सौज्नया -मनोहर कहानियां
मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के छतरपुर जिले की एक पौश कालोनी है, लोकनाथपुरम. इसी कालोनी में 65 साल के डा. नीरज पाठक का एक क्लीनिक है. डा. पाठक इस जिले के जाने माने मैडिसिन स्पैशलिस्ट हैं. डा. पाठक छतरपुर के जिला अस्पताल में डाक्टर थे, परंतु रिटायरमेंट के 2 साल पहले ही सरकारी नौकरी से वीआरएस ले लिया था. तभी से वह अपने निजी क्लीनिक पर मरीजों का उपचार करते थे.
डा. पाठक की 62 साल की पत्नी ममता पाठक छतरपुर के शासकीय महाराजा कालेज में कैमेस्ट्री की प्रोफेसर थीं.
मगर अपने पति से उन की कैमेस्ट्री कभी ठीक नहीं रही. डा. दंपति के 2 बेटे हैं, जिन में से बड़ा बेटा नीतेश पाठक मानसिक रूप से अस्वस्थ रहता है. वह रूस से एमबीबीएस की पढ़ाई छोड़ कर घर आ गया था, जबकि छोटा बेटा मानस आईटी से इंजीनियरिंग की डिगरी लेने के बाद अमेरिका में नौकरी करता है.
डा. नीरज और ममता की शादी जब 11 मई 1994 को हुई थी, तो परिवार के लोग दोनों की योग्यता और पद पर नाज करते थे.
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शादी के कुछ समय बाद तक तो सब कुछ ठीकठाक चलता रहा, पर 2 बेटों के जन्म के बाद उन के दांपत्य जीवन में दरार आ गई. डा. पाठक जिले के नामीगिरामी चिकित्सक थे, तो ममता पाठक भी शहर के सब से प्रतिष्ठित सरकारी कालेज में प्रोफेसर थीं. अपनी योग्यता के इसी अहं के कारण दोनों के बीच दीवार खड़ी हो गई. कहते हैं कि केवल उच्च शिक्षा और पैसा हासिल कर लेने से ही सब कुछ नहीं मिल जाता, जीवन में खुशियां लाने के लिए खुला मन और अच्छी सोच का होना जरूरी है. डा. नीरज पाठक और ममता पाठक की जिंदगी में शक की लाइलाज बीमारी ने जहर घोलने का काम किया.
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