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नया सवेरा-भाग 2 : घर की बड़ी बहू सभी को गंवार क्यों समझती थी

तब तक भाभी आ गई थीं. वे बिना कुछ कहे सहारा दे कर भैया को कमरे में ले गईं. उस रात मैं सो न सकी. सारी रात करवटें बदलते बीती. यही सोचती रही कि मां से कह दूं या नहीं? कुछ समझ में नहीं आ रहा था. सुबह थोड़ी झपकी आई ही थी कि

बड़ी भाभी ने आ कर जगा दिया. बोलीं, ‘‘बीनू, कृपया रात की बात किसी से न कहना.’’

तब तक मैं ने भी निर्णय कर लिया था कि बात छिपाने से अहित भैया का ही है. मैं ने उन की तरफ सीधे देखते हुए कहा, ‘‘वह तो ठीक है भाभी, किंतु जब मैं ने रात को दरवाजा खोला तो विचित्र बू का आभास हुआ. कहीं भैया…’’

भाभी बीच में ही मुंह बना कर बोलीं, ‘‘हमें तो कोई गंध नहीं आई.’’

मैं खुद अपने प्रश्न पर लज्जित हो गई. अपने पर क्रोध भी आया कि जब भाभी को भैया की फिक्र नहीं है तो मैं ही क्यों चिंता में पड़ूं. इसी तरह 2 हफ्ते और बीत गए. मैं भी घर में कलह नहीं कराना चाहती थी, इसीलिए मुंह सी लिया.

किंतु कब तक कोई बात छिपती है. छोटी भाभी को इस बात की भनक लग गई. उन्होंने बड़ी भाभी, बड़े भैया के बारे में अपनी शंका व्यक्त की. वे उन्हें समझाना चाहती थीं किंतु बड़े भैया ने भाभी पर न जाने क्या जादू कर दिया था कि वे वैसे तो अच्छीभली रहतीं किंतु जहां भैया की बात होती, वे झगड़ने को तैयार हो जातीं. उन से छोटी भाभी की बात सहन न हो सकी. दनदनाती हुई मेरे कमरे में आईं और गुस्से में बोलीं, ‘‘बीनू, तुझ से नहीं रहा गया न. कैसा बित्तेभर का पेट है. पचा नहीं सकी, उगल ही दिया?’’

मां वहीं बैठी थीं. वे आश्चर्य से कभी मुझे तो कभी भाभी को देखने लगीं.

‘‘क्या बात है, बेटे, आखिर हुआ क्या?’’ मां ने पूछा.

मैं ने भी पूछा, ‘‘पर भाभी, हुआ क्या? मैं ने तो किसी को कुछ नहीं कहा.’’ पर वे कहां सुनने वाली थीं. सच ही कहा गया है, क्रोध में इंसान का दिमाग पर कोई बस नहीं होता. तब तक छोटे भैया व भाभी भी आ गए. गनीमत यह थी कि पिताजी शहर से बाहर गए हुए थे और बड़े भैया सो रहे थे.

छोटे भैया ने मां को धीरे से सब बता दिया. फिर भाभी से बोले, ‘‘आप समझती क्यों नहीं हैं, रात देर से घर आना कोई अच्छी बात नहीं है.’’

‘‘अच्छाबुरा वे खूब समझते हैं. साहब बनने के लिए बड़े लोगों के साथ उठनाबैठना तो पड़ेगा ही, वरना कौन तरक्की देगा.’’

मां से सहन नहीं हुआ. उन्होंने जोर से कहा, ‘‘ऐ बहू, रात देर से आने से लोगों की तरक्की होती है, यह एक नई बात सुन रही हूं.’’

‘‘नई नहीं, यह सच है. आप पुराने विचारों की हैं. आप को क्या पता, जब तक बड़े लोगों के साथ पिओपिलाओ नहीं, अफसरी नहीं मिलती,’’ तैश में भाभी के मुंह से खुद ही सारी बात निकल गई.

‘‘ओह, तो आप को पता है कि वे पी कर आते हैं?’’ छोटे भैया ने पूछा.

‘‘थोड़ीबहुत साथ देने के लिए चख ली तो क्या बुराई है. बंबई में तो हर नौजवान बीयर पीता है और मेरे भाई खुद पीते हैं.’’

भाभी से बात करना अपना माथा फोड़ना था. तब तक शोर सुन कर बड़े भैया भी आ गए. उन्हें देख छोटे भैया ने कहा, ‘‘कल आप के दोस्त अजय मिले थे. उन्होंने बताया कि आजकल आप के पास बहुत पैसा रहता है. क्या कोई दूसरी नौकरी मिल गई है? सुनो भाभी, वे बोल रहे थे कि आप के पिताजी हजार रुपए महीना जेबखर्च भेजते हैं,’’ उन्होंने बड़े भैया की उपस्थिति में भाभी से स्पष्टीकरण मांगा.

छोटे भैया की बात सुन बड़ी भाभी ने पहले तो नजरभर बड़े भैया को देखा, फिर जोर से हंस कर ‘हां’ में सिर हिला दिया. बात तो स्पष्ट थी, किंतु बड़े भैया ने ऐसा जाल उन पर फेंका था, जिस से बड़ी भाभी जैसी नारी का बच निकलना मुश्किल था. वे यह सोच कर खुश थीं कि उन का पति कितना अच्छा है जो बिना कुछ पाए ही उन के पिता की प्रशंसा का ढिंढोरा पीट रहा है. यही कारण था कि इतने गंभीर प्रश्न को भी उन्होंने हंसी में उड़ा दिया.

उन्होंने मस्तिष्क पर तनिक भी जोर न डाला कि आखिर पैसों की बारिश हो कहां से रही है. देवर का मुंह ‘हां’ कह कर बंद कर दिया था. भाभी पति की तरफ अपार कृतज्ञता से देख रही थीं.

मां यह सब सुन कर सन्न रह गईं. उन्होंने अपना माथा पीट लिया. ‘‘क्यों बड़े, क्या यही दिन देखना रह गया था? क्या कमी थी जो इस नीच हरकत पर उतर आया है? अगर यही करना है तो जा, बन जा घरजमाई. यहां यह सब नहीं होगा, समझे,’’ कह कर रोती हुई वे कमरे से बाहर निकल गईं. छोटे भैया और भाभी भी धीरे से खिसक लिए.

मां की बात सुन बड़े भैया कुछ अनमने से हो गए थे, किंतु भाभी ने उन्हें संभाला, ‘क्यों चिंता करते हैं. सब ठीक हो जाएगा.’

गाजर और मेथी की सब्जी को बनाएं इस रेसिपी से

सर्दियों में ज्यादातर लोग गाजर और मेथी का सब्जी खाना पसंद करते हैं. हालांकि मेथी खाने में थोड़ी सी कड़वी लगती है. स्वास्थ्य और स्वाद से भरपूर होता है ये, इस सब्जी को आप कम समय में बना सकते हैं. इस सब्जी को आप गुणकारी भी मानी जाता है.

समाग्री

मेथी

250 ग्राम गाजर

छोटा चम्मच जीरा

हींग

जीरा, धनिया

अदरक

बारीक कटी धनिया

आमचूर

गरम मसाला

बड़ा चम्मच तेल

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विधि

सबसे पहले मेथी के डंडल को हटाकर साफ कर लें, जिससे इसका पानी निकल जाए, अब मेथी को बारीक काट लें,

अब कड़ाही में तेल गर्म करें, गर्म तेल में आप जीरा डालें, फिर उसमें हींग डालें, आंच को धीमा करें और उसमें मिर्च डालें, अब अदरक डालकर भूनें, अब इसमें मेथी डालकर भूनें, जब कुछ देर तक मेथी भूंन जाए तो उसमें गाजर डालें,

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अब सब्जी में नमक, मिर्च और मसाला डालकर भूनें, अब गाजर तक पकने तक बनाएं, जब गाजर गल जाएं तो उसमें गरम मसाले और आमचूर पाउडर डालें. अब आप इसे रोटी और चावल के साथ खा सकते हैं.

हुंडई i20 की पावरट्रेन में ये है खास

हुंडई i20 की सबसे खास बात यह है कि इसमें 120 बिट के अलग- अलग पावर ट्रेन को ऑफर में दिए हुए हैं. इसके साथ ही इसमें 1.2 लीटर का पेट्रोल इंजन दिया हुआ है, जो 2 अलग-अलग धुन सुनाता जाता है.
इसमें 82 बीएचपी और 11.7 किलोग्राम का टार्क जोड़ी को 5 स्पीड मैनुअल बॉक्स और 87 बीएचपी के साथ 11.7 के आईवीटी गेयर बॉक्स जोड़ा जाता है. यहीं नहीं हुंडई i20 के 118 bhp में शक्तिशाली 1.0 लीटर टर्बो पेट्रोल इंजन और 17.5 kgm का ट्यून स्टेट दिया गया है, जिसे 7-स्पीड DCT या 6-स्पीड iMT के साथ जोड़ा जा सकता है.

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हुंडई i20 में शानदार ऑफर दिया गया है, जिससे आप अपने दूर की यात्रा को आसान बना सकते हैं. इसमें 1.5-लीटर डीजल इंजन भी मौजूद है. जो कि 99 बीएचपी और 24. 5 टार्क इंजन का उत्पादन करता है.
यहां 6 स्पीड मैनुअल गियरबॉक्स के ट्रांसमिशन को पूरा किया जाता है. जो कि पर्याप्त पॉवर ट्रेन को पूरा करने में मदद करता है. इसलिए इसे ग्राहकोम की जरुरत बताया गया है. इसे कहते हैं #BringsTheRevolution

कसौटी जिंदगी फेम एक्टर सीजेन खान पर महिला ने लगाया आरोप, कहा मुझसे ग्रीन कार्ड लेने के लिए शादी की

सीरियल कसौटी जिंदगी से हर घर में अपनी पहचान बनाने वाले अनुराग बासु यानि सीजेन खान पर एक विदेशी महिला ने गंभीर आरोप लगाएं हैं. जिसे जानने के फैद सीजेन खान के फैंस भी हैरान हो गए हैं. आइए जानते हैं इस महिला ने क्या आरोप लगाए हैं. सीजेन खान पर,

हालांकि एक रिपोर्ट से बात करते हुए सीजेन खान ने कहा कि यह सब गलत अफवाह मेरे लिए उड़ाए जा रहे हैं. मुझे लगता है कि यह महिला मेरी बहुत बड़ी फैन है अपनी पब्लिसिटी के लिए यह कर रही है. ऐसे लोगों के बारे में बात करना मैं जरुरी नहीं समझता हूं.

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आयशा नाम कि महिला ने खुलासा किया है कि सीजेन ने मुझसे साल 2015 में 3 अप्रैल को शादी की थी, इतना ही नहीं महिला ने सीजेन खान के साथ कि शादी की सर्टीफिकेट भी दिखाया है. इस महिला  सीजेन के साथ अपनी कई खूबसूरत तस्वीर भी साझा किया है.

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गौरतलब है कि सीजेन खान अपनी गर्लफ्रेंड से बहुत जल्द शादी करने जा रहे हैं. सीजेन खान की गर्लफ्रेंड उत्तर प्रदेश अमरोहा कि है. सीजेन खान ने अब तक अपनी गर्लफ्रेंड कि पहचान किसी और को नहीं बताई है.

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वहीं सीजेन खा का परिवार उनके शादी में जुटी हुई है. सीजेन खान ने अपनी पहचान इंडस्ट्री में सीरियल कसौटी जिंदगी से कि थी. जिसमें लोगों ने इन्हें खूब पसंद किया था.

