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घर में बना लें मच्छर भगाने का स्प्रे

बारिश का मौसम अपने साथ कई बीमारियां ले कर आता है. आजकल जो मौसम है उसमें बुखार, खांसी-जुकाम के साथ मच्छरों द्वारा फैलने वाले कई तरह के ज्वर महामारी की तरह फैलने लगते हैं. खासकर पूर्वांचल में तो बारिश के मौसम में पनपने वाले मच्छर अपने साथ मलेरिया, चिकनगुनिया और डेंगू जैसी भयंकर बीमारियां साथ लेकर आते हैं.

कोरोना के वक़्त लॉक डाउन और अनलॉक की प्रक्रिया के बीच अनेक राज्यों में बारिश की शुरुआत में ही जिस तरह मच्छरों की रोकथाम के लिए शासन-प्रशासन द्वारा कीटनाशक का छिड़काव और दवायुक्त धुवें का प्रयोग होता था, इसबार नहीं हो पाया है. नतीज़ा मच्छरों की तादात में तेजी से इजाफा हुआ है.

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बाजार में यूँ तो कई तरह के कैमिकल युक्त स्प्रे आते हैं मगर वो कितने प्रभावकारी हैं कहना मुश्किल है. दूसरे ये मेंहगे भी बहुत हैं. इसके साथ ही उनमे मौजूद केमिकल सांस सम्बन्धी अनेक परेशानियां पैदा करते हैं. बुज़ुर्गों और नन्हे बच्चों वाले घरों में तो ये कैमिकल युक्त स्प्रे घातक सिद्ध हो सकते हैं. इससे उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो सकती है और शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो सकती है जिसका सीधा प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है.

ऐसे में अगर हम मच्छरों को अपने घरों और कार्यालयों से दूर रखने के लिए घर के बने स्प्रे इस्तेमाल करें तो ज़्यादा बेहतर है. इसमें ना तो घातक कीटाणुनाशक होंगे और ना ही कोई दमघोटूं बदबू बर्दाश्त करनी पड़ेगी. इससे बच्चों और बुजुर्गों की सेहत को भी नुकसान नहीं होगा, साथ ही बहुत मामूली से खर्च में आपको मच्छरों से भी राहत मिल जाएगी.  आइये आपको बताते हैं घर में बने पांच नैचुरल स्प्रे के बारे में, जिनके आगे मच्छरों का टिकना मुश्किल है.

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 युक्लिप्टस ऑयल स्प्रे  

मच्छरों को नष्ट करने के लिए लेमन युक्लिप्टस ऑयल बड़ा काम आता है. 90 एमएल नारियल या ऑलिव ऑयल में 10 एमएल लेमन युक्लिप्टस ऑयल मिला लें. इसके बाद इसे किसी बोतल में बंद करके स्प्रे की मदद से घर के कोनों में छिड़क दीजिए. आप चाहें तो इस तेल को शरीर पर भी मल सकते हैं. स्प्रे लिक्विड को पतला करने के लिए इसमें थोड़ा पानी भी मिला सकते हैं. ये पूरी तरह सुरक्षित और सुगन्धित स्पे है, मगर मच्छर को इसकी खुशबु से एलर्जी है लिहाज़ा इसकी खुशबु पाते ही वो निकल भागते हैं.

 नीम का तेल

नीम की तेज महक से मच्छर कोसों दूर भागते हैं. नीम के तेल में मौजूद प्राकृतिक तत्व मच्छरों को आपके पास नहीं आने देंगे. नीम और नारियल के तेल का मिश्रण मच्छरों को दूर भगाने में बड़ा लाभकारी है. इसके लिए 30 एमएल नारियल के तेल में नीम के तेल की सिर्फ 10 बूंदें मिलाएं और इसमें थोड़ा सा गर्म पानी या वोडका मिला कर इसका पूरे घर में छिड़काव कर दें. मच्छर आपके घर की तरफ देखेंगे ही नहीं.

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 टी ट्री ऑयल स्प्रे

कई औषधीय गुणों से भरपूर टी ट्री ऑयल भी मच्छर भगाने के काम आ सकता है. इसमें मौजूद एंटी सेप्टिक और इनफ्लेमेटरी तत्व मच्छरों के जहरीले डंक को बेअसर कर देते हैं. इसकी तेज सुगंध मच्छरों को घर में नहीं घुसने देती है. 30 एमएल नारियल के तेल में टी ट्री ऑयल की 10 बूंदें मिलाएं. इसके बाद हल्का सा पानी और वोडका शामिल कर मच्छरों को भगाने का जबर्दस्त होम मेड फॉर्मूला आज़माएँ.

 लैवेंडर की खुशबू

लैवेंडर की खुशबू हमारा मन मोह लेती है लेकिन मच्छरों को घर से बाहर रखती है. इसी वजह से कुछ लोग घर में इसका चमत्कारी पौधा रखते हैं. आप चाहें तो लेवेंडर के तेल को लेमन जूस में मिलाकर मच्छरों को भगाने वाला स्प्रे बना सकते हैं. इसमें आप फ्लेवर के लिए थोड़ा वेनिला एसेंस भी मिला सकते हैं. इसे बनाने के लिए 3-4 टेबल स्पून लेमन जूस, 3-4 टेबल स्पूम वेनिला और लेवेंडर ऑयल की 10-12 बूंदें किसी शीशी में मिलाकर अच्छे से मिला लीजिए और फिर घर में इसका स्प्रे करिये. मच्छर कोसों दूर रहेंगे.

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 लेमनग्रास और रोजमैरी ऑयल

मच्छरों को भगाने के लिए लेमनग्रास और रोजमैरी ऑयल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. घर में इसका स्प्रे बनाने के लिए 60 एमएल नारियल या ऑलिव ऑयल में लेमनग्रास और रोजमैरी के तेल की 10-10 बूंदें डाल दीजिए. अब इस तैयार लिक्विड को घर में स्प्रे कर दीजिए. यकीन मानिए मच्छर कभी घर में दाखिल नहीं होंगे.

Crime Story: सौफ्टवेयर की दोस्ती

सौजन्य – मनोहर कहानिया.

 

प्रदीप 8 महीने तक फेसबुक पर ज्योति के संपर्क में रहा. दोनों में पहले दोस्ती हुई, फिर प्यार और फिर मिलन की तैयारी. उस के इस फेसबुकिया प्रेम ने उस के दोस्त…फिरोजाबाद जिले का एक थाना है नगला खंगर. इसी के थाना क्षेत्र में एक गांव है धौनई. यहीं के रहने वाले अजयपाल का बेटा है प्रदीप यादव. वह झारखंड की एक कंपनी में नौकरी करता था.

अजयपाल रक्षाबंधन से 9-10 दिन पहले अपने गांव धौनई आ गया था ताकि त्यौहार अच्छे से मनाया जा सके. उस के आने से पूरा परिवार खुश था. वजह यह कि नौकरी की वजह से अजय को झारखंड में रहना पड़ता था. वहां से वह कईकई महीने में आ पाता था. करीब 8 महीने पहले अजयपाल की फेसबुक के माध्यम से एक युवती ज्योति शर्मा से दोस्ती हो गई थी. बाद में दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर भी दे दिए थे. इस के बाद मोबाइल पर दोनों के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया था.

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बातों बातों में प्रदीप को पता चला कि ज्योति फिरोजाबाद जिले के गांव नगला मानसिंह की रहने वाली है. ज्योति ने बताया था कि वह बीए में पढ़ रही है. फेसबुक से शुरू हुई दोनों की दोस्ती धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी. अब ज्योति और प्रदीप मोबाइल पर प्यार भरी बातें भी करने लगे.अगर किसी लड़केलड़की के बीच लगातार बातचीत होती रहे तो कई बार प्यार हो जाता है. यही अजयपाल और ज्योति के बीच भी हुआ. दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे. दोनों ने एकदूसरे पर अपने प्रेम को भी उजागर कर दिया.

प्रदीप ने ज्योति को बताया कि वह भी फिरोजाबाद जिले के थाना नगला खंगर के गांव धौनई का रहने वाला है. यह जानने के बाद दोनों एकदूसरे से मिलने के लिए उतावले हो गए. लेकिन प्रदीप को कंपनी से छुट्टी नहीं मिल पा रही थी. अपने गांव जाने से वह इसलिए भी कतरा रहा था कि घर वाले पूछेंगे कि तुम अचानक क्यों आ गए? इसलिए प्रदीप ने ज्योति को बताया, वह रक्षाबंधन पर घर आएगा तो उस से जरूर मुलाकात करेगा.प्रदीप अपनी प्रेयसी से मिलने को आतुर था. इसलिए उस ने रक्षाबंधन से पहले ही घर जाने का निर्णय कर लिया. उस ने घर जाने के लिए छुट्टी ले ली. फिर वह रक्षाबंधन से 10 दिन पहले ही गांव आ गया. रक्षाबंधन 3 अगस्त को था. इस बीच उस की ज्योति से फोन पर बातचीत होती रही.

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प्रदीप का गांव में एक ही दोस्त था सत्येंद्र. वह गांव में ही खेतीकिसानी करता था. उस के पिता रामनिवास की मृत्यु हो चुकी  थी. सत्येंद्र फौज में भरती होने की तैयारी कर रहा था. 2 अगस्त की शाम 7 बजे थे. सत्येंद्र खेत से काम कर के वापस घर लौटा था. हाथमुंह धो कर उस ने मां से खाना परोसने के लिए कहा. मां थाली परोस कर लाई ही थी कि सत्येंद्र का दोस्त प्रदीप आ पहुंचा. प्रदीप ने इशारे से सत्येंद्र को अपने पास बुलाया.

प्रदीप ने उस के कान के पास मुंह ले जा कर धीमी आवाज में कुछ कहा. इस पर सत्येंद्र बोला, ‘‘खाना खा कर चलते हैं.’’लेकिन प्रदीप ने कहा, ‘‘अभी लौट कर आते हैं, तभी खा लेना.’’  इस पर सत्येंद्र ने परोसी थाली छोड़ कर मां से कहा कि वह जरूरी काम से प्रदीप के साथ तिलियानी गांव जा रहा है. थोड़ी देर में लौट आएगा और वह जाने लगा तो मां ने कहा, ‘‘बेटा खाना तो खा ले, अभी तो कह रहा था तेज भूख लग रही है.’’ ‘‘चिंता मत करो मां, वापस आ कर खा लूंगा.’’ कह कर 23 वर्षीय सत्येंद्र अपने 24 वर्षीय दोस्त प्रदीप की मोटरसाइकिल पर बैठ कर उस के साथ चला गया.

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दोस्ती में सत्येंद्र बना शिकार

रात सवा 8 बजे सत्येंद्र के घर वालों को सूचना मिली कि सत्येंद्र तिलियानी रोड पर नगला मानसिंह के पास लहूलुहान पड़ा है. यह सुन कर घर वालों के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई.घर वाले आननफानन में घटनास्थल पर पहुंचे और घायल सत्येंद्र को उपचार के लिए जिला अस्पताल ले आए. उस के माथे पर गोली लगी थी. उस की गंभीर हालत देख डाक्टरों ने उसे आगरा रेफर कर दिया.

घर वाले सत्येंद्र को उपचार के लिए जब आगरा ले जा रहे थे, तो रास्ते में उस की मौत हो गई. पोस्टमार्टम के लिए उस के शव को जिला अस्पताल वापस लाया गया. सत्येंद्र के शरीर में गोली न मिलने के कारण उस के शव का एक्सरे किया गया.पता चला कि गोली माथे में लगने के बाद पार हो गई थी. सुबह जब सत्येंद्र की मौत की खबर गांव पहुंची तो सनसनी फैल गई. सभी उसे सीधासादा बता कर उस की हत्या पर शोक जताने लगे.

उधर पुलिस की पूछताछ में सत्येंद्र के भाई धर्मवीर ने बताया कि कल शाम 7 बजे जब सत्येंद्र खाना खाने बैठा था, तभी गांव का उस का दोस्त प्रदीप आया और भाई को जबरन साथ ले गया. धर्मवीर ने आरोप लगाया कि उसी ने भाई की गोली मार कर हत्या कर दी है.

धर्मवीर की तहरीर पर पुलिस ने प्रदीप के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस ने प्रदीप को हिरासत में लेने के साथसाथ उस के मोबाइल को भी कब्जे में ले लिया और उस से पूछताछ शुरू कर दी.पूछताछ के दौरान प्रदीप ने पुलिस को बताया कि वह सत्येंद्र के साथ तिलियानी गांव की ओर जा रहा था. इसी दौरान रास्ते में अचानक गोली चली और मोटरसाइकिल चला रहे सत्येंद्र के माथे में आ लगी, उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. सत्येंद्र को गोली लगने पर वह डर गया और अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग गया.

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हत्या का यह मामला आईजी (आगरा रेंज) ए. सतीश गणेश तक पहुंचा. उन्होंने कहा, ‘कहानी जितनी सीधी दिख रही है उतनी है नहीं. कोई पागल ही होगा जो अपने साथ किसी को उस के घर से ले कर आए और उस की हत्या कर दे. इस मामले में गहराई से जांच कराई जाए.’पुलिस को प्रदीप की बात गले नहीं उतर रही थी. पुलिस को लगा कि वह सच्चाई छिपा रहा है. सवाल यह था कि रात में दोनों तिलियानी गांव किस से मिलने जा रहे थे और क्या काम था, पुलिस प्रदीप से जानना चाहती थी कि हत्या से पहले क्याक्या हुआ था, अब प्रदीप के पास सच बताने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

पुलिस ने इस बारे में प्रदीप से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने पुलिस को बहुत बाद में बताया कि उस की एक गर्लफ्रैंड है ज्योति शर्मा. उस ने ही उसे मिलने के लिए नगला मानसिंह मोड़ पर बुलाया था, दोनों उसी के पास जा रहे थे कि रास्ते में यह घटना घट गई. उस ने पुलिस से कहा कि वह चाहें तो ज्योति से पूछ ले.प्रदीप के बयानों की सच्चाई जानने के लिए पुलिस ने ज्योति की तलाश शुरू की. लेकिन ज्योति होती तो मिलती. प्रदीप से उस का मोबाइल नंबर लेने के बाद सर्विलांस पर लगा दिया गया. साइबर सेल ने यह गुत्थी सुलझा दी.

दरअसल प्रदीप को फंसाने के लिए ज्योति शर्मा के नाम से एक हाईटेक जाल फैलाया गया था, जांच में पुलिस को पता चला कि जो नंबर ज्योति शर्मा का बताया जा रहा था वह नंबर गांव इशहाकपुर निवासी राघवेंद्र उर्फ काके का है. पुलिस ने प्रदीप से कहा, तुम जिस नंबर को ज्योति शर्मा का बता रहे हो, वह तो राघवेंद्र का है. यह सुनते ही प्रदीप का माथा ठनका. उस ने पुलिस को बताया कि इशहाकपुर का राघवेंद्र तो उस से रंजिश रखता है. लगता है वह मेरी बात ज्योति शर्मा नाम की किसी लड़की से कराता था. वह लड़की कौन है, यह बात तो राघवेंद्र ही बता सकता है.

एसएसपी सचिंद्र पटेल इस सनसनीखेज हत्याकांड की पलपल की जानकारी ले रहे थे. उन्होंने इस केस के आरोपियों की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी एसपी (देहात) राजेश कुमार को सौंपी. साथ ही उन्होंने उन की मदद के लिए एएसपी डा. इरज रजा और थाना सिरसागंज के प्रभारी गिरीश चंद्र गौतम को ले कर एक पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस पुलिस टीम में थानाप्रभारी के साथ ही एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह, एसआई रनवीर सिंह, अंकित मलिक, प्रवीन कुमार, कांस्टेबल विजय कुमार, परमानंद, राघव दुबे, हिमांशु, महिला कांस्टेबल हेमलता शामिल थे.

इस टीम के सहयोग के लिए एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह को भी सहयोग करने का आदेश दिया गया. पुलिस शुरू से ही इस मामले की गहनता से जांच कर रही थी.

सौफ्टवेयर का कमाल

जांच कार्य में एसएसपी सचिंद्र पटेल के निर्देश के बाद और तेजी आ गई. 7 अगस्त को पुलिस को मुखबिर से जानकारी मिली कि नगला मानसिंह में हुई हत्या के आरोपी गड़सान रोड पर व्यास आश्रम के गेट के पास खड़े हैं. इस सूचना पर थानाप्रभारी गिरीशचंद्र गौतम पुलिस टीम के साथ बताए गए स्थान पर पहुंच गए और घेराबंदी कर राघवेंद्र यादव उर्फ काके और उस के दोस्त अनिल यादव को गिरफ्तार कर लिया.
पुलिस दोनों हत्यारोपियों को थाने ले आई. पुलिस ने उन के कब्जे से हत्या में इस्तेमाल 315 बोर का तमंचा, एक खोखा, एक कारतूस, 3 मोबाइल और हत्या में इस्तेमाल मोटरसाइकिल बरामद कर ली.

दोनों आरोपियों ने सत्येंद्र की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस लाइन सभागार में आयोजित प्रैस कौन्फ्रैंस में एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार ने हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी.
राघवेंद्र प्रदीप से रंजिश के चलते उस की हत्या करना चाहता था. उस ने फूलप्रूफ षडयंत्र भी रचा. हत्यारोपियों ने हाईटेक जाल बिछाया और प्रदीप को अपने जाल में फंसा कर उसे अपनी मनपसंद जगह पर भी बुला लिया लेकिन निशाना चूक गया. हत्या प्रदीप की करनी थी, लेकिन हो गई उस के दोस्त सत्येंद्र की. हत्यारोपियों ने इस सनसनीखेज हत्याकांड के पीछे की जो कहानी बताई, वह चाैंकाने वाली थी—

सन 2014 की बात है. प्रदीप के गांव धौनई की रहने वाली एक लड़की से थाना नगला खंगर क्षेत्र के गांव इशहाकपुर निवासी राघवेंद्र का प्रेमप्रसंग चल रहा था. एक दिन प्रदीप राघवेंद्र को उसी लड़की के चक्कर में धोखे से बुला कर अपने गांव ले गया था. उस ने अपने परिवार के युवक हिमाचल से राघवेंद्र की पिटाई करवाने के साथसाथ उसे बेइज्जत भी कराया. तभी से वह प्रदीप से रंजिश मानने लगा था.वह प्रदीप से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था. लेकिन इस घटना के बाद प्रदीप नौकरी के लिए झारखंड चला गया था.

राघवेंद्र के सीने में प्रतिशोध की आग धधक रही थी. करीब 8 माह पहले उसे प्रदीप की फेसबुक से पता चला कि वह झारखंड की एक कंपनी में काम करता है. इस के बाद उस ने ज्योति शर्मा बन कर उस से दोस्ती कर ली और उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया.प्रदीप का मोबाइल नंबर लेने के बाद राघवेंद्र ने अपने मोबाइल में वौइस चेंजर ऐप डाउनलोड किया. इसी ऐप के माध्यम से वह नगला मानसिंह की ज्योति शर्मा बन कर प्रदीप से बातें करने लगा.

रक्षाबंधन पर प्रदीप को गांव आना था, राघवेंद्र को इस की जानकारी थी. उस ने कई दिन पहले से प्रदीप की हत्या की साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया था. उस ने ज्योति शर्मा बन कर आवाज बदलने वाले सौफ्टवेयर से आवाज बदल कर प्रदीप को फोन किया. दोनों के बीच फोन पर प्यार भरी बातें होने लगीं. मिलने के वादे हुए. फोन पर प्रदीप जिसे ज्योति समझ कर हंसीमजाक करता था, उस से अपने दिल की बात कहता था वह राघवेंद्र था. वह भी ज्योति बन कर प्रदीप से पूरे मजे लेता था.

रक्षाबंधन पर प्रदीप के घर आने की जानकारी राघवेंद्र को थी. प्रदीप से बदला लेने का अच्छा मौका देख उस ने ज्योति की आवाज में पहली अगस्त को प्रदीप को नगला मानसिंह मोड़ पर मिलने के लिए शाम को बुलाया. उस से वादा किया कि आज मिलने पर उस की सारी हसरतें पूरी कर देगी.पहले दिन मोटरसाइकिल पर 2 लोग होने के कारण राघवेंद्र घटना को अंजाम नहीं दे सका था. 2 अगस्त को उस ने दोबारा ज्योति बन कर प्रदीप को फोन किया और मिलने के लिए बुलाया. प्रदीप ने ज्योति से कहा कि वह कुछ ही देर में उस से मिलने आ रहा है. इस के बाद प्रदीप अपने दोस्त सत्येंद्र के घर गया और उसे साथ ले कर तिलियानी रोड स्थित नगला मानसिंह मोड़ की ओर चल दिया.

नगला मानसिंह के पास रास्ते में राघवेंद्र अपने गांव के ही दोस्त अनिल यादव के साथ मोटरसाइकिल से पहले ही पहुंच गया था. प्रदीप को मोटरसाइकिल पर आते देख कर राघवेंद्र ने गोली चला दी. गोली प्रदीप को न लग कर उस के दोस्त सत्येंद्र के माथे में लगी, जिस से बाद में उस की मौत हो गई थी.
पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. इस सनसनीखेज घटना का खुलासा करने वाली टीम को एसएसपी सचिंद्र पटेल ने 15 हजार रुपए का पुरस्कार दिया.

यह सच है कि युवक हों या युवतियां प्यार में अंधे हो जाते हैं. न तो खुद गहराई से सोचते हैं और न दूसरे को सोचने देते हैं. इसी वजह से कभीकभी ऐसा कुछ हो जाता है, जो सावधानी बरतने पर नहीं होता. उस के अंधे प्यार ने उस के दोस्त की बलि ले ली.
आईजी के शक के चलते प्रदीप हत्या का आरोपी बनने से बच गया. उस की जगह उस का दोस्त सत्येंद्र बिना वजह मारा गया.

इंतजार- भाग 1 : सोमा अपनी पहली शादी से क्यों परेशान थी?

सोमा ने, मजबूरी में ही सही, सूरज से विवाह कर लिया था लेकिन अपनी बेइज्जती उसे हरगिज बरदाश्त नहीं थी. इसलिए तो आज वह अकेली थी. क्या अकेलापन उस की नियति बन गया था?

सुबह के 6 बजे थे. रोज की तरह सोमा की आंखें खुल गई थीं.  अपनी बगल में अस्तव्यस्त हौल में लेटे महेंद्र को देख वह शरमा उठी थी. वह उठने के लिए कसमसाई, तो महेंद्र ने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया था.

‘‘उठने भी दो, काम पर जाने में देर  हो जाएगी.’’

‘‘आज काम से छुट्टी, हम लोग आज अपना हनीमून मनाएंगे.’’

‘‘वाहवाह, क्या कहने?’’

पुरानी कड़वी बातें याद कर के वह गंभीर हो उठी, बोली, ‘‘यह बहुत अच्छा हुआ कि अपुन लोगों को शहर की इस कालोनी में मकान मिल गया है. यहां किसी को किसी की जाति से मतलब नहीं है.’’

‘‘सही कह रही हो. जाने कब समाज से ऊंचनीच का भेदभाव समाप्त होगा? लोगों को क्यों नहीं सम?ा में आता कि सभी इंसान एकसमान हैं.’’ महेंद्र बोला था.

‘‘वह सब तो ठीक है, लेकिन अब उठने भी दो.’’

‘‘आज हमारे नए जीवन का पहलापहला दिन है. यह क्षण फिर से तो लौट कर नहीं आएगा. आज मैं तुम्हारी बांहों में बांहें डाल कर मस्ती करूंगा. इस पल के लिए तुम ने मु?ो बहुत लंबा इंतजार करवाया है. आज ‘जग्गा जासूस’ पिक्चर देखेंगे. बलदेव की चाट खाएंगे. राजाराम की शिकंजी पिएंगे. तुम जहां कहोगी वहां जाऊंगा, जो कहोगी वह करूंगा. आज मैं बहुतबहुत खुश हूं.’’

‘‘ओह हो, केवल बातों से पेट नहीं भरने वाला है. पहले जाओ, दूध और डबल रोटी ले कर आओ.’’

‘‘मेरी रानी, दूध के साथसाथ, आज तो जलेबी और कचौड़ी भी ले कर आऊंगा.’’ यह कह कर वह सामान लेने चला गया.

वह उठ कर रोज की तरह ?ाड़ूबुहारू और बरतन आदि काम निबटाने लगी थी. लेकिन आज उस की आंखों के सामने बीते हुए दिन नाच उठे थे. अभी वह 25 वर्ष की होगी, परंतु अपनी इन आंखों से कितना कुछ देख लिया था.

अम्मा स्कूल में आया थीं. इसलिए उसे मन ही मन टीचर बनाने का सपना देखती रहती थीं. बाबू राजगीरी का काम करते थे. उन्हें पैसा अच्छा मिलता था. लेकिन पीने के शौक के कारण सब बरबाद कर लेते थे. वे 2 दिन काम पर जाते, तीसरे दिन घर पर छुट्टी मनाते. अपनी मित्रमंडली के साथ बैठ कर हुक्का गुड़गुड़ाते और लंबीलंबी बातें करते.

अम्मा जब भी कुछ बोलती तो गालीगलौज और मारपीट की नौबत  आ जाती.पश्चिम उत्तर प्रदेश में संभलपुर से थोड़ी दूर एक बस्ती थी जिसे आज की भाषा में चाल कह सकते हैं. लगभग

10-12 घर थे. सब की आपस में रिश्तेदारी थी. बच्चे आपस में किसी के भी घर में खापी लेते और सड़क पर खेल लेते. कोई काका था, कोई दादी तो कोई दीदी. आपस में लड़ाई भी जम कर होती, लेकिन फिर दोस्ती भी हो जाती थी.

वह छुटपन से ही स्कूल जाने से कतराती थी. वह लड़कों के संग गिल्लीडंडा और क्रिकेट खेलती. कभीकभी लंगड़ीटांग भी खेला करती थी.

अम्मा स्कूल से लौट कर आती तो सड़क पर उसे देखते ही चिल्लाती, ‘काहे लली, स्कूल जाने के समय तो तुम्हें बुखार चढ़ा था, अब सब बुखार हवा हो गया. बरतन मांजने को पड़े हैं. चल मेरे लिए चाय बना.

वह जोर से बोलती, ‘आई अम्मा.’ लेकिन अपने खेल में मगन रहती जब तक अम्मा पकड़ कर उसे घर के अंदर न ले जाती. वे उस का कान खींच कर कहतीं, ‘अरी कमबख्त, कभी तो किताब खोल लिया कर.’

अम्मा की डांट का उस पर कुछ असर न होता. इसी तरह खेलतेकूदते वह बड़ी हो रही थी. लेकिन हर साल पास होती हुई वह बीए में पहुंच गई थी. कालेज घर से दूर था, इसलिए बाबू ने उसे साइकिल दिलवा दी थी.

बचपन से ही उसे सजनेसंवरने का बहुत शौक था. अब तो वह जवान हो चुकी थी, इसलिए बनसंवर कर अपनी साइकिल पर हवा से बातें करती हुई कालेज जाती.

वहां उस की मुलाकात नरेन सिंह से हुई. वह उस की सुंदरता पर मरमिटा था. कैफेटेरिया की दोस्ती जल्द ही प्यार में बदल गई. उस की बाइक पर बैठ कर वह अपने को महारानी से कम न सम?ाती. 19-20 साल की कच्ची उम्र और इश्क का भूत. पूरे कालेज में उन के इश्क के चर्चे सब की जबान पर चढ़ गए थे. वह उस के संग कभी कंपनीबाग तो कभी मौल तो कभी कालेज के कोने में बैठ कर भविष्य के सपने बुनती.

एक दिन वे दोनों एकदूसरे को गलबहियां डाले हुए पिक्चरहौल से निकल रहे थे, तभी नरेन के चाचा बलवीर सिंह ने उन दोनों को देख लिया था. फिर तो उस दिन घर पर नरेन की शामत आ गई थी.

सोमा की जातिबिरादरी पता करते ही नरेन को उस से हमेशा के लिए दूर रहने की सख्त हिदायत मिल गई थी.पश्चिम उत्तर प्रदेश जाटबहुल क्षेत्र है. वहां की खाप पंचायतें अपने फैसलों के लिए कुख्यात हैं. जाट लड़का किसी वाल्मीकि समाज की लड़की से प्यार की पेंग बढ़ाए, यह बात उन्हें कतई बरदाश्त नहीं थी.

वे लोग 15-20 गुडों को ले कर लाठीडंडे लहराते हुए आए. और शुरू कर दी गालीगलौज व तोड़फोड़.

वे लोग बाबू को मारने लगे, तो वह अंदर से दौड़ती हुई आई और चीखनेचिल्लाने लगी थी. एक गुंडा उस को देखते ही बोला, ऐसी खूबसूरत मेनका को देख नरेन का कौन कहे, किसी का भी मन मचल उठे.’

बाबू ने उसे धकेल कर अंदर जाने को कह दिया था. पासपड़ोस के लोगों ने किसी तरह उन लोगों को शांत करवाया, नहीं तो निश्चित ही उस दिन खूनखराबा होता.

पंचायत बैठी और फैसला दिया कि महीनेभर के अंदर सोमा की शादी कर दी जाए और 10 हजार रुपए जुर्माना.

उस का कालेज जाना बंद हो गया और आननफानन उस की शादी फजलपुर गांव के सूरज के साथ, जो कि स्कूल में मास्टर था, तय कर दी गई.

उस के पास अपना पक्का मकान था. थोड़ी सी जमीन थी, जिस में सब्जी पैदा होती थी. अम्माबाबू ने खुशीखुशी यहांवहां से कर्ज ले कर उस की शादी कर दी.

बाइक, फ्रिज, टीवी, कपड़ेलत्ते, बरतनभांडे, दहेज में जाने क्याक्या दिया. आंखों में आंसू ले कर वह सूरज के साथ शादी के बंधन में बंध गई थी.

ससुराल का कच्चा खपरैल वाला घर देख उस के सपनों पर पानी फिर गया था. 10-15 दिन तक सूरज उस के इर्दगिर्द घूमता रहा था. वह दिनभर मोबाइल में वीडियो देखता रहता था. आसपास की औरतों से भौजीभौजी कह कर हंसीठिठोली करता या फिर आलसियों की तरह पड़ा सोता रहता.

रोज रात में दारू चढ़ा कर उस के पास आता. नशा करते देख उसे अपने बाबू याद आते. एक दिन उस ने उस से काम पर जाने को कहा. तो, नशे में उस के मुंह से सच फूट पड़ा. न तो वह बीए पास है और न ही सरकारी स्कूल में मास्टर है. यह सब तो शादी के लिए ?ाठ बोला गया था. वह रो पड़ी थी. फिर उस ने सूरज को सुधारने का प्रयास किया था. वह उसे सम?ाती, तो वह एक कान से सुनता, दूसरे से निकाल देता.

 

बर्थ डे पर आयुष्मान खुराना को पत्नी से मिला ये सरप्राइज

आयुष्मान खुराना आज के जमाने के सबसे वर्सेटाइल एक्टर हैं. आयुष्मान आज अपना बर्थडे सेलिब्रेट कर रहे हैं. इस खास मौके पर उनकी पत्नी ने आयुष्मान को खास अंदाज में विश किया है. बता दें आयुष्मान खुराना के जन्मदिन पर उनकी पत्नी ने केक लगाते हुए फोटो शेयर किया है जिसमें उन्होंने लिखा है ‘मेरे पास केक है जिसे मैं खा रही हूं जन्मदिन मुबारक हो हमसफर,

आयुष्मान खुराना ने अपने जिंदगी में अलग-अलग तरह के किरदार निभाएं हैं और उन किरदारों से अपनी एक अलग पहचान बनाएं हैं. आयुष्मान के जीवन में इतनी सारी कामयाबी उनके काम की वजह से ही मिली है. आयुष्मान खुराना फिल्म विक्की डोनर से लेकर गुलाबो सिताबो तक का कैरियर बहुत ही शानदार रहा है.

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आयुष्मान खुरानी की पत्नी उन्हें हमेशा से सपोर्ट करती नजर आई हैं. वह दोनों पति –पत्नी से ज्यादा अच्छे दोस्त हैं. आयुष्मान रियलिटी शो रोडिज का हिस्सा रह चुके हैं उसके बाद उन्होंने अपने बॉलीवुड कैरियर का सफर तय किया था. आज आयुषेमान को देश ही नहीं विदेशों में भी लोग पहचानते हैं.

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इस समय आयुष्मान खुराना अपने दोनों बच्चों और पत्नी के साथ चंडीगढ़ में टाइम स्पेंड कर रहे हैं.

हाल ही आयुष्मान की फिल्म गुलाबो सिताबो रिलीज हुई थी जिसमें लोगों ने उन्हें खूब पसंद किया है. आयुष्मान के किरदार को लोगों ने खूब सराहा भी है. आयुष्मान अब किसा परिचय के मोहताज नहीं हैं. आयुश्मान का काम भी बाकी सभी किरदारों से अलग होता है.

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आयुष्मान जितना अपने काम से प्यार करते हैं उतना ही अपने फैमली से भी प्यार करते हैं . उन्हें जब भी टाइम मिलता है वह अपनी फैमली के साथ समय बीताने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं.

रिया को सपोर्ट कर बुरी फंसी शिबानी दांडेकर, ट्रोल होने के बाद किया ये काम

बॉलीवुड स्टार सुशांत सिंह राजपूत के मौत के बाद से फिल्म इंडस्ट्री दो गुटों में बट गई है. कुछ लोग रिया चक्रवर्ती को बचाने की मांग कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग सुशांत सिंह राजपूत को इंसाफ दिलाने की मांग कर रहे हैं. लेकिन बात करें रिया चक्रवर्ती के खास लोग बहुत नाराज हैं. बीते दिनों अंकिता लोखंडें और रिया चक्रवर्ती की खास दोस्त शिबानी दांडेकर में जमकर तू तू मैं मैं हुई है.

शिबानी दांडेकर ने कहा था कि अंकिता लोखंडें की वजह से ही उनकी दोस्त रिया चक्रवर्ती को इतना सबकुछ झेलना पड़ा था. वरना आज रिया को कुछ नहीं हुआ होता. रिया हमारे बीच खुश रहती. यहीं नहीं उन्होंने अंकिता लोखंडें पर ये भी आरोप लगाएं थे कि वह थोड़ी सी फेम पाने के लिए यह कदम उठाई हैं.

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Nothing but love for ya baby girl #TY ?

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इस बात पर अंकिता ने जमकर शिबानी दांडेकर को खरी खोटी सुनाई थी. इसके बाद से लगातार कई सितारे अंकिता के सपोर्ट में आ गए हैं. जिसके बाद से लगातार शिबानी दांडेकर सोशल मीडिया पर ट्रोल हो रही हैं. लोग जमकर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं.

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अब इससे बचने के लिए शिबानी दांडेकर ने बड़ा कदम उठाया है उन्होंने अपने इंस्टाग्राम कमेंट को लीमिट कर रखा है. जिससे उन्हें लोग ज्यादा कमेंट नहीं कर पाएंगे.

वहीं अंकिता लोखंडें ने भी शिबानी दांडेकर की तरफ से फेंकी हुई हर ईट का जवाब करारा दिया है. अंकिता ने शिबानी को जवाब देते हुए कहा था कि 7 साल तक पवित्र रिश्ता में काम किया है जिससे आज भी लोग मुझे अर्चना के नाम से जानते हैं. यह मेरे लिए सबसे बड़ी लोकप्रियता है. मुझे अपने दोस्त के लिए न्याय चाहिए था इसलिए मैंने उससे न्याय मांगने के लिए यह सब काम किया है.

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When this is over i’ll be ordering 2 drinks at a time thanks! ? ? #toronto #thatbrowngirl

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इसके बाद अंकिता के बॉयफ्रैंड विक्की जैन ने भी शिबानी दांडेकर की जमकर क्लास लगाई है. दोनों ने खूब एक –दूसरे के साथ सोशल मीडिया पर बहस किया है.

Crime Story: जीजा की हसीन साली

सही मायनों में साली का दरजा सगी छोटी बहन जैसा होता है, इस के बावजूद कई लोग साली को आधी घर वाली कहते हैं, कहते ही नहीं समझने भी लगते हैं. कई सालियां भी पीछे नहीं रहतीं. अनिल और पूजा के साथ भी ऐसा ही कुछ था. तभी तो

अनिल ने पूजा…अनिल के घर से आती रोनेचीखने की आवाजें सुन कर पड़ोसियों को हैरानी हुई कि ऐसी क्या बात हो गई, जो

अनिल इतनी जोर से रो रहा है. वह रोते हुए चीख रहा था, ‘‘अनिता तुम्हें क्या हो गया, तुम उठ क्यों नहीं रही हो?’’  अनिल सुबकते हुए कह रहा था, ‘‘देखो, हमारा बेटा मयंक भी नहीं उठ रहा है?’’

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चीखपुकार और रोने की आवाजें सुन कर आसपड़ोस के कुछ लोग अनिल के घर पहुंच गए. लोगों ने देखा, एक कमरे में अनिता और उन का बेटा मयंक पड़े थे. दोनों ना तो होश में थे और ना ही हिलडुल रहे थे. अनिल ने पड़ोसियों को आया देख कर कहा, ‘‘पता नहीं मेरी बीवी और बेटे को क्या हो गया है? कुछ बोल ही नहीं रहे हैं. लगता है, इन्होंने कुछ खा लिया है. उल्टियां भी हुई थीं.’’

पड़ोसियों ने भी अनिता और मयंक के हाथपैर हिला कर उन की स्थिति जानने की कोशिश की, लेकिन दोनों में जीवन के कोई लक्षण नजर नहीं आए. पड़ोस की भाभीजी बोली, ‘‘कल रात तक तो अनिता मुझ से खूब हंसहंस कर बात कर रही थी. रात ही रात में ऐसा क्या हो गया, जो मरणासन्न सी पड़ी है.’’

अनिता और मयंक के कुछ खाने की बात सुन कर पड़ोसियों की सुगबुगाहट शुरू हो गई. तभी अनिल रोतेरोते बोला, ‘‘भाई साहब, आजकल कोरोना की महामारी चल रही है, कहीं मेरी बीवी और बेटा कोरोना के शिकार तो नहीं हो गए.’’

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कोरोना की बात सुन कर पड़ोसियों ने कहा, ‘‘अनिल, इन दोनों को अस्पताल ले जाओ. एक बार डाक्टर को दिखाओ. क्या पता किसी और वजह से बेहोशी आ गई हो?’’

अनिल ने रोतेबिलखते हुए अपने साले और एकदो दूसरे रिश्तेदारों को फोन किया. फिर पत्नी अनिता और बेटे मयंक को कांवटिया अस्पताल ले गया. अस्पताल की इमरजेंसी में डाक्टरों ने जांचपड़ताल के बाद मांबेटे को मृत घोषित कर दिया. डाक्टरों ने अनिल की बताई बातों और दोनों शवों के लक्षण देख कर यह अंदाजा लगा लिया कि दोनों की मौत जहरीला पदार्थ खाने से हुई है. मांबेटे की संदिग्ध मौत के कारण अस्पताल प्रशासन की ओर से इस संबंध में पुलिस को सूचना दे दी गई.

यह बात इसी साल 25 जून की है. अनिल शर्मा जयपुर में सूर्यनगर, नाड़ी का फाटक, लाइफलाइन डेंटल अस्पताल के पास स्थित मकान नंबर 12 में पत्नी अनिता और बेटे मयंक के साथ रहता था. अनिल जयपुर कलेक्ट्रेट में क्लर्क है.

अस्पताल की सूचना पर करधनी थाना पुलिस कांवटिया अस्पताल पहुंची और अनिता व मयंक के शव को कब्जे में ले कर पंचनामे की कार्यवाही की. इस के बाद दोनों शवों का पोस्टमार्टम कराया गया. करधनी थाना पुलिस ने मामला धारा 174 सीआरपीसी में दर्ज कर इस की जांच एएसआई प्रमोद कुमार को सौंप दी.

पुलिस ने मौकामुआयना किया. अनिता के पति अनिल और पड़ोसियों से पूछताछ की. पूछताछ में सामने आया कि पड़ोसियों ने अनिता के देवर सुनील को घटना से एक दिन पहले शाम को अनिल के घर पर आतेजाते देखा था. यह भी पता चला कि अनिल की साली पूजा भी वहां आतीजाती रहती थी.

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संदेह हुआ तो जांच हुई शुरू

शुरुआती जांच में पुलिस अधिकारियों को मांबेटे की मौत का यह मामला संदिग्ध नजर आया. इस पर डीसीपी (जयपुर पश्चिम) प्रदीप मोहन शर्मा ने जांच के लिए अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त बजरंग सिंह के निर्देशन में एक टीम बनाई. इस टीम को झोटवाड़ा के एसीपी हरिशंकर शर्मा के सुपरविजन और करधनी थानाप्रभारी रामकिशन बिश्नोई के नेतृत्व में काम करना था.  इस टीम में एएसआई प्रमोद कुमार, हैडकांस्टेबल मनोज कुमार, कांस्टेबल नरेंद्र सिंह, अजेंद्र सिंह, बाबूलाल, रामसिंह, अमन, रविंद्र और महिला कांस्टेबल निशा को शामिल किया गया.

पुलिस ने जांच में तेजी लाते हुए अनिल, उस के छोटे भाई सुनील और साली पूजा के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. इस के अलावा अनिल की गतिविधियों का भी पता लगाया. अनिल की ससुराल वालों की जानकारी भी हासिल की गई. अनिल की साली पूजा के बारे में भी जरूरी सूचनाएं जुटाई गईं.

पुलिस ने एकदो बार अनिल और पूजा से पूछताछ भी की. पुलिस की जांचपड़ताल तेज होती देख अनिल को लगा कि पुलिस गहराई में जा रही है. वह राजस्थान की राजधानी जयपुर की कलेक्ट्रेट में बाबू था. इसलिए उस का वास्ता सभी तरह के लोगों से पड़ता था. वैसे भी वह सरकारी कामकाज की सारी प्रक्रिया जानता था.

अनिल ने घटना के करीब एक हफ्ते बाद राजस्थान के पुलिस महानिदेशक कार्यालय में इस मामले की जांच के लिए एक परिवाद लगा दिया. दूसरी तरफ, कलेक्ट्रेट के अधिकारियों से पुलिस के एक उच्चाधिकारी को जांच के नाम पर अनिल को परेशान नहीं करने की सिफारिश कराई.

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इन दोनों बातों से उस पर पुलिस का शक गहरा गया. कारण यह कि पुलिस ने अभी तक उस से कोई खास पूछताछ नहीं की थी, फिर भी उस ने कलेक्ट्रेट के अधिकारियों से सिफारिश लगवाई थी.

पुलिस को अनिल, सुनील और पूजा के मोबाइल की काल डिटेल्स मिली, तो उन में कई चौंकाने वाले पहलू सामने आए. तीनों के बयानों में काफी विरोधाभास था. पुलिस ने व्यापक जांचपड़ताल के बाद अनिल से सख्ती से पूछताछ की, तो उस की 38 साल की पत्नी अनिता और 14 साल के बेटे मयंक की मौत का राज खुल गया.

अनिल ने रचा बड़ा षडयंत्र अनिल से पूछताछ के आधार पर उस के छोटे भाई सुनील और साली पूजा से भी पूछताछ की गई. इस पूछताछ के बाद पुलिस ने 30 जुलाई को अनिता और मयंक की हत्याओं के आरोप में अनिल, सुनील और पूजा को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में मांबेटे की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह अनिल का अपनी साली पूजा से प्रेम प्रसंग का परिणाम थी. जीजा अनिल के इश्क में पूजा इतनी निष्ठुर हो गई थी कि उस ने अपना घर बसाने के लिए बहन का घर उजाड़ने के साथ बहन और भांजे को भी मरवा दिया.

अनिल अपनी शादीशुदा साली के हुस्न का इतना दीवाना हो गया था कि उस ने पूजा से अवैध संबंधों का विरोध करने वाली पत्नी और बेटे को ही मौत की नींद सुला दिया. उस ने अपने भाई सुनील और साली पूजा के साथ मिल कर बीवीबच्चे की जान ले ली.

करीब 15 साल पहले अनिल शर्मा की शादी राजस्थान के सीकर जिले के लोसल कस्बे में रहने वाले अंजनी कुमार की बेटी अनिता से हुई थी. बड़ी बेटी अनिता की शादी के बाद अंजनी कुमार के परिवार में पत्नी मंजू, छोटी बेटी पूजा और बेटा अनुराग रह गए थे.

शादी के बाद अनिता खुश थी. पति अनिल सरकारी नौकरी में था. घर का खर्च आराम से चल जाता था. परिवार में ज्यादा जिम्मेदारियां भी नहीं थी. घर में केवल अनिल का छोटा भाई सुनील था. हंसीखुशी से दिन गुजर रहे थे. शादी के कुछ समय बाद ही अनिता ने एक दिन अनिल को खुशखबरी दी. अनिता के मुंह से जल्दी ही पिता बनने की बात सुन कर अनिल के जीवन में खुशियों के रंग भर गए.

आखिर वह दिन भी आ गया, अनिता ने बेटे को जन्म दिया. बेटा पा कर अनिल भी खुश था और अनिता भी. इन दोनों से ज्यादा खुश मंजू और अंजनी कुमार थे. वे दोनों नानानानी बन गए थे. नवासे ने उन के बुढ़ापे में भी खुशियों का चमन खिला दिया था. अनिल और अनिता ने बेटे का नाम मयंक रखा. मयंक समय के साथ बड़ा हो कर स्कूल जाने लगा.

पहले अनिल की पोस्टिंग सीकर में थी. इसी दौरान 14 जुलाई, 2014 को अनिल के ससुर अंजनी कुमार की संदिग्ध अवस्था में मौत हो गई. सीकर जिले की लोसल थाना पुलिस ने जांचपड़ताल के बाद आत्महत्या का मामला मानते हुए अंजनी कुमार की मौत की फाइल बंद कर दी.

पत्नी और बेटे की हत्या में अनिल की जयपुर में हुई गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में यह रहस्य भी उजागर हुआ है कि अंजनी कुमार की हत्या की गई थी. अंजनी कुमार की हत्या के बारे में बाद में बात करेंगे. पहले अंजनी कुमार की मौत के बाद की कहानी जान लें.

अनिल की ससुराल में ससुर अंजनी कुमार ही परिवार के मुखिया थे. उन की मौत से परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. परिवार में दिवंगत अंजनी कुमार की पत्नी, एक जवान बेटी पूजा और छोटा बेटा अनुराग रह गए थे. घर में जवान बेटी हो और कोई बड़ा पुरुष ना हो, तो लोगों की गंदी नजरें पीछा करती ही हैं.

ऐसे समय में अनिल ने आगे बढ़ कर सहारा देने के लिए अपनी सास, साली और साले को सीकर में अपने साथ ही रख लिया. दोनों परिवार एकसाथ रहने लगे. इस दौरान अनिल और पूजा के बीच प्यार के बीज अंकुरित हो गए. घर में उन्हें ज्यादा मौका नहीं मिल पाता था, इसलिए मौका मिलने पर अनिल और पूजा घर से बाहर एकदूसरे की बांहों में समाने लगे.

इस बीच, अनिल ने अपने ससुर का प्लौट 30 लाख रुपए में बेच दिया और ससुराल वालों को बता दिया कि इस रकम से आप के लिए जयपुर में प्लौट ले लिया है. सास और सालासाली ने अनिल की बात पर भरोसा कर लिया. जबकि हकीकत यह थी कि अनिल ने ससुराल वालों के नाम से जयपुर में कोई प्लौट नहीं लिया था.

साल 2016 में अनिल का तबादला सीकर से जयपुर कलेक्ट्रेट में हो गया. तबादला होने पर अनिल को गुलछर्रे उड़ाने का बड़ा मौका हाथ लग गया. इस के लिए उस ने एक चाल चली. वह अपनी सास को विश्वास में ले कर साली पूजा तथा साले अनुराग को पढ़ाने के बहाने जयपुर ले आया, जबकि पत्नी अनिता व बेटे मयंक को सास की देखभाल के लिए सीकर में ही छोड़ दिया.

बीवी की जगह साली को लाया साथ

जयपुर आने के बाद अनिल को आजादी मिल गई. मन की मुराद पूरी करने के लिए वह साली पूजा को भी साथ ले आया था. जयपुर में उन्हें देखनेपूछने या टोकने वाला कोई नहीं था. इसलिए अनिल और पूजा को प्रेमबेल ज्यादा मजबूत होती गई.

जीजा के प्यार में डूबी पूजा अपनी बहन की ही सौतन बन कर अनिल से शादी करने के ख्वाब देखने लगी. अनिल को भी पता नहीं पूजा में ऐसा क्या दिखा कि वह भी उस से शादी रचाने को बेताब था. बस समस्या यह थी कि दोनों के बीच समाज और परिवार आड़े आ रहे थे.

इस बीच, अनिल ने जयपुर में मकान खरीद लिया और परिवार को जल्दी ही जयपुर ले आया. जयपुर आने पर अनिता को अनिल और पूजा की करतूतों का पता चल गया. अनिता ने इस का विरोध किया. फलस्वरूप घर में कलह होने लगी.

अनिल ने परिस्थितियां भांप कर सास, साली और साले को अपने मकान के पास ही दूसरा मकान दिलवा दिया. अनिता ने अपनी मां से पूजा की शादी जल्द से जल्द करने पर जोर दिया. अनिल ने साल 2018 में पूजा की शादी करवा दी.

भले ही पूजा की शादी हो गई थी, लेकिन वह तो जीजा अनिल को ही सपनों का राजकुमार मानती थी. यही कारण रहा कि पूजा शादी के बाद ससुराल बहुत कम जाती थी. जब भी वह ससुराल जाती, पति को नौकरी नहीं लगने का ताना मार कर उस से दूर ही रहती.

शादी के बाद भी पूजा और अनिल के बीच दूरियां कम नहीं हुई थी, बल्कि प्रेम की यह बेल एकदूसरे से गुंथ कर बढ़ती ही जा रही थी. इस बात पर अनिता और अनिल के बीच आए दिन झगड़ा होता था. इसी बीच, पूजा जयपुर में एक प्राइवेट नौकरी करने लगी.

अनिल और पूजा की राह में सब से बड़ा रोड़ा अनिता और मयंक थे. रोजाना के झगड़े से परेशान हो कर अनिल ने ऐसा षडयंत्र रचा कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे. अनिल ने इस षडयंत्र का मोहरा बनाया अपने छोटे सगे भाई सुनील को. उस ने सुनील शर्मा की शादी कराने और जयपुर में मकान दिलाने का लालच दिया.

सुनील की उम्र 30 साल से ज्यादा हो गई थी, लेकिन अभी तक उस की शादी नहीं हुई थी. वह बेरोजगार था. अनिल ने अपने भाई सुनील से कहा कि वह उस की शादी अपनी साली पूजा से करा देगा. पूजा भी तैयार है. लेकिन उस की भाभी अनिता और मयंक रोड़ा बने हुए हैं. अगर उन दोनों को ठिकाने लगा दिया जाए तो कोई परेशानी नहीं होगी.

पूजा तो अनिल की ग्रिप में पहले से ही थी, भाई भी मिल गया तो अनिल ने दोनों के साथ मिल कर अनिता और मयंक को रास्ते से हटाने की योजना बनाई.

इस के तहत अनिल ने मई के पहले सप्ताह में नींद की हाईडोज वाली गोलियां खरीदीं और अपने गांव धानोता जा कर सुनील को दे आया. साथ ही उसे पूरी योजना भी समझा दी.

कोरोना संक्रमण काल में लौकडाउन लगने के कारण मौका नहीं मिलने की वजह से सुनील जयपुर नहीं आ सका. अनिल ने 24 जून को अपने भाई सुनील को गांव से जयपुर अपने घर बुलाया. अनिल अपनी ड्यूटी पर चला गया. शाम को ड्यूटी पूरी कर के अनिल ने अपनी मोटरसाइकिल पर पूजा को साथ लिया. दोनों जयपुर स्थित अजमेर रोड पर एक होटल में पहुंचे और किराए पर एक कमरा ले लिया.

कुछ देर रुकने के बाद योजना के तहत दोनों ने कमरे में अपनेअपने बैग और मोबाइल छोड़ दिए. वे होटल से यह कह कर निकल गए कि कुछ देर में आएंगे. सुनील उसी दिन शाम को जयपुर स्थित अपने भाई के घर पहुंच गया.

होटल से निकल कर अनिल पूजा के साथ अपनी सास मंजू के घर जयपुर के चरणनदी मुरलीपुरा गया. वहां दोनों ने खाना खाया. कुछ देर बाद सास के घर से पूजा को मोटरसाइकिल पर बैठा कर अनिल अपने घर सूर्य नगर के लिए चल दिया. घर से कुछ पहले ही अनिल ने अपनी बाइक एक खाली प्लाट में खड़ी कर दी.

उस समय रात के करीब 11 बज रहे थे. अनिल व पूजा पैदल ही घर की ओर चल दिए. रास्ते में उन्हें सुनील मिला. सुनील ने बताया कि उस ने 13 गोलियां दूध में मिला कर भाभी अनिता और भतीजे मयंक को पिला दी हैं.

अंतिम घटनाक्रम

पूजा के साथ अनिल अपने घर में गया. सुनील बाहर खड़ा रहा. अनिल व पूजा ने देखा तो अनिता और मयंक बेहोश थे लेकिन उन की सांसें चल रही थीं. खेल बिगड़ता देख कर अनिल ने पहले से खरीदी हुई सल्फास की गोलियां नींबू की शिकंजी में मिला कर बेहोशी की हालत में ही अनिता और मयंक को मुंह खोल कर पिला दीं. एकदो गोलियां उन के मुंह में भी डालीं.

इस के बाद अनिल और पूजा मकान का गेट बंद कर वापस अजमेर रोड वाले होटल में चले गए. सुनील अपने गांव धानोता चला गया.  अगले दिन 25 जून को अनिल सुबह अकेला अपने घर पहुंचा और अनिता व मयंक की उल्टियों के बर्तन धो कर रोनाचीखना शुरू कर दिया. उस की चीखपुकार सुन कर पड़ोसी एकत्र हो गए. बाद की कहानी आप पढ़ चुके हैं. अनिता और मयंक की हत्या का राज खुलने पर करधनी थाना पुलिस ने भादंसं की धारा 302, 201 व 120बी के तहत नामजद केस दर्ज कर लिया.

अब अनिल के ससुर अंजनी कुमार की मौत का मामला भी समझ लीजिए. सीकर के लोसल निवासी अंजनी कुमार की संदिग्ध मौत जुलाई 2014 में घर में बने पानी की हौदी में डूबने से हुई थी. उस समय लोसल थाना पुलिस ने इसे आत्महत्या का मामला मानते हुए फाइल बंद कर दी थी.

अब पत्नी और बेटे की हत्या में गिरफ्तार अनिल ने करधनी थाना पुलिस को पूछताछ में बताया कि अंजनी कुमार की हत्या की गई थी. उन की हत्या में रिश्तेदार और अन्य लोग शामिल थे.

अंजनी कुमार की हत्या किस मकसद से किनकिन लोगों ने की थी, इस का खुलासा अनिल ने किया है.

करधनी थाना पुलिस ने इस मामले में लोसल थाना पुलिस को सूचना भेज दी है. लोसल पुलिस इस मामले की जांच कर रही है. हो सकता है अंजनी कुमार की हत्या का कोई नया राज खुले.

बहरहाल, जीजासाली के अंधे प्रेम ने 3 परिवारों को बरबाद कर दिया. अनिल के साथ उस का भाई भी जेल की सलाखों के पीछे चला गया. पूजा ना तो अपने पति की हुई और ना ही जीजा की हो सकी.

अपने भटके बेटे को कैसे राह दिखाएगी ‘इंडिया वाली मां’?

एक मां अपने बच्चों की छोटी से छोटी बात को लेकर चिंता करती हैं. लेकिन वो दिल से हमेशा अपने बच्चों का भला चाहती हैं. एक मां अपने बच्चे की मजबूत नींव रखती हैं और उनके परवरिश के दिनों में उनका मजबूत सहारा बनती हैं, लेकिन बच्चे बड़े होकर आखिर ये क्यों भूल जाते हैं कि वे किसी भी स्थिति में, किसी भी तरह की मदद के लिए हमेशा  अपने मां-बाप की ओर रुख कर सकते हैं? आखिर हर मुश्किल घड़ी में उनके दिमाग में  यह सवाल क्यों आता है कि ‘मां तुम नहीं समझोगी’? एक मां के लिए वो कितनी चुनौतीपूर्ण स्थिति रहती होगी, जब वो उस वक्त अपने बच्चों के साथ खड़ी रहती है जब उसके बच्चे के लिए सारे रास्ते बंद हो गए हो. एक मां की ऐसी ही कहानी दिखा रहा है सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन का नया शो इंडिया वाली मां, जो अपने बेटे का साथ नहीं छोड़ती भले ही बेटा यह दावा करे कि उसे उनकी जरूरत नहीं है.

काकू भुज की रहने वाली एक सीधी सादी, आजाद ख्यालों वाली अधेड़ उम्र की महिला हैं, जो बड़े मजे से हमेशा उनका साथ देने वाले पति हंसमुख के साथ जिंदगी गुजार रही हैं. इन दोनों पति और पत्नी के बीच एक ही मुश्किल है और वह है उनका बेटा रोहन. जहां काकू अमेरिका में बसे अपने बेटे का ध्यान पाने के लिए तरसती हैं, वहीं हंसमुख एक प्रैक्टिकल इंसान हैं और इस बात को समझते हैं कि रोहन अब उनसे दूर जा चुका है. हालांकि काकू एक आदर्श मां की तरह अपने बेटे की अनदेखी को नजरअंदाज करती हैं और ये मानती हैं कि उन्हें हमेशा की तरह अपने बेटे के साथ खड़े रहना चाहिए.

किस्मत के एक मोड़ पर रोहन अनजाने में काकू के एक वीडियो कॉल का जवाब देता है, जो लंबे समय बाद अपने बेटे को देखने के लिए उत्साहित रहती हैं, लेकिन उल्टा उसे कुछ  चौंकाने वाली बातें पता चलती हैं! रोहन बड़े आराम से यह कह देता है कि वो पहले से शादीशुदा है और वो स्थाई रूप तौर से भारत आकर बेंगलुरु में बसने की योजना बना रहा  है. अपने बेटे की जिंदगी का हिस्सा न बन पाने के कारण काकू और हंसमुख निराशा  महसूस करते हैं, लेकिन काकू के शब्दों में कहा जाए तो ‘एक मां माफ पहले करती है और नाराज़ बाद में होती है’. अपनी निराशा को किनारे रखकर काकू, रोहन और उसकी पत्नी से मिलने और उनके साथ वक्त बिताने के लिए बेंगलुरु जाने का फैसला करती है. हालांकि हंसमुख भुज में ही रहने का फैसला करते हैं.

काकू अकेले ही भुज से बेंगलुरु तक का सफर तय करती हैं, लेकिन वो इस उम्मीद में इस सफर को पूरा करती है कि वो अपने बेटे से 6 साल के लंबे समय के बाद मिल रही है! हालांकि बेंगलुरु जैसे अनजाने शहर में काकू के लिए अपनी  चुनौतियां हैं. जब काकू रोहन की जिंदगी में आती हैं तो वह उसका हिस्सा बनने की कोशिश करती हैं. लेकिन रोहन की पत्नी चिन्नम्मा एक सीधी-सादी सास को गलती से घर की नौकरानी समझ बैठती है. हालांकि जब काकू उसे बताती है तब चिन्नम्मा को अपनी गलती का एहसास होता है. काकू अपनी नई जीवनशैली में ढलने की कोशिश करती हैं और अपने बेटे की उपलब्धियों पर गर्व महसूस करते हुए उसकी व्यस्तता के बीच उसके साथ कुछ पल बिताने की कोशिश करती हैं. उसी दौरान रोहन अपने बिजनेस एसोसिएट्स के लिए घर पर एक पार्टी रखता है. काकू इसे अपने बेटे को खुश करने के एक अवसर के रूप में देखती हैं और मेहमानों के लिए स्वादिष्ट खाना बनाती हैं. लेकिन रोहन उनकी कोशिशों को नजरअंदाज करता  है. यहां तक कि वह काकू से कहता है कि इस पार्टी में न आए ताकि वह अपने सहयोगियो के सामने शर्मिंदगी से बच सकें.

इससे काकू का दिल टूट जात है लेकिन वह खुद को समझा लेती हैं और फिर भी अपने बेटे से संबंध सुधारने में जुटी रहती हैं. इसी दौरान उन्हें रोहन के बारे में एक सच का पता चलता  है. दरअसल, रोहन की शादी नहीं हुई है बल्कि वो चिन्नम्मा के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा है. इस रिश्ते में उनका एक बच्चा भी है. इतना ही नहीं, रोहन पर बड़ा कर्ज भी है. वह फिर भी रोहन की मदद के लिए आगे बढ़ती हैं लेकिन रोहन उनकी मदद लेने से इंकार कर देता है और उसे घर छोड़ने के लिए कह देता है. लेकिन क्या मां ऐसे मुश्किल वक्त में अपने बच्चे को छोड़ देगी? एक इंडिया वाली मां तो बिल्कुल ऐसा नहीं करेगी और काकू भी निश्चित तौर पर ऐसा नहीं करेगी!

काकू रोहन की समस्याएं हल करने की बहुत कोशिश करती हैं. लेकिन रोहन को लगता है कि उसकी मां उसकी जिदंगी में दखल दे रही हैं. एक मां सिर्फ अपने बच्चे का सहारा बनना    चाहती है और उसे उड़ने के लिए पंख देना चाहती है, लेकिन वह हमेशा अपने बच्चे के आसपास भी रहती है, ताकि जब वो ऊंचाई से गिरे तो वह उसे संभाल ले. बच्चे भले ही हाथ छोड़ दें, मां साथ नहीं छोड़ती, भले ही कितनी भी उम्र हो जाए.

अपने बेटे को आर्थिक संकट से निकालने के लिए काकू के मन में नौकरी करने का ख्याल भी आता है. लेकिन रोहन फिर भी उनके प्रयासों को कमतर आंकता है और चाहता है कि वो उसे छोड़कर भुज वापस चली जाएं. लेकिन ये मां तो अपने बेटे को वापस पटरी पर लाने के इरादे कर चुकी हैं. पहले चलना सिखाया था, अब रास्ता दिखाएगी यह इंडिया वाली मां.

अपने बेटे की जिंदगी संवारने के लिए किस हद तक जाएगी काकू? जानने के लिए देखिए इंडिया वाली मां, हर सोमवार से शुक्रवार रात 8:30 बजे, सिर्फ सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन पर.

कद्दू का रायता

रायता का नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है से में आज आपको बताने जा रहे हैं कद्दू के रायता कि विधि. इस आसान तरीके से कम समय में रायता बना सकते हैं.

सामग्री

– लाल कद्दू (२ कप बारीक कटा हुआ)

– घी (१ टी-स्पून)

– जीरा (१ टी-स्पून)

– बारीक कटी हुई हरी मिर्च (२ टी-स्पून)

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– शक्कर (१ टी-स्पून)

–  फेंटा हुआ दही ( १/२ कप)

– दूध (२ टेबल-स्पून)

– नमक  (स्वादानुसार)

सजावट के लिए

– १ टेबल-स्पून भूनी और क्रश की हुई मूंगफली

– २ टी-स्पून बारीक कटा हुआ धनिया

बनाने की विधि

– एक गहेरे पैन में घी गरम कर लें और उसमें जीरा डाल दें.

– जब जीरा चटखने लगे, तब कद्दू, नमक और शक्कर डालकर, अच्छे से मिलाकर, ढ़क      कर बीच-बीच में हिलाते हुए, मध्यम आंच पर ६ मिनट के लिए पका लें.

– हरी मिर्च डालकर कुछ सेकंड के लिए भून लें.

– पैन को ताप पर से निकाल लें और २ मिनट ठंडा होने के लिए एक तरफ रख दें.

– जब मिश्रण ठंडा हो जाए, तब कद्दू के टुकडों को मैशर की मदद से अच्छे से मसल लें.

– अब उसमें दही मिला लें और अच्छे से मिक्स कर लें.

फ्रिज में १ घंटे के लिए ठंडा करने के लिए रख दें और मूंगफली और धनिए से सजाकर ठंडा परोसें.

मैं ने नई कौपर टी लगवाई है, पिछले कुछ दिनों से मुझे योनीमुख पर जलन होती है, क्या इस जलन का संबंध नई कौपर टी लगवाने से है?

सवाल
मैं 25 साल की विवाहिता हूं. मेरे 2 बच्चे हैं. 5 साल पहले मैं ने गर्भनिरोध के लिए कौपर टी लगवा ली थी. उस का समय पूरा होने पर मैं ने उस के स्थान पर नई कौपर टी लगवा ली. लेकिन पिछले कुछ दिनों से जब मैं मूत्रत्याग के लिए जाती हूं, तो मुझे हर बार योनीमुख पर जलन होती है. क्या इस जलन का संबंध नई कौपर टी लगवाने से है? मुझे क्या करना चाहिए?

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जवाब
आप के लक्षणों से यह बात साफ है कि आप यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन से परेशान हैं. इस समय यह जरूरी है कि आप के यूरिन कल्चर की जांच की जाए और जितना जल्दी हो सके, ऐंटिबायोटिक दवा शुरू की जाए. दवा के प्रभावी होने के लिए यह जरूरी है कि उसे नियम से कम से कम 10 से 14 दिन तक नियमित रूप से लिया जाए. दवा शुरू करने के 2-3 दिन बाद ही आराम महसूस होने लगेगा.

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इस दौरान पानी और दूसरे तरल पदार्थ जितना पी सकें, पिएं. इस से मूत्र बनने की दर बढ़ जाती है. अधिक मूत्र बनने से मूत्रीय प्रणाली की जल्दीजल्दी सफाई होती रहती है और इन्फैक्शन उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया मूत्र के साथ शरीर से बाहर जाते रहते हैं.

दवा का कोर्स पूरा होने पर फिर से यूरिन कल्चर जांच करवाएं ताकि यह साफ हो सके कि यूरिनरी ट्रैक्ट में कहीं कोई रोगकारक बैक्टीरिया तो नहीं रह गए. कुछ मामलों में ऐंटिबायोटिक दवा लंबे समय तक लेने की जरूरत भी पड़ सकती है. दवा लेने में लापरवाही बरतना ठीक नहीं रहता. उस से गुरदों पर बुरा असर पड़ सकता है.

रही बात कौपर टी लगवाने की तो यह मात्र संयोग ही है कि जिन दिनों आप ने नई कौपर टी लगवाई उसी समय से आप यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन से जूझ रही हैं, लेकिन यह भी मुमकिन है कि जिस समय कौपर टी लगाई गई उस समय ठीक से ऐंटिसैप्टिक सावधानियों को न बरतने के कारण इन्फैक्शन हो गया हो.

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