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इस साल बर्थ डे नहीं मनाएंगे सलमान खान, जानें वजह

सलमान खान हर साल 27 दिसंबर को अपना जन्मदिन मनाते हैं. लेकिन हर साल की तरह इस साल सलमान खान अपना जन्मदिन धूमधाम से नहीं मनाएंगे. आइए जानते हैं इस साल सलमान खान अपना जन्मदिन क्यों नहीं मनाएंगे हर साल की तरह.

दरअसल एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि सलमान खान इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्म अंतिम: द फाइनल ट्रुथ’  की शूटिंग में व्यस्त हैं जिस वजह से वह सेट पर ही छोटा सा सेलिब्रेशन करेंगे.

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सलमान खान हर साल की तरह अपने जन्मदिन और नए साल के सेलिब्रेशन के लिए अपने फार्म हाउस पनवेल नहीं जाएंगे. जिसे जानकर सलमान खान के फैंस बहुत ज्यादा निराश नजर आ रहे हैं. सलमान खान  आने वाली फिल्म के डायरेक्टर हैं महेश मांजरेकर इनसे सलमान खान की बहुत अच्छी दोस्ती है.

 

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महेश की बेटी सई मांजरेकर फिल्म ‘दबंग 3’ में नजर आ चुकी हैं. कयास लगाए जा रहे थें कि सई सलमान खान के साथ इस फिल्म में भी नजर आने वाली थी लेकिन फिल्म के डायरेक्टर और सई के पापा ने इस खबर से इंकार कर दिया है.

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इस साल बॉलीवुड के एक्टरों ने अपने जन्मदिन को खास अंदाज में हर साल की तरह नहीं सेलिब्रेट किया क्योंकि इस साल कई दिग्गज कलाकारों ने गंभीर बीमारी की वजह से इस इंडस्ट्री को अलविदा कहा है. जिस वजह से अभी भी बॉलीवुड का माहौल गमगीन है.ऋषि कपूर और इरफान खान जैसे कलाकार इस दुनिया को अलविदा कह दिया है तो वहीं दिलीप कुमार ने भी इस साल अपने 2 भाइयों को खोया है.

 

लौकी की खेती – बीजों की जानकारी व कीटरोगों से बचाव

ताजगी से भरपूर लौकी कद्दूवर्गीय खास सब्जी है. इसे बहुत तरह के व्यंजन जैसे रायता, कोफ्ता, हलवा व खीर वगैरह बनाने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं. यह कब्ज को कम करने, पेट को साफ करने, खांसी या बलगम दूर करने में बहुत फायदेमंद है. इस के मुलायम फलों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट व खनिजलवण के अलावा प्रचुर मात्रा में विटामिन पाए जाते हैं. लौकी की खेती पहाड़ी इलाकों से ले कर दक्षिण भारत के राज्यों तक की जाती है. निर्यात के लिहाज से सब्जियों में लौकी खास है.

आबोहवा

लौकी की अच्छी पैदावार के लिए गरम व आर्द्रता वाले रकबे मुनासिब होते हैं. इस की फसल जायद व खरीफ दोनों मौसमों में आसानी से उगाई जाती है. इस के बीज जमने के लिए 30-35 डिगरी सेंटीग्रेड और पौधों की बढ़वार के लिए 32 से 38 डिगरी सेंटटीग्रेड तापमान मुनासिब होता है.

मिट्टी और खेत की तैयारी

बलुई, दोमट व जीवांश युक्त चिकनी मिट्टी जिस में पानी सोखने की कूवत अधिक हो और जिस का पीएच मान 6.0-7.90 हो, लौकी की खेती के लिए मुनासिब होती है. पथरीली या ऐसी भूमि जहां पानी भरता हो और निकासी का अच्छा इतंजाम न हो, इस की खेती के  लिए अच्छी नहीं होती है. खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई मिट्टी  पलटने वाले हल से और बाद में 2 से 3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करते हैं. हर जुताई के बाद खेत में पाटा चला कर मिट्टी को भुरभुरी व इकसार कर लेना चाहिए ताकि खेत में सिंचाई करते समय पानी बहुत कम या ज्यादा न लगे.

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खाद व उर्वरक

अच्छी उपज के लिए 50 किलोग्राम नाइटोजन, 35 किलोग्राम फास्फोरस व 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए. नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय देनी चाहिए. बची हुई नाइट्रोजन की आधी मात्रा 4-5 पत्ती की अवस्था में और बची आधी मात्रा पौधों में फूल बनने से पहले देनी चाहिए.

बीज की मात्रा

सीधी बीज बोआई के लिए 2.5-3 किलोग्राम बीज 1 हेक्टेयर के लिए काफी होता है. पौलीथीन के थैलों या नियंत्रित वातावरण युक्त गृहों में नर्सरी उत्पादन करने के लिए प्रति हेक्टेयर 1 किलोग्राम बीज ही काफी होता है.

बोआई का समय

आमतौर पर लौकी की बोआई गरमी यानी जायद में 15-25 फरवरी तक और बरसात यानी खरीफ में 15 जून से 15 जुलाई तक कर सकते हैं. पहाड़ी इलाकों में बोआई मार्चअप्रैल के महीनों में की जाती है.

बोआई की विधि

लौकी की बोआई के लिए गरमी के मौसम में 2.5-3.5 मीटर व बारिश के मौसम में 4-4.5 मीटर की दूरी पर 50 सेंटीमीटर चौड़ी  व 20 से 25 सेंटीमीटर गहरी नालियां बना लेते हैं. इन नालियों के दोनों किनारे पर गरमी में 60 से 75 सेंटीमीटर व बारिश में 80 से 85 सेटीमीटर फासले पर बीजों की बोआई करते हैं. 1 जगह पर 2 से 3 बीज 4 सेंटीमीटर की गहराई पर बोने चाहिए.

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सिंचाई

खरीफ मौसम में खेत की सिंचाई करने की जरूरत नहीं होती, पर बारिश न होने पर 10 से 15 दिनों के बाद सिंचाई की जरूरत पड़ती है. अधिक बारिश की हालत में पानी निकालने के लिए नालियों का गहरा व चौड़ा होना जरूरी है. गरमी में ज्यादा तापमान होने के कारण 4 से 5 दिनों के फासले पर सिंचाई करनी चाहिए.

निराईगुड़ाई

आमतौर पर खरीफ मौसम में या सिंचाई के बाद खेत में काफी खरपतवार उग आते हैं, लिहाजा उन को खुरपी की मदद से 25 से 30 दिनों में निराई कर के निकाल देना चाहिए. पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए 2 से 3 बार निराईगुड़ाई कर के जड़ों के पास मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए. रासायनिक खरपतवारनाशी के रूप में व्यूटाक्लोरा रसायन की 2 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के तुरंत बाद छिड़कनी चाहिए.

लौकी के कीड़ों की रोकथाम

कद्दू का लाल कीट रेड पंपकिन बिटिल : इस कीट का प्रौढ़ चमकीले नारंगी रंग का होता है. सूंड़ी जमीन के अंदर पाई जाती है. इस की सूंड़ी व प्रौढ़ दोनों जमीन के अंदर पाए जाते हैं. सूंड़ी व वयस्क दोनों ही नुकसान करते हैं. ये प्रौढ़ पौधों की छोटी पत्तियों को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. सूंड़ी पौधों की जड़ काट कर नुकसान पहुंचाती है. प्रौढ़ कीट खासतौर पर मुलायम पत्तियां अधिक पसंद करते हैं. इस कीट के अधिक आक्रमण से पौधे पत्ती रहित हो जाते हैं.

