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अनोखा बदला : राधिका ने कैसे लिया बदला

‘‘तुम क्या क्या काम कर लेती हो?’’ केदारनाथ की बड़ी बेटी सुषमा ने उस काम वाली लड़की से पूछा. सुषमा ऊधमपुर से अपने बाबूजी का हालचाल जानने के लिए यहां आई थी.

दोनों बेटियों की शादी हो जाने के बाद केदारनाथ अकेले रह गए थे. बीवी सालभर पहले ही गुजर गई थी. बड़ा बेटा जौनपुर में सरकारी अफसर था. बाबूजी की देखभाल के लिए एक ऐसी लड़की की जरूरत थी, जो दिनभर घर पर रह सके और घर के सारे काम निबटा सके.

‘‘जी दीदी, सब काम कर लेती हूं. झाड़ूपोंछा से ले कर खाना पकाने तक का काम कर लेती हूं,’’ लड़की ने आंखें मटकाते हुए कहा. ‘‘किस से बातें कर रही हो सुषमा?’’ केदारनाथ अपनी थुलथुल तोंद पर लटके गीले जनेऊ को हाथों से घुमाते हुए बोले. वे अभीअभी नहा कर निकले थे. उन के अधगंजे सिर से पानी टपक रहा था.

‘‘एक लड़की है बाबूजी. घर के कामकाज के लिए आई है, कहो तो काम पर रख लें?’’ सुषमा ने बाबूजी की तरफ देखते हुए पूछा. केदारनाथ ने उस लड़की की तरफ देखा और सोचने लगे, ‘भले घर की लग रही है. जरूर किसी मजबूरी में काम मांगने चली आई है. फिर भी आजकल घरों में जिस तरह चोरियां हो रही हैं, उसे देखते हुए पूरी जांचपड़ताल कर के ही काम पर रखना चाहिए.’

‘‘बेटी, इस से पूछ कि यह किस जाति की है?’’ केदारनाथ ने थोड़ी देर बाद कहा. ‘‘अरी, किस जाति की है तू?’’ सुषमा ने बाबूजी के सवाल को दोहराया.

‘‘मुझे नहीं मालूम. मां से पूछ कर बता दूंगी. वैसे, मां ने मेरा नाम बेला रखा है,’’ वह लड़की हर सवाल का जवाब फुरती से दे रही थी. ‘‘ठीक है, कल अपनी मां को ले आना,’’ सुषमा ने कहा.

‘‘जी दीदी, मैं कल सुबह ही मां को ले कर आ जाऊंगी,’’ बेला ने कहा और तेजी से वहां से चल पड़ी. ‘‘मां, मुझे काम मिल गया,’’ खुशी से चीखते हुए बेला अपनी मां राधिका से लिपट गई और बोली, ‘‘बहुत अच्छी हैं सुषमा दीदी.’’

बेला को जन्म देने के बाद राधिका अपने गांव को छोड़ कर शहर में आ गई थी. बेला को पालनेपोसने में उसे बहुत मेहनत करनी पड़ी थी. उसे दूसरों के घरों की सफाई से ले कर कपड़े धोने तक का काम करना पड़ा था, तब कहीं जा कर वह अपना और बेला का पेट पाल सकी थी.

जब राधिका पेट से थी, तब से अपने गांव में उसे खूब ताने सुनने पड़े थे पर उस ने हिम्मत नहीं हारी थी. वह अपने पेट में खिले फूल को जन्म देने का इरादा कर बैठी थी. ‘अरे, यह किस का बीज अपने पेट में डाल लाई है? बोलती क्यों नहीं करमजली? कम से कम बाप का नाम ही बता दे ताकि हम बच्चे के हक के लिए लड़ सकें,’ राधिका की मां ने उसे बुरी तरह पीटते हुए पूछा था.

मार खाने के बाद भी राधिका ने अपनी मां को कुछ नहीं बताया क्योंकि वह आदमी पैसे वाला था. समाज में उस की बहुत इज्जत थी और फिर राधिका के पास कोई सुबूत भी तो नहीं था. वह किस मुंह से कहेगी कि वह शादीशुदा है, किसी के बच्चे का बाप है. ‘एक तो हम गरीब, ऊपर से बिनब्याही मां का कलंक… हम किसकिस को जवाब देंगे, किसकिस का मुंह बंद करेंगे,’ राधिका की मां ने खीजते हुए कहा था.

‘क्या सोचा है तू ने, चलेगी सफाई कराने को?’ मां ने उस की चोटी मरोड़ते हुए पूछा था. ‘नहीं मां, मैं कहीं नहीं जाऊंगी. मैं इस बच्चे को जन्म दूंगी. चाहो तो तुम लोग मुझे जान से मार दो, पर जीतेजी मैं इस बेकुसूर की हत्या नहीं होने दूंगी,’ राधिका ने रोते हुए अपनी मां से कहा था.

मां की बातों से तंग आ कर राधिका उसे बिना बताए अपने नानानानी के पास चली गई और उन्हें सबकुछ बता दिया. राधिका की बातें सुन कर नानी पिघल गईं और गांव वालों के तानों को अनसुना कर उस का साथ देने को तैयार हो गईं.

राधिका की मां व नानी यह नहीं जान पाईं कि आखिर वह चाहती क्या है? बच्चे को जन्म देने के पीछे उस का इरादा क्या था? ‘‘मां, चलना नहीं है क्या? सुबह हो गई है,’’ बेला ने सुबहसुबह मां को नींद से जगाते हुए कहा.

‘‘हां बेटी, चलना तो है. पहले तू तैयार हो जा, फिर मैं भी तैयार हो जाती हूं,’’ यह कह कर राधिका झटपट तैयार होने लगी. सुषमा ने दरवाजा खोल कर उन दोनों को भीतर बुला लिया. केदारनाथ अभी तक सो रहे थे.

‘‘तो तुम बेला की मां हो?’’ सुषमा ने राधिका की ओर देखते हुए पूछा. ‘‘जी मालकिन, हम ही हैं,’’ राधिका ने जवाब दिया.

‘‘तुम्हारी बेटी समझदार तो लगती है. वैसे, घर का सारा काम कर लेती है न?’’ राधिका ने फौरन जवाब दिया, ‘‘बिलकुल मालकिन, मैं ने इसे सारा काम सिखा रखा है.’’

‘‘तो ठीक है, रख लेते हैं. सारा दिन यहीं रहा करेगी. रात को भले ही अपने घर चली जाए.’’ सुषमा ने बेला को हर महीने 500 रुपए देने की बात तय कर ली.

‘‘कौन आया है बेटी? सुबहसुबह किस से बात कर रही हो?’’ केदारनाथ जम्हाई ले कर उठते हुए बोले. ‘‘कोई नहीं बाबूजी, काम वाली लड़की आई है, उसी से बात कर रही थी,’’ सुषमा ने जवाब दिया.

केदारनाथ बाहर निकले तो राधिका के लंबा सा घूंघट निकालने पर सुषमा को अजीब सा लगा. ‘‘अच्छा तो अब हम चलते हैं,’’ राधिका उठते हुए बोली.

‘‘तो ठीक है, कल से भेज देना बेटी को,’’ सुषमा ने बात पक्की कर के बेला को आने के लिए कह दिया. राधिका ने राहत की सांस ली. उसे लगा कि वह कीड़ा जो इतने सालों से उस के जेहन में कुलबुला रहा था, उस से छुटकारा पाने का समय आ गया है.

सुषमा को भी राहत मिली कि बाबूजी की देखभाल के लिए अच्छी लड़की मिल गई है. वह दूसरे दिन ही ससुराल लौट गई. ‘‘ऐ छोकरी, जरा मेरे बदन की मालिश कर दे. सारा बदन दुख रहा है,’’ केदारनाथ ने बादाम के तेल की शीशी बेला के हाथों में पकड़ाते हुए कहा.

बेला ने उन के उघड़े बदन पर तेल से मालिश करनी शुरू कर दी. ‘‘तेरे गाल बहुत फूलेफूले हैं. क्या खिलाती है तेरी मां?’’ केदारनाथ ने अकेलेपन का फायदा उठाते हुए पूछा.

‘‘मां,’’ बेला ने चीख कर अपनी मां को आवाज दी. राधिका वहीं थी. ‘‘शर्म करो केदार,’’ राधिका ने जोर से दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘अपनी ही बेटी के साथ कुकर्म. बेटी, हट वहां से…’’

राधिका बोलती रही, ‘‘हां केदारनाथ, बरसों पहले जो कुकर्म तुम ने मेरे साथ किया था, उसी का नतीजा है यह बेला. तुम ने सोचा होगा कि राधिका चुप बैठ गई होगी, पर मैं चुप नहीं बैठी थी. मैं ने इसे जन्म दे कर तुम तक पहुंचाया है. ‘‘यह मेरी सोचीसमझी चाल थी ताकि तुम्हारी बेटी भी तुम्हारी करतूत को अपनी आंखों से देख सके.’’

