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दिसंबर महीने के जरूरी काम

सर्दी वाले गन्ने में अगर पिछले महीने सिंचाई नहीं की है, तो सिंचाई जरूर करें. गन्ने के साथ तोरिया, राई वगैरह की बोआई की है, तो निराईगुड़ाई कर लें. दिसंबर महीने में गन्ने की तकरीबन सभी किस्में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं. चीनी मिल की मांग के अनुसार कटाई का काम शुरू करें. अभी अगर गेहूं की बोआई नहीं की है, तो 15 दिसंबर तक पूरी कर लें. इस समय बोआई के लिए ज्यादा पैदावार देने वाली पछेती किस्मों का चुनाव करें. बीज की मात्रा 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें. अगर गेहूं की बोआई किए हुए 20-25 दिन हो चुके हैं, तो पहली सिंचाई कर दें. फसल के साथ उगे खरपतवारों को खत्म करें.

जौ की बोआई नहीं की गई है, तो फौरन बोआई करें. पिछले महीने बोई गई फसल 30-35 दिन की हो गई हो, तो सिंचाई जरूर करें. सरसों की फसल में खरपतवारों को न पनपने दें. सरसों की फसल में जरूरत से ज्यादा पौधे उग आए हों, तो उन्हें उखाड़ कर पशुओं के लिए चारे के तौर पर इस्तेमाल करें. फसल पर कीटबीमारी का हमला दिखाई दे, तो फौरन जरूरी व कारगर दवाओं का छिड़काव करें. मटर की फसल में फूल आने से पहले हलकी सिंचाई करें. मटर के तना छेदक कीट की रोकथाम के लिए डाइमिथोएट 30ईसी दवा की 1 लीटर मात्रा व फलीछेदक कीट की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 36 ईसी की 750 मिलीलीटर मात्रा 800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. रतुआ बीमारी को काबू में करने के लिए मैंकोजेब दवा की 2 किलोग्राम मात्रा 800 सौ लीटर पानी में घोल कर खड़ी फसल पर छिड़काव करें. मसूर की बोआई इस महीने में भी कर सकते हैं. लिहाजा ज्यादा पैदावार देने वाली किस्मों को बोआई के लिए चुनें.

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इस महीने मिर्च की फसल पर डाईबैक बीमारी का अकसर हमला देखा जाता है. इस की रोकथाम के लिए डाइथेन एम 45 या डाइकोफाल 18 ईसी दवा का छिड़काव करें. अगर प्याज की पौध तैयार हो गई हो, तो इस महीने के आखिरी हफ्ते में रोपाई का काम पूरा कर लें. आलू की फसल में जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. बीमारियों से बचाव के लिए मैंकोजेब दवा का छिड़काव करें. अगर आसमान में बादल छाए हैं और नमी है, तो सायमोक्जेनिल 8 फीसदी व मैंकोजेब 64 फीसदी को मिला कर छिड़काव करें. आम के बागों की साफसफाई करें. 10 साल या इस से ज्यादा उम्र के पेड़ों में प्रति पेड़ 750 ग्राम फास्फोरस, 1 किलोग्राम पोटाश थालों में दें. इस के साथ ही नए लगाए गए छोटे पौधों को पाले से बचाने का इंतजाम भी करना चाहिए.

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मिलीबग कीट की रोकथाम के लिए तने के चारों तरफ 2 फुट की ऊंचाई पर 4 सौ गेज वाली 30 सेंटीमीटर पौलीथिन की पट्टी बांधें. इस पट्टी के नीचे की तरफ वाले किनारे पर ग्रीस का लेप कर दें.  अगर मिलीबग कीट तने पर दिखाई दे, तो पेड़ के थालों की मिट्टी में क्लोरोपाइरीफास पाउडर की 250 ग्राम मात्रा प्रति पेड़ के हिसाब से छिड़कें. नए लगाए बागों के छोटे पेड़ों को पाले से बचाने के लिए फूस के छप्पर का इंतजाम करें व सिंचाई करें. इस आखिरी महीने की ठंड पशुओं के लिए काफी जोखिमभरी होती है. लिहाजा पशुओं को कमरों में बंद कर के रखें और रोशनी का उचित प्रबंध करें. इस ठंड का असर मुरगीपालन के कारोबार पर भी पड़ता है. ठंड से मुरगियों को बचाने का भी उचित प्रबंध करना बहुत जरूरी होता है.

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पहाड़ी इलाकों में आलू के खेत में निराईगुड़ाई करें. नाइट्रोजन की बाकी बची एक तिहाई मात्रा यूरिया या कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट के रूप में खेत में डाल कर मोटी मेंड़ बना कर मिट्टी चढ़ाएं. नारियल की खेती में बलुई व दोमट मिट्टी में टीले बनाएं और खेत की जुताई करें. नारियल की जड़ के आसपास की मिट्टी को नारियल के छिलकों से ढक दें ताकि नमी बनी रहे.

जी रिश्ते अवॉर्ड्स 2020: सुशांत सिंह राजपूत को यादकर इमोशनल हुई अंकिता लोखंडे और ऊषा नाडकर्णी

अंकिता लोखंडे इन दिनों सोशल मीडिया पर डांस रिहर्लस की पोस्ट डालती रहती हैं. इस पोस्ट को दखने के बाद आपके मन में भी यह सवाल उठता होगा कि आखिर यह पोस्ट किस लिए अंकिता इन दिनों शेयर कर रही हैं.

बता दें कि अंकिता लोखंडे यह पोस्ट जी रिश्ते अवार्ड 2020 की तैयारी करत हुए डाल रही हैं. जी रिश्ते अवार्ड में अंकिता लोखंडे स्पेशल पर्फॉर्मेश देने वाली है जिसमें वह सुशांत सिंह राजूपत को ट्रीब्यूट करती देती नजर आएंगी.

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रिहर्सल के दौरान बीच- बीच मं अंकिता लोखंडे काफी इमोशनल हो जाती हैं. जिसके बाद बीच- बीच में अंकिता लोखंड़े ब्रेक लेकर काम करती हैं. इसी बीच अंकिता से मिलने पहुंची सुशांत सिंह राजपूत की ऑनस्क्रीन मां ऊषा नाडकर्णी .

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सीरियल पवित्र रिश्ता में वह सुशांत की मां का किरदार निभाया करती थीं. सुशांत की ऑनस्क्रीन मां अंकिता लोखंडे से मिलने के बाद काफी ज्यादा इमोशनल हो गई.

 

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सीरियल पवित्र रिश्ता खत्म होने के बाद इन दोनों ने कभी एक –दूसरे से मुलाकात नहीं किया था. दोनों ने अपने पुराने दिन और पुरानी बातों को याद करके रोने लगी. उषा की बातों से लग रहा था कि वह सुशांत को बहुत ज्यादा मिस करती हैं.

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अंकिता लोखंडे के साथ वहां उनकी मां वंदना लोखंडे भी मौजूद थी. उषा सुशांत के साथ बहुत ज्यादा घूल मिल गए थें. दोनों साथ मं काफी ज्यादा वक्त बीताते थें.

उषा के आंखों से आंसू छलक गए पुरानी यादों को ताजा करते हुए. दोनों ने बहुत ज्यादा समय एक-दूसरे के साथ बिताया था.

अनिल कपूर की गलत कोरोना रिपोर्ट की अफवाह पर भड़की सोनम कपूर, ट्वीट कर कही ये बात

कुछ समय पहल ही यह खबर आई थी कि अपककमिंग फिल्म ‘जुग जुग जियो”   की शूटिंग के दौरान अनिल कपूर कोरोना के चपेट में आ गए हैं उनके साथ काम कर रहे वरुण धवन औऱ नीतू कपूर की भी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटीव आई है. जिसके बाद से लगातार सोशल मीडिया पर कई तरह की अफवाहें आने लगी है.

कुछ देर बात सच पता चला कि यह सब खबर अफवाह है ऐसा कुछ भी नहीं हुआ सभी लोग सुरक्षित है और रिपोर्ट निगेटीव है. जिसके बाद सोनम कपूर ने जमकर सोशल मीडिया पर सभी की क्लास लगाई.

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सोनम कपूर ने ट्वीट करते हुए कहा है कि आप लोग रिपोर्टिग करते समय जिम्मेदारी का ध्यान रखिए गलत खबरे खतरनाक साबित हो सकती है. मैं लंदन में बैठई हूं अभी तक मेरे फैमली से बात नहीं हुई है. आप अपन काम को जिम्मेदारी के साथ करिए.

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सोनम कपूर का यह ट्वीट सोशल मीडिया पर लगातार वायरल हो रहा है. फैंस भी सोनम के इस ट्वीट को सपोर्ट करते नजर आ रहे हैं. वहीं कुछ फैंस इस ट्वीट को लेकर सोनम कपूर को टारगेट करते नजर आ रहे हैं.

बता दें इन दिनों सोनम कपूर लंदन में पति आनंद के साथ क्वालिटी टाइम बीता रही हैं. आए दिन सोशल मीडिया पर सोनम पोस्ट शेयर करती रहती हैं.

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सोनम कपूर अपन खुले विचार के लिए जानी जाती हैं. सोनम कपूर आए दिन अपने सोशल मीडिया पर एक्टिव नजर आती हैं.

लौकी पोस्तो की सब्जी

वैसे तो लौकी स्वास्थ्य के लि बहुत ज्यादा लाभकारी होत है. अगर उसमं पोस्ता मिला दें तो उसके स्वाद और भी ज्यादा बढ़ जाते हैं. आइए जानते हैं लौकी और पोस्ता के सब्जी को कैसे बनाते हैं. लौकी और पोस्ता मिक्स बहुत स्वादिष्ट बनता है.

समाग्री

लौकी

हरी मिर्च

घी

जीरा

हींग

हल्दी पाउडर

लाल मिर्च

धनिया पाउडर

गर्म मसाला

नमक

पोस्ता दाना

हरा धनिया

विधि

-लौकी का तना काटकर हटा ल फिर लौकी को धोकर मनचाहे अकार में काट लें. अब कड़ाही में तेल या घी गर्म करें फिर उसमें जीरा को डालें.

