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कोरोना संक्रमण से बचाव में बच्चों के लिये ‘रक्षा कवच’ बनेगा ‘पीआईसीयू’

लखनऊ . मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश के बच्चों को कोविड के प्रकोप से बचाने के लिए विशेष कार्ययोजना तैयार कर अधिकारियों को कार्य करने के निर्देश दिए हैं. जिसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं. प्रदेश में युद्धस्तर पर आईसीयू की तर्ज पर बच्चों के उपचार की व्यवस्था की जा रही है. प्रदेश के सभी जिलों में विशेष स्वास्थ्य सुविधाओं से लैस पीडियाट्रिक वार्ड पीकू तैयार किया जा रहा है. जहां बच्चों को  एक जगह पर सभी तरह का इलाज मिलेगा.

लखनऊ समेत सभी महानगरों के अस्पतालों में बच्चों को बीमारी से बचाने के लिये आधुनिक संसाधनों से युक्त पीडियाट्रिक बेड ‘रक्षा कवच’ तैयार करने का काम शुरू कर दिया गया है. बता दें कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद विशेषज्ञों और डॉक्टरों से बातचीत करने में जुटे हैं. कोरोना की दूसरी वेव से लड़ाई लड़ने के दौरान उन्होंने भविष्य की संभावित आंशका को देखते हुए तत्काल सभी शहरों में 50 से 100 बेड के पीडियाट्रिक बेड (पीआईसीयू) बनाने के निर्देश दिये हैं.

यह बेड विशेषकर एक महीने से ऊपर के बच्चों के लिए होंगे. इनका साइज छोटा होगा और साइडों में रेलिंग लगी होगी. गंभीर संक्रमित बच्चों को इसी पर इलाज और ऑक्सीजन की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी.

प्रतापगढ़, प्रयागराज, जालौन व कौशांबी में  पीडियाट्रिक वार्ड किए जा रहे तैयार

राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष डॉ विशेष गुप्ता ने बताया कि प्रतापगढ़, प्रयागराज, जालौन कौशांबी में एक हफ्ते के भीतर ही पीकू बनकर तैयार हों जाएंगे. जिसमें प्रयागराज में 25, प्रतापगढ़ में 30,जालौन में 10 और कौशांबी में 20 बेड वाले पीडियाट्रिक वार्ड तैयार किए जा रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि झांसी, अमेठी, मथुरा, मुरादाबाद, अयोध्या, गोरखपुर, मेरठ, चित्रकूट, लखनऊ, आजमगढ़ में तेजी से कार्य चल रहा है.

डॉक्टरों ने कहा कि बच्चों के लिये वरदान साबित होंगे पीडियाट्रिक बेड

लखनऊ में डफरिन अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सलमान खान ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से तत्काल सभी बड़े शहरों में 50 से 100 पीडियाट्रिक बेड बनाने के निर्णय को बच्चों के इलाज में कारगर बताया है. उन्होंने बताया कि एक महीने से ऊपर के बच्चों के लिये पीआईसीयू (पेडरिएटिक इनटेन्सिव केयर यूनिट), एक महीने के नीचे के बच्चों के उपचार के लिये एनआईसीयू (नियोनेटल इनटेन्सिव केयर यूनिट) और महिला अस्पताल में जन्म लेने वाले बच्चों के लिये एसएनसीयू (ए सिक न्यूबार्न केयर यूनिट) बेड होते हैं. जिनमें बच्चों को तत्काल इलाज देने की सभी सुविधाएं होती हैं.

Shehnaaz Gill को इंस्टाग्राम पर मिले 7.6 मिलियन फॉलोवर्स, फैंस के साथ ऐसे शेयर की खुशी

बिग बॉस फेम शहनाज गिल इन दिनों अपनी खुशी को सोशल मीडिया पर बॉटती नजर आ रही हैं. हाल ही में शहनाज गिल के इंस्टाग्राम पर 76 लाख से अधिक फॉलोवर्स हो गए हैं. इसकी खुशी में शहनाज गिल ने फैंस के साथ कई तस्वीरे शेयर कि हैं. जिसे फैंस काफी ज्यादा पसंद कर रहे हैं.

इन तस्वीरों को देखने के बाद शहनाज के लिए पाकिस्तान सेभी रिएक्शन आ रहे हैं. इस खुशी में शहनाज गिल ने फैंस के साथ इंस्टा लाइव किया था. जहां उन्होंने फैंस के सवाल का जवाब भी दिया था.

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बता दें कि सिद्धार्थ शुक्ला और शहनाज गिल के जोड़ी को लोग खूब ज्यादा पसंद करते हैं. दोनों की जोड़ी को सिडनाज के नाम से जाना जाता है. इनका चुलबुला अंदाज लोगों को काफी आकर्षित करता है.

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दरअसल, शहनाज गिल के फैंस भारत में ही नहीं है पाकिस्तान में भी है. जहां लोग उन्हें काफी ज्यादा पसंद करते हैं. शहनाज के फैन फॉलोविंग लंबी लाइन पाकिस्तान में हमेशा बनी रहती है.

 

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अक्सर उनके पोस्ट पर पाकिस्तान से प्यार आते रहता है. वैसे तो शहनाज गिल कई सारे जगहों पर काम किया था, लेकिन उन्हें ज्यादा लोकप्रियता बिग बॉस 13 में मिली . जहां उन्हें सिद्धार्थ शुक्ला के साथ खूब पसंद किया गया.

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इन दोनों ने साथ में कई म्यूजिक वीडियो में भी काम किया है जहां लोगों ने उन्हें खूब पसंद किया है. इसके साथ ही कई बार वह ट्रोलर्स की भी शिकार हो जाती हैं. जहां उन्हें जवाब देना पड़ता है.

बॉलीवुड सिंगर अरिजीत सिंह की मां का निधन, कोरोना से लड़ रही थीं जंग

भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के जाने माने गायक अरिजीत सिंह ने अपनी मां को कोरोना से खो दिया है. उन्हें कोरोना वायरस हुआ था जिस वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. हालत ज्यादा खराब होने कि वजह से उन्हें ECMO पर रखा गया था.

अरिजीत सिंह कि मां को बचाने कि लाख कोशिश की गई, लेकिन वह कोरोना से जंग हार गई. गुरुवार सुबह 11 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली.

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अरिजीत सिंह कि मां बीमार है इसकी जानकारी उन्होंने स्वास्तिका मुखर्जी को दी थी. स्वास्तिका मुखर्जी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर कर बताया था कि अरिजीत सिंह कि मा को ब्लड की जरुरत है. अरिजीत सिंह कि मां के मृत्यु के खबर के बाद लोगों में शोक की लहर दौड़ आई है.

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अरिजीत सिंह ने कई खूबसूरत गाने गाएं हैं जिस वजह से फैंस के बीच में उनकी अच्छी खासी फैन फॉलोविंग बन गई है. इस खबर से अरिजीत सिंह के फैंस काफी ज्यादा दुखी हैं उनकी मां के आत्मा को शांति मिले इसके लिए कामनाएं कर रहे हैं.

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फैंस अरिजीत सिंह के लिए भी दुआ कर रहे हैं कि भगवान उन्हें शक्ति दें कि वह इस दुख को बर्दाश्त कर पाएं. यह दुख काफी ज्यादा असहनीय है.

