Download App

Crime Story : गहरी साजिश

सौजन्या-मनोहर कहानियां

सूरज पिछले महीने से बहुत परेशान था. इस की वजह यह थी कि महीने भर के अंदर उस के दादा महेंद्र और 21 वर्षीय बहन प्रीति की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई थी. उसे रहरह कर शक होता था कि दोनों की मौत स्वाभाविक नहीं हुई, बल्कि उन्हें साजिशन मारा गया है. अपने मन की बात वह घर में किसी से कह भी नहीं पा रहा था.

सोचसोच कर जब वह काफी परेशान रहने लगा तो एक दिन अपने नजदीकी थाना झबरेड़ा पहुंच गया. यह थाना उत्तराखंड के जिला हरिद्वार के अंतर्गत आता है.उस ने थानाप्रभारी रविंद्र कुमार से मुलाकात कर अपने मन की बात बताई. सूरज ने बताया कि वह मानकपुर आदमपुर में रहता है और एक कंपनी में काम करता है. उस ने बताया कि उस के दादा महेंद्र (70 साल) पूरी तरह स्वस्थ थे. वह 2 नवंबर, 2020 की रात को खाना खा कर सोए थे और अगली सुबह बिस्तर पर मृत मिले. इसी तरह 6 दिसंबर, 2020 की सुबह को उस की 21 वर्षीय बहन प्रीति भी बिस्तर पर मृत मिली. इन दोनों की स्वाभाविक मौत पर उसे शक है.

ये भी पढ़ें- Crime Story: सिंघम चाची

‘‘तुम्हारे घर में कौनकौन रहता है?’’ थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने उस से पूछा ‘‘सर अब तो मेरी परिवार में केवल मेरी बीबी रिया, मेरी 2 वर्षीया बेटी सोनी तथा मेरी मां कैमता ही हैं. वर्ष 2014 में मेरे पिता अरविंद कुमार की हार्टअटैक से मौत हो चुकी है.’’ सूरज ने बताया  ‘‘तुम्हारी शादी कब हुई थी?’’

‘‘सर मेरी शादी साल 2018 में सहारनपुर के गांव दुगचाड़ी निवासी रिया उर्फ अन्नू के साथ हुई थी. मेरे घर में दुलहन बन कर आने के बाद रिया अकसर चिल्लाने लगती थी और कहती थी कि मुझे कोई प्रेतात्मा बुला रही है. वह मुझे अपने साथ ले जाने के लिए कह रही है. इस तरह से रिया का चीखनाचिल्लाना अभी तक जारी है.’’ सूरज बोला ‘क्या तुम्हें किसी पर शक है?’’ रविंद्र कुमार ने पूछा.

ये भी पढ़ें- Crime Story: प्यार पर जोर नहीं

‘‘हां सर, मुझे शादी के बाद से ही मेरी बीवी रिया द्वारा प्रेतात्मा का डर दिखा कर डराया जाता रहा है. इस के अलावा हमारे पड़ोस में रहने वाले युवक रोहित उर्फ राजू से मेरी बीबी रिया की नजदीकियां पिछले साल से काफी बढ़ गई हैं. मुझे कुछ महीने पहले मेरे पड़ोसियों से पता चला कि मेरी रात की ड्यूटी के दौरान रोहित अकसर हमारे घर आता है.’’ सूरज बोला‘तुम्हें अपनी पत्नी पर ही शक क्यों है?’’ रविंद्र कुमार बोले

‘‘10 दिन पहले रिया गांव दुगचाड़ी अपने स्थित मायके गई थी. इसी दौरान मैं कुशलक्षेम पूछने के लिए रिया का को फोन करता था, तो उस का नंबर कई बार 20-25 मिनट तक बिजी मिलता था. वह शायद अपने प्रेमी रोहित से ही बात करती होगी. मुझे शक है कि उसी ने ही कोई साजिश रची होगी.’’

इस के बाद थानाध्यक्ष रविंद्र कुमार ने सूरज से पूछ कर उस की बीवी रिया व उस का मोबाइल नंबर नोट कर लिया और उसे यह कहते हुए घर भेज दिया कि हम पहले इस प्रकरण की अपने स्तर से जांच कर लें, इस के बाद कानूनी काररवाई करेंगे. सूरज के जाने के बाद रविंद्र सिंह ने इस मामले की जानकारी सीओ अभय प्रताप सिंह व एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह को दी.

ये भी पढ़ें- Crime Story: मुझसे शादी करोगी?

इस मामले में हरिद्वार के एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह ने रविंद्र कुमार से कहा कि चूंकि महेंद्र व प्रीति की मौत को सामान्य मानते हुए उन के परिजन पहले ही उन का अंतिम संस्कार कर चुके हैं, अत: अब इस मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट का तो प्रश्न ही नहीं उठता. फिलहाल तुम रिया व रोहित के मोबाईलों की पिछले 2 महीनों की कालडिटेस निकलवा लो और मुखबिरों से भी जानकारी हासिल करो.

रविंद्र कुमार ने ऐसा ही किया. 2 दिन बाद पुलिस को रिया व रोहित के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स भी मिल गई. पता चला कि रोहित और रिया की वक्तबेवक्त काफी देर तक बातें हुआ करती थीं. मुखबिरों से जानकारी मिली कि रोहित सहारनपुर के गांव मुंडीखेड़ी के रहने वाले रतन का बेटा है.

काफी पहले से वह अपने नाना के घर गांव मानकपुर आदमपुर में रहता है. रोहित अपराधी किस्म का है तथा उस के खिलाफ सहारनपुर व मुजफ्फरनगर जिलों के कई थानों में चोरी, जालसाजी व धमकी देने के मुकदमे दर्ज हैं.यह जानकारी थानाप्रभारी रविंद्र सिंह ने सीओ अभय प्रताप सिंह को दी, तो उन्होंने तत्काल रिया व रोहित को पूछताछ के लिए हिरासत में लेने के निर्देश दिए. तब रविंद्र कुमार ने सूरज को मिलने के लिए थाने में आने को कहा, लेकिन सूरज थाने नहीं आया.

ये भी पढ़ें- Crime Story: समुद्र से सागर तक

इस के बाद 16 दिसंबर, 2020 को थानाप्रभारी रविंद्र कुमार, एसआई संजय नेगी, मोहन कठैत, कांस्टेबल नूर मलिक व मोहित ने रोहित को उस के घर के पास से गिरफ्तार कर लिया.थाने ला कर उस से महेंद्र व प्रीति की रहस्मय मौतों के बारे में पूछताछ की. पूछताछ के दौरान रोहित अनभिज्ञता जताता रहा. अगले दिन पुलिस ने रिया को भी उस के घर से हिरासत में ले लिया. थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने जब रोहित व रिया को आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की तो दोनों थरथर कांपने लगे. इस के बाद रिया व रोहित ने महेंद्र व प्रीति की मौत के मामले में अपनी अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली.

रिया ने पुलिस को बताया कि काफी पहले से वह नशे की आदी थी और खुद पर प्रेतात्मा आने का नाटक करती रहती थी. पति सूरज उस की और कम ध्यान देता था. उस ने बताया कि वह अकसर पड़ोस में रहने वाले रोहित से बातें करती थी. धीरेधीरे उन दोनों में प्यार हो गया था. कुछ दिनों बाद दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए थे.

रिया ने बताया कि वह और रोहित नशे की गोलियों का सेवन करते थे. जिस दिन मेरा पति सूरज रात की ड्यूटी पर फैक्ट्री जाता था तो वह अपनी सास व ससुर को रात के खाने में नींद की गोलियां डाल कर खिला देती थी. जब वे दोनों नशे में सो जाते थे तो फोन कर के रोहित को अपने घर बुला लेती थी.लेकिन एक दिन रात को ददिया ससुर महेंद्र ने रोहित को घर से निकलते हुए देख लिया था. अपनी पोल खुलने के डर से वह घबरा गई और इस के बाद उस ने व रोहित ने ददिया ससुर महेंद्र की हत्या की योजना बनाई.

2 नवंबर, 2020 की रात को योजना के अनुसार, उस ने अपनी सास व ददिया ससुर महेंद्र के खाने में नींद की गोलियां मिला कर उन्हें खाना खिला दीं. उस दिन उस का पति सूरज रात की ड्यूटी पर फैक्ट्री गया हुआ था. उस रात रोहित उस के घर आ गया था. इस के बाद उन दोनों ने महेंद्र की तकिए से मुंह दबा कर हत्या कर दी.

