकेंड तक इस पोजिशन में रहें और दूसरे हाथ से भी ऐसा ही करें.
  • अपने हाथों से अपने दोनों घुटनों को पकड़ें और उसे ऊपर की ओर खीचें. इससे आपकी कमर में खिंचाव होगा. इस पोजिशन में 15 से 20 सेकेंड तक रहें और इसे 4 से 5 बार तक करें.
  • अपनी ऐड़ी को जमीन पर रख लें. उसे बिल्कुल सीधा रखें. इसके बाद अपने शरीर को आगे की ओर खींचे. इस दौरान अपने शरीर को बिल्कुल सीधा रखें. इसे करीब 30 सेकेंड्स तक 5 से 6 बार करें.
  • कुर्सी पर बैठ कर अपने हाथों को अपनी जांघ के नीचे दबा लें. इसके बाद अपने शरीर को आगे की ओर झुकाएं. इससे आपकी कमर में खिचाव होगा. इसे 3 से 5 बार तक करें.

खेतीबारी, खेतीशिक्षा की महत्ता समझने की जरूरत

विश्व में खाद्यान्न संकट पैदा होने की आहट के बीच और वायरसरूपी हमले के मद्देनजर कृषि प्रधान देश भारत की खेतीबारी पर भी असर पड़ना तय है. अब तो ऐसी अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि क्या हम कृषि प्रधान देश नहीं रहे.

भारत कृषि प्रधान देश है या नहीं रहा, इसे दो तरह से देखे जाने की जरूरत है. जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में अब कृषि की हिस्सेदारी बहुत कम रह गई है और यही हालात रहे तो अगले 15 वर्षों में भारत की जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी और भी कम हो जाएगी. ऐसे में आय के दृष्टिकोण से देखा जाए तो अब भारत कृषि प्रधान नहीं रह गया है, लेकिन यह पूरी तरह से सही नहीं है, क्योंकि कृषि पर निर्भर आबादी की दृष्टि से देखा जाए तो हम अभी भी कृषि प्रधान देश हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक, लगभग 55 फीसदी श्रम शक्ति (वर्क फोर्स) कृषि पर निर्भर है. कृषि पर निर्भर आबादी तो 65-70 फीसदी होगी और एनएसएसओ के मुताबिक, 2011 में 49 फीसदी श्रम शक्ति कृषि पर निर्भर थी और अब भी लगभग 44 फीसदी श्रम शक्ति कृषि पर निर्भर है. सीधे-सीधे यह कह देना कि ‘भारत कृषि प्रधान देश नहीं रहा’ सही नहीं है.

अब यहां यह समझना जरूरी है कि कृषि से जुड़ी आबादी क्या करती है? पिछले कई सर्वे बताते हैं कि कई राज्य ऐसे हैं, जहां फसल की खेती से आमदनी कम है, लेकिन वहां के छोटे या सीमांत किसान या भूमिहीन किसानों की आय मजदूरी से भी होती है, वे बाहर नहीं जाते, बल्कि वहीं बड़े किसानों के पास खेत में काम करते हैं. वे कोई गैरकृषि गतिविधि नहीं करते। केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक सहित कई राज्यों में किसानों की जो कुल आमदनी है, उसमें खेतिहर मजदूरों का हिस्सा काफी उल्लेखनीय है. इसे गैरकृषि आय माना जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है. जिसे अभी गैरकृषि आय कहा जा रहा है, सही माने में वह गैरकृषि आय नहीं है.  हां, गैर कृषि व्यापार आय की बात करें तो उसका अनुपात काफी कम है. इसलिए अभी यह कह देना जल्दबाजी होगा कि कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में कमी आ रही है. इसकी एक वजह यह भी है कि देश में अभी भी कृषि क्षेत्र में जितनी संभावनाएं हैं, उसका दोहन ही नहीं किया गया.

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लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि गैरकृषि आय की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत नहीं है. देश में गैरकृषि से होने वाली आय को भी बढ़ाने की सख्त जरूरत है. कृषि पर निर्भर इतनी बड़ी आबादी को केवल कृषि के भरोसे नहीं छोड़ सकते. अब या तो कृषि से होने वाली आमदनी बढ़ाइए या फिर गैरकृषि आमदनी बढ़ाइए.

किसानों को ऐसे अवसर प्रदान करने होंगे कि वे अपनी खेती के अलावा दूसरे कार्यों से आमदनी बढ़ाएं, जैसे पशुपालन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन आदि. सही माने में किसानों की सुनिश्चित आमदनी गैरकृषि कार्य से ही होती है, वरना तो कृषि से होने वाली आमदनी का कोई भरोसा नहीं. कभी सूखा पड़ गया, कभी बाढ़ आ गई, कभी आग लग गई और अब वायरस – कुलमिला कर खेतीबारी बहुत जोखिमभरा रोजगार का साधन हो चुका है. इसलिए गैरकृषि आय पर फोकस बढ़ाना होगा.

