Download App

श्रम कानून में बदलाव: मजदूर नहीं मनुवादी सोंच का विकास

श्रम कानून में बदलाव की वजह उद्योगपतियों को सहूलियत देना नहीं बल्कि मनुवादी सोंच का विकास करके सांमतवादी व्यवस्था को कायम करना है. बसपा जैसे जिन राजनीतिक दलों को इसका विरोध करना चाहिये वह केवल बयानों तक सीमित रह गये है. समाज के जिस बहुजन समाज के अधिकारों की रक्षा के लिये बसपा का गठन हुआ था वह खुद अब मौन है. इससे बेखौफ मनुवादी सोंच रखने वालों के हौसले बुलंद है. वह अपने राजनीतिक और सामाजिक बदलाव के एजेंडे पर आगे बढ रहे है. मजदूरों के अधिकारों की रक्षा और रोजगार देने के नाम पर दलित समाज को फिर से बुधंआ मजदूरी के दलदल में ढकेलने की मूहिम चल रही है.

 उत्तर प्रदेश सरकार ने श्रम कानूनों को 3 साल के लिये अस्थाईतौर पर बंद कर दिया है. सरकार के इस कदम से प्रदेश में उद्योगों को बढावा दिया जायेगा. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेष यादव का कहना है भाजपा सरकार का यह काम मजदूर विरोधी है. इससे श्रमिकों का षोषण बढेगा. जिससे औद्योगिक वातावरण में अषांति फैलेगी जो उ़द्योग जगत के लिये भी अच्छी बात नहीं होगी. इस कारण प्रदेश में कोई बडा उद्योग काम नहीं करेगा. यह बात सच है कि केन्द्र की भाजपा सरकार उद्योगपतियों का पक्ष लेने के लिये मशहूर है.

 2014 से 2020 के बीच भाजपा सरकार की हर नीति मजदूर विरोधी रही है. धर्म के नाम पर यह सरकार वोट लेने में सफल होती रही है. इस सरकार ने धर्म के नाम पर भेदभाव करने के बाद अब मजदूर और मालिक के नाम पर राजनीति करने का प्रयास कर रही है. मजदूर कानून इसका पहला कदम है. कोरोना संकट को हल करने के नाम पर भाजपा सरकार अब उद्योगपतियों को संरक्षण देने के लिये मजदूरो के अधिकारों का हनन करेगी.

ये भी पढ़ें-पंडे पुजारियों को क्यों चाहिए मुफ्त का पैसा?

 कोरोना संकट का राजनीति पर बडा प्रभाव पडने वाला है. गरीब, दलित और मजदूरों ने इस दौरान जिस प्रकार के दर्द को झेला है उससे वह उबर पाने की हालत में नहीं है. ऐसे में अब वह प्रवासी मजदूर के रूप में जल्दी कमाई करने बाहरी जगहों पर जाने वाले नहीं है. ऐसे में महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और दक्षिण भारत के कई राज्यों में मजदूरों का संकट आने वाला है. इसी तरह से राजनीति पर भी इसका बडा प्रभाव पडेगा. मजदूर और उनके परिवार अब उन राजनीतिे दलों को ही समर्थन करेगे जिन्होने संकट के समय में उनका साथ दिया होगा. मजूदरों में आये इसी बदलाव को देखते हुये भाजपा को लौक डाउन के 40 दिन बाद मजदूरों की मदद के लिये कदम उठाने के साथ ही साथ बस और रेल गाडियों से उनको घरो तक ले जाने की व्यवस्था करनी पडी.

 मजदूरों पर राजनीति:

भाजपा ने जैसे ही मजदूरों को खुष करने का काम शुरू किया विरोधी दलों ने भी मजदूरों के एजेंडे पर राजनीति बयान देने षुरू कर दिये. सपा नेता अखिलेष यादव के बाद बसपा नेता मायावती ने कहा कि नये कानून में श्रमिको से 8 घंटे की जगह पर 12 घंटे काम लेने की बात पूरी तरह से गलत है. यह श्रमिको के लिये दमनकारी और शोषणकारी है. श्रम कानून में बदलाव श्रमिको के हित में न होकर उनके खिलाफ है. करोना प्रकोप में मजदूरों का सबसे बुरा हाल है. उस पर 8 घंटे ही जगह 12 घंटे काम लेना षोषणकारी व्यवस्था को पुनः लागू करने की तरह है. मायावती ने इस बदलाव को अति दुखद और दुर्भायपूर्ण बताया.

ये भी पढ़ें-सकते में 16 करोड़ अनुयायी: क्या वाकई बलात्कारी हैं डॉ प्रणव पंडया?

 सपा और बसपा की ही तरह कांग्रेस ने श्रम कानून में बदलाव की आलोचना की बल्कि इस बदलाव को वापस लेने की मांग भी की. कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी ने कहा कि सरकार मजदूरों की मदद करने, उनके परिवारों को कोई सुरक्षा कचव देने की जगह पर  उनके अधिकारों को कुचलने का काम कर रही है. मजदूर देष के निर्माता है भाजपा सरकार के बंधक नहीं है.

मनुवादी सोंच पर अमल:

दलित चिंतक रामचन्द्र कटियार कहते है बसपा नेता मायावती का विरोध केवल दिखावा मात्र है. वह इस कानून की मूल वजह पर बात करने से बच रही है. श्रम कानून में बदलाव के पीछे भाजपा की मनुवादी सोंच है. जो गरीब और दलित को हमेषा दबा कर रखने में यकीन करती है. इसके विरोध में बहुजन आन्दोलन बाबा साहब और काशीराम ने शुरू किया था. पर मायावती ब्राहमणों के दबाव में इस बात को नजरअंदाज कर रही है. जबकि उनसे ज्यादा उम्मीद की जा रही थी कि वह इस कानून के बदलाव के मूल वजह पर चर्चा करेगी. श्रम कानून में बदलाव के पीछे मनुवादी सोंच को समाज में फिर से जगह देना है. जिसके सहारे दलित और मजदूरों का फिर से षोषण हो सके. अभी यह 3 साल लागू करने की बात भले हो रही हो पर एक बार यह लागू हो गया फिर इसको हटाना संभाव नहीं होगा.

 राम चन्द्र कटियार कहते है भाजपा ने बड़ी चतुराई के साथ इस कानून को लागू कराने का काम श्रममंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य से कराया. जो दलित नेता है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने बाबा साहब के दिखाये रास्ते पर चलकर काशीराम और मायावती के साथ बहुजन समाज के लिये काम किया. बसपा की सरकार में मंत्री भी बने. मायावती के प्रमुख साथी थे. 2017 के विधानसभा चुनाव में वह बसपा का साथ छोडकर भाजपा के साथ गये चुनाव जीता और योगी सरकार में श्रम मंत्री बने. श्रम कानून में बदलाव को लेकर भाजपा ने स्वामी प्रसाद मौर्य को ही आगे किया जिससे सरकार पर दलित विरोधी होने की बात की काट की जा सके. श्रम कानून में बदलाव का ठिकरा दलित जाति के ही स्वामी प्रसाद मौर्य पर फोड़ा जा सके.

 अब दलितो की बारी:

मजदूरों में बडी संख्या दलितों की है. ऐसे में श्रम कानून में बदलाव का प्रभाव उन पर सबसे पहले पडेगा. भाजपा की मनुवादी सोंच में अब दलितों की बारी है. भाजपा ऊंची जातियों की मानसिकता की पक्षधर रही है. इस मानसिकता के ही कारण वह मजदूर और मालिक में भेदभाव करती रही है. इसी वजह से भाजपा जातीय आरक्षण की जगह आर्थिक आधार पर आरक्षण की समर्थक रही है. बहुमत की सरकार बनाने के बाद सबसे पहले उसने धारा 370, कष्मीर, तीन तलाक कानून और राम मंदिर मसले को हल करने का काम किया. पार्टी के अगले निषाने पर आरक्षण है. ऊंची जातियों में गरीब वर्ग का 10 फीसदी आरक्षण का नियम बनाकर अब पार्टी आरक्षण की समीक्षा के मुददे पर काम कर रही है. श्रम कानूनों को 3 साल के लिये हटाने के पीछे का मकसद भी ऊंची और नीची जाति के बीच भेदभाव को बढाना ही है. भाजपा के लिये सुखद बात यह है कि अब उसकी बात का विरोध करने वाली कोई कोई प्रमुख पार्टी भी नहीं रही है.

 भाजपा जिस मनुवाद का समर्थन करती रही है वह ब्राहमणवादी सोंच की देन है. इस सोंच की षुरूआत मुगल काल से होती है. जब ब्राहमणों को मुगल राज में राजा का संरक्षण नहीं मिलता था. ऐसे में मजबूरी में उनको काम करना पडने लगा. मुगलों से पहले हिन्दू राजाओं के राज में ब्राह्मण पूरी राज व्यवस्था का संचालन करते थे. मुगल और दूसरे मुस्लिम राजाओं से 7 सौ साल के राज में ब्राहमण सत्ता से बाहर हो गये.यहा ना किसी तरह से संरक्षण मिला ना ही कोई चढावा मिलने वाला था. ऐसे में उनको मजदूरी करने के लिये विवश होना पडा. यह सिलसिला अंग्रेजी हूकमत के 2 सौ साल चलता रहा. देश आजाद हुआ तो हिन्दू बनियों के यहां भी मजदूरी करने के लिये ब्राहमणों को विवश होना पडा. अब देश की आजाद हुकूमत में जब कई ब्राहमण मंत्री बनकर खुद सत्ता में आये तो श्रम कानूनों में ऐसे बदलाव कराये जो अव्यवहारिक थे. इन कानूनों की वजह से यूनियन बनी और इनकी बागडोर एक बार फिर ब्राहमणवादी लोगों के हाथो में आ गई.

उद्योगपतियो का नहीं एजेंडे का भला:

श्रम कानून में बदलाव मनुवादी सोंच को फिर से स्थापित करने के लिये किया जा रहा है. जनता को दिखाया जा रहा है कि यह उद्योगपतियों के भले के लिये हो रहा है. असल में श्रम कानून मं बदलाव से उद्योगपतियों का कोई भला नहीं हो रहा इस बदलाव से केवल मनुवादी सोच को स्थापित करके समाज में सांमतशाही प्रथा को स्थापित करना है. उद्योगपति मजदूरो को लूटने का काम नहीं करता. वह तो उनको काम देने और उनकी माली हालत सुधारने का काम करता है. उद्योगपति को अपने काम से मतलब होता है उसे मजदूर की जाति और ऊंच-नीच से कोई मतलब नही होता है. मजदूरों को काम न करने के लिये यूनियन के लीडर ही भडकाते थे. श्रम कानूनों से उद्योगपतियो को कोई दिक्कत नहीं थी. श्रम कानून से मजदूर का संरक्षण नहीं हो रहा था जिससे मनुवादी सोंच स्थापित नहीं हो पा रही थी.

