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घर पर लीजिए कीटो पनीर टिक्का का मजा

पनीर का नाम आते ही सभी के दिमाग में पनीर की कई तरह की रेसिपी ने लगती है. आइए आज बनना जानते हैं पनीर टिक्का.

 

 सामग्री:

– 200 ग्राम पनीर

– 30 ग्राम प्याज

– 1/2 टेबलस्पून वर्जिन आलिव औइल

– 1/2 टेबलस्पून धनिया पाउडर

– 1/2 टेबलस्पून लाल मिर्च पाउडर

– 50 ग्राम लाल शिमला मिर्च

-1 टेबलस्पून लहसुन पेस्ट

– 100 ग्राम हरा शिमला मिर्च

– नमक स्वादनुसार

– 120 ग्राम प्लेन ग्रीक यागर्ट

– 1/2 टेबलस्पून हल्दी पाउडर

– 1 टेबलस्पून अदरक पेस्ट

– 50 ग्राम पीला शिमला मिर्च

कीटो पनीर टिक्का रेसिपी बनाने की वि​धि

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– इस आसान सिंपल रेसिपी को घर पर बनाने के लिए सबसे पहले सारे शिमला मिर्चों को धुलें और उन्हें 2 इंच के टुकड़े में काट दें.

– अब प्याज के छिलके उतारकर इसे क्यूब्स में काट लें.

– इसके बाद पनीर को भी क्यूब के आकार में काटें.

– अब पनीर और सब्जियों के लिए मैरिनेशन बनाएं.

– इसके लिए एक बड़ा मिक्सिंग बोल लें और इसमें ग्रीक यागर्ट, जिंजर -गार्लिक पेस्ट और सारे मसालों को डालकर अच्छी तरह से मिलाएं.

– ये ध्यान रखें कि सारी सामग्रियां आपस में एकसाथ अच्छी तरह से मिक्स हो जाना चाहिए.

– जब ये आपस में मिक्स हो जाएं तो इसमें सभी कटी सब्जियां और पनीर डालें और एक घंटे के लिए मैरिनेट होने के लिए रेफ्रिजरेटर में रख दें.

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– बोल को ढक्कन से ढकना न भूलें.

– आखिर में रेफ्रिजरेटर से मैरिनेटेड पनीर और सब्जियां निकालें.

– इन मैरिनेटेड सब्जियों को एक -एक करके सींक में डालें और अलग रख दें.

– अब मीडियम आंच पर पैन गर्म कर लें और इसे औलिव आइल से ग्रीज कर लें.

– अब पनीर टिक्का जो कि सींक में लगा हुआ है उसे पैन पर रखें और तबतक पकाएं जबतक कि पनीर का बेस साइड गोल्डन न हो जाए.

– फिर इसे पलटकर दूसरे साइड भी पकाएं.

–  कीटो पनीर टिक्का रेसिपी बनकर तैयार है.

– इसे प्याज और हरी चटनी के साथ गर्मागर्म सर्व करें.

मेरी उम्र 25 वर्ष है, मुझे पीरियड्स में असहनीय दर्द होता है, क्या दर्दनिवारक दवा खानी चाहिए?

सवाल
मेरी उम्र 25 वर्ष है. मुझे पीरियड्स में असहनीय दर्द होता है. क्या दर्दनिवारक दवा खानी चाहिए?

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जवाब
दर्दनिवारक दवा सीधे किडनियों पर प्रभाव डालती है. यह लेना सही नहीं है. दरअसल, संतुलित आहार और व्यायाम की कमी के चलते शरीर में सहन करने की शक्ति नहीं रहती है, जिस से दर्द का अनुभव ज्यादा होता है. साथ ही कई बार पीरियड्स के दौरान फ्लो ठीक से नहीं हो पाता है, जिस कारण भी अधिक दर्द होता है.

कई बार हारमोन की समस्या से भी ऐसी दिक्कतें आती हैं. अगर लगातार दर्द बना रहता है तो बिना देर किए किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञ की सलाह लें.

पीरियड्स की डेट आने से पहले ही हर लड़की को डर सा लगने लगता है कि अब फिर से दर्द सहना पड़ेगा. मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द में लड़कियां परेशान हो जाती हैं और उन्‍हें मेडीसीन खाने के अलावा कुछ भी नहीं सूझता है.

पीरियड्स के दौरान, मांसपेशियों में संकुचन आने के कारण उनमें ऑक्‍सीजन का प्रवाह सही से न होने के कारण दर्द होने लगता है. ऐसे में दवा से इस दर्द को बंद करना सबसे आसान होता है.

पीरियड्स के दिनों में दर्द कम करने वाली घरेलू दवा.

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आवश्‍यक सामग्री

1. जीरा – 2 चम्‍मच

2. शहद – 1 चम्‍मच

3. हल्‍दी – 1 चम्‍मच

तैयार करने की विधि

– एक पैन में थोड़ा पानी उबाल लें. इसमें जीरा, हल्‍दी और शहद को मिला दें. सभी को सामग्रियों को चलाते हुए उबलने दें.

– गाढ़ा हो जाने पर इसे एक कप में पलट लें. इसे पिएं. इस पेय को छाने नहीं और न ही इसे ठंडा होने फ्रिज में रखें.

– इस पेय को दिन में दो बार पीने से दर्द नहीं होता है.

आपकी जानकारी के लिए हम बताना चाहेंगे कि जीरा में ऐसे गुण होते हैं जो पेट में उठने वाली मरोड़ को शांत कर देते हैं और रक्‍त में ऑक्‍सीजन का प्रवाह अच्‍छी तरह करते हैं. वहीं, हल्‍दी और शहद में एंटी-इंफ्लामेन्‍टरी गुण होते हैं जो पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द से राहत प्रदान करते हैं. आप भी इस पेय को पीरियड्स के दौरान पी सकती हैं इसका कोई साइड इफेक्‍ट नहीं होता है, हां स्‍वाद में थोड़ा अटपटा लग सकता है.

सूर्यमुखी से भरपूर आमदनी

सूर्यमुखी की खेती देश में पहली बार साल 1969 में उत्तराखंड के पंतनगर में की गई    थी. यह एक ऐसी तिलहनी फसल है, जिस पर प्रकाश का कोई असर नहीं पड़ता. यानी यह फोटोइनसेंसिटिव है. हम इसे खरीफ, रबी और जायद तीनों मौसमों में उगा सकते हैं. इस के बीजों में 45-50 फीसदी तक तेल पाया जाता है. इस के तेल में एक खास तत्त्व लिनोलिइक अम्ल पाया जाता है. लिनोलिइक अम्ल शरीर में कोलेस्ट्राल को बढ़ने नहीं देता है. अपनी खूबियों की वजह से इस का तेल दिल के मरीजों के लिए दवा की तरह काम करता है.

प्रकाश का कोई असर न पड़ने की वजह से सूर्यमुखी अचानक होने वाले मौसम के बदलावों को भी सह लेता    है. इसीलिए सूर्यमुखी की खेती किसानों को भरपूर आमदनी देती है. इसी वजह से देश के अलगअलग हिस्सों में इस की खेती का रकबा बढ़ता ही जा रहा है.

1.जमीन : इस की खेती अम्लीय और क्षारीय जमीनों को छोड़ कर हर तरह की जमीनों में की जा सकती है. वैसे ज्यादा पानी सोखने वाली भारी जमीन इस के लिए    ज्यादा अच्छी होती है.

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2.खेत की तैयारी : खेत में भरपूर नमी न होने पर पलेवा लगा कर जुताई करनी चाहिए. पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद साधारण हल से 2-3 बार जुताई कर के खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए या रोटावेटर का इस्तेमाल करना चाहिए.

