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मृत्युदंड से रिहाई -भाग 2: विपिन की मम्मी पुराने कलम से क्या नाता था?

लेखिक-श्रुति अग्रवाल

यह भी सोचा था कि जैसे जीवनभर केवल अपने सहारे ही खड़ी रहीं, बुढ़ापे में भी अपने ही सहारे रहेंगी. मानसिक स्तर पर बेटे पर इतनी आश्रित नहीं होंगी कि उन का वजूद उसे बो?ा नजर आने लगे. आर्थिक स्तर पर तो उन की कोई खास जरूरतें ही नहीं थीं. जीवनभर जरूरतों में कतरब्योंत करतेकरते अब तो वह सब आदत में आ चुका है. हां, समय का सदुपयोग करने के लिए आसपास के ड्राइवरों, मालियों और नौकरों के बच्चों को इकट्ठा कर उन्होंने एक छोटा सा स्कूल खोल लिया था और व्यस्त हो गई थीं.

सबकुछ सुखद और बेहद सुंदर था, पर क्या पता था कि खुशियां इतनी क्षणिक होती हैं. एक दिन मेकअप से पुता एक अनजान चेहरा उन के पास आया था. उन्होंने उसे आश्चर्य से देखा था क्योंकि उस के चेहरे पर कोमलता का नामोनिशान न था. उस ने बताया था कि वह अनुपमा प्रकाश, विपिन की प्रेमिका है. उन लोगों ने सभी सीमाएं पार कर ली थीं. सो, अब उस अतिक्रमण का बीज उस के गर्भ में पल रहा है, पर विपिन अमेरिका से न उस की चिट्ठी का जवाब देता है, न फोन पर ही बात करता है. सब तरह से हार कर अब वह उन की शरण में आई है.

क्या इन परिस्थितियों में फंसी हुई किसी परेशान लड़की की आंखें इतनी निर्भीक हो सकती हैं? यह सोच कर उन्होंने उसे डांट कर घर से बाहर निकाल दिया था, पर तब भी शक का बीज तो मन में पड़ ही चुका था. उन्होंने यह भी सोचा कि लड़की के बारे में जांचपड़ताल करेंगी और अगर नादानी में विपिन से कोई गलती हुई है तो इस के साथ कोई अन्याय नहीं होने देंगी. अपने विपिन के बारे में उन के मन में अगाध विश्वास था.

अनुपमा गुस्से से फुंफकारती हुई कह गई थी, ‘मैं आत्महत्या कर लूंगी और आप के बेटे को जेल भिजवा कर रहूंगी.’ अनुपमा तो गुस्से में कह कर चली गई पर उस के बाद कई प्रश्न उन के दिमाग में उभरते रहे कि कैसा प्रेम होता है यह आजकल का? प्रेम का मतलब एकदूसरे के लिए जान दे देना है या दूसरों को अपने ऊपर जान देने को मजबूर करना है? एक मुंह छिपा कर अमेरिका जा बैठा है तो दूसरी जेल भेजने के लिए जान देना चाहती है. अगर कोई तुम से मुंह मोड़ ही बैठा है तो क्या धमकियों के माध्यम से उसे अपना सकोगी? दबाव में अगर रिश्ता कायम हो ही गया तो कितने दिन चलेगा और कितना सुख दे सकेगा? वैसे, क्या विपिन जैसे सम?ादार लड़के की पसंद इतनी उथली हो सकती है?

वेतो सम?ाती थीं कि गरजते हुए बादल कभी बरसते नहीं, पर उस पागल लड़की ने तो सचमुच जान दे दी. उस के मरने की खबर से वे एकाएक ही खुद को गुनहगार सम?ाने लगीं. लगा, खुद उन्होंने ही तो उसे ‘मृत्युदंड’ की सजा दी है. उस ने उन्हें अपने दुख सुनाए और उन्होंने उस पर अविश्वास किया और उसी दिन उस लड़की ने आत्महत्या कर ली.

यह आत्महत्या उन के लिए अविश्वसनीय थी. महानगरों में आधुनिक जीवन जीती हुई ये लड़कियां क्या इतनी भावुक हो सकती हैं कि गर्भ ठहर जाने पर इन्हें आत्महत्या करनी पड़े? जबकि आजकल तो स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियां सहेली के घर रुकने का बहाना कर के गर्भपात करा आती हैं और घर वालों को पता तक नहीं चलता. पर हर तरह की लड़कियां होती हैं, हो सकता है कि वह विपिन से इतनी जुड़ गई हो कि उसे खो देने की कल्पना तक न कर सके. पर उस की आंखों की वह शातिर चमक कैसे भूली जा सकती है. तो क्या कोई बदला लेने को इतना पागल हो सकता है कि अपनी जान पर ही खेल जाए?

पर नहीं, यह गलती खुद उन से हुई है. अपने पक्ष में लाख दलीलें दें वह, पर एक भावुक, निर्दोष लड़की को सम?ाने में भूल कर ही बैठी हैं वे. अपनी बहू के साथसाथ अपने अजन्मे पोते को भी मृत्युदंड दे चुकी हैं वे. अब इस का क्या प्रायश्चित्त हो सकता है. उस के शव से ही माफी मांगने को जी चाहा था, एक बार उस चेहरे को ध्यान से देखने का मन किया था और शायद यह भी पता करना था कि वह पागल लड़की उन के बेटे के विरुद्ध तो कुछ नहीं कर गई. इसलिए वे बदहवास सी अस्पताल पहुंच गई थीं.

वहां जा कर कुछ और ही पता चला कि वह आत्महत्या से नहीं, बल्कि एड्स से मरी थी, एड्स…? यह जानते ही उन के मन में एक नया डर समा गया. वे सोचने लगीं कि कहीं मेरे विपिन को भी तो नहीं हो गया यह रोग? ऐसा लगता तो नहीं. देखने में तो वह बिलकुल स्वस्थ लगता है. छिपतेछिपाते जहां से भी संभव हुआ, वे इस असाध्य रोग के बारे में जानकारी एकत्र करती रहीं और पता चला कि इस के कीटाणु कभीकभी तो 6 वर्ष तक भी शरीर के अंदर निष्क्रिय बैठे रहते हैं, फिर जब हमला करते हैं तो जाने कितनी बीमारियां लग जाती हैं और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बिलकुल समाप्त हो जाती है.

असुरक्षित यौन संबंधों से फैलता है यह रोग और संबंध तो असुरक्षित ही रहे होंगे जो वह गर्भवती हो बैठी. कुछ भी नहीं बचता इस रोग के बाद, सिवा मौत के.

मौत? विपिन की? नहीं, इस के आगे वे नहीं सोच पातीं. दिमाग ही चक्कर खाने लग जाता है. वे अपनेआप को अपने बेटे की सच्चरित्रता का विश्वास दिलाना चाहती हैं, पर मन का डर हटता ही नहीं. वैसे भी, उम्र बढ़ने के साथसाथ अपनों की फिक्र बढ़ती जाती है, तिस पर से ऐसे भयंकर रोग का अंदेशा?

विपिन की शादी के लिए जो भी रिश्ता आया, उन्होंने उलटे हाथ लौटा दिया. अनुपमा प्रकाश को तो उन्होंने अनजाने में मृत्युदंड दिया था, पर अब जानतेबू?ाते एक अनजान लड़की को मौत के मुंह में कैसे धकेल दें. पर विपिन का क्या करें जो उन के व्यवहार से भरमाया हुआ है. कैसे वे बेटे से कहें कि तेरी जिंदगी में अब तो गिनती के दिन ही बचे हैं. कोशिश करती हैं कि सामान्य दिखें, पर इतना सटीक अभिनय कोई कर सकता है क्या? उठतेबैठते वह इशारा करता है कि शादी करा दो, पर क्या करें वे? क्या जवाब दें?

और फिर एक दिन एक लड़की को ले आया विपिन उन से मिलाने. साधारण शक्लसूरत की नाजुक सी लड़की सुधा थी. पता नहीं क्यों उन्हें उस लड़की पर बहुत गुस्सा आया. क्या सोचती हैं ये लड़कियां? कोई कमाताखाता कुंआरा लड़का मिल जाए तो मक्खियों की तरह गिरती जाएंगी उस पर. एक ही औफिस में साथ काम करती है तो क्या विपिन के पुराने किस्से न सुने होंगे? सब भूल कर जान देने को तैयार बैठी हैं इस फ्लैट, गाड़ी और तनख्वाह के पैसों के लिए? वे क्या मृत्युदंड देंगी किसी को, थोड़ेथोडे़ भौतिक सुखों के लिए लोग स्वयं को मृत्युदंड देने को तैयार रहते हैं और इस विपिन को क्या लड़कियों के अलावा और कुछ सू?ाता ही नहीं?

यही सब सोच कर वे सुधा के साथ काफी रुखाई से पेश आई थीं. और उतरा मुंह लिए विपिन उसे वापस पहुंचा आया था. लौट कर उन के सामने आया तो उस की आंखों में एक कठोर निश्चय चमक रहा था. वे सम?ा रही थीं कि आज वे उस के प्रश्नों को टाल नहीं सकेंगी. डर भी लग रहा था. मन ही मन तैयारी भी करती जा रही थीं कि क्या कहेंगी और कितना कहेंगी.

‘‘मम्मी, सुधा बहुत रो रही थी,’’ विपिन के स्वर में उदासी थी.

‘‘रोने की क्या बात थी?’’ उन्होंने कड़ा रुख अपना कर बोला था.

‘‘क्या वह तुम्हें पसंद नहीं आई मम्मी?’’

‘‘मु?ो ऐसी लड़कियां बिलकुल पसंद नहीं जो लड़कों के साथ घूमतीफिरती रहती हैं.’’