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-अब उसमें लौकी के टुकड़े और पोस्ता दाना मिलाकर कुछ देर तक चलाकर भूने. कुछ देर के बाद उसमें नमक धनिया पाउडर, लाल मिर्च डालकर अच्छे से भूनें.

-ध्यान रखें पोस्ता दाना को पिसकर ही डालें इससे पोस्ता का स्वाद अच्छा आता है. लौकी को ज्यादा न गलाएं. लौकी खड़ा ही अच्छा लगता हैं.

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-कुछ देर तक ढ़ककर पकाएं ढ़कने के बाद उसमें गरम मसाला ऊपर से डालकर अच्छे मिलान के बाद गैस को बंद कर दें अब कड़ाही से निकारकर थाली में परोसें.

 

मुक्ति : जिंदगी मिली है तो जीना ही पड़ेगा

फोन की घंटी रुकरुक कर कई बार बजी तो जया झुंझला उठी. यह भी कोई फोन करने का समय है. जब चाहा मुंह उठाया और फोन घुमा दिया. झुंझलातीबड़बड़ाती जया ने हाथ बढ़ा कर टेबिल लैंप जलाया. इतनी रात गए किस का फोन हो सकता है? उस ने दीवार घड़ी की ओर उड़ती नजर डाली तो रात के 2 बजे थे. जया ने जम्हाई लेते हुए फोन उठाया और बोली, ‘‘हैलो.’’ ‘‘मैं अभिनव बरुआ बोल रहा हूं,’’ अभिनव की आवाज बुरी तरह कांप रही थी.

‘‘क्या बात है? तुम इतने घबराए हुए क्यों हो?’’ जया उद्विग्न हो उठी. ‘‘सुनीता नहीं रही. अचानक उसे हार्टअटैक पड़ा और जब तक डाक्टर आया सबकुछ खत्म हो गया,’’ इतना कह कर अभिनव खामोश हो गया.

जया स्वयं बहुत घबरा गई लेकिन अपनी आवाज पर काबू रख कर बोली, ‘‘बहुत बुरा हुआ है. धीरज रखो. अपने खांडेकरजी और मुधोलकरजी को तुरंत बुला लो.’’ ‘‘इतनी रात को?’’

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‘‘बुरा वक्त घड़ी देख कर तो नहीं आता. ये अपने सहयोगी हैं. इन्हें निसंकोच तुरंत फोन कीजिए. इस के बाद अपने घर और रिश्तेदारों को सूचना देना शुरू करो. यह वक्त न तो घबराने का है और न आपा खोने का.’’ ‘‘मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है.’’

‘‘तुम खुद घबराओगे तो बच्चों को कौन संभालेगा? क्रियाकर्म तो करना ही है.’’ टेबिल लैंप बिना बंद किए जया पलंग पर धम्म से बैठ गई. अभिनव की अभी उम्र ही क्या होगी? यही कोई 50 वर्ष. 4-5 साल में बच्चे अपनीअपनी घरगृहस्थी में रम जाएंगे तब वह बेचारा कितना अकेला हो जाएगा. आज भी तो वह कितना अकेला और असहाय है? उस के दोनों बच्चे बाहर इंजीनियरिंग में पढ़ रहे हैं. घर में ऐसी घटना से अकेले जूझना कितना त्रासद होगा?

जया के दिमाग में एक बार सोच का सिलसिला चला तो चलता ही रहा. आजकल मानवीय संवेदनाएं भी तो कितनी छीज गई हैं. किसी को भी दूसरे के सुखदुख से कोई लेनादेना नहीं है. उसे इस मुसीबत की घड़ी में कोई अपना नहीं दिखाई दिया. कहने को तो उस के अपनों का परिवार कितना बड़ा है…भाईबहन, मांबाप, रिश्तेदार, पड़ोसी, सहकर्मी और न जाने कौनकौन. मुसीबत में तो वही याद आएगा जिस से सहायता और सहानुभूति की उम्मीद हो. उस ने सब से पहले फोन उसी को किया तो क्या उसे किसी अन्य से सहायता की उम्मीद नहीं है? वह क्या सहायता कर सकती है? एक तो महिला फिर रात के 2 बजे का वक्त. जो भी हो इस वक्त अभिनव के पास सहायता तो पहुंचानी ही होगी. मगर कैसे? वह तो स्वयं इस शहर में अकेली है. अब तो अपना कहने को भी कुछ नहीं बचा है. भाईबहन अपनीअपनी जिंदगी में ऐसे रम गए हैं कि सालों फोन तक पर बात नहीं होती. उन दोनों की जिंदगी तो संवर ही चुकी है. अब बड़ी बहन जिए या मरे…उन्हें क्या लेनादेना है?

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एक जन्मस्थान वाला शहर है, वहां भी अब अपना कहने को क्या रह गया है? जब पिता का देहांत हुआ था तब वह बी.ए. में पढ़ रही थी. घर में वह सब से बड़ी संतान थी. घर में छोटे भाईबहन भी थे. मां अधिक पढ़ीलिखी नहीं थीं. मां को मिलने वाली पारिवारिक पेंशन परिवार चलाने के लिए अपर्याप्त थी. यों तो भाई भी उस से बहुत छोटा न था. सिर्फ 2 साल का फर्क होगा. उस समय वह इंटर में पढ़ रहा था और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था. मां सोचती थीं कि वंश का नाम तो लड़का ही रौशन करेगा अत: भाई की पढ़ाई में कोई रुकावट न आए. परंपरागत रूप से हल का जुआ बैल की गरदन पर ही रखा जाता है लेकिन यहां पारिवारिक जिम्मेदारी का जुआ उस के ऊपर डाल दिया गया और भाई को भारमुक्त कर दिया गया.

पिता के फंड व बीमा के मिले रुपए भी मां ने भाई की पढ़ाई के लिए सुरक्षित बैंक में जमा कर दिए. वह मेधावी छात्रा तो थी ही. उस ने समझ लिया कि संघर्ष का रास्ता कठोर परिश्रम के दरवाजे से ही निकल सकता है. वह ट्यूशन कर के घरखर्च में सहयोग भी करती और मेहनत से पढ़ाई भी करती. एकएक पैसे के लिए संघर्ष करतेकरते अभाव का दौर भी गुजर ही गया, लेकिन यह अभावग्रस्त जीवन मन में काफी कड़वाहट घोल गया. पिता के किसी भी मित्र या रिश्तेदार ने मदद करना तो दूर, सहानुभूति के दो शब्द भी कभी नहीं बोले. समय अपनी चाल चलता रहा. उस ने एम.ए. में विश्वविद्यालय टौप किया. शीघ्र ही उसे अपने विभागाध्यक्ष के सहयोग से एक महाविद्यालय में प्रवक्ता के पद पर नियुक्ति भी मिल गई. यद्यपि उस की नियुक्ति अपने शहर से लगभग 200 किलोमीटर दूर हुई थी फिर भी उस की खुशी का पारावार न था. चलो, इस लंबे आर्थिक और पारिवारिक संघर्ष से तो मुक्ति मिली.

आर्थिक संघर्ष ने उसे सिर्फ तोड़ा ही नहीं था, कई बार आहत और लज्जित भी किया था. उस का अभिनव से परिचय भी महाविद्यालय में ही हुआ था. वह भी इतिहास विभाग में ही प्रवक्ता था. नई उम्र, नया जोश और अनुभव का अभाव जया की कमजोरी भी थे और ताकत भी. महाविद्यालय की गोष्ठी, सेमिनार, वार्षिकोत्सव जैसे अवसरों पर उस की अभिनव से अकसर भिड़ंत हो जाती थी. उसे लगता कि उस के जूनियर होने के कारण अभिनव उस पर हावी होना चाहता है. महाविद्यालय के वार्षिकोत्सव के स्टेज शो की प्रभारी कमेटी में ये दोनों भी शामिल थे. जया विद्यार्थी जीवन से ही स्टेज शो में हिस्सा लेती रही थी अत: उसे स्टेज शो की अच्छी जानकारी थी. अभिनव अपनी वरिष्ठता और पुरुष अहं के कारण जया की सलाह को अकसर जानबूझ कर नजरअंदाज करने की कोशिश करता. जया कहां बरदाश्त करने वाली थी. वह रणचंडी बन जाती और तीखी नोकझोंक के बाद अभिनव को हथियार डालने के लिए मजबूर कर देती. अभिनव खिसिया कर रह जाता.

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सोचतेसोचते जया की आंख लग गई. फोन की घनघनाहट ने नींद में पुन: बाधा डाली. खिड़की के खुले परदों से कमरे में सुबह की धूप बिखर रही थी. घड़ी 8 बजा रही थी. इतनी देर तक तो वह कभी नहीं सोती. अनुमान सही निकला. यह अभिनव की ही काल थी. ‘‘सभी नजदीकी रिश्तेदारों को फोन कर दिया है. मैं ने न जाने किस मुहूर्त में सिलीगुड़ी से आ कर पूना में नौकरी की थी. सारे रिश्तेदार तो वहीं हैं. कोई भी कल शाम से पहले नहीं आ पाएगा.’’

‘‘तो फिर?’’ ‘‘क्रियाकर्म तो इंतजार नहीं कर सकता. सारी व्यवस्था अभी करनी है.’’

‘‘सब हो जाएगा. आखिर महा- विद्यालय परिवार किस दिन काम आएगा?’’ ‘‘प्रिंसिपल साहब आ चुके हैं, 20-25 स्टाफ के लोग भी आ चुके हैं.’’

‘‘तब क्या मुश्किल है?’’ ‘‘क्रियाकर्म के पहले सुनीता का स्नान और सिंगार भी होना है. तुम आ जातीं तो फोन कर के स्टाफ की दोचार महिलाएं ही बुला लेतीं.’’