 

मेरी और मेरी दोस्त की उम्र 21 साल है, हम एकदूसरे के बहुत करीब हैं, बहुत प्यार भी है हम में, पर…

सवाल

मेरी और मेरी दोस्त की उम्र 21 साल है. हम एकदूसरे के बहुत करीब हैं, बहुत प्यार भी है हम में, पर जब भी कहीं बाहर घूमनेफिरने का प्लान बनता है तो वह मना कर देती है. परेशानी यहीं खत्म नहीं होती. मैं अपनी मनमरजी से किसी और के साथ घूमने का प्लान बना लूं तो उसे बुरा लग जाता है. मैं घूमनाफिरना चाहती हूं पर वह चाहती है कि वह कहीं नहीं जा रही तो मैं भी न जाऊं. अब इन हालात में मैं क्या करूं?

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जवाब

देखिए, आप दोनों अभी यंग हैं और इस उम्र में अकसर घूमने फिरने की ललक होना लाजिमी है. आप की दोस्त घूमनेफिरने वाली नहीं है जोकि उस का स्वभाव है. आप उसे प्यार से समझाने की कोशिश करिए. उसे समझाएं की पक्की दोस्ती वही है जिस में दोस्त एकदूसरे की पसंद नापसंद का ध्यान रखते हैं, एकदूसरे की इच्छाओं का सम्मान करते हैं.

दोस्ती में त्यागभावना का होना जरूरी है. आप उसे यह सब समझाएं, वरना उस की नाराजगी आप दोनों को एकदूसरे से बेहद दूर कर देगी. वैसे भी, आप उस को ले कर इतनी चिंताग्रस्त हैं तो उस का भी तो फर्ज बनता है कि वह आप के बारे में सोचे. अगर वह ऐसा नहीं करती तो आप को कठोर दिल के साथ अपने जीवन में आगे बढ़ जाना चाहिए. जिंदगी एक बार मिलती है और उसे अपनी इच्छाएं मारमार कर जीना जीवन को व्यर्थ करना ही है.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

Crime Story : 2 गज जमीन के नीचे

सौजन्य-सत्यकथा 

साल 2020 समाप्त होने में गिनती के दिन बचे थे. नया साल शीत लहर की चौखट पर खड़ा था. ऐसे में खरगोन जिला मुख्यालय से कुछ दूरी पर स्थित भीकनगांव के टीआई जगदीश प्रसाद गोयल पुलिस टीम के साथ गांव में रहने वाली छायाबाई के पिता को ले कर मोहनखेड़ी पहुंचे. पुलिस को देख कर गांव वालों की भीड़ भी संतोष गोलकर के नए बने मकान के सामने जमा हो गई.

दरअसल 2 दिन पहले गांव में अपने पिता के घर पर रहने वाली 25 वर्षीय छायाबाई अचानक लापता हो गई थी. जिस दिन छायाबाई लापता हुई, उसी रोज संतोष भी गांव से गायब था. दोनों का पे्रम प्रंसग पूरे गांव के लोगों की जुबान पर था, इसलिए गांव वालों का मानना था कि संतोष ही छायाबाई को ले कर भाग गया. लेकिन छायाबाई के पिता को शक था कि उस की बेटी को संतोष ने अपने नए मकान में छिपा रखा है. इसी बात की जांच करने के लिए पुलिस मोहनखेड़ी आई थी.

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संतोष के मकान में ताला पड़ा था. गांव में रहने वाले उस के मातापिता भी गायब थे. इसलिए पुलिस ने ताला तोड़ कर पूरे घर की तलाशी ली, लेकिन वहां केवल छिपकली और मकडि़यों के अलावा कोई तीसरा जीव दिखाई नहीं दिया. इसलिए पुलिस टीम वापस लौट आई. गांव वाले तो पहले ही मान चुके थे कि छायाबाई संतोष के साथ कहीं भाग गई है. अब पुलिस ने भी ऐसा ही मान लिया, लेकिन ऐसा मानने वालों के बीच केवल छायाबाई का परिवार ही ऐसा था, जो इस बात को मानने को राजी नहीं हो रहा था.
इसलिए उन के बारबार कहने पर संतोष के मकान में एक कमरे के फर्श की खुदाई भी कर के देखी गई, लेकिन कुछ हाथ नहीं आया.

धीरेधीरे गांव के लोग छायाबाई और संतोष को भूलने लगे और अपने कामों में जुट गए थे.
लेकिन छायाबाई के पिता लगातार बेटी की खोज में लगे हुए थे. कोई महीने भर बाद संतोष के बंद पडे़ मकान से आने वाली अजीब सी बदबू से लोग परेशान होने लगे. पहले तो लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन बदबू लगातार बढ़ने से पड़ोसियों का ध्यान संतोष के बंद मकान पर गया.

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इस बात की खबर छायाबाई के पिता को लगी तो वह दौड़ेदौड़े अपने समाज के नेता के पास पहुंचे और उन्हेें सारी बात बताई. वह नेता छायाबाई के पिता को खंडवा एसपी के पास ले गया और एसपी को सारी कहानी से अवगत कराया. संतोष छायाबाई के लापता होने के मामले में संदिग्ध तो था ही, इसलिए उस के मकान से आने वाली बदबू की जानकारी को खंडवा एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान ने गंभीरता से लिया. उन के निर्देश पर एएसपी (ग्रामीण) जितेंद्र पंवार ने एसडीपीओ प्रवीण कुमार उइके के नेतृत्व में एक पुलिस टीम प्रशासनिक अधिकारियों के साथ 27 जनवरी, 2021 को एक बार फिर मोहनखेड़ी भेजी.

संतोष गोलकर का मकान खोलते ही बदबू का तेज झोंका आने से पुलिस समझ गई की यह मांस सड़ने की बदबू है. इसलिए पूरे मकान की बारीकी से जांच की गई. जिस से पता चला कि तीसरे कमरे के फर्श में ताजा सीमेंट लगाया गया है. इसलिए शक के आधार पर पुलिस ने उस जगह की खुदाई करवाई तो डेढ़ फुट नीचे एक कान की बाली और लगभग ढाई फुट नीचे एक लेडीज चप्पल मिली. जिन के बारे में बताया कि ये दोनों ही चीजें छायाबाई की हैं.

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खुदाई की गहराई बढ़ने के साथ बदबू भी बढ़ती जा रही थी. वास्तव में पुलिस का शक उस समय सही साबित हुआ, जब कोई 4 फुट की गहराई पर छायाबाई का सड़ागला शव बरामद हो गया. इस के बाद जांच के लिए एफएसएल अधिकारी सुनील मकवाना भी पहुंच गए. जांच के बाद उन्होंने शव को लगभग एक महीने पुराना बताया. जिस के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. लेकिन शव की हालत अत्यधिक खराब होने की वजह से उस का पोस्टमार्टम इंदौर के एमवाई अस्पताल में किया गया.

