फिल्म खत्म होने के बाद वे लोग मौल में ही घूमते रहे, फिर थोड़ी देर बाद मौल के ही एक रैस्टोरैंट में डिनर कर के लौटे. पूरे समय विनीत हूंहां के अलावा कुछ नहीं बोला. विनीत के कारण लता को भी चुप रहना पड़ रहा था. बस रोहित और अंजलि ही दुनियाजहान की बातों में खोए हुए थे. दूसरे दिन भी लता किचन में रोटियां बनाने पहुंची, लेकिन विनीत नहीं गया. वह अंजलि के आसपास घूमता और बातें करता रहा, क्योंकि वह जानता था कि या तो अंजलि रोहित के घर चली जाएगी या फिर वह यहां आ जाएगा, क्योंकि वह अभी तक औफिस नहीं गया होगा. लिहाजा, सारी रोटियां लता को अकेले ही बनानी पड़ीं. वह तो विनीत के लिए ही यहां आती है. जब इस बार विनीत रोहित की वजह से उखड़ा हुआ है और उस का पूरा ध्यान अंजलि पर ही लगा रहता है, तो वह बेवजह अपने दिन खराब क्यों करे. अत: विनीत के औफिस जाने के समय उस ने कहा कि वह उसे बस में बैठा दे.
‘‘अरे भाभी, आप इतनी जल्दी जा रही हैं. आप हैं तो घूमनेफिरने में कितना मजा आ रहा है. कुछ दिन और रुक जाइए. कल रोहित ने हाफ डे लिया है. हम सब लेक पर घूमने चलेंगे,’’ अंजलि ने लता को रोक लिया.
विनीत जलभुन गया. पहली बार उसे लता का रहना बुरा लग रहा था. उस ने लेक पर जाने का प्रोग्राम बहुत टालना चाहा तो अंजलि चिढ़ गई. बोली, ‘‘क्यों विनीत, इस से पहले तो जब भी लता भाभी आती थीं तुम छुट्टी लेले कर फिल्में देखने और घूमने ले जाते थे अब अचानक तुम्हें क्या हो गया ’’ अंजलि की बात पर विनीत निरुत्तर हो गया. वह मनमसोस कर दूसरे दिन सब के साथ लेक पर गया. हमेशा अंजलि को उपेक्षित सा छोड़ कर लता के साथ घूमनेफिरने के मजे लेने वाला विनीत अब लता से भी कटाकटा सा घूम रहा था, क्योंकि उस का सारा ध्यान तो अंजलि और रोहित की बातों पर लगा था. घर आ कर लता मुंह फुला कर जल्दी सोने चली गई. अंजलि कौफी बना लाई और रोहित के साथ बातें करने लगी. विनीत थोड़ी देर बैठा रहा, फिर तंग आ कर सोने चला गया.
दूसरे दिन लता चली गई. विनीत ने चैन की सांस ली. लता थी तो सारा समय विनीत से चिपकी रहती थी और अंजलि को पूरी आजादी मिल जाती थी रोहित के साथ रहने की. अब तो विनीत ने लता को फोन करना भी बहुत कम कर दिया था. लता ही फोन करती तो विनीत थोड़ीबहुत बातचीत कर के फोन रख देता. लता भी विनीत की बदलती प्रवृत्ति को समझ गई थी. टीवी देखते समय वह यथासंभव अंजलि के पास सट कर बैठता या फिर उस का हाथ पकड़ कर ही बैठता जैसे अगर उस ने हाथ नहीं पकड़ा तो वह भाग जाएगी. अंजलि को उस की इन हरकतों से कोफ्त होती. विनीत रोहित से बचने के लिए अकसर शाम को या छुट्टी वाले दिन बाहर लंच या डिनर अथवा शौंपिग का प्रोग्राम बना लेता. अंजलि को और चिढ़ होती, क्योंकि वह जानती थी ये सब सिर्फ उसे रोहित से दूर करने के लिए है. 2-3 महीने निकल गए. अंजलि बदस्तूर रोहित से हंसतीबोलती. एक दिन विनीत से आखिर रहा नहीं गया. वह अंजलि से उलझ ही गया. आज वह अपने दिल की तिलमिलाहट दूर कर लेना चाहता था.
‘‘अंजलि, आखिर यह रोहित के साथ तुम्हारा क्या चल रहा है… तुम्हें नहीं लगता कि तुम उस में कुछ ज्यादा ही रुचि लेने लगी हो ’’
‘‘बिलकुल भी नहीं विनीत. मैं तो बिलकुल सामान्य व्यवहार कर रही हूं. इतना हंसनाबोलना तो चलता है न ’’ अंजलि ने जवाब दिया.
‘‘थोड़ाबहुत कहां तुम तो आजकल उस के साथ बहुत ही ज्यादा इन्वौल्व हो रही हो, विनीत बोला.’’
