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हम साथ साथ हैं -भाग 4: पीहू हर रोज एक ही सवाल क्यों पूछती थी?

रश्मि, हर्ष की बूआ की बेटी, बोली,

‘‘आंटी, बाहर से और खाना और्डर

करने की कोई जरूरत नहीं है. मैं ने छोटू को चावल उबालने के लिए बोल दिया है. मिक्स दाल मैं ने उबलने को रख दी है और आलू उबल रहे हैं. आप कोई टैंशन मत लो. आप आराम से बैठिए, हम सब देख लेंगे. हमारी वजह से आप को कोई तकलीफ नहीं होगी.’’

‘‘हां आंटी, वह तो हर्ष भैया ने हमें पीहू भाभी के बारे में हवा नहीं लगने दी थी लेकिन तब भी शक तो हमें था. और जब पता चला कि आज आप के घर जा रहे हैं तो पीहू भाभी को देखने का मौका हम भला कैसे छोड़ सकते थे,’’ दीपा, हर्ष के चाचा की बेटी, बोली.

‘‘विनय भाई, हमारा परिवार ही हमारी पूंजी है. सब भाईबहनों में आपस में खूब स्नेहप्यार है. एकदूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. घर में हमारे तो इसी तरह धमाचौकड़ी चलती रहती है. पीहू को किसी बात की कोई दिक्कत नहीं रहेगी. इस बात से आप बेफ्रिक रहो,’’ हर्ष के ताऊजी बोले तो विनय ने कहा, ‘‘भाईसाहब, यह तो मैं देख ही रहा हूं. आज मेरे घर में त्योहार सा माहौल बना हुआ है. बच्चियों ने बिलकुल अपने घर की तरह रसोई संभाल ली है. हर्ष के भाइयों के साथ पीहू को हंसताबोलता देख रहा हूं तो ऐसा लग रहा है उस के जीवन में भाइयों की कमी अब पूरी हो जाएगी,’’ विनय ने कहा.

‘‘अंकलजी, अब पीहू भाभी को अपनी बोरियत दूर करने के लिए अकेले मौल घूमने नहीं जाना पड़ेगा,’’ हर्ष के छोटे चाचा के बेटे की बात सुन कर सभी हंस पड़े.

‘‘हांहां, तुम्हारी आइटम टोली के होते भला क्यों अब वह अकेली घूमेगी,’’ बूआ ने भी अपनी बात जोड़ी.

लंचटाइम में सब लोगों ने खूब मजे लेले कर खाना खाया. सब रेखा के खाने की तारीफ करते नहीं थके.

सबकुछ बहुत परफैक्ट रहा. तय हुआ कि शादी महीने के अंदरअंदर कर देते हैं क्योंकि हर्ष की कंपनी वाले उसे डेढ़ महीने बाद विदेश भेज रहे हैं एक महीने के लिए. हर्ष की मम्मी चाहती थीं कि पीहू भी हर्ष के साथ चली जाए.

सभी इस बात से राजी हो गए. बस, दोनों तरफ से शादी की तैयारियां शुरू हो गईं.

‘‘हर्ष, मुझे अब पता चल रहा है कि पैरोंतले पांव न पड़ना क्या होता है. सच में मैं आजकल हवा में उड़ रही हूं. मैं इतनी खुश हूं कि बता नहीं सकती. सोचा नहीं कि मुझे तुम जैसा प्यार करने वाला इतना प्यारा जीवनसाथी मिलेगा,’’ पीहू हर्ष की बांहों में समाई जा रही थी.

‘‘पीहू, मुझे तुम मिल गईं तो ऐसा लग रहा है जैसे मैं ने दुनियाजहान की खुशियां पा ली हैं. अब तो ये थोड़े से दिन भी तुम से दूर रहना मुश्किल हो रहा है,’’ हर्ष पीहू का चेहरा अपने हाथों में ले कर बोला ही था कि अचानक पीहू का मोबाइल बज उठा.

‘‘हां, मम्मी बोलो.’’

‘‘पीहू, बेटा तू कहां है,’’ रेखा बहुत घबराई सी आवाज में बोली.

‘‘क्या बात है मम्मी, जल्दी बोलो, मुझे घबराहट हो रही है.’’

‘‘पीहू, तेरे पापा को छाती में दर्द उठा था. मैं ने डाक्टर सूरज को फोन किया तो उन्होंने एंबुलैंस भेज दी. मैं तेरे पापा को ले कर हार्टकेयर अस्पताल जा रही हूं. रास्ते में हूं, तू वहीं पहुंच.’’

‘‘मम्मी, आप घबराओ मत, पापा को कुछ नहीं होगा. मैं अभी पहुंचती हूं.’’

पूरे रास्ते हर्ष पीहू को तसल्ली देता रहा. पीहू जब अस्पताल पहुंची तब तक विनय को आईसीयू में ले जा चुके थे. सीवियर हार्टअटैक आया था. रेखा रोए जा रही थी.

‘‘आंटीजी, आप बिलकुल फिक्र मत करो. हम सब हैं न, अंकल ठीक हो जाएंगे.’’

थोड़ी देर में हर्ष के मम्मीपापा भी आ गए और हर्ष की मम्मी रेखा का हाथ अपने हाथ में ले कर उसे तसल्ली देने लगीं. रेखा को ऐसा लग रहा था जैसे उस की बहन उसे तसल्ली दे रही हो.

विनय की तीनों आर्टरी में ब्लौकेज था. तुरंत औपरेशन कर दिया गया और वह सफल रहा. अभी विनय को हफ्ताभर अस्पताल में ही रहना था.

इस दौरान हर्ष के घर वाले रेखा और पीहू के साथसाथ ही रहे. डाक्टरों से बात करना, दवाइयां लाना, जरूरी पेपर्स जमा करना, सारी भागदौड़ हर्ष और उस के भाई कर रहे थे. हर्ष की बहनें पीहू और रेखा का पूरा ध्यान रख रही थीं.

एक हफ्ते बाद विनय घर आ गए.

‘‘पापा, आप को स्ट्रैस लेने की कोई जरूरत नहीं है. सब काम हो जाएंगे,’’ पीहू पापा का तकिया ठीक करते

हुए बोली.

‘‘कैसे होगा बेटा सबकुछ, शादी की तैयारियां कम जिम्मेदारी का काम नहीं. शोरूम तो एक हफ्ते से बंद ही पड़ा होगा. कितना नुकसान हो गया,’’ विनय थोड़े चिंतित हो उठे.

‘‘विनय भाईसाहब, आप सारी चिंता हमारे ऊपर छोड़ दो,’’ हर्ष के पापा बोले. उन के साथ हर्ष के चाचा और उन के दोनों बेटे तन्मय और निखिल भी थे.

‘‘आइए, आइए, बैठिए,’’ रेखा ने खड़े हो कर सब का स्वागत किया.

‘‘भाईसाहब, आप का शोरूम चकाचक चल रहा है. तन्मय और निखिल को मैं ने वहां सुपरविजन के लिए एक हफ्ते से बैठा रखा है. पीहू भी आप की तरह शोरूम को ले कर परेशान थी.

‘‘ठीक कह रहे हैं भाईसाहब, अस्पताल में भी सारी भागदौड़ हर्ष, उस के चाचाओं और बच्चों ने की. हमें तो जरा भी तकलीफ नहीं हुई. यहां तक कि घर भी हर्ष की बूआ ने संभाला और पीहू को तो हर्ष की बहनों ने बिलकुल भी अकेला नहीं छोड़ा.’’

‘‘अरे समधनजी, आप और हम सब एक परिवार हैं. अगर आप शादी की तारीख आगे बढ़ाना चाहते हैं तो हम उस के लिए तैयार हैं. यदि नहीं, तो तैयारियों की जिम्मेदारी हम पर छोड़ दीजिए. हम हैं न सब देख लेंगे. पीहू बिटिया तो उसी दिन से हमारी हो गई थी जब से आप लोगों के घर पहले दिन आए थे.