इस के बाद दोनों ने महेंद्र के शव को चारपाई पर लिटा कर उन के ऊपर चादर डाल दी थी, जिस से परिजन उसे सामान्य मौत समझें और किसी को शक न हो. अगले दिन महेंद्र की मौत को सूरज और उस के घर वालों ने सामान्य मौत समझते हुए उन का अंतिम संस्कार कर दिया था.दादा महेंद्र की मौत के बाद सूरज ने फैक्ट्री जाना छोड़ दिया था और घर पर ही रहने लगा था. दादा की मौत के बाद सूरज को लगता था कि दादा महेंद्र एकदम ठीकठाक थे, कोई बीमारी भी नहीं थी तो अचानक उन की मृत्यु कैसे हो गई. वह दादा को बहुत चाहता था, इसलिए उन की मौत के बाद उसे बहुत दुख हुआ.

सूरज की एक बहन थी प्रीति, जो भटौल गांव में रहने वाले मामा के घर रह कर पढ़ाई कर रही थी. वह बीए अंतिम वर्ष में थी. सूरज ने उसे मामा के घर से बुला लिया.ददिया ससुर की हत्या के आरोप से रिया साफ बच गई थी क्योंकि घर वालों ने उन की मौत को स्वाभाविक मान लिया था, इसलिए रिया की हिम्मत बढ़ गई थी. प्रेमी रोहित से उस का मिलना पहले की तरह जारी रहा.

वह घर के सभी लोगों को खाने में नींद की गोलियां देने के बाद प्रेमी को अपने घर बुला लेती. लेकिन एक रात प्रीति की नींद खुल गई तो उस ने भाभी के कमरे से किसी मर्द की आवाज सुनी.प्रीति को शक हुआ कि जब सूरज भैया रात की ड्यूटी पर गए हैं तो भाभी के कमरे में मर्द कौन है. उस ने खिड़की से झांका तो कमरे में उस की भाभी रोहित के साथ मौजमस्ती कर रही थी.

इसी बीच रिया को आहट हुई तो वह फटाफट कपड़े पहन कर दरवाजे के बाहर आई तो उस ने प्रीति को वहां से अपने कमरे की तरफ जाते देखा. इस से रिया को शक हो गया कि प्रीति ने उसे रोहित के साथ देख लिया है.यह बात उस ने प्रेमी रोहित को बताई तो रोहित ने दादा की तरह प्रीति को भी ठिकाने लगाने की सलाह दी. रिया इस के लिए तैयार हो गई. इस के बाद रिया ने दादा महेंद्र की तरह प्रीति को भी ठिकाने लगाने की योजना बनाई ताकि प्रेमी से उस के मिलन में कोई बाधा न आए.

सूरज रात की ड्यूटी पर गया था. रिया ने मौका देख कर योजना के मुताबिक 5 दिसंबर, 2020 को अपनी सास व प्रीति के खाने में नींद की गोलियां मिला कर दे दीं. रात को जब प्रीति को नींद आ गई तो रिया ने रोहित के साथ मिल कर तकिए से प्रीति का दम घोट हत्या कर दी. इस के बाद रोहित चला गया. फिर रिया ने स्वयं पर प्रेतात्मा आने का नाटक करते हुए चीखनाचिल्लाना शुरू कर दिया. पति के घर आने पर उस ने कहा कि प्रीति को कुछ हो गया है.

रिया ने पुलिस को आगे बताया कि वह रोहित से अपने अवैध संबंधों को छिपाने के लिए खुद पर प्रेतात्मा के आने का नाटक करती रही थी. वह अपने पति के साथ खुश नहीं थी. उसे जब कभी पैसों की जरूरत होती तो वह सूरज से नहीं बल्कि रोहित से पैसे लेती थी. सूरज के साथ उस का वैवाहिक जीवन कभी सुखी नहीं रहा.रिया और उस के प्रेमी रोहित से पूछताछ के बाद पुलिस ने रिया की निशानदेही पर घटना में इस्तेमाल शेष बची नींद की गोलियां तथा गला दबाने में प्रयुक्त तकिया बरामद कर लिया.

पुलिस ने सूरज की तहरीर पर भादंवि की धाराओं 302, 201 व 120बी के तहत मामला दर्ज कर लिया. एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह ने अगले दिन कोतवाली रुड़की में आयोजित प्रैसवार्ता के दौरान महेंद्र व प्रीति की रहस्यमय मौतों का खुलासा किया.

आरोपी रिया व रोहित को मीडिया के सामने पेश किया गया. इस के बाद पुलिस ने रोहित व रिया को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. कहते हैं कि गुनाह छिपाए नहीं छिपता. एक न एक दिन सामने आ ही जाता है. ऐसा ही कुछ रिया व रोहित के मामले में भी देखने को मिला. जब रात को महेंद्र ने रिया को रोहित के साथ देखा था तो दोनों ने पहले उन्हें रास्ते से हटा दिया तथा इस के बाद जब उन्हें रंगरलियां मनाते हुए प्रीति ने देखा, तो उन्होंने प्रीति को भी सुनियोजित ढंग से मार डाला था.

सूरज अपने दादा व बहन की मौत के कारण दुखी था और वह ड्यूटी पर भी नहीं जा रहा था, जबकि रिया भविष्य में अपने पति सूरज को भी मारने का तानाबाना बुन रही थी. यदि सूरज रिया की गतिविधियों पर शक होने के पर पुलिस के पास न जाता तो न ही ये केस खुलता और रिया व रोहित का अगला शिकार सूरज खुद बन जाता.

हरिद्वार के एसएसपी सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस ने महेंद्र व प्रीति की मौत से परदा उठाने वाली टीम को ढाई हजार रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा की.

कीमत संस्कारों की-भाग 1: हैरीसन परिवार होने के बावजूद भी अकेले क्यों थे?

‘सौरी डैड, मुझे पता है कि आप ने मुझे एक घंटा पहले बुलाया था, पर उस समय मुझे अपनी महिला मित्र को फोन करना था. चूंकि उस के पास यही समय ऐसा होता है कि मैं उस से बात कर सकता हूं इसलिए मैं आप के बुलावे को टाल गया था. अब बताइए कि आप किस काम के लिए मुझे बुला रहे थे.’’

‘‘कोई खास नहीं,’’ दीनप्रभु ने कहा, ‘‘दवा लेने के लिए मुझे पानी चाहिए था. तुम आए नहीं तो मैं ने दवा की गोली बगैर पानी के ही निगल ली.’’

‘‘डैड, आप ने यह बड़ा ही अच्छा काम किया. वैसे भी इनसान को दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. मैं कल से पानी का पूरा जार ही आप के पास रख दिया करूंगा.’’

हैरीसन के जाने के बाद दीनप्रभु सोचने लगे कि इनसान के जीवन की वास्तविक परिभाषा क्या है? और वह किस के लिए बनाया गया है. क्या वह बनाने वाले के हाथ का एक ऐसा खिलौना है जिस को बनाबना कर वह बिगाड़ता और तोड़ता रहता है और अपना मनोरंजन करता है.

इनसान केवल अपने लिए जीता है तो उस को ऐसा कौन सा सुख मिल जाता है, जिस की व्याख्या नहीं की जा सकती और यदि दूसरों के लिए जीता है तो उस के इस समर्पित जीवन की अवहेलना क्यों कर दी जाती है. यह कितना कठोर सच है

कि इनसान अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कठिन से कठिन परिश्रम करता है. वह दूसरों को रास्ता दिखाता है मगर जब वह खुद ही अंधकार का शिकार होने लगता है तो उसे एहसास होता है कि प्रवचनों में सुनी बातें सरासर झूठ हैं.

हैरीसन घर से जा चुका था. कमरे में एक भरपूर सन्नाटा पसरा पड़ा था. दीनप्रभु के लिए यह स्थिति अब कोई नई बात नहीं थी. ऐसा वह पिछले कई सालों से अपने परिवार में देखते आ रहे थे मगर दुख केवल इसी बात का कि जो कुछ देखने की कल्पना कर के वह विदेश में आ बसे थे उस के स्थान पर वह कुछ और ही देखने को मजबूर हो गए. भरेपूरे परिवार में पत्नी और बच्चों के रहते हुए भी वह अकेला जीवन जी रहे थे.

अपने मातापिता, बहनभाइयों के लिए उन्होंने क्या कुछ नहीं किया. सब को रास्ता दिखा कर उन के घरों को आबाद किया और जब आज उन की खुद की बारी आई तो उन की डगमगाती जीवन नैया की पतवार को संभालने वाला कोई नजर नहीं आता था. सोचतेसोचते दीनप्रभु को अपने अतीत के दिन याद आने लगे.

भारत में वह दिल्ली के सदर बाजार के निवासी थे. पिताजी स्कृल में प्रधानाचार्य थे. वह अपने 7 भाईबहनों में सब से बड़े थे. परिवार की आर्थिक स्थिति संभालने का जरिया नौकरी के अलावा सदर बाजार की वह दुकान थी जिस पर लोहा, सीमेंट आदि सामान बेचा जाता था. इस दुकान को उन के पिता, वह और उन के दूसरे भाई बारीबारी से बैठ कर चलाया करते थे.