केदारनाथ एक मुजरिम की तरह सिर झुकाए सबकुछ सुनता रहा. राधिका ने बोलना बंद नहीं किया, ‘‘हां केदार, अब भी तुम्हारे सिर से वासना का भूत नहीं उतरा है, तो ले तेरी बेटी तेरे सामने खड़ी है. उतार दे इस की भी इज्जत और पूरी कर ले अपनी हवस.

‘‘मैं भी बरसों पहले तुम्हारी हवस का शिकार हुई थी. तब मैं इज्जत की खातिर कितना गिड़गिड़ाई थी, पर तुम ने मुझे नहीं छोड़ा था. मैं तभी जवाब देती, पर मालकिन ने मेरे पैर पकड़ लिए थे, इसीलिए मैं चुप रह गई थी. ‘‘यह तो अच्छा हुआ कि बेला ने तुम्हारी नीयत के बारे में मुझे पहले ही सबकुछ बता दिया. इस बार बाजी मेरे हाथ में है.

‘‘क्या कहते हो केदार? शोर मचा कर भीड़ में तुम्हारा तमाशा बनाऊं,’’ राधिका सुधबुध खो बैठी थी और लगातार बोले जा रही थी. केदारनाथ की अक्ल मानो जवाब दे गई थी. अपनी इज्जत की धज्जियां उड़ती देख वे छत की तरफ भागे और वहां से कूद कर अपनी जिंदगी खत्म कर ली.

इन घरेलू टिप्स से बढ़ाएं रूखे बालों की चमक

खूबसूरती को निखारने में  सिर्फ चेहरा ही नही बल्कि लंबे, घने, स्मूथ और शाइनी बालों का होना भी बहुत जरूरी होता है. खूबसूरत बाल पाने के लिए लड़कियां  पार्लर में जा कर अलग-अलग तरीके अपनाती है पॉर्लर में कैमिकल वाले हेयर ट्रीटमेंट आपके बालों को इंस्टेंट शाइन तो प्रदान करते है, लेकिन आपके बालों को नुकसान भी बहुत पहुंचाते है. ऐसे में आप घरेलू तरीकों से भी बालों को शाइनी और लंबा बना सकती हैं.

डॉ. अजय राणा, विश्व प्रसिद्ध डर्मेटोलॉजिस्ट और एस्थेटिक फिजिशियन, संस्थापक और निदेशक, आईएलएएमईडी के अनुसार,  आप अपने रूखे बेजान बालों में शैम्पू  से पहले इन 4 चीजों का इस्तेमाल  करके पा सकती है  रेशमी और मुलायम जो आपकी खूबसूरती में लगाएंगे चार-चांद.

ओलिव ऑयल  –

ओलिव ऑयल बालों को मॉइस्चराइज़ करता है और स्कैल्प की जलन को कम करता है, जो आगे चलकर डैंड्रफ को कम करता है. ओलिव ऑयल विटामिन ई से भरपूर होता है जो बालों को मजबूत बनाता है और बालों को झड़ने से रोकता है.
ओलिव ऑयल बालों को मॉइश्चराइज़ करता है जिससे बालों को स्मूथ बनाने और मज़बूत बनाने की क्षमता तेज़ी से बढ़ रही है.

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सेब का सिरका –

सेब के सिरके में एंटी-फंगल और एंटी-बैक्टीरियल प्रॉपर्टीज होते है जो स्कैल्प इन्फेक्शन, ड्राईनेस , खुजली और डैंड्रफ का मुकाबला करने में मदद करते हैं. सेब के सिरके में ऐसे गुण होते हैं जो स्कैल्प और बालों के पीएच स्तर को बैलेंस्ड करते हैं. सेब का सिरका रूखे बाल और स्प्लिटेंट्स को भी काम करने में मदद करता है.

काली चाय –

काली चाय एंटीऑक्सिडेंट के साथ भरी हुई होती है जो रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज (आरओएस) के माध्यम से उत्पन्न ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को समय से पहले बालों के झड़ने को रोकने में मदद करती है. काली चाय का दो सप्ताह तक लगातार उपयोग बालों के ग्रोथ में भी मदद करता है. बालों को शैम्पू करने के बाद, काली चाय का उपयोग करें. ऐसा कुछ हफ़्तों के लिए करें, सप्ताह में कम से कम दो बार करें और इससे बाल पहले से अधिक नरम और चमकदार हो जाएंगे.

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अंडा –

अंडे में भरपूर मात्रा में प्रोटीन होता है जो बालों की ग्रोथ के लिए नुट्रिशन के रूप में काम करता है. यह बालों के हेल्दी न्यू ग्रोथ को भी बढ़ाने में मदद करता है. अंडा बालों के रोम को मजबूत बनाने में मदद करता हैं. यह स्कैल्प को एक्टिव बनाता है, बालों की जड़ों को मजबूत करता है. जिससे बाल के टूटने की सम्भावना कम हो जाती है.अंडे को बालों में लगाने से बाल स्मूद हो जाते है और और यह बालों के टेक्सचर को भी सही करता है. अंडा एक कंडीशनर की तरह काम करता हैं और सूखे बालों को मॉइस्चराइज़ कर देता हैं.

Satyakatha: रिश्तों में सेंध

सौजन्या- सत्यकथा

नहने सिंह मंडी से सब्जी ला कर गांव में बेचने का काम करता था. उस का बेटा रवि भी इस काम में उस की मदद करता था. लौकडाउन के चलते रोजाना की तरह नहने उस दिन भी सुबह सब्जी खरीदने के लिए टूंडला मंडी गया था. सुबह 7 बजे सब्जी ले कर वह वापस घर लौट आया.

तब तक घर के सभी सदस्य जाग गए थे, लेकिन घर में उसे अपनी बेटी कंचन दिखाई नहीं दी. उस ने पत्नी से पूछा, ‘‘कंचन कहां है?’’

पत्नी ने बताया कि छत पर सो रही है, अभी तक नीचे नहीं आई है.

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उसे उठाने के लिए रवि ने आवाज दी, लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. इस पर घरवाले छत पर गए. देखा चारपाई पर कंचन मुंह ढंके सो रही थी. पास जा कर उसे हिलाया. लेकिन वह नहीं उठी. गौर से देखा तो कंचन मरी पड़ी थी. यह घटना 15 मई, 2020 की है.

कंचन की मौत की बात सुनते ही घर में कोहराम मच गया. चीखपुकार का शोर सुन कर आसपास के लोग आ गए. नहने की बेटी की अचानक मौत होने से गांव में सनसनी फैल गई.

इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. कुछ ही देर में पचोखरा थानाप्रभारी संजय सिंह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया.

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कंचन के घरवालों ने पड़ोसियों पर कंचन की हत्या करने का आरोप लगाया. कारण आपसी रंजिश थानाप्रभारी ने इस घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी थी. कुछ ही देर में एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह और सीओ अजय सिंह चौहान फोरैंसिक टीम के साथ मौकाएवारदात पर आ गए.

कंचन की लाश देख उस की मां और बहनें बिलखबिलख कर रो रही थीं. उन्हें मोहल्ले  की महिलाएं संभाल रही थीं. पुलिस अधिकारियों ने मकान की छत पर जा कर चारपाई पर पड़े कंचन के शव का बारीकी से निरीक्षण किया, फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए.

जांच के दौरान फोरैंसिक टीम प्रभारी कुलदीप चौहान ने देखा, मृतका की गरदन पर चोट का निशान था. मतलब कंचन की हत्या की गई थी. उस की हत्या किस ने और क्यों की, इस का जवाब किसी के पास नहीं था. लेकिन मृतका के पिता नहने चिल्लाचिल्ला कर अपनी बेटी की हत्या का आरोप पड़ोसियों पर लगा रहा था.

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पूछताछ में मृतका के भाई रवि ने बताया कि वह रात में पड़ोस में गया हुआ था. वहां एक लड़की को सांप ने काट लिया था. वहां से वह रात 12 बज कर 5 मिनट पर घर आया.

सवा 12 बजे छत पर गया, वहां बहन कंचन चारपाई पर सो रही थी. उस समय वह जिंदा थी या मर चुकी थी, उसे पता नहीं. वह छत से नीचे आ कर सो गया. सुबह 7 बजे पता चला कि बहन की मौत हो गई है.

पुलिस ने इस संबंध में घर वालों से पूछताछ की. पिता नहने ने बताया कि सभी लोग मकान के चबूतरे पर सो रहे थे. गरमी की वजह से रात में कंचन घर की छत पर चली गई थी. सुबह वह मृत मिली. रात में सोते समय  पड़ोसियों ने छत पर जा कर कंचन की हत्या कर दी.

