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ईर्ष्या-भाग 1 : निशा और प्रेमलता की दोस्ती दुश्मनी में क्यों बदलने लगी

निशा को डाक्टर ने जब यह बताया कि पेट में ट्यूमर है तथा आपरेशन कराना बेहद जरूरी है वरना वह कैंसर भी बन सकता है तो पति आयुष के साथ वह भी काफी घबरा गई थी. सारी चिंता बच्चों को ले कर थी. वरुण और प्रज्ञा काफी छोटे थे, उस की इस बीमारी का लंबे समय तक चलने वाला इलाज तो उस के पूरे घर को अस्तव्यस्त कर देगा.

सच पूछिए तो जब यह महसूस होता है कि हम अपाहिज होने जा रहे हैं या हमें दूसरों की दया पर जीना है तो मन बहुत ही कुंठित हो उठता है.

परिवार में सास, ननद, देवर, जेठ सभी थे पर एकाकी परिवारों में सब के सामने उस जैसी ही समस्या उपस्थित थी. कौन अपना घरपरिवार छोड़ कर इतने दिनों तक उस के घर को संभालेगा?

अपने आपरेशन से भी अधिक निशा को अपने घरसंसार की चिंता सता रही थी. यह भी अटल सत्य है कि पैर चाहे चिता में रखे हों पर जब तक सांस है तब तक व्यक्ति सांसारिक चिंताओं से मुक्त नहीं हो पाता.

आसपड़ोस के अलावा निशा ने अखबार में भी विज्ञापन देखने शुरू कर दिए तथा ‘आवश्यकता है एक काम वाली की’ नामक विज्ञापन अपना पता देते हुए प्रकाशित भी करवा दिया. विज्ञापन दिए अभी हफ्ता भी नहीं बीता था कि एक 21-22 साल की युवती घर का पता पूछतेपूछते आई. उस ने अपना परिचय देते हुए काम पर रखने की पेशकश की थी और अपने विषय में कुछ इस प्रकार बयां किया था :

‘‘मेरा नाम प्रेमलता है. मैं बी.ए. पास हूं. 3 साल पहले मेरा विवाह हुआ था पर पिछले साल मेरा पति एक दुर्घटना में मारा गया. संतान भी नहीं है. ससुराल वालों ने मुझे मनहूस समझ कर घर से निकाल दिया है. परिवार में अन्य कोई न होने के कारण मुझे भाई के पास रहना पड़ रहा है पर भाभी अब मेरी उपस्थिति सह नहीं पा रही है…वहां तिलतिल कर मरने की अपेक्षा मैं कहीं काम करना चाह रही हूं…1-2 स्कूलों में पढ़ाने के लिए अरजी भी दी है पर बात बनी नहीं, अब जब तक कोई अन्य काम नहीं मिल जाता, यही काम कर के देख लूं सोच कर चली आई हूं… भाई के घर नहीं जाना चाहती…काम के साथ रहने के लिए घर का एक कोना भी दे दें तो मैं चुपचाप पड़ी रहूंगी.’’

उस की साफगोई निशा को बहुत पसंद आई. उस ने कुछ भी नहीं छिपाया था. रुकरुक कर खुद ही सारी बातें कह डाली थीं. निशा को भी जरूरत थी तथा देखने में भी वह साफसुथरी और सलीकेदार लग रही थी. अत: उस की शर्तों पर निशा ने हां कर दी.

निशा को जब महसूस हुआ कि अब इस के हाथों घर सौंप कर आपरेशन करवा सकती हूं तब उस ने आपरेशन की तारीख ले ली.

नियत तिथि पर आपरेशन हुआ और सफल भी रहा. सभी नातेरिश्तेदार आए और सलाहमशवरा

दे कर चले गए. प्रेमलता ने सबकुछ इतनी अच्छी तरह से संभाल लिया था कि किसी को उस ने जरा भी शिकायत का मौका नहीं दिया. जातेजाते सब उस की तारीफ ही करते गए. फिर भी कुछ ने यह कह कर नाराजगी जाहिर की कि ऐसे समय में भी तुम ने हमें अपना नहीं समझा बल्कि हम से ज्यादा एक अजनबी पर भरोसा किया.

वैसे भी आदरयुक्त, प्रिय और आत्मीय संबंध तो आपसी व्यवहार पर आधारित रहते हैं पर परिवार में सब से बड़ी होने के नाते किसी को भी खुद के लिए कष्ट उठाते देखना निशा के स्वभाव के विपरीत था अत: अपनी तीमारदारी के लिए किसी को भी बुला कर परेशान करना उसे उचित नहीं लगा था पर वे ऐसी शिकायत करेंगे, उसे आशा नहीं थी. शायद कमियां निकालना ही ऐसे लोगों की आदत रही हो.

ऐसी शिकायत करने वाले यह भूल गए थे कि ऐसी स्थिति आने पर क्या वह सचमुच अपना घर छोड़ कर महीने भर तक उस के घर को संभाल पाते…जबकि डाक्टरों के मुताबिक उसे 6 महीने तक भारी सामान नहीं उठाना था क्योंकि गर्भाशय में संक्रमण के कारण ट्यूमर के साथ गर्भाशय को भी निकालना पड़ गया था. ऐसे वक्त में लोगों की शिकायत सुन कर एकाएक ऐसा लगा कि वास्तव में रिश्तों में दूरी आती जा रही है, लोग करने की अपेक्षा दिखावा ज्यादा करने लगे हैं.

सच, आज की दुनिया में कथनी और करनी में बहुत

अंतर आ गया है…कार्य व्यस्तता या दूरी के कारण संबंधों में भी दूरी आई है…इस में कोई संदेह नहीं है…उन के व्यवहार से मन खट्टा हो गया था.

प्रेमलता की उचित देखभाल ने निशा को घर के प्रति निश्ंिचत कर दिया था. वरुण और प्रज्ञा भी उस से हिल गए थे. शाम को उस को पार्क में घुमाने के साथ उन का होमवर्क भी वह पूरा करा दिया करती थी.

जाने क्यों निशा प्रेमलता के प्रति बेहद अपनत्व महसूस करने लगी थी… आयुष के आफिस जाने के बाद वह साए की तरह उस के आगेपीछे घूमती रहती, उस की हर आवश्यकता का खयाल रखती. एक दिन बातोंबातों में प्रेमलता बोली, ‘‘दीदी, आप के पास रह कर लगता ही नहीं है कि मैं आप के यहां नौकरी कर रही हूं. सास और भाई के घर मैं इस से ज्यादा काम करती थी पर फिर भी उन्हें मैं बोझ ही लगती थी…दीदी, वे मेरा दर्द क्यों नहीं समझ पाए, आखिर पति के मरने के बाद मैं जाती तो जाती कहां? सास तो मुझे हर वक्त इस तरह कोसती रहती थी मानो उस के बेटे की मौत का कारण मैं ही हूं. दुख तो इस बात का था कि एक औरत हो कर भी वह औरत के दुख को क्यों नहीं समझ पाई?’’

आंखों में आंसू भर आए थे…रिश्तों में आती संवेदनहीनता ने प्रेमलता को तोड़ कर रख दिया था…यहां आ कर उसे सुकून मिला था, खुशी मिली थी अत: उस की पुरानी चंचलता लौट आई थी. शरीर भी भराभरा हो गया था. निशा भी खुश थी, चलो, जरूरत के समय उसे अच्छी काम वाली के साथसाथ एक सखी भी मिल गई है.

बढ़ती आत्महत्याएं, गहराती चिंताएं

सरकार ने जनता को विध्वंस के कगार पर खड़ा कर दिया है. चारों ओर डर व दहशत का माहौल है. अर्थव्यवस्था चकनाचूर है. लोगों की नौकरियां छिन गई हैं. इस विध्वंस से जन्मी घनघोर निराशा व अवसाद के चलते आत्महत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ने लगी हैं जो देश को गहराते अंधकार की तरफ धकेलती जा रही हैं. डाक्टर बनने का सपना देख मैडिकल कोर्स में प्रवेश करने वाली आदिवासी छात्रा स्नेहा ने 20 मई को घर में फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. 21 वर्षीया स्नेहा भिवजी हिचामी गढ़चिरौली जिले के घोट गांव की रहने वाली थी. दिन के 2 बजे के आसपास स्नेहा ने अपने घर के खाली कमरे में लगे पंखे के हुक में नायलौन की रस्सी बांध कर आत्महत्या की. स्नेहा सरकारी मैडिकल कालेज चंद्रपुर में एमबीबीएस द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी.

उस के पिता पुलिस अधिकारी हैं और उस के परिवार में मां और एक भाई हैं. सुसाइड करने से पहले स्नेहा ने कमरे की दीवार पर इंग्लिश में बड़े अक्षरों में डिप्रैशन लिखा था. वह उदास थी और अवसाद में थी. आशंका है कि कोरोना की स्थिति, लगातार लौकडाउन और खराब पाठ्यक्रम कार्यक्रम ने उसे ऐसा करने को मजबूर किया था. वह डाक्टर न बन पाने की संभावनाओं से घबराई हुई थी. इसी प्रकार नोएडा में भी एक सौफ्टवेयर इंजीनियर ने अपने घर पर आत्महत्या कर ली. मामला सैक्टर 74 स्थित अजनारा हैरिटेज हाउसिंग सोसाइटी का था. पुलिस के मुताबिक, तबरेज अपनी पत्नी के साथ जामिया नगर में रह रहा था और नोएडा के अजनारा आवासीय परिसर में एक फ्लैट का मालिक था.