संयुक्त परिवार था तो सबकुछ सामान्य और ठीक चल रहा था मगर जब भाइयों की पत्नियां घर में आईं और बंटवारा हुआ तो सब से पहले दुकान के हिस्से हुए, फिर घर बांटा गया और फिर बाद में सब अपनेअपने किनारे होने लगे.

इस बंटवारे का प्रभाव ऐसा पड़ा कि बंटी हुई दुकान में भी घाटा होने लगा. एकएक कर दुकानें बंद हो गईं. परिवार में टूटन और बिखराव के साथ अभावों के दिन दिखाई देने लगे तो दीनप्रभु के मातापिता ने भी अपनी आंखें सदा के लिए बंद कर लीं. अभी उन के मातापिता के मरने का दुख समाप्त भी नहीं हुआ था कि एक दिन उन की पत्नी अचानक दिल के दौरे से निसंतान ही चल बसीं. दीनप्रभु अकेले रह गए. किसी प्रकार स्वयं को समझाया और जीवन के संघर्षों के लिए खुद को तैयार किया.

दीनप्रभु के सामने अब अपनी दोनों सब से छोटी बहनों की पढ़ाई और फिर उन की शादियों का उत्तरदायित्व आ गया. उन्हें यह भी पता था कि उन के भाई इस लायक नहीं कि वे कुछ भी आर्थिक सहायता कर सकें. इन्हीं दिनों दीनप्रभु को स्कूल की तरफ से अमेरिका आने का अवसर मिला तो वह यहां चले आए.

अमेरिका में रहते हुए ही दीनप्रभु ने यह सोच लिया कि अगर वह कुछ दिन और इस देश में रह गए तो इतना धन कमा लेंगे जिस से बहनों की न केवल शादी कर सकेंगे बल्कि अपने परिवार की गरीबी भी दूर करने में सफल हो जाएंगे.

अमेरिका में बसने का केवल एक ही सरल उपाय था कि वह यहीं की किसी स्त्री से विवाह करें और फिर यह शार्र्टकट रास्ता उन्हें सब से आसान और बेहतर लगा. अपनी सोच को अंजाम देने के लिए दीनप्रभु अमेरिकन लड़कियों के वैवाहिक विज्ञापन देखने  लगे. इत्तफाक से उन की बात एक लड़की के साथ बन गई. वह थी तो  तलाकशुदा पर उम्र में दीनप्रभु के बराबर ही थी. इस शादी का एक कारण यह भी था कि लड़की के परिवार वालों की इच्छा थी कि वह अपनी बेटी का विवाह किसी भारतीय युवक से करना चाहते थे, क्योंकि उन की धारणा थी कि पारिवारिक जीवन के लिए भारतीय संस्कृति और संस्कारों में पला हुआ युवक अधिक विश्वासी और अपनी पत्नी के प्रति ईमानदार होता है.

ये भी पढ़ें- अपराधबोध

एक दिन दीनप्रभु का विवाह हो गया और तब उन की दूसरी पत्नी लौली उन के जीवन में आ गई. विवाह के बाद शुरू के दिन तो दोनों को एकदूसरे को समझने में ही गुजर गए. यद्यपि लौली उन की पत्नी थी मगर हरेक बात में सदा ही उन से आगे रहा करती, क्योेंकि वह अमेरिकी जीवन की अभ्यस्त हो चुकी थी. दीनप्रभु वहां कुछ सालों से रह जरूर रहे थे पर वहां के माहौल से वह इतने अनुभवी नहीं थे कि अपनेआप को वहां की जीवनशैली का अभ्यस्त बना लेते. उन की दशा यह थी कि जब भी कोई फोन आता था तो केवल अंगरेजी की समस्या के चलते वे उसे उठाते हुए भी डरते थे. शायद उन की पत्नी लौली इस कमजोरी को समझती थी, इसी कारण वह हर बात में उन से आगे रहा करती थी.

कीमत संस्कारों की-भाग 3 : हैरीसन परिवार होने के बावजूद भी अकेले क्यों थे?

दीनप्रभु को शिद्दत के साथ एहसास हुआ कि नए समाज का जो यह नया धरातल है उस पर उस के जैसा सदाचारी, सरल स्वभाव का इनसान एक पल को भी खड़ा नहीं हो सकता है. जिंदगी के सुव्यवस्थित आयाम यदि बाहरी दबाव के कारण बदलने लगें तो इनसान एक बार को सहन कर लेता है लेकिन जब अपने ही लोग खुद के बनाए हुए रहनसहन के दायरों को तोड़ने लगें तो जीवन में एक झटका तो लगता ही है साथ ही इनसान अपनी विवशता के लिए हाथ भी मलने को मजबूर हो जाता है.

दीनप्रभु जानते थे कि अपने द्वारा बनाए उस माहौल में रहने को वह मजबूर हैं जिस की एक भी बात उन को रास नहीं आती. वह यह भी समझते थे कि यदि उन्होंने कोई भी कड़ा कदम उठाने की चेष्टा की तो जो घर बनाया है उसे बरबादियों का ढांचा बनते देर भी नहीं लगेगी. जिस देश और समाज में वह रह रहे हैं उस की मान्यताओं को स्वीकार तो उन्हें करना ही पड़ेगा. जिस देश का चलन यह कहे कि ‘ये मेरा अपना जीवन है, आप कुछ भी नहीं कह सकते हैं’ और ‘अब मैं 21 वर्ष का बालिग हो चुका हूं,’ वहां पर बच्चों को जन्म देने वाले मातापिता का नाम केवल इस कारण चलता है क्योंकि बच्चे को जन्म देने वाले कोई न कोई मातापिता ही तो होते हैं.

दिनरात की चिंता तथा काम की अधिकता के चलते एक दिन दीनप्रभु अचानक ही अपने रेस्टोरेंट में काम करते हुए गिर पड़े. अस्पताल पहुंचे और जांच हुई तो पता चला कि वह उच्च रक्तचाप और मधुमेह के रोगी हो चुके हैं. हैरीसन और पौलीन उन्हें देखने तो पहुंचे मगर बजाय इस के कि दोनों उन का मनोबल बढ़ाते, वे खुद उन्हीं को दोषी ठहराने लगे. दोनों ही कहने लगे कि अपना ध्यान नहीं रखते हैं. इतना सारा काम फैला रखा है, कौन इस को संभालेगा? अपनी औलाद के मुंह से ऐसी बातें सुन कर उन का मन पहले से और भी दुखी हो गया. इस के अलावा उन के वे भाई जिन के बारे में उन्होंने सोचा था कि साथ रहेंगे तो मुसीबत में काम आएंगे, जब उन्होंने सुना तो कोई भी तत्काल देखने नहीं आया. हां, सब ने केवल एक बार फोन कर के अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी.

अस्पताल में 2 दिन तक रहने के बाद जब वह घर आए तो डाक्टरों ने उन्हें पूरी तरह से आराम करने की हिदायत दी थी और समय पर दवा लेने तथा हर रोज अपना ब्लड प्रेशर व ब्लड ग्लूकोज को जांचते रहने को कहा था. लेकिन घर पर अकेले पडे़पड़े तो वह अपने को और भी बीमार महसूस कर रहे थे. बच्चों से जब कभी सुबह या शाम उन का सामना हो जाता तो वह केवल ‘हाय डैड’ कह कर अपना फर्ज पूरा कर लेते थे. पत्नी हर दिन उन के पलंग के पास पानी का जग भर कर रख जाती थी पर किसी दिन छुट्टी कर के पति के साथ बैठने का खयाल उस के मन में नहीं आया.

काम करते समय अचानक गिर जाने के कारण उन की कोई हड्डी तो नहीं टूटी थी मगर उठने और बैठने में कमर में उन्हें बेहद तकलीफ होती थी. तकलीफ इतनी ज्यादा थी कि किसी के सहारे से ही वह उठ और बैठ सकते थे. आज जब उन्होंने देखा कि उन का अपना बेटा हैरीसन घर में है तो यह सोच कर आवाज दे दी थी कि उस से पानी ले कर दवा भी खा लेंगे और बाकी का पानी भर कर वह उन के पास भी रख देगा. लेकिन आ कर उस ने जो कुछ कहा उसे सुन कर उन के दिल को भारी धक्का लगा था, साथ ही उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि उन की अहमियत, आजाद खयाल में पलने वाले उन के बच्चों की व्यक्तिगत इच्छाओं के सामने बहुत हलकी है जिन्हें पूरा सुख देने के लिए उन्होंने अपनी हड्डीपसली एक कर दी थी.

सोचते हुए दीनप्रभु को काफी देर हो गई थी. अतीत के विचारोें से हट कर एक बार पूरे घर का जायजा लिया. अपना ही घर देख कर आज उन्हें लगा कि विक्टोरियन हाउस उन की दशा को देख कर भांयभांय कर रहा है. घर में सुख और संपदा की हर वस्तु मौजूद थी मगर यह कैसी मजबूरी उन के सामने थी कि दूसरों के हित के लिए अपना जीवन दांव पर लगाने वाले दीनप्रभु को आज एक गिलास पानी देने वाला कोई नहीं था.