बिग बॉस 14 : एजाज खान को सरप्राइज देने का प्लान कर रहे हैं मेकर्स, जानें किसकी होगी एंट्री

बिग बॉस 14 में इस समय फैमली वीक चल रहा है. इस समय सभी कंटेस्टेंट के फैमली वाले आ रहे हैं उनसे मिलने, एजाज खान, राखी सावंत और राहुल वैद्या अपने घर वालों से मिलकर इमोशनल नजर आएं.

वहीं कुछ प्रतियोगी ऐसे भी थे जो बिग बॉस के बाहरी दुनिया में क्या चल रहा है. उसे भी जानकर अपने परिवार वालों से पूछा. शो में आ रही ताजा रिपोर्ट की मानें तो शो के मेकर्स ने एजाज खान को सरप्राइज देने के लिए प्लान बना रहे हैं.

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शो में पवित्रा पुनिया दोबारा एंट्री मारने वाली हैं. जिससे शो के मेकर्स एजाज को सरप्राइज देंगे. एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है. इस खबर के बाद से फैंस का दिल गदगद हो जाएगा. बता दें कि एजाज खान और पवित्रा पुनिया की मुलाकात बिग बॉस 14 के दौरान हुई थी.

लेकिन कुछ ही दिनों में इन दोनों की दोस्ती बहुत ज्यादा गहरी हो गई थी. वहीं एक रिपोर्ट में एजाज खान के भाई ने बात करते हुए कहा कि अगर एजाज खान भविष्य में पवित्रा के साथ रहना चाहेंगे तो हमें कोई आपत्ति नहीं होगी.

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वहीं एजाज और पवित्रा भी एक- दूसरे के साथ काफी खुश नजर आते हैं, फैंस भी इस कपल को भविष्य में एक साथ देखने कि उम्मीद करते हैं.

वहीं रुबीना दिलाइक की नन्द उनसे मिलने आई उन्होंने रुबीना कि बहुत तारीफ करते हुए कहा कि रुबीना बहुत अच्छा कर रही है. हमें उम्मीद है कि हमारे घर से ही कोई  कोई विजेता बनेगा. जिसे सुनकर रुबीना के आंखों में आंसू आ गए. वहीं अभिनव शुक्ला और रुबीना दिलाइक के बीच भी शो के दौरान कई तरह कि गलतफैमिया आई थीं.

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हालांकि दोनों ने उसे बहुत अच्छे से समझ कर फैसला ले लिया.

अचानक क्यों मरने लगे पक्षी

कुछ दिन पहले एक खबर काफी सुर्ख़ियों में थी. ये खबर थी सोन चिरैया यानी ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ के विलुप्त होने की कगार पर पहुंचने की. इस खबर ने पक्षीप्रेमियों और बायोलॉजिस्ट को चिंता में डाल दिया था. जिस सोन चिरैया की आबादी वर्ष 1969 में 1260 थी वह अब देश के पांच राज्यों में मात्र 150 ही बची हैं. बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि एक समय सोन चिरैया भारत की राष्ट्रीय पक्षी घोषित होते-होते रह गई थी. जब भारत के ‘राष्ट्रीय पक्षी’ के नाम पर विचार किया जा रहा था, तब ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ का नाम भी प्रस्तावित किया गया था, जिसका समर्थन प्रख्यात भारतीय पक्षी विज्ञानी सलीम अली ने किया था. लेकिन ‘बस्टर्ड’ शब्द के गलत उच्चारण की आशंका के कारण ‘भारतीय मोर’ को राष्ट्रीय पक्षी चुना गया था.
भारतीय वन्य जीव संस्थान ने सोन चिरैया को श्रेणी1 के संरक्षित वन्य प्राणियों में शामिल किया है और इसके शिकार पर पूर्णतः पाबंदी है. देशभर में लटके बिजली के तारों की वजह से सोन चिरैया-ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की लगातार होती मौत पर ग्रीन ट्रिब्यूनल अथॉरिटी ने गहरी नराजगी जाहिर की थी. उसने केंद्र के साथ राज्य सरकारों को भी निर्देश दिए थे कि चार महीने के अंदर बिजली के तारों पर पक्षियों को भगाने के उपकरण लगाए जाएं और आने वाले समय में बिजली के तार भूमिगत बिछाए जाएं. ट्रिब्यूनल का यह आदेश सोन चिरैया को ही नहीं, बल्कि अन्य पक्षियों को भी बचाने में सहायक साबित हो सकता था, लेकिन अफ़सोस कि उसके आदेश को ना तो केंद्र सरकार ने गंभीरता से लिया और ना ही किसी राज्य सरकारों ने.
सोन चिरैया ही नहीं, घर-घर में फुदकने और दाना चुगने वाली गौरैया भी अब लगभग गायब हो चुकी है. बड़ी संख्या में कौवे और गिद्ध भी ख़त्म हो रहे हैं. इन पक्षियों की विलुप्ती का मुख्य कारण है जंगलों का तेज़ी से ख़त्म होते जाना, आसमान में बिजली के नंगे तारों का जाल फैला होना और गगनचुम्बी इमारतों में लगे चमचमाते शीशे. जंगलों के ख़त्म होने पर पक्षियों के आशियाने ख़त्म हो गए हैं, उनके घोसले उजाड़ गए हैं और वह अब इंसानी दुनिया में आकार गर्मी, प्रदूषण और बिजली के खुले नंगे तारों के खतरों के बीच जीने को मजबूर हैं.
फारेस्ट रेंज ऑफिसर पियूष मोहन श्रीवास्तव
अधिकांशतः पक्षी धूप, गर्मी, पानी-खाने की कमी और प्रदूषण के चलते अपनी जान गवां रहे हैं.शहरों में वाहनों का ध्वनि प्रदूषण भी उनकी जान ले रहा है. उधर फसलों को बचाने के लिए भी पक्षियों को जहर देकर मारा जाने लगा है. फसलों पर अंधाधुंध कीड़े मारने की दवा के छिड़काव पक्षियों के लिए जानलेवा साबित हो ही थे. बढ़ता जल और ध्वनि प्रदूषण भी पक्षियों को मौत की नींद सुलाने वाला एक बड़ा कारक है. पानी में बढ़ते तमाम तरह के केमिकल और समुद्र के पानी में बिखरे तेल से भी पक्षियों की मौत हो रही है. जाने-अनजाने हम अपने घरों में भी पक्षियों की मौत के कारणों को बढ़ावा दे रहे हैं. घरों के आसपास इकट्ठा गहरे खुले पानी में भी पक्षी डूब कर मर जाते हैं. यही नहीं, हमारे पालतू जानवर भी पक्षियों के दुश्मन बने हुए हैं. पक्षियों को दूषित खाना या ब्रेड देना अक्सर उन्हें बीमारी से लेकर मौत तक के मुंह में धकेल देता है. पक्षी, प्राकृतिक आपदा जैसे तूफान और तेज आंधी आने तथा बिजली गिरने से भी मारे जाते हैं.
पक्षियों के संरक्षण पर काम करने वाली अमेरिका की एक संस्था नैशनल ऑडबोन सोसायटी से जुड़े बायॉलजिस्ट मेलानी डिसकोल अपने एक लेख में कहते हैं कि अकेले अमेरिका में हर दिन अलग-अलग प्रजातियों के सवा करोड़ से ज्यादा पक्षी मर जाते हैं. ‘नैचरल डेथ’ से ज्यादा मौत ‘मानव रचित’ कारणों से होती है. घरों, दफ्तरों में शीशे के दरवाजे-खिड़कियां लगाने का चलन हर साल करोड़ों पक्षियों की मौत का कारण बनता है. शीशे में प्राकृतिक दृश्य देख भ्रमित पक्षी तेजी से उड़ते हुए आते हैं और शीशों से टकरा जाते हैं. ऐसे में सदमा और गंभीर चोट लगने से 50 फीसदी से ज्यादा पक्षी दम तोड़ देते हैं. हाल ही में हुए एक सर्वे में बताया गया कि अमेरिका में पालतू और जंगली बिल्लियां भी हर साल करोड़ों पक्षियों को अपना शिकार बना लेती हैं. बिजली के नंगे तार तो इन बेज़ुबान जीवों के जान के दुश्मन हैं ही, अब जो नया दुश्मन पैदा हो गया है वह है वायरस। तेजी से पनपते माइट्स, वायरस, बैक्टीरिया मनुष्यों के ही लिए नहीं, पक्षियों के लिए भी खतरनाक हैं. वे एक साथ हजारों पक्षियों का खात्मा कर देते हैं.
बर्ड फ्लू वायरस का प्रकोप   
इन दिनों बर्ड फ्लू वायरस का संचार पक्षियों के बीच बहुत तेज़ी से हो रहा है. 2021 की शुरुआत के साथ ही दुनिया भर में पक्षियों की मौतों का आंकड़ा तेज़ी से बढ़ रहा है. जिसको लेकर जीवविज्ञानियों और डॉक्टर्स के बीच बड़ी चिंता व्याप्त है. बर्ड फ्लू को एवियन एंफ्लुएंजा भी कहते हैं. ये एक तरह का वायरल इंफेक्शन है, जो पक्षियों से मनुष्यों को भी हो सकता है. ये जानलेवा भी हो सकता है. इसका सबसे आम रूप H5N1 एवियन एंफ्लुएंजा कहलाता है. ये बेहद संक्रामक है. समय पर इलाज न मिलने पर जानलेवा हो सकता है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक सबसे पहले एवियन एंफ्लुएंजा के मामले साल 1997 में दिखे. इससे संक्रमित होने वाले लगभग 60 प्रतिशत लोगों की जान चली गई.
अयोध्या के कुमारगंज रेंज में पोस्टेड फारेस्ट रेंज ऑफिसर पियूष मोहन श्रीवास्तव ने इस सम्बन्ध में ‘सरिता’ से लम्बी बातचीत के दौरान कई बातों पर प्रकाश डाला. बता दें कि पियूष मोहन श्रीवास्तव कतर्नियाघाट वाइल्डलाइफ सेंचुरी, लखनऊ चिड़ियाघर, दुधवा टाइगर रिज़र्व जैसी महत्वपूर्ण जगहों पर लम्बे समय तक पोस्टेड रहे हैं और जीव-जंतुओं के व्यवहार, खानपान और प्रजनन पर बारीक नज़र रखते हैं. पियूष मोहन कहते हैं कि देश के कई राज्यों से अचानक बड़ी संख्या में पक्षियों के मरने की खबरें आ रही हैं. हर साल सर्दियों के मौसम में पशु-पक्षियों की मुसीबत तो बढ़ ही जाती है, लेकिन उनकी लगातार हो रही मौतों से अलग तरह की चिंता पैदा हो रही है. कुछ पक्षियों की पोस्टमार्टर्म रिपोर्ट से पता चलता है कि पक्षी वायरस जनित रोगों का शिकार हो रहे हैं.
पियूष मोहन कहते हैं, ‘बर्ड फ्लू का वायरस प्रवासी पक्षियों के द्वारा बाहर से भारत में आ रहा है. इसको रोकना बहुत मुश्किल हो रहा है. हर साल सर्दियां शुरू होते हे माइग्रेंट पक्षियों की तादात देश में बढ़ती है. हम हमेशा इनका स्वागत करते हैं. हिमाचल, उत्तराखंड से लेकर केरल तक इन माइग्रेंट बर्ड्स से गुलजार होते हैं. लेकिन इस बार ये प्रवासी अपने साथ खतरनाक वायरस और बैक्टीरिया भी लेकर आये हैं. कुछ समय पहले ही राजस्थान में अलग-अलग प्रजातियों के लगभग 18 हजार प्रवासी पक्षी मृत पाए गए थे. बरेली स्थित इंडियन वैटनरी रिसर्च इंस्टिट्यूट ने जांच के बाद बताया कि पक्षी न्यूरो मैसकुलर डिसऑर्डर से पीड़ित थे. यह बीमारी एक प्रकार के बैक्टीरिया के विकसित होने से पैदा हुए जहर के कारण होती है.’
गौरतलब है कि इसी बीच भारत में राजस्थान झालावाड़ की राड़ी के बालाजी क्षेत्र में 50 कौवों की मौत हो गई है. पहली नजर में ये बर्ड फ्लू ही लगा. राजस्थान के जयपुर समेत 7 जिलों में 200 से ज़्यादा कौओं की मौत होने की सूचना है. वहां राज्य सरकार ने हालात की निगरानी के लिए कंट्रोल रूम स्थापित कर दिए हैं. साथ ही, चार संभागों में विशेषज्ञ दल भी भेजे गए हैं. सांभर झील में बड़े पैमाने पर पक्षियों की अचानक मृत्यु की घटना के बाद यह दूसरी सबसे बड़ी मुसीबत सामने आई है.
मध्य प्रदेश में भी इंदौर के एक निजी कॉलेज परिसर में मृत पाए गए 100 से ज्यादा कौओं में से 2 की जांच में ‘एच-5 एन-8’ वायरस पाया गया है. गुजरात के जूनागढ़ स्थित बांटला गांव में भी 2 जनवरी को 53 पक्षी मृत मिले थे. इन्हे भी बर्ड फ्लू होने का अंदेशा जताया जा रहा है. हिमाचल प्रदेश स्थित पोंग डैम इलाके में 1,400 से अधिक प्रवासी पक्षियों की रहस्यमयी मौत हो गई. एहतियातन कांगड़ा जिला प्रशासन ने बांध के जलाशय में सभी तरह की गतिविधियों में अगले आदेश तक रोक लगा दी है. मौत के कारण का पता लगाने के लिए भोपाल स्थित हाई सिक्यॉरिटी एनिमल डिजीज लैब में सैंपल भेजे जा चुके हैं. पंचकूला जिले के बरवाला में 10 दिन में 4,09,970 मुर्गियों की मौत हो चुकी है. बरवाला के गांव गढ़ी कुटाह और गांव जलोली के पास 20 पोल्ट्री फार्मों में चार लाख से ज्यादा मुर्गियों की असामान्य मौत होने पर नमूने एकत्र कर क्षेत्रीय रोग निदान प्रयोगशाला (आरडीडीएल) जालंधर को भेजे गए हैं.
कोरोना वायरस महामारी के साथ ही अब देश में बर्ड फ्लू का संकट गहराता जा रहा है. इस बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने सभी राज्य मुख्य सचिवों और मुख्य वन्यजीव वार्डनों को चिट्ठी लिखकर उनसे एवियन इन्फ्लुएंजा (H5N1) के लिए राज्य स्तरीय निगरानी समितियों का गठन करने को कहा है. राज्यों को सलाह दी गई है कि पशुपालन विभाग द्वारा सैंपलिंग टेक्नीक पर आयोजित ट्रेनिंग में भाग लेने के लिए कर्मचारियों/अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की जाए. साथ ही प्रवासी पक्षियों की सभी मौतें – उनकी संख्या और कारण पर्यावरण मंत्रालय को बताया जाए. मंत्रालय ने कहा है कि भेजे गए सैंपल और टेस्टिंग रिपोर्ट्स के कलेक्शन, डिस्पैच के लिए स्थानीय पशु चिकित्सा विभाग से संपर्क किया जाना चाहिए.