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वह सोसाइटी में छठी मंजिल पर किराएदार से मिलने आया था. लेकिन 12वीं मंजिल पर जा कर अपना लैपटौप बैग में रखा और फिर कूद कर जान दे दी. आखिरी बार तबरेज ने अपनी पत्नी से बात की थी. यह आत्महत्या भी गहरे अवसाद के चलते हुई. रिपोर्ट के मुताबिक उसी दिन 24 घंटे के भीतर अकेले नोएडा में 9 युवाओं ने अलगअलग कारणों से अवसाद में घिर कर आत्महत्या की. ऐसे ही, 30 अप्रैल को भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएस) बेंगलुरु के 21 वर्षीय स्नातक छात्र रोहन ने अपने कमरे में फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. पुलिस के अनुसार, वह परेशान था और अवसाद से घिरा था क्योंकि वह विदेश में अपनी पढ़ाई के सपने को पूरा नहीं कर पाया था. वहीं मार्च के अंत में मध्य प्रदेश के रीवां जिला निवासी 26 वर्षीय उमंग शर्मा ने बेरोजगार होने के चलते आत्महत्या कर ली. नौकरी न होने के चलते मानसिक तनाव में आ कर उमंग शर्मा ने कमरे में पंखे के कुंडे से फंदा लगा कर आत्महत्या की.

इंदौर की एमबीबीएस के फाइनल वर्ष की छात्रा नित्या ने प्रशासन के रवैए से परेशान हो कर अपने होस्टल के कमरे में पंखे से लटक कर फांसी लगा कर मौत को गले लगा लिया. कोटा में परीक्षा में असफल होने के कारण एक छात्र ने कीटनाशक पी कर जीवन समाप्त किया. कानपुर आईआईटी के प्रतिभाशाली छात्र ने तनाव के कारण फांसी लगाई. प्रयागराज में प्रतियोगी परीक्षा में असफल हो जाने के कारण 15 दिनों में 5 छात्रों ने आत्महत्याएं कीं. पिछले दिनों तेलंगाना के 20 छात्रों द्वारा आत्महत्याएं किए जाने की खबर आई थी. कारण, तकनीकी खराबी की वजह से बच्चों का परीक्षा परिणाम ठीक से नहीं आने के कारण निराश बच्चों ने ऐसा कदम उठाया. अहमदाबाद की आयशा, इंदौर के भय्यू महाराज (धर्मोपदेशक), फिल्म जगत के बहुचर्चित सुशांत सिंह राजपूत, टीवी आर्टिस्ट प्रत्यूषा बनर्जी, कैफे डे के मालिक वी जी सिद्धार्थ, युवा कवयित्री एकादशी त्रिपाठी आदि कई नाम हैं.

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ऐसी खबरें रोज ही अखबारों और न्यूज चैनलों की सुर्खियां बनती हैं. कुछ दिनों तक रोनाधोना, फिर सब शांत. दुनियाभर में होने वाली आत्महत्याओं में भारतीय महिलाओं की संख्या एकतिहाई से अधिक और पुरुषों की संख्या लगभग एकचौथाई है. हमारे देश में ऐसी घटनाओं की दर वैश्विक औसत से भी ज्यादा है. आजकल देखा जा रहा है कि लोगों में किन्हीं भी कारणों से अपनी जान देने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है. भारतवर्ष में शिक्षा से उम्मीद की जाती है कि भविष्य में नौकरी के अच्छे मौके के साथ सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक तौर पर बेहतर पृष्ठभूमि तैयार हो सकेगी. अर्थात शिक्षा को रोजगार की कुंजी सम झा जाता है. परंतु भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर्याप्त नौकरियों के विकल्प तैयार करवाने में असफल रही है. भविष्य में जौब की कमजोर होती संभावनाओं के कारण छात्रों पर लगातार बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव बढ़ता जा रहा है. पढ़ाई के दौरान जो मिलने वाला आनंद और मौजमस्ती थी उस से छात्र वंचित हो रहे हैं.

लगातार बढ़ते तनाव के कारण छात्रों में सामाजिक जुड़ाव के प्रति अनिच्छा पैदा हो रही है. यही वजह है कि वे खुल कर लोगों के साथ मिलना पसंद नहीं करते और अकेलेपन के कारण जल्दी अवसाद से पीडि़त हो जाते हैं. बेरोजगारी कई समस्याओं की जड़ है. परंतु रोजगार में लगे युवाओं के मन में पलती निराशा के भी भयानक परिणाम दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसी घटनाएं, दरअसल, रोजगार में होने वाली मुश्किलों के कारण लोगों में बढ़ती निराशा और अवसाद का खुलासा करती हैं. हालांकि, देश में कई अन्य कारणों से भी आत्महत्या करने वालों की संख्या बढ़ रही है. हमेशा से अवैध संबंधों के संदेह में या समाज में बदनामी के कारण या फिर प्रेम प्रसंगों में नाकामी मिलने के कारण हर वर्ष हजारों की संख्या में युवा मौत को गले लगाते रहे हैं. परंतु रोजगार में सफल व्यक्ति सुशांत सिंह राजपूत जैसे लोग भी आत्महत्या कर लें या फिर अवसाद में चले जाएं तो यह बात हमारे समाज के लिए चिंता का विषय हो जाती है. समाजशास्त्रियों का कहना है कि आजकल का युवा अपनी महत्त्वाकांक्षाओं और कठोर यथार्थ में सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा है. आधुनिक जीवनशैली और नई संस्कृति की चमकदमक उन्हें लुभाती है, लेकिन उस के लिए संसाधन जुटाने का अवसर उन्हें हमारी व्यवस्था में सहज और आसान ढंग से नहीं मिल पाता. फिर निराश युवा के मन में अवसाद के कारण आत्मघात का विचार हावी हो जाता है. इस समय युवा बेहद कठिन दौर से गुजर रहे हैं.

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इस दुनिया में अपनेआप को प्रतिस्पर्धा में बनाए रखने के लिए उन्हें दिनरात कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. पर जब इतना कुछ करने के बाद भी उन्हें मनचाहा परिणाम नहीं मिल पाता तो वे अवसाद से पीडि़त हो कर आत्मघात का विचार करने लगते हैं. प्रयागराज में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए लाखों की संख्या में छात्र अपने घर से दूर कोचिंग सैंटरों या प्राइवेट होस्टल में रह कर पढ़ाई करते हैं. पिछले दिनों आत्महत्या के कई मामले सामने आए हैं. नौकरियों में अवसरों की कमी, परीक्षाओं का समय पर न होना, हो जाने पर भी परिणाम समय पर नहीं आना, पेपर लीक हो जाना, परीक्षा स्थगित हो जाना जैसी परिस्थितियों के कारण छात्र फ्रस्ट्रेशन के शिकार हो जाते हैं. कर्मचारी चयन आयोग, उत्तर प्रदेश माध्यमिक सेवा चयन बोर्ड, उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग जैसी संस्थाओं की भरती प्रक्रिया में 3 से 4 वर्षों तक का समय लग रहा है. 2017 और 2018 की भरती प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हो सकी है. उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड ने पिछले 4 वर्षों में किसी नई भरती की घोषणा नहीं की है.

नीलेश चौहान बताते हैं कि लेटलतीफी तो एक समस्या है ही, पिछले कई वर्षों से शायद ही कोई परीक्षा हुई हो जो कोर्ट के चक्कर में न फंसी हो. यह सोचने की बात है कि जो छात्र उम्मीद लगाए हुए 6-7 वर्ष लगा देता है और फिर भी असफलता मिले और नौकरियों में भी कमी होती रहे तो फिर भविष्य अंधकारमय दिखना स्वाभाविक है. आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर वे छात्र होते हैं जो किसी परीक्षा में फेल हो जाते हैं या फिर प्रतियोगी परीक्षा में असफल हो जाने के कारण अवसाद की वजह से आत्महत्या का कदम उठाते हैं. युवावस्था आज एक संक्रमणकाल जैसी है, जिस में युवाओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है विशेषरूप से कैरियर, जौब, रिश्ते, खुद की इच्छाएं, पेरैंट्स की इच्छाएं और सपने वहीं व्यक्तिगत समस्याएं, जैसे लव अफेयर, मैरिज, सैटलमैंट, भविष्य की पढ़ाई आदि. जब वे किसी तरह इन सब से उबरते हैं तो बेरोजगारी का शिकार बन जाते हैं और भविष्य के प्रति अनिश्चितता सामने दिखाई पड़ती है. अपरिपक्वता के कारण डिप्रैशन, एंग्जायटी आदि से यदि किसी तरह बाहर निकल भी आएं तो परिवार की जरूरत से ज्यादा अपेक्षाओं के बो झ तले दब जाते हैं. फिर अर्थहीन प्रतिस्पर्धा और सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों में गिरावट, परिवार का टूटना, अकेलापन धीरेधीरे उन्हें आत्महत्या की ओर प्रेरित करते हैं. बेरोजगारी कई समस्याओं की जड़ है.

परंतु रोजगार में लगे युवाओं की निराशा के भी भयानक परिणाम दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसी घटनाएं असल में रोजगार की मुश्किलों के कारण लोगों में बढ़ती निराशा और अवसाद का खुलासा करती हैं. ऐसा भी देखने में आता है कि युवा अपनी नौकरियों से संतुष्ट नहीं होते या फिर नौकरियों में जिस तरह का दबाव और तनाव रहता है उस को नहीं झेल पाते और फिर उस में लोगों का इस तरह का अतिवादी कदम उठा लेना आश्चर्यजनक होने के बावजूद अस्वाभाविक नहीं लगता. इसी दबाव या तनाव के कारण युवा या तो जल्दीजल्दी नौकरी बदलते हैं या फिर किसी दूसरे रोजगार की ओर मुड़ जाना चाहते हैं और जब सफल नहीं होते तो आत्महत्या करने या अवसाद झेलने जैसे विकल्प ही उन के लिए बचते हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2014-2016 के बीच 26,476 छात्रों ने आत्महत्या की, इन में 7,462 छात्रों ने विभिन्न परीक्षाओं मे फेल हो जाने के डर से आत्महत्या की थी. बच्चों की बढ़ती आत्महत्या भारतीय शिक्षा व्यवस्था कार्यप्रणाली पर प्रश्न खड़े करती है.