जाहिर सी बात है कि अब तक पुलिस का मानना था कि संतोष छायाबाई को ले कर भाग गया है. लेकिन अब छायाबाई की लाश संतोष के मकान में दफन मिल चुकी थी. जबकि संतोष और उस का परिवार गायब था. इसलिए पुलिस का सीधा शक यही था की संतोष ने ही छायाबाई की हत्या की है. चूंकि उस के परिवार के सभी सदस्य गायब थे, इसलिए वे भी शक के घेरे में थे. एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान ने आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस ने मुखबिरों से मिली सूचना के आधार पर 6 फरवरी, 2021 को संतोष की मां सकुबाई, भाई सुनील एवं बुआ के बेटे अनिल को गिरफ्तार कर लिया.

संतोष की तलाश पुलिस तत्परता से कर रही थी. जिस के चलते टीआई जगदीश प्रसाद गोयल की टीम में शामिल एसआई अंतिमवाला भूरिया, एएसआई लक्ष्मीनारायण पाल, प्रधान आरक्षक नंदकिशोर राय, आरक्षक अभिलाष डोंगरे, जितेंद्र, कांस्टेबल अंजली रिछारिया एवं कमलेश की टीम ने सूचना मिलने पर उसे बैतूल से गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद यह कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

16 साल की उम्र में छायाबाई की शादी पास के ही गांव एकतासा में रहने वाले युवक के साथ हुई थी. दोनों के 3 बच्चे भी हुए किंतु दोनों के बीच रिश्ता कुछ यूं बिगड़ा कि छायाबाई अपने पति का घर छोड़ कर मोहनखेड़ी में पिता के घर आ कर रहने लगी.मोहनखेड़ी में ही संतोष भी रहता था. संतोष छायाबाई की उम्र का था और छायाबाई की शादी से पहले वह उस की गली में चक्कर लगाया करता था. संतोष की दीवानगी की जानकारी छायाबाई को भी थी, लेकिन उन का इश्क परवान चढ़ पाता, उस से पहले ही छायाबाई की शादी हो गई थी. इस के बाद यह कहानी वहीं खत्म हो गई थी.

कुछ दिन बाद संतोष की भी शादी हो गई. लेकिन करीब 3 साल पहले ही उस की पत्नी भी उसे छोड़ कर अपने मायके में जा कर रहने लगी. संतोष ने कुछ दिनों तक तो ध्यान नहीं दिया, लेकिन पत्नी की गैरमौजूदगी में शारीरिक जरूरतें परेशान करने लगीं तो उसे छायाबाई का ध्यान आया जो खुद भी अपने पति को छोड़ कर बैठी थी. इसलिए उस ने अगले दिन ही छायाबाई की खातिर उस की गली में चक्कर लगाने शुरू कर दिए.छायाबाई भी कई साल से पति से अलग रह रही थी. जैसे ही उस ने संतोष को देखा तो उसे अपने किशोर उम्र की याद आ गई, जब संतोष उस के लिए गली में चक्कर लगाया करता था.

इसलिए एक दिन छायाबाई ने भी मौका देख कर उसे सकारात्मक संदेश दे दिया. जिस के 4 दिन बाद ही दोनों गांव के बाहर एकांत में मिले और अपनी हसरतें पूरी कर प्यार के बंधन में बंध गए.छायाबाई मायके में रहते हुए अपने मातापिता के ऊपर बोझ नहीं बनना चाहती थी. इसलिए वह गांव के कुछ घरों में झाड़ूपोंछा करने लगी थी. वह सुबह घर से निकल कर पहले अपना काम करती थी फिर सीधे संतोष के पास पहुंच जाती थी, जहां दोनों एकदूसरे के तन की प्यास पूरी करते थे. फिर छायाबाई वापस घर चली जाती थी.

दोनों एकांत में रोज मिला करते थे, इसलिए इस बात की जानकारी गांव वालों को हो गई थी. छायाबाई के परिवार तक भी यह खबर पहुंच चुकी थी. पिता ने अपनी बेटी को समझाने की कोशिश की, लेकिन मामला हाथ से निकल चुका था.इधर छायाबाई के साथ घर बसाने की ठान चुके संतोष ने अपना खेत बेच कर छायाबाई के लिए सपनों का घर बनवा दिया था. कुछ दिनों में संतोष का मकान बन कर तैयार हो गया तो वह छायाबाई को इस मकान में ला कर अय्याशी करने लगा.

बताया जाता है कि इसी दौरान छायाबाई की नजरें गांव के ही एक दूसरे युवक से लड़ गई थीं. वह संतोष की तुलना में रईस और जवान था. इसलिए छायाबाई संतोष से दूर जाने की कोशिश करने लगी.इस बात की जानकारी लगने पर संतोष काफी खफा था. बताया जाता है कि उस ने छायाबाई की हत्या की योजना पहले से ही बना रखी थी. इसलिए उस ने पानी का एक अंडरग्राउंड टैंक बनाने के नाम पर एक कमरे में गहरा गड्ढा खुदवा लिया था. जिस के बाद उस ने 24 दिसंबर की रात को छायाबाई को अपने घर बुला कर पहले तो उस के साथ संबंध बनाए और फिर इसी दौरान मौका पा कर उस का गला दबा कर हत्या कर के शव को गड्ढे में डाल कर उस के ऊपर मिट्टी डाल दी और फरार हो गया.

उस ने सोचा था कि घर के अंदर लाश की खबर पुलिस को कभी नहीं मिल पाएगी. लेकिन एक महीने के बाद मकान से आ रही बदबू के बाद शक होने पर पुलिस ने लाश बरामद कर हत्या में सहयोग करने वाली संतोष की मां, भाई और अन्य 2 को गिरफ्तार कर लिया.

छायाबाई के लापता होने पर उस के पिता को उस की हत्या का शक हो गया था. इसलिए पिता के कहने पर पुलिस ने पहले भी एक बार संतोष के घर नए पर बने फर्श की खुदाई लाश की तलाश करने के लिए की थी. लेकिन उस समय कुछ नहीं मिला था. लेकिन बदबू आने पर जब दूसरे कमरे में खुदाई की गई तो वहां से छायाबाई का शव बरामद हुआ. गिरफ्तार किए मुख्य आरोपी संतोष के भाई ने बताया कि छायाबाई की हत्या कर लाश को गड्ढे में दबाने वाली बात संतोष ने सुबह घर आ कर बताई थी. इस के बाद वह घर से भाग गया था. संतोष के भाग जाने के बाद घर वालों ने पुलिस से बचने के लिए खुदाई वाली जगह पर फर्श बनवा दिया और घर का ताला लगा कर फरार हो गए.

पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

संघ के एजेंडे को कोर्ट से लागू कराने की साजिश

भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय आजकल संघ के एजेंडे को देश में लागू करवाने के लिए सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक जोर लगा रहे हैं. भाजपा और संघ के एजेंडे में जितनी बातें हैं वही उन की ‘जनहित याचिकाओं’ में नजर आती हैं. उपाध्याय चाहते हैं कि धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र भारत के संघ की इच्छानुसार हिंदू राष्ट्र में परिवर्तित करने के लिए जो चीजें होनी जरूरी हैं उन पर देश की सब से बड़ी अदालत अपनी मोहर लगा दे.

सवर्णों के हाथों शोषित और मनुवादी व्यवस्था से उकता चुके दलित और आदिवासी लोग बीते कई दशकों से बौद्ध, ईसाई या इसलाम धर्म की ओर आकर्षित हो रहे हैं. इन्हें हिंदू धर्म में रोके रखने की कोशिश संघ और भाजपा की है. यही वजह है कि चुनाव के वक्त प्रधानमंत्री और गृहमंत्री दलितों की  झोपडि़यों में नजर आने लगते हैं. वे कहीं उन के पैर पखारते दिखते हैं तो कहीं उन के साथ पत्तल में खाना खाते नजर आते हैं. लेकिन चुनाव खत्म होते ही दलित फिर उन के लिए अछूत हो जाते हैं.

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भाजपा व भाजपाइयों के इन पाखंडों को अब दलित और आदिवासी समाज अच्छी तरह सम झने लगा है. बीते कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में दलितों ने बौद्ध धर्म अपना लिया है. संघ और भाजपा इस बात को ले कर चिंतित हैं और उन की चिंता का निवारण करने के लिए अश्विनी कुमार उपाध्याय जैसे वकील ‘जनहित याचिका’ के माध्यम से कोर्ट और सरकार के डंडे का इस्तेमाल कर के हिंदू धर्म को बचाने की बेढंगी कोशिशों में जुटे हैं.

कितना हास्यास्पद है और कैसी दुर्गति है सब से श्रेष्ठ धर्म की कि अब इस को बचाने के लिए सरकारी डंडे की जरूरत पड़ रही है. कोर्ट से आग्रह किया जा रहा है कि वह सरकार को निर्देश दे कि वह हिंदू को हिंदू बनाए रखने के लिए कानून बनाए और सजा का प्रावधान करे. लेकिन क्या ऐसा संभव है? कदापि नहीं.

जनहित के नाम पर संघहित

अश्विनी उपाध्याय सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं और आएदिन जनहित याचिकाएं दायर करते रहते हैं. यह और बात है कि उन की अधिकतर याचिकाएं कोर्ट कूड़े के डब्बे में डाल देता है, यानी खारिज कर देता है, साथ ही उन को फटकारता भी है मगर उपाध्याय फिर भी बाज नहीं आते हैं. उन की हालिया याचिका काला जादू, अंधविश्वास और जबरन धर्मांतरण को ले कर थी जिसे उच्चतम न्यायालय ने 9 अप्रैल को यह कह कर खारिज कर दिया कि यह किस प्रकार की याचिका है?

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अश्विनी कुमार उपाध्याय हमेशा उन मुद्दों पर जनहित याचिकाएं दायर करते हैं जो उन की पार्टी व संघ के एजेंडे में सब से ऊपर हैं, जैसे योग, वंदे मातरम, निकाह, हलाला, धर्मांतरण रोकना इत्यादि. दरअसल उन की याचिकाएं जनहित की नहीं बल्कि संघहित, भाजपाहित व राजनीतिकहित साधने की ज्यादा होती हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने 9 अप्रैल को उन की जो नई याचिका खारिज की है उस में उपाध्याय ने कोर्ट से प्रार्थना की थी कि केंद्र और राज्यों को काले जादू, अंधविश्वास और धार्मिक रूपांतरण को नियंत्रित करने, धमकाने, धमकी देने और उपहारों व मौद्रिक लाभों के माध्यम से नियंत्रित करने के लिए निर्देश देने का कष्ट करे. मगर सुप्रीम कोर्ट में 3 जजों-न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रौय की पीठ ने न सिर्फ उन की याचिका खारिज कर दी बल्कि वे इस से काफी नाखुश भी दिखे.

उच्चतम न्यायालय में दायर अपनी याचिका में अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट से केंद्र सरकार और राज्यों की सरकारों को जादूटोना, अंधविश्वास और प्रलोभन एवं वित्तीय लाभ के नाम पर धर्मांतरण को रोकने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया था. उन का कहना था कि धर्म का दुरुपयोग रोकने के लिए एक कमेटी नियुक्त कर धर्म परिवर्तन कानून बनाने की संभावना का पता लगाने के लिए निर्देश देने का कष्ट सुप्रीम कोर्ट करे. याचिका में यह भी कहा गया कि प्रलोभन और जोरजबरदस्ती से धर्मांतरण किया जाना न केवल अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन है बल्कि यह संविधान के मूल ढांचे के अभिन्न अंग धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ भी है.

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अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में कहा कि केंद्र और राज्य जादूटोना, अंधविश्वास और छल से धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने में नाकाम रहे हैं, जबकि अनुच्छेद 51 ए के तहत इस पर रोक लगाना उन का दायित्व है.

समाज की कुरीतियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई कर पाने में नाकामी का आरोप लगाते हुए याचिका में कहा गया कि केंद्र एक कानून बना सकता है जिस में 3 साल की न्यूनतम कैद की सजा हो और जिसे

10 साल की कैद की सजा तक बढ़ाया जा सकता है व जुर्माना भी लगाया जा सकता है. उपाध्याय चाहते हैं कि  केंद्र राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी धार्मिक समूहों के मामलों से निबटने और उन के बीच धार्मिक भेदभाव का गहराई से अध्ययन कराने के लिए अधिकार दे.

याचिका में विधि आयोग को जादूटोना, अंधविश्वास और धर्मांतरण पर 3 महीने के भीतर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया. याचिका में कहा गया कि जनसंख्या विस्फोट और छल से धर्मांतरण के कारण 9 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं तथा दिनोंदिन स्थिति और खराब होती जा रही है.

संविधान ने दी है आजादी

अश्विनी उपाध्याय की इस याचिका के खारिज होने के बाद से ही सोशल मीडिया पर उन के खिलाफ कई कड़ी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं. और मिलें भी क्यों न, जिस देश का संविधान देश के हर नागरिक को बालिग होने के बाद उसे धर्म और जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता देता है, उस को नियंत्रित करने का आदेश भला सुप्रीम कोर्ट कैसे दे सकता है?

माथे पर तिलक धारण करने वाले, सपत्नी मंदिरमंदिर जा कर पूजा करने वाले बाबाओं और संतों की संगत करने वाले उन के आध्यात्मिक विचारों (जिन का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता) से प्रभावित रहने वाले भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय किसी दूसरे को उस की आस्था, उस के विश्वास और उस की पसंदनापसंद पर पाबंदी कैसे लगा सकते हैं. यह बात कोर्ट के जेहन में भी अवश्य आई होगी.

दरअसल अश्विनी उपाध्याय भाजपा और संघ के एजेंडों को कानूनी जामा पहनाने की कोशिश में हैं ताकि भविष्य की राजनीति में उन का सिक्का भी चल निकले. मगर हालिया याचिका पर उन की काफी भद्द पिट रही है. याचिका खारिज होने के बाद वे अपने फेसबुक पेज पर लिखते हैं, ‘‘कालाजादू, अंधविश्वास

और सामदामदंडभेद द्वारा धर्मांतरण के खिलाफ मेरी पीआईएल खारिज नहीं हुई है बल्कि मैं ने वापस ली है. मैं अब गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और विधि आयोग को विस्तृत प्रार्थनापत्र दूंगा. अगर 6 महीने में सरकार ने धर्मांतरण के खिलाफ कानून नहीं बनाया तो मैं फिर सुप्रीम कोर्ट जाऊंगा.’’

आलोचना और नसीहत

उपाध्याय की इस पोस्ट के जवाब में काफी लोगों ने उन की आलोचना की है. सूर्य विक्रम सिंह लिखते हैं, ‘उपाध्यायजी, कभी जिंदगी की मूलभूत जरूरतों पर ध्यान दें, तो कितना अच्छा लगे. मगर सत्ता की तरह आप भी देशवासियों को गुमराह करने में लगे हैं.’

वहीं दीपक नागर कहते हैं, ‘हां, हम जानते हैं कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आप की पीआईएल खारिज कर दी है और कहा है कि 18 साल का बालिग व्यक्ति अपने लिए कोई भी धर्म चुन सकता है, यह उस का मूलभूत अधिकार है और इस तरह की पीआईएल सिर्फ ‘चीप पब्लिसिटी’ (घटिया प्रचार) के लिए फाइल की जाती हैं.’

पीर पराई- भाग 3 : मोहित और मुग्धा के प्यार का क्या अंत हुआ

लेखिका-डा. रंजना जायसवाल

‘‘क्या हुआ, क्या हुआ. मेरा मयंक ठीक तो है न?’’ ‘‘घबराने की कोई बात नहीं है. वह ठीक है, खतरे से बाहर है. आप जल्द से जल्द यहां आ जाएं.’‘‘जी, मैं अभी निकलता हूं. एकसवा घंटे में मैं आप के पास पहुंच जाऊंगा. तब तक आप उस का ध्यान रखें. थैंक्यू मैम, मैं आप का एहसान जीवनभर नहीं भूलूंगा.’’

‘‘वैलकम,’’ मुग्धा अब तक उस आवाज को पूरी तरह पहचान चुकी थी. उस ने किसी तरह से अपनेआप को इतनी देर तक संभाल रखा था. इतने सालों बाद उस का अतीत एक बार उसे पुकार रहा था. वह अतीत, जिसे वह न जाने कब का भूल चुकी थी. सच कहते हैं लोग, इंसान कुछ भी कर ले पर अपने अतीत से नहीं भाग सकता.

सोचतेसोचते न जाने कब मुग्धा की आंख लग गई, तभी नर्स की आहट की आवाज को सुन कर उस की नींद खुल गई. ‘‘डाक्टर साहब, वह जो ऐक्सीडैंट केस आया था, उस के घर वाले आ गए हैं. आप से मिलना चाहते हैं.’’

मुग्धा ने अपनेआप को संभाला और वार्ड की तरफ चल पड़ी. आज इतने वर्षों बाद उस का अपना अतीत उस के सामने आ कर खड़ा हो गया था. यादों के  झरोखों पर आज फिर किसी ने दस्तक दे दी थी. न चाहते हुए भी मन उस की तरफ खिंचता चला गया. वे वही आंखें थीं जिन्होंने मुग्धा को सालोंसाल सोने नहीं दिया. सालोंसाल वे आंखें मुग्धा का पीछा करती रहीं, पर उन आंखों की वह कशिश, चेहरे का वह नूर जिस पर न जाने कितनी लड़कियां मरती थीं, न जाने कहां गायब हो गया था. वक्त के थपेड़ों ने या फिर बेहिसाब जिम्मेदारियों ने उस को उम्र से पहले ही परिपक्व कर दिया था. आंखों की कशिश जिम्मेदारियों के बो झ तले और मोटे फ्रेम के पीछे कहीं दूर छिप गई थी और उस सजीले नौजवान को कहीं दूर पीछे धकेल बहुत आगे निकल आई थी. मुग्धा की आंखें मोहित को पहचानने में कभी गलती नहीं कर सकती थीं. मोहित की आंखें मुग्धा को पहचानने की कोशिश कर रही थीं.

‘‘वही तो है, हां, बिलकुल मुग्धा ही तो है. आज भी वैसी ही सुंदर, सौम्य और सहज. रत्तीभर भी नहीं बदली. पर वह तो कभी ऐसे फीके रंग नहीं पहनती थी. जीवन से भरपूर, जिंदादिल किसी को भी पलभर में अपना दीवाना बना दे.’’

मोहित ने अपनेआप को सम झाने का प्रयास किया. मुग्धा ने उसे देख कर भी अनदेखा कर दिया. मोहित सम झ नहीं पा रहा था कि वह बात की शुरुआत कैसे करे. ‘‘ये लड़के के पिता हैं,’’ नर्स ने कहा.

‘‘आप का बेटा ठीक है, दवाइयां लिख रही हूं. समयसमय पर देते रहिएगा. चिंता की कोई बात नहीं. आप का बेटा दवा की वजह से आराम से सो रहा है,’’ मुग्धा उस का चैकअप करने के लिए जैसे ही  झुकी, मोहित ने धीरे से पूछा, ‘‘कैसी हो मुग्धा?’’

मुग्धा ने जलती हुई निगाहों से मोहित की ओर देखा. जैसे पूछना चाह रही हो, ‘‘अब पूछ रहे हो कि कैसी हूं मैं, अब तक कहां थे. एक बार भी सोचा कि जिंदा हूं या मर गई,’’ विचारों के न जाने कितने तूफान उस के दिल में उठ रहे थे. पर उस ने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करते हुए कहा, ‘‘आप का बेटा अब ठीक है. आप चाहें तो कल इसे ले जा सकते हैं,’’ और वह तेजतेज कदमों से चलते हुए दूसरे मरीजों को देखने के लिए आगे बढ़ गई.

मोहित स्तब्ध और एकटक उसे जाता देखता रहा. क्या मुग्धा ने उसे पहचाना नहीं था, क्या वह इतना बदल गया है. सच भी तो है. अब वह पहले जैसा कहां रहा. मुग्धा कहती थी, ‘मु झे अदरक की तरह यहांवहां से फैले पुरुष बिलकुल अच्छे नहीं लगते.’ वह भी तो ऐसा ही हो गया था. मोहित को बहुतकुछ कहना और सुनना था. इन 20 सालों में जो कुछ हुआ वह कह और सुना लेना चाहता था.

मुग्धा अपने मरीजों को देख कर अपने घर की तरफ जाने को तत्पर थी. रात बीतने को थी, आसमान में हलका अंधेरा ही था. चिडि़यों की यदाकदा चहचहाहट से आसमान गूंज रहा था. तभी मोहित ने पीछे से मुग्धा को आवाज दी.  ‘‘डा. मुग्धा, एक मिनट आप से बात करनी है,’’ मुग्धा के पांव वहीं जम गए. चाह कर भी वे एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाई.

‘‘मुग्धा, पहचाना नहीं? मैं मोहित.’’ क्या कहती मुग्धा. शब्द उस के मुंह तक आतेआते अटक से गए. ‘‘तुम को कैसे भूल सकती हूं मोहित?’’मोहित बोलने लगा, ‘‘तुम यहां कैसे? कालेज छोड़ने के बाद किसी को नहीं पता कि तुम कहां गईं. तुम ने अपना पुराना घर भी बेच दिया. आंटी कैसी हैं और तुम्हारी छोटी बहन… क्या नाम था उस का,’’ मोहित ने अपनी याददाश्त पर जोर डालते कहा, ‘‘निवेदिता.’’

