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बिग बॉस 14: हिना खान और सिद्धार्थ शुक्ला की नजदीकियों से परेशान हुए फैंस, जमकर किया ट्रोल

बिग बॉस के घर में आए दिन कुछ न कुछ नया ड्रामा होते रहता है. ऐसे में इन दिनों बिग बॉस में कुछ नया देखने को मिल रहा है जिससे फैंस परेशान हो गए हैं. वहीं दर्शकों का ध्यान इन दिनों तूफानी सीनीयर्स भी अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रहे हैं.

वहीं कुछ लोगों को सिद्धार्थ शुक्ला और हिना खान की दोस्ती पसंद नहीं आ रही है. बीते एपिसोड में सिद्धार्थ शुक्ला हिना खान के साथ हेड मसाज करता नजर आ रहे थें. जिसके बाद से फैंस का गुस्सा ज्यादा ही बढ़ गया है.

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इसे देखते हुए एक यूजर ने कमेंट किया है कि हिना खान खुद की बजा रही हैं. इसे देखते हुए साफ हो जा रहा है कि यूजर ने हिना की जगह शिल्पा शिंदे को वोट क्यों दिया है. वह सिद्धार्थ शुक्ला के साथ बच्चे के जैसे पेश आती हैं.

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वहीं इसके सपोर्ट में कई लोगों ने अपनी बात रखी है. पिछले एपिसोड में हिना खान सिद्धार्थ शुक्ला के डाइट को लेकर तंज कसती नजर आ रही थी. वहीं पराठे गिनते हुए उन्होंने सिद्धार्थ शुक्ला को मोटा भी कहा था.

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जिसके बाद से सिद्धार्थ शुक्ला के फैंस हिना खान से लगातार अपनी नाराजगी दिखाते नजर आ रहे हैं. गौरतलब है कि सिद्धार्थ शुक्ला ने इस शो के प्रीमीयम पर तूफानी सीनीयर्स बनकर एंट्री मारी थी.

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तो कुछ फैंस ऐसे भी है कि सारा गुरपाल के इविकेश्न के वक्त से लगातार सिद्धार्थ से अपनी नाराजगी दिखाते नजर आ रहे हैं. अब देखना यह है कि अगले एपिसोड में किसके ऊपर होगा इविकेश्न का खतरा.

सिर्फ डेढ़ महीने में राजश्री ठाकुर ने छोड़ा शादी मुबारक ,ये एक्ट्रेस कर सकती हैं रिप्लेस

स्टार प्लस का शो शादी मुबारक के फैंस के लिए एक बुरी खबर है. इस सीरियल को लगातार देखने वाले फैंस को धक्का लग सकता है. खबर यह आ ही है कि शो की लीड एक्ट्रेस राजश्री ठाकुर ने इस शो को अलविदा कह दिया है.

बता दें यह शो इस साल अगस्त में शुरू हुआ था. सिर्फ डेढ़ महीने में ही इस शो को राजश्री छाकुर ने अलविदा कह दिया. जिसके बाद से लगातार यह शो चर्चा का विषय बना हुआ है. वहीं एक खबर यह भी आ रही है कि राजश्री ठाकुर को रति पांडे रिप्लेस करने वाली हैं.

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राजश्री ठाकुर इस सीरियल में प्रीती के किरदार में नजर आ रही थीं. जब उनसे यह सवाल करते हुए पूछा गया कि इस सीरियल के छोड़ने के पीछे का क्या रिजन है तो उन्होंने अपनी बातों को रखते हुए कहा कि मेरा स्वास्थ्य इन दिनों ठीक नहीं चल रहा है. इसलिए मुझे इस सीरियल को छोड़ना पड़ रहा है.

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मुझे अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए इस सीरियल को छोड़ना पड़ रहा है.आगे उन्होंने कहा कि किसी भी सीरियल में काम करने के लिए अपना 100 प्रतिशत देना बहुत ज्यादा जरूरी होता है. इसलिए हमने यह निर्णय लिया है.

वहीं जब प्रॉड्यूसर्स से इश्यू के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि मेरे साथ ऐसी कोई दिक्कत नहीं थी. मुझे समझ नहीं आ रहा कि लोग ऐसी बात क्यों कर रहे हैं. इस बात से मैं हैरान हूं कि आपलोग ऐशी बाते क्यों फैला रहे हैं. उन्होंने मेरा इस फैसले में साथ दिया है. हम दोनों का एक- दूसरे के साथ अच्छआ बॉन्ड है.

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जब उनसे पूछा गया कि क्या रति पांडे ज्वाइन कर रही हैं तो इस पर उन्होंने कहा कि मुझे इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं है. मेरी जगह कौन आ रहा है.

 

मृगतृष्णा-भाग 3 : शादीशुदा जिंदगी में बेतहाशा प्यार क्या ऐसे ही होता है

दुबई आ कर मैं अगले जन्म में मनचाहे हमसफर की कामना करती हुई अपनी जिंदगी की रेलगाड़ी को आगे खींचने लगी. मन लगाने के लिए मैं ने एक कंपनी में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी कर ली थी. सोचा, न मेरे पास खाली वक्त होगा न जिंदगी की कमियों को ले कर मन को भटकने का मौका मिलेगा. अपनी व्यस्तताओं में मैं जोसफीन-ब्राइन और उन की परीकथा को भूल सी चुकी थी.

मगर आज शाम वर्ल्ड ट्रेड सैंटर में जोसफीन फिर से सामने आ गई थी. इस बार वह मुझे अपनी सहेली न लग कर, कोई पहेली सी लगी थी. जोसफीन से अचानक रूबरू होने के बाद घर वापस आने पर भी मन जोसफीन, ब्राइन, जैकब त्रिकोण में उलझा रहा. क्या ब्राइन मर चुका है? अगर नहीं तो फिर जोसफीन नए डीफैक्टो पार्टनर के साथ क्यों है? ये एकदूसरे के प्यार में सिर से पांव तक डूबे रहने वाला जोड़ा ऐसे कैसे अलग हो सकता है? कितनी कशिश थी दोनों में, क्या हुआ उस कशिश का? सोचतेसोचते मेरा सिर चकराने लगा. इस ट्रायंगल के तीनों कोणों का आकलन करतेकरते आखिर मैं निढाल हो कर सो गई.

सुबह उठी तो सिर कुछ भारी सा लग रहा था. कुछ देर यों ही बिस्तर में लेटी रही, समझ में नहीं आ रहा था कि औफिस जाऊं या नहीं. अंत में हमेशा की तरह मेरे आलस की जीत हुई. मैं ने औफिस न जाने का निश्चय कर लिया और मुंह पर चादर ढक कर थोड़ी देर ऊंघने के लिए लेट गई.

आधे घंटे में जब टैक्सट मैसेज की आवाज से आंख खुली तो मैं ने अनमने भाव से मोबाइल उठाने के लिए हाथ बढ़ाया. बेमन से मैं ने अपनी अधखुली आंखें मोबाइल पर गड़ाईं तो देखा कि जोसफीन का मैसेज आया था. वह लंच के समय मुझ से कहीं पर मिलना चाहती थी.

मैसेज देखते ही मेरी आंखें पूरी तरह से खुल गईं और मैं ने बिना एक पल गंवाए, आए हुए मैसेज के नंबर को दबा दिया. मैं जोसफीन के बारे में सबकुछ जानने को बेताब थी. मैं ने उसे बताया कि आज मैं पूरे दिन घर में ही हूं, इसलिए वह किसी भी समय मुझ से मिलने आ सकती है. पूरे उत्साह के साथ मैं नहाधो कर घर को ठीक करने में लग गई और जोसफीन निश्चित समय पर आ पहुंची.

‘‘तुम्हारे वो, मेरा मतलब है जैकब महाशय कहां रह गए?’’ मैं ने इधरउधर नजर घुमाते हुए पूछा.

‘‘जैकब को तो एक कौन्फ्रैंस में जाना था. वैसे भी हम उस के होते हुए तो खुल कर बातचीत भी नहीं कर पाते. मैं अकेले ही तुम से मिलने आना चाहती थी,’’ जोसफीन ने अपनी चिरपरिचित मुसकराहट के साथ जवाब दिया.

मैं भी कौन सा जैकब से मिलने को इच्छुक थी. मेरे मन में तो ब्राइन की खैरियत को ले कर उथलपुथल मची हुई थी कि अगर वह जोसफीन के साथ नहीं तो फिर कहां और कैसा है? एक लंबा अरसा बीत चुका था हमें मिले हुए. बहुतकुछ कहने और सुनने को था, मगर मैं अपनी तरफ से बात को कुरेदना नहीं चाहती थी. मैं ने इंतजार करना ही ठीक समझा. काफी देर इधरउधर की बातें करने के बाद आखिर ब्राउन का जिक्र आ ही गया.

‘‘मेरे और ब्राइन के तलाक को 4 साल हो चुके हैं,’’ जोसफीन ने बिना किसी संवेदना के परदाफाश किया.

‘‘4 साल मतलब, जैसे ही मैं ने सिडनी छोड़ा उस के कुछ ही समय बाद तुम दोनों अलग हो गए. मगर ऐसा कैसे हो गया? तुम्हें तो हमेशा ही इस बात का गुमान था कि ब्राइन अमेरिका में अपने सारे रिश्तेनाते छोड़ कर मीलों दूर आस्ट्रेलिया में तुम्हारे और सिर्फ तुम्हारे लिए आ कर बस गया था,’’ मैं ने एक सांस में कई सवाल दाग दिए.

‘‘तो क्या हुआ, मैं ने भी तो उस की विकलांगता को वर्षों तक झेला और अपनी जिंदगी का गोल्डन टाइम उस पर बरबाद कर दिया,’’ जोसफीन ने कहा.

‘‘बरबाद कर दिया, क्या मतलब, वह हादसा तो शादी के बाद में हुआ था और उस के बाद भी तो तुम ने उस के साथ कई साल खुशहाली के साथ बिताए… और फिर तुम ही तो कहती थीं कि हादसे तो हादसे होते हैं, उन पर किसी का वश कहां. ये कहीं भी और किसी के भी साथ हो सकते हैं और फिर यह सही बात है कि हादसे तो हादसे होते हैं,’’ मैं ने एकएक शब्द पर जोर दे कर कहा.

‘‘हां, तो, जब मैं ने ये सब कहा था तब कम से कम ब्राइन के पास एक लाइफस्टाइल, एक स्टेटस तो था,’’ वह लापरवाही के साथ बोली.

‘‘एक स्टेटस था? क्या मतलब है तुम्हारा इस ‘था’ से?’’ मेरे स्वर में अब घबराहट घुल चुकी थी. जोसफीन ने सबकुछ शुरू से आखिर तक कुछ ऐसे बताया :

‘‘अब से करीब 8 साल पहले ब्राइन ने अपनी कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए धातुओं के अन्वेषण, खानों की खोज आदि के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से भारी कर्ज ले लिया था. ऐसा करने के कुछ समय के बाद दुनियाभर में खनिज तेल और लौह अयस्क की कीमतें गिरने लगीं और वित्तीय संस्थाओं ने कर्ज की वापसी के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया. दूसरी तरफ पहले से चल रहे अन्वेषण को आगे जारी रखने के लिए भी फंड की जरूरत पड़ने लगी. जिस के लिए भी वित्तीय संस्थाओं ने हाथ खड़े कर दिए. ब्राइन की कंपनी ने नई इक्विटी निकाल कर शेयर बाजार से फंड बनाने की कोशिश भी की लेकिन वह प्रयास भी असफल रहा.

‘‘अब वित्तीय संस्थान पुराने मूलधन और ब्याज की वापसी के लिए जोर डालने लगे थे. दूसरी तरफ पहले से चल रहीं अन्वेषण और खनन परियोजनाएं धन के अभाव में बंद होने लगीं.

‘‘ब्राइन ने अन्य कंपनियों और अपने व्यवसायी मित्रों से भी मदद लेने की कोशिश की, मगर हर जगह नाकामी ही हासिल हुई. हार कर उस ने अपने एकमात्र मुनाफे में चल रहे कंस्ट्रक्शन व्यवसाय को बेचने का फैसला किया परंतु इस में भी ट्रेड यूनियन और फौरेन इनवैस्टमैंट एप्रूवल बोर्ड ने चाइनीज खरीदार को बेचने के लिए स्वीकृति देने पर अड़ंगा लगा दिया.

‘‘आखिरकार सब तरफ से मायूस हो कर बोर्ड औफ डायरैक्टर ने कंपनी को लिक्विडेशन में ले जाने का फैसला कर लिया. इस के साथ ही ब्राइन और मेरी जिंदगी के सुनहरे दिनों का भी लिक्विडेशन हो गया,’’ जोसफीन ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा.

‘‘ब्राइन के दिवालिया होने और तुम्हारे उस से तलाक लेने का क्या संबंध है?’’ मैं ने चिड़चिड़ा कर पूछा.

‘‘सीधा संबंध था, मैं ने सालों उस की विकलांगता को झेला. अब उस के पास बचा भी क्या था मुझे बांधे रखने के लिए. मैं कोई बेवकूफ थोड़े ही हूं जो कि किसी दिवालिया पर अपनी जिंदगी बरबाद कर दूं,’’ जोसफीन बोली.

‘‘और यह जैकब? यह क्या मार्केट में तुम्हारे लिए तैयार बैठा था जो ब्राइन के व्यापार के फेल होते ही तुम इस के साथ रहने लगीं?’’ मैं ने सवाल किया.

‘‘हां, ऐसा ही कुछ समझो. कुछ साल से हम दोस्त थे. ब्राइन के शहर से बाहर होने के दौरान हम ने कई बार कैजुअल समय बिताया था. ब्राइन जैसे व्हीलचेयरमैन के पास था ही क्या मुझे देने के लिए. जब मुझे जैकब जैसा रियल मैन मिल सकता है तो फिर मुझे किसी व्हीलचेयरमैन के साथ समय गुजारने की क्या जरूरत थी. आखिर कुदरत ने हमें जिंदगी जीने के लिए ही दी है, किसी की मजबूरियों पर बरबाद करने के लिए थोड़े ही दी है,’’ इतना कह कर जोसफीन जोर का कहकहा लगा कर हंस दी.

जिंदगी में पहली बार मुझे उस की हंसी को देख कर घृणा महसूस हुई. मैं हतप्रभ सी उसे देखती रह गई. मैं ने अपने काले, घुंघराले बालों को मुट्ठी में भर कर हलके से खींच कर देखा कि मैं होश में तो हूं. हां, होश था मुझ को क्योंकि बालों के खिंचने पर मैं ने दर्द महसूस किया. फिर भी जब पक्का भरोसा न हुआ तो इस बार मैं ने बाएं हाथ की हथेली में दाएं हाथ के अंगूठे का नाखून गड़ा कर देखा, दर्द का आभास मुझे अब भी हुआ.

यह साबित हो चुका था कि मैं पूरी तरह होश में थी. इस का सीधासीधा मतलब था कि जो मुझे सुनाई दे रहा था वह सच था, मेरे मन का वहम नहीं. मगर यह तो रंगबिरंगी दुनिया है. यहां कुछ भी संभव है. यहां रोज किसी न किसी के साथ अनहोनी होती है, अप्रत्याशित घटता है.

स्टील, लोहे और तेल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए ब्राइन बहुत ही महत्त्वाकांक्षी हो उठा था. उस के मन में एक लालसा जाग उठी थी जल्दी से जल्दी फौरचून फाइव हंड्रैड की लिस्ट में अपनी कंपनी का नाम देखने की. इस लालसा से वशीभूत हो कर और स्टील, लोहे व खनिज तेल की कीमतों को बढ़ते देख कर उस ने कई देशों में नई खानों और तेल की खोज के अधिकार प्राप्त कर लिए थे. मगर औयल, गैस और खनिज की गिरती कीमतों ने उस के व्यापार को पूरी तरह से डुबो कर रख दिया.

वह शरीफ आदमी यह नहीं जानता था कि फौरचून फाइव हंड्रैड की लिस्ट की जगह, समय उसे हर तरह से बरबाद करने के लिए उस के कदम के इंतजार में था. जिस जोसफीन को उस ने खुद से ज्यादा प्यार किया था, उस ने बुरे वक्त में उस का संबल बनने की जगह उसे हर तरह से तोड़ कर रख दिया.

आसमानी परी की मुसकान के पीछे कितना शातिर दिमाग काम कर रहा था, मैं कभी समझ ही नहीं पाई. मैं ने जाना कि गिरगिट ही नहीं, इंसान भी रंग बदलते हैं. मैं ने जाना कि शादी परिवार द्वारा तय की गई हो या स्वयं की इच्छा से की गई हो, उसे सफलअसफल लोग स्वयं बनाते हैं. मैं मैदान के एक किनारे पर खड़ी हो कर सोचती रही कि दूसरे किनारे की तरफ सिर्फ हरियाली ही हरियाली है.

मृगतृष्णा में फंसी मैं कभी देख ही न सकी कि असली हरियाली मेरे पैरों तले थी, जरूरत थी तो सिर्फ सही दृष्टिकोण की. हां, जिंदगी जीने के लिए ही होती है पर किसी दूसरे के जज्बातों को रौंद कर अपने ख्वाब सजाने के लिए भी नहीं. प्यार और त्याग एकदूसरे के पर्याय हैं. त्याग किए बिना प्यार हासिल नहीं किया जा सकता. प्यार, प्यार है, भौतिक जरूरतों का गुणाभाग नहीं. भौतिकता के लाभहानि के गणित से अर्जित किया गया प्यार, त्याग का नहीं बल्कि वासना का पर्याय होता है.

मुझे जिंदगी का घिनौना चेहरा देखने को मिला. मुझे समझ में आया कि कभीकभी आंखों को जो दिखता है और कानों को सुनाई देता है, वह भी गलत हो सकता है. पता लगा कि हर शख्स आवरण ही ओढ़े हुए जी रहा है अपनेअपने झूठ का. खैर, मुझे यह आवरण और नहीं ओढ़ना है. जिंदगी को जिंदगी के जैसे ही जीना है, मृगतृष्णा की तरह नहीं. जिंदगी को जिंदगी बनाना मेरे अपने हाथ में था. मृगतृष्णा तो सिर्फ छल है, धोखा है अपनेआप से.

जोसफीन के विदा होते ही मैं ने शरद को फोन किया बताने के लिए कि मैं बीजिंग आ रही हूं उन के पास मृगतृष्णा को छोड़ कर, अपनी और उन की जिंदगी को मुकम्मल बनाने के लिए.

मृगतृष्णा-भाग 2 : शादीशुदा जिंदगी में बेतहाशा प्यार क्या ऐसे ही होता है

आखिर जोसफीन ने ही बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘काफी समय से तुम से बातचीत नहीं हो पाई है. तुम तो बिना कुछ बताए ही सिडनी से गायब हो ली थीं. लाइफ काफी बदल चुकी है तब से. अभी हम यहां एक हफ्ते और रुकेंगे. अगर मौका मिला तो तुम्हारे साथ कौफी पीने आऊंगी. मुझे अपना फोन नंबर दे दो.’’

मैं ने ज्यादा कुछ सोचे बिना हैंडबैग से अपना कार्ड निकाल कर उस की ओर बढ़ा दिया. तभी एक टैक्सी आ गई. जोसफीन ने एक बार फिर से मुझे अपने गले लगाया और जैकब के साथ टैक्सी में बैठ कर चली गई. मैं हैरानपरेशान सी टैक्सी को अपनी आंखों से ओझल होने तक देखती रही.

ब्राइन सिडनी का जानामाना व्यक्ति था. उस की खनिज तेल और खनन कंपनी थी जो कि आस्ट्रेलिया, टर्की, अफ्रीका और अमेरिका तक फैली हुई थी. उस की रईसी उस के सिडनी के पौइंट पाइपर उपनगर स्थित निवास में ही सिमटी हुई नहीं थी, बल्कि पूरे सैलाब के साथ हर तरफ छलकीछलकी पड़ती थी. धन की अधिकता के साथसाथ उस की हर बात बड़ी थी. वह अपने धन को अपने बैंक खाते तक ही सीमित नहीं रखता था, मानवीय कामों पर भी जम कर लुटाता था. उस के नाम और काम की चर्चा शहर के कोनेकोने में इज्जत के साथ होती थी.

ब्राइन के किसी से मिलने के पहले ही उस की प्रसिद्धि उस तक पहुंच जाती. विश्वविद्यालय को रिसर्च और जरूरतमंद छात्रों की उच्चशिक्षा के लिए अनुदान देना उस के पसंदीदा लोकोपकारी काम थे.

इन तमाम मानवतावादी कामों के साथसाथ उसे अपने लिए जीना भी बखूबी आता था. वह गोताखोरी, नौकायन, पैराग्लाइडिंग का बेहद शौकीन था.

जोसफीन और ब्राइन की मुलाकातों का सिलसिला नीले आकाश के आंचल में हुआ था. जोसफीन क्वान्टाज एयरलाइंस में एयरहोस्टेस थी. और ब्राइन अपने देशविदेश में फैले हुए व्यापार के सिलसिले में ज्यादातर हवाईयात्रा करने वाला यात्री.

अपनी मुसकराहट की जादूगरी से यात्रियों की लंबीलंबी यात्राओं को सुखद बनाने वाली नीलगगन की परी सी थी जोसफीन. उस की फ्लाइट में उस की सेवा में उड़ने वाले यात्री उसे कभी न भुला पाते और अपनी हर यात्रा में उसी की सेवा में उड़ने की चाहत रखते. एक तरफ आकर्षक रूपसागर था तो दूसरी तरफ भव्य जिंदगी जीने वाला प्रभावशाली व्यापारी. दोनों ही एकदूसरे के आकर्षण से ज्यादा समय तक न बच पाए और कुछ महीनों की मुलाकातों के बाद वे एकदूसरे के हो गए.

जब मैं पहली बार जोसफीन और ब्राइन से मिली थी तब तक उन की शादी को 10 साल पूरे हो चुके थे जबकि मेरी और शरद की शादी को केवल 3 साल ही हुए थे. उन के 10 साल की शादी में भी प्यार का महासागर उमड़ पड़ता था. उन के बीच की कैमिस्ट्री को देख कर मेरे जैसों को ईर्ष्या से अछूता रहना नामुमकिन था क्योंकि मेरी 3 साल की शादी में प्यार का अकाल सदाबहार था.

शरद और मेरी हर बात, हर शौक में नौर्थ और साउथ पोल का फर्क था. जोसफीन और ब्राइन के हर शौक, हर तरीके एकजैसे थे. वे दोनों खूब शौक से साथसाथ गोताखोरी पर जाया करते थे. 3-4 साल पहले गोताखोरी के दौरान रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से ब्राइन के शरीर का निचला हिस्सा बेकार हो गया. जिस से वह ज्यादा लंबा चलने की शक्ति गवां बैठा. मगर प्यार तो प्यार होता है. सो, यह हादसा भी उन दोनों के प्यार के महासागर से एक बूंद भी कम न कर पाया. कम करता भी कैसे, आखिर उन्होंने नीले आकाश को साक्षी मान कर उम्रभर साथ निभाने के वादे जो किए थे.

वे दोनों एकदूसरे के बने थे अपनी खुशी से, उन्हें एकदूसरे पर थोपा नहीं गया था. उन के प्यार में समर्पण था, ढोए जाने वाला सामाजिक बंधन नहीं. उन की शादी उन के प्यार की परिणति थी, महज निभाए जाने वाली रस्म नहीं. मेरी और शरद की शादी तो वह जैकपौट थी जिस में लौटरी शरद की लगी थी. मेरी स्थिति तो जुए में अपना सबकुछ हारे हुए जुआरी जैसी थी.

जब भी मैं जोसफीन और ब्राइन को साथसाथ देखती तो मेरे दिल का दर्द पूरी शिद्दत पर पहुंच जाता. मैं सोचती, काश, मेरी भी शादीशुदा जिंदगी उन की शादीशुदा जिंदगी की तरह एक परीकथा होती. मैं उन के सामने बैठ कर स्वयं को बहुत आधाअधूरा महसूस करती. जब यह बरदाश्त से बाहर हो गया तो हीनभावना से बचने के लिए मैं ने उन से किनारा करना शुरू कर दिया. उन के सामने सुखी विवाहित जीवन का झूठा आवरण ओढ़ेओढ़े मैं अब थकने लगी थी.

इस झूठे नाटक में मेरे चेहरे के भावों ने मेरा साथ देना बंद कर दिया था. मेरे दिल के दर्द की लहरें मेरे सब्र के बांध को तोड़ कर पूरे बहाव के साथ उमड़ने लगी थीं. इस सैलाब को दिल में जज्ब करना नामुमकिन होता जा रहा था. इसलिए जब शरद को दुबई में एक बेहतर जौब मिला तो मेरे दिल को एक अजब सा सुकून मिला. मेरी खुशी शरद को बेहतर जौब मिलने की वजह से कम और सिडनी को हमेशा के लिए छोड़ कर जाने की वजह से ज्यादा थी.

‘चलो, न तो यह ‘मेड फौर इच अदर’ जोड़े से सामना होगा, न ही मेरे दिल के जख्मों में टीस उठेगी.’ यह सोच कर चैन की सांस ली थी उस वक्त मैं ने, और जोसफीन को बिना बताए ही सिडनी से दुबई चली आई थी.

लॉकडाउन में मेरे दुकान में कम ग्राहक आते हैं क्या करुं?

सवाल

लौकडाउन खत्म होने के बाद इसी वर्ष मैं ने जून के महीने में एक दुकान खरीदी थी. मैं अपने आसपास के दुकान वालों से सस्ता सामान बेचता हूं. फिर भी ग्राहक कम आते हैं. क्या करूं?

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जवाब
चमकती चीज हर किसी को लुभाती है. इस बात से आप भी वाकिफ होंगे. इसलिए सब से पहले तो अपनी दुकान को आकर्षक बनाएं. दुकान में सामान ऐसा रखा होना चाहिए कि वह भरीभरी लगे और व्यवस्थित भी. एक ग्राहक सिर्फ सामान के लिए नहीं आता, बल्कि उसे ग्राहक वाली इज्जत भी चाहिए होती है. इसलिए ग्राहक का सम्मान करें तथा उन से मीठे बोल बोलिए.

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आसपास के एरिया में होम डिलीवरी की सुविधा दीजिए. यदि दुकान पर महिला अपने छोटे बच्चे के साथ आती है तो बच्चे को छोटा सा उपहार टौफी, चौकलेट आदि दे कर खुश करें. समयसमय पर कुछ स्कीम निकालें, जिस से लगे कि आप कुछ अलग कर रहे हैं. और हां, सब से जरूरी बात, धैर्य से काम कीजिए. किसी भी काम को सफलता मिलने में वक्त लगता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

मृगतृष्णा-भाग 1 : शादीशुदा जिंदगी में बेतहाशा प्यार क्या ऐसे ही होता है

‘‘हो सके तो कुछ दिनों के लिए मेरे साथ वक्त बिताने के लिए तुम भी बीजिंग आ जाना. आओगी तो अच्छा लगेगा मुझे, तुम्हारी मेहरबानी होगी मुझ पर,’’ शरद ने दुबई एयरपोर्ट पर मुझ से विदाई लेते हुए कहा. उन का काम के सिलसिले में देशविदेश जानाआना लगा रहता था. वे जहां भी जाते थे, उम्मीद करते कि कुछ ही दिनों के लिए ही सही, मैं भी उन्हें जौइन करूं.

‘सूरत देखी है अपनी शीशे में, मैं घर में तो तुम्हारे साथ 5 मिनट बैठना पसंद नहीं करती, फिर बीजिंग में क्या खाक करने आऊंगी. मैं तो तुम्हारे साथ उम्र काट रही हूं उम्रकैद की तरह,’ मैं ने दिल ही दिल में सुलगते हुए सोचा और शरद की बात को तवज्जुह दिए बिना कार से उन का लगेज निकालने में उन की मदद करने लगी. फिर बिना उन की तरफ देखे ही गुडबाय कर, टाइम से अपने औफिस पहुंचने के लिए कार स्टार्ट कर दी.

शेख जायद रोड ट्रैफिक से पटी हुई थी. ‘लगता है फिर औफिस के लिए देर हो जाएगी और नगमा की स्कैन करती हुई आंखें फिर से बरदाश्त करनी होंगी. क्या दोटके की जिंदगी है मेरी,’ मैं मन ही मन भन्नाई. तभी एक हौर्न की आवाज ने मेरी सोच में बाधा डाली. सामने ग्रीन लाइट हो चुकी थी. मैं ने यंत्रवत ब्रैक से पैर हटा कर कलच पर दबाव डाला. मेरी कार आगे बढ़ने लगी और मेरी सोच भी.

इंडिया में मेरे भैया सोचते हैं कि मेरी झोली चांदसितारों से भरी हुई है. उन्हें क्या पता कि हालात मुझे न्यूट्रौन में बदल चुके हैं, न कोई खुशी न गम. जी रही हूं एक उदासीन सी जिंदगी क्योंकि हाथ में उम्र की लंबी सी लकीर ले कर पैदा हुई हूं. ढो रही हूं नीम पर चढ़े हुए करेले सी कड़वी बेनूर, अनचाही शादी को.

‘‘कुछ खोईखोई सी हैं आप आज,’’ औफिस पहुंचते ही नगमा ने आदतानुसार कटाक्ष किया.

‘‘तुम्हें तो पता है कि मैं शौकिया तौर पर शायरी लिखती हूं, इसलिए सोचते रहना मेरा काम है. सोचूंगी नहीं तो लिखूंगी कैसे,’’ मैं ने स्थिति संभालते हुए सफाई पेश की.

‘‘आज तो तुम्हारा चेहरा कोई औटोबायोग्राफिकल शेर सुनाता सा लग रहा है. ऐसा लग रहा है कि किसी ने तुम्हारे दिल की तनहाइयों में पत्थर फेंक कर वहां उथलपुथल मचा दी हो.’’

‘‘आप भी कौन सी कम हैं, दूसरों की जिंदगी में हस्तक्षेप करकर के उन की जिंदगी की खामियों के नगमें दुनिया में गागा कर अपना नाम सार्थक करती रहती हैं,’’ मैं ने नहले पर दहला मारा क्योंकि मैं जानती थी कि सीधी भाषा नगमा को समझ में नहीं आती है.

‘‘तुम जानो, तुम्हारा काम जाने. मेरे पास भी फालतू वक्त नहीं है तुम्हारे जैसों पर जाया करने के लिए,’’ नगमा खिसियाई बिल्ली सी मुझे अकेला छोड़ कर चली गई. दिन काम की व्यस्तताओं में गुजर गया. शाम का इंतजार करने की जरूरत नहीं हुई. सीधे घर जाने की इच्छा नहीं हो रही थी, घर जा कर कौन से गीत गाऊंगी. वही रोज का बेनूर रूटीन- खाना बनाओ, डिशवाशर लोड करो, डिनर कर के किचन साफ करो और फिर नहाधो कर बैडरूम में एक बोरियतभरी रात काटो.

मन ज्यादा दुखी होता तो यूट्यूब पर सफल प्रेमकहानियां देख कर खुश होने की नाकाम कोशिश कर लेती. इन प्रेमकहानियों में अपने होने की कल्पना करती. और काल्पनिक ही सही, पर कुछ पल प्यार से जीने की कोशिश करती. फिर याद आया कि शरद तो हैं ही नहीं, इसलिए आज रास्ते में ही कुछ खा कर चलती हूं. अकेले अपने लिए क्या पूरी कुकिंग करने की तकलीफ उठानी.

वर्ल्ड ट्रेड सैंटर स्थित जेपेनगो कैफे में मैंगू स्मूदी के घूंट भरते हुए अनमने मन से सामने पड़े हुए अखबार के पन्ने आखिरी पेज की तरफ से पलटने लगी. जब से नौकरी ढूंढ़नी शुरू की थी, अखबार को आखिरी पेज की तरफ से पलटने की आदत पड़ गई थी. नौकरी तो करीब सालभर पहले मिल गई थी मगर आदत आज भी वैसी की वैसी बनी हुई है.

डिनर करने के बाद भी सीधे घर जाने की इच्छा नहीं हो रही थी. औफिस के बाद आसपास की फ्लोरिस्ट शौप में यों ही चक्कर लगाना मुझे अच्छा लगता था. आज मैं फिर से वहां फूलों को निहारने के लिए पहुंच गई.

फूलों को देखतेदेखते अचानक मुझे महसूस हुआ कि आंखों की कोरों से मैं ने किसी जानेपहचाने चेहरे को आसपास देखा है. कोई ऐसा चेहरा जो पहले कभी मेरे बहुत करीब रहा है. मैं तुरंत ही फ्लोरिस्ट शौप से बाहर निकल आई. मैं ने चारों ओर नजर घुमा कर देखा. मगर दूरदूर तक कोई भी परिचित चेहरा नजर न आया. शायद मुझे कोई गलतफहमी हुई है. यह सोचती हुई मैं कार पार्किंग की ओर बढ़ने लगी, तो देखा कि टैक्सीस्टैंड पर जोसफीन खड़ी थी.

जोसफीन यहां और वह भी ब्राइन के बिना, यह कैसे संभव है. हैरान सी मैं लपक कर उस की तरफ भागी. मुझे देख कर जोसफीन उत्साह से भर कर मेरे गले लग गई. परिचित मुसकराहट से सराबोर उस का चेहरा कई वर्षों के बाद देखने को मिल रहा था.

‘‘इन से मिलो, ये हैं मेरे नए पार्टनर जैकब,’’ जोसफीन ने अपने साथ खड़े आदमी की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘‘पार्टनर, क्या मतलब? तुम्हारी और ब्राइन की कंपनी में कोई पार्टनर भी हुआ करता था, ये तो तुम ने पहले कभी बताया ही नहीं,’’ मैं ने कुतूहल से पूछा.

‘‘नहींनहीं, मेरा वह मतलब नहीं है. मेरे कहने का मतलब है जैकब मेरे डी- फैक्टो पार्टनर हैं और हम लिविंग टूगेदर रिलेशन में हैं.’’

मैं ने एक गहरी नजर जैकब महाशय पर डाली. मेरे होंठ कुछ बोलने को हिले. मगर शब्द बाहर न आ सके.

ब्रोकली की खेती

सब्जियों की पैदावार में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. पिछले कुछ सालों के दौरान हमारे देश में सब्जियों के उत्पादन में काफी बढ़ोतरी हुई है. लेकिन आज भी हमारी ज्यादातर सब्जियों की कम उत्पादकता व कमजोर गुणवत्ता की असली वजह ज्यादातर किसानों द्वारा सब्जी उत्पादन में अभी भी पुराने तरीकों और तकनीकों का अपनाया जाना है. आगे आने वाले समय में सब्जियों का उत्पादन व विदेशों में उन की सप्लाई दोनों ही बढ़ सकते हैं. जहां हम जानीपहचानी काफी तरह की सब्जियां अपने देश में उगा रहे हैं, वहीं अभी भी कुछ ऐसी सब्जियां हैं, जो पैसे व पौष्टिकता के लिहाज से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं. इस तरह की सब्जियों में ब्रोकली का नाम बहुत मशहूर है. इस की खेती पिछले कुछ सालों से धीरेधीरे बड़े शहरों के आसपास कुछ किसान करने लगे हैं. बड़े महानगरों में इस सब्जी की मांग भी अब बढ़ने लगी है. पांच सितारा होटलों व पर्यटक स्थानों पर इस सब्जी की मांग बहुत है और जो किसान इस की खेती कर के इस को सही बाजार में बेचते हैं, उन को इस की खेती से बहुत ज्यादा फायदा मिलता है.

ब्रोकली सब से पहले इटली में उगाई जाती थी. 2000 सालों पहले इस की उपज की बात कही जाती है. ब्रोकली की खेती पैसा कमाने के लिए बहुत फायदेमंद है. यह साधारण फूलगोभी से काफी महंगी बिकती है. साथ ही एक गोभी के काट लेने के बाद उसी धड़ में दूसरी गोभी दोबारा पैदा हो जाती है. हालांकि दूसरी गोभी का आकार पहले वाली से छोटा होता है. ब्रोकली की मांग देश के सभी बड़े शहरों में है व पढ़ेलिखे लोग इस में पाए जाने वाले गुणकारी तत्त्वों की वजह से इस की खरीदारी करते हैं. यह सब्जी किचन गार्डन के लिए बहुत अच्छी रहती है. सर्दी के मौसम की फसल होने से इसे छतों, बालकनी और क्यारियों में आसानी से उगाया जा सकता है.

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ब्रोकली खाने के फायदे

ब्रोकली खाने के कई फायदे होते हैं. यह गहरी हरी सब्जी, ब्रेसिका फैमिली की है, जिस में पत्तागोभी और गोभी भी शामिल होती है. ब्रोकली को पका कर या फिर कच्चा भी खाया जा सकता है, लेकिन अगर आप इसे उबाल कर खाएंगे, तो आप को ज्यादा फायदा होगा. इस हरी सब्जी में लोहा, प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, क्रोमियम, विटामिन ए और सी पाया जाता है, जो सब्जी को पौष्टिक बनाता है. इस के अलावा इस में फाइटोकैमिकल और एंटीआक्सीडेंट भी होते हैं, जो बीमारी और इन्फेक्शन से लड़ने में सहायक होते हैं.

* शोधकर्ताओं के अनुसार ब्रोकली में बीटाकैरोटीन होता है, जो आंखों में मोतियाबिंद और मस्कुलर डीजेनरेशन होने से रोकता है.

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* यह माना जाता है कि ब्रोकली में यौगिक सल्फोरापेन होता है, जो यूवी रेडिएशन की वजह से होने वाले असर से त्वचा को बचाने और सूजन को कम करने में फायदेमंद होता है.

* ब्रोकली में कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम और जिंक होते हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाते हैं. इसलिए ब्रोकली बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है, क्योंकि इन में औस्टियोपोरोसिस होने का खतरा बहुत ज्यादा होता है.

* ब्रोकली शरीर को एनीमिया और एल्जाइमर से बचाती है, क्योंकि इस में बहुत ज्यादा आयरन और फोलेट पाया जाता है.

* ब्रोकली को लगातार खाने से गर्भवती महिलाओं को मदद मिलती है. यह फोलेट का एक अच्छा स्रोत है, जो भ्रूण में दिमाग के दोषों को रोकने में मदद करता है.

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जलवायु : ब्रोकली को ठंडे मौसम में उगाया जा सकता है. 15 से 24 डिगरी सेल्सियस तापमान में इस की खेती की जा सकती है. इस के लिए गरम जलवायु सही नहीं होती. ब्रोकली को उत्तर भारत के मैदानी भागों में जाड़े के मौसम में यानी सितंबर से फरवरी तक उगाया जा सकता है. जिस किसान को साधारण फूलगोभी की खेती का तजरबा है, वह ब्रोकली की खेती आसानी से कर सकता है.

मिट्टी : ब्रोकली की खेती के लिए किसी खास जमीन की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि यह सभी प्रकार की जमीनों में पैदा की जाती है. लेकिन दोमट या हलकी बलुई दोमट जैविक जमीनें इस के लिए सब से अच्छी मानी जाती हैं, जिन का पीएच मान 6.0-7.5 के बीच का हो.

खेत की तैयारी : ब्रोकली की फसल के लिए खेत की 2-3 बार मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करें ताकि खरीफ की फसल के खरपतवार गलसड़ जाएं. जरूरत के हिसाब से जुताई कर के खेत को अच्छी तरह भुरभुरा

कर के तैयार करना चाहिए, जिस से खेत में ढेले न रहें.

नर्सरी की तैयारी : ब्रोकली के बीज भी आसानी से मिल जाते हैं. ये किसी भी अच्छे बीज भंडार से खरीदे जा सकते हैं. सितंबर से नवंबर के शुरू होने तक इस के पौधे तैयार किए जा सकते हैं. बीज बोने के करीब 4 से 5 हफ्ते में इस के पौधे खेत में रोपाई करने लायक हो जाते हैं. इस की नर्सरी ठीक फूलगोभी की नर्सरी की तरह तैयार की जाती है.

ब्रोकली की किस्में

ब्रोकली की सभी किस्में विदेशी हैं, जिन में से कुछ इस प्रकार हैं :

* ग्रीन हेड किस्म : इस किस्म के शीर्ष ग्रीन (हरे) रंग के होते हैं, जो ऊपर से जुड़े हुए होते हैं.

* इटैलियन ग्रीन : इस के शीर्ष भी हरे रंग के होते हैं, जो ऊपर से कुछ खुले हुए दिखाई देते हैं.

* डीपीजीवी 1 : यह किस्म विकसित की गई है. इस का रंग हलका हरा होता है, लेकिन नीचे से शीर्ष गहरे हरे रंग के होते हैं.

* डीपीपीबी 1 : इस किस्म के शीर्ष जामुनी होते हैं.

* पूसा ब्रोकली 1 : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने हाल ही में पूसा ब्रोकली 1 किस्म की खेती के लिए सिफारिश की है. इस के बीज थोड़ी मात्रा में पूसा संस्थान क्षेत्रीय केंद्र, कटराइन कुल्लू घाटी, हिमाचल प्रदेश से प्राप्त किए जा सकते हैं.

कई बीज कंपनियां अब ब्रोकली के संकर बीज भी बेच रही हैं.

बीजों की मात्रा : 1 हेक्टेयर लायक पौध तैयार करने के लिए करीब 375 से 400 ग्राम बीजों की जरूरत होती है. 200 ग्राम बीज प्रति एकड़ और 40-50 ग्राम बीज प्रति बीघा क्षेत्र के लिए काफी होते हैं.

बोआई का समय : ब्रोकली के बीजों की बोआई नर्सरी में सितंबर से नवंबर तक जरूर करें, क्योंकि ज्यादा देरी से बोने पर गुणवत्ता वाले शीर्ष तैयार नहीं होते.

रोपाई : नर्सरी में जब पौधे फूलगोभी की तरह 8-10 सेंटीमीटर लंबे या 4 हफ्ते के हो जाएं, तो उन की तैयार खेत में कतार से कतार की दूरी 55-60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर रखते हुए रोपाई करनी चाहिए. रोपाई करते समय मिट्टी में सही नमी होनी चाहिए और रोपाई के एकदम बाद हलकी सिंचाई जरूर करें. पौधों की रोपाई दोपहर के बाद या शाम के वक्त करनी चाहिए.

खाद व उर्वरकों की मात्रा : अच्छी पैदावार लेने के लिए खाद व उर्वरकों की मात्रा मिट्टी परीक्षण के आधार पर देना सही रहता है. वैसे ब्रोकली के लिए गोबर की सड़ी खाद

20-30 टन, नाइट्रोजन, 80-100 किलोग्राम, फास्फोरस 45-50 किलोग्राम व पोटाश

70 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है. गोबर की खाद, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा को खेत की तैयारी के वक्त रोपाई से पहले मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए. नाइट्रोजन को 3 भागों में बांट कर रोपाई के 25, 45 और 60 दिनों बाद इस्तेमाल करना अच्छा माना जाता है. नाइट्रोजन को दूसरी बार लगाने के बाद, पौधों पर मिट्टी की परत चढ़ाना सही रहता है.

निराईगुड़ाई व सिंचाई : पहली सिंचाई रोपाई के एकदम बाद करें और अन्य सिंचाइयां मिट्टी, मौसम और पौधों की बढ़वार को ध्यान में रख कर करें. इस फसल में लगभग 10-15 दिनों के अंतर पर हलकी सिंचाई करनी चाहिए. पौधे रोपने के 15 दिनों बाद पहली गुड़ाई करें. जंगली घास होने पर निकाल दें. इस तरह से 2-3 बाद निराईगुड़ाई की जरूरत पड़ती है. इसी दौरान कोई पौधा मर जाए, तो उस की जगह नए पौधे की रोपाई कर देनी चाहिए. पौधों पर हलकी मिट्टी भी चढ़ा देनी चाहिए, जिस से वे गिरने न पाएं.

शीर्षों की कटाई : शीर्षों यानी फूलों को काटने या तोड़ने का भी एक समय होता है. हैड यानी फूलों की कलियां बड़ी होने या खुलने से पहले ही कच्चे नर्म फूलों या हेड को काटना चाहिए नहीं तो ब्रोकली की गुणवत्ता खत्म हो जाती है. इन तैयार शीर्षों को 12-15 सेंटीमीटर लंबे डंठलों के साथ काट लेना सही रहता है.

कीट व इलाज : फसल की शुरुआती अवस्था में गिडार आरा मक्खी, तंबाकू की सूंड़ी आदि कई कीटों का हमला होता है. इन की रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 ईसी या मिथाइल पैराथियान 50 ईसी की 10-15 मिलीलीटर मात्रा 10 लीटर पानी में घोल कर जरूरत के मुताबिक 2-3 बार छिड़काव करें.

रोग व इलाज : ब्रोकली की फसल में काला सड़न (ब्लैक राट) व पत्ती धब्बा रोग ज्यादा लगते हैं.

काला सड़न : इस रोग में पत्तियों के किनारे वी आकार के मुरझाए हुए धब्बे दिखाई देते हैं. रोग के बढ़ने पर पत्तियों की शिराओं का रंग काला व भूरा होने लगता है. इस की रोकथाम के लिए पौध लगाने से पहले 3 फीसदी फार्मेलीन के घोल से क्यारी को उपचारित कर के काली पालीथीन से तुरंत ढक कर चारों ओर से दबा दें.

पत्ती धब्बा रोग : इस रोग की वजह से पत्तियों पर अनेक छोटेछोटे गहरे रंग के धब्बे बन जाते?हैं. इन धब्बों के बीच के भाग पर नीलापन लिए हुए फफूंदी पाई जाती है. इस की रोकथाम के लिए 2.5 किलोग्राम मैंकोजेब प्रति हेक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. ब्रोकली की बढि़या फसल लेने के लिए एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन को भी अपनाने की जरूरत है.

कटाई व उपज :  फसल में जब हरे रंग की कलियों का मुख्य गुच्छा बन कर तैयार हो जाए तो उसे तेज चाकू या दरांती से काटना चाहिए. ध्यान रखें कि कटाई के समय गुच्छा खूब गुंथा हुआ व कसा हो और उस में कोई कली खिलने न पाए. ब्रोकली की अगर तैयार होने के बाद देर से कटाई की जाएगी तो वह ढीली हो कर बिखर जाएगी और उस की कली खिल कर पीला रंग दिखाने लगेगी. ऐसे समय में कटाई किए गए गुच्छे बाजार में बहुत कम दामों पर बिक सकेंगे.

ब्रोकली के हैड को काटने के बाद पौधों में नईनई शाखाएं निकल आती हैं. पौधे का पहला हैड लगभग 200-400 ग्राम का और अन्य छोटे हैड 100-150 ग्राम तक के होते हैं. इस प्रकार से 1 पौधे से औसतन 800-1000 ग्राम या 1 किलोग्राम तक ब्रोकली मिलती है. ब्रोकली की अच्छी फसल से प्रति हेक्टेयर करीब 160-180 क्विंटल उपज मिल जाती है.

ब्रोकली के लिए समस्या

ब्रोकली की सब से बड़ी समस्या है इस की बिक्री. ब्रोकली की ज्यादातर बिक्री शहरी क्षेत्रों में ही होती है. शिक्षित वर्ग ही इस का सब से ज्यादा खरीदार है. कई प्रकार के गुणकारी तत्त्वों के कारण ब्रोकली अन्य गोभी से महंगी होती है. जानकारी की कमी की वजह से तमाम लोग इस की खरीदारी करना सही नहीं समझते.

पूर्णिमा सिंह सिकरवार, डा. बालाजी विक्रम

बलात्कार कानून: बदलाव की जरूरत

बलात्कार निसंदेह महिलाओं के प्रति एक घृणित अपराध है लेकिन आजकल ऐसे बलात्कारों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जिन में सहमति से संबंध बनते हैं और अदालतें बिना वास्तविकता पर विचार किए आरोपी को जेल भेज देती हैं. यह कैसी ज्यादती है, इस पर पढि़ए यह खास रिपोर्ट.

बीती 5 सितंबर को बलात्कार के एक मामले में इंदौर हाईकोर्ट ने जो अजीबोगरीब फैसला सुनाया है वह हैरानी के साथ चिंता पैदा करने वाला भी इस लिहाज से है कि इसे न्याय कहा जाए या अन्याय माना जाए. बलात्कार की परिभाषा और बलात्कार की सजा को ही कठघरे में खड़ा करते इस और देशभर की अदालतों में चल रहे ऐसे लाखों मामलों को समझें तो लगता है कि इन में सिरे से बदलाव की जरूरत है और ऐसा कहने की पर्याप्त वजहें व आधार भी हैं.

चर्चित मामला इंदौर के नजदीक देवास जिले का है जिस में आरोपी और पीडि़ता साल 2017 में संपर्क में आए और लिवइन में रहने लगे. आरोपी ने पीडि़ता से शादी का वादा किया जिस के चलते पीडि़ता, जो शादीशुदा थी, ने अपने पति से जनवरी 2020 में तलाक ले लिया. तलाक के बाद रास्ता साफ हो जाने से उस ने आरोपी को शादी का उस का वादा याद दिलाया, तो वह मुकर गया. पीडि़ता ने सीधे थाने का रुख किया और बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस के बाद की कहानी भी ऐसे लाखों मुकदमों की तरह जानीपहचानी है कि आरोपी को पुलिस ने जेल भेज दिया. उस ने जिला अदालत में जमानत की अर्जी दी जोकि उम्मीद के मुताबिक खारिज हो गई.

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इस पर आरोपी ने इंदौर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. मामले में दिलचस्प मोड़ तब आया जब अदालत ने अपने अनूठे फैसले में कहा कि आरोपी को इस शर्त पर अस्थायी जमानत दी जाती है कि वह पीडि़ता से शादी कर ले और 2 महीने के भीतर इस के दस्तावेजी सुबूत भी पेश करे तो उस की जमानत स्थायी हो जाएगी. इस बाबत तुरंत ही आरोपी और पीडि़ता ने अपनीअपनी रजामंदी भी दे दी.

इस स्वभाव के दूसरे कुछ मामलों पर नजर डालने से पहले इस फैसले को समझें तो पहली नजर में यह बड़ा भला फैसला प्रतीत होता है जिस का कानून या उस की धाराओं से दूरदूर तक कोई लेनादेना नहीं क्योंकि बिना ट्रायल के ही आरोपी को आरोपी मान लिया गया है. सहज ज्ञान आरोपी को भी मिल गया है कि सालोंसाल जेल में सड़ने और अदालतों के चक्कर काटने से तो बेहतर है कि वादा किया हो या न किया हो, पीडि़ता से शादी कर जंजाल से छुटकारा पा लिया जाए, बाद में जो होगा, देखा जाएगा.

एक बात यह भी इस मामले से साबित होती है कि अगर अदालतें बतौर सजा विकल्प कथित आरोपी के सामने रखेंगी तो वे आसान रास्ता ही चुनेंगे जैसा कि बहुचर्चित अवमानना के मामले में देश के मशहूर वकील प्रशांत भूषण ने एक रुपए का जुर्माना भरने का चुना और जता दिया कि असमंजस में वे नहीं, बल्कि सब से बड़ी अदालत थी जो मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए की तर्ज पर कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी.

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और भी हैं मामले

बलात्कार के मामलों में अब आम लोगों की राय यह बनती जा रही है कि वे अकसर होते नहीं हैं बल्कि अदालतें उन्हें हुआ मान लेती हैं. खासतौर से उन मामलों में जिन में परी और राक्षसों के किस्सेकहानियों की तरह यह बात आ जाती है कि आरोपी ने शादी का झांसा या प्रलोभन देते बेचारी महिला यानी पीडि़ता का महीनों या सालों शारीरिक शोषण यानी बलात्कार किया लेकिन पीडि़ता को इस बलात्कार का एहसास तभी हुआ जब आरोपी ने शादी से इनकार कर दिया. इस के पहले उस की समझ कहां घास चरने चली गई थी और उस ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की.  अच्छी बात यह है कि इस पर न केवल आम लोग बल्कि अदालतें भी कभीकभार सोचने लगी हैं. इस के पहले ऐसे कुछ मामलों पर गौर करने से समझ आता है क्यों लोगों की धारणा बलात्कार के बारे में बदल रही है और इस का जिम्मेदार कौन है.

12 सितंबर को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से गुरुग्राम में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने आई 28 वर्षीय युवती की दोस्ती फेसबुक के जरिए फरवरी में लाजपतनगर में रहने वाले युवक अनमोल अलरिजा से हुई. यह युवती गुरुग्राम के डीएलएफ फेज-3 में किराए के मकान में रहती है. जल्द ही दोनों मिलनेजुलने लगे और प्यार भी हो गया और फिर शारीरिक संबंध भी दोनों के बीच बने.

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12 सितंबर को डीएलएफ फेज-3 थाने में पीडि़ता ने रिपोर्ट दर्ज कराई कि आरोपी ने शादी का झांसा दे कर जबरन शारीरिक संबंध बनाए थे. अगस्त के महीने में उस ने अनमोल से शादी करने को कहा तो वह मुकर गया. शिकायत पर कार्रवाई करते पुलिस ने आरोपी को पकड़ने की कोशिश की लेकिन वह फरार हो गया. जाहिर है गिरफ्तारी के बाद उसे लंबे वक्त तक जेल में रहना पड़ेगा क्योंकि बलात्कार के मामलों में जमानत आसानी से नहीं होती.

छत्तीसगढ़ के सिहावा नगरी की रहने वाली एक आदिवासी युवती ने थाना सिहावा में 21 अगस्त को रिपोर्ट दर्ज कराई कि रोशन लाल साहू नाम के युवक से उस की पहचान साल 2018 में हुई थी. रोशन लाल ने उसे शादी का झांसा दे कर शारीरिक संबंध बनाए लेकिन शादी की नहीं. इतना ही नहीं, वह युवती को बदनाम करने की धमकी देते उस से शारीरिक संबंध बनाता रहा. रिपोर्ट के बाद पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. अब जमानत कब होगी, यह जेल की अंधेरी कोठरी में रह रहे रोशन लाल को नहीं पता.

रोशन लाल की तरह मोहम्मद असलम भी दुमका की सैंट्रल जेल में बंद है. झारखंड के रानेश्वर की एक महिला, जो 2 बच्चों की मां है, ने उस पर बलात्कार का आरोप लगाया है. बकौल पीडि़ता, असलम ने उस से शादी का वादा किया था लेकिन पूरा नहीं किया तो उस ने 11 सितंबर को दुष्कर्म की रिपोर्ट लिखा दी. पुलिस ने असलम को बलात्कार के आरोप में जेल भेज दिया.

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भोपाल के जहांगीराबाद इलाके में रहने वाली 22 वर्षीया युवती ने अनूपपुर में पदस्थ एक पुलिसकर्मी हरेंद्र गुर्जर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई कि वह लंबे समय से उस का शारीरिक शोषण कर रहा था. लौकडाउन के दौरान आरोपी उस के घर आया और ज्यादती की और फिर शादी का वादा भी किया, लेकिन शादी की नहीं और गायब हो गया. अब रिपोर्ट के बाद पुलिस उसे ढूंढ़ रही है.

भोपाल के ही शाहपुरा थाने में 24 सितंबर को निजी संस्थान में कार्यरत एक 25 वर्षीय युवती ने रिपोर्ट दर्ज कराई कि उस की पहचान 6 साल पहले मोबाइल की दुकान पर काम करने वाले महेंद्र कुमार से हुई थी. जल्द ही दोनों में प्यार भी हो गया. साल 2017 में पहली बार उन के शारीरिक संबंध महेंद्र के घर पर बने. फिर अकसर वे सैक्स करने लगे. जब पीडि़ता ने ही शादी के लिए कहा तो आरोपी ने यह कहते अपनी मजबूरी जता दी कि उस पर कोई 2 लाख रुपए का कर्ज है. इस पर पीडि़ता ने उसे 1 लाख 11 हजार रुपए दे दिए. लेकिन फिर भी शादी के लिए महेंद्र तैयार नहीं हुआ, तो उस ने शारीरिक शोषण की रिपोर्ट लिखा दी. पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

जेलों में सड़ने को मजबूर

अनमोल, रोशन लाल साहू, असलम, महेंद्र और हरेंद्र जैसे लाखों लोगों को कथित पीडि़ताओं के कहनेभर से अपराधी मान लेना उन के साथ ज्यादती मानी जाएगी. समाज का नजरिया कुछ भी रहे लेकिन अदालतों का नजरिया बलात्कार के आरोपियों के प्रति सरासर पूर्वाग्रही और भेदभावभरा नजर आता है जो आरोप के सिद्ध होने से कोई सरोकार नहीं रखतीं और आरोपी को सीधे जेल भेज देती हैं. एक अहम सवाल और मुद्दा जमानत का भी है जोकि आमतौर पर आसानी से नहीं दी जाती.

कितने मामलों में बलात्कार साबित हो पाता है, इस अहम सवाल को एनसीआरबी यानी राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों से देखें तो देश में बलात्कार के महज 32.2 फीसदी मामलों में ही आरोप साबित हो पाता है. साल 2017 में बलात्कार के कुल मामलों की संख्या 1,46,201 थी, लेकिन उन में सजा केवल 5,822 को ही हुई थी. यानी, बाकी निर्दोष थे. एक और एजेंसी के मुताबिक, ऐसे मामलों, जिन में प्यार और शादी का झांसा दे कर बलात्कार होना बताया जाता है, की संख्या कुल बलात्कारों का लगभग 60 फीसदी होती है. इस से स्पष्ट हो जाता है कि इन मामलों में पुरुष व महिला ने लंबे समय तक अपनी मरजी से सैक्स किया, लेकिन पुरुष ने शादी नहीं की, तो उसे बलात्कार के आरोप में फंसा दिया गया. अपराध साबित हो न हो लेकिन उन्हें जमानत से वंचित रखा जाना अदालतों की तानाशाही या भर्राशाही, कुछ भी कह लें, का नतीजा ही माना जाएगा. इस गैरजमानती अपराध में जमानत की प्रक्रिया के दौरान अदालतें यह नहीं देखतीं कि-

क्या वाकई पुरुष ने शादी का वादा किया था?

क्या कोई भी महिला केवल इसलिए पुरुष को अपना शरीर सौंप देती है या इस आधार पर सौंप देना चाहिए कि पुरुष उस से शादी का वादा कर रहा है?

जब कुछ दिन, महीने या साल तक पीडि़ता और आरोपी साथ रहे या एकदूसरे से परिचित थे या फिर प्यार करते थे तो यह, यानी सहवास, बलात्कार किस आधार पर हो गया और इसे लंबे समय तक क्यों चलने दिया गया?

पीडि़ता ने बलात्कार महसूस होना और उस की रिपोर्ट लिखाना उसी वक्त मुनासिब या जरूरी क्यों समझा जब आरोपी शादी के अपने कथित वादे से मुकर गया और क्या एफआईआर में इस के पुख्ता सुबूत हैं?

और अहम बात, क्या यह जरूरी है कि कोई प्रेमी या पुरुष शादी का अपना वादा निभाए ही, क्या यह उस की कानूनी बाध्यता है?

यहां गौरतलब है कि किसी की भी व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक परिस्थितियां बदलती रहती हैं जिन के मुताबिक ही लोग जिंदगी के अहम फैसले लेते हैं, ऐसे में फिर उन्हें तुरंत जमानत की सहूलियत क्यों नहीं. रही बात दोष सिद्धि की, तो आखिरी तौर पर यह अदालत ही पेश किए गए सुबूतों की बिना पर तय करती है और अकसर अपराध साबित नहीं होता. ऊपर दिए आंकड़ों से यह साफ भी हो जाता है.

यह बलात्कार ही नहीं

आंकड़ों से हट कर बलात्कार को परिभाषित करने वाली आईपीसी की धारा 375 को देखें तो उस में कहीं भी यह किसी भी तरह स्पष्ट नहीं है कि अगर 2 वयस्क अपनी सहमति से सहवास करते हैं तो यह बलात्कार है. इस धारा के तहत परिभाषा यह है कि अगर कोई पुरुष किसी महिला से उस की इच्छा के विरुद्ध, उस की सहमति के बिना, उसे डराधमका कर, दिमागीतौर पर कमजोर या पागल महिला को धोखा दे कर या उस महिला के शराब के नशे या नशीले पदार्थ के कारण होश में नहीं होने पर संभोग करता है तो उसे बलात्कार कहते हैं.

समयसमय पर इस में जोड़ी गईं उपधाराओं में भी इस तरह का कोई उल्लेख नहीं है कि शादी का झांसा, वादा या प्रलोभन दे कर सहवास करना बलात्कार है. चूंकि अब इस तरह के बलात्कार तेजी से चलन में आ रहे हैं, इसलिए कानूनविद हर कभी इस पर बहस करते नजर आते हैं. जो रिपोर्टें ऐसे मामलों की दर्ज होती हैं, उन में पीडि़ता यह जरूर लिखाती है कि न केवल शादी का झांसा दिया गया बल्कि उसे डरायाधमकाया भी गया. यहां अदालत शादी के वादे से मुकर जाने को ही बलात्कार और धोखा दिया मान कर चलती है.

यह एक गंभीर बात है जिस पर लंबी और निष्पक्ष चर्चा होनी जरूरी है जिस से बलात्कार के झूठे मामले दर्ज न हों और बेगुनाहों को बेवजह पहले जेल की हवा न खानी पड़े और फिर अदालतों के चक्कर न काटना पड़ें.

उम्मीद बंधाते फैसले

कहने का मतलब यह नहीं कि बलात्कार होते ही नहीं, बल्कि यहां मकसद उन बलात्कारों की चर्चा करना है जो दरअसल बलात्कार होते ही नहीं लेकिन अदालतें उन्हें बलात्कार मान लेती हैं और जमानत के बारे में सोचती भी नहीं. लेकिन देशभर की अदालतों के कुछ फैसले बलात्कार के ऐसे मामलों पर कुछ और ही कहते हैं जिन्हें बहुत बारीकी से समझा जाना जरूरी है जिन से यह तो साबित होता ही है कि आपसी सहमति से बने संबंध बलात्कार के दायरे में नहीं आते.

एक मामले में महिला ने परंपरागत आरोप यही लगाया कि उस का प्रेमी लंबे समय तक उसे शादी का झांसा दे कर बलात्कार करता रहा लेकिन शादी से मुकर गया और दूसरी महिला से शादी कर ली. बलात्कार की धारा 376 के अलावा उस ने प्रेमी पर धोखाधड़ी की धारा 420 के तहत मुकदमा दायर किया.

बंबई हाईकोर्ट ने आरोपी को यह कहते जमानत दी कि विवाह से पहले दोनों ने आपसी सहमति से संबंध बनाए थे इसलिए अगर विवाह नहीं भी हुआ तो इस के लिए किसी भी रूप में पुरुष अकेला दोषी नहीं कहा जा सकता. महिला को इस बात की जानकारी थी कि वह अविवाहित है और भारतीय समाज में विवाह से पहले शारीरिक संबंध बनाना अनैतिक है.

साल 2016 में एक ऐसे ही अहम मामले, जिस में महिला ने मुंबई के गोरेगांव पुलिस स्टेशन में अपने प्रेमी पर शादी का झांसा और फिर बलात्कार करने की रिपोर्ट लिखाई थी, में जस्टिस मृदुला भटकर ने आरोपी को जमानत देते कहा था कि यह बलात्कार नहीं है. लड़की पढ़ीलिखी है और शारीरिक संबंध के लिए मना भी कर सकती थी. इस तरह के बलात्कारों के बारे में टिप्पणी करते उन्होंने यह भी कहा था कि अगर किसी मामले में धोखे से किसी महिला की सैक्स के लिए सहमति ली जाए तो उसे झांसा दे कर बलात्कार माना जाएगा यानी पहले से ही शादीशुदा पुरुष लड़की को अपनी वैवाहिक स्थिति न बताए और शादी का झांसा दे कर सैक्स करे तो इसे बलात्कार माना जाएगा, साथ ही, कोई महिला अनपढ़ है और उसे शादी का झांसा दे कर उस के साथ सैक्स संबंध बनाए जाएं तो यह भी बलात्कार होगा. लेकिन अगर लड़की पढ़ीलिखी है और किसी लड़के से उसे प्यार होता है और इसी प्यार में वे दोनों संबंध बनाते हैं तो इसे एकदूसरे की सहमति माना जाएगा.

शहरीकरण के इस दौर में यह फैसला बेहद प्रासंगिक है क्योंकि देशभर के कोई 40 फीसदी युवा, जिन में लड़कियों की तादाद भी लड़कों के बराबर है, अपना घर और शहर छोड़ बड़े शहरों में नौकरी कर रहे हैं जिस के दौरान उन में प्यार और शारीरिक संबंध बन जाना निहायत ही स्वाभाविक व आम बात है क्योंकि उन पर कोई पारिवारिक या सामाजिक नियंत्रण नहीं रह जाता. कई तो खुलेआम लिवइन में रहते हैं. ऐसे में सहमति से बने संबंधों को बलात्कार ठहराने की कोशिश एक मूर्खतापूर्ण बात है.

मुंबई की एक सौफ्टवेयर कंपनी में नौकरी कर रही भोपाल की अनन्या कहती हैं, ‘‘यह यानी विवाहपूर्व सहमति से बने संबंध कोई हैरानी की बात नहीं है, न ही इस में अनैतिक कुछ है. यह आज के युवा की जरूरत है और मरजी भी. इसे बलात्कार कैसे कह सकते हैं.

पिछली 2 मई को बेंगलुरु की 27 वर्षीया महिला ने अपने 42 वर्षीय सहकर्मी के खिलाफ आर आर नगर पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराई कि उस ने शादी का झूठा वादा कर बलात्कार किया. पुलिस ने आईपीसी की यौन उत्पीड़न वाली धारा 376, धोखाधड़ी की धारा 420, धमकी देने की धारा 506 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 बी के तहत युवक के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. आरोपी ने सीआरपीसी धारा 438 के अंतर्गत अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की एकल पीठ ने सुनवाई के बाद अपने फैसले में युवती के चरित्र पर ही उंगली सी उठा दी.

24 जून को अदालत ने अपने फैसले, जिसे ऐतिहासिक ही कहा जाएगा, में कहा – शिकायतकर्ता ने यह नहीं बताया कि वह रात के 11 बजे उन के दफ्तर क्यों गई थी. उन्होंने आरोपी याचिकाकर्ता के साथ शराब पीने पर कोई एतराज नहीं जताया और उन्हें सुबह तक अपने साथ रहने दिया.

शिकायतकर्ता का यह कहना कि अपराध होने के बाद वह थकी हुई थी और सो गई, यह भारतीय महिला के लिए अनुपयुक्त है. शिकायतकर्ता द्वारा इस बारे में कुछ नहीं बताया गया गया है कि उन्होंने अदालत से शुरुआत में संपर्क क्यों नहीं किया जब आरोपी ने उन पर यौन संबंध के लिए दबाव बनाया था. अदालत के पास जमानत नामंजूर करने की कोई वजह नहीं क्योंकि महिला ने इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है कि जब वे आरोपी के साथ खाना खाने गईं, एल्कोहल का सेवन किया और उन की गाड़ी में आ कर बैठा तब उस के व्यवहार के बारे में उन्होंने पुलिस या अन्य व्यक्ति को आगाह क्यों नहीं किया.

यह कैसा बलात्कार

एक खास किस्म के बुद्धिजीवियों के वर्ग में इस फैसले की आलोचना हुई थी, लेकिन हकीकत में यह फैसला लाखों ऐसे मुकदमों की बखिया उधेड़ता हुआ था जिन में महिला के पास अपने साथ हो रही ज्यादती या बलात्कार की बाबत पुलिस या कहीं और शिकायत करते वक्त होता है लेकिन वे ऐसा नहीं करतीं. इस पर जबलपुर हाईकोर्ट के युवा अधिवक्ता सौरभ भूषण कहते हैं, ‘‘ऐसे लगभग सभी मामले सहमति के होते हैं. लेकिन, जब वजह कोई भी हो, बात या संबंध बिगड़ते हैं तो महिला मुंह उठा कर नजदीकी थाने जा पहुंचती है और पुलिस पुरुष को गिरफ्तार कर जेल में ठूंस देती है, जहां उसे जमानत, जिस की कोई तयशुदा मियाद नहीं होती, मिलने तक उसे रजामंदी के गुनाह की सजा भुगतनी पड़ती है. अदालतें बहुतकुछ जानतेसमझते हुए भी आरोपी को जमानत नहीं देतीं.’’

बकौल सौरभ, ‘‘क्या इसे आप या कोई बलात्कार कहेगा जिस में महिला मरजी से पुरुष के साथ लगातार सहवास करती है, घूमतीफिरती है और शादी के लिए कहती है या दबाव बनाती है जिस पर पुरुष मना करता है तो यह बलात्कार हो जाता है. मुमकिन है, पुरुष ने शादी की बात कही हो, लेकिन इस का यह मतलब कैसे निकाल लिया जाता है कि उस ने बलात्कार ही किया है. यानी, वास्तविक  बलात्कार के लिए कुछ आदर्श परिस्थितियों का होना जरूरी लगता है जो ठीक वैसी ही हैं जो हिंदी फिल्मों में दिखाई जाती हैं या धारा 375 में वर्णित हैं.’’

सौरभ बताते हैं, ‘‘अवास्तविक बलात्कारों में पुरुष कुछ समय के लिए जेल की सजा भुगतता है, वहीं, ऐसे मामलों से महिलाओं की छवि बिगड़ती है क्योंकि वे अदालत में अकसर गलत साबित होती हैं और आरोपी बाइज्जत बरी हो जाता है.

जमानत का प्रावधान सरल हो

बलात्कारों की संख्या यानी आंकड़ा बढ़ रहा है, तो इस की एक बड़ी वजह फर्जी बलात्कार हैं जिन में महिला की एक मंशा विवाद हो जाने पर पुरुष को सबक सिखाने की भी होती है क्योंकि वह जानती है कि, कुछ दिनों के लिए ही सही, पुरुष को जेल तो जाना ही पड़ेगा. लेकिन जमानत की प्रक्रिया सरल की जाए तो ऐसे मामलों पर लगाम लग सकती है. अगर आरोपी को बजाय जेल में रखने के सीधे अदालत में अपनी बात कहने का मौका दिया जाए तो हालात उलट होंगे क्योंकि फिर महिला थाने का रुख नहीं करेगी. इस के लिए जरूरी है कि आरोपी को मुचलके या खुद की गारंटी पर थाने से ही छोड़ने के प्रावधान रखे जाएं.

जमानत उन आरोपियों को ही सरलता से दी जाए जो लंबे समय से पीडि़ता से परिचित हैं या उस के साथ लिवइन में रह रहे हैं या फिर दोनों में प्यार है. कई बार मरजी से बने सैक्स संबंधों को बलात्कार न मानने के लिए यह भी जरूरी है कि बात पुरुष की भी सुनी जाए लेकिन इस शर्त या जिद पर नहीं कि एक बार तो उसे जेल जाना ही पड़ेगा. जिस तेजी से सहमति वाले बलात्कारों की तादाद बढ़ रही है उसे देखते जरूरी है कि अगंभीर मामलों में बलात्कार के आरोपियों को अग्रिम जमानत का प्रावधान किया जाए.

सुशांत-रिया मामला: प्यार या बिजनेस?

सौजन्य- मनोहर कहानियां 

सुशांत केस में भारत की 3 सर्वोच्च एजेंसियों सीबीआई, ईडी और एनसीबी ने अपनेअपने ढंग से जांच की. सच को समझने और सामने लाने के लिए देश के सर्वोच्च मैडिकल इंस्टीट्यूट के 3 सीनियर डाक्टरों को भी जांच में शामिल किया गया. जांच के दौरान ईडी को रिया के मोबाइल से ड्रग्स से जुड़ी कुछ चैट मिली तो एनसीबी को आना पड़ा. इस के बाद तो बौलीवुड पर…

मायानगरी मुंबई, वह महानगर जहां आदर्शवाद और संवेदनशील भावनाओं के बेहद महीन धागों से
इंद्रधनुषी सपने रचे जाते हैं, गढ़े जाते हैं. जब ये सपने तैयार हो कर सेल्युलाइड पर उतरते हैं तो दर्शकों को कुछ समय के लिए वास्तविकता से दूर उस दुनिया में ले जाते हैं, जहां सब कुछ इंद्रधनुषी रंगों और मखमली रोशनियों में लिपटा महसूस होता है, खूबसूरत, मनलुभावन. रजतपट पर दिखाए जाने वाले सपने बुनने और बेचने वाली मुंबई पिछले 6 दशकों से युवा दिलों की धड़कन बनी हुई है.

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लेकिन जब कभी सपनों के रेशमी जाल बुनने वाला कोई धागा न खुलने वाली गिरह बन जाता है तो मायानगरी की इंद्रधनुषी छवि के पीछे छिपी विद्रूपता खुल कर खुदबखुद उजागर हो जाती है. इस बार स्वप्न के इंद्रधनुषी वितान में छेद करने का जरिया बनी सुशांत सिंह राजपूत की कथित हत्या या आत्महत्या, जिस में रिया चक्रवर्ती के नाम ने सपनों की दुनिया में ऐसी उथलपुथल मचाई कि अंदर की वास्तविक कुरुपता फूटफूट कर बाहर आने लगी.

पहले मुंबइया फिल्म इंडस्ट्री का नेपोटिज्म मीडिया के निशाने पर रहा, फिर सुशांत की गर्लफ्रैंड रही रिया चक्रवर्ती सवालों के घेरे में आ गई. रोज नई खबरें, रोज नए अनुमान. सुशांत की आकस्मिक मृत्यु ने उन के प्रशंसकों को झकझोर कर रख दिया था, इसलिए वे दिन में कईकई बार बदलती खबरों में सच्चाई ढूंढते रहे.
यही वजह थी कि जब यह खबर आई कि सुशांत बौलीवुड के नेपोटिज्म का शिकार बने, साइन करने के बावजूद उन की कई फिल्मों को बंद कर दिया गया. बौलीवुड लौबी उन्हें आउटसाइडर मान कर आगे नहीं बढ़ने दे रही थी. और भी न जाने क्याक्या कारण उन की मौत के जिम्मेदार मान लिए गए.

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यह सब न्यूज चैनल्स पर देखसुन कर सुशांत के फैंस का गुस्सा इस कदर फूटा कि उन्होंने बौलीवुड के दिग्गज डायरेक्टर प्रोड्यूसरों को निशाने पर ले कर सोशल मीडिया पर उन की आलोचना शुरू कर दी. अपनी प्रशंसा सुनने के आदी दिग्गज फिल्म निर्माता और निर्देशक इस कड़वाहट को पचा नहीं पाए.
उन्होंने सोशल मीडिया के अपने एकाउंट धड़ाधड़ बंद करने शुरू कर दिए. लेकिन सुशांत के फैंस यहीं नहीं रुके, उन्होंने सुशांत की आखिरी फिल्म ‘दिल बेचारा’, जो ओटीटी पर रिलीज होने जा रही थी, की सोशल मीडिया के साथसाथ इतनी माउथ पब्लिसिटी की कि यह फिल्म सुपरडुपर हिट रही, फिर लोगों की डिमांड पर इसे जल्दी ही टेलीविजन पर भी दिखा दिया गया.

इस सब के बीच मुंबई पुलिस जो सुशांत की मौत को पहले ही आत्महत्या करार दे चुकी थी, ने नेपोटिज्म वाले ऐंगल से इनवैस्टीगेशन के नाम पर बड़ेबड़े निर्मातानिर्देशकों को थाने बुला कर पूछताछ की प्रक्रिया शुरू कर दी. दूसरी तरफ इलैक्ट्रौनिक मीडिया सुशांत की गर्लफ्रैंड रही रिया की कुंडली खंगालने पर लगा था.

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रिया का नाम सुशांत की मौत के बाद ही सुर्खियों में आया था. सुशांत के मामले में यह नाम बारबार लिए जाने की वजह कुछ संदेहास्पद स्थितियां थीं, जैसे सुशांत की पूर्व मैनेजर दिशा सालियान ने भी 8 जून को ही आत्महत्या की थी. सुशांत के साथ लिवइन में रह रही रिया भी उसी दिन अपने पेरैंट्स के घर गई थी. आखिर 8 तारीख में ऐसा क्या था?इसी बीच सुशांत के पिता के.के. सिंह ने हत्या का आरोप लगाते हुए पटना में रिपोर्ट लिखाई, जिस में रिया और उस के भाई शौविक का नाम शामिल था. रिपोर्ट में यह आरोप भी लगाया गया कि सुशांत के बैंक एकाउंट में 15 करोड़ रुपए थे. लेकिन रिया और उस के भाई शौविक ने यह रकम हथिया ली. इस मामले की जांच करने बिहार पुलिस मुंबई गई थी, लेकिन वहां की पुलिस ने सहयोग नहीं किया. बाद में जब पटना के एसपी विनय तिवारी मुंबई पहुंचे तो कोरोना की आड़ ले कर उन्हें क्वारेंटाइन कर दिया गया.

न्यूज चैनल्स की नायाब कवरेज

सुशांत की मौत का मामला शायद ऐसा पहला मामला है, जिसे सब से ज्यादा कवरेज मिली. यूं तो मुंबई में सभी चैनलों के संवाददाता हैं, लेकिन इस मामले की कवरेज के लिए चैनलों ने अपने कई संवाददाताओं को भेजा. एक चैनल के तो एक दरजन संवाददाता मुंबई गए, जिन में कई सीनियर भी थे.न्यूज चैनल्स ने कवरेज के लिए रिया का घर, सुशांत की सोसायटी, एक्सचेंज बिल्डिंग जहां रिया और ड्रग्स पेडलर से पूछताछ की जा रही थी, डीआरडीओ गेस्टहाउस और कोर्ट पर अपने रिपोर्टर और कैमरापरसन तैनात कर रखे थे ताकि पलपल की खबर दी जा सके. महीने भर से मुंबई की कवरेज देख कर आमिर खान की फिल्म ‘पीपली लाइव’ की याद ताजा हो जाती थी.

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फिर सुशांत के पिता के.के. सिंह ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिल कर सुशांत केस की सीबीआई जांच की संस्तुति करने का अनुरोध किया. मुख्यमंत्री की संस्तुति पर केंद्र सरकार ने उसी दिन सीबीआई को सुशांत केस की जांच के आदेश दे दिए.इस पर रिया चक्रवर्ती अपने वकील के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. उस का कहना था कि जांच सीबीआई की जगह मुंबई पुलिस से ही कराई जाए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. हालांकि शुरुआती दौर में रिया ने खुद सुशांत मामले की जांच सीबीआई से कराने की बात कही थी.21 अगस्त से सीबीआई ने मुंबई जा कर अपनी जांच शुरू कर दी. सीबीआई की एक टीम ने बांद्रा थाने की पुलिस से अब तक की जांच के सबूत और रिपोर्ट मांगी. बांद्रा जोन के डीसीपी अभिषेक त्रिमुखे ने इस मामले में दर्ज 56 बयान, फोरैंसिक रिपोर्ट, आटोप्सी रिपोर्ट, सुशांत के तीनों मोबाइल, लैपटौप आदि चीजें सीबीआई को सौंप दीं.

सीबीआई की दूसरी टीम ने सुशांत के कुक नीरज और हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा  से पूछताछ की. वहीं सीबीआई की एसपी नूपुर प्रसाद रिया चक्रवर्ती से उन के यूरोप टुअर, सुशांत सिंह से उन के रिलेशन और पैसों से संबंधित जानकारी जुटाने में जुट गईं.

बढ़ती जांच फंसते पेंच

जैसे-जैसे जांच का दायरा आगे बढ़ा, सुशांत के फ्लैटमेट सिद्धार्थ पिठानी और दीपेश सावंत ने सीबीआई से सरकारी गवाह बनने की गुजारिश कर डाली. अब तक अलगअलग बयान दे कर मीडिया को गुमराह करने वाला पिठानी जब सरकारी गवाह बनने को तैयार हुआ तो सीबीआई को अंदेशा हो गया कि सुशांत की आत्महत्या का मामला उतना सीधासरल नहीं है, जितना लग रहा है.

सीबीआई की तीनों टीमें दिल्ली से साथ लाए गए फोरैंसिक एक्सपर्ट्स के साथ मिल कर सुशांत की हत्या या आत्महत्या की गुत्थी को सुलझाने की कोशिश में अपनी जांच का दायरा बढ़ाती जा रही थीं.
इसी के चलते सीबीआई ने सुशांत के फ्लैट पर सुशांत की सुसाइड वाली थ्योरी को समझने के लिए 2 बार सुसाइड सीन रिक्रिएट किया. उस समय सब से पहले सुशांत को फंदे में लटका देखने वाले सिद्धार्थ पिठानी और दीपेश सावंत मौजूद थे. जब सुशांत की बहन मीतू सिंह वहां पहुंचीं, तब सुशांत का शव बैड पर था. बाद में सीबीआई ने सुशांत और दीपेश को गिरफ्तार कर लिया था.

सुशांत के घर वालों ने उन के एकाउंट में 15 करोड़ रुपए होने की बात कही थी. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी जब सीबीआई सुशांत के एकाउंट से गायब 15 करोड़ रुपए की रकम का कोई पता नहीं लगा सकी तो छानबीन के लिए ईडी आगे आई. ईडी ने रिया के 2 मोबाइल फोन कब्जे में ले कर जांच शुरू की.
रिया चूंकि इन फोनों के मैसेज डिलीट कर चुकी थी, इसलिए ईडी ने उस के दोनों फोन क्लोन कर लिए ताकि उन का डाटा रिकवर हो सके.

दूसरी तरफ पूछताछ में रिया ने कहा कि उस का सुशांत के खातों से कोई लेनादेना नहीं था. हालांकि सुशांत अपनी मरजी से उस पर पैसा जरूर खर्च करता था.बहरहाल, ईडी की जांच के दौरान रिया पिछले 5 साल में अपने बैंक स्टेटमेंट में आए पैसों का कोई जवाब नहीं दे सकी. दूसरी तरफ उस का एकाउंट मैनेज करने वाले उस के पिता इंद्रजीत चक्रवर्ती ने भी गलतबयानी की. इस जांच में 52 लाख का गलत ट्रांजैक्शन सामने आया.

रिया चक्रवर्ती और उस के परिवार से पूछताछ में सुशांत के एकाउंट से गायब 15 करोड़ रुपए के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी, फलस्वरूप सुशांत के परिवार द्वारा रिया पर लगाया गया 15 करोड़ रुपए गायब करने का आरोप साबित नहीं हुआ.इस के बावजूद रिया निर्दोष नहीं निकली, क्योंकि ईडी की जांच में पूरे मामले ने नाटकीय घटनाक्रम से गुजरते हुए एक नया ही रुख अपना लिया. बात नेपोटिज्म, प्यार में बेवफाई, 15 करोड़ और गृहक्लेश जैसे उन सभी कारणों, जो सुशांत की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराए गए थे, को लांघती हुई उस नशीली आबोहवा तक जा पहुंची, जिसे ड्रग्स, मारिजुआना और कोकीन जैसे मादक पदार्थ गुलजार करते हैं.

ईडी ने इस संबंध में एनसीबी यानी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को पत्र लिख कर यह बात बता दी. ईडी के बुलावे पर मुंबई आई नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की टीम ने जांच संभाल ली. एनसीबी की जांच जैसेजैसे आगे बढ़ी तो नशे के व्यापार का कड़वा कसैला धुआं बौलीवुड के इंद्रधनुषी आसमान को अपनी गिरफ्त में लेने लगा.एक के बाद एक खुलासा फिल्म इंडस्ट्री के अंदर की गंदगी को उलीचउलीच कर बाहर फेंकने लगा, जिस से सपनों का तिलिस्म टूटने लगा. परदे पर दिखने वाली आदर्शवादिता कहीं अंधेरे में दुबक कर बैठ गई.

फोन का डाटा हुआ रिकवर

दरअसल, एनसीबी ने जब रिया के मोबाइल की रिकवर हुई चैट पढ़नी शुरू की तो पूरे मामले का रुख ही बदल गया. इस चैट में हाई ड्रग्स और एमडीएमए का जिक्र था, जिस में टैलेंट मैनेजर जया शाह ने रिया से कहा, ‘चाय, कौफी या पानी में 4 बूंदें डालो और उसे पिला दो. असर देखने के लिए 30-40 मिनट इंतजार करो.’ मैसेज की ये लाइनें बहुत कुछ कहती थीं.

इस के बाद एनसीबी ने रिवर्स इनवैस्टीगेशन किया. सब से पहले उन एक्टिव पेडलर्स को गिरफ्त में लिया गया, जो ड्रग्स का कारोबार करते हैं. एनसीबी द्वारा गिरफ्तार आरोपी कैजान इब्राहिम ने पूछताछ के दौरान अनुज केशवानी का नाम लिया था. हालांकि कैजान को मुंबई की एस्प्लेनेड कोर्ट से 24 घंटे से भी पहले जमानत मिल गई. कैजान के बयान के आधार पर एनसीबी ने जब अनुज केशवानी के ठिकानों पर छापा मारा तो कथित रूप से हशीश, एलएसडी, मारिजुआना जैसी ड्रग्स बरामद हुईं.

सुशांत के हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा ने एनसीबी को बताया कि मार्च में रिया चक्रवर्ती को ड्रग्स सप्लाई की गई थी, जिसे पहली बार जैद ने और दूसरी बार अब्दुल बासित परिहार ने शौविक को दिया था. अब्दुल बासित ने अपने बयान में कहा कि वह शौविक चक्रवर्ती के कहने पर जैद विलात्रा और कैजान इब्राहिम से ड्रग्स खरीदता था.

जैद विलात्रा को एनसीबी पहले ही गिरफ्तार कर चुकी थी. उस पर कई ड्रग डीलिंग में शामिल रहने का आरोप था. सैमुअल मिरांडा के अनुसार रिया ने उस से 3 बार ड्रग्स देने को कहा था, जिन्हें पेडलर से शौविक ने लिया था.रिया और शौविक चक्रवर्ती की 17 मार्च को हुई वाट्सऐप चैट सामने आई तो उस में भी ड्रग्स का जिक्र था. इन सारे सबूतों के बाद एनसीबी का शिकंजा रिया के इर्दगिर्द कसता गया. जब पूछताछ के दौरान रिया संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई तो अगले दिन एनसीबी ने रिया और शौविक को आमनेसामने बैठा कर सवाल करने शुरू कर दिए.

आखिर फंस ही गई रिया

सूत्रों के अनुसार रिया टालने वाले जवाब देती रही. तब एनसीबी ने रिया को उस के वाट्सऐप चैट दिखा कर पूछा कि वह ड्रग्स लेती थी या नहीं, इस पर रिया ने इनकार कर दिया.अंतत: 3 तीन दिन चली 20 घंटों की लंबी पूछताछ के बाद 8 सितंबर को रिया चक्रवर्ती गिरफ्तार कर ली गई. उस पर ड्रग सिंडीकेट का हिस्सा होने का आरोप लगाते हुए एनसीबी ने कहा कि केस से जुड़ी जो भी ड्रग डील हुई, उन्हें रिया ने फाइनैंस किया था.एनसीबी ने इस केस में रिया, शौविक चक्रवर्ती, सुशांत के हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा और सुशांत के घरेलू नौकर दीपेश सावंत सहित 8 आरोपियों को गिरफ्तार किया. ड्र्रग्स केस में दीपेश पर सैमुअल ने आरोप लगाया था.

रिया चक्रवर्ती की गिरफ्तारी के बाद उस के वकील सतीश मानशिंदे ने कहा कि 3 एजेंसियां अभिनेत्री (रिया) के पीछे इसलिए पड़ी हैं क्योंकि उन्होंने ऐसे शख्स से प्यार किया जो नशे का आदी था और जिसे मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं थीं. वह ड्रग एडिक्ट से प्यार करने की सजा भुगत रही हैं, जो कई सालों से मानसिक रूप से बीमार था.ज्ञातव्य हो कि ड्रग्स केस में नाम आने के बाद रिया चक्रवर्ती ने कहा था कि सुशांत उस से मिलने से पहले ही मारिजुआना लेते थे. साथ ही यह भी बताया कि सुशांत दिन भर में मारिजुआना भरी 3-4 सिगरेट पी जाते थे. वह उन्हें रोकने की कोशिश भी करती थी लेकिन एडिक्शन के चलते सुशांत के लिए मारिजुआना का इंतजाम उसी को करना पड़ता था. रिया की इस बात में कितनी सच्चाई है यह तो नहीं पता, लेकिन इतना जरूर है कि सुशांत ड्रग्स की चपेट में आ चुके थे. एनसीबी के अनुसार सुशांत जो सिगरेट पीते थे, उस में ड्रग्स होती थी, जिस की वजह से उन की मानसिक हालत खराब हो रही थी. एनसीबी ने यह बात सीबीआई को बताई तो सीबीआई ने अपनी जांच को गति देनी शुरू कर दी.
जबकि सुशांत के डिप्रेशन का इलाज करने वाले 2 डाक्टरों ने पूछताछ के दौरान मुंबई पुलिस को बयान दिया था कि सुशांत डिप्रेशन, तनाव, चिंता और पायपोलर डिसऔर्डर के शिकार थे.

डाक्टरों के अनुसार सुशांत ने दवाइयां लेनी बंद कर दी थीं, जिस से उन की हालत बिगड़ती चली गई और उन्हें खुद को संभालना मुश्किल हो गया.

सीबीआई ने बुलाए एम्स के डाक्टर

इतना ही नहीं, मुंबई पुलिस ने सुशांत की जिस मौत को देखते ही आत्महत्या बता दिया था, सीबीआई ने उसे अपने तरीके से इनवैस्टीगेट किया, यहां तक कि देश के सर्वोच्च मैडिकल इंस्टीट्यूट एम्स के 3 फोरैंसिक एक्सपर्ट्स की टीम मुंबई बुलाई गई. इस टीम ने मुंबई पहुंच कर इस केस की जांच शुरू कर दी. इस जांच में कूपर अस्पताल के डाक्टरों से पूछताछ भी शामिल थी, जिन्होंने सुशांत की आटोप्सी की थी. एम्स की टीम ने सुशांत के गले में मौजूद जख्म के निशान को ले कर आटोप्सी करने वाले डाक्टरों से लंबी पूछताछ की.

साथ ही एम्स ने सुशांत के विसरा सैंपल की दोबारा जांच का निर्णय लिया ताकि यह पता चल सके कि सुशांत को कोई जहर या कोई ऐसा ड्रग तो नहीं दिया गया था, जो घातक हो. हालांकि सुशांत का विसरा मात्र 20 परसेंट ही बचा था, बाकी मुंबई पुलिस जांच के दौरान इस्तेमाल कर चुकी थी. ऐसे में एम्स के फोरैंसिक डिपार्टमेंट के लिए यह चुनौती और भी मुश्किल थी.

वैसे भी सुशांत केस में इतना झूठ, इतनी बयानबाजी और न्यूज चैनलों द्वारा इतना इनवैस्टीगेशन किया जा चुका है कि सच अपने मुद्दे से भटक कर बहुत पीछे रह गया. जिसतिस के बयानों और झूठ पर आधारित मनगढ़ंत किस्से न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर तैरतेगूंजते रहे, जिस में सब से ज्यादा झूठ सुशांत की गर्लफ्रैंड रही रिया चक्रवर्ती ने और उन के फ्लैटमेट रहे सिद्धार्थ पिठानी ने ही बोला, जबकि ये दोनों ही उन के सब से ज्यादा करीबी थे.

यहां तक कि सिद्धार्थ ने सीबीआई को गुमराह करने में भी कसर नहीं छोड़ी. सिद्धार्थ को इस बात की जानकारी जनवरी से ही थी कि सुशांत को सिगरेट में ड्रग्स दी जाती है.इस के अलावा सिद्धार्थ ने अपने बयान में कहा था कि सुशांत की बौडी को फंदे से मीतू सिंह के कहने पर उतारा था, लेकिन जब सुशांत की बहन मीतू को सिद्धार्थ के सामने लाया गया तो उस ने मीतू सिंह के सामने कहा कि सुशांत का शव जब बैड पर रखा गया तब मीतू वहां पहुंची थीं.

जहां सुशांत ने कथित आत्महत्या की थी, उस घर की जांचपड़ताल करने के बाद एम्स की फोरैंसिक टीम ने इस संदर्भ में कहा था कि सुशांत की मौत के पीछे कोई बड़ा कारण है, क्योंकि सिद्धार्थ पिठानी सुशांत को फांसी के फंदे से उतारने का जो बयान दे रहे हैं, वह संदेह के दायरे में है.साथ ही टीम ने यह आशंका भी जाहिर की कि सुशांत की बौडी को जल्द डिस्पोजल करने के पीछे ड्रग्स भी बड़ी वजह हो सकती है, क्योंकि उन का पीएम (पोस्टमार्टम) सही तरीके से किया होता तो इस का खुलासा हो सकता था. सुशांत केस में मुंबई पुलिस द्वारा कराए गए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट और पोस्टमार्टम के दौरान की गई वीडियोग्राफी के फुटेज व अन्य फोटोग्राफ के आधार पर एम्स की टीम ने सुशांत की बौडी पर चोट के पैटर्न का भी विश्लेषण किया. फोरैंसिक एक्सपर्ट्स को रिपोर्ट में छोटीछोटी कई कमियां नजर आईं, उस से कई सवाल उठते थे.

एम्स की टीम हर पहलू से उन्हीं सवालों के जवाब ढूंढने में जुटी थी, जिस में एक ऐंगल सुशांत की हत्या से भी संबंधित था, क्योंकि एम्स के मैडिकल बोर्ड ने शुरुआत में ही यह आशंका जाहिर की थी कि हत्या के ऐंगल को इग्नोर नहीं किया जा सकता.बहरहाल, 17 सितंबर को एम्स के फोरैंसिक विभाग के विभागाध्यक्ष और सुशांत सिंह राजपूत की संदेहास्पद मौत की जांच के लिए बनाए गए बोर्ड के चेयरमैन डा. सुधीर गुप्ता ने बयान जारी करते हुए कहा कि अगले हफ्ते मैडिकल बोर्ड अपनी राय सीबीआई को सौंप देगा और बोर्ड की राय निर्णायक होगी.

यानी सुशांत सिंह राजपूत के घरवालों और उन के चाहने वालों को अपने प्रिय स्टार की मौत का सच जानने के लिए कुछ और इंतजार करना होगा. उस स्टार की, जो चांद के ख्वाब देखता था, सितारों की दुनिया में जीता था और खुद स्टार बन कर रुपहले परदे पर चमकता था. यह सब के लिए अकल्पनीय था कि सुशांत इतनी जल्दी और इतना अचानक हमेशा के लिए अपनी सितारों की दुनिया में चला जाएगा और उसी का हिस्सा बन जाएगा.

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