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट ‘विश्व रोजगार एवं सामाजिक आउटलुक ट्रैंड्स 2018’ कहती है कि लगभग 77 प्रतिशत भारतीय कामगारों की नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है, साथ ही, 1.89 करोड़ भारतीयों के बेरोजगारी के भंवर में फंसने का डर है. लौन्सेट पब्लिक हैल्थ के अनुसार, वर्ष 2016 में सर्वाधिक आत्महत्याएं भारत में हुईं. पूरे विश्व में 8,17,000 लोगों ने खुदकुशी की थी, जबकि भारत में अकेले यह संख्या 2,30,314 थी. रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पुरुष और महिलाओं दोनों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है. इस समय कानून व्यवस्था लागू करने वालों ने नागरिकों की सुरक्षा के अपने कर्तव्य को त्याग दिया है. न्यायिक प्रतिष्ठान और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया भी सरकारी भोंपू बन कर रह गए हैं. बिना रोकटोक के सामाजिक तनाव की आग देशभर में फैलती जा रही है. सांप्रदायिक हिंसा की हर घटना गांधी के भारत के लिए धब्बा है. जब हमारी अर्थव्यवस्था खराब दौर से गुजर रही है तो सामाजिक तनाव का असर यह होगा कि आर्थिक मंदी तेज हो जाएगी. आर्थिक विकास का आधार सामाजिक सौहार्द है जो इस समय खतरे में दिखाई पड़ रहा है.

कौर्पोरेट को प्रोत्साहन देने के कारण विदेशी निवेशक पैसा लगाने के लिए प्रेरित नहीं होंगे. निवेश न आने का मतलब है नौकरियां और आय न होना. इस का नतीजा होता है खपत और मांग की कमी. खपत की कमी निवेशकों को हतोत्साहित करेगी. यह एक ऐसा कुचक्र है जिस में हमारी अर्थव्यवस्था फंस कर रह गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सब से बड़ी विफलता यह है कि उन्होंने विकास की बातें तो बहुत कीं लेकिन विकास संरचना वे नहीं बना सके. भ्रष्टाचार रोकने के लिए अधिकारियों पर पार्टी के मंत्रियों से ज्यादा भरोसा किया जबकि ज्यादातर मंत्री अपना स्वतंत्र चेहरा बनाने और सरकार की नीतियों को निचले स्तर तक ले जाने में विफल रहे. कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था की हालत और भी नाजुक अवस्था में पहुंच गई है. भारत में बेरोजगारी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारतीय रेलवे ने 63 हजार नौकरियां निकालीं तो एक करोड़ 90 लाख लोगों ने आवेदन किए.

देश के सरकारी बैंकों का एनपीए इतना बढ़ गया है कि अब वे कौर्पोरेट लोन देने से बच रहे हैं. अर्थव्यवस्था की यह गिरावट महज कोरोना के कारण ही नहीं है, बल्कि इस से पहले ही लगातार आर्थिक विकास दर में गिरावट दर्ज हो रही थी. जनवरी से मार्च 2020 तक यह 3.2 तक पहुंच गई थी. परंतु अनियोजित लौकडाउन और कोरोना से निबटने में सरकार की असफलता ने इस गिरावट को तेज कर दिया. अर्थशास्त्रियों के अनुसार, इस गिरावट की मूल वजह 2016 की नोटबंदी और कुछ महीनों बाद ही बेहद गलत तरीके से लागू किया गया जीएसटी है. विपक्षी पार्टियों के प्रति आक्रामक रवैए के कारण मोदी की नीतियों को राज्य सरकारों और जिला स्तर के नेताओं का भी समर्थन नहीं मिला. मोदी से निराश उन के समर्थक लोगों का कहना है कि मोदीजी ने बहुत सारे वादे तोड़े हैं और अर्थव्यवस्था को सुधारने में नाकाम रहे हैं. विरोधी उन पर देश को बांटने, धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण और विपक्ष को दबाने का आरोप भी लगाते हैं. वहीं, सरकार का विरोध करने वाले को सरकार द्वारा देशद्रोही बताने में जरा भी देर नहीं लगती.

आज की सचाई यह है कि एसएससी, यूपीएससी, रेलवे भरती, सिपाही भरती से ले कर अलगअलग राज्यों के चयन आयोगों तक हर जगह युवकों को छला जा रहा है. सरकारी विभागों में कम से कम 24 लाख पद खाली पड़े हैं परंतु नौकरी निकालने के बजाय सरकार पदों को ही समाप्त कर रही है. नौकरी का विज्ञापन आ भी जाए तो परीक्षा करवाने में ही सालोंसाल लगा दिए जाते हैं. लगभग हर भरती परीक्षा में छात्रों को नेताओं, अफसरों, मीडिया वालों और वकीलों के चक्कर लगाने पड़ते हैं. यदि कहीं परीक्षा में सफल भी हो गए तो नियुक्ति में बेमतलब की देरी की जाती है और यदि युवा लोकतांत्रिक ढंग से प्रदर्शन करे तो यह असंवेदनशील सरकार न ही सुनती है न ही संवाद करती है. देश में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. ऐसे आंकड़े सरकारी एजेंसियां ही जारी किया करती हैं. ये इसलिए ज्यादा चौंकाते हैं क्योंकि अब महिलाओं के मुकाबले पुरुष ज्यादा बड़ी तादाद में आत्महत्या कर रहे हैं. इस में युवाओं का प्रतिशत ज्यादा है. हैरानी यह है कि देश के विकसित कहे जाने वाले राज्यों, मसलन पंजाब और हरियाणा में आत्महत्याओं का प्रतिशत देश के औसत से कहीं ज्यादा है.

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में एक शोध के लेखक पीटर जोंस कहते हैं, ‘‘ऐसा लगता है कि युवाओं में खुद को नुकसान पहुंचाने और आत्महत्या करने का आंकड़ा तेजी से बढ़ता जा रहा है. यह भी कहा जा रहा है कि आजकल युवाओं में धैर्य की कमी होती जा रही है जिस वजह से हालात से जू झने का उन का जोश ठंडा पड़ गया है.’’ आत्महत्या की बढ़ती संख्या के साथ अफसोस की बात यह भी है कि पूरे देश में सिर्फ 44 सुसाइड हैल्प सैंटर हैं. इन में भी सिर्फ 9 सैंटर ऐसे हैं जो चौबीसों घंटे खुले रहते हैं. इतना ही नहीं, कोई एक ऐसा नंबर भी नहीं है जो इन हैल्प सैंटरों को आपस में जोड़ सके. इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि मानसिक विकारों से ग्रस्त लोगों की संख्या और आत्महत्या करने वालों की संख्या में इजाफा होने के बावजूद सरकार के पास इस से निबटने का या इस की संख्या में कमी लाने के लिए कोई कारगर उपाय मौजूद नहीं है. यदि आप को मदद की आवश्यकता है तो:

औल इंडिया टोलफ्री हैल्पलाइन नं- कनैक्ंिटग इंडिया -1800 2094353 (दोपहर 12.00 से शाम 8 बजे तक).

टाटा इंस्टिट्यूट औफ सोशल साइंसेज – आई कौल टैलीफोन आधारित परामर्श- 022-25521111 (सोमवार से शनिवार, सुबह 8 बजे से रात्रि 10 बजे तक).

ईमेल आधारित परामर्श द्बष्ड्डद्यद्य ञ्चह्लद्बह्यह्य.द्गस्रह्व चैट आधारित परामर्श. आज आवश्यकता इस बात की है कि सरकार आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारणों की गहराई से पड़ताल करे और प्राथमिक जिम्मेदारी के तौर पर ऐसे उपाय करे कि लोग अपनी जीवनलीला समाप्त करने का विचार ही मन में न ला सकें.

आत्महत्या रोकने के लिए छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में लोगों को अवसाद से बचाने और आत्मघाती कदमों को रोकने के लिए अब तक 569 नवजीवन केंद्रों को स्थापित किया जा चुका है. इन केंद्रों में आउटडोर और इनडोर खेल सामग्री, प्रेरणादायक व ज्ञानवर्द्धक पुस्तकें उपलब्ध कराई जा रही हैं. आत्महत्या करने वालों की पुलिस की जांच के बाद भी यह संस्था तहसीलदार और डाक्टरों द्वारा विशेष रूप से गहन जांच कर के उस के कारणों का पता लगाती है.

यह प्रयोग पूरे प्रदेश के लिए रोलमौडल बन चुका है और अन्य जिले भी इस का अनुसरण कर रहे हैं. यदि आप आत्महत्या के विचारों से अपने को दूर नहीं कर पा रहे हैं तो बिना किसी शर्म या हिचक के डाक्टर से संपर्क करें. अपने परिवार व दोस्तों के साथ अपनी समस्या को सा झा करें. यह जीवन अमूल्य है, अपने जीवन के महत्त्व को सम झने की कोशिश करिए. इस दुनिया में आप कुछ विशेष काम करने के लिए आए हैं.

आत्महत्या का विचार आने पर उस को कैसे रोकें द्य अपने पास खतरनाक हथियार जैसे चाकू, पिस्टल और ड्रग आदि न रखें. द्य उन चीजों की तलाश करें जिन से आप के मन को खुशी मिलती हो, जैसे परिवार के साथ या वे दोस्त जिन के साथ आप को खुशी मिलती हो, जो सकारात्मक बातें करने वाले हों.

सैल्फ हैल्प गु्रप में उपस्थित होना.

वहां आप अपनी समस्याओं पर चर्चा कर सकते हैं. जो इस समस्या से पीडि़त हैं उन की मदद करने की कोशिश करें.

परिवार का सहारा लेना. परिवार के लोगों के साथ डाक्टर के पास जाएं. अपनी मानसिक स्थिति पर खुल कर बात करें.  शराब या अन्य गैरकानूनी दवाओं के सेवन से दूरी बना कर रखें.

खुद अकेले रहने से बचें. जितना हो सके बाहरी लोगों के साथ जुड़े रहें.

शारीरिक व्यायाम करना आवश्यक है.

संतुलित और स्वस्थ भोजन करना चाहिए.

दिनभर में 7-8 घंटे की नींद लेना आवश्यक है.

याद रखें, आत्महत्या करने का विचार कभीकभी ही आता है, इसलिए ऐसे काफी लोग हैं जो इस से बचने का उपाय ढूंढ़ लेते हैं.

