बहुत से लोग मोटापे को सेहत की निशानी समझते हैं, जोकि सही नहीं है. जो अधिक मोटे हैं उन्हें मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदयरोग आदि बीमारियां होने का खतरा आम वजन के लोगों के मुकाबले ज्यादा होता है. इसलिए डाक्टर मोटे शरीर वालों को यह सलाह जरूर देते हैं कि अपना वजन कम करें. क्योंकि मोटापा शरीर की कार्यक्षमता को कम करने के अलावा जीवन को घटाता भी है.

मोटापा है क्या

शरीर में जरूरत से ज्यादा मात्रा में चरबी का जमा होना ही मोटापा है. सवाल उठता है कि शरीर की चरबी को किस तरह मापा जाए? इस के लिए कई तरह की विधियां प्रचलित हैं लेकिन सब से सरल विधि है शरीर का वजन लेना, फिर ऊंचाई के अनुसार आदर्श वजन वाली तालिका से उस का मिलान करना कि वजन ज्यादा है या कम. इस के अलावा डाक्टर भुजा के ऊपरी भाग के सामने की पेशियों की त्वचा की मोटाई को एक यंत्र द्वारा नाप कर भी मोटापे का पता करते हैं.

मोटापे के कारण

भोजन द्वारा ऊर्जा लेने और उस के खर्च में असंतुलन होने से मोटापा बढ़ता है. जरूरत से ज्यादा कैलोरी वाला भोजन लिया जाता है तो वह चरबी के रूप में शरीर की त्वचा के नीचे जमा हो जाता है. मोटापे के कई दूसरे कारण भी हो सकते हैं.

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मोटापा बढ़ाने वाले कारक

उम्र : ज्यादातर व्यक्तियों में 30 से 45 वर्ष की उम्र के बीच मोटापा पाया जाता है. औरतों में युवावस्था शुरू dietहोने और मासिक धर्म के बंद होने के समय मोटापा बढ़ने की संभावना अधिक होती है. कई महिलाएं प्रसव के बाद मोटी हो जाती हैं.

सामाजिक व आर्थिक कारण : संपन्न लोगों में ज्यादातर मोटे होने की बीमारी होती है. इस के अलावा हमेशा बैठ कर कार्य करने वाले या शारीरिक श्रम न करने वालों को मोटापा अकसर घेरता है, जबकि मजदूर वर्ग में यह कम पाया जाता है.

पैतृक गुण : जिन परिवारों में मातापिता मोटे होते हैं उन के बच्चों के भी मोटे होने की संभावना अधिक होती है.

अंत:स्रावी ग्रंथियों में गड़बड़ी : शरीर में मौजूद थायराइड, पिट्यूटरी आदि अंत:स्रावी ग्रंथियां भी व्यक्ति के दुबले या मोटे होने के लिए जिम्मेदार होती हैं. आमतौर पर एक वयस्क स्त्री में चरबी की मात्रा जवान पुरुष से दोगुनी होती है. गर्भावस्था एवं मासिक धर्म बंद होते समय औरतों में अकसर चरबी की मात्रा बढ़ जाती है. ऐसा अंत:स्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित हार्मोन में परिवर्तन के कारण होता है. इसी तरह इन ग्रंथियों की कुछ बीमारियों से भी मोटापा बढ़ जाता है.

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भोजन : शरीर की जरूरत से अधिक कैलोरी और चरबीयुक्त भोजन, वजन बढ़ाने में सहायक होता है. यहां तक कि केवल 20 ग्राम वाला एक ब्रैड का टुकड़ा, यदि अतिरिक्त मात्रा में रोज खाया जाए तो वजन बढ़ सकता है. इसी तरह 20 मिनट पैदल चलने वाला व्यक्ति कार से जाने लगे या पैदल चलना छोड़ दे तो भी उस का वजन बढ़ सकता है. बच्चों में चौकलेट और कुछ न कुछ फास्ट फूड खाने की आदतें भी वजन बढ़ाने में सहायक होती हैं.

दवाएं : कुछ खास दवाएं जैसे स्टीरायड्स, गर्भनिरोधक गोलियां, इंसुलिन आदि लंबे समय तक लेने से भी वजन बढ़ सकता है, क्योंकि इन से भूख बढ़ती है. इस कारण भोजन अधिक मात्रा में लिया जाता है और व्यक्ति मोटा हो जाता है.

