हरियाणाा के अंबाला जिले में एक महिला लेफ्टिनेंट द्वारा आत्महत्या करने का मामला सामने आया है. यहां भारतीय सेना की मेडिकल कोर में तैनात साक्षी ने संदिग्ध परिस्थितियों में फंदा लगाकर सुसाइड कर लिया. अंबाला छावनी के रेसकोर्स स्थित आवास में वह पंखे से लटकी मिलीं. उन्हें तुरंत सेना अस्पताल लाया गया, जहां उनकी मौत हो गई. साक्षी के पिता और भाई ने साक्षी के पति पर आरोप लगाते हुए कहा कि वो खुद भारतीय वायुसेना में स्क्वार्डन लीडर है. वो शादी के कुछ दिनों बाद से ही दहेज़ के लिए उनकी बहन से मारपीट करते थे और उसे मानसिक और शारीरिक प्रातड़ना देते थे , जिसके कारण उनकी बहन ने तंग आकर खुद को फांसी के फंदे पर लटका लिया.
साक्षी के पिता और भाई की माने तो उन्हें साक्षी अक्सर अपने पति की प्रतातड़ना से तंग आकर उन्हें अपना दुखड़ा रोती थी ,पिछले साल के दिसंबर माह से ही नवनीत अक्सर उनकी बहन को दहेज़ और पैसे की डिमांड को लेकर तंग करता था. बीती रात भी साक्षी ने अपने पिता को फोन किया की मुझसे मारपीट की जा रही है और मुझसे कुछ गलत हो सकता है. साक्षी ने जो कहा वह सुबह सच हो गया और उन्हें सुबह 6 बजे फोन आ गया की साक्षी ने मौत को गले लगा लिया है. मृतक के भाई का आरोप है की साक्षी के पति नवनीत ने घर पर लगे कैमरों की सीसीटीवी फुटेज गायब कर दी है और शायद खुद उसने साक्षी को मारा फिर खुद ही उसकी डेड बाड़ी ले कर अस्पताल पहुंच गया.
शिक्षित परिवारों में भी दहेज के मामलें
यह घटना एक ऐसे शिक्षित परिवार की है. जिससे साफ है कि चाहें कितना भी लोग पढ़-लिख लें लेकिन समाज की सोच के बदलने के लिए सिर्फ पढ़ाई ही काफी नहीं है. परिजनों के कहने अनुसार ये घटना भी दहेज के कारण हुई है. वही दहेज जिसके कारण उत्तर-आधुनिक समय में भी न जाने कितनी महिलाओं की मौत का कारण बनती है.
शादी-शुदा महिलाओं की हत्याएं, जिन्हें ससुराल में पति और अन्य सदस्यों ने दहेज के लिए या तो क़त्ल कर दिया गया हो अथवा लगातार उत्पीड़न और यातना देकर आत्महत्या के लिए बाध्य किया जाए, दहेज हत्या कहलाती है. दहेज हत्या एक ऐसा अपराध है जहां महिलाओं के लिए उनके अपने घर ही सबसे असुरक्षित स्थान बन जाते हैं. दहेज और उससे जुड़े अपराधों के मामले में भारत दुनियाभर में पहले स्थान पर आता है. इसके बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और ईरान आते हैं, जहां दहेज हत्या एक बड़ी समस्या बन चुकी है.
आज के उत्तर-आधुनिक समाज में चाहें लड़की कितना भी पढ़-लिख लें और अपने पैरो पर खड़ी हो जाएं लेकिन फिर भी उसे पुरुषों के मुकाबले कमतर ही मानी जाती हैं, इसलिए उसकी स्वीकारोक्ति के लिए शादी में धन की कई बार खुली और कभी मूक मांग रखी जाती है. साथ ही इस मांग को यह कहकर जायज़ ठहरा देते है कि लड़की के माता-पिता जो कुछ भी दे रहे हैं, उनकी बेटी के लिए ही हैं. यह एक तरह से सौदा होता है, जिसमें किसी लड़की को ब्याहने के लिए लड़का और उसके परिवार वाले मोटी रक़म चाहते हैं. दहेज की मांग भारतीय समाज में सामान्य बात हो चुकी है. दहेज की प्रथा मानो शादी का एक अभिन्न अंग बन चुकी है. यह प्रथा सभी समूहों में मौजूद है चाहे वे किसी भी जाति, वर्ग, धर्म के हों. लड़की ब्याहने के लिए लड़के के परिवार की हैसियत के अनुसार दहेज देना पड़ता है. यह ब्याह होने की एक अनिवार्य शर्त ही हो गई है. रूढ़िवादी भारतीय समाज शादी की संस्था और पारिवारिक संरचना में सुधार करने की बजाय इसे पारंपरिक रूप में ही चलाना चाहता है. इस समाज के लिए यह महत्वपूर्ण है ही नहीं कि शादी से पहले लड़के और लड़की में सामंजस्य और आपसी समझ विकसित हो, जिससे बेहतर समाज बन सके. यहां रिश्ते की नींव ही लड़की के घर से मिलने वाला दहेज तय करता है. और अगर ये मांग उनके मुताबिक ना हो तो घरेलु हिंसा, हत्या या आत्महत्या जैसे मामले होते है.
यहां साक्षी खुद लेफ्टिनेंट थी और पति भारतीय वायुसेना में स्क्वार्डन लीडर है और दोनों ही पढ़े-लिखें समझदार थे. दोनों ही के करियर के पीछे उनके कितने सालों की मेहनत रही होगी जो एक ही पल में बिखर गई. पुलिस ने इस मामले में केस दर्ज कर लिया है. साथ ही पुलिस का कहना है कि इस मामले में केस दर्ज किया गया है. नवनीत से पूछताछ की जाएगी. वहीं साक्षी के परिवार का कहना है कि नवनीत को सजा होनी चाहिए. उसने उनकी बेटी की हत्या की है.
क्या कहते है आंकड़े
तमाम वैधानिक सुधारों व कानूनों के बावजूद भी दहेज हत्या व दहेज के लिए ससुराल में शोषण और उत्पीड़न की घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार साल 1995 में दहेज के कारण लगभग 4,668 मौतें हुई थीं. साल 2005 में यह आंकड़ा बढ़कर 6787 हो गया था और साल 2015 में लगभग 7634 महिलाओं की मौत दहेज हत्या के कारण हुई. आए दिन अखबारों, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया में खबरें मिलती रहती हैं कि पढ़े-लिखे और आर्थिक रूप से संपन्न लोग भी दहेज की मोटी रकम ले रहे हैं. देश में सशक्त कानून तो हैं लेकिन उनके लागू होने और अनुपालन की समस्या के कारण बहुत सारी लड़कियों को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है. कई महिलाएं दहेज की मांग के कारण उत्पीड़न सहते हुए या तो आत्महत्या कर लेती हैं.
एक सवाल पुरुष समाज से
लेकिन एक महिला होने के नाते मेरा सवाल पूरे पुरुष समाज से है कि क्या आपके लिए पूरी जिंदगी साथ रहने वाली लड़की का आपको समझना और हर सुख-दुख में आपके साथ खड़े रहना से ज्यादा जरूरी है दहेज? और एक सवाल उन लोगों से जो दहेज के पक्ष में होते है कि क्या साक्षी और ऐसी ही ओर लड़कियों की जगह आपकी बेटी होगी तब भी आप इस बात के पक्ष में होंगे और उसे मरने के लिए छोड़ देंगे? जितनी मेहनत एक लड़का अपने करियर और अपनी पढ़ाई के लिए करता है उससे कही ज्यादा मेहनत और समाज की चीजों को झेलकर हम आगे बढ़ते है, ऐसे में हमें आपका साथ चाहिए और अगर साथ ना भी दें तो कोई बात नहीं लेकिन इस तरह पैसों के लिए किसी की जान ना लें या उसे अपनी जान लेने पर मजबूर ना करें. साथ ही महिलाओं को भी मैं कहना चाहूंगी कि हम जब जन्म लेते है उसी वक्त से हम बहुत सी चीजें बरदाश्त करते है, ऐसे में इतना सबकुछ झेलने के बाद आपको मजबूत बनना है. आप अगर ऐसे अपनी जान लेंगे तो इतना सबकुछ झेलने का कोई मतलब नहीं. हमें इन सबसे हटकर अपने आपको मजबूती से रखना है ताकि हम इन सब चीजों को रोक सकें.