 1990 के बाद औद्योगिक उदारीकरण का दौर शुरू हुआ तो उद्योगपतियों की रियायत देने के नाम पर यूनियन कमजोर की जाने लगी. आजाद भारत में ब्राहमणवादी व्यवस्था के लोग मजदूर की जगह मिलों के मालिक बन गये. इनके परिवार और बिरादरी के लोग राजनीति, पूजापाठ, अच्छी नौकरियों  और पुलिस में काम करने लगे. अब इनके लिये मजदूरों के संरक्षण के लिये बने कानून किसी काम के नहीं रह गये. यह कानून अब इनकी राह में अड़ंगे दिख रहे थे. करोना संकट के समय में मौका पाते ही श्रम कानून में बदलाव किया गया. जिससे वापस मजदूरों का शोषण और दमन किया जा सके.

पंडे पुजारियों को क्यों चाहिए मुफ्त का पैसा?

इसमें कोई शक नहीं कि लॉकडाउन ने खासतौर से रोज कमाने खाने बालों की कमर तोड़ कर रख दी है. परंपरागत व्यवसायों से जीविका चलाने बाले मसलन कुम्हार , नाई , धोबी , मोची , लुहार और बढ़ई बगैरह जैसे तैसे यह वक्त फाँके कर गुजार रहे हैं तो दूसरी तरफ मेकेनिक प्ल्म्बर इलेक्ट्रिशियन आदि का भी पेट पीठ से लगने लगा है. समाज के इस मेहनतकश तबके के बिना आम लोग भी परेशानी में हैं. भीषण गर्मी में कोई कूलर सुधरबाने परेशान है तो कोई अपनी लीक होती पाइप लाइन से हलकान है. कोई पंचर पड़ी गाड़ी की तरफ निहारते आने जाने को मोहताज है तो कोई बढ़े हुये बालों में खुद को असहज महसूस कर रहा है .

कोई सरकार इनके लिए कुछ नहीं कर पा रही है और न ही ये स्वाभिमानी लोग कोई उम्मीद सरकार से रख रहे हैं. ये बस लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहे हैं कि यह खत्म हो तो ज़िंदगी पटरी पर आए. लॉकडाउन के दिनों में एक बात जो शिद्दत से साबित हुई है वह यह है कि एक दफा बिना पूजा पाठ और भगवान के तो ज़िंदगी चल जाएगी लेकिन इन लोगों के बगैर जो रोजमरराई मुश्किलें पेश आ रहीं हैं उन्हें भुक्त भोगी ही बेहतर बता सकते हैं.

ये भी पढ़ें-सकते में 16 करोड़ अनुयायी: क्या वाकई बलात्कारी हैं डॉ प्रणव पंडया?

ये मेहनती लोग सरकार से कुछ मांगते तो उसे जायज करार देने की कई बजहें हैं लेकिन समाज का वह वर्ग जो सदियों से पूजा पाठ कर बिना मेहनत के मालपुए खाता रहा है उसे कतई यह उम्मीद नहीं थी कि कभी भगवान के भी पट बंद होंगे और उनकी दुकान यानि मंदिर भी बंद हो जाएंगे और अब कोरोना के कहर के चलते हो ही गए हैं तो इन्हें भी फाँके करने की नौबत आने लगी है. धर्म कर्म के नाम पर एशोंआराम की ज़िंदगी जीने बाला पंडे पुजारियों का वर्ग अब सब्र खोने लगा है और सरकार से पैसे मांग रहा है तो उस पर तरस आना भी स्वभाविक बात यह तथ्य स्थापित करते हुये है कि ऊपर बाला कुछ दे सकता होता तो सबसे पहले अपने इन सेल्समेनो को देता.

इन दिनों सोशल मीडिया पर एक पत्र वायरल हो रहा है. ब्राह्मण महासभा सेवा समिति के उत्तरप्रदेश इकाई के अध्यक्ष पंडित हरिओम तिवारी गुड्डू ने मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को लिखा है . इस पत्र में बड़ी मार्मिक शैली में आदित्यनाथ से आग्रह किया गया है कि लॉकडाउन के चलते सभी मठ मंदिर भागवत कथा तथा विवाह पूर्ण रूप से स्थगित हैं और जनता मंदिरों में नहीं जा पा रही है व चढ़ावा नहीं चढ़ रहा है तो पुजारी अपना जीवन यापन कैसे करें. पत्र में गाँव देहातों के महंतो पुजारियों का जिक्र करते हुये सभी ब्राह्मण पुजारियों की सूची बनाकर उन्हें  6-6 हजार रु प्रतिमाह दिये जाएँ की बात भी कही गई है जिससे वे जीवन यापन कर सकें.

इत्तफाक से ठीक इसी तरह की मांग मध्यप्रदेश से भी उठी है कि पंडे पुजारियों को गुजर करने पैसों के लाले पड़ रहे हैं. खासतौर से उनके लिए जो घर घर जाकर कर्मकांड और संस्कार बगैरह कराते हैं उन्हें दक्षिणा मिलना बंद हो गई है लिहाजा सरकार उन्हें आर्थिक मदद दे . मध्यप्रदेश पुजारी संघ के अध्यक्ष पंडित नरेंद्र दीक्षित के मुताबिक ऐसे पुजारियों की संख्या भोपाल में चार हजार के लगभग है और इतनी ही तादाद में कर्मकांडी ब्राह्मण हैं.

ये भी पढ़ें-राजनीति की शिकार, सफूरा जरगार

एक और पंडित विष्णु राजौरिया के मुताबिक कर्मकांडी पंडितों की आमदनी का बड़ा जरिया तीज त्योहार , उदघाटन , शिलान्यास , गृह प्रवेश , मुंडन , जनेऊ और विवाह संस्कार जैसे धार्मिक मांगलिक अनुष्ठान बगैरह से मिलने बाली दक्षिणा है जो इन दिनों पूरी तरह बंद है . गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में सरकार हजारों पुजारियों को मंदिर की हैसियत के मुताबिक पगार भी देती है और कई मंदिरों के पुजारियों को 5 एकड़ तक जमीन भी खेती किसानी के लिए दे रखी है .

किस मुंह से मांग रहे–

ये पंडे पुजारी किस काम के पैसे सरकार से मांग रहे हैं बात सिरे से समझ से परे है. अब दान दक्षिणा नहीं मिल रही तो इसमें किसका क्या दोष, असल दोष तो उस भगवान का है जो इनके ही मुताबिक सबका पालनहार है इसलिए इन्हें पैसा उसी से मांगना चाहिए और सीधे तौर पर यह मान लेना चाहिए कि भगवान कहीं नहीं है. इसके बाद भी अब तक ये उसके नाम पर ठगी और चालाकी दिखाते दक्षिणा झटकते रहे थे लिहाजा कायदे से तो इन्हें अपने यजमानों का पैसा मय ब्याज के वापस करना चाहिए.

यह शुद्ध चालाकी और मुफ्तखोरी है गोया कि पूजा पाठ कोई समाजसेवा या देशसेवा का काम हो और इसके लिए सरकार इन्हें पाले पोसे. देश भर में कोई 1 करोड़ पंडे पुजारी इसी तरह दान दक्षिणा की खाते हैं जिसमें कोई मेहनत इन्हें नहीं करना पड़ती उल्टे आम लोगों के दिलो दिमाग में बैठा दिये इस डर को पुख्ता करना होता है कि बिना पूजा पाठ और कर्मकांडों के कोई काम किया तो घोर अनिष्ट हो जाएगा.

लेकिन कोरोना ने इनकी पोल खोल दी है. अब बारी आम लोगों की है कि वे भी आंखे खोलकर देखें कि बिना पंडे पुजारियों और दान दक्षिणा के भी काम इतमीनान से होते हैं बल्कि पहले से ज्यादा सुकून से होते हैं. दान दक्षिणा के चलते आम लोगों ने ही पंडे पुजारियों को निकम्मा बना दिया है लिहाजा अब इन्हें मेहनत की खाने एक मौका दिया जाये जिससे ये भी गैरत की ज़िंदगी जिए और खून पसीने की कमाई का जायका और लुत्फ ले सकें.

उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में भगवा सरकारें हैं इसलिए इन्हें लग रहा है कि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री इन्हें मुफ्त का पैसा मुहैया कराएंगे, हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर ऐसा हो भी जाये. इन पंडे पुजारियों को देश की बिगड़ती अर्थ व्यवस्था से कोई लेना देना नहीं , भूख प्यास से दम तोड़ते गरीब मजदूरों से इन्हें कोई सरोकार नहीं. ये कोई इन्कम टेक्स नहीं देते , समाज और देश के विकास में भी इनका कोई योगदान नहीं उल्टे पिछड़ेपन की बड़ी वजह ये हैं. ये तो बस ब्राह्मण होने भर के आधार पर सरकार से पैसा झटकना चाहते हैं जिससे मेहनत न करना पड़े.

कैंसर ने ली एक और एक्टर की जान, ‘क्राइम पेट्रोल’ फेम Shafique Ansari का निधन

सिनेमा जगत के सुपर स्टार इरफान खान औऱ ऋषि कपूर के मौत के बाद टीवी स्टार शफींक अंसारी ने भी इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. शफीक अंसारी काफी लंबे वक्त से कैंसर जैसे खतरनाक बीमारी से परेशान थें.

इनके इलाज के लिए क्राउडफंडिंग की तरफ से इलाज के लिए पैसे की व्यवस्था की गई थी. बता दें करीब 12 दिनों में 3 मशहूर कलाकार की मौत हो गई है.

खबर में बताया जा रहा है कि शफीक अंसारी को पेट का कैंसर था. लंबे वक्त से वह बीमार चल रहे थें. अपने इलाज के लिए काम से कुछ समय का ब्रेक लिया था. पिछले कुछ वक्त से उनके तबीयत में कुछ भी सुधार नहीं हो रहा था. जिसके बाद उनकी मौत हो गई.

