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पृथ्वी और वायुमंडल: हिमयुग की दस्तक

लेखक-विजन कुमार पांडेय

मानव अस्तित्व से भी हजारों वर्ष पहले धरती पर हिमयुग का लंबा दौर चला था जब दुनिया बर्फीली चादर से ढक गई थी. वैज्ञानिकों के अनुसार अब ‘सोलर मिनिमम युग’ का दौर है. ऐसे में एक बार फिर से हिमयुग के आने की अटकलें लगाई जा रही हैं. ‘सबकुछ शांत था, न हवा थी, न समुद्र में लहरों की उथलपुथल. आसमान गहरा नीला एवं धूप इतनी चमकदार कि मीलों तक साफसाफ देखा जा सकता था. दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था. अचानक बहुत दूर एक भूरी सी पहाड़ी नजर आई. पहाड़ी के ऊपर ग्लाबिनों हाथ हिलाहिला कर नाच रहे थे. ऐसा लग रहा था मानो वे कह रहे हों कि मैं धरती के आखिरी छोर पर पहुंच गया हूं. मौत के चंगुल में पहुंच चुके हम सभी लोगों के लिए यह एक नया जीवन था, परम आनंद की अनुभूति का क्षण था.’ 175 वर्ष पहले अंटार्कटिका की खोजयात्रा पर गए अंगरेज नाविक विलियम्स स्मिथ ने अंटार्कटिका प्रायद्वीप के नजदीक के एक द्वीप को देख कर ये शब्द लिखे थे.

स्मिथ, दरअसल एक व्यापारिक यात्रा पर निकले थे. मौसम खराब हो जाने के कारण वे भटक कर दक्षिण शेरलैंड द्वीप तक पहुंच गए. उन की यह खोज काफी महत्त्वपूर्ण थी लेकिन अंटार्कटिका का अस्तित्व अंधेरे में ही था. अंगरेजों ने दक्षिणी समुद्र के रहस्यों की खोज के लिए स्मिथ को एक बार फिर खोज अभियान पर भेजा. इस बार इस का नेतृत्व रौयल नेवी के एडवर्ड ब्रेंसीफील्ड को सौंपा गया. चुनौतीभरा अभियान स्मिथ के दूसरे अभियान ने अंटार्कटिका महाद्वीप के एक भाग को देखने में सफलता प्राप्त कर ली. यह पहला अवसर था जब मनुष्य के कदम यहां तक पहुंचे थे.

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इन तमाम सफलताओं के बावजूद अंटार्कटिका का अस्तित्व अभी भी संदिग्ध था. 2 दशकों बाद जनवरी 1840 में अमेरिकी खोज अभियान दल के नेता चार्ल्स विल्किंस ने अंटार्कटिका के समुद्रतट में मोटी बर्फ की तह भी देखी. उन की खोज ने इस अवधारणा पर पक्की मुहर लगा दी कि अंटार्कटिका बर्फों वाला एक महाद्वीप है. फिर क्या था, 19वीं सदी में फ्रांस, इटली व जरमनी ने अंटार्कटिका की खोज के अनेक अभियान चलाए. आज यह विश्वास नहीं होता कि छोटीछोटी नौकाओं व पोतों में सवार हो कर 18वीं-19वीं शताब्दियों के नाविकों ने अंटार्कटिका के भयानक समुद्र में यात्राएं कैसे की होंगी, वह भी बिना किसी आधुनिक संचार व्यवस्था के, जबकि आज भी विज्ञान के अनेक संसाधनों के मुहैया होने के बावजूद अंटार्कटिका तक पहुंचना आसान नहीं है. इस चुनौतीभरे अभियान में भारत भी पीछे नहीं रहा.

अंटार्कटिका पर पहुंचने वाले प्रथम भारतीय नागरिक गिरिराज सिरोही थे. सिरोही एक प्लांट फिजियोलौजिस्ट थे जो एक अमेरिकी अभियान दल के सदस्य के रूप में वर्ष 1960 में अंटार्कटिका पहुंचे. सिरोही ने दक्षिणी ध्रुव पर कौकरोच जैसे जीवों पर ‘बायलौजिकल कपास’ का अध्ययन किया. सिरोही के सम्मान में ही अंटार्कटिका के ब्रेडमोर ग्लेशियर का नाम ‘सिरोही पौइंट’ रखा गया. अनछुआ नहीं अब अंटार्कटिका अनछुआ इलाका नहीं रहा. वहां के ‘डिसैप्शन आईलैंड’ के तेल टैंकर में आज भी बिखरी हुई हड्डियां दिखती हैं जो 70 के दशक में ह्वेल मछलियों के अंधाधुंध शिकार की गवाह हैं. तब ह्वेल की चरबी से तेल निकाल कर उस से बिजली बनाई जाती थी. डिसैप्शन आईलैंड में एक वक्त 4 लाख से ज्यादा ह्वेल मछलियां थीं. फिर बिजली बनाने के चक्कर में उन्हें इस तरह मारा गया कि उन की संख्या घट कर 250 पर सिमट गई.