3.किस्में : सूर्यमुखी की 2 तरह की किस्में होती हैं, एक कंपोजिट और दूसरी हाईब्रिड. कंपोजिट किस्मों में माडर्न व सूर्या खास हैं. हाईब्रिड किस्मों में केवीएसएच 1, एसएच 3222, एमएसएफएच 17 व वीएसएफ 1 वगैरह शामिल हैं.

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4.बोआई का समय व विधि : जायद फसल की बोआई फरवरी के अंतिम हफ्ते से ले कर मध्य मार्च तक कर लेनी चाहिए, जबकि बसंतकालीन बोआई 15 जनवरी से 10 फरवरी तक कर लेनी चाहिए. लाइन से बोआई करना बेहतर होता है. बोआई हल के पीछे कूंड़ों में 4-5 सेंटीमीटर गहराई पर करें और लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर रखें.

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5.बीजों की मात्रा : हाईब्रिड किस्म होने पर 5-6 किलोग्राम और कंपोजिट किस्म होने पर 12-15 किलोग्राम बीजों का प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए.

कन्यादान-भाग 2 :मंजुला श्रेयसी की शादी से इतनी दुखी क्यों थी?

यह सब कहते हुए श्रेयसी की आंखें नम हो उठी थीं. तभी वह मंजुला से लिपट कर बोली थी, ‘मम्मी, मेरा घर कहां है? आप अच्छी मम्मी हैं. वे गंदी अम्मा हैं, मुझे मारती हैं.’

‘‘मैडम, क्या बात है बड़ी अपसैट दिख रही हो?’’ अनिरुद्ध की आवाज से वह वर्तमान में लौट आई थी. ‘‘सुनिए जी, श्रेयसी अपनी ससुराल में खुश तो रहेगी न? मेरे मन में अपराधबोध है कि मैं ने उसे अपने से दूर कर के भाभी के पास क्यों भेजा?’’

‘‘तुम तो फुजूल की बात करती हो. वह उन की बेटी है, जैसा वे चाहें वैसा करें.’’

जैसेजैसे श्रेयसी बड़ी होती गई, गुमसुम और चुप होती गई. श्रेयसी की आंखों का सूनापन देख मंजुला अपराधबोध से भर जाती. वह सोचती कि यदि वह उसे अपने पास रख सकती तो शायद श्रेयसी खुश रहती. भाभी के कड़क और दकियानूसी स्वभाव के कारण श्रेयसी सब से दूर, अकेली खड़ी दिखाई पड़ती. हंसनेचहचहाने की उम्र में भी उस के चेहरे पर गंभीरता का आवरण होता था.

उन्मुक्त और आयुषी धीरेधीरे बड़े होते गए और भाईसाहब व भाभी ने अपने बच्चों को मंजुला के यहां भेजने पर प्रतिबंध लगा दिया था.

उन्मुक्त की शादी में श्रेयसी को बहुत दिनों बाद देखा था मंजुला ने. श्रेयसी के लिए फैशनेबल कपड़े पहनना मना था. उसे केवल सलवारकुरता पहनने की इजाजत थी. दुपट्टा हर समय पहनना जरूरी था. भाभी की हर समय की डांटफटकार से श्रेयसी को अकेले में आंसू बहाते हुए देख, वह भी रो पड़ी थी.

उस के आंसू देख भाभी गरम हो कर बोली थीं, ‘अपने टेसुए किसी और को दिखाना, अपनी चालचलन ठीक रखो. लड़कियों का जोरजोर से हंसना अच्छा नहीं होता. इतनी जोर के ठहाके क्यों लगाती हो? चल कर नाश्ता लगाओ.’

यदि वह उन्मुक्त से मजाक करती, तो भाभी जोर से डांट कर कहतीं, ‘लड़कों के बीच घुसी रहती हो, चलो, ढोलक बजाओ और औरतों के साथ बैठो.’

ऐसी बातें सुन कर सब का मन खराब हो गया था. भैयाभाभी के चले जाने के बाद सब ने चैन की सांस ली थी. सब अपनीअपनी दुनिया में व्यस्त हो गए थे. प्यारी सी बहू छवि के आने के बाद घर में रौनक आ गई थी.

8 महीने बीते थे कि एक दिन मंजुला के मोबाइल पर भाभी का फोन आया, ‘जीजी, श्रेयसी रिसर्च करना चाहती है. इसलिए हम लोग आप पर विश्वास कर के उसे लखनऊ भेज रहे हैं. वह लड़कियों वाले होस्टल में रहेगी. आप लोगों के विश्वास पर ही उसे आगे पढ़ने के लिए भेज रहे हैं. मेरा तो बहुत जी घबरा रहा है. समय बहुत खराब है. आजकल लड़कियों के कदम बहकते देर नहीं लगती है.’

‘भाभी, घबराने की कोई बात नहीं है. श्रेयसी बहुत समझदार है. आप ठीक समझो तो श्रेयसी को मेरे घर पर ही रहने दो. मुझे अच्छा ही लगेगा. छवि और आयुषी के साथ उस को खूब अच्छा लगेगा.’

भाईसाहब और भाभी श्रेयसी को ले कर आए. 3 दिन रह कर होस्टल में उस की सब व्यवस्था करवाई. चुपचुप, सहमी और गंभीर श्रेयसी को देख कर मन में प्रश्नचिह्न उठा, समझ में नहीं आया कि क्या बात है. एक रात अकेले में भाभी अपने मन का गुबार निकालते हुए बोली थीं, ‘जीजी, अब तुम से क्या छिपाएं. श्रेयसी के पीछे एक बदमाश लड़का पड़ा हुआ है, इसलिए इस को वहां से दूर भेजना आवश्यक हो गया था. हम लोगों ने बहुत हाथपैर मारे, लेकिन कहीं भी रिश्ता तय नहीं हो पाया. इसलिए मजबूरी में यहां ऐडमिशन करवाना पड़ रहा है. इस की सुंदरता इस की दुश्मन बन बैठी है.’

सच ही श्रेयसी को कुदरत ने बड़े मन से गढ़ा था. दूध सा गोरा, सफेद संगमरमर सा रंग, बड़ीबड़ी आंखें, लंबे व काले घुंघराले बाल. बिना मेकअप के भी वह परी सी दिखती थी.वे आगे बोली थीं, ‘जीजी, जीजाजी तो उसी कालेज में ही प्रोफैसर हैं. वे श्रेयसी पर निगाह रखेंगे. हम इस के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हैं. जैसे ही कहीं बात बनी, तुरंत शादी कर देंगे.’ भाभी अपने दिल का बोझ हलका कर के भाईसाहब के साथ अपने घर चली गई थीं.

श्रेयसी होस्टल में रह रही थी. उस की रूमपार्टनर जूली थी, जिस से उस की दोस्ती हो गई थी. उस का भाई रौबर्ट उसी कालेज में लैक्चरर था. जूली के साथ ही श्रेयसी उस के भाई से मिली. रौबर्ट पहली नजर में ही श्रेयसी की सुंदरता पर मर मिटा. शायद मन ही मन श्रेयसी को भी वह अच्छा लगा था.

रौबर्ट ईसाई था परंतु सुलझा और समझदार युवक था. वह अनिरुद्ध से कालेज में कई बार मिल चुका था. अनिरुद्ध उसे पसंद भी करते थे. भाईसाहब और भाभी के लिए उस का ईसाई होना सब से बड़ा दुर्गुण था. श्रेयसी छोटे शहर और भाभी के अनावश्यक प्रतिबंधों से आजाद होने के बाद होस्टल के रंगबिरंगे माहौल में जल्द ही रम गई. उस के तो पर ही निकल पड़े. पहले तो हर शनिवार की शाम को आती रही, फिर धीरेधीरे उस ने आना बंद कर दिया.

