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प्रधानमंत्री मोदी ने बढ़ाया खिलाड़ियों का हौसला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने लोकप्रिय कार्यक्रम “मन की बात” में टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने जा रहे उत्तर प्रदेश के खिलाड़ियों की हौसला अफजाई की.

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में खिलाडियों के जीवन संघर्ष और उससे निकल कर इस मुकाम तक पहुंचने की गाथा को सराहा. उन्होंने कहा कि टोक्यो जा रहे हमारे खिलाड़ियों ने बचपन में साधनों-संसाधनों की हर कमी का सामना किया, लेकिन वो डटे रहे, जुटे रहे | उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की प्रियंका गोस्वामी जी का जीवन भी बहुत सीख देता है |  एक बस कंडक्टर की बेटी  प्रियंका ने बचपन से ही मेडल के प्रति आकर्षण था जिसने उन्हें रेस वाकिंग का चैंपियन बनाया.

प्रधानमंत्री ने बढ़ाया खिलाड़ियों का हौसला

इसी के क्रम में उन्होंने वाराणसी के शिवपाल सिंह का नाम लिया जो जेवलिन थ्रो के खिलाड़ी हैं.  शिवपाल का तो पूरा परिवार ही इस खेल से जुड़ा हुआ है | इनके पिता, चाचा और भाई, सभी भाला फेंकने में पारंगत हैं |     पीएम ने कहा कि परिवार की यही परंपरा उनके लिए टोक्यो ओलंपिक में काम आने वाली है |

   मुख्यमंत्री ने दिया प्रधानमंत्री को धन्यवाद

मुख्यमंत्री योगी ने प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद दिया और कहा कि उन्होंने हमेशा खेलों को बढ़ावा दिया. मुख्यमंत्री ने कहा कि पी एम की प्रेरणा से ही उनकी सरकार ने खेल और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन की नीति अपनाई जिससे अनेक खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि हासिल की.

Kundali Bhagya के ‘पृथ्वी’ हुए ऑनलाइन ठगी का शिकार, लगा 17 हजार का चूना

टीवी एक्टर संजय गगनानी को उनके असली नाम से कम और पृथ्वी नाम से ज्यादा जाने जाते हैं. एकता कपूर के शो कुंडली भाग्य में पृथ्वी के किरदान में नजर आते हैं. उनका विलेन का किरदार लोगों को खूब पसंद आता है.

पृथ्वी का नाम दुनिया के चालाक लोगों में लिया जाता है. जो अपना काम निकलवाने के लिए लोगों के साथ किसी भी हद तक गुजर जाता है. कई बार वह मौका पाते ही लोगों को धोखा भी दे देता है. इन दिनों वह लुथरा हाउस में रह रहा है और उन्हें भी धोखा दे रहा है.

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लेकिन इस बार हम बात कर रहे हैं संजय गगनानी के असल जिंदगी की जो रियल लाइफ में ठगी के शिकार हो गए हैं.संजय ने ऑनलाइन शराब खरीदने की कोशिश की थी जिस दौरान वह ठगी के शिकार हो गए और उन्हें 17 हजार रुपये का चुना लग गया.

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एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि संजय गगनानी से शराब के नाम पर किसी ने पैसे ले लिए लेकिन शराब नहीं पहुंचाया, जब उन्होंने पैसे वापस मांगे तो उस बंदे ने पैसे देने से इंकार कर दिया. इसके अलावा वह आदमी उनसे बार -बार रुपये मांग रहा था, जिससे उन्हें समझ आ गया कि यह आदमी गलत है.

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अगले दिन उन्होंने उस आदमी को दूसरे नं से कॉल किया तो उसने फोन नहीं उठाया. अब इस विषय पर बात करने का कोई फायदा नहीं है मैं पूरी तरह से ठगी का शिकार हो चुका हूं संजय गगनानी ने कहा.

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सीरियल ससुराल सिमर का 2 में अबतक आपे देखा होगा कि आरव सिमर को घर लेकर आ जाता है. लेकिन आरव इस बात को माता जी से छुपाता है. वहीं आरव की  बड़ी माता जी उसका शक्ल भी नहीं देखना चाहती हैं.

जबकी सिमर और आरव की शादी से ओसवाल परिवार के लोग काफी ज्यादा खुश हैं. सभी के मन में यह ख्याल आ रहे हैं कि इस शादी के बाद से आरव और  बड़ी माता जी के बीच मदभेद होने शुरू हो जाएंगे.

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ससुराल सिमर का 2 में आपने देखा आरव सिमर को गुंडों से बचाकर लाता है. घर आकर आरव अपना गुस्सा दिखाते हुए बताता है कि वह उसकी पत्नी कभी नहीं बन सकती है. जिसके बाद वह अकेले सिमर को रूम में छोड़कर चला जाता है. तभी उसे लगातार रीमा का फोन आता है लेकिन वह रीमा का फोन नहीं उठाता है.

दूसरी तरफ रीमा की वजह से विवान काफी ज्यादा परेशान रहने लगता है. जैसै ही आरव की मां को पता चलता है कि सिमर वापस आ चुकी है तो वह चोरी चुपे उसका चूल्हा पूजन करवाती है. अब फिर से चूल्हा पूजन को लेकर फैमली में ड्रामा होने वाला है. दरअसल, चूल्हा पूजन की खबर बड़ी मां को लग जाएगी जिसके बाद से फैमली में बड़ा ड्रामा शुरू हो जाएगा.

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माता जी सिमर को खूब खरीखोटी सुनाएंगी , जिसके बाद से आरव माता जी को सिमर के सपोर्ट में आकर समझाने की कोशिश करेगा, इसी दौरान सिमर को पचा चल जाएगा कि रीमा आरव को बार-बार फोन कर रही है. तभी बिना देर किए सिमर रीमा को फोन करेगी औऱ जमकर खरी खोटी सुनाएगी. ऐसे में सिमर यह भी नसीहत देगी को आरव के साथ उसकी शादी हो चुकी है, अब उसकी बहन को दूर रहना चाहिए. अब देखना है आगे सीरियल में क्या होने वाला है.

ओडीओपी से कामगारों की होगी तरक्‍की, छात्र भी बनेंगे आत्‍मनिर्भर

एकेटीयू से सम्‍बद्ध प्रदेश के तकनीकी एवं प्रबंधन संस्‍थानों में पढ़ने वाले छात्र ओडीओपी से जुड़े हर जिले के उत्‍पाद का एक नई पहचान देंगे. ओडीओपी उत्‍पादों को कैसे तकनीक से जोड़ कर उनको नई पहचान दी जाए. इसे लेकर छात्र अपना आइडियाज देंगे. ओडीओपी विभाग के साथ मिलकर एकेटीयू एक मेगा हैकाथन का आयोजन करने जा रहा है.

अभी हाली ही में ओडीओपी विभाग व एकेटीयू की ओर से लखनऊ की चिकनकारी व जरदोजी को कैसे नई पहचान दिलाई जाए. इस पर हैकाथन का आयोजन किया गया था. इसमें लखनऊ समेत प्रदेश के अन्‍य जिलों के इंजीनियरिंग कॉलेजों के 70 से अधिक छात्रों ने अपने आइडियाज एकेटीयू को भेजे थे. इसमें 5 छात्रों के आइडियाज को फाइनल राउंड में चुना गया था. छात्रों के बेहतर रूझान को देखते हुए अब ओडीओपी प्रदेश के हर जिले के ओडीओपी उत्‍पाद को लेकर मेगा हैकाथन का आयोजित करने की तैयारी कर रहा है. उत्‍तर प्रदेश सरकार के सूक्ष्‍म मध्‍यम एवं लघु उद्योग विभाग व एकेटीयू के बीच ओडीओपी उत्‍पादों को बढ़ावा देने के लिए एक एमओयू हुआ है. जिसके तहत इस कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा.

एक जनपद – एक उत्पाद उत्‍तर प्रदेश सरकार की महत्‍वाकांक्षी योजना है. इसका उद्देश्य प्रदेश के अलग अलग जनपदों में बनने वाले उत्‍पादों को अन्‍तर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर पहचान दिलवाना और कामगारों को रोजगार के अवसर उपलब्‍ध करा कर उन्‍हें आत्‍मनिर्भर बनाना है. उत्‍तर प्रदेश में ऐसे उत्‍पाद बनते हैं, जो पूरे देश में कहीं नहीं बनते हैं. इसमें प्राचीन एवं पौष्टिक कालानमक चावल, फिरोजाबाद का कांच उत्‍पाद, मुरादाबाद का पीतल उद्योग, दुर्लभ एवं अकल्पनीय गेहूं डंठल शिल्प, विश्व प्रसिद्ध चिकनकारी, कपड़ों पर जरी-जरदोजी का काम, मृत पशु से प्राप्त सींगों व हड्डियों से अति जटिल शिल्प कार्य आदि है. इन कलाओं से ही उन जनपदों की पहचान होती है. इनमें से तमाम ऐसे उत्पाद हैं जो अपनी पहचान खो रहे थे. सरकार उनको ओडीओपी के तहत फिर से पहचान दिला रही है.

एमएसएमई से समझौते के बाद एकेटीयू पूरे प्रदेश के हर जिले के ओडीओपी उत्‍पाद को नई पहचान देने के लिए मेगा हैकाथन का आयोजन करेगा. इसमें बीटेक व एमबीए के छात्र-छात्राएं एक जनपद, एक उत्‍पाद योजना से जुड़े उत्‍पादों को कैसे तकनीक से जोड़कर बेहतर बनाया जाए, जिससे वह उत्‍पाद अन्‍तर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर नई पहचान बना सके. इस पर अपने आइडियाज देंगे.

प्रो-एक्टिव नीति से कोरोना की तीसरी लहर का होगा मुकाबला

कोरोना की तीसरी लहर से बच्चों व किशारों को बचाने के लिए प्रदेश सरकार ने कमर कस ली है. उत्तर प्रदेश सरकार ने बच्चों की स्वास्थ्य, सुरक्षा को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से घर-घर मेडिकल किट वितरण का विशेष अभियान शुरू किया है. प्रदेश में रविवार से 75 जनपदों में 50 लाख के करीब मेडिकल किटों का वितरण के कार्य को शुरू किया गया है. करीब 75 हजार निगरानी समितियों की मदद से लक्षण युक्त बच्चों की पहचान का काम भी शुरू कर दिया गया है. कोरोना की पहली और दूसरी लहर में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में निगरानी समितियों ने अहम भूमिका निभाई है. ऐसे में एक बार फिर से सरकार ने इन निगरानी समितियों को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है. बता दें कि तीसरी लहर का डट कर मुकाबला करने के लिए प्रदेश की 3011 पीएचसी और 855 सीएचसी को सभी अत्याधुनिक संसाधनों से लैस किया गया है.

महानिदेशक (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य) डॉ डीएस नेगी ने बताया कि मेडिकल किट के वितरण के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. मेडिकल किट को बच्चों व किशोरों को उनकी उम्र के अनुसार अलग-अलग चार वर्गों में विभाजित किया गया है. नवजात शिशु से लेकर एक साल तक और एक से पांच वर्ष की उम्र के बच्चों की मेडिकल किट में पैरासिटामोल सीरप की दो शीशी, मल्टी विटामिन सीरप की एक शीशी और दो पैकेट ओआरएस घोल रखा गया है. छह से 12 वर्ष की उम्र के बच्चों और 13 से 17 वर्ष की उम्र के किशोरों की मेडिकल किट में पैरासिटामोल की आठ टैबलेट, मल्टी विटामिन की सात टैबलेट, आइवरमेक्टिन छह मिली ग्राम की तीन गोली और दो पैकेट ओआरएस घोल रखा गया है. उन्होंने बताया कि प्रदेश के सभी अस्पतालों में तीसरी लहर को ध्यान में रखते हुए पुख्ता इंतजाम किए जा रहे हैं. अस्पतालों कोई कमी न हो इस बात भी ध्यान रखा जा रहा है.

कोरोना के लक्षणों समेत मौसमी बीमारी से बचाएगी दवाएं

मेडिकल-किट में उपलब्ध दवाईयां कोविड-19 के लक्षणों से बचाव के साथ 18 साल से कम उम्र के बच्चों का मौसमी बीमारियों से भी बचाएंगी. तीसरी लहर से बचाव के लिए सरकार ने प्रदेश में 75000 निगरानी समितियों को जिम्मेदारी सौंपी हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में मेडिकल मेडिसिन किट के वितरण को गति देने के लिए 60 हजार से अधिक निगरानी समितियों के चार लाख से अधिक सदस्यों को लगाया गया है.

 प्रो-एक्टिव नीति के तहत प्रदेश में किया जा रहा काम

प्रदेश में विशेषज्ञों के आंकलन के अनुसार कोरोना की तीसरी लहर से बचाव के संबंध में योगी सरकार प्रो-एक्टिव नीति अपना रही है. सभी मेडिकल कॉलेजों में पीआईसीयू और एनआईसीयू की स्थापना को तेजी से पूरा किया जा रहा है. पीडियाट्रिक विशेषज्ञ, नर्सिंग स्टाफ अथवा टेक्निशियन की जरूरत के अनुसार जिलावार स्थिति का आकलन करते हुए पर्याप्त मानव संसाधन की व्यवस्था युद्धस्तर पर कराई जा रही है. अस्पतालों में बाइपैप मशीन, मोबाइल एक्स-रे मशीन समेत जरूरी उपकरणों की व्यवस्था की जा रही है. बता दें कि प्रदेश में डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ के पहले चरण का प्रशिक्षण का कार्य पूरा हो गया है. इनके जरिए अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है.

प्रदेश में महज 3165 एक्टिव केस

कोरोना संक्रमण के मामलों में उत्तर प्रदेश की स्थिति लगातार बेहतर हो रही है. पिछले 24 घंटों में प्रदेश में संक्रमण के महज 222 नए मामले दर्ज किए गए हैं. प्रदेश में कोविड रिकवरी रेट 98.5 प्रतिशत पहुंच गया है. प्रदेश में अब तक पांच करोड़  70 लाख 85 हजार 424 कोरोना की जांचें की जा चुकी हैं. मिशन जून के तहत निराधृत लक्ष्य को तय समय सीमा से पहले हासिल करने वाले यूपी में अब तक तीन करोड़ चार लाख 51 हजार 330 वैक्सीन की डोज दी जा चुकी हैं.

डेल्टा प्लस पर यूपी के विशेषज्ञ डॉक्टरों रहे तैयार : सीएम योगी

सुनियोजित नीति से कोरोना की पहली और दूसरी लहर पर लगाम लगाने वाले सीएम योगी आदित्यनाथ ने नई चुनौतियों का सामना करने के लिए यूपी में व्‍यवस्‍थाओं को सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं. दूसरे कई राज्यों में कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ‘डेल्टा प्लस’ से संक्रमित मरीजों की पुष्टि होने से सीएम ने अधिकारियों को अलर्ट मोड पर काम करने के निर्देश दिए हैं. जिसके तहत अब प्रदेश में कोविड के डेल्टा प्लस वैरिएंट की गहन पड़ताल के लिए अधिकाधिक सैम्पल की जीनोम सिक्वेंसिंग की जाएगी. प्रदेश में जीनोम सिक्वेंसिंग की सुविधा के लिए केजीएमयू और बीएचयू में सभी जरूरी व्यवस्थाएं उपलब्ध कराने के निर्देश सीएम ने आला अधिकारियों को दिए हैं. बता दें कि साल 2021 की शुरुवात में ही सरकार ने कोरोना संक्रमण के नए स्‍ट्रेन को ध्यान में रखते हुए लखनऊ के किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय (केजीएमयू) में जीन सीक्‍वेंसिंग की जांच को शुरू करने का फैसला लिया था. वायरस के नए स्‍ट्रेन की पहचान समय से करने के लिए जीन सीक्‍वेंसिंग की जांच केजीएमयू में जनवरी में ही शुरू कर दी गई थी.

प्रदेश में आने वाले सभी यात्रियों के आरटीपीसीआर टेस्ट के सैंपल से जीन सिक्वेंसिंग कराई जाएगी. रेलवे, बस , वायु मार्ग से प्रदेश में आ रहे लोगों के सैम्पल लेकर जीन सिक्वेंसिंग टेस्ट किया जाएगा. इसके साथ ही प्रदेश के जिलों से भी कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ‘डेल्टा प्लस’ के सैंपल लिए जाएंगे. रिपोर्ट के परिणाम स्वरूप डेल्टा प्लस प्रभावी क्षेत्रों की मैपिंग कराई जाने के आदेश सीएम ने दिए हैं.

डेल्टा प्लस पर विशेषज्ञ डॉक्टरों ने तैयार की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में विशेष सतर्कता बरतते हुए समय रहते ही सरकार ने ठोस रणनीति बना ली है. विशेषज्ञों के अनुसार इस बार का वैरिएंट पहले की अपेक्षा कहीं अधिक खतरनाक है. राज्य स्तरीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ परामर्श समिति ने इससे बचाव के लिए विस्तृत अनुशंसा रिपोर्ट तैयार की है. राज्य स्तरीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ परामर्श समिति की रिपोर्ट के अनुसार दूसरे आयु वर्ग के लोगों की अपेक्षा इस नए वैरिएंट का दुष्प्रभाव बच्चों पर कहीं अधिक हो सकता है. सीएम ने विशेषज्ञों के परामर्श के अनुसार बिना देर किए सभी जरूरी कदम उठाए जाने के आदेश अधिकारियों को दिए हैं. राज्य स्तरीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ परामर्श समिति के सदस्यों व अन्य वरिष्ठ चिकित्सकों के जरिए जनजागरूकता का कार्य भी किया जाएगा.

बीएचयू और केजीएमयू ने संभाली कमान

किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय केजीएमयू के साथ ही बनारस के बीएचयू में जीन सीक्‍वेंसिंग की जांच शुरू की गई है. यूपी में अभी तक जीन सीक्‍वेंसिंग जांच के लिए सैंपल को पुणे भेजा जाता था पर अब प्रदेश में जांच शुरू होने से प्रदेश के बाहर स्थ्ति दूसरे संस्‍थानों में सैंपल नहीं भेजने पड़ेंगे. बता दें कि यूपी की पहली कोरोना टेस्‍ट लैब भी केजीएमयू में शुरू हुई थी.

जीन सीक्‍वेंसिंग अनिवार्य, दो हफ्तों में आएगी रिपोर्ट

अभी तक यूपी में आने वाले यात्रियों की  एंटीजन और आरटीपीसीआर जांच कोरोना वायरस की पुष्टि के लिए कराई जा रही थी पर अब प्रदेश के सभी यात्रियों के आरटीपीसीआर सैंपल से जीनोम सिक्वेंसिंग कर ‘डेल्टा+’ की जांच को अनिवार्य कर दिया गया है. पॉजिटिव मरीज में कौन सा स्‍ट्रेन मौजूद है इसकी जांच के लिए जीन सीक्‍वेंसिंग की जांच को अनिवार्य किया गया है. ‘डेल्टा प्लस’ की रिपोर्ट दो हफ्तों में आती है.

11 देशों में पाए गए 197 केस, भारत में आठ

जून 16 तक दुनिया के 11 देशों में 197 केस सामने आए जिसमें ब्रिटेन, भारत, कनाडा, जापान,नेपाल, पोलैंड,तौरकी यूएस समेत अन्य देश शामिल हैं. जिसमें भारत में आठ केस की पुष्टि की गई है.

माइक्रोबायोलॉजी विभाग की अध्‍यक्ष डॉ अमिता जैन ने बताया कि प्रदेश में मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ के निर्देशानुसार लैब को एडवांस बनाते के लिए पहले से उपलब्‍ध संसाधनों के जरिए नई जांच को सबसे पहले केजीएमयू में शुरू किया गया था. संस्‍थान की जीन सीक्‍वेंसर मशीन से इस जांच से सिर्फ वायरस के स्‍ट्रेन की पड़ताल की जाएगी. इसके लिए लैब में कोरोना पॉजिटिव आए मरीजों के रैंडम सैंपल लिए जाएंगे.

टीकाकरण और जांच में उत्तर प्रदेश ने पकड़ी रफ्तार

उत्तर प्रदेश के जनपदों में कराए गए सीरो सर्वे के शुरुवाती नतीजे सकारात्मक आए हैं. प्रदेश में कराए गए सीरो सर्वे के शुरुआती नतीजों के मुताबिक सर्वेक्षण में लोगों में हाई लेवल एंटीबॉडी की पुष्टि हुई है. बता दें कि प्रदेश में चार जून से सभी जनपदों में सीरों सर्वे को शुरू किया गया था  सीरो सर्वे प्रदेश के सभी 75 जिलों में किया गया. सर्वे के जरिए किस जिले के किस क्षेत्र में कोरोना का कितना संक्रमण फैला और आबादी का कितना हिस्सा संक्रमित हुआ इसकी पड़ताल इस सर्वे से की गई. इसके साथ ही इस सर्वे के जरिए कितने लोगों में कोरोना से लड़ने के लिए एंटीबाडी बन चुकी है इसकी जानकारी एकत्र की गई है. ऐसे में सीरो सर्वे के शुरुवाती नतीजे सकारात्मक आना प्रदेशवासियों के लिए राहत भरी खबर है.

टीकाकरण और जांच में रफ्तार पकड़ते हुए नए वेरिएंट डेल्टा प्लस की जांच को अनिवार्य करते हुए युद्धस्तर पर कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के लिए जमीनी स्तर पर तैयारियों को अंतिम रूप प्रदेश में दिया जा रहा है. प्रदेश में एक्टिव केस की संख्या में कमी होने की बावजूद भी प्रदेश में ट्रिपल-टी की रणनीति पर कार्य किया जा रहा है. प्रदेश में संक्रमण दर 0.1 प्रतिशत से भी कम स्तर पर आ चुकी है, जबकि रिकवरी रेट 98.5 प्रतिशत पहुंच गया है. बता दें कि ज्यादातर जिलों में संक्रमण के नए केस इकाई की संख्या  में दर्ज किए जा रहे हैं, तो 50-52 से अधिक जिलों में 50 से कम एक्टिव केस ही रह गए हैं. प्रदेश में अब कुल एक्टिव केस की संख्या 3,423 है.

पिछले 24 घंटों में एक ओर जहां दो लाख 69 हजार 272 सैम्पल की जांच की गई, वहीं मात्र 226 नए पॉजिटिव केस सामने आए. उत्तर प्रदेश में अब तक 05 करोड़ 65 लाख 40 हज़ार 503 कोविड टेस्ट किए जा चुके हैं. प्रदेश में अब तक कुल 16 लाख 79 हजार 416 प्रदेशवासी कोरोना से लड़ाई जीत कर स्वस्थ हो चुके हैं.

सितंबर में हुआ था सीरो सर्वे

कोरोना की पहली लहर के दौरान पिछले साल सितंबर में 11 जिलों में सीरो सर्वे कराया गया था. यह सर्वे लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, गोरखपुर, आगरा, प्रयागराज, गाजियाबाद, मेरठ, कौशांबी, बागपत व मुरादाबाद में हुआ था.

मिशन जून के तहत निर्धारित समय से पाया यूपी ने लक्ष्य

मिशन जून के तहत एक माह में एक करोड़ प्रदेशवासियों के टीकाकरण के निर्धारित लक्ष्य को यूपी सरकार ने 24 जून को ही प्राप्त कर लिए. निशुल्क टीकाकरण अभियान के तहत प्रदेश में अब  प्रतिदिन सात लाख से अधिक डोज दी जा रही हैं. अब तक 02 करोड़ 90 लाख से अधिक वैक्सीन डोज लगाए जा चुके हैं. करीब 42 लाख लोगों ने टीके के दोनों डोज प्राप्त कर लिए हैं. एक जुलाई से हर दिन न्यूनतम 10 लाख लोगों को टीका-कवर देने का लक्ष्य यूपी सरकार ने निर्धारित किया है. विकास खंडों को क्लस्टर में बांटकर वैक्सीनेशन की नीति के अच्छे परिणाम प्रदेश में देखने को मिले हैं. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर यह एक तिहाई विकास खंडों में लागू है  अब सरकार जल्द ही एक जुलाई से इसे पूरे प्रदेश में लागू करेगी.

ईर्ष्या-भाग 1 : निशा और प्रेमलता की दोस्ती दुश्मनी में क्यों बदलने लगी

निशा को डाक्टर ने जब यह बताया कि पेट में ट्यूमर है तथा आपरेशन कराना बेहद जरूरी है वरना वह कैंसर भी बन सकता है तो पति आयुष के साथ वह भी काफी घबरा गई थी. सारी चिंता बच्चों को ले कर थी. वरुण और प्रज्ञा काफी छोटे थे, उस की इस बीमारी का लंबे समय तक चलने वाला इलाज तो उस के पूरे घर को अस्तव्यस्त कर देगा.

सच पूछिए तो जब यह महसूस होता है कि हम अपाहिज होने जा रहे हैं या हमें दूसरों की दया पर जीना है तो मन बहुत ही कुंठित हो उठता है.

परिवार में सास, ननद, देवर, जेठ सभी थे पर एकाकी परिवारों में सब के सामने उस जैसी ही समस्या उपस्थित थी. कौन अपना घरपरिवार छोड़ कर इतने दिनों तक उस के घर को संभालेगा?

अपने आपरेशन से भी अधिक निशा को अपने घरसंसार की चिंता सता रही थी. यह भी अटल सत्य है कि पैर चाहे चिता में रखे हों पर जब तक सांस है तब तक व्यक्ति सांसारिक चिंताओं से मुक्त नहीं हो पाता.

आसपड़ोस के अलावा निशा ने अखबार में भी विज्ञापन देखने शुरू कर दिए तथा ‘आवश्यकता है एक काम वाली की’ नामक विज्ञापन अपना पता देते हुए प्रकाशित भी करवा दिया. विज्ञापन दिए अभी हफ्ता भी नहीं बीता था कि एक 21-22 साल की युवती घर का पता पूछतेपूछते आई. उस ने अपना परिचय देते हुए काम पर रखने की पेशकश की थी और अपने विषय में कुछ इस प्रकार बयां किया था :

‘‘मेरा नाम प्रेमलता है. मैं बी.ए. पास हूं. 3 साल पहले मेरा विवाह हुआ था पर पिछले साल मेरा पति एक दुर्घटना में मारा गया. संतान भी नहीं है. ससुराल वालों ने मुझे मनहूस समझ कर घर से निकाल दिया है. परिवार में अन्य कोई न होने के कारण मुझे भाई के पास रहना पड़ रहा है पर भाभी अब मेरी उपस्थिति सह नहीं पा रही है…वहां तिलतिल कर मरने की अपेक्षा मैं कहीं काम करना चाह रही हूं…1-2 स्कूलों में पढ़ाने के लिए अरजी भी दी है पर बात बनी नहीं, अब जब तक कोई अन्य काम नहीं मिल जाता, यही काम कर के देख लूं सोच कर चली आई हूं… भाई के घर नहीं जाना चाहती…काम के साथ रहने के लिए घर का एक कोना भी दे दें तो मैं चुपचाप पड़ी रहूंगी.’’

उस की साफगोई निशा को बहुत पसंद आई. उस ने कुछ भी नहीं छिपाया था. रुकरुक कर खुद ही सारी बातें कह डाली थीं. निशा को भी जरूरत थी तथा देखने में भी वह साफसुथरी और सलीकेदार लग रही थी. अत: उस की शर्तों पर निशा ने हां कर दी.

निशा को जब महसूस हुआ कि अब इस के हाथों घर सौंप कर आपरेशन करवा सकती हूं तब उस ने आपरेशन की तारीख ले ली.

नियत तिथि पर आपरेशन हुआ और सफल भी रहा. सभी नातेरिश्तेदार आए और सलाहमशवरा

दे कर चले गए. प्रेमलता ने सबकुछ इतनी अच्छी तरह से संभाल लिया था कि किसी को उस ने जरा भी शिकायत का मौका नहीं दिया. जातेजाते सब उस की तारीफ ही करते गए. फिर भी कुछ ने यह कह कर नाराजगी जाहिर की कि ऐसे समय में भी तुम ने हमें अपना नहीं समझा बल्कि हम से ज्यादा एक अजनबी पर भरोसा किया.

वैसे भी आदरयुक्त, प्रिय और आत्मीय संबंध तो आपसी व्यवहार पर आधारित रहते हैं पर परिवार में सब से बड़ी होने के नाते किसी को भी खुद के लिए कष्ट उठाते देखना निशा के स्वभाव के विपरीत था अत: अपनी तीमारदारी के लिए किसी को भी बुला कर परेशान करना उसे उचित नहीं लगा था पर वे ऐसी शिकायत करेंगे, उसे आशा नहीं थी. शायद कमियां निकालना ही ऐसे लोगों की आदत रही हो.

ऐसी शिकायत करने वाले यह भूल गए थे कि ऐसी स्थिति आने पर क्या वह सचमुच अपना घर छोड़ कर महीने भर तक उस के घर को संभाल पाते…जबकि डाक्टरों के मुताबिक उसे 6 महीने तक भारी सामान नहीं उठाना था क्योंकि गर्भाशय में संक्रमण के कारण ट्यूमर के साथ गर्भाशय को भी निकालना पड़ गया था. ऐसे वक्त में लोगों की शिकायत सुन कर एकाएक ऐसा लगा कि वास्तव में रिश्तों में दूरी आती जा रही है, लोग करने की अपेक्षा दिखावा ज्यादा करने लगे हैं.

सच, आज की दुनिया में कथनी और करनी में बहुत

अंतर आ गया है…कार्य व्यस्तता या दूरी के कारण संबंधों में भी दूरी आई है…इस में कोई संदेह नहीं है…उन के व्यवहार से मन खट्टा हो गया था.

प्रेमलता की उचित देखभाल ने निशा को घर के प्रति निश्ंिचत कर दिया था. वरुण और प्रज्ञा भी उस से हिल गए थे. शाम को उस को पार्क में घुमाने के साथ उन का होमवर्क भी वह पूरा करा दिया करती थी.

जाने क्यों निशा प्रेमलता के प्रति बेहद अपनत्व महसूस करने लगी थी… आयुष के आफिस जाने के बाद वह साए की तरह उस के आगेपीछे घूमती रहती, उस की हर आवश्यकता का खयाल रखती. एक दिन बातोंबातों में प्रेमलता बोली, ‘‘दीदी, आप के पास रह कर लगता ही नहीं है कि मैं आप के यहां नौकरी कर रही हूं. सास और भाई के घर मैं इस से ज्यादा काम करती थी पर फिर भी उन्हें मैं बोझ ही लगती थी…दीदी, वे मेरा दर्द क्यों नहीं समझ पाए, आखिर पति के मरने के बाद मैं जाती तो जाती कहां? सास तो मुझे हर वक्त इस तरह कोसती रहती थी मानो उस के बेटे की मौत का कारण मैं ही हूं. दुख तो इस बात का था कि एक औरत हो कर भी वह औरत के दुख को क्यों नहीं समझ पाई?’’

आंखों में आंसू भर आए थे…रिश्तों में आती संवेदनहीनता ने प्रेमलता को तोड़ कर रख दिया था…यहां आ कर उसे सुकून मिला था, खुशी मिली थी अत: उस की पुरानी चंचलता लौट आई थी. शरीर भी भराभरा हो गया था. निशा भी खुश थी, चलो, जरूरत के समय उसे अच्छी काम वाली के साथसाथ एक सखी भी मिल गई है.

बढ़ती आत्महत्याएं, गहराती चिंताएं

सरकार ने जनता को विध्वंस के कगार पर खड़ा कर दिया है. चारों ओर डर व दहशत का माहौल है. अर्थव्यवस्था चकनाचूर है. लोगों की नौकरियां छिन गई हैं. इस विध्वंस से जन्मी घनघोर निराशा व अवसाद के चलते आत्महत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ने लगी हैं जो देश को गहराते अंधकार की तरफ धकेलती जा रही हैं. डाक्टर बनने का सपना देख मैडिकल कोर्स में प्रवेश करने वाली आदिवासी छात्रा स्नेहा ने 20 मई को घर में फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. 21 वर्षीया स्नेहा भिवजी हिचामी गढ़चिरौली जिले के घोट गांव की रहने वाली थी. दिन के 2 बजे के आसपास स्नेहा ने अपने घर के खाली कमरे में लगे पंखे के हुक में नायलौन की रस्सी बांध कर आत्महत्या की. स्नेहा सरकारी मैडिकल कालेज चंद्रपुर में एमबीबीएस द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी.

उस के पिता पुलिस अधिकारी हैं और उस के परिवार में मां और एक भाई हैं. सुसाइड करने से पहले स्नेहा ने कमरे की दीवार पर इंग्लिश में बड़े अक्षरों में डिप्रैशन लिखा था. वह उदास थी और अवसाद में थी. आशंका है कि कोरोना की स्थिति, लगातार लौकडाउन और खराब पाठ्यक्रम कार्यक्रम ने उसे ऐसा करने को मजबूर किया था. वह डाक्टर न बन पाने की संभावनाओं से घबराई हुई थी. इसी प्रकार नोएडा में भी एक सौफ्टवेयर इंजीनियर ने अपने घर पर आत्महत्या कर ली. मामला सैक्टर 74 स्थित अजनारा हैरिटेज हाउसिंग सोसाइटी का था. पुलिस के मुताबिक, तबरेज अपनी पत्नी के साथ जामिया नगर में रह रहा था और नोएडा के अजनारा आवासीय परिसर में एक फ्लैट का मालिक था.

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वह सोसाइटी में छठी मंजिल पर किराएदार से मिलने आया था. लेकिन 12वीं मंजिल पर जा कर अपना लैपटौप बैग में रखा और फिर कूद कर जान दे दी. आखिरी बार तबरेज ने अपनी पत्नी से बात की थी. यह आत्महत्या भी गहरे अवसाद के चलते हुई. रिपोर्ट के मुताबिक उसी दिन 24 घंटे के भीतर अकेले नोएडा में 9 युवाओं ने अलगअलग कारणों से अवसाद में घिर कर आत्महत्या की. ऐसे ही, 30 अप्रैल को भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएस) बेंगलुरु के 21 वर्षीय स्नातक छात्र रोहन ने अपने कमरे में फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. पुलिस के अनुसार, वह परेशान था और अवसाद से घिरा था क्योंकि वह विदेश में अपनी पढ़ाई के सपने को पूरा नहीं कर पाया था. वहीं मार्च के अंत में मध्य प्रदेश के रीवां जिला निवासी 26 वर्षीय उमंग शर्मा ने बेरोजगार होने के चलते आत्महत्या कर ली. नौकरी न होने के चलते मानसिक तनाव में आ कर उमंग शर्मा ने कमरे में पंखे के कुंडे से फंदा लगा कर आत्महत्या की.

इंदौर की एमबीबीएस के फाइनल वर्ष की छात्रा नित्या ने प्रशासन के रवैए से परेशान हो कर अपने होस्टल के कमरे में पंखे से लटक कर फांसी लगा कर मौत को गले लगा लिया. कोटा में परीक्षा में असफल होने के कारण एक छात्र ने कीटनाशक पी कर जीवन समाप्त किया. कानपुर आईआईटी के प्रतिभाशाली छात्र ने तनाव के कारण फांसी लगाई. प्रयागराज में प्रतियोगी परीक्षा में असफल हो जाने के कारण 15 दिनों में 5 छात्रों ने आत्महत्याएं कीं. पिछले दिनों तेलंगाना के 20 छात्रों द्वारा आत्महत्याएं किए जाने की खबर आई थी. कारण, तकनीकी खराबी की वजह से बच्चों का परीक्षा परिणाम ठीक से नहीं आने के कारण निराश बच्चों ने ऐसा कदम उठाया. अहमदाबाद की आयशा, इंदौर के भय्यू महाराज (धर्मोपदेशक), फिल्म जगत के बहुचर्चित सुशांत सिंह राजपूत, टीवी आर्टिस्ट प्रत्यूषा बनर्जी, कैफे डे के मालिक वी जी सिद्धार्थ, युवा कवयित्री एकादशी त्रिपाठी आदि कई नाम हैं.

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ऐसी खबरें रोज ही अखबारों और न्यूज चैनलों की सुर्खियां बनती हैं. कुछ दिनों तक रोनाधोना, फिर सब शांत. दुनियाभर में होने वाली आत्महत्याओं में भारतीय महिलाओं की संख्या एकतिहाई से अधिक और पुरुषों की संख्या लगभग एकचौथाई है. हमारे देश में ऐसी घटनाओं की दर वैश्विक औसत से भी ज्यादा है. आजकल देखा जा रहा है कि लोगों में किन्हीं भी कारणों से अपनी जान देने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है. भारतवर्ष में शिक्षा से उम्मीद की जाती है कि भविष्य में नौकरी के अच्छे मौके के साथ सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक तौर पर बेहतर पृष्ठभूमि तैयार हो सकेगी. अर्थात शिक्षा को रोजगार की कुंजी सम झा जाता है. परंतु भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर्याप्त नौकरियों के विकल्प तैयार करवाने में असफल रही है. भविष्य में जौब की कमजोर होती संभावनाओं के कारण छात्रों पर लगातार बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव बढ़ता जा रहा है. पढ़ाई के दौरान जो मिलने वाला आनंद और मौजमस्ती थी उस से छात्र वंचित हो रहे हैं.

लगातार बढ़ते तनाव के कारण छात्रों में सामाजिक जुड़ाव के प्रति अनिच्छा पैदा हो रही है. यही वजह है कि वे खुल कर लोगों के साथ मिलना पसंद नहीं करते और अकेलेपन के कारण जल्दी अवसाद से पीडि़त हो जाते हैं. बेरोजगारी कई समस्याओं की जड़ है. परंतु रोजगार में लगे युवाओं के मन में पलती निराशा के भी भयानक परिणाम दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसी घटनाएं, दरअसल, रोजगार में होने वाली मुश्किलों के कारण लोगों में बढ़ती निराशा और अवसाद का खुलासा करती हैं. हालांकि, देश में कई अन्य कारणों से भी आत्महत्या करने वालों की संख्या बढ़ रही है. हमेशा से अवैध संबंधों के संदेह में या समाज में बदनामी के कारण या फिर प्रेम प्रसंगों में नाकामी मिलने के कारण हर वर्ष हजारों की संख्या में युवा मौत को गले लगाते रहे हैं. परंतु रोजगार में सफल व्यक्ति सुशांत सिंह राजपूत जैसे लोग भी आत्महत्या कर लें या फिर अवसाद में चले जाएं तो यह बात हमारे समाज के लिए चिंता का विषय हो जाती है. समाजशास्त्रियों का कहना है कि आजकल का युवा अपनी महत्त्वाकांक्षाओं और कठोर यथार्थ में सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा है. आधुनिक जीवनशैली और नई संस्कृति की चमकदमक उन्हें लुभाती है, लेकिन उस के लिए संसाधन जुटाने का अवसर उन्हें हमारी व्यवस्था में सहज और आसान ढंग से नहीं मिल पाता. फिर निराश युवा के मन में अवसाद के कारण आत्मघात का विचार हावी हो जाता है. इस समय युवा बेहद कठिन दौर से गुजर रहे हैं.

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इस दुनिया में अपनेआप को प्रतिस्पर्धा में बनाए रखने के लिए उन्हें दिनरात कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. पर जब इतना कुछ करने के बाद भी उन्हें मनचाहा परिणाम नहीं मिल पाता तो वे अवसाद से पीडि़त हो कर आत्मघात का विचार करने लगते हैं. प्रयागराज में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए लाखों की संख्या में छात्र अपने घर से दूर कोचिंग सैंटरों या प्राइवेट होस्टल में रह कर पढ़ाई करते हैं. पिछले दिनों आत्महत्या के कई मामले सामने आए हैं. नौकरियों में अवसरों की कमी, परीक्षाओं का समय पर न होना, हो जाने पर भी परिणाम समय पर नहीं आना, पेपर लीक हो जाना, परीक्षा स्थगित हो जाना जैसी परिस्थितियों के कारण छात्र फ्रस्ट्रेशन के शिकार हो जाते हैं. कर्मचारी चयन आयोग, उत्तर प्रदेश माध्यमिक सेवा चयन बोर्ड, उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग जैसी संस्थाओं की भरती प्रक्रिया में 3 से 4 वर्षों तक का समय लग रहा है. 2017 और 2018 की भरती प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हो सकी है. उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड ने पिछले 4 वर्षों में किसी नई भरती की घोषणा नहीं की है.

नीलेश चौहान बताते हैं कि लेटलतीफी तो एक समस्या है ही, पिछले कई वर्षों से शायद ही कोई परीक्षा हुई हो जो कोर्ट के चक्कर में न फंसी हो. यह सोचने की बात है कि जो छात्र उम्मीद लगाए हुए 6-7 वर्ष लगा देता है और फिर भी असफलता मिले और नौकरियों में भी कमी होती रहे तो फिर भविष्य अंधकारमय दिखना स्वाभाविक है. आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर वे छात्र होते हैं जो किसी परीक्षा में फेल हो जाते हैं या फिर प्रतियोगी परीक्षा में असफल हो जाने के कारण अवसाद की वजह से आत्महत्या का कदम उठाते हैं. युवावस्था आज एक संक्रमणकाल जैसी है, जिस में युवाओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है विशेषरूप से कैरियर, जौब, रिश्ते, खुद की इच्छाएं, पेरैंट्स की इच्छाएं और सपने वहीं व्यक्तिगत समस्याएं, जैसे लव अफेयर, मैरिज, सैटलमैंट, भविष्य की पढ़ाई आदि. जब वे किसी तरह इन सब से उबरते हैं तो बेरोजगारी का शिकार बन जाते हैं और भविष्य के प्रति अनिश्चितता सामने दिखाई पड़ती है. अपरिपक्वता के कारण डिप्रैशन, एंग्जायटी आदि से यदि किसी तरह बाहर निकल भी आएं तो परिवार की जरूरत से ज्यादा अपेक्षाओं के बो झ तले दब जाते हैं. फिर अर्थहीन प्रतिस्पर्धा और सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों में गिरावट, परिवार का टूटना, अकेलापन धीरेधीरे उन्हें आत्महत्या की ओर प्रेरित करते हैं. बेरोजगारी कई समस्याओं की जड़ है.

परंतु रोजगार में लगे युवाओं की निराशा के भी भयानक परिणाम दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसी घटनाएं असल में रोजगार की मुश्किलों के कारण लोगों में बढ़ती निराशा और अवसाद का खुलासा करती हैं. ऐसा भी देखने में आता है कि युवा अपनी नौकरियों से संतुष्ट नहीं होते या फिर नौकरियों में जिस तरह का दबाव और तनाव रहता है उस को नहीं झेल पाते और फिर उस में लोगों का इस तरह का अतिवादी कदम उठा लेना आश्चर्यजनक होने के बावजूद अस्वाभाविक नहीं लगता. इसी दबाव या तनाव के कारण युवा या तो जल्दीजल्दी नौकरी बदलते हैं या फिर किसी दूसरे रोजगार की ओर मुड़ जाना चाहते हैं और जब सफल नहीं होते तो आत्महत्या करने या अवसाद झेलने जैसे विकल्प ही उन के लिए बचते हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2014-2016 के बीच 26,476 छात्रों ने आत्महत्या की, इन में 7,462 छात्रों ने विभिन्न परीक्षाओं मे फेल हो जाने के डर से आत्महत्या की थी. बच्चों की बढ़ती आत्महत्या भारतीय शिक्षा व्यवस्था कार्यप्रणाली पर प्रश्न खड़े करती है.

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट ‘विश्व रोजगार एवं सामाजिक आउटलुक ट्रैंड्स 2018’ कहती है कि लगभग 77 प्रतिशत भारतीय कामगारों की नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है, साथ ही, 1.89 करोड़ भारतीयों के बेरोजगारी के भंवर में फंसने का डर है. लौन्सेट पब्लिक हैल्थ के अनुसार, वर्ष 2016 में सर्वाधिक आत्महत्याएं भारत में हुईं. पूरे विश्व में 8,17,000 लोगों ने खुदकुशी की थी, जबकि भारत में अकेले यह संख्या 2,30,314 थी. रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पुरुष और महिलाओं दोनों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है. इस समय कानून व्यवस्था लागू करने वालों ने नागरिकों की सुरक्षा के अपने कर्तव्य को त्याग दिया है. न्यायिक प्रतिष्ठान और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया भी सरकारी भोंपू बन कर रह गए हैं. बिना रोकटोक के सामाजिक तनाव की आग देशभर में फैलती जा रही है. सांप्रदायिक हिंसा की हर घटना गांधी के भारत के लिए धब्बा है. जब हमारी अर्थव्यवस्था खराब दौर से गुजर रही है तो सामाजिक तनाव का असर यह होगा कि आर्थिक मंदी तेज हो जाएगी. आर्थिक विकास का आधार सामाजिक सौहार्द है जो इस समय खतरे में दिखाई पड़ रहा है.

कौर्पोरेट को प्रोत्साहन देने के कारण विदेशी निवेशक पैसा लगाने के लिए प्रेरित नहीं होंगे. निवेश न आने का मतलब है नौकरियां और आय न होना. इस का नतीजा होता है खपत और मांग की कमी. खपत की कमी निवेशकों को हतोत्साहित करेगी. यह एक ऐसा कुचक्र है जिस में हमारी अर्थव्यवस्था फंस कर रह गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सब से बड़ी विफलता यह है कि उन्होंने विकास की बातें तो बहुत कीं लेकिन विकास संरचना वे नहीं बना सके. भ्रष्टाचार रोकने के लिए अधिकारियों पर पार्टी के मंत्रियों से ज्यादा भरोसा किया जबकि ज्यादातर मंत्री अपना स्वतंत्र चेहरा बनाने और सरकार की नीतियों को निचले स्तर तक ले जाने में विफल रहे. कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था की हालत और भी नाजुक अवस्था में पहुंच गई है. भारत में बेरोजगारी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारतीय रेलवे ने 63 हजार नौकरियां निकालीं तो एक करोड़ 90 लाख लोगों ने आवेदन किए.

देश के सरकारी बैंकों का एनपीए इतना बढ़ गया है कि अब वे कौर्पोरेट लोन देने से बच रहे हैं. अर्थव्यवस्था की यह गिरावट महज कोरोना के कारण ही नहीं है, बल्कि इस से पहले ही लगातार आर्थिक विकास दर में गिरावट दर्ज हो रही थी. जनवरी से मार्च 2020 तक यह 3.2 तक पहुंच गई थी. परंतु अनियोजित लौकडाउन और कोरोना से निबटने में सरकार की असफलता ने इस गिरावट को तेज कर दिया. अर्थशास्त्रियों के अनुसार, इस गिरावट की मूल वजह 2016 की नोटबंदी और कुछ महीनों बाद ही बेहद गलत तरीके से लागू किया गया जीएसटी है. विपक्षी पार्टियों के प्रति आक्रामक रवैए के कारण मोदी की नीतियों को राज्य सरकारों और जिला स्तर के नेताओं का भी समर्थन नहीं मिला. मोदी से निराश उन के समर्थक लोगों का कहना है कि मोदीजी ने बहुत सारे वादे तोड़े हैं और अर्थव्यवस्था को सुधारने में नाकाम रहे हैं. विरोधी उन पर देश को बांटने, धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण और विपक्ष को दबाने का आरोप भी लगाते हैं. वहीं, सरकार का विरोध करने वाले को सरकार द्वारा देशद्रोही बताने में जरा भी देर नहीं लगती.

आज की सचाई यह है कि एसएससी, यूपीएससी, रेलवे भरती, सिपाही भरती से ले कर अलगअलग राज्यों के चयन आयोगों तक हर जगह युवकों को छला जा रहा है. सरकारी विभागों में कम से कम 24 लाख पद खाली पड़े हैं परंतु नौकरी निकालने के बजाय सरकार पदों को ही समाप्त कर रही है. नौकरी का विज्ञापन आ भी जाए तो परीक्षा करवाने में ही सालोंसाल लगा दिए जाते हैं. लगभग हर भरती परीक्षा में छात्रों को नेताओं, अफसरों, मीडिया वालों और वकीलों के चक्कर लगाने पड़ते हैं. यदि कहीं परीक्षा में सफल भी हो गए तो नियुक्ति में बेमतलब की देरी की जाती है और यदि युवा लोकतांत्रिक ढंग से प्रदर्शन करे तो यह असंवेदनशील सरकार न ही सुनती है न ही संवाद करती है. देश में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. ऐसे आंकड़े सरकारी एजेंसियां ही जारी किया करती हैं. ये इसलिए ज्यादा चौंकाते हैं क्योंकि अब महिलाओं के मुकाबले पुरुष ज्यादा बड़ी तादाद में आत्महत्या कर रहे हैं. इस में युवाओं का प्रतिशत ज्यादा है. हैरानी यह है कि देश के विकसित कहे जाने वाले राज्यों, मसलन पंजाब और हरियाणा में आत्महत्याओं का प्रतिशत देश के औसत से कहीं ज्यादा है.

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में एक शोध के लेखक पीटर जोंस कहते हैं, ‘‘ऐसा लगता है कि युवाओं में खुद को नुकसान पहुंचाने और आत्महत्या करने का आंकड़ा तेजी से बढ़ता जा रहा है. यह भी कहा जा रहा है कि आजकल युवाओं में धैर्य की कमी होती जा रही है जिस वजह से हालात से जू झने का उन का जोश ठंडा पड़ गया है.’’ आत्महत्या की बढ़ती संख्या के साथ अफसोस की बात यह भी है कि पूरे देश में सिर्फ 44 सुसाइड हैल्प सैंटर हैं. इन में भी सिर्फ 9 सैंटर ऐसे हैं जो चौबीसों घंटे खुले रहते हैं. इतना ही नहीं, कोई एक ऐसा नंबर भी नहीं है जो इन हैल्प सैंटरों को आपस में जोड़ सके. इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि मानसिक विकारों से ग्रस्त लोगों की संख्या और आत्महत्या करने वालों की संख्या में इजाफा होने के बावजूद सरकार के पास इस से निबटने का या इस की संख्या में कमी लाने के लिए कोई कारगर उपाय मौजूद नहीं है. यदि आप को मदद की आवश्यकता है तो:

औल इंडिया टोलफ्री हैल्पलाइन नं- कनैक्ंिटग इंडिया -1800 2094353 (दोपहर 12.00 से शाम 8 बजे तक).

टाटा इंस्टिट्यूट औफ सोशल साइंसेज – आई कौल टैलीफोन आधारित परामर्श- 022-25521111 (सोमवार से शनिवार, सुबह 8 बजे से रात्रि 10 बजे तक).

ईमेल आधारित परामर्श द्बष्ड्डद्यद्य ञ्चह्लद्बह्यह्य.द्गस्रह्व चैट आधारित परामर्श. आज आवश्यकता इस बात की है कि सरकार आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारणों की गहराई से पड़ताल करे और प्राथमिक जिम्मेदारी के तौर पर ऐसे उपाय करे कि लोग अपनी जीवनलीला समाप्त करने का विचार ही मन में न ला सकें.

आत्महत्या रोकने के लिए छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में लोगों को अवसाद से बचाने और आत्मघाती कदमों को रोकने के लिए अब तक 569 नवजीवन केंद्रों को स्थापित किया जा चुका है. इन केंद्रों में आउटडोर और इनडोर खेल सामग्री, प्रेरणादायक व ज्ञानवर्द्धक पुस्तकें उपलब्ध कराई जा रही हैं. आत्महत्या करने वालों की पुलिस की जांच के बाद भी यह संस्था तहसीलदार और डाक्टरों द्वारा विशेष रूप से गहन जांच कर के उस के कारणों का पता लगाती है.

यह प्रयोग पूरे प्रदेश के लिए रोलमौडल बन चुका है और अन्य जिले भी इस का अनुसरण कर रहे हैं. यदि आप आत्महत्या के विचारों से अपने को दूर नहीं कर पा रहे हैं तो बिना किसी शर्म या हिचक के डाक्टर से संपर्क करें. अपने परिवार व दोस्तों के साथ अपनी समस्या को सा झा करें. यह जीवन अमूल्य है, अपने जीवन के महत्त्व को सम झने की कोशिश करिए. इस दुनिया में आप कुछ विशेष काम करने के लिए आए हैं.

आत्महत्या का विचार आने पर उस को कैसे रोकें द्य अपने पास खतरनाक हथियार जैसे चाकू, पिस्टल और ड्रग आदि न रखें. द्य उन चीजों की तलाश करें जिन से आप के मन को खुशी मिलती हो, जैसे परिवार के साथ या वे दोस्त जिन के साथ आप को खुशी मिलती हो, जो सकारात्मक बातें करने वाले हों.

सैल्फ हैल्प गु्रप में उपस्थित होना.

वहां आप अपनी समस्याओं पर चर्चा कर सकते हैं. जो इस समस्या से पीडि़त हैं उन की मदद करने की कोशिश करें.

परिवार का सहारा लेना. परिवार के लोगों के साथ डाक्टर के पास जाएं. अपनी मानसिक स्थिति पर खुल कर बात करें.  शराब या अन्य गैरकानूनी दवाओं के सेवन से दूरी बना कर रखें.

खुद अकेले रहने से बचें. जितना हो सके बाहरी लोगों के साथ जुड़े रहें.

शारीरिक व्यायाम करना आवश्यक है.

संतुलित और स्वस्थ भोजन करना चाहिए.

दिनभर में 7-8 घंटे की नींद लेना आवश्यक है.

याद रखें, आत्महत्या करने का विचार कभीकभी ही आता है, इसलिए ऐसे काफी लोग हैं जो इस से बचने का उपाय ढूंढ़ लेते हैं.

संपादकीय

दुनिया के सारे देश आज चीन से भयभीत हैं. जून 14 के ब्रसलैस में हुई नाटो की एक मीङ्क्षटग में अब जो बाइडेन ने रूस से खतरा इतना बड़ा नहीं बताया जितना चीन से है. चीन ने कहना शुरू कर दिया है कि वह इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस, इटली जैसे देशों की ङ्क्षचता नहीं करता, उसे तो रूस और अमेरिका को संभालना है. हालांकि इस से पहले जी-7 की हुई मीङ्क्षटग में नरेंद्र मोदी का वर्चुअयी सुना गया था पर किस ने कितने ध्यान से शुना कह नहीं सकते. भारत अब दुनिया की नजरों से ओझल हो गया है.

अभी कुछ साल पहले अमेरिकी कंपनियों के सीनीयर जूनियर कर्मचारी डरे रहने लगे थे कि न जाने कब उन की जौब का बंगलौरी करण हो जाए. लोग चीनडिया की बातें कर रहे थे. ब्राजील, साऊथ अफ्रीका और ….के साथ भारत और चीन ने जो ब्रिक्स नाम से गुट बनाया था. उस से भयभीत हो रहे थे.

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अब सब कुछ चीनमय हो गया है. पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनेल्ड ड्रंप ने भारत को अपनी खुद की कूटती खरपच्चियों से खड़ा करने की कोशिश की थी पर भारत को ऐसा धुन लग चुका था कि वह चीन से पीछे रहने लगा और अमेरिका और पश्चिमी देशों ने भारत का कोई महत्व देना छोड़ दिया.

1987 में भारत और चीन का सकल उत्पादन बराबर था यानि प्रति व्यक्ति आय चीन की कम थी क्योंकि आबादी ज्यादा थी, अब 2019 में चीन भारत से साढ़े चार गुना ज्यादा अमीर है और 2020 और 2021 में भारत को और ज्यादा चपेटे लगी हैं. भारत की कहीं कोई कीमत नहीं रह गई है. पीपीई किट जो बरसाती की तरह सिला कपड़ा हे बना कर ढोल पीटने वाले देश को दूसरे देशों में कोई कद्र नहीं है.

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चीन दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है. वह खुद के हथियार बना रहे है. बैक्सीन भी खुद की बनाई है और 2 करोड़ लोगों को रोज वैक्सीन लगा रहे है. भारत जैसे देश को कोई क्यों भाव देगा जो बांग्लादेश से भी पिछड़ता नजर आ रहा है और जहां के नेताओं को ट्विटर के कान खींचने तक में मेहनत करनी पड़ती है.

जी-7 की मीङ्क्षटग में भारत की चर्चा कहीं नहीं थी, रूस और चीन की थी, इजरायल की थी, सीरिया की थी. भारत में हुए भयंकर कोविड असर पर भी किसी ने कोई भाव पर शिकन नहीं डाली क्योंकि जब हम हल्ला ज्यादा करेंगे तो हम पर कौन भरोसा करेगा.

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जी-7 के सदस्यों की ङ्क्षचता दुनिया में संतुलन कायम रखने की है और वे चाहते है कि 1945 के बाद जो वर्चस्व उन देशों का रहा जिसे सोवियत रूस और फिर एशिया भी तोड़ न पाए, बना रहे. चीन से ये देश डरते हैं क्योंकि जहां रूस केवल कम्युनिस्ट बेच रहा था, चीन अरबों खरबों डौलर का सामान अपनी विशाल फैक्ट्रियों में बना कर बेच रहा है. भारत में तो सरकार अपने ही पिठलगगुओं को देश की जनता की संपत्ति बेच रही है, उसे बाहर के देशों को सिर्फ योगासन बेलने आते हैं जिस के खरीदार भी अब कम हो गए हैं.

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