पुलिस ने शव कब्जे में ले लिया. फिर मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय भिजवा दी.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि कंचन की हत्या गला घोंटने से हुई थी. पुलिस ने मृतका के पिता नहने सिंह की तहरीर पर गांव के प्रणवीर यादव, उस की पत्नी गीता, प्रबल कुमार यादव व पीपी यादव के खिलाफ हत्या की आशंका का केस दर्ज कर लिया.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि पड़ोसी उस से व उस के परिवार से  रंजिश रखते थे. इस के चलते बेटी कंचन की सोते समय गला दबा कर हत्या कर दी गई.

 

नहने सिंह अपने परिवार के साथ जिला फिरोजाबाद के गांव जारखी में रहता था. उस के 5 बच्चों में बेटी गीता सब से बड़ी थी, दूसरे नंबर का बेटा रवि था. इस से छोटी कंचन और शिवानी थीं. दोनों छोटी बहनें जवान थीं. नहने ने दोनों बहनों का रिश्ता तय कर दिया था.

29 जून को कंचन व शिवानी की बारात आनी थी. घर में खुशी का माहौल था और शादी की तैयारियां चल रही थीं.

सीओ अजय चौहान ने एसओजी टीम को भी इस घटना के खुलासे के लिए लगा दिया. एसओजी प्रभारी कुलदीप चौहान अपनी टीम सहित इस कार्य में जुट गए.

जांच के दौरान पुलिस ने पड़ोसियों से भी पूछताछ की. पूछताछ के दौरान पता चला कि दोनों बहनों कंचन व शिवानी की जून में शादी होने वाली थी. पुलिस ने प्रेम प्रसंग को ले कर भी जांच की. लेकिन उसे पता चला कि कंचन का किसी से कोई प्रेमप्रसंग नहीं चल रहा था.

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जांच के दौरान पता चला कि मृतका कंचन के मोबाइल की काल डिटेल्स में एक नंबर ऐसा था, जिस पर कंचन की अकसर बात होती थी. उस नंबर पर बात भी काफी देर तक होती थी. पूछताछ पर पता चला कि यह नंबर कंचन के जीजा भूरा का था.

इस पर पुलिस ने मृतका के घरवालों से गहनता से पूछताछ की. पुलिस को पता चला कि नहने के 5 बच्चों में सब से बड़ी बेटी गीता शादीशुदा है. उस की शादी आगरा के थाना क्षेत्र गांव लड़ामदा में भूरा के साथ हुई थी. उस के 2 बच्चे भी हैं. वह पिछले 2 माह से अपने मायके जारखी में रह रही थी.

इस के बाद पुलिस ने गीता और उस के पति भूरा के संबंधों के बारे में जानकारी जुटाई. पुलिस को पता चला कि पतिपत्नी के बीच रिश्ते मधुर नहीं थे. छोटी बहन कंचन अपने जीजा से अकसर मोबाइल पर बात करती थी. पुलिस ने इस पहलू पर भी जानकारी जुटाई कि कहीं जीजासाली के बीच कोई खिचड़ी तो नहीं पक रही थी. कहीं कंचन पत्नी के बीच रोड़ा तो नहीं बन रही थी.

मृतका के पिता ने पड़ोस के 4 लोगों पर शक जताते हुए हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, लेकिन पुलिस और एसओजी टीम ने जब मामले की गहनता से जांच की तो बात कुछ और निकली.

बड़ी बहन गीता ने खून के रिश्तों को कलंकित होते देख अपनी छोटी बहन कंचन की गला दबा कर हत्या कर दी थी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने 20 मई, 2020 को बड़ी बहन गीता को छोटी बहन कंचन की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. गीता ने अपना जुर्म कबूल कर लिया.  गीता ने बहन की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—

 

गीता की शादी 7-8 साल पहले हुई थी. छोटी बहन कंचन से पति भूरा के संबंध होने का गीता को शक था. शक की बुनियाद यह थी कि दोनों मोबाइल पर घंटों बात करते थे. इस के चलते उसे दोनों के बीच प्रेम संबंध होने का शक हो गया था. गीता ने पति से कई बार कंचन से बात करने को मना किया.  लेकिन उस का पति कंचन को ले कर उस के साथ आए दिन मारपीट करता था.

पिछले 2 महीने से गीता अपने मायके में रह रही थी. उस ने देखा कि यहां भी उस के पति और बहन कंचन के बीच काफी देर तक बातें होती थीं. दोनों मोबाइल पर चिपके रहते थे. यह बात गीता को नागवार गुजरती थी.

घटना से एक दिन पहले भी गीता का कंचन से विवाद हुआ था. गीता को यह बात बुरी लगती थी कि शादी तय हो जाने के बाद भी कंचन उस के पति से बात करती रहती है.

गीता को शक था कि जीजा से बात करने के लिए कंचन गरमी का बहाना कर छत पर चली गई है. वह रात में उस के पति से बात करेगी. उस दिन रात के समय उस का भाई रवि भी मोहल्ले में चला गया था. अच्छा मौका देख कर गीता छत पर गई. उस समय कंचन चारपाई पर गहरी नींद में सोई हुई थी. इसलिए उस ने छत पर अकेली सो रही कंचन का गला दबा कर उसे मौत के घाट उतार दिया. उस ने गला इतनी जोर से दबाया कि कंचन की चीख भी नहीं निकल सकी.

हत्या के बाद वह दबे पांव नीचे आ कर सो गई. सुबह कंचन की मौत की खबर पर दुख जताते हुए वह भी रोने का नाटक करती रही.

पुलिस ने गीता को बहन की हत्या के आरोप में गिरफ्तार करने के बाद न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

जीजा और साली का रिश्ता हंसीमजाक का होता है. जीजा से मोबाइल पर हंसहंस कर बात करना ही कंचन की मौत का कारण बन गया. गीता को अपनी बहन के चरित्र पर शक हो गया था, लेकिन शक दिनोंदिन इतना गहराता गया कि अंतत: उस ने उस की हत्या कर दी.

पुलिस ने युवती की हत्या की गुत्थी का घटना के 5 दिन बाद ही खुलासा कर दिया. गीता ने शक के चलते अपना परिवार उजाड़ लिया. नहने के घर में शादी की खुशियां मातम में बदल गईं.

कैसे करें बगीचे पर ऊंचे तापमान के असर का बचाव

आमतौर पर उत्तर भारत में गरमी के मौसम में लू व ऊंचे तापमान से बगीचों में काफी नुकसान होता है. फल उत्पादक यदि गरमी में अपने बाग का रखरखाव वैज्ञानिक ढंग से करें, तो पौधों को ऊंचे तापामन से बचा कर वे माली नुकसान से बच सकतेहैं. फलों के पेड़ों को ज्यादा तापक्रम के कारण सनबर्न व सन स्काल्ड नाम के नुकसान होतेहैं. पौधों की बढ़वार के समय तापक्रम अधिक होने पर धूप के सीधे संपर्क में आने वाली पत्तियों, तनों व फलों को नुकसान होता है. जब वायुमंडल में आर्द्रता कम हो व हवाएं तेज चलें, तब ज्यादा तापमान के प्रभाव से पौधों को बहुत ज्यादा नुकसान होताहै. इस समय पौधों सेज्यादा भाप निकलतीहै, जिस से पौधों की पत्तियां व टहनियां सूख जातीहैं.

बाग की दक्षिणपश्चिम दिशा में सूर्य की किरणें अन्य दिशाओं की तुलना में दिन में ज्यादा समय तक सीधी पड़ती हैं, जिस के कारण पौधों में सन स्काल्ड होता है. सूर्यास्त के  बाद तापक्रम अचानक गिर जाताहै, जिस से पौधों को नुकसान पहुंचताहै. नीबू प्रजाति के पेड़ों को यह नुकसान ज्यादा होता है.

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ऊंचे तापमान से पेड़ों का बचाव : गरमी के मौसम में जब तापक्रम 40 डिगरी सेंटीग्रेड सेऊपर पहुंचने लगताहै, उस समय पौधों को गरमी से बचाने के लिए निम्नलिखित सावधानियां अपनानी चाहिए:

छाया करना: छोटे पौधों (नए रोपित) को कांस, मूंज, कड़वी आदि की टटियां बना कर ढक देना चाहिए. गमलों में लगे पौधों को बड़े पौधों की छाया में रख कर गरमी से बचाया जा सकता है.

पौधों को ढकना : यदि मुमकिन हो तो पौधों के तनों कोऊपर से नीचे तक अखबार लपेट कर ढक देना चाहिए, ताकि पौधों की ऊंचे तापमान से रक्षा की जा सके.

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नियमित सिंचाई : पौधों को ऊंचे तापमान से बचाने के लिए मिट्टी की किस्म व तापमान को ध्यान में रखते हुए सिंचाई का अंतराल कम कर देना चाहिए. नियमित सिंचाई कर के हलकी नमी बनाए रखनी चाहिए.

