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Naagin 5 स्टार शरद मल्होत्रा की पत्नी ने सोशल मीडिया पर यूजर्स को दिया करारा जवाब, सुरभि संग जोड़ रहे थे पति का नाम

सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां पर आप चाहकर भी कुछ भी नहीं छिपा पाते हैं. ऐसे में आपके चहेते स्टार्स आपके बारे में हर कुछ जानने के लिए बड़े इच्छुक रहते हैं लेकिन इसके साथ ही जैसे ही उन्हें मौका मिलता मिलता है वह ट्रोल करने में भी पीछे नहीं रहते हैं.

कई टीवी जगत के मशहूर सितारे सोशल मीडिया पर ट्रोल होते रहते हैं, जैसे निया शर्मा, रश्मि देसाई और शहनाज गिल जैसे नाम सोशल मीडिया पर आए दिन ट्रोलिंग का शिकार होते रहते हैं.

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कुछ समय पहले ट्रोलर्स ने शरद मल्होत्रा के साथ-साथ सुरभि चंदना को ट्रोल करना शुरू कर दिया था, इन्हें सोशल मीडिया पर शारभी के नाम से ट्रोल किया जा रहा था. जिसके बाद से एक यूजर्स की क्लास शरद मल्होत्रा कि पत्नी ने जमकर लगा दी.

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दरअसल, ये बात तो हर कोई जानता है कि शरद मल्होत्रा नागिन 5 में नजर आ चुके हैं. जिसमें उनके साथ उनकी को स्टार सुरभि चंदना भी नजर आ चुकी हैं. इन दोनों की जोड़ी को सोशल मीडिया पर खूब पसंद किया जाता था. लेकिन कुछ फैंस ऐसे भी है जो इन्हें सोशल मीडिया पर कपल की तरह ट्रोल करना शुरू कर दिए थे.

जिसका पता लगते ही शरद मल्होत्रा कि पत्नी रिप्सी भाटिया ने क्लास लगाने में देर नहीं लगाई. जिसमें रिप्सी ने लिखा कि शारभी नाम इन दोनों का इसलिए दिया गया ताकि इन दोनों का किरदार फैंस के दिल में हमेशा जिंदा रहे लेकिन कुछ घटिया सोच के लोग इस नाम और रिश्ते का मतलब भी गलत निकल रहे हैं. ऐसे में उन लोगों को जरुरत है कि वह अपना सोच बदल लें.

शायद वह लोग भूल गए हैं कि असल जिंदगी और रील लाइफ में काफी ज्यादा अंतर होता है. ये लोग हर रिश्ता का सिर्फ मजाक बनाना जानते हैं.

जिसके बाद से कछ यूजर्स इनकी जमकर तारीफ भी कर रहे हैं.

कच्ची गली -भाग 1: रेप की घिनौनी घटना के बारे में पढ़कर विपिन चिंतित क्यों हो रहा था

अखबार पढ़ते हुए विपिन का मुंह आज फिर लटक गया, “ये रेप की घिनौनी घटनाएं हर रोज़ की सुर्खियां बनती जा रही हैं. न जाने कब हमारे देश में बेटियां सुरक्षित होंगी. अखबार के पन्ने पलटो, तो केवल जुर्म और दुखद समाचार ही सामने होते हैं.”

“अब छोड़िए भी. समाज है, संसार है, कुछ न कुछ तो होता ही रहेगा,” दामिनी ने चाय का कप थमाते हुए कहा. “तुम समझती नहीं हो. मेरी चिंता केवल समाज के दायरे में नहीं, अपनी देहरी के भीतर भी लांघती है. जब घर में एक नवयौवना बेटी हो तो मातापिता को चिंता रहना स्वाभाविक है. सृष्टि बड़ी हो रही है. हमारी नज़रों में भले ही वह बच्ची है और बच्ची रहेगी, लेकिन बाहर वालों की नजरों में वह एक वयस्क है. जब कभी मैं उसे छोड़ने उस के कालेज जाता हूं तो आसपास के लोगों की नजरों को देख कर असहज हो उठता हूं. अपनी बेटी के लिए दूसरों की नजरों में अजीब भाव देखना मेरे लिए असहनीय हो जाता है. कभीकभी मन करता है कि इस ओर से आंखें मूंद लूं किंतु फिर विचार आता है कि शुतुरमुर्ग बनने से स्थिति बदल तो नहीं जाएगी.”

“कितना सोचते हैं आप. अरे इन नजरों का सामना तो हर लड़की को करना ही पड़ता है. हमेशा से होता आया है और शायद सदा होता रहेगा. जब मैं पढ़ती थी तब भी गलीमहल्ले और स्कूलकालेज के लड़के फब्तियां कसते थे. यहां तक कि पिताजी के कई दोस्त भी गलत नजरों से देखते थे और बहाने से छूने की कोशिश करने से बाज नहीं आते थे. आज की लड़कियां तो काफी मुखर हैं. मुझे बहुत अच्छा लगता है यह देख कर कि लड़कियां अपने खिलाफ हो रहे जुल्मों के प्रति न केवल सजग हैं बल्कि आगे बढ़ कर उन के खिलाफ आवाज भी उठाती हैं. फिर चाहे वे पुलिस में रिपोर्ट करें या सोशल मीडिया पर हंगामा करें. यह देख कर मेरा दिल बेहद सुकून पाता है कि आज की लड़की अपनी इज्जत ढकने में नहीं, बल्कि जुल्म न सहने में विश्वास रखती है. हमारा जमाना होता तो किसी भी जुल्म के खिलाफ बात वहीं दफन कर दी जाती. घर के मर्दों को तो पता भी न चलता. मां ही चुप रहने की घुट्टी पिला दिया करती.”

विपिन औफिस चले गए और सृष्टि कालेज. किंतु सुबह हुई बातें दामिनी के मन पर छाई रहीं. आज उसे अपने कालेज के जमाने का वह किस्सा याद हो आया जब बस के लिए उसे काफी दूर तक सुनसान सड़क पर पैदल जाना पड़ता था. नयानया कालेज जाना शुरू किया था, इसलिए उमंग भी नई थी. कुछ सीनियर लड़कियों को लिफ्ट लेते देखा था. दामिनी और उस की सहेलियों को भी यह आइडिया अच्छा लगा. इतनी लंबी सड़क पर भरी दुपहरी की गरमी में सिंकते हुए पैदल चलने से अच्छा है कि लिफ्ट ले ली जाए.

वैसे भी, इस सड़क पर चलने वाले ज्यादातर कार वाले इसी उम्मीद में रहते थे कि कालेज की लड़कियां उन से लिफ्ट ले लेंगी. अमूमन सभी को यह अंदाजा था कि इस सड़क पर लिफ्ट लेनेदेने का कल्चर है. उस दोपहर भी दामिनी और उस की सहेलियां लिफ्ट लेने की उम्मीद में सड़क पर खड़ी थीं. एक गाड़ी आ कर रुकी. दामिनी उस की आगे वाली सीट व उस की 2 सहेलियां पीछे की सीट पर बैठ गईं. चालक को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह इस गाड़ी का मालिक नहीं, ड्राइवर हो.

 

तीनों सहेलियां गाड़ी में चुपचाप बैठी थीं कि अचानक ड्राइवर ने अपना उलटा हाथ बढ़ा कर दामिनी के वक्षस्थल को दबोच लिया. कुछ क्षण को दामिनी हतप्रभ होने के कारण कोई प्रतिक्रिया न दे पाई. जैसे ही उसे यह आभास हुआ कि उस के साथ क्या हुआ है, उस ने प्रतिकार करते हुए वह हाथ झटके से दूर फेंका और ऊंचे सुर में चिल्लाई, ‘गाड़ी रोको, रोको गाड़ी अभी के अभी.’

 

अजीब वहशी नजरों से वह ड्राइवर दामिनी को घूरने लगा. परंतु पीछे बैठी दोनों लड़कियों के भी चिल्लाने पर उस ने गाड़ी साइड में रोक दी. आननफानन तीनों उतर कर वहां से भागी थीं.

 

आज का समय होता तो दामिनी यकीनन सोशल मीडिया पर आग लगा देती है. जीभर कर शोर मचाती. अपने स्मार्टफोन से संभवतया उस ड्राइवर की तसवीर भी ले चुकी होती. उस की गाड़ी का नंबर भी पुलिस में दर्ज करवाती, सो अलग. ‘इतनी हिम्मत आ गई है आजकल की बच्चियों में. शाबाश है,’ यह सोचती हुई दामिनी घर के काम निबटाने लगी. किंतु आज पुरानी यादें दिमाग पर बादल बन छा रही थीं. इसी धुंध में उसे प्रिया का किस्सा भी याद हो आया.