आयुषी और छवि जब भी उस से मिलने गए, वह उन्हें मिली नहीं. फोन पर कभीकभी बात हो जाती तो अब उस के सुर बदल चुके थे. अब वह हौलीवुड फिल्में, पिकनिक, पीजा, बर्गर और पार्टी की बातें करने लगी थी.

उस को घर आए बहुत दिन हो गए थे, इसलिए एक दिन मंजुला ने खुद फोन कर के उस से आने को कहा. वह आई, जींसटौप में बहुत स्मार्ट लग रही थी. अनिरुद्ध उसे देख कर बड़े खुश हुए, ‘श्रेयसी, तुम होस्टल में रह कर बिलकुल बदल गई हो.’

‘फूफाजी, मेरी रूममेट जूली कहती है, ‘जैसा देश वैसा भेस’ समय के साथ कदम मिला कर चलो, तभी आगे बढ़ पाओगी. मैं सलवारसूट पहनती थी तो पूरे डिपार्टमैंट में मेरा नाम बहनजी पड़ गया था. सैमिनार में जाती, तो क्लास के लड़केलड़कियां खीखी कर हंसते थे, और मुझे हूट करते थे. मैं ने अपने पुराने चोले को उतार फेंका. इस में जूली ने मेरी बहुत मदद की.’

फिर वह होस्टल चली गई. एक शाम कालेज से आने के बाद अनिरुद्ध बोले, ‘मंजुला, तुम श्रेयसी को बुला कर एक दिन बात करो. आज स्टाफरूम में रौबर्ट के साथ श्रेयसी का नाम जोड़ कर लोग खुसुरफुसुर कर रहे थे. ये दोनों यहांवहां अकसर साथ में दिखाई भी पड़ जाते हैं.’

मंजुला परेशान हो उठी थी. उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘भाईसाहब और भाभी तो ये सब बातें सुन कर आपे से बाहर हो जाएंगे. उन्होंने तो हमीं लोगों की जिम्मेदारी पर उसे यहां छोड़ा था.’

‘हां, मैं भी यह सब देखसुन कर परेशान हूं. श्रेयसी के तो रंगढंग ही बदल गए हैं.’

वह मन ही मन सोचती रह गई कि एक शाम श्रेयसी अपनी दोस्त जूली के साथ उस की स्कूटी पर आ गई. सब की प्रश्नवाचक निगाहों का जवाब दे कर बोली, ‘बूआ, यह जूली है. इसे हिंदी नहीं आती, इसलिए यह मुझ से हिंदी सीख रही है. और यह मुझे फ्रैंच सिखा रही है. हम लोग लाइब्रेरी में पढ़तेपढ़ते बोर हो गए थे, तो जूली बोली कि चलो, अपनी फैमिली से मिलवाओ. बस, मैं इसे ले कर यहां आ गई.’

‘अच्छा किया, जो तुम आ गईं. मुझे तुम से कुछ बात भी करनी है. तुम्हारी यह दोस्त हम लोगों का खाना पसंद करे तो खाना खा कर जाना.’

जूली खाने की बात सुन कर खिल उठी, ‘मुझे इंडियन खाना बहुत पसंद है. मेरी मां भी इंडियन खाना कभीकभी बनाती हैं. मेरे पापा तो इंडिया में रहते हुए पूरे शाकाहारी बन गए हैं.’

कन्यादान-भाग 3 :मंजुला श्रेयसी की शादी से इतनी दुखी क्यों थी?

‘श्रेयसी, इधर मेरे साथ अंदर आना. तुम से कुछ बात करनी है,’ मंजुला ने कहा.

‘बूआ, क्या बात है? बड़ी गंभीर दिख रही हैं आप, कोई खास बात?’

‘साफसाफ शब्दों में कहूं तो तेरा और रौबर्ट का कोई चक्कर चल रहा है क्या?’

उस के चेहरे का उड़ा हुआ रंग देख समझ में आ गया था कि बात सच है. वह अपने को संभाल कर बोली, ‘बूआ, ऐसा कुछ नहीं है जैसा आप सोच रही हैं. उस से एकाध बार हायहैलो जूली की वजह से हुई है, बस.’ इतना कह

कर वह तेजी से जूली के पास जा कर बैठ गई.

खाने की मेज पर श्रेयसी का तमतमाया चेहरा देख पहले तो सब शांत रहे, फिर थोड़ी ही देर में शुरू हो गया बातों का सिलसिला. फिल्म, फैशन, एसएमएस, फेसबुक, यूट्यूब की गौसिप पर कहकहे. जूली हिंदी अच्छी तरह नहीं समझ पा रही थी, इसलिए वह खाने का स्वाद लेने में लगी हुई थी. मिर्च के कारण उस की आंख, नाक और कान सब लाल हो रहे थे. चेहरा सुर्ख हो रहा था. खाना खाने के बाद आंखों के आंसू पोंछते हुए वह बोली, ‘वैरी टैस्टी, यमी फूड.’ उस की बात सुनते ही सब जोर से हंस पड़े थे. श्रेयसी किचन से रसगुल्ला लाई और उस के मुंह में डाल कर बोली, ‘पहले इस को खाओ, फिर बोलना.’

श्रेयसी जूली की स्कूटी पर बैठी और बाय कहती हुई चली गई. अनिरुद्ध बोले, ‘जूली अच्छी लड़की है.’

अगले दिन वे कालेज की सीढि़यां चढ़ रहे थे, उसी समय प्रोफैसर रंजन तेजी से उन की तरफ आए, ‘क्यों अनिरुद्धजी, श्रेयसी तो आप के किसी रिलेशन में है न. आजकल रौबर्ट के साथ उस के बड़े चरचे हैं?’ अनिरुद्ध कट कर रह गए, उन्हें तुरंत कोई जवाब न सूझा. धीरे से अच्छा कह कर वे अपने कमरे में चले गए थे.

उसी शाम रौबर्ट और श्रेयसी को फिर से साथ देख कर उन का माथा ठनका था. वे रौबर्ट के मातापिता से मिलने के लिए शाम को अचानक रौबर्ट के घर पहुंच गए. रौबर्ट उन्हें अपने घर पर आया देख, थोड़ा घबराया, परंतु उस के पिता मैथ्यू और मां जैकलीन ने खूब स्वागतसत्कार किया. मैथ्यू रिटायर्ड फौजी थे. अब वे एक सिक्योरिटी एजेंसी में मैनेजर की हैसियत से काम कर रहे थे. जैकलीन एक कालेज में इंगलिश की टीचर हैं. गरमगरम पकौडि़यों और चटनी का नाश्ता कर के अनिरुद्ध का मन खुश हो गया था.

वे प्रसन्नमन से गुनगुनाते हुए अपने घर पहुंचे. ‘क्या बात है? आज बड़े खुश दिख रहे हैं.’

‘मंजू, आज रौबर्ट की मां के हाथ की पकौडि़यां खा कर मजा आ गया.’

‘आप रौबर्ट के घर पहुंच गए क्या?’

‘हांहां, बड़े अच्छे लोग हैं.’

‘आप ने उन लोगों से श्रेयसी के बारे में बात कर ली क्या?’

‘तुम तो मुझे हमेशा बेवकूफ ही समझती हो. तुम्हारे आदरणीय भाईसाहब की अनुमति के बिना भला मैं कौन होता हूं, किसी से बात करने वाला? लेकिन अब मैं ने निश्चय कर लिया है कि एक बार तुम्हारे भाईसाहब से बात करनी ही पड़ेगी.’ मंजुला नाराजगीभरे स्वर में बोली, ‘देखिए, आप को मेरा वचन है कि आप इस पचड़े में पड़ कर उन से बात न करें. आप मेरे भाईसाहब को नहीं जानते, किसी को बुखार भी आ जाए तो सीधे अपने महाराजजी के पास भागेंगे. उन के पास जन्मकुंडली दिखा कर ग्रहों की दशा पूछेंगे. उन से भभूत ला कर बीमार को खिलाएंगे और घर में ग्रहशांति की पूजापाठ करवाएंगे. डाक्टर के पास तो वे तब जाते हैं जब बीमारी कंट्रोल से बाहर हो जाती है.

