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मुखौटा-भाग 3 : निखिल किसकी आवाज से मदहोश हो जाता था?

‘‘कैसी बातें करते हो बेटा. मेरे लिए तो जैसे सरला और सूरज हैं वैसे तुम तीनों हो. जब भी मेरी जरूरत पडे़, बुला लेना, मैं अवश्य आ जाऊंगी.’’

उसी शीला ने अकेले में अपनी बेटी को समझाया, ‘‘बेटी, यही समय है. संभाल अपने घर को अक्लमंदी से. कम से कम अब तो तुझे इस जंजाल से मुक्ति मिली. जब तक जिंदा थी, महारानी ने सब को जिंदा जलाया. कोई खुशी नहीं, कोई जलसा नहीं. यहां उस की दादागीरी में सड़ती रही. इतने सालों के बाद तू आजादी की सांस तो ले सकेगी.’’

अपने गांव जाने से पहले शीला बेटी को सीख देना नहीं भूलीं कि बहुत हो गया संयुक्त परिवार का तमाशा. मौका देख कर कुछ समय के बाद देवरदेवरानी का अलग इंतजाम करा दे. मगर उस से पहले दोनों भाई मिल कर ननद की शादी करा दो, तब तक उन से संबंध अच्छे रखने ही पड़ेंगे. तेरी ननद के लिए मैं ऐसा लड़का ढूंढूंगी कि अधिक खर्चा न आए. वैसे तेरी देवरानी भी कुछ कम नहीं है. वह बहुत खर्चा नहीं करने देगी. ससुर का क्या है, कभी यहां तो कभी वहां पडे़ रहेंगे. आदमी का कोई ज्यादा जंजाल नहीं होता.

दिखावटी व्यवहार, दिखावटी बातें, दिखावटी हंसी, सबकुछ नकली. यही तो है आज की जिंदगी. जरा इन के दिलोदिमाग में झांक कर देखेंगे तो वहां एक दूसरी ही दुनिया नजर आएगी. इस वैज्ञानिक युग में अगर कोई वैज्ञानिक ऐसी कोई मशीन खोजनिकालता जिस से दिल की बातें जानी जा सकें, एक्सरे की तरह मन के भावों को स्पष्ट रूप से हमारे सामने ला सके तो…? तब दुनिया कैसी होती? पतिपत्नी, भाईभाई या दोस्त, कोई भी रिश्ता क्या तब निभ पाता? अच्छा ही है कि कुछ लोग बातों को जानते हुए भी अनजान होने का अभिनय करते हैं या कई बातें संदेह के कोहरे में छिप जाती हैं. जरा सोचिए ऐसी कोई मशीन बन जाती तो इस पतिपत्नी का क्या हाल होता?

‘‘विनी, कल मुझे दफ्तर के काम से कोलकाता जाना है. जरा मेरा सामान तैयार कर देना,’’ इंदर ने कहा.

‘‘कोलकाता? मगर कितने दिनों के लिए?’’

‘‘आनेजाने का ले कर एक सप्ताह तो लग जाएगा. कल मंगलवार है न? अगले मंगल की शाम को मैं यहां लौट आऊंगा, मैडमजी,’’ उस ने बड़े अदब से कहा.

‘‘बाप रे, एक सप्ताह? मैं अकेली न रह पाऊंगी. उकता जाऊंगी. मुझे भी ले चलिए न,’’ उस ने लाड़ से कहा.

‘‘मैं तुम्हें जरूर साथ ले जाता मगर इस बार काम कुछ ज्यादा है. वैसे तो

10-12 दिन लग जाते मगर मैं ने एक हफ्ते में किसी तरह निबटाने का निश्चय कर लिया है. भले मुझे रातदिन काम करना पडे़. क्या लगता है तुम्हें, मैं क्या तुम्हारे बिना वहां अकेले बोर नहीं होऊंगा? अच्छा, बताओ तो, कोलकाता से तुम्हारे लिए क्या ले कर आऊं?’’

‘‘कुछ नहीं, बस, आप जल्दी वापस आ जाइए,’’ उस ने पति के कंधे पर सिर टिकाते हुए कहा.

इंदर ने पत्नी के गाल थपथपाते हुए उसे सांत्वना दी.अगले दिन धैर्यवचन, हिदायतें, बिदाई होने के बाद  आटोरिकशा स्टेशन की ओर दौड़ने लगा. उसी क्षण इंदर का मन उस के तन को छोड़ कर पंख फैला कर आकाश में विचरण करने लगा. उस पर आजादी का नशा छाया हुआ था

जैसे ही इंदर का आटोरिकशा निकला, विनी ने दरवाजा बंद कर लिया और गुनगुनाते हुए टीवी का रिमोट ले कर सोफे में धंस गई. जैसे ही रिमोट दबाया, मस्ती चैनल पर नरगिस आजाद पंछी की तरह लहराते हुए ‘पंछी बनूं उड़ती फिरूं मस्त गगन में, आज मैं आजाद हूं दुनिया के चमन में’ गा रही थी. वाह, क्या इत्तेफाक है. वह भी तो यही गाना गुनगुना रही थी.

‘‘आहा, एक सप्ताह तक पूरी छुट्टी. खाने का क्या है, कुछ भी चल जाएगा. कोई टैंशन नहीं, कोई नखरे नहीं, कोई जीहुजूरी नहीं. खूब सारी किताबें पढ़ना, गाने सुनना और जी भर के टीवी देखना. यानी कि अपनी मरजी के अनुसार केवल अपने लिए जीना,’’ वह सीटी बजाने लगी, ‘ऐ मेरे दिल, तू गाए जा…’ ‘‘अरे, मैं सीटी बजाना नहीं भूली. वाह…वाह.’’

इंदर का कार्यक्रम सुनते ही उस ने अपनी पड़ोसन मंजू से कुछ किताबें ले ली थीं. मंजू के पास किताबों की भरमार थी. पतिपत्नी दोनों पढ़ने के शौकीन थे. उन में से एक बढि़या रोमांटिक किताब ले कर वह बिस्तर पर लेट गई. उस को लेट कर पढ़ने की आदत थी.

गाड़ी में चढ़ते ही इंदर ने अपने सामान को अपनी सीट के नीचे जमा लिया और आराम से बैठ गया. दफ्तर के काम के लिए जाने के कारण वह प्रथम श्रेणी में सफर कर रहा था, इसलिए वहां कोई गहमागहमी नहीं थी. सब आराम से बैठे अपनेआप मेंतल्लीन थे. सामने की खिड़की के पास बैठे सज्जन मुंह फेर कर खिड़की में से बाहर देख रहे थे मानो डब्बे में बैठे अन्य लोगों से उन का कोई सरोकार नहीं था. ऐसे लोगों को अपने अलावा अन्य सभी लोग बहुत निम्न स्तर के लगते हैं.

वह फिर से चारों ओर देखने लगा, जैसे कुछ ढूंढ़ रहा हो. गाड़ी अभीअभी किसी स्टेशन पर रुक गई थी. उस की तलाश मानो सफल हुई. लड़कियां चहचहाती हुई डब्बे में चढ़ गईं और इंदर के सामने वाली सीट पर बैठ गईं. इंदर ने सोचा, ‘चलो, आंखें सेंकने का कुछ सामान तो मिला. सफर अच्छा कट जाएगा.’ वह खयालों की दुनिया में खो गया.

‘वाह भई वाह, हफ्ते भर की आजादी,’ वह मन ही मन अपनी पीठ थपथपाते हुए सोचने लगा, ‘भई इंदर, तेरा तो जवाब नहीं. जो काम 3-4 दिन में निबटाया जा सकता है उस के लिए बौस को पटा कर हफ्ते भर की इजाजत ले ली. जब आजादी मिल ही रही है तो क्यों न उस का पूरापूरा लुफ्त उठाए. अब मौका मिला ही है तो बच्चू, दोनों हाथों से मजा लूट. सड़कों पर आवारागर्दी कर ले, सिनेमा देख ले, दोस्तों के साथ शामें रंगीन कर ले. इन 7 दिनों में जितना हो सके उतना आनंद उठा ले. फिर तो उसी जेल में वापस जाना है. शाम को दफ्तर से भागभाग कर घर जाना और बीवी के पीछे जीहुजूरी करना.’

