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मगध संवाद सह विज्ञान काँग्रेस का आयोजन

आगामी 20 और 21 दिसम्बर को गौतम बुद्ध नगर भवन हसपुरा में दो दिवसीय विज्ञान काँग्रेस सह मगध संवाद कार्यक्रम का आयोजन कई स्वयंसेवियों संस्थाओं द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है. इस कार्यक्रम में औरंगाबाद,गया,अरवल,नवादा,जहानाबाद के प्रतिनिधि भाग लेंगे .उदघाटन सत्र को ए एन सिन्हा इंस्टीच्यूट के निदेशक प्रो डी एम दिवाकर एवं प्रो नवीनचन्द्रा करेंगे.अध्यक्षता मो ग़ालिब साहब करेंगे. विषय होगा विकास का समाजशास्त्र.

इसके उपरांत मगध क्षेत्र में कृषि एवं सिंचाई तथा इसका अर्थशास्त्र विषय पर किसान महासभा के महासचिव एवं पूर्व विधायक राजाराम सिंह और अरुण मिश्रा सम्बोधित करेंगे.संचालन राजेश विचारक और पुष्पा कुमारी करेंगे.इस अवसर पर दिल्ली प्रेस की पत्रिका फार्म फूड की तरफ से तीन किलोमीटर तक तीस वर्षों में नहर की खुदाई करके नहर बनाने वाले लौंगी माँझी सहित 10 किसानों को सम्मानित किया जाएगा.

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इस कार्यक्रम का आयोजन हसपुरा सोशल फोरम, जनवादी लेखक संघ,पीस,भारतीय युवा मंच,ए आई पी एस एम और आर टी ई फोरम बिहार और दिल्ली प्रेस की पत्रिका फार्म एन फूड के द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा.कार्यक्रम के स्वागताध्यक्ष पूर्व प्रमुख आरिफ रिजवी होंगे.

फार्म फूड पत्रिका द्वारा सम्मानित किये जाने वाले किसान
1.लौंगी माँझी -जिसने तीस वर्षों में अकेले तीन किलोमीटर नहर की खुदाई कर एकड़ जमीन को सिंचित करने का काम किया.
2.धर्मवीर भारती -जिसने लौंगी माँझी पर टेली फ़िल्म बनायी
3.अविनाश कुमार-40 एकड़ में अमरूद की खेती की है. एक अमरूद
आधा किलोग्राम तक होता है. इस अमरूद की माँग बड़े पैमाने पर है.
4 देवेंद्र कुमार- 50 एकड़ में सहजन की खेती
5 देवेंद्र मेहता 1 एकड़ में स्ट्राबेरी की खेती
6ब्रजकिशोर मेहता 2 एकड़ में टमाटर और स्ट्राबेरी की खेती
7 अवधेश मेहता 2 एकड़ स्ट्राबेरी की खेती
8दीनानाथ मेहता 2 एकड़ में पपीता की खेती
9 मदन किशोर सिंह औषधीय पौधे की खेती
10 रमाशंकर वैद 28 बीघा में फलदार बृक्ष
11विभा कुमारी मशरूम की खेती
12 पुष्पा कुमारी मशरूम का अँचार बनाने एवं उत्पादन का कार्य
13संजय कुमार बटन मशरूम का उत्पादन

स्थान
गौतम बुद्ध नगर भवन हसपुरा औरंगाबाद बिहार
दिनांक 20 और 21 दिसम्बर

कुहरा छंट गया-भाग 1 : रोहित के मन में कैसे अधिकार और कर्तव्य ने जन्म लिया

‘‘बेटे का जन्मदिन मुबारक हो…’’ रोहित ने मीनाक्षी की तरफ गुलाब के फूलों का गुलदस्ता बढ़ाते हुए कहा तो उसे यों प्रतीत हुआ मानो अचानक आसमान उस के कदमों तले आ गया हो. 2 वर्ष तक उस ने रोहित के द्वेष और क्रोध को झेला था. अब तो अपने सारे प्रयत्न उसे व्यर्थ लगने लगे थे. रोहित कभी भी नन्हे को नहीं अपनाएगा, उस ने यह सोच लिया था.

‘‘रोहित, तुम?’’ मीनाक्षी को मानो शब्द नहीं मिल रहे थे. उस ने आश्चर्य से रोहित को देखा, जो नन्हे को पालने से गोद में उठाने का प्रयास कर रहा था.

‘‘मैं ने तुम्हें बहुत कष्ट दिया है, मीनाक्षी. तुम ने जो भी किया, वह मेरे कारण, मेरे पौरुष की खातिर… और मैं इतना कृतघ्न निकला.’’

‘‘रोहित…’’

‘‘मीनाक्षी, मैं तुम्हारा ही नहीं, इस नन्हे का भी दोषी हूं,’’ कहते हुए रोहित की आंखों से आंसू बहने लगे. मीनाक्षी घबरा उठी. रोहित की आंखों में आंसू ही तो वह नहीं देख सकती थी. इन्हीं आंसुओं की खातिर तो वह गर्भ धारण करने को तैयार हुई थी. वह रोहित को बहुत प्यार करती थी और व्यक्ति जिसे प्यार करता है उसे रोता नहीं देख सकता. बच्चा रोहित की गोद में आ कर हैरानी से उसे देखने लगा. एक वर्ष में उसे इस का ज्ञान तो हो ही गया था कि कौन उसे प्यार करता है, कौन नहीं. नन्हे की तरफ देखते हुए मीनाक्षी उन बीते दिनों में खो गई, जब परिस्थितियों से मजबूर हो कर उसे मां बनना पड़ा था. अस्पताल का वह कक्ष अब भी उसे याद था, जहां उसे सुनाई पड़ा था, ‘मुबारक हो, बेटा हुआ है.’ नर्स के बताते ही लक्ष्मी, उन के पति दयाशंकर एवं छोटी ननद नेहा, सभी खुशी से पागल हुए जा रहे थे.

‘क्या हम अंदर आ सकते हैं?’ 14 वर्षीया नेहा ने चहकते हुए पूछा.

‘नहीं बेटे, अभी थोड़ी देर बाद तुम्हारी भाभी बाहर आ जाएंगी. थोड़ा धैर्य रखो,’ नर्स ने मुसकरा कर कहा.शीघ्र ही नर्स एक नवजात शिशु को ले कर बाहर आई तो लक्ष्मी उधर लपकी. उस ने बच्चे को अपने सीने से लगा लिया.प्रसव प्राकृतिक हुआ था, इस कारण थोड़ी देर बाद मीनाक्षी को भी स्ट्रेचर पर लिटा कर कमरे में पहुंचा दिया गया. लगभग 8 वर्ष बाद लक्ष्मी की बहू मीनाक्षी को पुत्र हुआ था. क्याक्या नहीं किया था लक्ष्मी ने, कितने डाक्टरों को दिखलाया था पर उन के लाख कहने पर भी नीमहकीमों और संतों के पास जाने को बहू कभी तैयार नहीं हुई थी. मीनाक्षी ने नजरें उठा कर सासससुर और नेहा को देखा पर उस की आंखें रोहित को तलाश रही थीं. वह उस से सुनना चाहती थी कि उस ने उसे बेटा दे कर सबकुछ दे दिया है. जब वह नहीं दिखा तो उस ने धीमे से नेहा से पूछा, ‘तुम्हारे भैया नहीं दिखाई दे रहे?’

‘बाहर ही तो थे, शायद संकोचवश कहीं चले गए होंगे,’ नेहा ने झूठ बोला ताकि भाभी का मन दुखी न हो. फिर नेहा हंस कर मुन्ने के छोटेछोटे हाथों की बंद मुट्ठियों को छूने लगी. उधर रोहित का व्यवहार पत्नी के प्रति अजीब तरह का हो गया था. कभी जरूरत से ज्यादा प्यार जताता तो कभी बिलकुल तटस्थ हो जाता.

8 वर्ष तक बच्चा न होने की यंत्रणा दोनों ने झेली थी. घर वालों, पासपड़ोस और रिश्तेदारों के सवाल सुनसुन कर दोनों ऊब चुके थे. लक्ष्मी जाने कहांकहां से गंडाताबीज लाती. उन का मन रखने के लिए मीनाक्षी पहन भी लेती लेकिन उस की समझ में नहीं आता था कि उन से बच्चा कैसे होगा. लक्ष्मी बहू को अकसर इधरउधर की घटनाएं बताया करती कि फलां की बहू या फलां की बेटी को 12 साल तक बच्चा नहीं हुआ. डाक्टरों ने भी जवाब दे दिया. जलालपुर के एक पहुंचे हुए महात्मा आए थे. उन्हीं के पास देविका अपनी बेटी को ले गई थी. फिर ठीक नौवें महीने बेटा हुआ, एकदम गोराचिट्टा. ‘लेकिन उस की मां तो काली थी. और पिता भी…’

‘महात्मा के तेज से ही ऐसा हुआ… और नहीं तो क्या,’ नेहा की बात काट कर लक्ष्मी ने अपनी दलील दी थी. मीनाक्षी एक कान से सुनती, दूसरे से निकाल देती. उसे इन सब बातों में कोई रुचि नहीं थी. वह जानती थी कि यह सब कपोलकल्पित बातें हैं. महात्मा और संत औरतों के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं, तभी बच्चे पैदा होते हैं. मर्द इस कारण चुप रहते हैं कि उन की मर्दानगी पर धब्बा न लगे और कुछ औरतें नासमझी में उसे महात्मा का ‘प्रसाद’ मान लेती हैं, तो कुछ बांझ कहलाए जाने के भय से यह दुराचार सहनेकरने पर मजबूर हो जाती हैं. इसी कारण लक्ष्मी जब भी उसे किसी साधुमहात्मा के पास चलने को कहती, वह टाल जाती. रोहित तटस्थ रहता. उस ने जांच करवा ली थी, कमी उसी में थी. अब तो आएदिन घर में इसी विषय पर बातचीत चलती रहती. घर का प्रत्येक सदस्य चाहता था कि उन के घर एक नन्हा मेहमान आए. मीनाक्षी ने इन सब बातों से ध्यान हटा कर एक स्कूल में नौकरी कर ली ताकि ध्यान बंटा रहे. खाली समय में नेहा की पढ़ाई में मदद कर देती. घर का काम भी करने के लिए मुंह से कुछ न कहती. उधर लक्ष्मी, दयाशंकर और नेहा बच्चे को खिलाने लगे. लक्ष्मी बोली, ‘देखिए, बिलकुल रोहित पर गया है.’