प्रवासी पक्षियों की निगरानी
पर्यावरण मंत्रालय ने सभी राज्यों में प्रवासी पक्षियों की निगरानी के लिए एक एक्शन प्लान तैयार करने को कहा गया है. राज्य प्रवासी पशु-पक्षियों के नमूनों के संग्रह में राज्य पशु चिकित्सा विभागों के साथ सहयोग करेंगे. इसमें मृत पक्षियों का सैंपल अत्यंत सावधानी और साइंटिफिक ऑब्जर्बेशन के साथ लिया जाएगा. वहीं, निगरानी केवल संरक्षित क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहेगी, बल्कि उन क्षेत्रों में भी होगी जहां प्रवासी पक्षी आते हैं.

कई राज्यों में बर्ड फ्लू की पुष्टि
हिमाचल प्रदेश, केरल, राजस्थान में बर्ड फ्लू के चलते हजारों पक्षी मर गए हैं. हिमाचल में इस मौसम में प्रवासी पक्षी बहुतायत में कांगड़ा और आसपास के इलाकों में आते हैं. जनवरी के पहले सप्ताह में 2300 पक्षियों के मौत की पुष्टि हो चुकी है। केरल में 12000 से ज्यादा बत्तख केवल दो जिलों कोट्टायम और अलप्पुझा में मर चुकी हैं. इस राज्य में हर साल ही बर्ड फ्लू की मार पड़ती है. बर्ड फ्लू बीमारी इंसानों में फैलने के डर से राज्य सरकार कई प्रभावित इलाकों में पक्षियों को मार रही है. राजस्थान में भी 500 के आसपास पक्षी मारे गए हैं. मध्य प्रदेश राज्य में भी अलर्ट जारी हो गया है. सरकार कहना है कि बर्ड फ्लू से एच5एन8 और कई अऩ्य तरह के वायरस एंफ्लुएंजा का खतरा है.

हिमाचल प्रदेश में पहली बार 28 दिसंबर को जब वन विभाग के कर्मचारी प्रवासी पक्षियों की संख्या का अनुमान लगा रहे थे, तभी कुछ पक्षी मरे हुए मिले. इसके बाद कर्मचारियों ने पूरे अभयारण्य क्षेत्र का दौरा किया. कई पक्षी मृत पाए गए. मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) उत्तर, उपासना पटियाल कहती हैं, ‘हम इस मौसम के दौरान एक पखवाड़े में प्रवासी पक्षियों के आने का आकलन करते हैं. हमने 15 दिसंबर तक 57,000 प्रवासी पक्षियों के आगमन का अनुमान लगाया था. मृत पाए गए पक्षियों को प्रोटोकॉल के अनुसार दफनाया जा रहा है. जो अभी जिंदा हैं, उन्हें आइसोलेट कर दिया गया है.’

रहें सावधान 

फारेस्ट रेंज ऑफिसर पियूष मोहन श्रीवास्तव कहते हैं, ‘कोरोना काल में मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षियों पर भी बड़ी आफत टूटी है. कोरोना वायरस फैलने के दौरान चीन में लाखों की संख्या में मुर्गी, सूअर, कुत्ते आदि जानवरों को जला कर मारने के कई वीडियो सामने आये. अब नए कोरोना वायरस स्ट्रेन के चलते डेनमार्क में लाखो ऊदबिलाव इसलिए मारे जा रहे हैं क्योंकि उनसे कोरोना वायरस बढ़ने के आसार हैं. इसके साथ बर्ड फ्लू वायरस अपना तांडव दिखा रहा है. बहरहाल, बड़ी बात यह है कि मिलकर प्रयास किया जाए तो लाखों पक्षियों की जान बचाई जा सकती है. इसके लिए जागरूकता फैलाने की जरूरत है. जंगलों को ख़त्म करके हमने पक्षियों को बेघर कर दिया है.
ऐसे में अगर हमें अपने घरों के आसपास पेड़ों पर, छत की मुंडेर पर कहीं पक्षियों के घोंसले दिखें तो उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमें लेनी चाहिए. उनके लिए अगर हम अपने घरों की छतों पर बाजरा, गेहूं जैसे अनाज डाल दें, साफ़ पानी मिटटी के कटोरों में रख दें तो काफी हद तक पक्षियों की समस्या का समाधान हो सकता है. ऐसे में वह नीचे उतरने और कुत्ते-बिल्ली का शिकार बनने से बचेंगे। इस साल हमारी तरह ही प्रवासी पक्षियों का सफर भी चुनौतीपूर्ण रहा है. हम मिल-जुलकर ही एक-दूसरे के जीवन में थोड़ा सुकून ला सकते हैं. राजस्थान, मध्य प्रदेश के बाद हिमाचल और केरल तक बर्ड फ्लू से दहशत मच गई है जिसे देखते हुए राज्य सरकारों ने अलर्ट जारी किया है. ऐसे में पोल्ट्री प्रोडक्ट से बचें या इस्तेमाल करते वक़्त उन्हें अच्छी तरह पकाएं ताकि वायरस के खतरे से बचे रहें.

कृष्णिमा : केतकी को संतान होने में क्या दिक्कत थी?

‘‘आखिर इस में बुराई क्या है बाबूजी?’’ केदार ने विनीत भाव से बात को आगे बढ़ाया.‘‘पूछते हो बुराई क्या है? अरे, तुम्हारा तो यह फैसला ही बेहूदा है. अस्पतालों के दरवाजे क्या बंद हो गए हैं जो तुम ने अनाथालय का रुख कर लिया? और मैं तो कहता हूं कि यदि इलाज करने से डाक्टर हार जाएं तब भी अनाथालय से बच्चा गोद लेना किसी भी नजरिए से जायज नहीं है. न जाने किसकिस के पापों के नतीजे पलते हैं वहां पर जिन की न जाति का पता न कुल का…’’

‘‘बाबूजी, यह आप कह रहे हैं. आप ने तो हमेशा मुझे दया का पाठ पढ़ाया, परोपकार की सीख दी और फिर बच्चे किसी के पाप में भागीदार भी तो नहीं होते…इस संसार में जन्म लेना किसी जीव के हाथों में है? आप ही तो कहते हैं कि जीवनमरण सब विधि के हाथों होता है, यह इनसान के वश की बात नहीं तो फिर वह मासूम किस दशा में पापी हुए? इस संसार में आना तो उन का दोष नहीं?’’

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‘‘अब नीति की बातें तुम मुझे सिखाओगे?’’ सोमेश्वर ने माथे पर बल डाल कर प्रश्न किया, ‘‘माना वे बच्चे निष्पाप हैं पर उन के वंश और कुल के बारे में तुम क्या जानते हो? जवानी में जब बच्चे के खून का रंग सिर चढ़ कर बोलेगा तब क्या करोगे? रक्त में बसे गुणसूत्र क्या अपना असर नहीं दिखाएंगे? बच्चे का अनाथालय में पहुंचना ही उन के मांबाप की अनैतिक करतूतों का सुबूत है. ऐसी संतान से तुम किस भविष्य की कामना कर रहे हो?’’

‘‘बाबूजी, आप का भय व संदेह जायज है पर बच्चे के व्यक्तित्व निर्माण में केवल खून के गुण ही नहीं बल्कि पारिवारिक संस्कार ज्यादा महत्त्वपूर्ण होते हैं,’’ केदार बाबूजी को समझाने का भरसक प्रयास कर रहा था और बगल में खामोश बैठी केतकी निराशा के गर्त में डूबती जा रही थी.

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केतकी को संतान होने के बारे में डाक्टरों को उम्मीद थी कि वह आधुनिक तकनीक से बच्चा प्राप्त कर सकती है और केदार काफी सोचविचार के बाद इस नतीजे पर पहुंचा था कि लाखों रुपए क्या केवल इसलिए खर्च किए जाएं कि हम अपने जने बच्चे के मांबाप कहला सकें. यह तो केवल आत्मसंतुष्टि तक सोचने वाली बात होगी. इस से बेहतर है कि किसी अनाथ बच्चे को अपना कर यह पैसा उस के भविष्य पर लगा दें. इस से मांबाप बनने का गौरव भी प्राप्त होगा व रुपए का सार्थक प्रयोग भी होगा.