आप अपनी आंखें और दिमाग को खुला छोड़ दें तो पाएंगे कि एक नहीं, दो नहीं, ऐसी हजारों घटनाएं आप के चारों ओर देखने को मिलेंगी. इंसान जैसा दिखता है वैसा बिलकुल नहीं होता. उस के अंदर एक और दुनिया बसी हुई है जो बाहर की दुनिया से हजारों गुना बड़ी है और रंगीन है. समय पा कर वह अपनी इस दुनिया में विचरण कर आता है, जिस की एक झलक भी वह दुनिया वालों के सामने रखना पसंद नहीं करता.

आज की  दुनिया विज्ञान की दुनिया है. विज्ञान के बल पर क्याक्या करामातें नहीं हुईं? क्या वैज्ञानिक चाहें तो ऐसी कोई मशीन ईजाद नहीं कर सकते जिसे कलाई की घड़ी, गले का लौकेट या हाथ की अंगूठी के रूप में धारण कर के सामने खड़े इंसान के दिलोदिमाग में चल रहे विचारों को खुली किताब की तरह पढ़ा जा सके? फिर चाहे वह जबान से कुछ भी क्यों न बोला करे.

मुझे पूरा विश्वास है कि ऐसा महान वैज्ञानिक अवश्य कहीं न कहीं पैदा हुआ होगा. उस ने ऐसी चीज बनाने की कोशिश भी की होगी. मगर यह सोच कर अपने प्रयत्नों को बीच में ही रोक दिया होगा कि कौन इस बला का आविष्कार करने का सेहरा अपने सिर बांधे? दुनिया वाले तो जूते मारेंगे ही, भला स्वयं के लिए भी इस से बढ़ कर घोर संकट और क्या होगा

 

 

मुखौटा-भाग 2 : निखिल किसकी आवाज से मदहोश हो जाता था?

नरेश ने घूर कर खालिद को देखा फिर अगले ही पल माहौल देखते हुए होंठों पर वही मुसकराहट ले आया.

‘‘पारुल, चिंटू को जरा गलत नजर वालों से बचा कर रखो,’’ आशा ने जया को घूरते हुए कहा. उन दोनों की बिलकुल नहीं पटती थी. दोनों के पति एक ही दफ्तर में काम करते थे. दोनों के आपस में मिलनेजुलने वाले करीबकरीब वही लोग होते थे.इसलिए अकसर इन दोनों का मिलनाजुलना होता और एक बार तो अवश्य तूतू, मैंमैं होती.

‘‘कैसी बातें करती हो, आशा? यहां कौन पराया है? सब अपने ही तो हैं. हम ने चुनचुन कर उन्हीं लोगों को बुलाया है जो हमारे खास दोस्त हैं,’’ पारुल ने हंसते हुए कहा.

तभी अचानक उसे याद आया कि पार्टी शुरू हो चुकी है और उस ने अब तक अपनी सास को बुलाया ही नहीं कि आ कर पार्टी में शामिल हो जाएं. वह अपनी सास के कमरे की ओर भागी. यह सब सास से प्यार या सम्मान न था बल्कि उसे चिंता थीकि मेहमान क्या सोचेंगे. उस ने देखा कि सास तैयार ही बैठी थीं मगर उन की आदत थी कि जब तक चार बार न बुलाया जाए, रोज के खाने के लिए भी नहीं आती थीं. कदमकदम पर उन्हें इन औपचारिकताओं का बहुत ध्यान रहता थादोनों बाहर निकलीं तो मेहमानों ने मांजी को बहुत सम्मान दिया. औरतों ने उन से निकटता जताते हुए उन की बहू के बारे में कुरेदना चाहा.मगर वे भी कच्ची खिलाड़ी न थीं. इधर पारुल भी ऐसे जता रही थी मानो वह अपनी सास से अपनी मां की तरह ही प्यार करती है. यह बात और है कि दोनों स्वच्छ पानी में प्रतिबिंब की तरह एकदूसरे के मन को साफ पढ़ सकती थीं

पार्टी समाप्त होने के बाद सब बारीबारी से विदा लेने लगे.

‘‘पारुल, बड़ा मजा आया, खासकर बच्चों ने तो बहुत ऐंजौय किया.  थैंक्यू फौर एवरीथिंग. हम चलें?’’

‘‘हांहां, मंजू ठीक कहती है. बहुत मजा आया. मैं तो कहती हूं कि कभीकभी इस तरह की पार्टियां होती रहें तो ही जिंदगी में कोई रस रहे. वरना रोजमर्रा की मशीनी जिंदगी से तो आदमी घुटघुट कर मर जाए,’’ आशा ने बड़ी गर्मजोशी से कहा.

सब ने हां में हां मिलाई.

‘‘आजकल इन पार्टियों का तो रिवाज सा चल पड़ा है. शादी की वर्षगांठ की पार्टी, जन्मदिन की पार्टी, बच्चा पैदा होने से ले कर उस की शादी, उस के भी बच्चे पैदा होने तक, अनगिनत पार्टियां, विदेश जाने की पार्टी, वापस आने की पार्टी, कोई अंत हैइन पार्टियों का? हर महीने इन पर हमारी मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा यों ही खर्च हो जाता है.

‘‘आशा की बातों का जया कोई तीखा सा जवाब देने वाली थी कि उस के पति ने उसे खींच कर रिकशे में बिठा दिया और सब ने उन को हाथ हिला कर विदा किया.‘‘तुम ठीक कहती हो, आशा. तंग आ गए इन पार्टियों से,’’ मोहिनी ने दीर्घ निश्वास लेते हुए कहा. उस का परिवार बड़ा था और खर्चा बहुत आता था

‘‘अरे, देखा नहीं उस अंगूठे भर के बच्चे को ले कर पारुल कैसे इतरा रही थी जैसे सचमुच सारे संसार में वही एक मां है और उस का बेटा ही दुनिया भर का निराला बेटा है.’’

‘‘सोचो जरा काली कजरारी आंखें, घुंघराले बाल और मस्तानी चाल, बड़ा हो कर भी यही रूप रहा तो कैसा लगेगा,’’ मोहिनी ने आंखें नचाते हुए कहा. उस का इशारा समझ कर सब ने जोरजोर से ठहाका लगाया.

‘‘भाभीजी, आप ने निखिल को देखा. वह अपने उसी अंगूठे भर के बेटे को देख कर ऐसा घमंड कर रहा था मानो वह दुनिया का नामीगिरामी फुटबाल का खिलाड़ी बन गया हो,’’ खालिद की बात पर फिर से ठहाके  गूंजे.

‘‘मगर खालिद भाई, तुम्हीं ने तो उसे चढ़ाया था कि उस का बेटा बहुत बड़ा फुटबाल प्लेयर बनेगा,’’ आनंद ने चुटकी ली. आनंद और खालिद में हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहता था. एकदूसरे को नीचा दिखाने का वे कोई भी मौका चूकते न थे.

‘‘कहा तो, क्या गलत किया. उन के यहां पेट भर खा कर उन के बच्चे की तारीफ में दो शब्द कह दिए तो क्या बुरा किया. कल किस ने देखा है,’’ रमेश भी कहां हाथ आने वाला था.

‘‘ऐसा उन्होंने क्या खिला दिया खालिद भाई कि आप आभार तले दबे जा रहे हैं?’’

रमेश की बात पर खालिद की जबान पर ताला लग गया. उस के आगे टिकने की शक्ति उस में न थी.

‘‘यह कैसा विधि का विधान है? मेरी बेटी तो अनाथ हो गई. मां तो मैं हूं पर सुशीला बहन ने उसे मां जैसा प्यार दिया. शादी के बाद तो वे ही उस की मां थीं. मेरी बेटी को मायके में आना ही पसंद नहीं था. पर आती थी तो उन की तारीफ करती नहींथकती थी. उन की कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता. मेरी बेटी सच में दुखियारी है जो उस के सिर से ऐसी शीतल छाया उठ गई.’’