रोकथाम

* सुबह ओस पड़ने के समय राख का बुरकाव करने से प्रौढ़ कीट पौधों पर नहीं बैठते हैं, जिस से नुकसान कम होता है.

* जैविक विधि से रोकथाम के लिए अजादीरैक्टिन 300 पीपीएम 5 से 10 मिलीलीटर या अजादीरैक्टिन 5 फीसदी 0.5 मिलीलीटर की दर से 2 या 3 बार छिड़कने से फायदा होता है.

* इस कीट का अधिक प्रकोप होने पर डाईक्लोरोवास 76 ईसी 1.25 मिलीलीटर या ट्राइक्लोफेरान 50 ईसी 1 मिलीलीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एमएल 0.5 मिलीलीटर की दर से 10 दिनों के अंतराल पर छिड़कें.

फल मक्खी : इस कीट की सूंड़ी नुकसान करती है. प्रौढ़ मक्खी गहरे भूरे रंग की होती है. इस के सिर पर काले व सफेद धब्बे पाए जाते हैं. प्रौढ़ मादा छोटे मुलायम फलों के अंदर अंडे देना पसंद करती है. अंडों से ग्रब्स सूंड़ी निकल कर फलों के अंदर का भाग खा कर खत्म कर देते हैं. कीट फल के जिस भाग पर अंडे देते हैं, वह भाग वहां से टेढ़ा हो कर सड़ जाता है और नीचे गिर जाता है.

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रोकथाम

* गरमी की गहरी जुताई या पौधे के आसपास खुदाई करें ताकि मिट्टी की निचली परत खुल जाए जिस से फलमक्खी का प्यूपा धूप द्वारा नष्ट हो जाए.

* फल मक्खी द्वारा खराब किए गए फलों को इकट्ठा कर के खत्म कर देना चाहिए.

* नर फल मक्खी को नष्ट करने के लिए प्लास्टिक की बोतलों को इथेनाल कीटनाशक डाइक्लोरोवास या कार्बारिल या मैलाथियान क्यूल्यूर को 6:1:2 के अनुपात के घोल में लकड़ी के टुकड़े को डुबा कर 25 से 30 फंदे खेत में स्थापित कर देने चाहिए. कार्बारिल 50 डब्यूपी, 2 ग्राम प्रति लीटर पानी या मैलाथियान 50 ईसी 2 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी को ले कर 10 फीसदी शीरा या गुड़ में मिला कर जहरीले चारे को 1 हेक्टेयर खेत में 250 जगहों पर इस्तेमाल करना चाहिए.

* प्रतिकर्षी 4 फीसदी नीम की खली का इस्तेमाल करें, जिस से जहरीले चारे की ट्रैपिंग की कूवत बढ़ जाए. जरूरतानुसार कीटनाशी जैसे क्लोरेंट्रानीलीप्रोल 18.5 एससी 025 मिलीलीटर या डाईक्लारोवास 76 ईसी 1.25 मिलीलीटर का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव कर सकते हैं.

खास रोग व रोकथाम

चूर्णिल आसिता : रोग की शुरुआत में पत्तियों और तनों पर सफेद या धूसर रंग पाउडर जैसा दिखाई देता है. कुछ दिनों के बाद ये धब्बे चूर्ण भरे हो जाते हैं. सफेद चूर्णी पदार्थ आखिर में समूचे पौधे की सतह को ढक लेता है. अधिक प्रकोप के कारण पौधे जल्दी बेकार हो जाते हैं. फलों का आकार छोटा रह जाता है.रोकथाम

* इस की रोकथाम के लिए खेत में फफूंदनाशक दवा जैसे 0.05 फीसदी ट्राइडीमोर्फ 1 लीटर पानी में घोल कर 7 दिनों के फासले पर छिड़काव करें. इस दवा के न होने पर फ्लूसिलाजोल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या हेक्साकोनाजोल 1.5 मिलिलीटर पानी की दर से छिड़काव करें. मृदुरोमिल फफूंदी : ?यह रोग बारिश वाली व गरमी वाली फसलों में बराबर लगता है. उत्तरी भारत में इस रोग का हमला ज्यादा होता?है. इस रोग की खास पहचान पत्तियों पर कोणीय धब्बे पड़ना है. ये कवक पत्ती के ऊपरी भाग पर पीले रंग के होते हैं और नीचे की तरफ रोएंदार बढ़वार करते हैं.

रोकथाम

* बचाव के लिए बीजों को मेटलएक्सिल नामक कवकनाशी की 3 ग्राम दवा से प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर के बोना चाहिए और मैंकोजेब 0.25 फीसदी का छिड़काव रोग की पहचान होने के एकदम बाद फसल पर करना चाहिए.

* यदि संक्रमण भयानक हालत में हो तो मैटालैक्सिल व मैंकोजेब का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से या डाइमेयामर्फ का 1 ग्राम प्रति लीटर पानी व मैटीरैम का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से 7 से 10 दिनों के फासले पर 3 से 4 बार छिड़काव करें.

फलों की तोड़ाई व उपज

लौकी के फलों की तोड़ाई मुलायम हालत में करनी चाहिए. फलों का वजन किस्मों पर निर्भर करता है. फलों की तोड़ाई डंठल लगी अवस्था में किसी तेज चाकू से करनी चाहिए. तोड़ाई 4 से 5 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए ताकि पौधों पर ज्यादा फल लगें. औसतन लौकी की उजप 350 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

डा. ऋषिपाल व डा. राजेंद्र सिंह

दोषी कौन था?-भाग 1 : आखिर क्यों चुप थीं बूआ?

मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे हमेशा चहचहाने वाली बूआ कहीं खो सी गई हैं. बातबेबात ठहाका मार कर हंसने वाली बूआ पता नहीं क्यों चुपचुप सी लग रही थीं. सौतेली बेटी के ब्याह के बाद तो उन्हें खुश होना चाहिए था, कहा करती थीं कि इस की शादी कर के तर जाऊंगी. सौतेली बेटी बूआ को सदा बोझ ही लगा करती थी. उन के जीवन में अगर कुछ कड़वाहट थी तो वह यही थी कि वे एक दुहाजू की पत्नी हैं. मगर जहां चाह वहां राह, ससुराल आते ही बूआ ने पति को उंगलियों पर नचाना शुरू कर दिया और समझाबुझा कर सौतेली बेटी को उस के ननिहाल भेज दिया. सौत की निशानी वह बच्ची ही तो थी. जब वह चली गई तो बूआ ने चैन की सांस ली. फूफा पहलेपहल तो अपनी बेटी के लिए उदास रहे, मगर धीरेधीरे नई पत्नी के मोहपाश में सब भूल गए. बूआ कभी तीजत्योहार पर भी उसे अपने घर नहीं लाती थीं. प्रकृति ने उन की झोली में 2 बेटे डाल दिए थे. अब वे यही चाहती थीं कि पति उन्हीं में उलझे रहें, भूल से भी उन्हें सौतेली बेटी को याद नहीं करने देती थीं. सुनने में आता था कि फूफा की बेटी मेधावी छात्रा है. ननिहाल में सारा काम संभालती है. परंतु नाना की मृत्यु के बाद मामा एक दिन उसे पिता के घर छोड़ गए. 19 बरस की युवा बहन, भाइयों के गले से भी नीचे नहीं उतरी थी. पिता ने भी पितातुल्य स्वागत नहीं किया था. मुझे याद है, उस शाम मैं भी बूआ के घर पर ही था. जैसे बूआ की हंसी पर किसी ने ताला ही लगा दिया था. मैं सोचने लगा, ‘घर की बेटी का ऐसा स्वागत?’ अनमने भाव से बूआ ने उसे अंदर वाले कमरे में बिठाया और आग्नेय दृष्टि से पति को देखा, जो अखबार में मुंह छिपाए यों अनजान बन रहे थे, मानो उन्हें इस बात से कुछ भी लेनादेना न हो. पहली बार मुझे इस सत्य पर विश्वास हुआ था कि सचमुच मां के मरते ही पिता का साया भी सिर से उठ जाता है.