‘‘ठीक है, मैं 15-20 मिनट में पहुंचती हूं,’’ जया के पास हां कहने के अलावा कोई विकल्प भी तो न था. विषम परिस्थितियों में अपने लोगों पर स्वत: विशेषाधिकार प्राप्त हो जाता है. तब संकोच का स्थान भी कहां बचता है? क्या आज अभिनव का यह विशेषाधिकार पूरे महाविद्यालय परिवार पर नहीं है? प्राचार्य तो अनुभवी हैं और सामाजिक परंपराओं से अच्छी तरह परिचित भी हैं. तो उन्होंने स्वयं इस समस्या का समाधान क्यों नहीं निकाला? वहां बैठे हुए अन्य सहकर्मी भी बेवकूफ तो नहीं हैं. वे संवेदनशून्य क्यों बैठे हैं? आखिर अर्थी उठने के पहले की रस्में तो महिलाएं ही पूरा करेंगी. अब ये महिलाएं आएंगी कहां से? इस के लिए या तो महिला सहकर्मी आगे आएं या पुरुष सहकर्मियों के परिवारों से महिलाएं आएं. शुभअशुभ जैसी दकियानूसी बातों से तो काम चलेगा नहीं. अभिनव तो बाहरी व्यक्ति है और किराए के मकान में रह रहा है अत: महल्ले में सहयोग की अपेक्षा कैसे कर सकता है?

आज के दौर में नौकरी के लिए दूरदूर जाना सामान्य बात है. मौके बेमौके घरपरिवार वाले मदद करना भी चाहें तो भी आनेजाने की लंबी यात्रा और समय के कारण ये तुरंत संभव नहीं है. फिर दूर की नौकरी में परिवार से मेलमिलाप भी तो कम हो जाता है. ऐसे में संबंधों में वह ताप आएगा कहां से कि एकदूसरे की सहायता के लिए तुरंत दौड़ पड़ें. ऐसे में अड़ोस- पड़ोस और सहकर्मियों से ही पारिवारिक रिश्ते बनाने पड़ते हैं. क्या अभिनव ऐसे कोई रिश्ते नहीं बना पाया जो दुख की इस घड़ी में काम आते? रिश्ते तो बनाने पड़ते हैं और उन्हें जतन से संजोना पड़ता है. और अधिकार बोध? ये तो मन के रिश्तों से उपजता है.

जया को याद आया. 10-12 वर्ष पुरानी घटना होगी. उस समय भी वह गर्ल्स होस्टल की वार्डेन थी. रात के 1 बजे होस्टल की एक छात्रा को भयंकर किडनी पेन शुरू हो गया. वह दर्द से छटपटाने लगी. होस्टल की सारी छात्राएं आ कर वार्डेन के आवास पर जमा हो गईं. वह रात को 1 बजे करे भी तो क्या? अगर कोई अनहोनी हो गई तो कालिज में बवंडर तय है. उस से भी बड़ी बात तो मानवीय सहायता और गुरुपद की गरिमा की थी. उस ने आव देखा न ताव, सीधा अभिनव को फोन घुमा दिया. 15 मिनट के अंदर अभिनव टैक्सी ले कर होस्टल के गेट पर खड़ा हो गया. उस दिन सारी रात अभिनव भी नर्सिंगहोम में जमा रहा.

जया ने अभिनव को धन्यवाद कहा तो अभिनव दार्शनिकों की भांति गंभीर हो गया. ‘धन्यवाद को इतना छोटा मत बनाइए. जिंदगी के न जाने किस मोड़ पर किस को किस से क्या सहायता की जरूरत पड़ जाए?’ टैक्सी और नर्सिंगहोम का भुगतान भी अभिनव ने ही किया था.

रिकशा अभिनव के दरवाजे पर जा कर रुका. जया का ध्यान टूटा. दरवाजे पर 40-50 आदमी जमा हो चुके थे, लेकिन कोई महिला सहकर्मी वहां नहीं थी. उसे थोड़ा संकोच हुआ. सामान्यत: ऐसे मौकों पर पुरुषों का ही आनाजाना होता है. सिर्फ परिवार, रिश्तेदार और पारिवारिक संबंधी महिलाएं ही ऐसे मौके पर आतीजाती हैं अत: अभिनव के घर महिलाओं का न पहुंचना स्वाभाविक ही था. वह सीधी प्राचार्य के पास पहुंची और बोली, ‘‘सर, अब क्या देर है?’’

‘‘दोचार महिलाएं होतीं तो लाश का स्नान और सिंगार हो जाता.’’ जया को महाविद्यालय परिवार याद आया तो उस ने पूछ लिया, ‘‘महा- विद्यालय परिवार कहां गया?’’

प्राचार्य गंभीर हो कर बोले, ‘‘आमतौर पर महिला सहकर्मी ऐसे अशुभ मौकों पर नहीं आती हैं.’’ जया को मन ही मन क्रोध आया लेकिन मौके की नजाकत देख कर उस ने वाणी में अतिरिक्त मिठास घोली, ‘‘सर, यह सामान्य मौका नहीं है. अभिनव अपने घर से कोसों दूर नौकरी कर रहा है. इतनी जल्दी परिवार वाले तो आ नहीं सकते. क्रियाकर्म तो होना ही है.’’

प्राचार्य ने चुप्पी साध ली. अगल- बगल बैठे सहकर्मी भी बगलें झांकने लगे. जया की समझ में अच्छी तरह से आ गया कि महाविद्यालय परिवार की अवधारणा स्टाफ से काम लेने के लिए है, स्टाफ के काम आने की नहीं. जया प्राचार्यजी के पास से उठ कर सीधी अंदर चल दी. मानवीय संवेदना के आगे परंपराएं और सामाजिक अवरोध स्वत: बौने हो गए. फिर यह चुनौती मानवीय संवेदना से कहीं आगे की थी. अगर एक नारी ही दूसरी नारी की गरिमा और अस्मिता की रक्षा नहीं कर सकती है तो इस रूढि़वादी सड़ीगली मानसिकता वाली भीड़ से क्या अपेक्षा की जा सकती है?

जातेजाते जया ने एक उड़ती हुई नजर वहां मौजूद जनसमूह पर भी डाली. भीड़ में ज्यादातर सहकर्मी ही थे जो छोटेछोटे समूहों में बंट कर इधरउधर गप्पें मार रहे थे. अभिनव भी जया के पीछेपीछे अंदर जाने लगा. अभिनव की आंखों में बादल घुमड़ रहे थे, जो किसी भी क्षण फटने को तैयार थे. जया ने आंखों के इशारे से ही अभिनव को रोक दिया. इस रोकने में समय की न जाने कितनी मर्यादाएं छिपी हुई थीं.

अभिनव दरवाजे के बाहर से ही लौट गए. जया ने गीले कपड़े से पोंछ कर सुनीता को प्रतीक स्नान कराया. सुनीता के चेहरे पर योगिनी जैसी चिर शांति छाई हुई थी. जया सुनीता का रूप सौंदर्य देख कर विस्मित हो गई, तो अभिनव ने इतनी रूपसी पत्नी पाई थी? अभिनव ने पहले कभी पत्नी से मुलाकात भी तो नहीं कराई और आज मुलाकात भी हुई तो इस मोड़ पर. जया गमगीन हो गई. कभी अभिनव ने उस के सामने भी तो विवाह का प्रस्ताव रखा था. उस समय वह रोंआसी हो कर बोली थी, ‘अभिनव, ये मेरा सौभाग्य होता. तुम बहुत अच्छे इनसान हो लेकिन परिवार की जिम्मेदारियां रहते मैं अपना घर नहीं बसा सकती. हो सके तो मुझे माफ कर देना.’

फिर भी अभिनव ने कई वर्ष तक जया का इंतजार किया. वैसे उन दोनों के बीच प्रेमप्रसंग जैसी कोई बात भी नहीं थी. पारिवारिक जिम्मेदारियां समाप्त होतेहोते बहुत देर हो गई. उस के बाद अगर वह चाहती तो आासनी से अपना घर बसा लेती लेकिन उस के मन ने किसी और से प्रणय स्वीकार ही नहीं किया.

अभी पिछले हफ्ते ही तो अभिनव उसे समझा रहा था, ‘जया, जिद छोड़ो, अपनी पसंद की शादी कर लो. युवावस्था का अकेलापन सहन हो जाता है, प्रौढ़ावस्था का अकेलापन कठिनाई से सहन हो पाता है. मगर वृद्धावस्था में अकेलेपन की टीस बहुत सालती है.’

जया ने हंस कर बात टाल दी थी, ‘अब इस उम्र में मुझ से शादी करने के लिए कौन बैठा होगा? फिर अगर आज शादी कर भी ली जाए तो 10-5 साल बाद मियांबीवी बैठ कर घुटनों में आयोडेक्स ही तो मलेंगे. अब यह भी क्या कोई मौजमस्ती की उम्र है? इस उम्र में तो आदमी अपने बच्चों की शादी की बात सोचता है.’ अभिनव ने प्रतिवाद किया था, ‘10 साल बाद की बात छोड़ो, वर्तमान में जीना सीखो. हम सुबह घूमने जाते हैं, उगता हुआ सूरज का गोला देखते हैं, फूल देखते हैं, सृष्टि के अन्य नजारे देखते हैं. मन में कैसा उजास भर जाता है. कुछ पलों के लिए हम जिंदगी के सभी अभावों को भूल कर प्रफुल्लित हो जाते हैं. क्या यह जीवन की उपलब्धि नहीं है?’

जया का ध्यान टूटा…सामने अभिनव की पत्नी की मृत देह पड़ी थी. वह धीमेधीमे सुनीता का सिंगार करने लगी. उसे लगा जैसे मन पूछ रहा है कि आज वह इस घर में किस अधिकार से अंदर चली आई? नहीं, वह इस घर में अनधिकार नहीं आई है. आज अभिनव को उस की बेहद जरूरत थी. ‘और अगर अभिनव को कल भी उस की जरूरत हुई तो?’ अचानक उस के मन में प्रश्न कौंधा.

जया ने हड़बड़ा कर सुनीता की मृत देह की ओर देखा : अब वह उस मृत देह का शृंगार कर के, अंतिम बार निहार कर बाहर आ गई. अन्य लोग उस की अंतिम क्रिया की तैयारी करने लगे.

प्याज बीज उत्पादन की वैज्ञानिक विधि

सभी फसलों में अच्छे बीजों का होना अधिक उत्पादन के लिए बहुत जरूरी  है. शुद्ध व विश्वसनीय बीज भारत में बहुत कठिनाई से मिलते  हैं, क्योंकि बीजोत्पादन वैज्ञानिक ढंग से नहीं किया जाता. प्याज के शुद्ध व विश्वसनीय बीज पैदा करने के लिए सही कृषि क्रियाओं, प्रजातियों, छंटाई, कीड़ों व बीमारियों की रोकथाम, परागण, कटाई, सुखाई, मड़ाई, बीज की सफाई, भराई व भंडारण के बारे में सही ज्ञान होना बहुत जरूरी  है. बीज उत्पादन के लिए प्याज को 2 वर्षीय कहा गया  है. सभी जातियों का (जो भारत में उगाई जाती  हैं) बीज उत्पादन मैदानी क्षेत्रों में आसानी से किया जाता  है.

प्याज के बीजोत्पादन की विधि

कंद से बीज उत्पादन विधि  : इस विधि में कंदों को बनने के बाद उखाड़ लिया जाता  है और अच्छी तरह चुन कर के दोबारा खेतों में रोपा जाता  है. इस विधि से गाठों की  छंटाई संभव होती है, शुद्ध बीज बनता है और उपज भी ज्यादा होती  है. लेकिन इस विधि में लागत ज्यादा आती  है और समय अधिक लगता है.

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1 वर्षीय विधि  : इस विधि में बीजों को मईजून में बोया जाता  है और पौधों की रोपाई जुलाईअगस्त में की जाती  है. कंद नवंबर में तैयार हो जाते  हैं. कंदों को उखाड़ कर छांट लिया जाता  है. अच्छे कंदों को 10-15 दिनों बाद दोबारा दूसरे खेत में लगा दिया जाता  है. इस विधि से मई तक बीज तैयार हो जाते हैं. क्योंकि इस से 1 साल में ही बीज बन जाते  हैं, लिहाजा इसे 1 वर्षीय विधि कहते  हैं. इस विधि से खरीफ प्याज की प्रजातियों का बीजोत्पादन होता है.

2 वर्षीय विधि : इस विधि में बीज अक्तूबनवंबर में बोए जाते  हैं और पौधे दिसंबर के आखिर या जनवरी के शुरू में खेत में लगाए जाते  हैं. कंद मई के अंत तक तैयार हो जाते  हैं. चुने हुए कंद अक्तूबर तक भंडार में रखे जाते हैं. नवंबर में फिर चुन कर अच्छे कंद खेत में लगा दिए जाते है. क्योंकि इस विधि के द्वारा बीज पैदा होने में तकरीबन डेढ़ साल लग जाते हैं, इसलिए इसे 2 वर्षीय विधि कहते  हैं. इस विधि से रबी प्याज की प्रजातियों का बीजोत्पादन करते हैं.

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प्याज कंद उगाने की उन्नत विधि

सही जलवायु : अच्छी पैदावार के लिए 14-21 डिगरी सेल्सियस तापमान, 10 घंटे लंबे दिन और 70 फीसदी आर्द्रता मुनासिब होती है. जमीन और उस की तैयारी : बलुई दोमट, सिल्टी दोमट और गहरी भुरभुरी 6.5-7.5 पीएच वाली मिट्टी प्याज के लिए अच्छी होती है. 3-4 जुताइयां कर के खेत की अच्छी तैयारी कर लेते हैं.

बोआई और रोपाई का समय

खरीफ के प्याज की बोआई जूनजुलाई और रोपाई जुलाईअगस्त में करनी चाहिए. रबी के प्याज की बोआई अक्तूबरनवंबर और रोपाई दिसंबरजनवरी में करनी चाहिए.

दूरी : रोपाई करते समय लाइन से लाइन की दूरी 15 सेंटीमीटर और लाइन में पौधों की दूरी 10 सेंटीमीटर रखते  हैं. रोपाई के फौरन बाद हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए.

बीज की मात्रा : 1 हेक्टेयर की रोपाई के लिए 6-8 किलोग्राम बीज सही होता  है.

खाद : गोबर की खाद 50 टन, कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट 400 किलोग्राम या यूरिया 200 किलोग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 300 किलोग्राम और म्यूरेट आफ पोटाश 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिए. नाइट्रोजन खाद को 2 भागों में रोपाई के 30 और 45 दिनों के अंतर पर देना चाहिए.

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सिंचाई  : सिंचाई समय पर जरूरत के मुताबिक 8-15 दिनों के अंतर पर करते  हैं.

खरपतवार निकालना  : अच्छी फसल के लिए शुरू में 2-3 बार खरपतवार निकालना आवश्यक होता  है. रोपाई के 3 दिनों बाद या रोपाई से पहले 3.5 लीटर स्टांप खरपतवारनाशी 800 लीटर पानी में डाल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से खरपतवार खत्म करने में मदद मिलती है.

फसल सुरक्षा  : प्याज में थ्रिप्स नामक कीट लगने पर 500 लीटर पानी में 750 मिलीलीटर मैलाथियान या 375 मिलीलीटर मोनोक्राटोफास या सैंडोविट मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करते  हैं. स्टेमफिलियम झुलसा और पर्पल ब्लाच रोग से बचाव के लिए डाईथेन एम 45 या इंडोफिल एम 45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा या कवच की 2 किलोग्राम मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करते  हैं.

खुदाई : 50 फीसदी पत्तियां जमीन पर गिरने के 1 हफ्ते बाद खुदाई करने से भंडारण में होने वाली हानि कम होती  है. खुदाई कर के पौधों को कतारों में रख कर सुखा लेते हैं. पत्तों को गर्दन से 2.5 सेंटीमीटर ऊपर से अलग कर लेते  हैं और फिर 1 हफ्ते तक सुखाते हैं. कंदों को सीधे सूर्य की रोशनी में नहीं सुखाना चाहिए और भीगने से बचाना चाहिए, वरना भंडारण में काफी नुकसान होता है.

भंडारण : अच्छी, समान रंग की पतली गर्दन वाली, दोफाडे़ रहित प्याजों का  भंडारण करते हैं. 4.5 सेंटीमीटर से 6.5 सेंटीमीटर व्यास के प्याज कंद बीज उत्पादन के लिए सही होते  हैं. उन्हीं का  भंडारण करते  हैं. इस से  छोटे व बड़े कंदों को बाजार में बेच देना चाहिए.

गांठों का चयन और बोआई : बीजोत्पादन के लिए 4.5 से 6.5 सेंटीमीटर व्यास वाले कंद लगाने से पैदावार अच्छी होती है. कंद एक जैसे और स्वस्थ होने चाहिए. बीजोत्पादन के लिए कंदों को लगाने का समय : नवंबर का पहला हफ्ता या दिसंबर के मध्य तक का समय बीज उत्पादन के लिए होता है. रबी प्रजातियों को नवंबर के मध्य और खरीफ की प्रजातियों को दिसंबर मध्य तक लगाना चाहिए. चुने हुए कंदों का एक तिहाई हिस्सा काट कर गांठों को 0.1 फीसदी कार्बेंडाजिम के घोल में डुबा कर लगाया जाता है. कंदों को अच्छी तरह तैयार किए गए खेतों में समतल क्यारियों में 45×30 सेंटीमीटर की दूरी पर 1.5 सेंटीमीटर गहरा लगाया जाना चाहिए. बोआई के बाद हलकी सिंचाई करनी चाहिए.

1 हेक्टेयर जमीन में लगने के लिए तकरीबन 25-30 क्विंटल कंद काफी होते  हैं. खरीफ के प्याज को लगाने से पहले कंदों को 1 फीसदी केएनओ के  घोल में मिला कर रखें, इस से अंकुरण अच्छा होता  है.

खाद व उर्वरक : कंदों को लगाने से 20-25 दिनों पहले 20 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला देनी चाहिए. बाद में 100 किलोग्राम यूरिया, 300 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 100 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में कंदों के लगाने के स्थान पर खुरपी से बनाए गए गड्ढों में अच्छी तरह मिलाने के बाद कंदों को लगाते हैं. यदि ऐसा न किया जाए तो कंद खाद के संपर्क में आने पर सड़ने शुरू हो जाते  हैं. कंदों के लगाने के 30 दिनों बाद 100 किलोग्राम यूरिया या 200 किलोग्राम किसान खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पौधों की जड़ों के पास मिला देते  हैं.

राष्ट्रीय बागबानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान ने अपने प्रयोगों द्वारा पूसा रेड की गांठों को 30×45 सेंटीमीटर की दूरी पर लगा कर और 60 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर दे कर करनाल और नासिक क्षेत्रों में सब से अच्छी बीज की पैदावार हासिल की है. नासिक में एग्रीफाउंड डार्क रेड प्रजाति के बीजोत्पादन में 30×30 सेंटीमीटर दूरी रखने और 120 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से  डालने से  ज्यादा पैदावार मिली है. खेत में 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पीएसबी का इस्तेमाल भी करना चाहिए. खरपतवारनाशक दवाओं का इस्तेमाल  : स्टांप प्रति हेक्टेयर 3.5 लीटर की दर से कंद लगाने से पहले  क्यारियों में छिड़कते  हैं. 1 बार खरपतवारों को हाथों से निकालते  हैं, इस से खरपतवारों पर नियंत्रण रहता है और पैदावार भी अच्छी होती है.

सिंचाई व फसल की देखभाल : मौसम व मिट्टी के अनुसार हर 7-10 दिनों के अंतर पर बराबर सिंचाई करनी चाहिए. बोआई के 2 महीने बाद पौधों की जड़ों के पास मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए. इस से उन्हें सहारा मिलता है और फूल निकलते समय गिरने से बच जाते  हैं. ड्रिप इरीगेशन से भी प्याज का बीजोत्पादन किया जाता  है.

अलगाव दूरी : प्याज में परपरागण होता  है, इसलिए जब 2 जातियों के प्रमाणित बीज पैदा करने हों, तो उन के बीच में कम से कम 500 मीटर की दूरी होनी चाहिए.

खराब पौधों की छंटाई  : रोगग्रस्त और उन पौधों को जो उस जाति से अलग दिखाई पड़े जिस का बीज बनाया जा रहा है, फूल आने से पहले ही निकाल देना चाहिए. इस से शुद्ध बीजोत्पादन में मदद मिलती है.

परागण को सुधारने के लिए ध्यान देने वाली बातें  : प्याज में परपरागण होता है, इसलिए मधुमक्खियों का अधिक संख्या में होना जरूरी होता  है. अच्छी तरह पर परागण के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:

* मधुमक्खियों की कालोनी खेत के बीच में रखनी चाहिए.

* फूल आने के समय और बीज बनने के समय सिंचाई बराबर करनी चाहिए.

* फूल आने के समय किसी ऐसी दवा का छिड़काव नहीं करना चाहिए, जो मधुमक्खियों के लिए हानिकारक हो.

* अधिक तेज हवा से  भी मधुमक्खियां फूलों पर बैठ नहीं पाती इस से परागण अच्छी तरह नहीं होता.

तेज हवा से बचाने के लिए प्याज बीजोत्पादन के खेत के चारों तरफ ऊंचे पौधों की बाड़ लगानी चाहिए.

फसल की सुरक्षा : थ्रिप्स और शीर्ष छेदक कीटों के आक्रमण के समय इंडोसल्फान या जोलोन की 2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए.

बैगनी धब्बा और स्टेमफिलियम झुलसा रोग की रोकथाम के लिए मैंकोजेब की 2 किलोग्राम मात्रा को प्रति 800 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 15 दिनों के अंतर पर छिड़काव करना चाहिए. दवा छिड़कने से पहले घोल में चिपकने वाली दवा अवश्य मिला दें. नासिक और करनाल में मैंकोजेब 0.25 फीसदी और मोनोक्रोटाफास 0.05 फीसदी का 5-6 बार छिड़काव करने से रोगों का नियंत्रण अच्छा रहा और उत्पादन बढ़ा. कटाई, मड़ाई, बीज की सफाई, सुखाई, भंडारण और पैकिंग : बोआई के 1 हफ्ते बाद अंकुरण शुरू हो जाता  है. तकरीबन ढाई महीने बाद फूल वाले डंठल बनने शुरू हो जाते  हैं. फूल गुच्छ बनने के 6 हफ्ते के अंदर ही बीज पक जाते हैं. गुच्छोें का रंग जब मटमैला हो जाए और 20 फीसदी कैपसूल के काले बीज दिखाई देने लगें, तो गुच्छों को कटाई लायक समझना चाहिए.

फूलों के गुच्छे समान रूप से नहीं पकते, इसलिए उन्हीं गुच्छों को काटना चाहिए जिन के बीज छितरने वाले हों. कटे हुए गुच्छों को कैनवास के कपड़े पर या हवादार और छायादार जगह पर बने पक्के फर्श पर फैला कर सुखाना चाहिए. इस के बाद बीजों की सफाई मशीन से कर देनी चाहिए. यदि बीज अच्छी तरह साफ न हो पाएं तो ग्रेविटी सेपरेटर से दोबारा साफ करने चाहिए. साफ बीजों को यदि टीन के डब्बों, अल्यूमिनियम फायलों या मोटे प्लास्टिक के लिफाफों में भरना हो, तो उन्हें 5 फीसदी नमी तक सुखाना चाहिए. सुखाने के बाद बीजों को 2-3 ग्राम थाइरम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के लिफाफे या डब्बों में बंद करना चाहिए.

अगर बीजों को अच्छी तरह से सुखा कर बंद डब्बों या मोटे प्लास्टिक के लिफाफे में भरा गया हो, तो 18 से 20 डिगरी सेल्सियस तापमान और 30 से 40 फीसदी नमी में 2 सालों तक सुरक्षित रखा जा सकता  है.

] डा. अनंत कुमार, डा. वीरेंद्र पाल व डा. पूनम कश्यप

(कृषि विज्ञान केंद्र, गाजियाबाद, हस्तिनापुर व पीडीएफएसआर मेरठ)

जब माफ करते न बने

लेखिका-वंदना वाजपेयी

हमारे साथ जब कोई बुरा व्यवहार करता है, धोखा देता है या इमोशनल ब्लैकमेल करता है तो चोट खाए एक बच्चे की तरह हमारा मन विलाप करने लगता है.

कई बार हम चाहते हैं कि उसे भी वैसा ही दंड मिले, तो कई बार हम जानते हैं कि परिस्थिति और पोजीशन के कारण उसे वैसा दंड नहीं मिल सकता और मन उसे माफ करने को बिलकुल तैयार नहीं होता.

माफ करो और आगे बढ़ो

अकसर जब कोई हमारे साथ बुरा करता है तो हमारे आसपास के लोग हम से यही कहते हैं. कई बार कहा जाता है कि तुम अपने लिए माफ करो, क्योंकि तुम माफ नहीं करोगे तो उस घटना को भूल नहीं पाओगे.

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हमारा भुक्तभोगी से जितना गहरा रिश्ता होता है, हम जितनी जल्दी उस को खुश देखना चाहते हैं, हमारा यह दवाब उतना ही ज्यादा होता है.

यह सही है कि माफ करना जरूरी है पर यह अनायास नहीं हो सकता. ऐसे में दवाब बनाना बेईमानी है.

कई बार यह अन्याय सा लगता है जैसेकि हम विक्टिम की छाती पर माफ करने का पत्थर रख दें और कहें कि तुम्हारे साथ चाहे जितना भी गलत हुआ हो अब माफ करने की जिम्मेदारी भी तुम्हारी है.

कई बार स्थिति इतनी बगड़ती है कि भुक्तभोगी को लगता है कि वह माफ ना कर पाने का भी दोषी है.

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कुछ समय पहले एक ऐसी ही दोस्त  का फोन आया. वह काफी विचलित थी. लंबे समय से खाए जा रहे धोखे को भूल पाने में असमर्थ थी. सब से ज्यादा कष्ट उन्हें इस बात का था कि उन के अपने उसे माफ कर आगे बढ़ने की सलाह दे रहे थे.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

मनोवैज्ञानिकों का इस संबंध में अलग मत है. उन का मानना है कि हर धोखे से मन पर घाव लगते हैं और ये घाव उतने ही गहरे होते हैं जितना आप का उस व्यक्ति के साथ भावनात्मक जुङाव होता है क्योंकि ये घाव बाहर से नहीं दिखते इसलिए संबंधित व्यक्ति ही बता सकता है कि उस का घाव कब भर गया है और वह कब माफ करने को तैयार है.

इस मामले में बीके शिवानी एक किस्सा सुनाया करती हैं. किस्सा कुछ इस तरह है कि एक औरत का पति उसे छोड़ कर अपनी सहायिका के साथ अमेरिका चला गया. यह जान कर उसे गहरा धक्का लगा. उस के लिए जिंदगी जीना मुश्किल हो गया. उस के पास धन की भी कमी थी, उसे बच्चों की परवरिश भी करनी थी. शिवानी को रोरो कर उस ने सारी बातें बताईं. उस की मदद करने के लिए उन्होंने बस इतना कहा कि तुम बस पूरे विश्वास से ‘सब ठीक है’ कहो.

उस को यह बात थोङी अजीब तो लगी पर उस ने मान ली. करीब 1 महीने बाद वह फिर वहां आई और उस ने कहा कि मेरी नौकरी एक स्कूल में लग गई है. अब मैं आर्थिक रूप से स्वतंत्र व व्यस्त हूं.

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“और तुम्हारा पति?”

“वह अभी वहीं है पर अब मुझे इतनी तकलीफ नहीं होती.”

शिवानी ने राहत की सांस ली. उन्होंने उसे वही बात आगे भी दोहराते रहने को कहा.

करीब 3 महीने बाद वह फिर आई. उस ने शिवानी को बताया कि उस के पति की मित्र ने उसे धोखा दे दिया है. वह वापस आना चाहता है.

“तो तुम्हारा क्या उत्तर है?”

मैं भी उसे वापस चाहती हूं,” उस ने कहा.

“तो फिर ठीक है, आगे बढ़ो…”

सहीगलत का फैसला

यह एक औरत का किस्सा है पर हो सकता है कि कोई दूसरी औरत इस बात के लिए तैयार ना हो. ऐसे में वह उसे फिर से स्वीकारने के दवाब में आ जाएगी. इस में से कोई अच्छा या बुरा नहीं है. कोई सही या गलत नहीं है.

मैं ने ऐसे लोगों का दर्द देखा है जो इस दबाव से जूझते हैं. इसलिए अपनी परिचित से आदत के अनुसार मैं ने बिलकुल भी नहीं कहा कि तुम माफ कर के आगे बढ़ो.

मैं ने उस से सिर्फ इतना कहा,”तुम सिर्फ आगे बढ़ो, अपनी जिंदगी में आगे बढ़ो. धीरेधीरे यह दर्द तुम्हारी जिंदगी के कैनवास पर बहुत बड़े काले गोले से खुदबखुद छोटे से काले डौट में परिवर्तित हो जाएगा, तब शायद तुम उसे माफ कर सको और नहीं भी कर सको तो खुद को दोष मत देना.

कुछ गांठे कभी खुलती नहीं. कुछ सवाल कभी हल नहीं होते. जिंदगी ऐसी ही है और इसे ऐसे ही स्वीकार कर लेनी चाहिए.

याद रखिए कि अगर आप भी किसी को माफ नहीं कर पा रहे हैं तो यह मत सोचिए कि यह आप की जिम्मेदारी बनती है या यह माफ करना आप के अपने लिए है.

जो भी हो अगर आप अभी मानसिक तौर पर माफ करने के लिए सहज नहीं हैं तो अपने ऊपर ज्यादा दवाब मत डालिए बल्कि अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने की कोशिश करें. जब सहज हो जाए तो उस व्यक्ति को संभव हो सके तो माफ कर दीजिए पर उस से सिखाए हुए पाठ को कभी मत भूलिए.

 

बिग बॉस 14: राहुल वैद्या कि गर्लफ्रेंड दिशा परमार ने दिया रुबीना दिलाइक को करारा जवाब, कह दी ये बात

बीते कुछ समय में ही रुबीना दिलाइक के गुस्से के शिकार बहुत लोग हुए हैं. दो दिन पहले बिग बॉस ने घर वालों को डांटते हुए कहा था कि लोग घर में हो रहे गेम में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. इस दौरान बिग बॉस ने एक वीडियो भी दिखाया था.

दिखाए गए वीडियो में घर के सभी मेंबर सुस्त नजर आ रहे थें. जबसे बिग ब़ॉस ने फटकार लगाई है तबसे रुबीना दिलाइक के तेवर कुछ ज्यादा ही बदले से लगने लगे हैं.

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सबसे पहले रुबीना दिलाइक ने कविता कौशिक से जमकर लड़ाई की उसके बाद रुबीना का सामना हुआ राहुल वैद्या और निक्की तम्बोली से जिसे रुबीना ने अपने गुस्से का शिकार बनाया.

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बीते दिन रुबीना दिलाइक राहुल वैद्या से बिना वजह के लड़ते दिखाई दी और फिर वह बहुत सारा ज्ञान राहुल वैद्या को देने लगी और बार बार औकात की बात कह रही थीं. जिसके बाद राहुल वैद्या कि गर्लफ्रेंड दिशा परमार को भी यह बात हजम नहीं हुई और दिशा परमार ने गुस्से में रुबीना दिलाइक को लेकर सोशल मीडिया पर कह दी ये बात

दिशा ने ट्वीट करते हुए लिखा जिनके खुद के घर शीशे के होते हैं वह दूसरों के घर में पत्थर नहीं मारा करते हैं. तुम लोग इस शो में किसी की भलाई नहीं चाहते अपना ध्यान खुद ही रखों.

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इसके बाद क्या था सोशल मीडिया पर दिशा परमार का ट्वीट वायरल होने लगा सभी फैंस दिशा के ट्वीट पर कमेंट करने लगें.

दिशा परमार और राहुल वैद्या का रिलेशन कुछ वक्त पहले ही चर्चा में आया है. वहीं राहुल वैद्या कि मां भी दिशा को बहुत ज्यादा पसंद करती हैं. उन्होंने भी अपनी तरफ से दिशा के लिए हां कर दिया है.

आदित्य सील ने इंटरव्यू में कहा ‘डेटिंग एप्स का संसार मेरी समझ से परे है’

‘‘मेरे कैरियर में काफी उतार चढ़ाव व संघर्ष रहे..’’‘‘सीरियल किलर का किरदार निभाना चाहता हूं..’
-आदित्य सील

बीस वर्ष पहले 2002 में 13 वर्ष की उम्र में आदित्य सील ने उस वक्त की सफलतम अदाकारा मनिषा कोईराला के प्रेमी के रूप में शशीलाल नायर निर्देषित फिल्म ‘एक छोटी सी लव स्टोरी’में अभिनय किया था.बोल्ड कंटेंट व प्रेम कहानी प्रधान इस फिल्म को जबरदस्त सफलता मिली थी.उस वक्त आदित्य सील स्टार बन गए थे.पर वह उम्र के ऐसे पड़ाव पर थे,जब वह दूसरी फिल्मों में हीरो बनकर नही आ सकते थे.इसलिए उन्होने कुछ दिन अभिनय से दूरी बना ली थी.2006 में उन्होने किशोर वय के लड़के व लडकियों की फिल्म ‘वी आर फ्रेंड’ में अभिनय किया था,जिसे खास सफलता नही मिली थी.फिर 2014 में वह सैम्यूअल लाॅरेस की फिल्म‘‘पुरानी जींस’’में हीरो बनकर आए,मगर इससे उनका कैरियर आगे नहीं बढ़ा.फिर उन्होने ‘तुम बिन-दो’,‘नमस्ते इंग्लैंड’ जैसी फिल्में की,पर परिणाम ढाक के तीन पात ही रहा.

मगर फिल्म ‘स्टूडेंट आफ द ईअर’ में आदित्य सील ने टाइगर श्रॉफ को जबरदस्त टक्कर दी,तो अचानक वह एक बार फिर सूर्खियों में छा गए. अब वह किआरा अडवाणी के संग लेखक व निर्देशक अबीर सेन गुप्ता की फिल्म ‘इंदू की जवानी’ को लेकर काफी उत्साहित हैं,जो कि 11 दिसंबर को सिनेमाघरों में पहुंचेगी.

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प्रस्तुत है आदित्य सील संग हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश..अब तक के अपने कैरियर को आप किस तरह से देखते हैं?
-अब तक कैरियर काफी संघर्षमय रहा है.काफी उतार चढ़ाव रहे है.कई मायनों में अच्छा भी रहा.बहुत कुछ सीखा है.बहुत कुछ सीखना बाकी है.फिर भी एक अच्छी यात्रा रही है.मुझे गर्व है कि मैं एकदम जमीनी सतह से शुरूआत की थी और जहां भी पहुॅचा हूं,उसके लिए मुझे अपने आप पर गर्व है.क्योंकि यह सब मेरी अपनी मेहनत,लगन व परिश्रम की ही बदौलत मिला है.

क्या चैदह वर्ष की उम्र में मिनिषा कोईराला के साथ आपने एक फिल्म ‘एक छोटी सी लव स्टोरी’ की थी, उसका भी साइड इफेक्ट रहा?

नहीं…मैंने यह फिल्म चैदह वर्ष की उम्र में की थी.इसकी काफी चर्चा हुई थी.पर चैदह वर्ष की उम्र के बालक को कौन सी फिल्म मिलती है?इसलिए कोई साइड इफेक्ट नहीं था.बल्कि हकीकत यह है कि आज जब भी मैं किसी से इस फिल्म का जिक्र करता हूं,तो लोग मुझे पहचानते है और प्रशंसा  करते हैं.लोगों को यह फिल्म याद है.मुझे याद है कि मैं कुछ वर्ष पहले एक बड़े कलाकार से मिला था.उन्हे भी मैं इसी फिल्म की वजह से याद था.इस हिसाब से इस फिल्म के अच्छे इफेेक्ट ही रहे.

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लंबे समय के बाद आपको ‘स्टूडेंट आफ द ईअर 2’’से शोहरत मिली.इसका आपके कैरियर में कितना योगदान रहा?

बहुत बड़ा व अच्छा योगदान रहा.वैसे तो मैने इस फिल्म से भी ज्यादा अच्छा व बेहतर अभिनय अपनी दूसरी फिल्मों में भी किया था.मगर उन फिल्मों के साथ समस्या यही हुई थी कि उन फिल्मों को ज्यादा दर्षक नहीं मिले थे.फिल्में भी अच्छी थी,पर वह फिल्में दर्षकों के साथ नहीं जुड़ पायी थीं.इसके अलावा ‘तुम बिन 2’के समय डिमाॅनीटाइजेशन भी हो गया था.लेकिन ‘स्टूडेंट आफ द ईअर 2’’को दर्शक मिले.लोगों का ध्यान मेरी परफार्मेंस की तरफ गया.इसी वजह से मुझे फिल्म ‘इंदू की जवानी’मिली.

‘‘इंदू की जवानी’किस तरह की फिल्म है?
-यह एक फनी फिल्म है.काॅमेडी आफ एअरर कह सकते हैं.इसमें एक सोशल नाॅड पर भी बात की गयी है.सटीक उदाहरण न देते हुए कहूं कि अगर हमारे दिमाग में किसी इंसान या कम्यूनिटी या किसी रंग के इंसान को लेकर एक जजमेंट घर कर गया होता है,उसको तोड़ने का यह फिल्म एक प्रयास है.यह फिल्म साफ साफ कहती है कि किसी किताब के संबंध में उसका ‘कवर’ देखकर कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए,बल्कि उसके अंदर के पन्नों को पढ़ने के बाद ही निर्णय लेना चाहिए.

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फिल्म‘‘इंदू की जवानी’के अपने समर के किरदार को किस तरह से परिभाषित करेंगे?
-मैं जिस मोड की बात कर रहा हूं,उस चीज से समर काफी उपर है.वह जब तक किसी को अच्छी तरह से जानता नही है,तब तक उसके बारे में  कोई राय नही बनाता है.वह किसी तरह की राय बनाने से पहले उस इंसान को भलीभांति जानना चाहेगा.वह किसी भी क्षेत्र से आता हो,पर वह पूरी दुनिया घूम चुका है.बहुत तरीके के लोगों से मिल चुका है.पूरे संसार को लेकर उसके विचार बहुत अलग हैं.

समर के किरदार को निभाना कितना आसान रहा?

-सर जी,समर के किरदार को निभाना मेरे लिए आसान नही,बल्कि काफी कठिन और चुनौती रही.इसके लिए मुझे बहुत ज्यादा होमवर्क की जरुरत पड़ी.मुझे इस किरदार को निभाने के लिए ‘मेंटल ब्लाॅक’से निकलना आवश्यक था,जो कि मुझसे हो ही नहीं पा रहा था.मैं जिस तरह के मेंटल ब्लाॅकिंग की बात कर रहा हूं. वह समाज के जो कायदे कानून है,उसकी वजह से जाने अनजाने आपके अंदर भी है,मेरे अंदर भी है.उसको तोड़कर समर के किरदार में घुसना मेरे लिए आसान नहीं था.क्योंकि इस किरदार को निभाने के लिए मुझे अपने दिमागी यकीन को तोड़ना था.मुझे अच्छी तरह से याद है कि जब मैं अपने निर्देशक के साथ पटकथा की रीडिंग कर रहा था,तब मैं अंदर से कंफीडेंट नहीं था.मैं  उनसे बार बार कहता था कि मैं नहीं कर पा रहा हॅूं.इसमें मेरा ‘इनपुट’कुछ भी नही है.क्योंकि यह किरदार मेरे अंदर से ही नहीं आ रहा है.फिर मैं कुछ दिन के लिए छुट्टियां  मनाने पेरिस चला गया,जब वहां से वापस लौटा,तब तक मेरा दिमाग खुल चुका था.उसके बाद भी काफी मेहनत व लगन के साथ इस किरदार को निभाया.

मैने सुना है कि फिल्म‘‘इंदू की जवानी’’ में ‘डेटिंग एप्स’का भी मसला हैं?डेटिंग एप्स से आप कितना इत्तफाक रखते हैं?

बहुत साल पहले ऐसा कुछ करते थे.अभी तो मैं किसी भी डेटिंग एप्स पर नही हॅूं.लगभग दो वर्ष पहले मैं एक डेटिंग एप्स पर गया था,महज यह देखने के लिए इसमें  क्या होता है,तो मेरी समझ में आया कि यह संसार मेरी समझ के बाहर का है.मुझे यह भी पता है कि मेरे कई दोस्त इन ‘डेटिंग एप्स’पर हैं.मेरे कुछ दोस्त इन डेटिंग एप्स के माध्यम से षादी के बंधन में भी बंधे हैं.पर मेरी समझ से परे है. मैं थोड़ा सा सोषियली आक्वर्ड भी हूं. मैं जल्दी से लोगांे के साथ घुलमिल नही पाता.इसलिए भी डेटिंग एप्स मेरे लिए नहीं बना है.

कौन सी चीजे हैं,जिनकी वजह से आप सोषियली आक्वर्ड महसूस करते हैं?
-अब मैं इसे परिभाषित कैसे करुं.मैं लोगों से बात करने की कोशिश  करता हॅूं,तो कई बार नर्वस हो जाता हूं.वजह पता नही. मैं  कभी इसके मनोविज्ञान के अंदर घुसा नहीं हॅूं.यदि सामने वाला ज्यादा बात नहीं करता है,तो मेरी समझ में नहीं आता है कि क्या बात की जाए?मैं खुद  किसी से बात करने की शुरूआत करना नहीं जानता.

किसी भी किरदार को निभाने से पहले होमवर्क के तहत आत्म चिंतन करना या कोई फिल्म देखना या उससे संबंधित किताबें पढ़ना फायदेमंद होता है?
-आत्मचिंतन भी फायदेमंद होता है.मगर यह जरुरी नहीं है कि किरदार की जरुरत के अनुरूप आपकी जिंदगी में भी वह अनुभव हुआ हो.मसलन- फिल्म की कहानी के अनुरूप किसी का दिल टूटा है,पर यदि आपकीे कोई गर्लफें्रड ही नही रही होगी,तो फिर दिल टूटने का आत्म चिंतन कैसे करेेगें?कहने का अर्थ है कि जब तक आपको अनुभव नहीं होगा,तब तक आप आत्म चिंतन नहीं कर सकते.इसलिए मेरी राय में कुछ फिल्म वगैरह देखना और अधिक से अधिक पढ़ना मददगार साबित होता है.

बौलीवुड में आप खुद को कितना सुरक्षित महसूस करते हैं?
-मेरे अंदर असुरक्षा की भावना ही नही है.मैं किसी भी तरह की हीनग्रथि का षिकार नही हूं.मुझे प्रतिस्पर्धा का डर नही सताता.मुझे दूसरों की सफलता की कहानियां सुनकर खुशी मिलती है.मैं सकारात्मक सोच रखता हूं.मुझे यकीन है कि मेरी राह में भी सफलता के फूल विखरेंगे,मेरे हिस्से भी बेहतरीन व चुनौती किरदार आते रहेंगें.
अब आप किस तरह के किरदार निभाना चाहते है?
-मैं एक सीरियल किलर का किरदार निभाना चाहता हॅूं.मुझे लगता है कि इस तरह के किरदार को मैं बेहतर तरीके से निभा सकता हूं.वैसे इसकी वजह मुझे भी नहीं पता.लेकिन हकीकत यह है कि मैं अंदर से भी हिंसात्मक इंसान नही हूं.मैने आज तक किसी पर भी हाथ नहीं उठाया है.

आपके शौक?
-गिटार बजाना पसंद है.फिलहाल गिटार बजाना सीख रहा हूं.इसके अलावा मार्षल आर्ट भी कर रहा हूं.मैं तायकोंडे में विश्व चैपियन रह चुका हूं.भारत के लिए मैने गोल्डमैडल जीते हैं.
सोशल मीडिया पर आप कितना व्यस्त रहते हैं और क्या लिखना पसंद करते हैं?
-मैं सिर्फ इंस्टाग्राम पर तस्वीरें डालता रहता हूं और दूसरों की तस्वीरें भी देखता रहता हूं.यह महज टाइम पास है.ट्वीटर पर राजनीति की बातें ज्यादा होती हैं,जिसमें मेरी कोई रूचि नहीं है.

इंसाफ की डगर पे : गार्गी के सामने कौन से दो रास्ते थे

‘टिंगटौंग’ दरवाजे की घंटी बजी. टू बीएचके फ्लैट के भूरे रंग के दरवाजे के ऊपर नाम गुदे हुए थे- डा. भाष्कर सेन, श्रीमती गार्गी सेन, आईपीएस. अधपके बालों वाली एक प्रौढ़ा ने दरवाजा खोला और मुसकराते हुए कहा, ‘‘दीदी, आज बड़ी देर कर दी तुम ने. दादाबाबू तो कब के आए हुए हैं. काफी थकीथकी दिख रही हो,’’ कहतेकहते उस ने महिला के हाथों से बैग ले लिया और फिर कहा, ‘‘तुम जाओ कपड़े बदल लो, मैं खाना गरम करती हूं.’’ ये हैं श्रीमती गार्गी सेन, जौइंट कमिश्नर औफ पुलिस, (क्राइम), आईपीएस 1995 बैच और इस घर की मालकिन. गार्गी जूते उतार कर बैडरूम की तरफ बढ़ गई. बैडरूम में उस के पति भाष्कर बिस्तर पर सफेद पजामा और कुरता पहने, आंखों पर चश्मा लगाए पैरासाइकोलौजी की किताब पढ़ रहा था.

गार्गी के पैरों की आहट सुनते ही उस ने आंखें किताब से ऊपर उठाईं और आंखों से चश्मा उतारा. किताब को बिस्तर के पास रखी साइड टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘आज लौटने में बहुत देर हो गई तुम्हें, उस नए मामले को ले कर उलझी हो क्या?’’ गार्गी उस के प्रश्न का उत्तर दिए बिना ही बिस्तर पर उस की बगल में जा बैठी. भाष्कर ने उस की तरफ देखा और उस के गालों पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बहुत अपसेट लग रही हो, जाओ यूनिफौर्म बदलो, फ्रैश हो कर आओ, डिनर टेबल पर मिलते हैं.’’

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गार्गी ने बिना कुछ कहे सिर हिला कर हामी भरी. बड़ी मुश्किल से रोंआसी आवाज में उस के मुंह से निकला, ‘‘हूं.’’ फिर एक लंबी सांस ले कर भाष्कर की तरफ आंखें उठाईं. उस की आंखों में आंसू लबालब भरे हुए थे, मानो अभी छलकने को तैयार हों. भाष्कर ने पहले ही उस की परेशानी भांप ली थी. उस ने गार्गी को आलिंगन किया और उसे अपने बाहुपाश में जोर से जकड़ते हुए 2-3 दफे उस की पीठ ठोकी.

गार्गी ने अपना सिर भाष्कर के कंधे पर रखते हुए कहा, ‘‘तुम कैसे बिना कुछ कहे ही सब समझ जाते हो.’’ भाष्कर ने उस के कंधे पर फिर एक बार थपकी दी और कहा, ‘‘जाओ, हाथमुंह धो कर आओ, बहुत भूख

लगी है.’’ गार्गी ने जबरन अपने होंठों को चीर कर बनावटी मुसकराने की कोशिश की और उठ कर बाथरूम की ओर बढ़ गई.

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कुछ देर बाद कपड़े बदल कर जब वह डाइनिंग टेबल पर आई तो भाष्कर पहले से ही वहां मौजूद था. सामने टीवी चल रहा था. गार्गी भाष्कर की बगल वाली सीट पर आ कर बैठ गई और रिमोट ले कर टीवी चैनल बदल दिया. इतने में प्रौढ़ा अंदर से आई और खाना परोसने लगी.

टीवी पर एक न्यूज चल रही थी और दिनभर की महत्त्वपूर्ण खबरों को एक ही सांस में न्यूज रीडर पढ़े जा रही थी, ‘‘चांदनी चौक कांड का आज 5वां दिन. मंत्री आशुतोष समाद्दार के भतीजे मंटू समाद्दार और उस के 3 साथियों को पुलिस हिरासत में लिया गया. डैफोडिल अस्पताल के सीएमओ डा. नीतीश शर्मा ने बताया कि नाबालिग लड़की की हालत नाजुक. शरीर पर चोटों के कई निशान पाए गए हैं. हमारे संवाददाता से बातचीत में मंत्री आशुतोष समाद्दार ने बताया, ‘मेरा भतीजा निर्दोष है, उसे फंसाया जा रहा है. लड़की का चालचलन ठीक नहीं है. उस की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी सही नहीं है. उस की मां के पेशे के बारे में तो आप सब जानते ही होंगे, मैं और क्या कहूं. ऐसे में आप ऐसी लड़कियों से क्या आशा रख सकते हैं?’’ संवाददाता बोला, ‘पर ऐसा क्यों किया उस ने? व्यक्तिगत स्तर पर आप से कोई दुश्मनी है या विरोधी पार्टी का काम है, आप का क्या मानना है?’

मंत्री बोले, ‘कुछ कह नहीं सकते, विरोधी पार्टी का हाथ इस के पीछे है या नहीं, यह पता लगाना तो पुलिस का काम है. मैं बस इतना ही कहूंगा कि मेरा भतीजा निर्दोष है, उसे पैसों के लिए फंसाया जा रहा है. ऐसी लड़कियों के लिए यह पैसे कमाने का एक जरिया है.’ न्यूज रीडर ने अब कहा, ‘‘आइए जानते हैं कि इस मामले में पुलिस का क्या कहना है. जौइंट सीपी (क्राइम) गार्गी सेन से हमारे संवाददाता ने बात की.’’ ‘मामले की छानबीन हो रही है, मैडिकल रिपोर्ट आने से पहले कुछ कहा नहीं जा सकता. हम अपनी तरफ से मामले की सचाई तक पहुंचने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.’

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संवाददाता ने अपना अंदेशा जाहिर किया, ‘मुख्यमंत्री के करीबी रह चुके आशुतोष समाद्दार की राजनीतिक क्षेत्र में पहुंच काफी तगड़ी है. इसलिए यह आशंका जाहिर की जा रही है कि वे अपनी राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर सुबूतों के साथ छेड़छाड़ करने या पुलिस जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं. कैमरामैन रंजन मुखोपाध्याय के साथ मौमिता राय, सी टीवी न्यूज, बंगाल.’ समाचार खत्म होते ही गार्गी और ज्यादा परेशान दिखने लगी. भाष्कर ने परिस्थिति को भांपते हुए झट से अपने हाथ में रिमोट ले कर चैनल बदल दिया. फिर धीमी आवाज में कहा, ‘‘पिछले 4-5 दिनों से यह खबर सभी अखबारों व टीवी चैनलों पर छाई हुई है. मैं रोज इस का फौलोअप देखता रहता हूं. मैं जानता हूं तुम…’’ अभी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि इतने में गार्गी ने थाली आगे की ओर सरकाते हुए आवाज लगाई, ‘‘बेनु पीसी, मेरी प्लेट उठा लो, खाने का मन नहीं है.’’

प्रौढ़ा रसाईघर से दौड़ती हुई आई और विनय भाव से कहने लगी, ‘‘क्या हुआ दीदीभाई, क्यों खाने का मन नहीं, खाना अच्छा नहीं बना है क्या?’’ भाष्कर ने गार्गी के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘खा लो, वरना तबीयत खराब हो जाएगी.’’ और प्रौढ़ा की ओर मुड़ कर बोले, ‘‘पीसी, जरा रसोई से गुड़ ले आओ, इस का स्वाद बदल जाएगा.’’

गार्गी रोंआसी हो गई. उस ने नजरें उठा कर भाष्कर की आंखों में देखा. उन आंखों में आश्वासन था, समर्थन था और थी एक सच्चे साथी की प्रेमभावना जिस ने हर परिस्थिति में साथ रहने का वादा किया है. उस के मुंह से बस इतना निकला, ‘‘तुम नहीं जानते, भाष्कर कितना पौलिटिकल प्रैशर है.’’ भाष्कर ने इतने में उस के मुंह में निवाला ठूंस दिया और कहा, ‘‘मैं कुछ नहीं जानता, पर मैं सबकुछ समझ सकता हूं. पहले खाना खत्म करो.’’

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गार्गी ने आंखों की पलकों से अपने आंसुओं को छिपाने की भरसक कोशिश करते हुए कहा, ‘‘मैं क्या करूं भाष्कर, एक तरफ मेरा कैरियर, दूसरी तरफ मेरा जमीर. अगर मैं समझौता नहीं करती हूं तो वे मेरे कैरियर को बरबाद कर देंगे. ऐसे में मुझे क्या

करना चाहिए?’’ भाष्कर ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें सालों से जानता हूं. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. चाहे कुछ भी हो जाए तुम कुछ गलत कर ही नहीं सकतीं. तुम सच्ची हो और मैं यह भी जानता हूं कि तुम सचाई के साथ ही रहोगी, और तुम्हारे साथ रहेगा हम सब का विश्वास, मेरे व तुम्हारे शुभचिंतकों का प्रेम और सहयोग. मैं जानता हूं इन सब के साथ तुम जरूर अपनी लड़ाई में विजयी होगी, चाहे विपक्ष कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो. और देखो, बातोंबातों में कैसे खाना भी खत्म हो गया.’’

गार्गी ने देखा, सामने प्लेट खाली थी. उस ने कहा, ‘‘सच, तुम कब मेरे मुंह में निवाला भरते रहे, मुझे पता ही नहीं चला. तुम सचमुच मेरी बच्चों की तरह केयर करते हो. मैं तुम जैसा पति पा कर बहुत खुश हूं. पापा के बाद, बस, तुम ही तो हो जिसे हर मुसीबत में मेरा मार्गदर्शन करते हुए पाती हूं. थैंक्यू.

‘‘आज बहुत दिनों बाद पापा बारबार याद आ रहे हैं. मैं जब छोटी थी वे अकसर कहा करते थे, ‘बेटा, जब भी जीवन में किसी मोड़ पर कोई दुविधा हो तो अपने जमीर की सुनना. ऐसे मोड़ पर तुम्हें 2 रास्ते मिलेंगे. बेईमानी का रास्ता आसान होगा पर अगर तुम लंबी दौड़ में विजयी होना चाहती हो और अपने जीवन में सुखचैन चाहती हो तो कभी भी उस रास्ते को मत अपनाना वरना अपनी ही नजरों में सदा के लिए छोटी हो जाओगी.’’’ बात खत्म होते ही भाष्कर ने कहा, ‘‘चलो, अब बहुत रात हो गई है,

हमें सो जाना चाहिए. कल फिर तुम्हें सुबह उठना भी तो है. ड्यूटी पर जाना है न.’’

गार्गी ने हामी भरते हुए सिर हिलाया. उस के होंठों पर मंद मुसकराहट थी और चेहरे पर बेफिक्री का भाव. अगले दिन शाम को 6 बजे दरवाजे की घंटी बजी. अंदर से बेनु पीसी आई और दरवाजा खोला. गार्गी के चेहरे पर सुकून और अजीब सी खुशी झलक रही थी. अंदर घुस कर जूते उतारते हुए उस ने कहा, ‘‘बेनु पीसी, अलमारी के ऊपर से मेरा सूटकेस उतार कर रखना. ट्रैवल बैग स्टोर में रखा हुआ है, उस में मेरी रोजमर्रा की जरूरत की चीजें और कुछ ड्राईफ्रूट्स डाल देना.’’

प्रौढ़ा ने पूछा, ‘‘क्यों, कहीं जा रही हो क्या?’’ गार्गी बाथरूम की ओर बढ़ती हुई बोली, ‘‘हूं, पहाड़ी इलाका है. परसों निकलूंगी. समझबूझ कर सारा सामान रख देना.’’

प्रौढ़ा प्रश्नों की बौछार करने ही वाली थी, मसलन, ‘कितने दिनों के लिए जाओगी, कब तक लौटोगी, दादाबाबू भी साथ जाएंगे या नहीं…’ पर इतने में गार्गी वहां से बैडरूम की तरफ जा चुकी थी. बैडरूम में पहुंच कर गार्गी ने भाष्कर को फोन किया और कहा, ‘‘जल्दी घर आओ, तुम से कुछ कहना है. नहीं, कुछ नहीं हुआ…न, कुछ नहीं चाहिए. बस, तुम आ जाओ.’’ घंटाभर बाद भाष्कर घर लौटने के बाद कपड़े बदल कर टीवी के सामने बैठ गए. गार्गी उन के पास वाली कुरसी पर जा बैठी. टीवी पर न्यूज चल रही थी, ‘‘ब्रेकिंग न्यूज, चांदनी चौक कांड ने लिया नया मोड़. मामले की देखरेख कर रहे आला पुलिस अधिकारी का मानना है कि मंटू समाद्दार और उस के साथी हैं दोषी. जौइंट सीपी (क्राइम) गार्गी सेन ने प्रैस को दिया बयान, ‘मैडिकल रिपोर्ट के अनुसार दुराचार किया गया है. हम ने नाबालिग लड़की का बयान लिया है. आरोपियों की पहचान हो गई है. कानून अपना काम करेगा. दोषी कोई भी हों, उन के खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत कार्यवाही की जाएगी. पीडि़ता को इंसाफ जरूर मिलेगा. मैं ने अपनी रिपोर्ट जमा कर दी है और चार्जशीट भी कोर्ट में पेश किए जाने के लिए तैयार है.’ ’’

न्यूज रीडर ने आगे खबर पढ़ी, ‘‘जौइंट सीपी साहिबा के इस बयान के कुछ ही घंटों में उत्तरी बंगाल के किसी दूरस्थ पहाड़ी इलाके में उन के तबादले की घोषणा हुई. इस संबंध में तरहतरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. यह तबादला क्या उन की सच्ची बयानबाजी की सजा है? क्या राजनीतिक दिग्गजों की स्वार्थसिद्धि न होने के परिणामस्वरूप प्रभाव का इस्तेमाल कर के यह तबादला करवाया गया. अब चलते हैं मौके पर मौजूद संवाददाता के पास. हां, मौमिता, इस मामले में पुलिस का क्या कहना है?’’ संवाददाता मौमिता बताती है, ‘पुलिस का तो यह कहना है कि यह रूटीन तबादला था. इस फैसले पर गार्गी सेन की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है.

‘अब सवाल यह उठता है कि क्या इस से पुलिस की छानबीन पर कोई प्रभाव पड़ेगा, क्या राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर सुबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की जा सकती है? ऐसी परिस्थिति में क्या पीडि़ता को इंसाफ मिल जाएगा? कैमरामैन रंजन मुखोपाध्याय के साथ मौमिता राय, सी टीवी न्यूज, बंगाल.’ समाचार खत्म होते ही गार्गी और भाष्कर दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा. गार्गी ने भाष्कर से पूछा, मैं ने सही किया न?’’

भाष्कर ने उस का हाथ अपने हाथों में लिया और अपनी उंगलियां उस की उंगलियों में फंसा कर मुसकराते हुए हामी भर कर सिर हिला दिया. गार्गी ने अपने सिर का बोझ उस के कंधे पर रख कर आंखें बंद कर लीं. उस की आंखों से आंसुओं की धारा टपक रही थी.

भाष्कर ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘यह क्या, तुम रो रही हो? आज तो विजय दिवस है, झूठ पर सच की विजय, बुराई पर अच्छाई की विजय. आज से तुम आजाद हो, तुम्हें और ग्लानि का बोझ वहन नहीं करना पड़ेगा.’’ गार्गी ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं, ये तो कई दिनों से अंदर जमा थे, आज बाहर आए हैं. कोई और अफसोस नहीं, बस, तुम से दूर…’’ भाष्कर ने बात बीच में काटते हुए कहा, ‘‘अब तो हम और ज्यादा करीब हो गए. साथ रहने का अर्थ क्या हमेशा पास रहना है? अगर मेरी गार्गी बदल जाती तो शायद मैं उसे पहले जैसा प्यार न दे पाता और पास रहने के बावजूद उस से काफी दूर हो जाता. तुम सचाई के साथ हो और सदा रहना, मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूंगा.’’

इतने में बेनु पीसी ने आ कर टीवी का चैनल बदल दिया था. टीवी पर संगीत बज रहा था, ‘‘इंसाफ की डगर पे…अपने हो या पराए, सब के लिए हो न्याय. देखो, कदम तुम्हारा, हरगिज न डगमगाए, रस्ते बड़े कठिन हैं, चलना संभलसंभल के…इंसाफ की डगर पे…’’

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