संपादकीय

दुनिया के सारे देश आज चीन से भयभीत हैं. जून 14 के ब्रसलैस में हुई नाटो की एक मीङ्क्षटग में अब जो बाइडेन ने रूस से खतरा इतना बड़ा नहीं बताया जितना चीन से है. चीन ने कहना शुरू कर दिया है कि वह इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस, इटली जैसे देशों की ङ्क्षचता नहीं करता, उसे तो रूस और अमेरिका को संभालना है. हालांकि इस से पहले जी-7 की हुई मीङ्क्षटग में नरेंद्र मोदी का वर्चुअयी सुना गया था पर किस ने कितने ध्यान से शुना कह नहीं सकते. भारत अब दुनिया की नजरों से ओझल हो गया है.

अभी कुछ साल पहले अमेरिकी कंपनियों के सीनीयर जूनियर कर्मचारी डरे रहने लगे थे कि न जाने कब उन की जौब का बंगलौरी करण हो जाए. लोग चीनडिया की बातें कर रहे थे. ब्राजील, साऊथ अफ्रीका और ….के साथ भारत और चीन ने जो ब्रिक्स नाम से गुट बनाया था. उस से भयभीत हो रहे थे.

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अब सब कुछ चीनमय हो गया है. पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनेल्ड ड्रंप ने भारत को अपनी खुद की कूटती खरपच्चियों से खड़ा करने की कोशिश की थी पर भारत को ऐसा धुन लग चुका था कि वह चीन से पीछे रहने लगा और अमेरिका और पश्चिमी देशों ने भारत का कोई महत्व देना छोड़ दिया.

1987 में भारत और चीन का सकल उत्पादन बराबर था यानि प्रति व्यक्ति आय चीन की कम थी क्योंकि आबादी ज्यादा थी, अब 2019 में चीन भारत से साढ़े चार गुना ज्यादा अमीर है और 2020 और 2021 में भारत को और ज्यादा चपेटे लगी हैं. भारत की कहीं कोई कीमत नहीं रह गई है. पीपीई किट जो बरसाती की तरह सिला कपड़ा हे बना कर ढोल पीटने वाले देश को दूसरे देशों में कोई कद्र नहीं है.

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चीन दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है. वह खुद के हथियार बना रहे है. बैक्सीन भी खुद की बनाई है और 2 करोड़ लोगों को रोज वैक्सीन लगा रहे है. भारत जैसे देश को कोई क्यों भाव देगा जो बांग्लादेश से भी पिछड़ता नजर आ रहा है और जहां के नेताओं को ट्विटर के कान खींचने तक में मेहनत करनी पड़ती है.

जी-7 की मीङ्क्षटग में भारत की चर्चा कहीं नहीं थी, रूस और चीन की थी, इजरायल की थी, सीरिया की थी. भारत में हुए भयंकर कोविड असर पर भी किसी ने कोई भाव पर शिकन नहीं डाली क्योंकि जब हम हल्ला ज्यादा करेंगे तो हम पर कौन भरोसा करेगा.

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जी-7 के सदस्यों की ङ्क्षचता दुनिया में संतुलन कायम रखने की है और वे चाहते है कि 1945 के बाद जो वर्चस्व उन देशों का रहा जिसे सोवियत रूस और फिर एशिया भी तोड़ न पाए, बना रहे. चीन से ये देश डरते हैं क्योंकि जहां रूस केवल कम्युनिस्ट बेच रहा था, चीन अरबों खरबों डौलर का सामान अपनी विशाल फैक्ट्रियों में बना कर बेच रहा है. भारत में तो सरकार अपने ही पिठलगगुओं को देश की जनता की संपत्ति बेच रही है, उसे बाहर के देशों को सिर्फ योगासन बेलने आते हैं जिस के खरीदार भी अब कम हो गए हैं.

जानें क्या है सब्जी और फल Preservation और इसके फायदे- भाग 1

लेखिका- डा. रेखा व्यास

भारत में ऐसा अंदाजा है कि 25-30 फीसदी फलसब्जियों की तुड़ाई के बाद उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले ही सड़गल कर खराब हो जाती हैं. विदेशों में उत्पादित फलसब्जियों का 40-70 फीसदी भिन्नभिन्न परिरक्षण उत्पादन के लिए काम में लिया जाता है, जबकि भारत में 0.72 फीसदी ही है, जो कि सोचनीय है. अगर तुड़ाई के समय से ही इन का परिरक्षण किया जाए, तो हर साल काफी मात्रा में फलसब्जियों को खराब होने से बचाया जा सकता है. परिरक्षण के निम्नलिखित फायदे हैं :

* इस के द्वारा फलसब्जियों की उपलब्धता को सालभर तक विभिन्न जगहों पर बनाए रखा जा सकता है और बेमौसम में इन के स्वादिष्ठ स्वाद का जायका लिया जा सकता है.

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* परिरक्षण द्वारा फलसब्जियों को उन की बहुलता के समय संग्रहित कर उन का कमी के समय इस्तेमाल किया जा सकता है.

* परिरक्षित सब्जियों को कम जगह में रखा जा सकता है और उन्हें कम खर्च में एक जगह से दूसरी जगह पर भेजा जा सकता है.

* इस से स्वरोजगार के अवसर पैदा होंगे. साथ ही, कच्चे माल के परिवहन में होने वाले खर्च से भी बचा जा सकेगा.

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* मूल्यों के तय करने में भी मदद मिल सकती है.
फलसब्जियों के खराब होने की वजह फलसब्जियों के खराब होने की अनेक वजहें हैं. ज्यादातर फलसब्जियां सड़ कर खराब हो जाती हैं. ज्यादा पकने के चलते ये फलसब्जियां सड़ने लगती हैं. इन को सड़ाने में सूक्ष्म जीव ज्यादा कारक साबित हुए हैं, जिन्हें
निम्नलिखित श्रेणियों में बांटा जा सकता है :
कवक : इन्हें फफूंदी के नाम से भी जाना जाता है. इन का फलसब्जियों को सड़ाने में प्रमुख हाथ होता है. ये काले, नीले और भूरे रंग के होते हैं. इन के बीजाणु अचार, मुरब्बा, सूखे फल, टमाटर कैचप आदि पर उगते हैं. ये नमी वाले खाद्य पदार्थों को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं.

खमीर : इन्हें अपने विकास व वृद्धि के लिए काफी नमी की जरूरत होती है. ये ताप के प्रति बहुत ज्यादा सुग्राही होते हैं और आमतौर पर 60.8 डिगरी फौरनहाइट से ज्यादा तापमान पर जीवित नहीं रह पाते. खमीर के कुछ विशेष वर्ग फल रसों को मदिरा में और मदिरा को सिरके में बदलने की क्षमता रखते हैं. इसी प्रकार कुछ आभासी खमीर भी पाए जाते हैं, जो फल रसों को इनसान के लायक बनाने के बजाय उन्हें खराब कर देते हैं. इन दोनों वर्ग के खमीरों को पाश्चुरीकरण द्वारा या रासायनिक परिरक्षकों द्वारा निष्क्रिय किया जा सकता है.

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जीवाणु : अनेक प्रकार के जीवाणु हमारी सेहत के लिए हानिकारक होते हैं, जो कवक या खमीर की तरह सब्जियों और फलों को सड़ाते हैं. ये औक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति दोनों में ही पनप सकते हैं, किंतु इन की वृद्धि व कोशिका गुणन के लिए पर्याप्त मात्रा में नमी का होना बहुत जरूरी है.परिरक्षण के सिद्धांत फलसब्जियों की तुड़ाई के बाद भी श्वसन व उपापचय जैसी क्रियाओं को चलते रहने से ये जल्दी खराब हो जाते हैं. इस के अलावा सूक्ष्म जीवियों के प्रवेश के चलते भी फलसब्जियां खराब हो सकती हैं. यह खराबी फफूंद, खमीर और जीवाणु द्वारा प्रभावित होती है. परिरक्षण के अंतर्गत फलसब्जियों को खराब करने वाले कारकों की सक्रियता को कम या निष्क्रिय किया जाता है, जिस से कि इन्हें खराब होने से बचाया जा सके, इसलिए परिरक्षण वह कला है जिस के द्वारा फलसब्जियों को बिना किसी खराबी के एक लंबी अवधि तक सुरक्षित रखा जा सकता है.

फलसब्जियों का निर्जलीकरण (सुखाना) हमारे देश में फलसब्जियां सुखाने की प्रथा पुराने समय से चली आ रही है. अदरक, हलदी, आलू चिप्स, मटर, कद्दू, भिंडी, अमचूर, ग्वारफली, पोदीना, पालक, मेथी, धनिया, फूलगोभी, गाजर, केर, गूंदे, सांगरी वगैरह ऐसी कई फलसब्जियां हैं जो सुखाई जा सकती हैं. सुखाने से सब्जियों में उपस्थित नमी को वाष्पीकरण द्वारा दूर किया जाता है.

इस के कारण फलसब्जियों में विद्यमान सूक्ष्म जीव और किण्वन जल के अभाव में निष्क्रिय हो जाते हैं और वे परिरक्षित हो जाते हैं. फलसब्जियों के सुखाने के लिए उस में पाई जाने वाली किण्वक प्रणाली को निष्क्रिय किया जाना जरूरी है. इस के लिए उन को भाप से उपचार कर या उबलते पानी में डाला जाता है. सूखे फलसब्जियों को संचयन करने के लिए उस में 4 फीसदी से कम नमी होना जरूरी है. सुखाने के बाद फलसब्जियों को वायुरुद्ध अवस्था में पैक कर के रखना चाहिए वरना 4 फीसदी से कम जलांश होते हुए भी फलसब्जियों के खराब होने का डर रहता है.

Crime Story : प्रेमिका के चक्कर में

सौजन्या- सत्यकथा

मई महीने की 15 तारीख की सुबह करीब 10 बजे प्रेमा का ढाई साल का बड़ा बेटा रितेश चौहान अपने
घर के बाहर खेल रहा था. प्रेमा जब घर से बाहर निकली तो उसे रितेश दिखाई न दिया. तब उस ने बेटे को आवाज लगाई, ‘‘रितेश, बेटा कहां हो?’’