‘सुनो, वे लोग इसे यहां क्यों छोड़ गए, आप ने कुछ कहा था क्या?’ बूआ ने गुस्से से पति से पूछा तो किसी अपराधी की तरह हिम्मत कर के फूफाजी ने सफाई दी, ‘इस के मामा के भी तो बेटियां हैं न… अब नाना की कमाई भी तो नहीं रही. यहीं रहेगी तो क्या बुरा है? तुम्हें काम में इस की मदद मिल जाएगी.’

‘अरे, ब्याहने को लाख, 2 लाख कहां से लाओगे? अपना तो पूरा नहीं पड़ता…’ बूआ मुझ से जब भी मिलतीं, यही कहतीं, ‘अरे गौतम, तू ही बता न कोई अच्छा सा लड़का. दानदहेज नहीं देना मुझे. किसी तरह यह ससुराल चली जाए तो मैं तर जाऊं.’ संयोग से मेरे एक मित्र का चचेरा भाई बिना दहेज के शादी करना चाहता था, आननफानन रिश्ता तय हो गया और जल्दी ही शादी भी हो गई. शादी के लगभग 2 महीने बाद मैं बूआ के घर गया तो पूछा, ‘‘क्या बात है, अब क्या पर

Winter Special : घर पर इस तरह से बनाएं कुकीज

सर्दियों में ज्यादातर लोग मीठा खाना पसंद करते हैं. ऐसे में अगर आपको भी कुछ मीठा खाने का मन हो रहा है तो ऐसे में आपको कुछ हेल्दी कुकीज बताने जा रहे हैं जिसे खाने के बाद स्वाद के साथ- साथ आपके सेहत के लिए नुकसान दायक नहीं होगा.

तो आइए जानते हैं कुकीज बनाने के लिए घर पर क्या- क्या चीजे होनी चाहिए.

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समाग्री

मक्खन

पीसी शक्कर

बेकिंग पाउडर

पीसी हुई अलसी

जई फ्लेक्स

अखरोट

क्रेनबरी

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विधि

सबसे पहले आप अपने ओवन को 350 f पर हिट करें. इसके बाद आप आटा और बेकिंग पाउडर को मिक्स करके छान लें.

अब एक कटोरी में मक्खन लें फिर उसमें शक्कर डालकर अच्छए से मिक्स कर लें. लेकिन ये ध्यान रखें कि मक्खन पिघला हुआ नहीं होना चाहिए.

अब इसमें आप दरदरी पीसी हुई अलसी को डालकर अच्छे से मिलाए. अब इसमें कटा हुआ अखरोट डालकर अच्छे से मिलाएं. साथ ही इसमें जई डालें और किशमिश डालकर मिलाएं अगर ये सब अच्छे से नहीं हो रहा है तो इसमें एक चम्मच पानी मिक्स कर दें.

अब इन सभी मिक्सचर को 10 मिनट तक फ्रिज में रखें.10 मिनक के बाद इसकी छोटी- छोटी लोई बना लें. इन सभी कुकीज को अच्छे से बनाकर एक ट्रे में रखें लेकिन ध्यान रखे कि सभी कुकीज में कुछ दूरी होनी चाहिए.

अब इसे ओवन में रखकर 20 मिनट के लिए कुक करें. 20 मिनट के बाद इसे बाहर निकालने के कुछ देर बाद खा सकते हैं.

दोषी कौन था?-भाग 4 : बूआ पता नहीं क्यों चुपचुप सी लग रही थीं

‘‘मेरे सोचने से क्या होगा? मनुष्य हालात के हाथों का खिलौना ही तो है. वर्तमान में जीने के लिए आप को भी अतीत से हाथ झटकना ही पड़ेगा.’’ ‘‘आने वाले दिनों में क्या होगा, उस की चिंता में आज का अनादर मत करो, गीता. कुछ भी उलटासीधा मत सोचो,’’ अपनी भुजाओं में कस कर मैं ने उस के गाल पर एक मुहर तो लगा दी, मगर उसे अवसाद से अलग नहीं कर पाया. धीरेधीरे वक्त आगे सरका. एक दिन मां की बीमारी का तार मिला तो हम दोनों घर गए. छोटा भाई दिनरात मां की सेवा कर रहा था. गीता ने जाते ही उसे इस जिम्मेदारी से मुक्त किया और कितने ही दिन मां की सेवा में लगी रही. मैं हर हफ्ते घर जाता रहा. इसी तरह लगभग 1 महीना व्यतीत हो गया. मां चुप थीं और पिताजी सवालिया नजरों से मुझे देखते, जैसे पूछ रहे हों, ‘क्या यह वही गीता है जिसे लोग पागल कहते थे?’

मैं कई बार सोचता, ‘जरूर बूआ और फूफाजी घर आते होंगे. क्या वे बेटी से मिलते होंगे? क्या अब भी मेरी पत्नी को अपनी पुत्री नहीं समझते होंगे?’

एक दिन पिताजी ने धीरे से कहा, ‘‘अपना तबादला यहीं करा ले बेटे, अकेले हमें अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘और गीता? उसे कहां फेंक दूं? आप का घर पागलखाना तो नहीं है न?’’‘‘बस करो गौतम. वह तो हमारी सब से बड़ी भूल थी.’’ पिताजी ने अपनी भूल मान ली थी. लेकिन अपना तबादला मेरे हाथ में नहीं था, फिर भी मैं ने आश्वासन दे दिया. एक दिन आंगन में फूफाजी को खड़े देख एक मिलीजुली भावना से मेरा पूरा शरीर कांप गया. वे मां का हालचाल पूछने आए थे. मैं ने देखा, गीता अपने कमरे में चली गई है. उस के पिता ने भी शायद उसे देखना नहीं चाहा था. मेरा मन रो रहा था. जी चाह रहा था कि किसी तरह गीता को पिता से मिलवा दूं. फूफाजी के चेहरे पर आतेजाते भाव मैं पढ़ना चाह रहा था, मगर वे सामान्य रूप से आम बातें कर रहे थे, राजनीति और महंगाई की बातें… ‘‘महंगी तो हर चीज हो गई है, फूफाजी. अगर मैं संतान के लिए पिता का प्यार खरीद सकता तो गीता के लिए उस के पिता का थोड़ा सा स्नेह खरीद लेता. मगर कैसे खरीदूं, उस की कीमत पता नहीं है न…’’ मैं ने तीर छोड़ा और वह संभावना के विपरीत ठीक निशाने पर जा बैठा. मैं ने हौले से कहा, ‘‘गीता की बीमारी का तार मिला था न आप को, क्या उस की मौत का इंतजार था आप को? क्या मांगा था उस गरीब ने आप से? क्या बिगाड़ा है उस ने आप का? सिर्फ यही कि आप के घर में जन्म ले लिया?

