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Crime Story: साजन की सहेली

इस कहानी का घटनाक्रम कुछकुछ श्रीदेवी और उर्मिला मातोंडकर की फिल्म ‘जुदाई’ जैसा था. काश…

या‘कांटा बुरा करैत का और भादों की घाम, सौत बुरी हो चून की और साझे का काम’.

कहावत सौ फीसदी सच है लेकिन 36 वर्षीय हनीफा बेगम पर यह कहावत लागू नहीं हुई. उस के पति अंसार शाह ने जब वंदना सोनी के बारे में उसे बताया कि उस से उस के शारीरिक संबंध हैं और वह भी बीवी जैसी ही है तो न जाने क्यों हनीफा उस पर भड़की नहीं थी, न ही उस ने मर्द जात को कोसा था. और न ही उस के सुहाग पर डाका डालने वाली वंदना को भलाबुरा कहा था. भोपाल इंदौर हाइवे के बीचोबीच बसे छोटे से कस्बे आष्टा को देख गंगाजमुनी तहजीब की यादें ताजा हो जाती हैं. इस कस्बे के हिंदू मुसलिम बड़े सद्भाव से रहते हैं और आमतौर पर दंगेफसाद और धार्मिक विवादों से उन का कोई लेनादेना नहीं है.

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मारुपुरा आष्टा का पुराना घना मोहल्ला है. अन्नू शाह यहां के पुराने बाशिंदे हैं, जिन्हें इस कस्बे में हर कोई जानता है. उन का बेटा अंसार शाह बस कंडक्टर है. अंसार बहुत ज्यादा खूबसूरत तो नहीं लेकिन आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक है. 3 बच्चों के पिता अंसार की जिंदगी में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन करीब 3 साल पहले वंदना उस की जिंदगी में आई तो जिंदगी के साथसाथ दिल में भी तूफान मचा गई.

34 वर्षीय वंदना भरेपूरे बदन की मालकिन होने के साथ सादगी भरे सौंदर्य की भी मिसाल थी. मूलरूप से भोपाल के नजदीक मंडीदीप की रहने वाली वंदना ने इस उम्र में आ कर भी शादी नहीं की थी. वह अभी घरगृहस्थी के झंझट में इसलिए भी नहीं पड़ना चाहती थी ताकि घर वालों की मदद कर सके. उस के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. दोनों बड़ी बहनों की शादियों में मांबाप का जमा किया हुआ सारा पैसा लग गया था.

पढ़लिख कर वंदना ने नौकरी के लिए हाथपांव मारे तो उसे स्वास्थ्य विभाग में अपनी मां की तरह एएनएम के पद पर नौकरी मिल गई. एएनएम गैरतकनीकी पद है जिसे आम लोग नर्स ही कहते और समझते हैं. आजकल सरकारी नौकरी चाहे जो भी हो, किसी भी बेरोजगार के लिए किसी वरदान से कम नहीं होती. नौकरी लग गई तो वंदना जिंदगी भर के लिए बेफिक्र हो गई. एएनएम की नौकरी हालांकि बहुत आसान नहीं है, क्योंकि इस में अपने क्षेत्र के गांवगांव जा कर काम करना पड़ता है.

वंदना को इस में कोई खास कठिनाई नहीं हुई क्योंकि उसे इस नौकरी के बारे में बहुत कुछ पहले से ही मालूम था. कठिनाई तब पेश आई जब उस का तबादला आष्टा हो गया. चूंकि मंडीदीप में रह कर कोई 75 किलोमीटर दूर आष्टा में नौकरी करना मुश्किल था, इसलिए वंदना ने आष्टा में ही किराए का मकान ले लिया. कुछ ही दिनों में उसे आष्टा के सरकारी अस्पताल और शहर की आबोहवा समझ आ गई.

सरकारी योजनाओं के प्रचारप्रसार और ग्रामीणों को स्वास्थ्य जागरुकता के लिए प्रेरित करने के लिए उसे आसपास के गांवों में भी जाना पड़ता था. कई गांव ऐसे थे, जहां वह अपनी स्कूटी से नहीं जा सकती थी, इसलिए उस ने बस से आनाजाना शुरू कर दिया.

फील्ड की नौकरी करने वाली अधिकांश लड़कियां बस से ही सफर करती हैं, यही वंदना भी करने लगी. यह भी इत्तफाक की बात थी कि जिन गांवों की जिम्मेदारी उसे मिली थी, वहां वही बस जाती थी, जिस में अंसार कंडक्टर था. बस से अपडाउन करने वाली लड़कियों की एक बड़ी परेशानी सीट और जगह का न मिलना होती है, जिसे उस के लिए अंसार ने आसान कर दिया.

जब भी वंदना बस में चढ़ती थी तो अंसार बड़े सम्मान और नम्रता से उस के लिए सीट मुहैया करा देता था. इतना ही नहीं, बस स्टैंड के अलावा सफर के दौरान भी वह वंदना का पूरा खयाल रखता था कि उसे किसी किस्म की दिक्कत न हो. चायपानी वगैरह का इंतजाम वह दौड़ कर करता था, जिस से वंदना का दिल खुश हो जाता था. जैसा कि आमतौर पर होता है, साथ चलते और वक्त गुजारते दोनों में बातचीत होने लगी.

एक अविवाहित युवती जिस ने पहले कभी प्यार न किया हो, वह पुरुष के जिन गुणों पर रीझ सकती है वे सब अंसार में थे. धीरेधीरे कैसे और कब वह उस की तरफ आकर्षित होने लगी, इस का अहसास भी उसे नहीं हुआ. प्यार शायद इसीलिए अजीब चीज कही जाती है कि इस के होने का अहसास अकसर होने के बाद ही होता है. इधर अंसार भी देख रहा था कि वंदना मैडम का झुकाव उस की तरफ बढ़ रहा है तो पहले वह हिचकिचाया.

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कम पढ़ेलिखे अंसार की हिचकिचाहट की वजहें भी वाजिब थीं. पहली वजह तो यह कि वह मुसलमान था, दूसरी यह कि वह शादीशुदा और 3 बच्चों का बाप था और तीसरी यह कि सरकारी नौकरी वाली लड़की का इश्क की हद तक झुकाव ही उस के लिए ख्वाब सरीखा था. शायद उस के बारे में जान कर अपने पांव पीछे खींच ले, इसलिए उस ने वंदना को पहले ही अपने बारे में सब कुछ बता दिया था.

अंसार के प्यार में अंधी हो चली वंदना अपनीजिंदगी के पहले और अनूठे अहसास की हत्या शायद नहीं होने देना चाहती थी, इसलिए उस ने सब कुछ कबूल कर लिया.

आग दोनों तरफ बराबरी से लगी हो तो इश्क की आंधी में अच्छेअच्छे उड़ जाते हैं. यही वंदना और अंसार के साथ हो रहा था. दोनों अब बेतकल्लुफ हो कर एकदूसरे से हर तरह की बातें करने लगे थे. मिलने की तो कोई दिक्कत थी ही नहीं. दोनों बसस्टैंड और बस में साथ रहते थे.

चाहत जब बातचीत, हंसीमजाक और कसमों वादों से आगे बढ़ते हुए शरीर की जरूरत तक आ पहुंची तो दोनों को लगा कि मोहब्बत का अलिफ बे तो बहुत पढ़ लिया, लेकिन अब मोहब्बत को उस के मुकम्मल सफर तक पहुंचा दिया जाए.

लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए एकांत का होना जरूरी था, जिस से दोनों पूरी तरह एकदूसरे के हो सकें यानी एकदूसरे में समा सकें. छोटे घने कस्बे में एकांत मिलना आसान काम भी नहीं था, लेकिन छटपटाते इन आशिकों ने उस का भी रास्ता निकाल लिया.

अंसार ने पेशकश की कि अगर वंदना उस के मकान में बहैसियत किराएदार रहने लगे तो सारी मुरादें पूरी हो जाएंगी. दोनों चौबीसों घंटे एकदूसरे की नजरों के सामने रहेंगे और जब भी मौका मिलेगा तब एकांत में मिल भी लिया करेंगे.

जिंदगी के सुखद अनुभवों में से एक को तरस रही वंदना को भला इस पर क्या ऐतराज हो सकता था, लिहाजा वह झट तैयार हो गई. देखते ही देखते वह अब अपने आशिक के मकान में किराएदार के रूप में रहने लगी.

एकांत में मिलने के खतरों और खलल से वंदना तो ज्यादा वाकिफ नहीं थी, लेकिन अंसार को अंदाजा था कि आज नहीं तो कल पकड़े जाएंगे. क्योंकि पास घर होने पर पत्नी हनीफा और बच्चों की नजर उन पर पड़ सकती थी. लिहाजा उस ने बड़े ही शातिराना अंदाज से इस समस्या का भी तोड़ निकाल लिया.

अंसार ने हनीफा को सच बता दिया साथ ही यह इशारा भी कर दिया कि वंदना अपनी सारी पगार उस के घरपरिवार पर खर्च करेगी. उस का मकसद तो महज मौजमस्ती करना है.

हनीफा को सौदा बुरा नहीं लगा क्योंकि अंसार की आमदनी से उस की जरूरतें तो पूरी हो जाती थीं लेकिन सब कुछ खरीद लेने की ख्वाहिशें पूरी नहीं होती थीं. इस के अलावा वह इस बात से भी बेफिक्र थी कि वंदना चूंकि हिंदू है इसलिए अंसार उस से शादी करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा.

लिहाजा उस ने फिल्म ‘जुदाई’ की श्रीदेवी की तर्ज पर कुछ हजार रुपयों के लिए शौहर का बंटवारा मंजूर कर लिया क्योंकि श्रीदेवी की तरह करोड़ों में सोचने और पति को बेचने की उस की हैसियत नहीं थी.अब उर्मिला मातोंडकर बनी वंदना ठाठ से उस के घर के बगल में आ कर रहने लगी. खुद हनीफा ने उसे यह कहते अंसार से जिस्मानी ताल्लुकात बनाने की इजाजत दे दी थी कि अगर अंसार और वह एकदूसरे के साथ तनहाई का कुछ वक्त गुजारना चाहते हैं तो उसे कोई ऐतराज नहीं.

अब दोनों सहेलियों की तरह रहने लगीं. अकसर खुद हनीफा इस बात का खयाल रखने लगी थी कि जब अंसार वंदना के पास हो तो कोई अड़ंगा पेश न आए. नए अहसास और आनंद के सागर में गोते लगा रही वंदना अब अंसार को ही पति मानने लगी थी और उस के घर पर खुले हाथों से खर्च करती थी. अब वंदना और हनीफा ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ की नूतन और आशा पारेख की तरह रह रही थीं.

अंसार के तो दोनों हाथों में लड्डू थे. बासी हो चली हनीफा और ताजीताजी वंदना में जमीनआसमान का फर्क था. लेकिन बीवी से बेईमानी करने का उस का कोई इरादा नहीं था, जिस ने उस की चाहत में कोई रोड़ा नहीं अटकाया था, उलटे मददगार ही बनी थी. लिहाजा जिंदगी मजे से कट रही थी. दिन भर वह बस पर रहता था और वंदना अस्पताल में लेकिन रात होते ही दोनों एक कमरे में एक पलंग पर देह सुख ले रहे होते थे.

कुछ महीने तो मौजमस्ती में गुजरे लेकिन जाने क्यों वंदना को लगने लगा था कि अंसार उस का हो कर भी उस का नहीं है और हनीफा ने कोई दरियादिली नहीं दिखाई है बल्कि उस ने उस के पैसों के लिए पति का सौदा किया है.