सिंचाई के समय में बदलाव : गरमी में सिंचाई के शाम के समय में बदलाव कर देना चाहिए, क्योंकि दिन की गरमी के बाद अचानक पानी देने से पौधे मर जातेहैं. गरमी में रात 2 बजे से सुबह 9 बजे तक सिंचाई करनी चाहिए.

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विंड ब्रेक लगाना: बाग लगाते समय पश्चिम दिशा में लंबे सदाबहार पेड़ों की 2-3 पट्टियां जरूर लगाएं. सदाबहार पेड़ों में जामुन, कटहल, बांस, सफेदा, सूलबूल, पोपलर, महुआ व टीक आदि का चयन स्थानीय हालात के मुताबिक करना चाहिए. किसी कारण यह विंड ब्रेक सफल न हो, तो अगला विंड ब्रेक तैयार होने तक कच्ची या पक्की दीवार बना कर पौधों की रक्षा की जा सकतीहै.

सफेदी कर के : पेड़ों पर सफेदी कर के भी उन्हें गरमी से बचाया जा सकताहै. जाड़े के मौसम के बाद पौधों पर बसंत के मौसम

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में सफेदी की दोहरी कोटिंग कर देनी चाहिए. सफेदी की कोटिंग करने से पौधों की गरमी के साथसाथ कीड़ों से भी सुरक्षा हो जातीहै. नर्सरी के पौधों की ग्रीन हाउस में सुरक्षा : नर्सरी के पौधों की ग्रीन हाउस में ऊंचे तापमान से सुरक्षा की जा सकतीहै. इस के लिए सस्ती सामग्री का इस्तेमाल कर के ग्रीन हाउस बना सकते हैं.

सोने का कारावास- भाग 3: अभिषेक अपनी कौन सी गलती पर पछता रहा था?

100 बीघा जमीन जो उन की गांव में है, उस के भी 4 हिस्से कर दिए गए थे. दुकानें भी सब के नाम पर एकएक थी और गहनों के 3 भाग कर दिए गए थे. मां ने अपने पास बस वे ही गहने रखे जो वे फिलहाल पहन रही थीं. वसीयत पढ़े जाने के पश्चात तीनों भाईबहन सामान्य थे पर छोटे दामाद और प्रियंका का मुंह बन गया था. जबकि छोटे दामाद और बहू ने अब तक मां के लिए कुछ भी नहीं किया था.

प्रियंका उस दिन जो गई, फिर कभी ससुराल की देहरी पर न चढ़ी. मां के गुजरने पर अभिषेक अकेले ही बड़ी मुश्किल से आ पाया था. फिर तो जैसे अभिषेक के लिए अपने देश का आकर्षण ही खत्म हो गया था.

पूरे 7 वर्षों तक अभिषेक भारत नहीं गया. बहनों की राखी मिलती रही, पर उस ने अभी कुछ नहीं भेजा क्योंकि कहीं न कहीं यह फांस उस के मन में भी थी कि जब उन्हें बराबर का हिस्सा मिला है तो फिर किस बात का तोहफा.

अमेरिका में वह पूरी तरह रचबस गया था कि तभी अचानक से एक छोटे से टैस्ट ने भयानक कैंसर की पुष्टि कर दी थी. उन्हीं रिपोर्ट्स को बैठ कर वह देख रहा था. न जाने क्यों कैंसर की सूचना मिलते ही सब से पहले उसे अपनी बहनों की याद आई थी.

सार्थक अपनी ही दुनिया में मस्त रहता था, उस से कुछ उम्मीद रखना व्यर्थ था. वह एक अमेरिकी बेटा था. सबकुछ नपातुला, न कोई शिकायत न कोई उलाहना, एकदम व्यावहारिक. कभीकभी अभिषेक उन भावनाओं के लिए तरस जाता था. वह 2 हजार किलोमीटर दूर एक मध्यम आकार के सुंदर से घर में रहता था.

सार्थक से जब अभिषेक ने कहा, ‘‘सार्थक, तुम यहीं शिफ्ट हो जाओ, मुझे और तुम्हारी मम्मी को थोड़ा सहारा हो जाएगा.’’

सार्थक हंसते हुए बोला, ‘‘पापा, यह अमेरिका है, यहां पर आप को काम से छुट्टी नहीं मिल सकती है और सरकार की तरफ से इलाज तो चल रहा है

आप का, जो भारत में मुमकिन नहीं. मुझे आगे बढ़ना है, ऊंचाई छूनी है, मैं आप का ही बेटा हूं, पापा. आप सकारात्मक सोच के साथ इलाज करवाएं, कुछ नहीं होगा.’’

पर अभिषेक के मन में यह भाव घर कर गया था कि यह उस की करनी का ही फल है और उस की बातों की पुष्टि के लिए उस की बहनें भी रोज कोई न कोई नई बात बता देती थीं. अब अकसर ही अभिषेक अपनी बहनों से बातें करता था जो उसे मानसिक संबल देती थीं. सब से अधिक मानसिक संबल मिलता था उसे उन ज्योतिषियों की बातों से जो अभिषेक के लिए इंडिया से ही पूजापाठ कर रहे थे.

भारत में दोनों बहनों ने महामृत्युंजय के पाठ बिठा रखे थे. हर रोज प्रियंका अभिषेक का फोटो खींच कर व्हाट्सऐप से दोनों बहनों को भेजती और उस फोटो को देखने के पश्चात पंडित लोग अपनी भविष्यवाणी करते थे. सब पंडितों का एकमत निर्णय यह था कि अभिषेक की अभी कम से कम 20 वर्ष आयु शेष है. यदि वह अच्छे मुहूर्त में आगे का इलाज करवाएगा तो अवश्य ही ठीक हो जाएगा.

सार्थक हर शुक्रवार को अभिषेक और प्रियंका के पास आ जाता था. उस रात जैसे ही उसे झपकी आई तो देखा. इंडिया से छोटी बूआ का फोन था, वे प्रियंका को बता रही थीं, ‘‘भाभी, आप अस्पताल बदल लीजिए, पंडितजी ने कहा है, जगह बदलने से मरकेश ग्रह टल जाएगा.’’

सार्थक ने मम्मी के हाथ से फोन ले लिया और बोला, ‘‘बूआ, ऐसी स्थिति में अस्पताल नहीं बदल सकते हैं और ग्रह जगह बदलने से नहीं, सकारात्मक सोच से बदलेगा, मेरी आप से विनती है, ऐसी फालतू बात के लिए फोन मत कीजिए.’’

परंतु अभिषेक ने तो जिद पकड़ ली थी. उस ने मन के अंदर यह बात गहरे तक बैठ गई थी कि बिना पूजापाठ के वह ठीक नहीं हो पाएगा. सार्थक ने कहा भी, ‘‘पापा, आप इतना पढ़लिख कर ऐसा बोल रहे हो, आप जानते हो कैंसर का इलाज थोड़ा लंबा चलता है.’’

अभिषेक थके स्वर में बोला, ‘‘तुम नहीं समझोगे सार्थक, यह सब ग्रहदोष के कारण हुआ है, मैं अपने मम्मीपापा का दिल दुखा कर आया था.’’

सार्थक ने फिर भी कहा, ‘‘पापा, दादादादी थोड़े दुखी अवश्य हुए होंगे पर आप को क्या लगता है, उन्होंने आप को श्राप दिया होगा, आप खुद को उन की जगह रख कर देखिए.’’

प्रियंका गुस्से में बोली, ‘‘सार्थक, तुम बहुत बोल रहे हो. हम खुद अस्पताल बदल लेंगे. हो सकता है अस्पताल बदलने से वाकई फर्क आ जाए.’’

सार्थक ने अपना सिर पकड़ लिया. क्या समझाए वह अपने परिवार को. उसे डाक्टरों की चेतावनी याद थी कि जरा सी भी असावधानी उन की जान के लिए खतरा सिद्ध हो सकती है.

अभिषेक की इच्छाअनुसार अस्पताल बदल लिया गया. अगले हफ्ते जब सार्थक आया तो देखा, अभिषेक पहले से बेहतर लग रहा था. प्रियंका सार्थक को देख कर चहकते हुए बोली, ‘‘देखा सार्थक, महामृत्युंजय पाठ वास्तव में कारगर होते हैं.’’

पापा को पहले से बेहतर देख कर सार्थक ने कोई बहस नहीं की. बस, मुसकराभर दिया. पर फिर उसी रात अचानक से अभिषेक को उल्टियां आरंभ हो गईं. डाक्टरों का एकमत था कि  पेट का कैंसर अब गले तक पहुंच गया है, फौरन सर्जरी करनी पड़ेगी.