‘‘अच्छीभली लड़की को लोगों ने पागल बना दिया और आप सुनते रहे. कभी नहीं सोचा कि वह पागल क्यों समझ ली गई.’’ मैं कहता रहा और वे सुनते रहे. मां और पिताजी भी वहीं थे. तभी मेरा छोटा भाई गीता का हाथ पकड़े लगभग खींचता हुआ उसे बाहर ले आया, ‘‘भाभी रो रही हैं, भैया.’’ सब की नजरें उसी तरफ उठ गईं. पिता का सामना करते ही वह शिला जैसी हो गई. फूफाजी देर तक उसे निहारते रहे. उस के उभरे पेट पर भी उन की नजर चंद पलों के लिए ठिठकी. मैं ने फूफाजी की ओर देखा, ‘‘सिर्फ एक बार बेटी के सिर पर हाथ रख दीजिए. फूफाजी, लड़के तो दहेज में बहुत कुछ मांगते हैं, मगर मेरी तो सिर्फ इतनी सी ही मांग है.

‘‘मैं गीता को सबकुछ दे सकता हूं, सारी खुशियां दे सकता हूं मगर उस का पिता तो नहीं न बन सकता.’’ मेरे छोटे भाई ने फिर से गीता का हाथ पकड़ा और उसे फूफाजी के पास ला बिठाया. वह झरझर आंसू बहाती बैठी रही. फूफाजी जैसे शिला बने बैठे थे, अनायास उन में हलचल हुई. कुरते की जेब से कुछ निकाल कर उन्होंने गीता की गोद में रख दिया.

‘‘यह क्या, फूफाजी?’’ मेरी नजरों के सामने सोने के भारी कंगन चमक उठे. ‘‘ये इस की मां के हैं, बेटे. इस का सबकुछ बंट गया, मगर मैं ने इन्हें नहीं बंटने दिया,’’ अपने हाथों से बेटी के हाथों में कंगन पहना कर उन्होंने उस का माथा चूम लिया. गीता किसी नन्ही बच्ची की तरह जोरजोर से रो पड़ी. फूफाजी उस का चेहरा ही हाथों में भर कर देर तक निहारते रहे. फिर बोले, ‘‘आज भी सब से चोरी से आया हूं, गीता. वे नहीं चाहते कि मैं तुम से मिलूं. ‘‘क्या करूं, गृहकलह से बचने के लिए कई बार इंसान को मन भी मारना पड़ता है. तुम्हारी बीमारी का तार मुझे नहीं मिला बिटिया, वरना मैं जरूर आता. शायद तुम्हारी मां ने छिपा लिया होगा. ‘‘मैं तुम्हारे प्रति अपनी कोई भी जिम्मेदारी नहीं निभा पाया. अपने हाथों से तुम्हें पालपोस नहीं सका, मगर यह सच नहीं कि मैं तुम से स्नेह नहीं करता. मैं हमेशा तुम्हारे ही बारे में सोचता रहता हूं. विश्वास मानो, जब गौतम ने तुम्हारा हाथ मांगा, वह पल मेरे जीवन का सब से अमूल्य पल था. सदा सुखी रहो, बेटी.’’अपने पिता के सीने में समा कर गीता कितनी ही देर तक बिलखती रही. फूफाजी भी रोते रहे. पिछले 20 सालों की पीड़ा वे दोनों आंखों के रास्ते बहा रहे थे. मैं समझ नहीं पा रहा था कि आखिर किसे दोष दूं-प्रकृति को, जिस ने गीता से उस की मां छीन ली थी? या अपनी बूआ को, जिन्होंने अपने पति को किसी के भी साथ बांटना नहीं चाहा था? या फिर फूफाजी को जो कठोर कदम उठा कर पुत्री को अपने साथ नहीं रख पाए और घर की सुखशांति के लिए सदा चुप रहे?

आखिर, मेरी गीता के साथ हुए अन्याय के लिए दोषी कौन था?

 

 

दौड़ : जिंदगी की किस दौड़ में भाग रही थी निशा

आफिस जाने से पहले बेमन से निशा ने मोबाइल से अपनी ससुराल का नंबर मिलाया. फोन उस की सास ने उठाया.

‘‘नमस्ते, मम्मीजी. कल रात क्या आप सब लोग कहीं बाहर गए हुए थे?’’ अपनी आवाज में जरा सी मिठास लाते हुए निशा बोली.

‘‘हां, कविता के बेटे मोहित का जन्मदिन था इसलिए हम सब वहां गए थे. लौटने में देर हो गई थी.’’

कविता उस की बड़ी ननद थी. मोहित के जन्मदिन की पार्टी में उसे बुलाया ही नहीं गया, इस विचार ने उस के मूड को और भी ज्यादा खराब कर दिया.

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‘‘मम्मी, रवि से बात करा दीजिए,’’ निशा ने जानबूझ कर रूखापन दिखाते हुए पार्टी के बारे में कुछ भी नहीं पूछा और अपने पति रवि से बात करने की इच्छा जाहिर की.

‘‘रवि तो बाजार गया है. उस से कुछ कहना हो तो बता दो.’’

‘‘मुझे आफिस में फोन करने को कहिएगा. अच्छा मम्मी, मैं फोन रखती हूं, नमस्ते.’’

‘‘सुखी रहो, बहू,’’ सुमित्रा का आशीर्वाद सुन कर निशा ने बुरा सा मुंह बनाया और फोन रख दिया.

‘बुढि़या ने यह भी नहीं पूछा कि मैं कैसी हूं…’ गुस्से में बड़बड़ाती निशा अपना पर्स उठाने के लिए बेडरूम की तरफ चल पड़ी.

कैरियर के हिसाब से आज का दिन निशा के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण व खुशी से भरा था. वह टीम लीडर बन गई है. यह समाचार उसे कल आफिस बंद होने से कुछ ही मिनट पहले मिला था. इसलिए इस खुशी को वह अपने सहकर्मियों के साथ बांट नहीं सकी थी.

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आफिस में निशा के कदम रखते ही उसे मुबारकबाद देने वालों की भीड़ लग गई. अपने नए केबिन में टीम लीडर की कुरसी पर बैठते हुए निशा खुशी से फूली नहीं समाई.

रवि का फोन उस के पास 11 बजे के करीब आया. उस समय वह अपने काम में बहुत ज्यादा व्यस्त थी.

‘‘रवि, तुम्हें एक बढि़या खबर सुनाती हूं,’’ निशा ने उत्साही अंदाज में बात शुरू की.

‘‘तुम्हारा प्रमोशन हो गया है न?’’

‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’ निशा हैरान हो उठी.

‘‘तुम्हारी आवाज की खुशी से मैं ने अंदाजा लगाया, निशा.’’