सुशीलाजी की मृत्यु की खबर मिलते ही वे (शीला) भरपेट नाश्ता कर के पति के साथ जो निकलीं तो 10 बजतेबजते बेटी की ससुराल में पहुंच गई थीं. कहने को दूसरा गांव था पर मुश्किल से40 मिनट का रास्ता था. तब से ले कर शव के घर से निकल कर अंतिम यात्रा के लिए जाने तक के रोनेधोने का यह सारांश था. कालोनी के एकत्रित लोग शीला के दुख को देख कर चकित रह गए थे. उस की आंखों से बहती अश्रुधारा ने लोगों क सहानुभूति लूट ली. सब की जबान पर एक ही बात थी, ‘दोनों में बहुत बनती थी. अपनी समधिन के लिए कोई इस तरह रोता है?

सारा कार्यक्रम पूरा होने तक शीला वहीं रहीं. पूरे घर को संभाला. दामाद सुनील तो पूरी तरह प्रभावित हो गया. उन्हें वापस भेजते समय उन के पैर छू कर बोला, ‘‘मांजी, मैं ने कभी नहीं सोचा था कि आप हम लोगों से इतना प्यार करती हैं. अब आपही हम तीनों की मां हैं. हमारा खयाल रखिएगा.’’

बेअसर क्यों हो रहे हैं कीटनाशक

कई तरह के कीड़ेमकोड़े इस धरती पर रेंगते, फुदकते व उड़ते हैं. उन में से ज्यादातर की नजर फल, सब्जी, अनाज व हरियाली पर लगी रहती है. इसलिए बहुत से कीड़े किसानों को नुकसान पहुंचाने में लगे रहते हैं. इन कीटपतंगों का कुनबा बहुत बड़ा है. खेत व खलिहानों से गोदामों तक इन की घुसपैठ बनी रहती है. इन के अलावा चूहे, फफूंद व खरपतवार भी किसानों की लागत व मेहनत को नुकसान पहुंचाते हैं. लिहाजा कीटों की रोकथाम बहुत जरूरी है, लेकिन फसलों को बचाना आसान नहीं है. पुराने जमाने में रासायनिक दवाएं नहीं थीं, लेकिन पैदावार कम थी. नीम व गौमूत्र जैसे देसी तरीकों से ही कीड़ों की रोकथाम की जाती थी. फिर भी काफी उपज खराब हो जाती थी. लेकिन अब बहुत बदलाव आया है. नए बीजों, रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के  इस्तेमाल से पैदावार बढ़ी है. लेकिन कीड़े भी बढ़े हैं. इन की मार से कई बार तो फसल का बड़ा हिस्सा खराब हो जाता है. रासायनिक कीटनाशकों ने कीटों के सफाए व फसलों की हिफाजत को आसान कर दिया है. फिलहाल देश में 272 किस्म के 16000 कीटनाशकों का 1 लाख, 70000 मीट्रिक टन से भी ज्यादा उत्पादन हो रहा है, क्योंकि ज्यादातर किसान रासायनिक कीटनाशक छिड़कने के आदी हैं. कीड़ों का सफाया करने के लिए उन्हें

यह तरीका आसान लगता है. समेकित कीटनाशी प्रबंधन, आईपीएम व जैव कीटनाशी जैसे दूसरे उपाय जल्दी से समझ नहीं आते. किसान उन पर पूरा भरोसा भी नहीं करते. कीड़ों की रोकथाम करने के लिए रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल आम उपाय है, लेकिन कीटनाशक भी बेअसर होने लगे हैं. इसलिए खेती में एक बड़ी समस्या किसानों के सामने खड़ी है. रासायनिक कीटनाशकों का असर कम या कतई न होने से कई बार किसान ठगे से देखते रह जाते हैं व उन को काफी माली नुकसान होता है. बहुत से किसान महंगी दवाएं उधार खरीदते हैं या मोटे सूद पर कर्ज लेते हैं. दवा खरीदने में मोटी रकम खर्च करते हैं, लेकिन जब खेत में दवा डालने से भी कीड़े नहीं मरते तो उन की फसल चौपट हो जाती है और किसान तबाह हो जाते हैं. बेशक खेती के लिए यह खतरे की घंटी है. लिहाजा किसानों को जागना जरूरी है. वे कारण ढूंढ़ने जरूरी हैं, जिन से कीटनाशक दवाएं बेअसर हो कर कीड़े मारने में नाकाम साबित हो रही हैं.

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लापरवाही

कीटनाशक जहरीले, फसलों व कीड़ों के मुताबिक अलगअलग व कम या ज्यादा ताकत के होते हैं. ज्यादातर किसानों को इन तकनीकी बारीकियों की जानकारी नहीं होती है. रोगकीटों की रोकथाम के लिए वे अमूमन माहिरों से सलाह नहीं लेते. दूसरों की देखादेखी या दुकानदार के कहने पर ही कीटनाशक खरीद कर मनमाने तरीके से खेत में डालते हैं. इसलिए कीटनाशकों का असर नहीं होता है. कीटनाशक डालने से जब कीड़े नहीं मरते तो हड़बड़ाए किसान और ज्यादा मात्रा में व जल्दीजल्दी अंधाधुंध दवा छिड़कते हैं. इस से कीटों में दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक कूवत पनपने लगती है. लिहाजा कीट कीटनाशी दवाओं को सहने के आदी हो जाते हैं. उधर उन्हें कुदरती तौर पर मारने वाले बहुत से परजीवी व किसानों के दोस्त कीट जहरीले छिड़काव से मरने लगते हैं. ऐसे में फसलों के दुश्मन कीट और भी ज्यादा तेजी से बढ़ने लगते हैं. कई बार दवाओं के नाम या इस्तेमाल के फर्क को किसान नहीं समझ पाते. लिहाजा दवा का असर ही नहीं होता. मसलन बहुत से किसान कपास में लगने वाले कीटों के लिए एसीफेट 75 एसपी दवा डालते हैं. कपास के जेसिड कीट के लिए प्रति हेक्टेयर 390 एमएल दवा 500 से 1000 लीटर पानी में घोल कर छिड़की जाती है, लेकिन कपास में लगने वाले बालवर्म कीट के लिए इसी दवा की दोगुनी मात्रा (780 एमएल) 500 से 1000 लीटर पानी में घोल कर छिड़की जाती है. उस के असर का 15 दिनों तक इंतजार किया जाता है.

यही दवा धान में लगने वाले कीटों के लिए एसीफेट 95 एसजी के नाम से आती है. पीले स्टेम बोरर, लीफ फोल्डर व हरे हापर के लिए इस की 592 एमएल मात्रा 500 लीटर पानी में घोल कर छिड़कने के बाद 30 दिनों तक इंतजार करते हैं.

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इस्तेमाल में खामी

कीटनाशकों के उत्पादन, पैकिंग, लदान, ढुलान व भंडारण से ले कर इस्तेमाल तक में सावधानी बरतना जरूरी है, लेकिन कदमकदम पर भारी लापरवाही दिखती है. इस का अंजाम किसानों को भुगतना पड़ता है. दवा के इस्तेमाल में जरा सी कमी या खामी से दवाएं बेअसर हो जाती हैं. मसलन दानेदार कीटनाशक रेतमिट्टी में मिलाने के बाद बिखेर कर, धूलपाउडर वाली डस्टर से छिड़कते हैं. इसी तरह घोलने वाली दवाएं पानी में मिला कर स्प्रेयर से छिड़की जाती हैं. दवा की खुराक व रेत, मिट्टी या पानी का हिस्सा सही होना जरूरी है. जानकारी की कमी, इस्तेमाल में लापरवाही या अनुपात गलत होने पर दवाएं बेअसर हो जाती हैं. पूरे असर के लिए जरूरी है कि सुझाई गई सही मात्रा में, सही तरीके से व सही वक्त पर ही दवा का इस्तेमाल हो. हालांकि दवाओं के पैक पर या साथ के परचे पर दवा की खुराक व इस्तेमाल का तरीका लिखा रहता है, लेकिन महीन अक्षरों में छपा होने की वजह से वह आसानी से नहीं पढ़ा जाता. तालीम व जानकारी की कमी से ज्यादातर किसान कीटनाशकों से जुड़ी जरूरी बातें नहीं जानते, लिहाजा दवाएं अकसर बेअसर रहती हैं.