‘जब से मैं ने होश संभाला है, भाईसाहब को कथा, भागवत, प्रवचन जैसे आयोजनों में बढ़चढ़ कर भाग लेते हुए देखा है. वे पंडे, पुजारी और कथावाचकों को घर पर बुला कर अपने को धन्य मानते हैं. उन सब को भरपूर दानदक्षिणा दे कर वे बहुत खुश होते हैं.’

‘मंजुला, तुम समझती क्यों नहीं हो? यह श्रेयसी के जीवन का सवाल है. रौबर्ट के साथसाथ उस का परिवार भी बहुत अच्छा है.’

‘प्लीज, आप समझते क्यों नहीं हैं.

2-4 दिनों पहले ही भाभी का फोन आया था कि जीजी, आप के भाईसाहब एक बहुत ही पहुंचे हुए महात्माजी को ले कर घर में आए थे. उन्होंने उन की जन्मकुंडली देख कर बताया है कि आप की बिटिया का मंगल नीच स्थान में है, इसलिए मंगल की ग्रहशांति की पूजा जब तक नहीं होगी, तब तक शादी के लिए आप के सारे प्रयास विफल होंगे.

‘जीजी, महात्माजी बहुत बड़े ज्ञानी हैं. वे बहुत सुंदर कथा सुनाते हैं. उन के पंडाल में लाखों की भीड़ होती है. कह रहे थे, सेठजी दानदाताओं की सूची में शहरभर में आप का नाम सब से ऊपर रहना चाहिए. आप के भाईसाहब ने एक लाख रुपए की रसीद तुरंत कटवा ली. वे कह रहे थे कि शास्त्रों में लिखा है कि ‘दान दिए धन बढ़े’ दान से बड़ा कोई भी धर्म नहीं है.

‘महात्माजी खुश हो कर बोले थे कि सेठजी, आप की बिटिया अब मेरी बिटिया हुई, इसलिए आप बिलकुल चिंता न करें. उस के विवाह के लिए मैं खुद पूजापाठ करूंगा. आप को कोई भी चिंता करने की जरूरत नहीं है.’ मंजुला अपने पति अनिरुद्ध को बताए जा रही थी, ‘भाभी कह रही थीं कि नए भवन के उद्घाटन के अवसर पर महात्माजी भाईसाहब के हाथों से हवन करवाएंगे.’

‘वाह, आप के भाईसाहब का कोई जवाब नहीं है. अरे, जिन को महात्मा कहा जा रहा है वे महात्मा थोड़े ही हैं, वे तो ठग हैं, जो आम जनता को अपनी बातों के जाल में फंसा कर दिनदहाड़े ठगते हैं. छोड़ो, मेरा मूड खराब हो गया इस तरह की बेवकूफी की बातें सुन कर.’

‘इसीलिए तो आप से मैं कभी कुछ बताती ही नहीं हूं. जातिपांति के मामले में तो वे इतने कट्टर हैं कि घर या दुकान, कहीं भी नौकर या मजदूर रखने से पहले उस की जाति जरूर पूछेंगे.’ ‘मान गए आप के भाईसाहब को. वे आज भी 18वीं शताब्दी में जी रहे हैं. मेरा तो सिर भारी हो गया है. एक गिलास ठंडा पानी पिलाओ.’

‘अब तो आप अच्छी तरह समझ गए होंगे कि वे कितने रूढि़वादी और पुराने खयालों के हैं. आप भूल कर भी उन के सामने कभी भी ये सब बातें मत कीजिएगा.’

अनिरुद्ध बोले, ‘कम से कम एक बार श्रेयसी को अपने मन की बात भाईसाहब से कहनी चाहिए.’

‘अनिरुद्ध, आप समझते नहीं हैं, लड़की में परिवार वालों के विरुद्ध जाने की हिम्मत नहीं होती. उस के मन में समाज का डर, मांबाप की इज्जत चले जाने का ऐसा डर होता है कि वह अपने जीवन, प्यार और कैरियर सब की बलि दे कर खुद को सदा के लिए कुरबान कर देती है.’

‘इस का मतलब तो यह है कि बड़े भाईसाहब ने तुम्हारे साथ भी अन्याय किया था.’

‘मेरे साथ भला क्या अन्याय किया था?’ ‘तुम्हारी शादी जल्दी करने की हड़बड़ी देख मेरा माथा ठनका था. क्या सोचती हो, मैं नासमझ था. तुम्हारा उदास चेहरा, रातदिन तुम्हारी बहती आंखें, मुझे देखते ही तुम्हारी थरथराहट, संबंध बनाते समय तुम्हारी उदासीनता, तुम्हारी उपेक्षा, कमरा बंद कर के रोनाबिलखना, प्रथम रात्रि को ही तुम्हारी आंसुओं से भीगा हुआ तकिया देख कर मैं सब समझ गया था. ‘तुम्हारी भाभी का पकड़ कर फेरा डलवाना. तुम्हारे कानों में कभी दीदी फुसफुसा रही थीं तो कभी तुम्हारी बूआ. विदा के समय भाईसाहब के क्रोधित चेहरे ने तो पूरी तसवीर साफ कर दी थी. उन का बारबार कहना, ‘ससुराल में मेरी नाक मत कटवाना’ मेरे लिए काफी था.

‘मैं परेशान तो था, परंतु धैर्यपूर्वक तुम्हारे सभी कार्यकलापों को देखता रहा और चुप रहा. वह तो उन्मुक्त पैदा हुआ तो उस से ममता हो जाने के बाद तुम पूर्णरूप से मेरी हो पाई थीं.’ यह सब सुन कर मंजुला की अंतर्रात्मा कांप उठी थी. अनिरुद्ध ने तो आज उस की पूरी जन्मपत्री ही खोल कर पढ़ डाली थी. इधर उन्मुक्त और छवि शादी के लिए शौपिंग में लगे हुए थे. आयुषी भी अपने लिए लहंगा ले आई थी. परंतु अभी तक श्रेयसी से किसी की बात नहीं हो पाई थी, इसलिए मंजुला का मन उचटाउचटा सा था. एक दिन कालेज से आने के बाद अनिरुद्ध बोले, ‘‘रौबर्ट बहुत उदास था, उस ने बताया कि श्रेयसी के मम्मीपापा आए थे और उस को अपने साथ ले गए. उस के बाद से उस का फोन बंद है. सर, एक बार उस से बात करवा दीजिए.’’

उदास मन से ही सही, श्रेयसी को देने के लिए, मंजुला अच्छा सा सैट ले आई थी. शादी में 4-5 दिन ही बाकी थे कि मंजुला का फोन बज उठा. उधर भाईसाहब थे, ‘‘मंजुला, श्रेयसी घर से भाग गई. वह हम लोगों के लिए आज से मर चुकी है.’’ और उन्होंने फोन काट दिया था. घर में सन्नाटा छा गया था. सब एकदूसरे से मुंह चुरा रहे थे. मंजुला झटके से उठी, ‘‘अनिरुद्ध जल्दी चलिए.’’

‘‘कहां?’’

‘‘हम दोनों श्रेयसी का कन्यादान ले कर उस को उस के प्यार से मिला दें. मुझे मालूम है, इस समय श्रेयसी कहां होगी. जल्दी चलिए, कहीं देर न हो जाए.’’ बरसों बाद आज मंजुला अपने साहस पर खुद हैरान थी.