यह बात जेहन में आते ही वंदना परेशान हो उठी कि आखिर कब तक वह अंसार की रखैल बन कर रहेगी या फिर उसे रखैल बना कर रखेगी. अंसार पर अपना सब कुछ लुटा चुकी वंदना को लगने लगा था कि अंसार बीवीबच्चों की चाहत में शायद ही उस से शादी करे, लिहाजा उस ने उस के परिवारपर पैसा खर्च करना बंद कर दिया.

इस का नतीजा वही हुआ जिस की वंदना को उम्मीद थी. जब पैसा मिलना बंद हो गया तो हनीफा उस से न केवल खिंचीखिंची रहने लगी बल्कि बेरुखी से भी पेश आने लगी. हनीफा के बदले तेवर देख वंदना ने अंसार पर शादी के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया. इस बाबत वह धर्म परिवर्तन करने को भी तैयार हो गई थी.

जल्द ही दोनों में लड़ाई होने लगी और दोनों एकदूसरे को कोसने लगीं. अब हनीफा के दिल में भी यह डर बैठ गया था कि कहीं ऐसा न हो कि दुनियाजहान को धता बताते हुए अंसार वंदना से शादी कर ही डाले. नए कानून के तहत वह इस बात को ले कर तो बेफिक्र थी कि अंसार उसे तलाक नहीं दे सकता, लेकिन दूसरी शादी तो कर ही सकता था.

इधर अंसार की हालत दो पाटों के बीच पिसने वाले अनाज की तरह होने लगी थी. वह न तो वंदना को छोड़ पा रहा था और न ही हनीफा को. ऐसे में उस ने वंदना से शादी करने को कहा तो वंदना इस जिद पर अड़ गई कि पहले हनीफा को तलाक दो फिर हमारी शादी होगी.

जब बात नहीं बनी तो रोजाना की कलह से बचने के लिए वंदना अलग मकान ले कर रहने लगी. लेकिन इस से अंसार का उस के यहां आनाजाना बंद या कम नहीं हुआ. अब दोनों का डर खत्म हो चला था इसलिए दोनों वंदना के नए घर में मिलने लगे.

वंदना में कशिश भी थी और वह सरकारी नौकरी भी करती थी, इसलिए अंसार को लगा कि क्यों न इस से शादी कर ली जाए. पर वंदना की हनीफा से तलाक की शर्त पूरी कर पाना उस के लिए मुश्किल लग रहा था. जब यह तय हो गया कि दोनों में से किसी एक हाथ का लड्डू तो उसे छोड़ना पड़ेगा, तब उस ने हनीफा से तलाक की बात की.

इस पर हनीफा कांप उठी. अब उसे ‘जुदाई’ की श्रीदेवी की तरह अपनी गलती समझ आ रही थी, लेकिन उस वक्त उस के हाथ में सिवाय पछताने के कुछ नहीं बचा था. अभी तो शौहर ने कहा ही है लेकिन कल को तलाक दे ही दे तो वह क्या कर लेगी, यह सोचते ही हनीफा के दिमाग में एक खतरनाक इरादा पनपने लगा.

आष्टा से सटा जिला है शाजापुर, जिस का एक कस्बा है बेरछा, जो मावा उत्पादन के लिए प्रदेश भर में मशहूर है. बीती पहली फरवरी को सुबह बेरछा के गांव धुंसी के चौकीदार इंदर सिंह बागरी ने थाने में इत्तला दी कि जगदीश पाटीदार नाम के किसान के खेत में एक जली हुई लाश पड़ी है.

बेरछा थाने की तेजतर्रार प्रभारी दीप्ति शिंदे खबर मिलते ही पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचीं. एसपी शैलेंद्र सिंह के निर्देश पर एफएसएल अधिकारी आर.सी. भाटी भी वहां पहुंच चुके थे. लाश इतनी जल चुकी थी कि उसे किसी भी तरह पहचानना नामुमकिन था.

बारीकी से जांच करने पर लाश के नीचे से चाबियों का गुच्छा और अधजला थरमस मिला. लाश के दाहिने पांव में बिछिए और बाएं हाथ की कलाई में चूडि़यां मिलने से यह भर तय हो पाया कि लाश किसी महिला की है. आसपास उड़ कर गिरे. कई अधजले कागज भी बरामद हुए. इन कागजों की लिखावट को लेंस से पढ़ने पर जो शब्द पुलिस वालों को समझ आए वे मुगलई रोड, श्रमिक, जिला स्वास्थ्य अधिकारी, इनवास, इंजेक्शन की बौटल और चिकित्सक आदि थे.

इन शब्दों से अंदाजा लगाया गया कि मृतका का संबंध जरूर स्वास्थ्य विभाग से है. साफ दिख रहा था कि महिला की हत्या कर उस की लाश को पहचान छिपाने की गरज से जलाया गया है. अब तक गांव वालों की भीड़ घटनास्थल पर लग गई थी जिन से पूछताछ करने पर पता चला कि एक दिन पहले एक मारुति वैन इस इलाके में देखी गई थी.

इन साक्ष्यों से पुलिस वालों के हाथ कुछ खास नहीं लग रहा था. ऐसे में मुगलई रोड गांव को आधार बना कर पुलिस जांच आगे बढ़ी तो मालूम हुआ कि यह गांव सीहोर जिले की आष्टा तहसील का है.

आष्टा थाने में पूछताछ करने पर पुलिस का मकसद पूरा हो गया, जहां से पता चला कि मंडीदीप निवासी 2 महिलाएं नीलम और सुनंदा सोनी ने स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत अपनी बहन वंदना सोनी की गुमशुदगी दर्ज कराई है. इन दोनों बहनों ने बिछिए और चूडि़यां देख कर वंदना के होने की पुष्टि कर दी.

लाश पहचान में आ गई लेकिन हत्यारे गिरफ्त से बाहर थे, लिहाजा इंसपेक्टर दीप्ति शिंदे सीधे आष्टा अस्पताल पहुंचीं और सीसीटीवी फुटेज निकलवाए, जिन से पता चला कि 31 जनवरी की दोपहर 12 बजे तक वंदना अस्पताल में थी और आखिरी बार किसी एक महिला व बच्ची के साथ बाहर जाती हुई दिखी थी.

पुलिसिया पूछताछ में यह बात भी उजागर हुई कि वंदना कुछ दिन पहले ही बजरंग कालोनी सोनी लौज के पास एक मकान में रहने के लिए आई थी, इस के पहले वह मारूपुरा में अन्नू शाह के मकान में रह रही थी और इस परिवार से उस के बेहद अंतरंग और घनिष्ठ संबंध थे. लेकिन कुछ दिनों से वंदना और हनीफा में लड़ाई होने लगी थी.

सुनंदा और नीलम ने अपने बयानों में बता दिया कि वंदना और अंसार के बीच प्रेम प्रसंग था, जिस के चलते हनीफा उसे परेशान कर रही थी. यह बात वंदना ने फोन पर अपनी बहनों को बताई थी.

शक होने पर पुलिस जब अंसार के घर पहुंची तो पता चला कि हनीफा मायके गई हुई है. इस से पुलिस का शक यकीन में बदलता नजर आया. पुलिस काररवाई आगे बढ़ती, इस के पहले ही स्वर्णकार समाज ने आरोपियों की गिरफ्तारी को ले कर अधिकारियों व मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिए और जुलूस भी निकाला.

इसी दौरान आष्टा पुलिस को उस वैन ड्राइवर का पता चल गया जो बेरछा में देखी गई थी. पूछताछ में ड्राइवर ने बताया कि हनीफा और उस का एक साथी वैन में कुछ सामान भर कर ले गए थे. हनीफा के साथी का नाम गुड्डू उर्फ रामचरण पता चला, जो पेशे से तांत्रिक भी था.

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अब करने को कुछ नहीं रह गया था. पुलिस ने जल्द ही अंसार सहित हनीफा और रामचरण को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में हैरानी की बात अंसार द्वारा खुद को वंदना का कातिल बताना थी. जब पुलिस ने इस हादसे का रिक्रिएशन यानी नाट्य रूपांतरण कराया तो अंसार गड़बड़ाता दिखा.

अब हनीफा से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने सच उगल दिया कि घटना वाले दिन वह अस्पताल गई थी और वंदना को झांसा दे कर घर ले आई थी. उस का किराएदार गुड्डू पहले से ही तैयार था. वंदना और हनीफा के बीच की बातचीत जब तकरार और तूतूमैंमैं में बदली तो हनीफा ने वंदना के सिर पर रौड दे मारी. वंदना बेहोश हो गई तो गुड्डू और हनीफा ने गला रेत कर उस की हत्या कर दी.

वंदना की लाश दोनों ने प्लास्टिक के एक ड्रम में ठूंसी और उसे वैन में रख कर 85 किलोमीटर दूर बेरछा के लिए निकल गए. वैन ड्राइवर को हालांकि इन पर शक हो रहा था कि कुछ गड़बड़ है लेकिन अपनी ड्यूटी बजाते हुए उस ने ज्यादा पूछताछ नहीं की. ड्राइवर ने ड्रम गुड्डू की बताई जगह उतार दिया और आष्टा वापस आ गया.

लाश वाले ड्रम को हनीफा के पास छोड़ कर गुड्डू गांव के पैट्रोल पंप से 2 लीटर पैट्रोल लाया और दोनों ने मिल कर वंदना की लाश को जला दिया. जलाने के बाद गुड्डू भोपाल अपने एक दोस्त देवेंद्र ठाकुर के पास आ गया. उसे भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. हनीफा वापस आष्टा आ गई थी.

इन दोनों का अंदाजा था कि जली लाश पुलिस पहचान नहीं पाएगी और दोनों पकड़ से बाहर रहेंगे. हत्या के समय अंसार बस में ड्यूटी पर था जो हनीफा को बचाने के लिए कत्ल का इलजाम अपने ऊपर ले कर पुलिस को गुमराह कर रहा था.

आरोपी यानी हत्यारे अब सलाखों के पीछे हैं. वंदना ने जमाने की परवाह न करते हुए एक शादीशुदा मर्द से प्यार कर उस के साथ ही जीने की जिद करने की गलती की थी तो हनीफा पैसों के लालच में आ कर पति का सौदा करने की चूक कर बैठी थी.

बाद में जब अंसार वंदना से शादी करने पर उतारू हो गया तो उस ने सौतन को ठिकाने लगा दिया. अंसार ने खूब मौज की हालांकि वह भूल गया था कि बीवीबच्चों के होते हुए एक कुंवारी लड़की से इश्क लड़ाना जुर्म नहीं पर गलत बात जरूर है.

वो कोना : क्यों काले हो गए नीरा की जिंदगी के कुछ पुराने पन्ने

कामवाली बाई चंदा से गैस्टरूम की सफाई कराते समय जैसे ही नीरा ने डस्टबिन खोला, उस में पड़ी बीयर की बोतलों से आ रही शराब की बदबू उस के नथुनों में जा घुसी. इस से उस का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. वह तमतमाती हुई कमरे से बाहर निकली और जोर से चिल्लाई, ‘‘रोहन…रोहन, जल्दी नीचे आओ. मुझे अभी तुम से बात करनी है.’’ उस का तमतमाया चेहरा देख कर चंदा डर के कारण एक कोने में खड़ी हो गई. रोहन के साथसाथ दोनों बेटियां 9 वर्षीया इरा और 12 वर्षीया इला भी हड़बड़ाती सी कमरे से बाहर आ गईं. ‘‘ये बीयर की बोतलें घर में कहां से आईं रोहन?’’ नीरा ने क्रोध से पूछा.

‘‘आशीष लाया था, पर तुम इतने गुस्से में क्यों हो? आखिर हुआ क्या?’’ हमेशा शांत और खुश रहने वाली नीरा को इतना आक्रोशित देख कर रोहन ने हैरान होते हुए पूछा. ‘‘ये बीयर की बोतलें मेरे घर में क्यों आईं और किस ने डिं्रक की?’’ नीरा ने फिर गुस्से से चीखते हुए पूछा.

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‘‘अरे, कल तुम मम्मी के यहां गई थीं न, तब मेरे कुछ दोस्त यहां आ गए. उन में से एक का जन्मदिन था. तो खापी कर चले गए. पर इस में इतना आसमान सिर पर उठाने की क्या बात है?’’ रोहन ने तनिक झुंझलाते हुए कहा. ‘‘रोहन, तुम्हें पता है कि मुझे ये सब बिलकुल भी पसंद नहीं है. और मेरे ही घर में, मेरा ही पति.’’ नीरा चीखती हुई बोली और जोरजोर से रोने लगी. नीरा का रौद्र रूप देख कर सभी हैरान थे. थोड़ी देर बाद इरा और इला चुपचाप तैयार हो कर अपने स्कूल चली गईं. नाश्ता कर के रोहन औफिस जाने से पहले नीरा से बोला, ‘‘चंदा के जाने के बाद तुम थोड़ा आराम कर लेना, तुम्हारी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही.’’

नीरा बिना कोई उत्तर दिए शांत बैठी रही. चंदा के जाने के साथ ही घर का काम भी खत्म हो गया. डायनिंग टेबल पर खाना लगा कर नीरा आंखें बंद कर के लेटी ही थी कि बड़ी बेटी इला स्कूल से आ गई. दरवाजा खोल कर वह फिर बिस्तर पर आ लेटी. इला अपना खाना ले कर मां के पास ही आ कर बैठ गई.

नीरा का मूड कुछ ठीक देख कर वह धीरे से बोली, ‘‘मां, सुबह आप को इतना गुस्सा क्यों आ गया था. इतना गुस्सा होते मैं ने आप को कभी नहीं देखा.’’

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‘‘तो इस से पहले तुम्हारे पापा ने भी तो ऐसा काम नहीं किया था,’’ नीरा दुखी होती हुई बोली. ‘‘मम्मा, पापा तो कभी नहीं पीते, हो सकता है कोई और ले कर आ गया हो. आजकल तो यह फैशन माना जाता है, मां.’’

‘‘फैशन को स्थायी आदत बनते देर नहीं लगती, बेटा. अब तू जा और अपनी पढ़ाई कर. तेरी इस सब में पड़ने की उम्र नहीं है,’’ नीरा ने इला को टालने की गरज से कहा. ‘‘मां, आप भी न,’’ इला ने तुनक कर कहा और अपने रूम में चली गई.

नीरा सोचने लगी, इला को तो उस ने समझा दिया, वह बहल भी गई पर अपने मन के उस कोने को वह कहां ले जाए जहां सिर्फ दुख ही दुख था. वह अपने बचपन में बहुत कुछ देख चुकी थी. उस के पापा रेलवे में थे और कभीकभार पीना उन के शौक में शामिल था. वे जब भी पी कर आते, मम्मीपापा दोनों में जम कर लड़ाई होती. 7 साल की बच्ची नीरा डर कर एक कोने में खड़ी हो कर दोनों को झगड़ते देखती और फिर सो जाती. अगली सुबह मांपापा को प्यार से बातें करते देखती तो फिर खुश हो जाती. धीरेधीरे नीरा को समझ आने लगा था कि मां को पापा का शराब पीना बिलकुल भी पसंद नहीं था. पापा मां से कभी न पीने का प्रौमिस करते और कुछ दिनों बाद फिर पी कर आ जाते और मां गुस्से से पागल हो जातीं.

उस समय वह 10 साल की थी जब मामा की शादी में वे लोग आगरा गए थे. पापा उस दिन कुछ ज्यादा ही पी कर आ गए थे, इतनी कि उन से ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. नाना के घर में ये सब मना था. मामा और नाना की आंखों से मानो क्रोध के अंगारे निकल रहे थे. मां एक कोने में खड़ी आंसू बहा रही थीं. आज तक उन्होंने मायके में किसी को पापा के शराब पीने के बारे में नहीं बताया था. पर आज पापा ने उन्हें सब के सामने बेइज्जत कर दिया था. मामा किसी तरह उन्हें बैड पर लिटा कर आ गए थे. तब से उस के मन में भी शराब के प्रति नफरत भर गई थी.

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अचानक इला की आवाज से वह पुरानी बातों से बाहर निकली. ‘‘मां, पापा आ गए हैं, चाय बना दी है, आप भी आ कर पी लीजिए.’’

वह उठ कर डायनिंग टेबल पर आ कर बैठ गई और खामोशी से चाय पीने लगी.

‘‘कैसी तबीयत है अब नीरा?’’ रोहन ने प्यार से पूछा. ‘‘मेरी तबीयत को क्या हुआ है?’’ नीरा तुनक कर बोली.

‘‘वह सुबह, तुम…’’ रोहन कुछ बोलता उस से पहले ही नीरा ने रोहन का हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोली, ‘‘रोहन, प्लीज दोबारा ऐसा मत करना. तुम तो कभी नहीं पीते थे, फिर अब ये दोस्तों को घर ला कर पीनापिलाना कैसे शुरू कर दिया?’’ ‘‘अरे, मैं कहां पीता हूं. आज शादी को 15 साल हो गए, तुम्हें कभी शिकायत का मौका मिला? पर हां, परहेज भी नहीं है. कालेज में कभीकभार पी लेता था. तुम्हें तो पता ही है कि पिछले महीने मेरा कालेज का दोस्त आशीष तबादला हो कर यहीं आ गया है. उसे लगा कि मैं अभी भी…सो, वही ले कर आ गया. कुछ और मित्र भी थे उस के साथ. तुम थीं नहीं तो यहीं खापी कर चले गए. झूठ नहीं कहूंगा, उन के साथ मैं ने भी थोड़ी सी ली थी. पर मुझे नहीं लगता कि वह इतनी बड़ी बात है जिस के लिए तुम इतनी ज्यादा परेशान हो,’’ रोहन ने प्यार से नीरा को समझाने की कोशिश करते हुए यह कहा तो नीरा की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.

वह भर्राए हुए स्वर में बोली, ‘‘रोहन, आज तक कभी ऐसा अवसर आया ही नहीं जो मैं तुम्हें बताती कि इस शराब के कारण मेरा बचपन, मेरे मातापिता का प्यार सब गुम हो गया और मैं समय से बहुत पहले ही बड़ी हो गई.’’ ‘‘क्या मतलब, पापाजी?’’ रोहन हैरानी से बोला.

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‘‘हां रोहन, पापा डिं्रक करते थे, पर कभीकभार. मां ने अपने घर में कभी ऐसा कुछ नहीं देखा था. पर फिर भी शुरू में उन्होंने अनदेखा किया और पापा से शराब छोड़ने के लिए कहा. पहले जब भी पापा पी कर आते थे, तो चुपचाप आ कर सो जाते थे. धीरेधीरे पापा का पीना बढ़ता गया. जब भी पापा पी कर आते, मां का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचता. दोनों में जम कर बहस होती और हमारा घर महाभारत का मैदान बन जाता था,’’ कहते हुए नीरा एक बार फिर अतीत में पहुंच गई. ‘‘तुम्हें पता है रोहन, जब मैं 12वीं की फाइनल परीक्षा दे रही थी तो एक दिन पापा पी कर घर आ गए. मम्मीपापा में उस दिन बात हाथापाई तक पहुंच गई. पापा गुस्से में घर से बाहर चले गए और रातभर वापस नहीं आए. दोनों को याद भी नहीं रहा कि कल उन की बेटी का एग्जाम है. नतीजा यह हुआ कि अगले दिन होने वाला मेरा कैमिस्ट्री का पेपर शराब की भेंट चढ़ गया. मैं पूरी रात रोती ही रही,’’ नीरा ने उदासी भरे स्वर में कहा.

‘‘ओह, तो इसलिए तुम सुबह गुस्से में थीं. पर आज तक तुम ने इस बारे में कभी बताया ही नहीं,’’ रोहन ने गंभीर स्वर में कहा. ‘‘मैं जब शादी के बाद यहां आई तो सब से ज्यादा खुश इसी बात से थी कि तुम्हारे यहां शराब को कोई हाथ भी नहीं लगाता था. मैं तुम्हें ये बातें बता कर अपने पापा की इमेज खराब नहीं करना चाहती थी. पर आज…’’ नीरा ने गहरी सांस लेते हुए बात अधूरी ही छोड़ दी.

‘‘चलो, अब दुख देने वाली यादों को दिल से निकाल दो. ये बंदा तुम्हारा दीवाना है, जो तुम कहोगी वही करेगा. चलो, हम दोनों मिल कर डिनर की तैयारी करते हैं,’’ रोहन ने हंसते हुए कहा और नीरा को ले कर किचन में चला गया. ‘‘रोहन, तुम सच कह रहे हो न?’’ पहले के अनुभवों से डरी नीरा गैस पर कुकर चढ़ाती हुई बोली.

‘‘हां भई, हां. पर एक बात कहूं नीरा, बुरा मत मानना. चूंकि तुम्हारे पापाजी तो हमारी शादी के 6 माह बाद ही गुजर गए थे पर जितना मैं ने उन्हें तुम्हारे बाबत जाना है, उस से लगता है कि वे सुलझे हुए इंसान थे. फिर उन को पीने की इतनी लत कैसे लग गई कि वे छोड़ ही नहीं पाए. जरूर तुम्हारी मम्मी तुम्हारे पापा को अपना दीवाना नहीं बना पाई होंगी. देखो, तुम ने कैसे मुझे अपने प्यार के जाल में बांध रखा है,’’ रोहन ने माहौल को हलका करने की गरज से नीरा को छेड़ते हुए कहा. ‘‘हां, रोहन, तुम काफी हद तक सही हो. मां ने पापा को कभी समझने की कोशिश नहीं की. पापा अपने परिवार को बहुत चाहते थे और मां उन के परिवार से उतनी ही नफरत करती थीं. अकसर इन्हीं मुद्दों पर बहस शुरू होती, जो झगड़े का रूप ले लेती. पापा गुस्से में घर से बाहर चले जाते और शराब का सहारा ले लेते. हमारे घर में रुपयापैसा सबकुछ था. बस, शांति नहीं थी.

‘‘इसीलिए तो मैं कह रही थी रोहन कि कभीकभार पीना कब हमेशा की लत बन जाती है, इंसान को पता ही नहीं चलता. तुम्हें ताज्जुब होगा कि पापा मेरी शादी के दिन भी खुद को कंट्रोल नहीं कर पाए थे और विदाई से पहले पी कर आए थे. उन का अंत भी शराब से ही हुआ. एक रात नशे में गाड़ी चला कर आ रहे थे कि एक ट्रक ने टक्कर मार दी. उस समय चूंकि मेरी नईनई शादी हुई थी, इसलिए उन की मौत को सिर्फ दुर्घटना के रूप में ही प्रस्तुत किया गया. परंतु सचाई यह थी कि वे शराब के नशे में गाड़ी चला रहे थे,’’ बोलतेबोलते नीरा सिसकने लगी. ‘‘बस, अब और दुखी होने की जरूरत नहीं है. खाना खाते हैं चल कर,’’ रोहन ने नीरा का मूड बदलने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘हां, इला और इरा को भी आवाज लगा दो, तब तक मैं खाना लगाती हूं,’’ नीरा ने आंसू पोंछते हुए कहा और टेबल पर खाना लगाने लगी. ‘‘अरे वाह, आलू के परांठे,’’ इरा कैसरोल में आलू के परांठे देख कर खुशी से चहकती हुई बोली.

‘‘वेरी अनएक्सपैक्टिड, वरना मां का सुबह से मूड देख कर तो मुझे लगा था कि आज खाने में खिचड़ी या दलिया ही मिलने वाला है. पापा, आप ने खाना बनाया?’’ इरा ने मुसकराते हुए तिरछी नजरों से रोहन की ओर देखते हुए पूछा. ‘‘अरे, नहीं भाई, तुम्हारी मम्मी ने ही बनाया है. तुम्हारी मम्मी की यही तो खासियत है कि परिस्थितियां कैसी भी हों, यह अपने बच्चों और पति को नहीं भूलती. क्यों, है न नीरा?’’ रोहन ने मुसकराते हुए उस की ओर देखते हुए कहा तो वह भी अपनी मुसकान को नहीं रोक सकी.

दोनों बेटियां खाना खा कर चली गईं तो रोहन ने नीरा का हाथ अपने हाथ में ले लिया और प्यार से बोला, ‘‘मेरे दिल की रानी, इतनी पीड़ा, इतना दुख अपने मन में समेटे थी और मुझे आज तक आभास ही नहीं हुआ. कैसा पति हूं मैं?’’ रोहन ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘नहीं रोहन, ऐसा मत कहो. खुद को जरा भी दोष मत दो. तुम्हारे जैसा समझदार और प्यार करने वाला पति, फूल सी प्यारी 2 बेटियां और इतने अच्छे सासससुर को पा कर मैं अपनी दुखतकलीफ भूल गई थी. पर आज ये बोतलें देख कर लगा कि अतीत की काली परछाइयां एक बार फिर मुझे घेरने आ गई हैं,’’ नीरा गंभीर स्वर में बोली. ‘‘आज से, बल्कि अभी से ही यह बंदा तुम से प्रौमिस करता है कि शराब या उस से जुड़ी किसी भी चीज को ताउम्र हाथ नहीं लगाएगा. खुश…’’ रोहन ने प्यार से नीरा के गाल थपथपाते हुए कहा, ‘‘दरअसल नीरा, हम पुरुष बड़े अलग मिजाज के होते हैं. हम से जो काम प्यार से करवाया जा सकता है, वह गुस्से और अहं से बिलकुल मुमकिन नहीं है. बस, शायद मम्मीजी से यहीं चूक हो गई. वे प्यार और समझदारी से काम लेतीं तो शायद बात कुछ और होती. वे पापा को समझ नहीं पाईं, पर इस का मतलब यह भी नहीं कि पापा शराब पी कर घर के माहौल को और खराब करते. कभी अच्छे पलों में वे भी तो मां को समझाने की कोशिश कर सकते थे. उन्होंने खुद कभी इसे छोड़ने के बारे में क्यों नहीं सोचा?’’ रोहन बरतन सिंक में रखते हुए धीरे से बोला.

‘‘ऐसा नहीं है रोहन, पापा ने कई बार छोड़ने की कोशिश की पर शायद उन्हें घर में वह कोना ही नहीं मिल पाता था जहां वे सुकून तलाशते थे. दादी, चाचा, बूआ या परिवार के दूसरे सदस्यों के लिए जब भी पापा कुछ करना चाहते, मां बिफर जातीं. पापा घर से दूर और शराब के नजदीक होते गए. न मां खुद को बदल पा रही थीं और न पापा. ऐसा नहीं कि दोनों में प्यार की कोई कमी थी, बस, जैसे ही शराब बीच में आ जाती, घर का पूरा माहौल ही बदल जाता था.’’ ‘‘अरे, बाप रे, 12 बज गए. सुबह मुझे औफिस भी जाना है,’’ कह कर रोहन उसे बैडरूम में ले गया.

जब वह बिस्तर पर लेटी तो रोहन ने उस का सिर अपने सीने पर रख लिया और बोला, ‘‘आज के बाद इस घर में ऐसी कोई चर्चा नहीं होगी.’’ नीरा बरसों से मन में दबी कड़वाहट, दुख, तकलीफ सब भूल कर चैन की नींद सो गई.

पुनरागमन- भाग 3 : मां की ये बचकानी हरकतें आखिर क्या थी

शाम को मां अपने कमरे में अकेली बैठी कसमसा रही थीं. बाहर के कमरे से लगातार बातों के साथसाथ हंसने की भी आवाजें आ रही थीं. ‘क्या करूं, नीरू को बुलाने के लिए आवाज दूं क्या? नहींनहीं, नीरू गुस्सा करेगी. तो फिर? मन भी तो नहीं लग रहा है. मैं भी उसी कमरे में चली जाऊं तो? ये मेहमान भी चले क्यों नहीं जाते. 2 घंटे से चिपके हैं. अभी न जाने कितनी देर तक जमे रहेंगे. मैं पूरे दिन नीरू का इंतजार करती हूं कि शाम को नीरू के साथ बातें करूंगी वरना इस कमरे में अकेले पड़ेपड़े कितना जी घबराता है, किसी को क्या पता?’ अचानक मां के कमरे से ‘हाय मर गई. हे प्रकृति, तू मुझे उठा क्यों नहीं लेती,’ की आवाज आने लगी तो सब का ध्यान मां के कमरे की ओर गया. सब दौड़ते हुए कमरे में पहुंचे तो देखा मां अपने बिस्तर पर पड़ी कराह रही हैं. नीरू ने मां से पूछा, ‘‘क्या हुआ मां, कराह क्यों रही हो?’’

‘‘मेरा पेट गरम हो रहा है. देखो, और गरम होता जा रहा है. गरमी बढ़ती जा रही है. खड़ीखड़ी क्या कर रही हो? मेरे पेट की आग से पूरा घर जल जाएगा. सब जल जाएंगे.’’ मां की बात सुन कर नीरू ने कहा, ‘‘चलो, अस्पताल चलते हैं.’’ फिर नीरू ने मेहमानों से कहा, ‘‘आप आराम से बैठें, मैं मां को डाक्टर को दिखा कर आती हूं.’’

समय की नजाकत को भांपते हुए मेहमानों ने भी कहा, ‘‘आप मां को अस्पताल ले जाएं, हम फिर कभी आ जाएंगे.’’ मेहमानों के जाते ही मां आराम से बैठ गईं और टीवी पर अपना मनपसंद सीरियल देखने लगीं. नीरू गाड़ी की चाबी ले कर कमरे में आई और मां से बोली, ‘‘चलो मां.’’

‘‘कहां?’’ मां ने हंस कर पूछा. ‘‘कहां? अस्पताल और कहां? अभी थोड़ी देर पहले तो तुम तड़प रही थीं,’’ नीरू ने अपना पर्स उठा कर कहा.

‘‘हां, पर अब मैं नहीं जाऊंगी.’’ ‘‘क्यों.’’

‘‘अब मेरी तबीयत ठीक हो गई. मैं अस्पताल नहीं जाऊंगी.’’ ‘‘अरे, फिर से पेट गरम हो गया तो आधी रात को जाना पड़ेगा.’’

‘‘नहीं, नहीं जाना पड़ेगा,’’ मां ने आराम से कहा. ‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि मुझे कुछ हुआ नहीं. मैं तो एकदम ठीक हूं.’’ ‘‘तो वह क्या था जो थोड़ी देर पहले हो रहा था?’’

‘‘वह तो मेहमानों को भगाने के लिए मैं ने नाटक किया था. अच्छा था न?’’ मां ने बड़ी मासूमियत से कहा तो नीरू ने अपना सिर पीट लिया. अब वह मां को क्या बताती कि ये कोई रोज के बैठने वाले मेहमान नहीं थे. इन लोगों को उस ने अपनी बेटी के रिश्ते के लिए बुलाया था. पर क्या हो सकता है.

रोजरोज यही होता था. नीरू औफिस में भी घर की ही चिंता में डूबी रहती. पता नहीं मां ने घर में क्या तबाही मचाई होगी. आया होगी भी या काम छोड़ कर भाग गई होगी? घर जा कर जब सबकुछ ठीक देखती तो चैन की सांस लेती.

नीरू को चिंता में डूबा देख कर उस की सहेली ने पूछा, ‘‘क्या कोई परेशानी की बात तुम्हें खाए जा रही है? पता है आज मीटिंग में तुम्हारा ध्यान ही नहीं था. पता नहीं कहां और किस सोच में डूबी थी तुम. सब का ध्यान तुम्हारी तरफ लगा था. इस तरह तो तुम्हारी नौकरी चली जाएगी. घर, बच्चे और मां सब की जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर ही तो है.’’ ‘‘मां की चिंता ही तो मुझे खाए जा रही है. मां बिलकुल बच्चों जैसा व्यवहार करने लगी हैं. अब बच्चे के लिए तो यह सोच कर सब्र हो जाता है कि थोड़े दिनों की बात है, फिर सब ठीक हो जाएगा. पर मां के लिए क्या करूं?’’

‘‘गोद ले ले.’’ ‘‘क्या कहा, फिर से तो कहना.’’

‘‘कह तो रही हूं, मां को गोद ले ले. उस से तेरी चिंता कम हो जाएगी.’’ ‘‘दिमाग तो खराब नहीं हो गया तेरा? मैं अपनी मां को गोद ले लूं. अगर ले भी लूं तो क्या होगा?’’

‘‘होगा यह कि मां की परेशानी तुझे परेशान नहीं करेगी. तू ने यह तो सुना ही होगा कि बूढ़े और बच्चे बराबर होते हैं. बुढ़ापा बचपन का दोबारा आना होता है. बुढ़ापे में मनुष्य की आदतें, बात, व्यवहार, जिद सब में बचपना दिखाई देने लगता है. अगर हम उन्हें बच्चा समझ कर ही लें तो उन की हरकतों पर गुस्से की जगह प्यार आने लगेगा और घर का माहौल भी अच्छा हो जाएगा. ‘‘अब हम उन से तो यह उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि वे बदल जाएं. बदलना तो हमें पड़ेगा.

‘‘तू अपने मन में यह मान ले कि अब वे तेरी बच्ची हैं और तुझे उन का वैसे ही ध्यान रखना है जैसे कभी वे तुम्हारा रखती थीं. जब भी तुम्हें उन की कोई बात बुरी लगे, तुम अपने बचपन की कोई ऐसी घटना याद करना और उस घटना पर मां की प्रतिक्रिया भी. मुझे यकीन है तेरा गुस्सा कम हो जाएगा. यार, अब हमारी बारी है कुछ करने की.’’ ‘‘मम्मी, अकेले बैठीबैठी हंस क्यों रही हो?’’ नीरू कमरे में अकेली बैठी हंस रही थी, तभी उस की बेटी रितु ने पूछा.

‘‘मैं अपने बचपन को याद कर रही थी. पता है, मैं मां को बहुत तंग करती थी. एक बार मेरी घड़ी खराब हो गई तो मैं अड़ गई कि जब तक नई घड़ी नहीं आएगी, मैं स्कूल नहीं जाऊंगी. छोटे से उस शहर में घड़ी की कोई अच्छी दुकान भी नहीं थी. तब मां पास के शहर जा कर मेरे लिए नई घड़ी लाई थीं. बहुत प्यार करती हैं मां मुझे.’’ ‘‘अच्छा, तो तुम उन पर गुस्सा क्यों करती हो?’’ रितु ने पूछा.

‘‘वह तो उन की परेशानी देख कर गुस्सा आ जाता है. पर अब मैं गुस्सा नहीं करूंगी.’’ ‘‘क्यों? अब ऐसा क्या हो गया?’’

‘‘तुम्हें क्या पता, जब मेरी शादी के बाद तुम्हारे दादादादी मुझे बहुत तंग करने लगे और तुम्हारे पापा भी उन्हीं की भाषा बोलने लगे तब मां मुझे वहां से अपने पास ले आईं. मैं तो उस दुख से कभी उबर ही न पाती अगर मां मुझे सहारा न देतीं. ‘‘अदालतों के चक्कर लगालगा कर, अपने जेवर बेच कर उन्होंने तुम्हारे पापा से न सिर्फ तलाक दिलवाया, मुझे नौकरी करने के लिए प्रेरित भी किया. आज मैं जो भी हूं, यह उन्हीं की मेहनत का फल है. अब मेहनत करने की बारी मेरी है.

‘‘अब मैं ने उन्हें गोद ले लिया है. अब मैं उन की मां हूं और वे मेरी प्यारी सी बच्ची. मैं उन की हर बचकानी हरकत का आनंद लूंगी. वैसे ही जैसे जब तुम छोटी थी तो तुम्हारी शैतानियों, बचकानी बातों पर मैं खुश होती थी. अब यह समय मां के बचपन का पुनरागमन ही तो है. आओ, हम सब मिल कर मां की शैतानियों का आनंद उठाएं. चलो, चलो, चलो मां के कमरे में मस्ती करेंगे सब, मां के साथ.’’ ‘‘नानी उठो, हम आप के साथ मस्ती करने आए हैं,’’ रितु ने कमरे के बाहर से ही चिल्ला कर कहा पर अंदर पहुंच कर जब नानी को सोते देखा तो मायूसी से नीरू से कहा, ‘‘मां, नानी तो आज अभी से सो गईं. चलिए, हम बाहर का चक्कर लगा कर आते हैं.’’

अभी नीरू कमरे के दरवाजे तक ही पहुंची थी कि ऐसी आवाज आने लगी जैसे कोई कुछ खा रहा हो. नीरू तुरंत मुड़ी और उस ने मां की चद्दर खींच दी. चद्दर हटते ही मां घबरा कर बैठ गईं. उन्होंने अपने दोनों हाथ पीछे छिपा लिए.

‘‘दिखाओ मां, तुम्हारे हाथों में क्या है? क्या छिपा रही हो, मुझे दिखाओ?’’ कहते हुए नीरू ने मां के दोनों हाथ पकड़ कर सामने कर लिए, तो देखा मां के हाथों में अधखाए मीठे बिसकुट थे. अगर कोई और दिन होता तो नीरू जोर से चिल्ला कर पूरा घर सिर पर उठा लेती. शुगर बढ़ जाने की चिंता करती पर आज उसे याद आया अपना बचपन जब वह मां के सोने के बाद दोपहर में फ्रिज से निकाल कर स्टोर में छिप कर आईसक्रीम खाती थी. बस, यह याद आते ही उसे हंसी आ गई. उसे आज मां छोटी बच्ची सी लगीं और उस ने मां को प्यार से गले लगा लिया.

पुनरागमन- भाग 2 : मां की ये बचकानी हरकतें आखिर क्या थी

‘‘क्या हुआ?’’ नीरू ने परेशान हो कर पूछा, ‘‘काम छोड़ने की बात क्यों कर रही हो. मां पहले से ऐसी नहीं थीं. तुम बरसों से हमारे यहां काम कर रही हो. अच्छी तरह से जानती हो कि मां कुछ सालों से बच्चों जैसा व्यवहार करने लगी हैं. अब इस कठिन समय में अगर तुम चली जाओगी तो मैं क्या करूंगी? तुम्हारे सहारे ही तो मैं घर और औफिस दोनों संभाल पाती हूं. अच्छा चलो, मैं तुम्हारे पैसे बढ़ा दूंगी पर काम मत छोड़ना, प्लीज. मैं मां को भी समझाऊं्रगी. ‘‘अब बताओ, हुआ क्या है, इतनी परेशान क्यों हो?’’

‘‘मैं ने मांजी से बारबार कहा कि कपड़े गंदे न करें, जरूरत पड़ने पर मुझे बताएं. सुबह मैं ने उन से बाथरूम चलने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया और दो मिनट बाद ही बिस्तर गंदा कर दिया. मैं ने उन की सफाई के साथ ही साथ उन से नहाने के लिए भी कहा तो वे बोलीं, ‘पानी कमरे में ही ले आओ, मैं कमरे में ही नहाऊंगी.’ बहुत समझाने पर भी जब मांजी नहीं मानीं तो मैं पानी कमरे में ले आई. वैसे भी अकेले मेरे लिए मांजी को उठाना मुश्किल था. मैं ने सोचा था कि गीले कपड़े से पोंछ दूंगी, फिर खाना खिला दूंगी. पर मांजी ने तो गुस्से में पैर से पानी की पूरी बालटी ही उलट दी और खाने की थाली उठा कर नीचे फेंक दी. मैं तो दिनभर कमरा साफ करकर के थक जाती हूं.’’

नीरू ने मां के कमरे में पैर रखा तो उस का दिल घबरा गया. पूरे कमरे में पानी ही पानी भरा था. खाने की थाली एक ओर पड़ी थी और कटोरियां दूसरी तरफ. रोटी, दाल, चावल सब जमीन पर फैले थे. मां मुंह फुलाए बिस्तर पर बैठी थीं. नीरू ने मां के पास जा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ मां, खाना क्यों नहीं खाया? तुम ने कल रात को भी खाना नहीं खाया. इस तरह तो तुम कमजोर

हो जाओगी.’’ मैं आया के हाथ का खाना नहीं खाऊंगी, आया गंदी है. उसे भगा दो. मुझ से कहती है कि मेरी शिकायत तुम से करेगी, फिर तुम मुझे डांटोगी. तुम डांटोगी मुझे?’’ मां ने किसी छोटे बच्चे की तरह भोलेपन से पूछा तो नीरू को हंसी आ गई. उस ने मां के गले में हाथ डाल कर प्यार किया और कहा, ‘‘मैं अपनी प्यारी मां को अपने हाथों से खाना खिलाऊंगी. बोलो, क्या खाओगी?’’

‘‘मिठाई दोगी?’’ मां ने आशंकित हो कर कहा. ‘‘मिठाई? पर मिठाई तो खाना खाने के बाद खाते हैं. पहले खाना खा लो, फिर मिठाई खा लेना.’’

‘‘नहीं, पहले मिठाई दो.’’ ‘‘नहीं, पहले खाना, फिर मिठाई.’’ नीरू ने मां की नकल उतार कर कहा तो मां ताली बजा कर खूब हंसीं और बोलीं, ‘‘बुद्धू बना रही हो, खाना खा लूंगी तो मिठाई नहीं दोगी. पहले मिठाई लाओ.’’

नीरू ने मिठाई ला कर सामने रख दी तो मां खुश हो कर बोलीं, ‘‘पहले एक पीस मिठाई, फिर खाना.’’

‘‘अच्छा, ठीक है, लड्डू लोगी या रसगुल्ला?’’ ‘‘रसगुल्ला,’’ मां ने खुश हो कर कहा.

नीरू ने एक रसगुल्ला कटोरी में रख कर उन्हें दिया और उन के लिए थाली में खाना निकालने लगी. दो कौर खाने के बाद ही मां फिर खाना खाने में आनाकानी करने लगीं. ‘‘पेट गरम हो गया, अब और नहीं खाऊंगी,’’ मां ने मुंह बना कर कहा. ‘‘अच्छा, एक कौर मेरे लिए, मां. देखो, तुम ने कल भी कुछ नहीं खाया था, अभी दवाई भी खानी है और दवाई खाने से पहले खाना खाना जरूरी है वरना तबीयत बिगड़ जाएगी.’’

‘‘नहीं, मैं नहीं खा सकती. अब एक कौर भी नहीं.’’ तुम तो दारोगा की तरह पीछे लग जाती हो. मुझे यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता. मेरी अम्मा बनने चली हो. अब पेट में जगह नहीं है तो क्या करूं, पेट बड़ा कर लूं,’’ कहते हुए मां ने पेट फुला लिया तो नीरू को हंसी आ गई. उस ने हंसते हुए थाली की ओर हाथ बढ़ाया तो मां ने समझा कि नीरू फिर उस से खाने के लिए कहेगी. सो, अपनी आंखें बंद कर के लेट गईं. तभी फोन की घंटी बजी तो नीरू फोन पर बात करने लगी. बात करतेकरते नीरू ने देखा कि मां ने धीरे से आंखें खोल कर देखा और रसगुल्ले की ओर हाथ बढ़ाया पर नीरू को अपनी ओर आते देखा तो झट से बोलीं, ‘‘हम रसगुल्ला थोड़े उठा रहे थे, हम तो उस पर बैठा मच्छर भगा रहे थे.’’ ‘‘तुम्हें एक रसगुल्ला और खाना है?’’ नीरू ने हंस कर पूछा.

‘‘हां, मुझे रसगुल्ला बहुत अच्छा लगता है.’’ ‘‘तो पहले रोटी खाओ, फिर रसगुल्ला भी खा लेना.’’

‘रसगुल्ला, कचौड़ी, कचौड़ी फिर रसगुल्ला, फिर कचौड़ी…’ मां मुंह ही मुंह में बुदबुदा रही थीं. नीरू ने सुना तो उसे हंसी आ गई. ‘‘शाम को मेहमान आने वाले हैं. तब तुम्हारी पसंद की कचौड़ी बनाऊंगी,’’ नीरू ने मां को मनाने के लिए कहा तो मां प्रसन्न हो कर बोलीं, ‘‘हींग वाली कचौड़ी?’’

‘‘हां, हींग वाली. लो, अब एक रोटी खा लो, फिर शाम को कचौड़ी खाना.’’ ‘‘तो मैं शाम को रोटी नहीं खाऊंगी, हां. मुझे पेटभर कचौड़ी देना.’’

‘‘अच्छा बाबा. मैं तो इसलिए रोकती हूं कि मीठा और तलाभुना खाने से तुम्हारी शुगर बढ़ जाती है. आज शाम को जो तुम कहोगी मैं तुम्हें वही खिलाऊंगी पर अभी एक रोटी खाओ.’’ नीरू ने मां को रोटी खाने के लिए मना ही लिया.

बिस्कुट केक को बनाते समय इन बातों का रखें ध्यान

केक सभ को पसंद आता है चाहे वो बच्चे हो या बड़े सभी केक खाना पसंद करते हैं. इस कोरोना काल में लोग घर का केक खाना पसंद करते हैं. कई बार हम अपने घर में बिस्किट लाते हैं तो उसके टुकड़ें बच जाते हैं और हम उस टुकड़े को फेंक देते हैं. ऐसे में आप उस टुकड़ों को फेंके नहीं उसी का आप कम समय में केक बना सकते हैं. तो आइए जानते हैं कैसे बनाएं केक घर पर.

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समाग्री 

बिस्किट

कॉफी पाउडर

बेकिंग पाउडर

बेकिंग सोडा

दूध

बारीक कटे मेवे

विधि

ओवन को 370 डिग्री पर गर्म करें.  6-8 इंच की गोली बनाकर चिकना करें. चारो तरफ से मैदा को लगा दें. जो एक्स्ट्रा मैदा बचें उसे हटा दें. ऐसा करने से केक को हटाना आसान होगा.

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अब बिस्कुट के टुकड़े को अच्छे से तोड़कर मैस कर लें. और ग्राइंडर में दरदरा पीस लें. अब बिस्कुट के चूरचूरे में कॉफी पाउडर डालें. बेकिंग पाउडर भी इसमें मिला दें.

एक बॉउड में सभ ग्राइंड किए हुए टुकड़े को डालें और फिर उसमें दूध को धीरे- धीरे करके मिलाएं. घोल को चिकना करना और आराम से फेटना. यह घोल न तो ज्यादा मोटा होना चाहिए न ज्यादा पतला होना चाहिए.

अब इसमें मेवे को अच्छे से मिलाएं. जब सभी अच्छे से मिल जाए तो केक को बेक करने के लिए ओवन में रख दें. कुछ देर के बाद चेक करें. अगर केक बेक अच्छे से हो गया हो तो उसे बाहर निकालकर अच्छे से डेकोरेट करें. फिर आप अपने बच्चों के सामने सर्व करें.

 

पुनरागमन- भाग 1 : मां की ये बचकानी हरकतें आखिर क्या थी

मां के कमरे से जोरजोर से चिल्लाने की आवाज सुन कर नीरू ने किताबें टेबल पर ही एक किनारे खिसकाईं और मां के कमरे की ओर बढ़ गई. कमरे में जा कर देखा तो मां कस कर अपने होंठ भींचे और आंखें बंद किए पलंग पर बैठी थीं. आया हाथ में मग लिए उन से कुल्ला करने के लिए कह रही थी. नीरू के पैरों की आहट पा कर मां ने धीरे से अपनी आंखें खोलीं और फिर आंखें बंद कर के ऐसे बैठ गईं जैसे कुछ देखा ही न हो. नीरू को देखते ही आया दुखी स्वर में बोली, ‘‘देखिए न दीदी, मांजी कितना परेशान कर रही हैं. एक घंटे से मग लिए खड़ी हूं पर मांजी अपना मुंह ही नहीं खोल रही हैं. मुझे दूसरे काम भी तो करने हैं. आप ही बताइए अब मैं क्या करूं?’’

मां की मुखमुद्रा देख कर नीरू को हंसी आ गई. उस ने हंस कर आया से कहा, ‘‘तुम जा कर अपना काम करो, मां को मैं संभाल लूंगी,’’ और यह कहतेकहते नीरू ने मग आया के हाथ से ले कर मां के मुंह के सामने लगा कर मां से कुल्ला करने के लिए कहा. पर मां छोटे बच्चे के समान मुंह बंद किए ही बैठी रहीं. तब नीरू ने उन्हें डांट कर कहा, ‘‘मां, जल्दी करो मुझे औफिस जाना है.’’ नीरू की बात सुन कर मां ने शैतान बच्चे की तरह धीरे से अपनी आधी आंखें खोलीं और मुंह घुमा कर बैठ गईं. परेशान नीरू बारबार घड़ी देख रही थी. आज उस के औफिस में उस की एक जरूरी मीटिंग थी. इसलिए उस का टाइम पर औफिस पहुंचना बहुत जरूरी था. पर मां तो कुछ भी समझना ही नहीं चाहती थीं.

थकहार कर नीरू ने उन के दोनों गाल प्यार से थपथपा कर जोर से कहा, ‘‘मां, मेरे पास इतना समय नहीं है कि तुम्हारे नखरे उठाती रहूं. अब जल्दी से मुंह खोलो और कुल्ला करो.’’ नीरू की बात सुन कर इस बार जब मां ने कुल्ला करने के लिए चुपचाप मुंह में पानी भरा तो नीरू ने चैन की सांस ली. थोड़ी देर तक नीरू इंतजार करती रही कि मां कुल्ला कर के पानी मग में डाल देंगी पर जब मां फिर से मुंह बंद कर के बैठ गईं तो नीरू के गुस्से का ठिकाना न रहा.

गुस्से में नीरू ने मां को झकझोर कर कहा, ‘‘मां, क्या कर रही हो? मैं तो थक गई हूं तुम्हारे नखरे सहतेसहते…’’ नीरू की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि मां ने थुर्र कर के अपने मुंह का पूरा पानी इस प्रकार बाहर फेंका कि एक बूंद भी मग में न गिर कर नीरू के मुंह पर और कमरे में फैल गया. यह देख कर नीरू को जोर से रुलाई आ गई. रोतेरोते उस ने मां से कहा, ‘‘क्यों करती हो तुम ऐसा, क्या बिगाड़ा है मैं ने तुम्हारा? मैं अभी नहा कर साफ कपड़े पहन कर औफिस जाने के लिए तैयार हुई थी और तुम ने मेरे कपड़े और कमरा दोनों ही फिर से गंदे कर दिए. तुम दिन में कितनी बार कमरा गंदा करती हो, कुछ अंदाजा है तुम्हें? आज आया 5 बार पोंछा लगा चुकी है. अगर आया ने काम छोड़ दिया तो? मां तुम समझती क्यों नहीं, मैं अकेली क्याक्या करूं?’’ कहती हुई नीरू अपनी आंखें पोंछती मां के कमरे से बाहर चली गई.

अपने ही कहे शब्दों पर नीरू चौंक गई. उसे लगा उस ने ये शब्द पहले किसी और के मुंह से भी सुने हैं. पर कहां?

औफिस पहुंच कर नीरू मां और घर के बारे में ही सोचती रही. पिताजी की मृत्यु के बाद मां ने अकेले ही चारों भाईबहनों को कितनी मुश्किल से पाला, यह नीरू कभी भूल नहीं सकती. नौकरी, घर, हम छोटे भाईबहन और अकेली मां. हम चारों भाईबहन मां की नाक में दम किए रहते. कभीकभी तो मां रो भी पड़ती थीं. कभी पिताजी को याद कर के रोतेरोते कहती थीं, ‘‘कहां चले गए आप मुझे अकेला छोड़ कर. मैं अकेली क्याक्या करूं.’’ अरे, मां ही तो कहती थीं, ‘मैं अकेली क्याक्या करूं,’ मां तो सचमुच अकेली थीं. मेरे पास तो काम वाली आया, कुक सब हैं. बड़ा सा घर है, रुपयापैसा और सब सुविधाएं मौजूद हैं. तब भी मैं चिड़चिड़ा जाती हूं. अब मैं मां पर अपनी चिढ़ कभी नहीं निकालूंगी. मां की मेहनत से ही तो मुझे ये सबकुछ मिला है वरना मैं कहां इस लायक थी कि आईआईटी में नौकरी कर पाती.

कितनी मेहनत की, कितना समय लगाया मेरे लिए. अभी दिन ही कितने हुए हैं जब छोटी बहन मीतू ने मुझ से कहा था, ‘मां की वजह से तुम इस मुकाम तक पहुंची हो वरना हम सभी तो बस किसी तरह जी रहे हैं. हम तो चाह कर भी मां को कोई सुख नहीं दे सकते. वैसे तुम ने बचपन में मां को कितना परेशान किया है, तुम भूली नहीं होगी. अब मां इसी जन्म में अपना हिसाब पूरा कर रही हैं.’ आज लगता है कि सच ही तो कहती है मेरी बहन. शाम को नीरू मां की पसंद की मिठाई ले कर घर गई. घर में कुहराम मचा था. आया मां के कमरे के बाहर बैठी रो रही थी और अंदर कमरे में मां जोरजोर से चिल्ला रही थीं. नीरू को देखते ही आया दौड़ कर उस के पास आई और रोतेरोते बोली, ‘‘दीदी, अब आप दूसरी आया रख लीजिए, मुझ से आप का काम नहीं हो पाएगा.’’

सूरजमुखी की उन्नत खेती

हमारे देश में सूरजमुखी बेहद कारगर तिलहन फसल मानी जाती है. यह भारत में 1969-70 में हुई खाद्य तेल की कमी के बाद उगाई जाने लगी है. सूरजमुखी का तिलहनी फसलों में खास स्थान है. हमारे देश में मूंगफली, सरसों, तोरिया व सोयाबीन के बाद यह भी एक खास तिलहनी फसल है. सूरजमुखी की औसत उपज 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जो कि बहुत कम है. उपज कम होने के खास कारणों में अच्छी किस्मों के कम इस्तेमाल व खाद के असामान्य इस्तेमाल के साथ फसल को कीटों व बीमारियों द्वारा नुकसान पहुंचाना भी शामिल है. सूरजमुखी की फसल 80-120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है.

मिट्टी व जलवायु : पानी के अच्छे निकास वाली सभी तरह की मिट्टियों में इस की खेती की जा सकती है. लेकिन दोमट व बलुई दोमट मिट्टी जिस का पीएच मान 6.5-8.5 हो, इस के लिए बेहतर होती है. 26 से 30 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान में सूरजमुखी की अच्छी फसल ली जा सकती है.

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खेत की तैयारी : खेत की पहले हलकी फिर गहरी जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी और बराबर कर लेना चाहिए. आखिरी जुताई से पहले एफवाईएम की सही मात्रा डाल दें. रीज प्लाऊ की मदद से बोआई के लिए तय दूरी पर मेंड़ें बना लें.

बोआई की विधि : बीजों को बोआई से पहले 1 लीटर पानी में जिंक सल्फेट की 20 ग्राम मात्रा मिला कर बनाए गए घोल में 12 घंटे तक भिगो लें. उस के बाद छाया में 8-9 फीसदी नमी बच जाने तक सुखाएं. उस के बाद बीजों को थायरम या बावेस्टिन से उपचारित करें.

कुछ देर छाया में सुखाने के बाद पीएसबी 200 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजों का उपचार करें. उस के बाद बीजों को 24 घंटे तक सुखाएं.

संकर बीज 60×30 व अन्य बीज 45×30 सेंटीमीटर की दूरी पर बनी मेंड़ों पर 30 सेंटीमीटर की गहराई पर बोएं. बरसात होने या पानी भरा होने पर बोआई न करें.

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छंटाई : जब पौधे लगभग 10 दिन के हो जाएं और कहीं पर एक से अधिक पौधे दिखाई पड़ें तो ओज वाले पौधे को छोड़ कर बाकी को उखाड़ दें.

सिंचाई : बोआई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें फिर 7-8 दिनों के अंतर पर करें. ध्यान रखें कि बोआई के दिन, कलिका बनने के समय (30 से 35 दिन), फूल खिलने के समय (40 से 55 दिन) व दाना भरने के समय (65 से 70 दिन) नमी अधिक न हो.

खरपतवारों की रोकथाम : प्री इमरजेंस फ्लूक्लोरीन का 2 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बीज की बोआई से 4 से 5 दिनों बाद छिड़काव करें. दोबारा 30 से 35 दिनों बाद हाथों से बचे हुए खरपतवारों को उखाड़ दें.

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खास : परागण को बढ़ाने के लिए फूल खिलने के बाद करीब 10 से 15 दिनों तक सुबह 8 से 11 बजे के बीच मुलायम कपड़ा हाथ में लपेट कर फूलों में फेरते जाएं. ं

लगने वाले कीड़े

फलबेधक :  जवान कीड़ा पंख फैला कर 3-4 सेंटीमीटर लंबा होता है. मादा कीट अपने अंडे मिट्टी में, शाखाओं पर या पत्तियों पर एकएक कर के देती है. मादा 4 दिनों में करीब 750 अंडे देती है, जो कि 6-7 दिनों में फूट जाते हैं. इन से पहली अवस्था की सूंड़ी निकलती है, जोकि 14-20 दिनों में पूरी सूंड़ी हो जाती है. इस के बाद सूंड़ी पौधे से उतर कर नीचे मिट्टी में चली जाती है और मिट्टी में कोकून बनाती है.

इस कीड़े की सूंड़ी अवस्था ही नुकसान पहुंचाती है. सूंडि़यां शुरूशुरू में नई और मुलायम पत्तियां खाती हैं, परंतु बड़ी होने पर फूलों या फलों में छेद बना कर उन में घुस जाती हैं और उन्हें अंदर से खाती रहती हैं. कुछ सूंडि़यों को फलों के आधा अंदर और आधा बाहर लटकी अवस्था में देखा जाता है.

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रोकथाम

* सूंडि़यां जब छोटी हों तो उन्हें हाथ से पकड़ कर मार देना चाहिए.

* प्रकाश प्रपंच का प्रयोग कर के कीटों को मार देना चाहिए.

* सूंड़ी दिखाई देने पर पीवी 250 एलई का प्रति हेक्टेयर की दर से 1 हफ्ते के अंतर पर छिड़काव करना चाहिए.

* 1 किलोग्राम बीटी का छिड़काव करना चाहिए. इस के अलावा 5 फीसदी नीम की निंबौली के सत का इस्तेमाल करना चाहिए.

* सूंडि़यां ज्यादा होने पर क्विनोलफास 25 ईसी या क्लोरोपायरीफास 20 ईसी का 2 मिलीलीटर प्रति लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें.

कटुआ सूंड़ी : यह बीच के आकार का कीड़ा होता है. इस के अगले पंखों पर गोल धब्बे होते हैं. मादा एकएक कर के या समूह में पत्तियों या तने पर अंडे देती है. एक समूह में तकरीबन 30-50 अंडे होते हैं. एक मादा 200-300 तक अंडे देती है. अंडे 8-10 दिनों में फूट जाते हैं, जिन से नई सूंडि़यां निकल आती हैं. ये शुरू में मुलायम पत्तियों को खाती हैं और बाद में पौधे के दूसरे भागों को खाती हैं. सूंडि़यां 3 से 5 हफ्ते के बाद पूरी तरह जवान हो जाती हैं. सूंड़ी 4.75 सेंटीमीटर लंबी व मटमैले काले रंग की होती है. सूंड़ी जमीन में मिट्टी का कोकून बनाती है और उसी के अंदर प्यूपा में बदल जाती है. करीब 10-15 दिनों बाद प्यूपा से कीड़ा बाहर आता है.

इस कीड़े की केवल सूंड़ी अवस्था ही नुकसानदायक होती है. सूंडि़यां दिन में जमीन के अंदर दरारों में या पौधों की जड़ों के पास छिपी रहती हैं और रात में बाहर निकल कर पौधों की पत्तियों, शाखाओं व तनों को काट कर बरबाद कर देती हैं, जिस से फसल को काफी नुकसान होता है.

रोकथाम

* प्रकाश प्रपंच का इस्तेमाल कर के कीटों को आकर्षित कर के नष्ट कर देना चाहिए.

* शुरू में सूंडि़यों की संख्या कम होती है, लिहाजा उन्हें इकट्ठा कर के खत्म कर देना चाहिए.

* खेत में जगहजगह गड्ढे बना देने पर रात में घूमने वाली सूंडि़यां उन में गिर जाती हैं और कुछ खाने को न मिलने पर एकदूसरे को खाने लगती हैं. इन्हें गड्ढों से निकाल कर नष्ट किया जा सकता है.

* खेत में जगहजगह सूखी घास की ढेरियां बना देनी चाहिए व सवेरे ढेर के नीचे जमा सूंडि़यों को मार देना चाहिए.

* फसलचक्र अपनाने से इस कीट का असर कम होता है.

* कीट परजीवी जैसे ब्रेकान वास्प एपेंटेलिस व माइक्रोबे्रकान इस के दुश्मन हैं.

इन के द्वारा इस कीट का सफाया किया जा सकता है.

* सूंड़ी का असर ज्यादा होने पर मेलाथियान 5 फीसदी धूल का 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए या क्लोरोपायरीफास 20 ईसी की 2.5-3 लीटर मात्रा का 500-600 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

बिहार की बालदार सूंड़ी : इस कीट की लंबाई 50 मिलीमीटर होती है. इस का सिर, सीना और शरीर के नीचे की सतह हलके पीले रंग की होती है. इस की मादा अपने अंडे गुच्छों में पत्तियों की निचली सतह पर देती है, जो तकरीबन 400-500 तक होते हैं. ये हलके हरे रंग के होते हैं. इन के 8-13 दिनों में फूटने के बाद सूंडि़यां निकल आती हैं और 4-8 हफ्ते में जवान हो जाती हैं. इस के बाद ये मिट्टी में कोकून बनाती हैं. इसी में प्यूपा अवस्था पूरी करती हैं. 1-2 हफ्ते में प्यूपा से प्रौढ़ निकलते हैं. इस का जीवनचक्र 6-12 हफ्ते में पूरा हो जाता है और 1 साल में इस की 3-4 पीढि़यां पाई जाती हैं.

इस कीट की सूंड़ी अवस्था नुकसानदायक होती है. शुरू में सूंडि़यां पत्ती की निचली सतह पर समूह में रह कर छलनी जैसी हो कर सफेद हो जाती हैं और आखिर में सूख कर झड़ जाती हैं. बाद में सूंडि़यां दूसरे पौधों को भी नुकसान पहुंचाती हैं. कभीकभी ये सारी पत्तियों को छलनी कर देती हैं.

रोकथाम

*  प्रकाश प्रपंच द्वारा कीटों को आकर्षित कर के खत्म कर देना चाहिए.

* कीटों के अंडों को जमा कर के खत्म कर देना चाहिए.

* सूंडि़यों को पहली 2 अवस्थाओं में जब वे समूह में रह कर पत्तियों को खाती हैं, जमा कर के नष्ट कर देना चाहिए.

* ज्यादा सूंड़ी लगे पौधों को जड़ से उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.

* ज्यादा असर होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 1.5 लीटर मात्रा का 500-600 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

फुदका या जैसिड : यह कीट तकरीबन 4 मिलीमीटर लंबा हरे रंग का होता है. इस के पंखों पर छोटे काले धब्बे होते हैं. सिर पर 2 काले धब्बे होते हैं. इस की मादा पत्तियों की शिराओं के अंदर अंडे देती है, जो लंबे व पीले रंग के होते हैं. लगभग 6-10 दिनों में अंडों से निम्फ निकल आते हैं. लेकिन तापमान के अनुसार इन का जीवनचक्र घटताबढ़ता है.

इस कीट के बच्चे व जवान पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं, जिस से पत्तियों के किनारे मुड़ जाते हैं और भूरे रंग के हो जाते हैं. बाद में पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं. ज्यादा असर होने पर उपज में कमी आ जाती है.

रोकथाम

* कीट लगे पौधे को या जिस हिस्से में कीड़ा लगा हो उसे नष्ट कर देना चाहिए.

* ये कीट रोशनी की ओर आकर्षित होते हैं, इसलिए प्रकाश प्रपंच का इस्तेमाल कर के कीटों को खत्म किया जा सकता है.

* नाइट्रोजन की सही मात्रा ही इस्तेमाल करनी चाहिए, क्योंकि नाइट्रोजन इस कीट को आकर्षित करता है.

* काइसोपर्ला कार्निया परभक्षी के 50 हजार अंडे प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में छोड़ने चाहिए.

* ज्यादा प्रकोप होने पर डाईमिथियोट की 1.5 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर या इमिडाक्लोप्रिड 0.004 फीसदी का घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

सूरजमुखी के खास रोग

पत्तीधब्बा व झुलसा : सब से पहले यह रोग कानपुर में देखा गया. बाद में अन्य इलाकों में भी इसे देखा गया. अब यह रोग सभी जगहों पर भारी नुकसान करता है. रोगी बीजों की अंकुरण क्षमता में 23 से 32 फीसदी तक की कमी आ सकती है.

पौधे के सभी ऊपरी भागों पर रोग के लक्षण दिखाई पड़ते हैं. पत्तियों पर शुरू में तमाम पीले या हलके भूरे धब्बे दिखाई पड़ते हैं. ये धब्बे गोल और बड़े होने पर छल्ले जैसे होते हैं. बाद में ये पूरी पत्ती को घेर लेते हैं. धब्बे तने और फूलों पर भी हो सकते हैं. इस से बीज भी प्रभावित हो सकते हैं.

रोकथाम

* फसल के रोगी हिस्सों को नष्ट कर दें. साफ बीजों को बोने के काम में लें.

* बीजों को 3 ग्राम थाइरम या केप्टान या 2 ग्राम बाविस्टीन से प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर के बोएं. बोआई के 35 दिनों बाद या रोग के लक्षण दिखाई देने पर मैंकोजेब 0.2 का छिड़काव करना चाहिए. इस प्रक्रिया को 10 दिनों के अंतर से दोहराएं.

रोली या रतुआ रस्ट : यह रोग फसल की किसी भी अवस्था में हो सकता है, लेकिन बोआई के 30 दिनों बाद वातावरण की नमी के साथ यह गंभीर हो जाता है. इस के प्रकोप से बीजों की पैदावार और तेल की मात्रा में कमी आती है.

सब से पहले पौधों की निचली पत्तियों पर लालभूरे रंग के धब्बे नजर आते हैं, जोकि जंगदार धूल से घिरे रहते हैं. बाद में ये धब्बे तनों व पत्तियों पर भी दिखाई पड़ते हैं. बुरी तरह से प्रभावित पत्तियां पीली पड़ कर और सूख कर गिर जाती हैं.

रोकथाम

* फसलचक्र अपनाना चाहिए. बीमार पौधों के बचे हिस्सों व खाली खेतों में खड़े पौधों को खत्म कर देना चाहिए.

* रोग के लक्षण दिखाई देते ही मैंकोजेब 0.2 के घोल का छिड़काव करना चाहिए. छिड़काव पत्तियों की निचली सतह तक होना चाहिए.

मृदुरोमिल आसिता : इस रोग की तेजी हर साल मौसम पर निर्भर करती है. इस से 95 फीसदी तक नुकसान हो सकता है.

रोगी पौधे लंबाई में छोटे हो कर पत्तियों पर हलके व गहरे रंग के लक्षण दिखा सकते हैं. ये हरे व चिकबरे धब्बे पुरानी पत्तियों से नई पत्तियों पर हमला करते हैं.

शुरू में ये नई पत्तियों की शिराओं के आसपास दिखाई पड़ते हैं. बाद में बढ़ कर सारी पत्तियों को घेर लेते हैं. पूरी तरह बीमार पौधे कम समय तक ही जिंदा रह पाते हैं.

रोकथाम

* फसल के बचे भागों को जला कर खत्म कर देना चाहिए, क्योंकि इन्हीं से शुरू में बीमारी लगती है.

* 3-4 साल का फसलचक्र अपनाना चाहिए.

* स्वस्थ व उपचारित बीज बोने के काम में लें. बीजोड़ कवक को मेरालेकिसल एपरान 35 एसडी 6 ग्राम प्रति किलोग्राम से उपचारित कर के नष्ट करें.

* रोगरोधी हाइब्रीड किस्म एलएलएसएच 1 व एलएसएच 3 बोएं.

चोटी गलन : जब ज्यादा बरसात होती है या रुकरुक कर बौछारें आती हैं, उस समय इस रोग का फैलाव ज्यादा होता है. इस रोग से पूरे पौधे का ऊपरी हिस्सा गलने लगता है. इस में कई तरह के कवक जैसे राईजोयपस, फ्यूजेरियम, एस्परजिलस, पिथियम, राइजोक्टोनिया व बोट्राइटीस देखे गए हैं.

पौधे के ऊपरी हिस्से के गलने से पहले किसी भी कीटाणु द्वारा कोई घाव या छेद होना जरूरी है. ज्यादा नमी मिलने पर पौधे का ऊपरी भाग बुरी तरह से कवकजाल में घिर जाता है और गलने लगता है.

रोकथाम

* बिना रोग लगा उपचारित बीज बोने के काम में लें.

* खेतों को साफ रखें. पौधों का मलबा खेत में न रखें.

* कवकनाशी मैंकोजेब 75 डब्ल्यूपी 0.2 फीसदी साथ में एंडोसल्फान 0.07 घोल का छिड़काव करें. यह छिड़काव ऊपरी हिस्सा बनने के समय करें.

जड़सड़न : यह रोग फसल की किसी भी अवस्था में देखा जा सकता है. भारत में इस रोग से 30 से 45 फीसदी तक नुकसान देखा गया है. यह रोग कवक मेक्रोफोमिना फैजियोलीना द्वारा होता है.

रोगी पौधे समय से पहले पकने लगते हैं और उन के तनों का रंग सूख कर काला राख जैसा हो जाता है. ऐसे रोगी तनों को चीर कर देखें तो उन में तमाम काले स्कलेरोषिया देखने को मिलते हैं.

बरसात के दिनोें में तनों के अंदर पिथ गल जाता है. रोगी पौधों पर छोटे आकार के शीर्ष लगते हैं और उन में छोटेछोटे सिकुड़े हुए बीज बनते हैं.

रोकथाम

* फसलचक्र अपनाना चाहिए. एक ही खेत में सूरजमुखी की फसल लगातार नहीं उगानी चाहिए.

* कार्बंडाजिम कवकनाशी से बीजोपचार करना चाहिए. जमीन में पानी की निकासी अच्छी होनी चाहिए.

कालरसड़न : यह रोग स्कलेरोशियम रोल्फसोई कवक द्वारा होता है. यह रोग सब

से पहले लातूर (महाराष्ट्र) में 1974 में देखा गया था.

खेत में रोगी पौधों की पहचान आरंभ में उन के फौरन सूखने से की जाती है. पौधों के कालर भागों पर कवक सफेद गुच्छों के रूप में देखी जाती है. ज्यादा संक्रमण पौध अवस्था में होता है. बाद में जमीन की सतह के साथ संक्रमित पौधों के तनों पर गहरे भूरे स्कलेरोशिया देखे जा सकते हैं. संक्रमण पौधों की हर अवस्था में होता है.

रोकथाम

* फसलचक्र अपनाएं और बीजोपचार कर के बीज बोएं.

* अच्छे पानी निकासी वाली जमीन का चुनाव करें.


डा. ऋषिपाल व डा. राजेंद्र सिंह

बिन तुम्हारे : नीपा को भी यह तय करना है कि वह किस तरफ मुडे़

‘‘ममा, लेकिन आप यह कैसे कह सकती हो कि आजकल के बच्चे पेरैंट्स के प्रति गैरजिम्मेदार हैं. किसी को चाहने का मतलब यह तो नहीं कि बच्चे पेरैंट्स के प्रति जिम्मेदार नहीं हैं. लव अफेयर्स उन की जिंदगी का एक हिस्सा है, पेरैंट्स अपनी जगह हैं. ‘‘पेरैंट्स को जिन बातों से दुख पहुंचता है, बच्चे वही करें और कहें कि वे जिम्मेदार हैं.’’

‘‘ममा, पेरैंट्स की पसंदनापसंद पर बच्चे क्या खुद को वार दें? पेरैंट्स को भी हर वक्त अपनी पसंदनापसंद बच्चों पर नहीं थोपनी चाहिए.’’ ‘‘अभी तू ने अपनी जिस फ्रैंड की बात की, उसी की सोचो, 19 साल की लड़की और लड़का भी 19 साल का, पेरैंट्स ने उन्हें बड़ी उम्मीदों से होस्टल भेजा कि पढ़ कर वे कैरियर बनाएं. अब दोनों अपने पेरैंट्स से झूठ बोल कर अलग फ्लैट में साथ रह रहे हैं. कोर्स किसी तरह पूरा कर भी लें तो क्या दिलदिमाग के भटकाव की वजह से बढि़या कैरियर बन पाएगा उन का? उम्र का यह आकर्षण एक पड़ाव के बाद जिंदगी के कठिन संघर्ष के सामने हथियार डालेगा ही, उस वक्त बीते हुए ये साल उन्हें बरबाद ही लगेंगे.’’

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‘‘लगे भी तो क्या ममा? अभी वे खुश हैं तो क्यों न खुश हो लें? आगे की जिंदगी किस ने देखी है ममा.’’ ‘‘यानी जो लोग भविष्य को संवारने के लिए मेहनत करते हैं वे मूर्ख हैं.’’

‘‘हो सकते हैं या नहीं भी, सवाल है किसे क्या चाहिए.’’ नीपा अपनी बेटी रूबी की दलीलों के आगे पस्त पड़ गई थी. बेटी ने अपनी सहेली की घटना सुनाई तो उसे भी रूबी की चिंता सताने लगी. वह भी तो उसी पीजी में रहती है. उस के अनुसार अब ऐसा तो अकसर हो रहा है. जाने क्या इसे लिवइन कह रहे हैं सब. पेरैंट्स बिना जाने बच्चों की फीस, बिल सबकुछ चुकाते जा रहे हैं और बच्चे अपनी मरजी के मालिक हैं.

नीपा को इतना तनाव, इतना भय क्यों सताने लगा है. किस बात की आशंका है, क्यों दिल घबरा रहा है? रूबी अपनी अलग स्ट्रौंग सोच रखती है इसलिए? या इसलिए कि गरमी की छुट्टियों में घर आ कर रूबी ने ममा के दिमाग को भरपूर रिपेयर करने की कोशिश की. नीपा क्यों बेटी के चेहरे को बारबार पढ़ने की कोशिश कर रही है? अपने पति अनादि से वह कुछ कहना चाहती है पर चुप हो जाती है. कहीं रूबी ने खुद की सिचुएशन का ही सहेली के नाम से… नहींनहीं, उस ने अपनी बेटी को बड़े अच्छे संस्कार दिए हैं, वह अपनी मां को इस तरह दुख नहीं दे सकती. 3-4 दिनों से रूबी से बात नहीं हो पा रही थी. वीडियो कौल तो उस ने बंद ही कर दी थी जाने कितने महीनों से. फोन में गड़बड़ी की बात कह कर टाल जाती. अब इतने दिन खोजखबर न मिलने पर नीपा की बेचैनी बढ़ गई. अनादि से सारी बातें कहनी पड़ीं उसे. उन्होंने पीजी की एक लड़की को फोन किया. पता चला, कालेज में 4 दिनों की छुट्टी देख रूबी दोस्तों के साथ कहीं घूमने गई है, इसलिए फोन पर बात नहीं हो सकती रूबी से.

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मामला जटिल देख दोनों दूसरे शहर में रह रही बेटी के पीजी पहुंचे. पर बेटी वहां कहां. वह तो किसी लड़के के साथ एक फ्लैट किराए पर ले कर रहती है. लड़का उसी की क्लास का है. अनादि स्तब्ध थे और नीपा का सिर चकरा गया. धम्म से नीचे जमीन पर बैठ गई. उबकाई से बेहोशी सी छाने लगी थी उस पर. दिल की धड़कनें चीख रही थीं बेसुध.

अब क्या? बेटी के पास उन्हें जाना था. बेटी के बिना या बेटी के इन कृत्यों के बिना? इकलौती बेटी के बिना जी पाना तो इन दोनों के लिए बहुत मुश्किल था. बेटी की उमंगें अभी आजादी की दलीलों के बीच पंख झपट रही हैं, वह तो पीछे नहीं मुड़ेगी. ममापापा बेटी के पास पहुंचे तो रूबी ने न ही उन की आंखों में देखा और न ही दिल ने दिल से बात करने की कोशिश की.

नीपा ने खुद को समझाया. वक्त की मांग थी, वरना उन की आंखों की ज्योति आज इस तरह आंखें फेर ले…लड़का निहार भी वहीं था. उन्हें तो उस में ऐसा कुछ भी नहीं दिखा जो रूबी ने उस में देखा था. हो सकता है नीपा न देख पा रही हो. फिर समझाया खुद को उस ने. भविष्य क्या? ‘‘आगे चल कर शादी करोगे बेटा रूबी से? कुछ सोचा है?’’

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‘‘ममा, आगे देखना बंद करें आप. आज में जीना सीखें यही काफी है. अभी हम पढ़ते हुए पार्टटाइम जौब भी करेंगे. आप अगर हमारी मदद करेंगे तो हम आप से जुड़े रहेंगे. निहार ने भी घर वालों को बता दिया है. मजबूरी हो गई तो पढ़ाई छोड़ देंगे. अभी हम साथ ही रहेंगे जब तक जमा. अब आप की मरजी.’’ नीपा की आंखों में धुंधलका सा छाने लगा. ये आंसू थे या दर्द का सैलाब? वह कुछ समझ नहीं पा रही थी. बस, इतना ही समझ पाई कि बेटी से दोनों को बेइंतहा प्यार है. और इस प्यार के लिए उन्हें किसी शर्त की जरूरत नहीं थी.

लंबे समय तक फोन पर चैटिंग-टैक्स्ट, नेक पेन का कारण

पेशे से बैंकर रश्मि को लगातार गरदन में दर्द रहने लगा था. दरअसल, 6 महीने पहले रश्मि को गरदन में अकड़न महसूस हुई और इस के बाद से सिरदर्द भी रहने लगा. जब दर्द ज्यादा बढ़ गया तो रश्मि ने फिजीशियन से सलाह ली. तब उसे पता चला कि वह टैक्स्ट नैक नामक बीमारी से पीडि़त है, जो लगातार मोबाइल पर मैसेज करने की वजह से होती है.

इस बारे में नोएडा के फोर्टीस अस्पताल के डा. राहुल गुप्ता का कहना है, ‘‘आजकल किशोर अधिक समय तक मोबाइल पर मैसेज और चैट करने में बिताते हैं. वे इस बात से अनजान रहते हैं कि इस से उन की सेहत पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है. अधिक समय तक सिर झुका कर मोबाइल पर बात करने या चैट करने से टैक्स्ट नैक होने का खतरा बढ़ जाता है. लगातार सिर झुकाने से रीढ़ की हड्डी, कर्व और बोनी खंड में बदलाव से मुद्रा में बदलाव, मांसपेशियों में अकड़न और दर्द महसूस होता है.’’

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जानकारी के अनुसार मोबाइल फोन से बातचीत की निर्भरता की वजह से मैसेज करने में तेजी से वृद्धि हुई है. मोबाइल फोन के अलावा टैबलेट, आईपैड जैसे उपकरणों का इस्तेमाल भी ‘टैक्स्ट नैक’ सिंड्रोम के लिए जिम्मेदार है.

इस में सिरदर्द, पीठ के ऊपरी भाग, कंधे व गरदन में दर्द के साथ रीढ़ की हड्डी में वक्रता आ जाती है और अगर टैक्स्ट नैक को बिना इलाज के छोड़ दिया जाए तो इस से रीढ़ की हड्डी में अपक्षयीय समस्याएं जैसे डिस्क कंप्रैशन और डिस्क प्रोलेप्स की समस्या हो सकती है.

शुरुआती स्टेज में तो फिजियोथेरैपी या दवाओं से इसे  ठीक किया जा सकता है, लेकिन गंभीर मामलों में सर्जरी जैसे डिस्क रिप्लेसमैंट की आवश्यकता पड़ती है.

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पारंपरिक सर्जरियों में विकृत डिस्क के बीच 2 सर्विकल वर्टिबे्र को हटा कर उस में वर्टिबे्र को मजबूती देने के लिए ठोस हड्डी की तरह बोन ग्राफ्ट लगाया जाता है. विकृत डिस्क को पूरी तरह से हटा कर ही दर्द को दूर किया जाता है, क्योंकि भारी डिस्क रीढ़ की तंत्रिकाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं जिस से गरदन और बांह में दर्द होता है. हालांकि फ्यूजन प्रक्रिया में रीढ़ की गति और लचीलापन बाधा बनते हैं.

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कृत्रिम सर्विकल डिस्क रिप्लेसमैंट थेरैपी में पुरानी व विकृत डिस्क को प्रोस्थैटिक उपकरण (कृत्रिम डिस्क) को विशेष तरीके से डिजाइन किया जाता है जो वर्टिब्रे भाग को गतिशीलता प्रदान करता है. मोबाइल धातु को डिस्क वर्टिब्रे के बीच में स्थापित किया जाता है, जिस से गतिशीलता मिलती है जिस में यह प्राकृतिक तरीके से झुकने, बढ़ने, एक तरफ झुकने, घूमने और सरेखण जैसे कि ऊंचाई और वक्रता मिलती है.

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