/sश्वेता तिवारी से लेकर उर्वशी ढोलकिया तक, सिंगल मदर बनकर जिम्मेदारी निभा रही हैं ये 6 एक्ट्रेस

क्राईम पेट्रोल में इन्हें अलग पहचान मिली थीं. इस शो में वह कभी पुलिस की भूमिका में नजर आएं तो कभी चोर के किरदार को निभाते नजर आएं. दिवंगत अभिनेता लंबे समय से इस शो का हिस्सा थें.

उनके मौत के बाद क्राइम पेट्रोल में निभाए गए कुछ खास किरदारों की तस्वीर खूब वायरल हो रही है. उनकी निधन की खबर से पूरा टीवी इंडस्ट्री शोक में डूबा हुआ है.

ये भी पढ़ें-मदर्स डे स्पेशल : दीपिका कक्कड़ से लेकर सिद्धार्थ शुक्ला तक, TV सेलेब ने ऐसे बनाया मदर्स डे

कैंसर जैसे खतरनाक बीमारी के चपेट में पहले इरफआन खान आएं फिर ऋषि कपूर इसके बाद शफीक ने भी इसी बीमार के चलते दुनिया को अलविदा कह दिया.

शफीक अंसारी के जाने का गम उनके परिवार वालों के साथ-साथ उनके फैंस को भी उनका अंतिम संस्कार घरवालों ने कर  दिया है.

इरफान खान के बेटे ने शेयर किया पिता से जुड़ा Ye Video तो फैन्स हुए Emotional

बीते अप्रैल महीने की 29 तारीख को बॉलीवुड के चर्चित अभिनेता इरफान खान को  मौत हो गई. जिससे पूरा देश शोक में डूब गया था. इरफान खान की मौत से फैन्स को भी काफी झटका लगा था.
इरफ़ान की मौत के बाद से उनके बेटे बाबिल और अयान लगातार अपने पिता से जुडी तस्वीरें और वीडियोज सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं. मदर्स डे के मौके पर उनके बेटे बाबिल ने पिता इरफान खान को याद करते हुए कुछ वीडियो और फोटो शेयर किया है. जिसमें अभिनेता इरफान खान बड़े ही फनी अंदाज में झील के ठन्डे पानी में नहा रहें हैं. वहीँ शेयर किये एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर में इरफान खान बिल्ली को दुलारते नजर आ रहें हैं.

बाबिल नें इरफान खान के झील में नहानें की जो वीडियो शेयर की है उसमें जब छलांग लगा रहे थे और ठन्डे पानी में तैरने का मजा ले रहे थे. तो पानी के बाहर खड़े लोग भी ताली बजा कर और हल्ला मचा कर इरफान खान के नहाने को इंज्वाय कर रहे थे. इस वीडियो के दूसरे भाग में इरफान खान पानी को बर्फ कहते नजर आ रहें हैं. इसके अलावा बाबिल नें इरफ़ान के गोलगप्पे खाने का वीडियो भी शेयर किया था.
बाबिल इन सभी पोस्ट पर इरफ़ान के फैन्स नें बड़े ही भावुक कमेंट्स किये हैं. रागनी नाम की यूजर नें कमेन्ट किया तो एक यूजर नें लिखा I miss u irfan sir..really misss u….apke jais na koi actor huwa na hoga….

ये भी पढ़ें-श्वेता तिवारी से लेकर उर्वशी ढोलकिया तक, सिंगल मदर बनकर जिम्मेदारी निभा

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Babil Khan (@babil.i.k) on

बाबिल पिता के मौत के बाद से ही उनसे जुड़े तमाम वीडियोज और फोटो शेयर  कर रहें हैं. जिसमें उन्होंने एक पोस्ट कर दुख की घड़ी में परिवार के साथ खड़े लोगों को शुक्रिया कहा था. साथ ही उन्होंने फोन काल्स का उत्तर न दे पाने की वजह से माफ़ी भी मांगी थी.

ये भी पढ़ें-मदर्स डे स्पेशल : दीपिका कक्कड़ से लेकर सिद्धार्थ शुक्ला तक, TV सेलेब ने

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Babil Khan (@babil.i.k) on

पिता के मौत के बाद सोशल मीडिया पर बाबिल खान अपनी सक्रियता के चलते एकाएक चर्चा में आ गए हैं. इस वजह से उनके इंस्टाग्राम फॉलोअर्स की संख्या में भी एकाएक जबरदस्त इजाफा देखनें को मिला है है. वर्तमान में बाबिल खान लंदन से फिल्ममेकिंग की पढ़ाई कर रहे हैं. क्यों की वह एक्टिंग में कम रुचि रखते हैं.

 देश में संक्रमण का मामला 70 हजार पार

लॉकडाउन 3 में तेजी से संक्रमण के मामले दर्ज किया जा रहा है . सोमवार देर रात तक  देश में कुल संक्रमित मरीजों की संख्या 70768 पहुंच चुका है. इसमें सक्रिय मरीजों की संख्या 45921 है , जबकि 22594 मरीज इलाज के बाद ठीक हो कर घर पहुंच चुके हैं, और 2294 लोगों का मौत इस संक्रमण के कारण हो चुका है. आइए जानते है कहा किस राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में कितना मामला दर्ज किया गया है . कौन प्रदेश कितना प्रभावित है.

* सबसे अधिक मामले महाराष्ट्र में :- महाराष्ट्र में संक्रमित मरीजों की संख्या 23401 पहुंच चुकी है. इसमें सक्रिय मरीजों की संख्या 17747 है, जबकि 4786 मरीज इलाज के बाद ठीक हो कर घर पहुंच चुके हैं, और 868 लोगों का मौत इस संक्रमण के कारण हो चुका है .

*आठ हजार से अधिक मामले है :-  ऐसे राज्यो में  पहला नाम  गुजरात राज्य का आता है , यहां   8542 संक्रमित मरीज है. वहीं तमिलनाडु  में  8002 संक्रमित व्यक्ति हैं .

ये भी पढ़ें-कानून नौमिनी महज संरक्षक  उत्तराधिकारी नहीं

* दिल्ली में भी तेजी से बढ़ रहा है मामला :-  दिल्ली में भी तेजी से संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ रही है .  यहां कुल 7235 संक्रमित व्यक्ति है .

* 3 हजार से अधिक मामले है :– ऐसे राज्यो में  राजस्थान ,मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश का नाम आता है.   राजस्थान में 3940 , मध्यप्रदेश में 3785 और उत्तर प्रदेश में  3467 संक्रमित व्यक्ति है .

* दो हजार से अधिक मामले है :-  ऐसे दो राज्य हैं , जहां पर यह संक्रमित मरीजों की संख्या 2000 से अधिक है.  पश्चिम बंगाल में 2063 और आंध्र प्रदेश में 2018 संक्रमित व्यक्ति है .

* 1 हज़ार से अधिक मामले है :- ऐसे दो राज्य है , जहां को रोना संक्रमण का मामला 1 हजार  अधिक दर्ज किया गया है. पंजाब में  1877 संक्रमित मरीजों की संख्या है , वहीं  तेलंगाना  में संक्रमित मरीजों की संख्या 1196 है .

* 1 हजार से भी कम मामले :- ऐसे राज्यों की बात करते हैं जहां पर संक्रमित मरीजों की संख्या 1000 से भी कम है , उन राज्य में पहला नाम जम्मू कश्मीर का आता है , यहां संक्रमित मरीजों की संख्या 879 दर्ज किया गया है. कर्नाटका में 862 , बिहार में 746,  हरियाणा में 730 और केरल संक्रमित मरीजों की संख्या 520 पहुंच चुकी है.

* 5 सौ से कम है मामले :-  ऐसे राज्यों में पहला नाम आता है उड़ीसा का, जहां पर संक्रमित  मरीजों की संख्या 414 पहुंच चुका है .  दूसरा नाम आता है केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ का, जहां पर संक्रमित मरीजों की संख्या  173 है. तीसरा नाम आता है त्रिपुरा का जहां पर संक्रमित मरीजों की संख्या 152 है .

ये भी पढ़ें-लॉकडाउन में बढ़े महिलाओं पर अत्याचार

*  100 से भी कम मामले  है:- इसे कई राज्य है , जहां  उत्तराखंड संक्रमित मरीजों की संख्या 68 है, वहीं छत्तीसगढ़ संक्रमित मरीजों की संख्या 59, लद्दाख संक्रमित मरीजों की संख्या 42 और अंडमान निकोबार दीप समूह संक्रमित मरीजों की संख्या 33 , मेघालय में 13 और पांडिचेरी में 12  संक्रमित मरीज है.

* जहां मामले 10 से भी कम है :-  ऐसे राज्यों की बात जहां पर संक्रमित मरीजों की संख्या 10 और 1 के बीच है . इन राज्यो में पहले नंबर पर गोवा है , यहां कुल 7 संक्रमित मरीजों की संख्या दर्ज किया गया है . मणिपुर में दो मामले दर्ज किया गया है . वहीं  मिजोरम , अरुणाचल प्रदेश और केंद्रशासित प्रदेश  दादर और नगर हवेली और दमन एंड दीव में  संक्रमित मरीजों की संख्या एक – एक- एक  है.

मैं 22 साल की हूं मैं जीवन में आगे बढ़ने के लिए पढ़ाई करना चाहती हूं लेकिन मेरे घर वाले हमेशा मेरी शादी की बात करते रहते हैं, कैसे समझाऊं?

सवाल

मैं 22 वर्षीया युवती हूं. मैं ने अपनी ग्रेजुएशन कंप्लीट कर ली है. मैं आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती हूं. लेकिन, घर में अजीब सी सिचुएशन बन चुकी है. जब देखो तब घरवाले मेरी शादी को ले कर बात करने लग जाते हैं. मुझे घबराहट होने लगती है. मैं अभी शादी नहीं करना चाहती, लेकिन समझ नहीं आ रहा कि परिवार वालों को कैसे समझाऊं कि इस बारे में बात न करें.

जवाब

आप की परेशानी बातचीत कर के ही सुलझ सकती है. आप अपने घरवालों को समझाइए कि उन की बातों से न केवल आप मानसिक रूप से परेशान हो रही हैं बल्कि अपनी पढ़ाई पर भी कंसन्ट्रेट नहीं कर पा रहीं, जिस से परेशानी बढ़ रही है. वे इस के बाद भी न समझें तो आप बिना कुछ कहेसुने अपनी पढ़ाई पर फोकस करें. अभी आप का पूरा फोकस अपनी आगे की पढ़ाई पर होना चाहिए.