‘केतकी, बस जरूरत केवल बच्चे को पूरे मन से अपनाने की है. फर्क वास्तव में खून का नहीं बल्कि अपनी नजरों का होता है,’ केदार ने जिस दिन यह कह कर केतकी को अपने मन के भावों से परिचित कराया था वह बेहद खुश हुई थी और खुशी के मारे उस की आंखों से आंसू बह निकले थे पर अगले ही क्षण मां और बाबूजी का खयाल आते ही वह चुप हो गई थी.

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केदार का अनाथालय से बच्चा गोद लेने का फैसला उसे बारबार आशंकित कर रहा था क्योंकि मांबाबूजी की सहमति की उसे उम्मीद नहीं थी और उन्हें नाराज कर के वह कोई कार्य करना नहीं चाहती थी. केतकी ने केदार से कहा था, ‘बाबूजी से पहले सलाह कर लो उस के बाद ही हम इस कार्य को करेंगे.’

लेकिन केदार नहीं माना और कहने लगा, ‘अभी तो अनाथालय की कई औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी, अभी से बात क्यों छेड़ी जाए. उचित समय आने पर मांबाबूजी को बता देंगे.’

केदार और केतकी ने आखिर अनाथालय जा कर बच्चे के लिए आवेदनपत्र भर दिया था.

लगभग 2 माह के बाद आज केदार ने शाम को आफिस से लौट कर केतकी को यह खुशखबरी दी कि अनाथालय से बच्चे के मिलने की पूर्ण सहमति प्राप्त हो चुकी है. अब कभी भी जा कर हम अपना बच्चा अपने साथ घर ला सकते हैं.

भावविभोर केतकी की आंखें मारे खुशी के बारबार डबडबाती और वह आंचल से उन्हें पोंछ लेती. उसे लगा कि लंबी प्रतीक्षा के बाद उस के ममत्व की धारा में एक नन्ही जान की नौका प्रवाहित हुई है जिसे तूफान के हर थपेडे़ से बचा कर पार लगाएगी. उस नन्ही जान को अपने स्नेह और वात्सल्य की छांव में सहेजेगी….संवारेगी.

केदार की धड़कनें भी तो यही कह रही हैं कि इस सुकोमल कोंपल को फूलनेफलने में वह तनिक भी कमी नहीं आने देगा. आने वाली सुखद घड़ी की कल्पना में खोए केतकी व केदार ने सुनहरे सपनों के अनेक तानेबाने बुन लिए थे.

आज बाबूजी के हाथ से एक तार खिंचते ही सपनों का वह तानाबाना कितना उलझ गया.

केतकी अनिश्चितता के भंवर में उलझी यही सोच रही थी कि मांजी को मुझ से कितना स्नेह है. क्या वह नहीं समझ सकतीं मेरे हृदय की पीड़ा? आज बाबूजी की बातों पर मां का इस तरह से चुप्पी साधे रहना केतकी के दिल को तीर की तरह बेध रहा था.

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केदार लगातार बाबूजी से जिरह कर रहा था, ‘‘बाबूजी, क्या आप भूल गए, जब मैं बचपन में निमोनिया होने से बहुत बीमार पड़ा था और मेरी जान पर बन आई थी, डाक्टरों ने तुरंत खून चढ़ाने के लिए कहा था पर मेरा खून न आप के खून से मेल खा रहा था न मां से, ऐसे में मुझे बचाने के लिए आप को ब्लड बैंक से खून लेना पड़ा था. यह सब आप ने ही तो मुझे बताया था. यदि आप तब भी अपनी इस जातिवंश की जिद पर अड़ जाते तो मुझे खो देते न?

‘‘शायद मेरे प्रति आप के पुत्रवत प्रेम ने आप को तब तर्कवितर्क का मौका ही नहीं दिया होगा. तभी तो आप ने हर शर्त पर मुझे बचा लिया.’’

‘‘केदार, जिरह करना और बात है और हकीकत की कठोर धरा पर कदम जमा कर चलना और बात. ज्यादा दूर की बात नहीं, केवल 4 मकान पार की ही बात है जिसे तुम भी जानते हो. त्रिवेदी साहब का क्या हश्र हुआ? बेटा लिया था न गोद. पालापोसा, बड़ा किया और 20 साल बाद बेटे को अपने असली मांबाप पर प्यार उमड़ आया तो चला गया न. बेचारा, त्रिवेदी. वह तो कहीं का नहीं रहा.’’

केदार बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘बाबूजी, हम सब यही तो गलती करते हैं, गोद ही लेना है तो उन्हें क्यों न लिया जाए जिन के सिर पर मांबाप का साया नहीं है कुलवंश, जातबिरादरी के चक्कर में हम इतने संकुचित हो जाते हैं कि अपने सीमित दायरे में ही सबकुछ पा लेना चाहते हैं. संसार में ऐसे बहुत कम त्यागी हैं जो कुछ दे कर भूल जाएं. अकसर लोग कुछ देने पर कुछ प्रतिदान पा लेने की अपेक्षाएं भी मन में पाल लेते हैं फिर चाहे उपहार की बात हो या दान की और फिर बच्चा तो बहुत बड़ी बात होती है. कोई किसी को अपना जाया बच्चा देदे और भूल जाए, ऐसा संभव ही नहीं है.

‘‘माना अनाथालय में पल रहे बच्चों के कुल व जात का हमें पता नहीं पर सब से पहले तो हम इनसान हैं न बाबूजी. यह बात तो आप ही ने हमें बचपन में सिखाई थी कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है. अब आप जैसी सोच के लोग ही अपनी बात भुला बैठेंगे तब इस समाज का क्या होगा?

‘‘आज मैं अमेरिका की आकर्षक नौकरी और वहां की लकदक करती जिंदगी छोड़ कर यहां आप के पास रहना चाहता हूं और आप दोनों की सेवा करना चाहता हूं तो यह क्या केवल मेरे रक्त के गुण हैं? नहीं बाबूजी, यह तो आप की सीख और संस्कार हैं. मैं ने बचपन में आप को व मांजी को जो करते देखा है वही आत्मसात किया है. आप ने दादादादी की अंतिम क्षणों तक सेवा की है. आप के सेवाभाव स्वत: मेरे अंदर रचबस गए, इस में रक्त की कोई भूमिका नहीं है और ऐसे उदाहरणों की क्या कमी है जहां अटूट रक्त संबंधों में पनपी कड़वाहट आखिर में इतनी विषाक्त हो गई कि भाई भाई की जान के दुश्मन बन गए.’’

‘‘देखो, मुझे तुम्हारे तर्कों में कोई दिलचस्पी नहीं है,’’ सोमेश्वर बोले, ‘‘मैं ने एक बार जो कह दिया सो कह दिया, बेवजह बहस से क्या लाभ? और हां, एक बात और कान खोल कर सुन लो, यदि तुम्हें अपनी अमेरिका की नौकरी पर लात मारने का अफसोस है तो आज भी तुम जा सकते हो. मैं ने तुम्हें न तब रोका था न अब रोक रहा हूं, समझे? पर अपने इस त्याग के एहसान को भुनाने की फिराक में हो तो तुम बहुत बड़ी भूल कर रहे हो.’’

इतना कह कर सोमेश्वर अपनी धोती संभालते हुए तेज कदमों से अपने कमरे में चले गए. मांजी भी चुपचाप आदर्श भारतीय पत्नी की तरह मुंह पर ताला लगाए बाबूजी के पीछेपीछे कमरे में चली गईं.

थकेहारे केदार व केतकी अपने कमरे में बिस्तर पर निढाल पड़ गए.

‘‘अब क्या होगा?’’ केतकी ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘होगा क्या, जो तय है वही होगा. सुबह हमें अपने बच्चे को लेने जाना है, और मैं नहीं चाहता कि इस तरह दुखी और उदास मन से हम उसे लेने जाएं,’’ अपने निश्चय पर अटल केदार ने कहा.

‘‘पर मांबाबूजी की इच्छा के खिलाफ हम बच्चे को घर लाएंगे तो क्या उन की उपेक्षा बच्चे को प्रभावित नहीं करेगी? कल को जब वह बड़ा व समझदार होगा तब क्या घर का माहौल सामान्य रह पाएगा?’’

अपने मन में उठ रही इन आशंकाओं को केतकी ने केदार के सामने रखा तो वह बोला, ‘‘सुनो, हमें जो कल करना है फिलहाल तुम केवल उस के बारे में ही सोचो.’’

सुबह केतकी की आंख जल्दी खुल गई और चाय बनाने के बाद ट्रे में रख कर मांबाबूजी को देने के लिए बाहर लौन में गई, मगर दोनों ही वहां रोज की तरह बैठे नहीं मिले. खाली कुरसियां देख केतकी ने सोचा शायद कल रात की बहसबाजी के बाद मां और बाबूजी आज सैर पर न गए हों लेकिन उन का कमरा भी खाली था. हो सकता है आज लंबी सैर पर निकल गए हों तभी देर हो गई. मन में यह सोचते हुए केतकी नहाने चली गई.

घंटे भर में दोनों तैयार हो गए पर अब तक मांबाबूजी का पता नहीं था. केदार और केतकी दोनों चिंतित थे कि आखिर वे बिना बताए गए तो कहां गए?

सहसा केतकी को मांजी की बात याद आई. पिछले ही महीने महल्ले में एक बच्चे के जन्मदिन के समय अपनी हमउम्र महिलाओं के बीच मांजी ने हंसी में ही सही पर कहा जरूर था कि जिस दिन हमारा इस सांसारिक जीवन से जी उचट जाएगा तो उसी दिन हम दोनों ही किसी छोटे शहर में चले जाएंगे और वहीं बुढ़ापा काट देंगे.

सशंकित केतकी ने केदार को यह बात बताई तो वह बोला, ‘‘नहीं, नहीं, केतकी, बाबूजी को मैं अच्छी तरह से जानता हूं. वे मुझ पर क्रोधित हो सकते हैं पर इतने गैरजिम्मेदार कभी नहीं हो सकते कि बिना बताए कहीं चले जाएं. हो सकता है सैर पर कोई परिचित मिल गया हो तो बैठ गए होंगे कहीं. थोड़ी देर में आ जाएंगे. चलो, हम चलते हैं.’’

दोनों कार में बैठ कर नन्हे मेहमान को लेने चल दिए. रास्ते भर केतकी का मन बच्चा और मांबाबूजी के बीच में उलझा रहा. लेकिन केदार के चेहरे पर कोई तनाव नहीं था. उमंग और उत्साह से भरपूर केदार के होंठों पर सीटी की गुनगुनाहट ही बता रही थी कि उसे अपने निर्णय पर जरा भी दुविधा नहीं है.

केतकी का उतरा हुआ चेहरा देख कर वह बोला, ‘‘यार, क्या मुंह लटकाए बैठी हो? चलो, मुसकराओ, तुम हंसोगी तभी तो तुम्हें देख कर हमारा नन्हा मेहमान भी हंसना सीखेगा.’’

नन्ही जान को आंचल में छिपाए केतकी व केदार दोनों ही कार से उतरे. घर का मुख्य दरवाजा बंद था पर बाहर ताला न देख वे समझ गए कि मां और बाबूजी घर के अंदर हैं. केदार ने ही दरवाजे की घंटी बजाई तो इसी के साथ केतकी की धड़कनें भी तेज हो गई थीं. नन्ही जान को सीने से चिपटाए वह केदार को ढाल बना कर उस के पीछे हो गई.