प्रिया, उस की पक्की सहेली. एक शाम कालेज से घर लौटते हुए अचानक घिर आई बारिश में जब प्रिया एकाएक फंस गई तो उस ने भी लिफ्ट लेने की सोचा. फर्स्ट ईयर की छात्रा में जितनी समझ हो सकती है, बस उतनी ही समझ इन लड़कियों में थी. लिफ्ट के लिए रुकी हुई गाड़ी में बैठते समय प्रिया ने यह भी नहीं झांका कि कार के अंदर कौन बैठा है. बारिश से बचने के लिए जल्दी से पीछे की सीट पर बैठ तो गई. किंतु कार चलते ही उसे महसूस हुआ था कि गाड़ी में पहले से 4 लोग बैठे हुए हैं. प्रिया ने गाड़ी चालक से कहा, ‘अंकल, प्लीज मुझे अगले चौराहे पर उतार दीजिएगा. मेरा घर वहां से पास है.’

‘अंकल किसे कह रही हो? हम तो आप के अंकल नहीं हैं,’ उस के यह कहते ही जब उस के चारों साथी हंसने लगे तब प्रिया को काटो तो खून नहीं. वह बहुत घबरा गई थी और जोरजोर से रोने लगी थी. परंतु उन दिनों दुनिया इतनी खराब नहीं थी जितनी उस ने सोची थी. वे भले लोग थे जिन्होंने ऐसा केवल प्रिया को सबक सिखाने के लिए किया था. इस अनुभव ने प्रिया को और उस के द्वारा यह सुनाने पर अन्य सभी सहेलियों को चौकन्ना कर दिया था.

उन दिनों लड़कियां अपने पर्स में सेफ्टी पिन के गुच्छे रखा करती थीं ताकि जब कोई पुरुष आपत्तिजनक समीपता दिखाए तो वे उसे अपने शरीर से दूर करने में सफल हो सकें. आजकल की तरह पेपरस्प्रे तो मिलता नहीं था. आजकल की तरह कोई सेफ्टी ऐप या जीपीएस भी नहीं थे. कितनी सहूलियत हो गई है आजकल लड़कियों को, सोचती हुई दामिनी घर का काम निबटा कर कुछ देर सुस्ताने लगी.

शाम को जब सृष्टि घर लौटी तो दामिनी से चाहते हुए कहने लगी, “इस वीकैंड आप का 50वां जन्मदिन है. बहुत स्पैशल. कुछ खास कर के सैलिब्रेट करेंगे. बताओ मम्मा, क्या चाहते हो आप? अपने जन्मदिन पर अपनी विशेस की लंबी लिस्ट बनाओ. मैं और पापा मिल कर पूरा करेंगे.”

मेरे पति के 2 युवतियों से संबंध हैं, मैं क्या करूं जिस से अपने पति को बचा सकूं?

सवाल

मैं विवाहित युवती हूं. मेरे पति के 2 युवतियों से संबंध हैं. मैं बहुत परेशान हूं और मुझे आपसे बहुत उम्मीद है. कृपया बताएं कि मैं ऐसा क्या करूं जिस से अपने पति को उन युवतियों के चंगुल से बचा सकूं?

जवाब

लगता है, आप अपनी घरगृहस्थी में कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो पति के प्रति लापरवाह होती गईं. घर में अपेक्षित प्यार और तवज्जो न मिलने के कारण ही आप के पति ने बाहर दूसरी महिलाओं से संबंध बना लिए. उन्हें वापस पाने के लिए आप को अब थोड़े धीरज से काम लेना होगा.

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पति जब भी घर आएं उन के साथ बिलकुल सामान्य व्यवहार करें. उन्हें तानेउलाहने न दें, न ही उन से लड़ाई झगड़ा करें, वरना वे घर आने से भी कतराने लगेंगे, जो आप के हित में नहीं होगा. पति जितनी देर घर रहें उन्हें भरपूर प्यार दें. धीरेधीरे उन का बाहर से वैसे भी मोहभंग हो जाएगा. विवाहित पुरुषों को युवतियां ज्यादा दिनों तक घास नहीं डालतीं, साथ ही अवैध संबंधों की मियाद भी ज्यादा लंबी नहीं होती. इसलिए चिंता छोड़ कर पति को वापस पाने के प्रयास में लग जाएं.

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अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

कच्ची गली -भाग 2: रेप की घिनौनी घटना के बारे में पढ़कर विपिन चिंतित क्यों हो रहा था

“क्यों याद दिला रही हो कि मैं बूढ़ी हो रही हूं. 50 साल, बाप रे, यह जान कर ही बुढ़ापा दिमाग पर छाने लगा.”

“कैसी बातें करती हो मम्मा? अभी तो मेरी मम्मा यंग एंड स्वीट हैं. आप को देख कर कौन कह सकता है कि आप 50 साल के होने जा रहे हो,” सृष्टि उस का हाथ पकड़ते हुए कहने लगी.

“यह सब तो धोखा है जो कौस्मेटिक्स की सहायता से हम औरतें खुद को और दूसरों को देख कर खुश होती हैं,”  दामिनी हंसते हुए कहने लगी.

सृष्टि ने उस के जन्मदिन की तैयारी शुरू कर दी. पार्टी पौपर्स, हैप्पी बर्थडे स्ट्रिंग, दिल की शेप के गुब्बारे और मेहमानों की एक लिस्ट – दामिनी के 50वें जन्मदिन को वाकई खास बनाना चाहती थी उस की बेटी. विपिन का भी पूरा सहयोग था. केवल धनदान से ही नहीं, बल्कि श्रमदान से भी विपिन साथ दे रहे थे.

अगली सुबह दामिनी थोड़ी देर से उठ पाई. आज फिर उसे माइग्रेन अटैक आया था. सुबह उठने के साथ ही सिर में दर्द शुरू हो गया था. ऐसे में अकसर उस की इंद्रियां उस का पूरा साथ नहीं निभाती थीं, सो हर काम थोड़ा धीमी गति से होता था. “क्या हुआ मेरी प्यारी मम्मा को?” सृष्टि उस का उतरा चेहरा देख कर पूछने लगी.

“बेटा, फिर वही सिरदर्द.” दामिनी अपना माथा सहलाती हुई बोली.”ओहो, आप दवाई ले कर रैस्ट करो. हमारे जाने के बाद कोई काम मत करना,” सृष्टि की बात मान कर विपिन और उस के चले जाने के बाद दामिनी दवा खा कर कुछ देर सो गई. फोन की घनघनाहट से दामिनी की आंख खुली. “हेलो,” टूटी हुई आवाज में वह बोली.

“दामिनी, मैं रजत बोल रहा हूं. मेरे सहकर्मी को अपनी बेटी के दाखिले के सिलसिले में सृष्टि से कुछ पूछना है पर न जाने क्यों उस का सैलफोन स्विचऔफ आ रहा है. ज़रा उसे बुला कर अपने फोन से बात करवा दो.””सृष्टि, सृष्टि कालेज से अभी लौटी कहां है. आज तबीयत थोड़ी ढीली लग रही थी, इसीलिए आंख लग गई. क्या समय हुआ है?”

“रात के 8:00 बज रहे हैं. सृष्टि अभी तक नहीं लौटी,” विपिन के स्वर में चिंता के भाव घुलने लगे. समय सुन कर दामिनी भी हड़बड़ा कर उठ बैठी, “इतनी देर सृष्टि को कभी नहीं होती. उस पर उस का फोन भी औफ आ रहा है. ऐसा क्या हो गया होगा,” कहती हुई दामिनी के पसीने छूट गए.

“क्या तुम उस की सहेलियों के घर जानती हो?” विपिन ने पूछा.”हां, कुछ सहेलियां पास ही में रहती हैं. मैं फौरन जा कर पूछ आती हूं. तुम कहां हो?” दामिनी बोली. “मैं औफिस से घर के लिए चल दिया हूं. सृष्टि के कालेज के रास्ते में हूं. मैं पूरा रास्ता उसे देखता आऊंगा,” विपिन काफी घबरा कर बोल रहे थे.

“मैं भी आसपड़ोस, अपने महल्ले व हाईवे तक सृष्टि को देख कर आती हूं,” दामिनी ने जल्दबाजी में अपनी चुन्नी उठाई और सड़क की ओर दौड़ पड़ी.

सब से पहले दामिनी ने सृष्टि की सब से पास रहने वाली सहेली का दरवाजा खटखटाया. “आंटी, आज मैं कालेज गई ही नहीं,” उस ने बताया, “क्या हुआ, आप इतनी परेशान क्यों हैं?” परंतु दामिनी के पास उत्तर देने का समय न था. वह भागती हुई दूसरी सहेली के घर पहुंची. फिर तीसरी. पड़ोस में केवल इतनी ही लड़कियां सृष्टि के कालेज में पढ़ती थीं. कहीं भी सृष्टि की खबर न पा कर दामिनी की चिंता बढ़ती जा रही थी. दामिनी अब हाईवे की ओर चलने लगी.

तीव्रगति से कदम बढ़ाती दामिनी अब सुबकने लगी, ‘पता नहीं मेरी बच्ची कहां होगी. इतनी देर कभी नहीं हुई उसे. फोन क्यों स्विचऔफ है. कम से कम एक फोन कर देती. आएगी तो बहुत डाटूंगी. यह भी कोई तरीका हुआ,’ मुंह ही मुंह में बड़बड़ाती, अपने आंसुओं को पोंछती हुई दामिनी हाईवे पर चली जा रही थी. कभी दुकान पर बैठे चाय पी रहे लोगों से पूछती तो कभी सड़क पर जा रहे लोगों को अपने फोन पर सृष्टि का फोटो दिखा कर उस के बारे में जानकारी हासिल करने का प्रयास करती दामिनी बदहवास सी भागी जा रही थी.

उधर विपिन जगहजगह अपनी कार रोक कर सृष्टि को खोजने में प्रयत्नशील थे. घर निकट आता जा रहा था किंतु सृष्टि का कुछ पता नहीं चल रहा था. विपिन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. कार चलाते हुए अब वे हाईवे पर पहुंच चुके थे. रात काफी हो चुकी थी. गाड़ियां तेज रफ्तार से अपने गंतव्य स्थान को दौड़ी जा रही थीं. कार चलाते हुए विपिन अब घर के निकट पहुंचने लगे लेकिन सृष्टि का कोई अतापता न चला था. विपिन किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा रहे थे.

इतने में उन्होंने सड़क के किनारे किसी को औंधेमुंह गिरा देखा. तेजी से गाड़ी को साइड में लगाते हुए विपिन उतरे और उस ओर बढ़ चले. वह किसी स्त्री का शरीर था जिस के कपड़े बेतरतीब अवस्था में थे. करीब दस फर्लांग दूर चुन्नी पड़ी हुई थी. विपिन बेहद घबरा गए. कहीं यह सृष्टि तो नहीं… आज क्या पहना था सृष्टि ने, यह भी विपिन को नहीं पता क्योंकि सृष्टि उन के औफिस जाने के बाद ही अपने कालेज जाया करती है.

लगभग भागते हुए विपिन उस की तरफ बढ़े और कंधे से पकड़ कर उस का चेहरा अपनी ओर मोड़ा. उस के बाद जो उन्होंने देखा, उन के चेहरे पर विषादपूर्णभाव उभर आए. पलभर को मानो उन्हें काठ मार गया. “यह तो दामिनी है,” उन के मुंह से अस्फुट बोल निकले. दामिनी से दूर गिरी उस की चुन्नी, कंधे से सरका हुआ उस का कुरता, खुली हुई सलवार जो उस के घुटनों तक गिरी हुई थी और दुख व तकलीफ में लिपटा उस का चेहरा आदि सबकुछ साफ साफ दर्शा रहा था कि उस के साथ क्या बीत चुका था. जिस अनहोनी की आशंका दोनों मातापिता अपनी नवयौवना बेटी के लिए कर रहे थे, यथार्थ में वही दुर्घटना दामिनी के साथ घट चुकी थी. “यह क्या हुआ, तुम यहां कैसे, इस हालत में…उठो दामिनी,” कहते हुए विपिन सहारा दे कर दामिनी को उठाने लगे.

सबक-भाग 4 : भावेश की मां अपनी बहू को हमेशा सताती रहती थी

जैसेजैसे समय बीतता जा रहा था, झूठ बोलने के बावजूद अंजना सब समझ गई थी… नरेश और उस के अन्य मित्र भी भावेश के बारे में कुछ नहीं बता पा रहे थे. अंजना पर इस बात का ऐसा असर हुआ कि उस ने खानापीना छोड़ दिया. यहां तक कि दवा खाने से भी उस ने मना कर दिया. उस की ऐसी हालत देख कर एक दिन सास पुष्पा उस से बोलीं, ‘बेटी, मैं तेरी दोषी हूं, मुझ से गलती हुई है, इस का प्रतिकार भी मुझे ही करना होगा. मुझे पूरा विश्वास है, भावेश एक दिन अवश्य आएगा. वह तुझ से बहुत प्यार करता है. आखिर कब तक वह तुझ से दूर रह पाएगा, पर बेटा उस के लिए तुझे जीना होगा. यों खानापीना छोड़ने से तो किसी समस्या का हल नहीं निकलेगा. कुछ दिन और देख लेते हैं, वरना फिर पुलिस में कमप्लेंट करवाने के साथ पेपर में भी इश्तिहार देंगे…’

सासू मां की बात मान कर अंजना ने थोड़ा खाने की कोशिश की, पर उसे उलटी हो गई. ऐसा एक बार नहीं, बल्कि कई बार होने पर पुष्पा ने उसे डाक्टर को दिखाने का निर्णय लिया और वे अंजना को ले कर डाक्टर को दिखाने उन के नर्सिंगहोम गईं…

‘डाक्टर साहब, मेरी बहू ठीक तो है…’ पुष्पा ने डाक्टर के चैक करने के बाद पूछा. ‘हां, हां, बिलकुल ठीक है… मिठाई खिलाइए… आप दादी बनने वाली हैं…’ ‘क्या…?’

‘बिलकुल सच अम्मां… आप दादी बनने वाली हैं.’ डाक्टर को दिखा कर सासबहू दोनों कमरे से निकली ही थीं कि एक नर्स दौड़ती हुई आई और बगल के केबिन में घुसते हुए बोली, ‘डाक्टर साहब, उस पेशेंट को होश आ गया है…’

‘सच, तुम चलो, मैं आता हूं.’‘क्या हुआ डाक्टर उस पेशेंट को…?’ नर्स की बात सुन कर अंजना से रहा नहीं गया. उस ने डाक्टर के केबिन में घुसते हुए पूछा.‘आप लोग कौन हैं और बिना इजाजत लिए मेरे केबिन में कैसे घुस आए…?’ डाक्टर ने उसे ऊपर से नीचे तक निहारते हुए रूखे स्वर में कहा.

‘डाक्टर साहब, मेरे पति लगभग 15 दिन से लापता हैं, इसलिए मैं इस पेशेंट के बारे में जानना चाहती हूं,’ अंजना ने डाक्टर की डांट की परवाह किए बिना कहा.

’15 दिन से लापता… लगभग इतने दिन पूर्व ही इस व्यक्ति को बुरी तरह से जख्मी हालत में यहां लाया गया था. कोई पहचान का जरीया न होने पर हम उन के घर वालों को खबर नहीं कर पाए हैं. वह तो उस सज्जन की सज्जनता कहिए, जो इसे इतनी जख्मी हालत में उठा कर लाए. वही इस के इलाज का खर्च भी उठा रहे हैं…’ अचानक डाक्टर के स्वर में नरमी आ गई.

‘क्या हम उस से मिल सकते है…?’ पुष्पा और अंजना ने एकसाथ कहा.         ‘हां… हां, क्यों नहीं…’वे दोनों डाक्टर के पीछेपीछे गए. भावेश को पा कर उन दोनों की खुशी का ठिकाना न रहा, पर भावेश ने उन्हें देख कर मुंह फेर लिया.

‘क्या आप इन्हें जानती हैं?’‘जी, यह मेरा बेटा भावेश है… हम पिछले 15 दिनों  से तलाश रहे हैं…’ मांजी ने खुशीखुशी डाक्टर से कहा.‘चलो अच्छा हुआ, वरना हम इन की आइडेंटिटी को ले कर परेशान हो रहे थे,’ डाक्टर ने कहा और समीप ही खड़ी सिस्टर को कुछ निर्देश दे कर चला गया.

‘आज 2-2 खुशियां आप के दामन में समाई हैं मांजी… जम कर पार्टी दीजिए. और हां, मुझे बुलाना मत भूलिएगा…’ पीछे से आवाज आई.पुष्पा ने पीछे मुड़ कर देखा तो वही नर्स खड़ी थी, जिस ने पेशेंट के होश में आने की सूचना दी थी…

‘आप दवा का परचा वहीं भूल आई थीं. डाक्टर ने आवाज लगाई, पर आप ने सुना नहीं… लीजिए दवा का परचा… और हां, पार्टी में बुलाने से नहीं भूलिएगा,’ नर्स ने दवा का पुरजा उसे पकड़ाते हुए पुनः कहा.’तुम्हें कैसे भूलूंगी… तुम ने तो आज मुझे वह खुशी लौटाई है, जो मुझ से मेरी गलती के कारण दूर हो गई थी,’ मां पुष्पा मन ही मन बुदबुदाई.

‘मुझे माफ कर दे बेटा…’ मांजी ने भावेश के बिस्तर पर बैठ कर उस का चेहरा अपनी ओर करते हुए कहा.’दूसरी खुशी कौन सी है, नहीं पूछेगा…’बेटे की आंखों में प्रश्न देख कर मां फिर बोली, ‘तू पापा बनने वाला है और मैं दादी. यह खुशी मुझे मेरी बहू अंजना ने दी है,’ कहते हुए पुष्पा ने अंजना की तरफ देखा और उस से कहा, ‘दूर क्यों खड़ी है, यहां आ न, तेरा भावेश तेरा इंतजार कर रहा है.’

पुष्पा अंजना को भावेश के पास बैठा कर बाहर चली गई और दीप्ति को फोन मिलाने लगी. दीप्ति भी परेशान थी. बहुत दिनों के बाद खुशियों ने उन के द्वार पर दस्तक दी है. वह अपनी जिंदगी जी चुकी, बच्चों की जिंदगी में बेवजह दखल दे कर अब ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिस से उन में फिर से दरार आए. सच ही उन्हें आज जिंदगी से एक सबक मिला है. दीप्ति ठीक ही कहती है कि प्यार दे कर ही प्यार पाया जा सकता है.

सबक-भाग 3 : भावेश की मां अपनी बहू को हमेशा सताती रहती थी

कल तो हद ही कर दी. जब वह उन को खाने के लिए कहने गई, तब तो उन्होंने खाना खाने से मना कर दिया, किंतु भूख बरदाश्त न होने पर उन्होंने रात में चुपचाप उठ कर खाना खाया और सो गईं, जबकि मां के न खाने के कारण भावेश ने भूख नहीं है, कह कर खाने से मना कर दिया था. वह अकेले कैसे खाती… उसे बनाबनाया  खाना उठा कर फ्रिज में रखना पड़ा और आज सुबह भी भावेश नाश्ता बनने के बावजूद बिना कुछ खाए औफिस चले गए. वह समझ नहीं पा रही थी कि भावेश का गुस्सा उस पर है या मां पर… आखिर कैसे वह सामंजस्य स्थापित करे…? वही कितना झुके…? सबकुछ भूल कर वह सुबह की चाय देने गई, तो फिर वैसी ही जलीकटी… आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह रही थी… मन इतना खराब था कि आज उस का औफिस जाने का भी मन नहीं हुआ. कमरे में आ कर उस ने छुट्टी का मेल कर दिया.

पुष्पा ने अंजना को कमरे में जाते देखा तो सोचा कि जाती है तो जाए, मुझे क्या? मैं किसी को मनाने नहीं जाऊंगी… अपनेआप अक्ल ठिकाने आ जाएगी. तेवर तो देखो इस लड़की के… पता नहीं अपने को क्या समझती है…?

पूरी जिंदगी तो उन्होंने बच्चों की परवरिश में लगा दी… दीप्ति के विवाह के बाद सोचा था कि बेटे का विवाह अपनी इच्छानुसार करूंगी. उस के विवाह में मोटा दहेज ले कर अपनी उन सारी इच्छाओं को पूरा करूंगी, जो पारिवारिक दायित्वों के चलते पूरा नहीं कर पाई, पर भावेश ने उन के सारे अरमानों पर पानी फेर दिया… एक दिन इसे सामने ला कर खड़ा कर दिया और कहा, ‘मां आशीर्वाद दो…’

वे बेटे भावेश के बरताव से अवाक थीं. वे कुछ सोच या समझ पातीं, उस से पहले ही भावेश और अंजना उन के पैरों पर झुक गए. एकलौता बेटा है, विद्रोह कर के जातीं भी तो कहां जातीं… सोच कर उन्होंने उन्हें आशीर्वाद दे दिया. आग में घी का काम किया उन की पड़ोसन सीमा और मीनाक्षी के शब्दों ने… जो खबर मिलते ही उसे बधाई देने आ पहुंची और उस से पूछा, ‘पुष्पा बहन, बहू है तो सुंदर, सुना है लव मैरिज की है… अकेली ही आई है या साथ में कुछ लाई भी है…’

अब उन से क्या कहती… मन मसोस कर रह गई थीं वे. पुत्र से तो वे कुछ नहीं कह पाईं, लेकिन जबतब मन का आक्रोश अंजना पर निकलने लगा. कल जब वे अंजना को टोक रही थीं, तभी भावेश आ गया और उन से उलझ पड़ा. उन्हें इस बात की कतई उम्मीद नहीं थी कि वह बहू का पक्ष लेगा. इस से पहले भी वे अंजना को यह न करो वह न करो की हिदायतों के साथ उसे छोटीछोटी बातों पर टोकती आई थीं और अकसर भावेश से उस की शिकायत भी कर दिया करती थीं, पर हर बार वह अंजना को ही डांट कर उन का पक्ष मजबूत करता रहा था…

पर, आज तो हद ही हो गई… उस ने न केवल अंजना का पक्ष लिया, बल्कि उन के रूठने पर भी उन्हें मनाने नहीं आया… पर, मैं भी किसी से कम नहीं, इन से दबूंगी नहीं, वरना ये मेरा रहना ही दूभर कर देंगे, सोच कर उन्होंने स्वयं को समझाया और अंजना के द्वारा बनाई चाय पी कर नहाने चली गईं.

नहा कर जब वे पूजा कर के बाहर आईं तो देखा कि अंजना कमरे से बाहर नहीं आई है. वे किचन में गईं, तो देखा कि भावेश का लंच पैक है. उसे खोल कर देखा, तो उस में सब्जीपरांठा था. कुछ बनाने की अपेक्षा उन्होंने उसे ही खाना श्रेयस्कर समझा और नित्य की तरह टीवी पर अपना मनपसंद सीरियल देखने लगीं.

दोपहर का एक बज गया. अंजना को कमरे से बाहर न आते देख उन्होंने टोस्टर में ब्रेड सेंकी और एक कप चाय बना कर खाने बैठ गईं. उन्होंने न ही अंजना को आवाज दी और न ही उस के कमरे में गईं…

शाम 4 बजे चाय की तलब लगने पर स्वयं ही चाय भी बना कर पी ली… पर अब तक उन का क्रोध चरमसीमा तक पहुंच चुका था. अब वे भावेश के आने का इंतजार करने लगीं… जैसे ही वह आया, मन का आक्रोश निकलने लगा, ‘अब चुप भी करो मां, क्या मैं तुम्हें नहीं जानता…? एक वक्त खाना बना कर नहीं खिला पाई तो इतना क्रोध क्यों…? हो सकता है कि उस की तबियत खराब हो…’

‘हां, हां, अब तो मां में ही तुझे कमी नजर आएगी… वही तेरे लिए सबकुछ हो गई है. पल्लू से जो बांध लिया है उस ने तुझे…’‘तुम सासबहू के चक्कर में मेरा जीना दुश्वार हुआ जा रहा है, तुम्हें जैसे रहना हो रहो… मैं ही घर छोड़ कर जा रहा हूं…’

‘तू क्यों जाएगा… जाना है तो मैं जाऊंगी…’ सदा की तरह उन्होंने कहा.उन का वाक्य पूरा होने से पहले ही भावेश दनदनाता हुआ बाहर चला गया. जब तक वे बाहर आईं, तब तक वह जा चुका था.

भावेश को पैदल घर से जाते देख उन्होंने सोचा, ऐसे ही किसी मित्र के घर चला गया होगा. क्रोध शांत होते ही घर आ जाएगा. सब मुझ पर ही गुस्सा निकालो… बहू के ऐसे तेवर… सुबह से पानी के लिए भी नहीं पूछा और शिकायत की तो बेटा भी घर छोड़ने की धमकी देने लगा. हे भगवान, अब तू मुझे उठा ही ले… उन्होंने सदा की तरह ऊपर की ओर देखते हुए हाथ जोड़ कर कहा.

8 बजे पुष्पा बहू के कमरे की तरफ गईं. एक बार सोचा कि आवाज लगाएं, पर स्वयं की अकड़ ने उन्हें रोक लिया. अपने लिए दो रोटी बनाई और पिछले दिन की बनी सब्जी से खा ली और निश्चिन्त भाव से टीवी देखने लगीं. 9 बजे, यहां तक कि 10 बज गए, न बेटा लौटा और न ही बहू कमरे से बाहर निकली. अब उन्हें चिंता होने लगी… एकाएक उन्हें लगा, बहू ठीक ही कह रही थी कि कैसी मां हैं आप…? यह जाने बिना कि बेटे, बहू ने  खाया है या नहीं, आप ने खा कैसे लिया…? बहू की बात तो छोड़ दें, पर उस के मन में रात में बिना खाए सोए और सुबह भूखे ही औफिस चले गए. बेटे के प्रति जरा सी भी संवेदना नहीं जगी. उस से कुछ खाने के लिए पूछने के बजाय उस के आते ही वे शिकायतों का पुलिंदा ले कर बैठ गईं… यह कैसी आत्मघाती प्रवृत्ति बनती जा रही है उन की…?

अब उन्हें पुत्र की चिंता हो रही थी, वहीं बहू पर भी गुस्सा आ रहा था, जो सुबह से अपने कमरे में बंद थी. उस की नहीं, कम से कम अपने पति की तो चिंता होनी चाहिए उसे…भावेश के मोबाइल पर ट्राई किया तो स्विच औफ बता रहा था… भावेश के मित्र नरेश को फोन किया, तो उस ने कहा, ‘मांजी, भावेश मेरे पास तो नहीं आया… दीपक से पूछ कर देखिए, शायद उसे पता हो.’

दीपक के साथसाथ पुष्पा ने भावेश के कुछ अन्य मित्रों को फोन किया. वहां से नकारात्मक उत्तर पा कर उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा था. अब बहू के पास जाने के सिवा कोई चारा ही नहीं था. उस के कमरे में कदम रखा, तो बिजली बंद थी… बिजली औन करते हुए कुछ कठोर शब्द मुंह से निकलने वाले थे कि देखा वह चादर ओढ़े लेटी है. शरीर बुरी तरह कंपकंपा रहा है और मुंह से भी कुछ अस्पष्ट शब्द निकल रहे हैं…

यह देख वे घबरा गईं… बहू की यह हालत और बेटे का कुछ पता नहीं… पास जा कर छुआ तो शरीर तप रहा था…पहली बार आत्मग्लानि से भर उठा था उन का मन… कोई उपाय न देख अंजना की स्थिति बताते हुए दोबारा नरेश को फोन किया, तो उस ने कहा, ‘आंटी, इतनी रात कोई डाक्टर आएगा या नहीं, फिर भी मैं कोशिश करता हूं…’

एक बार बेटी दीप्ति ने भी अंजना के प्रति उन के रूखे व्यवहार को देख कर कहा था, ‘मां, रस्सी को इतना भी न ऐंठो कि वह टूट जाए… फिर यह मत भूलो कि तुम्हारे बुढ़ापे के यही सहारे हैं. आज तुम जैसा बोओगी वैसा ही पाओगी…’‘तू अभी बच्ची है. तभी ऐसा कह रही है. अगर अभी मैं ने इन्हें टाइट कर के नहीं रखा, तो बाद में ये मेरे सिर पर चढ़ कर नाचेंगे…’ दीप्ति के समझाने पर मां पुष्पा ने उत्तर दिया था.

‘वह सब पुरानी बातें हैं… सचाई तो यह है कि हर संबंध प्यार दो और प्यार लो के सिद्धांत पर टिका है, डरा कर या दहशत पैदा कर आप कुछ समय के लिए भले ही उन्हें अपना गुलाम बना लो, पर कभी न कभी तो उन के क्रोध का गुब्बारा फूटेगा, तब उन्हें दोष मत देना.’

‘अच्छा, अब बंद भी कर अपना प्रवचन…’

उस समय उन्होंने दीप्ति को चुप करा दिया था, पर आज अंजना की हालत देख कर और बेटे का कोई अतापता न पा कर इस समय उन्हें दीप्ति का कहा एकएक शब्द सही लग रहा था… वरना सदा शांत रहने वाले और उस की हर आज्ञा का अक्षरशः पालन करने वाले बेटेबहू में इतना अंतर क्यों आया…? कहीं उन की बेवजह की नुक्ताचीनी ही कारण तो नहीं.

आज पुष्पा इस सब की वजह स्वयं को समझने लगी थी… न ही वे इतनी कठोर या रूखी होतीं और न ही भावेश घर छोड़ कर जाता. न ही बहू की यह हालत होती… आखिर किसी बात को सहने की भी एक सीमा होती है. जब अति हो जाती है, तो एक संवेदनशील इनसान ऐसे ही मानसिक संतुलन खो बैठता है… उन्हें यह बात समझ में तो आई, पर कुछ देर से…

तकरीबन आधे घंटे बाद नरेश डाक्टर को ले आया… आते ही उस ने अंजना को इंजेक्शन दिया और समय से दवा खिलाने का निर्देश देते हुए ब्लड टेस्ट करवाने के लिए कहा.भावेश का कहीं कोई पता नहीं था… इधर अंजना की तबियत ठीक होने का नाम नहीं ले रही थी… पुष्पा जिन्हें अंजना के नाम से ही चिढ़ थी, अचानक उस के प्रति सहृदय होने लगीं. अंजना जब भी भावेश के लिए पूछती, वे कह देतीं कि वह औफिस के काम से बाहर गया है… काम होते ही आ जाएगा. उस का मोबाइल अब भी स्विच औफ बता रहा था.

अभी पुष्पा कशमकश से गुजर रही थी कि दीप्ति का फोन आया. न चाहते हुए भी उन्हें दीप्ति को बताना पड़ा.दीप्ति ने सारी बातें सुन कर सिर्फ इतना ही कहा, ‘मां, मेरी सासूमां की तबियत ठीक नहीं है, वरना मैं आ जाती. जब तक भइया नहीं मिल जाते, तुम्हें संयम से काम लेना होगा. स्वयं के साथ भाभी को भी संभालना होगा.’

सब संस्कारों की बात है -भाग 4 : मोहन कुमार से प्रिया को क्या दिक्कत थी

“इसीलिए तुम ने पहले ही न्यू ईयर पार्टी में हमारे जाने और साथ में एक कमरे में रुकने की बात अपने घर वालों को बता दी. इसलिए वे यहां मुझे मेरे मातापिता के दिए संस्कारों पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें अपमानित कर रहे हैं,” बात पूरी करतेकरते प्रिया का स्वर रोंआसा हो गया, “तुम्हें मुझ से शादी नहीं करना थी तो सीधे मुझ से कह देते. मुनीश, इस तरह मेरा और मेरे घर वालों का अपमान करने की क्या जरूरत थी?”

“यह क्या कह रही हो प्रिया, मैं ऐसा क्यों करूंगा? मैं ने यह बात किसी को नहीं बताई,” मुनीश ने आश्चर्य से कहा, इस के साथ ही ‘ओह शिट्’ की आवाज के साथ माथे पर हथेली ठोकने की आवाज आई, “प्रिया, मैं ने उन्हें कुछ नहीं बताया. लेकिन छोटी बहन तनु ने मेरे लैपटौप पर न्यू ईयर की फोटो देखे थे, शायद उस ने… ओह शिट,” अब मुनीश के स्वर में भी चिंता झलक आई.

“प्रिया रुको, मैं पापा को फोन करता हूं, उन से बात करता हूं, तुम फोन रखो.” “नहीं मुनीश, तुम अभी फोन मत करो वरना उन्हें एक और बहाना मिल जाएगा कि मैं ने तुम्हारे कान भरे हैं. आज यहां जो भी होगा, तुम्हें पता चल ही जाएगा. अब जो भी बात करना अपने घर में करना. तुम्हारी लापरवाही ने मुझे मेरे घर वालों के सामने और मेरे घर वालों को तुम्हारे मातापिता के सामने बहुत अपमानित किया है, मुनीश. पता नहीं अब मैं उन का सामना कैसे करूंगी? न्यू ईयर पार्टी में जाने की मेरी इच्छा नहीं थी, मैं ने तुम्हारे जोर देने पर, तुम पर विश्वास कर के गलती की. अब पता नहीं क्या होगा?” प्रिया का स्वर रुंध गया, उस ने फोन रख दिया.

बाहर से आती आवाजें पिघले शीशे सी कानों में उतर रही थीं. प्रतिवाद के स्वर ज्योंज्यों मद्धिम होते जा रहे थे, प्रिया के सपनों की सांसें त्योंत्यों धीमी पड़ती जा रही थीं. आखिरकार, एक लंबी खामोशी के बाद मेहमान विदा हो गए. पूरे घर में पसरी खामोशी तनाव, अपमान, अपराधबोध के कारण ज्यादा बोझिल हो गई.  प्रिया के बारे में जो पता चला, उस के बाद उस की चुप्पी ने इस बात की पुष्टि कर दी थी. फिर कहनेसुनने को कुछ शेष न था. अपने दिए संस्कारों को इस तरह हवा में उड़ा दिए जाने और उस के बाद अपने ही घर में इस तरह अपमानित किए जाने से आहत  प्रिया के मम्मीपापा के आंसू भी निशब्द ही गिरे और प्रिया की सिसकियां भी हौले से तकिए में समा गईं.

मुनीश के मातापिता लगभग विजयीभाव से घर लौटे थे. मुनीश मुंबई में ही था. उसे अभी तक कुछ बताया नहीं था. लेकिन उन्हें पूरा विश्वास था कि वह उन के तर्कों व फैसले का समर्थन करेगा. उन्होंने उसे एक ऐसी लड़की से शादी करने से बचा लिया जिस में कोई संस्कार नहीं है. जो शादी के पहले किसी के साथ एक कमरे में रह सकती है उस के चरित्र के बारे में क्या ही कहा जाए?

मुनीश ने बेचैनी से प्रिया को कई बार कौल किया लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया और कुछ देर बाद फोन स्विचऔफ हो गया. उस की आंखों में प्रिया का इनकार लोगों की नजरों का उपहास और उस से बेचैन प्रिया की आंखें घूम गईं. उसी ने जबरदस्ती की, उसी ने उसे मनाया, उसी ने इतना भावनात्मक दबाव डाला कि न चाहते हुए भी प्रिया को हां कहना पड़ा. वह जानती थी कि अगर किसी को इस बारे में पता चलेगा तो उसी को गलत समझा जाएगा. वह जानती थी कि दुनिया की सोच क्या है और किसी का प्रेम या विश्वास उसे बदल नहीं सकते. भूल तो उस से भी हुई, वह इस बात को राज नहीं रख पाया.

यह तनु की बच्ची भी न, वह भी तो उसी समाज की उसी सोच से पीड़ित है, इस कदर पीड़ित कि लड़की हो कर एक लड़की के चरित्र को निशाने पर लगा रही है, यह भी नहीं समझ पाई वह. क्या करे, वह कैसे इस बिगड़ी, बल्कि खत्म हो चुकी, बात को संवारे. मुनीश का मन काम में नहीं लगा. उस के कानों में प्रिया के शब्द गूंजने लगे, “इसलिए यहां मुझ पर मेरे मातापिता द्वारा दिए संस्कारों पर सवाल उठा रहे हैं.” संस्कार…संस्कार…संस्कार… मुनीश के कानों में यह शब्द हथौड़े की तरह पडने लगा. क्या है यह संस्कार? क्या किसी लड़की पर बिना कुछ जानेसमझे लांछन लगाना संस्कार है? क्या किसी को उस के ही घर जा कर अपमानित करना संस्कार है? क्या अपने बालिग बच्चों की खुशियों, भावनाओं को अपने अहंकार की खातिर यों कुचल देना ही संस्कार है? सिर्फ एक बात कि प्रिया एक रात मेरे साथ एक कमरे में सोई, तो वह संस्कारहीन हो गई. लेकिन उस के साथ तो मैं भी था उसी कमरे में. फिर मैं संस्कारहीन क्यों नहीं? प्रिया को मजबूर तो मैं ने किया था, फिर अपमान उस के अकेले का क्यों? नहीं प्रिया, मैं तुम्हें मुझ पर भरोसा करने की ऐसी सजा नहीं झेलने दूंगा. मैं इसी संस्कार में से कोई रास्ता खोज निकालूंगा. मुनीश ने मन ही मन तय कर लिया.

रात लगभग 8 बजे मुनीश ने घर पर फोन लगाया. घर पर सभी लोग आपस में विचार कर के तय कर चुके थे कि मुनीश से क्या कहना है, कैसे समझाना है और कैसे विश्वास दिलाना है कि उन्होंने जो किया है वह ठीक किया है, उस के भले के लिए किया है और यह तो अच्छा हुआ कि उन्हें सही समय पर पता चल गया कि प्रिया संस्कारी लड़की नहीं है और ऐसी लड़की न तो मुनीश  के लिए ठीक है और न ही घर की बहू बन सकती है.

“हैलो पापा, कैसे हैं? “हां बेटा, अच्छे हैं, तुम कैसे हो?” “ठीक हूं पापा. आप लोग आज प्रिया के घर गए थे न, क्या हुआ?” “हां, ठीक ही रहा तुम्हारी बात नहीं हुई प्रिया से,” मुनीश के पापा ने टटोलना चाहा कि आखिर उन के बारे में इस संस्कारहीन लड़की ने क्याक्या जहर भरा है.

“नहीं पापा, आज तो सुबह से लगातार मीटिंग थी, टाइम ही नहीं मिला. शाम को फोन लगाया था, लेकिन उस का फोन बंद आ रहा है. क्या हुआ, सब ठीक तो है न? क्या बात हुई आप लोगों की?” मुनीश ने अनजान बनते हुए पूछा, वह उन्हीं के मुंह से सब सुनना चाहता था ताकि प्रिया पर अब और कोई लांछन न लगे.

” वो बेटा, तुम ने बताया नहीं कि तुम और प्रिया न्यू ईयर पर बाहर गए थे, वहां एक कमरे में रुके थे. देखो बेटा, तुम लोग मिले, एकदूसरे को पसंद किया, आपस में बातचीत की, घूमेफिरे वहां तक तो ठीक था, लेकिन इस तरह शादी से पहले एकसाथ एक कमरे में रात गुजारना हमारे संस्कारों को हजम नहीं होता. कोई भी संस्कारी लड़की किसी लड़के का इस तरह का प्रस्ताव सुनते ही मना कर देगी. हो सकता है तुम ने उस से कहा होगा लेकिन वह तो लड़की है, उस के मातापिता ने उसे समाज के चालचलन, ऊंचनीच, मानमर्यादा कुछ भी नहीं सिखाई जो उस ने ऐसी बात मान ली? बेटा, ऐसी लड़की शादी के बाद तुम्हारे प्रति वफादार ही होगी, इस का क्या भरोसा? तुम ने तो हमें बताया नहीं, वह तो बड़ा भला हो कि तनु ने जाने के समय यह बात हमें बताई वरना हम तो बात पक्की ही कर के आने वाले थे. देखो बेटा, तुम्हें बुरा लग रहा होगा लेकिन हमारा अनुभव कहता है कि प्रिया तुम्हारे लिए ठीक नहीं है. उस के संस्कार अच्छे नहीं हैं.”

मोहन बाबू एक सांस में बिना रुके सब कह गए मानो उन्हें डर था कि कहीं बीच में रुकने पर मुनीश प्रतिवाद न कर बैठे और उन की बात अधूरी रह जाए. वे अपनी तरफ से इस रिश्ते को खत्म कर चुके थे. इसे खत्म करने के लिए जितने तीरनश्तर चलाने जरूरी थे, वे चला चुके थे और अब पलटना संभव नहीं था. वे बिना कटु हुए भी तीखी बात कह कर प्रिया व उस के घर वालों का अपमान कर चुके थे क्योंकि अपनी सोच के अनुसार वे सही थे.

“पापा, आप के संस्कारों की बात ठीक है, लेकिन आप ने तो मुझ पर मेरे संस्कारों पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया. प्रिया को कठघरे में खड़े करतेकरते आप ने मुझे अपराधी बना दिया,” मुनीश ने धीमे और दुखी स्वर में कहा.

यह सुन कर मोहन बाबू अचकचा गए. उन्हें तो मुनीश के भड़क जाने की, प्रिया की पैरवी करते उन से ऊंचनीच कह जाने की आशंका थी. वे हर संभावित प्रश्न का जवाब तैयार किए बैठे थे लेकिन मुनीश ने तो कुछ अलग ही सुर पकड़ लिया था. वे कुछ देर खामोश सोचते रहे, अपने कहे हर शब्द पर नजर डाली. लेकिन उन्हें समझ नहीं आया कि उन्होंने कहां और कैसे मुनीश को अपराधी बनाया? उस के संस्कारों की तो कोई बात ही नहीं हुई. कहीं प्रिया ने तो उलटासीधा नहीं भड़काया है उसे, एक आशंका ने फिर जन्म लिया. “तुम्हें अपराधी कैसे, मैं कुछ समझा नहीं? प्रिया ने तुम से कुछ कहा क्या?” आशंका फिर सिर उठाने लगी.

“प्रिया ने कुछ नहीं कहा पापा. उस का फोन बंद है. उस से तो बात ही नहीं हुई. यह बात सही है कि न्यू ईयर पार्टी में हम दोनों बाहर गए थे, वह कपल पार्टी थी. प्रिया इस के लिए तैयार न थी, लेकिन मैं ने उसे फोर्स किया, उसे विश्वास दिलाया कि हम साथ जाएंगे, साथ में एक रूम में रुकेंगे लेकिन वह मुझ पर विश्वास करे कि मैं मर्यादा की सीमा नहीं लांघूंगा. हम कोई ऐसा काम नहीं करेंगे जिस से हम दोनों को या हमारे परिवार को शर्मिंदा होना पड़े. वह बहुत मुश्किल से साथ जाने को राजी हुई थी पापा. उस ने हमारे प्यार पर विश्वास किया, उस ने मुझ पर विश्वास किया, मेरे व्यवहारआचरण पर विश्वास किया, मुझे मिले संस्कारों पर विश्वास किया पापा.

“लेकिन आप ने, आप ने न अपने बेटे पर विश्वास किया, न खुद के दिए संस्कारों पर. आप ने वहां प्रिया के चरित्र पर उंगली नहीं उठाई, आप ने अपने बेटे पर उंगली उठाई, उस के चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगाया. आप ने बता दिया कि आप इस बात पर विश्वास करते हैं कि आप के बेटे के साथ कोई लड़की सुरक्षित रह ही नहीं सकती. आप ने अपने बेटे को प्रिया का अपराधी बना दिया पापा. आप खुद अपना अपमान कर आए. एक बार तो सोचा होता पापा, कि आप के बेटे पर कोई लड़की भरोसा कर रही है, उस के साथ कहीं जाने को, उस के साथ रुकने को तैयार हुई है. यह आप के बेटे के लिए, उस के संस्कारों के लिए कितनी बड़ी और महत्त्वपूर्ण बात है?

“आप ने, बस, एक बात याद रखी कि प्रिया मेरे साथ थी, यह भूल गए कि मैं प्रिया के साथ था. एक बार मुझ से पूछ तो लेते, कुछ कहने से पहले मुझ से फोन पर बात कर लेते. तनु तो बच्ची है, उस से क्या समझदारी की उम्मीद करूं. लेकिन आप पापा, आप तो समझते,” कहतेकहते मुनीश का स्वर  रोंआसा हो गया, “ठीक है पापा, रखता हूं, नमस्ते,” कह कर उस ने फोन रख दिया.

मोहन बाबू स्तब्ध थे अपने अनुभव और ज्ञान पर उन का अभिमान चकनाचूर हो गया. अपनी कही बात को इस नए आयाम से देखते हुए उन्हें इस की गंभीरता समझ आई और अब खुद के द्वारा खुद का और अपने बेटे का अपमान उन्हें सालने लगा. बेटे ने बेहद हौले से उन्हें आईना दिखाया था. अपने उच्च संस्कारों के गर्व ने अब उन के गाल पर तमाचा मारा था और अब ज्योंज्यों वे उस की कही बातों के बारे में सोच रहे थे, उस तमाचे की गूंज और चोट तेज होती जा रही थी. वे सोच रहे थे कि अब क्या करें.

कृषि उत्पादों का बढ़ता निर्यात

कृषि उत्पादों के निर्यात में अप्रैल, 2020 से फरवरी, 2021 के बीच 18.49 फीसदी की वृद्धि हुई. इस में गेहूं और चावल निर्यात में काफी उछाल आया. 2019-20 के दौरान भारत का कृषि निर्यात 2.52 लाख करोड़ रुपए और आयात 1.47 लाख करोड़ रुपए का था. यह 2020-21 में बीते फरवरी तक 2.74 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया. गेहूं, बासमती और गैरबासमती के साथ दूसरे अनाज, सोया मील, मसाले, चीनी, कपास, ताजी सब्जियां, प्रसंस्कृत सब्जियां आदि इस में शामिल हैं.

भारत सरकार ने साल 2022 तक कृषि क्षेत्र का निर्यात 60 अरब डौलर पर पहुंचाने का लक्ष्य रखा है. नई कृषि निर्यात नीति में जैविक उत्पादों पर खासा जोर है. हाल ही में संसद की वाणिज्य संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने कृषि और समुद्री उत्पाद, बागबानी फसलों, हलदी और कयर के निर्यात पर अपनी रिपोर्ट में तमाम मुद्दों को उठाया है. समिति के सामने वाणिज्य विभाग ने माना कि देश में फसल कटाई के बाद उन के लिए भंडार क्षमता की घोर कमी जैसी बहुत दिक्कतें हैं. घरेलू परिवहन की ऊंची लागत के कारण निर्यात अप्रतिस्पर्धी हो जाता है. अनेक कृषि उत्पादों की घरेलू कीमतें अंतर्राष्ट्रीय कीमतों से अधिक हैं. भारत का प्रसंस्कृत खाद्य का निर्यात 2018-19 में 31,111.90 करोड़ रुपए का था,

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जिस में प्रमुख रूप से सूखे और संरक्षित सब्जियां और आम का गूदा शामिल थे. एपीडा द्वारा संकलित आंकड़ों से पता चला है कि जहां ताजे फल और सब्जियों का निर्यात घट रहा है, वहीं प्रसंस्कृत फल, रसों के साथसाथ प्रसंस्कृत सब्जियों की मांग बढ़ रही है. कृषि उत्पादों की बरबादी रोकना जरूरी आज भी यह बेहद चिंताजनक बात है कि फसल कटाई के बाद कृषि उत्पादों की बरबादी तकरीबन 92,651 करोड़ रुपए की हो रही है. मेघालय जैसे राज्य में कोल्ड स्टोरेज की सुविधाओं की कमी में 50 फीसदी तक केला, संतरा, लीची, कीवी जैसी मुख्य बागबानी फसलें खराब हो जाती हैं और किसानों को भारी नुकसान होता है. देश में हमारे अनाज की जितनी बरबादी होती है, उस से बिहार जैसे राज्य का पेट सालभर भरा जा सकता है.

तकरीबन 10 लाख टन प्याज और 22 लाख टन टमाटर खेत से बाजार तक पहुंचने में ही बरबाद हो जाते हैं. इस बीच तमाम किसानों ने भाव न मिलने के चलते टमाटर को फेंक दिया या खेत में ही जोत दिया. भले ही प्रधानमंत्री की पहल ‘मेक इन इंडिया’ में खाद्य प्रसंस्करण को प्राथमिकता के क्षेत्र के रूप में रखा गया है और तमाम दावे किए जा रहे हैं, लेकिन अभी भी हमारा खाद्य प्रसंस्करण का स्तर 10 फीसदी के दायरे में है. अगर यही 30 फीसदी तक हो जाए तो भारतीय कृषि उत्पादों की वैश्विक पहचान के साथ नए रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं. संसदीय समिति ने 2018-19 में कहा था कि कई क्षेत्रों में कुल हानियां 4 से 16 फीसदी तक होती हैं. कोल्ड स्टोरेज से ले कर भंडारण सुविधाओं की कमी है,

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जिस पर ध्यान देने की जरूरत है. गांवों में छोटी कोल्ड चेन परियोजनाओं को लगाने की भी दरकार है और इस बात की भी कि फूड प्रोसैसिंग इकाइयां स्थानीय किसानों से ही उत्पाद खरीदें. साल 2017 में राष्ट्रीय बागबानी बोर्ड की ओर से कराए गए हंसा अनुसंधान समूह के एक सर्वे में पाया गया कि देश में 95 फीसदी कोल्ड स्टोरेज पर निजी क्षेत्र का स्वामित्व है, जबकि 3 फीसदी सहकारी समितियों का. 2 फीसदी कोल्ड स्टोरेज पीएसयू के तहत हैं. इन में सब से अधिक उपयोग आलू समेत बागबानी फसलों के भंडारण के लिए होता है. सरकारी आंकड़ों में शामिल कई कोल्ड स्टोरेज बंद पड़े हैं.

साल 2013 में एक सर्वे में पाया गया था कि 26.85 मिलियन टन क्षमता वाले 5,367 कोल्ड स्टोरेज में से 1,200 स्थायी तौर पर बंद थे. सरकार ने साल 2019 तक नई 313 कोल्ड चेन परियोजनाओं को मंजूरी दी, जिस के तहत 491 कोल्ड स्टोरेज बने, जिन की क्षमता 9.06 लाख टन थी. सब से अधिक 89 कोल्ड स्टोरेज महाराष्ट्र में बने, जिस से 1.95 लाख टन क्षमता बनी. इस तरह देखें, तो इस क्षेत्र में भी क्षेत्रीय असंतुलन काफी है.

नेबकान्स के एक अध्ययन में साल 2015 में पाया गया था कि 32 मिलियन टन की मौजूदा क्षमता की तुलना में जरूरत 35 मिलियन टन की है. लेकिन 5 साल बाद देश में कुल 7,904 कोल्ड स्टोरेज हैं, जिन की क्षमता 36.55 मिलियन टन है. सब से अधिक 2,385 कोल्ड स्टोरेज उत्तर प्रदेश में हैं, जिन की क्षमता 1.46 करोड़ टन है. लेकिन इन में से अधिकतर में आलू को रखा जाता है. कृषि संबंधी स्थायी समिति ने साल 2018 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि हालांकि योजनाएं किसानों के लिए बनी हैं, लेकिन किसान वास्तविक लाभार्थी नहीं हैं.

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इस योजना का लाभ जमीनी स्तर पर विशेषकर लघु और सीमांत किसानों को नहीं मिल सका. अगर इकाइयों को ग्रामीण इलाकों में लगाया जाए तो छोटे और सीमांत किसान लाभ उठा सकेंगे. उन की परिवहन लागत कम होगी और उत्पाद के ठीक दाम मिलेंगे. अभी किसान अपने खेत से दूर कोल्ड स्टोरेजों के लिए अपने उत्पादों के परिवहन के लिए अनेक परेशानी उठाते हैं. अभी भी भारी मात्रा में टमाटर और आलू सड़कों पर फेंके जाने की घटनाएं आती हैं.

अगर उचित भंडारण प्रणाली होती, तो किसानों को वाजिब दाम मिलता. कृषि जनगणना 2015-16 के अनुसार, भारत में लघु व सीमांत किसान 12.56 करोड़ है. देश में 35 प्रतिशत किसानों के पास 0.4 हेक्टेयर से कम जमीन है और 69 फीसदी किसानों के पास इस से भी कम. इस से उन को बहुत ही कम आय होती है. इन की आमदनी दोगुनी करने में यह क्षेत्र मददगार हो सकता है. सरकार ने साल 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का संकल्प लिया है. वोकल फोर लोकल का नारा भी दिया गया है. लेकिन इन नारों की सार्थकता तभी होगी, जब छोटे किसानों को शामिल कर ग्रामीण इलाकों में खाद्य प्रसंस्करण की छोटी इकाइयों का विस्तार हो और उन को इस में सहभागी बनाया जाए, ताकि उन की आय बढ़ सके.

घर में ऐसे बनाएं सोयाबीन पनीर टोफू

लेखिका-डा. साधना वैश, अलका कटियार

पनीर का प्रचलन आजकल सभी जगह हो रहा है. हमारी किसान महिलाएं भी उस प्रचलन में पीछे नहीं हैं. सोयाबीन पनीर काफी सस्ता पड़ता है, क्योंकि 1 लिटर दूध में तकरीबन 200 ग्राम पनीर निकल आता है,

जो गाय के दूध से निकले हुए पनीर से काफी सस्ता पड़ता है और पौष्टिकता के लिहाज से भी किसी भी तरह से गाय के दूध से कम नहीं है.

सोयाबीन दूध से पनीर बनाने के लिए जरूरी सामग्री सोयाबीन दूध – 2 लिटर सिट्रिक एसिड – 2 ग्राम या 2-3 नींबू सोयाबीन पनीर बनाने की विधि दूध को फाड़ने के लिए कैल्शियम सल्फेट की जरूरत होती है,

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जो बाजार में फूड ग्रेड का कैल्शियम सल्फेट आसानी से नहीं मिलता, इसलिए हम सोया मिल्क से टोफू बनाने के लिए सिट्रिक एसिड या नींबू का इस्तेमाल करते हैं.

इस से बना टोफू नरम और स्वादिष्ठ होता है.

-2 लिटर दूध में 400 ग्राम पनीर तैयार होता है. सोयाबीन दूध को उबाल कर के आंच से नीचे उतार लीजिए. इस के बाद सिट्रिक एसिड को एकचौथाई कप कुनकुने पानी में डाल लीजिए.

-तब तक सोया मिल्क का तापमान टोफू बनाने के तापमान पर आ जाएगा. सिट्रिक एसिड का पानी थोड़ाथोड़ा दूध में डालिए और चमचे की मदद से चला कर मिला दीजिए.

-चमचे को दूध में ज्यादा मत घुमाइए. जैसे ही दूध फटना शुरू हो जाए, सिट्रिक एसिड का पानी डालना बंद कर दीजिए. दूध अपनेआप 10 से 15 मिनट के अंदर फट कर पानी से अलग होने लगता है.

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-फटे दूध को आप तुरंत जान लेंगे. एक कपड़े को गीला कर के छलनी के ऊपर बिछा कर फटे दूध को डालेंगे, तो पानी नीचे पहुंच जाएगा और टोफू कपड़े पर रह जाएगा.

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-टोफू को कपड़े में बांध कर पानी को निकाल देंगे और अब ज्यादा पानी निकालने के लिए कपड़े में बंधे टोफू को किसी भारी चीज से दबा कर रख दीजिए. 30 से 40 मिनट बाद मुलायम टोफू तैयार हो जाएगा.

-इसे 6 से 7 दिन तक फ्रिज में रख कर इस्तेमाल कर सकते हैं.

सब संस्कारों की बात है- भाग 3 : मोहन कुमार से प्रिया को क्या दिक्कत थी

लेखिका -कविता वर्मा    

बंद दरवाजे के पीछे 2 जवान लोगों के बीच कुछ नहीं हुआ होगा का विश्वास किसी को दिलवाना कितना कठिन था, यह प्रिया ने अगले दिन जाना जब सब की आंखों में एक उत्सुकता देखी, एक दबीछिपी मुसकान जो एक चेहरे से दूसरे की आंखों तक और फिर अन्य चेहरों तक दौड़ती रही. इस मुसकान में ‘कुछ’ होने का जो विश्वास था, उसे खारिज करन असंभव था. एक ने तो पूछ ही लिया कि यह पहला मौका था या इस के पहले भी ऐसा हो चुका है. किसी ने पूछा कि क्या वाकई वे दोनों इस रिश्ते के लिए गंभीर हैं या यह सिर्फ टाइमपास है? प्रिया के जवाब देने के पहले ही किसी ने कहा था कि आजकल तो यह सब कौमन हो गया है. वैसे भी, घरपरिवार से दूर कुछ भी कर लो, किसी को क्या पता चलता है?

सिर्फ एक रात में साथ के लोगों की प्रिया की तरफ सोच इस कदर बदल जाएगी, यह तो उस ने सोचा ही नहीं था. बंद दरवाजे के पीछे का सच लोगों के लिए एक बड़ा झूठ था और उसे झुठला पाना असंभव था. मुनीश भी उस की मनोस्थिति समझ रहा था. वह यह भी समझ रहा था कि उस ने प्रिया को उस की बात मानने को मजबूर कर के उस की स्थिति बहुत खराब कर दी है. मुंबई जैसे महानगर में जहां लोग बगल में रहने वाले की खबर नहीं रखते, जहां किसी को किसी से कोई मतलब नहीं होता वहां भी लोग इस तरह सोचते हैं, यह उस ने कहां सोचा था? आश्चर्य यह था कि उन सब की नजरों में प्रिया की छवि बिगड़ी थी. उसे किसी ने कुछ नहीं कहा था और इस बात ने न सिर्फ प्रिया को बल्कि उसे भी आहत किया था.

वापस आने के बाद प्रिया बेहद खामोश हो गई. वह उस के साथ भी रहती, तो चुपचाप उस के हाथों को थामे रहती. एक आशंका, एक अविश्वास उस की आंखों में डगमगाता रहता. न्यू ईयर पार्टी के पहले वह जब तब मुनीश से आगे क्या करना है, कब-कैसे करना है जैसी बातें करती थी लेकिन अब उस का विश्वास इस कदर डांवांडोल हो गया था कि वह भविष्य के बारे में कुछ कहनेबोलनेपूछने से कतराने लगी थी.

मुनीश उस की स्थिति समझ रहा था और जल्दी ही उस ने अपने घर पर प्रिया के बारे में बातचीत की थी. जिस दिन मुनीश ने उसे बताया था कि उस ने मम्मीपापा को बता दिया है कि वह प्रिया को पसंद करता है और उसी से शादी करेगा, प्रिया की आंखें डबडबा आई थीं. उस दिन वह बहुत दिनों बाद कुछ सामान्य महसूस कर रही थी.

प्रिया ने भी इस के बाद अपने मम्मीपापा को मुनीश के बारे में बताने में देर नहीं की. मम्मीपापा तो इस बात से ही खुश थे कि लड़के की बढ़िया नौकरी है और उस की सहमति भी है. प्रिया के मम्मीपापा एक बार मुनीश  के घर जा कर बात भी कर आए थे. जब तक वे वापस नहीं आए, मुनीश पर विश्वास और उस के आश्वस्त  करने के बाद भी प्रिया के दिल में धुकधुकी लगी थी. मम्मीपापा को खुश देख कर उसे तसल्ली मिली थी. मम्मी ने बताया कि मुनीश  ने उन्हें प्रिया के बारे में बता दिया था, उस की फोटो भी दिखाई थी, एक ही शहर में नौकरी होना भी एक अतिरिक्त योग्यता थी.

प्रिया के मम्मीपापा को घरवर दोनों ही अच्छे लगे थे. लड़के को प्रिया खुद 2 वर्षों से जानती थी, इसलिए बहुत छानबीन की जरूरत न थी. उन्होंने परिवार देखभाल लिया था.

आज मुनीश के मातापिता, चाचाचाची, बहन आए थे. यहां आना पूर्वनियोजित था, इसलिए प्रिया भी छुट्टी ले कर आई थी. सभी बड़े उत्साहित थे. मान ही चुके थे कि बात लगभग पक्की है, बस, औपचारिकता बाकी है. सामान्य अभिवादन, आवभगत, घरपरिवार की हैसियत का आकलन कर चुकने के बाद मुनीश के चाचा ने घर से दूर नौकरी करने वाले आजकल के लड़केलड़कियों की दोस्ती, उन की स्वच्छंदता और उच्छृंखलता पर ज्ञान देना शुरू किया तो सभी हतप्रभ रह गए. वे समझ नहीं पाए कि इस सुर का आरोह  किस अवरोह को इंगित कर रहा है. प्रिया के यहां नए साल की पार्टी के बाबत किसी को कुछ पता नहीं था लेकिन अंदर कमरे में बैठी सब सुन रही प्रिया का मन आशंका से कांप गया.

हालांकि वह पसोपेश में थी और समझ नहीं पा रही थी कि यह बात मुनीश  के अलावा कोई और नहीं बता सकता लेकिन मुनीश ने यह बाद आखिर बताई क्यों? क्या अब इस बात पर यह बात खत्म हो जाएगी? क्या वह भी इसी तरह सोचता है? क्या खुद पर विश्वास करने का उस का दावा थोथा था? सिर्फ खुद को तसल्ली दिलाने के लिए कि कोई लड़की उस के लिए कुछ भी कर सकती है. वहां वैसा कुछ हुआ नहीं. लेकिन उसे ले कर बाहर बातचीत में जो कुछ हो रहा है वह प्रिया को आहत किए जा रहा था. मम्मीपापा, भाई, चाचाचाची बिना कुछ जानेसमझे सबकुछ सुने जा रहे थे और अब यह जान कर अवाक थे कि उन की बेटी शादी के पहले मुनीश के साथ बाहर गई थी, एक रात दोनों साथ रुके थे एक कमरे में अकेले. प्रिया ने तो उन्हें यह बात कभी नहीं बताई लेकिन मुनीश ने अपने मातापिता को ऐसी बात क्यों बताई? प्रिया के पापा की घिघियाई सी आवाज आ रही थी जिसे सुन कर प्रिया का खून खौल उठा. उस ने पीछे आंगन में जा कर मुनीश को फोन लगाया.

“हेलो जानेमन, अब तो खुश हो न, जल्दी ही हमतुम एक हो जाएंगे, फिर एक घर एक कमरा,” मुनीश ने आवाज सुनते ही शरारत से कहा.

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