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बुलंदशहर हत्या कांड का आरोपी भाजपा नेता के साथ

3 दिसंबर 2018, उत्तरप्रदेश राज्य के बुलंदशहर में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या हिन्दू कट्टरवादी भीड़ ने कर दी थी. जिसमें कथित तौर पर इस घटना को अंजाम देने वाले बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद् और भाजपायुमो से सम्बंधित आरोपी थे. घटना के बाद से ही इस मामले में भाजपा विपक्ष के निशाने में थी. एक बड़ा कारण यह कि गोकशी के मामले में महज शक पर मोब लिंचिंग के मामले भाजपा कार्यकाल में लगातार बढ़ने लगे, दूसरा, यह कि आरोपियों का संबंध सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़ता दिख रहा था.

भाजपा उस दौरान खुद पर लगे आरोपों को मीडिया में आ आकर नकार रही थी. आज घटना के लगभग डेढ़ साल बाद फिर से इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या चर्चा में है. वजह, सोशल मीडिया में वायरल होती एक तस्वीर. इस तस्वीर में भाजपा के बुलंदशहर के जिले अध्यक्ष अनिल सिसोदिया की एक तस्वीर सामने आई है. इस तस्वीर में उनके साथ शिखर अग्रवाल सख्स नजर आ रहा है. यह शिखर अग्रवाल वही सख्स है जिस पर इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या की साजिश रचने का मुख्य आरोप है.

यह तस्वीर 14 जुलाई की है. अनिल सिसोदिया ‘प्रधानमंत्री जन कल्याण योगी जागरूकता अभियान’ संगठन द्वारा आयोजित किये गए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे. यह अभियान भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री के कार्यों का प्रचार प्रसार करने के लिए बनाया गया था. संभवत इसमें भाजपा के बड़े नेताओं की स्वीकार्यता रही होगी. अनिल का कहना है कि “इस पर भाजपा का कोई लेना देना नहीं है उन्हें बस मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया था.”

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फोटो में दिख रहा है कि भाजपा जिलाअध्यक्ष आरोपी को सर्टिफिकेट दे रहे हैं. और जो सर्टिफिकेट दिया गया उसमें उन्हें संगठन का महासचिव बताया गया है. सर्टिफिकेट देने का मतलब किसी मानमनोहर से है. सवाल यह कि किस बात के मानमनोहर आरोपी को दिया जा रहा है? गौरतलब है कि आरोपी शिखर अग्रवाल बुलंदशहर में भापयुमो का प्रमुख सदस्य भी रह चुका है. फिलहाल सुबोध कुमार वाले मामले में वह बैल पर बाहर है.

क्या था इंस्पेक्टर सुबोध कुमार का मामला?

बुलंदशहर जिले के स्याना कोतवाली में 3 दिसंबर 2018 को कथित गौकशी को लेकर हिंसा हुई थी. सुबोध कुमार मोके पर भीड़ को नियंत्रित करने पहुंचे थे. इस दौरान स्याना थाने के प्रभारी इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की उग्र भीड़ ने उन्ही की पिस्तौल से हत्या कर दी गई थी. उन्हें गोली मारने से पहले उनके सर पर कुल्हाड़ी से बर्बर तरीके से हमला भी किया गया था. और उनकी उँगलियाँ भी काट दी गई थी. यह घटना पूरी योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दी गई लगती थी. पकडे गए आरोपी हिन्दू कट्टरवादी संगठन से ताल्लुक रखते थे. इसमें मोबलिंचिंग में शामिल लगभग 33 लोगों को हिरासत में लिया गया था. जिसमें से पिछले साल 7 आरोपियों को जमानत पर छोड़ा गया था.

इस पुरे मामले में ध्यान देने वाली बात यह थी कि यह वही इंस्पेक्टर सुबोध कुमार थे जो अख़लाक़ के मामले में विशेष आयक्त थे. अख़लाक़ जिसकी कथित गोमांस रखने के आरोप में उत्तरप्रदेश में दादरी मोब लिंचिंग कर दी गई थी. और इसकी हत्या के आरोपी लोकसभा के चुनाव में योगी आदित्यनाथ की रैली में स्पॉट किये गए.

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विपक्ष ने सुबोध कुमार की हत्या का लिंक उस दौरान हुए अख़लाक़ की हत्या से जोड़ा था जिसमें विपक्ष का आरोप था कि सुबोध कुमार को लेकर कट्टरपंती संगठनो के भीतर पहले से रोष था. बुलंदशहर की हिंसा से दो दिन पहले वाला एक पत्र हिंसा के दिन सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा था. यह पत्र भाजपा के नगर महामंत्री, नगर उपाध्यक्ष कपिल त्यागी, भाजपा विधानसभा संयोजक स्याना विजय कुमार लोधी, ब्लाक प्रमुख पुष्पेन्द्र के हस्ताक्षर थे. जिसमें इंस्पेक्टर सुबोध कुमार को “जनता के प्रति अभद्र” बताया गया था. साथ में पशु चोरी की बढती घटनाओं, हिन्दुओ के धार्मिक आयोजनों में अड़चन का हवाला दिया गया था.

सुबोध की हत्या के आरोपियों को हीरो बनाया गया

यह ध्यान दिए जाने वाली बात कि हिंसा के दौरान सुमित नाम का व्यक्ति भी मारा गया था. जिस पर हिंसा भड़काने और सुबोध कुमार की हत्या में शामिल होने का आरोप भी लगा था. मसलन सुमित के परिवार वालों ने योगी सरकार से कुछ मांगे रखी. जिसमें मुख्य सरकारी नौकरी, 50 लाख का मुआवजा और शहीद का दर्जा था. यहां तक कि परिवारजन ने आरोपी की मूर्ति गांव में स्थापित की. यह बात समझने की है कि इन मांगो के न पूरा होने पर उन्होंने परिवार समेत धर्म परिवर्तन कराने की धमकी दी. यानी परिवार वाले खुद इस मसले को धर्म से जुड़ा मान रहे थे. और सुमित के किये काम को धार्मिक बलिदान समझे हुए थे. जिसकी धमकी वे मुख्यमंत्री योगी को दे रहे थे.

24 अगस्त को हिंसा के मुख्य आरोपी में से 6 को अलाहबाद हाई कोर्ट ने जमानत पर छोड़ा था. जिसमें से एक शिखर अग्रवाल भी था. उस दौरान छोड़े गए आरोपियों का फूलमालाओं से स्वागत किया गया था. इसकी वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुई जिसमें साफ़ देखा गया कि इंस्पेक्टर की हत्या के आरोपियों का स्वागत करते हुए “जय श्री राम” और “वन्दे मातरम” के नारे लगाए जा रहे थे.

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इसे लेकर भाजपा पर सवाल भी उठे थे. उस दौरान प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि “राज्य सरकार और भाजपा का इस मसले से कोई लेना देना नहीं है.” साथ ही “अगर जेल से छूटे हुए व्यक्ति के समर्थक या रिश्तेदार का कोई स्वागत करता है तो उससे भाजपा और सरकार का कोई लेना देना नहीं.”

उस दौरान इंस्पेक्टर सुबोध कुमार के परिवार वालों ने आरोपियों को वापस जेल भेजने की अपील सरकार से की थी. उनके बेटे श्रे प्रताप सिंह ने कहा “इस तरह के अपराधिक तत्व जेल के अन्दर होने चाहिए बाहर नहीं. मैं मुख्यमंत्री योगी से अपील करता हूँ कि समाज की भलाई के लिए इन अपराधियों को जेल के भीतर होना चाहिए.” इतने संदिग्ध अपराध में आरोपियों को खुल्ला छोड़ा गया जिस पर सरकार ने बयान दिया तो वों भी अपने बचाव के लिए. जबकि उसी राज्य में कथित गौ तस्करी के मामले में सरकार ने लोगों पर एनएसए जैसे कड़े कानून लगाए गए हैं.

यह रिश्ता क्या कहलाता है?

भाजपा के साथ इन आरोपियों का लिंक बार बार दिखता रहा है. शिकार अग्रवाल जो कि पहले ही भाजपा के युवा मोर्चा के सदस्य रहे. जब उनका नाम हिंसा में सामने आया तो उसे लेकर बताया गया कि अब इसका भाजपा से कोई लेना देना नहीं. 14 जुलाई को स्थानीय भाजपा जिलाध्यक्ष के साथ मंच साझा करते हुए और मानसम्मान लेते हुए यह फोटों यूँही कमरे के लेन्स में फिट तो नहीं हो गई होगी.

सवाल यह कि जिन आरोपों में भाजपा शामिल पाई गई आखिर इसके तार जुड़ते ही क्यों दिखाई देते हैं? क्या वहां के जिलाध्यक्ष को नहीं पता था कि शेखर अग्रवाल का माले में मुकदमा चल रहा है? यह यूँ ही तो नहीं हो जाता.