‘‘मैं टीम लीडर बन गई हूं, रवि. अब मेरी तनख्वाह 35 हजार रुपए हो गई है.’’

‘‘गाड़ी भी मिल गई है. अब तो पार्टी हो जाए.’’

‘‘श्योर, पार्टी कहां लोगे?’’

‘‘कहीं बाहर नहीं. तुम शाम को घर आ जाओ. मम्मी और सीमा तुम्हारी मनपसंद चीजें बना कर रखेंगी.’’

रवि का प्रस्ताव सुन कर निशा का उत्साह ठंडा पड़ गया और उस ने नाराज लहजे में कहा, ‘‘घर में पार्टी का माहौल कभी नहीं बन सकता, रवि. तुम मिलो न शाम को मुझ से.’’

‘‘हमारा मिलना तो शनिवारइतवार को ही होता है, निशा.’’

‘‘मेरी खुशी की खातिर क्या तुम आज नहीं आ सकते हो?’’

‘‘नाराज हो कर निशा तुम अपना मूड खराब मत करो. शनिवार को 3 दिन बाद मिल ही रहे हैं. तब बढि़या सी पार्टी ले लूंगा.’’

‘‘तुम भी रवि, कैसे भुलक्कड़ हो, शनिवार को मैं मेरठ जाऊंगी.’’

‘‘तुम्हारे जैसी व्यस्त महिला को अपने भाई की शादी याद है, यह वाकई कमाल की बात है.’’

‘‘मुझे ताना मार रहे हो?’’ निशा चिढ़ कर बोली.

‘‘सौरी, मैं ने तो मजाक किया था.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि मेरठ रविवार की सुबह तक पहुंच जाओगे न?’’

‘‘आप हुक्म करें, साले साहब के लिए जान भी हाजिर है, मैडम.’’

‘‘घर से और कौनकौन आएगा?’’

‘‘तुम जिसे कहो, ले आएंगे. जिसे कहो, छोड़ आएंगे. वैसे तुम शनिवार की रात को पहुंचोगी, इस बात से नवीन या तुम्हारे मम्मीडैडी नाराज तो नहीं होंगे?’’

‘‘मुझे अपने जूनियर्स को टे्रनिंग देनी है. मैं चाह कर भी पहले नहीं निकल सकती हूं.’’

‘‘सही कह रही हो तुम, भाई की शादी के चक्कर में इनसान को अपनी ड्यूटी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.’’

‘‘तुम कभी मेरी भावनाओं को नहीं समझ सके,’’ निशा फिर चिढ़ उठी, ‘‘मैं अपने कैरियर को बड़ी गंभीरता से लेती हूं, रवि.’’

‘‘निशा, मैं फोन रखता हूं. आज तुम मेरे मजाक को सहन करने के मूड में नहीं हो. ओके, बाय.’’

रवि और निशा ने एम.बी.ए. साथसाथ एक ही कालिज से किया था. दोनों के बीच प्यार का बीज भी उन्हीं दिनों में अंकुरित हुआ.

रवि ने बैंक में पी.ओ. की परीक्षा पास कर के नौकरी पा ली और निशा ने बहुराष्ट्रीय कंपनी में. करीब 2 साल पहले दोनों ने घर वालों की रजामंदी से प्रेम विवाह कर लिया.

दुलहन बन कर निशा रवि के परिवार में आ गई. वहां के अनुशासन भरे माहौल में उस का मन शुरू से नहीं लगा. टोकाटाकी के अलावा उसे एक बात और खलती थी. दोनों अच्छा कमाते हुए भी भविष्य के लिए कुछ बचा नहीं पाते थे.

उन दोनों की ज्यादा कमाई होने के कारण हर जिम्मेदारी निभाने का आर्थिक बोझ उन के ही कंधों पर था. निशा इन बातों को ले कर चिढ़ती तो रवि उसे प्यार से समझाता, ‘हम दोनों बड़े भैया व पिताजी से ज्यादा समर्थ हैं, इसलिए इन जिम्मेदारियों को हमें बोझ नहीं समझना चाहिए. अगर हम सब की खुशियों और घर की समृद्धि को बढ़ा नहीं सकते हैं तो हमारे ज्यादा कमाने का फायदा क्या हुआ? मैडम, पैसा उपयोग करने के लिए होता है, सिर्फ जोड़ने के लिए नहीं. एकसाथ मिलजुल कर हंसीखुशी से रहने में ही फायदा है, निशा. सब से अलगथलग हो कर अमीर बनने में कोई मजा नहीं है.’

निशा कभी भी रवि के इस नजरिये से सहमत नहीं हुई. ससुराल में उसे अपना दम घुटता सा लगता. किसी का व्यवहार उस के प्रति खराब नहीं था पर वह उस घर में असंतोष व शिकायत के भाव से रहती. उस का व रवि का शोषण हो रहा है, यह विचार उसे तनावग्रस्त बनाए रखता.

निशा को जब कंपनी से 2 बेडरूम वाला फ्लैट मिलने की सुविधा मिली तो उस ने ससुराल छोड़ कर वहां जाने को फौरन ‘हां’ कर दी. अपना फैसला लेने से पहले उस ने रवि से विचारविमर्श भी नहीं किया क्योंकि उसे पति के मना कर देने का डर था.

फ्लैट में अलग जा कर रहने के लिए रवि बिलकुल तैयार नहीं हुआ. वह बारबार निशा से यही सवाल पूछता कि घर से अलग होने का हमारे पास कोई खास कारण नहीं है. फिर हम ऐसा क्यों करें?

‘मुझे रोजरोज दिल्ली से गुड़गांव जाने में परेशानी होती है. इस के अलावा सीनियर होने के नाते मुझे आफिस में ज्यादा समय देना चाहिए और ज्यादा समय मैं गुड़गांव में रह कर ही दे सकती हूं.’

निशा की ऐसी दलीलों का रवि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था.

अंतत: निशा ने अपनी जिद पूरी की और कंपनी के फ्लैट में रहने चली गई. उस के इस कदम का विरोध मायके और ससुराल दोनों जगह हुआ पर उस ने किसी की बात नहीं सुनी.

रवि की नाराजगी, उदासी को अनदेखा कर निशा गुड़गांव रहने चली गई.

रवि सप्ताह में 2 दिन उस के साथ गुजारता. निशा कभीकभार अपनी ससुराल वालों से मिलने आती. सच तो यह था कि अपना कैरियर बेहतर बनाने के चक्कर में उसे कहीं ज्यादा आनेजाने का समय ही नहीं मिलता.

अच्छा कैरियर बनाने के लिए अपने व्यक्तिगत जीवन की कठिनाइयों को निशा ने कभी ज्यादा महत्त्व नहीं दिया. अपने छोटे भाई नवीन की शादी में वह सिर्फ एक रात पहले पहुंचेगी, इस बात का भी उसे कोई खास अफसोस नहीं था. अपने मातापिता व भाई की शिकायत को उस ने फोन पर ऊंची आवाज में झगड़ कर नजरअंदाज कर दिया.

‘‘शादी में हमारे मेरठ पहुंचने की चिंता मत करो, निशा. आफिस के किसी काम में अटक कर तुम और ज्यादा देर से मत पहुंचना,’’ रवि के मोबाइल पर उस ने जब भी फोन किया, रवि से उसे ऐसा ही जवाब सुनने को मिला.

शनिवार की शाम निशा ने टैक्सी की और 8 बजे तक मेरठ अपने मायके पहुंच गई. अब तक छिपा कर रखी गई प्रमोशन की खबर सब को सुनाने के लिए वह बेताब थी. अपने साथ बढि़या मिठाई का डब्बा वह सब का मुंह मीठा कराने के लिए लाई थी. उस के पर्स में प्रमोशन का पत्र पड़ा था जिसे वह सब को दिखा कर उन की वाहवाही लूटने को उत्सुक थी.

टैक्सी का किराया चुका कर निशा ने अपनी छोटी अटैची खुद उठाई और गेट खोल कर अंदर घुस गई.

घर में बड़े आकार वाले ड्राइंगरूम को खाली कर के संगीत और नृत्य का कार्यक्रम आयोजित किया गया था. तेज गति के धमाकेदार संगीत के साथ कई लोगों के हंसनेबोलने की आवाजें भी निशा के कानों तक पहुंचीं.

निशा ने मुसकराते हुए हाल में कदम रखा और फिर हैरानी के मारे ठिठक गई. वहां का दृश्य देख कर उस का मुंह खुला का खुला रह गया.

निशा ने देखा मां बड़े जोश के साथ ढोलक बजा रही थीं. तबले पर ताल बजाने का काम उस की सास कर रही थीं.

रवि मंजीरे बजा रहा था और भाई नवीन ने चिमटा संभाल रखा था. किसी बात पर दोनों हंसी के मारे ऐसे लोटपोट हुए जा रहे थे कि उन की ताल बिलकुल बिगड़ गई थी.

उस की छोटी ननद सीमा मस्ती से नाच रही थी और महल्ले की औरतें तालियां बजा रही थीं. उन में उस की जेठानी अर्चना भी शामिल थी. अचानक ही रवि की 5 वर्षीय भतीजी नेहा उठ कर अपनी सीमा बूआ के साथ नाचने लगी. एक तरफ अपने ससुर, जेठ व पिता को एकसाथ बैठ कर गपशप करते देखा. अपनी ससुराल के हर एक सदस्य को वहां पहले से उपस्थित देख निशा हैरान रह गई.

उन के पड़ोस में रहने वाली शीला आंटी की नजर निशा पर सब से पहले पड़ी. उन्होंने ऊंची आवाज में सब को उस के पहुंचने की सूचना दी तो कुछ देर के लिए संगीत व नृत्य बंद कर दिया गया.

लगभग हर व्यक्ति से निशा को देर से आने का उलाहना सुनने को मिला.

मौका मिलते ही निशा ने रवि से धीमी आवाज में पूछा, ‘‘आप सब लोग यहां कब पहुंचे?’’

‘‘हम तो परसों सुबह ही यहां आ गए थे,’’ रवि ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

निशा ने माथे पर बल डालते हुए पूछा, ‘‘इतनी जल्दी क्यों आए? मुझे बताया क्यों नहीं?’’

रवि ने सहज भाव से बोलना शुरू किया, ‘‘तुम्हारी मम्मी ने 3 दिन पहले मुझ से फोन पर बात की थी. उन की बातों से मुझे लगा कि वह बहुत उदास हैं. उन्हें बेटे के ब्याह के घर में कोई रौनक नजर नहीं आ रही थी. तुम्हारे जल्दी न आ सकने की शिकायत को दूर करने के लिए ही मैं ने उन से सब के साथ यहां आने का वादा कर लिया और परसों से यहीं जम कर खूब मौजमस्ती कर रहे हैं.’’

‘‘सब को यहां लाना मुझे अजीब सा लग रहा है,’’ निशा की चिढ़ अपनी जगह बनी रही.

‘‘ऐसा करने के लिए तुम्हारे मम्मीपापा व भाई ने बहुत जोर दिया था.’’

निशा ने बुरा सा मुंह बनाया और मां से अपनी शिकायत करने रसोई की तरफ चल पड़ी.

मां बेटी की शिकायत सुनते ही उत्तेजित लहजे में बोलीं, ‘‘तेरी ससुराल वालों के कारण ही यह घर शादी का घर लग रहा है. तू तो अपने काम की दीवानी बन कर रह गई है. हमें वह सभी बड़े पसंद हैं और उन्हें यहां बुलाने का तुम्हें भी कोई विरोध नहीं करना चाहिए.’’

‘‘जो लोग तुम्हारी बेटी को प्यार व मानसम्मान नहीं देते, तुम सब उन से…’’

बेटी की बात को बीच में काट कर मां बोलीं, ‘‘निशा, तुम ने जैसा बोया है वैसा ही तो काटोगी. अब बेकार के मुद्दे उठा कर घर के हंसीखुशी के माहौल को खराब मत करो. तुम से कहीं ज्यादा इस शादी में तुम्हारी ससुराल वाले हमारा हाथ बंटा रहे हैं और इस के लिए हम दिल से उन के आभारी हैं.’’

मां की इन बातों से निशा ने खुद को अपमानित महसूस किया. उस की पलकें गीली होने लगीं तो वह रसोई से निकल कर पीछे के बरामदे में आ गई.

कुछ समय बाद रवि भी वहां आ गया और पत्नी को इस तरह चुपचाप आंसू बहाते देख उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा तो निशा उस के सीने से लग कर फफक पड़ी.

रवि ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘तुम अपने भाई की शादी का पूरा लुत्फ उठाओ, निशा. व्यर्थ की बातों पर ध्यान देने की क्या जरूरत है तुम्हें.’’

‘‘मेरी खुशी की फिक्र न मेरे मायके वालों को है न ससुराल वालों को. सभी मुझ से जलते हैं… मुझे अलगथलग रख कर नीचा दिखाते हैं. मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा है,’’ निशा ने सुबकते हुए सवाल किया.

‘‘तुम क्या सचमुच अपने सवाल का जवाब सुनना चाहोगी?’’ रवि गंभीर हो गया.

निशा ने गरदन हिला कर ‘हां’ में जवाब दिया.

‘‘देखो निशा, अपने कैरियर को तुम बहुत महत्त्वपूर्ण मानती हो. तुम्हारे लक्ष्य बहुत ऊंचाइयों को छूने वाले हैं. आपसी रिश्ते तुम्हारे लिए ज्यादा माने नहीं रखते. तुम्हारी सारी ऊर्जा कैरियर की राह पर बहुत तेजी से दौड़ने में लग रही है…तुम इतना तेज दौड़ रही हो… इतनी आगे निकलती जा रही हो कि अकेली हो गई हो… दौड़ में सब से आगे, पर अकेली,’’ रवि की आवाज कुछ उदास हो गई.

‘‘अच्छा कैरियर बनाने का और कोई रास्ता नहीं है, रवि,’’ निशा ने दलील दी.

‘‘निशा, कैरियर जीवन का एक हिस्सा है और उस से मिलने वाली खुशी अन्य क्षेत्रों से मिलने वाली खुशियों के महत्त्व को कम नहीं कर सकती. हमारे जीवन का सर्वांगीण विकास न हो तो अकेलापन, तनाव, निराशा, दुख और अशांति से हम कभी छुटकारा नहीं पा सकते हैं.’’

‘‘मुझे क्या करना चाहिए? अपने अंदर क्या बदलाव लाना होगा?’’ निशा ने बेबस अंदाज में पूछा.

‘‘जो पैर कैरियर बनाने के लिए तेज दौड़ सकते हैं वे सब के साथ मिल कर नाच भी सकते हैं…किसी के हमदर्द भी बन सकते हैं. जरूरत है बस, अपना नजरिया बदलने की…अपने दिमाग के साथसाथ अपने दिल को भी सक्रिय कर लोगों का दिल जीतने की,’’ अपनी सलाह दे कर रवि ने उसे अपनी छाती से लगा लिया.

निशा ने पति की बांहों के घेरे में बड़ी शांति महसूस की. रवि का कहा उस के दिल में कहीं बड़ी गहराई तक उतर गया. अपने नजदीकी लोगों से अपने संबंध सुधारने की इच्छा उस के मन में पलपल बलवती होती जा रही थी.

‘‘मैं बहुत दिनों से मस्त हो कर नाची नहीं हूं. आज कर दूं जबरदस्त धूमधड़ाका यहां?’’ निशा की मुसकराहट रवि को बहुत ताजा व आकर्षक लगी.

रवि ने प्यार से उस का माथा चूमा और हाथ पकड़ कर हाल की तरफ चल दिया. उसे साफ लगा कि पिछले चंद मिनटों में निशा के अंदर जो जबरदस्त बदलाव आया है वह उन दोनों के सुखद भविष्य की तरफ इशारा कर रहा था.

मेरा मेनोपौज शुरू हो गया है,क्या मेरे लिए आईवीएफ के द्वारा गर्भधारण करने की कोई संभावना है ?

सवाल

मेरी उम्र 38 साल है. मेरा मेनोपौज शुरू हो गया है. क्या मेरे लिए आईवीएफ के द्वारा गर्भधारण करने की कोई संभावना है?

जवाब
मेनोपौज के लिए 38 साल बहुत कम उम्र है. इस तरह के मामलों में हम यह पता लगाने का प्रयास करते हैं कि क्या वाकई मेनोपौज है या किसी और कारण से मासिकधर्म बंद हो गया है. अल्ट्रासाउंड से मेनोपौज की पुष्टि हो जाती है. मेनोपौज में अंडे का निर्माण बंद हो जाता है, इसलिए स्वाभाविक तरीके से गर्भधारण करना असंभव है. ऐसी स्थिति में आईवीएफ तकनीक गर्भधारण करने में सहायता करती है.

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45 साल की रश्मि पिछले कुछ दिनों से अपने स्वास्थ्य में असहजता महसूस कर रही थी. इस वजह से उसे नींद अच्छी तरह से नहीं आ रही थी. ठण्ड में भी उसे गर्मी महसूस हो रही थी. पसीने छूट रहे थे. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. बात-बात में चिडचिडापन आ रहा था. डौक्टर से सलाह लेने के बाद पता चला कि वह प्री मेनोपौज के दौर से गुजर रही है. जो समय के साथ-साथ ठीक हो जायेगा.

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दरअसल मेनोपौज यानी रजोनिवृत्ति एक नैचुरल बायोलौजिकल प्रक्रिया है,जो महिलाओं की 40 से 50 वर्ष के बीच में होता है. महिलाओं में कई प्रकार के हार्मोनल बदलाव इस दौरान आते है और मासिक धर्म रुक जाता है.  इस बारें में ‘कूकून फर्टिलिटी’ के डायरेक्टर, गायनेकोलोजिस्ट और इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ.अनघा कारखानिस कहती है कि अगर कोई महिला पूरे 12 महीने बिना किसी माहवारी के गुजारती है तो उसे मेनोपौज ही कही जाती है, ऐसे में कुछ महिलाओं को लगता है कि मेनोपौज से उनकी प्रजनन क्षमता समाप्त होने की वजह से वे ओल्ड हो चुकी है, जबकि कुछ महिलाओं को हर महीने की झंझट से दूर होना भी अच्छा लगता है. इतना ही नहीं इसके बाद किसी भी महिला को बिना चाहे माँ बनने की समस्या भी चली जाती है.

इसके आगे डौ.अनघा बताती है कि मेनोपौज एक सामान्य प्रक्रिया होने के बावजूद उसे लेकर कई भ्रांतियां महिलाओं में है, जबकि कुछ महिलाओं में मूड स्विंग और बेचैनी रहती भी नहीं है, लेकिन वे मेनोपौज के बारें में सोचकर ही परेशान रहने लगती है,जिससे न चाहकर भी उनका मनोबल गिरता है और वे डिप्रेशन की शिकार होती है. जबकि ये सब मिथ है और इसका मुकाबला आसानी से किया जा सकता है, जो निम्न है,

मेनोपौज एक नयी शुरुआत

ये एक अवधारणा सालों से चली आ रही है कि मेनोपौज के बाद जीवन अंतिम दौर में पहुंच जाता है. ये शायद प्राचीन काल में था, जब महिलाओं का जीवन मेनोपौज के द्वारा ही आंकी जाती थी, अब महिलाएं रजोनिवृत्ति के बाद भी अधिक दिनों तक स्वस्थ जीवित रहती है और जीवन का एक तिहाई भाग वे अपने परिवार के साथ ख़ुशी-ख़ुशी बिताती है,जो 51 के बाद से ही शुरू होता है. इसमें वे अपने जीवन के सभी लक्ष्यों को पूरा करने की क्षमता रखती है, क्योंकि केवल माहवारी बंद हुई है और कुछ भी बदला नहीं है. उन्हें अपने हिसाब से जीने का पूरा अधिकार मिलता है.

अधिकतर महिलाओं को इस फेज से गुजरने पर एंग्जायटी होती है

ये पूरी तरह से सही नहीं है, महिलाओं को भी पुरुषों की तरह ही डिप्रेशन और अप्रसन्नता का सामना करना पड़ता है, मूड स्विंग अधिकतर हार्मोनल बदलाव की वजह से होती है, जो केवल मेनोपौज की वजह से नहीं होता, दूसरी समस्याएं भी हो सकती है, जिसकी जांच करवा लेना सही होता है,

सभी महिलाएं मेनोपौज के दौरान कुछ अलग लक्षण अनुभव करती है

ये सही है कि रजोनिवृत्ति के दौरान महिलाओं में कुछ लक्षण मसलन अचानक गर्मी लगना, बेड टाइम पसीना, मूड में अस्थिरता आदि होते है, पर ये हर महिला के लिए अलग होता है. कुछ को ये अनुभव बहुत कम भी हो सकता है.

मेनोपौज के बाद वजन अपने आप बढ़ता है

बहुत सारी महिलाओं का वजन 35 से 45 उम्र के दौरान बढती है. इसका मेनोपौज से कुछ लेना देना नहीं होता और ये जांच के बाद ही पता चल पाता है. कुछ शोध कर्ताओं का कहना है कि ये अभी पता नहीं चल पाया है कि मोटापे की वजह मेनोपौज ही है, क्योंकि इस उम्र में महिलाओं की एक्टिवनेस कम हो जाती है, जिससे मोटापा अपने आप ही आ जाती है. ये सही है कि  मेनोपौज में शरीर में फैट की प्रतिशत बढ़ जाती है,ऐसे में अगर खान-पान पर ध्यान दिया जाय तो वजन नहीं बढ़ पाता.

