“इसीलिए तुम ने पहले ही न्यू ईयर पार्टी में हमारे जाने और साथ में एक कमरे में रुकने की बात अपने घर वालों को बता दी. इसलिए वे यहां मुझे मेरे मातापिता के दिए संस्कारों पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें अपमानित कर रहे हैं,” बात पूरी करतेकरते प्रिया का स्वर रोंआसा हो गया, “तुम्हें मुझ से शादी नहीं करना थी तो सीधे मुझ से कह देते. मुनीश, इस तरह मेरा और मेरे घर वालों का अपमान करने की क्या जरूरत थी?”
“यह क्या कह रही हो प्रिया, मैं ऐसा क्यों करूंगा? मैं ने यह बात किसी को नहीं बताई,” मुनीश ने आश्चर्य से कहा, इस के साथ ही ‘ओह शिट्’ की आवाज के साथ माथे पर हथेली ठोकने की आवाज आई, “प्रिया, मैं ने उन्हें कुछ नहीं बताया. लेकिन छोटी बहन तनु ने मेरे लैपटौप पर न्यू ईयर की फोटो देखे थे, शायद उस ने… ओह शिट,” अब मुनीश के स्वर में भी चिंता झलक आई.
“प्रिया रुको, मैं पापा को फोन करता हूं, उन से बात करता हूं, तुम फोन रखो.” “नहीं मुनीश, तुम अभी फोन मत करो वरना उन्हें एक और बहाना मिल जाएगा कि मैं ने तुम्हारे कान भरे हैं. आज यहां जो भी होगा, तुम्हें पता चल ही जाएगा. अब जो भी बात करना अपने घर में करना. तुम्हारी लापरवाही ने मुझे मेरे घर वालों के सामने और मेरे घर वालों को तुम्हारे मातापिता के सामने बहुत अपमानित किया है, मुनीश. पता नहीं अब मैं उन का सामना कैसे करूंगी? न्यू ईयर पार्टी में जाने की मेरी इच्छा नहीं थी, मैं ने तुम्हारे जोर देने पर, तुम पर विश्वास कर के गलती की. अब पता नहीं क्या होगा?” प्रिया का स्वर रुंध गया, उस ने फोन रख दिया.
बाहर से आती आवाजें पिघले शीशे सी कानों में उतर रही थीं. प्रतिवाद के स्वर ज्योंज्यों मद्धिम होते जा रहे थे, प्रिया के सपनों की सांसें त्योंत्यों धीमी पड़ती जा रही थीं. आखिरकार, एक लंबी खामोशी के बाद मेहमान विदा हो गए. पूरे घर में पसरी खामोशी तनाव, अपमान, अपराधबोध के कारण ज्यादा बोझिल हो गई. प्रिया के बारे में जो पता चला, उस के बाद उस की चुप्पी ने इस बात की पुष्टि कर दी थी. फिर कहनेसुनने को कुछ शेष न था. अपने दिए संस्कारों को इस तरह हवा में उड़ा दिए जाने और उस के बाद अपने ही घर में इस तरह अपमानित किए जाने से आहत प्रिया के मम्मीपापा के आंसू भी निशब्द ही गिरे और प्रिया की सिसकियां भी हौले से तकिए में समा गईं.
मुनीश के मातापिता लगभग विजयीभाव से घर लौटे थे. मुनीश मुंबई में ही था. उसे अभी तक कुछ बताया नहीं था. लेकिन उन्हें पूरा विश्वास था कि वह उन के तर्कों व फैसले का समर्थन करेगा. उन्होंने उसे एक ऐसी लड़की से शादी करने से बचा लिया जिस में कोई संस्कार नहीं है. जो शादी के पहले किसी के साथ एक कमरे में रह सकती है उस के चरित्र के बारे में क्या ही कहा जाए?
मुनीश ने बेचैनी से प्रिया को कई बार कौल किया लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया और कुछ देर बाद फोन स्विचऔफ हो गया. उस की आंखों में प्रिया का इनकार लोगों की नजरों का उपहास और उस से बेचैन प्रिया की आंखें घूम गईं. उसी ने जबरदस्ती की, उसी ने उसे मनाया, उसी ने इतना भावनात्मक दबाव डाला कि न चाहते हुए भी प्रिया को हां कहना पड़ा. वह जानती थी कि अगर किसी को इस बारे में पता चलेगा तो उसी को गलत समझा जाएगा. वह जानती थी कि दुनिया की सोच क्या है और किसी का प्रेम या विश्वास उसे बदल नहीं सकते. भूल तो उस से भी हुई, वह इस बात को राज नहीं रख पाया.
यह तनु की बच्ची भी न, वह भी तो उसी समाज की उसी सोच से पीड़ित है, इस कदर पीड़ित कि लड़की हो कर एक लड़की के चरित्र को निशाने पर लगा रही है, यह भी नहीं समझ पाई वह. क्या करे, वह कैसे इस बिगड़ी, बल्कि खत्म हो चुकी, बात को संवारे. मुनीश का मन काम में नहीं लगा. उस के कानों में प्रिया के शब्द गूंजने लगे, “इसलिए यहां मुझ पर मेरे मातापिता द्वारा दिए संस्कारों पर सवाल उठा रहे हैं.” संस्कार…संस्कार…संस्कार… मुनीश के कानों में यह शब्द हथौड़े की तरह पडने लगा. क्या है यह संस्कार? क्या किसी लड़की पर बिना कुछ जानेसमझे लांछन लगाना संस्कार है? क्या किसी को उस के ही घर जा कर अपमानित करना संस्कार है? क्या अपने बालिग बच्चों की खुशियों, भावनाओं को अपने अहंकार की खातिर यों कुचल देना ही संस्कार है? सिर्फ एक बात कि प्रिया एक रात मेरे साथ एक कमरे में सोई, तो वह संस्कारहीन हो गई. लेकिन उस के साथ तो मैं भी था उसी कमरे में. फिर मैं संस्कारहीन क्यों नहीं? प्रिया को मजबूर तो मैं ने किया था, फिर अपमान उस के अकेले का क्यों? नहीं प्रिया, मैं तुम्हें मुझ पर भरोसा करने की ऐसी सजा नहीं झेलने दूंगा. मैं इसी संस्कार में से कोई रास्ता खोज निकालूंगा. मुनीश ने मन ही मन तय कर लिया.
रात लगभग 8 बजे मुनीश ने घर पर फोन लगाया. घर पर सभी लोग आपस में विचार कर के तय कर चुके थे कि मुनीश से क्या कहना है, कैसे समझाना है और कैसे विश्वास दिलाना है कि उन्होंने जो किया है वह ठीक किया है, उस के भले के लिए किया है और यह तो अच्छा हुआ कि उन्हें सही समय पर पता चल गया कि प्रिया संस्कारी लड़की नहीं है और ऐसी लड़की न तो मुनीश के लिए ठीक है और न ही घर की बहू बन सकती है.
“हैलो पापा, कैसे हैं? “हां बेटा, अच्छे हैं, तुम कैसे हो?” “ठीक हूं पापा. आप लोग आज प्रिया के घर गए थे न, क्या हुआ?” “हां, ठीक ही रहा तुम्हारी बात नहीं हुई प्रिया से,” मुनीश के पापा ने टटोलना चाहा कि आखिर उन के बारे में इस संस्कारहीन लड़की ने क्याक्या जहर भरा है.
“नहीं पापा, आज तो सुबह से लगातार मीटिंग थी, टाइम ही नहीं मिला. शाम को फोन लगाया था, लेकिन उस का फोन बंद आ रहा है. क्या हुआ, सब ठीक तो है न? क्या बात हुई आप लोगों की?” मुनीश ने अनजान बनते हुए पूछा, वह उन्हीं के मुंह से सब सुनना चाहता था ताकि प्रिया पर अब और कोई लांछन न लगे.
” वो बेटा, तुम ने बताया नहीं कि तुम और प्रिया न्यू ईयर पर बाहर गए थे, वहां एक कमरे में रुके थे. देखो बेटा, तुम लोग मिले, एकदूसरे को पसंद किया, आपस में बातचीत की, घूमेफिरे वहां तक तो ठीक था, लेकिन इस तरह शादी से पहले एकसाथ एक कमरे में रात गुजारना हमारे संस्कारों को हजम नहीं होता. कोई भी संस्कारी लड़की किसी लड़के का इस तरह का प्रस्ताव सुनते ही मना कर देगी. हो सकता है तुम ने उस से कहा होगा लेकिन वह तो लड़की है, उस के मातापिता ने उसे समाज के चालचलन, ऊंचनीच, मानमर्यादा कुछ भी नहीं सिखाई जो उस ने ऐसी बात मान ली? बेटा, ऐसी लड़की शादी के बाद तुम्हारे प्रति वफादार ही होगी, इस का क्या भरोसा? तुम ने तो हमें बताया नहीं, वह तो बड़ा भला हो कि तनु ने जाने के समय यह बात हमें बताई वरना हम तो बात पक्की ही कर के आने वाले थे. देखो बेटा, तुम्हें बुरा लग रहा होगा लेकिन हमारा अनुभव कहता है कि प्रिया तुम्हारे लिए ठीक नहीं है. उस के संस्कार अच्छे नहीं हैं.”
मोहन बाबू एक सांस में बिना रुके सब कह गए मानो उन्हें डर था कि कहीं बीच में रुकने पर मुनीश प्रतिवाद न कर बैठे और उन की बात अधूरी रह जाए. वे अपनी तरफ से इस रिश्ते को खत्म कर चुके थे. इसे खत्म करने के लिए जितने तीरनश्तर चलाने जरूरी थे, वे चला चुके थे और अब पलटना संभव नहीं था. वे बिना कटु हुए भी तीखी बात कह कर प्रिया व उस के घर वालों का अपमान कर चुके थे क्योंकि अपनी सोच के अनुसार वे सही थे.
“पापा, आप के संस्कारों की बात ठीक है, लेकिन आप ने तो मुझ पर मेरे संस्कारों पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया. प्रिया को कठघरे में खड़े करतेकरते आप ने मुझे अपराधी बना दिया,” मुनीश ने धीमे और दुखी स्वर में कहा.
यह सुन कर मोहन बाबू अचकचा गए. उन्हें तो मुनीश के भड़क जाने की, प्रिया की पैरवी करते उन से ऊंचनीच कह जाने की आशंका थी. वे हर संभावित प्रश्न का जवाब तैयार किए बैठे थे लेकिन मुनीश ने तो कुछ अलग ही सुर पकड़ लिया था. वे कुछ देर खामोश सोचते रहे, अपने कहे हर शब्द पर नजर डाली. लेकिन उन्हें समझ नहीं आया कि उन्होंने कहां और कैसे मुनीश को अपराधी बनाया? उस के संस्कारों की तो कोई बात ही नहीं हुई. कहीं प्रिया ने तो उलटासीधा नहीं भड़काया है उसे, एक आशंका ने फिर जन्म लिया. “तुम्हें अपराधी कैसे, मैं कुछ समझा नहीं? प्रिया ने तुम से कुछ कहा क्या?” आशंका फिर सिर उठाने लगी.
“प्रिया ने कुछ नहीं कहा पापा. उस का फोन बंद है. उस से तो बात ही नहीं हुई. यह बात सही है कि न्यू ईयर पार्टी में हम दोनों बाहर गए थे, वह कपल पार्टी थी. प्रिया इस के लिए तैयार न थी, लेकिन मैं ने उसे फोर्स किया, उसे विश्वास दिलाया कि हम साथ जाएंगे, साथ में एक रूम में रुकेंगे लेकिन वह मुझ पर विश्वास करे कि मैं मर्यादा की सीमा नहीं लांघूंगा. हम कोई ऐसा काम नहीं करेंगे जिस से हम दोनों को या हमारे परिवार को शर्मिंदा होना पड़े. वह बहुत मुश्किल से साथ जाने को राजी हुई थी पापा. उस ने हमारे प्यार पर विश्वास किया, उस ने मुझ पर विश्वास किया, मेरे व्यवहारआचरण पर विश्वास किया, मुझे मिले संस्कारों पर विश्वास किया पापा.
“लेकिन आप ने, आप ने न अपने बेटे पर विश्वास किया, न खुद के दिए संस्कारों पर. आप ने वहां प्रिया के चरित्र पर उंगली नहीं उठाई, आप ने अपने बेटे पर उंगली उठाई, उस के चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगाया. आप ने बता दिया कि आप इस बात पर विश्वास करते हैं कि आप के बेटे के साथ कोई लड़की सुरक्षित रह ही नहीं सकती. आप ने अपने बेटे को प्रिया का अपराधी बना दिया पापा. आप खुद अपना अपमान कर आए. एक बार तो सोचा होता पापा, कि आप के बेटे पर कोई लड़की भरोसा कर रही है, उस के साथ कहीं जाने को, उस के साथ रुकने को तैयार हुई है. यह आप के बेटे के लिए, उस के संस्कारों के लिए कितनी बड़ी और महत्त्वपूर्ण बात है?
“आप ने, बस, एक बात याद रखी कि प्रिया मेरे साथ थी, यह भूल गए कि मैं प्रिया के साथ था. एक बार मुझ से पूछ तो लेते, कुछ कहने से पहले मुझ से फोन पर बात कर लेते. तनु तो बच्ची है, उस से क्या समझदारी की उम्मीद करूं. लेकिन आप पापा, आप तो समझते,” कहतेकहते मुनीश का स्वर रोंआसा हो गया, “ठीक है पापा, रखता हूं, नमस्ते,” कह कर उस ने फोन रख दिया.
मोहन बाबू स्तब्ध थे अपने अनुभव और ज्ञान पर उन का अभिमान चकनाचूर हो गया. अपनी कही बात को इस नए आयाम से देखते हुए उन्हें इस की गंभीरता समझ आई और अब खुद के द्वारा खुद का और अपने बेटे का अपमान उन्हें सालने लगा. बेटे ने बेहद हौले से उन्हें आईना दिखाया था. अपने उच्च संस्कारों के गर्व ने अब उन के गाल पर तमाचा मारा था और अब ज्योंज्यों वे उस की कही बातों के बारे में सोच रहे थे, उस तमाचे की गूंज और चोट तेज होती जा रही थी. वे सोच रहे थे कि अब क्या करें.