काफी सोचविचार के बाद दीनप्रभु ने फैसला लिया कि अब समय आ गया है कि वह सब से खुल कर बात करें यदि बच्चों की मनोधारणा उन के हित में निकली तो ठीक है अन्यथा वह अपना सामान समेट कर भारत वापस चले जाएंगे और कहीं एकांत में शांति से रहते हुए समाजसेवा कर अपना बाकी का जीवन गुजार देंगे.

शाम हुई. सब लोग घर मेें आ गए. रोज की तरह सब लोग एक साथ खाने की मेज पर बैठे तो सब के साथ खाना खाते हुए दीनप्रभु ने अपनी बात शुरू की और बोले, ‘‘बच्चो, मैं बहुत दिनों से तुम लोगों से कुछ कहना चाह रहा था पर परिस्थितियां अनुकूल नहीं दिखती थीं. आज मुझे लगा कि मैं अपनी बात कह ही दूं.’’

‘‘मैं जब अमेरिका आया था तो अपने साथ बहुत सी जिम्मेदारियां ले कर आया था, जिन्हें पूरा करना मेरा कर्तव्य था और मैं ने वह सब कर भी लिया. यहां रहते हुए मैं ने तुम को सभी तरह की सुविधा और सुखी जीवन देने की पूरी कोशिश की. अमेरिका के सब से अच्छे कालिजों में तुम्हें शिक्षा दिलवाई. तुम लोगों के लिए रेस्टोरेंट और गैस स्टेशन खोल रखे हैं. अब यह तुम्हारी मरजी है कि तुम इन को संभाल कर रखो या फिर नष्ट कर दो.

‘‘मुझे तुम से क्या चाहिए, केवल एक जोड़ा कुरतापाजामा और दो समय की दालरोटी. तुम पर अपना बोझ डालना नहीं चाहता हूं, फिर भी तुम मेरी अपनी संतान हो इसलिए तुम से मैं पूछना चाहता हूं कि मैं ने तुम्हारे लिए इतना सबकुछ किया है बदले में तुम मेरे व्यक्तिगत जीवन के लिए क्या करना चाहते हो?’’

दीनप्रभु की बातें सुन कर उन का बेटा हैरीसन गंभीर हो कर बोला, ‘‘डैड, मैं आप के लिए अमेरिका का सब से आलीशान और महंगा नर्सिंग होम तलाश करूंगा.’’

‘‘और मैं आप से कम से कम 15 दिन में एक बार मिलने जरूर ही आया करूंगी,’’ पौलीन ने बड़े गर्व से कहा.

अपने बच्चों की बातों को सुन कर दीनप्रभु कुछ भी नहीं बोल सके क्योंकि वह जीवन के इस तथ्य को अच्छी तरह समझ चुके थे कि विदेश में आ कर अपनी सुखसुविधा के लिए वह जो कुछ चाहते थे वह तो उन्हें मिल चुका था लेकिन इसे पाने के लिए उन्हें अपने उन भारतीय संस्कारों की कुरबानी भी देनी पड़ी, जिस के तहत एक भाई अपनी बहन के लिए, मां अपने बच्चों और परिवार के लिए, बेटा अपने पिता के लिए और पत्नी अपने पति के लिए जीती है. उन के द्वारा बसाई हुई सुख की नगरी में आज खुद उन का वजन कितना हलका हो चुका है, सोच कर वे उफ् भी नहीं कर सके.

शरोवन कुमार            

कीमत संस्कारों की-भाग 2: हैरीसन परिवार होने के बावजूद भी अकेले क्यों थे?

दीनप्रभु शुरू से ही सदाचारी थे. इसलिए अपनी विदेशी पत्नी के साथ निभा भी गए लेकिन विवाह के बाद उन्हें यह जान कर दुख हुआ था कि उन की पत्नी के परिवार के लोग अपने को सनातन धर्म का अनुयायी बताते थे पर उन का सारा चलन ईसाइयत की पृष्ठभूमि लिए हुए था. अपने सभी काम वे लोग अमेरिकियों की तरह ही करते थे. उन के लिए दीवाली, होली, क्रिसमस और ईस्टर में कोई भी फर्क नहीं दिखाई देता था. लौली के परिवार वाले तो इस कदर विदेशी रहनसहन में रच गए थे कि यदि कभीकभार कोई एक भी शनिवार बगैर पार्टी के निकल जाता था तो उन्हें ऐसा लगता था कि जैसे जीवन का कोई बहुत ही विशेष काम वह करने से भूल गए हैं.

दीनप्रभु अभावों के जीवन के भुक्तभोगी थे इसलिए वह हाथ लगे इस अवसर को खोना नहीं चाहते थे और सबकुछ जानते और देखते हुए भी वह अपने परिवार के साथ तालमेल बनाए रहे. अमेरिका में आ कर उन्होेंने आगे और पढ़ाई की. फिर बाकायदा विदेश में पढ़ाने का लाइसेंस लिया और फिर वह बच्चों के स्कूल में अध्यापक नियुक्त हो गए.

परिश्रम से दीनप्रभु ने कभी मुंह नहीं मोड़ा. अपनी नौकरी से उन्होंने थोड़ा बहुत पैसा जमा किया और फिर एक दिन उस पैसे से एक छोटा सा ‘फ्रैंचाइज’ रेस्टोरेंट खोल लिया. फिर उन की मेहनत और लगन रंग लाई. रेस्टोरेंट चल निकला और वह थोड़े समय में ही सुखसंपदा से भर गए. पैसा आया तो दीनप्रभु ने दूसरे धंधे भी खोल लिए और फिर एक दिन उन्होंने प्रयास कर के अमेरिकी नागरिकता भी ले ली. फिर तो उन्होंने एकएक कर अपने भाईबहनों के परिवार को भी अमेरिका बुला लिया. अपने परिवार के लोगों को अमेरिका बुलाने से पहले दीनप्रभु ने सोचा था कि जब कभी विदेश में रहते हुए उन्हें अकेलापन महसूस होगा तो वे 2-1 दिन के लिए अपने भाइयों के घर चले जाया करेंगे.

अब तक दीनप्रभु 3 रेस्टोरेंट और 2 गैस स्टेशन के मालिक बन चुके थे. रेस्टोरेंट को वह और उन की पत्नी संभालते थे और दोनों गैस स्टेशनों का भार उन्होंने अपने दोनों बच्चों पर डाल रखा था. खानपान में उन के यहां पहले ही कोई रीतिरिवाज नहीं था और न ही अब है लेकिन फिर भी दीनप्रभु किसी न किसी तरह अपने भारतीय संस्कारों को बचाए रखने की कोशिश कर रहे थे. जबकि उन की पत्नी बड़े मजे से हर तरह का अमेरिकी शाकाहारी व मांसाहारी भोजन खाती थी. पार्टियों में वह धड़ल्ले से शराब पीती और दूसरे युवकों के साथ डांस भी कर लेती थी.

दीनप्रभु जब भी ऐसा देखते तो यही सोच कर तसल्ली कर लेते कि इनसान को दोनोें हाथों में लड्डू कभी भी नहीं मिला करते हैं. यदि उन को विदेशी जीवन की अभ्यस्त पत्नी मिली है तो उस के साथ उन्हें वह सुख और सम्पन्नता भी प्राप्त हुई है कि जिस के बारे में वह प्राय: ही सोचा करते थे.

विवाह के 25 साल  पलक झपकते गुजर गए. इस बीच संतान के नाम पर उन के यहां एक लड़का और एक लड़की भी आ चुके थे. उन्हें याद है कि जब लौली ने पहली संतान को जन्म दिया था तो उन्होंने कितने उल्लास के साथ उस का नाम हरिशंकर रखा था मगर लौली ने बाद में उस का नाम हरिशंकर से हैरीसन करवा दिया. ऐसा ही दूसरी संतान लड़की के साथ भी हुआ. उन्होंने लड़की का भारतीय नाम पल्लवी रखा था मगर लौली ने पल्लवी को पौलीन बना दिया. लौली का कहना था कि अमेरिकन को हिंदी नाम लेने में कठिनाई आती है. उस समय लौली ने यह भी बताया था कि उस ने भी अपना लीला नाम बदल कर लौली किया था.

लौली की सोच है कि जब जीवन विदेशी संस्कृति में रह कर ही गुजारना है तो वह कहां तक अपने देश की सामाजिक मान्यताओं को बचा कर रख सकती है और दीनप्रभु अपनी पत्नी की इस सोच से सहमत नहीं थे. उन का मानना था कि ठीक है विदेश में रहते हुए खानपान और रहनसहन के हिसाब से हर प्रवासी को समझौता करना पड़ता है लेकिन इन दोनों बातों में अपने देश की उस संस्कृति और संस्कारों की बलि नहीं चढ़ती है कि जिस में एक छोटा भाई अपनी बड़ी बहन को ‘दीदी’, बड़े भाई को ‘भैया’ और अपने से बड़ों को ‘आप’ कह कर बुलाता है. यहां विदेश में ऐसा कोई भी रिवाज या सम्मान नाम की वस्तु नहीं है. यहां चाहे कोई दूसरों से छोटा हो या बड़ा, हर कोई एकदूसरे का नाम ले कर ही बात करता है और जब ऐसा है तो फिर एकदूसरे के सम्मान की तो बात ही नहीं रह सकती है.