परंतु प्रियंका मूर्खों की तरह इंडिया में ज्योतिषियों से सलाह कर रही थी. ज्योतिषियों के अनुसार अभी एक हफ्ते से पहले अगर सर्जरी की तो अभिषेक को जान का खतरा है क्योंकि पितृदोष पूरी तरह से समाप्त होने में अभी भी एक हफ्ते का समय शेष है. एक बार पितृदोष समाप्त हो जाएगा तो फिर अभिषेक को कुछ नहीं होगा. कहते हैं जब बुरा समय आता है तो इंसान की अक्ल पर भी परदा पड़ जाता है. अभिषेक अपनी दवाइयों में लापरवाही बरतने लगा पर भभूत, जड़ीबूटियों का काढ़ा वह नियत समय पर ले रहा था. इन जड़ीबूटियों के कारण कैंसर की आधुनिक दवाओं का असर भी नहीं हो रहा था क्योंकि जड़ीबूटियों में जो कैमिकल होते हैं वे किस तरह से कैंसर की इन नई दवाओं को प्रभावित करते हैं, इस पर अमेरिकी शोधकर्ताओं ने कभी ध्यान नहीं दिया था. नतीजा उस का स्वास्थ्य दिनबदिन गिरने लगा. इस कारण से अभिषेक की कीमोथेरैपी के लिए भी डाक्टरों ने मना कर दिया.

सार्थक ने बहुत प्यार से समझाया, सिर पटका, गुस्सा दिखाया पर अभिषेक और प्रियंका टस से मस न हुए. डाक्टरों ने सार्थक को साफ शब्दों में बता दिया था कि अब अभिषेक के पास अधिक समय नहीं है. सार्थक को मालूम था कि अभिषेक का मन अपनी बहनों में पड़ा है. जब उस ने अपनी दोनों बुआओं को आने के लिए कहा तो दोनों ने एक ही स्वर में कहा, ‘‘गुरुजी ने एक माह तक सफर करने से मना किया है क्योंकि दोनों ने अपने घरों में अखंड ज्योत जला रखी है, एक माह तक और फिर गुरुजी की भविष्यवाणी है कि भैया मार्च में ठीक हो कर आ जाएंगे. यदि हम बीच में छोड़ कर गए तो अपशकुन हो जाएगा.’’ सार्थक को समझ आ गया था कि भैंस के आगे बीन बजाने से कोई फायदा नहीं है.

उधर, अभिषेक को सोने की नगरी अब कारावास जैसी लग रही थी. तरस गया था वह अपनों के लिए, सबकुछ था पर फिर भी मानसिक शांति नहीं थी. दोनों बहनों ने अपनी ओर से कोई भी कोरकसर नहीं छोड़ी पर ग्रहों की दशा सुधारने के बावजूद अभिषेक की हालत न सुधरी. मन में अपनों से मिलने की आस लिए वह दुनिया से रुखसत हो गया.

आज सार्थक को बेहद लाचारी महसूस हो रही थी. दूसरे अवश्य उसे अमेरिकी कह कर चिढ़ाते हों पर वह जानता था कि उस के गोरे अमेरिकी दोस्त कैसे मातापिता की सेवा करते हैं. उस की एक प्रेमिका तो मां का ध्यान रखने के लिए उसे ही नहीं, अपनी अच्छी नौकरी को भी छोड़ कर इस छोटे से गांवनुमा शहर में 4 साल रही थी. वह मां के मरने के बाद ही लौटी थी. वह समझता था कि अमेरिकी युवा अपने मन से चलता है पर अपनी जिम्मेदारियां समझता है. अब वह हताश था क्योंकि पूर्वग्रह के कारण उस के मातापिता भारत में बैठी बहनों के मोहपाश में बंधे थे. वे धर्म की जो गठरी सिर पर लाद कर लाए थे, अमेरिका में रह कर और भारी हो गई थी.

सबकुछ तो था उस के परिवार के पास पर इन अंधविश्वासों में उलझ कर वह अपने पापा की आखिरी इच्छा पूरी न कर पाया था, काश, वह अपने पापा और परिवार को यह समझा पाता कि कैंसर एक रोग है जो कभी भी किसी को भी हो सकता है, उस का इलाज पूजापाठ नहीं. सकारात्मक सोच और डाक्टरी सलाह के साथ नियमित इलाज है. अमेरिका न तो सोने की नगरी है और न ही सोने का कारावास, पापा की अपनी सोच ने उन्हें यह कारावास भोगने पर मजबूर किया था. गीली आंखों के साथ सार्थक ने अपने पापा को श्रद्धांजलि दी और एक नई सोच के साथ हमेशा के लिए अपने को दकियानूसी सोच के कारावास से मुक्त कर दिया.

सोने का कारावास- भाग 2: अभिषेक अपनी कौन सी गलती पर पछता रहा था?

सावित्री थके से स्वर में बोली, ‘तुम अपना ब्लडप्रैशर मत बढ़ाओ, यह घोंसला तो पिछले 10 वर्षों से खाली है. हम हैं न एकदूसरे के लिए,’ पर यह कहते हुए उन का स्वर भीग गया था.

सावित्री मन ही मन सोच रही थी कि वह अभिषेक को भी क्या कहे, आखिर प्रियंका उस की बीवी है. पर वे दोनों कैसे रहें उस के घर में, क्योंकि बहू का तेज स्वभाव और उस से भी तेज कैंची जैसी जबान है. उस के अपने पति रामस्वरूपजी का स्वभाव भी बहुत तीखा था. कोई जगहंसाई न हो, इसलिए सावित्री और रामस्वरूप ने खुद ही एक सम्मानजनक दूरी बना कर रखी थी. पर इस बात को अभिषेक अलग तरीके से ले लेगा, यह उन्हें नहीं पता था.

उधर रात में अभिषेक प्रियंका को जब पापा और उस के बीच का संवाद बता रहा था तो प्रियंका छूटते ही बोली, ‘नौकर चाहिए उन्हें तो बस अपनी सेवाटहल के लिए, हमारा घर तो उन्होंने अपने लिए मैडिकल टूरिज्म समझ रखा है, जब बीमार होते हैं तभी इधर का रुख करते हैं. अब कराएं न अपने बेटीदामाद से सेवा, तुम क्यों अपना दिल छोटा करते हो?’

एक तरह से सब को नाराज कर के ही अभिषेक और प्रियंका अमेरिका  आए थे. साल भी नहीं बीता था कि पापा फिर से बीमार हो गए थे, अभिषेक ने पैसे भेज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी. आखिर, अब उसे सार्थक का भविष्य देखना है.

उस की बड़ी दी ऋचा और उन के पति जयंत, मम्मीपापा को अपने साथ ले आए थे. पर होनी को कौन टाल सकता है, 15 दिनों में ही पापा सब को छोड़ कर चले गए.

अभिषेक ने बहुत कोशिश की पर इतनी जल्दी कंपनी ने टिकट देने से मना कर दिया था और उस समय खुद टिकट खरीदना उस के बूते के बाहर था. पहली बार उसे लगा कि उस ने अपनेआप को कारावास दे दिया है, घर पर सब को उस की जरूरत है और वह कुछ नहीं कर पा रहा है.

प्रियंका ने अभिषेक को सांत्वना देते हुए कहा, ‘आजकल बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं है. वे तो ऋचा दी के पास थे. हम लोग अगले साल चलेंगे जब कंपनी हमें टिकट देगी.’

अगले साल जब अभिषेक गया तो मां का वह रूप न देख पाया, ऐसा लग रहा था मां ने एक वर्ष में ही 10 वर्षों का सफर तय कर लिया हो. सब नातेरिश्तेदार की बातों से अभिषेक को लगा जैसे वह ही अनजाने में अपने पिता की मृत्यु का कारण हो. उस के मन के अंदर एक डर सा बैठ गया कि उस ने अपने पिता का दिल दुखाया है. अभिषेक मां को सीने से लगाता हुआ बोला, ‘मां, मैं आप को अकेले नहीं रहने दूंगा, आप मेरे साथ चलोगी.’

जयंत जीजाजी बोले, ‘अभिषेक, यह ही ठीक रहेगा, सार्थक के साथ वे अपना दुख भूल जाएंगी.’अभिषेक के जाने का समय आ गया, पर मां का पासपोर्ट और वीजा बन नहीं पाया.

मां के कांपते हाथों को अपनी बहनों के हाथ में दे कर वह फिर से सोने के देश में चला गया. फिर 5 वर्षों तक किसी न किसी कारण से अभिषेक का घर आना टलता ही रहा और अभिषेक की ग्लानि बढ़ती गई.

5 वर्षों बाद जब वह आया तो मां का हाल देख कर रो पड़ा. इस बार मां की इच्छा थी कि रक्षाबंधन का त्योहार एकसाथ मनाया जाए उन के पैतृक गांव में. अभिषेक और प्रियंका रक्षाबंधन के दिन ही पहुंचे. प्रियंका को अपने भाई को भी राखी बांधनी थी.