मोटापे की जटिलताएं

मोटापा न केवल कई गंभीर बीमारियों को जन्म देता है बल्कि इस से व्यक्ति की कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है. मोटापे के कारण होने वाली कुछ प्रमुख जटिलताएं ये हैं :

मानसिक जटिलताएं : बहुत से लोग मानसिक रूप से परेशान रहते हैं. वे समाज में खुद को समायोजित नहीं कर पाते. इस से उन में हीनभावना घर कर जाती है. युवतियां और युवक मोटापे के चलते अपनी आकर्षणहीनता को ले कर अवसादग्रस्त हो जाते हैं. इस कारण उन में मानसिक और यौन संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. इस से उन का व्यवहार भी सामान्य नहीं रह पाता.

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वजन बढ़ने से यांत्रिक व्यवधान : मोटे व्यक्तियों में सपाट पैर तथा कमर, रीढ़ और घुटनों का गठिया हो जाता है. इस कारण उन्हें चलनेफिरने और काम करने में तकलीफ होती है. चरबी जमा होने के कारण पेट और पैरों की पेशियों के संकुचन के कारण हृदय की ओर जाने वाली रक्तवाहिकाओं के प्रवाह में बाधा पड़ती है. नतीजतन, हर्निया और वेरिकोज वेन्स जैसी बीमारियां हो सकती हैं. बता दें कि वेरीकोज वेन्स में पैरों की नसें फूल जाती हैं. पेट, पीठ और सीने पर अधिक चरबी एकत्र होने से सांस लेने की प्रक्रिया में बाधा पहुंचती है. इस कारण मोटे व्यक्तियों को थोड़ी सी मेहनत के बाद सांस लेने में कठिनाई होने लगती है. उन के फेफड़ों में संक्रमण होने की संभावना भी बढ़ जाती है. इस के अलावा उन में चुस्तीफुर्ती का अभाव भी रहता है. इस के अलावा मोटी स्त्रियों में प्रसव संबंधी जटिलताएं भी अधिक होती हैं.

चयापचय संबंधी रोग : मोटापे का मधुमेह से घनिष्ठ संबंध है. मोटे लोगों में विशेषकर बर्गर इंसुलिन निर्भरता वाला मधुमेह अकसर होते देखा गया है. मोटे लोगों में सामान्य की अपेक्षा मधुमेह होने के लगभग दोगुने अवसर होते हैं. मोटे व्यक्तियों में कोलैस्ट्रौल और ट्राइग्लिसराइड्स की मात्रा भी बढ़ जाती है जो हृदय रोगों को जन्म देती है. इस के अलावा पित्ताशय की पथरी होना भी मोटे व्यक्तियों में आम बात है.

हृदय और रक्तवाहिकाओं संबंधी रोग : मोटे व्यक्ति के हृदय को शरीर में रक्त संचार करने के लिए अधिक कार्य करना पड़ता है इसलिए उन्हें अकसर उच्च रक्तचाप का रोग हो जाता है. मोटापे के कारण हृदय वाहिका यानी कोरोनरी आर्टरी में अवरोध या स्कीमिक हार्ट डिसीज होने के बारे में विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं. लेकिन जैसा कि उल्लेखित किया जा चुका है कि अधिक चरबी के कारण रक्त में कोलैस्ट्रौल की मात्रा बढ़ जाती है जो उक्त तरह के हृदयरोगों को जन्म देने में सहायक होती है, साथ ही रक्तचाप भी बढ़ाती है. यह उच्च रक्तचाप हृदय रोगों को जन्म देता है.

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मोटे व्यक्तियों की जीवनावधि : उपरोक्त जटिलताओं को दृष्टिगत रखते हुए यह बात आश्चर्यजनक नहीं है कि मोटे व्यक्ति सामान्य लोगों की अपेक्षा कम जीते हैं और उन में मृत्युदर अधिक होती है. लेकिन इस बात के भी पर्याप्त प्रमाण हैं कि वजन में उचित तरीके से कमी कर ली जाए तो मृत्युदर में कमी की जा सकती है और व्यक्ति सामान्य जीवनावधि तक जी सकता है.

मोटापे का इलाज

मोटापा कम करने का सीधा सा सिद्धांत है कि जरूरत से कम कैलोरी वाला आहार लिया जाए और पर्याप्त व्यायाम भी साथ में किया जाए. एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि मोटापा घटाना थोड़ा सा कठिन अवश्य है लेकिन असंभव बिलकुल नहीं है. इस के लिए आवश्यकता है, दृढ़ इच्छाशक्ति और सतत प्रयत्नशील रहने की.