मुग्धा ने बड़ी गंभीरता से कहा, ‘‘हांहां वही. निवेदिता की शादी हो गई और मां चारों धाम की यात्रा पर गई हैं.’’ ‘‘और तुम, तुम कैसी हो?’’ मोहित ने मुग्धा की आंखों में आंखें डाल कर पूछा. मुग्धा का सब्र अब जवाब दे चुका  था. उस ने जलती निगाहों से मोहित को देखा, ‘‘तुम बताओ, कैसी होनी चाहिए?’’ मुग्धा की आंखों में तैरते सूनेपन को मोहित  झेल नहीं पाया. उस ने अपनी निगाहें घुमा लीं.

‘‘मुग्धा, जो कुछ भी हुआ, उस के लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूं. पर तुम सम झो उस परिस्थिति में मैं कर भी क्या सकता था.’’

‘‘समझा ही तो था,’’ मुग्धा ने व्यंग्य से मोहित को देखा. कुछ देर तक उन दोनों के बीच एक अजीब सा सन्नाटा पसरा रहा. मोहित ने दोनों के बीच फैले सन्नाटे को तोड़ते हुए कहा, ‘‘तुम यहां कैसे और तुम्हारे पति व बच्चे?’’ मोहित ने बहुत हिम्मत जुटा कर मुग्धा से पूछा. ‘‘मैं ने शादी नहीं की मोहित.’’

‘‘क्यों मुग्धा? इतनी लंबी जिंदगी है, अकेले कैसे काटोगी?’’ ‘‘मोहित, सोचा भी था और चाहा भी था पर हर सोची और चाही हुई चीज इंसान को मिल जाए, यह जरूरी तो नहीं.’’

‘‘मुग्धा, मु झे माफ कर दो. मैं ने तुम्हारा जीवन बरबाद कर दिया. मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं. मु झे माफ कर दो. तुम ने सबकुछ जानने के बाद भी मेरे बेटे की जान बचाई,’’ मोहित फूटफूट कर रो पड़ा. मोहित आत्मग्लानि की आग में जल रहा था. मोहित को बच्चों की तरह रोता देख कर मुग्धा के दिल में वर्षों से जमा गुस्सा आंसुओं के रूप में पिघल कर आंखों से बह गया.

‘‘मोहित, जो होता है वह अच्छे के लिए ही होता है. इस गांव में बहुत ही सीधे और सज्जन लोग हैं. यहां किसी की दीदी, किसी की बेटी तो किसी की बूआ हूं. खून का रिश्ता न होते हुए भी ये लोग मेरी एक आवाज पर खड़े हो जाते हैं. क्या हुआ जो एक रिश्ता नहीं जुड़ा. उस एक रिश्ते के बदले मु झे न जाने कितने रिश्ते मिल गए. जहां तक तुम्हारे बेटे की बात है, तो तुम शायद यह भूल गए कि डाक्टरी की पढ़ाई के समय हमें मानवता और इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है. पहली बात तो यह है कि मु झे तो उस वक्त तक यह पता भी नहीं था कि वह तुम्हारा बेटा है और पता होता तो भी, मैं तुम्हारे बेटे की जान बचाती. तुम अपने दिल पर कोई भी बो झ मत रखो. अब मैं चलती हूं. मेरी सुबह की सैर का वक्त हो गया.’’

मोहित चुपचाप उसे जाते देखता रहा. सूरज अपनी पूर्ण लालिमा के साथ एक नए सवेरे के स्वागत के लिए उदय हो रहा था और उस की किरणों से आत्मविश्वास से भरा हुआ मुग्धा का चेहरा और भी दमक रहा था.

पीर पराई- भाग 2 : मोहित और मुग्धा के प्यार का क्या अंत हुआ

लेखिका-डा. रंजना जायसवाल

‘‘मुग्धा, आज मिसेज सिंघानिया आई थीं. बहुत देर तक बैठी रहीं. उन की छोटी बेटी आजकल लंदन में है. 2 बच्चे हो गए उस के. वह तुम से छोटी थी. पति का बहुत लंबाचौड़ा कारोबार है. मिसेज सिंघानिया तो अपने दामाद की तारीफ करते नहीं थक रही थीं. ‘‘अच्छा,’’ मुग्धा ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

 

‘‘जानती हो, मिसेज सिंघानिया बता रही थीं कि उन की बेटी नंदिता जब भी आती है तो उस के लिए बहुत महंगेमहंगे उपहार ले कर आती है. उस के दोनों बच्चे दिनभर नानीनानी कह कर उन से लगे रहते हैं.’’ ‘‘अच्छा.’’ ‘‘क्या अच्छाअच्छा, इतनी देर से मैं ही बोले जा रही हूं और तुम हो कि मेरी बात का ठीक से जवाब भी नहीं दे रही.’’

 

‘‘दे तो रही हूं न मां, बोलो, क्या कहना चाहती हो?’’ मां धीरे से मुग्धा के निकट आ गई और उस के बालों पर अपनी उंगलियां फेरते हुए बोली, ‘‘मुग्धा, कब तक ऐसी बैठी रहेगी, अपने बारे में तो सोचो. काम करने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है. एक बार उम्र निकल जाएगी तो शादी होना भी मुश्किल हो जाएगी. आज मिसेज सिंघानिया तुम्हारे लिए अपने बड़े भाई के बेटे का रिश्ता ले कर आई थीं. 13-14 साल पहले उन के बड़े भाई के बेटे की शादी हुई थी, पत्नी की रोड ऐक्सीडैंट में मृत्यु हो गई थी. 10-12 साल की बेटी है. खाताकमाता परिवार है. लड़का भी देखने में ठीकठाक है, उन्हें तुम्हारी नौकरी करने से भी कोई दिक्कत नहीं है. अगर तुम हां करो तो मैं बात आगे बढ़ाऊं?’’

मुग्धा अपनी मां की बात को सुन कर ही  झुं झला उठी और उस ने चादर को अपने शरीर से अलग किया और बिस्तर से नीचे उतर आई. ‘‘क्या मां, रोजरोज वही… कितनी बार सम झा चुकी हूं. मु झे शादी नहीं करनी है, तो बस, नहीं करनी है. और ऐसा है, मिसेज सिंघानिया से कह दो अपने भाई के बेटे के लिए कोई और लड़की ढूंढ़ लें, मेरा रास्ता न देखें.’’

‘‘एक बार मिल तो लो बेटा, बहुत अच्छा परिवार है. तुम बहुत खुश रहोगी. मेरा क्या है, मैं आज हूं, कल नहीं. न जाने कब क्या हो और मैं इस दुनिया से चली जाऊं.’’

मां ने  झूठी नाराजगी दिखाते हुए मुग्धा से कहा. मुग्धा ने बड़े प्यार से मां के गले में अपनी दोनों बांहें डाल कर कहा, ‘‘तुम अभी इतनी जल्दी मु झे छोड़ कर नहीं जा रहीं. दुनिया की परवा करना छोड़ दो, उन का तो काम ही है कहना और बैठेबैठे कुछ काम कर लिया करो. दिनभर सासबहू के सीरियल देखती रहती हो न, इसीलिए ऐसी खुराफाती बातें दिमाग में घूमती रहती हैं. घूमफिर आया करो. मैं ने ट्रैवल एजेंसी से बात कर ली, बहुत अच्छा पैकेज है. जाओ, चारों धाम की यात्रा कर आओ. कुछ पुण्य मिलेगा,’’ कह कर मुग्धा जोर से हंस पड़ी.