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अभी कुछ दिन हुए हैं विकास दुबे वाले प्रकरण के, विकास दुबे जिसने 8 पुलिसवालो को बर्बर तरीके से मारा था. उस समय लगभग यूपी, बिहार समेत 6 राज्यों को अपराधी को पकड़ने के लिए हाई अलर्ट पर कर दिया गया. विकास के सर पर प्रशाशन द्वारा 5 लाख रूपए का इनाम घोषित किया गया. जब विकास पकड़ा गया तब “कार पलटा” कर विकास दुबे का एनकाउंटर किया गया. क्या इतनी तत्परता सुबोध कुमार के प्रकरण में भी दिखाई गई? यहां भी तो अपराधियों ने सीधे सरकार के महकमें को धमकाया था. यहाँ भी तो अपराधियों ने बर्बर तरीके से इंस्पेक्टर की हत्या की थी. क्या पुलिस की मौतों में भी अंतर करती है सरकार?

यह ख़बरों में पहले ही दर्ज है कि बुलंदशहर हिंसा में पकड़े गए लगभग मुख्य आरोपी हिन्दू कट्टरपंथी संगठन से ताल्लुक रखते थे. किसी का संबंध बजरंग दल तो किसी का विश्व हिन्दू परिषद् से संबंध था. यह संगठन आरएसएस से उसी प्रकार तालुक रखते है जिस प्रकार भाजपा पार्टी आरएसएस से तालुक रखती है. यह देखा जाना जरुरी है कि यह आरोपी भाजपा पार्टी के इर्दगिर्द महसूस किये जाते रहे हैं. इसका ज्वलंत उदाहरण शेखर अग्रवाल के मामले से समझा जा सकता है.

 

मानसून स्पेशल: बच्चों के लंच बौक्स के लिए बनाएं ये 7 हेल्दी डिशेज

हर मां की तरह आप की भी सब से बड़ी जिम्मेदारी होगी बच्चे के टिफिन में सेहतमंद व स्वादिष्ठ खाना देना और स्कूल से लौटने पर उस के स्कूल बैग से टिफिन निकाल कर यह देखना कि उस ने लंच खाया या नहीं और फिर टिफिन में आधाअधूरा बचा खाना, अपनी मेहनत और बच्चे की सेहत को यों बरबाद होते देख आप का खीजना लाजिम है.

आप चाहती हैं कि आप के लाडले के टिफिन में सेहत व स्वाद दोनों हों, तो आप को बच्चे के टेस्ट बड्स को तवज्जो देनी होगी. याद रखिए रोजाना एक जैसे खाने से हर कोई उकता जाता है. ऐसे में टिफिन में रोज परांठासब्जी देख कर बच्चा खाने से जी चुराने लगता है. नतीजतन आप की टिफिन तैयार करने से ले कर पैक करने तक की मेहनत के साथसाथ बच्चे की सेहत में भी घुन लग जाएगा.

माना कि रोजरोज टिफिन में बच्चे की फरमाइशी डिशेज देना मुश्किल होता है. मगर यहां बताए गए टिफिन आइडियाज से आप की मुश्किल कुछ कम हो सकती है :

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1.प्रोटीन चीला: बेसन का चीला बनाने की जगह आप मल्टीग्रेन यानी मिलेजुले अनाज का आटा या साबूत मूंग या मिलीजुली दालों से चीला बनाएं. प्रोटीन चीला बनाने की विधि सामान्य बेसन चीला जैसी है. बस ट्विस्ट यह लाना है कि दालों को रात भर भिगो कर दरदरा पीस लें. चीले का घोल बनाने के लिए पानी की जगह वैजिटेबल स्टौक या पानी मिला पतला दही मिलाएं. अब इस में बारीक कटी सब्जियां, नमक व मसाले मिला कर स्वादिष्ठ चीला बनाएं. प्रोटीन चीला बच्चे के मनपसंद सौस के साथ टिफिन में भेजिए.

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2.स्वीट व्हाइट अंजीर: आप के लाडले को मीठा पसंद है, तो उसे आर्टिफिशियल स्वीटनर से बनी चीजें न खिलाएं. भले ही ये चीजें मिठास का स्वाद देंगी, पर सेहत पर बुरा प्रभाव डालेंगी. स्वीट व्हाइट अंजीर बनाने के लिए कड़ाही में अंजीर, दूध व नारियल पाउडर डाल कर दूध के सूख जाने तक पकाएं. अब अंजीर को पीस कर पेस्ट बना लें. पैन में देशी घी डाल कर इस पेस्ट को भून लें. अब इस में तिल, शहद, इलायची पाउडर व बादाम डाल कर कुछ देर और भूनें. ठंडा होने पर इस की बौल्स बनाएं. प्रत्येक बौल्स पर काजू लगाएं. है न स्वीट व्हाइट अंजीर टिफिन में स्वीट डिश देने को स्वीट व हैल्दी विकल्प.

3.चीजी दलिया: शायद ही किसी बच्चे को दलिया पसंद हो. लेकिन आप साधारण दलिया में पनीर डाल कर इसे बच्चे की फैवरिट डिश में शुमार कर सकती हैं. सिर्फ पनीर ही नहीं साधारण दलिया को न्यूट्रिला, ब्रोकली, अंकुरित दालें, मूंग या मसूर दाल और चावल डाल कर भी यम्मी बना सकती हैं.

4.कलरफुल आटा: आप रोटी व परांठे के लिए आटा सिर्फ साधारण पानी से न गूंधें. इस के लिए दाल का पानी, दूध, वैजिटेबल स्टौक, सब्जियों के जूस या सब्जियों के पेस्ट का प्रयोग करें.

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5.पनीरी उत्तपम: उत्तपम चावल के घोल से बनाया जाता है. इसे और टेस्टी व पोषक बनाने के लिए इस को प्रोटीन युक्त बनाएं. उत्तपम का घोल बनाने के लिए सूजी में दही मिला कर घोलें. इस में बारीक कटी मनचाही सब्जियां, कद्दूकस किया पनीर और स्वादानुसार सीजनिंग डालें.

जहां तक हो सके फ्रूट साल्ट डालने की जगह खट्टी दही का प्रयोग करें. नौनस्टिक पैन में गोलाई में मिश्रण फैलाएं. उत्तपम को दोनों तरफ से शैलो फ्राई करें. तैयार उत्तपम पर पनीर कद्दूकस करें और चाट मसाला बुरकें. टिफिन में उत्तपम के साथ हरी चटनी या टमाटर की चटनी देना न भूलें.

6.कौर्न कबाब: भुट्टे के गुणों से आप वाकिफ हैं. आप चाहती हैं कि आप के बच्चे को भुट्टे के पोषक तत्त्व मिलें, तो आप को उसे भुट्टा अलगअलग डिशेज में खिलाना होगा. भुट्टे का कबाब इस के  लिए बेहतर विकल्प है. इस के लिए उबले आलुओं में उबले व दरदरे पिसे कौर्न के दाने, कसा पनीर, बारीक कटी सब्जियां, मनचाही सीजनिंग डाल कर मिलाएं. अब इस मिश्रण के छोटेछोटे कबाब बना कर डीप फ्राई करें. तैयार कौर्न कबाब इमली की चटनी के साथ टिफिन में डालें. बच्चे को तेल कम देना है, तो मिश्रण के छोटेछोटे चपटे बौल्स बना कर नौनस्टिक पैन में शैलो फ्राई करें.

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7.टैंगी उपमा: बच्चों को टमाटरों का खट्टामीठा टेस्ट बहुत लुभाता है. आप टमाटरों की पौष्टिकता बच्चों के टिफिन में परोस कर भेजिए. इस के लिए साधारण सूजी उपमा में थोड़ा सा बदलाव लाना है. सूजी उपमा बनाते समय इस में पानी के स्थान पर टमाटरों का रस या दाल का पानी या वैजिटेबल स्टौक का प्रयोग करें. स्वाद बढ़ाने के लिए नमकमसालों से सीजनिंग करें. उपमा क्रंची व टेस्टी बनाने के लिए उस में नट्स डालें. टैंगी उपमा को टोमैटो कैचअप के साथ टिफिन में दें.

ऐ दिल है मुश्किल: सोहम के बारे में सोचकर वह क्यों बेचैन हो उठती थी?

देखने सुनने व पढ़ने वालों को तो यही लगेगा कि मैं कोई चरित्रहीन स्त्री हूं पर मुझे समझ नहीं आता कि क्या मैं इन दिनों सचमुच एक चरित्रहीन स्त्री की तरह व्यवहार कर रही हूं. अपने मनोभाव प्रकट करना, किसी को अपने दिल की बात समझाना मेरे लिए बहुत मुश्किल है. वैसे भी, दिल की मुश्किल बातें समझनासमझाना सब के लिए आसान है क्या? मैं रश्मि, एक विवाहित स्त्री, एक युवा बेटी पलाक्षा की मां और एक बेहद अच्छे इंसान अजय की पत्नी, अगर किसी विवाहित परपुरुष में दिलचस्पी ले कर अपने रातदिन का चैन खत्म कर लूं तो क्या कहा जाएगा इसे?

