लेखक-प्रो. रवि प्रकाश मौर्य

बहुत समय से अदरक का इस्तेमाल मसाले के रूप में, सागभाजी, सलाद, चटनी और अचार व अलगअलग तरह की भोजन सामग्रियों के बनने के अलावा तमाम तरह की औषधियों के बनाने में होता है. इसे सुखा कर सौंठ भी बनाई जाती है. आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, सोहांव, बलिया के अध्यक्ष प्रोफैसर रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि बागों की भूमि का उपयोग अदरक की खेती के लिए कर सकते हैं. मिट्टी व खेत की तैयारी उचित जल निकास वाली दोमट या रेतीली दोमट भूमि इस की खेती के लिए अच्छी होती है. जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी व समतल कर लेना चाहिए. बोआई का समय जहां पर सिंचाई की सुविधा हो, वहां इस की बोआई अप्रैल के मध्य पखवारे से मई महीने तक करनी चाहिए. किस्में व अवधि अदरक की उन्नत किस्में सुप्रभा, सुरुचि, सुरभि वगैरह हैं, जो 200 से 225 दिनों में तैयार हो जाती हैं.

बीज की मात्रा व बोने की विधि एक कट्ठा क्षेत्रफल (125 वर्गमीटर) के लिए तकरीबन 24 से 30 किलोग्राम बीज प्रकंदों की जरूरत होती है, जिन्हें 4 से 5 सैंटीमीटर के टुकड़ों में बांट लेते हैं. हर टुकड़े का भार 25 ग्राम से 30 ग्राम होना चाहिए और उस में 2 आंखें जरूर हों. बीज प्रकंदों को बोने से पहले 2.5 ग्राम मैंकोजेब और 1 ग्राम बाविस्टीन मिश्रित प्रति लिटर पानी के घोल में आधे घंटे तक डुबोना चाहिए. फिर छाया में सुखाने के बाद इन्हें 4 सैंटीमीटर की गहराई में बोआई कर दें. पंक्तियों की आपसी दूरी 25 सैंटीमीटर से 30 सैंटीमीटर और पौधों से पौधों की आपसी दूरी 15 सैंटीमीटर से 20 सैंटीमीटर रखते हैं. बीज प्रकंदों को मिट्टी से अच्छी तरह ढक देना चाहिए. बोआई के तुरंत बाद ऊपर से घासफूस, पत्तियों व गोबर की सड़ी हुई खाद से अच्छी तरह ढक देना चाहिए. ऐसा करने से मिट्टी के अंदर नमी बनी रहती है और तेज धूप के चलते अंकुरण पर बुरा असर नहीं पड़ता है. खाद व उर्वरक खाद व उर्वरक के इस्तेमाल के लिए मिट्टी की जांच करना बेहद जरूरी है. किसी वजह से मिट्टी की जांच न हो सके, तो उन हालात में गोबर की सड़ी हुई खाद या कंपोस्ट 200-250 किलोग्राम प्रति कट्ठा की दर से जमीन में मिला दें.

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