ये भी पढ़ें-मेरी बहन को करीबी रिश्तेदार का लड़का पसंद आ गया है. जिससे रिश्ते आगे बढ़ते है तो समस्या आएगी क्या करें?

शादी आप के मम्मीपापा आप की मरजी के बिना तो नहीं करा सकते, तो इस बात की टैंशन आप को छोड़ देनी चाहिए. आप का सब से ज्यादा जरूरी काम खुद को संयत रखना है. अपने दिमाग पर इस प्रैशर का असर न होने दें, वरना आप के लिए समस्या बढ़ सकती है. आज के युग में युवतियों को कमाऊ होना ही चाहिए ताकि वे अपनेआप फैसले ले सकें.

Crime Story: अनूठा बदला

4फरवरी, 2020 की सुबह मीरजापुर के थाना विंध्याचल की पुलिस को सूचना मिली कि गोसाईंपुरवा
स्थित कालीन के कारखाने में रहने वाले प्रमोद की रात में किसी ने हत्या कर दी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी वेदप्रकाश राय ने भादंवि की धारा 302, 452 के तहत प्रमोद की हत्या का मुकदमा  दर्ज कराया और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची तो प्रमोद की लाश चारपाई पर पड़ी थी. मृतक की उम्र 40 साल के आसपास रही होगी, उस का सिर किसी भारी चीज से कुचला गया था. मृतक के शरीर से जो खून बहा था, वह सूख कर काला पड़ चुका था. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्या आधी रात के पहले यानी 9-10 बजे के आसपास की गई थी. ठंड का मौसम था, इसलिए खून पूरी तरह नहीं सूखा था.

थानाप्रभारी वेदप्रकाश राय ने साथियों की मदद से घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर जरूरी साक्ष्य जुटाए और हत्या की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. उन्होंने आसपास उस भारी चीज की भी तलाश की, जिस से हत्या की गई थी. पर काफी कोशिश के बाद भी पुलिस को कुछ नहीं मिला. थानाप्रभारी ने मौके पर फोरैंसिक टीम बुला ली. टीम ने वहां से जरूरी साक्ष्य जुटाए. सारी काररवाई पूरी कर उन्होंने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी.

ये भी पढें-Crime Story: SBI हाथ मलती रह गई, व्यापारी चूना लगा करोड़ो ले उड़ा

सारी काररवाई निपटा कर वेदप्रकाश राय ने हत्यारे का पता लगाने के लिए कारखाने में काम करने वाले प्रमोद के साथियों से पूछताछ शुरू की. पूछताछ में पता चला कि प्रमोद कहीं बाहर का रहने वाला था. वह काफी दिनों से यहीं रह रहा था. वह कहां का रहने वाला था, यह बात कोई नहीं बता सका.बस इतना ही पता चला कि उस के परिवार में पत्नी और 2 बच्चे थे. पत्नी जिला कौशांबी में होमगार्ड में थी. बेटी अमेठी से पौलिटेक्निक कर रही थी, जबकि बेटा दिल्ली में रह कर कोई प्राइवेट नौकरी करता था, साथ ही उस ने राजस्थान इंटर कालेज से प्राइवेट फार्म भी भर रखा था.

प्रमोद मीरजापुर में कालीन बुनाई का काम करता था, जबकि पत्नी कंचनलता कौशांबी में होमगार्ड में प्लाटून कमांडर थी. इस का मतलब दोनों अलगअलग रहते थे. पूछताछ में प्रमोद के साथियों ने यह भी बताया था कि पतिपत्नी में पटती नहीं थी. प्रमोद पत्नी से अकसर मारपीट करता था. उस की इस मारपीट से आजिज कंचनलता मीरजापुर कम ही आती थी.

थानाप्रभारी राय को जब पतिपत्नी के बीच तनाव की बात पता चली तो उन्हें लगा कि कहीं प्रमोद की हत्या इसी तनाव के कारण तो नहीं हुई. पूछताछ में उन्हें यह भी पता चला कि उस कारखाने में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. इस से उन्हें उम्मीद जगी कि सीसीटीवी फुटेज से हत्यारे का अवश्य पता चल जाएगा. उन्होंने उस रात की सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो उन की उम्मीद पूरी तरह से खरी उतरी.

सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि प्रमोद की हत्या एक पुरुष और एक महिला ने मिल कर की थी. थानाप्रभारी को लगा कि वह औरत कोई और नहीं, मृतक प्रमोद की पत्नी कंचनलता ही होगी. राय ने सीसीटीवी कैमरे की फुटेज प्रमोद के साथ काम करने वाले कर्मचारियों को दिखाई तो उस महिला की ही नहीं, बल्कि उस के साथ हत्या में शामिल पुरुष की भी पहचान कर दी. वह औरत मृतक प्रमोद की पत्नी कंचनलता ही थी. उस के साथ जो पुरुष था, वह उस का भाई अंबरीश था. प्रमोद की हत्या बहनभाई ने मिल कर की थी.

प्रमोद के हत्यारों को पता चल गया था, अब उन्हें गिरफ्तार करना था. लेकिन उन्हें गिरफ्तार करना इतना आसान नहीं था. क्योंकि थानाप्रभारी वेदप्रकाश राय जानते थे कि अब तक कंचनलता फरार हो चुकी होगी. हत्या के बाद उन्होंने उसे बुला कर पूछताछ भी की थी, तब उस ने स्वयं को निर्दोष बताया था.
फिर भी एक पुलिस टीम कौशांबी गई. जैसी पुलिस को आशंका थी, वैसा ही हुआ. कंचनलता वहां नहीं मिली. उस का मोबाइल नंबर उन के पास था ही. पुलिस ने यह बात एसपी डा. धर्मवीर सिंह को बताई तो उन्होंने कंचनलता का नंबर सर्विलांस टीम को दे कर उस के बारे में पता करने का आदेश दिया.

ये भी पढ़ें-Crime Story: एक मजनूं की प्रेम गली

यही नहीं, उन्होंने सर्विलांस टीम के अलावा एसआईटी और स्वाट को भी कंचनलता व उस के भाई अंबरीश को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का आदेश दिया. इसी के साथ उन्होंने दोनों भाईबहन को गिरफ्तार करने वाली टीम को 25 हजार रुपए बतौर ईनाम देने की घोषणा भी की. अब थाना पुलिस के अलावा सर्विलांस टीम, एसआईटी और स्वाट भी कंचनलता और अंबरीश के पीछे लग गईं. थाना पुलिस ने अपने मुखबिरों को दोनों के बारे में पता करने के लिए लगा दिया था. इन कोशिशों से फायदा यह निकला कि 22 फरवरी यानी हत्या के 19 दिनों बाद मुखबिर ने सटीक जानकारी दी. मुखबिर ने काले रंग की उस प्लेटिना मोटरसाइकिल यूपी53सी जेड1559 के बारे में भी बताया, जिस पर सवार हो कर भाईबहन गोसाईंपुरवा से अमरावती चौराहे की ओर जा रहे थे.

मुखबिर की सूचना पर पुलिस टीमों ने रात लगभग सवा 10 बजे कालीखोह मेनरोड गेट के पास से दोनों को गिरफ्तार कर लिया. दोनों उसी मोटरसाइकिल पर सवार थे, जिस के बारे में मुखबिर ने सूचना दी थी. दोनों को गिरफ्तार करने के बाद थाने लाया गया.कंचन और अंबरीश की गिरफ्तारी की सूचना अधिकारियों को भी दे दी गई थी. खबर पा कर एसपी भी थाना विंध्याचल आ गए.  उन की उपस्थिति में कंचन और अंबरीश से पूछताछ की गई तो दोनों ने हत्या का अपराध स्वीकार करने के साथ प्रमोद की हत्या के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह इस तरह थी—

इस कहानी की शुरुआत सन 1999 में तब हुई, जब अंबरीश नाबालिग था. वह उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना सहजनवां के गांव बेलवाडांडी के रहने वाले सोहरत सिंह (गौड़) का सब से छोटा बेटा था. उस से बड़ा एक भाई धर्मवीर और 2 बहनें शशिकिरन तथा कंचनलता थीं.शशिकिरन शादी लायक हुई तो सोहरत सिंह ने उस की शादी जिला संत कबीर नगर के रहने वाले दशरथ सिंह से कर दी. इस के बाद उन्हें दूसरी बेटी कंचनलता की शादी करनी थी. क्योंकि वह भी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी.
सोहरत सिंह उस के लिए घरवर की तलाश में लगे थे. लेकिन वह उस की शादी कर पाते, उस के पहले ही उस के साथ एक दुर्घटना घट गई.

ये भी पढ़ें-Crime Story: आशिक का खेल

जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी कंचनलता काफी सुंदर थी. सुंदर होने की वजह से गांव के लड़कों की नजरें उस पर जम गई थीं. ज्यादातर लड़के तो उसे सिर्फ देख कर ही संतोष कर लेते थे, पर उन्हीं में एक प्रमोद था, जो उस के पीछे हाथ धो कर पड़ गया था.कंचन को एक नजर देखने के लिए वह दिन भर उस के घर के आसपास घूमता रहता था. उस की हरकतों से कंचन को उस के इरादों का पता चल गया. कंचन उस तरह की लड़की नहीं थी, उसे खुद की और मातापिता की इज्जत का खयाल था, वह जानती थी कि अगर एक बार बदनामी का दाग लग गया तो जीवन भर नहीं छूटेगा.

यही सब सोच कर एक दिन उस ने प्रमोद को डांट दिया. प्रमोद दब्बू किस्म का लड़का नहीं था. वह कंचन से प्यार करता था, इसलिए डांट का भी जवाब प्यार से ही दिया. उस ने कहा, ‘‘कंचन, मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम मेरे दिल में बसी हो, मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा.’’  कंचन तो वैसे ही गुस्से में थी. उस ने प्रमोद को दुत्कारने वाले अंदाज में कहा, ‘‘शक्ल देखी है अपनी, जो मुझे रानी बनाने चला है. तेरे जैसे 36 लड़के मेरे पीछे पड़े हैं. पर मैं ने किसी को राह में नहीं आने दिया तो तू किस खेत की मूली है.’’