दरवाजा खुला तो सामने मांजी और बाबूजी खडे़ थे. पूरा घर रंगबिरंगी पताकों, गुब्बारों तथा फूलों से सजा हुआ था. यह सबकुछ देख कर केदार और केतकी दोनों विस्मित रह गए.

‘‘आओ बहू, अंदर आओ, रुक क्यों गईं?’’ कहते हुए मांजी ने बडे़ प्रेम से नन्हे मेहमान को तिलक लगाया. बाबूजी ने आगे बढ़ कर बच्चे को गोद में लिया.

‘‘अब तो दादादादी का बुढ़ापा इस नन्हे सांवलेसलौने बालकृष्ण की बाल लीलाओं को देखदेख कर सुकून से कटेगा, क्यों सौदामिनी?’’ कहते हुए बाबूजी ने बच्चे के माथे पर वात्सल्य चिह्न अंकित कर दिया.

बाबूजी के मुख से ‘बालकृष्ण’ शब्द सुनते ही केदार और केतकी ने एक दूसरे को प्रश्न भरी नजरों से देखा और अगले ही पल केतकी ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘लेकिन बाबूजी, यह बेटा नहीं बेटी है.’’

‘‘तो क्या हुआ? कृष्ण न सही कृष्णिमा ही सही. बच्चे तो प्रसाद की तरह हैं फिर प्रसाद चाहे लड्डू के रूप में मिले चाहे पेडे़ के, होगा तो मीठा ही न,’’ और इसी के साथ एक जोरदार ठहाका सोमेश्वर ने लगाया.

केदार अब भी आश्चर्यचकित सा बाबूजी के इस बदलाव के बारे में सोच रहा था कि तभी वह बोले, ‘‘क्यों बेटा, क्या सोच रहे हो? यही न कि कल राह का रोड़ा बने बाबूजी आज अचानक गाड़ी का पेट्रोल कैसे बन गए?’’

‘‘हां बाबूजी, सोच तो मैं यही रहा हूं,’’ केदार ने हंसते हुए कहा.

‘‘बेटा, सच कहूं तो आज मैं ने बहुत बड़ी जीत हासिल की है. मुझे तुझ पर गर्व है. यदि आज तुम अपने निश्चय से हिल जाते तो मैं टूट जाता. मैं तुम्हारे फैसले की दृढ़ता को परखना चाहता था और ठोकपीट कर उस की अटलता को निश्चित करना चाहता था क्योंकि ऐसे फैसले लेने वालों को सामाजिक जीवन में कई अग्नि परीक्षाएं देनी पड़ती हैं.’’

‘‘समाज में तो हर प्रकार के लोग होते हैं न. यदि 4 लोग तुम्हारे कार्य को सराहेंगे तो 8 टांग खींचने वाले भी मिलेंगे. तुम्हारे फैसले की तनिक भी कमजोरी भविष्य में तुम्हें पछतावे के दलदल में पटक सकती थी और तुम्हारे कदमों का डगमगाना केवल तुम्हारे लिए ही नहीं बल्कि आने वाली नन्ही जान के लिए भी नुकसानदेह साबित हो सकता था. बस, केवल इसीलिए मैं तुम्हें जांच रहा था.’’

‘‘देखा केतकी, मैं ने कहा था न तुम से कि बाबूजी ऐसे तो नहीं हैं. मेरा विश्वास गलत नहीं था,’’ केदार ने कहा.

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‘‘बेटा, तुम लोगों की खुशी में ही तो हमारी खुशी है. वह तो मैं तुम्हारे बाबूजी के कहने पर चुप्पी साधे बैठी रही, इन्हें परीक्षा जो लेनी थी तुम्हारी. मैं समझ सकती हूं कि कल रात तुम लोगों ने किस तरह काटी होगी,’’ इतना कह कर सौदामिनी ने पास बैठी केतकी को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘वह तो ठीक है मांजी, पर यह तो बताइए कि सुबह आप लोग कहां चले गए थे. मैं तो डर रही थी कि कहीं आप हरिद्वार….’’

‘‘अरे, पगली, हम दोनों तो कृष्णिमा के स्वागत की तैयारी करने गए थे,’’ केतकी की बातों को बीच में काटते हुए सौदामिनी बोली, ‘‘और अब तो हमारे चारों धाम यहीं हैं कृष्णिमा के आसपास.’’

सचमुच कृष्णिमा की किलकारियों में चारों धाम सिमट आए थे, जिस की धुन में पूरा परिवार मगन हो गया था.

 स्निग्धा श्रीवास्त

टमाटर उत्पादन की उन्नत तकनीक

लेखक- डा. पूनम कश्यप, डा. आशीष कुमार प्रूष्टि, डा. सुनील कुमार एवं डा. आजाद सिंह पंवार 

भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान, मेरठ, उत्तर प्रदेश् टमाटर एक महत्त्वपूर्ण सब्जी है, जिस की अगेती व देर से फसल लेने में अधिक लाभ होता है. टमाटर के पके फलों को सलाद व सब्जी के रूप में प्रयोग होता किया जाता है. इस में प्रर्याप्त मात्रा में विटामिन ए, बी, बी-2 और सी पाया जाता है. इस में पाया जाने वाला लाइकोपीन एंटी कैंसर गुण रखता है. यह पाचन तंत्र को ठीक करता हैं और गुरदे व लिवर से संबंधित रोगों को दूर करता है. भूमि की तैयारी टमाटर की खेती लगभग सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, परंतु उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट या दोमट भूमि इस की खेती के लिए उपयुक्त होती है. इस की खेती 6.5 से 7.5 पीएच मान वाली मिट्टी में अच्छी होती है.

रोपण के लिए खेत की अच्छी तरह 3-4 जुताइयां कर के तैयार किया जाता है. जलवायु टमाटर की फसल के लिए आदर्श तापमान 20 से 25 डिगरी सैंटीग्रेड होता है. अंकुरण के लिए आदर्श तापमान लगभग 25 डिगरी सैंटीग्रेड होना चाहिए. टमाटर में लाल रंग लाइकोपीन नामक वर्णक के कारण होता है. इस का उत्पादन 25 डिगरी सैंटीग्रेड पर होता है और 30 डिगरी से ऊपर इस का बनना बंद हो जाता है, जिस से टमाटर पीला दिखने लगता है. पौधशाला में बीज की बोआई का समय पौधशाला में टमाटर के बीज की बोआई स्थान और किस्म के अनुसार भिन्नभिन्न स्थानों पर अलगअलग समय में की जाती है. शरदकालीन फसल के लिए बीज की बोआई जुलाईसितंबर, बसंत ग्रीष्म ऋतु के लिए नवंबर से दिसंबर में बोआई करते हैं.

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इस प्रकार इस की खेती वर्षभर की जा सकती है. बीज की मात्रा एक हेक्टेयर खेत की रोपाई के लिए मुक्त परागित किस्मों की 350 से 400 ग्राम और संकर किस्मों की 200-250 ग्राम बीज की जरूरत होती है. पौध करें यों तैयार मैदानी भागों में टमाटर वर्ष में दो बार उगाया जाता है, इसलिए पौध 2 मौसमों वर्षा और शरद ऋतु में तैयार किए जाते हैं. पहाड़ी भागों में इसे मार्चअप्रैल में तैयार किया जाता है. एक हेक्टेयर पौधारोपण के लिए 100-120 वर्गमीटर क्षेत्रफल की जरूरत होती है. पौध रोपण आमतौर पर 4-6 पत्तियों वाली तैयार पौध, जिस की ऊंचाई 15-20 सैंटीमीटर हो, रोपण के लिए उपयुक्त होती है. पंक्ति में पंक्ति व पौध से पौध की दूरी, किस्म भूमि की उर्वरता, रोपण के समय के अनुसार कम या ज्यादा की जा सकती है.

यह ध्यान रखना चाहिए कि रोपण के 3-4 दिन पहले ही नर्सरी में सिंचाई बंद कर दें. जाड़े के मौसम में यदि पाला पड़ने का डर हो, तो क्यारियों को पौलीथिन की चादर से ढक दें. उन्नतशील किस्में पौधे की बढ़वार के आधार पर असीमित बढ़वार : बैस्ट औफ आल, पंजाब ट्रौपिक, सोलन गोला, यशवंत-2, मारग्लोब, नवीन आदि

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. अर्द्धसीमित बढ़वार : ए-12, सोलन शुगन आदि. सीमित बढ़वार : एचएस-11, एचएस-102, पूसा अर्ली, रोना ड्वार्फ आदि. फलों के आकार के आधार पर बड़े फलों वाली किस्में : पांडरोजा, पंजाब ट्रौपिक, स्यू, एचएस-110, मारग्लोब, काशी विशेष, काशी अनुपम.

मध्यम फलों वाली किस्में : पूसा रूबी, बैस्ट औफ आल, एस-120, केकस्थ अगेती और एचएस-101. छोटे फलों वाली किस्में : एस-12, एचएस-102, पूसा रैड प्लम. नाशपती के आकार वाली किस्में : गेम्ड टाइप, सलैक्शन-152, इटैलियन रैड, रोमा, कल्याणपुर अंगुरलता.

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उगाए जाने वाले क्षेत्रों के आधार पर मैदानी क्षेत्रों के लिए : पूसा रूबी, पूसा अर्ली ड्वार्फ, एस-120, एचएस-101, एचएस-102, एस-12. पहाड़ी क्षेत्रों के लिए : स्यू, बैस्ट औफ, रोमा. अधिक तापमान पर फल देने वाली किस्में : एचएस-102, मनी मेकर, लाकुलस.

परिवहन के लिए उपयुक्त किस्में : रैड टौप, मेरठी. प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त किस्में  स्यू, पूसा प्लम. अन्य संस्थान द्वारा विकसित किस्में काशी अनुपम, काशी अमृत, काशी हेमंत, काशी शरद, काशी विशेष, स्यूक्स, पूसा रूबी, पूसा अर्ली ड्वार्फ, पूसा रैड प्लम, पूसा सलैक्शन-120, हिसार ललिता, एचएस आदि. खाद और उर्वरक टमाटर की अच्छी फसल के लिए प्रति हेक्टेयर की दर से 20-25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद और तत्त्व के रूप में 100-150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस व 60-80 किलोग्राम पोटाश डालें. असीमित वृद्धि वाली किस्मों के लिए नाइट्रोजन की मात्रा 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिए. गोबर की खाद रोपण से 3-4 हफ्ते पहले खेत में सब जगह एकसमान डाल कर मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला दें.

फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा व नाइट्रोजन की एकतिहाई मात्रा रोपण से पहले खेत में डालें. नाइट्रोजन की बाकी मात्रा 2 बराबर भागों में बांट कर 25-30 व 45-50 दिन बाद खड़ी फसल में टौप ड्रैसिंग करें. सिंचाई पौध रोपण के बाद 2 दिन तक फुहारे से पानी दें या रोपण के बाद हलकी सिंचाई करें. गरमी के मौसम में 7 से 8 दिन तक, सर्दियों में 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें. यह ध्यान रखना चाहिए कि खेत में अधिक पानी न लगने पाए. अधिक पानी देने से पौधों में मुरझान और पत्ती मोड़क विषाणु रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है. खरपतवार नियंत्रण अच्छी फसल के लिए खरपतवार का नियंत्रण करना बहुत जरूरी है. छोटे व मध्यमवर्गीय किसान अपने खेतों में खरपतवार नियंत्रण के लिए खुरपी या कुदाल द्वारा खुद ही कर लेते हैं, नहीं तो रासायनिक दवाओं का छिड़काव कर के खरपतवार पर नियंत्रण कर सकते हैं.