दोनों बहनों ने पूरा खाना अभिषेक की पसंद का बनाया था और आज मां भी बरसों बाद रसोई में जुटी हुई थी. मेवों की खीर, गुलाबजामुन, दहीबड़े, पुलाव, पनीर मसाला, छोटेभठूरे, अमरूद की चटनी, सलाद और गुड़ के गुलगुले. अभिषेक, ऋचा और मोना मानो फिर से मेरठ के घर में आ कर बच्चे बन गए थे. बरसों बाद लगा अभिषेक को कि वह जिंदा है.

2 दिन 2 पल की तरह बीत गए. बरसों से सोए हुए तार फिर से झंकृत हो गए. सबकुछ बहुत ही सुखद था. ढेरों फोटो खींचे गए, वीडियो बनाई गई. सब को बस यह ही मलाल था कि सार्थक नहीं आया था.

मोना ने अपने भैया से आखिर पूछ ही लिया, ‘भैया, सार्थक क्यों नहीं आया, क्या उस का मन नहीं करता हम सब से मिलने का?’

इस से पहले अभिषेक कुछ बोलता, प्रियंका बोली, ‘वहां के बच्चे मांबाप के पिछलग्गू नहीं होते, उन को अपना स्पेस चाहिए होता है. सार्थक भारतभ्रमण पर निकला है, वह अपने देश को समझना चाहता है.’

ऋचा दी बोली, ‘सही बोल रही हो, हर देश की अपनी संस्कृति होती है. पर अगर सार्थक देश को समझने से पहले अपने परिवार को समझता तो उसे भी बहुत मजा आता.’

अभिषेक सोच रहा था, सार्थक को अपना स्पेस चाहिए था, वह स्पेस जिस में उस के अपने मातापिता के लिए भी जगह नहीं थी.

शाम को वकील साहब आ गए थे. मां ने अपने बच्चों और नातीनातिनों से कहा, ‘मैं नहीं चाहती कि मेरे जाने के बाद तुम लोगों के बीच में मनमुटाव हो, इसलिए मैं ने अपनी वसीयत बनवा ली है.’

प्रियंका मौका देखते ही अभिषेक से बोली, ‘सबकुछ बहनों के नाम ही कर रखा होगा, मैं जानती हूं इन्हें अच्छे से.’

वसीयत पढ़ी गई. पापा के मकान के 4 हिस्से कर दिए गए थे, जो तीनों बच्चों और मां के नाम पर हैं, चौथा हिस्सा उस बच्चे को मिलेगा जिस के साथ मां अपना अंतिम समय बिताएंगी.

 

डिप्रैशन से लड़ेंगे तो ही जीतेंगे

डिप्रैशन बहुत आम बीमारी हो चली है लेकिन इस का बढ़ना कितना नुकसानदेह होता है, यह हर कोई नहीं समझ पाता. अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत द्वारा की गई आत्महत्या जिस डिप्रैशन की देन बनी उस से निबटना कोई मुश्किल काम नहीं.

सीधेसीधे कहा जाए तो अवसाद यानी डिप्रैशन  नकारात्मक विचारों, हताशा और निराशा का एक ऐसा जाल है जिसे सभी, खासतौर से युवा, मकड़ी की तरह अपने इर्दगिर्द बुनते हैं और जब खुद के ही बुने जाल से बाहर निकलने में खुद को असमर्थ पाते हैं तो बिना कुछ सोचेसमझे आत्महत्या कर लेते हैं. पीछे रह जाते हैं रोतेबिलखते कुछ अपने, सगे वाले, दोस्त और रिश्तेदार जिन के मुंह से तो यह निकलता है कि अरे, यह तो ऐसा नहीं था. लेकिन लिहाज के चलते मन की बात मन ही में दब कर रह जाती है कि इस से ऐसी कायरता की उम्मीद नहीं थी.

यही भूल हिंदी फिल्मों के स्मार्ट और प्रतिभाशाली 34 वर्षीय अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने की तो हर कोई हतप्रभ रह गया, क्योंकि यह आम लोगों की उम्मीद से परे बात थी. आमतौर पर धारणा यह है कि शान और सुकून से जिंदा रहने के लिए जो दौलत, इज्जत और शोहरत चाहिए होती है वह सुशांत के पास थी. फिर, ऐसा क्या हो गया कि उसे खुदकुशी करनी पड़ी. कुछ घंटे बाद पता चला कि वह डिप्रैशन में था और कुछ दिनों से एंटीडिप्रैशन दवाएं भी नहीं ले रहा था.

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डिप्रैशन था, तो उस की कोई वजह भी होनी चाहिए. यह वजह फिल्म इंडस्ट्री के कुछ अतिउत्साही कलाकारों ने घर बैठेबैठे खोज भी ली कि, दरअसल, सुशांत इंडस्ट्री की खेमेबाजी का शिकार था, इस के कुछ उदाहरण भी गिनाने वालों ने गिना डाले कि कुछ निर्मातानिर्देशक और कलाकारों ने उस का बहिष्कार कर रखा था, उस के साथ भेदभाव होता था वगैरहवगैरह.

मुमकिन है ऐसा हो लेकिन इसे आत्महत्या कर लेने की मुकम्मल वजह करार नहीं दिया जा सकता. ‘छिछोरे’ और ‘एमएस धोनी : द अंटोल्ड स्टोरी’ सुशांत द्वारा अभिनीत 2 ऐसी फिल्में हैं जिन में हालात से लड़ कर जीतने का सबक खुद उस ने अभिनय के जरिए दर्शकों को सिखाया था. अगर ऐसा कुछ था भी तो सुशांत उस से जूझ क्यों नहीं पाया. जाहिर है उस ने हालात के सामने हथियार डाल दिए थे. यही मनोस्थिति डिप्रैशन  कहलाती है, जिस का शिकार कोई भी हो सकता है.

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लड़ते रहे : सुशांत ने हालात से लड़ना छोड़ दिया था, इसलिए वह हार गया. युवाओं के हमारे देश में इन दिनों करोड़ों युवा, एक नहीं बल्कि कई तरह की, समस्याओं से जूझ रहे हैं, लेकिन जिंदा वही हैं जो अपनी संघर्ष क्षमता बनाए हुए हैं. बेरोजगारी इन दिनों देश की बड़ी समस्या है, जिस की गिरफ्त में लौकडाउन के बाद कोई 40 करोड़ युवा आ चुके हैं. इन में से, हालांकि, कई आत्महत्या का शौर्टकट भी चुन रहे हैं, लेकिन इन की संख्या बेहद कम है. इस से सिद्ध होता है कि बाकियों ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है और यकीन मानें, यही जज्बा एक दिन इन्हें मनचाहे मुकाम और मंजिल पर ले जाएगा.

ये ही वे युवा हैं जिन्हें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास है, मांबाप और भाईबहनों की फिक्र है. इन की सुबह उदास और निराश नहीं होती, बल्कि हर रोज एक नए संकल्प के साथ होती है कि आज, कल से और ज्यादा कोशिश व मेहनत करेंगे. अपने हिस्से की रोटी और रोजगार जमीन खोद कर निकाल कर ही दम लेंगे. यह जज्बा बहुत अहम और जरूरी है और दरअसल, यही जिंदगी भी है कि लगातार गति में रहा जाए. निष्क्रियता एक ढलान है जो खत्म ही मौत के मुहाने पर होती है.

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1.थिंक पौजिटिव : सुशांत, तय है, लौकडाउन के अकेलेपन के चलते पौजिटिव नहीं सोच पा रहा था. पौजिटिव थिंकिंग हमें व्यर्थ के तनावों और डिप्रैशन  नाम की बला से बचाए रखती है. जब हम इस से दूर होने लगते हैं तो जिंदगी बेकार और सूनीसूनी लगने लगती है. जैसे ही आप को लगे कि आप भी इस स्थिति का शिकार हो रहे हैं तो फौरन संभल जाएं और याद रखें इस हालत से कोई अगर आप को बाहर निकाल सकता है तो वह खुद आप ही हैं.

2.इस से पहले इस के कुछ लक्षण समझ लें –  काम में मन न लगना, यह सोचना कि इस काम को करने से हासिल क्या होगा, नींद और भूख का अनियमित हो जाना, दिल की बात दूसरों तो क्या अपनों से भी न कह पाना, चुपचाप अकेले बैठे या लेटे रहना अच्छा लगने लगना और सब से अहम बात यह कि अपने ही शौक में दिलचस्पी न रह जाना. इस घुटन से बचना बहुत जरूरी है.

3.पौजिटिव थिंकिंग के लिए अपनी अब तक की उपलब्धियों पर नजर डालें. उन पर गर्व करें. अपने परिजनों के बारे में सोचें जिन के लिए आप का होना ही काफी है. नएपुराने लोगों से मिलेंजुलें. उन से फोन पर लंबी बात करें. अच्छी किताबें और पत्रिकाएं पढ़ें. मनपसंद गाने सुनें. पार्क जा कर खिलते फूलों और खेलते बच्चों को देखें. कोई भार अगर दिलोदिमाग पर है या किसी समस्या से परेशान हैं तो इस की चर्चा भरोसेमंद दोस्तों या मातापिता से करें. आप उस वक्त हैरान रह जाएंगे जब इन्हीं में से कोई आप को बता और समझा देगा कि जिसे आप पहाड़ सा समझ रहे थे वह समस्या राई से भी छोटी है.