‘और आंखें तो भाभी की ली हैं इस ने,’ नेहा चहक कर बोली. उन की बातें सुन कर मीनाक्षी की आंखें अनायास नम हो आईं.

आंखों के आंसू में अतीत फिर आकार लेने लगा…

एक वर्ष पूर्व रोहित ने उस के सामने एक प्रस्ताव रखा था. उस दिन रोहित दफ्तर से जल्दी ही घर आ गया था. उस के हाथ में एक पत्रिका थी. पत्रिका उस के सामने रखते हुए उस ने कहा था, ‘आज मैं तुम्हें एक खुशखबरी सुनाने आया हूं.’ ‘क्या?’ शृंगारमेज के सामने बैठी मीनाक्षी ने घूम कर पति को देखा. रोहित ने उसे बांहों में भर लिया और पत्रिका का एक समस्या कालम खोल कर उस के सामने रख दिया.

‘यह क्या है?’ पत्रिका पर उचटती नजर डालते हुए मीनाक्षी ने पूछा.

‘यह पढ़ो,’ एक प्रश्न पर रोहित ने अपनी उंगली रख दी. मीनाक्षी की नजर शब्दों पर फिसलने लगी. लिखा था, ‘मेरे पति के वीर्य में बच्चा पैदा करने के शुक्राणु नहीं हैं. हमारी शादी को 5 वर्ष हो चुके हैं. हम ने कृत्रिम गर्भाधान के विषय में पढ़ा है. क्या आप हमें विस्तार से बताएंगे कि हमें क्या कुछ करना होगा. हां, मेरे अंदर कोई कमी नहीं है.’ मीनाक्षी ने प्रश्नसूचक नजर ऊपर उठाई तो रोहित ने इशारा किया कि वह इस का जवाब भी पढ़ ले. जवाब में लिखा था कि इस तरह की समस्या आने पर औरत के गर्भ में किसी दूसरे पुरुष का वीर्य डाल दिया जाता है. बंबई के एक अस्पताल का पता भी दे रहे हैं, जहां वीर्य बैंक है. इस तरह की बात बहुत ही गुप्त रखी जाती है. वीर्य उन्हीं पुरुषों का लिया जाता है जो शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं. वैसे अब और भी कई शहरों में इस तरह कृत्रिम गर्भाधान करने का साधन सुलभ है.

कुहरा छंट गया-भाग 4: रोहित के मन में कैसे अधिकार और कर्तव्य ने जन्म लिया

एक दिन तो हद हो गई. उस समय मीनाक्षी गुसलखाने में थी. नन्हा बिस्तर पर खेल रहा था. रोहित सो रहा था. उस का बिस्तर अलग लगा था. उस ने बहाना यह बनाया हुआ था कि बच्चे के रात में रोने व ज्यादा जगह लेने के कारण वह अलग सोता है. तभी बच्चे ने दूध उलट दिया. उसे खांसी भी आई और रोतेरोते वह बेहाल हो गया. मीनाक्षी किसी तरह उलटेसीधे कपड़े पहन कर बाहर निकली तो देखा रोहित कमरे में नहीं था. जी चाहा कि वह उस का हाथ पकड़ कर पूछे कि तुम तो इस से ऐसे कतरा रहे हो मानो मैं ने यह बच्चा नाजायज पैदा किया है. आखिर क्यों चाहा था तुम ने यह बच्चा? क्या सिर्फ अपने अहं की संतुष्टि के लिए? लेकिन वह ऐसा कुछ भी न कर सकी क्योंकि रोहित इसे स्वीकार न कर के कोई बहाना ही गढ़ लेता. बच्चा अपनी गोलमटोल आंखों से देखते हुए किलकारी भरता तो परायों का मन भी वात्सल्य से भर उठता. पर रोहित  जाने किस मिट्टी का बना था, जो मीनाक्षी की कोख से पैदा हुए बच्चे को भी अपना नहीं रहा था. वह चाह कर भी बच्चे को प्यार न कर पाता. बच्चे को देखते ही उसे उस अनजान व्यक्ति का ध्यान हो जाता जिस का बीज मीनाक्षी की कोख में पड़ा था. जब भी वह बाहर निकलता तो बच्चे के चेहरे से मिलतेजुलते व्यक्ति को तलाशता. यह जानते हुए भी कि गर्भधारण तो बंबई में हुआ था और ज्यादा संभावना इसी बात की थी कि वह व्यक्ति भी बंबई का ही होगा.

लेकिन आदमी के हृदय का क्या भरोसा? अपने पौरुष पर आंच न आए, इसी कारण रोहित ने अपनी पत्नी को पराए पुरुष का वीर्य गर्भ में धारण करने को मजबूर किया था. लेकिन अब उसी पत्नी एवं बच्चे से उस की बढ़ती दूरी एक प्रश्न खड़ा कर रही थी कि व्यक्ति इतना स्वार्थी होता है? जिंदगी की रफ्तार कभीकभी बड़ी धीमी लगती है. मीनाक्षी का एकएक पल पहाड़ सा लगता. जब जीवन में कोई उत्साह ही न हो तो जीने का मकसद ही क्या है? जीवन नीरस तो लगेगा ही. अब न रोहित का वह पहले वाला प्यार था न मनुहार, ऊपर से बच्चे की खातिर  रातरात भर जागने के कारण मीनाक्षी का स्वास्थ्य गिरने लगा. वह चिड़चिड़ी हो गई. लक्ष्मी भरसक प्रयास करती कि बहू खुश रहे, स्वस्थ रहे लेकिन जब मानसिक पीड़ा हो तो कहां से वह स्वस्थ दिखती. एक दिन बच्चे को कमरे में छोड़ कर मीनाक्षी रोहित के लिए नाश्ता तैयार करने नीचे गई. बच्चा नेहा के साथ खेल रहा था. तब तक नेहा के किसी मित्र का फोन आ गया और वह पुकारने पर नीचे चली गई. बच्चा फर्श पर खेल रहा था. रोहित उस समय तैयार हो रहा था. टाई की गांठ बांधते हुए उस ने बच्चे की तरफ देखा तो वह भी रोहित को टकटकी बांध कर देखने लगा. उस समय अनायास ही रोहित को बच्चा बहुत प्यारा लगा. उस ने झुक कर बच्चे की आंखों में झांका तो वह हंस दिया.

तभी आहट हुई तो रोहित झट से उठ कर खड़ा हो गया. ठंड के दिन थे, इसलिए कमरे में हीटर लगा था. बच्चा रोहित की दिशा में पलटा और खिसक कर थोड़ा आगे आ गया. तभी मीनाक्षी ने भी कमरे में प्रवेश किया. उसी क्षण बच्चा लाल ‘राड’ देख कर हुलस कर उसे छूने को लपका. मीनाक्षी यह दृश्य देखते ही भय से चीख उठी. नाश्ते की ट्रे उस के हाथ से छूट गई. उस ने लपक कर बच्चे को अपनी तरफ खींचा तो वह डर कर रोने लगा. रोहित हत्प्रभ खड़ा रह गया. मीनाक्षी उस की तरफ देख कर चिल्ला उठी, ‘‘कैसे बाप हो तुम?’’ लेकिन वाक्य पूरा होने के पूर्व ही वह चुप हो गई. फिर वितृष्णा से बोली, ‘‘नहीं, तुम इस के बाप नहीं हो, क्योंकि तुम ने स्वयं को कभी इस का बाप समझा ही नहीं. अरे, गला घोंट दो इस का क्योंकि यह नाजायज औलाद है. मैं ही मूर्ख थी जो तुम्हारे आंसुओं से पिघल गई.’’ रोते हुए मीनाक्षी बच्चे को उठा कर बाहर चली गई और रोहित ठगा सा खड़ा रह गया. उस दिन दफ्तर में रोहित काफी उलझा रहा. रहरह कर नन्हे का चेहरा, उस की मुसकराहट और फिर घबरा कर रोना, सब कुछ उसे याद आ जाता. वह उस का बेटा है, इस सत्य को वह आखिर क्यों स्वीकार नहीं कर पाता? मीनाक्षी उस की पत्नी है और यह उस की कोख से पैदा हुआ है. मीनाक्षी उसे प्यार करती है, किसी अन्य को नहीं…वह जितना ही सोचता उतना ही उलझता जाता.

उस दिन कार्यालय अधिकारी नहीं आए थे. सभी कर्मचारी थोड़ी देर बाद ही उठ गए. रोहित ने पूछा तो मालूम हुआ कि अधिकारी के पुत्र का निधन हो गया है. बच्चा 8 वर्ष का था. तैरने गया था और डूब गया. रोहित का मन भी दुखी हो गया. वह भी सब के साथ चल पड़ा. अधिकारी अभी युवा ही थे. उन की 2 वर्ष की एक बेटी भी थी. उस की मृत्यु पर उन की हालत काफी खराब हो गई थी. सभी उन्हें तसल्ली दे रहे थे. रोहित ने देखा तो उलझ सा गया, यह होती है पिता की पीड़ा. ये उस के पिता हैं तभी तो इतने दुखी हैं. थोड़ी देर बाद शव उठने लगा तो मां रोती हुई बच्चे से लिपट गई. तभी जैसे एक विस्फोट हुआ. उस के कार्यालय के कर्मचारी ने ही बताया था, ‘‘यह इन की पत्नी का बेटा था. इन का नहीं, इन की तो बेटी है.’’

‘‘मतलब?’’ रोहित ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘इन की यह पत्नी अपनी शादी के सालभर बाद ही विधवा हो गई थी. 2 वर्ष बाद ही इन्होंने इस से शादी कर ली. कुल 22 वर्ष की थी. इन के परिवार वालों ने काफी हंगामा मचाया था, लेकिन इन्होंने किसी की परवा नहीं की. इस से शादी की और बच्चे को अपने खून से भी बढ़ कर चाहा. बाद में लड़की हुई. यह तो बच्चा पैदा करने को ही तैयार नहीं थे कि कहीं बेटे के प्यार में कमी न आ जाए. पता नहीं अब बेटे का वियोग ये कैसे सह पाएंगे.’’ वह व्यक्ति बताता जा रहा था, लेकिन रोहित को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. उस के सामने अपने नन्हे का चेहरा घूम रहा था. वह कितना निष्ठुर बाप है, कितना स्वार्थी. उस ने अभी तक नन्हे को अपना पुत्र नहीं माना है. हर घड़ी उस से दूर ही जाता रहा है. उस के साहब ने तो अपनी पत्नी के पहले पति के बच्चे को अपनाया है, जिस व्यक्ति से उस की पत्नी के शारीरिक संबंध रहे होंगे. लेकिन मीनाक्षी तो उस व्यक्ति को जानती भी नहीं, उसे देखा नहीं, छुआ नहीं. सिर्फ पति के कहने पर बच्चे को जन्म दिया है. वह घर लौटा तो फूलों का एक गुलदस्ता भी ले लिया. कमरे में घुसा तो देखा मीनाक्षी पलंग पर सिर टिकाए लेटी है. उस ने ध्यान से देखा, मीनाक्षी का रंग पहले से दब गया था. वह दुबली हो गई थी. रोहित का मन पश्चात्ताप से भर उठा. सारा द्वेष, रोष बह चला तो ध्यान बच्चे की तरफ गया. प्यार से उस ने उसे उठा लिया.