‘‘नरेश भाईसाहब, जब आप जैसे लोग हमारे साथ हैं, आप का पूरा परिवार हमारे साथ है तो मुझे किसी बात की चिंता करने की अब जरूरत ही क्या है. आज लग रहा है कि परिवार में जब सब साथसाथ होते हैं तो कंधे अपनेआप जिम्मेदारी लेने के लिए मजबूत बन

जाते हैं. मैं तो डर रहा था कि इतना

फैला हुआ परिवार, इतने रिश्तेनाते, उन्हें निभातेनिभाते मेरी पीहू घबरा जाएगी, लेकिन नहीं. इन रिश्तों से मेरी पीहू वे सब खुशियां पाएगी जो उसे बचपन से नहीं मिलीं.’’

तभी हर्ष भी आ गया, ‘‘अरे अंकलजी, यह आप क्या कर रहे हैं. डाक्टर ने आप को अभी कम बोलने को कहा है.’’

‘‘अरे भाईसाहब, अब तो घर में खुशी का माहौल होना चाहिए. बच्चों की शादी होने वाली है. नाचगाना, खानापीना सब होगा. बस, आप आराम करो और भलेचंगे हो कर सब एंजौय करो. काम हम करेंगे, क्यों बच्चो?’’ हर्ष के चाचा बोले.

खुशी के मारे पीहू और रेखा की आंखें भर आईं. हर्ष पीहू के पास आया और बोला, ‘‘तुम्हें तो पता है, मैं कितना शरीफ हूं. इस वक्त सब के सामने ज्यादा कुछ नहीं बोल सकता, न ही कर सकता हूं. पर इतना जरूर कहूंगा, हम साथसाथ हैं.’’

पीहू किसी की परवा न करते हुए हर्ष के गले लग गई.

हम साथ साथ हैं -भाग 1: पीहू हर रोज एक ही सवाल क्यों पूछती थी?

‘‘बताओ न हर्ष, तुम मुझ से कितना प्यार करते हो?’’

‘‘पीहू, रोजरोज यह सवाल पूछ कर क्या तुम मेरा प्यार नापती हो,’’ हर्ष ने पीहू की आंखों में आंखें डाल कर जवाब दिया.

‘‘यस मिस्टर, मैं देखना चाहती हूं कि जैसेजैसे हमारी रोज की मुलाकातें बढ़ती जा रही हैं वैसेवैसे मेरे लिए तुम्हारा प्यार कितना बढ़ रहा है.’’

‘‘क्या तुम्हें नजर नहीं आता कि मैं तुम्हारे लिए पागल हुआ रहता हूं. तुम्हारे ही बारे में सोचता रहता हूं. अब तो यारदोस्त भी कहने लगे हैं कि तू पहले वाला हर्ष नहीं रहा. कुछ तो बात है. पहले तो तू व्हाट्सऐप ग्रुप में सब के साथ कितना ऐक्टिव रहता था. इंस्टाग्राम पर रोज तेरी स्टोरी होती थी.’’

‘‘तो तुम उन्हें क्या जवाब देते हो?’’ पीहू हर्ष के बालों में उंगलियां फेरते

हुए बोली.

हर्ष ने पीहू की कमर में हाथ डाला और उसे अपने और करीब लाते हुए बोला, ‘‘क्या जवाब दूं कि आजकल मेरे ध्यान में, बस, कोई एक छाई रहती है, जिस की कालीकाली आंखों ने मुझे दीवाना बना दिया है. जिस की हर अदा मुझे मदहोश कर देती है. अब तुम्हारा दोस्त किसी काम का नहीं रहा.’’

हर्ष का यह फिल्मी अंदाज पीहू के मन को गुदगुदा गया. हर्ष की ये प्यारभरी बातें उसे बहुत भातीं. मन करता था कि वह उस की तारीफ करता रहे और वह सुनती रहे. एक अजीब से एहसास से सराबोर हो जाता था उस का तनमन.

वाकई हर्ष ने उस की जिंदगी में आ कर उसे जीने का नया अंदाज सिखा दिया था. जिंदादिल, दूसरों की मदद करने में हमेशा आगे, दोस्तों का चहेता, दिल से रोमांटिक, स्मार्ट, इंटैलिजैंट, कितनी खूबियां हैं उस में. बहुत खुशनसीब समझती है वह अपनेआप को कि हर्ष जैसा लवर उसे मिला.

वह अकसर सीमा को थैंक्यू कहती है कि उस दिन उस ने घर में बोर होती उसे मौल घूमने का आइडिया दिया था. तभी तो हर्ष उस की जिंदगी में आया था. कुछ महीने पहले की बात है…

‘यार पीहू, मैं तेरे साथ चलती लेकिन पापा टूर पर गए हैं और मम्मी को ले कर डाक्टर के पास जाना है,’ सीमा ने अपनी मजबूरी जताई.

‘कोई बात नहीं, टेक केयर औफ आंटी. वैसे, तेरा आइडिया बुरा नहीं है कि मौल में शौपिंग करो क्या फर्क पड़ता है, अकेले हैं या किसी के साथ.’

‘वही तो, अब जल्दी तैयार हो जा. कुछ अच्छा दिखे तो मेरे लिए भी ले लेना. समझी,’ सीमा हंसते हुए बोली.

‘हां, बस, तू पहले अपना शुरू कर दे, फैशन की मारी,’ पीहू ने सीमा की टांग खींची और ‘बाय’ कह कर फटाफट तैयार हो कर अपनी कार स्टार्ट की व मौल की तरफ गाड़ी मोड़ दी.

गाड़ी चलाते हुए अचानक उसे ध्यान आया कि शायद पर्स में कैश तो है ही नहीं. डैबिट कार्ड तो दोदो रखे थे लेकिन कैश तो होना ही चाहिए. ‘कोई बात नहीं एटीएम से निकाल लेती हूं,’ सोचते हुए एक एटीएम के आगे गाड़ी रोक दी. एटीएम के अंदर गई. नई एटीएम मशीन थी, टच स्क्रीन थी. पीहू ने 2 बार ट्राई किया लेकिन ट्रांजैक्शन नहीं हो पाया.

‘उफ, अब क्या करूं’ सोचतेसोचते उस ने एटीएम का दरवाजा जैसे ही खोला वैसे ही एक लड़का उस से ‘एक्सक्यूज मी’ कहता हुआ फटाफट अंदर घुस गया.

पीहू ने बाहर से ही देखा. लड़का बड़ा ही स्मार्टली मशीन औपरेट कर रहा था और उस ने कैश भी निकाल लिया.

‘क्यों न इस से मदद ले लूं,’ वह अभी सोच ही रही थी कि वह लड़का एटीएम से बाहर निकल कर अपनी बाइक पर बैठ गया.

‘एक्सक्यूज मी, कैन यू डू मी अ फेवर, आप जरा देखेंगे. मेरा ट्रांजैक्शन नहीं हो रहा है.’

‘ओह श्योर, चलिए,’ लड़के ने कहा.

पीहू ने उसे अपना कार्ड पकड़ाया तो वह बोला, ‘मैडम, इस तरह किसी को अपना कार्ड नहीं देते.’

‘यू आर राइट. लेकिन आप मुझे शरीफ लगते हैं, इसलिए आप पर भरोसा कर रही हूं,’ पीहू भी जवाब देने में पीछे नहीं रही.

लड़का मुसकरा पड़ा. फिलहाल उस लड़के की मदद से कैश उस के हाथ में आ गया और उसे ‘थैंक्स’ बोल कर वह जल्दी से अपनी गाड़ी में बैठ कर मौल की पार्किंग की तरफ निकल पड़ी व सीधा वहीं जा कर गाड़ी रोकी.

मौल में खासी रौनक थी. पीहू को वहां बहुत अच्छा महसूस हो रहा था. लोगों की चहलपहल, खूबसूरत शोरूम, फूडकोर्ट से आती तरहतरह की डिशेज की महक, सब उसे बेहद पसंद था. पीहू ने पहले शौपर्स स्टौप से अपने लिए टीशर्ट ली. एक सीमा के लिए भी ले ली, वरना ताने देदे कर वह उस की जान खा जाती.

शौपिंग करतेकरते और घूमते हुए फूडकोर्ट तक पहुंच गई तो भला अपनी पसंदीदा कोल्ड कौफी विद आइसक्रीम कैसे न लेती.