‘‘मैं उन 36 में से नहीं हूं, मैं ने तुम्हें चाहा है तो अपनी बना कर ही रहूंगा.’’ प्रमोद ने कहा.‘‘अरे जाओ यहां से. फिर कभी इधर दिखाई दिया तो हाथपैर तोड़वा दूंगी.’’ कंचन ने धमकी दी.उस समय कंचन अपने घर पर थी, इसलिए शोर मचा कर बखेड़ा कर सकती थी. प्रमोद उस के घर के सामने कोई बखेड़ा नहीं करना चाहता था, क्योंकि वह वहां पिट सकता था. इसलिए उस ने वहां से चुपचाप चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. लेकिन जातेजाते उस ने इतना जरूर कहा, ‘‘तू कुछ भी कर ले कंचन, तुझे बनना मेरी ही है.’’
कंचन के लिए यह एक चुनौती थी. वह भी जिद्दी किस्म की लड़की थी. उस के घर वाले भी दबंग थे, गांव में किसी से न डरने वाले. लड़ाईझगड़ा और मारपीट से भी नहीं घबराते थे. यही वजह थी कि कंचन किसी से नहीं डरती थी.

उस ने प्रमोद की शिकायत अपने घर वालों से कर दी. इस के बाद तो दोनों परिवारों में जम कर लड़ाईझगड़ा हुआ. प्रमोद के घर वाले भी कम नहीं थे. पर गांवों में लड़की की इज्जत, घरपरिवार की इज्जत से ही नहीं गांव की इज्जत से जोड़ दी जाती है. इसलिए गांव के बाकी लोग सोहरत सिंह की तरफ आ खड़े हुए. इस से प्रमोद के घर वाले कमजोर पड़ गए, जिस से उस के घर वालों को झुकना पड़ा.
इस घटना से प्रमोद की तो बदनामी हुई ही, उस के घर वालों की भी खासी फजीहत हुई. यह सब कंचन की वजह से हुआ था, इसलिए प्रमोद उस से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था. वह मौके की तलाश में लग गया. आखिर उसे एक दिन मौका मिल ही गया.

गर्मियों के दिन थे. फसलों की कटाई चल रही थी. लोग देर रात खेतों पर फसल की कटाई और मड़ाई करते थे. उस समय आज की तरह ट्रैक्टर से मड़ाई और कटाई नहीं होती थी. तब कटाई हाथों से होती थी और मड़ाई थ्रेशर या बैलों से, इसलिए फसल की कटाई और मड़ाई में काफी समय लगता था. गरमी के बाद बरसात आती है, इसलिए लोग जल्दी से जल्दी फसल की कटाई और मड़ाई करते थे. इस के लिए लोग देर रात तक खेतों में काम करते थे.

कंचन के घर वालों की फसल की कटाई और मड़ाई लगभग खत्म हो चुकी थी. जो बची थी, उसे जल्दी से जल्दी निपटाने के चक्कर में देर रात तक खेतों में काम करते थे. वैसे भी जून का अंतिम सप्ताह चल रहा था, बरसात कभी भी हो सकती थी.27 जून, 1997 की रात खेतों पर काम कर के सभी घर आ गए, पर कंचन नहीं आई थी. रात का समय था, इसलिए ज्यादा इंतजार भी नहीं किया जा सकता था. फिर कंचन रात को कहीं रुकने वाली भी नहीं थी. जिस दिन प्रमोद के घर वालों से झगड़ा हुआ था, उसी दिन प्रमोद ने धमकी दी थी कि वह अपनी बेइज्जती का बदला जरूर लेगा.

कंचन के घर न पहुंचने पर उस के घर वालों को प्रमोद की वह धमकी याद आ गई.  कंचन के घर वाले तुरंत प्रमोद के घर पहुंचे तो पता चला कि वह भी घर से गायब है. पूछने पर घर वालों ने साफ कहा कि उन्हें न प्रमोद के बारे में पता है, न कंचन के बारे में.गांव वालों ने भी दबाव डाला, पर न कंचन का कुछ पता चला न प्रमोद का. घर वाले पूरी रात गांव वालों के साथ मिल कर कंचन को तलाश करते रहे, पर उस का कुछ पता नहीं चला.सोहरत सिंह की गांव में तो बेइज्जती हुई ही थी, धीरेधीरे नातेरिश्तेदारों को भी कंचन के घर से गायब होने का पता चल गया था. अब तक साफ हो गया था कि कंचन को प्रमोद ही अगवा कर के ले गया था.

घर वाले खुद ही कंचन को ढूंढ लेना चाहते थे, लेकिन काफी प्रयास के बाद भी जब वे कंचन और प्रमोद का पता नहीं लगा सके तो करीब 3 महीने बाद 14 सितंबर, 1997 को गोरखपुर के महिला थाने में कंचन के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी गई. पुलिस ने इस मामले को अपराध संख्या 01/1997 पर भादंवि की धारा 363, 366 के तहत दर्ज कर लिया.उस समय कंचन का भाई अंबरीश नाबालिग था. उस का बड़ा भाई धर्मवीर समझदार था. उसे परिवार की बेइज्जती का बड़ा मलाल था, इसलिए वह खुद बहन की तलाश में लगा था. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस इस मामले में कुछ खास नहीं करेगी. उस समय आज की तरह न मोबाइल फोन थे, न सर्विलांस की व्यवस्था थी.

कंचन का भाई धर्मवीर कंचन और उस का अपहरण कर के ले जाने के दिन से प्रमोद की तलाश में दिनरात एक किए हुए था. प्रमोद ने समाज में उस की प्रतिष्ठा को भारी क्षति पहुंचाई थी. धर्मवीर दोनों की तलाश में ट्रेन से कानपुर जा रहा था. लेकिन वह कानपुर नहीं पहुंच सका. उस की लाश ट्रेन की पटरी के पास मिली. पुलिस ने इसे दुर्घटना माना और इस मामले की फाइल बंद कर दी. पुलिस ने धर्मवीर की मौत को भले ही दुर्घटना माना, लेकिन घर वालों ने धर्मवीर की मौत को हत्या माना. उन्हें लग रहा था कि धर्मवीर की हत्या प्रमोद के घर वालों ने की है. क्योंकि वह प्रमोद के पीछे हाथ धो कर पड़ा था. अपने परिवार की बरबादी का कारण प्रमोद को मान कर अंबरीश, उस के पिता सोहरत सिंह, चाचा जगरनाथ सिंह ने मिल कर प्रमोद के छोटे भाई नीलकमल की हत्या कर दी. यह सन 2001 की बात है.

इस मामले का मुकदमा थाना सहजनवां (वर्तमान में थाना गीडा) गोरखपुर में भादंवि की धारा 302, 506 के तहत दर्ज हुआ. नीलकमल की हत्या के आरोप में सोहरत सिंह और जगरनाथ सिंह को आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है. इस समय दोनों हाईकोर्ट से मिली जमानत पर बाहर हैं. घटना के समय अंबरीश नाबालिग था. उस का मुकदमा अभी विचाराधीन है. वह भी जमानत पर है.

नीलकमल की हत्या में अंबरीश की चाची उर्मिला को भी अभियुक्त बनाया गया था, लेकिन वह दोषमुक्त साबित हुई. इस परिवार की बरबादी का कारण प्रमोद था, इसलिए अंबरीश प्रतिशोध की आग में जल रहा था. वह किसी भी तरह प्रमोद को ठिकाने लगाना चाहता था, पर उस का कुछ पता ही नहीं चल रहा था.
दूसरी ओर कंचनलता को अगवा करने के बाद प्रमोद ने उस से जबरदस्ती शादी कर ली और किसी अज्ञात जगह पर छिप कर रहने लगा. कुछ दिनों बाद वह उसे ले कर मीरजापुर आ गया और किराए का मकान ले कर रहने लगा.

गुजरबसर के लिए वह मजदूरी करता रहा. इस बीच दोनों 2 बच्चों, एक बेटी आकृति और एक बेटे स्वयं सिंह के मातापिता बन गए. आकृति इस समय अमेठी से पौलिटेक्निक कर रही है तो स्वयं सिंह प्राइवेट पढ़ाई करते हुए दिल्ली में नौकरी कर रहा है.धीरेधीरे गृहस्थी जम गई. लेकिन कंचन ने न कभी प्रमोद को दिल से पति माना और न ही प्रमोद ने उसे पत्नी. बस दोनों रिश्ता निभाते रहे. यही वजह थी कि दोनों में कभी पटरी नहीं बैठी. कंचन को प्रमोद पर भरोसा नहीं था, इसलिए वह पढ़लिख कर कुछ करना चाहती थी.
इस की एक वजह यह थी कि प्रमोद अकसर उस के साथ मारपीट करता था. शायद इसलिए कि कंचन की वजह से उस का घरपरिवार छूटा था. अगर वह चुनौती न देती तो वह भी इस तरह भटकने के बजाए अपने परिवार के साथ सुख से रह रहा होता.

कुछ ऐसा ही हाल कंचन का भी था. वह भी अपनी बरबादी का कारण प्रमोद को मानती थी. इसलिए वह प्रमोद को अकसर ताना मारती रहती थी. इसी के बाद दोनों में लड़ाईझगड़ा होता और मारपीट हो जाती.
कंचन प्रमोद से पीछा छुड़ाना चाहती थी, इसलिए उस ने प्रमोद से पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो उस ने जिला कौशांबी के रहने वाले अपने एक परिचित सुरेश दूबे से बात की. वह कौशांबी के मंझनपुर में भार्गव इंटर कालेज में बाबू था. सुरेश ने कंचन का भार्गव इंटर कालेज में दाखिला ही नहीं करा दिया, बल्कि उसे इंटर पास भी कराया.

इस के बाद सुरेश दूबे ने ही डिग्री कालेज मंझनपुर से कंचनलता को प्राइवेट फार्म भरवा कर बीए करा दिया. सन 2010 में कौशांबी में होमगार्ड में प्लाटून कमांडर की भरती हुई तो कंचनलता होमगार्ड में प्लाटून कमांडर बन गई. वर्तमान में वह महिला थाना कौशांबी में तैनात थी. प्लाटून कमांडर होने के बाद कंचन कौशांबी में रहने लगी तो प्रमोद मीरजापुर में अकेला ही रहता रहा. दोनों बच्चे भी बाहर रहते थे. प्रमोद कालीन बुनाई का काम करता था. वह अकेला पड़ गया तो कारखाना मालिक ने उस से कारखाने में ही रहने को कहा. इस से दोनों का ही फायदा था.

मालिक को कम पैसे में चौकीदार मिल गया तो प्रमोद को सोने के भी पैसे मिलने लगे थे. अब प्रमोद 24 घंटे कारखाने में ही रहने लगा था. पतिपत्नी में वैसे भी नहीं पटती थी.अलगअलग रहने से दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं. कंचनलता जब तक प्रमोद के साथ रही, डर की वजह से उस ने मायके वालों से संपर्क नहीं किया था. लेकिन जब वह कौशांबी में अकेली रहने लगी तो वह घर वालों से संपर्क करने की कोशिश करने लगी.