‘‘बिलकुल नहीं. कभीकभार ही तो साथ मिलतेबैठते हैं,’’ अंजलि लापरवाही से बोली.
‘‘कभीकभार कहां रोज तो मुंह उठा कर चला आता है और फिर पूरा समय खाना खाते हुए टीवी देखते तुम से सट कर बैठता है,’’ विनीत झल्ला कर बोला.
‘‘तो क्या हुआ साथ बैठना कोई गलत है क्या आदमी को इतना खुले विचारों वाला तो होना ही चाहिए न ’’ अंजलि ने लता के मामले में कही विनीत की बात को ही वापस उस के मुंह पर मारा.
कुछ क्षण को विनीत सकापका गया. उसे समझ नहीं आया कि क्या कहे. फिर अकड़ कर बोला, ‘‘मेरा डायलौग मुझे मत मारो. मेरी बात अलग है.’’
‘‘क्यों तुम्हारी बात क्यों अलग है इसलिए कि तुम पुरुष हो, कुछ भी कर सकते हो और मैं औरत हूं तो मुझे तुम्हारे कहने के हिसाब से चलना पड़ेगा क्यों, क्या मुझ में अपना अच्छाबुरा समझने की अकल नहीं है ’’ अंजलि तुनक कर बोली.
‘‘मैं वादा करता हूं अंजलि मैं अपनी फ्लर्टिंग की आदत छोड़ दूंगा. बस तुम रोहित से दूरी बना लो.’’
विनीत का मुंह हारे हुए जुआरी जैसा हो गया था.
‘‘अगर मैं ने रोहित से दूरी बना भी ली तो आप वापस अपने पुराने ढर्रे पर आ जाओगे, क्योंकि आप दिल से नहीं बदल रहे. सिर्फ मेरे और रोहित के बीच की नजदीकियों के डर से बदलने की बात कर रहे हो…जिस दिन यह डर खत्म हो जाएगा आप फिर अपनी बिंदास हरकतों पर उतर आओगे.’’
‘‘यह अकेले बाहर घुमाने ले जाना, लता भाभी को भी अवौइड करना, मेरे आसपास मंडराते रहना, ये बस मेरे प्रति सच्चे प्यार की वजह से नहीं है, बल्कि यह मुझे और रोहित को ले कर तुम्हारे मन में पनप रही असुरक्षा की भावना की प्रतिक्रिया मात्र है.
‘‘विनीत आज तुम 3 महीने में ही डर कर इतना परेशान हो गए. लेकिन कभी मेरे दर्द का जरा सा भी एहसास नहीं किया, जिसे मैं पिछले 2 सालों से सहती आ रही हूं.’’
‘‘मुझे माफ कर दो अंजलि…मैं सचमुच गलत हूं. मैं अपने डर और ईर्ष्या के कारण ही तुम पर दबाव बनाना चाह रहा था कि तुम रोहित से बात करना बंद कर दो. मैं वास्तव में खुदगर्ज और असुरक्षा की भावना से ग्रस्त व्यक्ति हूं. मुझे माफ कर दो अंजलि,’’ विनीत की आंखें भर आईं.
विनीत के स्वर की सचाई सुन कर और आंखों में पश्चात्ताप के आंसू देख कर एकबारगी अंजलि का मन पिघल गया, लेकिन तुरंत ही उस ने अपनेआप को संभाल लिया और विनीत के सामने से हट गई. यह सब ढोंग है. वह अब विनीत पर किसी भी तरह से भरोसा नहीं कर सकती. रोहित न सिर्फ उस का बहुत अच्छा दोस्त बन चुका है, बल्कि उस के दिल के भी काफी करीब आ गया है. विनीत की लता से नजदीकियों ने अंजलि के मन में जो एक खालीपन और अकेलापन पैदा कर दिया था उसे बहुत हद तक रोहित ने भर दिया था. अब वास्तव में अंजलि को कोई फर्क नहीं पड़ता था कि विनीत क्या करता है, किस से बातें करता है या कहां आताजाता है. अंजलि अब अपनी खुशी में मगन रहती. उसे भी एक मस्त, आगेपीछे घूमने वाला साथी मिल गया था.
हां, विनीत जरूर अपनी गलती समझ गया था. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि लता के साथ उस के अनुचित व्यवहार का परिणाम एक दिन उस के घर में ऐसी आग लगा देगा. उस ने लता से पूरी तरह से रिश्ता तोड़ लिया था. लता को भी अक्ल आ गई थी कि देवर देवर होता है और पति पति. आप हावभाव दिखा कर परपुरुष को हमेशा के लिए अपने नाम नहीं लिखवा सकते. वह तो सोचती थी कि विनीत पूरी तरह से उस के पल्लू से बंधा है और उम्र भर बंधा रहेगा, लेकिन अंजलि के जीवन में रोहित के आ जाने से सारा परिदृश्य ही बदल गया. बच्चों की परीक्षा खत्म होने पर लता ने अपना बोरियाबिस्तर समेट कर अपने पति के पास बैंगलुरु चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. देवर को मुट्ठी में पकड़ कर रखने के चक्कर में कहीं पति भी हाथ से न निकल जाए. 2 नावों की सवारी करने के लालच में कहीं वह बीच समंदर में ही न गिर पड़े.