एक दिन पौलीन अपने किसी अमेरिकन मित्र को ले कर घर आई और अपने कमरे को बंद कर के उस के साथ घंटों बैठी बातें करती रही तो भारतीय संस्कारों में भीगे दीनप्रभु का मन भीग गया. वह यह सब अपनी आंखों से नहीं देख सके. बेचैनी बढ़ी तो उन्होंने पौलीन से आखिर पूछ ही लिया.

‘कौन है यह लड़का?’

‘डैड, यह मेरा बौय फ्रेंड है,’ पौलीन ने बिना किसी झिझक के उत्तर दिया.

दीनप्रभु जैसे सकते में आ गए. वह कुछ पलों तक गंभीर बने रहे फिर बोले, ‘तुम इस से शादी करोगी?’

उन की इस बात पर पौलीन अपने माथे पर ढेर सारे बल डालती हुई बोली, ‘आई एम नाट श्योर.’ (मैं ठीक से नहीं कह सकती.)

पल्लवी ने कहा तो दीनप्रभु और भी अधिक आश्चर्य में पड़ गए. उन्हें यह सोचते देर नहीं लगी कि उन की लड़की का इस लड़के से यह कैसा रिश्ता है जिसे मित्रता भी नहीं कह सकते हैं और विवाह से पहले होने वाले 2 प्रेमियों के प्रेम की संज्ञा भी उसे नहीं दी जा सकती है. पौलीन अकसर इस लड़के के साथ घूमतीफिरती है. जहां चाहती है, बेधड़क उस के साथ चली जाती है. कई बार रात में भी घर नहीं आती है, उस के बावजूद वह यह नहीं जानती कि इस लड़के से विवाह भी करेगी या नहीं.

ये भी पढ़ें- प्रतिकार

काफी देर तक गंभीर बने रहने के बाद दीनप्रभु ने पौलीन से कहा, ‘क्या तुम बता सकती हो कि बौय फ्रेंड और पति में क्या अंतर होता है?’

‘कोई विशेष नहीं डैड. दोनों ही एकजैसे होते हैं. अंतर है तो केवल इतना कि बौय फ्रेंड की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है जबकि पति की बाकायदा अपनी पत्नी और बच्चों के प्रति एक ऐसा उत्तरदायित्व होता है जिसे उसे पूरा करना ही होता है.’

अतीत की यादें दिमाग में तभी साकार रूप लेती हैं जब कुछ मिलतीजुलती घटनाएं सामने घटित हों. विवाह के बारे में बेटी का नजरिया जान कर उन्हें अपनी बहनों की शादी की याद आ गई. दीनप्रभु ने अपनी मर्जी से कभी अपनी दोनों छोटी बहनों के लिए वर चुने थे और दोनों में से किसी ने भी चूं तक न की थी. मगर आज घर में उन की स्थिति यह है कि अपनी ही बेटी के जीवनसाथी के चुनाव के बारे में जबान तक नहीं खोल सकते हैं.

बिग बॉस 14: राखी सावंत अपनी मां से मिलकर हुई इमोशनल ,रोते हुए कि पति की शिकायत

बिग बॉस 14 धीरे- धीरे ही सही लेकिन अपनी रफ्तार में आगे आ गया है. जिससे इसकी टीआरपी भी बढ़ गई है. फैस अब बिग बॉस को पहले से ज्यादा देखने लगे हैं. राखी सावंत को इमोशनल देखकर फैंस खुद को रोक नहीं पाएं.

दरअसल, मेकर्स ने इस शो को खास बनाने के लिए काफी ज्यादा मेहनत किया है. हाल ही में शो का प्रोमो रिलीज हुआ है जिसमें दिखाया गया है कि शो के अपकमिंग एपिसोड में राखी सावंत, एजाज खान औऱ जैस्मिन भसीन के घर वालों से मिलने वाले हैं.

ये भी पढ़ें- अमिताभ बच्चन की आवाज में कोरोना कॉलर ट्यून हटाने के लिए डाली गई

शो के कंटेस्टेंट अपने घर वालों को देखकर अपने आंसू रोक नहीं पाएंगे, राखी सावंत ने अपनी मां से वीडियो कॉल के जरिए बात किया जिसके बाद राखी सावंत काफी ज्यादा इमोशनल हो गई. उनकी मां ने उन्हें बताया कि घर का कोई सदस्य अस्पताल में भर्ती है. इसे जानने के बाद राखी सावंत काफी ज्यादा इमोशनल हो गई, और वीडियो कॉल पर रोना शुरू कर दिया.

ये भी पढ़ें- नेहा पेंडसें ने ट्रोलर्स को दिया था करारा जवाब, कहा मैं भी वर्जन नहीं हूं

वहीं राखी सावंत रोते हुए अपनी मां से कह रही है कि वह उनके पति रितेश को नेशनल टीवी पर आने के लिए राजी कर लें. राखी सावंत को रोता हुआ देखकर बाकी घर वाले भी काफी ज्यादा इमोशनल हो गए.

ये भी पढ़ें- आहना कुमरा की फिल्म ‘बावरी छोरी’ का ट्रेलर हुआ वायरल

खबर है कि राखी सावंत जल्द कैप्टैंसी का टास्क संभालते हुए नजर आएंगी, राखी सावंत सोनाली फोगाट को मात देकर घर की कैप्टन बन जाएंगी.

पिछले हफ्ते जैस्मिन भीन और रुबीना दिलाइक ने राखी सावंत को अपना निशाना बनाया , तभी सलमान खान ने वीकेंड के वार में जैस्मिन और रुबीना की जमकर क्लास लगाई.

अमिताभ बच्चन की आवाज में कोरोना कॉलर ट्यून हटाने के लिए डाली गई याचिका

कोरोना काल में लोग कोरोना से तो परेशान हैं ही साथ ही अपने मोबाइल के कॉलर ट्यून से भी परेशान हो गए है. जब भी आप अपने किसी करीबी को कॉल करते हैं तो सबसे पहले आपको कुछ देर तक “नमस्कार हमारा देश और पूरा विश्व आज कोविड 19 की चुनौती का सामना कर रहा है कोविड 19 अभी खत्म नहीं हुआ है “इस लंबे ट्यून से लोग परेशान हो गए हैं.

लोग नए साल में इस कॉलर ट्यून से छुटकारा पाना चाहते हैं. लेकिन अब ज्यादा परेशान होने कि जरुरत नहीं है सभी के लिए एक खुशखबरी है. जिसे जानकर आप भी खुश हो जाएंगे. दिल्ली हाई कोर्ट में इस कॉलर ट्यून को हटाने के लिए एक जनहित याचिका लगाई गई है.

ये भी पढ़ें- आहना कुमरा की फिल्म ‘बावरी छोरी’ का ट्रेलर हुआ वायरल

आगर आपको मजाक लग रहा है तो यह मजाक नहीं है यह सच है कि एक राकेश नाम के शख्स ने इसे हटाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल किया है. जिसमें उसने लिखा है कि अमिताभ बच्चन भारत सरकार से अपनी इस आवाज के लिए पैसा ले रहे हैं. इस बात का खुलासा एक रिपोर्ट में हुआ है.

ये भी पढ़ें- नेहा पेंडसें ने ट्रोलर्स को दिया था करारा जवाब, कहा मैं भी वर्जन नहीं हूं

आगे याचिका में उन्होंने कहा कि कोरोना काल में कई ऐसे लोग है जो वॉरियर्स बनकर इस कोरोना काल में नजर आएं हैं लेकिन उनकी किसी भी तरह कि कोई मदद सरकार के तरफ से नहीं कि जा रही है.

ये भी पढ़ें- बिग बॉस 14: घर से बाहर जाते ही राहुल महाजन ने राखी सावंत को लेकर दिया ये बड़ा बयान

वहीं कुछ लोगों का कहना है कि यह ट्यून कुछ लोगों को हमेशा याद दिलाती है कि कोरोना अभी भी जारी है.अगर अमिताभ बच्चन की वर्कफ्रंट कि बात करें तो अमिताभ बच्चन इन दिनों केबीसी 12 में बिजी है. साथ ही वह कई और भी नए प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं.

सरकारी अस्‍पतालों में बेटियों का जन्‍मदिन मनाएगी योगी सरकार

बेटियों को सम्‍मान दिलाने व शिक्षा की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए तत्‍पर योगी सरकार प्रदेश में मिशन शक्ति अभियान के तहत जनवरी-फरवरी माह में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करने जा रही है.