करीब 21 साल बाद उस ने अपने परिचित सुरेश दूबे को संत कबीर नगर में रहने वाली अपनी बहन के यहां भेज कर अपने बारे में सूचना दी. इस के बाद बहन को उस का मोबाइल नंबर मिल गया.
दोनों बहनों की बातचीत होने लगी. बहन ने ही उसे मायके का भी नंबर दे दिया था. कंचन की मायके वालों से बातें होने ही लगीं, तो वह मायके भी गई.अंबरीश गाजियाबाद की एक मोटर पार्ट्स की दुकान में नौकरी करता था. वह मोटर पार्ट्स लाने ले जाने का काम करता था, इसलिए उस का हर जगह आनाजाना लगा रहाता था. उसे भी बहन कंचन का नंबर मिल गया था, इसलिए वह भी बहन से बातें करने लगा था.

अंबरीश बहन से अकसर प्रमोद का मीरजापुर वाला घर दिखाने को कहता था, क्योंकि वह प्रमोद की हत्या कर अपने परिवार की बदनामी और बरबादी का बदला लेना चाहता था. अपनी इसी योजना के तहत वह 1 फरवरी, 2020 को दिल्ली से चल कर 2 फरवरी को मंझनपुर में रह रही बहन कंचन के यहां पहुंचा. अगले दिन यानी 3 फरवरी की सुबह उस ने कंचन को विश्वास में ले कर उस का मोबाइल फोन बंद कर के कमरे पर रखवा दिया. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस मोबाइल की लोकेशन से अपराधियों तक पहुंच जाती है.
उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर दिया. दिन के 10 बजे वह कंचन को मोटरसाइकिल से ले कर मीरजापुर के लिए चल पड़ा.

दोनों 4 बजे के आसपास मीरजापुर पहुंचे. पहले उन्होंने विंध्याचल जा कर मां विंध्यवासिनी के दर्शन किए. इस के बाद दोनों इधरउधर घूमते हुए रात होने का इंतजार करने लगे.रात 11 बजे जब दोनों को लगा कि अब तक कारखाने में काम करने वाले मजदूर चले गए होंगे और प्रमोद सो गया होगा तो कंचन उसे ले कर कारखाने पर पहुंच गई. कंचन अंबरीश को कारखाना दिखा कर बाहर ही रुक गई.

अंबरीश अकेला कारखाने के अंदर गया तो प्रमोद को सोते देख खुश हुआ. क्योंकि अब उस का मकसद आसानी से पूरा हो सकता था. उस ने देर किए बगैर वहां रखी ईंटों में से एक ईंट उठाई और प्रमोद के सिर पर दे मारी. ईंट के प्रहार से प्रमोद उठ कर बैठ गया पर वह अपने बचाव के लिए कुछ कर पाता, उस के पहले ही अंबरीश ने उस के गले में अंगौछा लपेट कर कसना शुरू कर दिया. अपने बचाव में प्रमोद ने संघर्ष किया, जिस से अंबरीश को भी चोटें आईं. पर एक तो प्रमोद पहले ही ईंट के प्रहार घायल हो चुका था, दूसरे अंगौछा से गला कसा हुआ था, इसलिए काफी प्रयास के बाद भी वह स्वयं को नहीं बचा सका.

गला कसा होने की वजह से वह बेहोश हो गया तो अंबरीश ने उसी ईंट से उस का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी. खुद को बचाने के लिए प्रमोद संघर्ष करने के साथसाथ ‘बचाओ…बचाओ’ चिल्ला भी रहा था.
उस की ‘बचाओ…बचाओ’ की आवाज सुन कर कंचन जब अंदर आई, तब तक अंबरीश उस की हत्या कर चुका था. अंबरीश का काम हो चुका था, इसलिए वह बहन को ले कर रात में ही मोटरसाइकिल से मंझनपुर चला गया.

अगले दिन पुलिस ने जब कंचनलता को प्रमोद की हत्या की सूचना दे कर थाना विंध्याचल बुलाया तो कंचन ने अंबरीश को खलीलाबाद भेज दिया. इस की वजह यह थी कि प्रमोद जब खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब उसे चोटें आ गई थीं.उस के शरीर पर चोट के निशान देख कर पुलिस को शक हो जाता और वे पकड़े जाते. अंबरीश को खलीलाबाद भेज कर कंचनलता सुरेश दुबे के साथ थाना विंध्याचल आई. इस के बाद वह भी फरार हो गई.

दोनों ने बड़ी होशियारी से प्रमोद की हत्या की, पर कारखाने में लगे सीसीटीवी ने उन की पोल खोल दी. और वे पकड़े गए. अंबरीश की निशानदेही पर पुलिस ने झाडि़यों से वह ईंट बरामद कर ली थी, जिस से प्रमोद की हत्या की गई थी.

इस तरह प्रमोद की नादानी से दो परिवार बरबाद हो गए. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. पुलिस के पास प्रमोद के घर का पता नहीं था, इसलिए पुलिस ने थाना विंध्याचल को उस की हत्या की सूचना दे कर थाना सहजनवां पुलिस को खबर भिजवाई

कोरोना ने बढ़ाये मानसिक रोग 

शंखधर ने बीते एक हफ्ते से घरवालों से बातचीत बंद कर रखी है. उसके चेहरे पर उदासी की गहरी छाया हर वक़्त नज़र आती है. लॉक डाउन के दूसरे महीने के बाद से ही वह हर समय गुमसुम सा दिख रहा है. बस खिड़की पर बैठा सामने खाली पड़ी सड़क को ताकता रहता है. लॉक डाउन में नौकरी गवां चुके शंखधर को बस एक चिंता खाये जा रही है कि पता नहीं दूसरी नौकरी कब और कैसे मिलेगी. पिछली नौकरी बड़ी जोर-जुगत लगा कर पाई थी उसने. जिस बन्दे ने लगवाई थी उसको भी काफी कमीशन दिया था. अब तो खाने के पैसे भी धीरे धीरे ख़त्म हो रहे हैं. सर पर कर्जा अलग चढ़ा है. शंखधर की पत्नी और माँ लाख दिलासा दें कि लॉक डाउन ख़तम होने पर सब ठीक हो जाएगा, मगर शंखधर को मालूम है कि अब कुछ ठीक नहीं होगा. कैसे चलाएगा वो पांच लोगों का परिवार? कहाँ से लाएगा खाने-पहनने को? दोनों बच्चों की स्कूल की फीस, घर का किराया, बाइक की किश्त सब तो देनी है. सर पर पांच लाख का क़र्ज़ भी है जो पिछले साल माँ के लिवर के ऑपरेशन के लिए राम दयाल से लिया था. उसकी किश्त कैसे चुकाएगा?

शंखधर गहरे अवसाद में जा रहा है, यह अवसाद उसको आत्महत्या के लिए उकसा रहा है और किसी को इसका पता नहीं है. सब यही सोच रहे हैं कि वह सिर्फ चिंताग्रस्त है, लॉक डाउन ख़त्म होने पर सब ठीक हो जाएगा. शंखधर जैसे बहुतेरे लोग हैं जो लॉक डाउन के दौरान बेरोज़गार हो चुके हैं और पैसे की किल्लत और भविष्य की चिंता में गहरे अवसाद में उतारते जा रहे हैं.

डॉक्टर सुगंधा गुप्ता

दिल्ली के माइंड क्लीनिक की मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुगंधा गुप्ता कहती हैं, ‘कोरोना डिज़ीज़ के डर से ही इन दिनों मानसिक रोगियों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही है. नौकरी-व्यापार ख़त्म होने, शादी की तारीख बढ़ने, शराब का सेवन करने वालों को शराब ना मिलने, दिनचर्या नियमित ना रहने, नकारात्मक सोच हावी होने, लॉक डाउन में घरेलू झगड़े जैसे सैकड़ों कारण हैं जो इन दिनों में मानसिक बीमारियों को बढ़ा रहे हैं. मेरे पास कई पेशेंट्स और उनके परिजनों के फ़ोन आ रहे हैं कि पेशेंट बिलकुल खामोश सा हो गया है, वह किसी से कुछ बात नहीं करता, क्या सोच रहा है ये बताता ही नहीं है, बस गुमसुम सा रहता है. ये तमाम लक्षण व्यक्ति के गहरे अवसाद की ओर बढ़ने के हैं. हालात चिंताजनक हैं. लोग अत्यधिक सोच का शिकार हो रहे हैं. नकारात्मक सोच बहुत तेज़ी से हावी हो रही है. लोग नाउम्मीद हो रहे हैं. कोरोना से निकलने के लिए अभी भी बहुत लंबा वक़्त लगेगा और मेरा अनुमान है कि इस दौरान हर आयवर्ग के लोगों में मेन्टल डिज़ीज़ दोगुनी रफ़्तार से बढ़ेंगी. ये बहुत चिंता का विषय है.

ये भी पढ़ें-मदर्स डे स्पेशल: क्या आप की मां सही भोजन ले रही हैं?

डॉक्टर सुगंधा कहती हैं, ‘इसमें दोराय नहीं है कि कोरोना वायरस ने दुनियाभर में डर और चिंता का माहौल बना दिया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन भी संकट की इस घड़ी में लोगों से अन्य सावधानियों के साथ अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने को बार-बार कह रहा है. कोरोना वायरस लोगों में डर, चिंता और अवसाद का कारण बन रहा है. बहुत सारी मेडिकल रिपोर्ट्स आ रही हैं जो ये बता रही हैं कि मरीज, क्वारेैंटाइन में या आइसोलेशन में रह रहे व्यक्ति और यहां तक कि इलाज कर रहे व्यक्ति तक की मानसिक सेहत पर कोरोना और लॉक डाउन का असर पड़ रहा है. देश में मनोचिकित्सकों के सबसे बड़े एसोसिएशन इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी का सर्वे बता रहा है कि कोरोना वायरस के आने के बाद देश में मानसिक रोगों से पीड़ित मरीजों की संख्या 15 से 20 प्रतिशत तक बढ़ गई है. लोगों में लॉकडाउन के चलते बिजनेस, नौकरी, कमाई, बचत और यहां तक कि मूलभूत संसाधन खोने तक का डर भी इसका कारण माना जा रहा है. जनवरी में इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ने एक रिपोर्ट में कहा था कि हर पांच में से एक भारतीय किसी न किसी मानसिक रोग का शिकार है. चिंता की बात यह है कि कोरोना के बाद अगर मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ती है, तो इसके लिए जागरूकता और सुविधाएं, दोनों की ही कमी भारत में है. दुनियाभर में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में केवल 1 प्रतिशत हेल्थ वर्कर्स ही मेंटल हेल्थ के इलाज से जुड़े हुए हैं. ऐसे में भारत में तो इसका आंकड़ा और भी कम है. कोरोना के कारण कई लोग क्वारैंटाइन, आइसोलेशन में या फिर अकेले रहने को मजबूर हैं. ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना और भी जरूरी हो जाता है. इसलिए घर वालों को अपने लोगों, खासकर जिनकी नौकरी या व्यवसाय को नुक्सान पहुंचा है उनके मानसिक स्वास्थ को लेकर बहुत सावधान रहने की ज़रूरत है.’