उन्मुक्त बोला, ‘‘मां, भाई के बिना बहन की शादी अच्छी नहीं लगेगी. मैं भी चल रहा हूं. आप लोग जल्दी आइए, मैं गाड़ी निकालता हूं.’’

छवि और आयुषी जल्दीजल्दी लहंगा ले कर निकलीं. दोनों आपस में बात करने लगीं, ‘‘श्रेयसी दी, लहंगा पहन कर परी सी लगेंगी.’’ सब जल्दीजल्दी निकले और खिड़की से आए हवा के तेज झोंके ने श्रेयसी की शादी के कार्ड को कटीपतंग के समान घर से बाहर फेंक दिया था.

 

 

Crime Story: फांसी के फंदे पर लटके नोट

सौजन्य- सत्यकथा 

15वर्षीय रुद्र नारायण देशमुख 9वीं कक्षा में पढ़ रहा था. वह छत्तीसगढ़ के बालोद जिले
के गांव सलोनी के रहने वाले पिलेश्वर देशमुख का बेटा था. सलोनी से करीब 6 किलोमीटर दूर आलबरस गांव है जो दुर्ग जिले में आता है. इस गांव में हर साल 23 दिसंबर को मड़ई मेला लगता है. यह मेला आसपास के जिलों में बहुत प्रसिद्ध है. मेले में हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं. रुद्र नारायण को उस के दूर के जीजा पंचराम देशमुख ने मेला देखने को बुलाया तो वह अपने पिता की साइकिल उठा कर आलबरस चौक पर पहुंच गया, जहां पंचराम उस का इंतजार कर रहा था.

रुद्र को देखते ही पंचराम चहका, ‘‘तुम तो बड़े होशियार निकले, बिल्कुल समय पर आ गए.’’साइकिल खड़ी कर रुद्र नारायण पंचराम की ओर उन्मुख हुआ, ‘‘जीजा, बचपन में मैं एक बार मेला देखने आया था. कितने साल गुजर गए, फिर दोबारा नहीं आ पाया. आज आप के कहने पर आया हूं.’’पंचराम ने उस से पूछा, ‘‘किसी को बताया है कि सीधे चले आए हो.’’‘‘नहीं जीजा,’’ किसी को नहीं बताया. बताता तो, पिताजी अकेले आने देते क्या? देखो न कितनी दूर से साइकिल चला कर आया हूं.’’ रुद्र के स्वर में गर्व था.
यह सुन कर पंचराम ने मन ही मन खुश होते कहा, ‘‘शाबाश, तुम ने बहुत अच्छा किया, जो घर पर किसी को नहीं बताया. तुम कोई चिंता मत करना मैं हूं ना, मैं तुम्हें मड़ाई मेला घुमाऊंगा, खिलाऊंगा…और पिलाऊंगा भी?

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‘‘क्या मतलब जीजा.’’ रुद्र ने पूछा.‘‘रुद्र, अब तुम कोई बच्चे नहीं रहे…अच्छा बताओ, तुम ने कभी शराब पी है कि नहीं.’’‘‘एक बार पी थी दोस्तों के साथ. उस के बाद फिर कभी नहीं पी.’’ रुद्र नारायाण ने आंखें नीची कर के झिझकते हुए कहा.‘‘तो इस में शरमाने की क्या बात है, शराब पीना तो मर्दों की निशानी है.’’ पंचराम ने उसे उत्साहित किया, तो रुद्र खिल उठा.‘‘चलो आज मैं तुम्हें दुनिया का आनंद दिलाता हूं. पहले थोड़ा मजा लेंगे फिर मड़ई घूमेंगे. आज मेरे साथ रहने पर देखना कितना आनंद आता है.’’ पंचराम ने कहा, फिर उसे ले कर वह शराब की दुकान पर गया.

शराब और पास की एक दुकान से खाने के लिए कुछ सामान ले कर दोनों एक खेत के पास बैठ गए. वहां पर दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. पंचराम देशमुख ने रुद्र नारायण को योजनानुसार ज्यादा शराब पिला दी.
न न करते भी, सोचीसमझी साजिश के तहत, रुद्र नारायण को पंचराम शराब पिलाता रहा. अबोध रुद्र नारायण मुंह बोले जीजा की इधरउधर की बातों में डूबा शराब पी कर मदमस्त हो गया. उस पर इतना नशा चढ़ा कि वह आंखें बंद कर वहीं लेट गया.

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पंचराम यही चाहता था. शराब के नशे में चूर हो चुके रुद्र को अर्ध चेतना अवस्था में लेटा छोड़ कर वह अपनी साइकिल में बंधी रस्सी खोल लाया और मौके का फायदा उठा कर उस ने रुद्र के गले में रस्सी का फंदा बना कर उस का गला घोंट दिया. गले में फंदा कसते ही रुद्र ने आंखें खोल कर पंचराम को देखा और मौत के आगोश में समा गया.रुद्र की हत्या करने के बाद पंचराम ऐसे खुश हुआ जैसे उस की वर्षों की साध पूरी हो गई हो. रुद्र ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उस का मुंह बोला जीजा, पंचराम देशमुख उस की उस तरह बेदर्दी से हत्या कर देगा.

पंचराम ने रुद्र नारायण के गले में पड़ी रस्सी निकाल कर जोरों से अट्टहास लगाया. उसे लग रहा था कि अब उस की मुराद पूरी हो जाएगी. अब उसे लखपति बनने से कोई नहीं रोक सकता. दरअसल उस के गुरु समान मित्र और तथाकथित तांत्रिक धनराज नेताम ने बताया था कि अगर वह फांसी की रस्सी उस के पास ले कर आएगा तो वह देखते ही देखते उसे रुपयोंपैसों से मालामाल कर देगा.

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पंचराम देशमुख जिला दुर्ग के आलबरस गांव का रहने वाला था. उस ने होश संभाला तो उस के पास एक ही हुनर था वाल पेंटिंग बनाने का. यही काम कर के वह जीवनयापन करने लगा. मगर अब पेंटर का काम कम मिलने लगा था, क्योंकि प्रिंटिंग की दुनिया में फ्लेक्स प्रिंटिंग का युग आ चुका था और लोग कम दर पर फ्लेक्स प्रिंट करवा लेते थे. आमदनी कम हाने पर उस के तंगहाली में दिन कटने लगे. परिवार पालना भी मुश्किल हो गया. पंचराम की ससुराल बलोद जिले के गांव सलोनी में थी. एक बार जब वह अपनी ससुराल गया तो वहीं पर उस की मुलाकात धनराज नेताम से हुई, जो गांव सलोनी में बंदर भगाने के लिए तांत्रिक क्रिया करने आया था. पंचराम को किसी ने धनराज के बारे में बताया कि यह बहुत बड़ा तांत्रिक है.

उस ने बताया कि गांव में बंदरों का आतंक है, जाने कहां से इतने सारे बंदर आ गए जिन से गांव वाले परेशान हैं. कई प्रयास किए गए, मगर बंदरों से छुटकारा नहीं मिला. तब तांत्रिक धनराज को विशेष रूप से बुलाया गया है. धनराज से मिलने के बाद पंचराम बहुत खुश हुआ. चूंकि पंचराम को गांव के लोग दामाद जैसा ही सम्मान देते थे. इसलिए तांत्रिक के साथ पंचराम की भी अच्छी खातिरदारी हुई. जब एक साथ जाम छलके तो पंचराम और तांत्रिक की दोस्ती हो गई. बातोंबातों में धनराज ने उस से कहा, ‘‘मैं ने जो तंत्र क्रिया की है, उस का कमाल देखना. इस के बाद गांव में एक भी बंदर नहीं दिखेगा.’’