उत्‍तर प्रदेश में पहली बार महिलाओं व बेटियों के लिए शुरू किए गए इस वृहद अभियान से उनमें उत्‍साह देखने को मिल रहा है. आधी आबादी को सशक्‍त बनाने के सरकारी प्रयास जमीनी स्‍तर पर रंग ला रहे हैं. प्रदेश की महिलाओं व बेटियों को इस अभियान से न सिर्फ सरकारी योजनाओं की जानकारी मिल रही है बल्कि उनको इन योजनाओं का लाभ भी सीधे तौर पर मिल र‍हा है.

इस दिशा में एक सकारात्‍मक कदम उठाते हुए 22 जनवरी को सरकारी अस्‍पतालों में जन्‍म लेने वाली बेटियों का जन्‍मदिवस मनाए जाने का फैसला लिया गया है जिसके तहत योगी सरकार की ओर से मां व बेटी को उपहार भी दिए जाएंगे.

 गुड्डा- गुड्डी बोर्ड

मिशन शक्ति के तहत बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ मुहिम को बढ़ावा देते हुए यूपी के जनपदों में एक जनवरी से 20 जनवरी तक जन्‍म लेने वाली बेटियों की संख्‍या के बराबर वृक्षारोपण का कार्य भी किया जाएगा. बता दें कि इन वृक्षों के संरक्षण का दायित्‍व पुरूषों को सौंपा जाएगा. बालिकाओं के निम्‍न लिंगानुपात वाले ब्‍लॉकों की सभी ग्राम सभाओं से डिजिटल एनालॉग गुड्डा-गुड्डी बोर्ड की शुरूआत की जाएगी. इसका क्रियान्‍वन करते हुए समस्‍त ग्राम पंचायतों में छह माह के अंदर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के साथ-साथ ग्राम पंचायत विकास योजनाओं में भी इसे शामिल किया जाएगा.

ये भी पढ़ें- अद्भुत है वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी- पंकज कपूर

उत्‍तर प्रदेश में लगेगी प्रशासन की पाठशाला

प्रदेश में बेटियों के मनोबल को बढ़ाने के लिए अभियान के जरिए प्रशासन की पाठशला कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा. जिसके तहत उन बालिकाओं और महिलाओं की काउंसलिंग की जाएगी जो विभिन्‍न प्रशासनिक सेवाओं जैसे पुलिस, फौज, एयरफोर्स समेत मेडिकल, इंजीनियरिंग व उद्योग जगत में आगे बढ़ने का सपना देख रहीं हैं. कार्यक्रम में जिलाधि‍कारियों व उच्‍चधिकारियों द्वारा ऑफलाइन व ऑनलाइन कैरियर काउंसलिंग शिविरों का आयोजन कर उनकी काउंसलिंग की जाएगी.

ये भी पढ़ें- बर्ड वाचिंग पक्षी अवलोकन एक अजब चसका

हक की बात जिलाधिकारी के साथ

मिशन शक्ति अभियान के तहत हक की बात जिलाधिकारी के साथ कार्यक्रम का आयोजन प्रदेश स्‍तर पर 24 फरवरी को किया जाएगा. इस बार जिलाधिकारी किशोरियों व महिलाओं से दो घंटें तक संवाद स्थापित कर यौन शोषण, लैंगिक असमानता, घरेलू हिंसा, कन्‍या भ्रूण हत्‍या, कार्यस्‍थल पर लैगिंक हिंसा और दहेज उत्‍पीड़न जैसे मुद्दों पर बात करेंगे. इन मुद्दों पर महिलाओं व बेटियों को संरक्षण, सुरक्षा, सुझाव और सहायता भी देंगें. उत्‍तर प्रदेश के सभी जनपदों के जिलाधिकारी वेबिनार, चौपालों, ऑनलाइन बैठक और वीडियो कान्‍फ्रेंसिंग के जरिए किशोरियों व महिलाओं से रूबरू होगें.

शुभारंभ-भाग 1: राधिका ने जिंदगी के आखिरी पड़ाव में अभिरूप को क्यों चुना

मुंबई एअरपोर्ट पहुंच कर बोर्डिंग पास लेते हुए अभिरूप ने राधिका से पूछा, ‘‘विंडो सीट पसंद करोगी न?’’ राधिका ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. अभिरूप ने एक विंडो सीट के लिए कहा, दोनों ने अपना बोर्डिंग पास लिया. राधिका के पास बस अब हैंडबैग था. अभिरूप ने पूछा, ‘‘कौफी पिओगी?’’

‘‘लेकिन आप को तो कौफी अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘तो क्या हुआ, तुम्हें तो पसंद है न. तुम्हारा साथ दे दूंगा.’’

दोनों ने एकदूसरे को भावपूर्ण नजरों से देखा. दोनों की आंखों में बस अनुराग ही अनुराग था. दोनों ‘कैफे कौफी डे’ जा कर कुरसी पर बैठ गए. अभिरूप 2 कौफी ले आए. फ्लाइट के उड़ने में 1 घंटा था. राधिका ने कहा, ‘‘अब क्या करें, एअरपोर्ट आ कर इतनी देर बैठने से मुझे हमेशा कोफ्त होती है, यह समय काटना मुश्किल हो जाता है.’’

अभिरूप हंसे, ‘‘अच्छा, हो सकता है अब तुम्हें ऐसा न लगे. बंदा अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेगा कि तुम्हें बोरियत न हो.’’

अभिरूप के नाटकीय अंदाज पर राधिका हंस पड़ी. अभिरूप की नजर हंसती हुई राधिका पर टिक गई, बोले, ‘‘ऐसे ही हंसती रहना अब हमेशा, बहुत अच्छी लगती हो हंसते हुए.’’

राधिका शरमा गईं, मन में रोमांच की एक तेज लहर सी उठी. लगा, इस उम्र में भी ऐसी बात सुन कर शर्म आ सकती है. और फिर सचमुच अभिरूप के साथ समय कब कटा, पता ही न चला उन्हें. वे ध्यान से उन्हें देखती रही थीं, एकदम चुस्तदुरुस्त, हमेशा हंसतामुसकराता चेहरा, राजनीति, मौसम विज्ञान से ले कर मनोविज्ञान तक, हर विषय पर उन की इतनी अच्छी पकड़ थी कि किसी भी विषय पर वे घंटों बात कर सकते थे.

दोनों तय समय पर प्लेन में अपनी सीट पर जा कर बैठ गए. राधिका विंडो सीट पर बैठ गईं, बीच वाली सीट पर अभिरूप और तीसरी सीट पर एक लड़का आ कर बैठ गया. उड़ान भरते ही राधिका बाहर दिख रहे रूई के गोलों जैसे बादलों में खो गईं. थोड़ी देर में उन्होंने अभिरूप पर नजर डाली. उन की आंखें बंद थीं. बादलों में खोएखोए राधिका के मन में पिछले दिनों की घटनाएं चलचित्र की तरह घूमने लगीं.

55 साल की राधिका और 60 साल के अभिरूप पहली बार सोसायटी के सामने मार्केट में बनी लाइब्रेरी में मिले थे. राधिका ने जब भी उन्हें देखा, ऐसा ही लगा जैसे उम्र उन्हें बस छू कर निकल गई है.

अभिरूप के घर में उन का बेटा विनय, बहू अवनि और पोती रिमझिम थी. अभिरूप एक कंपनी में वाइस प्रैसीडैंट थे. शारीरिक और मानसिक रूप से अत्यधिक फिट होने के कारण वे आज भी कार्यरत थे. योग्यता के कारण उन्हें एक्सटेंशन मिलता जा रहा था.

उन की पत्नी नीला की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी थी जिस में वे बालबाल बचे थे.

अकसर अभिरूप और राधिका मिल ही जाते थे, कभी लाइब्रेरी में तो कभी सैर करते हुए. राधिका अकेली रहती थीं. एक ही बेटा था अनुज, जो अमेरिका में अपनी विदेशी पत्नी कैरेन और बेटे अमन के साथ रहता था. राधिका शुरू में तो साल दो साल में अमेरिका गईं लेकिन उन्हें वहां अच्छा नहीं लगता था. उन का मन यहीं अपने घर में लगता था. अब अनुज ही चक्कर लगा लेता था. शाम को राधिका कुछ साउथ इंडियन बच्चों को हिंदी की ट्यूशंस पढ़ाती थीं. सैर पर जाना उन की दिनचर्या का हिस्सा था. पुस्तकें पढ़ती थीं, वक्तजरूरत या कभी तबीयत खराब होने पर साफसफाई करने वाली मेड लता थी ही.

राधिका के पति विनोद का निधन तो सालों पहले हो गया था. विनोद जो पैसा छोड़ गए थे वह और जो विनय भी जबरदस्ती भेजता रहता था, उन के लिए काफी था.