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सुशांत जैसे काबिल और कामयाब अभिनेता ने यहीं मात खाई. वह अगर पटना से मुंबई तक का अब तक का अपना सफर याद करता तो पाता कि उस ने एक गैरमामूली कारनामा कर दिखाया है. उस के संघर्ष के दिन आसान नहीं थे और अभी तो और बहुतकुछ उसे करना है. अपने बुजुर्ग पिता के बारे में वह सोचता तो उसे समझ आता कि उन के चेहरे की झुर्रियों में भी उस के नाम और मुकाम को ले कर एक चमक और ठसक है जिस के आगे वे लोग उसे बहुत बौने लगते जो उसे हतोत्साहित कर रहे थे.

5.याद रखें, परेशान हर कोई है. हम में से सभी रोज तरहतरह की परेशानियों से लड़ रहे होते हैं. इस में कोई शक नहीं कि कभीकभी ये परेशानियां सांसों पर भारी पड़ने लगती हैं. लेकिन इन से घबरा कर आत्महत्या कर लेना हल नहीं, बल्कि यह तो अपने और अपनों के साथ ज्यादती है. इस से बचें. नई हिम्मत, हौसले और जज्बे के साथ उठें, इन से लड़ें. फिर देखें, जीत आप के पांव चूम रही होगी.

 

सोने का कारावास- भाग 1: अभिषेक अपनी कौन सी गलती पर पछता रहा था?

विदेश जाने के पीछे अभिषेक ने सिर्फ अपने बारे में सोचा था. बूढ़े मातापिता को उस की कितनी जरूरत है, यह बात उसे बेमानी लगी थी. लेकिन आज ऐसा क्या हो गया था कि वह अपनों के लिए तड़प रहा था?

अभिषेक अपनी कैंसर की रिपोर्ट को हाथ में ले कर बैठेबैठे यह ही सोच रहा था कि क्या करे, क्या न करे. सबकुछ तो था उस के पास. वह इस सोने के देश में आया ही था सबकुछ हासिल करने, मगर उस का गणित कब और कैसे गलत हो गया, वह समझ नहीं पाया. हर तरह से अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने के बावजूद क्यों और कब उसे यह भयंकर बीमारी हो गई थी. सब से पहले उस ने अपनी बड़ी बहन को फोन किया तो उन्होंने फौरन अपने गुरुजी को सूचित किया और समस्या का कारण गुरुजी ने पितृदोष बताया था.

छोटी बहन भी फोन पर बोली, ‘‘भैया, आप लोग तो पूरे अमेरिकी हो गए हो, कोई पूजापाठ, कनागत कुछ भी तो नहीं मानते, इसलिए ही आज दंडस्वरूप आप को यह रोग लग गया है.’’ यह सुन कर अभिषेक का मन वापस अपनी जड़ों की तरफ लौटने को बेचैन हो गया. सोने की नगरी अब उसे सोने का कारावास लग रही थी. यह कारावास जो उस ने स्वयं चुना था अपनी इच्छा से.

अभिषेक और प्रियंका 20 वर्षों पहले इस सोने के देश में आए थे. अभिषेक के पास वैसे तो भारत में भी कोई कमी नहीं थी पर फिर भी निरंतर आगे बढ़ने की प्यास ने उसे इस देश में आने को विवश कर दिया था. प्रियंका और अभिषेक दोनों बहुत सारी बातों में अलग होते हुए भी इस बात पर सहमत थे कि भारत में उन का और उन के बेटे का भविष्य नहीं है.

प्रियंका अकसर आंखें तरेर कर बोलती, ‘है क्या इंडिया में, कूड़ाकरकट और गंदगी के अलावा.’

अभिषेक भी हां में हां मिलाते हुए कहता, ‘शिक्षा प्रणाली देखी है, कुछ भी तो ऐसा नहीं है जो देश के विद्यार्थियों को आगे के लिए तैयार करे. बस, रटो और आगे बढ़ो. अमेरिका के बच्चों को कभी देखा है, वे पहले सीखते हैं, फिर समझते हैं. हम अपने सार्थक को ऐसा ही बनाना चाहते हैं.’

प्रियंका आगे बोलती, ‘अभि, तुम अपने विदेश जाने के कितने ही औफर्स अपने मम्मीपापा के कारण छोड़ देते हो, एक बेटे का फर्ज निभाने के लिए. पर उन्होंने क्या किया, कुछ नहीं.’

‘मेरा सार्थक तो अकेला ही पला. उस के दादादादी तो अपना मेरठ का घर छोड़ कर बेंगलुरु नहीं आए.’

यह वार्त्तालाप लगभग 20 वर्ष पहले का है जब अभिषेक को अपनी कंपनी की तरफ से अमेरिका जाने का प्रस्ताव मिला था. अभिषेक के मन में एक पल के लिए अपने मम्मीपापा का खयाल आया था पर प्रियंका ने इतनी सारी दलीलें दीं कि अभिषेक को यह लगा कि उसे ऐसा मौका छोड़ना नहीं चाहिए.

अभिषेक अपनी दोनों बहनों का इकलौता भाई था. उस से बड़ी एक बहन थी और एक बहन उस से छोटी थी. उस के पति अच्छेखासे सरकारी पद से सेवानिवृत्त हुए थे. बचपन से अभिषेक हर रेस में अव्वल ही आता था. अच्छा घर, अच्छी नौकरी, खूबसूरत और उस से भी ज्यादा स्मार्ट बीवी. रहीसही कसर शादी के 2 वर्षों बाद सार्थक के जन्म से पूरी हो गई थी. सबकुछ परफैक्ट पर परफैक्ट नहीं था तो यह देश और इस के रहने वाले नागरिक. वह तो बस अभिषेक का जन्म भारत में हुआ था, वरना सोच से तो वह पूरा विदेशी था.

विवाह के कुछ समय बाद भी उसे अमेरिका में नौकरी का प्रस्ताव मिला था, पर अभिषेक के पापा को अचानक हार्टअटैक आ गया था, सो, उसे मजबूरीवश प्रस्ताव को ठुकराना पड़ा. कुछ ही महीनों में प्रियंका ने खुशखबरी सुना दी और फिर अभिषेक और प्रियंका अपनी नई भूमिका में उलझ गए. वे लोग बेंगलुरु में ही बस गए. पर मन में कहीं न कहीं सोने की नगरी की टीस बनी रही.

जब सार्थक 7 वर्ष का था, तब अभिषेक को कंपनी की तरफ से परिवार सहित फिर से अमेरिका जाने का मौका मिला, जो उस ने फौरन लपक लिया.

खुशी से सराबोर हो कर जब उस ने अपने पापा को फोन किया तो पापा थकी सी आवाज में बोले, ‘बेटा, मेरा कोई भरोसा नहीं है, आज हूं कल नहीं. तुम इतनी दूर चले जाओगे तो जरूरत पड़ने पर हम किस का मुंह देखेंगे.’ अभिषेक ने चिढ़ी सी आवाज में कहा, ‘पापा, तो अपनी प्रोग्रैस रोक लूं आप के कारण. वैसे भी, आप और मम्मी को मेरी याद कब आती है? प्रियंका को आप दोनों के कारण नौकरी छोड़नी पड़ी क्योंकि आप दोनों मेरठ छोड़ कर आना ही नहीं चाहते थे. फिर सार्थक को हम किस के भरोसे छोड़ते और

आज आप को अपनी पड़ी है.’ अभिषेक के पापा ने बिना कुछ बोले फोन रख दिया.

अभिषेक की मम्मी, सावित्री, बड़ी आशा से अपने पति रामस्वरूप की तरफ देख रही थी कि वे उस को फोन देंगे पर जब उन्होंने फोन रख दिया तो उतावली सी बोली, ‘मेरी बात क्यों नहीं कराई पिंटू से?’

रामस्वरूप बोले, ‘पिंटू अमेरिका जा रहा है परिवार के साथ.’

सावित्री बोली, ‘हमेशा के लिए?’

रामस्वरूप चिढ़ कर बोले, ‘मुझे क्या पता. वह तो मुझे ही उलटासीधा सुना रहा था कि हमारे कारण उस की बीवी नौकरी नहीं कर पाई.’