कौफी हाथ में लिए वह बैठने के लिए खाली टेबल देखने लगी. कोने में एक छोटी टेबल खाली थी. पीहू फटाफट वहां जा कर बैठ गई. इत्मीनान से कौफी का मजा लेने लगी.

‘हाय, इफ यू डोंट माइंड, मे आइ सिट हियर?’ आवाज सुन कर पीहू ने मुंह ऊपर उठाया तो वही लड़का हाथ में अपनी ट्रे लिए खड़ा था.

‘ओह, यू. प्लीज. आप को भी मौल आना था?’ पीहू को उस लड़के को देख कर न जाने कुछ अच्छा सा लगा.

‘मैं ने तो आप को शौपिंग करते हुए भी देखा था,’ उस लड़के के मुंह से अचानक निकल गया तो पीहू हलका सा हंस दी और वह लड़का कुछ झेंप सा गया.

‘अच्छा, तो फिर मेरा पीछा करते हुए आप यहां आए हैं?’ पीहू को उस लड़के से बात करना अच्छा लग रहा था.

‘मैडम, मैं शरीफ लड़का हूं, और आप ने खुद यह बात कही थी,’ वह लड़का भोला सा मुंह बनाते हुए बोला.

‘आई एम जस्ट किडिंग, आप तो सीरियस हो गए. एनी वे आई एम पीहू.’

‘पीहू मल्होत्रा, डैबिट कार्ड पर पढ़ लिया था,’ उस लड़के के मुंह से फिर निकला तो पीहू इस बार जोर से हंस पड़ी.

इस बार वह लड़का भी हंस दिया और बोला, ‘हर्ष, हर्ष नाम है मेरा. जनकपुरी में रहता हूं. एमबीए इसी साल कंप्लीट किया और पिछले महीने ही हिताची कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर की पोस्ट मिली है और…’

‘अरे बसबस, तुम तो अपना पूरा प्रोफाइल बताने लगे.’

इस तरह दोनों के बीच बातों का सिलसिला चल पड़ा. पीहू की कौफी खत्म हो गई तो वह बोली, ‘अच्छा हर्ष, अच्छा लगा तुम से मिल कर.’

‘सेम हियर. प्लीज कीप इन टच,’ हर्ष पीहू को गहरी नजरों से देखता हुआ बोला.

पीहू ने कुछ जवाब नहीं दिया. बस, मुसकरा भर दी.

घर पहुंचतेपहुंचते 8 बज गए थे. जैसे ही घर पहुंची, मम्मी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी, ‘कहां, क्यों, किस के साथ, अचानक कैसे, क्या खरीदा?’

‘मम्मी प्लीज, मैं बहुत थक गई हूं. भूख बिलकुल नहीं है, इसलिए डिनर नहीं करूंगी. बस, चेंज कर के मैं सोने जा रही हूं.’

‘लेकिन बेटा, कुछ तो खा ले. तेरा मनपसंद पुलाव बनाया है,’ रेखा मनुहार करती पीहू से बोली.

‘अच्छा, थोड़ी देर बाद भूख लगी, तो खा लूंगी, पर अभी मुझे रैस्ट करने दो.’

‘बड़ी अजीब लड़की है. कभी भी, कहीं भी चल देती है. बड़ी जल्दी बोर हो जाती है. हमेशा लोगों के बीच रहना चाहती है. अब जब फैमिली ही छोटी है तो क्या करूं,’ रेखा मन ही मन बुदबुदाती रही.

हम साथ साथ हैं -भाग 3 : पीहू हर रोज एक ही सवाल क्यों पूछती थी?

‘‘इतना ही नहीं, मेरी मम्मी की 4 मौसियां हैं और पापा के 3 मामा हैं. मेरे कजिंस से मिलोगी तो लगेगा किसी गैंग से मिल रही हो. सब एक से बढ़ कर एक हैं. लेकिन हम सब में बहुत प्यार है. व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया हुआ है हम ने. सभी अपनी सारी बातें सब से शेयर करते हैं. और वो…’’

‘‘अरे, अरे, और भी है अभी बताने को?’’ पीहू आंखें फैला कर बोली, ‘‘हर्ष, इतना बड़ा परिवार. बाप रे. कैसे संभालते हो सब रिश्तेनाते. रोज किसी का कुछ न कुछ लगा ही रहता होगा. याद कैसे रखते हो. और एक मेरी फैमिली है उंगली पर गिना सकती हूं सब को.’’

‘‘पीहू, तुम से मिल कर, तुम्हारी बातें, तुम्हारी आदतें सब देख कर मुझे लगा कि तुम मेरे लिए ही नहीं, मेरी फैमिली के लिए भी परफैक्ट हो.

‘‘अब बोलो, बनोगी मेरी फैमिली का हिस्सा?’’ हर्ष पीहू को अपनी बांहों में भरते हुए बोला.

‘‘बिलकुल बनूंगी. मैं आज ही तुम्हारे बारे में मम्मीपापा को बताती हूं,’’ पीहू ने हर्ष को प्यारभरा किस किया और फिर ‘बाय’ कहती हुई अपनी गाड़ी से घर चली गई.

पीहू ने घर आ कर हर्ष के बारे में मम्मीपापा को बताया. उन्हें सब ठीक लगा लेकिन सूई परिवार पर आ कर रुक गई.

मम्मी बोलीं, ‘‘पीहू, इतना बड़ा परिवार है, तेरे लिए सब निभाना मुश्किल हो जाएगा, बेटा. हर्ष तो तुझ से यही अपेक्षा रखता है कि तू उस के परिवार में आ कर उन जैसी बन जाए लेकिन बेटी, हमारे घर का माहौल और उन के घर का माहौल बिलकुल अलग होगा. तू कैसे सब निभाएगी?’’

‘‘हां पीहू, तुझे अभी सब अच्छा लग रहा है लेकिन शादी के बाद तुझे यह सब बंधन लगेगा. तुझे हम ने बहुत लाड़प्यार से पाला है और तुझे हम दुखी हरगिज नहीं देख सकते,’’ पीहू के पापा विनय बोले.

‘‘नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं होगा. बचपन से ही जब मेरे फ्रैंडस अपने मामा, चाचा, बूआ, कजिंस की बात बताते थे तो मैं सोचती थी कि काश, मैं भी ये रिश्ते महसूस कर पाती. समझ लीजिए, मेरी यह ख्वाहिश अब पूरी होने जा रही है,’’ पीहू ने पापा को समझाने की कोशिश की.

‘‘देख बेटा, तेरी खुशी में ही हमारी खुशी है. लेकिन फिर भी सोचसमझ ले. मेरा तो मन नहीं मान रहा,’’ मां बोलीं.

‘‘मम्मीपापा, कल आप हर्ष से मिल लीजिए, आप दोनों की सारी टैंशन दूर हो जाएगी. ओके, अब मैं सोने जा रही हूं. बहुत नींद आ रही है, गुड नाइट,’’ कहती हुई पीहू अपने कमरे में गई और बैड पर लेट कर हर्ष के मीठे सपने लेती हुई सो गई.

उधर रेखा और विनय बैडरूम में लेटे हुए हर्ष की ही बात कर रहे थे. विनय बोले, ‘‘रेखा, मैं ने अकसर देखा है बड़े परिवारों में मनमुटाव रहता है. संपत्ति, व्यापार, बच्चों को ले कर झगड़े हो ही जाते हैं. अरे, हमारी पीहू को तो हजारों लड़के मिल जाएंगे. किस बात में कम है वह. पता नहीं क्यों अपने को इतने बड़े परिवार के झमेले में फंसाना चाहती है.’’

‘‘अभी उस के दिमाग में हर्ष छाया हुआ है, हमारी कोई बात उसे समझ नहीं आएगी. चलो, कल हर्ष से मिल लेते हैं. फिर सोचेंगे आगे क्या करना है.’’

हर्ष से मिल कर रेखा और विनय बहुत खुश हुए. तय हुआ कि अगले रविवार को ही वह अपने मम्मीपापा के साथ आएगा शगुन ले कर.