मुझे अजय से कोई शिकायत नहीं, पलाक्षा से भी बहुत प्यार है. फिर, सोहम के लिए मैं इतनी बेचैन क्यों हूं, समझ नहीं आता. उस की एक झलक पाने के लिए अपने फ्लैट के कोनेकोने में भटकती रहती हूं. वह जहांजहां से दिख सकता है वहांवहां मंडराती रहती हूं रातदिन. अगर कोई ध्यान से मेरी गतिविधियों को देखे तो उसे मेरी हालत किसी 18 साल की प्यार में पड़ी चंचल किशोरी की तरह लगेगी. और मैं शक के घेरे में तुरंत आ जाऊंगी. पर उम्र के इस पड़ाव पर जैसी मैं दिखती हूं, मेरे बारे में कोई यह सोच भी नहीं सकता कि क्या अंतर्द्वंद्व मचा रहता है मेरे दिल में.

मैं बिलकुल नहीं चाहती कि मैं किसी परपुरुष की तरफ आकर्षित होऊं. पर क्या करूं, दिल पर कभी किसी का जोर चला है, जो मेरा चलेगा. लेकिन नहीं, यह भी नहीं कह सकते. सोहम का चलता है न अपने दिल पर जोर. मुझ में रुचि रखने के बाद भी वह कितनी मर्यादा, कितनी सीमा में रहता है. उस की पत्नी है,

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2 बच्चे हैं, कितना मर्यादित, संतुलित व्यवहार है उस का. अपने प्रति मेरा आकर्षण भलीभांति जान चुका है वह. अपने औफिस के लिए निकलते समय उस के इंतजार में खिड़की में खड़े मुझे देखा है उस ने. फिर जब वह वापस आता है उस ने वहीं खड़े देखा है मुझे.

अपनी बेचैनियों से मैं कितनी थकने लगी हूं? बाहर से सबकुछ शांत लगता है, पर मेरे भीतर ही भीतर भावनाओं का तूफान उठता है. कभीकभी मेरा मन करता है अजय से कहूं, कहीं और फ्लैट ले लें या हम यहां से कहीं और चले जाएं पर यह बात मेरी जबान पर कभी आ ही नहीं पाती. उलटा, ऐसी बातों के छिड़ने पर मेरे मुंह से झट निकलता है कि मैं तो इस फ्लैट में मरते दम तक रहूंगी. कभी मन करता है कि उस के बारे में सोचने से बचने के लिए लंबी छुट्टियों पर कहीं चली जाऊं. पर कोई लंबा प्रोग्राम बनते ही मैं उसे 3 या 4 दिन का कर देती हूं. मैं कहां रह सकती हूं इतने दिन सोहम को बिना देखे. कभी सोचती हूं अपने बैडरूम की खिड़की पर हमेशा परदा खींच कर रखूं ताकि मेरा ध्यान सोहम की तरफ न जाए. पर होता कुछ और ही है. 6 बजे उठते ही आंखें पूरी तरह खुलने से पहले ही मैं अपने बैडरूम की खिड़की का परदा हटा देती हूं, जिस से सोहम अपने बैडरूम में अपनी पत्नी की, बच्चों की स्कूल जाने में, मदद करता दिख जाए.

मैं ने देखा है वह एक नजर मेरी खिड़की पर डालता है, फिर अपने कामों में लग जाता है. हां, बस एक नजर. मैं ने उसे कभी बेचैनी से मेरी ओर देखते नहीं देखा और मैं आंख खुलने से ले कर रात को बैड पर जाने तक हरपल उसी के बारे में सोचती हूं. वह अपने बच्चों को स्कूल बस में बिठाने के लिए निकलता है, फिर 15 मिनट बाद वापस आता है, फिर उस की पत्नी औफिस जाती है. शाम को पहले घर वही आता है. फिर, अपने बच्चों को ले कर पार्क जाता है. 2 साल पहले मेरी बेचैनियों का यह सिलसिला वहीं से तो शुरू हुआ था. एकदूसरे को देखना, फिर हायहैलो, फिर नाम की जानपहचान. बस, फिर इस के आगे कभी कुछ नहीं.

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हैरान हूं मैं अपने दिल की हालत पर, क्यों मैं उस के आगेपीछे किसी बहकी सी पागलप्रेमिका की तरह रातदिन घूमती हूं. क्या हो गया है मुझे? सबकुछ तो है मेरे पास. मुझे उस से कुछ भी नहीं चाहिए. फिर यह क्या है जो उस के सिवा कुछ ध्यान नहीं रहता. हर समय वह अपने वजूद के साथ मुझे अपने आसपास महसूस होता है. उस की मर्यादित चालढाल, उस की बोलती सी आंखें, मुझे देख कर उस की रहस्यमयी मुसकराहट सब हर समय मेरे दिल पर छाई रहती हैं. रात में उस के फ्लैट की लाइट बंद होने तक मेरी नजरें वहीं गड़ी रहती हैं. वह गाना है न, ‘तुझे देखदेख कर है जगना, तुझे देख कर है सोना…’ मुझे अपने ऊपर बिलकुल फिट लगता है. पर इस उम्र में, इस स्थिति में सोहम की तरफ मेरा यों खिंचा जाना.

मेरी तबीयत कभीकभी इस बेचैनी से खराब हो जाती है. अजीब सा तनाव रहने लगता है. दिनभर एक अपराधबोध सालता कि एक परपुरुष की तरफ खिंच कर मैं अपना कितना समय खराब करती हूं. मेरे लिए समाज में रहते हुए उस के नियमों की अवहेलना करना संभव नहीं है. मैं अजय की प्रतिष्ठा भी कभी दांव पर नहीं लगाऊंगी.

पहले मुझे घर के कामों से, अपने सामाजिक जीवन से फुरसत नहीं मिलती थी. अब? अब मैं घर से ही नहीं निकलना चाहती. दोस्तों के बुलाने पर न मिलने के बहाने सोचती रहती हूं. पूरा दिन यह अकेलापन अच्छा लगने लगा है. किसी से बात करने की जरूरत ही नहीं लगती. सोहम के औफिस जाने के बाद मैं अपने काम शुरू करती हूं. उस के आने तक फारिग हो कर अपने फ्लैट से उसे देखने के मौके और जगहों पर भटकती रहती हूं. कभीकभी इधरउधर बेवजह कुछ करते रहने से थक कर बिस्तर पर पड़ जाती हूं. पता नहीं, तब कहां से कुछ आंसू पलकों के कोनों से अचानक बह निकलते हैं. जो घाव किसी को दिखाए भी न जा सकें, वे ज्यादा ही कसकते हैं.

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बहुत मुश्किल में हूं. बहुतकुछ कर के देख लिया. सोहम से ध्यान नहीं हटा पाती. क्या करूं, कहां चली जाऊं. कहीं जा कर तो और बेचैन रहती हूं, फौरन लौट आती हूं. क्या करूं जो इस दिल को करार आए. अजय और पलाक्षा तो इसे मेरा गिरता स्वास्थ्य और थकान समझ कर रातदिन मेरा ध्यान रख रहे हैं. तब, मैं और अपराधबोध से भर उठती हूं. दिल की बातें इतनी उलझी हुई, इतनी मुश्किल क्यों होती हैं कि कोई इलाज ही नहीं दिखता और वह भी मेरी उम्र में कि जब किसी भी तरह की कोई उम्मीद ही नहीं है. इस दिल को कब और कैसे करार आएगा, इस अतर्द्वंद्व का कोई अंत कब होगा? और क्या अंत होगा? ऐसा क्या होगा जो मेरा ध्यान सोहम की तरफ से हट जाएगा? कहते हैं कि समय हर बात का जवाब है. अगर ऐसा है तो बस, इंतजार है मुझे उस समय का.

आधुनिक बीवी- भाग 1 : रेणु सुषमा से मिलने के बाद रात भर क्यों नहीं सो पाई?

‘‘मौसम विभाग की भविष्यवाणी है कि आज रात तथा कल बहुत बर्फ पड़ने वाली है. क्या तुम्हारा अभी भी कल शाम को पाल के यहां होने वाली पार्टी में जाने का विचार है?’’ मैं ने रेणु से पूछा.

रेणु चाय बनाने चली गई थी, सो शायद उस ने मेरी बात पूरी तरह से सुनी नहीं थी. जब वह चाय बना कर लाई तो मैं ने उस से फिर वही प्रश्न दोहराया तो वह बोली, दिनेश, ‘‘पाल तुम्हारे पुराने व गहरे मित्र हैं. इतने दिनों बाद उन्हें यह खुशी मिली है और तुम्हें उन्होंने विशेष तौर पर बुलाया है. क्या तुम अपने मित्र की खुशी में शामिल होना नहीं चाहते?’’

