कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

मैं पापा या सुमित से बातें करती हूं और मीना आंटी अगर बीच में बोल पड़तीं, तो मैं या तो खामोश हो जाती या उठ कर दूसरी जगह चली जाती.

मेरे ऐसे रूखे व्यवहार से सुमित अकसर परेशान हो उठता. पापा की आंखें भी उदासी से भरी नजर आने लगतीं, लेकिन मीना आंटी पर मेरी नाराजगी और चिढ़ का कोई प्रभाव नहीं होता और वे पहले की तरह बातचीत करती जातीं. उन का इस तरह सामान्य बने रहना मुझे कई बार मन ही मन खिझा जाता था.

मेरा बस चलता तो मैं किसी होस्टल में रह कर पढ़ने लगती, लेकिन ऐसा होना संभव नहीं था. और अगर 2 व्यक्ति घर में साथ रह रहे हों तो आपस में बात किए बगैर काम भी नहीं चल सकता. पापा की दूसरी शादी के 6 महीने बाद मैं मीना आंटी से आमनेसामने बैठ कर थोड़ीबहुत बातें करने लगी थी. कभी खुल कर अपने मन की बात नहीं कही मैं ने उन से, पर उन की घर में उपस्थिति मात्र से मुझे शिकायत होनी बंद हो गई थी.

बारिश के मौसम में मुझे बुखार हो गया. तेज बुखार में बदन बुरी तरह से टूट रहा था. भूख लगनी बंद हो गई और कमजोरी के कारण बैठते ही चक्कर आते थे.

तब मीना आंटी ने दफ्तर से सप्ताहभर की छुट्टी ले कर मेरी देखभाल की थी. मुझे प्यार से या डांटफटकार कर जबरदस्ती कुछ न कुछ खिलाती रहीं. बुखार उतारने के लिए डाक्टर की हिदायत के अनुसार घंटाघंटाभर लगातार माथे पर गीली पट्टी रखती थीं. मेरे पास बैठ कर अखबार की खबरें मुझे सुनातीं, मेरे मनपसंद टीवी धारावाहिकों में जो घटा, वह मुझे बतातीं और मैं चाह कर भी उन्हें मना नहीं कर पाती.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...