लगभग दस दिन पहले रांची (झारखंड) के एक प्राइवेट अस्पताल में एक 53-वर्षीय रोगी के पार्थिव शरीर को दो घंटे से भी अधिक रोक कर रखा गया ; क्योंकि उसके परिजनों ने इलाज के बिल की आंशिक अदायगी नहीं की थी | मुंबई (महाराष्ट्र) के पवई स्थित एक अस्पताल ने एक 62-वर्षीय रिक्शा चालक के पार्थिव शरीर को रिलीज़ करने से इंकार कर दिया था ; क्योंकि बिल का पेमेंट नहीं हुआ था | इन दोनों ही मामलों में स्थानीय नेताओं को हस्तक्षेप करना पड़ा तब जाकर शवों को उनसे संबंधित लोगों को सौंपा जा सका |

तीन अगस्त को बंग्लुरु (कर्नाटक) से एक कोविड पीड़ित की बेटी ने सोशल मीडिया पर वीडियो मेसेज पोस्ट किया कि बिल अदा न कर पाने की वजह से एक अस्पताल ने उनके पिता के शव को दो दिन तक अपने ‘कब्ज़े’ में रखा | इस मामले में येदयुरप्पा सरकार के एक मंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा | इस प्रकार की सत्य (लेकिन कड़वी व चिंताजनक) खबरें निश्चितरूप से आपने अपने शहर में भी सुनी होंगी क्योंकि देश में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक यही हाल है कि प्राइवेट अस्पताल इलाज के बिल (जो अक्सर बहुत ज्यादा होता है) कि अदायगी न होने पर रोगी को बंधक बना लेते हैं या पार्थिव शरीर को रिलीज़ नहीं करते हैं और हर मामले में हस्तक्षेप करने के लिए संबंधित परिजनों की पहुंच स्थानीय नेताओं या मंत्रियों तक नहीं होती है,जिससे उनकी परेशानियों का अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है .

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