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मेनोपौज के बाद सेक्स में रूचि कम हो जाती है

ये पूरी तरह से गलत है,क्योंकि मेनोपौज के बाद सेक्स करने से गर्भधारण की चिंता नहीं रहती. अगर आपने 12 महीने बिना माहवारी के गुजार दिया है, तो आप बिना चिंता के अपनी सेक्सुअल लाइफ जी सकते है और ये सही भी है कि इस समय सेक्सुअल एक्टिवनेस की वजह से आपका मानसिक सामंजस्य भी बना रहता है.

मेनोपौज के बाद भी महिला प्रेग्नेंट हो सकती है

जब महिला इस दौर से गुजरती है और माहवारी का समय बार-बार बदल रहा है, तो इस समय महिला प्री मेनोपौज की स्थिति में है, ऐसे में पार्टनर के साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स किया है, तो गर्भधारण हो सकता है और आपको डौक्टर की सलाह से गर्भनिरोधक दवाइयां लेने की जरुरत है. 12 महीने बिना मासिक धर्म के गुजर जाने पर ही प्रेगनेंसी की समस्या नहीं रहती.

डौ.अनघा का आगे कहना है कि ये सारे मिथ की वजह से महिलाएं मेनोपौज के बाद अपने आपको कमजोर और लाचार महसूस करती है, जिसकी कतई जरुरत नहीं है. असल में इस समय महिलाओं की स्वस्थ रहकर अधिक से अधिक एक्टिव होने की जरुरत होती है, ताकि उनके उद्देश्य जिसे उसने अभी तक पूरा नहीं कर पायी हो, उसे कर लें, अपने प्यारे दोस्त और परिवार जनों के साथ ट्रेवल करें. इतना ही नहीं,जो महिलाएं रजोनिवृत्ति के बाद अपने स्वास्थ्य और माइंड की सही देखभाल करती है, वे अधिक अच्छी और सम्पूर्ण जीवन मेनोपौज के बाद ही बिता पाती है, उन्हें कोई रोक नहीं पाता.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

हुंडई i20 की हैंडलिंग है खास

हुंडई i20 की सवारी हमेशा से शानदार रही है. और नए हुंडई i20 भी ऐसी ही है. कार कम और ज्यादा स्पीड में होने के बावजूद भी शायद कभी ऐसा हुआ हो जो पीछे वाले कम्पार्टमेंट में कुछ महसूस होता हो.

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नई जेनेरेशन मॉडल की हुंडई i20 में हाई स्ट्रेंथ और एडवांस हाई स्ट्रेंथ लेबल का स्टील लगा हुआ है. जो कार को स्ट्रांग बनाता है और कार की हैंडलिंग बेहतर होती है. हुंडई i20 का फ्रंड एंड हमेशा स्टेबल रहता हैं और सड़क के अनुसार चलता है प्लेटेड बनया गया है। ठीक उसी तरह जैसे की नई i20 #BringsTheRevolution इसकी सवारी गुणवत्ता और हैंडलिंग के साथ।

बिग बॉस 14: कश्मीरा शाह ने घर से जाते हुए दी अर्शी खान को ये सलाह

बिग बॉस के घर में चैलेंजर्स और कुछ वाइल्ड कार्ड कंटेस्टेंट की एंट्री हुई थी, जिसके बाद से आए दिन कुछ न कुछ बवाल जरूर हो रहा है. कुछ दिन पहले अर्शी खान और विकास गुप्ता की लड़ाई ने खूब लाइम लाइट बटोरी थी. वहीं बाती रात जस्मिन भसीन और रुबीना दिलाइक की लड़ाई ने खूब लाइम लाइट बटोरी थी.

वीकेंड के वार पर हमेशा की तरह इस बार भी सलमान खान कंटेस्टेंट का क्लास लगाते नजर आएं . साथ ही

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उन्होंने इस बात का खुलासा कर दिया कि इस बार घर से बेघर होंगी कश्मीरा शाह. जिसके बाद फैंस चौक गए . वहीं कश्मीरा शाह ने खुशी- खुशी इस शो को अलविदा कहा. कश्मीरा शाह ने जाते –जाते इस शो में सभी को सही से खेलने की सलाह दी.

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वहीं कश्मीरा शाह और अर्शी खान की दोस्ती शुरुआती दिनों से अच्छी थी. घर को छोड़कर जाते हुए कश्मीरा शाह अपनी खास दोस्त अर्शी खान से कहा कि वह सलमान खान के घर बात पर गौर करें और इस गेम में आगे बढ़ें. वहीं अर्शी खआन ने भी अपनी दोस्त कश्मीरा शाह से कहा कि वह कभी किसी को निराश नहीं करेंगी.

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दरअसल, वीकेंड के वार में सलमान खान ने अर्शी खान को जमकर लताड़ा था. क्योंकि पिछले हफ्ते से लगातार अर्शी खान विकास गुप्ता को टारगेट करती नजर आ रही थी. हर वक्त उनके पीछे पड़ी रहती थी. इसलिए अर्शी खान को सलमान खान ने खूब सुनाया .

करणवीर बोहरा के घर आई नन्ही परी, तीसरी बेटी होने पर जताई खुशी

करणवीर बोहरा के फैंस के लिए खुशखबरी है. एक बार फिर से करणवीर बोहरा पापा बन गए हैं. जिसके बाद से वह बेहद ज्यादा खुश नजर आ रहे हैं. एक रिपोर्टे में बात करते हुए करणवीर बोहरा ने अपने खुशी का इजहार किया है.

करणवीर बोहरा ने बताया है कि मैं नन्ही परी के आने से बहुत खुश हूं पहले से मैं दो बेटियों का बाप हूं अब तीसरी बार बाप बनकर मुझे काफी अच्छा महसूस हो रहा है. आगे उन्होंने कहा मैंने पहले ही कह दिया था कि चाहे लड़का हो या लड़की मैं उसका स्वागत खुशी से करुंगा.

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मुझे इस पल का ब्रेसबी से इंतजार था. पहले हमारे घर में लक्ष्मी,सरस्वती थी अब दुर्गा भी आ गई हैं. इनके आगमन से हमारे घर की खुशियां दोगुनी हो गई है.

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बता दें कि करणवीर बोहरा और टीजे सिद्धू ने अपनी तीसरी बेटी का जन्म कनाडा में दिया है. वह अभी अपनी फैमली के साथ हैं.

करण वीर बोहरा और टीजे सिद्धू ने साल 2006 में बेहद सादगी अंदाज में शादी रचाई थी. शादी के करीब 10 साल बाद ये दोनों दो बेटियों के बाप बनें. जुड़वा बेटी होने के बाद इन दोनों ने अपनी बेटियों का नाम बेला और वियाना रखा जो बेहद ही क्यूट हैं. आए दिन सोशल मीडिया पर इन दोनों के वीडियो देखऩे को मिलते रहते हैं.

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टीजे सिद्धू पहले मॉडलिंग करती थी लेकिन वह अब अपना पूरा समय परिवार को देती हैं. वहीं करणवीर बोहरा की बात कि जाएं तो वह कई मशहूर सीरियल्स में काम कर चुके हैं और बिग बॉस में भी आ चुके हैं.

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