‘‘चलो, तो तैयार हो जाओ. बाजार से कोई तोहफा ले आएं,’’ मैं बोला.

चाय पी कर हम बाजार गए. पहले पाल के लिए तोहफा खरीदा, फिर अगले सप्ताह के लिए खाने का सब सामान खरीदने के बाद रात को 9 बजे घर वापस आए. रेणु ने खाना पहले ही बना रखा था, सो उसे गरम कर के खाया और फिर टैलीविजन देखने लगे. 10 बजे के करीब मैं ने खिड़की से बाहर देखा तो बर्फ पड़ने लगी थी. रात में 11 बजे के समाचार सुने और हम सोने चले गए.

अगले दिन भी बर्फ पड़ती रही तो मैं ने पाल को फोन किया, ‘‘अरे, तुम्हारी पार्टी आज ही है या स्थगित करने की सोच रहे हो?’’

पाल बोला, ‘‘अरे, बर्फ कोई ज्यादा नहीं है.’’ पार्टी समय पर ही है.

पाल मेरा पुराना मित्र है. हम दोनों एकसाथ ही अमेरिका आए तथा एकसाथ ही एमएस किया था. पाल से मेरी मुलाकात पेरिस में हुई थी.

फिर मैं न्यूयार्क में एक छोटी सी इलैक्ट्रौनिक्स कंपनी में नौकरी करने लगा था. पाल कैलिफोर्निया में जा कर बस गया. 3 वर्ष बाद मैं ने भारत जा कर रेणु से शादी कर ली तथा न्यूजर्सी में एक दूसरी कंपनी में नौकरी कर ली और यहीं बस गया.

पिछले वर्ष शनिवार को जब हम एक शौपिंग सैंटर में घूम रहे थे तो अचानक पाल से मुलाकात हुई. पाल 1 महीना पहले न्यूजर्सी में आ कर रहने लगा था. उस ने अब तक शादी नहीं की थी. वह अब अकसर शनिवार, रविवार को हमारे घर आने लगा. रेणु पाल से जब भी शादी करने को कहती तो उस का जवाब होता, ‘भाभीजी, कोई लड़की पसंद ही नहीं आती.’

रेणु जब उस से उस की पसंद के बारे में पूछती तो उस का जवाब होता, ‘मुझे बहुत सुंदर व आधुनिक विचारों की पत्नी चाहिए.’

रेणु जब उस से आधुनिक की परिभाषा पूछती तो उन में घंटों तक बहस होती रहती.

 

पाल का पूरा नाम धर्मपाल है. रेणु ने उस से एक बार कहा, ‘तुम लोगों को अपना पूरा नाम ‘धर्मपाल’ क्यों नहीं बताते?’

वह बोला, ‘भाभीजी, धर्म तो मैं भारत में ही छोड़ आया था, अब तो पाल बाकी रह गया है.’

अचानक एक दिन पाल का फोन आया, ‘दिनेश, मैं दिल्ली से बोल रहा हूं. 2 सप्ताह बाद मेरी शादी है. मैं ने तुम्हें कार्ड भेज दिया है. हो सके तो अवश्य आना.’

मुझे उस की बात पर यकीन नहीं हुआ तो उस के न्यूजर्सी के घर पर फोन मिलाया, पर किसी ने न उठाया. 2 दिनों बाद हमें पाल का कार्ड मिला तो यकीन आया कि वास्तव में उस की शादी होने जा रही है.

लगभग 1 महीने बाद पाल वापस अमेरिका आ गया और उस ने मुझे फोन कर के बताया कि उस की शादी का प्रोग्राम अचानक बन गया. वह आगे बोला, ‘पिताजी का एक दिन फोन आया कि एक लड़की उन्हें बहुत पसंद आई है, आ कर देख तो लो. मैं उसी सप्ताह दिल्ली चला गया और शादी पक्की हो गई.’

रेणु ने पाल को पत्नी सहित घर आने का न्योता दिया तो वह बोला, ‘भाभीजी, सुषमा तो अभी नहीं आ पाई है, उस के वीजा के लिए कुछ कागज वगैरा भेजने हैं.’

रेणु ने फिर उसे स्वयं ही आने को कहा तो वह बोला, ‘अच्छा, मैं अगले शनिवार को आऊंगा.’

शनिवार को दोपहर के 2 बजे के करीब पाल ने घंटी बजाई तो मैं ने दरवाजा खोला, ‘बधाई हो पाल, अफसोस है कि तुम्हारी शादी में हम शामिल नहीं हो सके.’

रेणु भी पीछे से आ गई और उस से बोली, ‘तुम ने हमें समय ही नहीं दिया वरना हम तो अवश्य आते.’

पाल बोला, ‘घर में तो आने दो, बाद में ताने देते रहना,’ वह भीतर आ गया तो रेणु खाना परोसने लगी.

खाना खाने के बाद हम लोग बैठ कर बातें करने लगे.

रेणु ने पूछा, ‘‘सुषमा कब तक अमेरिका आएगी?’’

‘देखो, कागज वगैरा तो सारे भेज दिए हैं, शायद 2 महीने में आ जाए.’

सुषमा 1 महीने से पहले ही अमेरिका आ गई. तब उसी खुशी में पार्टी का आयोजन किया गया था.

शाम को जब हम पाल के घर पहुंचे तो हम से पहले ही 2-3 परिवार वहां आ चुके थे. पाल ने हमारा सब से परिचय कराया.

रेणु बोली, ‘‘पाल, तुम ने सब से परिचय करा दिया है या कोई बाकी है?’’

‘‘भाभीजी, सुषमा ऊपर तैयार हो रही है, अभी आने ही वाली है.’’

करीब आधा घंटे बाद सुषमा नीचे आई तो पाल ने उस का सब से परिचय कराया. वह पाल से 12 वर्ष छोटी थी, पर थी सुंदर. उस ने बहुत मेकअप किया हुआ था, इस से और भी खूबसूरत लग रही थी. हम सब लोगों को पाल ने शीतल पेय दिए. फिर उस ने सुषमा से पूछा, ‘‘तुम क्या लोगी?’’

वह बोली, ‘‘कुछ भी.’’

इस पर पाल उस के लिए स्कौच बनाने लगा तो वह बोली, ‘‘इस में पानी मत डालना. बस, बर्फ डाल कर ले आना.’’

आधुनिक बीवी- भाग 4 : रेणु सुषमा से मिलने के बाद रात भर क्यों नहीं सो पाई?

लगभग 1 साल तक पाल को कहीं नौकरी न मिली. सुषमा ने एक दुकान में काम करना शुरू कर दिया था. पाल को कुछ पैसे ‘स्टेट’ से सहायता के रूप में मिलते थे. सो, उन दोनों के खर्च के लिए काफी थे. परंतु उन पर जो पुराने बिल चढ़े हुए थे, उन का भुगतान बहुत ही मुश्किल था. जब 4 महीने तक पाल ने कार की किस्त न दी तो बैंक ने कार ले ली. पाल बहुत ही निरुत्साहित सा हो गया था. मैं इधर कंपनी के काम से बाहर रहने लगा था. कभी महीने में 1-2 बार ही उस से बातें हो पाती थीं.

पिछली बार जब उस से फोन पर बातें हुईं तो उस ने बताया कि अरुण भी अब उन के पास ही रहने लगा है. खाना वगैरा तो वह बाहर ही खाता है, रात में केवल सोने के लिए आता है. किराए का आधा पैसा देता है. इसलिए कुछ राहत मिली है. उन के पास 2 शयनकक्ष थे, सो परेशानी की कोई बात नहीं थी.

 

अरुण पढ़ने में बहुत तेज था. उस ने डेढ़ वर्ष में ही एमएस कर ली. यूनिवर्सिटी की तरफ से ही उसे एक कंपनी में जूनियर इंजीनियर की नौकरी मिल गई. अब वह कहीं और जा कर रहने लगा.

एक बार शनिवार को हम खरीदारी करने गए तो हमें सुषमा और अरुण साथसाथ नजर आए. हम ने जब उन्हें पुकारा तो वे ऐसे हड़बड़ाए जैसे कि कोई चोरी करते पकड़े गए हों.

‘‘रेणु, तुम आजकल हमारे घर नहीं आतीं?’’ सुषमा ने बनावटी गुस्से से कहा.

‘‘ये आजकल औफिस के काम से बाहर बहुत जाते हैं. जब शनिवार, रविवार की छुट्टी होती है तो बहुत थक जाते हैं,’’ रेणु ने उत्तर दिया.

हम चूंकि खरीदारी कर चुके थे, इसलिए रेणु ने कहा, ‘‘सुषमा, मैं तुम्हें फोन करूंगी और फिर मिलने का प्रोग्राम बनाएंगे.’’

हम वापस घर आ गए. कोई विशेष काम था नहीं, सो रेणु ने कहा, ‘‘चलो, आज सुषमा के घर बिना सूचना दिए ही चलते हैं.’’