लेकिन रितेश घर के आसपास कहीं न मिला. प्रेमा रितेश को घर के बाहर न पा कर घबरा गई. वह उसी समय अपने ससुर जगराम के पास गई, क्योंकि प्रेमा का पति जवाहर लाल एक दिन पहले ही गांव से दिल्ली गया था. प्रेमा रोते हुए ससुर जगराम से बोली, ‘‘बाबूजी, रितेश अभी कुछ देर पहले घर से बाहर खेल रहा था. लेकिन अब वह कहीं दिखाई नहीं दे रहा है.’’

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बहू प्रेमा की बात सुन कर जगराम भी घबरा गए और उन्होंने घर के आसपास अपने ढाई वर्षीय पोते रितेश को आवाज देनी शुरू कर दी, लेकिन रितेश का कहीं पता नहीं चला. इस के बाद प्रेमा देवी, ससुर जगराम और प्रेमा देवी के 2 देवर सहित परिवार के सभी सदस्य बदहवासी की अवस्था में उसे इधरउधर ढूंढने लगे. लेकिन रितेश का कहीं नहीं मिला. परिवार वालों ने उसे आसपास के खेतों, बागबगीचों में हर जगह ढूंढा, पर उस के बारे में कहीं कोई जानकारी नहीं मिली.

रितेश के गायब होने की खबर एक दिन पहले दिल्ली गए उस के पिता जवाहरलाल को भी फोन द्वारा दे दी गई. बेटे के गायब होने की खबर पा कर जवाहर भी घबरा गया और वह उसी दिन दिल्ली से अपने घर के लिए चल पड़ा. इधर प्रेमा का रोरो कर बुरा हाल हो गया था.रितेश के गायब होने की सूचना जंगल में आग की तरह आसपास के गांवों में भी फैल चुकी थी. लोग जी जान से रितेश को खोजने में लगे थे. तभी किसी ने रितेश के दादा जगराम को बताया कि चचेरा भाई संदीप चौहान रितेश को साइकिल पर बैठा कर कहीं ले जा रहा था.

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रितेश के परिजनों ने संदीप को पकड़ कर उस से कड़ाई से पूछा कि रितेश के साथ उस ने क्या किया है तो संदीप बोला, ‘‘मुझे नहीं पता और न ही मैं ने रितेश को देखा है.’’ लोग बारबार संदीप से रितेश के बारे में पूछते रहे लेकिन संदीप रितेश के बारे में अनभिज्ञता ही जाहिर करता रहा.इस के बाद लोगों के कहने पर जगराम ने स्थानीय थाने सोनहा पहुंच कर पोते के गायब होने की जानकारी देते हुए संदीप पर उसे गायब करने का आरोप लगाया.

जगराम की शिकायत को थानाप्रभारी अशोक कुमार सिंह ने गंभीरता से लिया. उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को भी घटना की सूचना दे दी.सूचना पा कर एसपी आशीष श्रीवास्तव, सीओ (रुधौली) धनंजय सिंह कुशवाहा, स्वाट, एसओजी और सर्विलांस और डौग स्क्वायड टीम के साथ पहुंच गए. इस के अलावा रुधौली सर्किल के सभी थानों को भी रितेश की खोज में लगा दिया गया.

पुलिस स्वाट और डौग स्क्वायड टीम के साथ रितेश को खोजने में लगी हुई थी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चल रहा था और उधर पुलिस जगराम की शिकायत पर आरोपी संदीप के घर पहुंची तो वह भी घर पर नहीं मिला.अगले दिन 16 मई की सुबह पुलिस ने संदीप को गांव के पास से धर दबोचा. जब पुलिस ने उस से रितेश के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह रितेश को बिसकुट टौफी दिलाने ले गया था. जिस के बाद उस ने रितेश को उस के घर पर छोड़ दिया था.

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पुलिस को संदीप के बातचीत के लहजे से कुछ शक हुआ, फिर पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ शुरू कर दी, जिस से संदीप टूट गया. इस के बाद उस ने अपने रिश्ते के भतीजे ढाई वर्षीय रितेश की हत्या किए जाने की बात कबूल कर ली. उस ने बताया कि रितेश की हत्या उस ने गांव की ही महिला पार्वती के कहने पर की थी. पार्वती उस की प्रेमिका है. उस ने पुलिस को बताया कि हत्या करने के बाद रितेश की लाश खाजेपुर के जंगल में छिपा दी थी.

पुलिस ने हत्यारोपी महिला पार्वती को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. उस के घर से पुलिस को रितेश की चप्पलें और वारदात में प्रयुक्त साइकिल भी बरामद हो गई. रितेश की लाश बरामद करने के लिए पुलिस दोनों आरोपियों को खाजेपुर के जंगल में ले गई. वहां एक गड्ढे से रितेश की लाश बरामद कर ली गई.रितेश की हत्या और उस की लाश मिलने की जानकारी जैसे ही उस की मां प्रेमा को मिली तो वह बेसुध हो कर गिर पड़ी, उधर बाकी परिजनों का भी रोरो कर बुरा हाल था.

रितेश की लाश की बरामदगी के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. संदीप और पार्वती से विस्तार से पूछताछ की गई तो उन्होंने ढाई वर्षीय रितेश की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी.उत्तर प्रदेश के जिला बस्ती के सोनहा थाना क्षेत्र के दरियापुर जंगल टोला उकड़हवा की रहने वाली पार्वती देवी का पति अहमदाबाद में रह कर नौकरी करता था. पार्वती कुछ दिनों गांव में रहती तो कुछ दिनों अहमदाबाद में अपने पति के साथ गुजारती थी.

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शादी के बाद पार्वती 4 बेटियों और एक बेटे की मां बन चुकी थी. इस के बावजूद भी वह अपने पति से संतुष्ट नहीं थी. इसलिए वह किसी ऐसे साथी की तलाश में थी, जो उस की ख्वाहिशें पूरी कर सके. पार्वती अहमदाबाद से जब अपने गांव आती तो हरिराम का लड़का संदीप चौहान कभीकभार उस के घर आ जाता था. पार्वती जब हृष्टपुष्ट संदीप को देखती तो उस के दिल में चाहत की हिलारें उठ जाती थीं. उसे अपने जाल में फांसने के लिए वह उस से अश्लील मजाक करने लगती.

संदीप बच्चा तो था नहीं, इसलिए वह पार्वती के इशारों को समझने लगा था. आखिर एक दिन पार्वती ने मौका पा कर संदीप से अपने दिल की बात कह दी, ‘‘संदीप, तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो. तुम्हें देख कर मुझे कुछकुछ होने लगता है.’’ पार्वती की तरफ से खुला आमंत्रण पा कर संदीप भी खुद पर काबू नहीं रख सका. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. फिर तो उन्हें जब भी मौका मिलता, अपनी हसरतें पूरी कर लेते. इधर जब पार्वती गांव से अपने पति के पास अहमदाबाद चली जाती तो फिर उसे संदीप की याद सताती थी. इसलिए वह फिर से गांव भाग आती थी.

कहा जाता है कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता है, उसी तरह से पार्वती और संदीप के अवैध संबंध की बात धीरेधीरे आसपड़ोस में भी फैलने लगी थी. लोग जब भी दोनों को देखते तो कानाफूसी करने लगते थे. यह बात धीरेधीरे संदीप के घर वालों को भी पता चल चुकी थी. जिस के बाद संदीप के घर वालों ने उसे समझाया भी, लेकिन पार्वती पर कोई असर नहीं पड़ा. रितेश की हत्या के लगभग 2 महीने पहले एक दिन संदीप चौहान के रिश्ते की भाभी प्रेमा की पार्वती के साथ किसी बात को ले कर कहासुनी हो गई. इसी दौरान तूतूमैंमैं के दौरान प्रेमा ने पार्वती और संदीप के संबंधों को ले कर कटाक्ष कर दिया. बात बढ़ी तो प्रेमा ने इस की शिकायत सोनहा थाने में कर दी, जहां पुलिस ने दोनों को बुला कर समझायाबुझाया.

पार्वती को प्रेमा द्वारा थाने में बुलाया जाना नागवार लगा. उसे लगा कि उस ने कोई गलती नहीं की, उस के बावजूद भी उसे थाने बुला कर नीचा दिखाया गया. यह बात पार्वती के मन में गांठ कर गई और वह प्रेमा से बदला लेने की फिराक में लग गई. थाने से आने के बाद पार्वती प्रेमा से बदले की फिराक में लगी रही. बदले की आग में झुलस रही पार्वती ने एक छोटी सी वजह से एक खौफनाक फैसला ले लिया था. उस ने इस के लिए अपने प्रेमी संदीप चौहान को मोहरा बनाने की चाल चली और संदीप के साथ मिल कर मासूम रितेश की हत्या की खौफनाक साजिश तैयार कर डाली.

संदीप चौहान पार्वती के साथ मिल कर पूरी प्लानिंग के साथ इस घटना को अंजाम देना चाहता था. इस के लिए उस ने प्रेमा के घर आनाजाना शुरू कर दिया और वह रोज रितेश के साथ खेलता और साइकिल पर बैठा कर अकसर उसे टौफी, बिसकुट दिलाने दुकान तक ले जाता था.जब उसे लगा कि कोई उस पर शक नहीं करेगा तो पार्वती के साथ मिल कर रितेश की हत्या की साजिश को अंजाम तक पहुंचाने का फैसला कर लिया.संदीप ने पुलिस पूछताछ में बताया कि वह हर रोज की तरह 15 मई, 2021 की सुबह करीब 10 बजे प्रेमा के घर पहुंचा, जहां रितेश को बाहर अकेले खेलते देख मौका पा कर उसे टौफी और बिसकुट दिलाने के बहाने साइकिल पर बैठा कर ले गया.

अपनी प्रेमिका पार्वती के कहने पर वह उसे गांव से दूर खाजेपुर के जंगल में ले गया और वहीं उस की गला दबा कर हत्या कर दी. उस के शव को उस ने वहीं पर एक छोटे से गड्ढे में डाल कर पत्तियों से छिपा दिया.
ढाई वर्षीय रितेश के गायब होने के बाद खोजबीन में लगे परिजनों को जब यह पता चला कि आखिरी बार रितेश को संदीप के साथ साइकिल पर बैठे देखा गया था तो लोगों के शक की सुई संदीप पर टिक गई. जिस के बाद पुलिस के हिरासत में आने के बाद संदीप ने सब कुछ सचसच बता दिया.