हालांकि, केवल गैरकृषि साधन बढ़ाने से ही किसानों की दशा नहीं सुधरेगी, उन्हें शिक्षा भी देनी होगी. किसानों को गांवों में ही बुनियादी सुविधाएं देनी होंगी. इसमें स्वास्थ्य सुविधाएं, बाजार, बैंक जैसी सेवाएं भी शामिल हैं. अगर किसान के बच्चे शिक्षित होंगे तो वे गैरकृषि क्षेत्र में नौकरी भी कर सकते हैं. कौशल विकास कार्यक्रम चला कर उन्हें तकनीकी तौर पर मजबूत करने से वे उद्यमिता की ओर भी अग्रसर होंगे. शिक्षा के अलग-अलग फायदे होते हैं. युवाओं के लिए, खासकर, यह सब करना पड़ेगा.

लेकिन कुछ हो नहीं रहा है. न तो कृषि क्षेत्र और ना गैरकृषि क्षेत्र की ओर कोई विशेष ध्यान दिया जा रहा है. ऐसे में क्या होगा? किसान और उसके परिवारों के सामने भूखमरी के सिवा रास्ता नहीं बचेगा या वे आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो जाएंगे.

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देश की व्यवस्था अगर कृषि क्षेत्र में सुधार लाना चाहती है तो कृषि शिक्षा पर खास ध्यान देना होगा. अब कृषि क्षेत्र में नई-नई तकनीक की बात की जा रही है.  ड्रोन के इस्तेमाल की बात हो रही है। सिंचाई में नई तकनीक की बात हो रही है. लेकिन यह सब तब ही संभव है, जब किसान को उसका तकनीकी ज्ञान हो. उसे इसकी शिक्षा देने की जरूरत है. किसानों को ट्रेंड करना होगा ताकि वे खेतीबारी में सुधार कर सकें. साथ ही, कृषि क्षेत्र में नौकरी कर सकें. राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो इनोवेशन हो रहे हैं उन्हें सरकार अगर जमीनी स्तर पर लागू नहीं करेगी तो कृषि क्षेत्र में सुधार नहीं होगा. इसलिए कृषि शिक्षा की ओर बहुत ध्यान देना होगा.

सरकार यदि चाहती है कि किसान के बच्चे भी कृषि कार्य ही करे तो उन्हें कृषि शिक्षा देने की जरूरत है. खासकर, आधुनिक तकनीक का ज्ञान देना पड़ेगा. तभी जाकर वे कृषि क्षेत्र में रहेंगे और आमदनी बढ़ाएंगे, लेकिन ओवरऔल जो स्थिति है, उससे लगता है कि कृषि क्षेत्र में लोग रहेंगे नहीं. खासकर युवा पीढ़ी. इसकी बड़ी वजह यह भी है कि खेत छोटे होते जा रहे हैं, जिससे आमदनी ज्यादा होती नहीं है. रिस्क भी बहुत है, लोग तैयार नहीं हो रहे हैं. अब तक हम कोई ऐसा मैकेनिज्म तैयार नहीं कर पाए, जिससे खेती को जोखिम मुक्त बनाया जा सके. बीमा योजनाएं भी यह काम नहीं कर पाई हैं. सपोर्ट सिस्टम नहीं है. पैदावार ज्यादा हो जाए तो फेंकना पड़ता है. सरकार को सिस्टम बनाना होगा कि वह खेती को रिस्क फ्री कर दे.

युवा कृषि की ओर जाना चाहते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं बढ़ी हैं, लेकिन सरकारी कृषि विश्वविद्यालयों में सीटें नहीं बढ़ाई जा रही हैं, उन्हें सुविधाएं भी प्रदान नहीं की जा रही हैं. इसलिए इस क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर हाथ मार रहा है. पिछले दिनों सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईएसएआर) से कहा है कि वह अपने स्तर पर संसाधन जुटाए. अब अगर वैज्ञानिक ही संसाधन जुटाने लगेगा तो वह रिसर्च क्या करेगा? संसाधन ही जुटाना था तो वह वैज्ञानिक क्यों बना?

यह सही नहीं है.  इससे सरकारी क्षेत्र में रिसर्च खत्म हो जाएगी. प्राइवेट कंपनियां ही कृषि क्षेत्र में रिसर्च कराएंगी. जिनको बीज बेचना है, उर्वरक बेचना है, मशीन बेचना है, वे लोग ही कृषि क्षेत्र में रिसर्च करेंगे और अपने मुनाफे के लिए उसे लागू करेंगे. इससे प्राइवेट सेक्टर को फायदा होगा.

ऐसी हालत में कृषि शिक्षा, जो भी उपलब्ध है, चौपट होगी, उसकी अहमियत कम होगी और खेतीबारी की गुणवत्ता, जैसी भी है, भी प्रभावित होगी व किसी न किसी रूप में खाद्यान्न का संकट भी महसूस किया जाता रहेगा.

 

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