तृणमूल कांग्रेस के गुंडों के भारतीय जनता पार्टी के समर्थकों पर हो रहे रेपो, मारपीट, धमकाने की शिकायतें बहुत मजेदार हैं. अभी 2 मई से पहले तो पुराना पूरा बंगाल भाजपामयी हो चुका था. हर गली में भाजपा का कमल खिल चुका था. ‘दीदी...ओ...दीदी’ कह कर नरेंद्र मोदी खुद दोहराते रहे ‘2 मई दीदी गई,’  अब 2 मई के बाद क्या भाजपा के समर्थकों की हालत इतनी पतली हो गई है कि वे अपने मेंबरों की जान और आन नहीं बचा सकते और कभी सैंट्रल फौर्स मांगते हैं, कभी गवर्नर से गुहार लगाते हैं, कभी सुप्रीम कोर्ट में जाते हैं.

यह तो वे लोग करते हैं जो बहुत अल्पमत हो, 2-3' आबादी के हों, कमजोर हों, एकजुट न हों, क्या भारती जनता पार्टी पहले सिर्फ एक गुब्बारा थी जो 2 मई को फट गया? यदि ऐसा है तो 38-39 फीसदी वोट जो उन्हें पड़ा था शायद वह भी फर्जी था.

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जिस तरह से रोते भाजपाई दिख रहे हैं उस तरह तो देश के मुसलमान भी नहीं रोते चाहे उन्हें सरेआम डंडों से पीटा जाएं, उन की दाढ़ी काट ली जाए और इतनी जुर्रत हो कि इस की वीडियो बना कर इसे राम के रावण पर विजयी होने की तरह सोशल मीडिया पर डाल दिया जाए.

तृणमूल कांग्रेस ने पहले वामपंथियों को हराया था तो वो तो ऐसे नहीं रोए थे. वामपंथियों ने उस से पहले पश्चिमी बंगाल में कांग्रेसियों को हराया था तब भी कांग्रेसी रोए नहीं थे. यह अजीब बात है जो पार्टी हर घर की है, हर ङ्क्षहदू की है, हर सभ्य जने की है, वह रोतीरोती कभी इस दरवाजे पर जाए, कभी उस दरवाजे पर.

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अगर पश्चिमी बंगाल में यह हाल है तो और कहीं हारने के बाद भी क्या यही रूयापा मचाया जाएगा? फिर तो डर है कि एक रोज भाजपा कार्यालयों में झंडों की जगह रुमाल ज्यादा दिखेंगे. मजाक छोडि़ए, असल में भाजपा के नेता भाभी तर्क समझ नहीं पा रहे कि वे हारे क्यों. ऐसा 1971 में भी हुआ था जब बलराज.....जो भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष थे, अपने सहयोगियों के साथ बुरी तरह हारे थे. वे महीनों राग अलापते रहे थे कि बैलट पेपर या तो बदले गए हैं या फिर मोहर की स्याही में कोई जादू का कैमीकल था.

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