मीनाक्षी चौंकी, तभी नेहा ऊपर आई और बोली, ‘‘मां कह रही हैं, नन्हे के जन्मदिन में 4 दिन शेष हैं. सामान की और मेहमानों की सूची देख लीजिए.’’

‘‘ठीक है…तुम चलो, मैं अभी आया.’’ नेहा चली गई. मीनाक्षी को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था. वह स्वप्न देख रही है या हकीकत? क्या रोहित बदल गया है?

‘‘रोहित…’’ उस के होंठों से निकला. ‘‘मीनाक्षी, अब कुछ न बोलो. इतने दिनों तक मैं जिस मानसिक संताप से गुजरा हूं उस की आंच मैं ने तुम तक भी पहुंचाई है. मुझे क्षमा कर दो. तुम ने मेरे पौरुष की लाज रखी है, उस को गरिमा प्रदान की है. पर मैं अपने अहं में डूबा रहा. तुम मेरे लिए पहले से भी ज्यादा प्रिय हो…’’ उस का स्वर भर्रा गया. वह आगे बोला, ‘‘आज मेरे अंदर पिता के अधिकार और कर्तव्य ने जन्म लिया है. उसे जिंदा रहना है. मेरे बेटे का जन्मदिन नजदीक ही है, लेकिन मेरे लिए तो उस का जन्म आज ही हुआ है. वह सिर्फ तुम्हारा नहीं, मेरा बेटा भी है…हमारा पुत्र है.’’

‘‘रोहित,’’ मीनाक्षी हैरान थी.

‘‘आओ नीचे चलें. हम अपने बच्चे का जन्मदिन इतनी धूमधाम से मनाएंगे, इतनी धूमधाम से कि…’’

‘‘बसबस,’’ मीनाक्षी ने उस के होंठों पर कांपता हाथ रख दिया.

‘‘मैं जो देख रही हूं, वह सच है तो अब बस…ज्यादा खुशी मैं सह नहीं पाऊंगी.’’

‘‘मीनाक्षी…’’ कहते हुए रोहित ने नन्हे के साथ मीनाक्षी को भी अपने सीने से लिपटा लिया.

 

 

कुहरा छंट गया-भाग 3 : रोहित के मन में कैसे अधिकार और कर्तव्य ने जन्म लिया

‘मीनाक्षी…’ कहता हुआ रोहित पत्नी के सीने में मुंह छिपा कर रो पड़ा. मीनाक्षी प्यार से उस के बालों में उंगलियां फेरती रही.

‘मीनाक्षी, मैं लोगों की नजरों की ताव नहीं सह सकता. मैं…मैं…’ मीनाक्षी ने अपनी हथेली रोहित के होंठों पर रख दी. आगे कुछ भी कहने की जरूरत न थी. वह सब समझ गई. उस ने रोहित को कस कर अपने सीने से चिपका लिया. उस ने फैसला कर लिया कि वह रोहित की बात मान कर गर्भधारण करेगी. घर में रोहित ने बताया कि वह बंबई के प्रसिद्ध डाक्टर से मीनाक्षी की जांच करवाएगा.  अगर जरूरत पड़ी तो उस का छोटा सा औपरेशन होगा और फिर कुदरत ने चाहा तो मीनाक्षी गर्भवती हो जाएगी. मां ने भी साथ चलने की बात की तो रोहित ने मना कर दिया. बंबई के नर्सिंग होम में दोनों की जांच हुई. गर्भधारण करने वाले दिनों के बीच मीनाक्षी के गर्भ में इंजैक्शन के जरिए वीर्य डाल दिया गया. 10 दिन के बाद जब मासिक तिथि गुजर गई तो उस के 24 घंटे के अंदर ही जांच की गई. तब पता चला कि मीनाक्षी गर्भवती हो गई है. इस झूठी खुशखबरी के साथ दोनों वापस घर लौट आए. मीनाक्षी के गर्भवती होने की खबर मानो पूरे घर में होली, दीवाली सा त्योहार ले कर आई. एक बार मीनाक्षी को लगा कि काश, यह गर्भ रोहित से होता तो इस खुशी में वह भागीदार होती. लेकिन फिर उस ने अपने विचारों को झटक दिया और सोचा, इस बच्चे को रोहित का ही मान कर उसे 9 माह गर्भ में रखना है.

एक दिन मां ने कहा, ‘लो बहू, इस में रोहित के बचपन की तसवीरें हैं. इन्हें देखती रहा करोगी तो बच्चा बिलकुल बाप पर जाएगा.’ उस समय रोहित भी वहीं बैठा चाय पी रहा था. मां की बात सुनते ही चाय का प्याला उस के हाथ से छलक गया. थोड़ी सी चाय पैंट पर भी गिर पड़ी. उसे महसूस हुआ जैसे उस के जीवन में भी ऐसा ही गरम छींटा पड़ चुका है. खुशी का यह माहौल कहीं उसे मानसिक क्षति न दे जाए. मीनाक्षी ने मुसकराते हुए तसवीरें ले लीं और गौर से देखने लगी. एक फोटो में रोहित के पूरे बदन पर साबुन का झाग था और वह नंगा था. यह देख कर मीनाक्षी जोर से हंस पड़ी. मां भी हंस दीं, पर रोहित चाह कर भी मुसकरा न सका. न जाने यह कैसी फांस उस  के गले में अटक गई थी जो न उसे हंसने दे रही थी, न सचाई को ईमानदारी से निगलने दे रही थी. धीरेधीरे प्रसव का समय पास आता गया. मीनाक्षी को डाक्टर के पास बराबर रोहित ही ले कर जाता. उस का विचार था कि प्रसव भी बंबई में ही हो, पर मां इस के लिए तैयार न हुईं.

मीनाक्षी ने प्रसव से एक माह पूर्व छुट्टी ले ली. लेकिन एक बात वह गहराई से महसूस कर रही थी कि रोहित उस से कटने लगा है. दफ्तर से भी वह देर से आता था. रात में भी उस की तरफ पीठ कर के सो जाता. कभी किसी काम के लिए वह उसे जगाती तो वह ले आता और स्वयं तकिया उठा कर दूसरे कमरे में जा कर सो जाता. मां को उठना पड़ता है, यह सोच कर मीनाक्षी कई बार तकलीफ होने पर भी रोहित को न उठाती. सोचती, अजीब होता है मर्द का स्वभाव. जिस काम को करवाने के लिए रोहित ने आंसुओं का सहारा लिया, वही आज उसे इस कदर कचोट रहा है कि वह पत्नी के दर्द से अनजान उस से दूर होता जा रहा है. मीनाक्षी जितना भी सोचती उतनी ही उलझती जाती. मां कहतीं, ‘रोहित, बहू को शाम को टहला लाया कर.’ पर उस समय रोहित जानबूझ कर कहीं चला जाता. मीनाक्षी समझ गई थी कि वह उस से कटना चाहता है. शायद कोई ऐसा प्रश्न है जो उसे सहज नहीं होने दे रहा है.

जिस दिन मीनाक्षी को प्रसव पीड़ा हुई उस समय रोहित दफ्तर से अभी तक लौटा न था. बाबूजी ने उसे फोन किया तो पता चला कि वहां से वह 4 बजे ही निकल चुका है. दयाशंकर ने ही आटोरिकशा बुलाया, मां और नेहा ने मीनाक्षी को आटो में बैठाया. पड़ोस की 2-3 महिलाएं भी मदद को आ गईं. फिर शीघ्र ही मीनाक्षी ने साधारण तरीके से एक गोलमटोल बच्चे को जन्म दिया. ‘‘भाभी, भैया आए हैं,’’ नेहा के स्वर पर मीनाक्षी ने ऊपर देखा. अब तक तो वह अतीत के बंद पन्नों में ही उलझी थी. रोहित के एक हाथ में खाने का डब्बा था और दूसरे में गुलाबों का गुलदस्ता. सिर नीचा किए उस ने डब्बा मेज पर रखा तो लक्ष्मी ने नेहा को इशारा किया कि वह भी बाहर चली चले और दोनों को थोड़ी देर अकेला छोड़ दे. मां एवं नेहा के जाते ही रोहित ने मीनाक्षी के कमजोर हाथों को पकड़ कर आंखों से लगा लिया. परंतु उस ने एक बार भी घूम कर बच्चे की तरफ न देखा. मीनाक्षी चाहती थी, रोहित उस से प्यार से कहे कि आज हम पूर्ण हो गए हैं. तुम ने मेरे प्यार को गरिमा प्रदान की है. लेकिन बिना एक शब्द बोले रोहित मीनाक्षी का हाथ हौले से दबा कर बाहर निकल गया. फिर शुरू हुआ रोहित और नन्हे के बीच एक अनजानी दूरी का मौन युद्ध. रोहित सब के बीच बच्चे को देख भी लेता, लेकिन अकेले में वह उस की तरफ रुख न करता. मीनाक्षी जानती थी कि ऐसा क्यों है. नन्हे के जन्म के उपलक्ष्य में दिए गए भोज में भी उस ने विशेष रुचि नहीं दिखाई थी.

लीक की खेती

 प्रदीप कुमार सैनी, पवन कुमार सैनी, डा. कुलदीप कुमार

यूरोपीय देशों की यह एक प्रमुख फसल है, लेकिन अब इसे भारत में गृहवाटिका, फार्महाउस और कुछ प्रगतिशील किसान अपने खेत में भी उगाने लगे हैं.

लीक प्याज समूह व प्रजाति की फसल में आती है जो शरदकालीन मौसम को ज्यादा पसंद करती है. इस की गांठें ज्यादा नहीं बनती हैं और पत्तियां लंबी लहसुन की तरह होती हैं. इस का तना सफेद व पत्ते चौडे़, सीधे व नुकीले होते हैं.