बहुत से किसान नहीं जानते कि ज्यादा पावर की हाई डोज जल्दी व बारबार देने के बाद हलकी व कम जहरीली दवाएं कभी काम नहीं करतीं. इस के अलावा मियाद निकली दवाएं भी बेअसर रहती हैं. बड़े पैमाने पर खरीद होने से बाजार में कीड़ेमार दवाओं की भारी मांग रहती है, लिहाजा बहुत से मक्कार भी इस धंधे में आ गए हैं. बाजार में नकली, घटिया व मिलावटी रासायनिक कीटनाशकों की भरमार है. जालसाल निर्माता और दुकानदार मौके का फायदा उठा कर किसानों को ठग कर पैसा बना रहे हैं और किसान बेचारे अपना माथा पीट रहे हैं.

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भ्रष्टाचार

सभी किसानों को उम्दा क्वालिटी की दवाएं आसानी से नहीं मिलतीं. कीटनाशकों की क्वालिटी जांचने के लिए केंद्रीय कीटनाशी प्रयोगशाला, सीआईएल, फरीदाबाद, हरियाणा में है. इस के अलावा 23 राज्यों में 68 सरकारी प्रयोगशालाएं व 168 कीटनाशक निरीक्षक भी हैं, लेकिन भ्रष्ट मुलाजिमों की दवा कंपनियों से मिलीभगत के कारण प्रयोगशालाओं और प्रतिबंधित कीटनाशकों की सूची का प्रचारप्रसार तक नहीं होता. इसी वजह से जिन दवाओं पर पाबंदी व रोक लग चुकी है, आम किसानों को उन का पता तक नहीं है. कमीशनबाजी व भ्रष्टाचार के बल पर मिलावटखोर बाजी मारने में कामयाब रहते हैं. सरकारी व सहकारी संस्थाओं में निगरानी की कमी और कीटनाशकों की खरीद में घपले का खमियाजा किसान उठाते हैं. मुनाफाखोर दवा कंपनियां नकदी, तोहफे, तफरीह व सैरसपाटे के लालच से हलकी दवाएं भिड़ा देती हैं. लिहाजा वे कीड़ों को मारने में बेअसर रहती हैं और फसलें बरबाद हो जाती हैं. किसानों को इन कंपनियों के खिलाफ एकजुट हो कर आवाज उठानी चाहिए.

उत्तर प्रदेश की सहकारी गन्ना समितियों में अकसर कीटनाशक दवाएं खरीदी जाती हैं. सहकारी समितियां रस्मअदायगी के लिए दवा के नमूने जांच के लिए लैब में भेजती  हैं, लेकिन नमूने रास्ते में ही बदल दिए जाते हैं. लिहाजा घटिया कीटनाशक भी जांच रिपोर्ट में तो पास हो जाते हैं, लेकिन खेतों  में डालने पर उन का कोई असर ही नहीं होता. नकली कीटनाशकों के बेअसर रहने से फसलें चौपट होने की खबरें अकसर सुर्खियों में रहती हैं, लेकिन क्वालिटी कंट्रोल करने वाले सरकारी मुलाजिमों की आंखों पर लालच का परदा पड़ा रहता है. उन के कानों पर जूं नहीं रेंगती. जेब भरने के चक्कर में वे नक्कालों को नहीं पकड़ते.

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ढीला कानून

कीटनाशकों के आयात, उत्पादन, परिवहन, बिक्री, बंटवारे व इस्तेमाल को काबू करने व गड़बडि़यों पर नकेल कसने के लिए देश में कीटनाशक अधिनियम साल 1968 में बनाया गया था. इस के तहत गड़बड़ी साबित होने पर लाइसेंस रद्द करने के साथसाथ 2 साल कैद व जुर्माने का भी नियम है, लेकिन ज्यादातर किसान शिकायत नहीं करते और अगर करते भी हैं, तो मामले अपील में छूट जाते हैं. साल 2000 में इस कानून में सुधार व बदलाव हुए, लेकिन किसानों को इस से कोई खास राहत नहीं मिली.

सरकारी कारखाना

हिंदुस्तान इंसेक्टीसाइड्स लि. (एचआईएल) उम्दा क्वालिटी के कीटनाशक बनाने का सरकारी कारखाना है, जो 1954 से चल रहा है. इस की 3 यूनिटें कोच्चि (केरल), रासायनी (महाराष्ट्र) व भटिंडा (पंजाब) में 27 किस्मों के कीटनाशक बना रही हैं. इंडोसल्फान, डिकोफोल, मैलाथियान, बूटाक्लोर, डीडीवीपी, मोनोक्रोटोफास और मैंकोजेब आदि तैयार दवाओं की जांचपरख के लिए कंपनी का अपना एक फार्म गुड़गांव में है. किसानों को किसी भरोसे की दुकान से एचआईएल के कीटनाशी खरीदने चाहिए.

क्या करें किसान

हर कीटनाशक किसी खास कीट व फसल के लिए तय होता है. लिहाजा नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से सलाह जरूर लें. हमेशा अच्छी साख वाली लाइसेंसी दुकान से मशहूर कंपनी का सीलबंद कीटनाशक खरीदें. दवा बनने व तारीख जांचें. दवा का नाम, बैच नंबर डलवा कर हस्ताक्षर की हुई, मोहर लगी पक्की रसीद लें व उसे संभाल कर रखें, ताकि वक्त पर बतौर सबूत काम आए. इस्तेमाल से पहले दवा के साथ मिली हिदायतें ध्यान से पढ़ें व उन का पालन पूरी तरह से करें. दवा की मात्रा को बताई गई खुराक के मुताबिक रखें. उसे घटानेबढ़ाने में मनमानी न करें, ताकि फसल में डाले गए कीटनाशकों का पूरा असर हो सके.

क्राप लाइफ इंडिया नाम की संस्था ने किसानों को जागरूक कर के फसलों को सुरक्षित रखने की मुहिम चला रखी है. इस के लिए किसानों की भागीदारी और समझदारी जरूरी है. इच्छुक किसान क्राप लाइफ इंडिया की साइट से जुड़ सकते हैं. अधिक जानकारी के लिए वे इस पते पर संपर्क कर सकते हैं:

निदेशक, केंद्रीय कीटनाशक प्रयोगशाला, रा. राजमार्ग 4,फरीदाबाद, हरियाणा.

बच्चों और बड़ों के लिए बनाएं क्रीमी मेयो पास्ता

अब आप घर में बना सकते हैं रेस्टोरेंट जैसा पास्ता, तो चलिए जानते हैं इसकी रेसिपी. घर आएं मेहमान भी हो जाएंगे खुश.

सर्विंग- 5 लोगों के लिए

सामग्री

– पास्ता (200 ग्राम)

– पत्तागोभी 1 कप (बारीक कटी)

– गाजर और शिमला मिर्च 1 कप (बारीक कटी)

– हरी मटर (आधा कप)

– मक्खन( 2 टेबलस्पून)

मेयोनीज (100 ग्राम)

– क्रीम 100 ग्राम (आधा कप)

– नमक (स्वादानुसार)

– अदरक  एक इंच टुकड़ा (कद्दूकस किया)

–  काली मिर्च पाउडर (एक चौथाई टीस्पून)

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– नींबू (1)

– तेल (जरूरत के अनुसार)

– हरा धनिया 1 टेबलस्पून (बारीक कटा हुआ)

विधि :

एक पैन में पास्ता से तीन गुना पानी, आधी टीस्पून नमक, 1 टीस्पून तेल डालकर उबालें.