किंग्स कॉलेज लंदन ने हाल ही में क्वारैंटाइन के असर से जुड़े 24 पेपर्स का रिव्यू जारी किया है. मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित इस रिव्यू के मुताबिक विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि क्वारैंटाइन में रहने वाले लोगों में संक्रमण का डर, चिड़चिड़ापन, बोरियत, जानकारी की कमी या सामान की कमी की चिंता जैसी दिक्कतें सामने आ रही हैं. अध्ययनों के मुताबिक अन्य मनोवैज्ञानिक लक्षणों में भावनात्मक अस्थिरता, अवसाद, तनाव, उदासी, चिंता, पैनिक (घबराहट), नींद न आना, गुस्सा भी शामिल है. क्वारैंटाइन में रह चुके लोगों पर हुए एक सर्वे ने यह भी बताया कि सबसे ज्यादा उदासी (73 फीसदी) और चिड़चिड़ापन (57 फीसदी) की समस्या देखी जा रही है. एक्सपर्ट एक जगह सीमित रहने, रोज का रूटीन के खराब होने और सामाजिक संपर्क के कम होने को कारण मान रहे हैं. अध्ययन यह भी बताते हैं कि माता-पिता की तुलना में बच्चों में क्वारैंटाइन की वजह से 4 गुना ज्यादा तनाव देखा जा रहा है.

क्वारैंटाइन के बाद भी रहता है अवसाद

क्वारैंटाइन की वजह से आए मनोवैज्ञानिक बदलावों का असर कुछ समय से लेकर लंबे समय तक रह सकता है. लैंसेट के रिव्यू का एक अध्ययन बताता है कि सार्स बीमारी के फैलने के दौरान क्वारैंटाइन में गए लोग कुछ हफ्ते बाद तक भी इस मनोस्थिति से नहीं निकल पाए. जैसे 26 फीसदी लोग भीड़ वाली बंद जगहों (समारोह आदि)  में नहीं गए और 21 फीसदी किसी सार्वजनिक स्थान पर नहीं गए.

ये भी पढ़ें-नींद न आना बीमारी का खजाना

किंग्स कॉलेज के शोधकर्ताओं के मुताबिक लोगों से उनकी आजादी छिनने का असर उनके दिमाग पर लंबे समय तक रह सकता है. यही नहीं क्वारैंटाइन की वजह से हुए तनाव का असर तीन साल बाद तक देखा जा सकता है. हालांकि शोध  इसका एक और पहलू भी बताते हैं. सार्स फैलने के दौरान हुआ एक सर्वे बताता है कि जहां लोगों ने डर, घबराहट, ग्लानि और उदासी जैसी भावनाएं महसूस कीं, वहीं क्वारेंटाइन में रहे पांच फीसदी लोगों ने खुशी और 4 फीसदी ने राहत की भावना भी महसूस की. विभिन्न एक्सपर्ट्स के मुताबिक ऐसी महामारी की स्थिति में लोगों को अनिश्चितता महसूस होती रहती है. अकेलापन इन बातों का बढ़ा देता है. यही विचार और भावनाएं एंग्जायटी डिसऑर्डर में बदलने लगती है. कोरोना वायरस के कारण आपको एंग्जायटी डिसऑर्डर और पैनिक अटैक तो नहीं हो रहे, इसकी जांच आप इन लक्षणों को देखकर कर सकते हैं :

–  क्या आप बार-बार तथ्य और आंकड़े जांचते रहते हैं.

–  आपको ठीक से नींद नहीं आती, सोचते रहते हैं कि कुछ बुरा हो सकता है.

–  आप बार-बार बीते दिनों को याद करते हैं.

–  आप लगभग हर चीज को लेकर ग्लानि महसूस कर रहे हैं.

–  आपको ज़्यादा भूख सताती रहती है और एक साथ बहुत सारा खाना खाते हैं.

–  शरीर में कंपकपी होती है और किसी चीज में ध्यान नहीं लगता है.

यदि इस तरह के लक्षण आपको खुद में नज़र आ रहे हैं तो सचेत हो जाइये क्योंकि ये गंभीर मानसिक बीमारी के शुरू होने के संकेत हैं, इसलिए तुरंत किसी मनोचिकित्सक से संपर्क करिये. इसके अलावा कुछ सुझाव डॉक्टर सुगंधा गुप्ता देती हैं, जिनके ज़रिये हम इस कठिन समय में अपनी मानसिक हेल्थ को ठीक रख सकते हैं.

–   इस दौरान दु:ख, तनाव, भ्रम, डर और गुस्सा महसूस करना सामान्य है. जिनपर विश्वास करते हैं, उनसे बात करने से मदद मिल सकती है. दोस्तों और परिवार के संपर्क में रहें.

–   हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं. अच्छी  डाइट, पर्याप्त नींद और रोजाना एक्सरसाइज बहुत जरूरी है.

–   स्मोकिंग, शराब या अन्य ड्रग्स को सहारा न बनाएं.

–   अगर भावनात्मक उथल-पुथल से जूझ रहे हैं तो किसी स्वास्थ्य कार्यकर्ता या काउंसलर से संपर्क करें.

–   आप अपनी उन स्किल्स का इस्तमाल करें जिन्होंने आपको जीवन में पहले भी बुरी स्थिति का सामना करने में मदद की है. इन स्किल्स से आपको महामारी वाली अभी की स्थिति में अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है.

–   अपनी दिनचर्या नियमित रखें. समय पर सोना, जगना, भोजन करना आदि.

–   खुद को खाली ना रखें. बच्चों की पढाई में, घर के कामों आदि में खुद को व्यस्त रखें. ऐसा करने से नकारत्मक सोच मन पर हावी नहीं होगी.

–   अपने शारीरिक स्वास्थ पर भी ध्यान दें, रोज़ नहाएं और शीशे के सामने खड़े हो कर आम दिनों की भांति तैयार भी हों ताकि मानसिक ऊर्जा और शारीरिक चुस्ती दोनो ही बनी रहें.

–   दोस्तों और रिश्तेदारों से जुड़े रहें, कोई भी चिंता मन मे ना रखकर परिवार जन के साथ बाँटे . इससे ना तो अकेलेपन का एह्सास होगा बल्कि सहयोग से कुछ समस्याओं का समाधान भी होगा.

–   अपने काम धंधे में साथ लगे अन्य व्यापारी, दुकानदारो और मार्किट एसोसिएशन से लगातर जुड़े रहें. इससे एकजुट हो कर कठिन समय से सामना करने की हिम्मत मिलेगी.

–   घर के खर्च इत्यादि पर परिवार से सहयोग करने को कहें.

–   धीरे-धीरे सभी काम खुल रहे हैं, परंतु अपनी सेफ़्टी को नज़रन्दाज़ ना करें. उचित शारीरिक दूरी बना कर रखें, मास्क लगाये व भीड़ भाड़ वाली जगहों पर ना जाएँ.

–   हालात चिन्ताजनक ज़रूर हैं परंतु  अत्याधिक सोच का फायदा तभी है जब हम कुछ समाधान निकालने की कोशिश करें. यदि सोच सिर्फ चिंता करने तक ही सिमित रहे, तो वह समस्या को और जटिल बना देती है. इसलिये नकारात्मक सोच से दूर रहने का प्रयत्न करें.