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अंत:सस्य क्रियाएं अच्छी पैदावार लेने के लिए हलकी निराईगुड़ाई करें व पौधों की जड़ों के पास मिट्टी चढ़ानी चाहिए. यदि टमाटर की किस्म असीमित वृद्धि वाली हो तो सहारा दें. फलों की तुड़ाई टमाटर के फलों की तुड़ाई उस के उपयोग पर निर्भर करती है. यदि टमाटर को पास के बाजार में बेचना है, तो फल पकने के बाद तुड़ाई करें और यदि फलों को बेचने के लिए दूर के बाजार में भेजना हो, तो जैसे ही उन के रंग में बदलाव होना शुरू हो, तुरंत तुड़ाई करनी चाहिए.

श्रेणीकरण खेत में टमाटर तोड़ने के बाद रोग से ग्रसित, सड़ेगले आदि फलों को सब से पहले छांट कर अलग करने के बाद उन्हें आकार के अनुसार 3 वर्गों (बड़े, मध्यम और छोटे) में वर्गीकृत कर देते हैं. वर्गीकृत टमाटर बाजार में भेजने पर अच्छा भाव मिलता है. भारतीय मानक संस्थान के अनुसार, टमाटर को मुख्य रूप से 4 वर्गों में आकार के अनुसार सुपर, सुपर-ए, फैंसी और व्यापारिक में बांटा गया है. भंडारण यदि बाजार में मांग न हो, तो टमाटर को कुछ दिनों के लिए भंडारित किया जा सकता है. जैसे पके हरे टमाटर को 12.5 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर 30 दिन और पके टमाटर को 4-5 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर 10 दिन तक रखा जा सकता है. इस भंडारण के समय आर्द्रता 85 से 90 प्रतिशत होनी चाहिए.

उपज टमाटर की औसत उपज प्रति हेक्टेयर 350-400 क्विंटल होती है. उत्तम तकनीक और अच्छी संकर किस्मों से आमतौर पर 800-1000 क्विंटल प्रति हेक्टेयर टमाटर की उपज ली जा सकती है. प्रमुख कीट व नियंत्रण हरा तेला हरे रंग के छोटेछोटे कीड़े होते हैं, जिन की संख्या पत्तों के निचली सतह पर अधिक होती है. ये कीट रस चूसते हैं. इस के कारण पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ कर पीली हो जाती हैं. प्रबंधन 0.04 फीसदी मैलाथियान या रोगर या मैटासिस्टौक्स का छिड़काव करें. दवा का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें. एफिड यह काले रंग के छोटे आकार के कीट पत्तियों का रस चूसते हैं. प्रबंधन 0.02 फीसदी मोनोक्रोटोफास का छिड़काव 2 हफ्ते के अंदर करना चाहिए.

फलछेदक सूंड़ी इस का हरे रंग का लाखा पत्तियों व फलों में छेद करता है, जिस से फल सड़ने लगते हैं. प्रबंधन 0.15 फीसदी सेविन का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें. रोपाइ के समय 16 लाईन टमाटर के बाद एक लाइन गेंदे की लगाएं. एचएनपीवी 250 एलई को गुड़ के साथ (10 ग्राम प्रति लिटर), साबुन पाउडर (05 ग्राम प्रति लिटर), और टीनोपाल (1 मिली प्रति लिटर) को पानी में मिला कर शाम में प्रयोग करें. अंडा परजीवी कीट/2,50,000 प्रति हेक्टेयर की दर से 10 दिनों के अंतराल पर करें. सफेद मक्खी यह सफेद रंग की मक्खी पत्तियों से रस चूसती है और विषाणु रोग फैलाते हैं,

जिस से पत्तियां मुड़ जाती हैं. प्रबंधन बोने से पहले इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस या थायोमेथाक्जाम 70 डब्ल्यूएस का 3 से 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज का उपचार करें. 1 से 2 पीला 1 चिपकने वाला ट्रैप 50-100 वर्गमीटर की दूरी पर रखें. प्रमुख रोग और उन का प्रबंधन आर्द्रगलन रोग जमीन से लगे हुए तने जलीय व नरम हो कर ?क जाते हैं. कभीकभी पत्तियों के मुर?ने और सूखने के लक्षण भी दिखाई देते हैं. प्रबंधन कैपटान, एग्रोसान दवा 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज में मिला कर उपचारित करें. ब्लाईटौक्स 50, 1 किलोग्राम प्रति 300 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. अगेती अंगमारी पत्तियों पर गोल और त्रिकोणाकार गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ने पर सूख कर गिर जाती हैं.

यह धब्बे फल को खराब करते हैं और फल सड़ जाते हैं. प्रबंधन बीज बोने के पहले ट्राईकोडर्मा पाउडर से बीज का उपचार करें. डाईथेन एम 45 का 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 10 से 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करें. पिछेता ?ालसा पत्तियां पीली पड़ कर गिर जाती हैं और जमीन के संपर्क में होने वाले फल सड़ जाते हैं. फलों पर भूरे रंग के घब्बे बनते हैं, जिस से फल सड़ने लगते हैं. प्रबंधन पौधे को सहारा दे कर जमीन से उपर रखें. खेत में जल निकास का उचित प्रबंध करें. 0.2 प्रतिशत डाईथेन जैड 78 का छिड़काव करेें. फल गलन फल पूरी तरह बदरंग हो जाता है और फलों पर पीले भूरे रंग के संकेंद्र बलयुक्त धब्बे पड़ जाते हैं, जिस से अंदर का गूदा पूरी तरह सड़ जाता है. प्रबंधन फसल में अधिक पानी न दें. टमाटर हमेशा मेड़ों पर लगवाएं. डाईफोल्टान दवा का 0.3 फीसदी का छिड़काव करें.

मृगतृष्णा : सुषमाजी किस बात को लेकर परेशान थी

‘‘सुन, मैं परसों पहुंच रही  हूं,’’ दीदी फोन पर थीं, ‘‘यहां पर  छोटे गोपाली महाराज आए हुए हैं. युवा संत और बहुत बड़े सिद्ध पुरुष हैं. कल यहां उन की संगीतमय कथा का समापन है. कोटा होते हुए, उन का उज्जैन का कार्यक्रम है. तेरे प्रमोशन का जो मामला चल रहा है उस बारे में मैं ने बात की थी. महाराज बोले कि बाधाएं हैं, हट जाएंगी. बस, तू थोड़ी सी तैयारी कर लेना. 2-4 लोग भी उन के साथ होंगे,’’ फोन कट गया था.

‘‘क्यों? क्या बात है, बड़ा लंबा फोन था?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘दीदी का वही पुराना काम. अब किसी छोटे गोपाली महाराज को ले कर परसों घर आ रही हैं.’’

‘‘क्या यहां ठहरेंगे?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘नहीं, ठहरेंगे तो किसी आश्रम में पर दीदी मुझ से मिलाने के लिए उन्हें घर लाएंगी.’’

दूसरे दिन शाम को ही जीजी का फोन आ गया.

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‘‘सुन, हम लोग आ गए हैं. मैं सावित्री आश्रम से बोल रही हूं… तुम्हारी कालोनी की सुषमाजी के घर महाराज सुबह आएंगे, फिर वहीं से तुम्हारे घर भी आने का उन का कार्यक्रम है. जगदंबा दादी और कृष्ण मोहन को भी बता देना, वरना बाद में वे मुझे उलाहना देंगे.’’

‘‘सीमा, इस कालोनी में कोई सुषमाजी हैं, दीदी उन के साथ आने को कह रही हैं. यह सुषमाजी कौन हैं?’’

‘‘अरे, वही जो संतोषी माता के मंदिर में भजन गा रही थीं. अपने खत्रीजी के घर से हैं.’’

उन का नाम आते ही मैं चौंका. मेरे सामने जलाशय विभाग के बड़े बाबू का चेहरा घूम गया.

दुबलेपतले से खत्री बाबू, हमेशा सुबह के समय अपने बच्चों के साथ घूमते हुए मिल जाते हैं. उन का बच्चा पहाड़े सुनाता चलता है. उन के तीनों बच्चे शायद दफ्तर के बाद खत्री बाबू के संगीसाथी हैं. यह राय मेरी अपनी नहीं बल्कि इस गली के सभी लोगों की है.

मैं ने थैला लिया और बाजार को चल दिया क्योंकि दीदी के आदेश के अनुसार मुझे मिठाई, मेवा और फल ले कर आने थे.

देर रात दरवाजे की घंटी बजते ही मैं समझ गया कि दीदी आ गई हैं.

दीदी ही थीं. बेहद प्रसन्न. दीदी अपने साथ आश्रम से प्रसाद लाई थीं. बच्चे उन का ही इंतजार कर रहे थे. उन्होंने थैला खोला और मिठाई का डब्बा व मेवे निकाल कर बच्चों के सामने रख दिए.

दीदी बड़े मन से गोपाली महाराज का गुणगान करते हुए कहने लगीं, ‘‘4 माह तक तो उन के पास समय ही नहीं है. एक भक्त ने जब 11,001 रुपए की भेंट दी तो बड़ी मुश्किल से महाराजजी ने अगले महीने में समय दिया है, वह भी तब जब सुषमाजी ने बहुत कहा है.

महाराज सुबह ही सुषमाजी के घर आ गए थे. वहीं दीदी भी चली गई थीं. जातेजाते भी अच्छी तरह से बता गईं कि घर को कैसे साफसुथरा कर के रखना है. उन का खास निर्देश था कि महाराज के सामने सब को जमीन पर ही बैठना होता है.

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सीमा ने कहा, ‘‘देखो, जीजी ने कहा कि मैं चाय बना दूंगी और आप को महाराज के पांव धोने हैं.’’

महाराज को साथ ले कर दीदी आ गईं. उन के साथ भक्तजन थे. लंबा कद, 35 साल के आसपास की उम्र, काले घने कंधे तक लटकते हुए केश. सफेद सिल्क का कुरतालुंगी. गोपाली महाराज के गले में छोटे रुद्राक्ष की सोने में गुथी हुई माला थी.

‘‘यह अशोक है, मेरा छोटा भाई,’’ दीदी ने कहा.

मैं ने आगे बढ़ कर चरण छुए.

महाराज बोले, ‘‘मेष राशि है जिस का मालिक मंगल होता है. आमदनी अच्छी है पर अभी राहु का प्रभाव है, तुम्हारी पत्नी का स्वास्थ्य कुछ नरम है, इसलिए परेशान हो.’’

महाराज ने अभी इतना ही बताया था कि भक्त लोगों के चेहरे खिल उठे थे.

सुषमाजी ने जयकारा लगाया तो एक तेज आवाज छोटे से ड्राइंगरूम में गूंज पड़ी.

‘‘जा,’’ दीदी ने इशारा किया तो मैं अंदर आ गया, सीमा की ओर देखा तो वह मेहमानों के लिए प्लेटों में मिठाई, मेवा व फल रख रही थी. गैस पर चाय का पानी उबल रहा था.

मैं ने चौकी उठाई और उसे कमरे में ले कर आ गया. फिर परात और लोटे में पानी ले आया.

‘‘अरे, इस की क्या जरूरत है,’’ महाराजजी बोले, ‘‘बहनजी, मैं ने तो वहां भी मना कर दिया था.’’