मुग्धा अपनी मां का ध्यान भटकाने की भरसक कोशिश करती रही. पर मां का रिकौर्ड जहां था वहीं आ कर अटक गया था. ‘‘अब तू मु झे चारों धाम की यात्रा पर भेजेगी. काश, तेरा कोई भाई होता तो मु झे चारों धाम पर भेजता तो मु झे मरने के बाद स्वर्ग मिलता, पर ऊपर वाले ने न जाने मेरे लिए क्याक्या सोच रखा है. अब बेटी, मु झे चारों धाम पर भेजेगी,’’ कह कर मां आंचल में मुंह छिपा कर रोने का उपक्रम करने लगी. मां की यह हमेशा की आदत थी जब वह मुग्धा से अपनी बात मनवा नहीं पाती थी तो इसी तरीके से अनर्गल बातें करना शुरू कर देती थी.

‘‘मां, तुम भी किस तरह की बातों में पड़ जाती हो. तुम्हें जाने से मतलब है न. कितने दिन से सोच रही हो पर मेरी वजह से कहीं निकल नहीं पातीं. जाओ और मजे करो,’’ मुग्धा ने अपनी मां के गालों को खींच कर बड़े ही शरारती लहजे में कहा.

कभीकभी मुग्धा इस उम्र में भी छोटी बच्ची की तरह लगने लगती. पर अब तो मुग्धा के बालों में भी सफेद चांदनी दिखने लगी थी. छोटी बहन की भी शादी हो चुकी थी और वह अपने 2 बच्चे व परिवार के साथ बहुत खुश थी. याद है आज भी उसे वह दिन जब मुग्धा ने जिद कर के छोटी बहन की शादी करा दी थी. मां कहती रह गई बड़ी बहन के रहते छोटी की शादी करना कहां तक सही है. समाज क्या कहेगा बड़ी बहन अभी कुंआरी बैठी है और छोटी बहन की शादी कर दी. जरूर बड़ी में कोई खोट है या किसी के साथ कोई चक्कर चल रहा है. पर मुग्धा अपनी मां को कभी जवाब न देती. मुग्धा की जिद के आगे किसी की एक न चली और छोटी भी ब्याह कर अपने घर चली गई.

मां को चारों धाम पर गए आज 15 दिन हो गए थे. मुग्धा अस्पताल से लौटने के बाद देररात तक टीवी देखती, खाली घर उसे काटने को दौड़ता. जब आंखें और शरीर थकान और नींद से बो िझल हो जाते तब वहीं सोफे पर लेट जाती. समय पंख पसारे उड़ता चला जा रहा था.

 

एक दिन अचानक रात में दरवाजे  पर किसी ने जोरजोर से आवाज  लगाई, ‘‘डाक्टर साहब, डाक्टर साहब, दरवाजा खोलिए,’’ गहरी नींद में डूबी मुग्धा हड़बड़ा कर उठ बैठी. उस की निगाह बगल में रखी घड़ी पर गई. रात के एक बज रहे थे. उस वक्त भला कौन हो सकता है. चौकीदार भी कुछ दिनों से छुट्टी पर था, गांव में उस की मां बीमार थी. मुग्धा निर्णय नहीं ले पा रही थी कि इतनी रात को वह दरवाजा खोले कि नहीं. उस ने दरवाजे के पास आ कर धीरे से पूछा, ‘‘कौन है?’’

‘‘बेटा, दरवाजा खोलो हम हैं रामू काका.’’ ‘‘रामू काका, आप, इस वक्त?’’ ‘‘बेटा, अस्पताल से थोड़ी दूर पर एक कार का ऐक्सीडैंट हो गया है. 16-17 साल का लड़का है, किसी अच्छे घर का लड़का लगता है, काफी चोट आई है, काफी खून बह गया है. जरा जल्दी से चल कर देख लो, न जाने किस के घर का चिराग है.’’

‘‘रामू काका आप जल्दी से उसे अस्पताल ले कर चलिए, मैं अभी आती हूं,’’ मुग्धा का घर अस्पताल से सटा हुआ था. मुग्धा ने जल्दीजल्दी कपड़े बदले और अस्पताल की तरफ चल पड़ी. मुग्धा रास्तेभर यही सोचती रही, ‘‘16-17 साल का लड़का, अभी तो उस की जिंदगी शुरू हुई है, अभी तो उसे बहुतकुछ देखना था,’’ पूरा शरीर खून से लथपथ था. मुग्धा ने तुरंत औपरेशन थिएटर में जाने का आदेश दिया. चोट बहुत गहरी तो नहीं थी पर खून काफी बह गया था. नर्स ने जल्दीजल्दी उस लड़के के चेहरे पर लगी चोटों को साफ किया. एक घंटे के अथक प्रयास के बाद वह लड़का खतरे से बाहर था.

‘‘डाक्टर साहब, इस लड़के के पास से वह मोबाइल और पर्स मिला है. उस के घरवालों को भी इन्फौर्म करना होगा,’’ नर्स ने कहा. ‘‘हां, यह बात तो है,’’ मुग्धा ने कहा और अपने चैंबर में आ गई और उस ने वार्डबौय से एक कप कौफी लाने को कहा. वह बहुत थक चुकी थी. उस ने उस लड़के से मिले हुए मोबाइल की डिटेल्स को खंगालना शुरू किया. आखिरी कौल पापा के नाम से थी. उस ने उस पर फोन मिलाया. 4-5 घंटी जाने के बाद किसी ने फोन उठाया, ‘‘हैलो, डाक्टर मोहित हेयर.’’

मुग्धा आवाज सुन कर स्तब्ध थी. नियति उस के साथ ऐसा क्रूर मजाक नहीं कर सकती. क्या दुनिया में मोहित नाम का सिर्फ एक ही व्यक्ति है. यह मेरी गलतफहमी भी तो हो सकती है.यादों की किताबों के न जाने कितने पन्ने उस की आंखों के सामने पलटते चले गए, ‘‘हैलो… हैलो, क्या आप मेरी आवाज सुन रहे हैं.’’

मुग्धा जैसे नींद से जागी, ‘‘हैलो, मैं गौरीगंज से बोल रही हूं. हमारे यहां ऐक्सीडैंट का एक केस आया है.16-17 साल के लड़के के पास से एक मोबाइल और पर्स मिला है. मयंक नाम है लड़के का. क्या आप उस लड़के को जानते हैं? अगर हां, तो कृपया कर के मरीज को ले जाएं.’’

 

पीर पराई- भाग 1 : मोहित और मुग्धा के प्यार का क्या अंत हुआ

लेखिका-डा. रंजना जायसवाल

मोहित और मुग्धा का कालेज में आखिरी साल था. मुग्धा अपने नाम के अनुरूप थी, चंचल, शोख, जिंदादिल जिंदगी से भरपूर. एक  झलक में किसी को भी अपना दीवाना बना दे. उस की कजरारी, गोलगोल सी बड़ीबड़ी आंखें सब के मन को मोह लेतीं और मोहित बांका सजीला नौजवान. कालेज की न जाने कितनी लड़कियां उस पर मरती थीं और कहीं न कहीं मन ही मन मुग्धा से जलती भी थीं कि मोहित जैसा खूबसूरत लड़का उसे बेपनाह प्यार करता है.