खेतीबाड़ी: और अब वर्टिकल फार्मिंग

खेतीबाड़ी की दुनिया में वर्टिकल फार्मिंग एक मल्टीलैवल प्रणाली है. आज खेती की जमीन सिकुड़ रही है. आबादी लगातार बढ़ रही है. शहरों में बढ़ती आबादी को खपाने के लिए नईनई बस्तियां बन रही हैं. शौपिंग सैंटर बन रहे हैं. ऐसे में छत तो मिल जाएगी परंतु बढ़ती आबादी का पेट कैसे भरेगा?
कृषि व बागबानी विशेषज्ञों ने इस का हल निकाल लिया है. अब मिट्टी के बिना कमरों और हवा में होगी भविष्य की खेती. कम होती कृषियोग्य भूमि को देखते हुए बहुत सी जगहों पर वर्टिकल खेती या खड़ी खेती  का सफल प्रयोग किया जा रहा है. इस की खास बात यह है कि इस में रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल नहीं होता है. सो, यह उत्पादन पूरी तरह और्गेनिक होता है.

खड़ी खेती के ज़रिए कम जमीन पर हम अधिक उत्पादन का सफल प्रयोग कर सकते हैं. इस से कम भूमि वाले खेतिहर किसान को भी खासा लाभ मिल सकता है.  इस से किसानों की आमदनी को बढ़ाया भी जा सकता है.

कैसे की जाती है वर्टिकल फार्मिंग :

खड़ी खेती या वर्टिकल फार्मिंग में एक बहुसतही ढांचा तैयार किया जाता है. इस ढांचे के सब से निचले हिस्से में पानी से भरा टैंक रख दिया जाता है. टैंक के ऊपरी खानों में पौधों के छोटेछोटे गमले या पौट रखे जाते हैं. पाइप के द्वारा इन गमलों में उचित मात्रा में पानी पहुंचाया जाता हैं ताकि पौधों को पोषक तत्त्व मिलते रहें, जो उन को जल्दी बढ़ने में मदद करते हैं.  एलईडी बल्ब के माध्यम से कृत्रिम प्रकाश बनाया जाता है. वर्टिकल तकनीकी खेती में मिटटी की जरूरत नहीं होती.

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वर्टिकल फार्मिंग के तरीके :

वर्टिकल फार्मिंग के 3 तरीके होते हैं – हायड्रोपोनिक्स, एरोपोनिक्स और एक्वापोनिक्स. हायड्रोपोनिक्स यानी जलकृषि में पौधों की जड़ें पानी और पोषक तत्त्वों के घोल में डूबी रहती हैं. यह प्रणाली पानी की बहुत ही कम खपत में ही सब्जियों की बहुत ज्यादा पैदावार के लिए जानी जाती है.

एरोपोनिक्स तरीके में किसी भी माध्यम की जरूरत नहीं होती. इस में पौधों की जड़ों को किसी सहारे के साथ बांधा जाता है, जिस में पोषक तत्त्वों का छिड़काव किया जाता है. यह खेती कम से कम जगह में भी हो सकती है. अब तक, एरोपोनिक्स सब से टिकाऊ व कम मिटटी में पौधों को उगाने वाली तकनीक है, क्योंकि यह हायड्रोपोनिक्स सिस्टम की तुलना में 90 फीसदी कम पानी का उपयोग करती है.

वहीं, एक्वापोनिक्स एक बायोसिस्टम विधि है. इस में मछलीपालन एवं जलकृषि के मिश्रण से सब्जी, फल व औषधि का उत्पादन होता है. इस प्रणाली में एक ही तंत्र में मछलियां और पौधे साथ में बढ़ते हैं. मछलियों का मल पौधों को जैविक खाद उपलब्ध कराता है जबकि पौधे मछलियों के लिए जल को फ़िल्टर व शुद्ध करने का काम करते हैं.

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वर्टिकल फार्मिंग भारत में भी :

खड़ी खेती या वर्टिकल फार्मिंग भारत में अभी नई है.  कुछ कृषि विश्वविद्यालयों में इस पर शोध चल रहा हैं और कुछ या बहुत कम प्रोफैशनल खड़ी खेती कर रहे हैं. इस तरह की खेती को एक बिज़नैस के रूप में भी देखा जा सकता है. इस तरह की खेती करने के लिए खड़ी खेती की तकनीकी ज्ञान का होना जरूरी है.
जयपुर स्थित सुरेश ज्ञान विहार विश्वविद्यालय में वर्टिकल खेती पर रिसर्च चल रही है और शुरुआती परिणाम बहुत ही सकारात्मक आया है. इस शोध के बाद आम लोग अपनी छतों पर भी अपने उपयोग लायक सब्जियां पैदा कर सकेंगे. इस के लिए न तो मिट्टी की जरूरत होगी और न तेज धूप की.  शोध के मुताबिक, विश्वविद्यालय में अभी टमाटर, चिली, कौली फ्लावर, ब्रोकली, चीनी कैबेज, पोकचाई, बेसिल, रेड कैबेज का उत्पादन किया जा रहा है. वर्टिकल फार्मिंग में जहां पानी और मिट्टी की बचत होती है, वहीं कम समय में ज्यादा फसल मिल जाती है. टमाटर जैसी फसलें तो एक माह में तैयार हो जाती हैं.

वर्टिकल फार्मिंग के फायदे :

*  बढ़ती जनसंख्या और कम होती कृषियोग्य भूमि की दिक्कत कम महसूस होगी.
*  खड़ी खेती के ज़रिए कम एरिया में अधिक उत्पादन किया जा सकता है.
*  खड़ी खेती में बनावटी प्रकाश और बनावटी पर्यावरण का निर्माण किया जाता है, जिस के कारण मौसम का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा. फ़सल नष्ट होने का कोई खतरा नहीं होगा.
*  परंपरागत खेती में कई तरह के रासायनिक खाद और खतरनाक कीटनाशक दवाओं का उपयोग होता हैं जिस से तरहतरह की बीमारियां फैलती हैं. खड़ी खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं का उपयोग नहीं होता है.
*  खड़ी खेती से किसानों की आमदनी बढ़ेगी और उन के जीवन स्तर में सुधार आएगा.
*  खेती में पानी की आवश्यकता बहुत कम होगी.
*  खड़ी खेती में मजदूर की आवश्यकता कम होती है क्योकि ये औटोमेटेड तकनीकी पर आधारित खेती है.

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क्यों पड़ी ज़रूरत? :

इन तकनीकों को अपनाने की जरूरत इसलिए महसूस की जा रही है क्योंकि पृथ्वी के तीनचौथाई हिस्से में समुद्र यानी पानी ही पानी है और एकचौथाई हिस्से की जमीन के आधे हिस्से में ऊंचे पवर्त, रेगिस्तान, उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव हैं जो बर्फ से ढके रहते हैं. यानी, पृथ्वी के एकचौथाई हिस्से का आधा हिस्सा ही मानव के रहने लायक है. इस आधे हिस्से से अगर शहरों, कारखानों, पार्कों आदि को निकाल दें तो पृथ्वी की कुल सतह का सिर्फ 32वां हिस्सा खेती के लिए बचता है. खेती की जमीन में नई कालोनियां बनेंगी तो खेतीबारी की ज़मीन और भी सिकुड़ेगी.
विश्व की जनसंख्या अभी करीब 8 अरब है, जो लगातार बढ़ रही है. अनुमान है कि दोएक दशक में आबादी बढ़ कर 9 अरब हो जाएगी. विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले 20 वर्षों में खाद्यान्न उत्पादन में 50 फीसदी का इजाफा होने पर ही 9 अरब आबादी का पेट भर सकेगा. विश्वभर में अभी करीब 25,000 लाख टन खाद्यान्न उत्पादित हो रहा है. हमारे देश भारत में सब से ज्यादा तकरीबन 2,600 लाख टन अनाज हर साल पैदा हो रहा है, परंतु इस का एकतिहाई अनाज गोदामों में सड़गल जाता है या ट्रांसपोर्टेशन व सप्लाई करते समय बरबाद हो जाता है.

खाद्यान्न की बरबादी :

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल करीब 58,000 करोड़ रुपए मूल्य का खाद्यान्न नष्ट हो जाता है. अकेले गेहूं की बात करें, तो भारत में हर साल गरीब 210 लाख टन गेहूं नष्ट हो जाता है. यानी, आस्ट्रेलिया में हर साल जितना गेहूं उत्पादित होता है, करीब उतना ही हमारे यहां नष्ट हो जाता है.

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बहरहाल, वर्टिकल फार्मिंग नए जमाने की नई क्रांति है, जिस से अन्नदाता यानी किसानों के साथ हर इंसान को फायदा पहुंचेगा. देश की व्यवस्था को चाहिए कि वह इस तकनीक को विस्तार दे और इस से संबंधित ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं मुहैया कराए. उम्मीद की जानी चाहिए कि अन्न का उत्पादन इतना ज्यादा होगा कि मानव अन्न की कमी की वजह से भूखा नहीं रहेगा, किसी दूसरी वजह से कोई भूखा रह जाए तो बात अलग है.

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