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कोरोना से लड़ाई  युवाओं के सहयोग से

लखनऊ. सरकार के साथ कदमताल करते हुए लखनऊ शहर के युवाओं ने कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने की जिम्‍मेदारी उठा ली है. इन युवाओं में पेशे से कोई एमबीए एचआर है, तो एमबीए ट्रेनर है. लॉकडाउन के दौरान जब पूरा शहर कोरोना से जूझ रहा था तो इन युवाओं ने आगे आते हुए नगर निगम के साथ खुद शहर को सेनीटाइज करने की जिम्‍मेदारी उठाई. यह युवा अब तक शहर के तीन हजार से अधिक मकानों को सेनीटाइज कर चुके हैं.

गोमतीनगर निवासी एमबीए एचआर नूर आलम सिद्दीकी कहते हैं कि कोरोना से लड़ाई सिर्फ सरकार की जिम्‍मेदारी नहीं है. हम सभी को कोरोना से लड़ाई जीतने के लिए आगे आना होगा. मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ पूरे प्रदेश में सेनीटाइजेशन अभियान चला रहे हैं, खासकर ग्रामीण इलाकों में. सरकार के प्रयासों को देखते हुए हमारे दोस्‍तों ने इस लड़ाई में आगे आने का निर्णय लिया. इसके लिए हम लोगों ने शहर में सेनीटाइजेशन अभियान चलाने का निर्णय लिया. ग्रुप में शामिल करीब आधा दर्जन युवा अब तक तीन हजार से अधिक मकानों को सेनीटाइज कर चुके हैं.

यहां चला अभियान

एमबीए एचआर व एनएस साल्‍यूशन में शिक्षक नूर सिद्दीकी बताते हैं  सेनीटाइजेशन कार्य में वह केमिकल वाइरेक्‍स 256 का इस्‍तेमाल कर रहे हैं. गोमतीनगर उजरियांव से उन्‍होंने सेनीटाइजेशन काम को शुरू किया .

यहां पर उनकी टीम इसमें शहनवाज, शहजाद, शादाब व आरिज ने करीब 1500 से अधिक मकानों को सेनीटाइज किया. इसके बाद उन्‍होंने कैसरबाग, भीमनगर में 1200 से अधिक मकानों व अपार्टमेंट का सेनीटाइज करने काम किया है. नूर का कहना है कि हम सभी को कोरोना से लड़ाई में सरकार का सहयोग करना चाहिए.

बच्‍चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर जुटा उत्तर प्रदेश

लखनऊ. कोरोना की तीसरी लहर को रोकने के लिए योगी सरकार ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है. विशेषज्ञ तीसरी लहर में बच्‍चों के लिए खतरनाक बना रहे हैं. ऐसे में अस्‍पतालों में अभी से बच्‍चों के इलाज से जुड़ी तैयारियां शुरू हो गई है. वहीं, आयुष विभाग ने भी कोरोना की तीसरी लहर से लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है. आयुष विभाग अपने सभी अस्‍पतालों में बच्‍चों के स्‍वस्‍थ्‍य को लेकर एक हेल्‍प डेस्‍क बनाने जा रहा है. साथ ही आयुष कवच एप पर बच्‍चों की सेहत से जुड़ा एक नया फीचर भी जोड़ने जा रहा है.

तीसरी लहर की तैयारी :

मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने आयुष विशेषज्ञों से आयुर्वेद की पुरानी परम्‍पराओं से कोरोना संक्रामित लोगों के इलाज की बात कहीं थी. इसके बाद से आयुष विभाग लगातार होमआइसोलेटेड मरीजों को आयुर्वेदिक दवाएं, काढ़ा आदि वितरित करा रहा है. अब आयुष विभाग ने अब संभावित कोरोना की तीसरी लहर की तैयारी शुरू कर दी है. आयुष विभाग के प्रभारी अधिकारी डॉ अशोक कुमार दीक्षित के मुताबिक कोरोना काल में आयुष कवच मोबाइल एप लोगों में काफी लोकप्रिय हुआ है. ढ़ाई लाख से अधिक लोग इसका इस्‍तेमाल कर रहे हैं.

उन्‍होंने बताया कि आयुष कवच एप पर जल्‍दी बच्‍चों की सेहत से जुड़ा एक फीचर जोड़ने की तैयारी चल रही है. इसमें बच्‍चों की सेहत का मौसम के हिसाब से कैसे ख्‍याल रखें, किस तरह से बच्‍चों में रोग प्रतिरोधक क्षमताओं को बढ़ाया जाए, कौनसी घरेलू औषद्यीय के जरिए उनकी सेहत बेहतर बनाए, इसकी जानकारी लोगों को दी जाएगी.

अस्‍पतालों में बनेगी बच्‍चों के लिए हेल्‍प डेस्‍क

डॉ अशोक बताते हैं कि प्रदेश में आयुष विभाग के करीब 2104 चिकित्‍सालय हैं. इनमें से लखनऊ, बनारस, पीलीभीत समेत अन्‍य जिलों में 8 बड़े अस्‍पताल है. इन सभी अस्‍पतालों में बच्‍चों के स्‍वस्‍थ्‍य से जुड़ी एक हेल्‍पडेस्‍क बनाई जाएगी. जहां पर आयुष डॉक्‍टर लोगों को बच्‍चों की सेहत और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कैसे बढ़ाई जाए इसकी जानकारी देंगे. इसके अलावा यहां से बच्‍चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवाओं का वितरण भी किया जाएगा. अस्‍पतालों में ओपीडी खुलने पर बच्‍चों का इलाज भी यहां शुरू किया जाएगा.

Neha Kakkar ने बीच सड़क पर मारा पति Rohanpreet को थप्पड़, देखें वीडियो

भारतीय सिंगग स्टार नेहा कक्कड़ लगातार सुर्खियों में बनी रहती हैं,लेकिन इन दिनों नेहा कक्कड़ अपने नए गाने को लेकर चर्चा में बनी हुईं हैं, जिसमें वह अपने पति रोहनप्रीत के साथ नजर आ रही हैं. नेहा और रोहन साथ में काफी ज्यादा क्यूट नजर आते हैं.

इस गाने के एक सीन में नेहा को रोहनप्रीत के गाल पर थप्पड़ मारनी थी, लेकिन नेहा ने हल्के हाथों से मारने की जगह जोर का थप्पड़ रोहनप्रीत के गालों पर जड़ दिया. जिसके बाद से रोहन की गाल लाल हो गई. उसके बाद दोनों ने जमकर एक-दूसरे की खिंचाई करते दिखें.