यह सुन कर पंचराम आश्चर्य चकित रह गया. उस ने तंत्रमंत्र के बारे में सुना था मगर किसी तांत्रिक से मुलाकात पहली बार हुई थी. धनराज ने आगे कहा, ‘‘मैं किसी को भी लखपति बना सकता हूं.’’
‘‘कैसे?’’ यह सुन कर बरबस पंचराम ने पूछा.‘‘मुझे बस एक फांसी की रस्सी ला दो… फिर देखो, रुपए बरसेंगे.’’ धनराज नेताम ने शराब का गिलास होंठों पर लगा कर कहा.‘‘यह कौन सी बड़ी बात है.’’ पंचराम ने बोला, ‘‘फांसी की रस्सी तो मैं ला सकता हूं.’’‘‘तो लाओ, फिर देखना, कैसे पत्तों की तरह आकाश से नोट बरसाऊंगा.’’

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धनराज नेताम की आश्चर्य मिश्रित बातें सुन कर पंचराम देशमुख उस का मुरीद बन गया. दूसरे दिन आश्चर्यजनक घटना हुई कि गांव में धनराज द्वारा की गई तांत्रिक किया के बाद किसी को एक भी बंदर देखने को नहीं मिला. यह चमत्कार नहीं, संयोग था. मगर इस से धनराज के प्रति पंचराम देखमुख की आस्था बढ़ गई.

पंचराम उस का भक्त बन गया और लखपति बनने के लिए फांसी की रस्सी ढूंढने की कोशिश तेज कर दी. एक दिन दुर्ग जिले के अंडा थाने में तैनात एक कांस्टेबल से दूर का संबंध निकाल कर पंचराम उस के पास पहुंच गया और उस से कहा, ‘‘भैया, क्या फांसी की रस्सी मिल सकती है?’’उस की बात सुनते ही कांस्टेबल ने चौंकते हुए कहा, ‘‘क्या करोगे तुम उस का वह भला तुम्हें कैसे मिल सकती है, वह तो जल्लाद के पास मिलेगी. और जल्लाद तुम्हें वो क्यों देगा.’’यह सारी जानकारी मिलने पर वह निराश हो गया. पंचराम का चेहरा लटक गया तो कांस्टेबल ने पूछा ‘‘अच्छा यह तो बाताओ, फांसी की रस्सी का क्या करोगे?’’
‘‘अब तुम से क्या छिपाना. सुना है कि फांसी की रस्सी मिल जाए तो रुपए बरसते हैं.’’ पंचराम ने बताया.
यह सुन कर कांस्टेबल हंसने लगा और उसे समझाया, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता. यदि ऐसा होता तो सारे जल्लाद करोड़पति होते. ये सब फालतू की बातें हैं.’’

मगर पंचराम के दिमाग से यह बात इतनी आसानी से कैसे निकल सकती थी. वह तो करोड़पति बनने के सपने देख रहा था. इसलिए वह फांसी की रस्सी की ताक में लगा रहा. जब चारों तरफ निराशा मिली तो एक दिन उस की निगाह रुद्र नारायण पर पड़ी. 15 वर्षीय रुद्र नारायण उस की ससुराल वाले गांव सलोनी में रहता था. वह उसे जीजा कहता था. पंचराम सोचने लगा कि क्यों न उसे मार कर फांसी की रस्सी तैयार कर ले. उस ने तांत्रिक धनराज नेताम को इस बारे में बताया तो उस ने स्वीकृति देते हुए कहा, ‘‘चलेगा, बस रस्सी फांसी की हो.’’ इस के बाद पंचराम ने पिलेश्वर देखमुख के घर आनाजाना बढ़ा दिया.

पंचराम गांव वालों की निगाह में दामाद बाबू था, पिलेश्वर देशमुख उस का सम्मान करता और अपने दुखसुख की बातें साझा करता था. इसी का फायदा उठा कर पंचराम ने 23 दिसंबर, 2019 को योजनानुसार रुद्र को मड़ई मेला घुमाने के लिए बुलाया और मौका देख कर उस के गले में रस्सी का फंदा डाल उस की हत्या कर दी. फिर उसी दिन शाम को वह घटनास्थल पर दोबारा पहुंचा और उस की लाश के ऊपर केरोसिन डाल कर, आग लगा दी.29 दिसंबर, 2019 शनिवार को दोपहर दुर्ग जिले के थाना अंडा के टीआई राजेश झा को किसी ने फोन कर के सूचना दी कि गांव आलबरस के पास एक खेत में लाश पड़ी है.

लाश मिलने की सूचना पा कर राजेश झा चौंके, क्योंकि साल के अंतिम दिन चल रहे थे और क्षेत्र में यह वारदात हो गई थी. खबर मिलते ही वह एक एसआई और 2 कांस्टेबलों को साथ ले कर मौके की तरफ रवाना हो गए.साल के अंतिम महीने और अंतिम दिनों में पुलिस विभाग सारे पेंडिंग पड़े प्रकरणों का निवारण करता है, जिस की वजह से काफी व्यस्तता रहती है. व्यस्तता अंडा थाने में भी थी, मगर टीआई काम छोड़ कर तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. उन्होंने घटना स्थल का सूक्ष्मता से अवलोकन किया.

अधजली लाश के पास शराब की खाली 3 बोतलें, गिलास मिले, नीले रंग की टीशर्ट का एक जला हुआ टुकड़ा, बेल्ट और जूते भी पड़े मिले. लाश किसी बालक की थी. घटनास्थल पर मौजूद कोई भी ग्रामीण उस लाश की शिनाख्त नहीं कर सका था.मामला संगीन दिखाई पड़ रहा था. उन्हें लग रहा था कि जरूर किसी ने बालक के साथ अनाचार किया होगा और उसे जला कर साक्ष्य छिपाने की कोशिश की है. टीआई ने उच्च अधिकारियों एएसपी (ग्रामीण) लखन पटले व एसएसपी अजय कुमार यादव को घटना की जानकारी दे दी. उच्च अधिकारियों के निर्देश पर टीआई ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

हत्या का केस दर्ज होते ही टीआई राजेश झा ने इस मामले की जांच शुरू कर दी. सब से पहले उन्होंने अपने जिले के सभी थानों के अलावा सीमावर्ती जिला बालोद के थानों में भी अज्ञात बालक की लाश मिलने की सूचना भेज कर और जानना चाहा कि उन के क्षेत्र से इस आयु वर्ग का कोई बालक लापता तो नहीं है.
टीआई झा को बालोद जिले के अर्जुंदा थाने से खबर मिली कि 26 दिसंबर, 2019 को एक 15 साल के किशोर रुद्र नारायण देशमुख के लापता होने की सूचना वहां थाने में दर्ज है. पता चला कि रुद्र 23 दिसंबर को अपने गांव सलानी से कहीं गया था. गुमशुदगी की सूचना रुद्र के पिता ने दर्ज कराई थी.

टीआई राजेश झा ने रुद्र के पिता पिलेश्वर व परिजनों को अंडा थाने बुलवाया और घटनास्थल पर मिली बेल्ट, टीशर्ट का टुकड़ा आदि दिखाया. उन चीजों को देखते ही पिलेश्वर देशमुख फफक कर रो पड़ा. वह बोला, ‘‘साहब, यह मेरे बेटे रुद्र की टीशर्ट का ही टुकड़ा है, बेल्ट भी उसी की है. मुझे बच्चे की लाश दिखाई जाए.’’ टीआई ने एक एसआई के साथ पिलेश्वर व परिजनों को हास्पिटल भेजा जहां की मोर्चरी में रुद्र की लाश रखी थी. पिलेश्वर और उस के साथ आए लोगों ने लाश की शिनाख्त रुद्र नारायण देशमुख के रूप में की. इस के बाद लाश का पोस्टमार्टम कराया गया.