–   उम्मीद ना छोडें. खुद पर

ग्वार की खेती से ऐसे लें फायदा

दुनिया के कुल ग्वार उत्पादन का 80 फीसदी भारत में होता है. ग्वार एक प्राचीन व बहुद्देशीय दलहनी फसल है, जो मुख्य रूप से शुष्क व अर्धशुष्क इलाकों में उगाई जाती है. ग्वार गरम मौसम की फसल है. इसे अकसर ज्वार या बाजरे के साथ मिला कर बोया जाता है. भारत में पारंपरिक रूप से ग्वार की खेती राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में की जाती है.
वैसे तो अलगअलग जगहों पर ग्वार को अलगअलग नामों से जाना जाता है. इसे मध्य प्रदेश राज्य में चतरफली के नाम से जाना जाता है, वहीं उत्तर प्रदेश में इसे ग्वार की फली के रूप में जानते हैं. ग्वार का ज्यादातर इस्तेमाल जानवरों के चारे के रूप में होता है. पशुओं को ग्वार खिलाने से उन में ताकत आती है
और दुधारू पशुओं में दूध देने की कूवत बढ़ती है.
ग्वार से गोंद भी बनाया जाता है. इस गोंद का इस्तेमाल अनेक चीजों को बनाने में होता है. ग्वार की फली की सब्जी बनाई जाती है. साथ ही, इसे दूसरी सब्जियों के साथ मिला कर भी बनाया जाता है, जैसे आलू के साथ, दाल या सूप बनाने में, पुलाव वगैरह में भी इसे डाल कर स्वादिष्ठ बनाया जा सकता है.ग्वार फली स्वाद में मीठी व फीकी हो सकती है, पर यह पेट में देर से पचती है, क्योंकि यह शीतल प्रकृति की और ठंडक देने वाली है, इसलिए इस के ज्यादा सेवन से कफ की शिकायत हो सकती है, लेकिन ग्वार शुष्क इलाकोेंके लिए एक पौष्टिक भोजन है.
ये भी पढ़़ें-सब्जियों की संकर किस्में
ग्वार की फली में कई पौष्टिक तत्त्व पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं. यह भोजन में अरुचि को दूर कर के भूख को बढ़ाने वाली होती है. इस के सेवन से मांसपेशियां मजबूत बनती हैं. ग्वार फली में प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है.
मधुमेह के मरीजों के लिए ग्वार की फली को किसी भी रूप में लेना फायदेमंद है. यह शुगर लैवल को नियंत्रित करती है. साथ ही, यह पित्त को खत्म करने वाली है. ग्वार फली की सब्जी खाने से रतौंधी की बीमारी दूर हो जाती है. ग्वार फली पीस कर पानी के साथ मिला कर मोच या चोट वाली जगह पर इस का लेप लगाने से आराम मिलता है.
पौध के बीज में ग्लैक्टोमेनन नामक गोंद होता है. इस गोंद का इस्तेमाल दूध से बनी चीजें जैसे आइसक्रीम, पनीर वगैरह में किया जाता है. इस के बीजों से बनाया जाने वाला पेस्ट भोजन, औषधीय उपयोग के साथ ही अनेक उद्योगों में भी काम आता है.
ग्वार की नई प्रजाति
पूसा नवबहार : यह प्रजाति आईएआरआई द्वारा पूसा सदाबहार और पूसा मौसमी के संकर से निकाली गई है. फली15 सैंटीमीटर लंबी, हरी, मुलायम, पौधे में कम टहनियां होती हैं. खरीफ और गरमी के मौसम
के लिए यह प्रजाति उपयुक्त है. यह लोजिंग और बैक्टीरियल ब्लाइट से जल्दी प्रभावित नहीं होती. उपज तकरीबन 12 टन प्रति हेक्टेयर है.
मिट्टी : ऐसी उपजाऊ मिट्टी, जिस का पीएच मान साढे़ 7 से 8 हो, अच्छी मानी गई है. साथ ही, पानी निकासी का बंदोबस्त बेहतर हो.जलवायु : इस प्रजाति की देर से बोई गई फसल भी अच्छी होती है. यहां तक कि यह कहींकहीं बारिश में भी पैदा हो जाती है.
खेत की तैयारी : 2 या 3 जुताई गहरी करें या 2 जुताई हैरो से करने के बाद पाटा चला कर समतल कर लें.
बोने का समयमार्च के महीने में चारे की फसल लेने के लिए बोआई करें, वहीं बीज की फसल के लिए जुलाई का महीना मुफीद है.
ये भी पढ़ें-बागानों में निराई-गुड़ाई के लिए इस्तेमाल करें कल्टीवेटर
बीज की मात्रा : प्रति हेक्टेयर  10-15 किलोग्राम बीज की फसल के लिए, वहीं दूसरी ओर 35-40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर चारा फसल के लिए मुफीद है.
बोआई और दूरी : 1 किलोग्राम बीज को पहले राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर लें. इस के बाद बीज को 5-7 सैंटीमीटर गहरा और 45 से 50 सैंटीमीटर लाइन में बोना चाहिए, वहीं झाडि़यों वाली फसल के लिए और 30 सैंटीमीटर तना वाली जातियों के लिए बोना सही रहता है.
खाद : 15-20 किलोग्राम नाइट्रोजन और 40 किलोग्राम फास्फोरस फसल बोने से पहले मिट्टी में डालें.
सिंचाई : यह बरसात के मौसम में लगाते हैं. बारिश न होने पर 1-2 सिंचाई कर देनी चाहिए. गरमियों में 2-3 सिंचाई देनी चाहिए. खरीफ मौसम में पानी निकासी का बंदोबस्त सही होना चाहिए, क्योंकि ग्वार पानी बरदाश्त नहीं कर सकता है. ग्वार में फूल आने से पहले500 पीपीएम साइकोसील का छिड़काव करने से उपज में बढ़ोतरी होती है.
खरपतवार की रोकथाम : 1 या 2 गुड़ाई शुरू के 25-30 दिन बोने के बाद ही करनी चाहिए. बीज की फसल के लिए बासालीन ढाई लिटर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करना चाहिए.बीमारी और कीट  बैक्टीरियल ब्लाइट : इस बीमारी में धब्बे और ब्लाइट साथसाथ होती है, खासकर बरसात में हवा में ज्यादा नमी के समय और ज्यादा गरमी में हमला जल्दी होता है.
यह बीमारी बीज से होती है. बीज को स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 0.02 फीसदी घोल के साथ उपचारित करना चाहिए. साथ ही, प्रतिरोधक जातियां लगानी चाहिए. सडे़ पौधे दिखने पर हटा देने चाहिए.आल्टरनेरिया लीफ स्पौट : इस बीमारी में पत्तियों के कोने पर गोलाकार धब्बे 2 से10 मिलीमीटर आकार के होते हैं. मैंकोजेब या जिनेब 0.25 फीसदी घोल के साथ स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 0.02 फीसदी घोल का मिश्रण बोने के 5 हफ्ते बाद छिड़काव करने से रोकथाम की जा सकती है.
पाउडरी मिल्ड्यू : इस बीमारी में ग्वार की पत्तियों पर असर होता है. साथ ही, सफेद माइसिलिया के बिंदुनुमा धब्बे फलों पर होते हैं. बेनोमील 0.2 फीसदी या डाइनोकेप 0.1 फीसदी घोल का छिड़काव करने से रोकथाम की जा सकती है.
ड्राई रूटराट : यह बीमारी जड़ के सड़ने के साथ शुरू होती है. बाद में तनों में भूरापन व कालापन होता है. फसल चक्र या ऐसी फसलें लगाएं, जिन पर यह बीमारी कम होती है.बीज को कार्बंडाजिम 0.2 फीसदी से उपचारित करने से कम बीमारी होती है या ट्राइकोडर्मा 2,500 ग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छनी गोबर की खाद में मिला कर मिट्टी में मिला दें.
एंथ्रेक्नोज : जब ग्वार की फसल में यह बीमारी लगती है, तो तने, पत्तियां और फलियां प्रभावित होती हैं. जो भाग प्रभावित होता है, वह भूरे रंग का हो जाता है और किनारे लाल या पीले रंग के हो जाते हैं. साथ ही, प्रभावित तने फट कर सड़ जाते हैं. फलियों पर भी छोटेछोटे काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. इस रोग से पूरी फसल खराब हो सकती है. यह रोग ग्रसित बीज से फैलता है.
इस बीमारी की रोकथाम के लिए बोने से पहले बीजों को सेरेसान, कैप्टान या फिर थीरम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें, वहीं डाईथेन एम-45 या बाविस्टिन0.1 फीसदी का घोल बनाएं और रोग से ग्रसित पत्तियों व फलियों पर छिड़क दें. इस प्रक्रिया को 7-10 दिन के अंतराल पर फिर से करें.
जड़ गलन : जब फसल में पौधों की जड़ों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ने लगें तो समझ लें कि फसल को जड़ गलन बीमारी लग गई है. इस बीमारी के फैलने से पौधे मुरझा जाते हैं.
इस रोग से फसल को बचाने के लिए बीजों को बोने से पहले वीटावैक्स 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. मई से जून माह में सिंचाई व जुताई करें. इस के बाद खेत को खुला छोड़ दें. साथ ही, फसल को खरपतवारों से रहित रखें.
मोजेक : ग्वार की फसल में मोजेक एक विषाणुजनित बीमारी है. इस में पौधे की पत्तियों पर गहरे हरे रंग के धब्बे होने लगते हैं, तो वहीं पत्तियां अंदर की तरफ सिकुड़ जाती हैं और पूरा पौधा पीला पड़ कर सड़ जाता है. इस रोग से फसल को बचाने के लिए रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ दें. साथ ही, कीटनाशक दवा न्यूवाक्रौन या फिर मैटासिस्टौक्स 1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी का घोल बना कर छिड़कें.
चूर्णी फफूंद :
इस बीमारी का असर पौधे के सभी भागों पर पड़ता है. इस में पौधों की पत्तियों पर सब से पहले सफेद धब्बे पड़ते हैं, जो तने और हरी फलियों पर भी फैल जाते हैं. इस में पौधों की पत्तियां और हरे भागों पर सफेद चूर्ण जैसेधब्बे दिखाई देते हैं. इस रोग के प्रकोप से पत्तियां सड़ कर गिरने लगती हैं.इस बीमारी से फसल को बचाने के लिए पौधों की अच्छी तरह देखभाल करें. रोग दिखते ही घुलनशील गंधक की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़क दें या कैराथेन दवा की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लिटर पानी में घोल बना लें और पौधों पर छिड़क दें. इस से फसल में चूर्णी फफूंद नहीं लगेगी.
इस के अलावा फसल पर ब्लाइट रोग यानी झुलसा अंगमारी का भी हमला होता है. इस रोग की रोकथाम के लिए कौपर औक्सीक्लोराइड 0.3 फीसदी 2 से 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर व 18 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से घोल बना कर छिड़कें, वहीं फसल पर हरा तैला यानी जैसिड, तेलीया यानी एफिड व सफेद मक्खी का प्रकोप भी देखा गया है.
रस चूसने वाले इन कीटों के नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफास 36 एसएल 1 लिटर या एसीटामीप्रीड 150 ग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें.फली बीटल (पिस्सू कीट) : इल्लियां आमतौर पर खेत में रह कर जड़ को खाती हैं. बीज पत्रों और छोटे पौधे की पत्तियों को छेद कर खाती हैं. इस से फसल की बढ़वार घट जाती है. फसल पर 5 फीसदी फौलीडाल चूर्ण 28 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए, वहीं 10 फीसदी सेविन चूर्ण का भुरकाव करने पर इस कीट से बचा जा सकता है.
खरीफ का टिड्डा : इस कीट के शिशु शुरू में कोमल छोटी पत्तियों और तनों को काट कर खाते हैं. ज्यादा प्रकोप होने पर पौधों की बढ़वार रुक जाती है और ग्रसित पौधों मेंछोटी फलियां लगती हैं. क्विनालफास
1.5 फीसदी चूर्ण या मिथाइल पैराथियान2 फीसदी चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें.
कटाई व धुनाई : सब्जी वाली फसल के लिए 6-7 हफ्ते में फलियां खाने योग्य हो जाती हैं. मुलायम रहते हुए ही ग्वार की फलियां तोड़ लेनी चाहिए. फलियों की पैदावार तकरीबन 8-10 टन प्रति हेक्टेयर मिलती है. दानों की फसल 90 से 100 दिन में तैयार हो जाती है. हलकी मिट्टी में फसल 10-15 दिन पहले तैयार होती है. फसल कटने पर पक्के फर्श पर फैला कर उस पर बैल या ट्रैक्टर चलाते हैं. तकरीबन 9-10 क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर हासिल होता है.
अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें