सरकार ने जनता को विध्वंस के कगार पर खड़ा कर दिया है. चारों ओर डर व दहशत का माहौल है. अर्थव्यवस्था चकनाचूर है. लोगों की नौकरियां छिन गई हैं. इस विध्वंस से जन्मी घनघोर निराशा व अवसाद के चलते आत्महत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ने लगी हैं जो देश को गहराते अंधकार की तरफ धकेलती जा रही हैं. डाक्टर बनने का सपना देख मैडिकल कोर्स में प्रवेश करने वाली आदिवासी छात्रा स्नेहा ने 20 मई को घर में फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. 21 वर्षीया स्नेहा भिवजी हिचामी गढ़चिरौली जिले के घोट गांव की रहने वाली थी. दिन के 2 बजे के आसपास स्नेहा ने अपने घर के खाली कमरे में लगे पंखे के हुक में नायलौन की रस्सी बांध कर आत्महत्या की. स्नेहा सरकारी मैडिकल कालेज चंद्रपुर में एमबीबीएस द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी.
उस के पिता पुलिस अधिकारी हैं और उस के परिवार में मां और एक भाई हैं. सुसाइड करने से पहले स्नेहा ने कमरे की दीवार पर इंग्लिश में बड़े अक्षरों में डिप्रैशन लिखा था. वह उदास थी और अवसाद में थी. आशंका है कि कोरोना की स्थिति, लगातार लौकडाउन और खराब पाठ्यक्रम कार्यक्रम ने उसे ऐसा करने को मजबूर किया था. वह डाक्टर न बन पाने की संभावनाओं से घबराई हुई थी. इसी प्रकार नोएडा में भी एक सौफ्टवेयर इंजीनियर ने अपने घर पर आत्महत्या कर ली. मामला सैक्टर 74 स्थित अजनारा हैरिटेज हाउसिंग सोसाइटी का था. पुलिस के मुताबिक, तबरेज अपनी पत्नी के साथ जामिया नगर में रह रहा था और नोएडा के अजनारा आवासीय परिसर में एक फ्लैट का मालिक था.
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वह सोसाइटी में छठी मंजिल पर किराएदार से मिलने आया था. लेकिन 12वीं मंजिल पर जा कर अपना लैपटौप बैग में रखा और फिर कूद कर जान दे दी. आखिरी बार तबरेज ने अपनी पत्नी से बात की थी. यह आत्महत्या भी गहरे अवसाद के चलते हुई. रिपोर्ट के मुताबिक उसी दिन 24 घंटे के भीतर अकेले नोएडा में 9 युवाओं ने अलगअलग कारणों से अवसाद में घिर कर आत्महत्या की. ऐसे ही, 30 अप्रैल को भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएस) बेंगलुरु के 21 वर्षीय स्नातक छात्र रोहन ने अपने कमरे में फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. पुलिस के अनुसार, वह परेशान था और अवसाद से घिरा था क्योंकि वह विदेश में अपनी पढ़ाई के सपने को पूरा नहीं कर पाया था. वहीं मार्च के अंत में मध्य प्रदेश के रीवां जिला निवासी 26 वर्षीय उमंग शर्मा ने बेरोजगार होने के चलते आत्महत्या कर ली. नौकरी न होने के चलते मानसिक तनाव में आ कर उमंग शर्मा ने कमरे में पंखे के कुंडे से फंदा लगा कर आत्महत्या की.
इंदौर की एमबीबीएस के फाइनल वर्ष की छात्रा नित्या ने प्रशासन के रवैए से परेशान हो कर अपने होस्टल के कमरे में पंखे से लटक कर फांसी लगा कर मौत को गले लगा लिया. कोटा में परीक्षा में असफल होने के कारण एक छात्र ने कीटनाशक पी कर जीवन समाप्त किया. कानपुर आईआईटी के प्रतिभाशाली छात्र ने तनाव के कारण फांसी लगाई. प्रयागराज में प्रतियोगी परीक्षा में असफल हो जाने के कारण 15 दिनों में 5 छात्रों ने आत्महत्याएं कीं. पिछले दिनों तेलंगाना के 20 छात्रों द्वारा आत्महत्याएं किए जाने की खबर आई थी. कारण, तकनीकी खराबी की वजह से बच्चों का परीक्षा परिणाम ठीक से नहीं आने के कारण निराश बच्चों ने ऐसा कदम उठाया. अहमदाबाद की आयशा, इंदौर के भय्यू महाराज (धर्मोपदेशक), फिल्म जगत के बहुचर्चित सुशांत सिंह राजपूत, टीवी आर्टिस्ट प्रत्यूषा बनर्जी, कैफे डे के मालिक वी जी सिद्धार्थ, युवा कवयित्री एकादशी त्रिपाठी आदि कई नाम हैं.
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ऐसी खबरें रोज ही अखबारों और न्यूज चैनलों की सुर्खियां बनती हैं. कुछ दिनों तक रोनाधोना, फिर सब शांत. दुनियाभर में होने वाली आत्महत्याओं में भारतीय महिलाओं की संख्या एकतिहाई से अधिक और पुरुषों की संख्या लगभग एकचौथाई है. हमारे देश में ऐसी घटनाओं की दर वैश्विक औसत से भी ज्यादा है. आजकल देखा जा रहा है कि लोगों में किन्हीं भी कारणों से अपनी जान देने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है. भारतवर्ष में शिक्षा से उम्मीद की जाती है कि भविष्य में नौकरी के अच्छे मौके के साथ सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक तौर पर बेहतर पृष्ठभूमि तैयार हो सकेगी. अर्थात शिक्षा को रोजगार की कुंजी सम झा जाता है. परंतु भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर्याप्त नौकरियों के विकल्प तैयार करवाने में असफल रही है. भविष्य में जौब की कमजोर होती संभावनाओं के कारण छात्रों पर लगातार बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव बढ़ता जा रहा है. पढ़ाई के दौरान जो मिलने वाला आनंद और मौजमस्ती थी उस से छात्र वंचित हो रहे हैं.
लगातार बढ़ते तनाव के कारण छात्रों में सामाजिक जुड़ाव के प्रति अनिच्छा पैदा हो रही है. यही वजह है कि वे खुल कर लोगों के साथ मिलना पसंद नहीं करते और अकेलेपन के कारण जल्दी अवसाद से पीडि़त हो जाते हैं. बेरोजगारी कई समस्याओं की जड़ है. परंतु रोजगार में लगे युवाओं के मन में पलती निराशा के भी भयानक परिणाम दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसी घटनाएं, दरअसल, रोजगार में होने वाली मुश्किलों के कारण लोगों में बढ़ती निराशा और अवसाद का खुलासा करती हैं. हालांकि, देश में कई अन्य कारणों से भी आत्महत्या करने वालों की संख्या बढ़ रही है. हमेशा से अवैध संबंधों के संदेह में या समाज में बदनामी के कारण या फिर प्रेम प्रसंगों में नाकामी मिलने के कारण हर वर्ष हजारों की संख्या में युवा मौत को गले लगाते रहे हैं. परंतु रोजगार में सफल व्यक्ति सुशांत सिंह राजपूत जैसे लोग भी आत्महत्या कर लें या फिर अवसाद में चले जाएं तो यह बात हमारे समाज के लिए चिंता का विषय हो जाती है. समाजशास्त्रियों का कहना है कि आजकल का युवा अपनी महत्त्वाकांक्षाओं और कठोर यथार्थ में सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा है. आधुनिक जीवनशैली और नई संस्कृति की चमकदमक उन्हें लुभाती है, लेकिन उस के लिए संसाधन जुटाने का अवसर उन्हें हमारी व्यवस्था में सहज और आसान ढंग से नहीं मिल पाता. फिर निराश युवा के मन में अवसाद के कारण आत्मघात का विचार हावी हो जाता है. इस समय युवा बेहद कठिन दौर से गुजर रहे हैं.
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इस दुनिया में अपनेआप को प्रतिस्पर्धा में बनाए रखने के लिए उन्हें दिनरात कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. पर जब इतना कुछ करने के बाद भी उन्हें मनचाहा परिणाम नहीं मिल पाता तो वे अवसाद से पीडि़त हो कर आत्मघात का विचार करने लगते हैं. प्रयागराज में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए लाखों की संख्या में छात्र अपने घर से दूर कोचिंग सैंटरों या प्राइवेट होस्टल में रह कर पढ़ाई करते हैं. पिछले दिनों आत्महत्या के कई मामले सामने आए हैं. नौकरियों में अवसरों की कमी, परीक्षाओं का समय पर न होना, हो जाने पर भी परिणाम समय पर नहीं आना, पेपर लीक हो जाना, परीक्षा स्थगित हो जाना जैसी परिस्थितियों के कारण छात्र फ्रस्ट्रेशन के शिकार हो जाते हैं. कर्मचारी चयन आयोग, उत्तर प्रदेश माध्यमिक सेवा चयन बोर्ड, उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग जैसी संस्थाओं की भरती प्रक्रिया में 3 से 4 वर्षों तक का समय लग रहा है. 2017 और 2018 की भरती प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हो सकी है. उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड ने पिछले 4 वर्षों में किसी नई भरती की घोषणा नहीं की है.
नीलेश चौहान बताते हैं कि लेटलतीफी तो एक समस्या है ही, पिछले कई वर्षों से शायद ही कोई परीक्षा हुई हो जो कोर्ट के चक्कर में न फंसी हो. यह सोचने की बात है कि जो छात्र उम्मीद लगाए हुए 6-7 वर्ष लगा देता है और फिर भी असफलता मिले और नौकरियों में भी कमी होती रहे तो फिर भविष्य अंधकारमय दिखना स्वाभाविक है. आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर वे छात्र होते हैं जो किसी परीक्षा में फेल हो जाते हैं या फिर प्रतियोगी परीक्षा में असफल हो जाने के कारण अवसाद की वजह से आत्महत्या का कदम उठाते हैं. युवावस्था आज एक संक्रमणकाल जैसी है, जिस में युवाओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है विशेषरूप से कैरियर, जौब, रिश्ते, खुद की इच्छाएं, पेरैंट्स की इच्छाएं और सपने वहीं व्यक्तिगत समस्याएं, जैसे लव अफेयर, मैरिज, सैटलमैंट, भविष्य की पढ़ाई आदि. जब वे किसी तरह इन सब से उबरते हैं तो बेरोजगारी का शिकार बन जाते हैं और भविष्य के प्रति अनिश्चितता सामने दिखाई पड़ती है. अपरिपक्वता के कारण डिप्रैशन, एंग्जायटी आदि से यदि किसी तरह बाहर निकल भी आएं तो परिवार की जरूरत से ज्यादा अपेक्षाओं के बो झ तले दब जाते हैं. फिर अर्थहीन प्रतिस्पर्धा और सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों में गिरावट, परिवार का टूटना, अकेलापन धीरेधीरे उन्हें आत्महत्या की ओर प्रेरित करते हैं. बेरोजगारी कई समस्याओं की जड़ है.
परंतु रोजगार में लगे युवाओं की निराशा के भी भयानक परिणाम दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसी घटनाएं असल में रोजगार की मुश्किलों के कारण लोगों में बढ़ती निराशा और अवसाद का खुलासा करती हैं. ऐसा भी देखने में आता है कि युवा अपनी नौकरियों से संतुष्ट नहीं होते या फिर नौकरियों में जिस तरह का दबाव और तनाव रहता है उस को नहीं झेल पाते और फिर उस में लोगों का इस तरह का अतिवादी कदम उठा लेना आश्चर्यजनक होने के बावजूद अस्वाभाविक नहीं लगता. इसी दबाव या तनाव के कारण युवा या तो जल्दीजल्दी नौकरी बदलते हैं या फिर किसी दूसरे रोजगार की ओर मुड़ जाना चाहते हैं और जब सफल नहीं होते तो आत्महत्या करने या अवसाद झेलने जैसे विकल्प ही उन के लिए बचते हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2014-2016 के बीच 26,476 छात्रों ने आत्महत्या की, इन में 7,462 छात्रों ने विभिन्न परीक्षाओं मे फेल हो जाने के डर से आत्महत्या की थी. बच्चों की बढ़ती आत्महत्या भारतीय शिक्षा व्यवस्था कार्यप्रणाली पर प्रश्न खड़े करती है.
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट ‘विश्व रोजगार एवं सामाजिक आउटलुक ट्रैंड्स 2018’ कहती है कि लगभग 77 प्रतिशत भारतीय कामगारों की नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है, साथ ही, 1.89 करोड़ भारतीयों के बेरोजगारी के भंवर में फंसने का डर है. लौन्सेट पब्लिक हैल्थ के अनुसार, वर्ष 2016 में सर्वाधिक आत्महत्याएं भारत में हुईं. पूरे विश्व में 8,17,000 लोगों ने खुदकुशी की थी, जबकि भारत में अकेले यह संख्या 2,30,314 थी. रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पुरुष और महिलाओं दोनों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है. इस समय कानून व्यवस्था लागू करने वालों ने नागरिकों की सुरक्षा के अपने कर्तव्य को त्याग दिया है. न्यायिक प्रतिष्ठान और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया भी सरकारी भोंपू बन कर रह गए हैं. बिना रोकटोक के सामाजिक तनाव की आग देशभर में फैलती जा रही है. सांप्रदायिक हिंसा की हर घटना गांधी के भारत के लिए धब्बा है. जब हमारी अर्थव्यवस्था खराब दौर से गुजर रही है तो सामाजिक तनाव का असर यह होगा कि आर्थिक मंदी तेज हो जाएगी. आर्थिक विकास का आधार सामाजिक सौहार्द है जो इस समय खतरे में दिखाई पड़ रहा है.
कौर्पोरेट को प्रोत्साहन देने के कारण विदेशी निवेशक पैसा लगाने के लिए प्रेरित नहीं होंगे. निवेश न आने का मतलब है नौकरियां और आय न होना. इस का नतीजा होता है खपत और मांग की कमी. खपत की कमी निवेशकों को हतोत्साहित करेगी. यह एक ऐसा कुचक्र है जिस में हमारी अर्थव्यवस्था फंस कर रह गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सब से बड़ी विफलता यह है कि उन्होंने विकास की बातें तो बहुत कीं लेकिन विकास संरचना वे नहीं बना सके. भ्रष्टाचार रोकने के लिए अधिकारियों पर पार्टी के मंत्रियों से ज्यादा भरोसा किया जबकि ज्यादातर मंत्री अपना स्वतंत्र चेहरा बनाने और सरकार की नीतियों को निचले स्तर तक ले जाने में विफल रहे. कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था की हालत और भी नाजुक अवस्था में पहुंच गई है. भारत में बेरोजगारी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारतीय रेलवे ने 63 हजार नौकरियां निकालीं तो एक करोड़ 90 लाख लोगों ने आवेदन किए.
देश के सरकारी बैंकों का एनपीए इतना बढ़ गया है कि अब वे कौर्पोरेट लोन देने से बच रहे हैं. अर्थव्यवस्था की यह गिरावट महज कोरोना के कारण ही नहीं है, बल्कि इस से पहले ही लगातार आर्थिक विकास दर में गिरावट दर्ज हो रही थी. जनवरी से मार्च 2020 तक यह 3.2 तक पहुंच गई थी. परंतु अनियोजित लौकडाउन और कोरोना से निबटने में सरकार की असफलता ने इस गिरावट को तेज कर दिया. अर्थशास्त्रियों के अनुसार, इस गिरावट की मूल वजह 2016 की नोटबंदी और कुछ महीनों बाद ही बेहद गलत तरीके से लागू किया गया जीएसटी है. विपक्षी पार्टियों के प्रति आक्रामक रवैए के कारण मोदी की नीतियों को राज्य सरकारों और जिला स्तर के नेताओं का भी समर्थन नहीं मिला. मोदी से निराश उन के समर्थक लोगों का कहना है कि मोदीजी ने बहुत सारे वादे तोड़े हैं और अर्थव्यवस्था को सुधारने में नाकाम रहे हैं. विरोधी उन पर देश को बांटने, धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण और विपक्ष को दबाने का आरोप भी लगाते हैं. वहीं, सरकार का विरोध करने वाले को सरकार द्वारा देशद्रोही बताने में जरा भी देर नहीं लगती.
आज की सचाई यह है कि एसएससी, यूपीएससी, रेलवे भरती, सिपाही भरती से ले कर अलगअलग राज्यों के चयन आयोगों तक हर जगह युवकों को छला जा रहा है. सरकारी विभागों में कम से कम 24 लाख पद खाली पड़े हैं परंतु नौकरी निकालने के बजाय सरकार पदों को ही समाप्त कर रही है. नौकरी का विज्ञापन आ भी जाए तो परीक्षा करवाने में ही सालोंसाल लगा दिए जाते हैं. लगभग हर भरती परीक्षा में छात्रों को नेताओं, अफसरों, मीडिया वालों और वकीलों के चक्कर लगाने पड़ते हैं. यदि कहीं परीक्षा में सफल भी हो गए तो नियुक्ति में बेमतलब की देरी की जाती है और यदि युवा लोकतांत्रिक ढंग से प्रदर्शन करे तो यह असंवेदनशील सरकार न ही सुनती है न ही संवाद करती है. देश में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. ऐसे आंकड़े सरकारी एजेंसियां ही जारी किया करती हैं. ये इसलिए ज्यादा चौंकाते हैं क्योंकि अब महिलाओं के मुकाबले पुरुष ज्यादा बड़ी तादाद में आत्महत्या कर रहे हैं. इस में युवाओं का प्रतिशत ज्यादा है. हैरानी यह है कि देश के विकसित कहे जाने वाले राज्यों, मसलन पंजाब और हरियाणा में आत्महत्याओं का प्रतिशत देश के औसत से कहीं ज्यादा है.
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में एक शोध के लेखक पीटर जोंस कहते हैं, ‘‘ऐसा लगता है कि युवाओं में खुद को नुकसान पहुंचाने और आत्महत्या करने का आंकड़ा तेजी से बढ़ता जा रहा है. यह भी कहा जा रहा है कि आजकल युवाओं में धैर्य की कमी होती जा रही है जिस वजह से हालात से जू झने का उन का जोश ठंडा पड़ गया है.’’ आत्महत्या की बढ़ती संख्या के साथ अफसोस की बात यह भी है कि पूरे देश में सिर्फ 44 सुसाइड हैल्प सैंटर हैं. इन में भी सिर्फ 9 सैंटर ऐसे हैं जो चौबीसों घंटे खुले रहते हैं. इतना ही नहीं, कोई एक ऐसा नंबर भी नहीं है जो इन हैल्प सैंटरों को आपस में जोड़ सके. इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि मानसिक विकारों से ग्रस्त लोगों की संख्या और आत्महत्या करने वालों की संख्या में इजाफा होने के बावजूद सरकार के पास इस से निबटने का या इस की संख्या में कमी लाने के लिए कोई कारगर उपाय मौजूद नहीं है. यदि आप को मदद की आवश्यकता है तो:
औल इंडिया टोलफ्री हैल्पलाइन नं- कनैक्ंिटग इंडिया -1800 2094353 (दोपहर 12.00 से शाम 8 बजे तक).
टाटा इंस्टिट्यूट औफ सोशल साइंसेज – आई कौल टैलीफोन आधारित परामर्श- 022-25521111 (सोमवार से शनिवार, सुबह 8 बजे से रात्रि 10 बजे तक).
ईमेल आधारित परामर्श द्बष्ड्डद्यद्य ञ्चह्लद्बह्यह्य.द्गस्रह्व चैट आधारित परामर्श. आज आवश्यकता इस बात की है कि सरकार आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारणों की गहराई से पड़ताल करे और प्राथमिक जिम्मेदारी के तौर पर ऐसे उपाय करे कि लोग अपनी जीवनलीला समाप्त करने का विचार ही मन में न ला सकें.
आत्महत्या रोकने के लिए छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में लोगों को अवसाद से बचाने और आत्मघाती कदमों को रोकने के लिए अब तक 569 नवजीवन केंद्रों को स्थापित किया जा चुका है. इन केंद्रों में आउटडोर और इनडोर खेल सामग्री, प्रेरणादायक व ज्ञानवर्द्धक पुस्तकें उपलब्ध कराई जा रही हैं. आत्महत्या करने वालों की पुलिस की जांच के बाद भी यह संस्था तहसीलदार और डाक्टरों द्वारा विशेष रूप से गहन जांच कर के उस के कारणों का पता लगाती है.
यह प्रयोग पूरे प्रदेश के लिए रोलमौडल बन चुका है और अन्य जिले भी इस का अनुसरण कर रहे हैं. यदि आप आत्महत्या के विचारों से अपने को दूर नहीं कर पा रहे हैं तो बिना किसी शर्म या हिचक के डाक्टर से संपर्क करें. अपने परिवार व दोस्तों के साथ अपनी समस्या को सा झा करें. यह जीवन अमूल्य है, अपने जीवन के महत्त्व को सम झने की कोशिश करिए. इस दुनिया में आप कुछ विशेष काम करने के लिए आए हैं.
आत्महत्या का विचार आने पर उस को कैसे रोकें द्य अपने पास खतरनाक हथियार जैसे चाकू, पिस्टल और ड्रग आदि न रखें. द्य उन चीजों की तलाश करें जिन से आप के मन को खुशी मिलती हो, जैसे परिवार के साथ या वे दोस्त जिन के साथ आप को खुशी मिलती हो, जो सकारात्मक बातें करने वाले हों.
सैल्फ हैल्प गु्रप में उपस्थित होना.
वहां आप अपनी समस्याओं पर चर्चा कर सकते हैं. जो इस समस्या से पीडि़त हैं उन की मदद करने की कोशिश करें.
परिवार का सहारा लेना. परिवार के लोगों के साथ डाक्टर के पास जाएं. अपनी मानसिक स्थिति पर खुल कर बात करें. शराब या अन्य गैरकानूनी दवाओं के सेवन से दूरी बना कर रखें.
खुद अकेले रहने से बचें. जितना हो सके बाहरी लोगों के साथ जुड़े रहें.
शारीरिक व्यायाम करना आवश्यक है.
संतुलित और स्वस्थ भोजन करना चाहिए.
दिनभर में 7-8 घंटे की नींद लेना आवश्यक है.
याद रखें, आत्महत्या करने का विचार कभीकभी ही आता है, इसलिए ऐसे काफी लोग हैं जो इस से बचने का उपाय ढूंढ़ लेते हैं.