अगले रविवार पीहू सुबह से ही चहक रही थी. हर्ष और उस के मम्मीपापा को 11 बजे आना था. रेखा चाय, नाश्ते और लंच की तैयारी कर रही थी. घर के कामकाज के लिए तो नौकर थे लेकिन खाना बनाने का काम वह खुद करती थी. नौकरों से खाना बनाना उसे पसंद नहीं था, क्योंकि नईनई डिश बनाने का शौक उसे छुटपन से रहा है.

वैसे भी, छोटी सी फैमिली के लिए खाना बनाना उस के लिए कोई मुश्किल काम नहीं था.

रेखा ने चाय के साथ के लिए स्नैक्स तो बाजार से मंगा लिए थे जैसे रसगुल्ले, ढोकला, प्याज कचौड़ी, ड्राईफ्रूट, नमकीन, काजू बिस्कुट आदि. लंच के लिए उस ने अपने हाथों से मलाई कोफ्ते, मटर पनीर, भरवां करेले, खट्टे छोले और शाही पुलाव, दहीभल्ले बनाए थे. सब तैयारी हो गई थी.

पीहू 10 बजे तैयार होने लगी थी. उस ने अपना फेवरेट पीला सूट निकाला था. नहाने के बाद वह ड्रैसिंग टेबल के सामने बैठी ही थी कि उस का मोबाइल बजा. हर्ष की कौल थी.

‘‘बोलो हर्ष.’’

‘‘पीहू, प्रोग्राम थोड़ा चेंज है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘अरे, अभी मम्मीपापा नहीं आएंगे बल्कि मेरे साथ दोनों चाचाचाची, ताऊजीताईजी, छोटी बूआ और कुछ कजिंस भी साथ आएंगे. तुम लोगों को कोई एतराज तो नहीं?’’

‘‘अरे एतराज कैसा, यू आर मोस्ट वैलकम.’’

‘‘ओह, लव यू पीहू. ओके, तो हम 11.30 बजे तक पहुंच जाएंगे सी यू.’’

पीहू ने फटाफट से मम्मीपापा को बताया.

‘‘अरे इतने लोगों को आना था तो कल रात को बता देते, तैयारी उसी हिसाब से करते,’’ विनय झल्लाते हुए बोले.

‘‘हां, मैं खाना भी उसी हिसाब से तैयार करती,’’ रेखा भी बोली.

‘‘मम्मी और खाना बाहर से और्डर कर देना. क्या फर्क पड़ता है,’’ पीहू लापरवाही से बोली.

‘‘अच्छाअच्छा, बहस छोड़ो, सब तैयार हो जाओ. मैं देखता हूं,’’ विनय बोले.

पीहू तो अपनी मस्ती में चली गई लेकिन विनय और रेखा एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

‘‘लो, अभी तो रिश्ता जुड़ा भी नहीं और मुसीबतें शुरू हो गईं. पता नहीं पीहू को भी यही लड़का मिला था,’’ विनय बोले.

‘‘अब एक ही बेटी है. उस की खुशी के लिए तो सब करना ही पड़ेगा,’’ रेखा ने विनय को समझाते हुए कहा.

पीहू हर्ष के कजिंस के बीच घिरी हुई थी. ड्राइंगरूम सब से भरा हुआ था. ठहाकोंकहकहों से घर गूंज रहा था. चाय, कौफी, कोल्डड्रिंक के साथ स्नैक्स का दौर चल रहा था. विनय और रेखा आराम से सोफे पर बैठे थे. नौकर छोटू के साथ हर्ष के कजिंस ने रसोई का मोरचा संभाल लिया था.

हम साथ साथ हैं -भाग 2 : पीहू हर रोज एक ही सवाल क्यों पूछती थी?

मम्मी रेखा और पापा विनय की इकलौती संतान है पीहू. दिल्ली के कीर्तिनगर बाजार में फर्नीचर का अच्छा शोरूम है उन का. कीर्तिनगर में ही 300 गज की दोमंजिली कोठी है उन की. कुल मिला कर पीहू अमीरी में पलीबढ़ी है. सारे ऐशोआराम मिले हैं उसे. मम्मीपापा की तो जान है वह.

पीहू पढ़ाईलिखाई में ठीकठाक थी. रचनात्मकता की उस में कमी नहीं थी. इसलिए स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीए के बाद जेडी इंस्टिट्यूट औफ फैशन टैक्नोलौजी से उस ने 2 साल का इंटीरियर डिजाइन का पीजी डिप्लोमा किया.

पीहू ने कई बड़ी कंपनियों में अपना सीवी पोस्ट किया था. अगले हफ्ते के लिए उसे गुरुग्राम स्थित एक बड़ी फर्म से इंटरव्यू कौल आई हुई थी. पीहू ने अभी तक तय नहीं किया कि वह जाएगी भी या नहीं.

खैर, पीहू ने अपने कमरे में आ कर कपड़े चेंज किए और बैड पर लेट गई. सच में, मौल घूम कर वह काफी थक गई थी. पता नहीं क्यों उस की आंखों के आगे बारबार हर्ष का चेहरा आ रहा था. थकावट के मारे नींद नहीं आ रही थी. वह उठ कर बैठ गई और अपना मोबाइल चैक करने लगी. मोबाइल पर ही फेसबुक देखने लगी. हर्ष ने फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी हुई थी. पीहू ने झट एक्सैप्ट कर ली. उस के बाद वह मोबाइल साइड में रख कर सो गई.

सीमा के ही बहुत कहने पर वह इंटरव्यू के लिए चली गई. मल्टीनैशनल कंपनी थी. पीहू का क्रिएटिव वर्क उन्हें बहुत पसंद आया. उन्होंने पीहू को अच्छा पैकेज औफर किया और कंपनी जौइन करने के लिए कहा. पीहू को ऐसी बिलकुल उम्मीद नहीं थी. अपने बलबूते पर पहले इंटरव्यू में ही सेलैक्शन हो जाना काफी बड़ी बात थी. पीहू ने हां कहने में देर नहीं लगाई.

घर लौटते हुए उस के पांव जमीं पर नहीं टिक रहे थे. पीहू कैब कर के ही यहां आई थी क्योंकि इतनी दूर ड्राइव करने का उस का मन नहीं था. कंपनी के बाहर आ कर वह कैब बुक करने लगी. पूरे आधे घंटे की वेटिंग आ रही थी. पीहू ने सोचा, आधा घंटा इंतजार करने के बजाय वह मैट्रो न ले ले. सामने ही मैट्रो स्टेशन नजर आ रहा था. ‘चलो, आज मैट्रो ही सही,’ सोचते हुए मैट्रो स्टेशन की ओर चल दी.

रोड क्रौस करने ही वाली थी कि एक बाइक ने जोर से हौर्न दिया. पीहू ने पीछे मुड़ कर देखा. बाइक पर बैठे युवक के चेहरे पर हैल्मेट का काला शीशा था, सो, वह शक्ल नहीं देख पा रही थी, लेकिन वह उसे हाथ हिला कर पास आने का इशारा कर रहा था. ‘कौन बदतमीज है’ पीहू जोर से बोलने ही वाली थी कि युवक ने अपना हैल्मैट उतार दिया. ‘अरे हर्ष, वाऊ व्हाट अ कोइंसिडैंट, कहां जा रहे हो?’

‘मैडम, जा नहीं रहा, औफिस से आ रहा हूं. बताया तो था कि गुरुग्राम के सैक्टर 26 में मेरा औफिस है. लेकिन तुम कहां से आ रही हो?’

‘हर्ष, आज मेरा इंटरव्यू था और आई गोट द जौब, बहुत खुश हूं मैं,’ पीहू ने चहकते हुए बताया.

‘वाऊ, फिर तो ट्रीट हो जाए इस खुशी में,’ हर्ष ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा.

‘बिलकुल, लेकिन आज नहीं. कल पक्का,’ पीहू ने कहा, ‘घर जाना है अभी. मम्मी इंतजार कर रही हैं. पापा घर पर नहीं हैं, वे अकेली हैं.’

‘यार, मैट्रो छोड़ो. मेरी बाइक पर बैठो. देखो कितनी जल्दी पहुंचाता हूं तुम्हें घर,’ हर्ष ने कहा तो पीहू भी मान गई और हर्ष की बाइक पर बैठ गई.

आज वह वैसे ही बहुत खुश थी. ऊपर से हर्ष का साथ उसे और प्रफुल्लित कर रहा था. स्पीड ब्रेकर आया तो झटके के कारण उस ने हर्ष को दोनों हाथों से पकड़ लिया. ‘मैडम जरा अच्छी तरह से बैठो. बाइक तेज चला रहा हूं, इसलिए कह रहा हूं. कोई गलत मतलब मत समझना,’ हर्ष हंसते हुए बोला.

‘और अगर गलत मतलब समझूं तो?’ पीहू ने जानबूझ कर मस्ती करने के लिए कहा.

‘तुम तो जानती हो, मैं कितना शरीफ लड़का हूं,’ हर्ष ने अपना वही पुराना डायलौग मारा तो दोनों हंस पड़े.

इस तरह से हर्ष और पीहू की जानपहचान बढ़ती गई. मुलाकातें पहले हफ्ते में एक, फिर 2 और अब तो रोज ही दोनों मिलते थे क्योंकि अब दोनों एकदूसरे के प्यार में अच्छी तरह से डूब गए थे.

‘‘हर्ष, तुम मुझ से हमेशा इसी तरह प्यार करते रहोगे?’’

‘‘पीहू, शादी करोगी मुझ से,’’ जवाब सुनाने के बजाय हर्ष का उस से एकदम से यह पूछना पीहू को चौंका गया. हर्ष आगे बोला, ‘‘बोलो न, जितना सीधा साफ मैं ने तुम से सवाल किया वैसा ही जवाब चाहता हूं?’’

‘‘घर कब आ रहे हो मम्मीपापा से मिलने?’’ पीहू ने शरारती नजरों से हर्ष को देखते हुए कहा.

‘‘यस, मुझे पता था, तुम इनकार क्यों करोगी भला. वह तो मैं ऐसे ही पूछ रहा था,’’ हर्ष ने पीहू को छेड़ा.

‘‘अच्छा, बताऊं तुम्हें. वैसे भी, मैं ने कब हां कहा. मैं ने तो ऐसे ही पूछा है कि मम्मीपापा से मिलने कब आ रहे हो. मेरे फ्रैंड्स क्या मेरे घर नहीं आते,’’ पीहू भी अकड़ कर बोली.

‘‘अच्छा… अच्छा, अब सब मजाक बंद. सच में पीहू, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं क्योंकि तुम मेरे परिवार के लिए फिट हो,’’ हर्ष गंभीर हो कर बोला.

‘‘परिवार के लिए फिट हूं, मतलब?’’ पीहू ने हैरानी से पूछा.

‘‘पीहू, तुम्हें शायद मैं ने बताया नहीं कि हमारी जौइंट फैमिली है,’’ हर्ष बोला.

‘‘हां, तो फिर क्या हुआ. मुझे तो अच्छी लगती है जौइंट फैमिली. हमारी न्यूक्लिर फैमिली रही है. इसलिए मैं तो चाहती थी कि मेरी शादी ऐसी जगह हो जहां घर में सब रिश्ते निभाने को मिलें,’’ पीहू हर्ष का हाथ अपने हाथ में ले कर बोली.

‘‘मेरे घर में तुम्हें इतने रिश्ते निभाने को मिलेंगे कि निभातेनिभाते थक जाओगी. माई डियर, छोटीमोटी जौइंट फैमिली नहीं है मेरी, अच्छाखासा भरापूरा बहुत बड़ा परिवार है हमारा.

‘‘ताऊजी उन के 2 बेटे, दोनों की शादी हो गई है और उन के 1-1 बच्चा है. 2 मामा जिन की 2-2 बेटियां हैं, अनमैरिड हैं. 3 मौसियां हैं, तीनों का परिवार यहीं दिल्ली में है. 2 बूआ हैं, एक अंबाला में रहती थीं, वे भी पिछले साल दिल्ली शिफ्ट हो गईं. दोनों चाचा तो साथ ही रहते हैं. पता है, मेरी दादी और नानी 80 वर्ष से ज्यादा की हो गईं. दोनों अभी भी अपने सारे काम खुद करती हैं. दादी हमारे साथ रहती हैं. एक तरह से उन्होंने ही मुझे बचपन में पाला है.

ई -संसार में  विस्तृत होता  हिंदी का सम्राज्य

पिछले कुछ वर्षो में  इन्टरनेट पर हिन्दी ने अपनी जगह सुरक्षित कर ली है, हिंदी के साथ अन्य  भारतीय भाषाओं का भी इंटरनेट पर तेजी से विकास हो रहा है.  इंटरनेट पर हिन्दी की बढ़ती लोकप्रियता हिन्दीं के विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है. भारत में करीब छह करोड़ लोग इंटरनेट का उपयोग करते है. दुनिया का सबसे बड़ा सर्च इंजन में कई हजार पेज हिंदी के है, प्रति दिन लगभग पच्चीस प्रतिशत लोग इंटरनेट पर हिन्दीं की सामग्री ढूंढते है, और करीबन 30 प्रतिशत हिंदी लोग इंटरनेट पर हिन्दी की सामग्री उपलब्धं कराते है. साथ ही हिन्दी में ई-मेल भेजने का प्रचलन तेजी से बढ़ा है. देश के कई हजार हिंदी समाचार पत्र- पत्रिकाए हिंदी में इन्टरनेट पर नित्य प्रकाशित हो रही है.

विगत वर्षो में हिन्दी का इंटरनेट पर सम्राज्य बढ़ा है, इनमें हिंदी में संचालित वेबसाइटो का महत्वपूर्ण योगदान है . कई हिंदी के वेब पोर्टल तेजी से इंटरनेट में विकास कर रहे है. इंटरनेट में वेब पेज रैकिंग देने वाले साइट एलेक्सा के ताजा रिपोर्ट के अनुसार कई हिंदी  सीटो ने टॉप 500 वेब साइटो में जगह बना कर यह साबित कर दिया है, हिंदी साइटो की पाठको की संख्या दिन प्रतिदिन इंटरनेट पर बढ़ रही है, उसी रफ़्तार से हिंदी वेबसाइट  कों संख्या भी बढ़ रही है.

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हिन्दी के विकास में ब्लाग्स  का योगदान भी काफी महत्वापूर्ण है. इतना सब होने के बावजूद हिन्दी  विश्व की उन दस भाषाओं में शामिल नहीं है जो नेट पर सर्वाधिक प्रयुक्त‍ होती है. धीरे धीरे हिन्दी नेट पर अपनी जड़ें जमा रही है. ब्लांग्से सब के लिए खुले हुए है ये एक चौपाल की तरह है. हिन्दी में लगभग पंद्रह हजार से अधिक हिन्दी बलाग्स  है. करीबन 1500 ब्लाग्स  कों नियमित तौर पर पढ़ा जाता है, करीबन तीन हजार से अधिक लोग नियमित रूप से ब्ला्ग्सस पर अपने विचारो का अदान-प्रदान करते है. हिंदी विचारो कों विश्व पटल पर प्रसारित करने में हिंदी के कई वेबसाईट दिन रात काम हिंदी के विकास के लिए काम कर रहे है, ब्लाग-वाणी, ब्लाग्स का सबसे पसंदीदा साईट में एक है.

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इंटरनेट पर हिन्दी में तकनीकी विषयों की सामग्री की तेजी से बड़ी है. विज्ञान, स्वावस्थ्ल‍य, अभियांत्रिकी, फाइनेंस, मैनेजमेंट आदि विषयों के लेखकों की आवश्यंकता भी तेजी से बढ़ रही है, जिससे इस क्षेत्र में सुनहरा करियर भी उभर रहा है . अब विश्व के किसी कोने में बैठ कर इंटरनेट पर हिंदी के कविता, कहानी, समीक्षा, व्यं ग्यि और पूरे उपन्यानस को निशुल्क  पढ़ा, सुना और देखा, जा सकता है.

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भारत में तेजी से इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ रही है, यह संख्या तेजी से हिन्दी भाषी क्षेत्रो  एवं गाँवो में बढ़ रही है.   गाँवो और हिंदी भाषी क्षेत्रो में इन्टरनेट का तेजी से विकास हिंदी के सामग्री कों इंटरनेट पर बढ़ने में मदद कर रहा है . इन इलाकों के लोग अपने भाषा में इंटरनेट पर सामग्री खोजते है और इंटरनेट पर साम्रगी डालते है , जिनसे हिंदी में देखे जाने वाले पेजों और हिंदी पेजों की संख्या बढती है.

हक़ माँगने में परहेज़ कैसा

लेखिका- प्रेक्षा सक्सेना

रुचि बहुत ही जुझारू महिला है उसके पति कुछ वर्षों पूर्व एक दुर्घटना में लकवाग्रस्त हो गए थे ऐसे में वो घर बाहर सब संभाल रही थी और अपने इकलौते बेटे को पढ़ा भी रही थी अभी अभी उसका मेडिकल में चयन भी हो गया था ऐसे में ये सोच का विषय था कि आखिर रुचि परेशान क्यों है?उसकी दुविधा ये थी कि उसके पिता की मृत्यु 2004 में ही हो गई थी उसके इकलौते भाई की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी ऐसे में उसके मायके में जो संयुक्त पैतृक ज़मीन थी उसका बँटवारा अभी तक नहीं हुआ था किंतु अभी किसी कारण से उस ज़मीन को बेचा जा रहा था रुचि का सोचना था कि अगर उसमें से कुछ पैसा उसे मिल जाये तो उसके बेटे की मेडिकल की पढ़ाई के लिए उसे  कोई लोन नहीं लेना पड़ेगा .सबने उसे समझाया कि तुम अपनी माँ से बात करो तो रूचि का कहना था कि 2005 में कानून बना तो है पर पापा तो 2004 में ही नही रहे ऐसे में उसे उसका हिस्सा  मिल पायेगा क्या?  तब उसने अपनी एक सहेली जो कि लीडिंग एडव्होकेट है  से बात की जिसने रुचि को बताया कि 1956 में जो कानून था उसके अनुसार यदि किसी हिन्दू संयुक्त परिवार का मुखिया वसीयत छोड़े बिना ही मर जाता है और उसके परिवार में बेटे और बेटियां हैं.

उसकी सम्पत्ति में एक मकान भी है, जिस पर किसी भी वारिस का पूरी तरह से कब्जा नहीं है. एेसे में बेटियों को हिस्सा तभी मिलेगा, जब बेटे अपना-अपना हिस्सा चुन लेंगे. हालांकि अगर बेटी अविवाहित, विधवा या पति द्वारा छोड़ दी गई है तो कोई भी उससे घर में रहने का अधिकार नहीं छीन सकता. वहीं विवाहित महिला को इस प्रावधान का अधिकार नहीं मिलता परंतु अब उसे जरूर अपना हिस्सा ज़रूर माँगना चाहिए क्योंकि अभी कुछ ही दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराधिकार कानून में 2005 में किये गए संशोधन पर फैसला देते हुए कहा है कि हिन्दू अविभाजित परिवार में पैतृक संपत्ति पर बेटे की तरह बेटियों का भी समान अधिकार होगा भले ही 2005 में हुए इस संशोधन से पूर्व उसके पिता की मृत्यु क्यों न हुई हो.ये पता लगने  के बाद रुचि ने सोचा कि ठीक है तब मैं बात करूँगी .

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पर माँ से बात करने पर  उसकी माँ ने उल्टा उसे खूब समझाया कि लोग तरह तरह की बातें करेंगे और फिर एक ही तो भाई है तेरा पैसे के चक्कर में रिश्ते खो देगी इसलिए ये बात तुझे सोचना ही नहीं था .ज़ाहिर है कि रुचि ने रिश्तों के बारे में सोचा और अपने हक़ माँगने का विचार त्याग दिया .ये केवल रुचि की नहीं कई महिलाओं की कहानी है ये सब सुनकर हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि अगर हम इस तरह की सामाजिकता में जकड़े हैं तो कौनसा कानून औरत को हक़ दिला सकता है .सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि वन्स ए डॉटर ऑलवेज़ ए डॉटर ,सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय स्वागत योग्य है पर ये भी उन्हीं सारे कानूनों की तरह है जो महिलाओं के हित में बना तो दिए गए पर उनकी सामाजिक स्वीकार्यता पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है.जब बेटियों और बेटों को पिता से सामान जीवन मूल्य और समान संस्कार धरोहर के रूप में मिलते हैं ,पिता के स्नेह के दोनों समान अधिकारी हैं तो फिर संपत्ति में बेटियों का हिस्सा बराबर क्यों नहीं ये एक सामाजिक प्रश्न है जिसका उत्तर कानून बनाने से शायद मिलना संभव नहीं है.हमारे देश मे समाज की एक बड़ी भूमिका है जब तक किसी बात की स्वीकार्यता सामाज में नहीं है.

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तब तक उसका लागू हो पाना मुश्किल ही होता है वो बस आदेशों में ही बँधी रह जाती है.हमारे समाज की संरचना कुछ इस प्रकार की है कि हर बात को तुरंत ही स्त्री की प्रतिष्ठा से जोड़ लिया जाता है और इसलिए वो अपने हित मे बने कानूनों का लाभ नहीं ले पाती है.कई बार महिला बड़ी ही मुश्किलों से अपना जीवन यापन कर रही होती है पति की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने पर या उसके न रहने पर और वहीं उसके मायके में बहुत सी सम्पत्ति होती है और भाई की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होते हुए भी वो बहन को उसमें से कुछ भी देता नहीं है ऐसे में यदि वो अपना अधिकार माँगती भी है तो उसे रिश्तों और संपत्ति में से किसी एक को चुनने को कहा जाता है और वो इसी द्वंद में झूलती रह जाती है और अपने अधिकार से वंचित हो जाती है.यदि बेटी और बेटे दोनों की आर्थिक स्थिति समान होती है और पैतृक संपत्ति बहुत होती है ऐसे में यदि कोई महिला चाहे कि वो भी अपना अधिकार माँगे तो उसे लालची कहा जाने लगता है अपने ऊपर इस तरह का ठप्पा लगने से बचने के लिए वो अपना हिस्सा नहीं माँगती .बेटी को बेटे के समान अधिकार दिलाने के लिए हमारे सामाजिक ढाँचे में बदलाव ज़रूरी है.सोच को किस तरह बदला जाए ये विचार का विषय है .आज इस कानून के बनने के बाद एक नई समस्या का सामना भी करना पड़ सकता है महिलाओं को क्योंकि आज भी महिलाओं का एक बड़ा तबका आत्मनिर्भर नही है ऐसे में वो अपने पति की बात मानने को बाध्य हैं चाहे वो गलत कहे तब भी ऐसे में उस पर दबाव बनाया जा सकता है कि अपना हिस्सा मायके से लो .इस तरह कुल मिला के इस कानून का फायदा तभी है जब समाज इसको स्वीकार करे .बेटियों को पहले सम्पत्ति में हिस्सा

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इसलिए नही दिया जाता था कि भाई समय समय पर उनकी मदद करता रहे उनका आदर सत्कार और मांन सम्मान करता रहे परन्तु समय के साथ जीवन मूल्य बदले हैं अब पहले की तरह की स्थितियाँ नहीं रही हैं ऐसे में बेटियों का अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना ही सही है.फिर माता पिता तो बेटा हो या बेटी दोनों के ही हैं ऐसे में उसका भी समान हक़ है ही . जहाँ हमारे समाज में ये मानसिकता है कि माता पिता को मुक्ति बेटा ही दिलाएगा ऐसे में बेटे को ही माता पिता से सब पाने का अधिकार है.

फिर माता पिता की ये सोच होती है कि कल हम नहीं रहेंगे तो भाई का घर ही बेटी का मायका होगा और भाई उसको समय समय पर कुछ न कुछ देता ही रहेगा इसलिए उसे सब मिलना चाहिए इस मानसिकता के चलते अपने जीवित रहते माता पिता इस विषय में विचार ही नहीं कर पाते और उनके बाद उसे उपहार देने में भी बस खानापूर्ति  ही की जाती है और वो अपने को ठगा सा महसूस करती है पर रिश्ते बनाये रखने के लिए वो कुछ कह नहीं पाती है इसलिए इस विषय मे समाज की मानसिकता में भी बदलाव लाने का वक़्त आ गया है. बेटियाँ अगर अधिकार माँग भी लेती है तो एक अनजाने अपराधबोध से ग्रसित रहती है क्योंकि कानून चाहे जो हो पर सदियों से जो मानसिकता रही है उसको बदलना मुश्किल ही होता है.

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अब जब कि बेटियाँ बेटों के साथ हर क्षेत्र में समान रूप से खड़ी हैं यहाँ तक कि सदियों से चली आ रही परंपराओं को तोड़ते हुए बेटियाँ माता पिता की अंत्येष्टि कर्म तक कर रही हैं ऐसे में ये घिसी पिटी सोच भी बदलना चाहिए .यहाँ एक बात और गौर करने लायक है कि जिस तरह संपत्ति में अधिकार में दोनों समान हैं वैसे ही माता पिता के प्रति दायित्वों का निर्वहन भी दोनों को समान रूप से करना चाहिए .गौरतलब है कि अभी कुछ दिन पूर्व ही किसी केस में फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बेटे की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने पर तीनों बेटियों को भी माता पिता के भरण पोषण के लिए आर्थिक सहायता देने का आदेश दिया था . सिक्के के दोनों पहलुओं पर विचार आवश्यक है परंतु जब ये कानून बन गया है तो आवश्यकता होने पर अपना अधिकार माँगने में बेटियों को अपना सँकोच छोड़ना चाहिए.

आफताब शिवदासानी को भी हुआ कोरोना, घर पर होंगे Quarantine

कोरोना वायरस जैसी गंभीर बीमारी से इन दिनों हर कोई परेशान है. इस बीमारी ने किसी को भी नहीं छोड़ा है. कोरोना वायरस से देश- विदेश पूरा परेशान हैं. ऐसे में कोरोना वायरस के चलते सेलेब्स भी परेशान हो चुके हैं. हाल ही में बॉलीवुड के मशहूर सितारा आफताब शिवदासानी ने ट्विट करके फैंस को जानकारी दी है कि वह कोरोना जैसी गंभीर बीमारी के चपेट में आ चुके हैं.

आफताब शिवदासानी ने ट्विट करते हुए लिखा है कि मेरे प्यारे दोस्त मुझे उम्मीद है कि आप लोग जहां भी होंगे स्वस्थ होंगे मस्त होंगे , आप लोग अपना ख्याल रख रहे होंगे. हाल ही मुझे सुखी खांसी हुआ और बुखार हुआ तो मैंने अपना टेस्ट करवाया फिर मुझे पता चला कि मैं कोरोना के चपेट में आ चुका हूं. मुझे घर में ही कोरेंटाइन रहने की सलाह दी गई है. मैं उन सभी लोगों को टेस्ट कराने की सलाह देता हूं जो मुझसे पिछले कुछ दिनों में मिले हैं. उम्मीद है आप लोगों के सपोर्ट से जल्द ठीक हो जाउंगा.

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आगे आफताब ने कहा कि आप लोग सोशल डजिस्टेंशिंग का पलन करें और मास्क लगाएं. हम सभी एक साथ मिलकर इस बीमारी से जीत पाएंगे. आपका आफताब

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बता दें कि आफताब से पहले अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय, अभिषेक बच्चन और भी बॉलीवुड के कई सितारे इस खतरनाक बीमारी के चपेट में आ चुके हैं और कुछ दिनों तक अस्पताल में रहने के बाद वह अफने घर वापस आ गए हैं. उम्मीद है अफताब भी जल्द ही ठीक हो जाएंगे.

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कोरोना वायरस का यह बीमारी लगातार भारत में बढ़ता जा रहा है. इस बीमारी का प्रकोप खत्म होने का नाम नही ले रहा है. ऐसे में आप खुद का बचाव खुद ही कर सकते हैं.

अंकिता के सपोर्ट में बोले बॉयफ्रेंड विक्की जैन, शिबानी दांडेकर को दिया ये जवाब

रिया चक्रवर्ती इन दिनों जेल में सलाखों के पीछे हैं. इस समय अंकिता लोखंडें सुशांत सिंह के परिवार को अच्छे से सपोर्ट करती नजर आ रही हैं. इस दौरान रिया चक्रवर्ती की  दोस्त शिबानी दांडेकर ने अंकिता लोखंडें पर आरोप लगाएं है कि वह अपनी थोड़ी सी फेम के लिए यह सब कर रही हैं.

वहीं शिबानी दोड़कर को जवाब देते हुए अंकिता लोखंडें ने सोशल मीडिया पर ट्विट किया था. जिसके बाद अंकिता लोखंडें को उनके फैंस ने भी सोशस मीडिया पर सपोर्ट किया था. वहीं फैंस शिबानी दांडेकर को फैंस बहुत ज्यादा बुरा भला भी कह रहे हैं. इसी बाच अंकिता लोखंडें के बॉयफ्रेंड भी अंकिता लोखंडें के सपोर्ट में आ गए हैं.  विक्की जैन ने सोशल मीडिया पर अंकिता लोखंडें को क्वीन का दर्जा दे डाला है.

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विक्की जैन ने अपने पोस्ट में लिखा है कि पसंद किए जानें और बेसकिमती होने में जमीन आसमान का फर्क होता है. बहुत लोग आपको पसंद तो बहुत करते हैं लेकिन आपको अहमियत कम देते हैं. वहीं कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके लिए आप सबकुछ होते हैं. अपनी कद्र करवाना सिखिए. अच्छे इंसान बनने की सोचिए.

 

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Mere do Anmol Ratan ek hai scotchi toh ek hatchi ❤️ #myboys?? #scotchhatchi

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विक्की जैन ने अपनी बातों में शिबानी दांडेकर को करारा जवाब दिया है. बता दें कि विक्की जैन का यह अंदाज अंकिता लोखंडें को बहुत ज्यादा पसंद आया है. अंकिता ने विक्की के इस पोस्ट को अपने इंस्टाग्राम पर शेयर किया है. फैंस अंकिता लोखंडें को अच्छे से सपोर्ट कर रहे हैं.उन्हें पता है कि अंकिता इस समय सच कि लड़ाई लड़ रही हैं. अंकिता के इस बात अंदाज को देखकर फैंस भी बहुत ज्यादा खुश हैं.

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बता दें अंकिता लोखंडें और सुशांत सिंह राजपूत एक समय पर एक –दूसरे के लिए जान छिड़कते थें. दोनों जल्द शादी भी करने वाले थें लेकिन अचानक रिस्ता बीच में टूट गया.

मृत्युदंड से रिहाई

लेखिक-श्रुति अग्रवाल

Crime Story: फिरौती 1 करोड़ की

उत्तर प्रदेश में बढ़ रही आपराधिक घटनाएं बता रही हैं कि अपराधी अब बेलगाम हो चुके हैं. कानपुर, गोंडा और गोरखपुर में अपहरण के बाद हुई हत्याओं ने साबित कर दिया कि अब अपराधियों के दिल में पुलिस नाम का कोई डर नहीं है.

लगातार बढ़ रही घटनाओं से पुलिस भी शक के घेरे में आ रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद में 14 वर्षीय बलराम गुप्ता की अपहरण के बाद हुई हत्या से प्रदेश के लोगों में डर बैठ गया है. लोगों का सोचना है कि जब मुख्यमंत्री के जिले के लोग ही सुरक्षित नहीं हैं तो और लोग कैसे सुरक्षित रह सकते हैं.

गोरखपुर जिले के थाना पिपराइच के गांव जंगल छत्रधारी टोला मिश्रौलिया के रहने वाले बच्चे बलराम गुप्ता का जिस तरह अपहरण करने के बाद उस की हत्या कर दी गई, उस से पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई.

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5वीं कक्षा में पढ़ने वाला बलराम गुप्ता 26 जुलाई, 2020 को दोपहर 12 बजे खाना खा कर रोजाना की तरह घर से बाहर खेलने निकला. अपने दोस्तों के साथ खेलने के बाद वह अकसर डेढ़दो घंटे में घर लौट आता था, लेकिन उस दिन वह घर नहीं लौटा. उस की मां और बहन ने उसे आसपास ढूंढा, लेकिन बलराम के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

बलराम के पिता महाजन गुप्ता घर के पास में ही पान की दुकान चलाते थे. इस के अलावा वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करते थे. जब उन्हें पता लगा कि बलराम दोपहर के बाद से गायब है तो वह भी परेशान हो गए. करीब 3 बजे महाजन गुप्ता के मोबाइल फोन पर एक ऐसी काल आई जिस से घर के सभी लोग असमंजस में पड़ गए.

फोन करने वाले ने कहा कि तुम्हारा बेटा बलराम हमारे कब्जे में है. अगर उसे जिंदा चाहते हो तो एक करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो, अन्यथा बहुत पछताना पड़ेगा.

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यह खबर सुनते ही महाजन गुप्ता घबरा गए. उन्होंने अपहर्त्ता से कहा कि वह उन के बेटे का कुछ न करें. जैसा वे कहेंगे वैसा ही करने को तैयार हैं. बलराम अपनी 5 बहनों के बीच इकलौता भाई था, इसलिए वह घर में सभी का लाडला था. बलराम के अपहरण की जानकारी उस की मां और बहनों को हुई तो सभी परेशान हो गईं.

महाजन गुप्ता की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि वह एक करोड़ रुपए की व्यवस्था कर सकें, इसलिए वह यह सोचसोच कर परेशान हो रहे थे कि इतने पैसों का इंतजाम कहां से करें. उसी दौरान अपहर्त्ताओं ने उन्हें दोबारा फोन किया, ‘‘एक बात याद रखना पुलिस को सूचना देने की भूल मत करना…’’

‘‘नहींनहीं, मैं ऐसा हरगिज नहीं करूंगा. लेकिन आप जितने पैसे मांग रहे हैं, मेरे पास नहीं हैं. अगर कुछ कम कर लेंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’ महाजन गुप्ता ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

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‘‘इस बारे में हम 5 बजे के करीब फिर बात करेंगे. तब तक तुम पैसों का इंतजाम करो.’’ अपहर्त्ता ने कहा.

महाजन को लगा कि वह अपहर्त्ताओं द्वारा मांगी गई फिरौती का इंतजाम नहीं कर सकते, इसलिए उन्होंने इस की जानकारी पुलिस को दे दी. बच्चे के अपहरण की सूचना मिलते ही थाना पपराइच पुलिस उसी समय महाजन के घर पहुंच गई. घर वालों से बातचीत करने के बाद पुलिस ने उन बच्चों से भी पूछताछ की, जिन के साथ बलराम अकसर खेला करता था.

थाना पुलिस अभी यह जांच कर ही रही थी कि पुलिस को सूचना मिली कि गांव से 3-4 किलोमीटर दूर नहर में एक बच्चे की लाश पड़ी है. सूचना मिलने पर पुलिस महाजन गुप्ता को ले कर नहर पर पहुंच गई. नहर में मिली लाश बलराम की ही निकली, जिस की शिनाख्त महाजन ने कर ली.

बेटे की लाश देखते ही महाजन गुप्ता गश खा कर वहीं गिर गए. गांव में यह खबर फैली तो सभी सन्न रह गए. महाजन के घर में तो हाहाकार मच गया. गांव वाले समझ नहीं पा रहे थे कि प्रदेश में यह क्या हो रहा है. अपराधी बेलगाम हो कर वारदात पर वारदात कर रहे हैं और पुलिस कान में तेल डाले सो रही है.

लिहाजा बलराम की हत्या के बाद ग्रामीणों में पुलिस के प्रति आक्रोश बढ़ने लगा, जिस के बाद खबर मिलने पर जिला स्तर के पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. चूंकि मामला प्रदेश के मुख्यमंत्री के गृह जनपद का था, इसलिए मुख्यमंत्री को भी इस घटना की जानकारी मिल गई. उन्होंने मामले को गंभीरता से लेते हुए शीघ्र ही केस का खुलासा करने के आदेश दिए.

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मुख्यमंत्री के आदेश पर थाना पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच और एसटीएफ भी केस को खोलने में जुट गई. पुलिस टीमों ने सब से पहले महाजन गुप्ता से पूछा कि उन की किसी से कोई रंजिश तो नहीं है. महाजन ने जब दुश्मनी होने से इनकार कर दिया तो जांच टीमों ने उस फोन नंबर की जांच शुरू कर दी,जिस से महाजन के पास फिरौती की काल आई थी.

उस फोन नंबर की जांच के सहारे पुलिस रिंकू नाम के उस शख्स के पास पहुंच गई, जिस ने वह सिम कार्ड फरजी आईडी पर दिया था. रिंकू ने बताया कि वह सिम उस ने दयानंद राजभर नाम के व्यक्ति को दिया था.

रिंकू को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने  उस की निशानदेही पर दयानंद राजभर को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने स्वीकार कर लिया कि बलराम की हत्या में अजय चौहान और नितिन चौहान भी शामिल थे. उन्होंने फिरौती के चक्कर में उस की हत्या की थी.

बलराम की हत्या का केस लगभग खुल चुका था. अब केवल अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी बाकी थी. पुलिस टीमों ने अन्य अभियुक्तों की तलाश में संभावित स्थानों पर दबिश डालनी शुरू की. अगले दिन 27 जुलाई को पुलिस को सूचना मिली कि आरोपी अजय चौहान और नितिन उर्फ मुन्ना चौहान को हैदरगंज के गुलरिहा गांव में रहने वाले उन के एक रिश्तेदार ने कमरे में बंद कर लिया है.

सूचना मिलने पर भारी तादाद में पुलिस गुलरिहा पहुंच गई और दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर थाने ले आई. अब तक पुलिस के हत्थे 5 आरोपी चढ़ चुके थे, जिन में 3 लोग बलराम के अपहरण और हत्या में शामिल थे और 2 पर फरजी कागजात के जरिए सिम कार्ड बेचने की बात सामने आई.

पूछताछ में अभियुक्तों ने बताया कि उन्हें खबर मिली थी कि महाजन गुप्ता प्रौपर्टी डीलिंग में अच्छी कमाई करते हैं. हाल ही में उन्होंने अपनी कोई जमीन अच्छे पैसों में बेची थी. मोटी फिरौती के लालच में उन्होंने उन के इकलौते बेटे बलराम का अपहरण किया था. बलराम का अपहरण करने के बाद वे उसे एक दुकान में ले गए थे और भेद खुलने के डर से उस की गला घोंट कर हत्या कर दी थी.

फिर उस की लाश नहर में डाल आए थे. लाश ठिकाने लगाने के बाद आरोपी नितिन उर्फ मुन्ना चौहान और अजय चौहान गुलरिहा स्थित अपनी मौसी के घर छिपने के लिए पहुंचे. उन्होंने मौसी को सच्चाई बता दी. मौसी को इस बात का डर था कि कहीं उन के चक्कर में पुलिस एनकाउंटर कर के उस के बच्चों की जान न ले ले, इसलिए उन्होंने आत्मसमर्पण करने की सलाह दी.

दोनों आरोपियों को डर था कि आत्मसमर्पण के बाद भी पुलिस उन का एनकाउंटर कर सकती है. तब रिश्तेदारों ने पूरे गांव वालों के सामने उन का आत्मसमर्पण करने की योजना बनाई. अजय और नितिन को एक कमरे में बंद कर उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया और जब पुलिस उन दोनों को गिरफ्तार कर ले जा रही थी तो उस समय पूरा गांव जमा हो गया था.

14 वर्षीय बलराम के अपहरण और हत्या के आरोप में पुलिस ने 5 अभियुक्तों को गिरफ्तारकर लिया. एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने लापरवाही बरतने के आरोप में एक दरोगा और 2 सिपाहियो ंको सस्पेंड कर दिया.

उधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बलराम गुप्ता की हत्या पर संवेदना व्यक्त की और उस के परिजनों को 5 लाख रुपए की सहायता राशि जिलाधिकारी के माध्यम से भिजवाई.

बलराम एक साल पहले एक रिश्तेदार के घर से रहस्यमय तरीके से लापता हो गया था, जिसे 4-5 दिन बाद पुलिस ने कुसमही के जंगल से बरामद किया था. लेकिन इस बार गायब होने पर उस की लाश मिली.

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