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बता दें कि इस गाने को नेहा और रोहनप्रीत ने मिलकर गाया है. जिसे लोग खूब ज्यादा पसंद कर रहे हैं. वैसे भी इंडस्टट्री के जानें माने कपल में इऩ दोनों का नाम शूमार है. कुछ वक्त पहले ही यह जोड़ा शादी के बंधन में बंधा है जिसके बाद लोग इन्हें खूब ज्यादा बधाईयां देते नजर आएं हैं. रोहनप्रीत और नेहा बहुत कम समय में एक-दूसके को जानें और शादी करने का फैसला ले लिया. जिससे फैंस को शॉक भी लगा था.

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फैंस लगातार नेहा और रोहन के गाने का इंतजार करते नजर आते हैं. इसके साथ ही नेहा कक्कड़ सोशल मीडिया पर भी खूब एक्टिव रहती हैं.

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कुछ वक्त पहले नेहा कक्कड़ ने मम्मी पापा का सालगिरह मनाते नजर आईं थी.

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सीरियल तारक मेहता कि बबीता जी यानि मुनमुन दत्ता इन दिनों लगातार सुर्खियों में छाई हुईं हैं. हाल ही में मुनमुन दत्ता का एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें वह जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल करती नजर आ रही हैं. जिससे कुछ वर्ग के लोगों ने अपनी नाराजगी जताई है.

इसके बाद से लगातार मुनमुन दत्ता को ट्रोलिंग का सामना करना पड़ रहा है. साथ ही सोशल मीडिया पर मुनमुन दत्ता कि गिरफ्तारी की मांग कि जा रही है. दलित लोगों ने इस पर प्रर्दशन भी किया है जिसमें वह लगातार एक ही बात कह रहे थें कि जल्द से जल्द मुनमुन दत्ता कि गिरफ्तारी हो.

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बढ़ते मामले को देखते हुए मुनमुन दत्ता ने सोशल मीडिया पर लोगों से मांफी मांगी है लेकिन इसके बावजूद भी मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. बीते मंगलवार को एससी एक्ट के तहत उनके खिलाफ एफआई आर दर्ज करवाया गया है. शिकायत में कहा गया है कि मुनमुन दत्ता का वीडियो वल्गर नाम के यूट्यूब चैनल पर वायरल हो रहा था. जहां उन्होंने जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल किया है.

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हालांकि एक वीडियो में मुनमुन दत्ता ने साफ कह दिया है कि वह किसी को अपनी बातों से चोट नहीं पहुंचाना चाहती थी लेकिन लोगों ने उनके बातों का गलत मतलब निकाला है. इसमें वह कुछ नहीं कर सकती हैं. देखते हैं इस मामले में उनकी गिरफ्तारी होती है या नहीं.

खैर अगर सीरियल लाइफ की बात करें तो तारक मेहता का उल्टा चश्मा में सबसे ज्यादा लोग मुनमुन दत्ता को देखना पसंद करते हैं. इनकी फैन फ्लॉविंग बाकी लोगों से काफी ज्यादा है.

Short Story : बलात्कार

कुछ बातें परदे के पीछे छिपी होती हैं, वे छिपी रहें तो ही अच्छा. बाहर आ जाएं तो सहीगलत का निर्णय करना मुश्किल हो जाता है. मेरी सोच में कर्नल साहब की पत्नी के चरित्र को कलंकित करना ठीक नहीं था लेकिन वहीं सिपाही रमेश का फेवर न कर मैं उस के साथ नाइंसाफी करता. मैं अजीब स्थिति में था.

मैं जब पीटी के लिए ग्राउंड पर पहुंचा तो वहां पीटी न हो कर सभी जवान और अधिकारी एक स्थान पर इकट्ठे खड़े थे. मैं ने सोचा, पीटी के लिए अभी समय है, इसलिए ऐसा है. मैं अपना स्कूटर पार्क कर के हटा ही था कि स्टोरकीपर प्लाटून का प्लाटून हवलदार, सतनाम सिंह मेरे पास भागाभागा आया और बोला, ‘‘सर, गजब हो गया.’’

मैं स्टोरकीपर प्लाटून का प्लाटून कमांडर था, इसलिए उस का इस तरह भाग कर आना मुझे आश्चर्यजनक नहीं लगा. किसी नई घटना की मुझे सूचना देना उस की ड्यूटी में था. मैं ने उस की बात को बड़े हलके से लिया और पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

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‘‘सर, जो नया सिपाही रमेश पोस्ंिटग पर आया है न, उस की रात को अफसर मैस में ड्यूटी थी, उस ने कर्नल साहब की वाइफ का बलात्कार कर दिया.’’

‘‘क्या…क्या बकते हो? वह ऐसा कैसे कर सकता है? इस समय वह कहां है?’’ मैं एकाएक सतनाम सिंह की बात पर विश्वास नहीं कर पाया, इसलिए उस पर प्रश्नों की बौछार कर दी.

‘‘सर, वह क्वार्टरगार्ड (फौजी जेल) में बंद है. प्रशासनिक अफसर, कंपनी कमांडर और दूसरे अधिकारी वहीं पर हैं.’’

‘‘ठीक है, तुम यहीं रुको, मैं देखता हूं,’’ मैं ने सतनाम सिंह से कहा और सीधा क्वार्टरगार्ड की ओर बढ़ा. मुझे अपनी ओर आते देख कर कंपनी कमांडर साहब मेरी ओर बढ़े. ‘‘साहब, आप की प्लाटून के सिपाही रमेश ने तो गजब कर दिया. कर्नल साहब की वाइफ का रेप कर दिया.’’

‘‘सर, वह ऐसा कैसे कर सकता है. उस की यह हिम्मत? सर, आप ने उस से बात की?’’

‘‘बात करने की कोशिश की थी लेकिन वह कुछ नहीं बता रहा. केवल रोए जा रहा है.’’

‘‘ठीक है, सर. यह किस ने बताया कि उस ने रेप किया है? और कर्नल साहब उस समय कहां थे?’’

‘‘कर्नल साहब की वाइफ ने फोन कर के खुद बताया. ड्यूटी पर खड़े दूसरे गार्ड ने उसे ऐसा करते देखा. कर्नल साहब तो पीटी के लिए आ गए थे.’’

‘‘हूं, ठीक है, सर मैं देखता हूं, वह क्या कहता है.’’ मैं क्वार्टरगार्ड के पास पहुंचा तो कर्नल साहब दिखाई दिए. उन्होंने मेरी ओर निराशा से देखा, परंतु कहा कुछ नहीं. वे सकते में थे. ऐसी स्थिति में कोई कह भी क्या सकता है.

क्वार्टरगार्ड के जिस कमरे में रमेश बंद था, उस के बाहर प्रशासनिक अफसर, सूबेदार, मेजर और हवलदारमेजर खड़े थे. मुझे देखते ही मेरी ओर लपके. सभी ने एकसाथ कहा, ‘‘देखा साहब, इस लड़के ने क्या किया? ऊपर से रोए जा रहा है. कुछ बता भी नहीं रहा.’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं देखता हूं. आप कृपया जरा बाहर चलें. मैं उस से अकेले में बात करना चाहता हूं. मैं समझता हूं, वह इस समय घबराया हुआ है और दबाव में है इसलिए रोए जा रहा है. मैं उस से प्यार से बात करूंगा तो वह अवश्य बताएगा कि वास्तव में हुआ क्या था.’’

‘‘ठीक है साहब, आप देख लें और जो कुछ बताए, हमें बताएं, तब तक मैं कंपनी कमांडर से बोल कर कोर्ट औफ इन्क्वायरी का और्डर करता हूं,’’ यह कह कर प्रशासनिक अफसर बाहर चले गए. उन के पीछे दूसरे अधिकारी भी चले गए. केवल क्वार्टरगार्ड का गार्ड कमांडर खड़ा रहा. मैं ने उसे घूरा, तो वह भी खिसक लिया.

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मैं सिपाही रमेश के पास गया. वहां रखे जग में से एक गिलास पानी ले कर उसे दिया, ‘‘लो, पानी पियो.’’ उस ने मेरे हाथ से पानी ले कर थोड़ा पिया और थोड़े से अपना मुंह धो लिया. मुंह पोंछने के लिए मैं ने उसे अपना रूमाल दिया. उस ने मेरी ओर देखा. मैं ने अनुभव किया, वह पहले से कहीं अधिक स्वस्थ लग रहा था. यही समय है उस से बात करने का. मैं ने कहा, ‘‘देखो रमेश, मैं तुम्हारा प्लाटून कमांडर हूं. तुम मुझे पहचानते हो न?’’ मेरे स्वर में बड़ी आत्मीयता थी. उस ने हां में सिर हिलाया. ‘‘गुड, देखो, जो हुआ सो हुआ. अगर तुम मुझे सच बता दोगे तो मैं वचन देता हूं कि मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा.’’

रमेश की आंखें छलछला आई थीं, ‘‘सर, मैं गरीब आदमी हूं. मेरे वेतन पर पूरे घर का खर्चा चलता है. मुझ से गलती हुई. मुझे बचा लीजिएगा. मेरा पूरा कैरियर बरबाद हो जाएगा, सर. प्लीज, सर.’’ वह फिर रोने लगा.

‘‘तुम चिंता मत करो. तुम मुझे सचसच बताओगे, तभी मैं तुम्हारी मदद कर पाऊंगा.’’

‘‘सर, मुझ से गलती हुई पर मेरा ऐसा करने का कोईर् इरादा नहीं था. कर्नल साहब पीटी के लिए निकले तो मैं रूटीन में उन के क्वार्टर का चक्कर लगाने गया. कमरे की खिड़की खुली हुई थी. अचानक अंदर नजर गईर् तो मेमसाहब को अर्धनग्न अवस्था में देखा. गोरीगोरी सुंदर टांगें आकर्षित करने लगीं. जैसे न्योता दे रही हों कि आ जाओ. और सच मानें, सर मैं रह नहीं पाया. मेमसाहब ने भी कुछ नहीं कहा. उन्होंने भी शोर तब मचाया जब दूसरे गार्ड ने उन्हें ऐसा करते देख लिया. बस इतना ही, साहब.’’ वह फिर सुबकने लगा.

मेरे मन के भीतर एकाएक विचार आया, कहीं मेमसाहब भी तो ऐसा नहीं चाहती थीं, तभी उन्होंने शोर नहीं मचाया. उन्होंने शोर तब मचाया जब दूसरे गार्ड ने उन्हें देख लिया. मुझे किसी भी सम्माननीय नारी के प्रति ऐसा सोचने का अधिकार नहीं था. मेमसाहब के प्रति तो बिलकुल नहीं. वे सब के प्रति स्नेहशील थीं.

‘‘रमेश, तुम्हें इतना भी खयाल नहीं रहा कि मेमसाहब कमांडैंट साहब की वाइफ हैं. सब के लिए सम्मानीय. वे जवानों से कितना स्नेह और प्यार करती हैं. तुम्हें उन के साथ ऐसा कृत करते हुए शर्म नहीं आई. तुम्हारा तो कोर्टमार्शल होना चाहिए. डिसमिस फ्रौम सर्विस.’’

वह कुछ नहीं बोला. सिर्फ पहले की तरह रोता रहा. मैं फिर विचारों में खोने लगा. मानव मतिष्क में कब शैतान घुस आए, कोई भरोसा नहीं. इस में उम्र की कोई सीमा नहीं होती. यह तो युवा और कुंआरा है. ऐसी स्थिति में किसी का मन भी भटक सकता था. इस का भटकना आश्चर्य का विषय नहीं है, चाहे, यह सरासर गलत था. गलत है.

मैं ने कुछ क्षण सोचा, फिर फैसला कर लिया, ‘‘तुम जानते हो रमेश, कोर्ट औफ इन्क्वायरी चलेगी. तरहतरह के प्रश्न पूछे जाएंगे. अलगअलग ढंग से तुम्हें लताड़ा जाएगा. तुम पर बहुत दबाव होगा. सब से अधिक दबाव मैं डालूंगा. परंतु तुम्हें मेरी बात पर कायम रहना होगा चाहे मैं तुम्हें बाहर ले जा कर थप्पड़ भी मारूं. अब मैं जो कह रहा हूं, उस से तुम मुकरना नहीं.

‘‘मेरी बात ध्यान से सुनो, कहना, कर्नल साहब पीटी पर गए तो मेमसाहब ने मुझे बुलाया और ऐसा करने को कहा. कोई जितना मरजी दबाव डाले, तुम्हें यही कहना है. कोई अधिक जोर दे तो केवल यह जोड़ना है कि मेरी क्या हिम्मत कि मैं एक  कर्नल साहब की वाइफ के साथ ऐसा करूं. बस, इतना ही. एक शब्द भी इधरउधर नहीं. तुम्हें कुछ नहीं होगा.’’