भोजन में सुधार, व्यायाम, उपवास इत्यादि को अपनाकर मोटापे को कम किया जा सकता है. मोटापा घटाने से कुछ रोग जैसे रक्तचाप, सांस की तकलीफ इत्यादि तो अपनेआप ही ठीक हो जाते हैं. उपवास जानकार व्यक्ति की देखरेख में करें.

भोजन में परिवर्तन

बगैर भोजन में परिवर्तन किए मोटापे से निजात पाना संभव नहीं है. यदि केवल व्यायाम से कुछ वजन कम कर दिया जाए और भोजन में कमी न की जाए तो व्यायाम बंद करते ही वजन फिर बढ़ जाएगा. मोटे व्यक्तियों को 800 से 1600 कैलोरी वाली खुराक लेनी चाहिए, साथ ही हर हफ्ते वजन करते रहना चाहिए. इस में किसी चिकित्सक या इस कार्य से जुड़े व्यक्तियों का सहयोग लेना अच्छा रहता है. मध्यम आयु की मोटी स्त्रियां प्रतिदिन 800 से 1000 किलो कैलोरी वाली खुराक ले कर अपना वजन कम कर सकती हैं. लेकिन शारीरिक परिश्रम का कार्य करने वाले जो पुरुष कम खाना नहीं खा सकते वेलगभग 1500 कैलोरी भोजन के रूप में प्रतिदिन ले सकते हैं. अपने आहार में नीबू पानी, कच्चा सलाद एवं कम कैलोरी वाले आहार का समावेश करें. संभव हो तो मांसाहार छोड़ दें.

आधुनिक उपाय

वजन कम करने या मोटापा घटाने वाले आजकल बहुत से उपकरण बाजार में मिलने लगे हैं. घर में ही साइकिलिंग करने और चलने की मशीनें आती हैं जिन्हें क्रमश: हैल्थ साइकिल और वौकर कहते हैं. जो लोग बाहर घूमनाफिरना नहीं कर सकते वे इन उपकरणों की सहायता ले सकते हैं. शरीर के जिन हिस्सों की चरबी कम करनी होती है उन हिस्सों की त्वचा पर दबाव देने वाले उपकरण जैसे टमी रोलर और थाइ रोलर भी आते हैं. लेकिन इन सब की एक सीमा होती है. अत्यधिक बढ़ा हुआ वजन तो कम भोजन और नियमित व्यायाम से ही घटाया जा सकता है.

दवाओं द्वारा चिकित्सा : दवाएं भोजन द्वारा चिकित्सा किए जाने की जगह नहीं ले सकतीं. इन का सीमित उपयोग कुछ चुने हुए रोगियों पर चिकित्सक की देखरेख में किया जाता है. एम्फीटामिन, फेनटेरामिन इत्यादि दवाएं भोजन के पूर्व लेने से भूख कम लगती है, लेकिन इन्हें उच्च रक्तचाप के रोगियों व हृदय रोगियों को नहीं दिया जाता और इन के दुष्प्रभाव भी होते हैं.

रेशेयुक्त आहार : प्रयोगों द्वारा यह ज्ञात हुआ है कि रेशेयुक्त आहार लेने से कुछ वजन कम किया जा सकता है. रेशों में जो मेथिल सेल्यूलोज होता है वह बगैर पचे ही बाहर निकल जाता है लेकिन पेट भरने से अन्य तरह के कैलोरी वाले खाने में कमी हो जाती है. आजकल बाजार में मिलने वाले मोटापा कम करने के आहार इसी सिद्धांत पर आधारित होते हैं.

शल्य चिकित्सा : विदेशों में अधिक मोटापे के लिए शल्य चिकित्सा की जाती है. इस से आंतों की लंबाई कम कर देते हैं, जिस से आंतों द्वारा खाना ज्यादा मात्रा में अवशोषित नहीं हो पाता. परंतु इस तरह की शल्य चिकित्सा की जटिलताएं अधिक हैं.

लाइपोसक्शन विधि : यह एक विशेष विधि है जो आजकल विदेशों में प्रचलित है और हमारे देश में भी आ गई है. इस में पेट, नितंबों इत्यादि जगह से त्वचा के नीचे अधिक मात्रा में एकत्र चरबी को दबाव डाल कर मोटी सूई द्वारा बाहर खींच लेते हैं. इस से उस अंग विशेष की मोटाई और आकार कुछ कम हो जाता है. लेकिन यह इलाज महंगा तो है ही, स्थायी भी नहीं है.

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