दीदी के आग्रह पर महाराजजी ने अपने दोनों पांव चौकी पर रखी परात में रख दिए. मैं ने लोटे से पानी डाल कर उन के धुले पांव तौलिए से साफ किए, फिर उस परात को भीतर ले चला.

अचानक ही आगे बढ़ कर सुषमाजी ने मेरे हाथ से परात ले ली और उस पानी को भक्त लोग अपनी उंगलियां डुबोडुबो कर अपने माथे और आंखों पर लगा रहेथे.

एक थाली में भोग का सारा सामान रख कर महाराज का भोग लगाया गया. महाराज शांत भाव से ध्यान मुद्रा में चले गए थे. 2 मिनट मौन रहा, फिर अचानक एक छोटी सी आरती की ध्वनि पीछे से आई. सुषमाजी का मधुर स्वर फिर से लय में गूंजने लगा था.

महाराज ने नेत्र खोले. सुषमाजी के पूरे खिले हुए चांद जैसे चेहरे को निहारते हुए उन्हें संकेत दिया तो वह तेजी से आगे बढ़ीं. उन्होंने अपनी मेवा की प्लेट उन के हाथ से सब को बांटने को पकड़ा दी तो वह पुलकित भाव से सब को प्रसाद बांटने लगीं.

महाराज कुछ समय रुके, फिर जिस भक्त के घर उन का विशेष कार्यक्रम था उस के साथ लंबी सी कार में बैठ कर चले गए.

‘‘मुझे तो दीदी का यह तरीका पसंद नहीं है,’’ सीमा झुंझला कर बोली, ‘‘तुम्हारी बड़ी बहन हैं, तुम ही करो और धूर्त संत को झेलो.

‘‘अखबार में नहीं पढ़ा, जब पाप और अपराध बढ़ जाते हैं तो महात्मा ही पैदा होते हैं. शायद इसीलिए देश में बढ़ते भ्रष्टाचार की तरह महात्मा भी बढ़ते जा रहे हैं. इस सुषमा को क्या हो गया है? देख लेना यह भी संन्यासिनी बनेगी.’’

रात को दीदी के फोन से पता चला कि वह महाराज के साथ पाटन चली गईं जहां एक कार्यक्रम है. उस में भाग ले कर वह करौली चली जाएंगी.

सुबह ही खत्रीजी ने आ कर दरवाजे की घंटी बजाई तो मैं पूछ बैठा, ‘‘क्या हुआ, खत्रीजी?’’

‘‘सुषमा नहीं है, लगता है, वह भी महाराज के साथ उज्जैन निकल गई. मैं ने तो आप से इसलिए पूछा था कि उस के साथ आप की बहन भी थीं.’’

खत्रीजी का दीनहीन चेहरा देख कर मुझे उन पर दया आ गई. मैं ने उन्हें भरोसा दिया कि मैं अपनी बहन से फोन पर बात कर के पता लगाने की कोशिश करूंगा कि सुषमाजी कहां हैं.

रात को दीदी को फोन किया तो पता चला कि वह महाराज के साथ उज्जैन चली गईं. साथ में उन्होंने यह भी बता दिया कि डरने की कोई बात नहीं है क्योंकि महाराज बहुत भले इनसान हैं.

मैं खत्रीजी के घर गया. वहां कोहराम मचा हुआ था. तीनों बच्चे गला फाड़ कर रो रहे थे. खत्री का चेहरा भी आंसुओं में डूबा हुआ था. बड़ा लड़का आले में रखी धार्मिक किताबें तथा देवीदेवताओं की तसवीरें आंगन में फेंकने जा रहा था. मुझे देखा तो रुक गया.

‘‘फोन आया,’’ खत्री ने पूछा.

‘‘हां, दीदी तो पाटन से सीधी करौली चली गई थीं, पर सुषमाजी उज्जैन चली गईं क्योंकि अब वे वहां का नया आश्रम संभालेंगी. मैं तो आप को सलाह दूंगा कि आप उज्जैन हो आएं.’’

‘‘पुलिस स्टेशन जाने की सोच रहा था,’’ खत्री बोले, ‘‘इस से बदनामी होगी यह सोच कर चुप रह गया. महल्ले वाले भी पूछने आए थे, तो मैं ने उन को यही बताया है कि आप की बहन के साथ गई हैं, आप कृपा कर…’’

‘‘दीदी का इस में कोई कुसूर नहीं है. वह तो खुद सुषमाजी से पहली बार यहीं मिली थीं.’’

‘‘हां, पर उसे समझा तो सकती थीं.’’

‘‘दीदी बता रही थीं कि उन्होंने सुषमाजी को बहुत समझाया पर उन का मन बहुत कड़ा हो चुका था. वह तो उन के सामने ही कार में बैठ कर चली गईं.’’

खत्री के यहां से लौटा तो पाया कि सीमा भी अपने भाई के साथ मायके जाने की तैयारी में है.

‘‘क्यों? तुम्हें क्या हो गया?’’

‘‘पूरे महल्ले में बदनामी हो रही है. अच्छी दीदी आईं, मैं तो मायके जा रही हूं. 2-4 दिन में बात ठंडी हो जाएगी तो आ जाऊंगी.’’

उधर उज्जैन पहुंचते ही सुषमाजी को अतिथि गृह में ठहरा दिया गया. छोटे गोपाली महाराज आश्रम की दिनचर्या में व्यस्त हो गए. उसी दिन उन के लिए भगवा रंग की सिल्क की साड़ी आ गई. केशों को ढंग से रंगने तथा खुले रखने की परंपरा और बोलते समय प्रभावोत्पादक भंगिमा की शिक्षा देने के लिए ब्यूटीशियन मोहिनीजी भी आ चुकी थीं. सुषमाजी का पूरा बदन उन की मेहनत से शाम तक निखर आया था. शाम को जब वह प्रार्थना भवन में पहुंचीं और अपने मधुर कंठ से मीरा का भजन, ‘मैं तो सांवरा के रंग राची’ गाया तो भक्त भावविभोर हो गए.

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छोटे गोपाली बाबू ने दूरदूर तक अपने गुरु भाइयों को मोबाइल पर यह सूचना दे दी थी. यही तय हुआ था कि आने वाली पूर्णमासी पर इन को दीक्षा दी जाएगी और इसी के साथ आश्रम की व्यवस्था भी सौंप दी जाएगी.

उसी रात माधवानंद ने आ कर सुषमा को जगाया जो उस समय गहरी नींद में सो रही थी.

‘‘कौन?’’

‘‘माधवानंद, आश्रम का सेवक.’’

‘‘क्या है?’’

‘‘आप के लिए यह मोबाइल पर संदेश है.’’

सुषमा ने फोन हाथ में ले कर कान से लगाया तो आवाज सुनाई पड़ी :

‘‘तुम मुझे नहीं जानतीं,’’ आवाज किसी महिला की थी, ‘‘तुम अपना घर, बच्चे क्यों छोड़ आईं, क्या पाओगी? ईश्वर…या कुछ और…सुनो, गोपाली पूरा बदमाश, व्यभिचारी है. दीक्षा का मतलब समझती हो, वह तुम्हारा सर्वस्व छीन लेगा. तुम कहीं की नहीं रहोगी. सारी उम्र पाप भावना से लड़ती रहोगी, यह सब छल है, छलावा है, इस से दूर रहो…’’

‘‘आप…’’

‘‘मैं उस की पत्नी हूं. महेश्वर से बोल रही हूं. तुम्हारी बड़ी बहन हूं. उस ने मुझे नहीं छोड़ा, मैं ने और मेरे बच्चे ने उसे छोड़ दिया है. यह आश्रम ही मेरा घर है, जमीन है. बच्चा उज्जैन में पढ़ रहा है, उस ने ही बताया था.

‘‘तुम्हारे बच्चे तुम्हारे बिना रह नहीं पाएंगे, बहन. घर जाओ और हां, जब छुट्टियां हों तब अपने बच्चों और पति को ले कर यहां आना. जगह सुंदर है, मुझे तुम्हारी प्रतीक्षा रहेगी.

‘‘माधवानंद पर भरोसा करो, वह मेरा अपना खास आदमी है. वहां से निकलने के लिए तुम्हारे कमरे के पास जो बरामदा है वहां एक दरवाजा है, जो पीछे गली में खुलता है. उसी रास्ते से बाहर निकल जाओ. बस स्टैंड पर कमलाकर मिल जाएगा.’’

‘‘कमलाकर?’’

‘‘तुम्हारा भानजा, तुम्हें वह टिकट दे देगा, उस ने खरीद लिया है…शुभ रात्रि,’’ और फोन कट गया था.

सुषमाजी को इस के बाद कुछ पता नहीं. भजन, पूजन सब कहीं दूर छूट चुका था. वह उस अंधेरी गली में माधवानंद का हाथ पकड़े दौड़ती चली जा रही थीं. बस स्टैंड पर कब पहुंचीं, कुछ पता नहीं. हां, वह सुंदर सा लड़का जिस ने उन के पांव छू कर टिकट व रुपए हाथ में दिए, उसे वह अब तक नहीं भूल पाई हैं.

सुबह खत्रीजी उसी तरह अपने छोटे बेटे के साथ पार्क में घूम रहे थे.

बड़ा लड़का स्कूल बस की प्रतीक्षा में लैंप पोस्ट के नीचे खड़ा था और सुषमाजी भीतर से हाथ में लंच बाक्स लिए तेजी से बाहर आ रही थीं.

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Crime Story : गहरी साजिश

सौजन्या-मनोहर कहानियां

सूरज पिछले महीने से बहुत परेशान था. इस की वजह यह थी कि महीने भर के अंदर उस के दादा महेंद्र और 21 वर्षीय बहन प्रीति की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई थी. उसे रहरह कर शक होता था कि दोनों की मौत स्वाभाविक नहीं हुई, बल्कि उन्हें साजिशन मारा गया है. अपने मन की बात वह घर में किसी से कह भी नहीं पा रहा था.

सोचसोच कर जब वह काफी परेशान रहने लगा तो एक दिन अपने नजदीकी थाना झबरेड़ा पहुंच गया. यह थाना उत्तराखंड के जिला हरिद्वार के अंतर्गत आता है.उस ने थानाप्रभारी रविंद्र कुमार से मुलाकात कर अपने मन की बात बताई. सूरज ने बताया कि वह मानकपुर आदमपुर में रहता है और एक कंपनी में काम करता है. उस ने बताया कि उस के दादा महेंद्र (70 साल) पूरी तरह स्वस्थ थे. वह 2 नवंबर, 2020 की रात को खाना खा कर सोए थे और अगली सुबह बिस्तर पर मृत मिले. इसी तरह 6 दिसंबर, 2020 की सुबह को उस की 21 वर्षीय बहन प्रीति भी बिस्तर पर मृत मिली. इन दोनों की स्वाभाविक मौत पर उसे शक है.

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‘‘तुम्हारे घर में कौनकौन रहता है?’’ थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने उस से पूछा ‘‘सर अब तो मेरी परिवार में केवल मेरी बीबी रिया, मेरी 2 वर्षीया बेटी सोनी तथा मेरी मां कैमता ही हैं. वर्ष 2014 में मेरे पिता अरविंद कुमार की हार्टअटैक से मौत हो चुकी है.’’ सूरज ने बताया  ‘‘तुम्हारी शादी कब हुई थी?’’