मैं उसे उसी स्थिति में छोड़ कर क्वार्टरगार्ड से बाहर आ गया. मुझे देखते ही प्रशासनिक अफसर और कंपनी कमांडर साहब मेरी ओर आए. दोनों ने एकसाथ पूछा, ‘‘कुछ बताया, साहब?’’

‘‘जी साहब, वह तो उलटापुलटा कह रहा है. कह रहा है, कर्नल साहब के जाने के बाद मेमसाहब ने उसे बुलाया और ऐसा करने को कहा.’’

‘‘क्या? बदमाश है, बकवास करता है. कर्नल साहब की वाइफ ऐसा कैसे कह सकती हैं? क्यों कहेंगी?’’ प्रशासनिक अफसर ने कहा.

‘‘हां सर, झूठ बोल रहा है. कर्नल साहब की वाइफ ऐसा कह ही नहीं सकतीं. उन को मैं ही नहीं, पूरी यूनिट अच्छी तरह जानती है,’’ कंपनी कमांडर ने कहा.

‘‘मैं ने भी उस से यही कहा था. मैं तो उसे थप्पड़ मारने को भी हुआ परंतु वह बारबार यही कहता रहा, भला, उस की क्या हिम्मत कर्नल साहब की वाइफ के साथ ऐसा करे या ऐसा करता.’’

‘‘हूं, कोर्ट औफ इन्क्वायरी में सब पता चल जाएगा,’’ प्रशासनिक अफसर ने कहा और चलने लगे.

‘‘सर, सिपाही रमेश और कर्नल साहब की वाइफ का मैडिकल करवाना आवश्यक है,’’ कंपनी कमांडर ने कहा.

‘‘कर्नल साहब से बात कर के मैं इस का प्रबंध करता हूं,’’ कह कर प्रशासनिक अफसर चले गए. उन के पीछेपीछे कंपनी कमांडर साहब भी. मैं भी वहां से लौट आया.

पिछले एक सप्ताह से सिपाही रमेश के विरुद्ध कोर्ट औफ इन्क्वायरी चल रही है. इस से पहले उस का और कर्नल साहब की वाइफ का मैडिकल हुआ था जिस में बलात्कार साबित हो गया था. इन्क्वायरी के अध्यक्ष मेजर विमल थे. कैप्टन सविता और सूबेदारमेजर विजय सिंह मैंबर थे. प्लाटून कमांडर होने के नाते आज मेरी स्टेटमैंट रिकौर्ड होनी थी. मैं मन ही मन इस के लिए खुद को तैयार करने लगा. मुझे इस बात की सूचना मिल गई थी कि सिपाही रमेश ने वही स्टेटमैंट दी थी जैसा मैं ने कहा था. अधिक जोर देने पर भी उस ने वही बात कही थी जिस के लिए मैं ने उसे हिदायत दी थी. मेरी स्टेटमैंट पर भी बहुतकुछ निर्भर था.

मैं जब कोर्ट औफ इन्क्वायरी के समक्ष पहुंचा तो सभी मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे. सुबह के 10 बज चुके थे. मेरे लिए इसी समय पहुंचने का आदेश था. मैं ने मेजर साहब को सैल्यूट किया और निश्चित कुरसी पर बैठ गया. कुछ समय चुप्पी छाई रही. फिर मेजर साहब ने प्रश्न करने शुरू किए.

‘‘आप कब से स्टोरकीपर प्लाटून के प्लाटून कमांडर हैं?’’

‘‘सर, पिछले वर्ष जनवरी से.’’

‘‘आप सिपाही रमेश को कब से जानते हैं?’’

‘‘एक सप्ताह पहले से, जब से वह पोस्ंिटग पर आया है.’’

‘‘आप को पता है, वह कहां से पोस्ंिटग पर आया है?’’

‘‘जी, मैटीरियल मैनजमैंट कालेज, जबलपुर से.’’

‘‘यानी, बिलकुल नया है. स्टोरकीपर की ट्रेनिंग के बाद वह सीधे यहीं आया है?’’

‘‘जी, सर.’’

‘‘आप जवानों के बीच से अफसर बने हैं. आप उन की मानसिकता को बड़ी अच्छी तरह समझते हैं, जानते हैं. क्या आप को लगता है, सिपाही रमेश बलात्कार जैसा अपराध कर सकता है?’’

‘‘मैं जानता हूं, सर सिपाही रमेश मेरे लिए नया है. मैं उसे अधिक नहीं जानता परंतु मैं यह अवश्य जानता हूं कि ट्रेनिंग सैंटरों से आए जवान अधिक अनुशासनप्रिय होते हैं, वे ऐसे अपराध कर ही नहीं सकते.’’

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं, रमेश आप की प्लाटून का जवान है, ऐसा कह कर आप उसे बचाना चाहते हैं?’’

‘‘नहीं, सर ऐसा नहीं है. मैं जवान से अफसर बना हूं. मैं 10 वर्षों तक उन के बीच रहा हूं. मैं उन की सोच, उन की मानसिकता को बड़े करीब से जानता हूं. वे बहुत ही गरीब परिवारों से आते हैं. जिन की दालरोटी उन के वेतनों से चलती है. वे ऐसा कैसे कर सकते हैं? उन के लिए तो एक सीनियर सिपाही और लांस नायक एक बहुत बड़ा अफसर है. उन के समक्ष वे सावधान हो कर बात करते हैं. वे ऐसे जवानों के प्रति कोई अपराध की बात नहीं सोचते तो कर्नल साहब के प्रति सोचना तो बहुत दूर की बात है.’’

‘‘अपराध तो हुआ है. मैडिकल रिपोर्ट में बलात्कार साबित हो चुका है. क्या आप को लगता है, इस में कर्नल साहब की वाइफ भी कहीं दोषी हैं? सिपाही रमेश ने भी अपने बयान में कहा है कि उन्होंने उसे बुलाया और ऐसा करने को कहा. आप के ऊपर दिए बयान से भी कहीं न कहीं यह झलकता है कि इस में कर्नल साहब की वाइफ भी दोषी हैं?’’

प्रश्न का उत्तर देना बड़ा कठिन था. किसी को भी भ्रमित कर सकता था. मेजर साहब कहीं न कहीं मेरे मुख से इस के प्रति सुनना चाहते थे, परंतु मैं जानता था, मुझे क्या कहना है. मेरी थोड़ी सी गलती सिपाही रमेश का कोर्टमार्शल करवा सकती थी. मैं ने मन में ठान ली कि मुझे गोलमोल उत्तर देना है.

