कल तक जो लोग नरेंद्र मोदी के बारे में सच सुनने से ही भड़क जाया करते थे वे आज खामोश रहने पर मजबूर हैं और खुद को दिमागी तौर पर सच स्वीकारने व उस का सामना करने को तैयार कर रहे हैं. लोगों में हो रहा यह बदलाव प्रधानमंत्री की हवाहवाई राजनीति का नतीजा है जिस में ‘काम कम नाम ज्यादा’ चमक रहा था और अब इस का हवाई गुब्बारा फूट रहा है.
‘‘मोदीजी, जब लोग मर रहे थे तब आप बंगाल में ‘दीदी.. ओ.. दीदी’ कर रहे थे. भीड़ देख कर उत्साहित हो रहे थे. अब आप की ?ाठी संवेदना और नकली आंसुओं को देश अच्छी तरह सम?ाता है, काठ की हांडी बारबार नहीं चढ़ती.’’ उत्तर प्रदेश के रिटायर्ड तेजतर्रार और बेबाक आईएएस औफिसर सूर्य प्रताप सिंह ने जैसे ही यह ट्वीट किया तो इस पर मिश्रित प्रतिक्रियाओं का अंबार लग गया. 21 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी के डाक्टरों व नर्सों से बातचीत कर फारिग हुए ही थे कि इस ट्वीट ने कइयों को अपनी भड़ास निकालने का मौका दे दिया.
ये भी पढ़ें- भारत भूमि युगे युगे: आधुनिक से पौराणिक
दिलचस्प बात यह थी कि इस ट्वीट वार में मोदीभक्त लड़खड़ाते दिखे. एक यूजर अजीत ने लिखा, ‘‘भैया, वे बहुत बड़े ?ांसाराम हैं, पूरा देश उन से परिचित हो चुका है. उन्हें देशवासियों की कम, उद्योगपतियों की चिंता ज्यादा रहती है.’’ डाक्टर प्रियंका नाम की यूजर ने प्रतिक्रिया दी, ‘‘अंधभक्तों को छोड़ कर पूरा देश सम?ा चुका है कि साहब अपना साम्राज्य बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.’’ निखिल ने लिखा, ‘‘महलों से बाहर निकलो, गंगा किनारे घूम आओ.’’ गौरतलब है कि इस संवाद में प्रधानमंत्री ने लगभग रोते हुए कोरोना मृतकों के प्रति संवेदना जताते भावुक होने की पूरी कोशिश की थी पर लोग इसे ड्रामा मानते रहे तो इस की अपनी वजहें भी हैं. सिकंदर चौधरी ने लिखा, ‘‘घडि़याली आंसुओं से नाकामी के दाग नहीं धुलेंगे.
जिन लोगों ने अपनों को खोया है उन की हाय एक न एक दिन जरूर लगेगी, प्रचारजीवी.’’ रानी सहनी ने लिखा, ‘‘अंतिम हथियार इमोशनल ब्लैकमेल. जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी सो नृप अवस नरक अधिकारी. सबकुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया.’’ ये सब लोग उत्सुकता से मोदी के ट्वीट्स पढ़ते हैं. पहले इन ट्वीट्स में केवल वाहवाही होती थी और तीसराचौथा नेहरूगांधी खानदान को कोसता था. बेमतलब की बात यह चर्चा और माहौल सोशल मीडिया तक सिमटे नहीं हैं बल्कि अब गली, घरों और चौराहों पर भी इसी तरह की भड़ास, जिस के व्यक्त होने का उपयुक्त मंच और समय चुनाव होता है,
ये भी पढ़ें- जितिन : भाजपा का “ब्रम्हाण वोट बैंक” और “सबक”
स्पष्ट दिखने लगी है. लोगों के गुस्से के मद्देनजर भाजपा के मातृ और पितृ संगठन आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत ने 15 मई को दोटूक कहा भी कि ‘कोरोना की पहली लहर के बाद सरकार, प्रशासन और लोग लापरवाह हो गए थे, इसलिए हालात बिगड़े.’ बात कुछकुछ उस बुद्धिमान देहाती जैसी है जो राजा के महल तक सिर पर खटिया रख कर गया था क्योंकि राजा का आदेश था कि आधी धूप और आधी छांव में आया जाए. देखा जाए तो मोहन भागवत देश के प्रति न केवल अपनी जवाबदेही बिना किसी संवैधानिक अधिकार को तो जता रहे हैं पर एक जज की तरह मोदी व उन की सरकार को भी बाइज्जत बरी भी कर रहे हैं. इस के पहले प्रधानमंत्री ने देशभर के कलैक्टरों से वीडियो के जरिए बात की थी जिस का कोई सिरपैर ही नहीं था.
उस वर्चुअल मीटिंग में हड़बड़ाहट में उन के मुंह से निकला था कि पौजिटिव केसों की संख्या बढ़ाना है. यह कोई मामूली या नजरंदाज कर देने वाली गलती नहीं है जो प्रधानमंत्री के घटते आत्मविश्वास की तरफ इशारा करती है. मुमकिन है वे कम शिक्षित होने के चलते कलैक्टरों का सामना करने से घबरा रहे हों. अगर ऐसा है तो आम लोग गलत न तो सोच रहे और न ही कह रहे हैं कि मोदीजी असफल साबित हो चुके हैं. जाहिर है कि आपदा के वक्त में बजाय काम करने या उसे काबू करने के बेवजह की ये वर्चुअल मीटिंगें न तो संवैधानिक हैं और न ही किसी समस्या का हल हैं. इन का मकसद खुद को हीरो और कलैक्टरों को निक्कमा साबित करना है. समस्या का हल है मुस्तैदी दिखाते जमीनी काम करना.
ये भी पढ़ें- सरकार, जज और साख खोती न्याय व्यवस्था
इस में भी नरेंद्र मोदी नाकाम साबित हो चुके हैं. उन्होंने अस्पतालों के दौरे करने की जहमत नहीं उठाई. नाकाम तो पहले भी वे कई मुद्दों और मोरचों पर हो चुके हैं लेकिन कोरोनाकाल ने आम लोगों के सिर से मोदी नाम का वह प्रायोजित जादू उतार दिया है जो ज्यादा नहीं, बल्कि सवा साल पहले तक चढ़ कर बोलता था. अधिकतर लोगों ने सरकारी बदइंतजामी और लापरवाही के चलते अपनों को खोया है. नरेंद्र मोदी के रो देने से उन के इस नुकसान की भरपाई नहीं होने वाली. नोटबंदी के दिनों में जब बगावत की सुगबुगाहट होने लगी थी तब भी उन्होंने आंसुओं को हथियार बनाया था जो अब कारगर नहीं हो रहा है. बकौल सूर्य प्रताप सिंह, काठ की हांडी बारबार नहीं चढ़ती. अपने 7 साल के कार्यकाल में वे दर्जनभर मौकों पर रो कर हमदर्दी और शोहरत बटोर चुके हैं या मुद्दे की बात को विराम देने में कामयाब रहे हैं. पर इस बार लोग उन के रुदन को ड्रामा करार दे रहे हैं.
सोशल मीडिया पर दर्जनों मीम वायरल हुए. उन में से अधिकतर में घडि़याल यानी मगरमच्छ का इस्तेमाल यह जताने के लिए किया गया कि उन के आंसू घडि़याली थे. अब जमीनी नहीं, बल्कि हवाहवाई राजनीति कर रहे हैं. ये वे नरेंद्र मोदी नहीं हैं जिन्हें 2014 में देशभर की जनता ने चुना था बल्कि ये वे नरेंद्र मोदी हैं जिन्हें 2 मई के नतीजों में पश्चिम बंगाल की जनता ने ठुकरा दिया है. चक्रवाती तूफान ताउते से हुए नुकसान का जायजा लेने जब वे गुजरात गए थे तब भी लोगों को लगा था कि हवा में उड़ने से समस्याएं हल नहीं होने वाली. प्रधानमंत्री को तो कोरोना कंट्रोल रूम में होना चाहिए था. उद्धव ठाकरे ने भी तंज कसा था. घटती लोकप्रियता कल तक जो लोग मोदी के बारे में सच सुनने से ही भड़क जाते थे वे आज खामोश रहने को मजबूर हैं और खुद को दिमागी तौर पर सच स्वीकारने और उस का सामना करने को तैयार कर रहे हैं.
ये भी पढ़ें- राजनीति के केंद्र में अब ‘ममता फैक्टर’
यह भाजपा के लिए एक अशुभ संकेत है क्योंकि देश के सब से बड़े और अहम राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं जो संसदीयतौर पर प्रधानमंत्री का गृहराज्य है. पंचायती चुनावों में भी लोगों का गुस्सा फूटा है जिस से उन का संसदीय क्षेत्र वाराणसी भी अछूता नहीं रहा है. यहां भी भाजपा गांवदेहात के लोगों द्वारा नकार दी गई है. साफ है कि कोरोना के कहर के दौरान जो वीभत्स नजारे लोगों ने देखे उन का जिम्मेदार उन्होंने केंद्र सरकार के कुप्रबंधन को ठहरा दिया है. दुनिया और देशभर की एजेंसियों के सर्वे भी इस बात पर मुहर लगाते हैं. अमेरिकी संस्था ‘मौर्निंग कंसल्ट’ के मुताबिक सितंबर 2019 के बाद नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में 22 फीसदी की गिरावट आई है.
सर्वे रिपोर्ट बताती है कि महामारी से निबटने में सरकार के प्रति लोगों का भरोसा कम हुआ है. एक और एजेंसी ‘ग्लोबल लीडर्स अप्रूवल रेटिंग ट्रैकर’ के मुताबिक, मोदी की लोकप्रियता में 13 फीसदी की गिरावट आई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक नरेंद्र मोदी का मध्यवर्गीय भक्त वोटबैंक बेचैन है जिस पर कोरोना की सब से बड़ी मार पड़ी है. सैंटर फौर स्टडी डैवलपिंग सोसाइटीज के असिस्टैंट डायरैक्टर संजय कुमार के मुताबिक, जिन लोगों को मोदी ने निराश किया है उन में मध्यवर्गीय ज्यादा हैं. उन्हें नापसंद करने वालों की तादाद 28 फीसदी हो गई है जो अगस्त 2019 में 12 फीसदी थी. संजय की मानें तो मोदी ने कोरोना संकट पर ध्यान नहीं दिया और लोगों को उन के हाल पर छोड़ दिया. भोपाल के सरकारी कालेज की एक प्रोफैसर का कहना है, ‘‘पिछले सवा साल से हालात हर स्तर पर लगातार खराब हुए हैं जिन्हें बिगड़ने से रोका जा सकता था. कर्मचारियों को महंगाई भत्ते उम्मीद के मुताबिक नहीं मिले हैं. महिलाएं और युवा भड़ास से भरे हैं. बेरोजगारी तांडव कर रही है.
अस्पतालों में लोग कैसेकैसे मरे और परेशान हुए, यह किसी से छिपा नहीं रह गया है. इस के बाद भी सरकार उलूलजलूल फैसले लिए जा रही है. वैक्सीन पर भ्रम की स्थिति बनी हुई है. सीरम इंस्टिट्यूट के मुखिया अदार पूनावाला को क्यों विदेश जाना पड़ा? सरकार क्यों उन की बातों पर ध्यान नहीं दे रही?’’ वैक्सीन पर भी मनमानी गौरतलब है कि सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला ब्रिटेन में भारीभरकम 2,457 करोड़ रुपए का निवेश कर वहीं कोरोना की वैक्सीन बना रहे हैं. एक बयान में उन्होंने खुद पर वैक्सीन की मांग को ले कर देश के राजनेताओं और ताकतवर लोगों द्वारा दबाब डाले जाने की बात कही थी. सरकार की नजर में भले ही यह हवा में उड़ा देने वाली बात हो पर इस से जो नुकसान देश का हुआ है उस की भरपाई शायद ही कभी हो पाए.
कोरोना पर सरकार और नरेंद्र मोदी की यह नाकामी भी माफी के काबिल नहीं है कि अदार को विदेश जा कर कारोबार करने को मजबूर होना पड़ा. इन प्रोफैसर के मुताबिक, कोरोना पर गलती के बाद वैक्सीन पर उस का दोहराव ही हो रहा है कि सरकार ने क्यों डब्लूएचओ की गाइडलाइन का उल्लंघन किया. आज नहीं तो कल, सरकार को इस का जबाब देना पड़ेगा कि उस ने वैक्सीन पर मची अफरातफरी नियंत्रित नहीं की बल्कि और बढ़ाई लेकिन तब तक मिडिल क्लास के आधे यानी 30 करोड़ लोग कंगाल हो चुके होंगे.
आप महंगाई का आलम देखिए कि भोपाल में ही पैट्रोल सौ रुपए प्रतिलिटर का दाम पार कर चुका है. फिर, बाकी रोजमर्रा की चीजों की तो बात ही अलग है. हमें ही अब भाजपाई राष्ट्रवाद का विरोध करना पड़ेगा क्योंकि उस का समर्थन भी हम ने ही किया था. लग नहीं रहा कि नरेंद्र मोदी अपनी गलतियों व नाकामियों से कोई सबक सीखेंगे क्योंकि सच का उन का अपना अलग पैमाना है. चिंता और डर की बड़ी बात जो जल्द सामने आ जाना है वह आम लोगों का यह सोचना है कि अब देश का क्या होगा. यह चिंता अगर नरेंद्र मोदी करें तो बात बन भी सकती है वरना और 3 साल लोग अनिश्चितता व दहशत में जीने को मजबूर रहेंगे.