छत्तीसगढ़ आजकल दंतैल वन्य प्राणी हाथियों के आगमन से सुर्खियों में है. ऐसा कोई दिन नहीं होता जब छत्तीसगढ़ में हाथी मारा नहीं जाता, मर नहीं जाता, अथवा किसी को मार नहीं देता. अथवा गांव में आकर भय का माहौल पैदा नहीं कर देता या हाईवे पर चलने लगता है.

लगभग 250 हाथियों का अलग-अलग झुंड महासमुंद, रायगढ़ , सरगुजा , कोरबा अंचल में निरंतर भ्रमण कर रहा है इस आगमन से लोग मुसीबत जदा हैं. वहीं हाथी भी अपने रहवास के लिए , स्वच्छंद जीवन के लिए आक्रमक हो गया है. हाथी अगर युवा है तो उसे लगभग एक टन भोज्य के रूप में आहार चाहिए होता है. प्रस्तुत है छत्तीसगढ़ के वन्य प्राणी हाथियों और आम आदमी के संघर्ष पर एक खास रिपोर्ट-

छत्तीसगढ़ में वन्य प्राणी हाथियों के आगमन से हाथी और ग्रामीण विशेषतः आदिवासियों और राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र कहे जाने वाले कोरवा पंडो जनजाति के लोगों का जीवन मुश्किल में है.जंगली हाथी कोरबा, रायगढ़ अंबिकापुर सूरजपुर कोरिया जशपुर, महासमुंद आदि जिलों के गांव में कब आ पहुंचेगी और इनको मार डालेगी यह कोई नहीं जानता. ऐसा कोई गांव नहीं है जहां पर हाथी उत्पात ना मचा रहे हों. इस संदर्भ में हमारे संवाददाता ने कोरबा, रायगढ़, कोरिया जिला का दौरा किया. कोरबा जिला में ग्राम पसान , चोटिया, मोरगा क्षेत्र में आए दिन किसी न किसी की मौत हाथी द्वारा हो रही है.

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वन विभाग अपने नियम कायदों से बंध कर लाठी-डंडे से हाथी को भगाने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन वन विभाग भी अपने उत्तरदायित्व से या हाथी को भगाने से असफल साबित हो रहा है.रात्रि के समय वन विभाग का कोई भी कर्मचारी गांव के आसपास नहीं रहता, ग्रामीण आदिवासियों को हाथी के भरोसे छोड़ कर अपने कार्य की इति श्री कर लेते हैं.फिर सुबह उठने पर मौका वारदात पर आकर देखते कि हाथी ने कितना नुकसान किया है जब उनको दिखता है ज्यादा नुकसान हुआ है और उनको फायदा होने वाला है तब वह. मुआवजा प्रकरण बनाते हैं. अन्यथा वन विभाग के कान में जूं भी नहीं रेंगती कि हाथी को नियंत्रित कैसे करें. इसी का परिणाम है कि विशेष जनजाति परिवारों को हाथियों के द्वारा वृहद रूप से नुकसान पहुंचाया जा रहा है. उनके बर्तन, उनके मवेशी, बकरी, उनके परिवार को मारने के लिये हाथी के द्वारा तांडव किया गया.बर्तन को तोड़ा गया, यहां तक कि जो लोग निस्तार के लिए पानी पीते थे हैंडपंप ,उसे भी हाथी ने नुकसान पहुंचा दिया.

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