‘‘सर, मैं ने यह नहीं कहा कि कर्नल साहब की वाइफ दोषी हैं. मुझे नहीं पता, वास्तव में वहां हुआ क्या था. मैं ने तो आप के प्रश्न के उत्तर में जवानों की गरीबी, अनुशासनप्रियता और उन की मानसिकता को आप के समक्ष रखा है और यह कहने की कोशिश की है कि विकट परिस्थितियों में भी ऐसे अपराधों से जवान खुद को दूर रखने का प्रयत्न करते हैं. जम्मूकश्मीर में भी ऐसे कई केसेस आए जिन में जवान बेगुनाह साबित हुए. जहां तक कर्नल साहब की वाइफ का प्रश्न है, वे बहुत ही सम्मानीय नारी हैं. मैं उन को कलंकित होते नहीं देख सकता.’’

पर कहीं न कहीं मेरे मन के भीतर यह प्रश्न भी अपने विकराल रूप में रेंग रहा था कि कर्नल साहब खुद एक चरित्रहीन व्यक्ति हैं, कहीं उन के चरित्र से प्रभावित हो कर मेमसाहब ने ऐसा तो नहीं किया?

विडंबना देखिए, सेना में जहां औरतें पहले उपलब्ध नहीं हुआ करती थीं, अधिकारी अपने जूनियर या सीनियर अधिकारियों की पत्नियों से संबंध बनाने की कोशिश किया करते थे. खुद कई पत्नियां भी इस में पीछे नहीं रहती थीं, परंतु यह सब छिपछिप कर होता था. सेना में अब महिला अफसर आने से यह छिपाव खत्म हो गया है.

महिला अफसर सदा अपने सीनियर अफसरों के प्रभाव में रहती हैं और वे अधिकारी इस का पूरा फायदा उठाते हैं. मैं समझता हूं, शायद कर्नल साहब की चरित्रहीनता ने मेमसाहब को ऐसा करने को प्रेरित किया हो कि वे ऐसा कर सकते हैं तो वह क्यों नहीं. निश्चिय ही इसी का प्रभाव रहा होगा, परंतु मैं अपनी इस सोच को शाब्दिक प्रस्तुत नहीं कर पाया.

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मैं चुप हो गया था. मेजर साहब भी सोच में डूब गए. उन को महत्त्वपूर्ण निर्णय करना था. एक तरफ जहां नारी का सम्मान दांव पर था, वहीं एक जवान का भविष्य भी जुड़ा था. थोड़ी सी गलती रमेश का कैरियर बरबाद कर सकती थी.

वे निर्णय नहीं कर पा रहे थे. फिर उन्होंने अपनी गरदन को झटका दिया, जैसे किसी निर्णय पर पहुंच गए हों, स्पष्ट कहा, ‘‘पिछले एक सप्ताह से, जब से कोर्ट औफ इनक्वायरी चली है, मैं इसी पर सोचता आ रहा हूं. अपराध तो हुआ है, मैं मानता हूं. मैं यह भी जानता हूं किसी नारी के चरित्र पर बिना देखे लांछन लगाना, उस से बड़ा अपराध है. मैं जवानों की मानसिकता को भी बड़े करीब से जानता हूं. चाहे मैं ने सेना में सीधे कमीशन लिया है. मैं ने दूसरे अफसरों से भी बात की है. वे भी यही कहते हैं. मैं नहीं समझता इस में सिपाही रमेश अधिक दोषी है. यह सहमति सैक्स का मामला बनता है. बनता ही नहीं, बल्कि है.’’

मेजर साहब ने कोर्ट औफ इन्क्वायरी के दूसरे सदस्यों की ओर गहरी नजरों से देखा. वे चुप थे, जिस का मतलब यह भी था कि वे उन की बात से सहमत हैं.

कोर्ट औफ इन्क्वायरी का कंक्ल्यूजन लिख लिया गया जो सिपाही रमेश के फेवर में था. कर्नल साहब को इस का आभास हो गया था कि इन्क्वायरी का कंक्ल्यूजन उन के फेवर में नहीं है.

एक सप्ताह के भीतर ही उन्होंने अपना ट्रांसफर करवा लिया और चले गए. वे बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहते थे. अगर आगे बढ़ाते तो जहां उन की बदनामी होती वहीं इंक्वायरी का कंक्ल्यूजन आड़े आता. मुझे सिपाही रमेश को बचा पाने की खुशी थी, वहीं कर्नल साहब की वाइफ के लिए हमदर्दी थी. मैं मन की गहराइयों से इस बात का फैसला नहीं कर पाया कि यह गलत हुआ या सही.

पश्चिमी बंगाल में भाजपा की हार  

पश्चिमी बंगाल में चुनावों में बुरी तरह हारने के बाद भारतीय जनता पार्टी के पास अपने कैडर को बिखरने से बचाने के लिए कोई तरीका नहीं बचा तो उन्होंने खुद को पिटने का नाटक कर ही हल्ला करना शुरू किया है. यह अपने बचाव का सब से अच्छा तरीका है और अक्सर घरों की धर्मनिष्ठ बूढिय़ां बदूओं के खिलाफ इस का इस्तेमाल करती हैं जब सत्ता सास के हाथ से निकल कर बहू के हाथ में आ जाए.

पश्चिमी बंगाल में भारतीय जनता पार्टी 2021 के विधानसभा चुनाव जीता ही समझ रही थी और इसलिए उस ने पहले तृणमूल कांगे्रस के वर्करों की खूब पिटाई की पर चुनाव आयोग के निर्देश पर चल रही पुलिस के हाथ बंधे हुए थे. अमित शाह और चुनाव आयोग ने पूरी पुलिस की कमान भाजपा समर्थकों अफसरों को सौंप रखी थी. यह हर चुनाव में होता है कि पुलिस अफसरों का इस्तेमाल जो सत्ता में बैठी पार्टी है वह करती है. पश्चिमी बंगाल में चुनाव आयोग का फायदा उठा कर दिल्ली ने अपने अफसर लगाए थे और उन के ईशारों पर भाजपा कार्यकत्र्ताओं का उत्पात छिपा रहा.