शाम हो चली थी और हम पाल के यहां जा पहुंचे. घंटी बजाई तो पाल ने ही दरवाजा खोला. अंदर कहीं जब सुषमा नजर न आई तो रेणु ने पूछा, ‘‘सुषमा अभी तक नहीं आई?’’

पाल बोला, ‘‘भाभीजी, वह शनिवार व रविवार को देर तक काम करती है.’’ पाल के मुख से यह सुन कर बड़ा अजीब सा लगा. मैं ने रेणु को आंख से कुछ भी न बोलने का इशारा किया.

पाल ने हमें बैठने को कहा और चाय बनाने चला गया. इतने में ही फोन आया तो पाल ने उठाया. उस के बात करने से पता चला कि वह सुषमा का ही फोन है. उस ने उस से मुश्किल से 1 मिनट बात की होगी. हमें चाय देते हुए बोला, ‘‘सुषमा का ही फोन था. उसे अभी आने में 2 घंटे और लगेंगे.’’ पाल ने हम से बहुत कहा कि हम खाने के लिए रुकें, पर हम ने मना कर दिया.

रास्ते में रेणु ने कहा, ‘‘यह माजरा क्या है?’’

मैं ने कहा, ‘‘दूसरों के मामलों में हमें दखल नहीं देना चाहिए.’’

रेणु इस बार बहुत गुस्से में बोली, ‘‘पाल तुम्हारा गहरा दोस्त है, अपनी आंखों से आज तुम ने सबकुछ देखा है. उस का घर, परिवार बरबाद हुआ जा रहा है और तुम कह रहे हो कि हमें दूसरों के मामलों में दखल नहीं देना चाहिए. कैसे दोस्त हो तुम?’’

रेणु की बात में दम था. मैं ने जब उस से पूछा कि हमें क्या करना चाहिए तो इस का उत्तर उस के पास भी नहीं था. वह बोली, ‘‘जो कुछ भी हो, हमें पाल से बात करनी चाहिए.’’

‘‘हां, पर कैसे?’’

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि पाल से कैसे बात करूं? कोई प्रत्यक्ष प्रमाण भी नहीं था कि उस से सुषमा और अरुण के नाजायज संबंध बताऊं. मैं ने रेणु से कहना चाहा कि जो हम ने देखा है, वह गलत भी तो हो सकता है, पर हिम्मत न हुई. रेणु उस समय गुस्से में थी.

लगभग 1 सप्ताह यों ही बीत गया. अगले शनिवार को 10-11 बजे पाल का फोन आया कि हम खरीदारी करने जाएं तो उसे भी साथ लेते जाएं.

मैं ने उस से 3-4 बजे तैयार रहने को कह दिया. हम उसे ले कर सुपर मार्केट गए तथा पूरे सप्ताह का राशन खरीदा. पाल ने भी अपना सामान खरीदा.

‘‘जहां सुषमा काम करती है, वहां चलते हैं. मुझे वहां से कुछ सामान खरीदना है,’’ रेणु ने कहा.

हम वहां गए. जिस काउंटर पर सुषमा काम करती थी, वह वहां नहीं थी. पाल ने उस के बौस से जा कर पूछा तो पता चला कि सुषमा तो पिछले 2 महीने से शनिवार व रविवार को काम करने ही नहीं आ रही है. पाल को यह जान कर बड़ा धक्का लगा. वह बोला, ‘‘यदि वह यहां काम करने नहीं आती है तो फिर कहां अपना मुंह काला करवाने जाती है?’’

मैं ने पाल को धैर्य बंधाते हुए कहा, ‘‘हो सकता है, उस ने कहीं और पार्टटाइम नौकरी ढूंढ़ ली हो.’’

‘‘पर मुझे तो बताना चाहिए था.’’

मैं ने उसे समझाया कि उसे घर जा कर सुषमा से प्यार से बात करनी चाहिए. हम ने उसे उस के फ्लैट पर छोड़ा.

वापसी में कार में बैठते ही रेणु मुझ पर बिफर पड़ी, ‘‘कैसे दोस्त हो तुम. सबकुछ पता होते हुए भी चुप क्यों रहे?’’

मैं ने उस से केवल इतना ही कहा, ‘‘आज की रात इन दोनों पर बड़ी भारी पड़ेगी.’’

अगले दिन सुबह 10 बजे के आसपास मैं ने पाल को फोन किया. मैं ने पूछा, ‘‘तुम ने रात सुषमा से बात की?’’

वह बोला, ‘‘हां, वह मुझे छोड़ कर चली गई है.’’

‘‘कहां?’’ मैं ने हैरानी से पूछा तो वह बोला, ‘‘अपने नए खसम के पास और कहां?’’

‘‘पाल, जरा शांत हो कर बताओ,’’ मैं ने कहा तो वह बोला, ‘‘मैं शांति से ही बात कर रहा हूं. उस ने मुझे तलाक देने का फैसला कर लिया है. वह अरुण के साथ नई शादी रचाएगी.’’

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’

‘‘मैं बिलकुल वही कह रहा हूं जो उस ने रात में मुझ से कहा था,’’ पाल बोलता ही रहा, ‘‘जब रात को 10 बजे वह घर आई और मैं ने उस से पूछा कि यह सब क्या हो रहा है तो उस ने बड़े सहज स्वर में कह दिया कि वह मुझ जैसे बेकार व निकम्मे आदमी के साथ नहीं रह सकती.’’

पाल बोला, ‘‘मैं ने उसे फोन किया था, पर वह बात करने को ही तैयार नहीं. अरुण ने भी साफ शब्दों में कह दिया कि अब मेरे और सुषमा के बीच में बात करने के लिए कुछ भी शेष नहीं बचा है, और मैं उस के यहां फोन न करूं.’’

पाल बहुत टूटा सा लग रहा था. मुझे उस की हालत पर बहुत दुख हो रहा था, पर मैं कुछ भी नहीं कह पा रहा था.

दोपहर में भोजन के समय मैं ने उसे फोन किया, ‘‘यदि तुम्हें कुछ पैसों की जरूरत हो तो मांगने में संकोच न करना.’’

शाम को मैं उसे फिर अपने घर ले आया तथा एक हजार डौलर का चैक दे दिया.

एक दिन अरुण व सुषमा दोनों पाल की अनुपस्थिति में उस के फ्लैट में आए तथा फर्नीचर वगैरा सब उठवा कर ले गए. पाल के पास अब कुछ नहीं बचा था.

3-4 सप्ताह बाद पाल के पास सुषमा के वकील से तलाक के कागज आए और उस ने बिना किसी शर्त के उन पर हस्ताक्षर कर के भेज दिए. चूंकि तलाक दोनों को स्वीकार था, इसलिए कोर्ट से बिना देरी के उन का तलाक स्वीकार हो गया. यह सब इतना जल्दी घटित हुआ कि विश्वास ही नहीं हुआ.

अभी 1 सप्ताह ही बीता था कि एक दिन पाल का मेरे पास औफिस में फोन आया, ‘‘दिनेश, मुझे कल तुम्हारी कार चाहिए.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘मेरा कल सुबह एक कंपनी में 9 बजे इंटरव्यू है. यदि मैं समय पर नहीं पहुंचा तो नौकरी हाथ से निकल जाएगी.’’

‘‘ठीक है. तुम सुबह मुझे औफिस छोड़ जाना और मेरी कार ले जाना,’’ मैं ने उस से यह कह फोन बंद कर दिया.

अगले दिन वह मुझे औफिस छोड़ कर मेरी कार ले गया तथा शाम को जब आया तो बोला, ‘‘यार, तुम लोगों की मदद से नौकरी मिल गई.’’

मैं ने उसे बहुतबहुत बधाई दी. 1 महीने तक मैं उसे हर सुबह उस के नए औफिस में छोड़ आता. जैसे ही उसे पहली तनख्वाह मिली, उस ने एक कार खरीद ली और धीरेधीरे सामान्य सा होने लगा. वह अब अकसर शाम को हमारे यहां आने लगा. रात 9-10 बजे तक बैठता, खाना खाता और अपने घर लौट जाता.

6 महीने ऐसे ही गुजर गए. पाल की आर्थिक स्थिति सुधरने लगी. जिस कंपनी में वह काम करता था, उस के मालिक कंपनी की एक शाखा भारत में खोलने की सोच रहे थे. उन्होंने पाल को 1 महीने के लिए दिल्ली जाने को कहा तो वह वहां चला गया.

लगभग 1 महीने बाद जब वह वापस आया तो मुझे फोन किया कि उस ने फिर से शादी कर ली है और उस की पत्नी उस के साथ ही आई है. उस ने अगले शनिवार को हमें घर आने को कहा.