‘‘क्या बात करती हो, मां, वह मु?ो प्यार करती है. मैं उसे तुम को दिखाने के लिए लाया था.’’

‘‘क्या होता है यह प्यारव्यार… अपनाअपना स्वार्थ ही न? क्या चाहिए था उसे, फ्लैट, गाड़ी, रुपया यही न?’’

‘‘नहीं मम्मी, तुम उसे गलत सम?ा रही हो. हम तो एकदूसरे को उसी समय से चाहते हैं जब मैं ने मामूली तनख्वाह पर यह नौकरी शुरू की थी.’’

विपिन इस तरह से उन के सामने ?ाठ बोलेगा, वह सोच भी नहीं सकती थीं. तैश में मुंह से निकल गया, ‘‘यह अनुपमा प्रकाश कौन थी? तुम उसे कैसे जानते हो?’’

‘‘मेरे औफिस में टाइपिस्ट थी.’’

‘‘तुम्हें कैसी लगती थी?’’

‘‘मैं उसे ज्यादा नहीं जानता था. अमेरिका से वापस आने पर पता चला कि उस के साथ कोई घटना घटी थी.’’

‘‘तेरे अमेरिका जाने पर वह आई थी. ऐयाशी का सुबूत ले कर गर्भवती थी वह,’’ क्रोध में वह तुम से तू पर उतर आईर् थी.

‘‘क्या कह रही हो तुम?’’

‘‘मर गई वह तेरे लिए और उस की बिना पर तू दूसरी शादी की तैयारी कर रहा है? यही संस्कार हैं तेरे?’’

‘‘ओह, तो यह बात है, मम्मी? वह अच्छी लड़की नहीं थी. काफी बदनाम थी. मैं उस का अधिकारी था. एक बार काम में बहुत सी गलतियां मिलने पर कुछ डांट दिया था. वह बुरा मान गई होगी शायद और बदला लेने चली आई होगी.’’

‘‘?ाठ मत बोल. किसी लड़की के लिए ऐसे कहते शर्म नहीं आती तु?ो, जिस ने तेरे लिए जान दे दी?’’

ए काएक ही उन्हें आशा की एक

किरण नजर आई. वह रुंधी आवाज में पूछ रही थीं, ‘‘सच बोल विपिन, उस से तेरा कोई संबंध नहीं था. मेरी कसम खाकर बोल.’’

‘‘नहीं मम्मी, मैं तो उस से बहुत कम बार मिला हूं. मेरा विश्वास करो.’’

‘‘मैं उस के मरने पर अस्पताल गई थी बेटे, उसे एड्स था. यह तो छूत की बीमारी होती है न?’’ उन्होंने सहमते हुए अपना मन खोल ही डाला.

विपिन अवाक सा उन का मुंह देखे जा रहा था, फिर एकाएक ठठा कर हंस पड़ा. उस ने उठ कर अपनी बांहों में मां को उठा कर गोलगोल घुमाना शुरू कर दिया.

मृत्युदंड से रिहाई -भाग 3: विपिन की मम्मी पुराने कलम से क्या नाता था?

लेखिक-श्रुति अग्रवाल

मर गई वह तेरे लिए और उस की बिना पर तू दूसरी शादी की तैयारी कर रहा है? यही संस्कार हैं तेरे?’’

‘‘ओह, तो यह बात है, मम्मी? वह अच्छी लड़की नहीं थी. काफी बदनाम थी. मैं उस का अधिकारी था. एक बार काम में बहुत सी गलतियां मिलने पर कुछ डांट दिया था. वह बुरा मान गई होगी शायद और बदला लेने चली आई होगी.’’

‘‘?ाठ मत बोल. किसी लड़की के लिए ऐसे कहते शर्म नहीं आती तु?ो, जिस ने तेरे लिए जान दे दी?’’

ए काएक ही उन्हें आशा की एक

किरण नजर आई. वह रुंधी आवाज में पूछ रही थीं, ‘‘सच बोल विपिन, उस से तेरा कोई संबंध नहीं था. मेरी कसम खाकर बोल.’’

‘‘नहीं मम्मी, मैं तो उस से बहुत कम बार मिला हूं. मेरा विश्वास करो.’’

‘‘मैं उस के मरने पर अस्पताल गई थी बेटे, उसे एड्स था. यह तो छूत की बीमारी होती है न?’’ उन्होंने सहमते हुए अपना मन खोल ही डाला.

विपिन अवाक सा उन का मुंह देखे जा रहा था, फिर एकाएक ठठा कर हंस पड़ा. उस ने उठ कर अपनी बांहों में मां को उठा कर गोलगोल घुमाना शुरू कर दिया.

‘‘मेरी पगली मम्मी.’’

‘‘मु?ो सुधा के घर ले चलेगा आज? बेचारी सोचती होगी कि कैसी खूसट सास है.’’

वे हवा में लटकेलटके बोलती जा रही थीं. गोलगोल घूमते हुए उस कमरे में ताजे फूलों की खुशबू लिए बालकनी से ठंडीठंडी हवा आ कर उन के फेफड़ों में भरती जा रही थी, आज तो मृत्युदंड से रिहाई का दिन था, सुधा का नहीं, विपिन का भी नहीं, खुद उन का.

Nutrition Special: ऐसी होनी चाहिए टीनएजर्स की डाइट

आहार का सेहत पर बहुत असर पड़ता है. आप जो भी खाते हैं उस का सीधा प्रभाव आप की सेहत पर पड़ता है. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि आप का आहार संतुलित हो. यह कहना है श्रीबालाजी ऐक्शन मैडिकल इंस्टिट्यूट की चीफ न्यूट्रिशनिस्ट डा. प्रिया शर्मा का. आहार के मामले में आमतौर पर हमारी आदत अनियमित होती है, जिस का हमारी सेहत पर बुरा असर पड़ता है. सेहत के अनुसार हर इंसान के खानपान की जरूरतें अलग होती हैं.

इस के अलावा आहार में आप कितनी कैलोरी ले रहे हैं यह जानना भी बेहद जरूरी होता है. कैलोरी एक प्रकार की ऊर्जा है, जो शरीर की किसी भी गतिविधि को पूरा करने के लिए आवश्यक होती है. यदि हम भोजन में सही मात्रा में कैलोरी नहीं ले रहे हैं तो वह भोजन हमें कई तरह की बीमारियों से ग्रस्त करता है.

आजकल न सिर्फ बड़ों में बल्कि छोटेछोटे बच्चों में भी कई ऐसी बीमारियां देखने को मिल रही हैं, जो अधिक उम्र वाले व्यक्ति में देखने को मिलती हैं. जैसे मोटापा या ओबेसिटी किशोरों में काफी देखने को मिल रही है. यह समस्या पिछले कई वर्षों से एक महामारी के रूप में उभर कर आई है. मोटापा कई बीमारियों को न्योता देता है जैसे डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रौल आदि जो बच्चों के लिए बेहद खतरनाक हैं.

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किशोरावस्था जिस में बच्चों को ऊर्जा और बहुत सारे पोषक तत्त्वों की जरूरत होती है, क्योंकि वे अभी भी बढ़ रहे हैं. इस उम्र में बच्चों का विकास तेजी से होता है और उन्हें पौष्टिक व संतुलित आहार की बहुत जरूरत होती है. किशोरों में मोटापा एक बड़ी समस्या बना हुआ है. इसलिए आहार में संतुलित मात्रा में जरूरी कैलोरी का होना भी बहुत आवश्यक है.

ज्यादातर इस उम्र के बच्चों और युवाओं में जंक फूड जैसे पिज्जा, बर्गर, पास्ता, नूडल्स आदि खाने की रुचि होती है. परंतु यही सब कारण होते हैं मोटापे और उस से जुड़ी अन्य बीमारियों के. इस के अलावा बिगड़ी हुई दिनचर्या और जीवनशैली भी कई समस्याएं पैदा करती है.

कितनी कैलोरी लें

किशोरावस्था में बच्चे कई  प्रकार के शारीरिक विकास और परिवर्तन का अनुभव करते हैं और इस परिवर्तन के समय किशोरों को प्रतिदिन एक स्वस्थ आहार का पालन करना चाहिए. किशोरों को प्रतिदिन कितनी कैलोरी लेनी चाहिए यह उन की उम्र, लिंग और शारीरिक गतिविधि के स्तर पर निर्भर करता है. सब को अलगअलग मात्रा में कैलोरी की जरूरत होती है जैसे : किशोरियों को 1,600 से 2,000 कैलारी की जरूरत होती है व किशोरों को 1,800 से 2,200 कैलोरी की.

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क्या खाएं

1- अनाज : प्रतिदिन किशोरियां 5 से 6 आउंस और किशोर 6 से 8 आउंस तक साबुत अनाज से बना भोजन खाएं. ज्यादातर खाने में साबुत अनाज लें जैसे गेहूं से बना पास्ता, ब्राउन राइस, ओटमील, जौ आदि.

2- सब्जियां :  अलग रंगों और किस्मों की सब्जियां रोज खाएं, जिस में किशोरियां ढाई कप और किशोर ढाई से 3 कप ले सकते हैं.

3- फल : ज्यादा किस्मों के फल खाएं.

4-  दूध : दूध से बनी चीजें जैसे दही, चीज आदि ले सकते हैं, लेकिन ये सभी फैटफ्री हों और इन सभी में कैल्शियम की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए. किशोरावस्था में लड़कियों और लड़कों दोनों को 3 कप के अनुसार दूध या दूध की बनी चीजों का सेवन करना चाहिए.