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अब भारतीय जनता पार्टी के कार्यकत्र्ता वैसा ही शोर मचा रहे हैं जैसे पौराणिक कथाओं को देवता और ऋ षिमुनि ……के आक्रमण से घबरा कर कभी विष्णु की शरण में गुहार लगाते थे, ममता बैनर्जी के खिलाफ कभी गवर्नर कभी गृहमंत्री तो कभी गोदी मीडिया पर गुहार लगाई जा रही है. उन्हें मालूम है कि होने वाला कुछ नहीं है, बस भाजपा के कैडर को लगेगा कि कुछ हो रहा है.

भाजपा का कैडर आजकल उस भीगी बिल्ली की तरह जो अपने को शेर समझने लगी थी और गली पर राज जमा रही थी. पश्चिमी बंगाल में ही नहीं सभी राज्यों में उस की हालत पतली हो रही है. उत्तर प्रदेश के पंचायती चुनावों में वह बुरी तरह फ्लौप हुई है. कोविड की लड़ाई में नरेंद्र मोदी को देश में ही नहीं दुनिया भर में सिर्फ थूथू मिल रही है. जो बेचारगी आज भाजपा कैंडर में छा गर्ई है वह अद्भुत है क्योंकि इस की कल्पना ही नहीं की गई थी.

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पश्चिमी बंगाल में ङ्क्षहसा चुनाव से पहले होती तो लाभ था. जीतने वालों को पीटने की फुरसत नहीं होती. वे तो अपने जमीन को मजबूत करने में लगते हैं, तो पार्टी भाजपा के दिग्गजों को हरा कर आई है, वह ऐसी वेबकूफ हो ही नहीं सकती कि नाहक खुद को बदनाम करे, वह भी एक अधमरे जमीन पर पड़े घोड़े को चावुक मार कर.

अदरक की खेती: किसान बढ़ाए पैदावार तो मिलेगा मुनाफा

लेखक-प्रो. रवि प्रकाश मौर्य

बहुत समय से अदरक का इस्तेमाल मसाले के रूप में, सागभाजी, सलाद, चटनी और अचार व अलगअलग तरह की भोजन सामग्रियों के बनने के अलावा तमाम तरह की औषधियों के बनाने में होता है. इसे सुखा कर सौंठ भी बनाई जाती है. आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, सोहांव, बलिया के अध्यक्ष प्रोफैसर रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि बागों की भूमि का उपयोग अदरक की खेती के लिए कर सकते हैं. मिट्टी व खेत की तैयारी उचित जल निकास वाली दोमट या रेतीली दोमट भूमि इस की खेती के लिए अच्छी होती है. जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी व समतल कर लेना चाहिए. बोआई का समय जहां पर सिंचाई की सुविधा हो, वहां इस की बोआई अप्रैल के मध्य पखवारे से मई महीने तक करनी चाहिए. किस्में व अवधि अदरक की उन्नत किस्में सुप्रभा, सुरुचि, सुरभि वगैरह हैं, जो 200 से 225 दिनों में तैयार हो जाती हैं.

बीज की मात्रा व बोने की विधि एक कट्ठा क्षेत्रफल (125 वर्गमीटर) के लिए तकरीबन 24 से 30 किलोग्राम बीज प्रकंदों की जरूरत होती है, जिन्हें 4 से 5 सैंटीमीटर के टुकड़ों में बांट लेते हैं. हर टुकड़े का भार 25 ग्राम से 30 ग्राम होना चाहिए और उस में 2 आंखें जरूर हों. बीज प्रकंदों को बोने से पहले 2.5 ग्राम मैंकोजेब और 1 ग्राम बाविस्टीन मिश्रित प्रति लिटर पानी के घोल में आधे घंटे तक डुबोना चाहिए. फिर छाया में सुखाने के बाद इन्हें 4 सैंटीमीटर की गहराई में बोआई कर दें. पंक्तियों की आपसी दूरी 25 सैंटीमीटर से 30 सैंटीमीटर और पौधों से पौधों की आपसी दूरी 15 सैंटीमीटर से 20 सैंटीमीटर रखते हैं. बीज प्रकंदों को मिट्टी से अच्छी तरह ढक देना चाहिए. बोआई के तुरंत बाद ऊपर से घासफूस, पत्तियों व गोबर की सड़ी हुई खाद से अच्छी तरह ढक देना चाहिए. ऐसा करने से मिट्टी के अंदर नमी बनी रहती है और तेज धूप के चलते अंकुरण पर बुरा असर नहीं पड़ता है. खाद व उर्वरक खाद व उर्वरक के इस्तेमाल के लिए मिट्टी की जांच करना बेहद जरूरी है. किसी वजह से मिट्टी की जांच न हो सके, तो उन हालात में गोबर की सड़ी हुई खाद या कंपोस्ट 200-250 किलोग्राम प्रति कट्ठा की दर से जमीन में मिला दें.

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रासायनिक उर्वरक यूरिया 1.37 किलोग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 6.25 किलोग्राम व म्यूरेट औफ पोटाश 1.06 किलोग्राम, 250 ग्राम जिंक सल्फेट व 125 ग्राम बोरैक्स रोपाई के समय जमीन में मिला दें. रोपाई के 75 दिन बाद मिट्टी चढ़ाते समय यूरिया 1.37 किलोग्राम देनी चाहिए. सिंचाई अदरक की फसल में भूमि में बराबर नमी बनी रहनी चाहिए. पहली सिंचाई बोआई के कुछ दिन बाद ही करते हैं और जब तक बारिश शुरू न हो जाए, 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहते हैं. गरमियों में हर हफ्ते सिंचाई करनी चाहिए. खरपतवार प्रबंधन अदरक के खेत को खरपतवाररहित रखने और मिट्टी को भुरभुरी बनाए रखने के लिए जरूरत के मुताबिक निराईगुड़ाई करनी चाहिए. अदरक की फसल अवधि में 2-3 बार निराईगुड़ाई करना सही होता है. हर गुड़ाई के बाद मिट्टी जरूर चढ़ाएं. पत्तियों का पलवार (ऊपर से ढक) देने से अंकुरण अच्छा होता है और खरपतवार भी कम उगते हैं. 3-4 बार पलवार देने से अच्छी उपज मिलती है.