जब लोगों को यह बात पता चली कि पार्वती और उस के प्रेमी संदीप ने जघन्य तरीके से मासूम रितेश की हत्या की है तो लोगों का गुस्सा बढ़ने लगा. पुलिस के उच्चाधिकारियों ने स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए कुछ दिनों के लिए गांव में पीएसी की प्लाटून के साथ पुलिस बल तैनात कर दिया था.

पुलिस ने 24 घंटे के भीतर घटना का परदाफाश कर हत्यारोपी पार्वती और संदीप चौहान के खिलाफ आईपीसी की धारा 364 (अपहरण), 302 (हत्या), 201 (हत्या के बाद शव छिपाना), 120बी (वारदात की साजिश में सम्मिलित होने) का मुकदमा दर्ज कर आरोपियों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. आरोपी पार्वती के गुनाहों के चलते जब उस की डेढ़ साल की बेटी को भी अपना समय जेल में बिताना होगा.

ईर्ष्या

भारत भूमि युगे युगे: ब्रह्म हत्या का प्रायश्चित्त

सोने की चिड़िया

कोई कम उम्र का अपरिपक्व बच्चा कहता तो बात नजरअंदाज की जा सकती थी लेकिन मशवरा इस बार पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने दिया है, इसलिए इस पर बड़े पैमाने पर पुनर्विचार, सैमिनार, बहसें और संगोष्ठियां होनी चाहिए. बकौल चिदंबरम, साल 2020-21 पिछले 4 दशकों में अर्थव्यवस्था का सब से काला साल रहा है और सरकार को जरूरत पड़ने पर और रुपए छापना चाहिए. नोटबंदी वाली सरकार से नोट छापने की उम्मीद चिदंबरम ने कर डाली लेकिन अच्छा यह रहा कि उन्होंने सरकार को यह राय न दी कि वह हर घर में नोट छापने की पोर्टेबल मशीन रख दे जिस से लोग जरूरत के मुताबिक नोट छाप लें.

यहां मंशा हार्वर्ड और मद्रास विश्वविद्यालयों की पढ़ाई की गुणवत्ता पर उंगली न उठाना हो कर इस आइडिए की दाद देना है, जिसे सुबह बिस्कुट खाने होंगे वह 100 रुपए का नोट छाप कर दुकान पहुंचेगा, तो वह बंद मिलेगी क्योंकि दुकानदार भी घर बैठा नोट छाप रहा होगा, यानी नोटों के सिवा देश में कुछ न दिखेगा.धनखड़ का कुनबा

धनखड़ का कुनबा

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ कभी राजस्थान के जाटों के निर्विवाद नेता थे. लेकिन आज भाजपा की दुर्गति के बाद वे कहीं के नहीं रह गए हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को कोसते रहने में उन का दिन अच्छे से कट जाता है.

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कई बार तो वाकई शक गहराने लगता है कि वे गवर्नर हैं या भाजपा के वर्कर. इधर टीएमसी की खूबसूरत सांसद महुआ मोइत्रा ने उन पर मय सुबूत के आरोप मढ़ा है कि राज्यपाल महोदय ने परिवारवाद को बढ़ाते राजभवन के कोई आधा दर्जन बड़े पद अपने करीबियों को सौंप रखे हैं. धनखड़ हर कभी पश्चिम बंगाल की हिंसा का जिम्मेदार ममता बनर्जी को ठहराते रहते हैं तो लगता है कि अभी भी नेपथ्य से नेताजी का भाषण गूंज रहा है कि 2 मई के बाद टीएमसी के गुंडों को अंदर कर देंगे. अब तनहाई बांटने के लिए धनखड़ अपने राजस्थान के झुं झुनू से कुछ रिश्तेदारों को ले आए हैं तो हायहाय क्यों?

हिंदुत्व का पाठ्यक्रम मुख्यमंत्री बनते ही हेमंत बिस्वा शर्मा ने असम में असली चेहरा दिखाना शुरू कर दिया है. बकौल हेमुंत, मुसलमानों को अपनी जनसंख्या कम करने के लिए सभ्य परिवार नियोजन नीति अपनानी चाहिए.

कई और नसीहतों के साथ उन्होंने सीधेतौर पर स्पष्ट कर दिया है कि वे कोई विकास या खुशहाली लाने के लिए मुख्यमंत्री नहीं बने हैं बल्कि उन का मकसद पूर्वोत्तर में हिंदुत्व का एजेंडा लागू करना है. इस एजेंडे में हिंदुओं का भला कहीं नहीं है ठीक वैसे ही जैसे 370 को बेअसर करने और तीन तलाक कानून रद्द करने में नहीं है. मुमकिन है 2024 के आम चुनाव के पहले सरकार जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू भी कर डाले पर हेमंत जैसे जोशीले नेताओं को बोलना इस बात पर भी चाहिए कि हिंदूवादी संगठन और धार्मिक नेता हिंदुओं से ज्यादा बच्चे पैदा करने की आएदिन अपील न करें.

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ब्रह्म हत्या का प्रायश्चित्त

पुश्तैनी कांग्रेसी रहे जितिन प्रसाद ऐसे वक्त में भाजपा में आए हैं जब उत्तर प्रदेश में चुनाव सिर पर हैं और भाजपा को एक अदद बड़े ब्राह्मण नेता के आयात की सख्त जरूरत थी. ऐसा नहीं है कि भाजपा में ब्राह्मण नेताओं का टोटा हो लेकिन विभीषणों की बात अलग होती है. यूपी के ब्राह्मण योगी आदित्यनाथ से नाराज हैं क्योंकि उन की 2017 से ही अनदेखी हो रही है और कोई 5 दर्जन ब्राह्मणों की हत्याएं भी हुई हैं. जिस राज्य में भगवान के रखवाले ही असुरक्षित हों तो भला ब्राह्मण भाजपा को वोट क्यों देगा.

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जितिन की आमद इस परेशानी का हल नहीं है. मुमकिन है भाजपा इस श्रेष्ठ जाति को खुश करने और भी जतन यह जताते करे कि अभी वक्त परशुराम बनने का नहीं है वरना तो छोटी जाति वाले और यवन फिर सत्ता छीन ले जाएंगे और तब सब घंटा बजाते रहना. क्षत्रिय व हठयोगी आदित्यनाथ तो झुकने से रहे. इसलिए ब्राह्मणों को ही झुक जाना चाहिए और अगले 5 वर्षों के लिए भी अपना स्वाभिमान व रोजीरोटी खूंटी पर टांग देना चाहिए.

हिंदुत्व का पाठ्यक्रम 

मुख्यमंत्री बनते ही हेमंत विस्वा शर्मा ने असम में असली चेहरा दिखाना शुरू कर दिया है . . बकौल हेमंत मुसलमानों को अपनी जनसँख्या कम करने  सभ्य परिवार नियोजन नीति अपनानी चाहिए  .कई और नसीहतों के साथ उन्होंने सीधे तौर पर स्पष्ट कर दिया है कि वे कोई विकास या खुशहाली लाने मुख्यमंत्री नहीं बने हैं बल्कि उनका मकसद पूर्वोत्तर में हिंदुत्व का एजेंडा लागू करना है .

इस एजेंडे में हिन्दुओं का भला कहीं नहीं है ठीक वैसे ही जैसे 370 को बेअसर करने और तीन तलाक कानून रद्द करने में नहीं है . मुमकिन है 2024 के आम चुनाव के पहले सरकार जनसँख्या नियंत्रण कानून लागू भी कर डाले पर हेमंत जैसे जोशीले नेताओं को बोलना इस बात पर भी चाहिए कि हिंदूवादी संगठन और धार्मिक नेता हिन्दुओं से ज्यादा बच्चे पैदा करने की आए दिन अपील न करें .

ईर्ष्या-भाग 2 : निशा और प्रेमलता की दोस्ती दुश्मनी में क्यों बदलने लगी

बीचबीच में प्रेमलता का भाई उस की खोजखबर लेने आ जाया करता था. बहन को अपने साथ न रख पाने का उस को बेहद दुख था पर पत्नी के तेज स्वभाव के चलते वह मजबूर था. यहां बहन को सुरक्षित हाथों में पा कर वह निश्चिंत हो चला था. प्रेमलता का पति जो बैंक में नौकर था, उस के फंड पर अपना हक जमाने के लिए ससुराल के लोग उसे घर से बेदखल कर उस पैसे पर अपना हक जमाना चाहते थे. भाई उसे उस का हक दिलाने की कोशिश कर रहा था. भाई का अपनी बहन से लगाव देख कर ऐसा लगता था कि रिश्ते टूट अवश्य रहे हैं पर अभी भी कुछ रिश्तों में कशिश बाकी है वरना वह बहन के लिए दफ्तरों के चक्कर नहीं काटता.

प्रेमलता को इतनी ही खुशी थी कि भाभी नहीं तो कम से कम उस का अपना भाई तो उस के दुख को समझता है. कोई तो है जिस के कारण वह जीवन की ओर मुड़ पाई है वरना पति की मौत के बाद उस के जीवन में कुछ नहीं बचा था और ऊपर से ससुराल वालों की प्रताड़ना से बेहद टूटी प्रेमलता आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगी थी.

उस का दुख सुन कर मन भर आता था. सच, आज भी हमारा समाज विधवा के दुख को नहीं समझ पाया है, जिस पति के जाने से औरत का साजशृंगार ही छिन गया हो, भला उस की मौत के लिए औरत को दोषी ठहराना मानसिक दिवालिएपन का द्योतक नहीं तो और क्या है? सब से ज्यादा दुख तो उसे तब होता था जब स्त्री को ही स्त्री पर अत्याचार करते देखती.

एक दिन रात में निशा की आंख खुली, बगल में आयुष को न पा कर कमरे से बाहर आई तो प्रेमलता का फुस- फुसाता स्वर सुनाई पड़ा, ‘‘नहीं साहब, मैं दीदी का विश्वास नहीं तोड़ सकती.’’सुन कर निशा की सांस रुक गई. समझ गई कि आयुष की क्या मांग होगी.

वितृष्णा से भर उठी थी निशा. मन हुआ, मर्द की बेवफाई पर चीखेचिल्लाए पर मुंह से आवाज नहीं निकल पाई. लगा, चक्कर आ जाएगा. उस ने वहीं बैठना चाहा, तो पास में रखा स्टूल गिर गया. आवाज सुन कर आयुष आ गए. उसे नीचे बैठा देख बोले, ‘‘तुम यहां कैसे? अगर कुछ जरूरत थी तो मुझ से कहा होता.’’

निशब्द उसे बैठा देख कर आयुष को लगा कि शायद निशा पानी पीने उठी होगी और चक्कर आने पर बैठ गई होगी. वह भी ऐसे आदमी से उस समय क्या तर्कवितर्क करती जिस ने उस के सारे वजूद को मिटाते हुए अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए दूसरी औरत से सौदा करना चाहा.

दूसरे दिन आयुष तो सहज थे पर प्रेमलता असहज लगी. बच्चों और आयुष के जाने के बाद वह निशा के पास आ कर बैठ गई. जहां और दिन उस के पास बातों का अंबार रहता था, आज शांत और खामोश थी…न ही आज उस ने टीवी खोलने की फरमाइश की और न ही खाने की.

‘‘क्या बात है, सब ठीक तो है न?’’ उस का हृदय टटोलते हुए निशा ने पूछा.‘‘दीदी, कल बहुत डर लगा, अगर आप को बुरा न लगे तो कल से मैं वरुण और प्रज्ञा के पास सो जाया करूं,’’ आंखों में आंसू भर कर उस ने पूछा था. ‘‘ठीक है.’’

निशा के यह कहने पर उस के चेहरे पर संतोष झलक आया था. निशा जानती थी कि वह किस से डरी है. आखिर, एक औरत के मन की बातों को दूसरी औरत नहीं समझेगी तो और कौन समझेगा? पर वह सचाई बता कर उस के मन में आयुष के लिए घृणा या अविश्वास पैदा नहीं करना चाहती थी, इसलिए कुछ कहा तो नहीं पर अपने लिए सुरक्षित स्थान अवश्य मांग लिया था.

आयुष के व्यवहार ने यह साबित कर दिया था कि पुरुष के लिए तो हर स्त्री सिर्फ देह ही है, उसे अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए सिर्फ देह ही चाहिए…इस से कोई मतलब नहीं कि वह देह किस की है.

अब निशा को खुद ही प्रेमलता से डर लगने लगा था. कहीं आयुष की हवस और प्रेमलता की देह उस का घरसंसार न उजाड़ दे. प्रेमलता कब तक आयुष के आग्रह को ठुकरा पाएगी…उसे अपनी बेबसी पर पहले कभी भी उतना क्रोध नहीं आया जितना आज आ रहा था.

प्रेमलता भी तो कम बेबस नहीं थी. वह चाहती तो कल ही समर्पण कर देती पर उस ने ऐसा नहीं किया और आज उस ने अपनी निर्दोषता साबित करने के लिए अपने लिए सुरक्षित ठिकाने की मांग की.

प्रश्न अनेक थे पर निशा को कोई समाधान नजर नहीं आ रहा था. दोष दे भी तो किसे, आयुष को या प्रेमलता की देह को. मन में ऊहापोह था. सोच रही थी कि यह तो समस्या का अस्थायी समाधान है, विकट समस्या तो तब पैदा होगी जब आयुष बच्चों के साथ प्रेमलता को सोता देख कर तिलमिलाएंगे या चोरी पकड़ी जाने के डर से कुंठित हो खुद से आंखें चुराने लगेंगे. दोनों ही स्थितियां खतरनाक हैं.

निशा ने सोचा कि आयुष के आने पर प्रेमलता के सोने की व्यवस्था बच्चों के कमरे में रहने की बात कह वह उन के मन की थाह लेने की कोशिश करेगी. पुरुष के कदम थोड़ी देर के लिए भले ही भटक जाएं पर अगर पत्नी थोड़ा समझदारी से काम ले तो यह भटकन दूर हो सकती है. अभी तो उसे पूरी तरह से स्वस्थ होने में महीना भर और लगेगा. उसे अभी भी प्रेमलता की जरूरत है पर कल की घटना ने उसे विचलित कर दिया था.

आयुष आए तो मौका देख कर निशा ने खुद ही प्रेमलता के सोने की व्यवस्था बच्चों के कमरे में करने की बात की तो पहले तो वह चौंके पर फिर सहज स्वर में बोले, ‘‘ठीक ही किया. कल शायद वह डर गई थी. उस के चीखने की आवाज सुन कर मैं उस के पास गया, उसे शांत करवा ही रहा था कि स्टूल गिर जाने की आवाज सुनी. आ कर देखा तो पाया कि तुम चक्कर खा कर गिर पड़ी हो.’’

आयुष के चेहरे पर तनिक भी क्षोभ या ग्लानि नहीं थी. तो क्या प्रेमलता सचमुच डर गई थी या जो उस ने सुना वह गलत था. अगर उस ने जो सुना वह गलत था तो प्रेमलता की चीख उसे क्यों नहीं सुनाई पड़ी. खैर, जो भी हो जिस तरह से आयुष ने सफाई दी थी, उस से हो सकता है कि वह खुद भी शर्मिंदा हों.

प्रेमलता अब यथासंभव आयुष के सामने पड़ने से बचने लगी थी. अब निशा स्वयं आयुष के खानेपीने, नाश्ते का खयाल रखने की कोशिश करती.

पट्टी वाला आम -भाग 4 : रिटायर्ड अफसर गांव की गरीबी को दूर कर पाया

दोनों के स्वर उग्र थे. मैं ने उन को शांत किया,”मैं समझता हूं, इस में कोई परेशानी नहीं है. वे दोनों बालिग हैं और कहीं भी शादी कर सकते हैं. साहब लोगों, आप दोनों जानते हैं कि आज के जमाने में कौन जातपात को मानता है? लड़कालड़की दोनों पढ़ेलिखे हैं. अच्छी नौकरी में हैं और सब से अधिक यह कि दोनों अफसर हैं. वे शादी कर भी लेते हैं तो वे गांव कहां आएंगे तब? वे आप को बिना बताए कोर्ट में भी शादी कर सकते हैं.”

“साहब, यही बात तो मैं भी कह रहा हूं,” लीटू ने कहना शरू किया,”मुझे मेरी बेटी ने और जोगिंदर साहब को इन के बेटे ने लिखा है कि वे अगले महीने की 15 तारीख को शादी कर रहे हैं, कृपया पठानकोट के सिविल कोर्ट में आशीर्वाद देने आ जाएं. इन के बेटे की पोस्टिंग भी गुरदासपुर डीएम के रूप में हो गई है.”

“अब बताएं. उन दोनों बच्चों ने सारी समस्याओं का हल खुद ही कर लिया है. आप दोनों यहां लड़ रहे हैं. उन्होंने आप को केवल सूचित किया है कि वे अगले महीने शादी कर रहे हैं. यह भी एक तरह से साफ कर दिया है कि अगर आप आते हैं तो भी वे शादी करेंगे और नहीं आते हैं तो भी.

“आप जाएं और दोनों परिवार जा कर उन को आशीर्वाद दें. फौज में कोई भेदभाव नहीं है. सब एक ही टेबल पर बैठ कर खाना खाते हैं.’’मेरी बात सुन कर दोनों चुप रहे. जिस का मतलब यह भी था कि दोनों राजी हैं.

मैं ने सरपंच साहब से कहा,”सब ठीक हो गया है. एक राजीनामा बनाएं और सभी के दस्तखत ले लें.”‘‘शुक्रिया, बिग्रैडियर साहब, मुझे उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्दी मामला सुलझ जाएगा.’’मैं घर लौट आया. शन्नो ने मुझ से पूछा, “क्या हुआ जी?”

“होना क्या था. सारा मामला सुलझ गया है. दोनों बच्चे बालिग हैं और लड़की पठानकोट की डीएम है, जबकि लड़का गुरदासपुर का डीएम पोस्ट हुआ है. दोनों बच्चों ने घर वालों को बता दिया है कि अगले महीने की 15 तारीख को पठानकोट के कोर्ट में शादी कर रहे हैं. दोनों परिवार आ कर आशीर्वाद दें. मामला सुलझा हुआ ही था. ये यहां यों ही झगड़ रहे थे.’’

“चलो, अच्छा हुआ सब सुलझ गया,” शन्नो ने कहा.यहां का मामला तो सुलझ गया पर क्या हम अपने मामलों को सुलझा पाए हैं? एक बहू ने दहेज मांगने का आरोप लगाया और कहा कि सास मरवाती है. कितनी बार पुलिस घर में आई. मैं फौज का बड़ा अफसर था. पुलिस मुझे हाथ भी नहीं लगा सकती थी.

अगर कोई आम आदमी होता तो पुलिस बिना पूछे अंदर डाल देती. घर देख कर पुलिस ने बहू से कहा था कि यहां तो बाहर का कुछ भी रखने की जगह नहीं है तो आप से दहेज कहां से मांगना था? दूसरा आरोप है मरवाने वाली बात का, तो चलो, हम तुम्हारा मैडिकल करवाते हैं. अगर आप के शरीर पर मारपीट के कोई निशान निकले तो हम इन के विरूद्ध केस बनाएंगे. अगर कुछ नहीं निकला तो केस आप के और आप के मायके वालों के विरूद्ध बनाएंगे.

बहू डर गई थी और केस रफादफा हो गया था. कई ऐसे ही मामलों में लोग जेल की हवा खा कर आए हैं या अब भी जेल में हैं. वे गरीब लोग होते हैं. उन के पास केस लड़ने के लिए पैसे भी नहीं होते. समस्या यह नहीं है कि लड़के वाले दहेज मांगते हैं या इस के लिए मारापीटा जाता है बल्कि समस्या यह है कि वे अपने साथ किसी को रखना नहीं चाहते हैं. बूढ़े मांबाप को तो बिलकुल भी नहीं. बेटे भी अपनी पत्नी की बात मानते हैं. क्या बच्चे अपने बूढ़े मांबाप को कुएं में धकेल दें? विशेषकर उन को जिन के पास आमदनी का कोई साधन नहीं है और अपने बच्चों पर आश्रित हैं? इन प्रश्नों के उत्तर मेरे पास नहीं थे.

दूसरी बहू अपनी मां के प्रभाव में थी. जो अनायास ही बेटी के ससुराल में दखल देने की आदी थी. इस के लिए गलती छोटी बहू की थी जो अपने ससुराल की हर बात को या समस्या को हमें बताने की बजाए अपनी मां को बताती थी और वह बिना स्थिति को जाने अपनी सलाह देती और बहू उसी के अनुसार करती थी. हमारे बीच इन्हीं बातों को ले कर विरोध था.

मजे की बात यह थी कि वही मां अपनी बहू के मायके वालों का दखल बरदाश्त नहीं कर सकती थी. जब मैं ने यह प्रश्न किया था तो उन के पास इस का कोई उत्तर नहीं था.मानता हूं कि शादी के बाद मायके वालों को बेटी के सुखदुख की चिंता होती है. उन को आ कर देखने का अधिकार है. अगर सब ठीक है तो किसी प्रकार का दखल नहीं देना चाहिए. यह तभी हो सकता है, अगर बेटीबहू इन सब को ले कर समझदार हों, तो.

अभी हम शाम की चाय पी कर हटे ही थे कि कंपनी से नलकूप लगाने वाले आ गए. मैं उन को ले कर पट्टी वाले आम के खेत पर आ गया. बोरिंग और इंजन उन्हीं को लगाना था. जो जगह नलकूप के लिए मैं ने चुनी थी, वही जगह उन्होंने भी चुनी.2 दिनों में उन्होंने अपना काम खत्म कर दिया था. साफसुथरा पानी निकला था. आगे का काम हमारा था कि कैसे वहां कमरा बना कर नलकूप को सुरक्षित करना है. बिजली का कनैक्शन लेना है और खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए नालियां बनानी हैं. इंजन को चलाने के लिए तब तक डीजल से काम चलेगा.

कल से नलकूप पर कमरे के लिए काम शरू हो गया था. 2 दिनों में कमरे की दीवारें बन गई गई थीं. लैंटर पड़ने के लिए 2 दिन लगने थे. तब तक दीवारों की तराई करनी थी. तराई के लिए एक मजदूर छोड़ कर बांकी मिस्त्री और मजदरों को मैं ने हवेली सही कराने के लिए लगा दिया. कमरा और हवेली बनने में लगभग 15 दिन लग गए.

सारे प्रबंध करने में 3 महीने लग गए. धीरेधीरे जीवन हर तरह से व्यवस्थित होने लगा. मैं आधुनिक खेती करने लगा, तो वहीं गांव भी तरक्की करने लगा. गांव के बहुत से लड़के जो बाहर मजदूरी करने जाते थे, वे मेरे पास काम करने लगे. गांव में जहां केवल प्राईमरी स्कूल था, लिखापढ़ी  कर के पंचायत की बंजर जमीन पर सरकारी कालेज बनवा दिया गया. आसपास के गावों के लड़केलड़कियों को पढ़ने के लिए पठानकोट, दीनानगर या गुरदासपुर जाना पड़ता था. वे गांव में ही पढ़ने लगे. विशेषकर लड़कियां मैट्रिक के बाद आगे पढ़ ही नहीं पाती थीं. एक तो गरीबी, दूसरे सुरक्षा कारणों से उन के अभिभावक उन्हें बाहर भेजना नहीं चाहते थे। वे गांव में ही पढ़ने लगीं.

गांव की तरक्की देख कर मन प्रफुल्लित हो जाता. इस तरक्की में मेरा भी हाथ था. भविष्य में इस गांव की लड़कियां बड़ीबड़ी अफसर बनीं. न केवल इस गांव की बल्कि आसपास के गांवों के छात्र अपनेअपने गांव का नाम रोशन करने लगे.जो गांव से शहर की ओर पलायन कर रहे थे, वे रुक गए, अपनी खेतीबाड़ी और घरों को संभालने लगे. मेरा मन यह सब देखसुन कर खूब आनंदित होता रहा.

 

एक रिश्ता किताब का -भाग 2

‘‘हाथ क्यों जोड़ते हैं मेरे सामने. क्यों अपने बेटे के जुनून को हवा दे रहे हैं. आप रोकिए उसे और अपनेआप को भी. सोमेश का दिमाग संतुलित नहीं है. कृपया आप इस सत्य को समझने की कोशिश कीजिए…’’

‘‘मैं कुछ भी समझना नहीं चाहता. मुझे तो बस मेरे बच्चे की खुशी चाहिए और तुम ने शादी से इनकार कर दिया तो वह पागल हो जाएगा. वह बहुत प्यार करता है तुम से.’’

मन कांप रहा था मेरा. क्या कहूं मैं इस पिता समान इनसान से? अपनी संतान के मोह में वह इतना अंधा हो चुका है कि पराई संतान का सुखदुख भी उसे नजर नहीं आ रहा.

‘‘अगर शुभा ऐसा चाहती है तो तुम ही क्यों नहीं मान जाते?’’ पापा ने सवाल किया जिस पर सोमेश के पिता तिलमिला से गए.

‘‘तुम भी अपनी बेटी की बोली बोलने लगे हो.’’

‘‘मैं ने भी अपनी बच्ची बड़े लाड़प्यार से पाली है, जगदीश. माना मेरे पास तुम्हारी तरह करोड़ों की विरासत नहीं है, लेकिन इतना भूखा भी नहीं हूं जो अपनी बच्ची को पालपोस कर कुएं में धकेल दूं. शादी की तैयारी में मेरा भी तो लाखों खर्च हो चुका है. अब मैं खर्च का हिसाब तो नहीं करूंगा न…जब बेटी का भविष्य ही प्रश्नचिह्न बन सामने खड़ा होगा…चलो, मैं साथ चलता हूं. सोमेश को किसी मनोचिकित्सक को दिखा लेते हैं.’’

सोमेश के पिता माने नहीं और दनदनाते हुए चले गए.

‘‘कहीं हमारे हाथों किसी का दिल तो नहीं टूट रहा, शुभा? कहीं कोई अन्याय तो नहीं हो रहा?’’ मां ने धीरे से पूछा, ‘‘सोमेश बहुत प्यार करता है तुम से.’’

‘‘मां, पहली नजर में ही उसे मुझ से प्यार हो गया, समझ नहीं पाई थी मैं. न पहले देखा था कभी और न ही मेरे बारे में कुछ जानता था…चलो, माना… हो गया. अब क्या वह मेरी सोच का भी मालिक हो गया? मां, इतना समय मैं चुप रही तो इसलिए कि मैं भी यही मानती रही, यह उस का प्यार ही है जो कोई मुझे देख रहा हो तो उसे सहन ही नहीं होता. एक दिन रेस्तरां में मेरे एक सहयोगी मिल गए तो उन्हीं के बारे में हजार सवाल करने लगा और फिर न मुझे खाने दिया न खुद खाया. वजह सिर्फ यह कि उन्होंने मुझ से बात ही क्यों की. उस में समझदारी नाम की कोई चीज ही नहीं है मां. अपनी जरा सी इच्छा का मान रखने के लिए वह मुझे चरित्रहीन भी समझने लगता है…मेरी नजरों पर पहरा, मैं ने उधर क्यों देखा, मैं ने पीछे क्यों देखा, कभीकभी तो मुझे अपने बारे में भी शक होने लगता है कि क्या सच में मैं अच्छी लड़की नहीं हूं…’’

पापा मेरी बातें सुन कर अवाक् थे. इतने दिन मैं ने यह सब उन से क्यों नहीं कहा इसी बात पर नाराज होने लगे.

‘‘तुम अच्छी लड़की हो बेटा, तुम तो मेरा अभिमान हो…लोग कहते थे मैं ने एक ही बेटी पर अपना परिवार क्यों रोक लिया तो मैं यही कहता था कि मेरी बेटी ही मेरा बेटा है. लाखों रुपए लगा कर तुम्हें पढ़ायालिखाया, एक समझदार इनसान बनाया. वह इसलिए तो नहीं कि तुम्हें एक मानसिक रोगी के साथ बांध दूं. 4 महीने से तुम दोनों मिल रहे हो, इतना डांवांडोल चरित्र है सोमेश का तो तुम ने हम से कहा क्यों नहीं?’’

‘‘मैं खुद भी समझ नहीं पा रही थी पापा, एक दिशा नहीं दे पा रही थी अपने निर्णय को…लेकिन यह सच है कि सोमेश के साथ रहने से दम घुटता है.’’

रिश्ता तोड़ दिया पापा ने. हाथ जोड़ कर जगदीश चाचा से क्षमा मांग ली. बदहवासी में क्याक्या बोलने लगे जगदीश चाचा. मेरे मामा और ताऊजी भी पापा के साथ गए थे. घर वापस आए तो काफी उदास भी थे और चिंतित भी. मामा अपनी बात समझाने लगे, ‘‘उस का गुस्सा जायज है लेकिन वह हमारा ही शक दूर करने के लिए मान क्यों नहीं जाता. क्यों नहीं हमारे साथ सोमेश को डाक्टर के पास भेज देता.

शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा, एक ही रट मेरे तो गले से नीचे नहीं उतरती. शादी क्या कोई दवा की गोली है जिस के होते ही मर्ज चला जाएगा. मुझे तो लगता है बापबेटा दोनों ही जिद्दी हैं. जरूर कुछ छिपा रहे हैं वरना सांच को आंच क्या. क्या डर है जगदीश को जो डाक्टर के पास ले जाना ही नहीं चाहता,’’ ताऊजी ने भी अपने मन की शंका सामने रखी.

 

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