लीक का इस्तेमाल ज्यादातर बड़ेबडे़ होटलों, रैस्टोरैंट वगैरह में होता है. लेकिन आजकल विदेशों से भारत में घूमने आने वाले लोग भी इसे सूप, सलाद व सब्जी के रूप में इस्तेमाल करते हैं. इस में विटामिन, कैल्शियम, लोहा औैर खनिज व लवण प्रचुर मात्रा में मिलते हैं.

भूमि व जलवायु

लीक की फसल या खेती के लिए दोमट या हलकी बलुई दोमट जीवांश वाली जमीन सब से बढि़या रहती है. इस का पीएच मान 6.0-7.0 के बीच का उत्तम होता है.

यह फसल ठंडी जलवायु को ज्यादा पसंद करती है. ज्यादा ठंड जो लंबे समय तक रहे, तो अधिक बढ़वार होती है. 20 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान सब से अच्छा माना गया है, लेकिन अंकुरण के लिए 35 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान उचित रहता है.

खेत की तैयारी

खेत की तैयारी के लिए मिट्टी पलटने वाले हल या ट्रैक्टर हैरो से 2-3 जुताई करें जिस से सभी तरह की घास सूख कर खत्म हो जाए और मिट्टी बारीक हो जाए. 1-2 जुताई और कर के खेत को अच्छी तरह भुरभुरा कर के तैयार कर लेना चाहिए. खेत में घास व ढेले नहीं रहने चाहिए.

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उन्नत किस्में

लीक की कुछ प्रमुख किस्में, जो इस प्रकार हैं :

* प्राइज टेकर मसूल वर्ण.

* अमेरिकन फ्लैग.

* लंदन फ्लैग.

* मैमथ-कोलोसल और दूसरी लोकल किस्में वगैरह.

बीज की मात्रा

लीक के बीज की मात्रा मौसम पर निर्भर करती है. वैसे, उचित समय बोने पर 5-6 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है.

बोआई का समय और पौध तैयार करना

लीक के बीज की बोआई का उचित समय मध्य सितंबर से मध्य अक्तूबर माह तक रहता है. लेकिन इसे नवंबर माह तक लगाया जाता है. पहाड़ी इलाकों में मार्चअप्रैल माह में बोआई करना उचित रहता है.

लीक के बीजों द्वारा पौध तैयार करें. पौधशाला में बीज की बोआई कर के उचित खाद डाल कर क्यारियों में बोना चाहिए. बीज की पंक्तियों में 4-5 सैंटीमीटर और बीज से बीज की दूरी 1-2 मिलीमीटर रखनी चाहिए.

बीज बोने के बाद पंक्तियों में बारीक पत्ती की खाद डाल कर बीज को ढकें और नमी कम होने पर हलकी सिंचाई करते रहें. इस तरह से

10-12 दिन में बीज अंकुरित हो जाते हैं और पौधे 25-30 दिन बाद रोपाई के लायक हो जाते हैं.

खाद व उर्वरक की मात्रा

गोबर की सड़ी खाद 8-10 टन प्रति हेक्टेयर और नाइट्रोजन 100 किलोग्राम, फास्फोरस 80 किलोग्राम और पोटाश 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दें. गोबर की खाद की मात्रा को खेत की जुताई के समय मिलाएं और नाइट्रोजन, यूरिया या सीएएन, जिस की आधी मात्रा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा आखिरी जुताई के समय दें या फिर खेत में भलीभांति मिलाएं.

यूरिया या सीएएन की बाकी बची मात्रा को 2-3 बराबर हिस्सों में बांट कर रोपाई के 20-25 दिन के अंतराल पर तीनों मात्राओं को फसल में टौप ड्रैसिंग के रूप में दें और दूसरी सारी क्रियाएं भी अच्छी तरह पूरी करते रहें.

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रोपाई की विधि और पौधों की दूरी

जब पौध 8-10 सैंटीमीटर ऊंची हो जाएं तो क्यारियों में रोपना चाहिए. क्यारियों में पौधों को पंक्ति में लगाएं. इन पंक्तियों की आपस की दूरी 30 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 15 सैंटीमीटर  रखनी चाहिए. पौधों की रोपाई हलकी नाली बना कर भी कर सकते हैं. पौधों को शाम 3-4 बजे से रोपना शुरू करें और रोपने के बाद हलकी सिंचाई जरूर करें. पौधों की जड़ को 8-10 सैंटीमीटर गहरी जरूर दाबें, जिस से पौधे सिंचाई के पानी से न उखड़ पाएं.

सिंचाई

पहली सिंचाई पौध रोपने के बाद करें और दूसरी सिंचाई 10-12 दिन के अंतराल से करते रहें. इस तरह से 10-12 सिंचाई की जरूरत पड़ती है. जब जमीन की ऊपरी सतह सूखने लगे, तो सिंचाई करनी चाहिए.

निराईगुड़ाई

लीक की निराईगुड़ाई दूसरी फसलों की तरह की जाती है. दूसरी सिंचाई के बाद खेत में जंगली पौधे उग आते हैं. इन का निकालना बेहद जरूरी है. इन को निराईगुड़ाई द्वारा खत्म किया जा सकता है. इस तरह से 2-3 निराईगुड़ाई की पूरी फसल में जरूरत पड़ती है.

इसी प्रक्रिया को जिस में जंगली पौधे या खरपतवार नष्ट हो जाते हैं, उसे खरपतवार नियंत्रण कहते हैं. मुख्य फसल के अलावा दूसरे सभी खरपतवार को हटाया जाता है.

कीट व बीमारियां

इस फसल पर कीट व बीमारियां ज्यादा नहीं लगतीं लेकिन कुछ कीट एफिड वगैरह देरी की फसल में लगते हैं, जिन का नियंत्रण करने के लिए रोगोर, नूवान का 1 फीसदी घोल बना कर स्प्रे करते हैं. देरी वाली फसल में पाउडरी मिल्ड्यू बीमारी लगती है. जो फफूंदीनाशक बावस्टीन, डाइथेन एम 45 के 1 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल कर स्प्रे करने से नियंत्रित हो जाती है.

लीक की तुड़ाई

लीक के पौधे प्याज या लहसुन की तरह बढ़ कर तना मोटा 2-3 सैंटीमीटर व्यास का हो जाए तो उखाड़ लेना चाहिए और लंबी पत्तियों के कुछ भाग को काट कर अलग कर देते हैं और जड़ वाले भाग को हरे प्याज की तरह धो कर बंडल या गुच्छी, जिस में 1 दर्जन या 2 दर्जन लीक रखते हैं. इन्हीं गुच्छी को मंडी या मौडर्न सब्जी बाजार की दुकानों पर भेज देते हैं.

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उपज

लीक की उपज हरे प्याज की भांति मिलती है. यह प्रति पौधा पत्तियों समेत 125-150 ग्राम उपज देता है, जो कि पूरे खेत में 400-500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हासिल होता है.

कुहरा छंट गया-भाग 2 : रोहित के मन में कैसे अधिकार और कर्तव्य ने जन्म लिया

‘तो?’ मीनाक्षी ने रोहित की तरफ देखा.

‘देखो मीनाक्षी, हम बच्चा पैदा नहीं कर सकते. इसी तरह की समस्या हमारी भी है. क्यों न हम भी यही करें,’ रोहित ने मीनाक्षी को समझाने का प्रयास किया.

‘तुम्हारा मतलब क्या है?’ मीनाक्षी की त्योरी चढ़ गईं.‘मतलब यह कि उस बच्चे को पैदा तुम करोगी और बाप मैं कहलाऊंगा.’

‘नहीं, रोहित…’ मीनाक्षी भड़क कर खड़ी हो गई, ‘एक पराए पुरुष का वीर्य मेरे गर्भ में जाएगा…वहां धीरेधीरे एक बच्चे का निर्माण होगा. न तुम जानते होगे कि वह बच्चा किस का है. न मैं जानूंगी कि वह वीर्य किस पुरुष का  है. पर जब किसी पराए पुरुष का वीर्य मेरे गर्भ में जाएगा तो मैं पवित्र कहां रहूंगी? पति के अलावा किसी दूसरे पुरुष की सहगामिनी तो बनी…?’

‘लेकिन यह कृत्रिम गर्भाधान होगा… वीर्य इंजैक्शन के सहारे तुम्हारे अंदर डाला जाएगा.’ ‘चाहे जैसे भी हो, शारीरिक मिलन के दौरान भी तो यही क्रिया होती है. फर्क यह है कि यहां बगैर पुरुष को देखे या छुए उस का वीर्य अंदर जाएगा. मैं तुम्हारी बात तो नहीं जानती लेकिन मेरा हृदय इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है.’रोहित खामोश हो गया. मीनाक्षी का कहना भी सही था. जाति, धर्म की तो उसे चिंता नहीं थी, लेकिन बच्चा अपने खानदान, अपने रक्त से तो जुड़ नहीं सकेगा. आजीवन वह उसे अपना बच्चा नहीं समझ पाएगा. क्या मात्र मां के गर्भ में रह कर वह उस का पुत्र हो जाएगा? बचपन से अब तक जो संस्कार उस के अंदर डाले गए हैं कि पिता को अग्नि देने का अधिकार पुत्र को है, क्या वह उसे नकार पाएगा? मीनाक्षी के गर्भ में रह कर, उस की छाती का दूध पी कर वह उस के वात्सल्य का भागीदार तो हो जाएगा, पर क्या उस से भी…?

यह मुद्दा ऐसा उठा जिस ने रोहित और मीनाक्षी के बीच एक अनजानी दूरी बिखेर दी. अब तो रोहित भी तंग आ चुका था. यारदोस्त उस से कुछ पूछते या सहानुभूति जताते या डाक्टर का पता देते तो उसे लगता, उस का पौरुष मोम बन कर पिघल रहा है. कुदरत ने उस के साथ ऐसा मजाक क्यों किया? उस के आंगन में एक भी फूल नहीं खिल रहा था. मां कई बार उस से कह चुकी थीं कि वह बहू की जांच करवा ले, पर वह उन्हें कैसे बताता कि कमी उन की बहू में नहीं, स्वयं उसी में है. धीरेधीरे रोहित और मीनाक्षी इस तथ्य को स्वीकारने लगे कि उन के बीच तीसरा कभी नहीं आएगा. मीनाक्षी स्कूल में और रोहित दफ्तर में अपना वक्त गुजारता रहा. मांबाप की बातें दोनों एक कान से सुनते और दूसरे से निकाल देते. उन्हीं दिनों रोहित ने मीनाक्षी को फिर आ कर बताया कि उस का एक मित्र अपनी पत्नी का कृत्रिम गर्भाधान करवा कर आया है. न जाने रोहित सच कह रहा था या मीनाक्षी को मानसिक रूप से तैयार कर रहा था, लेकिन मीनाक्षी को प्रतीत हुआ जैसे यह मुद्दा उन के विवाहित जीवन में खाई पैदा कर देगा. वह जानती थी कि बच्चा पैदा कर के वह रोहित से और दूर हो जाएगी. कहीं रोहित के दिमाग में कोई बात बैठ गई तो? मर्द के स्वभाव का क्या भरोसा? मीनाक्षी पढ़ीलिखी, अच्छे संस्कार वाले परिवार की बेटी थी, पति को हर हाल में स्वीकार करने वाली. उस ने रोहित को कई बार समझाने का प्रयास किया कि एक बच्चा ही तो जीवन की मंजिल नहीं. वह चाहे तो अनाथालय से कोई बच्चा गोद ले ले.

लेकिन लक्ष्मी या दयाशंकर इस के लिए तैयार न होते थे. अगर रिश्तेदारों का बच्चा गोद लेते तो उस पर अंत तक रोहित या मीनाक्षी अपना हक न समझ पाते. इस तरह के कई केस हुए थे, जब बच्चों के मांबाप महज जायदाद के लालच में अपना बच्चा दे तो देते हैं, लेकिन हर मामले में राय देने भी पहुंच जाते हैं. अब समस्या यह थी कि बच्चा आए कहां से? गोद लेना नहीं था और कृत्रिम गर्भाधान के लिए मीनाक्षी तैयार नहीं थी. ‘तो क्या रोहित का दूसरा ब्याह कर दिया जाए?’ यह लक्ष्मी की राय थी. लेकिन रोहित जानता था कि वह चाहे दूसरी शादी कर ले या तीसरी, वह बच्चा पैदा नहीं कर सकता. वह एक उमस भरी रात थी. अचानक मीनाक्षी उठी तो देखा, कूलर का पानी खत्म हो गया है, सिर्फ पंखा चल रहा है. उस ने सोचा, गुसलखाने से पानी ला कर डाल दे, तभी उस की नजर बगल में पड़े पलंग पर पड़ी. रोहित वहां नहीं था. वह चौंकी और घड़ी पर नजर डाली. रात के 2 बजे थे. इस समय रोहित कहां चला गया? उबासी लेते हुए उस ने खिड़की से बाहर झांका. छत पर दीवार का सहारा लिए एक साया सा नजर आया. कूलर बंद कर के मीनाक्षी दबेपांव छत पर गई.

‘यहां क्या कर रहे हो, रोहित?’ मीनाक्षी ने हौले से पूछा. रोहित घूमा तो मानो मीनाक्षी के दिल पर बिजली सी गिरी. उस की आंखें डबडबाई हुई थीं. मीनाक्षी का दिल धक से रह गया. उस ने आज तक रोहित को हंसतेमुसकराते या खामोश तो देखा था, पर रोते हुए पहली बार देखा था. उस का हृदय चीत्कार कर उठा. ऐसी कौन सी बात हो गई जो रोहित को रुला गई?

‘रोहित…तुम रो क्यों रहे हो?’

Crime Story: प्यार पर जोर नहीं

सौजन्या-सत्यकथा

उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के गांव पचैमी की रहने वाली नन्ही रामऔतार की पत्नी थी. उस का विवाह रामऔतार से करीब 15 साल पहले हुआ था. उस के 6 बच्चे थे. रामऔतार का गांव के ही इतवारी और उस के 2 बेटों से जमीन को ले कर विवाद हुआ तो वह पत्नी व बच्चों के साथ बदायूं के कलौरा गांव में परिवार के साथ आ कर रहने लगा.

यहां वह एक ईंट भट्ठे पर काम करने लगा. काम करते रामऔतार की दोस्ती कलौरा गांव के ही नरेंद्र से हो गई. नरेंद्र भी उस के साथ ही काम करता था. 35 वर्षीय नरेंद्र अविवाहित था. वह अपने भाइयों में सब से बड़ा था. उस के पास खेती की कुछ जमीन थी, जिस पर वह खेती करता था. खेती करने से बचे समय में वह ईंट भट्ठे पर काम करता था.

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रामऔतार और नरेंद्र में दोस्ती करीब 2 साल पहले हुई थी. दोस्ती हुई तो नरेंद्र का रामऔतार के घर आनाजाना शुरू हो गया. आनेजाने के दौरान ही कुंवारे नरेंद्र को नन्ही का रूपरंग भा गया था. रामऔतार की गैरमौजूदगी में भी वह नन्ही का हालचाल जानने के बहाने उस के घर चला आता था. नन्ही उस की खूब आवभगत करती थी.

नरेंद्र मंझे हुए खिलाड़ी की तरह अपना हर कदम आगे बढ़ा रहा था. जब भी वह रामऔतार के घर जाता, उस की नजरें नन्ही के इर्दगिर्द ही घूमा करती थीं. वह उस पर दिलोजान से लट्टू था. 6 बच्चों की मां बनने के बाद भी नन्ही में आकर्षण था. उस के इकहरे बदन में मादकता का बसेरा था.

नरेंद्र दोस्त की गैरमौजूदगी में नन्ही को कभीकभी तोहफा दे आता तो कभी रुपए दे कर खुश कर देता. उस के इस आत्मीय व्यवहार से नन्ही उस का खूब सत्कार करती और उस से खुल कर बातें करती थी.

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एक दिन दोपहर को जब नन्ही घर में अकेली थी, अचानक नरेंद्र उस के यहां पहुंच गया. हमेशा की तरह नन्ही ने उस का स्वागत किया और चाय बना कर दी. फिर हंसते हुए बोली, ‘‘आज आप की दोस्त से मुलाकात नहीं हो पाएगी. क्योंकि वह काम से बाहर गए हैं.’’

नरेंद्र के होंठों के कोनों पर शैतानी मुसकान आ बैठी, ‘‘कोई बात नहीं भाभी, असल में आज मैं तुम से ही मिलने आया था.’’

‘‘ऐसी क्या बात है कि आप को खास मुझ से मिलने की जरूरत आ पड़ी. बताओ, मैं किस काम आ सकती हूं.’’ वह बोली.

नन्ही का मन टटोलने के लिए नरेंद्र बोला, ‘‘वक्तबेवक्त अपनों का फर्ज बनता है कि अपनों की मदद करें. तुम्हें पता है कि मैं ने तुम्हारे लिए कभी अपना हाथ नहीं खींचा. आज उसी मदद का प्रतिदान मांगने आया हूं.’’ नन्ही समझ नहीं पाई कि नरेंद्र कहना क्या चाहता है. वह बस इतना कह पाई, ‘‘आप कहिए तो, मैं आप के किस काम आ सकती हूं.’’

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जवाब में नरेंद्र ने उस का हाथ पकड़ कर उसे अपनी बगल में बैठा लिया. फिर उस की जांघ पर हाथ रखते हुए उस के कान में बोला, ‘‘मैं ने मन से तुम्हारी मदद की, अब तुम तन से मेरी मदद कर दो.’’ कहने के साथ ही उस ने हाथ नन्ही की कमर में डाल कर उसे खुद से सटा लिया और उसे चूमते हुए बोला, ‘‘सच कहता हूं, मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. तुम्हें कसम है मेरे प्यार की, इनकार मत करना.’’

नन्ही हतप्रभ रह गई. उस ने नरेंद्र से हटने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे दोस्त की बीवी हूं. वह तुम पर बहुत विश्वास करते हैं. यह विश्वास टूटा तो दिल टूट जाएगा.’’

‘‘मैं तुम्हारे पति के विश्वास को कभी टूटने नहीं दूंगा. यकीन करो, हमारे बीच जो होगा, उसे मैं छिपा कर रखूंगा.’’ नरेंद्र ने कहा.

नन्ही के होंठ एक बार फिर बुदबुदाए, ‘‘कल जब यह भेद खुलेगा तो हम कहीं के नहीं रहेंगे.’’‘भेद खुलेगा कैसे? मैं तुम्हें अपना समझता हूं. अब न मत करो.’’ उस के बाद नरेंद्र के हाथ नन्ही के बदन पर रेंगने लगे.

उस की हरकतों से नन्ही के विवेक पर भी परदा पड़ गया. नन्ही भी सारी मानमर्यादा भूल कर नरेंद्र के साथ अनैतिक रिश्ता बना बैठी. अपने स्त्री धर्म पर दाग लगा चुकी नन्ही को यह सब करने का पछतावा इसलिए अधिक नहीं हुआ क्योंकि अविवाहित नरेंद्र का साथ उसे बहुत अच्छा लगा था.

औरत एक बार जब फिसलती है तो फिर फिसलन की राह पर जाने से अपने कदमों को रोक नहीं पाती. फिर नरेंद्र जैसा बहकाने वाला मर्द हो तो नन्ही जैसी औरतें कहां खुद को रोक पाती हैं. लिहाजा नन्ही और नरेंद्र के संबंधों का सिलसिला चल निकला.

नरेंद्र नन्ही को तोहफेऔर पैसे दे कर खुश रखता तो बदले में वह भी उसे खुश रखती. लेकिन अवैध संबंध कायम रखने में चाहे कितनी सावधानी क्यों न बरती जाए, एक दिन उन की पोल खुल ही जाती है. इन दोनों का राज भी खुल गया.

दरअसल, एक दिन रामऔतार अपने काम से जल्दी लौट आया, उसे कुछ अपनी तबियत ठीक नहीं लग रही थी. घर का मेनगेट खुला होने के कारण वह सीधा अंदर चला आया.

उस ने अंदर का जो दृश्य देखा, वह जड़वत खड़ा रह गया. उस की बीवी नरेंद्र की बांहों में झूल रही थी. यह देखते ही रामऔतार की आंखों में खून उतर आया. वह चीखा तो दोनों हड़बड़ा कर अलग हो गए.

नरेंद्र तो तुरंत वहां से भाग खड़ा हुआ, नन्ही भला कहां भागती. वह अपराधबोध से नजरें झुकाए सामने खड़ी थी. रामऔतार ने लातघूंसों से उस की पिटाई करनी शुरू कर दी, ‘‘हरामजादी, मैं तेरी सुखसुविधाओं के लिए बाहर खट रहा हूं और तू गैरमर्द के साथ घर में गुलछर्रे उड़ा रही है. तूने एक बार मर्यादा के बारे में नहीं सोचा. कल जब तेरा कलंक गलीमोहल्ले वालों को पता लगेगा तो मैं सिर उठाने लायक रह पाऊंगा?’’

पति को गुस्से में जलता देख नन्ही ने त्रियाचरित्र दिखाया, ‘‘मैं ने बहुत विरोध किया लेकिन तुम्हारी गैरमौजूदगी में तुम्हारा दोस्त मेरे साथ जबरदस्ती पर आमादा हो गया था. घर में मुझे अकेला पा कर उस के हौसले और भी बढ़ गए. मोहल्ले वालों की मदद इसलिए नहीं ली कि बात गांव में फैलती तो और बदनामी हो जाती. मैं कसम खा कर कहती हूं कि मैं मजबूर थी.’’

नन्ही ने चालाकी से अपने आप को बचा लिया. उस दिन के बाद से नरेंद्र काफी दिनों तक रामऔतार के सामने नहीं पड़ा और न ही उस के घर गया. लेकिन जिस्म की आग भला कहां चैन लेने देती है. फिर से नरेंद्र रामऔतार के घर उस की गैरमौजूदगी में जाने लगा. लेकिन अब दोनों ही सावधानी बरतने लगे थे.

20 अगस्त, 2020 की रात रामऔतार छत पर सो रहा था. नन्ही नीचे कमरे में सो रही थी. रात सवा 11 बजे कुछ लोगों ने घर में घुस कर रामऔतार को गोली मार दी.

गोली की आवाज सुन कर गांव के लोग घरों से जब तक बाहर निकलते, तब तक हमलावार वहां से भाग गए.गोली की आवाज सुन कर नन्ही कमरे से बाहर निकली और छत की तरफ देखा तो उसे अनहोनी की आशंका हुई. वह सीढि़यां चढ़ कर छत पर गई तो अपने पति रामऔतार को मृत पाया. वह रोनेचिल्लाने लगी.

गोली की आवाज सुन कर घर से निकले आसपड़ोस के लोगों ने रामऔतार के घर से रोने की आवाजें सुनीं तो वहां पहुंच गए. छत पर खून से लथपथ रामऔतार की लाश पड़ी हुई थी, वहीं पास बैठी नन्ही रो रही थी.

उसी दौरान किसी ने 112 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस को दे दी. घटनास्थल दातागंज थाने में आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से इस की सूचना दातागंज थाने को दे दी गई.

सूचना पा कर थानाप्रभारी अजीत कुमार सिंह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. रामऔतार के सीने में गोली लगने का घाव था. छत व आसपास की लोकेशन को देखने के बाद उन्होंने नन्ही से पूछताछ की.

नन्ही ने बताया कि वह नीचे कमरे में सो रही थी. गोली चलने की आवाज सुन कर बाहर आई तो यहां कोई नहीं था, न किसी को उस ने वहां से भागते देखा. छत पर आई तो पति की लाश पड़ी मिली.

किसी पर शक होने के बारे में पूछने पर उस ने बताया कि वह अपने पति के साथ बरेली के फरीदपुर के पचैमी गांव में रहती थी. वहां गांव के ही इतवारी और उस के बेटों कलट्टर और अर्जुन से उस के पति का जमीनी विवाद चल रहा था. उस विवाद की वजह से ही वह पति के साथ यहां आ कर रह रही थी. नन्ही ने आरोप लगाया कि उन तीनों ने ही उस के पति को मारा है.

आसपास के लोगों से पूछताछ करने पर पुलिस को ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली, जो केस खोलने के काम आए. पूछताछ के बाद थानाप्रभारी अजीत कुमार सिंह ने लाश मोर्चरी भेज दी. फिर नन्ही को सुबह थाने आने को कह कर वापस थाने लौट गए.

सुबह थाने पहुंच कर नन्ही ने इतवारी, कलट्टर और अर्जुन के खिलाफ भादंवि की धारा 302/34 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. थानाप्रभारी सिंह ने जांच शुरू की. सब से पहले उन्होंने तीनों नामजद लोगों के बारे में पता किया. उन के फोन नंबर ले कर घटना की रात की लोकेशन की जांच की तो घटनास्थल तो क्या दूरदूर तक उन की लोकेशन नहीं मिली. इस से थानाप्रभारी को लगा कि दुश्मनी की आड़ में कोई और ही काम को अंजाम दे गया है.

थानाप्रभारी अजीत सिंह की सोच यह थी कि गांव के या आसपास के ही किसी परिचित ने इस घटना को अंजाम दिया होगा. इसलिए थानाप्रभारी सिंह ने रामऔतार के दोस्तों और उस के घर आनेजाने वाले लोगों के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि गांव के नरेंद्र नाम के युवक से रामऔतार की अच्छी दोस्ती थी. वह दिन में उस के घर के कई चक्कर लगाता था.

यह जानकारी मिली तो उन्होंने 26 अगस्त को नरेंद्र को शक के आधार पर हिरासत में ले लिया. जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार करते हुए हत्या में साथ देने वालों के नाम भी बता दिए.

हत्या में उस का साथ मृतक की पत्नी नन्ही, नरेंद्र के सगे भाई मुकेश, मौसेरे भाई रिंकू, दोस्त रामनिवास और मुकेश ने दिया था. पुलिस ने उसी दिन नन्ही और रामनिवास व मुकेश को गिरफ्तार कर लिया.

उन सभी से पूछताछ करने पर पता चला कि नन्ही और नरेंद्र रामऔतार की गैरमौजूदगी में सावधानी से मिल तो रहे थे लेकिन कई बार पकड़े जाने से बालबाल बचे थे. अब पकड़े जाने पर उन्हें रामऔतार की ओर से कोई खतरनाक कदम उठाए जाने का भी अंदेशा था.

वैसे भी जब से रामऔतार ने नन्ही को नरेंद्र के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देखा था, तब से वह वक्तबेवक्त घर आ धमकता था. उस के घर आने का खौफ दोनों के दिमाग पर हावी रहने लगा. ऐसे में वे दोनों ठीक से मिल भी नहीं पाते थे. इसलिए रामऔतार नाम के खौफ को हमेशा के लिए अपनी जिंदगी से मिटाने का उन दोनों ने फैसला कर लिया.

रामऔतार की हत्या में साथ देने के लिए नरेंद्र ने अपने सगे भाई मुकेश, मौसरे भाई रिंकू, दोस्त रामनिवास निवासी गांव मलौथी थाना दातागंज और दोस्त मुकेश निवासी गांव छेदापट्टी, जिला शाहजहांपुर को तैयार कर लिया. सब के साथ मिल कर नरेंद्र ने हत्या की योजना बनाई. योजना बना कर नन्ही को नरेंद्र ने पूरी योजना के बारे में बता दिया.

20 अगस्त की रात जब रामऔतार छत पर सो रहा था. नन्ही नीचे कमरे में जागी हुई उस का इंतजार कर रही थी. रात सवा 11 बजे नरेंद्र अपने साथियों के साथ रामऔतार के घर पहुंच गया और नन्ही द्वारा रामऔतार के छत पर सोने की बात बताने पर सभी छत पर पहुंच गए और सोते हुए रामऔतार के सीने पर गोली मार दी.

गोली लगते ही रामऔतार ने दम तोड़ दिया. इस से पहले कि कोई वहां आए, वे लोग वहां से फरार हो गए. नन्ही योजना के अनुसार कुछ देर बाद छत पर जा कर रोनेचिल्लाने लगी.

वे हत्या करने की अपनी योजना में तो सफल हो गए, लेकिन अपने आप को बचाने में सफल नहीं हो पाए और पकड़े गए. थानाप्रभारी अजीत कुमार सिंह ने मुकदमे में धारा 120बी और बढ़ा दी. अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त तमंचे के साथ एक और तमंचा बरामद कर लिया.

कागजी खानापूर्ति करने के बाद चारों अभियुक्तों नन्ही, नरेंद्र, रामनिवास और मुकेश को सक्षम न्यायालय में पेश करने के बाद उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक नरेंद्र का भाई मुकेश और मौसेरा भाई रिंकू फरार थे, पुलिस सरगर्मी से उन की तलाश कर रही थी.

माइंड द गैप : अपने आपको क्राॅस चेक करना भी जरूरी है

दो साल पहले मैंने एक इंटरव्यू में शबाना आजमी से यह सवाल पूछा था कि क्या उन्होंने कभी अपने कॅरियर में इस हकीकत का सामना किया है कि वो अपनी टैलेंट को लेकर गलतफहमी का शिकार थीं? इस सवाल पर हंसते हुए उन्होंने एक ऐसा किस्सा सुनाया, जिसमें हर किसी के लिए सीख है. शबाना आजमी के मुताबिक श्याम बेनेगल ने उन्हें साल 1975 मंे फिल्म निशांत के लिए कास्ट किया था, जिसमें मुझे एक ग्रामीण महिला का रोल निभाना था. हमारी शूटिंग हैदराबाद के पास ग्रामीण इलाके में होनी थी, श्याम बेनेगल मुझसे कहते थे, मैं आसपास के किसी गांव वाली महिला से मिलूं, उसको चलते फिरते देखूं और समझूं कि ग्रामीण महिलाओं की भाव भंगिमाएं कैसी होती हैं? लेकिन मुझे लगता था कि मैं एफटीआईआई की मोस्ट टैलेंटेड छात्र रही हूं और पढ़ाई के दौरान ही कई देसी विदेशी फिल्मों में काम करके खूब नाम कमाया है, इसलिए मुझे एक आम ग्रामीण औरत का अभिनय करने में क्या मुश्किल होगी? इसलिए मैंने श्याम की बातों पर ध्यान नहीं दिया.

दो दिन बाद शूटिंग शुरु हुई, लेकिन बात बन नहीं रही थी तो श्याम बेनेगल ने शूटिंग रोक दी और मुझे सख्त निर्देश दिया कि मुझसे जो कुछ कहा जायेगा, मैं वैसा ही करूंगी. रात में जब हम सब लोग डिनर करने के लिए इकट्ठा हुए तो हम सब डायनिंग टेबल पर बैठे थे, तभी श्याम बेनेगल ने मुझसे कहा कि तुम दूर जमीन में उकडू बैठकर खाना खाओगी. मुझे पहले अपमान सा लगा, लेकिन मैंने जल्द समझ लिया कि इसमें कुछ मेरी ही भलाई होगी. दो दिन तक यही सिलसिला चला. मुझे सूती धोती और रबर की चप्पलें हर समय पहनने का आदेश था साथ ही खाना भी वैसे ही जमीन में बैठकर खाना था. एक हफ्ते बाद हमारी शूटिंग हो रही थी और बहुत सारे लोग शूटिंग देखने के लिए वहां आ गये. वो लोग श्याम बेनेगल से पूछने लगे तुम्हारी हीरोइन कहां है? श्याम बेनेगल के चेहरे में हल्की सी मुस्कुराहट आयी, उन्होंने दोपहर को लंच के टाइम मुझसे कहा, अब तुम आकर हमारे साथ टेबल में खाना खा सकती हो. क्योंकि अब तुमने अपने आपको आम गांव की महिला साबित कर दिया है, क्योंकि आम लोग तुम्हें हीरोइन नहीं गांव की कोई कामवाली मान रहे थे.

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शबाना आजमी के जीवन का यह दृष्टांत बताता है कि हमें सफलता के शिखर तक पहुंचने के लिए हमेशा अपने टैलेंट पर शक करते रहना चाहिए. आज की बढ़ती प्रतिस्पर्धा से हम अनजान नहीं हैं. हर कोई बेहतरी की इस दौड़ में शामिल है ताकि दूसरों को पछाड़ सके. लेकिन तमाम लोग मेहनत करने के बावजूद पिछड़ जाते हैं. चूंकि तरक्की पाने के लिए आज की प्रतिस्पर्धा में हममें कौशल का होना बहुत जरूरी है. ऐसे में अपने टैलेंट पर शक न करना, समझदारी नहीं है. दरअसल कई बार हममें बिना किसी ठोस आधार के यह गुमान भर जाता है कि हम अपने क्षेत्र के एक्सपर्ट हैं. ऐसी खुशफहमी पालने के पहले हमें एक बार यह जरूर सोचना चाहिए कि अगर ऐसा होता तो क्या हम आज सफलता के शिखर पर न होते? जाहिर है, जहां हम पहुंचना चाहते हैं, उसके भी दो कदम आगे पहुंच गए होते. लेकिन तथ्य यह है कि आज भी अगर हम प्रयासरत हैं और आगे बढ़ने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे हैं, तो ऐसा भी तो हो सकता है कि इसकी वजह हममें टैलेंट की कमी हो सकती है. तो क्यों न किसी खुशफहमी के तहत निराश होने से बेहतर है कि एक बार हम खुद अपने टैलेंट को भी क्राॅस चेक करें.

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अपने कौशल का एनालिसिस बहुत जरूरी है. इससे आपको यह जानने में आसानी होगी कि आखिर आपसे कहां चूक हो रही है और अब तक क्यों बीच रास्ते में अटके हुए हैं? दरअसल सफल होने के लिए, कॅरिअर चुनने के लिए न सिर्फ सही जगह सही मेहनत जरूरी है बल्कि खुद का विश्लेषण भी आवश्यक है. वास्तव में हम कॅरिअर चयन से लेकर कॅरिअर को शेप देने तक में तमाम बड़े फैसले तो कर लेते हैं; लेकिन खुद का विश्लेषण करना भूल जाते हैं. जबकि हमें निरंतर प्रगति के लिए खुद का, अपने किये गए फैसलों का विश्लेषण करना चाहिए. इतना ही नहीं अपनी काबिलियत, अपनी कमजोरियों का भी एनालिसिस बहुत जरूरी है. वैसे भी कहा जाता है कि सफलता यूं ही हाथ नहीं लगती. इसके लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है.

सफल होने के लिए सबसे पहले खुद से यह सवाल करें कि आपको कहां जाना है और आप फिलहाल कहां खड़े हैं? कहने का मतलब यह कि आप अपनी चाहत और आपकी हकीकत का फर्क समझें. इसका विश्लेषण करें. यह जानने की कोशिश करें कि आपको आगे बढ़ने में या अपनी मंजिल हासिल करने में और कितना समय लग सकता है? इससे आपको यह अनुमान लगाने में आसानी होगी कि तरक्की आपसे कितनी दूर खड़ी है? यही नहीं इससे आप यह भी जान जाएंगे कि आखिर आपकी रफ्तार कितनी तेज है. सफल होने के लिए सिर्फ मंजिल की ओर फोकस रहना ही जरूरी नहीं है बल्कि रफ्तार पर ध्यान देना भी आवश्यक है. इससे आपमें रिस्क लेने की क्षमता भी विकसित होगी.

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एक बात और ध्यान रखें. सफलता एक झटके में हासिल नहीं होती और न ही कॅरिअर अकेले के दम पर बनाया जा सकता है. अकसर लोग इस गलतफहमी का शिकार हो जाते हैं कि उनकी तरक्की नितांत निजी है. इसमें दूसरों को सहयोग नहीं है. विशेषज्ञों की मानें तो सफलता टीम वर्क से हासिल होती है. हर कोई हर समय टीम से घिरा होता है. फिर चाहे आप टीम वर्क पर विश्वास करते हैं या नहीं. इसका विश्लेषण करना भी जरूरी है कि आपके जीवन में टीम का क्या महत्व है? क्या आप बिना टीम के सफल हो रहे हैं? आमतौर पर ऐसा कभी नहीं होता. हां, ऐसा हो सकता है कि आप टीम के लीडर की भूमिका अदा कर रहे हैं. अगर ऐसा है तो यह वाकई सरहानीय है. क्योंकि टीम लीडर बनने के लिए आपमें कई गुणों का होना आवश्यक है. इनमें से एक है आप रिस्क टेकर हों, तुरंत फैसले करने वाले हों, क्रइसेस पर्सन हों. कहने का मतलब यह है कि अगर आप टीम लीडर हैं तो इस बात का विश्लेषण करें कि क्या वाकई आप टीम लीडर हैं या फिर चापलूसी ने आपको उस मुकाम तक पहुंचाया है? अगर ऐसा है तो यकीन मानिए जल्द आपकी तरक्की पर पूर्ण विरमा लगने वाला है.

निःसंदेह आप स्वयं इस बात से बावस्ता होंगे कि अगर आपमें काबिलियत नहीं है, लीडर बनने की योग्यता नहीं है और फिर भी लीडर हैं तो आपकी सीमा जल्द नजर आने लगेगी. अपनी जरूरतों को, अपनी मजबूरी और मजबूती का सही से विश्लेषण करें. सफलता ज्यादा दूर नजर नहीं आएगी. लेकिन साथ ही यह जानने की कोशिश करें कि आप जो कर रहे हैं, वह कितना सही है? इसमें कोई दो राय नहीं है कि जब तक हम किसी आइडिये को अमली जामा नहीं पहनाते तब तक वह महज कल्पना होती है. कल्पना जब व्यवाहारिक रूप लेती है तभी उसके सफल-असफल होने पर चर्चा की जा सकती है. लोग अकसर यहीं यह भूलकर बैठते हैं कि अपने आइडियाज को अपने दिल में ही छिपाए रखते हैं या फिर उसे मूर्त रूप देने से डरते हैं. वे दूसरों की खिल्ल्यिां और मजाक बनने से कतराते हैं. इस तरह की सोच आपको आगे बढ़ने से रोकती है. इसलिए इस तरह की बातों को खुद से छिटक दें और आगे बढ़ने की कोशिश करें.

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अपने विचारों का विश्लेषण करें. आइडिया अगर फेल हो जाए यानी आप असफल हो जाएं तो क्या आगे बढ़ने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं? नहीं. अपने आइडिया पर दोबारा काम करें. अपनी टीम पर विश्वास करें. अपने काम को अंजाम देने की कोशिश करें. अपने टीम के लोगों से बात करें. आखिर असफलता क्यों हाथ लगी, इस पर चर्चा करें. विशेषज्ञ कहते हैं कि असफलता को गले लगाएं ताकि हारने से डर न लगे. जो हारने से डरते हैं, वे अकसर किसी मुकाम तक नहीं पहुंचत.

पुस्तकों को साथी बनाएं, सुकून पाएं

किसी खराब संगत से एकांत अच्छा होता है और पुस्तकें एकांत की सब से अच्छी दोस्त होती हैं. ये पुस्तकें ऐसी मित्र होती हैं, जो हर काल और समय में साथ देती हैं.

जो लोग अपना खाली समय पुस्तकों के साथ व्यतीत करते हैं, उन के पास ज्ञान, तर्क और जानकारी सभी कुछ होता है. पुस्तकों का केवल अध्ययन ही जरूरी नहीं है, इन का मनन भी जरूरी होता है. आज के तनाव भरे जीवन में पुस्तकों को अपना साथी बनाएं और सुकुन पाएं.

आज सोशल मीडिया का जमाना है. इसी में सभी व्यस्त हैं. सुबह उठते ही सब से पहले मोबाइल हाथ में आ जाता है. यहीं से दिन की शुरुआत हो जाती है. घर से औफिस जाने के रास्ते में मौका मिलते ही मोबाइल खुल जाता है. औफिस में काम के साथ ही साथ सोशल मीडिया पर अपडेट भी जारी रहता है. ऐसे ही शाम बीत जाती है. देर रात तक सोशल मीडिया का प्रयोग होता रहता है.

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पूरी दुनिया एक मोबाइल स्क्रीन पर सिमट कर रह गई है. केवल काम ही नहीं, हंसीखुशी प्यार और सेक्स तक वर्चुअल होने लगा है. वीकएंड में जब समय निकाल कर परिवार के साथ बाहर जाया भी जाता है, तो सब से पहले सोशल मीडिया पर स्टेटस शेयर होती है. हम कहां लंच और डिनर कर रहे हैं. यही नहीं, क्या खा रहे हैं, इस की फोटो भी सब से पहले शेयर की जाती है.

लोगों ने पुस्तकों से दोस्ती भी सोशल मीडिया पर करनी शुरू कर दी. पुस्तकों की जगह उन की पीडीएफ और डिजिटल संस्करण पढ़े जाने लगे. कोविड 19 के दौर में तो स्कूल और कालेजों की पढ़ाई भी मोबाइल स्क्रीन पर होने लगी है. समय के साथ हो रहे इस बदलाव में अगर कुछ मोबाइल स्क्रीन पर नहीं है तो वह है जीवन में पाया जाने वाला सुकून.

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मोबाइल के बढ़ते प्रयोग ने लोगों के जीवन में ना केवल तनाव बढ़ा दिया है, बल्कि लोगों की नींद उड़ा दी है. लोग अनिद्रा के शिकार हो रहे हैं, चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है. बच्चों में सीखने और विषयों को याद रखने की दिक्कत होने लगी है. आंखों और सिर में दर्द भी होने लगा है. इस का सब से बड़ा कारण यही है कि हमारे जीवन से पुस्तकों की दूरी बन गई है.

एकाग्रता बढ़ाने में मदद करती हैं पुस्तकें:

क्लिनिकल साइकोलौजिस्ट आकांक्षा जैन कहती हैं, ‘पुस्तकें केवल सुकून देने का ही काम नहीं करती हैं, बल्कि यह एकाग्रता बढ़ाने का काम भी करती हैं. अपनी पसंदीदा पुस्तकें पढ़ने से ना केवल मन को खुशी मिलती है, बल्कि सारा ध्यान पुस्तकों पर लगा रहने से एकाग्रता भी बढ़ने लगती है, इसलिए पुस्तक पढ़ने का अभ्यास जरूर करना चाहिए, ताकि एकाग्रता बढ़ाने के लिए उन्हें किसी विशेष प्रयास की जरूरत ना पड़े. पुस्तकों को पढ़ने से प्रेरणा मिलती है. पुस्तकों में कही गई बातें, प्रसंग और कहानियां प्रेरित करती हैं. पुस्तकों को पढ़ने के बाद कुछ नया और बेहतर करने के लिए प्रेरणा मिलती है. महापुरुषों की जीवनियां, सफल लोगों के संघर्ष की कहानियां जीवन को सही राह दिखाती हैं. मोबाइल, कम्यूटर और लैपटौप पर पुस्तकों का पढ़ना दिल और दिमाग दोनों को सुकून नहीं देता है. ऐसे में जरूरी है कि पुस्तकों को पढ़ा जाए. जो किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं देती है.‘

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वे यह भी कहती हैं, ‘पुस्तकों और इनसान की दोस्ती बहुत पुरानी है. समयसमय पर ऐसे बदलाव होते हैं, जहां पर यह पता चलता है कि पुस्तकों का समय खत्म हो गया. असल में समय का दौर कितना भी बदले, पुस्तकों का महत्व कभी कम नहीं हो सकता.

‘आप सोचिए, जब आप किसी जगह जाते हैं, वहां करीने से बुकसेल्फ में लगी पुस्तकें दिख जाती हैं, तो कितना सुकून मिलता है.
घर में पुस्तकालय का होना आप की बुद्धिमत्ता का परिचायक होता है. पुस्तकों को अपना दोस्त बनाने से जीवन में सीखने और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है. ये कभी गलत राह नहीं दिखाती हैं. मोबाइल में पुस्तकों को पढ़ते समय नेटवर्क की मेहरबानी जरूरी होती है, जबकि पुस्तकों को पढ़ने में ऐसी कोई बाधा नहीं आती है.

‘लर्निंग प्रोसेस‘ को बढ़ाती हैं पुस्तकें:

बच्चा सब से अधिक अपने घरपरिवार, मातापिता और स्कूल में टीचर और दोस्तोें से सीखता है. इन सभी का सिखाने का अपना एक अलग तरीका होता है. पुस्तकों के पढ़ने से एक व्यापक नजरिया या दृष्टिकोण उन्नत होता है. ये स्टेप बाय स्टेप सिखाती हैं. बचपन में पढ़ना और सिखाने का काम केवल पुस्तकें ही करती हैं. धीरेधीरे आप की हर जरूरत के हिसाब से पुस्तकें आप को सिखाती हैं. अच्छा लिखने, तर्कपूर्ण बोलने के लिए जरूरी होता है कि उस विषय का समग्र ज्ञान आप को हो. जितनी जल्दी पुस्तकों से दोस्ती होगी, उतना ही बेहतर रहेगा. इस के साथ ही ये मनोरंजन भी करती हैं. जानकारी को बढ़ाती हैं. रोचक कहानियां ‘लर्निंग प्रोसेस‘ को बढ़ाने का काम करती हैं.

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पुस्तकें इनसान को उस के जीवन की वास्तविकता से मिलवाती हैं. पुस्तकें ही जीने की कला सिखाती हैं. जब उम्र का सफर पार करते हुए व्यक्ति बुढ़ापे की तरफ बढ़ता है, तब भी ये पुस्तकें ही उस के अकेलेपन को दूर करने में मदद करती हैं. इसी वजह से कहा जाता है कि जीवन के हर काल में पुस्तकों से अच्छा कोई दोस्त नहीं होता है. ये आप से विवाद नहीं करती हैं. ये वादविवाद और तर्क करने की क्षमता का विस्तार करती हैं. पुस्तकें ज्ञान देती हैं और उस ज्ञान को जीवन की परिस्थितियों में सही तरह से लागू करने का हुनर भी सिखाती हैं.

इतिहास को वर्तमान से जोड़ती हैं पुस्तकें:

हजारोंलाखों साल पहले क्या हुआ? किस काल समय में क्या हुआ? इस की पूरी जानकारी देने का काम पुस्तकें करती हैं. हजारों साल पहले की किताबें चाहे वह पत्तों पर लिखी पाडुलिपियां हों या ताम्रपत्र पर लिखी जानकारियां सभी पुस्तकों के रूप में भी सामने है. क्या किसी मोबाइल की स्क्रीन पर लिखी चीजें हजारों साल तक सुरक्षित रह सकती हैं. ये सुरक्षित तभी तक हैं, जब तक इंटरनेट चलता है. पुस्तकें किसी बिचौलिए पर निर्भर नहीं हैं. पुस्तक और पाठक के बीच कोई दूसरा नहीं होता है. सीने पर पुस्तक रखे सोते आदमी को देखें तो बहुत अच्छा लगता है. जब नींद नहीं आती तो पुस्तकें अच्छी नींद लाने का काम करती हैं.

पुस्तकें पढ़ कर इतिहास और संस्कृति से तो लोग अवगत होते ही हैं, साथ ही पुस्तकों से भविष्य की रूपरेखा को भी समझने में मदद मिलती है. समय के साथ खुद को हर हाल में आगे बढ़ाने का काम पुस्तकें करती हैं. पुस्तकों की खूबी होती है कि यह खुशी और गम दोनो में साथ निभाने का काम करती हैं. देशदुनिया की जानकारी पुस्तकों के जरिए घर बैठे ही ली जा सकती है. पुस्तकों से शब्दावली बेहतर होती है. पुस्तकों को पढ़ने के दौरान एक ही शब्द के अलगअलग अर्थ पता चलते हैं. इस का लाभ लेखन के दौरान होता है. पुस्तकों से सही और गलत के बीच भेद करने और स्वयं के विचारों को मजबूत करने में मदद मिलती है.

‘लाइफ स्टाइल‘ को बेहतर बनाती हैं पुस्तकें:

अच्छी नींद न आना तमाम तरह की ऐसी बीमारियों को कम करने का काम करती है, जो लाइफ स्टाइल से जुड़ी होती है. तनाव, डायबटीज, ब्लडप्रेशर इन में से कुछ प्रमुख बीमारियां हैं. पुस्तकें जहां अच्छी नींद में सहायक होती हैं, वहीं सोते समय इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का इस्तेमाल करने से नींद गायब हो जाती है. ऐसे में अगर सोते समय पुस्तकें पढी जाएं, तो न केवल अच्छी नींद आती है, बल्कि दिमाग को राहत मिलती है. कुछ अच्छा पढ़ कर सोने से हमारी सोच का स्तर भी बेहतर होता जाता है.

पुस्तकें पढ़ने से याददाश्त बढ़ती है. इस से तरहतरह की कल्पना करने और सोचनेविचारने की क्षमता भी तेज होती है. लगातार पुस्तकें पढ़ने से इन की आदत पड़ जाती है. दिनभर का थोड़ा सा समय पुस्तकों को देने से रोजमर्रा की परेशानियों से हट कर कुछ नया पढ़नेसीखने का मौका मिलता है.

पुस्तकों के पढ़ने से मिलने वाली जानकारियों से अपने अंदर की कमियों को सुधारने का मौका मिलता है. पुस्तकें या पुस्तकों में प्रकाशित सामग्री को लिखने वाले विषयों के जानकार लोग होते हैं. ऐसे में इन का लिखा पढ़ने और उस को अमल में लाने से लाइफ स्टाइल को बेहतर बनाने का मौका मिलता है. कई बार हम खुद तमाम गलत आदतों के शिकार होते हैं. पुस्तकों के पढ़ने से अपने बारे में तमाम कमियों को दूर करने का मौका मिलता है. पुस्तकें हमारी कमियों को बताती हैं, पर किसी दूसरे की तरह हमारी आलोचना नहीं करती हैं. पुस्तकें पढ़ कर बिना अपनी आलोचना सुने हम खुद में सुधार ला सकते हैं. पुस्तकों को साथी बनाने के तमाम लाभ हैं. इन को एक जगह लिखना भी कठिन काम है.

बौक्स:

दुनियाभर में पुस्तकों के महत्व पर समयसमय पर लोगों की राय आती रही है. ऐसे विचार कि पुस्तकों को साथी बनाएं, सुकून पाएं का समर्थन करते हैं.

* किताबें जलाने से भी बदतर अपराध हैं, किताबों को नहीं पढ़ना. – जोसेफ ब्रोडस्की

* पुस्तकें सब से शांत और सदाबहार दोस्त हैं. ये सब से सुलभ और बुद्धिमान काउंसलर हैं, और सब से धैर्यवान शिक्षक हैं. – चार्ल्स विलियम एलियट

* पुस्तकें मेरी दोस्त हैं, मेरी जीवनसाथी हैं. ये मुझे हंसाती हैं, रुलाती हैं और जीवन का अर्थ बताती हैं. – क्रिस्टोफर पाओलिनी

* किताबें, सब से सस्ती छुट्टियां हैं, जिसे आप खरीद सकते हैं. – चार्लिन हैरिस

* अगर कोई बारबार किताब पढ़ने का आनंद नहीं ले सकता है, तो उसे पढ़ने का कोई फायदा नहीं है. – औस्कर वाइल्ड

* किताब एक ऐसा उपहार है, जिसे आप बारबार खोल सकते हैं. – गैरीसन केलर

* पुस्तकें वह विरासत हैं, जो मानव जाति के लिए एक महान प्रतिभा छोड़ती हैं, जो पीढ़ी से पीढ़ी तक उन लोगों तक पहुंचाई जाती हैं, जो अभी तक जनमे नहीं हैं. – जोसेफ एडिसन

* बिना किताबों वाला कमरा, आत्मा के बिना शरीर के समान है. – मार्क्स ट्यूलियस सिसेरो

* एक अच्छी किताब सब से अच्छी दोस्त होती है, आज के लिए और हमेशा के लिए. – मार्टिन टुपर

* किताबें एकांत में हमारा साथ देती हैं और हमें खुद पर बोझ बनने से बचाती हैं. – जेरेमी कोलियर

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