अभिरूप शनिवार और रविवार को ही राधिका को सैर करते दिखते थे. पता नहीं चला, कब बात होने लगी, वे घर भी आए, दिल खुले, अंतरंगता बढ़ी. दोनों बाहर भी साथ आनेजाने लगे थे. सबकुछ अपनेआप होता चला गया था. दोनों ही बच्चों की परवा, लोगों की बातों से विचलित नहीं हुए. अपनी उम्र के लोगों से बात कर के एक अजीब सा सुकून मिलता है. एक जैसी समस्याएं, एक जैसी खुशियां, सबकुछ शेयर करना बहुत अच्छा लगने लगा. राधिका को ऐसा लगा, वे अकेली नहीं हैं, दोनों एकदूसरे के दर्द को आसानी से समझ सकते हैं. सामने वाले के पास हमारी बात सुनने का समय है, वह हमें गंभीरता से ले रहा है, इस उम्र में यह एहसास ही खासा सुकून देने वाला होता है.

राधिका कुछ अपनी कहतीं, कुछ उन की सुनतीं. मरते पौधों को पानीखाद मिले, अच्छी देखभाल हो तो वे भी जी उठते हैं. इन 2 अकेले प्राणियों को एकदूसरे की सहानुभूति मिली, अपनापन मिला तो दोनों के जीवन में जान आने लगी थी.और एक दिन अभिरूप ने जब राधिका के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो वे बुरी तरह चौंक गई थीं. बस, मुंह से यही निकला था, ‘क्या, इस उम्र में?’

‘क्यों, उम्र को क्या हुआ है तुम्हारी? अगर हम साथ हो जाएं तो जो जीवन हम काट रहे हैं उसे एक अर्थ, एक उद्देश्य दे सकते हैं.’

वे चुप रही थीं, सोचने के लिए समय मांगा था. बहुत सोचा था, लगा था यह भी सही है अकेलापन सहा नहीं जाता, काटने को दौड़ता है, घड़ी की सूइयां ठहरी हुई सी लगती हैं. सब से बड़ी बात तो यह है कि कई बातें ऐसी होती हैं, कुछ दुखदर्द ऐसे होते

हैं जिन्हें जीवनसाथी के साथ ही बांटा जा सकता है. बड़े बच्चों की मां के पुनर्विवाह की बात न तो समाज सोचता है न तो स्वयं, कोई विवेकानंद या दयानंद पैदा नहीं होता इस समाज में. बस, यादों के सहारे ही विधवा जीवन निकालना होता है.

राधिका रातदिन पता नहीं कितने विचारों में डूबतीउतराती रहीं. वे सोचतीं, अपने एकाकी मन का क्या करें जो रहरह कर किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढ़ रहा था जिस के सामने फूट पड़ें, अंदर का सबकुछ बहा डालें किसी झरने की तरह. सभी चाहतें, उमंगें, केवल बच्चों और जवानों के लिए ही होती हैं क्या? उन की उम्र के लोगों की जीवन जीने की कोई साध नहीं होती? सच पूछा जाए तो उन्हें लग रहा था कि जीवन का यही सब से सुंदर, सब से रोमांचकारी समय था. जीवन की संध्या में ही सही. अंतरात्मा का शून्य भरने कोई आया तो था. वे विमुग्ध थीं, अपनेआप पर, अभिरूप पर, अपनी नियति पर.

अपराध : नीलकंठ और सुरमा के बीच लड़ाई की वजह कौन थी?

ऐलिस का साथ पाने के लिए नीलकंठ ने अपनी दम तोड़ती पत्नी सुरमा को बचाने की कोई कोशिश नहीं की.

एंबुलैंस का सायरन बज रहा था. लोग घबरा कर इधरउधर भाग रहे थे. छुट्टी का दिन होने से अस्पताल का आपातकालीन सेवा विभाग ही खुला था, शोरशराबे से डाक्टर नीलकंठ की तंद्रा भंग हो गई.

घड़ी पर निगाह डाली, रात के 10 बज कर 20 मिनट हो रहे थे. उसे ऐलिस के लिए चिंता हो रही थी और उस पर क्रोध भी आ रहा था. 9 बजे वह उस के लिए कौफी बना कर लाती थी. वैसे, उस ने फोन पर बताया था कि वह 1-2 घंटे देर से आएगी.

ये भी पढ़ें- सब से बड़ा सुख-भाग 1: रीतेश के मन में किस बात का डर था

‘‘सर,’’ वार्ड बौय ने आ कर कहा, ‘‘एक गंभीर केस है, औपरेशन थिएटर में पहुंचा दिया है.’’

‘‘आदमी है या औरत?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा.

‘‘औरत है,’’ वार्ड बौय ने उत्तर दिया, ‘‘कहते हैं कि आत्महत्या का मामला है.’’

‘‘पुलिस को बुलाना होगा,’’ नीलकंठ ने पूछा, ‘‘साथ में कौन है?’’

‘‘2-3 पड़ोसी हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ औपरेशन की तैयारी करने को कहो. मैं आ रहा हूं. और हां, सिस्टर ऐलिस आई हैं?’’

‘‘जी, अभीअभी आई हैं. उस घायल औरत के साथ ही ओटी में हैं,’’ वार्ड बौय ने जाते हुए कहा.

राहत की सांस लेते हुए नीलकंठ ने कहा, ‘‘तब तो ठीक है.’’

वह जल्दी से ओटी की ओर चल पड़ा. दरअसल, मन में ऐलिस से मिलने की जल्दी थी, घायल की ओर ध्यान कम ही था.

ये भी पढ़ें- सब से बड़ा सुख-भाग 2: रीतेश के मन में किस बात का डर था

ऐलिस को देखते ही वह बोला, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी? मैं तो चिंता में पड़ गया था.’’

‘‘सर, जल्दी कीजिए,’’ ऐलिस ने उत्तर दिया, ‘‘मरीज की हालत बहुत खराब है. और…’’

‘‘और क्या?’’ नीलकंठ ने एप्रन पहनते हुए पूछा, ‘‘सारी तैयारी कर दी है न?’’

‘‘जी, सब तैयार है,’’ ऐलिस ने गंभीरता से कहा, ‘‘घायल औरत और कोई नहीं, आप की पत्नी सुरमा है.’’

‘‘सुरमा,’’ वह लगभग चीख उठा.

सुबह ही नीलकंठ का सुरमा से खूब झगड़ा हुआ था. झगड़े का कारण ऐलिस थी. नीलकंठ और ऐलिस का प्रणय प्रसंग उन के विवाहित जीवन में विष घोल रहा था. सुबह सुरमा बहुत अधिक तनाव में थी, क्योंकि नीलकंठ के कोट पर 2-4 सुनहरे बाल चमक रहे थे और रूमाल पर लिपस्टिक का रंग लगा था. सुरमा को पूरा विश्वास था कि ये दोनों चिह्न ऐलिस के ही हैं. कुछ कहने को रह ही क्या गया था? पूरी कहानी परदे पर चलती फिल्म की तरह साफ थी.

ये भी पढ़ें- संबल-नमिता राहुल को लेकर हमेशा क्यों परेशान रहती थी?

झुंझला कर क्रोध से पैर पटकता हुआ नीलकंठ बाहर निकल गया.

जातेजाते सुरमा के चीखते शब्द कानों में पड़े, ‘आज तुम मेरा मरा मुंह देखोगे.’

ऐसी धमकियां सुरमा कई बार दे

चुकी थी. एक बार नीलकंठ ने

उसे ताना भी दिया था, ‘जानेमन, जीना जितना आसान है, मरना उतना ही मुश्किल है. मरने के लिए बहुत बड़ा दिल और हिम्मत चाहिए.’

‘मर कर भी दिखा दूंगी,’ सुरमा ने तड़प कर कहा था, ‘तुम्हारी तरह नाटकबाज नहीं हूं.’

‘देख लूंगा, देख लूंगा,’ नीलकंठ ने विषैली मुसकराहट के साथ कहा था, ‘वह शुभ घड़ी आने तो दो.’

आखिर सुरमा ने अपनी धमकी को हकीकत में बदल दिया था. उन का घर 5वीं मंजिल पर था. वह बालकनी से नीचे कूद पड़ी थी. इतनी ऊंचाई से गिर कर बचना बहुत मुश्किल था. नीचे हरीहरी घास का लौन था. उस दिन घास की कटाई हो रही थी. सो, कटी घास के ढेर लगे थे. सुरमा उसी एक ढेर पर जा कर गिरी. उस समय मरी तो नहीं, पर चोट बहुत गहरी आई थी.

ये भी पढ़ें- स्मृतियों का जाल-लाख प्रयास के बावजूद भी वह अपने अतीत को नहीं भूला पा रही थी

शोर मचते ही कुछ लोग जमा हो गए, उन्होंने सुरमा को पहचाना और यही ठीक समझा कि उसे नीलकंठ के पास उसी के अस्पताल में पहुंचा दिया जाए.