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5-  मांस और बींस :  हर हफ्ते 2 मछली/समुद्री भोजन, पकी हुई मछली आदि का सेवन कर सकते हैं. किशोरियों को 5 आउंस तक और किशोरों को 5.5-6.5 आउंस तक मांस और बींस खाना चाहिए.

युवावस्था में आहार

युवावस्था यानी (20-28) वर्ष की उम्र ऐसी अवस्था है जब सब से ज्यादा विटामिन, कैलोरी, मिनरल्स और प्रोटीन की जरूरत होती है. पीएसआरआई हौस्पिटल की सीनियर डायटीशियन डा. पूजा शर्मा के अनुसार युवावस्था में संतुलित भोजन में अनाज और अंकुरित चने, दालें इत्यादि शामिल करनी चाहिए. आमतौर पर युवा जंकफूड के शौकीन होते हैं, लेकिन अच्छी सेहत के लिए जंकफूड को छोड़ना या कम करना होगा.

किस में कितनी कैलोरी

अनाज : एक छोटी गेहूं की चपाती में 80 कैलोरी हैं, वहीं गेहूं के पास्ता में 174 व गेहूं से बनी ब्रैड में 247 कैलोरी होती हैं.

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सब्जियां :  ज्यादा खाई जाने वाली सब्जियां जैसे आलू, प्याज, टमाटर आदि में क्रमानुसार प्रति 100 ग्राम में 77,40 व 18 कैलोरी होती हैं.

फल : फल जैसे सेब और केले में क्रमश: प्रति 100 ग्राम में 52 और 89 कैलोरी होती हैं.

दूध : प्रति 100 ग्राम दूध में 42 तक कैलोरी होती हैं.

मांस : प्रति 100 ग्राम मांस में 143 कैलोरी होती हैं.

औयल्स : मछली के तेल में (100 ग्राम तेल में) 902 कैलोरी होती हैं. वहीं वैजिटेबल औयल और औलिव औयल में 882 कैलोरी होती हैं.

टीनएजर्स व युवाओं के ओबेसिटी और मोटापे से जुड़ी अन्य समस्याओं से लड़ने में संतुलित आहार ही मदद कर सकता है.

मृत्युदंड से रिहाई -भाग 1: विपिन की मम्मी पुराने कलम से क्या नाता था?

लेखिक-श्रुति अग्रवाल

एक अनजाना खौफ मां को अंदर ही अंदर डराए जा रहा था. इसी कारण उन का व्यवहार भी अजीब सा हो गया था. विपिन मां के इस व्यवहार से हैरानपरेशान था…

उस की मुखमुद्रा कठोर हो गई थी और हाथ में लिया पेन कागज पर दबता चला गया. ‘खट’ की आवाज हुई तो विपिन चौंक कर बोला, ‘‘ओह मम्मी, आप ने फिर पेन की निब तोड़ दी. आप बौलपेन से क्यों नहीं लिखतीं, अब तो उसी का जमाना है.’’ विपिन के सु?ाव को अनसुना कर वे बेटे के हाथ को अपनी गरदन से निकाल कर बालकनी में चली गईं. बिना कुछ कहेसुने यों मां का बाहर निकल जाना विपिन को बेहद अजीब लगा था. पर इस तरह का व्यवहार वे आजकल हमेशा ही करने लगी हैं. उस की सम?ा में नहीं आ रहा था कि मां ऐसा क्यों कर रही हैं.

आज ही क्या हुआ था भला? वह औफिस से लौट कर आया तो पता चला मम्मी उस के ही कमरे में हैं. वहां पहुंच कर देखा तो वे उस की स्टडी टेबल पर ?ाकी कुछ लिख रही थीं. विपिन ने कुरसी के पीछे जा, शरारती अंदाज में उन के गले में बांहें डाल कर किसी पुरानी फिल्म के गीत की एक कड़ी गुनगुना दी थी, ‘तेरा बिटवा जवान हो गवा है, मां मेरी शादी करवा दे.’ इतनी सी बात में इतना गंभीर होने की क्या बात हो सकती है? वे तो पेन की निब को कागज पर कुछ उसी अंदाज में दबाती चली गई थीं जैसे किसी मुजरिम को मृत्युदंड देने के बाद जज निब को तोड़ दिया करते हैं.

इस समय विपिन सीधा सुधा से मिल कर आया था और आज उन दोनों ने और भी शिद्दत से महसूस किया था कि अब एकदूसरे से दूर रहना संभव नहीं है. फिर अब परेशानी भी क्या थी? उस के पास एक अच्छी नौकरी थी, अमेरिका से लौट कर आने के बाद तनख्वाह भी बहुत आकर्षक हो गई थी. फ्लैट और गाड़ी कंपनी ने पहले ही दे रखे थे. और फिर, अब वह बच्चा भी नहीं रहा था.

उस के संगीसाथी कब के शादी कर अपने बालबच्चों में व्यस्त थे. अब तक तो खुद मम्मी को ही उस की शादी के बारे में सोच लेना चाहिए था. पर पता नहीं क्यों उस की शादी के मामले में वे खामोश हैं. यद्यपि अमेरिका जाने से पहले वे अपने से ही 2-1 बार शादी का प्रसंग उठा चुकी थीं. पर उस समय उस के सामने अपने भविष्य का प्रश्न था. वह कैरियर बनाने के समय में शादी के बारे में कैसे सोच सकता था? उसे ट्रेनिंग के लिए पूरे 2 वर्षों तक अमेरिका जा कर रहना था और मम्मी इस सचाई को जानती थीं कि किसी भी लड़की को ब्याह के तुरंत बाद सालों के लिए अकेली छोड़ जाना युक्तिसंगत नहीं लगता. सो, हलकेफुलके प्रसंगों के अलावा उन्होंने इस विषय को कभी जोर दे कर नहीं उठाया था. यही स्वाभाविक था. वहीं, उस ने भी कभी मां से सुधा के बारे में कुछ बताने की आवश्यकता नहीं सम?ा थी. सोचा था जब समय आएगा, बता ही देगा.

पर अब हालात बदल चुके हैं. अपने संस्कारजनित संकोच के कारण यह बात वह साफसाफ मां से कह नहीं पा रहा था. परंतु आश्चर्य तो यह है कि मां भी अपनी ओर से ऐसी कोई बात नहीं उठातीं. हंसीमजाक में वह कुछ इशारे भी करता, तो उन की भावभंगिमा से लगता कि वे इस बात को बिलकुल सम?ाती ही

न हों.

मम्मी का व्यवहार बड़ा बदलाबदला सा है आजकल. अचानक ही मानो उन पर बुढ़ापा छा गया है, जिस से उन के व्यक्तित्व में एक तरह की बेबसी का समावेश हो गया है. चुप भी बहुत रहने लगी हैं वे. वैसे, ज्यादा तो कभी नहीं बोलती थीं. उन का व्यक्तित्व संयमित और प्रभावशाली था, जिस से आसपास के लोग जल्दी ही प्रभावित हो जाते थे. हालात ने उन के चेहरे पर कठोरता ला दी थी. फिर भी उस के लिए तो ममता ही छलकती रहती थी.

वह जब 3-4 साल का रहा होगा तब किसी दुर्घटना में पिताजी चल बसे थे. मायके और ससुराल से किसी तरह का सहारा न मिलने पर मम्मी ने कमर कस ली और जीवन संग्राम में कूद पड़ीं. बहुत पढ़ीलिखी नहीं थीं, पर जीवन के प्रति बेहद व्यावहारिक नजरिया था. छोटी सी नौकरी और मामूली सी तनख्वाह के बावजूद उस को कभी याद नहीं कि उस के भोजन या शिक्षा के लिए कभी पैसों की कमी पड़ी हो. इसी से वह उन आंखों के हर इशारे की उतनी ही इज्जत करता था, जितनी बचपन में. शायद उन की ममता में ही वह ताकत थी, जिस ने उसे कभी गलत राह पर जाने ही नहीं दिया. मनचाहा व्यक्तित्व मढ़ा था उस का और फिर अपने कृतित्व पर फूली न समाई थीं.

पर यह सब विदेश जाने से पहले की बात है. अब तो मम्मी को बहुत बदला हुआ सा पा रहा था वह. अच्छीखासी बातें करतेकरते एकाएक वितृष्णा से मुंह फेर लेती हैं. हंसना तो दूर, मुसकराना भी कभीकभी होता है. तिस पर से पेन तोड़ने की जिद? उस ने स्पष्ट देखा है, निब अपने से नहीं टूटती, जानतेबू?ाते दबा कर तोड़ी जाती है.

उस दिन एक और भी अजीब सी घटना हुई थी. वह गहरी नींद में था, पर अपने ऊपर कुछ गीला, कुछ वजनी एहसास होने से उस की नींद टूट गई थी. उस ने देखा कि मम्मी फूटफूट कर रोए जा रही थीं. छोटे बच्चे की तरह उस का चेहरा हथेलियों में भर कर और अस्फुट स्वर में कुछ बड़बड़ा रही थीं, पर उस के आंखें खोलते, वे पहले की तरह खामोश हो गईं. वह लाख पूछता रहा, पर केवल यही कह कर चली गईं कि कुछ बुरा सपना देखा था. उस ने इतने सालों में पहली बार मम्मी को रोते हुए देखा था, जिस ने इतनी बड़ीबड़ी मुसीबतें सही हों, वह सपने से डर जाए? क्या ऐसा भी होता है?

इधर सुधा का मम्मी से मिलने का इसरार बढ़ता जा रहा था, क्योंकि उस के घर वाले उस के लिए रिश्ते तलाश रहे थे और वह विपिन के बारे में किसी से कुछ कहने से पहले एक बार मम्मी से मिल लेना चाहती थी, पर मम्मी का स्वभाव उसे कुछ रहस्यमय लग रहा था. इसीलिए विपिन पसोपेश में था और कोई रास्ता निकाल नहीं पा रहा था. एक बार उस के मन में यह विचार आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि घर में किसी दूसरी औरत के आने से मां डर रही हैं कि स्वामित्व का गर्व बंटाना पड़ जाएगा? उसे अपना यह विचार इतना ओछा लगा कि मन खराब हो गया. अपना घर मानो काटने को दौड़ रहा था. सो कुछ समय किसी मित्र के साथ बिताने की सोच विपिन बाहर निकल गया.

विपिन उन के व्यवहार से उकता कर घर से निकल गया है, यह उन्हें भी पता है. पर वह भी क्या करे? उन का तो सबकुछ स्वयं ही मुट्ठी से फिसलता जा रहा है. अंधेरों के अतिरिक्त और कुछ सू?ाता ही नहीं है. यह हरीभरी खूबसूरत बालकनी, जिस के कोनेकोने को सजातेसंवारते वे कभी थकती ही नहीं थीं, आज काट खाने को दौड़ रही है. हालांकि, यह जगह उन्हें बहुत पसंद थी. यहां से सबकुछ छोटा, पर खूबसूरत दिखता है. कुछ उसी तरह जैसे कर्तव्य की नुकीली धार पर से जिंदगी अब मखमलों पर उतर आई थी. शायद अब जीने का लुत्फ लेने का समय आ गया था. नौकरी छोड़ चुकी थीं, इसलिए उन के पास खूब सारा समय था रचरच कर अपने घर को सजाया था उन्होंने. इसी उत्साह में विपिन का 2 वर्षों के लिए अपने से दूर जाना भी उन को इतना नहीं खला था. उसे अपनी जिंदगी को रास्ते दिखाने हैं, तो हाथ आए मौके लपकने तो पड़ेंगे ही. वे क्यों अपने आंसुओं से उस का रास्ता रोकें?

नागिन 5 : बानी को जलाने के लिए वीर सगाई करेगा मीरा से, जानें क्या होगा आगे

एकता कपूर का सुपरनैचुरल शो नागिन 5 लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है. नागिन 5 की कहानी औऱ भी ज्यादा दिलचस्प होती जा रही है. अब तक ये देखा है कि वीर ये बात समझ चुका है कि जय और बानी एक दूसरे को पसंद करते हैं. वहीं दूसरी तरफ बानी और जय को अपना अतीत याद आ चुका है.

वीर ने जिद कर लिया है कि बानी को किसी भी हालात में अपना बनाना है. बानी को परेशान करने के वीर बानी की बहन से शादी करने के लिए तैयार हो गया है.

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आने वाले एपिसोड में वीर और बानी का हाइबोल्टेज ड्रामा देखने को मिलेगा. आने वाले शो में आप देखेंगे कि बानी को परेशान करने के लिए वीर मीरा से सगाई कर लेगा. वहीं वीर पूरी तैयारी के साथ वीर बानी के घर सगाई की अंगूठी लेकर पहुंचेगा.

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अपनी सगाई को शानदार बनाने के लिए वीर एक पार्टी का आयोजन करेगा. जिसमें वीर सिर्फ और सिर्फ बानी को ही ढूंढेगा. देखना ये है कि वीर आगे अपने पार्टी में क्या धमाका करेगा. इस बात का इंतजार हर दर्शक को है कि वीर अपने पार्टी में क्या करने वाला है. वीर और बानी की इस दास्तान को देखने के लिए फैंस बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. आइए जानते हैं आगे इस कहानी में क्या होने वाला है.

कोरोना मरीज आत्महत्या क्यों कर रहे हैं?

अनेक शहरों से कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों की आत्महत्या की खबरें आ रही हैं. मगर ‘विश्व आत्महत्या प्रतिरोध दिवस‘ अर्थात 10 सितंबर, 2020 को छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले से जब यह खबर आई कि एक कोरोना मरीज ने आत्महत्या कर ली तो छत्तीसगढ़ में हड़कंप मच गया.

यह समाचार सुर्खियां तो बना, मगर सरकार को जिस संवेदना के साथ इस मसले को लेना चाहिए, वैसे हालात नहीं दिखे.

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सनद रहे कि छत्तीसगढ़ में मई से अगस्त माह के बीच राज्य के अलगअलग ‘क्वारंटीन सैंटर‘ में 6 लोगों ने आत्महत्या कर ली. यही नहीं, पिछले महीने राजधानी रायपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में एक कोरोना वायरस संक्रमित मरीज ने ऊपरी मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली थी. वहीं जांजगीर चांपा जिले के कोविड 19 केयर सैंटर में एक अन्य मरीज ने भी आत्महत्या की थी.

दरअसल, एकएक आत्महत्या, यह सचाई बताती है कि ‘कोरोना वायरस‘ के परिदृश्य के पीछे हमारा समाज, हमारी व्यवस्था किस कदर अमानवीय हो चुकी है. शासन व्यवस्था एक कठोर पत्थर में तबदील हो गई है, जिसे अपने अवाम से कोई इत्तेफाक नहीं. चाहे वह आत्महत्या ही क्यों न कर ले.

आइए, आप को छत्तीसगढ़ के जिला मुंगेली के उस शख्स की दारुण कथा बताते हैं, जिस ने कोरोना वायरस के डर से कथित रूप से आत्महत्या कर ली:
मुंगेली जिले के मातृ एवं शिशु अस्पताल लोरमी में एक युवक ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. दुबले पर दो आषाढ़ यह कि उधर सुबह उस युवक की मौत की खबर मिलते ही मां भी सदमे में आ गई.

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बलौदाबाजार निवासी 47 साला अनिल जायसवाल लोरमी में किराए के मकान में रहते हुए धान भूसा की सप्लाई का काम किया करता था. बुखार की वजह से 50 बिस्तर वाले अस्पताल में वह भरती था. उस का उपचार पिछले 3 दिनों से चल रहा था. अचानक उस ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली.

सवाल यह है कि लोरमी के सरकारी अस्पताल में 24 घंटे इमर्जैंसी सेवाएं दी जा रही हैं और स्वास्थ्य कर्मचारी भी हर वक्त तैनात रहते हैं. इस के बाद भी फांसी के फंदे में झूल कर युवक ने आत्महत्या कैसे कर ली? आखिर इस का दोषी कौन है?

मृतक बीते 7 सितंबर, 2020 को डायबिटीज और बुखार की शिकायत पर अस्पताल में भरती कराया गया था. उस का शासन के स्वास्थ्य विभाग द्वारा इलाज जारी था.

आइसोलेशन वार्ड में अपने ही गमछे से फांसी लगा कर आत्महत्या कर लेना कई सवालों को समाज के सामने रख रहा है और पूछ रहा है कि आखिर एक कोरोना मरीज की आत्महत्या का दोषी कौन है?

कोरोना संक्रमण के पहले और बाद

दरअसल, कोरोना वायरस संक्रमण फैल जाने के बाद मरीज को जिस तरीके का सामाजिक, पारिवारिक और मानवीय संबल मिलना चाहिए नहीं मिल पा रहा है. शासकीय अस्पतालों में भी हमारे चिकित्सक स्टाफ का व्यवहार कितना अमानवीय है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है. ऐसे में कोरोना वायरस संक्रमण के बाद जो मानसिक स्थिति बनती है, वह किसी को भी आत्महत्या की ओर धकेल सकती है.

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अनिल जायसवाल के मामले में कुछ तथ्य सामने आए हैं. लोरमी के बीएमओ डाक्टर जीएस दाऊ के मुताबिक, युवक को डायबिटीज और बुखार की शिकायत पर अस्पताल में भरती किया गया था, इसी बीच अपने ही गमछे से उस ने आत्महत्या कर ली. पुलिस टीम की मौजूदगी में पंचनामा के बाद कोरोना टेस्ट किया गया, जिस की रिपोर्ट पौजिटिव आई है.

मामले की सूचना मिलते ही डीएसपी नवनीत कौर और थाना प्रभारी केसर पराग समेत पुलिस टीम ने घटना स्थल पर पहुंच कर मुआयना किया और फिर सारा मामला मानो समाप्त हो गया. जबकि होना यह चाहिए कि इस गंभीर मसले पर शासनप्रशासन को जांच बैठा कर यह समझना चाहिए कि आखिर अनिल जायसवाल के ‘आत्महत्या‘ करने के पीछे कारण क्या था.

इस बारे में सामाजिक कार्यकर्ता रमाकांत श्रीवास के मुताबिक, अगर एक बेहद बीमार को सकारात्मक माहौल मिलता, चिकित्सकीय परामर्श मिलता, संबल मिलता, तो वह कतई आत्महत्या नहीं करता. मगर हमारे देश में शासकीय अमला जैसा आम लोगों से व्यवहार करता है, उस में अगर कोई कोरोना मरीज आत्महत्या कर ले तो इस में आश्चर्य की क्या बात है?

हाईकोर्ट के अधिवक्ता डा. उत्पल अग्रवाल के अनुसार, संक्रमण के इस समय में कोरोना मरीजों के साथ जैसा व्यवहार दिखाई देना चाहिए, दिखाई नहीं पड़ता. यही कारण है कि देशभर में कोरोना मरीज आत्महत्या करते दिखाई दे रहे हैं, जो हमारे लिए दुर्भाग्य की बात है.

लगातार होती आत्महत्या आज सरकार के साथसाथ सामाजिक संगठनों के लिए एक चुनौती है.

अंकिता लोखंडें ने शिबानी दांडेकर को दिया करारा जवाब, बोला अपने काम पर ध्यान दो

सुशांत सिंह राजपूत केस में रिया चक्रवर्ती के सलाखों के पीछे जाने के बाद फैंस और कुछ बॉलीवुड स्टार्स लगातार उनके समर्थन में आ गए हैं. इसी बीच रिया चक्रवर्ती की खास दोस्त शिवानी दांडेकर का नाम सामने आ रहा है. बीते दिनों शिवानी दांडेकर ने सुशांत सिंह की एक्सगर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडें पर निशाना साधा था.

वहीं रिया की दोस्त शिवानी दांडेकर ने अंकिता पर आरोप लगाएं थे कि वह अपने फेम के लिए रिया पर निशाना साध रही हैं. अपनी फॉलोविंग बढ़ाने के लिए रिया चक्रवर्ती को टारगेट कर रही हैं.

इसी बीच शिवानी दांडेकर ने अंकिता लोखंडें पर निशाना साधते हुए करारा जवाब दिया है. अंकिता लोखंडें ने लिखा है कि शिवानी दांडेकर का पोस्ट मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. मैं एक छोटे शहर और साधारण परिवार से नाता रखती हूं.

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मुझे इन लोगों जैसे  महंगे स्कूलों में नहीं पढ़ाया गया, जहां पर दिखावा करना सिखाया जाता है. मुझे लोग आज भी अर्चना के नाम के लिए बहुत ज्यादा प्यार देते हैं. आगे अंकिता ने अपनी बातों को बढ़ाते हुए कहा कि मैं साल 2004 में सीने स्टार के जरिए अपने करियर की शुरुआत की थी. अपने मेहनत के दम पर टीआरपी लिस्ट में जगह बनाई और मुझे लोग आज भी देखना पसंद करते हैं.

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Mere do Anmol Ratan ek hai scotchi toh ek hatchi ❤️ #myboys?? #scotchhatchi

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फैंस का प्यार ही है जो आज मैं अर्चना के किरदार के लिए पूरी दुनिया में जानी जाती हूं. मैंने इस किरदार के अलावा भी और भी कई रोल अदा किए हैं. जैसे मणिकर्णिका, बागी 3 जैसे फिल्मों में काम किया है. मैं पिछले 17 साल से बॉलीवुड जगत का हिस्सा हूं.

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आगे अंकिता ने कहा अगर मैं अपने दोस्त के न्याय के लिए लड़ाई लड़ रही हूं तो इसका मतलब ये नहीं की मैं 2 मिनट के फेम के लिए ये सब काम कर रही हूं. मुझे ऐसे घटिया काम करने की कोई जरुरत नहीं है. अच्छा वहीं होगा कि तुम टीवी सितारे पर निशाना साधना बंद कर दो अपने काम पर ध्यान दो.

गेहूं की उन्नत व टिकाऊ खेती

भारत के कुल गेहूं उत्पादन का 31.5 फीसदी केवल उत्तर प्रदेश में पैदा होता है. रबी के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में गेहूं का खास स्थान है. देश की खाद्य सुरक्षा के लिए गेहूं का अधिक उत्पादन बेहद जरूरी है. गेहूं की ज्यादा पैदावार के लिए उन्नत कृषि क्रियाओं का खास योगदान है.

मुनासिब आबोहवा

गेहूं की खेती के लिए आमतौर पर ठंडा और नम मौसम सही रहता है. दाना बनने की अवस्था के लिए सूखा व कुछ गरम मौसम ठीक होता है. तापमान, बारिश और रोशनी गेहूं की बढ़वार को काफी प्रभावित करते हैं. फसल बोने के समय 20 से 22 डिगरी सेंटीग्रेड, बढ़वार के समय 25 डिगरी सेंटीग्रेड और पकने के समय 14 से 15 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान सही रहता है. फसल पकने की अवस्था पर तापमान ज्यादा होने से फसल जल्दी पक जाती है, जिस से उपज घट जाती है  बाली लगने के समय पाला पड़ने से बीज अंकुरण कूवत खत्म हो जाती है और उस का विकास रुक जाता है. इस की खेती के लिए 600 से 1000 एमएम सालाना बारिश वाले इलाके सही रहते हैं. पौधों की बढ़वार के लिए 50-60 फीसदी नमी सही है.

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जमीन का चयन व तैयारी

गेहूं की खेती कई तरह की मिट्टी में की जाती है, मगर मटियार दोमट मिट्टी जिस की पानी सोखने की कूवत अच्छी होती है, इस की खेती के लिए सब से अच्छी मानी जाती है. पानी के निकलने की सुविधा होने पर भारी मिट्टी जैसे काली मिट्टी में भी इस की अच्छी फसल ली जा सकती है. मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 के बीच में होना फसल के लिए सही रहता है. ज्यादा क्षारीय या अम्लीय मिट्टी गेहूं के लिए ठीक नहीं होती है. अच्छे अंकुरण के लिए बोआई के वक्त खेत में खरपतवार नहीं होने चाहिए और नमी सही होनी चाहिए. मिट्टी इतनी भुरभुरी होनी चाहिए कि बोआई आसानी से सही गहराई व सामान दूरी पर की जा सके.

खरीफ की फसल काटने के बाद खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, ताकि खरीफ फसल के अवशेष और खरपतवार मिट्टी में दब कर सड़ जाएं. इस के बाद 2-3 जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए. हर जुताई के बाद पाटा दे कर खेत समतल कर लेना चाहिए. जीरो कर्षण के तहत जीरो कम फर्टी सीड ड्रिल से खरीफ की फसल की कटाई के बाद गेहूं की सीधी बोआई करते हैं.

गेहूं की उन्नत किस्में

फसल उत्पादन में उन्नत किस्मों के बीजों की खास जगह है. गेहूं की किस्मों का चुनाव आबोहवा, बोने के समय और इलाके के आधार पर करना चाहिए. गेहूं के अलगअलग हालात के लिए ज्यादा उपज देने वाली, रोगरोधी किस्मों का विकास भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली व दूसरे संस्थानों द्वारा किया जा रहा है. कुछ महत्त्वपूर्ण किस्में तालिका में बताई गई हैं.

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बीजोपचार व बोआई का समय

बोआई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बीज रोग मुक्त, प्रमाणित और इलाके के मुताबिक मुनासिब किस्म के होने चाहिए. रोगों की रोकथाम के लिए ट्राइकोडर्मा की 4 ग्राम मात्रा, 2-3 ग्राम कार्बंडाजिम के साथ मिला कर प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजशोधन किया जा सकता है. 15 नवंबर के आसपास गेहूं बोए जाने पर ज्यादातर बौनी किस्में ज्यादा उपज देती हैं. असिंचित अवस्था में बोने का सही समय बारिश का मौसम खत्म होते ही मध्य अक्तूबर के करीब होता है. कम सिंचित अवस्था में जहां पानी सिर्फ 2-3 सिंचाई के लिए ही मौजूद हो, वहां बोने का सही समय 25 अक्तूबर से 15 नवंबर तक होता है. देर से बोई गई फसल को पकने से पहले ही सूखी और गरम हवा का सामना करना पड़ जाता है, जिस से दाने सिकुड़ जाते हैं और उपज कम हो जाती है.

बीज दर

गेहूं की बीज दर उगाए जाने वाले समय, सिंचित या असिंचित हालात और मिट्टी पर निर्भर करती है. समय पर बोआई करने पर करीब 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज ठीक रहते हैं. बीज दर जमीन में नमी की मात्रा, बोने की विधि और किस्म पर भी निर्भर करती है. समय पर बोए जाने वाले सिंचित गेहूं में लाइन से लाइन की दूरी 20-22 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. देर वाली सिंचित गेहूं की बोआई के लिए बीज दर 125-150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर ठीक रहती है और लाइनों के बीच 15-18 सेंटीमीटर का फासला रखना सही रहता है.

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बोआई

सभी विधियों में सीड ड्रिल से बोआई करना बेहद लोकप्रिय है. इसी वजह से गेहूं को ज्यादातर सीड ड्रिल से बोया जाता है. आजकल जीरो सीड ड्रिल जिस में बिना जुताई के सीधी बोआई की जाती है, भी धानगेहूं फसलचक्र में प्रचलित होता जा रहा है. बौने गेहूं की बोआई में गहराई का खास महत्त्व होता है. बौनी किस्मों को 4-5 सेंटीमीटर गहरा बोना चाहिए. गेहूं की बोआई के लिए जगह व हालात के मुताबिक विधियां इस्तेमाल की जा सकती हैं. हल के पीछे कूंड़ों में बोआई : गेहूं बोने की यह सब से आम विधि है. हल के पीछे कूंड में बीज गिरा कर 2 विधियों से बोआई की जाती है. केरा विधि में हल के पीछे हाथ से पूरे खेत की बोआई के बाद पाटा चलाते हैं, जिस से बीज ढक जाते हैं. पोरा विधि में देशी हल के पीछे नाई बांध कर बोआई करते

हैं. इस विधि का इस्तेमाल असिंचित इलाकों या नमी की कमी वाले क्षेत्रों में किया जाता है. सीड ड्रिल द्वारा बोआई : यह पोरा विधि का एक सुधरा रूप है. बड़े इलाके में बोआई करने के लिए यह आसान व सस्ता ढंग है. इस में बोआई बैल चालित या ट्रैक्टर चालित सीड ड्रिल द्वारा की जाती है. इस मशीन में पौधों के फासले व बीज दर को इच्छानुसार तय किया जा सकता है. इस विधि से बीज भी कम लगते हैं और बोआई तय दूरी व गहराई पर होती है. इस विधि में अंकुरण अच्छा होता है और बोआई में कम समय लगता है.

उच्च क्यारी विधि : इस विधि में पानी बचाने के इरादे से ऊंची उठी हुई क्यारियां व नालियां बनाई जाती हैं. क्यारियों की चौड़ाई इतनी रखी जाती है कि उन पर 2-3 कूंड आसानी से बोए जा सकें. नालियां सिंचाई के लिए इस्तेमाल की जाती हैं. इस प्रकार करीब आधे सिंचाई के पानी की बचत हो जाती है. इस विधि में सामान्य विधि की तुलना में उपज अच्छी मिलती है. इस में ट्रैक्टर चालित यंत्रों से बोआई की जाती है. यह यंत्र क्यारियां बनाने, नालियां बनाने और क्यारियों पर कूंड़ों में बोआई करने का काम एकसाथ करता है, लिहाजा ट्रैक्टर में इस्तेमाल होने वाले डीजल व समय की बचत होती है.

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जीरो ड्रिल विधि : कई बार समय पर खेत तैयार नहीं होने से समय पर बोआई नहीं हो पाती. इस समस्या का बहुत ही अच्छा हल है जीरो ड्रिल, जिस में खास किस्म की मशीनों, जिन्हें जीरो सीड ड्रिल भी कहते हैं, से गेहूं की बोआई करते हैं. इस विधि से खेत की जुताई और बीजाई दोनों ही काम एकसाथ हो जाते हैं. इस से बीज भी कम लगते हैं और पैदावार करीब 15-20 फीसदी बढ़ जाती है. सिंचाई के मद में करीब 15-20 फीसदी बचत होती है. इस विधि से बोआई करने पर गेहूं का मामा व मंडूसी जैसे खरपतवारों का प्रकोप कम होता है. साथ ही कुछ रोगों जैसे करनाल बंट व चूर्णिल आसिता का प्रकोप भी कम होता है और दीमक का हमला भी कम होता है.

पोषक तत्त्व प्रबंधन

खेत की तैयारी के समय करीब 10-12 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट को प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. सिंचित इलाकों के लिए 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस व 50 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए. एक तिहाई नाइट्रोजन, पूरी फास्फोरस व पोटाश की मात्रा को बोआई के ठीक पहले इस्तेमाल करें और बाकी नाइट्रोजन को 2 बराबर भागों में बांट कर पहली और दूसरी सिंचाई के बाद इस्तेमाल करें. जबकि देर से बोआई करने पर 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश को प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. पोषक तत्त्वों का इस्तेमाल मिट्टी की जांच के आधार पर करना सब से फायदेमंद होता है. जिंक और सल्फर की कमी वाले क्षेत्रों में 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 30 किलोग्राम सल्फर का प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए.

सिंचाई

आमतौर पर सिंचित क्षेत्रों के लिए 5-6 बार सिंचाई करने की सलाह दी जाती है. फसल की कुछ खास अवस्थाओं में सिंचाई करना जरूरी होता है. सिंचाई की ये अवस्थाएं निम्नलिखित हैं:

* पहली सिंचाई शीर्ष जड़ प्रवर्तन अवस्था पर यानी बोने के 20 से 25 दिनों पर करनी चाहिए.

* दूसरी सिंचाई दोजियां निकलने की अवस्था या विलंब कल्ले निकलने की अवस्था पर यानी बोआई के 40-50 दिनों बाद करनी चाहिए.

* तीसरी सिंचाई तने में गोठों के विकास की आखिरी अवस्था पर या सुशांत अवस्था पर यानी बोआई के 60-70 दिनों बाद करनी चाहिए.

* चौथी सिंचाई फूल आने की अवस्था पर यानी बोआई के 80-90 दिनों बाद करनी चाहिए.

* पांचवीं सिंचाई दानों में दूध वाली अवस्था पर यानी बोआई के 110-115 दिनों बाद करनी चाहिए.

* छठी सिंचाई दाने कड़े होने की अवस्था पर यानी बोआई के 120-130 दिनों बाद करनी चाहिए.

खरपतवारों की रोकथाम

यदि खरपतवारों पर काबू नहीं किया जाता तो वे गेहूं की उपज में 15-45 फीसदी तक का नुकसान पहुंचाते हैं. बोआई से 30-40 दिनों तक का समय खरपतवारों की रोकथाम के लिए खास रहता है. चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों, बथुआ, खरतुआ, कृष्णनील, हिरनखुरी, सैंजी, चटरीमटरी, जंगली गाजर घास वगैरह की रोकथाम के लिए 2, 4 डी लवण 80 फीसदी (फारनेक्सान, टाफाइसाड) की 0.625 किलोग्राम मात्रा को 700-800 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के 25-30 दिनों के अंदर छिड़काव करना चाहिए. संकरी पत्ती वाले खरपतवारों जंगली जई व गेहूंसा की रोकथाम के लिए सल्फोसलफ्योरोन मिथाइल सलफ्योरोन की 40 मिलीलीटर मात्रा को बोआई के 2-3 दिनों बाद 700-800 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. गेहूं के खास खरपतवारों की रोकथाम के लिए उम्दा खरपतवारनाशियों का विवरण तालिका में दिया गया है.

रोगों व कीटों की रोकथाम

गेहूं में रतुआ करनाल बंट खास बीमारी है, जो फफूंद द्वारा फैलती है. इस समय एचडी 2967 किस्म में रतुआ के लिए प्रतिरोधकता जरूरी है. बीज उपचार भी गेहूं को रोगों से बचाने के लिए बेहद कारगर होता है. इस के लिए कार्बंडाजिम की 2.5 ग्राम मात्रा से बीजों को प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करना चाहिए. इस के साथसाथ फफूंद जीव नियंत्रक ट्राइकोडर्मा की 5 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजों को उपचारित करना भी कारगर रहता है.

* भूरा और पीला रतुआ बेहद गंभीर रोग हैं. इन की रोकथाम न करने पर पैदावार में काफी कमी हो जाती है. इन रोगों के लक्षण दिखाई देते ही प्रोपिकानाजोल 25 ईसी या ट्रिडिमिफोन 25 डब्ल्यूपी का 0.1 फीसदी घोल बना कर छिड़काव करें.

* अनावृत कंडवा रोग से गेहूं की बाली में दाने की जगह पर काले रंग का चूर्ण बन जाता है और इस से पैदावार में काफी कमी हो जाती है. वाविस्टीन से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम या ट्राइकोडर्मा पाउडर से 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करने से इस की रोकथाम हो जाती है.

* चूर्णिल आसिता रोग में पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए रोगरोधी किस्मों का चयन करें. बीमारी लगने पर डायथेन एम 45 की 3 किलोग्राम मात्रा को 800 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.

* गेहूं में चेपा या माहूं कीड़ों का प्रकोप बहुत होता है. ये कीट पहले खेत के किनारे पर हमला करते हैं, इसलिए खेत के चारों ओर इमिडाक्लोरोपिड 200 एसएल का 100 मिलीलीटर की दर से प्रति हेक्टेयर में छिकाव करें.

* गेहूं की पत्ती खाने वाला फुदका कीट भी फसल को बहुत नुकसान पहुंचाता है. इस की रोकथाम के लिए क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी की 1.5 लीटर मात्रा 500-600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

* गेहूं में खासकर उन क्षेत्रों में जहां पानी की कमी रहती है, दीमक का प्रकोप काफी ज्यादा होता है. इस की रोकथाम के लिए क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी की 2.5 लीटर मात्रा 500-600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

* चूहों की रोकथाम के लिए 3-4 ग्राम जिंक फास्फाइड को 1 किलोग्राम आटे, थोड़े से गुड़ और तेल में मिला कर छोटीछोटी गोलियां बना लें और उन को चूहों के बिलों के पास रखें.

गेहूं की कटाई व मड़ाई

गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए सही समय पर कटाई करना भी बहुत जरूरी होता है. आमतौर पर जब बीजों में नमी की मात्रा 20 फीसदी के आसपास होती है, तो फसल काटने के लिए तैयार होती है. इस अवस्था में दाने भी सख्त हो जाते हैं और सुनहरे रंग का विकास हो जाता है. मगर यह ध्यान देने वाली बात है कि जब कटाई कंबाइन हार्वेस्टर से करनी हो तो दानों में नमी की मात्रा 14-15 फीसदी होनी चाहिए. हाथ से कटाई करने के बाद ठीक से बंडल बना कर उन्हें धूप में सुखाते हैं और सही अवस्था पर थे्रसर से मड़ाई करते हैं. यदि दाने ज्यादा सूख जाते हैं, तो हाथ से कटाई करने पर उन के झड़ने की संभावना रहती है. ठीक से मड़ाई होने के बाद दानों को सुखा कर करीब 12 फीसदी नमी का स्तर होने पर भंडारण करना चाहिए. इस से भंडारण के दौरान लगने वाले कीटों का असर कम होता है. भंडारण हमेशा सूखी जगह पर करें. भंडारण के लिए जी ए की शीट से बने पात्र का इस्तेमाल करें और 10 क्विंटल गेहूं में एल्युमीनियम फास्फाइड की 1 टिकिया रखें. इस से गेहूं के बीजों की कीटों से हिफाजत होती है.

पैदावार

खेती के उन्नत तरीके अपनाने से गेहूं की अच्छी पैदावार ली जा सकती है. इस से 5-6 टन प्रति हेक्टेयर दाने और 8-9 टन प्रति हेक्टेयर भूसे की उपज ली जा सकती है.

राघवेंद्र विक्रम सिंह, ई. वरुण कुमार, डा. एसएन सिंह

(कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती)

हृदय परिवर्तन-भाग 1: दिवाकर ने किस काम के लिए मना किया था?

लेखिका-रेणु दीप

भावना की ट्रेन तेज रफ्तार से आगे बढ़ती जा रही थी. पीछे छूटते जा रहे थे खेतखलिहान, नदीनाले और तालतलैया. मन अंदर से गुदगुदा रहा था, क्योंकि वह बच्चों के साथ 2 बरसों के बाद अपने मायके जा रही है अपने भाईर् अक्षत की कलाई पर राखी बांधने. गाड़ी की रफ्तार के साथसाथ उस का मन भी पिछली यादों में उल झ गया.

एक समय था जब वह महीनों पहले से रक्षाबंधन की प्रतीक्षा बहुत बेकरारी से किया करती थी. वे 5 बहनें और एक भाईर् था. भाई के जन्म के पहले न जाने कितने रक्षाबंधन बिना किसी की कलाई पर राखी बांधे ही बीते थे उस के. 5 बहनों के जन्म के बाद भाई अक्षत का जन्म हुआ था. सब से बड़ी बहन होने के नाते उस ने अक्षत को बेटे की तरह ही गोद में खिलाया था. सो, शादी के बाद शुरू के 4-5 वर्षों तक, जब तक उस के बच्चे छोटे रहे, वह बहुत ही चाव से हर रक्षाबंधन पर मांबाबूजी के निमंत्रण पर मायके जाती रही थी.

उसे आज तक भाई के विवाह के बाद पड़ा पहला रक्षाबंधन अच्छी तरह याद है. पति दिवाकर ने कितना मना किया था कि देखो, अब अक्षत का विवाह हो गया है, एक बहू के आने के बाद तुम्हारा वह पुराना राजपाट गया सम झो. अब किसी के ऊपर तुम्हारा पुराना दबदबा नहीं चलने वाला. अब तो बस, सालभर में महज एक मेहमान की तरह कुछ दिन ही मायके के हिसाब में रखा करो वह भी तब, जब भाभी तुम्हें खुद निमंत्रण भेजे आने का. लेकिन काश, तब उस ने पति की बात को खिल्ली में न उड़ा कर गंभीरता से लिया होता तो ननद व भाईभाभी के नाजुक रिश्ते में दिल को छलनी कर देने वाली वह दरार तो न पड़ती.

हर वर्ष की भांति उस वर्ष भी मांबाबूजी का दुलारभरा खत आया था, जिस में उन्होंने उसे रक्षाबंधन पर बुलाया था. भाभी के सामने पहले रक्षाबंधन पर जा रही हूं, यह सोच कर उस ने अपने बजट से कहीं ज्यादा खर्च कर भाई के लिए काफी महंगी पैंटशर्ट और भाभी के लिए बहुत बढि़या खालिस सिल्क की साड़ी व मोतियों का सुंदर जड़ाऊ सैट खरीदे थे.

मायके पहुंचते ही मांबाबूजी व भाई ने हमेशा की तरह ही पुलकित मन से भावना और दोनों बच्चों का सत्कार किया था. लेकिन जिस चेहरे को अपने स्नेहदुलार, ममता के रेशमी जाल में हमेशा के लिए जकड़ने आई थी, ननदभाभी के रिश्ते को नया रूप देने आईर् थी, घर पहुंचने के घंटेभर बाद तक भावना को वह चेहरा नजर नहीं आ पाया था. वह अपनी उत्सुकता को और न दबा पाते हुए  झट से भाई से बोल पड़ी थी, ‘अरे अक्षत, तेरी बहू नहीं दिखाई दे रही. इस बार तो मैं उसी से मिलने और दोस्ती करने आई हूं. वरना तेरे जीजा तो मु झे आने ही नहीं दे रहे थे,’ ड्राइंगरूम में बैठे लोग बातें कर रहे थे कि भावना अपनी आदत के अनुसार धड़धड़ाती हुई नई बहू के शयनकक्ष में बिना खटखटाए ही घुस गई थी. बहू के खूबसूरत चेहरे को देखते ही भावना ने  झट से उसे बांहों में भर लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाए पर भाभी के चेहरे पर भावों को देख कर अपना हाथ पीछे खींच लिया. वह यह कह कर कमरे से बाहर आ गई थी, ‘वाणी, जल्दी से बाहर आ जाओ, मैं तो तुम से बातें करने को बुरी तरह से  झटपटा रही हूं.’

वापस आ कर भावना यात्रा से पैदा हो आईर् थकान को अपनों के बीच बैठ, मां के हाथों की बनी मसाले वाली, सौंधीसौंधी महक वाली चाय के घूंटों से मिटाने का प्रयत्न कर रही थी. साथ ही साथ, उस की नजरें नई बहू से मिलने व बतियाने की ख्वाहिश में बारबार दरवाजे पर  झूलते परदे की ओर खिंच जाती थीं. लेकिन पौना घंटा बीतने पर भी वाणी कमरे से बाहर नहीं आई थी. अक्षत भी बीच में उठ कर शायद वाणी को ही बुलाने चला गया था, लेकिन वह भी इस बार तनिक असहज मुद्रा में ही वापस लौटा था.

तकरीबन एक घंटे बाद वाणी अपने कमरे से बाहर आईर् थी पूरी तरह से सजधज के साथ. साड़ी से मेल खाती चूडि़यां, बिंदी, यहां तक कि गले और कान के गहने भी उस की साड़ी से मेल खा रहे थे, जिन्हें देख कर बिना सोचेसम झे वह यह पूछने की गलती कर बैठी थी, ‘यह क्या वाणी, कहीं जा रही हो क्या, जो इस तरह तैयार हो कर आई हो?’

 

  कांग्रेस में चिट्ठी बम

कांग्रेस के वरिष्ठ व इंग्लिश बोलने में माहिर 23 नेताओं ने पार्टी  अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक लंबी चिट्ठी में वे बातें कही हैं जिन का जमीनी वास्तविकता से न कोई मतलब है और जिन पर अमल करने से कांग्रेस का न कोई भला होने वाला है. गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, शशि थरूर, विवेक तन्खा, मुकुल वासनिक, जितिन प्रसाद, भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे नेताओं ने जिस तरह की मांगें रखी हैं, उन को पूरा करने में क्या वे खुद कुछ कर सकते हैं?

मांगें साधारण सी हैं. कांग्रेस में पूर्णकालिक अध्यक्ष हो, चुनाव अधिकारी हो, संविधान के अनुसार कांग्रेस कार्यकारिणी का चुनाव हो, राज्य इकाइयों में भी अध्यक्ष नियुक्त नहीं किया जाए, चुना जाए.

इन नेताओं ने जो कहा है वह तब संभव है जब पार्टी में मेहनती कार्यकर्ता और नेता हों. पिछले 70 वर्षों से पार्टी में नेताओं की 3 पीढि़यां बिना जमीनी सेवा किए स्वतंत्रता आंदोलन के योगदान, जो उन्होंने नहीं उन के पूर्वजों ने किया था, का आनंद उठा रही हैं. अब यह मौज भारतीय जनता पार्टी के नेता छीन ले गए हैं. कांग्रेस के ये बड़बोले, खाली बैठे, ड्राइंगरूमी नेता कभी जमीन पर नहीं लड़े. भारतीय जनता पार्टी से मुकाबला करने की पूरी जिम्मेदारी इन्होंने सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर डाल रखी है.

भारत की राजनीति असल में हमेशा ऊंची जातियों के हाथों में रही है और उन में से भी खासतौर पर ब्राह्मणों के हाथों में. बातें बनाने में तेज ये लोग न सही फैसले ले पाते हैं, न सही काम कर पाते हैं. महात्मा गांधी ने एक अलग तरह की राजनीति शुरू की थी पर इन नेताओं के पूर्वजों ने उस राजनीति का लाभ तो उठाया लेकिन जमीन पर जा कर काम नहीं किया.

जो मेहनत चौधरी चरण सिंह, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, कांशीराम, सी एन अन्नादुरई, एन टी रामाराव जैसे नेताओं ने की, इन कांग्रेसी नेताओं ने नहीं की. 1998 के बाद कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में कूदने के बाद जो मेहनत सोनिया गांधी ने की उस का अंशभर भी किसी ने नहीं किया. पर जब 2004 में कांग्रेस अनायास जीत गई तो ये बंटने वाले दान को पाने के लिए उच्चतम श्रेष्ठ ब्राह्मण होने के नाते सब से आगे आ कर खड़े हो गए थे.

2014 में हारने के बाद इन नेताओं में से किसी को भाजपा ने निशाना नहीं बनाया. ‘बारगर्ल इटालवी’ सोनिया गांधी और ‘पप्पू’ राहुल गांधी 6 सालों से भाजपा के तीरों से लहूलुहान हो रहे हैं. इन 23 नेताओं की खिंचाई कहीं भाजपा सेल नहीं करती क्योंकि ये निरर्थक हैं. भाजपाई इन्हें किसी मतलब का समझते ही नहीं हैं. भाजपा जानती है, दूसरे कांगे्रसी नेता वोट बटोर नहीं सकते. उन में न

मोदी जैसी बोलने की कला है न संघ कार्यकर्ताओं की तरह गलीगली जाने की क्षमता. भाजपा को डर केवल सोनिया, राहुल और प्रियंका से है. ये तीनों असल में जमीनी भारत का भाजपा से कहीं ज्यादा प्रतिनिधित्व करते हैं और नागपुर इस बात को समझता है.

भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान नेताओं ने रामरथों को खींचा है, जुलूसों में मीलों चल कर भाग लिया है, फूल और पत्थर दोनों बरसाए हैं, जागरणों में भी भाग लिया है और थानों में भी रातें बिताई हैं. भाजपा में भी कोई चुनाव नहीं होते, न नरेंद्र मोदी, न अमित शाह, न मोहन भागवत और न जे पी नड्डा किसी चुनाव की देन हैं. आंतरिक चुनाव तो हमारी संस्कृति में है ही नहीं, फिर इन

23 को क्या हक है? ये 23 भी कभी पार्टी चुनावों से जीत कर नहीं आए.

चुनावी रंग में अमेरिका

अमेरिकी चुनावों को ध्यान से देखें तो वे काफी हद तक भारत जैसा माहौल दिखाते हैं. डोनाल्ड ट्रंप के दूसरी बार जीतने की उम्मीद पर काफी प्रश्नचिह्न खड़े हो चुके हैं पर गोरे कट्टरपंथियों को, भारतीय भक्तों की तरह की, टं्रप की वाहवाही करनी पड़ रही है. ट्रंप ने मेक इन अमेरिका, कीप इमिगै्रंट्स अवे जैसे नारों से भारत जैसा राजनीतिक माहौल बना डाला है और गोरे अमेरिकियों की एक बड़ी जमात अंधभक्ति में डूब कर तथ्य व तर्क भूल चुकी है.

अमेरिकी गोरों को अपनी सत्ता वैसे ही हिलती नजर आ रही है जैसी भारत में सवर्णों को नजर आ रही है. मेहनत के बलबूते काले, लैटिनों, चीनी, भारतीय, फिलीपीनी व अरबी अब धीरेधीरे ऊंचे पदों पर पहुंचने लगे हैं और कुछ साल पहले तक केवल गोरों के रहे क्लब, रैस्तरां, गोल्फ कोर्स, अपार्टमैंट कोडों, गेटेड कम्युनिटीज में भी इन की घुसपैठ शुरू हो गई है.

बराक ओबामा काले थे और अच्छे राष्ट्रपति साबित हुए. उन्हीं के कारण गोरों में एक डर पैदा हो गया कि कहीं काले नागरिक व्यापारों और उद्योगों

पर भी राजनीति सा कब्जा न कर लें. उन्होंने 2016 में सारा जोर सिरफिरे अमीर डोनाल्ड ट्रंप पर लगा दिया. झूठी कहानियों, खबरों को तोड़मरोड़ कर इस तरह पेश किया गया कि बराक ओबामा की चहेती हिलेरी क्ंिलटन जीत नहीं पाईं और 4 वर्षों से, भारत की तरह, अमेरिका आर्थिक थपेड़े खा रहा है.

भारत में यह डर पहले पिछड़े देवीलाल और लालू प्रसाद यादव प्रधानमंत्री न बन जाएं, से पैदा हुआ था और फिर यह कि कहीं मायावती जैसी दलित सत्ता हथिया न ले. इस के लिए राममंदिर के नाम पर एक नई तरह

की राजनीति अपनाई गई जिस की

छाया अमेरिका के 2016 के चुनावों में दिखी थी.

अब 2020 के अमेरिकी चुनाव काफी रोचक साबित होंगे क्योंकि उस की दुर्व्यवस्था के कारण अमेरिकी काफी नाराज हैं पर गोरे कट्टरपंथी आज भी रंग व अपने वर्चस्व की चिंता कर रहे हैं जिस के अकेले रक्षक उन्हें डोनाल्ड ट्रंप दिख रहे हैं. जो बाइडेन और कमला हैरिस की जोड़ी अभी लोकप्रियता में काफी आगे है पर अंत में गोरेकालों का भेद कहीं फिर उबाल भरने लगे, कहा नहीं जा सकता.

चीन के सामने बोलती बंद

पाकिस्तान को छठी का दूध पिला डालने की सोशल मीडिया वीरों की बोलती आजकल बिलकुल बंद है. मुकाबला अब बहुत मजबूत चीन से है जो भारत के थोथे तेवरों से नाराज हो कर सीमा पर लगातार दबाव बनाए हुए है. लद्दाख में चीन उस जमीन पर सड़कें, बंकर, पुल, अस्पताल बना रहा है जो पहले भारतीय सैनिकों के कब्जे में थीं.

हाल इतना बुरा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बात करने की हिम्मत भी नहीं हो रही कि कहीं वे कुछ और मांग न कर बैठें. इस विवाद को सुलझाने के लिए सीमा पर तैनात मिलिट्री अफसर चीनी सेना के जनरलों से तर्कवितर्क कर रहे हैं लेकिन वे टस से मस नहीं हो रहे.

भारत की तैयारी पूरी है कि सीमा की सुरक्षा पूरी तरह हो. पर फिर भी सच यह है कि चीन के पास एक बड़ी सेना है, साथ ही, उस के पास अपने कारखानों में बने हर तरह के आधुनिकतम हथियार भी हैं. 2018 के अनुसार जहां अमेरिका ने 10 अरब डौलर के हथियार निर्यात किए थे, एक बिलियन डौलर के हथियार चीन ने भी निर्यात किए थे. भारत इस में कहीं नहीं आता. भारत तो बाहर से खरीदने वालों में से है. 2019 में भारत का स्थान दूसरा था विदेशी हथियार खरीदने में. सऊदी अरब ने भारत से तीनगुना और पाकिस्तान ने आधे के बराबर खरीदे.

कहने का अर्थ यह है कि भारत को जहां विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है, चीन अपने हथियार खुद बनाता है. यदि युद्ध गंभीर हुआ तो विदेशी उत्पादक कभी भी हथियार बेचने से मना कर सकते हैं, जबकि चीन को ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा.

अब जब भारत सरकार का खजाना खाली हो रहा है, भारत को हथियार खरीदने में कठिनाई होने वाली है.

आज चीन न केवल लद्दाख, बल्कि नेपाल और भारत सीमा के कोने, अरुणाचल प्रदेश, भूटान आदि में भी सीमा विवाद खड़ा कर रहा है. जहां पहले तिब्बती राजाओं का यदाकदा प्रभाव रहता था. चीन उस इतिहास के बल पर अपना हक जता रहा है.

भारत सरकार चीन पर जो चुप्पी साधे है वह भी गलत है. देशवासियों को सच बताना सरकार का कर्तव्य है ताकि देश एकजुट हो कर, साथ में मिल कर, चीनी घुसपैठ का मुकाबला करे.

कैशलैस नहीं कैश

कुछ सालों से सरकार नकद लेनदेन को बंद करने की भरसक कोशिश में लगी है. अरुण जेटली जब तक वित्त मंत्री थे, बेमतलब रोज कैशलैस इकोनौमी का राग आलापा करते थे. सरकार ने जनता को बहुत सारे लौलीपौप भी दिए कि कैशलैस इकोनौमी में लाभ ही लाभ हैं. नोटबंदी की एक बड़ी वजह एक झटके में नकदी की आदत से लोगों को उबारने की भी थी.

अफसोस कि लोगों को न सरकार पर भरोसा है न बैंकों पर. नोटबंदी के बावजूद सारा लेनदेन फिर नकद में चालू हो गया है. कोरोना के दिनों में तो यह अचानक बढ़ गया क्योंकि लोगों को नकद जेब में रखना ज्यादा सुरक्षित लग रहा है. मार्च में जहां 24 लाख करोड़

की नकदी बाजार में थी, अगस्त तक 26.9 लाख करोड़ हो गई, जो नोटबंदी से पहले से कहीं ज्यादा है.

सरकार के नीतिनिर्धारक असल में एयरकंडीशंड कमरों में बैठते हैं और ज्यादातर दूसरीतीसरी पीढ़ी से शासकवर्ग में हैं. इन्हें जमीनी हकीकत के बारे में मालूम ही नहीं है. देश की जनता जो गांवों, कसबों और शहरों की कच्ची बस्तियों में पसरी हुई है, पाईपाई का हिसाब रखती है और उस के लिए न कंप्यूटर पर न मोबाइल पर लेनदेन करना संभव है. पिछले 5-6 सालों में हर साल उस की हालत और बुरी हुई है और उसे मालूम नहीं कि कल कैसा होगा. जो नकद उस के हाथ में है वह उस का है. जो बैंक में है, उस की तो सरकार ही मालिक है.

क्रैडिट कार्ड और नैटबैंकिंग चाहे कितनी सुविधाजनक लगे, यह है असल में एक आफत. जब भुगतान किसी दूरदराज इलाके के किसी को करना हो तो बात दूसरी और उस निगाह से यह मनीऔर्डर और चैक से बेहतर है, वरना फेसटूफेस लेनदेन में कैश ही किंग है.

सरकार का आज कोई भरोसा नहीं है. सरकार कब बैंकों में रखा पैसा जब्त कर ले, पता नहीं. सरकार कब खरीद का हिसाब लेने लगे, मालूम नहीं. बैंक कब किस खाते को बंद कर दे, मालूम नहीं. कब क्रैडिट कार्ड ब्लौक हो जाए, पता नहीं.

यही नहीं, जरा सी गड़बड़ हुई नहीं, कि सरकार बैंक खाते खुलवाने शुरू कर देती है. पैन कार्ड नंबर और आधार नंबर से आप की जिंदगी में कोई निजी बात

रह ही नहीं गई. सरकारी पंडे हर जगह हिस्सा बांटने को तैयार खड़े रहते हैं. सरकारी कहर से अपना बचाव करना है तो कैश की सुरक्षा हाथ में रहनी चाहिए. जब तक हमारे यहां सिर्फ कोरे वादे करने और फेंकने वाली सरकारें हैं, अपनी बचत को कैश में रखने में बेवकूफी नहीं, चाहे चोरउचक्कों का डर रहे. उन से बड़े बैठे हैं जो कलम की एक लाइन से बड़ी डकैती कर सकते हैं, 2-4 की नहीं, 20-30 करोड़ लोगों की, वह भी एक झटके में.

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