डाक्टरों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि रुद्र की हत्या रस्सी के फंदे से गला घोट कर की गई थी. गले पर रस्सी के रेशे भी पाए गए. पोस्ट मार्टम रिपोर्ट से साफ हो चुका था कि किसी ने रुद्र की हत्या गला घोट कर की और बाद में जला दी. मगर यह हत्या क्यों की गई? पुलिस के सामने यह एक बड़ा सवाल था.
टीआई राजेश झा ने मृतक के पिता पिलेश्वर जो कि एक किसान है से पूछा कि क्या आप की किसी से कोई दुश्मनी वगैरह तो नहीं है. या किसी पर कोई शक है, जो रुद्र की हत्या कर सकता है?

इस पर पिलेश्वर ने बताया कि उस की किसी से रंजिश नहीं है. साथ ही उस ने यह भी बताया कि रुद्र का दूर के जीजा पंचराम देशमुख से बहुत लगाव था. वह उस से काफीकाफी देर तक फोन पर भी बातें करता था. कल पंचराम का हमारे पास फोन आया था, वह पूछ रहा था कि क्या कोई आरोपी पकड़ा गया है? पुलिस इस केस में अब क्या कर रही है?पिलेश्वर के मुंह से यह सुनते ही टीआई राजेश झा का ध्यान पंचराम की तरफ केंद्रित हो गया. उन्होंने पंचराम के बारे में पिलेश्वर से सारी जानकारी ली और पंचराम को फोन किया, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था.

तब पुलिस टीम के साथ वह आलबरस गांव स्थित उस के घर पहुंच गए. लेकिन वह घर से गायब था. उस की पत्नी ने बताया कि वह तो 24 दिसंबर से घर नहीं आए हैं.अब टीआई राजेश झा को इस मामले में अपराध की बू आती दिखने लगी. उन्होंने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो चौंकाने वाली जानकारी मिली. उस की लोकेशन धमतरी जिले के किसी गांव की मिली. उन्होंने आरक्षक वीरनारायण, राजकुमार चंद्रा, डी. राव, अलाउद्दीन और राजकुमार दिवाकर की टीम को पंचराम की गिरफ्तारी के लिए भेजा. यह टीम 6 घंटों का सफर कर के धमतरी जिले के गांव गुटकेल पहुंची. यह टीम फोन के टावर की मदद से तांत्रिक धनराज के घर पहुंच गई. वहां पुलिस टीम को पता चला कि धनराज और पंचराम जंगल में चूहा मारने गए हुए हैं.

पुलिस टीम जाल बिछा कर पंचराम का इंतजार करने लगी. 31 दिसंबर, 2019 को जब पंचराम व धनराज जंगल से 2 बड़े चूहे पकड़ कर घर लौटे तभी पुलिस ने उन्हें दबोच लिया और हिरासत में ले कर अंडा थाने ले आई. दोनों से पूछताछ की गई तो पंचराम ने स्वीकार कर लिया कि रस्सी से गला घोट कर उस ने ही रुद्र की हत्या की थी.

उस ने बताया कि वह लखपति बनना चाहता था, तांत्रिक धनराज ने उसे बताया था कि फांसी की रस्सी, नारियल, सिंदूर ला दे तो एक सप्ताह में वह हवा में पत्तों की तरह नोटों की वर्षा कर सकता है, इसीलिए उस ने रस्सी से गला घोंट कर रुद्र की हत्या की थी.पुलिस ने आरोपी पंचराम देशमुख और तथाकथित तांत्रिक धनराज नेताम के इकबालिया बयान दर्ज कर के उन्हें भादंवि की धारा 302, 120 बी, 34 के तहत गिरफ्तार कर प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रैट श्रीमती प्रतीक्षा शर्मा के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

‘ऑनलाइन क्लासेज बच्चों के लिए बनीं मुसीबत’

जब से कोरोना आया बच्चों के स्कूलों पर भी पहरा लग गया है, पिछले पांच माह से स्कूलों में ताले पड़े हैं और स्कूलों का स्थान ऑनलाइन क्लासेज ने ले लिया है. ऑनलाइन क्लासेस में बच्चों को स्कूल नहीं जाना पड़ रहा है और कोरोना के इस कठिन दौर में अभिभावक भी अपने लाडलों को अपनी आंखों सामने देखकर सन्तुष्ट हैं. बच्चों के लिए मोबाइल और लेपटॉप की व्यवस्था करने के प्रयास में कुछ घरों की आर्थिक अवस्था भी चरमराने लगी है .ऑनलाइन क्लासेज में अभिभावकों की अपनी समस्याएं हैं तो बच्चों की भी कुछ समस्याएं कुछ कम नहीं हैं. टीनेजर हेल्पलाइन उमंग के अनुसार मार्च से लेकर अगस्त तक हेल्पलाइन में 4,965 फोन कॉल्स 6 वीं से लेकर 12 वीं तक के बच्चों के आये जिसमें उन्होंने उमंग हेल्पलाइन की काउंसलर माया बोहरा को अपनी समस्याएं बताई जिनसे लग रहा था कि ऑनलाइन क्लासेज में वे कैसी कैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं-

सातवीं कक्षा का अक्षत कहता है” मैं अपने घर में  नहीं रहना चाहता, यहां सब मेरी ऑनलाइन क्लास को लेकर मुझे परेशान करते हैं, मेरा मजाक उड़ाते हैं इसलिए मेरा मन करता है कि मैं यहां से भाग जाऊँ.”

आठवी कक्षा की तनीशा काउंसलर के सामने फूट फूट कर रो पड़ती है और कहती है,” मेम क्लास के दौरान मेरी मम्मी मेरे साथ ही बैठती हैं और जब मुझे किसी प्रश्न का उत्तर नहीं आता और दूसरा छात्र बता देता है तो मेरी मम्मी मुझे डांटती है कि तुझे इतना तक नहीं पता इसके अलावा पूरे दिन मुझे दूसरे बच्चों से कंपेयर करती रहतीं हैं, इससे अच्छा तो स्कूल था जहां से मम्मी को कुछ ज्यादा पता तो नहीं चलता था.”

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10 वीं के छात्र रिदम की अलग ही परेशानी है वह कहता है कि दो कमरों के हमारे फ्लैट में जब मेरी ऑनलाइन क्लास चल रही होती है उसी समय मम्मी पापा में झगड़ा प्रारम्भ हो जाता है मैं कितने भी इशारे करूँ वे लोग समझते ही नहीं जिससे पूरी क्लास के बच्चों और टीचर्स के सामने मेरी स्थिति खराब हो जाती है,”

कक्षा 5 की छात्रा पायल कहती है ऑनलाइन क्लास के दौरान पूरे समय मुझे डर लगा रहता है कि कहीं टीचर मुझे डांट न दे वरना क्लास के बाद मेरे भाई बहन मिलकर मेरी खिल्ली उड़ाएंगे.

11 वीं कक्षा का आयुष रोते हुए कहता है,  “अपने पांच भाई बहनों में मैं सबसे छोटा हूँ. ऑनलाइन क्लास के दौरान मेरे भाई बहन आपस में जोर जोर से बात करते है, हंसते हैं, दरवाजे के पीछे से मेरे टीचर्स को देखते हैं फिर बाद में उनके पढ़ाने के अंदाज को जज करते हैं

उनकी नकल उतारते हैं जिससे मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित ही नहीं कर पाता”

ऑनलाइन पढ़ाई में इस प्रकार की समस्याएं अनेकों बच्चों को आ रही हैं जिससे बच्चों का  मानसिक स्वास्थ्य गड़बड़ाने लगा है, वे चिड़चिड़े और परेशान रहने लगे हैं. माता पिता के अनावश्यक हस्तक्षेप उनके लिए मुसीबत बन गया है. यहां तक कि कई बच्चे डिप्रेशन के शिकार भी होने लगे हैं. फिलहाल तो स्कूलों के खुलने के भी आसार नजर नहीं आते, ऐसे में बच्चों की पढ़ाई के लिए ऑनलाइन क्लास ही एकमात्र विकल्प है. उमंग हेल्पलाइन की काउंसलर माया बोहरा परिजनों को कुछ सलाह देती हुईं कहतीं हैं-

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-ऑनलाइन क्लास के समय बच्चों के पास या बगल में बैठने के स्थान  पर अप्रत्यक्ष रूप से नजर रखें.

-बच्चों का मनोविज्ञान बहुत जटिल होता है. बड़ों की अपेक्षा उनके सोचने का तरीका भिन्न होता है.  अतः उनके साथ इस समय बेहद नरमी और प्यार से पेश आएं. छोटी से छोटी बात भी उन्हें बहुत आहत कर देती है.

-ऑनलाइन क्लास के दौरान उन्हें पर्याप्त स्पेस दें. सम्भव हो तो उस दौरान उनके कमरे से बाहर रहें ताकि वे अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर सकें.

-क्लास के बाद उनकी टीचर्स का न ही मजाक बनाएं और न ही नकल करें.

-इस समय उन्हें बिल्कुल वैसे ही सरल सहज रहने को कहें जैसे वे स्कूल में रहते हैं क्योंकि ऑनलाइन क्लास का कॉन्सेप्ट उनके लिए भी  एकदम नया है.

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-क्लास समाप्त होने के बाद उनसे प्यार से बातचीत करें परन्तु किसी प्रकार का कटाक्ष और हंसी उड़ाने से बचें.

-बच्चे की ऑनलाइन क्लास के दौरान घर में शांति बनाए रखने का प्रयास करें. जिस कमरे में बच्चा क्लास अटैंड कर रहा है उसकी साफ सफाई या तो क्लास से पहले कर लें अथवा क्लास के बाद करें.

-बच्चे की क्लास प्रारम्भ होने से पूर्व बच्चे को समय से उठाकर ब्रेकफास्ट करवाएं ताकि बच्चा अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर सके.

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इस वैश्विक आपदा में समाज के प्रत्येक वर्ग की ही भांति बच्चे भी प्रभावित हुए हैं. भले ही ऑनलाइन क्लास का कॉन्सेप्ट बच्चों और अभिभावकों दोनों के लिए एकदम नया है परंतु अभिभावक अपनी समझदारी से इसे बच्चों के लिए उपयोगी और आदर्श बना सकते हैं क्योंकि बच्चे बहुत भोले और नादान होते हैं टीचर्स और कक्षा के अन्य बच्चों के समक्ष वे अपने  परिवार की एक आदर्श तस्वीर बनाकर रखते हैं और हम अभिभावकों का दायित्व है कि हम उस तस्वीर की गरिमा को बरक़रार रखें साथ ही उनके टीचर्स का भी सम्मान करें.

‘नागिन 5’ एक्ट्रेस सुरभि चंदना के नए वीडियो पर फैंस ने किए ऐसे कमेंट

एकता कपूर का सुपर नैचुरल शो नागिन 5 में हिना खान अपने किरदार को खतेम करके जा चुकी हैं. हिना खान के जाते ही अभिनेत्री सुरभी चंदना की एंटी हो चुकी है. सुरभी अपने दमदार किरदार से एंट्री मार चुकी है.

सुरभी को इस नए अवतार में फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. सुरभी इस सीरियल में नागिन के किरदार में नजर  रही हैं. सुरभी के की एंटी लाल रंग के ड्रेस में हुई जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही थी.

बता दें टीवी के चॉकलेट बॉय कहे जाने वाले शरद मल्होत्रा इस शो निगेटीव रोल में नजर आने वाले हैं. शरद मल्होत्रा का कहना है कि उनकी वाइफ रिस्पी उन्हें निगेटिव रोल में देखकर पहचान ही नहीं पाई.

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इस बात का खुलासा खुद शरद मल्होत्रा ने एक इंटरव्यू में किया है कि मेरी पत्नी और मां कहना था कि मैं हमेशा से एक संस्कारी बेटा और पति रहा हूं इस रोल में वह मुझे स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. दोनों मुझे संस्कारी शरद मल्होत्रा देखना चाहते हैं.

 

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Mouryaaaaaaaaa ❤? #besttimeoftheyear with @ripci.bhatia

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शरद ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा चाहे मैं जैसा भी हूं मेरी मां और पत्नी को मैं पसंद आ रहा हूं. वह लोग इस बात से खुश है कि मैं इस शो का हिस्सा हूं.

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अब हमें बहुत बड़ी जिम्मेदारी मिल चुकी है इस शो को अच्छा और सुपरहिट बनाने का, हम पूरी केशिश कर रहे हैं कि इस शो को बेहतर बनाएं.

 

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Just cheeeel !!! ❤? #highteawithwifey @ripci.bhatia

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मैं इस सीरियल में वीर का किरदार निभा रहा हूं , मुझे उम्मीद है कि लोग मुझे इश किरदार में पसंद करेंगे, वैसे में अपने असल जिंदगी में आज भी शांत हूं और वैसा ही हूं जैसे पहले था.

पार्थ समथान कसौटी जिंदगी के सेट पर नहीं करते किसी से बात, जल्द कहने वाले हैं शो को अलविदा

कसौटी जिंदगी 2 के एक्टर पार्थ समथान इन दिनों लगातार चर्चा में बने हुए हैं. पार्थ समथान ने कुछ दिनों पहले फैसला लिया है कि वह सीरियल कसौटी जिंदगी को अलविदा कहने वाले हैं. पार्थ समथान ने यह फैसला अपने निजी जिंदगी की वजह से लिया है.

हालांकि एकता कपूर उन्हें रोकने की लगातार कोशिश कर रही हैं.पार्थ समथान और एकता कपूर में इन दिनों इस बात को लेकर नराजगी भी चल रही है. पार्थ समथान अब सेट पर सिर्फ अपने एपिसोड की शूटिंग को खत्म करने के लिए ही आते हैं.

सूत्रों से खबर आई है कि वह सेट पर सिर्फ अपने काम को पूरा करने के लिए आते हैं और न किसी से बात करते हैं और न हाल पूछते हैं. अपने काम को खत्म करने के बाद वह तुरंत घर निकल जाते हैं.

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पार्थ का यह गंभीर स्वभाव सभी को पसंद नहीं आ रहा है. शो के मेकर्स ने भी मान लिया है कि पार्थ को रोकना अब मुश्किल है.

कसौटी जिंदगी के नेक्स्ट एपिसोड में दिखाया गया है कि मिस्टर बजाज किसी काम के लिए विदेश जाते हैं और उनका वहां एक्सिडेंट हो जाता है.

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पार्थ समथान का किरदार निभाने के लिए कई लोगों का नाम आ रहा है लेकिन माना जा रहा है कि सबसे आगे नाम है वरुण सोबती का.

अब देखना है नेक्स्ट अनुराग बासु को फैंस कितना पसंद करते हैं. वहीं पार्थ समथान और एरिका फार्नाडिश की जोड़ी को फैंस खूब पसंद करते थे.

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कुछ दिनों पहले पार्थ समथान को कोरोना हो गया था जिससे वह कई दिनों तक अपने घर पर होम कोरेंटाइन थें. उसके बाद खबर है कि इस शो की लीड रोल में नजर आने वाली एरिका फर्नाडिश ने भी इस शो को अलविदा कहने का फैसला ले लिया है.

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