काफी खून बह चुका था. नब्ज बड़ी मुश्किल से पकड़ में आ रही थी. शरीर का रंग फीका पड़ रहा था. नीलकंठ के मन में कई प्रश्न उठ रहे थे, ‘सुरमा से पीछा छुड़ाने का बहुत अच्छा अवसर है. इस के साथ जीवन काटना बहुत दूभर हो रहा है. हमेशा की किटकिट से परेशान हो चुका हूं. एक डाक्टर को समझना हर औरत के वश की बात नहीं, कितना तनावपूर्ण जीवन होता है. अगर चंद पल किसी के साथ मन बहला लिया तो क्या हुआ? पत्नी को इतना तो समझना ही चाहिए कि हर पेशे का अपनाअपना अंदाज होता है.’

सहसा चलतेचलते नीलकंठ रुक गया.

‘‘क्या हुआ, सर?’’ ऐलिस ने चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘मैं यह औपरेशन नहीं कर सकता,’’ नीलकंठ ने लड़खड़ाते स्वर में कहा, ‘‘कोई डाक्टर अपनी पत्नी या सगेसंबंधी का औपरेशन नहीं करता, क्योंकि वह उन से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है. उस के हाथ कांपने लगते हैं.’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं?’’ ऐलिस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘जल्दी से डाक्टर जतिन को बुला लो,’’ नीलकंठ ने वापस मुड़ते हुए कहा. वह सोच रहा था कि औपरेशन में जितनी देर लगेगी, उतनी जल्दी ही सुरमा इस दुनिया से दूर चली जाएगी.

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ ऐलिस ने तनिक ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘डाक्टर जतिन को आतेआते एक घंटा तो लगेगा ही. लेकिन इतना समय कहां है? मैं मानती हूं कि आप के लिए पत्नी को इस दशा में देखना बड़ा कठिन होगा और औपरेशन करना उस से भी अधिक मुश्किल, पर यह तो आपातस्थिति है.’’

‘‘नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘यह डाक्टरी नियमों के विरुद्ध होगा और यह बात तुम अच्छी तरह जानती हो.’’

‘‘ठीक है, कम से कम आप कुछ देखभाल तो करें,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘मैं अभी डाक्टर जतिन को संदेश भेजती हूं.’’

डाक्टर नीलकंठ जब ओटी में घुसा तो आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था, कितने ही उद्गार मन में उठते और फिर बादलों की तरह गायब हो जाते थे.

सामने सुरमा का खून से लथपथ शरीर पड़ा था, जिस से कभी उस ने प्यार किया था. वे क्षण कितने मधुर थे. इस समय सुरमा की आंखें बंद थीं, एकदम बेहोश और दीनदुनिया से बेखबर. इतना बड़ा कदम उठाने से पहले उस के मन में कितना तूफान उठा होगा? एक क्षण अपराधभावना से नीलकंठ का हृदय कांप उठा, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उस के शरीर को झंझोड़ रही हो.

नीलकंठ ने कांपते हाथों से सुरमा के बदन से खून साफ किया. उस का सिर फट गया था. वह कितने ही ऐसे घायल व्यक्ति देख चुका था, पर कभी मन इतना विचलित नहीं हुआ था. वह सोचने लगा, क्या सुरमा की जान बचा सकना उस के वश में है?

लेकिन डाक्टर जतिन के आने से पहले ही सुरमा मर चुकी थी. नीलकंठ सूनी आंखों से उसे देख रहा था, वह जड़वत खड़ा था.

जतिन ने शव की परीक्षा की और धीरे से नीलकंठ के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘मुझे दुख है, सुरमा अब इस दुनिया में नहीं है. ऐलिस, नीलकंठ को केबिन में ले जाओ, इसे कौफी की जरूरत है.’’

ऐलिस ने आहिस्ता से नीलकंठ का हाथ पकड़ा और लगभग खींचते हुए ओटी से बाहर ले गई. कमरे में ले जा कर उसे कुरसी पर बैठाया.

‘‘सर, मुझे दुख है,’’ ऐलिस ने आहत स्वर में कहा, ‘‘सुरमा के ऐसे अंत की मैं ने कभी स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी. मैं अपने को कभी माफ नहीं कर सकूंगी.’’

नीलकंठ ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘तुम्हारा कोई दोष नहीं, कुसूर मेरा है.’’

नीलकंठ आंखें बंद किए सोच रहा था, ‘शायद सुरमा को बचा पाना मेरे वश से बाहर था, पर कोशिश तो कर ही सकता था. लेकिन मैं टालता रहा, क्योंकि सुरमा से छुटकारा पाने का यह सुनहरा अवसर था. मैं कलह से मुक्ति पाना चाहता था. अब शायद ऐलिस मेरे और करीब आ जाएगी.’

ऐलिस सामने कौफी का प्याला लिए खड़ी थी. वह आकर्षक लग रही थी.

पुलिस सूचना पा कर आ गई थी. औपचारिक रूप से पूछताछ की गई. यह स्पष्ट था कि दुर्घटना के पीछे पतिपत्नी के बिगड़ते संबंध थे, परंतु नीलकंठ का इस दुर्घटना में कोईर् हाथ नहीं था. नैतिक जिम्मेदारी रही हो, पर कानूनी निगाह से वह निर्दोष था. पोस्टमार्टम के बाद शव नीलकंठ को सौंप दिया गया. दोनों ओर के रिश्तेदार सांत्वना देने और घर संभालने आ गए थे. दाहसंस्कार के बाद सब के चले जाने पर एक सूनापन सा छा गया.

नीलकंठ को सामान्य होने में सहायता दी तो केवल ऐलिस ने. अस्पताल में ड्यूटी के समय तो वह उस की देखभाल करती ही थी, पर समय पा कर अपनी छोटी बहन अनीषा के साथ उस के घर भी चली जाती थी. चाय, नाश्ता, भोजन, जैसा भी समय हो, अपने हाथों से बना कर देती थी. धीरेधीरे नीलकंठ के जीवन में शून्य का स्थान एक प्रश्न ने ले लिया.

कई महीनों के बाद नीलकंठ ने एक दिन ऐलिस से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे जैसी पत्नी ही पाना चाहता था. तुम मुझे पहले क्यों नहीं मिलीं. यह सोच कर कभीकभी आश्चर्य होता है.’’

‘‘सर,’’ ऐलिस बोली, ‘‘सर.’’

नीलकंठ ने टोकते हुए कहा, ‘‘मैं ने कितनी बार कहा है कि मुझे ‘सर’ मत कहा करो. अब तो हम दोनों अच्छे दोस्त हैं. यह औपचारिकता मुझे अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘क्या करूं,’’ ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘सर, आदत सी पड़ गई है, वैसे कोशिश करूंगी.’’

‘‘तुम मुझे नील कहा करो,’’ उस ने ऐलिस की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मुझे अच्छा लगेगा.’’

ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘कोशिश करूंगी, वैसे है जरा मुश्किल.’’

‘‘कोई मुश्किल नहीं,’’ नीलकंठ हंसा, ‘‘आखिर मैं भी तो तुम्हें ऐलिस कह कर बुलाता हूं.’’

‘‘आप की बात और है,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘आप किसी भी संबंध से मुझे मेरे नाम से पुकार सकते हैं.’’

‘‘तो फिर किस संबंध से तुम मेरा नाम ले कर मुझे बुलाओगी?’’ नीलकंठ के स्वर में शरारत थी.

‘‘पता नहीं,’’ ऐलिस ने निगाहें फेर लीं.

‘‘तुम जानती हो, मेरे मन में तुम्हारे लिए क्या भावना है,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम मेरे सूने जीवन में बहार बन कर प्रवेश करो.’’

‘‘यह तो अभी मुमकिन नहीं,’’ ऐलिस ने छत की ओर देखा.

‘‘अभी नहीं तो कोई बात नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘पर वादा तो कर सकती हो?’’ नीलकंठ को विश्वास था कि ऐलिस इनकार नहीं करेगी, शक की कोई गुंजाइश नहीं थी.

‘‘यह कहना भी मुश्किल है,’’ ऐलिस ने मेज पर पड़े चम्मच से खेलते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ नीलकंठ ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘आखिर हम अच्छे दोस्त हैं?’’

‘‘बस, दोस्त ही बने रहें तो अच्छा है,’’ ऐलिस ने कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘यही कि अगर शादी कर ली तो इस बात की क्या गारंटी है,’’ ऐलिस ने एकएक शब्द तोलते हुए कहा, ‘‘कि मेरा भी वही हश्र नहीं होगा, जो सुरमा का हुआ? आखिर दुर्घटना तो सभी के साथ घट सकती है?’’

यह सुनते ही नीलकंठ को मानो सांप सूंघ गया. उस ने कुछ कहना चाहा, पर जबान पर मानो ताला पड़ गया था. ऐलिस ने साथ देने से इनकार जो कर दिया था.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें