सनातन धर्म, हिंदू राष्ट्र, विश्वगुरू, ङ्क्षहद-मुसलिम, मंदिर, आरतियों, तीर्थों की बात करने वाले रातदिन बखान करते रहते हैं कि धर्म ही समाज को पटरी कर रखता है और अगर धर्म, पाप, पुण्य को लोग भूल जाएं तो पूरा समाज अंधेरा राज बन जाएगा. बारबार कहा जाता है कि सरकार मंदिर बनवा कर, कुंभ करा कर, अयोध्या को बनवा कर लोगों को सही रास्ते पर ला रही है सुधार रही है, उन्हें दूसरों के लिए जीना सिखा रही है.

पर असलीयत दिख रही है. उत्तर के दक्षिण तक हर जगह कोविड बिमारों को लूटने की हर कोशिश की जा रही है. कोविड के लिए जरूरी शर्मामीटरों की बालाबाजारी होने लगी है. औक्सीजन नापने के औक्सीलीटरों का दाम कहीं का कहीं पहुंच गया है. बिमारों को अस्पताल तक चंद किलोमीटर  ले जाने वाले एंबुलैंस वाले हजारों रुपए पहले ही धरा लेते हैं.

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अस्पतालों में बैड अब ब्लैक में बिल रहे हैं. दिल्ली के दयाल औप्टीकल के मालिक के यहां औक्सीजन कंसट्रेटर पकड़े गए जो ब्लैक में ऊंचे दामों में बेचे जा रहे थे. शमशान तक में जगह रिश्वत दे कर मिल रही है.

यह कैसा धर्म है जो बिमार और मरने वाले के लिए भी दया नहीं पैदा करता. क्या इसी धर्म के लिए लोगों को कहा जाता है कि दूसरे धर्म वाले का सिर फोड़ दो.

भारतीय जनता पार्टी जो दूध की धुली मानी जाती है, आज भी अपने लोगों को सेवा के लिए तैयार नहीं कर पा रही. कोविड विचारों के कहीं भी पार्टी के एक करोड़ मेंबर सेवा करते नजर नहीं आ रहे. बिमारों के लोग कभी साईकल पर ले जा रहे हैं, कभी 2 पहिए वाली बाइक पर. सरकार को अभी भी दिल्ली में आलीशान संसद भवन बनवाने की लगी हुई है, उस सरकार को जो दूसरों के भले के लिए बने खास धर्म को बीच बेच कर वोट पा कर बनी थी.

हर गले में 5-7 मंदिर बने हुए हैं. छोटे गांवों में भी बड़े मंदिर बने हुए हैं. हर मंदिर में 4-5 हट्टेकट्टे पुजारी हैं और 10-20 और आदमी औरतें हैं जो कहने को जनता को भगवान दिलाने का पुण्य कारण करते हैं पर इस आपदा के समय न तो कोविड बिमारों को वहां ठहरने दिया जा रहा है, न मंदिरों में भरा खजाना इस्तेमाल किया जा रहा है न पंडे पुजारी पीपीई किट पहने कोविड बिमारों या उन के रिश्तेदारों की सेवा करते नजर आ रहे हैं.

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लाखों घरों में चूल्हे नहीं जल पा रहे पर मजाल है कि मंदिर खाने के बने हों. वे लेना जानते हैं, देना नहीं. कुछ धर्म तो ऐसे हैं जो दूसरों की सेवा थोड़ी बहुत दिखावे के लिए करना सिखाते भी हैं पर ङ्क्षहदू धर्म तो ठहरा खास. यहां तो दूसरों के लेना ही सिखाया जाता है. कोविड का फायदा तो हवा करा कर, औक्सीजन टैंकरों की पूजा करा कर, अस्पताल में पंडितों को बुला कर शुद्ध कराने में उठाया जाता है और हर जगह पूजापाठी दुकानदारों को पैसा मिल रहा है. जान जोखिम में डाल कर कोई बिमारों की देखभाल के आगे नहीं आ रहा है.

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इसी खर्च के नाम पर देश को हिस्सों में बांट रखा है. हिंदू-मुसलिम तो अलग है हीं, हिंदू हिंदू भी अलग हैं. यह ब्राह्मïण है, यह वैश्य है, यह यादव है, यह चमार है, यह मंगी है जैसी बातें कोविड में भी कही जा रही हैं. हां कोविड जरूर सब घर बराबरी से हल्ला कर रहा है. कोविड कोई भेदभाव नहीं कर रहा, ऊंचनीच नहीं कर रहा. फर्क इतना है अमीर ऊंचे घरानों के औक्सीजन और अस्पताल के बेड के लिए हायहाय करते मर रहे हैं, गरीब निचली जातियों के बिना दवाइयों, बिना इलाज के खांसतेखांसते.

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