‘‘मुग्धा, अंदर आ जाओ भीग जाओगी. देखो बारिश शुरू हो गई है,’’ मोहित ने कहा. मुग्धा छोटे से बच्चे की तरह बारिश की बूंदों को चेहरे पर महसूस कर खुशी से पागल हो गई थी. जब भी बारिश होती तो मिट्टी की सोंधीसोंधी खुशबू के लिए मुग्धा ऐसे ही खुशी से  झूम उठती थी. बारिश में भीगना उसे बहुत पसंद था. तितलियों की तरह इधरउधर दौड़तीभागती मुग्धा, बारिश की बूंदों से भीगा हुआ मुग्धा का चेहरा उस की खूबसूरती में चारचांद लगा रहा था.

‘‘क्या मोहित, वहां क्या दुबक कर बैठे हो? देखो न, कितना अच्छा मौसम है,’’ और मुग्धा फिर से पानी में भीगने चली गई. मोहित मंत्रमुग्ध सा उसे देखता रहा. कभीकभी उसे अपने समय पर रश्क भी होता था. मुग्धा को न जाने क्या सू झा, वह अपनी नाजुक कलाइयों से बरगद के विशाल वृक्ष को बांधने का निरर्थक प्रयास करने लगी. उस की इस हरकत को देख कर मोहित के चेहरे पर मुसकान आ गई. यह जगह मुग्धा को बहुत पसंद थी. इस जगह पर उन दोनों ने भविष्य के न जाने कितने सपने देखे थे, साथ निभाने के सपने, साथ जीवन बिताने के सपने.

‘मुग्धा, अब चलो तबीयत खराब हो जाएगी, अभी एक पेपर और भी बचा है.’’ ‘‘मोहित, परसों आखिरी पेपर है न, खूब मजे करेंगे. पहले एक अच्छी सी पिक्चर, फिर बढि़या सा खाना और उस के बाद एक लौंग ड्राइव,’’ मुग्धा ने अपनी बड़ीबड़ी गोल आंखों को घुमा कर कहा.

‘‘जैसा रानी साहिबा का हुक्म.’’ मोहित की इस बात को सुन कर मुग्धा खिलखिला कर हंस पड़ी. उसे बच्चों की तरह हंसता देख कर मोहित मुसकरा उठा. ‘‘क्या सोच रहे हैं जनाब?’’ मुग्धा ने अनोखी अदा से कहा.

‘‘कुछ नहीं, सोचता हूं तुम्हारे नर्सिंगहोम में तो मरीजों की लाइन लगी रहेगी.’’ मुग्धा ने बड़े आश्चर्य से मोहित की तरफ देखा, ‘‘ऐसा क्यों भला?’’ ‘‘तुम्हारे खूबसूरत चेहरे को देख कर सब बेहोश हो जाएंगे और क्या.’’

मोहित की बात को सुन कर मुग्धा बहुत देर तक हंसती रही. ‘‘मोहित, शादी के बाद तुम मोटे न हो जाना. मु झे मोटे लड़के बिलकुल पसंद नहीं. अदरक की तरह किधर से भी फैल जाते हैं. अगर ऐसा हुआ न, मैं तुम्हें छोड़ कर चली जाऊंगी,’’ और मुग्धा व मोहित बहुत देर तक हंसते रहे.

मुग्धा और मोहित का एमबीबीएस  का आखिरी साल था. एक सुनहरा भविष्य उन का इंतजार कर रहा था. बारबार मुग्धा की निगाह कलाई में बंधी हुई घड़ी की तरफ जाती. तभी सामने से मोहित आता दिखाई दिया, ‘आने दो आज मोहित को अच्छे से खबर लूंगी. इतनी देर कर दी.’

‘‘क्या मोहित, तुम ने मेरी सारी प्लानिंग खराब कर दी. क्याक्या सोचा था,’’ मोहित के चेहरे पर एक अजीब सी नीरसता और तनाव फैला हुआ था. मोहित ने मुग्धा का हाथ अपने हाथों में ले कर संजीदा आवाज में कहना शुरू किया था,’’ मेरी बातों को ध्यान से सुनो मुग्धा, हमारा सफर यहीं तक था. आज से हमारे रास्ते यहीं से अलग होते हैं.’’

मुग्धा मोहित की बातों को सुन कर स्तब्ध थी. ‘‘यह कैसा मजाक है मोहित. तुम जानते हो, मु झे इस तरह के मजाक बिलकुल पसंद नहीं.’’ ‘‘मुग्धा, मैं मजाक नहीं कर रहा. कल पापा के एक दोस्त आए थे. वे बहुत बड़े व्यवसायी हैं. तुम तो मेरे घर की हालत जानती हो, पापा ने न जाने किनकिन मुसीबतों से हम भाईबहनों को पढ़ाया और आज हमें इस लायक बनाया. आज मेरी बारी है उन के लिए कुछ करने की. पापा के दोस्त अपनी इकलौती बेटी की शादी मु झ से करना चाहते हैं. उन्होंने पापा से वादा किया कि एमएस करने में जितना भी खर्चा आएगा, वे उठाएंगे और एक नर्सिंग होम भी बनवाने का वादा किया है. पापा ने इस रिश्ते के लिए हां कर दी है. मैं कुछ नहीं कर पाया.’’

मुग्धा को सम झ में नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे. ‘‘मोहित, मेरा क्या होगा? एक बार भी तुम ने सोचा, तुम्हारे बिना मैं कैसे जिंदा रहूंगी. हमारे सपने, हमारे उन सपनों का क्या जो हम ने एकसाथ देखे थे,’’ मुग्धा बदहवास सी बोलती जा रही थी. पर मोहित के पास उस की किसी भी बात का कोई जवाब नहीं था और उसे वहीं छोड़ कर चला गया. मुग्धा मोहित को जाते हुए देखती रही. धीरेधीरे वह उस की आंखों से ओ झल हो गया.

समय अबाध गति से भागा जा रहा था. मुग्धा ने मोहित से सारे रिश्ते खत्म कर लिए. उस का अब इस शहर में रहना भी दुश्वार होता जा रहा था. इम्तिहान खत्म होने के बाद मुग्धा वापस अपनी मां के पास आ गई. पर मोहित की आंखें उस का वहां भी पीछा करती रहीं. न जाने कितने अस्पतालों से उस के लिए नौकरी के प्रस्ताव आए पर मुग्धा इन सब से दूर कहीं दूर भाग जाना चाहती थी. अंत में अपना सबकुछ बेच कर मुग्धा अपनी मां के साथ एक छोटे से कसबे में रहने लगी और गांववासियों की सेवा करने लगी. यहां रहते हुए उसे काफी वक्त हो गया था. मां बहुत देर से कुछ कहने का प्रयास कर रही थी पर सम झ नहीं आ रहा कि बात कहां से शुरू करे. तब मुग्धा ने ही कहा, ‘‘मां, कुछ कहना चाहती हो, तो कह दो न. कहे बिना मानोगी नहीं,  तुम्हारे पेट में दर्द होने लगेगा.’’

 

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