‘‘भाईसाहब, थोड़ी और पकौड़ी लीजिए. आप ने तो कुछ खाया ही नहीं. मैं ने स्वयं बनाई हैं. क्या अच्छी नहीं बनीं?’’ पाल की पत्नी ऊषा ने जब मुझ से यह कहा तो मैं अचानक उस दुखद स्मृति से चौंका, जो पाल की पुरानी विवाहित जिंदगी से जुड़ी थी और मैं उसी में खोया हुआ था.

‘‘नहींनहीं, बहुत अच्छी बनी हैं,’’ मैं ने कहा तो पाल ऊषा से बोला, ‘‘दिनेश को यदि पकौडि़यों के साथ बियर मिल जाती तो यह और भी खाता.’’

‘‘यह सब इस घर में नहीं होगा. यह घर मेरे प्यार का प्रेरणा स्थल है. ऐसे स्थान पर मादक द्रव्य नहीं लाए जाते,’’ ऊषा ने तपाक से कहा तो पाल कुछ न बोला.

थोड़ी देर में फोन की घंटी बजी. पाल ने रिसीवर उठाया, ‘‘हां, मैं धर्मपाल बोल रहा हूं,’’ उस के बाद उस ने फोन पर कुछ बातें कीं. जब हमारे पास आया तो रेणु बोली, ‘‘आप का नाम फिर से धर्मपाल हो गया क्या?’’

‘‘हां, भाभीजी, ऊषा को यही पसंद है.’’

खाना खा कर जब हम घर चले तो कार में बैठते ही रेणु ने कहा, ‘‘अब मुझे तुम्हारे मित्र के बारे में कोई चिंता नहीं है. ऊषा उसे आदमी बना कर ही छोड़ेगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘जैसे तुम ने मुझे बना दिया.’’

वह कुछ न बोली तो मैं ने कहा, ‘‘चलो, अब कल देर तक सोएंगे.’’

‘‘तुम कभी नहीं बदलोगे,’’ कहते हुए वह मुसकरा पड़ी.

 

 

आधुनिक बीवी- भाग 3 : रेणु सुषमा से मिलने के बाद रात भर क्यों नहीं सो पाई?

अगले दिन रेणु ने पाल को फोन किया और उसे घर आने को कहा. लेकिन उस ने यह कह कर मना कर दिया कि उन्हें घर के लिए फर्नीचर वगैरा खरीदने जाना है. पर शाम को करीब 8 बजे वे दोनों अचानक हमारे घर आ पहुंचे.

‘‘अरे, तुम तो खरीदारी के लिए जाने वाले थे?’’ मैं ने पाल से पूछा.

‘‘वहीं से तो आ रहे हैं,’’ वह बोला. उस ने बाद में बताया कि फर्नीचर तो खरीद नहीं पाए क्योंकि सुषमा ने और सामान खरीदने में ही इतने पैसे लगा दिए. हमारे यहां वे लोग रात के खाने तक रुके और फिर घर चले गए.

रेणु ने मुझे बाद में बताया कि पाल ने अपनी पत्नी को 2 हजार डौलर की हीरे की अंगूठी दिलवाई है. उस की असली शिकायत यह थी कि मैं ने कभी हीरे की अंगूठी खरीद कर उसे क्यों नहीं दी. उस ने मुझे कई और ताने भी दिए.

3-4 महीने यों ही गुजर गए. एक दिन औफिस में पाल का फोन आया कि वह मुझ से कुछ बात करना चाहता है. मैं ने उसे शाम को घर आने को कहा तो बोला, ‘‘नहीं, मैं केवल तुम से एकांत में मिलना चाहता हूं.’’

मुझे जल्दी एक मीटिंग में जाना था, सो कहा, ‘‘अच्छा, औफिस के बाद पब्लिक लाइब्रेरी में मिलते हैं.’’

वह इस के लिए राजी हो गया. मैं ने रेणु को फोन कर दिया कि शाम को जरा देर से आऊंगा.

शाम को मैं जब लाइब्रेरी में पहुंचा तो पाल वहां पहले से ही बैठा था. इधरउधर की बातें करने के बाद उस ने मुझ से 5 हजार डौलर उधार मांगे. वह मुझ से कुछ ज्यादा ही कमाता था और काफी समय से नौकरी भी कर रहा था. उस ने अभी तक घर भी नहीं खरीदा था, किराए के फ्लैट में ही रहता था. भारत भी उस ने कभी पैसे भेजे नहीं थे क्योंकि उस के घर वाले बहुत समृद्ध थे. मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हें पैसों की ऐसी क्या आवश्यकता आ पड़ी? क्या घर खरीदने जा रहे हो?’’

वह बोला, ‘‘नहीं यार, जब से सुषमा आई है, तब से खर्च कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. उस ने 3-4 महीने में इतनी खरीदारी की है कि सारे पैसे खर्च हो गए हैं. अब वह नई कार खरीदने को कह रही है.’’

‘‘तो उस में क्या बात है, किसी भी कार डीलर के पास चले जाओ. वह पैसे का प्रबंध करा देगा.’’

वह बोला, ‘‘अब तुम से क्या छिपाऊं. मेरे ऊपर करीब 10-12 हजार डौलर का वैसे ही कर्जा है. यह सब जो हम ने खरीदा है, सब उधार ही तो है. अब जब क्रैडिट कार्ड के बिल आ रहे हैं तो पता चल रहा है.’’

मैं ने आगे कहा, ‘‘पाल, बुरा मत मानना, पर जब तुम्हारे पास इतने पैसे नहीं थे तो इतना सब खरीदने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘मेरी नईनई शादी हुई है और सुषमा आधुनिक विचारों की है. चाहता हूं कि मैं उसे दुनियाभर की खुशियां दे दूं, जो आज तक किसी पति ने अपनी पत्नी को न दी हों,’’ उस ने अजीब सा उत्तर दिया.

मैं ने पाल को समझाना चाहा कि उसे अपनी जेब देख कर ही खर्च करना चाहिए और कुछ पैसा बुरे समय के लिए बचा कर रखना चाहिए. पर असफल ही रहा.

अगले दिन मैं ने पाल को 5 हजार डौलर का चैक दे दिया. घर से पिताजी का पत्र आया कि मेरी छोटी बहन मंजु का रिश्ता तय हो गया है तथा 1 महीने के बाद ही शादी है. घर में यह आखिरी शादी थी, सो हम दोनों ने भारत जाने का निश्चय किया और शादी से 2 दिन पहले भारत पहुंच गए. 5-6 वर्ष बाद भारत आए थे. सबकुछ बदलाबदला सा लग रहा था. ऐसा लगा कि भारत में लोगों के पास बहुत पैसा हो गया है. लोग पान खाने के लिए भी सौ रुपए का नोट भुनाते हैं.

शादी में एक सप्ताह ऐसे बीत गया कि समय का पता ही न चला. शादी के बाद कुछ और दिन भारत में रह कर हम वापस अमेरिका लौटे. अगले दिन रविवार था सो, खूब डट कर थकान मिटाई. शाम को बाजार खाने का सामान लेने गए. सुपर मार्केट में अचानक रीता से मुलाकात हुई. मुझ से नमस्कार करने के बाद वह रेणु से बातें करने लगी. बातोंबातों में पता लगा कि पाल के हाल कुछ अच्छे नहीं हैं.

मैं ने घर जा कर पाल को फोन मिलाया तो वह बोला, ‘‘अरे, तुम कब आए?’’

‘‘कल रात ही आए हैं,’’ मैं ने उत्तर दिया. इधरउधर की बातें करने के बाद उस ने बताया कि उस के औफिस में करीब 50 आदमियों की छंटनी होने वाली है और उस का नाम भी उस सूची में है.

अमेरिका में यह बड़ा चक्कर है. स्थायी नौकरी नाम की कोई चीज यहां नहीं है. जब जरूरत होती है, तो मुंहमांगी तनख्वाह पर रखा जाता है लेकिन जब जरूरत नहीं है तो दूध में गिरी मक्खी की तरह से निकाल दिया जाता है.

मैं ने पाल को समझाते हुए कहा कि उसे अभी से दूसरी नौकरी की तलाश करनी चाहिए, लेकिन वह बहुत ही घबराया हुआ था. फिर मैं ने कहा, ‘‘ऐसा करो, तुम लोग यहां आ जाओ, बैठ कर बातें करेंगे.’’

8 बजे के आसपास पाल और सुषमा आ गए. सुषमा तो रेणु के पास रसोई में चली गई, पाल मेरे पास आ कर बैठ गया. उस ने बताया कि उस पर पहले करीब 15 हजार डौलर का कर्ज था. लेकिन कार लेने के बाद वह 35 हजार डौलर तक पहुंच गया है. यदि नौकरी चली गई और जल्दी से दूसरी नहीं मिली तो क्या होगा?

मैं ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा, ‘‘अभी तो 2 महीने तक तुम्हारी कंपनी निकाल ही नहीं रही, तुम इलैक्ट्रिकल इंजीनियर हो और इस लाइन में बहुत नौकरियां हैं. चिंता छोड़ कर प्रयत्न करते रहो.’’

जब उस ने मुझ से मेरे पैसों के बारे में कहना शुरू किया तो मैं ने उसे एकदम रोक दिया, ‘‘मेरे पैसों की तुम बिलकुल चिंता मत करो. जब तुम्हारे पास होंगे, तब दे देना, नहीं होंगे तो मत देना.’’

मैं ने पाल को एक सुझाव और दिया कि सुषमा को भी कहीं नौकरी करनी चाहिए. रात का खाना खाने के बाद वे दोनों अपने घर चले गए.

2 महीने बाद पाल की नौकरी छूट गई तो मुझे बड़ा दुख हुआ. मैं ने 2-3 कंपनियों में पता लगाया, पर कुछ बात न बनी. पाल बहुत हताश हो गया था. उन्हीं दिनों उस के पिताजी का भारत से पत्र आया कि उन के एक मित्र का लड़का न्यूजर्सी स्टेट में पढ़ने आ रहा है. पाल से उन्होंने उस की सहायता करने को लिखा था. जिस यूनिवर्सिटी में वह लड़का पढ़ने आ रहा था, वह हमारे घर के पास ही थी. पाल ने मुझे उसे हवाईअड्डे से लिवा लाने को कहा तो मैं उसे ले आया. उस का नाम अरुण था. पाल अगले दिन उसे यूनिवर्सिटी ले गया तथा उस का रजिस्ट्रेशन वगैरा सब करा दिया.

आधुनिक बीवी- भाग 2 : रेणु सुषमा से मिलने के बाद रात भर क्यों नहीं सो पाई?

जितनी भी वहां और भारतीय महिलाएं थीं, सब साधारण पेय ही पी रही थीं. मैं ऐसी बहुत ही कम भारतीय महिलाओं को जानता हूं जो शराब पीती हैं. रेणु ने जब यह देखा तो उसे यकीन नहीं हुआ कि सुषमा जो अभीअभी भारत से आई है, स्कौच पी रही है. कुछ और महिलाओं को भी आपस में कानाफूसी करते सुना.

‘‘अरे, हम तो यहां पिछले 20 वर्षों से रह रहे हैं, भारत में भी काफी आधुनिक थे, पर स्कौच तो दूर, हम ने तो कभी वाइन तक को हाथ नहीं लगाया,’’ रीता को मैं ने रेणु से यह कहते सुना.

इतने में सुषमा को ले कर पाल बीच मंडली में आया और दोनों ने जाम टकरा कर पीने शुरू कर दिए. 2-3 घंटे तक पार्टी बड़ी गरम रही. कुछ लोग राजनीति पर चर्चा कर रहे थे तो कुछ हिंदी फिल्मों पर. 12 बजे के करीब शादी की खुशी में केक काटा गया. फिर सब ने पाल को बधाइयां तथा तोहफे दिए. उस के बाद खाने की बारी आई.

12 बजे के आसपास पार्टी तितरबितर होनी शुरू हुई. हमें घर आतेआते 1 बज गया.

घर आते ही मैं बिस्तर पर लेट गया और जल्दी ही सो गया.

सुबह 9 बजे के करीब जब मेरी आंखें खुलीं तो पाया कि रेणु बिस्तर पर नहीं है. मैं ने खिड़की से बाहर झांका, बर्फ अभी भी गिर रही थी. मैं नीचे आया तो देखा, रेणु सोफे पर सो रही है.

मैं जब नहा कर लौटा तो उस समय करीब 11 बज रहे थे. रेणु अभी भी सो रही थी मैं ने सोचा, शायद उस की तबीयत ठीक नहीं है, सो, जा कर उठाया तो वह हड़बड़ा कर उठी और बोली, ‘‘क्या टाइम हो गया?’’

‘‘तुम्हें आज टाइम की क्या चिंता है? यह बताओ, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है? और तुम यहां पर क्यों सो रही हो?’’

‘‘मुझे रात नींद नहीं आई तो यह सोच कर कि तुम्हारी नींद न खराब हो, 2 बजे के करीब नीचे चली आई. यहां आ कर भी जब नींद न आई तो टैलीविजन चला दिया, फिर पता नहीं कब नींद आ गई.’’

मैं ने उस के लिए चाय बनाई, क्योंकि वह हमेशा चाय पीना पसंद करती है. फिर उस से नींद न आने का कारण पूछा तो बोली, ‘‘ऐसी तो कोई खास बात नहीं थी, बस, पाल और सुषमा के बारे में ही सोचती रही. तुम ने देखा नहीं, वह कैसी बेशर्मी से शराब पी रही थी.’’

मैं बोला, ‘‘तुम्हें दूसरों की व्यक्तिगत जिंदगी से क्या मतलब?’’

‘‘तो क्या पाल कोई दूसरे हैं? वे तुम्हारे मित्र नहीं हैं?’’ उस ने जोर से यह बात कही.

मैं ने प्यार से कहा, ‘‘मेरा मतलब यह नहीं था. शराब पीना या न पीना पाल और सुषमा का व्यक्तिगत मामला है, हमें उस में नहीं पड़ना चाहिए.’’

रेणु चाय पी कर बोली, ‘‘मैं नहाने जा रही हूं. तुम फायर प्लेस जला लो. आज बाहर तो कहीं जा नहीं सकते, इसलिए बैठ कर कोई पुरानी हिंदी फिल्म देखेंगे.’’

मैं ने कहा, ‘‘जैसी सरकार की मरजी.’’

 

रेणु जब नहा कर वापस आई तब तक मैं ने फायर प्लेस में आग जला ली थी. हम ने एक हिंदी फिल्म का कैसेट लगाया और देखने लगे. इतने में फोन की घंटी बजी. रेणु ने रिसीवर उठाया और ऊपर जा कर बातें करने लगी. वह करीब आधे घंटे बाद नीचे आई तो मैं ने पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

वह बोली, ‘‘कल की पार्टी में एक दक्षिण भारतीय महिला मिली थी, उसी का फोन था. सुषमा के बारे में ही बातें होती रहीं कि कैसे वह बड़ी बेशर्मी से पाल के गले में बांहें डाल कर शराब पी रही थी.’’

मैं ने बात को आगे न बढ़ाया, उठ कर वीडियो बंद कर दिया और चाय बनाने लगा.

चाय पीने के बाद मैं ऊपर जा कर लेट गया. मुझे छुट्टी के दिन दोपहर बाद थोड़ी देर सोना बड़ा अच्छा लगता है.

जब मेरी आंख खुली तो देखा कि रेणु भी मेरे पास ही सो रही है. मैं उसे सोता छोड़ कर नीचे चला आया और टैलीविजन देखने लगा.

लगभग 1 घंटे बाद रेणु भी नीचे आई और रसोई में जा कर रात के खाने का प्रबंध करने लगी. मैं ने रेणु से कहा कि यदि बर्फ पड़नी बंद न हुई तो लगता है, कल औफिस जाना मुश्किल हो जाएगा.

करीब 8 बजे हम ने खाना खाना और फिर से हिंदी फिल्म देखने लगे. 10 बजे के आसपास हम सोने चले गए.

सुबह उठ कर मैंने देखा कि बर्फ तो पड़नी बंद हो गई है, पर सड़कें अभी बर्फ से ढकी हुई हैं. मेरा औफिस घर से केवल 5-6 मील की दूरी पर है, सो औफिस जाने का निश्चय किया.

औफिस में ज्यादा लोग नहीं आए थे. शाम 5 बजे मैं वापस घर आ गया. रेणु ने चाय बनाई तथा डाक ला कर दी. पूरा सप्ताह ही बीत गया. शुक्रवार की शाम को रीता का फोन आया. उस ने अपने यहां अगले दिन रात के डिनर पर आने का निमंत्रण दिया. हमारा चूंकि अगले दिन कहीं जाने का प्रोग्राम नहीं था, सो ‘हां’ कर दी.

रीता के घर जब पहुंचे तो यह जान कर बड़ा अचंभा हुआ कि पाल वहां निमंत्रित नहीं है. रीता ने अन्य भारतीय परिवारों को भी बुलाया हुआ था. पार्टी में भी सुषमा के बारे में चर्चा होती रही. महिलाओं को इस बात का बड़ा दुख था कि उन्होंने कभी सुषमा जैसा फैशन क्यों नहीं किया या खुल कर लोगों के सामने शराब क्यों नहीं पी. रात को जब हम घर लौटे तो रेणु ने कार में फिर से सुषमा पुराण दोहराना चाहा, पर जब मैं ने उस में कोई दिलचस्पी न दिखाई तो उसे चुप हो जाना पड़ा.

तापसी पन्नू की फिल्म “हसीन दिलरूबा” अब नहीं जाएगी दिल्ली??