पानी उबलने पर इसमें पास्ता डाल कर थोड़ी देर चलाते हुए पास्ता को पका लें.

उबले हुए पास्ता से पानी निकाल लें और उसे ठंडे पानी से धोकर अलग रख लें.

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कढ़ाई में बटर गर्म करें जब बटर मेल्ट हो जाए तब इसमें अदरक और सारी सब्जियां डालकर अच्छे से मिक्स करें और ढककर दो मिनट तक पका लें.

जब सब्जियां थोड़ी नरम हो जाएं तब इसमें क्रीम, मेयोनीज, नमक और काली मिर्च डालकर अच्छी तरह से मिक्स करें और चलाते हुए 1-2 मिनट तक पका लें.

फिर इसमें पास्ता डालकर मिक्स करें और चम्मच से चलाते हुए 2 मिनट तक पका लें.

ऊपर से इसमें नींबू का रस और हरा धनिया डालकर गरमा-गरम सर्व करें.

मुखौटा-भाग 1: निखिल किसकी आवाज से मदहोश हो जाता था?

खुली खिड़की है भई मन, विचारों का आनाजाना लगा रहता है, कहती है जबां कुछ और तो करते हैं हम कुछ और कहते हैं बनाने वाले ने बड़ी लगन और श्रद्धा से हर व्यक्ति को गढ़ा, संवारा है. वह ऐसा मंझा हुआ कलाकार है कि उस ने किन्हीं 2 इंसानों को एक जैसा नहीं बनाया (बड़ी फुरसत है भई उस के पास). तन, मन, वचन, कर्म से हर कोई अपनेआप में निराला है, अनूठा है और मौलिक है. सतही तौर पर सबकुछ ठीकठीक है. पर जरा अंदर झांकें तो पता चलता है कि बात कुछ और है. गोलमाल है भई, सबकुछ गोलमाल है.

बचपन में मैं ने एक गाना सुना था. पूरे गाने का सार बस इतना ही है कि ‘नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छिपी रहे.’

कई तरह के लोगों से मिलतेमिलते, कई संदर्भों में मुझे यह गाना बारबार याद आ जाता है. आप ने अकसर छोटे बच्चों को मुखौटे पहने देखा होगा. फिल्मों में भी एक रिवाज सा था कि पार्टियों, गानों आदि में इन मुखौटों का प्रयोग होता था. दिखने में भले इन सब मुखौटों का आकार अलगअलग होता है पर ये सब अमूमन एक जैसे होते हैं. वही पदार्थ, वही बनावट, उपयोग का वही तरीका. सब से बड़ी बात है सब का मकसद एक-सामने वाले को मूर्ख बनाना या मूर्ख समझना, उदाहरण के लिए दर्शकों को पता होता है कि मुखौटे के पीछे रितिक हैं पर फिल्म निर्देशक यही दिखावा करते हैं कि कोई नहीं पहचान पाता कि वह कौन है.

इसी तरह आजकल हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी पद पर हो, किसी भी उम्र का हो, हर समय अपने चेहरे पर एक मुखौटा पहने रहता है. चौबीसों घंटे वही कृत्रिम चेहरा, कृत्रिम हावभाव, कृत्रिम भाषा, कृत्रिम मुसकराहट ओढ़े रहता है. धीरेधीरे वह अपनी पहचान तक भूल जाता है कि वास्तव में वह क्या है, वह क्या चाहता है.

जी चाहता है कि वैज्ञानिक कोई ऐसा उपकरण बनाएं जिस के उपयोग से इन की कृत्रिमता का यह मुखौटा अपनेआप पिघल कर नीचे गिर जाए और असली स्वाभाविक चेहरा सामने आए, चाहे वह कितना भी कुरूप या भयानक क्यों न हो क्योंकि लोग इस कृत्रिमता से उकता गए हैं.

‘‘अजी सुनो, सुनते हो?’’

अब वह ‘अजी’ या निखिल कान का कुछ कमजोर था या जानबूझ कर कानों में कौर्क लगा लेता था या नेहा की आवाज ही इतनी मधुर थी कि वह मदहोश हो जाता था और उस की तीसरीचौथी आवाज ही उस के कानों तक पहुंच पाती थी. यह सब या तो वह खुद जाने या उसे बनाने वाला जाने. इस बार भी तो वही होना था और वही हुआ भी.

‘‘कितनी बार बुलाया तुम्हें, सुनते ही नहीं हो. मुझे लगता है एक बार तुम्हें अपने कान किसी अच्छे डाक्टर को दिखा देने चाहिए.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ मेरे कानों को? ठीक ही तो हैं,’’ अखबार से नजर हटाते हुए निखिल ने पूछा.

नेहा ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि उस के स्वर की तल्खी और आंखों के रूखेपन को ताड़ कर उस ने अपनेआप को नियंत्रित किया और एक मीठी सी मुसकराहट फैल गई उस के चेहरे पर. किसी भी आंख वाले को तुरंत पता चल जाए कि यह दिल से निकली हुई नहीं बल्कि बनावटी मुसकराहट थी. जब सामने वाले से कोई मतलब होता है तब लोग इस मुसकराहट का प्रयोग करते हैं. मगर निखिल आंख भर कर उसे देखे तब न समझ पाए.

‘‘मैं इस साड़ी में कैसी लग रही हूं? जरा अच्छे से देख कर ईमानदारी से बताना क्योंकि यही साड़ी मैं कल किटी पार्टी में पहनने वाली हूं,’’ उस ने कैटवाक के अंदाज में चलते हुए बड़ी मधुर आवाज में पूछा.

‘तो मेमसाब अपनी किटी पार्टी की तैयारी कर रही हैं. यह बनावशृंगार मेरे लिए नहीं है,’ निखिल ने मन ही मन सोचा, ‘बिलकुल खड़ूस लग रही हो. लाल रंग भी कोई रंग होता है भला. बड़ा भयानक. लगता है अभीअभी किसी का खून कर के आई हो.’ ये शब्द उस के मुख से निकले नहीं. कह कर आफत कौन मोल ले.

‘‘बढि़या, बहुत सुंदर.’’

‘‘क्या? मैं या साड़ी?’’ बड़ी नजाकत से इठलाते हुए उस ने फिर पूछा.

‘साड़ी’ कहतेकहते एक बार फिर उस ने अपनी आवाज का गला दबा दिया.

‘‘अरे भई, इस साड़ी में तुम और क्या? यह साड़ी तुम पर बहुत फब रही है और तुम भी इस साड़ी में अच्छी लग रही हो. पड़ोस की सारी औरतें तुम्हें देख कर जल कर खाक हो जाएंगी.’’

नेहा को लगा कि वह उस की तारीफ ही कर रहा है. उस ने इठलाते हुए कहा, ‘‘हटो भी, तुम तो मुझे बनाने लगे हो.’’  पता नहीं कौन किसे बना रहा था.

नन्हे चिंटू ने केक काटा. तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी. अतिथि एकएक कर आगे आते और चिंटू के हाथ में अपना तोहफा रख कर उसे प्यार करते, गालों को चूमते या ऐसे शब्द कहते जिन्हें सुन कर उस के मातापिता फूले न समाते. तोहफा देते हुए वे इतना अवश्य ध्यान रखते कि चिंटू के मातापिता उन्हें देख रहे हैं या नहीं.

‘‘पारुल, तुम्हारा बेटा बिलकुल तुम पर गया है. देखो न, उस की बड़ीबड़ी आंखें, माथे पर लहराती हुई काली घुंघराली लटें. इस के बड़े होने पर दुनिया की लड़कियों की आंखें इसी पर होंगी. इस से कहना जरा बच कर रहे,’’ जब मोहिनी ने कहा तो सब ठठा कर हंस पडे़.

चिंटू बड़ा हो कर अवश्य आप के जैसा फुटबाल प्लेयर बनेगा,’’ इधरउधर भागते हुए चिंटू को देख कर रमेश ने कहा.

‘‘हां, देखो न, कैसे हाथपांव चला रहा है, बिलकुल फुटबाल के खिलाड़ी की तरह,’’ खालिद ने उसे पकड़ने की कोशिश करते हुए कहा.

नरेश की बाछें खिल गईं. हिंदी सिनेमा के नायक की तरह वह खड़ाखड़ा रंगीन सपने देखने लगा.

खालिद, जो चिंटू को पकड़ने में लगा था, अपनी ही बात बदलते हुए बोला, ‘‘नहीं यार, इस के तो हीरो बनने के लक्षण हैं. इस की खूबसूरती और मीठी मुसकराहट यही कह रही है. बिलकुल भाभीजी पर गया है.’’

खालिद ने उधर से जाती हुई पारुल  को देख लिया था. उस के हाथों में केक के टुकड़ों से भरी प्लेट वाली ट्रे थी. पारुल ने रुक कर खालिद की प्लेट को भर दिया.

‘‘मसाबा मसाबाः कल्पना के नाम पर कैरी केचर व झूठ का पुलिंदा..’’

वेब सीरीजः

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताःअश्वनी यार्दी
निर्देषकःसोनम नायर
कलाकारःमसाबा गुप्ता,नीना गुप्ता, नील भूपालन,सुनीता राजभर, रायतशा राठौड़,स्मरण साहू,सत्यदीप मिश्रा व अन्य
अवधिः 25 से 34 मिनट के छह एपीसोड,लगभग तीन घंटे
ओटीटी प्लेटफार्म: नेटफ्लिक्स
नीना गुप्ता और उनकी फैशन डिजानयर बेटी मसाबा गुप्ता के जीवन पर आधारित एक काल्पनिक कहानी है सुनीता नायर निर्देशित वेब सीरीज ‘‘मसाबा मसाबा’’,जिसमें नीना गुप्ता और मसाबा ने स्वयं अभिनय किया है.और पहले एपीसोड से इंस्टाग्राम व सोशल मीडिया कहानी में किरदार बना हुआ है. नीना गुप्ता स्वयं मसाबा के डिजाइन किए गए कपड़ों की माॅडलिंग करते और उसे इंस्टाग्राम पर डालते हुए नजर आती हैं,तो वहीं मसाबा अपनी मां नीना गुप्ता के हर ट्वीट व इंस्टाग्राम पोस्ट को री ट्वीट या शेअर करती रहती हैं.
कहानीः
कहानी शुरू होती है मसाबा(मसाबा गुप्ता) के फैशन डिजायनिंग शो रूम से,जहां शाम को होने वाले फैशन शो की तैयारी चल रही है.उसकी दोस्त जिया(रायतशा राठौड़ ) उसके साथ है.जिया के पिता बार हाउस के मालिक हंै.उधर नीना गुप्ता को सोशल मीडिया से पता चलता है कि मसाबा और उसके पति विनय(सत्यदीप मिश्रा) का तलाक हो रहा है.वह मसाबा को फोन करती है,पर मसाबा फोन नही उठाती.घर पर नीना गुप्ता (नीना गुप्ता)अपनी घरेलू नौकरानी पद्मा(  सुनीता राजभर ) के साथ अखबार मंे खबर पढ़ती है.शाम को कार्यक्रम में मसाबा की डिजाइन का इंवेस्टर धैर्य राणा(नील भूपालन ) व मसाबा के पति विनय भी मौजूद रहते हैं.वापसी में कार में ही विनय व मसाबा अपने तलाक की घोषणा इंस्टाग्राम पोस्ट पर करते हंै और फिर आधे रास्ते से अलग अलग कार में बैठकर चले जाते हैं.दूसरे एपीसोड में नीना गुप्ता को फरहा खान मिलने के लिए बुलाती हैं,मगर फरहा उन्हे अपनी फिल्म में काम नही देती हैं.मसाबा परेशान है कि धैर्य राणा की मांग के अनुरूप वह डिजाइनर कपड़े नहीं बना पा रही है.अपनी मां से बहस के दौरान मसाबा कहती है कि उसने मां को खुश रखने के लिए कुछ दिन शादी निभायी.फिर शादी से पहले मां और शादी के बाद पति की छत्रछाया में रहने के बाद अब मसाबा स्वतंत्र रूप से अकेले रहने के लिए किराए के फ्लैट में चली जाती है.तीसरे एपीसोड में नीना गुप्ता कास्टिंग डायरेक्टर से कहती हंै कि वह दिल्ली नही मंुबई में रहती है और फिर एक इंस्टाग्राम पोस्ट मंें लिखती हैं कि वह मुंबई मंे रहती हैं और अच्छे किरदार निभाना चाहती हैं.जिसे मसाबा भी शेअर करती है.चैथे एपीसोड में अपने फ्लैट में अकेले होने पर वह अपने पूर्व प्रेमी मानव को बुलाती है और उसके साथ हम बिस्तर होकर यौन सुख का आनंद लेती हैं.पांचवे एपीसोड में नीना गुप्ता को फिल्म‘‘बधाई हो’’में अभिनय का काम मिलता है.इस फिल्म की गजराज राव के साथ वह शूटिंग करती है.
उधर मसाबा अपनी मां से कहती है कि उससे यह सेपरेषन/पति से अलगाव संभल नही रहा है.इस बीच इंवेस्टर धैर्य राणा के लिए वह ‘हाॅट मेस’नाम डिजाइन तैयार कर समुद्र के बीच एक बोट पर फैशन शो रखती है,इस फैशन शो से पहले अपने साथ काम कर रहे जोगी(स्मरण साहू) के साथ उसके घर पर यौन संबंध बनाकर सेक्स का आनंद उठाती हैं.दूसरे दिन बोट पर फैशन शो में गड़बड़ियां हो जाती हैं.छठे एपीसोड में सोषल मीडिया पर इस फैशन शो की आलोचनाएं हो रही हंै.तब धैर्य राणा ताना मारता है कि ‘सफलता व शोहरत सभी के वश की बात नहीं होती.’उसके बाद मसाबा अपने सहयोगियों के माध्यम से अपने डिजाइन कपड़ों की तस्वीरे सोशल मीडिया पर डालकर बाजी पलट देती हैं.उसे एक पत्रिका के कवर पेज पर भी जगह मिल जाती है.
लेखन व निर्देशनः
नीना गुप्ता और मसाबा गुप्ता के वास्तविक निजी जीवन में कई नाटकीय मोड़ हैं,जिनसे एक उत्कृष्ट कहानी बन सकती थी,मगर इस वेब सीरीज में उनसे बचने का पूरा प्रयास किया गया है.इस वेब सीरीज में काल्पनिक किरदार व परिस्थितियों का समोवश है.मसाबा और नीना उन संघर्षों के बारे में मुखर रही हैं,जिनका उन्होंने सामना किया है.मगर अफसोस कि इस सीरीज में ऐसा कुछ नही है.
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इसके सारे किरदार एक ऐसी दुनिया में बसते हैं,जहां एक सोशल मीडिया पोस्ट जीवन की हर समस्या का त्वरित-ठीक उत्तर है.वेब सीरीज की शुरूआत ही उस दिन से होती है,जिस दिन मसाबा व उसके पति अलग होने का निर्णय लेते हैं.कहानी को काल्पनिक होने का जामा पहनाने के लिए मसाबा के पति के रूप में विनय हैं.वेब सीरीज के हर एपीसोड के केंद्र में मसाबा व उनकी माॅ नीना गुप्ता ही हैं,बाकी सभी किरदार कैरीकेचर के अलावा कुछ नही हैं.इस वेब सीरीज का सुखद मां बेटी का एक साथ परदे पर अभिनय करना.इसी वजह से दोनों की केमिस्ट्री और सहजता बहुत प्यारी और बेहद भरोसेमंद है.मसलन,एक एपीसोड में नीना गुप्ता,मसाबा के लिए एक पराठा बनाने की पेशकश करती हैं.तो मां बेटी का अटूट रिश्ता व एक दूसरे के कहे बिना समझने का भाव उभरकर आता है.इसके अलावा इनके मजबूत बंधन के प्रतिबिंब स्वरूप किसी जगह मसाबा एक पीले रंग की शिफॉन की साड़ी में अपनी माँ को एक बैकलेस ब्लाउज के साथ फैशन करती हुई दिखाई देती हैं.छह एपीसोड की इस सीरीज में तीन हम बिस्तर वाले अति बोल्ड दृश्य रखकर लेखक,निर्देशक,नीना गुप्ता व मसाबा लोगों को क्या संदेश देना चाहती हैं,यह तो वही जाने.संवाद प्रभावहीन हैं.बेवजह कई दृश्य भर दिए गए हैं.बतौर निर्देशक सुनीता नायर अपनी छाप छोड़ने मे असफल रही हैं.

