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और फिर दोनों पहले की तरह एकदूसरे से मिलते रहे. एक दिन रजत ने रमा से कहा, ‘‘रमा, जो बात तुम ने मुझ से कही है, वही अगर मां से कह दो तो उन का दुख कम हो जाएगा और वह शादी के लिए राजी हो सकती.’’

रमा थोड़ी देर के लिए चुप हो गईर् थी. फिर बोली, ‘‘अगर मां मुझे प्रेम से बुलाएं तो मैं जाऊं. सौ बार माफी मांगूं, लेकिन इस तरह मैं क्यों जाऊं? फिर मेरी बेइज्जती कर दें तो...?’’

‘‘ऐसा नहीं होगा, मेरा दिल कहता है.’’ और रजत के दिल की बात मान कर रमा फिर गंगा से मिलने गईर् थी. लेकिन गंगा ने फिर उस की बेइज्जती कर दी थी. पूरी तरह बेइज्जत हो कर वापस हुई थी वह. रजत ने उसे तो समझाया था, लेकिन अपनी मां से एक भी शब्द नहीं कह सका था. अगर कहा होता तो आज रमा की यह हालत न हुईर् होती.

उस के दिल में रजत के लिए जहां प्यार था वहां नफरत पैदा होने लगी. अच्छा हुआ कि रजत उस समय वहां नहीं था, नहीं तो पता नहीं क्या हो जाता.

4 दिन बीत गए. लेकिन इन 4 दिनों में एकसाथ बहुतकुछ घट गया. रमा ने अपना तबादला लखनऊ करवा लिया, जहां उस का अपना घर था.

5 वर्षों पहले एमए करने के बाद उस की नौकरी इलाहाबाद में लगी थी. वह चाहती तो अपने शहर में भी रह सकती थी. लेकिन यहां इस शहर में रह कर वह नौकरी के साथसाथ आईएएस की तैयारी भी करना चाहती थी. इसलिए इलाहाबाद में ही अपने मामा के साथ रहने लगी थी. जब वह अपने शहर लौटी तो उस के मांबाप ने उस के चेहरे पर छाई उदासी देख कर पूछा था कि क्या बात है, तुम इतनी उदास क्यों हो? लेकिन रमा ने सिर्फ इतना कहा था, ‘वहां अच्छा नहीं लगा. अब मुझे लगने लगा है कि मेरा दाखिला आईएएस में नहीं होगा, इसलिए उदास हो कर लौट आई हूं.’ शहर छोड़ने से पहले वह शाम को औफिस के पीछे रजत से मिली थी.

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