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50-60 किलोग्राम हरी पत्तियों का पलवार बोआई के तुरंत बाद, इतनी ही पत्तियों का पलवार 30 दिन व 60 दिन बाद देते हैं. जब पौधे 20-25 सैंटीमीटर ऊंचे हो जाएं, तो उन पर मिट्टी चढ़ा देते हैं. खुदाई व उपज बोआई के तकरीबन 7-8 महीने बाद फसल को खोदा जा सकता है, पर सौंठ के लिए फसल को पूरी तरह से पक जाने पर ही खोदते हैं. फसल के पकने में मौसम और किस्म के मुताबिक 7-8 महीने लगते हैं. जब पौधों की पत्तियां सूखने लगें, तब प्रकंदों को फावड़े या खुरपी से खोद कर निकाल लेते हैं. प्रति बिस्वा 200-250 किलोग्राम प्रकंद मिल जाते हैं. सूखने पर इस से 20 से 30 किलोग्राम तक सौंठ हासिल होती है. अंत:फसल अदरक की अंत:फसल मिर्च व दूसरी फसलों के साथ खासतौर पर सब्जी वाली फसलों में कर सकते हैं. अंतरवर्ती फसल के रूप में बगीचों में जैसे आम, कटहल, अमरूद वगैरह लगा कर ज्यादा आमदनी हासिल की जा सकती है.

उत्तर प्रदेश: देवरिया DM की पहल, अब कोविड पेशेंट का लाइव ट्रीटमेंट देख सकेंगे परिजन

उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में जिलाधिकारी आशुतोष निरंजन ने एक प्रयोग करते हुए कोविड अस्पताल के बाहर मेन गेट पर LED स्क्रीन लगाई गई है. जिसमें मरीजों के परिजन यह देख पाएंगे कि उनको को क्या क्या सुविधाएं मिल रही हैं और उनका इलाज कैसे हो रहा है.

इसके अलावा कंट्रोल यूनिट के पास लगे माइक से अपने मरीजों से बात भी कर सकेंगे. डॉक्टरों से अपने मरीज के सेहत की अपडेट भी ले पाएंगे. इससे मरीज और उनके साथ आए लोग दोनों संतुष्ट रहेंगे.

जिला अस्पताल में बने कोविड वार्ड में वर्तमान में 71 मरीज भर्ती हैं. जिनमें चार की हालत गंभीर है. इन मरीजों के इलाज और निगरानी के लिए डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टॉफ की ड्यूटी लगाई गई है.

दरअसल, कोविड वार्ड में मेडिकल स्टॉफ के अलावा किसी का प्रवेश वर्जित है. ऐसे में तीमारदार अपने अपने मरीजों का हाल जानने के लिए परेशान रहते हैं. जिला प्रशासन के पास भी बदइंतजामी की शिकायतें पहुंच रही थीं.

इन सभी समस्याओं का हल डीएम देवरिया आशुतोष निरंजन ने एक नवाचार करते हुए ढूंढ निकाला. उन्होंने कोविड अस्पताल देवरिया का निरीक्षण किया, जहां CCTV के माध्यम से कंट्रोल रूम से मानिटरिंग और दोनों तरफ से संवाद की व्यवस्था का संचालन कराया.

डीएम ने बढ़ाया था स्वास्थ कर्मियों का हौसला

इस दौरान उन्होंने अस्पताल कर्मियों का हौसला बढ़ाया. कहा कि सभी पर विश्वास कर ही यह व्यवस्था शुरु की गई है. इसे तोड़ना नहीं है. अस्पताल के बाहर लगी LED स्क्रीन के माध्यम से 250 बेड के कोविड अस्पताल में होने वाली पूरी गतिविधि का live प्रसारण होगा. अब मरीजों के परिजन संतुष्ट और आश्वस्त हैं.

गंगा की रेत पर लाशें नहीं सरकार की चिन्दी बिखरी पड़ी है

धर्म और आस्था के नाम पर हम नेताओं के उकसावे में आकर मंदिर-मस्जिद, श्मशान-कब्रिस्तान के लिए लड़ते-मरते रहे. हमने इन्हीं खोखली बातों के लिए उन्हें वोट देकर अपने सिर पर बिठाया. आज मंदिर-मस्जिद क्या किसी के काम आ रहे हैं? पंडित-मौलाना-पादरी क्या किसी का दर्द दूर कर रहे हैं? जिनको आपने अपने बहुमूल्य वोट से शहंशाह बना दिया वो सारे के सारे कहीं किसी अँधेरे कोने में खुद दुबके पड़े हैं. इस आपदाकाल में देश का गृहमंत्री तक कहीं नज़र नहीं आ रहा है.

गंगा-यमुना में लाशों के झुण्ड के झुण्ड बह रहे हैं. गंगा के पाटों पर जहाँ तक नज़र जाए बालू में दबी लाशें ही लाशें दिख रही हैं, जो बारिश के पानी से धुल कर बाहर निकल आयी हैं. वो जो कभी तुम्हारे पिता थे, माता थी, भाई, बहन, चाचा, मामा, ताऊ, बेटी, बेटा, पोता-पोती थे, जिन्हें तुम्हारी चुनी हुई सरकार ने महामारी से जूझने के लिए अकेले-बेसहारा छोड़ दिया, जिन्हें एक एक साँस के लिए तड़पा दिया, जो जीवित बच सकते थे अगर अस्पताल में जगह मिल जाती, ऑक्सीजन से चंद साँसे मिल जातीं, मगर खोखली सरकार उनके लिए इतना भी ना कर पायी. आज वे गंगा की रेत पर पड़े गिद्ध, कौवे, सियार और कुत्तों का निवाला बन रहे हैं. तुम्हारी चुनी हुई सरकार तुम्हारे परिजनों को एक सम्मानजनक अंतिम विदाई भी नहीं दे पायी. ना उन्हें चार कंधे नसीब हुए, ना धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उनकी अंतिम क्रिया हुई. सारी धार्मिक क्रियाएं चिन्दी चिन्दी हो गंगा की रेत पर पड़ी हैं. किसी हिंदू ने कभी सपने में नहीं सोचा होगा कि बेबसी का वो दौर भी आयेगा, जब सम्मानजनक अग्नि संस्कार की जगह उनके शव को गंगा की रेत में दफना दिया जाएगा. वो भी उस राज में जिसके नेता सुबह से शाम तक हिंदू जाप ही करते हों.

