इन दिनों लोग सिस्ट की बीमारी से अधिक परेशान हैं, खासकर महिलाएं. शरीर के अंदर पाई जाने वाली ‘सिस्ट’, जिस को मैडिकल भाषा में ‘इकाइनोकोकस ग्रैनुलोसस’ के नाम से जाना जाता है. इसे हाइडेटिड सिस्ट भी कहते हैं. यह एक विशेष कीड़े का अंडा होता है जिस के ऊपर कवच चढ़ा होता है. यह अंडा शरीर के जिस भी अंग में पहुंच जाता है वहां धीरेधीरे आकार में बड़ा होना शुरू हो जाता है. सिस्ट का शरीर के अंदर सब से प्रिय निवास स्थान या तो फेफड़ा होता है या फिर जिगर यानी लिवर. इस के अलावा मस्तिष्क, दिल, हाथ व पैर की मांसपेशियां और कभीकभी शरीर की हड्डियों के अंदर भी पाई जाती है.

यह कीड़ा सिर्फ 5 मिलीमीटर लंबा होता है. यह (कीड़ा) पहले कुत्ते की आंतों में निवास करता है और इस (कीड़े) की जीवनलीला 5 महीने से ले कर तकरीबन 2 साल तक होती है. अपनी इस छोटी सी जीवनयात्रा में ही यह कुत्ते की आंतों से निकलने वाले मल पदार्थों के जरिए लाखों की संख्या में अंडे, धरती की मिट्टी में पहुंचा चुका होता है.

ऐसे पहुंचती है शरीर में सिस्ट

हमारे देश में गंदगी, कीचड़ व नाले की भरमार है. मलमूत्र व कचरा जमीन पर खुलेआम पड़ा होता है. कुत्ते जहांतहां मलमूत्र त्याग कर देते जिस से जमीन और वातावरण दूषित होता है.

कहने का मतलब यह है कि मिट्टी, पानी व हवा में इस कीड़े (इकाइनोकोकस) के अंडों की भरमार है और ऐसी गंदी जगहों पर खोमचे वाले, चाट वाले, फलों का रस निकालने वाले, भेलपुरी बेचने वाले लाइन लगा कर खड़े होते हैं. जाहिर है कि खुले वातावरण में बिकने वाले खाद्य पदार्थों का इन कीड़ों के अंडों से मिश्रित हवा व पानी से आच्छादित होना निश्चित है. इस में कोई शक नहीं कि जब आप परिवार या मित्रों के साथ तफरीह के लिए निकलेंगे तो भला इन खुले आसमान में सड़कों के किनारे हवा के झोंकों से टकराते लुभावने भारतीय फूड का आनंद उठाने से पीछे नहीं हटेंगे. जब गरमागरम मसालेदार खाना आप के पेट में पहुंचेगा तो वह अकेला नहीं होगा बल्कि अपने साथ सिस्ट बनाने वाले अंडे भी समेटे होगा. आप को पता ही नहीं चलेगा क्योंकि ये कीड़े के अंडे इतने बारीक होते हैं कि आंख से दिखते ही नहीं.

फेफड़े में सिस्ट

पेट में अंडे पहुंचने के बाद उस के अंदर का कीड़ा बाहर निकल आता है और आंत की दीवार को छेद कर आंतों में स्थित खून की नलियों के जरिए जिगर में पहुंच जाता है और वहां से फिर शरीर के अन्य अंगों को प्रस्थान कर जाता है. शरीर में प्रमुख रूप से यह जिगर यानी लिवर और फेफडे़ में अपना स्थायी पड़ाव डाल लेता है. अपने पड़ाव पर पहुंच कर यह बढ़ना शुरू कर देता है और अपने चारों ओर एक कवच का निर्माण कर ‘हाइडेटिड सिस्ट’ को जन्म देता है और यह धीरेधीरे आकार में बढ़ना शुरू कर देती है. सिस्ट बन जाने पर कवच के अंदर सुरक्षित कीड़ा अपने बच्चों को जन्म देने लगता है और कुछ समय के बाद इन की संख्या काफी मात्रा में हो जाती है जिन्हें मैडिकल भाषा में ‘डौटर सिस्ट’ कहते हैं.

ऐसे हो सकती है सिस्ट

अगर आप ऐसे इलाके में निवास करते हैं जहां भेड़ों व बकरियों को पालने व बेचने का धंधा होता है या फिर आप या आप के बच्चे गलीनुक्कड़ में पाए जाने वाले आवारा कुत्तों के साथ खेलते हैं या उन को स्पर्श करते हैं. या फिर आप ने जो घर पर कुत्ता पाल रखा है उस को न तो नियमित इंजैक्शन लगाते हों और न ही उस की समुचित सफाई का ध्यान रखे हों और वह पालतू कुत्ता घर के अंदर ज्यादा समय बिताने के बजाय बाहर की गंदी नालियों में मुंह मारता घूमता हो, तो सिस्ट रोग हो सकता है.

अगर आप व आप के बच्चे खाना खाने के पहले अपने हाथों को साबुन से न साफ करते हों, जमीन व मिट्टी को स्पर्श करने के बाद बगैर हाथ धोए सीधा खाना खाने लगते हों. अगर आप व आप के बच्चों के गंदे व लंबे नाखून हैं जिन में मिट्टी भरी रहती है. अगर आप सड़कों पर खुली हवा में रखे फू्रट चाट व अन्य फास्ट फूड खाने के शौकीन हैं तो आप को और आप के बच्चों का फेफड़े या जिगर के सिस्ट रोग हो सकते हैं. अगर आप सड़कछाप घटिया ढाबे में नौनवेज खाने के शौकीन हैं तो संभावना इस बात की ज्यादा है कि सिस्ट के कीड़े के अंडों से भरपूर मीट का अधपका टुकड़ा आप के पेट के अंदर जा कर सिस्ट बना सकता है.

अगर आप खांसी, बलगम, छाती दर्द, इस्नोफीलिया से ग्रस्त हैं तथा कभीकभी खांसी के साथ खून भी आ जाता है तो संभावना हो सकती है कि आप छाती के सिस्ट रोग से पीडि़त हों. अगर पेट के दाहिने हिस्से में दर्द होता है और उसी हिस्से में गांठ भी मालूम पड़ती है तो हो सकता है कि जिगर यानी लिवर में सिस्ट विराजमान हो.

इलाज

फेफड़े के सिस्ट रोग से पीडि़त मरीज को चाहिए कि वह किसी अनुभवी थोरेसिक सर्जन से परामर्श करे और उन की निगरानी में जल्द से जल्द इलाज शुरू कर दे वरना फेफड़े की सिस्ट फट जाने पर पीडि़त मरीज को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. छाती का एक्सरे सिस्ट की उपस्थिति को प्रमाणित करने वाली सब से सस्ती व सरल जांच है.

इस के अलावा सिस्ट का आकार, उपस्थित होने का स्थान और इलाज का निर्धारण करने के लिए अन्य आधुनिक जांचें जैसे छाती का मल्टीस्लाइड सीटी स्कैन और एमआरआई की जरूरत पड़ती है. इसलिए हमेशा ऐसे अस्पतालों में जाएं जहां इन सब जांचों की सुविधा हो और एक अनुभवी थोरेसिक सर्जन की उपलब्धता हो. कुछ विशेष अत्याधुनिक खून की जांचों की आवश्यकता भी पड़ सकती है.

सिस्ट के इलाज के निर्धारण में कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है, जैसे सिस्ट का आकार, छाती के अंदर उस का निवास स्थान और मरीज की शारीरिक अवस्था. फेफड़े की सिस्ट का सब से उत्तम और आदर्श इलाज औपरेशन ही है. सिस्ट से ग्रस्त मरीज को चाहिए जितनी जल्दी हो सके, औपरेशन के जरिए फेफड़े की सिस्ट को निकलवा दे. औपरेशन में सिस्ट के साथ फेफड़े का कुछ भाग निकालना पड़ सकता है.

चुनें अत्याधुनिक अस्पताल

औपरेशन में विशेष तकनीक अपनानी पड़ती है जिस में सिस्ट निकालने के पहले ही विशेष दवाएं डाल कर सिस्ट के अंदर पाए जाने वाले तरल पदार्थ में उपस्थित जिंदा कीड़ों को मार कर उन्हें निष्क्रिय करना पड़ता है वरना औपरेशन के बाद भी और नईनई सिस्ट के बनने का खतरा बना रहता है. तरल पदार्थ को छाती के अंदर बगैर गिराए, हिफाजत से निकालना पड़ता है.

एक विशेष दवा अल्बेंडाजोल औपरेशन के पहले व बाद में दी जाती है. इसलिए ऐसे मरीजोें को चाहिए कि किसी बड़े अस्पताल में, जहां अत्याधुनिक औपरेशन थिएटर व आईसीयू की सुविधा हो और जहां फेफड़े के औपरेशन नियमित रूप से होते हों, अपना इलाज कराएं. इस तरह के औपरेशन के लिए एक अनुभवी थोरेसिक सर्जन का होना बहुत जरूरी है.

कभीकभी औपरेशन के बजाय सूई डाल कर फेफड़े की सिस्ट का पानी निकाल कर उस में दवा भरनी पड़ती है. पर यह स्थायी इलाज नहीं है और दूसरे, सूई से निकालते समय सिस्ट के अंदर का पानी छाती के अंदर फैलने का डर रहता है जिस से छाती व दूसरे अंगों में और नईनई अनगिनत सिस्ट के बनने का खतरा पैदा हो जाता है. इसलिए सूई द्वारा इलाज कुछ विशेष परिस्थितियों में ही मजबूरन करना पड़ता है, जहां मरीज की अवस्था ठीक न हो.

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