अभिनयः
नीना गुप्ता के अभिनय की तारीफ करनी ही पड़ेगी,मगर उन्हंे पटकथा का सहयोग नहीं मिलता.मसाबा गुप्ता खास प्रभावित नहीं करती.अन्य कलाकार कुछ खास नही कर पाए.

हुंडई वरना की यह इंजन है बेहद खास जानें क्वालिटी

हुंडई वरना अपने इंजन को लेकर मार्केट में काफी ज्यादा लोकप्रिय है. हुंडई वरना की पेट्रोल इंजन की खासियत यह है 117-bhp 1.0 लीटर पेट्रोल वंडरकिंड है. इसे हुंडई वरना के 7 स्पीड DCT के साथ जोड़ा गया है. जिससे वरना के इंजन में लंबे समय तक कोई भी दिक्कत न आए. हुंडई वरना कार में मौजूद टर्बो चार्जर भी इसकी स्पीड को बढ़ाने का काम करता है.

जिससे आपको पता चलता है कि हुंडई के डूअल गेयर को कब बदलना है यह इंजन को गर्म होने से पहले गेयर को तुरंत बदलने के तरफ भी इशारा करता है. हुंडई वरना का  इंजन सभी पार्ट से सुरक्षित रखता है. यही कारण है कि हुंडई वरना #BetterThantherest है.

कसौटी जिंदगी 2: प्रेरणा की बहन बनने वाली हैं दुल्हन ,जल्द ही आने वाला है नया मोड़!

सीरियल कसौटी जिंदगी 2 इन दिनों लगातार सुर्खियों में छाया हुआ है. बीते कई दिनों से पार्थ समथान और एरिका फर्नाडिस के फेर बदल की खबरें आ रही हैं. पार्थ समथान का पक्का हो गया है कि वह इस सारियल्स को जल्द ही अलविदा कहने वाले हैं.

खबर है कि इन दिनों वह अपनी आखिरी एपिसोड़ की शूटिंग करने ही सेट पर आ रहे हैं, वहीं खबर आ रही है कि शो में ट्विस्ट लाने की कोशिश की जा रही है. जिसमें प्रेरणा की बहन शिवानी की सगाई होने वाली है. प्ररेणा और बाकी घर वाले भी अलग अंदाज में नजर आ रहे हैं.

इस तस्वीर को शेयर किया है चारवी शराफ ने जो ‘कसौटी जिंदगी 2’ में शिवानी का किरदार निभा रही हैं. तस्वीर में चारवी के हाथों में मेंहदी लगी हुई है और बाकी सब स्टारकास्ट उनके आसपास बैठे नजर आ रहे हैं.

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चारवी ने इस तस्वीर को इंस्टाग्राम पर शेयर करते हुए लिखा है कि मेंहदी की रात कसौटी जिंदगी के लेडीज के साथ. इस तस्वीर में एरिका फर्नाडिस , रितु चौहान, कनुप्रिया और मृणाल मोगर नजर आ रही हैं.

इस एपिसोड़ में सबसे ज्यादा शिवानी पर फोक्स किया जा रहा है जिससे मालूम होता है कि अब जल्द ही कोमोलिका के भाई रोनित की एंट्री हो सकती हैं.

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खबर यह भी है कि इस सीरियल्स से जब तक हिना खान जुड़ी थी तब तक इस सीरियल की टीआरपी सबसे आगे थी लेकिन उनके जाने के बाद से ही इस सीरियल की टीआरपी में गिरावट आ गई है मेकर्स लगातार इसे बढ़ाने की कोशिश में लगे हुए हैं लेकिन अभी तक इस शो की टीआरपी पहले जैसे नहीं हो पाई है.

देवोलीना भट्टाचार्जी के फोटो ने किया इशारा, ‘साथ निभाना साथिया’ पार्ट-2 की शूटिंग हुई शुरू!

टीवी की जानीमानी अदाकारा देवोलीना भट्टाचार्जी ने अपने लेटेस्ट फोटो से सोशल मीडिया पर लोगों की हलचल बढ़ा दी है. इनकी लेटेस्ट तस्वीर को देखकर ऐसा लग रहा है मानो वह किसी शूटिंग की सेट पर हैं. देवोलीना भट्टाचार्जी साथ निभाना साथिया से सभी के दिलों पर राज करने लगी थीं.

दरअसल, इस तस्वीर में देवोलीना भट्टाचार्जी एक संस्कारी बहू के रूप में नजर आ रही हैं. जिसे देखकर कयास लगाया जा रहा है कि सीरियल साथ निभाना साथिया 2 की शूटिंग शुरू हो गई है.

साथ निभाना साथिया में गोपी बहू एक संस्कारी बहू थी जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया था. लॉकडाउन में सीरियल्स के पुराने एपिसोड़ को दोबरा प्रसारित किया जा रहा था और अंदाजा लगाया गया कि लोग इसे खूब पसंद कर रहे हैं. इस सभी को देखते हुए शो कि प्रॉड्यूसर रश्मि शर्मा ने भी इस बात को पक्का कर दिया है कि साथ निभाना साथिया पार्ट 2 आएगा.

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ऐसे में देवोलीना भट्टाचार्जी की यह तस्वीर इस तरफ इशारा कर रही है कि साथ निभाना साथिया की शूटिंग शुरू हो चुकी है. फैंस इस खबर को जानने के बाद बहुत ज्यादा उत्साहित हैं. उन्हें इंतजार है पर्दे पर फिर से गोपी बहू को देखने का.

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देबोलीना भट्टाचार्जी इस लुक में बेहद ही खूबसूरत नजर आ रही हैं. उन्होंने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी हुई है. और हाथ  जोड़े मंदिर के सामने नजर आ रही हैं.

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Aa Rahi He Apki GOPI BAHU.❤???

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खबर है कि साथ निभाना साथिया कि मशहूर सासू मां रुपल पटेल यानि कोकिला बहन भी नजर आएंगी. रुपल को सासू मां के किरदार में खूब पसंद किया जा रहा था. रुपल को दोबारा देखने के लिए फैंस भी बहुत ज्यादा उत्साहित हैं. उम्मीद है कि पहले की तरह इस बार भी इस सीरियल को प्यार मिलेगा. अब देखना ये है कि पार्ट टू की कहानी पहले वाले सीरियल्स से कितनी अलग है.

कन्यादान-भाग 1 :मंजुला श्रेयसी की शादी से इतनी दुखी क्यों थी?

अनिरुद्ध घर के अंदर घुसते हुए मंजुला से बोले, ‘‘मैडम, आप के भाईसाहब ने श्रेयसी के कन्यादान की तैयारी कर ली है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘उन्होंने उस की शादी का कार्ड भेजा है.’’

‘‘क्या कह रहे हैं, आप?’’ चौंकती हुई मंजुला बोली, ‘‘क्या श्रेयसी की शादी तय हो गई है?’’

‘‘जी मैडम, निमंत्रणकार्ड तो यही कह रहा है.’’

मंजुला ने तेजी से कार्ड खोल कर पढ़ा और उसे खिड़की पर एक किनारे रख दिया. फिर बुदबुदाई, ‘भाईसाहब कभी नहीं बदलेंगे.’ उस के चेहरे पर उदासी और खिन्नता का भाव था.

‘‘क्या हुआ? तुम श्रेयसी की प्रस्तावित शादी की खबर सुन कर खुश नहीं हुई?’’

‘‘आप तो बस.’’

तभी बहू छवि चाय ले कर ड्राइंगरूम में आई, ‘‘पापाजी, किस की शादी का कार्ड है?’’

‘‘अरे बेटा, खुशखबरी है. अपनी श्रेयसी की शादी का कार्ड है.’’

छवि खुश हो कर बोली, ‘‘वाउ, मजा आ गया.’’

छवि के जाने के बाद मंजुला बोली, ‘‘क्या भाईसाहब एक बार भी फोन नहीं कर सकते थे?’’

‘‘तो क्या हुआ? लो, मैं अपनी ओर से भाई साहब को फोन कर के बधाई दे देता हूं.’’

मन ही मन अपमानित महसूस करती हुई मंजुला वहां से उठ कर दूसरे कमरे में चली गई.

‘‘साले साहब, बहुतबहुत बधाई. आप का भेजा हुआ कार्ड मिल गया. श्रेयसी की तरह उस की शादी का कार्ड भी बहुत सुंदर है. मेरे लायक कोई सेवा हो तो निसंकोच कहिएगा. लड़के के बारे में आप ने अच्छी तरह से जानकारी तो कर ही ली होगी?’’

‘‘हां, हां, क्यों नहीं. महाराजजी ने सब पक्का कर दिया है.’’

‘‘एक बात बताइए, आप ने श्रेयसी से पूछा कि नहीं?’’

‘‘उस से क्या पूछना? ऐसा राजकुमार सा छोरा सब को नहीं मिलता. अपनी श्रेयसी तो सीधे अमेरिका जाएगी. इसी वजह से जल्दबाजी में 15 दिनों के अंदर शादी करनी पड़ रही है.’’

‘‘अच्छा, श्रेयसी कहां है, फोन दीजिए उसे, बधाई तो दे दें.’’

‘‘देखिए अनिरुद्धजी, बधाईवधाई रहने दीजिए. पहले मेरी बात सुनिए, हमारे हिंदू धर्म में कन्यादान को महादान कहा गया है, लेकिन भई, आप की और मेरी सोच में बहुत अंतर है. आप तो पहले आयुषी से नौकरी करवाएंगे, फिर उस के लिए लड़का खोजेंगे या फिर उस की पसंद के लड़के से उस की शादी कर देंगे. परंतु मैं तो जल्द से जल्द बेटी का कन्यादान कर के बोझ को सिर से उतारना चाहता हूं. मेरी तो रातों की नींद उड़ी हुई थी. अब तो उस की डोली विदा करने के बाद ही चैन कीनींद सोऊंगा. अच्छा, ठीक है, अब मैं फोन रखता हूं.’’

‘‘छवि, तुम्हारी आदरणीया मम्मीजी कहां गईं? अपने भाईसाहब या भाभी से उन्होंने बात भी नहीं की, क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है?’’ मंजुला को आता देख अनिरुद्ध बोले, ‘‘आइए श्रीमतीजी, चाय आप के इंतजार में उदास हो कर ठंडी हुई जा रही है.’’

मंजल का मुंह उतरा हुआ था पर शादी की खबर से उत्साहित छवि बोली, ‘‘मुझे तो बहुत सारी खरीदारी करनी है, आखिर मेरी प्यारी ननद की शादी जो है.’’

‘‘हांहां, कर लेना, जो चाहे वह खरीद लेना,’’ अनिरुद्ध बोले.

बेटा उन्मुक्त मौका देखते ही बोला, ‘‘पापा, आप का इस बार कोई भी बहाना नहीं चलेगा, आप को नया सूट बनवाना ही पड़ेगा.’’

‘‘न, यार, मुझे कौन देखेगा?’’ मंजुला की ओर निगाहें कर के अनिरुद्ध बोले, ‘‘भीड़ में सब की निगाहें लड़की की सुंदर सी बूआ और भाभी पर होंगी. और हां, आयुषी कहां है? वह तो शादी की खबर सुनते ही कितना हंगामा करेगी.’’

मंजुला चिंतामग्न हो कर बोली, ‘‘वह कालेज गई है, उस का आज कोई लैक्चर था.’’

मंजुला सोचने लगी कि बड़े भाईसाहब क्या कभी नहीं बदलेंगे. वे हमेशा अपनी तानाशाही ही चलाते रहेंगे. वे रूढि़वादिता और जातिवाद के चंगुल से अपने को कभी भी बाहर नहीं निकाल पाएंगे.

फिर वह मन ही मन शादी होने वाले खर्च का हिसाबकिताब लगाने लगी. तभी आयुषी कालेज से लौट कर आ गई. जैसे ही उस ने श्रेयसी की शादी का कार्ड देखा, उस का चेहरा एकदम बदरंग हो उठा. उस के मुंह से एकबारगी निकल पड़ा, ‘‘श्रेयसी की शादी’’ फिर वह एकदम से चुप रह गई.

मंजुला ने पूछा कि क्या कह रही हो? तो वह बात बदलते हुए बोली, ‘‘पापा, इस बार आप की कोई कंजूसी नहीं चलेगी. मेरा और भाभी का लहंगा बनेगा और सुन लीजिए, डियर मौम के लिए भी इस बार महंगी वाली खूबसूरत कांजीवरम साड़ी खरीदेंगे. हर बार जाने क्या ऊटपटांग पुरानी सी साड़ी पहन कर खड़ी हो जाती हैं.’’

‘‘आयुषी, तुम बहुत बकबक करती हो. पैसे पेड़ पर लगते हैं न, कि हिला दिया और बरस पड़े.’’ मंजुला अपनी खीझ निकालती हुई बोली, ‘‘श्रेयसी को कुछ उपहार देने के लिए भी तो सोचना है.’’

‘‘श्रीमतीजी आप इतनी चिंतित क्यों हैं?’’

‘‘मेरी सुनता कौन है? आप को तो अपनी आयुषी की कोई फिक्र ही नहीं है.’’

‘‘जब वह शादी के लिए तैयार होगी, तभी तो उस के लिए लड़का देखेंगे.’’

‘‘इस साल 24 की हो जाएगी. मेरी तो रातों की नींद उड़ जाती है.’’

‘‘तुम अपने भाईसाहब की असली शागिर्द हो. उन की भी नींद उड़ी रहती है.’’ यह कह कर अनिरुद्ध अपने लैपटौप में कुछ करने में व्यस्त हो गए.

मंजुला इस बीच श्रेयसी के बचपन में खो गई. उस ने श्रेयसी को पालपोस कर बड़ा किया है. भाभी के जुड़वां बच्चे हुए थे. वे 2 बच्चों को एकसाथ कैसे पालतीं, इसीलिए वह श्रेयसी को अपने साथ ले आई थी. उस ने रातदिन एक कर के उसे पालपोसकर बड़ा किया. जब वह 6 साल की हो गई तो भाभी बोलीं, ‘यह मेरी बेटी है, इसलिए यह मेरी जिम्मेदारी है.’ और वे उसे अपने साथ ले गई थीं.

श्रेयसी के जाने के बाद वह फूटफूट कर रो पड़ी थी. उस के मन में श्रेयसी के प्रति अतिरिक्त ममत्व था. श्रेयसी बहुत दिनों तक मंजुला को ही अपनी मां समझती रही थी. मंजुला छुट्टियों में श्रेयसी को बुला लेती थी.

श्रेयसी आती तो उन्मुक्त और आयुषी उस के हाथ से खिलौना झपट कर छीन लेते. उसे कोई चीज छूने नहीं देते. इस बात पर मंजुला जब उन्मुक्त को डांट रही थी तो वह धीरे से बोली थी, ‘मम्मी, मुझे तो आदत है. वहां प्रखर मेरे हाथ से सब खिलौने छीन लेता है. चाहे खाने की हों या खेलने की, सब चीजें झपट लेता है. अम्मा भी कहती हैं कि वह भाई है, उसे दे दो.’

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