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‘‘तुम्हें एतराज न हो तो?’’ हरीश बाबू बोले.

‘‘कह कर तो देखिए, हो सकता है न हो,’’ सावित्री मुसकुराई.

‘‘क्यों न सुधीर सपरिवार यहीं आ कर रहे. इतना बड़ा घर है. सब मिलजुल कर रहेंगे तो अकेलापन खलेगा नहीं.’’ हरीश बाबू का प्रस्ताव सावित्री को जंच गया. वैसे भी सुमंत को गोद लेने पर मकान उन्हीं लोगों का होगा. रुपयापैसा क्या कोई अपने साथ ले कर जाएगा. एक दिन मौका पा कर सावित्री ने सुधीर से अपने मन की बात कही. सुधीर तो यही चाहता था. इसी बहाने उसे रहने का स्थायी ठौर मिल जाएगा. साथ में दोनों का लाखों का बैंकबैलेंस. थोड़ी नानुकुर के बाद सुधीर सपरिवार आ कर रहने लगा. घर की रौनक बढ़ गई. घर संभालने का काम सुनीता के कंधों पर आ गया. हरीश बाबू, सावित्री नौकरी पर चले जाते तो सुनीता ही घर का सारा काम निबटाती. उन्हें समय पर खानापीना मिल जाता, साथ में मन बहलाने के लिए सुमंत की घमाचौकड़ी.

हरीश बाबू ने सुमंत की हर जरूरतें पूरी कीं. शहर के अच्छे स्कूल में नाम लिखवाया. जिस चीज की जिद करता, चाहे कितनी ही महंगी हो, अवश्य दिलवाते.

सुधीर के रहते हुए 6 महीने से ज्यादा हो गए. एक रात हरीश बाबू और सावित्री ने फैसला लिया कि जो काम कल करना है उसे अभी करने में क्या हर्ज है.

लिहाजा, आपसी सलाह से सुमंत को गोद लेने के फैसले को एक दिन दोनों ने मूर्तरूप दे दिया. गोदनामे की एक शानदार पार्टी दी. पार्टी में उन्होंने अपने सारे रिश्तेदारों और दोस्तों को बुलाया. उन का सगा भाई नटवर भी आया. वह हरीश बाबू के इस गोदनामे से खुश नहीं था. सो, अपनी नाखुशी जाहिर करने में उस ने कोई कसर नहीं छोड़ी. हरीश बाबू शुरू से अपनी पत्नी की ही करते आए.

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