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तुम्हारी चुनी हुई सरकार की विफलताओं के बीच कोरोना ने श्मशान-कब्रिस्तान का भेद ही ख़त्म कर दिया है. गंगा के पाट हिन्दुओं का कब्रिस्तान बन चुके हैं और शवदाहगृह मुसलामानों के श्मशान बन गए हैं, जहाँ कोरोनाग्रस्त मुस्लिम लाशें भी अग्नि के सुपुर्द की जा रही हैं. इस सरकार ने सारे धर्मों-संस्कारों को गडमड कर दिया. गंगा के किनारे से पत्रकार दिलीप सिंह लिखते हैं –   मैं गंगा किनारे ही पैदा हुआ हूं. यहीं बड़ा हुआ हूं, लेकिन मैंने अपनी पूरी जिंदगी में आज तक ऐसा दर्दनाक नजारा पहले कभी नहीं देखा. मैं उत्तर प्रदेश के उन्नाव स्थित उस गंगा घाट के किनारे हूं, जहां एक साथ 500 से ज्यादा लाशें दफन हैं. ज्यादा भी हो सकती हैं. आंकड़े छिपाये जा रहे हैं. ये लाशें हिंदुओं की हों या मुसलमानों की… कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि हैं तो इंसानों की ही. सदियों से गंगा बह रही है, लेकिन आज तक गंगा के किनारे बसे गांव वालों ने इंसानियत को तार-तार करने वाला ऐसा मंजर कभी नहीं देखा. मैंने जो देखा…मेरी रूह कांप उठी. रात में हुई बारिश के चलते गंगा का जलस्तर क्या बढ़ा, कई लाशें बाहर आ गईं. एक-दो नहीं बल्कि पचासों कुत्ते उन पर टूट पड़े थे. हर तरफ लाशों का अंबार और क्षत-विक्षत मानव अंग. कुछ देर होते ही प्रशासनिक अफसर भी पहुंच गए. देखते ही देखते लाशों के ऊपर से कफन हटवाया जाने लगा. मैं कुछ समझ पाता, तब तक उन लाशों पर बालू भी डलवा दी गई. कफन को हटाने का मकसद शायद ये था कि दूर से कोई लाशों की पहचान और गिनती न कर सके.

कोरोना ने हमें बता दिया कि हमारी सारी ऊर्जा, सारा ज्ञान, सारी मेहनत, सारा धन वास्तव में जिन कामों के लिए लगना चाहिए था, वहां लगा ही नहीं. सब फिजूल के कामों में खप गया. हम नेताओं के हाथों छले गए. उन्होंने हमसे मंदिर के नाम पर वोट लिया. मंदिर बनाया, पर हमें ज़रूरत तो अस्पतालों की थी. सोशल मीडिया का उपयोग धार्मिक उन्माद फैलाने के लिए होता रहा, मॉब लिंचिंग और दंगे भड़काने के लिए होता रहा, पर ज़रुरत तो इस बात की थी कि गाँव-कसबे तक इंटरनेट का फैलाव होता तो आज गाँव-देहात का बच्चा भी ऑनलाइन शिक्षा से जुड़ा रह सकता था. कोरोना काल में गरीब तबके के लाखों बच्चे जिनका नाता स्कूल और पढ़ाई से टूट चुका है, जिन्होंने बीते डेढ़ साल में ऑनलाइन शिक्षा भी नहीं पायी, क्या वे फिर कभी वापस स्कूल जा पाएंगे? शायद अब कभी नहीं. इस सरकार ने हज़ारों बच्चों को अनाथ कर दिया और लाखों को शिक्षा से हमेशा के लिए दूर कर दिया.

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देश का स्वास्थ्य और शिक्षा का ढांचा कितना जर्जर था, ये कोरोना ने पलक झपकते दिखा दिया. कोरोना ने नेताओं की असलियत खोल कर तुम्हारे सामने रख दी है. दुनिया के सामने इस सरकार को नंगा कर दिया है. वे विश्वगुरु बनने चले थे, कोरोना ने हाथ में कटोरा थमा दिया कि अपने नागरिकों की जान बचानी है तो दुनिया भर से दवा, इंजेक्शन, वैक्सीन और मेडिकल उपकरण मांगो. क्या अब भी तुम्हारी चुनी हुई सरकार को और तुमको शर्म नहीं आती? क्या अपनों को पलक झपकते लाशों में तब्दील होते देखने के बाद भी इस बात का अफ़सोस नहीं होता कि किन नरपिशाचों के हाथ तुमने सत्ता सौंप दी?

तुम्हारी चुनी हुई सरकार जो पिछले सात साल से ‘विकास’ का ढोल पीट रही है मगर आज तक ‘विकास’ की प्राथमिकताएं तक तय नहीं कर पायी. मोदी सरकार का यह ‘न्यू इंडिया’ है कि एक महिला जो अपने कोरोना से तड़पते पति को इलाज के लिए किसी तरह अस्पताल में दाखिल करवा पायी थी, रात को मेडिकल स्टाफ का आदमी उसके सीने पर हाथ मार कर उसका दुपट्टा खींच लेता है, उसके अंगों को छूने की नापाक कोशिश करता है और उसकी इस घिनौनी हरकत पर कोई कुछ नहीं बोल पाता. ऑक्सीजन के अभाव में एक-एक सांस के लिए छटपटाता पति अपनी पत्नी के साथ ऐसी घिनौनी हरकत होते देख पसीने से लथपथ हो जाता है और वहां खड़े डॉक्टर अपने कर्मचारी की हरकत पर खींसे निपोरते रहते हैं. ये है मोदी का ‘न्यू इंडिया’? ये है मोदी का स्किल इंडिया, जहाँ मुर्दे को कंधा देने के लिए लोग मजबूर परिजनों की जेब से आखिरी सिक्का तक झड़वा ले रहे हैं. स्किल इंडिया जहाँ श्मशानों-कब्रिस्तानों से कफन चोरी हो रहे हैं. ये है मोदी का ‘आत्मनिर्भर भारत’ जब एक 45 साल के बेटे को 75 साल के कोरोना से मरे बाप को श्मशान तक ले जाने के लिए अस्पताल वाले कोई वाहन नहीं देते और वह बाप की लाश को कंधे पर उठा कर दस किलोमीटर पैदल चला जाता है.

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दुनिया के इतिहास में वर्ष 2021का भारत एक काले पन्ने के रूप में याद किया जाएगा. एक ऐसी सरकार जिसने साल 2014 में ‘अच्छे दिन’ लाने का वादा किया था उसने सात साल में भारत का वो हश्र कर दिया कि अस्पतालों में ऑक्सीजन और दवाओं के अभाव में लाखों लोग मर गए. एक ऐसी सरकार जो मरने के बाद अपने नागरिक का उसके धर्म के अनुसार उचित क्रियाकर्म तक ना करवा सकी. एम्बुलेंस में भर भर कर लाशों को गंगा की रेत पर डलवा दिया ताकि कौवे, चील, कुत्ते और सियार नोचते रहें.

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