विनीत की भी अक्ल ठिकाने आ गई थी. अपनी मौजमस्ती में चूर वह भूल गया था कि अगर पत्नी से वफादारी और ईमानदारी चाहते हो तो पति को भी त्याग करना ही पड़ता है. ताली एक हाथ से नहीं बजती. पति को भी रिश्तों की मर्यादा निभानी पड़ती है. विनीत के स्वभाव में अप्रत्याशित परिवर्तन ने अंजलि को भी सोचने पर मजबूर कर दिया. आजकल विनीत अंजलि और घर का पूरा ध्यान रखता. अपनी सारी जिम्मेदारियां पूरी निष्ठा से निभाता. उस के व्यवहार में कहीं कोई बनावटीपन नहीं था. उसे सबक मिल गया था. उस के स्वभाव में सचाई की झलक दिखती थी. अंजलि को पता लगा कि लता अपने पति के पास वापस जा चुकी है, उस ने अपना घर उजड़ने से बचा लिया. अब अंजलि ऊहापोह की स्थिति में थी. वह सच्चा प्यार तो विनीत से ही करती है, मगर रोहित के आकर्षण को भी तोड़ नहीं पा रही थी. विनीत को सबक सिखाने में उसे खुद भी सबक मिल गया कि रोहित के साथ उस के रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है.
इसी बीच रोहित के घर वालों ने उस के लिए लड़कियां देखनी शुरू कर दीं. अंजलि और रोहित जानते थे कि एक दिन तो यह होना ही था. बेवजह बन गए अनचाहे रिश्ते के बिना झंझट खत्म होने की संभावना ने अंजलि के दिल में एक सुकून सा भर दिया. चलो अच्छा है इस बहाने रोहित और उस के बीच अपनेआप दूरी आ जाएगी. वह भी इस दोहरी जिंदगी से ऊब गई थी. फिर उस का विनीत भी सुधर चुका था. रोहित को भी कई दिनों से लगने लगा था कि विवाहित स्त्री के रूप की मृगमरीचिका में भटकने से कुछ हासिल नहीं होगा. अंजलि सिर्फ विनीत की पत्नी है और उसी के साथ खुश रह सकती है. दूसरे की पत्नी के साथ उस का जीवन कभी सुरक्षित या खुशहाल नहीं हो सकता. उन दोनों के बीच रोहित हर हाल में पराया और बाहरी ही रहेगा. विनीत के दिलफेंक स्वभाव से तंग आ कर अंजलि मात्र परिस्थितिवश उस के करीब आ गई थी और कुछ नहीं. इस सचाई से अवगत होते ही रोहित का मोहभंग हो गया. पिछले कुछ दिनों से वह देख रहा था कि अंजलि उस से कटने लगी है. अपनी स्थिति जान कर चुपचाप अपने घर लौट गया.
दूसरे दिन सुबहसुबह अंजलि ने घर की सारी खिड़कियां खोल दीं. पिछले कुछ महीनों से घर का वातावरण तनावपूर्ण और घुटन भरा हो गया था. आज भी हवा एकदम ताजा और खुशनुमा थी. लता और रोहित नाम के अनचाहे मेहमान उन के घर और जीवन से हमेशा के लिए जा चुके थे. आज अंजलि को अपना दिलदिमाग एकदम तरोताजा लग रहा था. वह घर को नए सिरे से संवारते हुए गुनगुना रही थी. ‘‘बहुत दिनों से तुम ने शौपिंग नहीं की, चलो आज मैं छुट्टी ले लेता हूं. जी भर कर शौपिंग करो और खाना भी बाहर ही खा लेंगे,’’ उस का खुशगवार मूड देख कर विनीत बोला.
‘‘सच ’’ अंजलि चहकी, ‘‘शहर में हैंडीक्राफ्ट मेला लगा है. वहां भी ले चलोगे ’’
‘‘हां बाबा जहां कहोगी वहां ले चलूंगा. अब जल्दी से तैयार हो जाओ,’’ विनीत हंसते हुए बोला.
‘‘ओह विनीत, तुम कितने अच्छे हो. बस मैं हूं, तुम हो और हमारा अपना घर है,’’ अंजलि उस के सीने से लिपटती हुई भावुक स्वर में बोली.
विनीत ने उसे कस कर बांहों में भर लिया.