‘‘सर मेरी शादी साल 2018 में सहारनपुर के गांव दुगचाड़ी निवासी रिया उर्फ अन्नू के साथ हुई थी. मेरे घर में दुलहन बन कर आने के बाद रिया अकसर चिल्लाने लगती थी और कहती थी कि मुझे कोई प्रेतात्मा बुला रही है. वह मुझे अपने साथ ले जाने के लिए कह रही है. इस तरह से रिया का चीखनाचिल्लाना अभी तक जारी है.’’ सूरज बोला ‘क्या तुम्हें किसी पर शक है?’’ रविंद्र कुमार ने पूछा.

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‘‘हां सर, मुझे शादी के बाद से ही मेरी बीवी रिया द्वारा प्रेतात्मा का डर दिखा कर डराया जाता रहा है. इस के अलावा हमारे पड़ोस में रहने वाले युवक रोहित उर्फ राजू से मेरी बीबी रिया की नजदीकियां पिछले साल से काफी बढ़ गई हैं. मुझे कुछ महीने पहले मेरे पड़ोसियों से पता चला कि मेरी रात की ड्यूटी के दौरान रोहित अकसर हमारे घर आता है.’’ सूरज बोला‘तुम्हें अपनी पत्नी पर ही शक क्यों है?’’ रविंद्र कुमार बोले

‘‘10 दिन पहले रिया गांव दुगचाड़ी अपने स्थित मायके गई थी. इसी दौरान मैं कुशलक्षेम पूछने के लिए रिया का को फोन करता था, तो उस का नंबर कई बार 20-25 मिनट तक बिजी मिलता था. वह शायद अपने प्रेमी रोहित से ही बात करती होगी. मुझे शक है कि उसी ने ही कोई साजिश रची होगी.’’

इस के बाद थानाध्यक्ष रविंद्र कुमार ने सूरज से पूछ कर उस की बीवी रिया व उस का मोबाइल नंबर नोट कर लिया और उसे यह कहते हुए घर भेज दिया कि हम पहले इस प्रकरण की अपने स्तर से जांच कर लें, इस के बाद कानूनी काररवाई करेंगे. सूरज के जाने के बाद रविंद्र सिंह ने इस मामले की जानकारी सीओ अभय प्रताप सिंह व एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह को दी.

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इस मामले में हरिद्वार के एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह ने रविंद्र कुमार से कहा कि चूंकि महेंद्र व प्रीति की मौत को सामान्य मानते हुए उन के परिजन पहले ही उन का अंतिम संस्कार कर चुके हैं, अत: अब इस मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट का तो प्रश्न ही नहीं उठता. फिलहाल तुम रिया व रोहित के मोबाईलों की पिछले 2 महीनों की कालडिटेस निकलवा लो और मुखबिरों से भी जानकारी हासिल करो.

रविंद्र कुमार ने ऐसा ही किया. 2 दिन बाद पुलिस को रिया व रोहित के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स भी मिल गई. पता चला कि रोहित और रिया की वक्तबेवक्त काफी देर तक बातें हुआ करती थीं. मुखबिरों से जानकारी मिली कि रोहित सहारनपुर के गांव मुंडीखेड़ी के रहने वाले रतन का बेटा है.

काफी पहले से वह अपने नाना के घर गांव मानकपुर आदमपुर में रहता है. रोहित अपराधी किस्म का है तथा उस के खिलाफ सहारनपुर व मुजफ्फरनगर जिलों के कई थानों में चोरी, जालसाजी व धमकी देने के मुकदमे दर्ज हैं.यह जानकारी थानाप्रभारी रविंद्र सिंह ने सीओ अभय प्रताप सिंह को दी, तो उन्होंने तत्काल रिया व रोहित को पूछताछ के लिए हिरासत में लेने के निर्देश दिए. तब रविंद्र कुमार ने सूरज को मिलने के लिए थाने में आने को कहा, लेकिन सूरज थाने नहीं आया.

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इस के बाद 16 दिसंबर, 2020 को थानाप्रभारी रविंद्र कुमार, एसआई संजय नेगी, मोहन कठैत, कांस्टेबल नूर मलिक व मोहित ने रोहित को उस के घर के पास से गिरफ्तार कर लिया.थाने ला कर उस से महेंद्र व प्रीति की रहस्मय मौतों के बारे में पूछताछ की. पूछताछ के दौरान रोहित अनभिज्ञता जताता रहा. अगले दिन पुलिस ने रिया को भी उस के घर से हिरासत में ले लिया. थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने जब रोहित व रिया को आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की तो दोनों थरथर कांपने लगे. इस के बाद रिया व रोहित ने महेंद्र व प्रीति की मौत के मामले में अपनी अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली.

रिया ने पुलिस को बताया कि काफी पहले से वह नशे की आदी थी और खुद पर प्रेतात्मा आने का नाटक करती रहती थी. पति सूरज उस की और कम ध्यान देता था. उस ने बताया कि वह अकसर पड़ोस में रहने वाले रोहित से बातें करती थी. धीरेधीरे उन दोनों में प्यार हो गया था. कुछ दिनों बाद दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए थे.

रिया ने बताया कि वह और रोहित नशे की गोलियों का सेवन करते थे. जिस दिन मेरा पति सूरज रात की ड्यूटी पर फैक्ट्री जाता था तो वह अपनी सास व ससुर को रात के खाने में नींद की गोलियां डाल कर खिला देती थी. जब वे दोनों नशे में सो जाते थे तो फोन कर के रोहित को अपने घर बुला लेती थी.लेकिन एक दिन रात को ददिया ससुर महेंद्र ने रोहित को घर से निकलते हुए देख लिया था. अपनी पोल खुलने के डर से वह घबरा गई और इस के बाद उस ने व रोहित ने ददिया ससुर महेंद्र की हत्या की योजना बनाई.

2 नवंबर, 2020 की रात को योजना के अनुसार, उस ने अपनी सास व ददिया ससुर महेंद्र के खाने में नींद की गोलियां मिला कर उन्हें खाना खिला दीं. उस दिन उस का पति सूरज रात की ड्यूटी पर फैक्ट्री गया हुआ था. उस रात रोहित उस के घर आ गया था. इस के बाद उन दोनों ने महेंद्र की तकिए से मुंह दबा कर हत्या कर दी.

इस के बाद दोनों ने महेंद्र के शव को चारपाई पर लिटा कर उन के ऊपर चादर डाल दी थी, जिस से परिजन उसे सामान्य मौत समझें और किसी को शक न हो. अगले दिन महेंद्र की मौत को सूरज और उस के घर वालों ने सामान्य मौत समझते हुए उन का अंतिम संस्कार कर दिया था.दादा महेंद्र की मौत के बाद सूरज ने फैक्ट्री जाना छोड़ दिया था और घर पर ही रहने लगा था. दादा की मौत के बाद सूरज को लगता था कि दादा महेंद्र एकदम ठीकठाक थे, कोई बीमारी भी नहीं थी तो अचानक उन की मृत्यु कैसे हो गई. वह दादा को बहुत चाहता था, इसलिए उन की मौत के बाद उसे बहुत दुख हुआ.

सूरज की एक बहन थी प्रीति, जो भटौल गांव में रहने वाले मामा के घर रह कर पढ़ाई कर रही थी. वह बीए अंतिम वर्ष में थी. सूरज ने उसे मामा के घर से बुला लिया.ददिया ससुर की हत्या के आरोप से रिया साफ बच गई थी क्योंकि घर वालों ने उन की मौत को स्वाभाविक मान लिया था, इसलिए रिया की हिम्मत बढ़ गई थी. प्रेमी रोहित से उस का मिलना पहले की तरह जारी रहा.

वह घर के सभी लोगों को खाने में नींद की गोलियां देने के बाद प्रेमी को अपने घर बुला लेती. लेकिन एक रात प्रीति की नींद खुल गई तो उस ने भाभी के कमरे से किसी मर्द की आवाज सुनी.प्रीति को शक हुआ कि जब सूरज भैया रात की ड्यूटी पर गए हैं तो भाभी के कमरे में मर्द कौन है. उस ने खिड़की से झांका तो कमरे में उस की भाभी रोहित के साथ मौजमस्ती कर रही थी.

इसी बीच रिया को आहट हुई तो वह फटाफट कपड़े पहन कर दरवाजे के बाहर आई तो उस ने प्रीति को वहां से अपने कमरे की तरफ जाते देखा. इस से रिया को शक हो गया कि प्रीति ने उसे रोहित के साथ देख लिया है.यह बात उस ने प्रेमी रोहित को बताई तो रोहित ने दादा की तरह प्रीति को भी ठिकाने लगाने की सलाह दी. रिया इस के लिए तैयार हो गई. इस के बाद रिया ने दादा महेंद्र की तरह प्रीति को भी ठिकाने लगाने की योजना बनाई ताकि प्रेमी से उस के मिलन में कोई बाधा न आए.

सूरज रात की ड्यूटी पर गया था. रिया ने मौका देख कर योजना के मुताबिक 5 दिसंबर, 2020 को अपनी सास व प्रीति के खाने में नींद की गोलियां मिला कर दे दीं. रात को जब प्रीति को नींद आ गई तो रिया ने रोहित के साथ मिल कर तकिए से प्रीति का दम घोट हत्या कर दी. इस के बाद रोहित चला गया. फिर रिया ने स्वयं पर प्रेतात्मा आने का नाटक करते हुए चीखनाचिल्लाना शुरू कर दिया. पति के घर आने पर उस ने कहा कि प्रीति को कुछ हो गया है.

रिया ने पुलिस को आगे बताया कि वह रोहित से अपने अवैध संबंधों को छिपाने के लिए खुद पर प्रेतात्मा के आने का नाटक करती रही थी. वह अपने पति के साथ खुश नहीं थी. उसे जब कभी पैसों की जरूरत होती तो वह सूरज से नहीं बल्कि रोहित से पैसे लेती थी. सूरज के साथ उस का वैवाहिक जीवन कभी सुखी नहीं रहा.रिया और उस के प्रेमी रोहित से पूछताछ के बाद पुलिस ने रिया की निशानदेही पर घटना में इस्तेमाल शेष बची नींद की गोलियां तथा गला दबाने में प्रयुक्त तकिया बरामद कर लिया.

पुलिस ने सूरज की तहरीर पर भादंवि की धाराओं 302, 201 व 120बी के तहत मामला दर्ज कर लिया. एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह ने अगले दिन कोतवाली रुड़की में आयोजित प्रैसवार्ता के दौरान महेंद्र व प्रीति की रहस्यमय मौतों का खुलासा किया.

आरोपी रिया व रोहित को मीडिया के सामने पेश किया गया. इस के बाद पुलिस ने रोहित व रिया को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. कहते हैं कि गुनाह छिपाए नहीं छिपता. एक न एक दिन सामने आ ही जाता है. ऐसा ही कुछ रिया व रोहित के मामले में भी देखने को मिला. जब रात को महेंद्र ने रिया को रोहित के साथ देखा था तो दोनों ने पहले उन्हें रास्ते से हटा दिया तथा इस के बाद जब उन्हें रंगरलियां मनाते हुए प्रीति ने देखा, तो उन्होंने प्रीति को भी सुनियोजित ढंग से मार डाला था.

सूरज अपने दादा व बहन की मौत के कारण दुखी था और वह ड्यूटी पर भी नहीं जा रहा था, जबकि रिया भविष्य में अपने पति सूरज को भी मारने का तानाबाना बुन रही थी. यदि सूरज रिया की गतिविधियों पर शक होने के पर पुलिस के पास न जाता तो न ही ये केस खुलता और रिया व रोहित का अगला शिकार सूरज खुद बन जाता.

हरिद्वार के एसएसपी सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस ने महेंद्र व प्रीति की मौत से परदा उठाने वाली टीम को ढाई हजार रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा की.

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