कोरोनावायरस महामारी की वजह से बहुत कुछ बदल रहा है और  यह बदलाव बॉलीवुड में कुछ ज्यादा ही नजर आने लगा है. कोरोना की वजह से लॉकडाउन लगने से पहले फिल्म ” हसीन दिलरूबा”  के निदेशक विनिल मैथ्यू  दिल्ली पहुंच गए थे. क्योंकि उन्हें वहां पर तापसी पन्नू और विक्रांत मैसे के साथ “हसीन दिलरूबा” की शूटिंग करनी थी. मगर ऐन वक्त पर कोरोनावायरस की वजह से लॉकडाउन लग गया और वह शूटिंग नहीं कर पाए. अब इस बात को 4 माह बीत चुके हैं हालात अभी भी सुधर ते हुए नजर नहीं आ रहे हैं. यूं तो कुछ गाइडलाइंस का पालन करते हुए कम से कम क्रू मेंबर  के साथ की शूटिंग शुरू हो सकती हैं., लेकिन जिस तरह के हालात हैं, उसमें भी तमाम सुरक्षा उपायों के साथ भी शूटिंग करना आसान नहीं है. यह बात हर फिल्मकार व कलाकार तथा तकनीशियन बेहतर तरीके से समझ रहा है .इसलिए अब फिल्मों की कहानी और कथा में बदलाव के साथ साथ शूटिंग की जगह भी बदलाव किया जा रहा है.

इसी के चलते फिल्म “मुंबई सागा” के निर्देशक संजय गुप्ता ने अपनी फिल्म की शूटिंग हैदराबाद की बजाय अब मुंबई में ही 15 अगस्त से करने का निर्णय लिया है. तो वहीं सूत्र दावा कर रहे हैं कि निर्देशक विनिल मैथ्यू  भी अब अपनी फिल्म”हसीन दिलरूबा “की शूटिंग के लिए पूरी यूनिट को लेकर दिल्ली नहीं जाएंगे. फिल्म के निर्माता के अनुसार जब कोरोनावायरस का प्रभाव बढ़ रहा है, ऐसे में शूटिंग के लिए पूरी यूनिट को मुंबई से दिल्ली ले जाना बहुत ही ज्यादा जोखिम लेने वाला कदम हो सकता है.सूत्रों की माने तो इसी वजह से निर्देशक विनिल मैथ्यू फिल्म की पटकथा में बदलाव करते हुए कहानी कोई ऐसा मोड़ दे रहे हैं ,जिससे आगे  की शूटिंग मुंबई में करना संभव हो जाए. सूत्र यह भी दावा करते हैं कि तापसी पन्नू व विक्रांत मैसे के अभिनय वाली इस फिल्म की शूटिंग  मुंबई में भी 15 सितंबर से पहले शुरू नहीं होगी .इसकी वजह यह है कि अब लेखक ने फिर से कहानी को नया मोड़ देने के साथ नई  पटकथा लिखना शुरू किया है और इसमें कम से कम 2 माह का वक्त जाएगा .उसके बाद निर्देशक विनिल मैथ्यू नियमानुसार  मुंबई में फिल्म सिटी स्टूडियो के संचालक से इजाजत मांगेंगे और तब कहीं शूटिंग के लिए सेट पर जा सकेंगे. बॉलीवुड में भले ही यह चर्चा बहुत गर्म है, मगर इस बारे में फिल्म के निर्देशक विनील  के साथ तापसी पन्नू और विक्रांत मैसेज ने चुप्पी साध रखी है. कोई भी शख्स इस फिल्म को लेकर किसी भी तरह की बात नहीं करना चाहता.

 

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Being Naina Sethi. This picture I clicked while we were shooting for the interval sequence of Badla. First day of shooting with the fierce Amrita Singh. I don’t know if it’s the Sardarni in me or the no holds barred way of life that connected us n it’s so cool to see her so excited n nervous to approach her scenes like a debutant wanting to do her best n listening to the director with the intention to do her best. One of the rare actors who has a very nonchalant depth in her performance. I would’ve loved to click a picture with her that day but she was too busy rehearsing her ‘bhaari’ lines while I didn’t have much to say in the scene and I didn’t want to disturb her??‍♀️ #Throwback #Archive #QuarantinePost

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जब कि को रोना से बिना डरे निर्देशक राज आशु अपनी फिल्म “वह तीन दिन” की शूटिंग के लिए फिल्म के कलाकारों संजय मिश्रा और चंदन रॉय सान्याल के साथ बनारस पहुंच चुके हैं, जहां वह 10 दिन रहेंगे.फिल्म की शूटिंग बनारस के अलावा मिर्जापुर जिले के चुनार गांव में भी की जाएगी.

पूरे 4 महीने के बाद शूटिंग के लिए घर से निकलने की चर्चा करते हुए चंदन रॉय सानयाल कहते हैं-“मैं खुद को बहुत हल्का महसूस कर रहा हूं.4 माह बाद घर से निकलकर शूटिंग के लिए पहुंचते हुए मुझे लग रहा है कि मैं एक नई शुरुआत कर रहा हूं. हमारे निर्माता और निर्देशक ने अपनी तरफ से कोरोना से बचाव के सारे सुरक्षित उपाय किए हैं और मैं भी अपनी तरफ से इसका ख्याल रख रहा हूं. मेरे लिए संजय मिश्रा के साथ शूटिंग करना एक खास अनुभव होगा.”

 

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Getting back to what I started…… 2020 has been very disturbing. For many reasons but the fact remains that time waits for nobody. Or a better way to look at it is, this too shall pass. Remembering this moment when my team won its first tie in PBL after almost everybody thought we r done. Losing back to back was obviously not how any of us imagined it to be. This victory definitely brought that smile on my face but also reassured that bad times don’t last n if you hang on to hope and positivity you are bound to see a successful tomorrow. Have seen countless ups n downs in everything I tried to attempt in life but trust me the success tastes sweetest after you have had a taste of failure. Big hug n a bigger smile to sail through this time. ❤️##Throwback #QuarantinePost #Archive

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ज्ञातव्य है कि फिल्म “वह तीन दिन “की कहानी स्लाइस आफ लाइफ है. इसकी कहानी एक कृपा चालक और उस वक्त सवार यात्री के बीच होने वाली बातचीत है. इस फिल्म में रिक्शा चालक के किरदार में संजय मिश्रा और यात्री की भूमिका में चंदन राय सान्याल है.

‘नागिन 4’ शूटिंग के आखिरी दिन एक्टर हुए इमोशनल, रोने लगी ये एक्ट्रेस

कोरोना वायरस के कहर में भी टीवी के सितारे काम करने में पीछे नहीं हट रहे हैं. इस दौरान मशहूर सारियल नागिन 4 के सेट से कुछ फोटो और वीडियो वायरल हो रहे हैंय यह आखिरी दिन की है जब शो के आखिरी एपिसोड की शूटिंग हो रही थी.

फैंस इस वीडियो और फोटो को खूब पसंद कर रहे हैं. इस वीडियो में रश्मि देसाई हमेशा की तरह हॉट लुक में नजर आ रही हैं तो वही निया शर्मा इमोशन नजर आ रही हैं.

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वहीं कई तस्वीर में विजेन्द्र कुमेरिया के साथ नई नवेली दुल्हन की तरह पोज देती नजर आ रही हैं.

निया शर्मा ऑनस्कीन मां सुप्रिया शर्मा शूटिंग में व्यस्त नजग आ रही हैं. विजेन्द्र कुमेरिया सूटबूट में नजर आ रहे हैं.

सोशल मीडिया पर सुप्रिया शर्मा यानि की निया शर्मा की ऑनस्क्रीन मां की वीडियो खूब वायरल हो रहे हैं फैंस उन्हें काफी पसंद कर रहे हैं. इस वीडियो में वह खूब फूट-फूट कर रो रही हैं.  यह वीडियो शो के आखिरी दिन की है. जिसमें वह बहुत ज्यादा इमोशनल नजर आ रही हैं.

 

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Bye Bye, Swara Maa?❤ #NaaginBhagyaKaZehrilaKhel #Naagin4 #Swara #ByeBye @niasharma90 @supriyarshukla

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वहीं निया शर्मा भी उन्हें देखकर रोना शुरू कर दी. उन्होंने वीडियो में कहा भी है कि मैं आपको देखकर इमोशनल हो गई हूं. समझ नहीं आ रहा है क्या करुं.

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दरअसल, इस बात का खुलासा कुछ महीने पहले ही एकता कपूर ने कर दिया था कि अब नागिन 4 को बंद करके नागिन 5 को लॉच किया जाएगा.

जिसके बाद से लोग लगातार इस बात का कयास लगा रहे थे कि आखिर कौन होगा . फैंस को इस बात को जानने की बहुत ज्यादा इच्छुत थें.

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वैसे नागिन सीरियल्स के कई पार्टस आ गए है सभी को फैंस ने खूब पसंद किया है. नागिन सीरियल्स में हमेशा कुछ नया मोड़ आते रहता है.

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