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आज यह स्थान पर्यटकों के लिए विकसित हो रहा है. नजरिया ही बदल जाएगा जब आप अंटार्कटिका की यात्रा पर जाएंगे तो जिंदगी का नजरिया ही बदल जाएगा. दुनिया की वह जगह जहां पेड़ नहीं हैं, कोई इंसान नहीं. वहां आप की सूंघने की शक्ति खत्म हो जाती है. ऐसी जगह जहां 500 मीटर दूर से भी कोई आवाज सुनी जा सकती है. वहां की कुछ और दिलचस्प बातें आप भी जानें. द्य पहली दिलचस्प बात यह है कि लाखों साल पहले इंडिया और अंटार्कटिका आपस में जुड़े थे. जब दोनों टूटे तो अंटार्कटिका नीचे की ओर चला गया और ठंडा हो कर जम गया. इंडिया ऊपर की ओर गया और प्लेटों से टकरा कर हिमालय का निर्माण हो गया. द्य अंटार्कटिका में प्रदूषण नहीं है. वहां सबकुछ इतना साफ दिखाई देता है कि दिल्ली से गुड़गांव तक की हर इमारत नजर आ जाए. हवा इतनी ठंडी है कि शरीर से या वाशरूम जाने के बाद बदबू नहीं आती.

असल में वहां सूंघने की शक्ति ही खत्म सी हो जाती है. द्य अंटार्कटिका में कोई रनवे नहीं है, फिर भी वहां प्लेन लैंड हो जाते हैं. ब्लू आइस वहां की इतनी सख्त है कि उस पर प्लेन भी उतर सकते हैं.

अंटार्कटिका में 2 ऐसी जगहें हैं जहां बिना बर्फ के भी तापमान जीरो डिग्री से कम रहता है. पहली, एलिफैंट्स हैड और दूसरी, अंटार्कटिका ड्राई वैली.

अंटार्कटिका की एक और खूबी है कि वहां रात अंधेरीकाली नहीं होती. बर्फ पर पड़ने वाली तारों की रोशनी उसे चमकीला बना देती है. इसलिए वहां घड़ी देख कर पता लगाना पड़ता है कि रात कितनी बाकी है.

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अंटार्कटिका में 6 महीने दिन और 6 महीने रात होती है. वहां सूरज के साथ चांद भी दिखता है. आप सोचते होंगे कि अंटार्कटिका में आखिर इतनी बर्फ आई कहां से. दरअसल यह हिमयुग की देन है. हिमयुग के इंसान हिमयुग में भी इंसान थे, इस का बहुत बड़ा खुलासा हुआ है. कनाडा के वैज्ञानिकों ने एक पहाड़ की खुदाई में कुछ मानव पदचिह्न देखे हैं. ऐसा अनुमान है कि वे पदचिह्न मानव के ही हैं. पदचिह्नों के आकार से ऐसा प्रतीत होता है कि वे इंसान छोटेमोटे नहीं थे बल्कि विशालकाय थे. कुछ लोग कहते हैं कि वे अभी भी हैं लेकिन हमारे सामने नहीं आते.

कई बार उन के अस्तित्व को ले कर सवाल उठाए गए हैं लेकिन जवाब आज तक नहीं मिला. हिमयुग आया कैसे उथलपुथल से बना यह ब्रह्मांड हमेशा हमें परेशान करता रहा है. करीब 2040 अरब वर्ष पहले जब औक्सीजन बनने की शुरुआत हुई तब हमारी धरती औक्सीजन की आदी नहीं थी. उस समय हमारी पृथ्वी काफी गरम थी. धीरेधीरे औक्सीजन की मात्रा बढ़ती गई, तो धरती का वातावरण औक्सीजन से भर गया. इस के बाद धरती पर कार्बन डाइऔक्साइड की मात्रा नाममात्र की रह गई, जिस से ग्रीन हाउस इफैक्ट कम होने लगा.

बढ़ती औक्सीजन की वजह से धरती का तापमान लगातार गिरने लगा. गिरते तापमान से नदियां और समुद्र का पानी जमने लगा. सूरज की रोशनी भी परावर्तित हो कर वापस जाने लगी. इस तरह पृथ्वी ठंडी होती चली गई. फिर हमारा यह नीला ग्रह बर्फ की सफेद चादर से ढक गया. चारों तरफ बर्फ ही बर्फ दिखाई देने लगी और फिर हिमयुग का दौर शुरू हो गया. जीवन की शुरुआत अरबों सालों तक धरती जमी रही. इस के बावजूद मुट्ठीभर जीव धरती पर जिंदा थे.

इस का कारण था, धरती पर ज्वालामुखी समयसमय पर फट पड़ते थे. बेशक उस वक्त धरती जमी हुई थी लेकिन ठंड के उस दौर में भी जीवन बचा रहा. अरबों सालों के दौर में ज्वालामुखी फटते रहे और कार्बन डाइऔक्साइड बढ़ती रही. धीरेधीरे ग्रीन हाउस इफैक्ट बढ़ने लगा और वायुमंडल गरम होने लगा. इस कारण बर्फ पिघलने लगी व नदियां बहने लगीं. अरबों सालों से चल रहा ठंड का दौर बदलने लगा.

जिंदा बचे जीवों ने अब एक नई दुनिया में कदम रखा. जीवन के नए अवसर पैदा होने लगे. अब वे इस नए वातावरण में खुली सांस लेने लगे और नया जीवन जीने लगे. सोलर मिनिमम युग हम चाहे तरक्की कितनी भी कर लें लेकिन हमारा वजूद प्रकृति के सामने शून्य मात्र है. आज हम एक ऐसे वायरस से लड़ रहे हैं जिस का कोई अंत नजर नहीं आता.

वहीं हमारा सूरज ठंडा होता जा रहा है, यानी सोलर मिनिमम का दौर चल रहा है. सोलर मिनिमम की वजह से पूरी दुनिया एक ऐसे हिमयुग की तरफ जाती लग रही है कि जब धरती पर भीषण ठंड व सूखा पड़ने के साथ खतरनाक भूकंप आ सकते हैं. बस, आप यह समझ लें कि नया हिमयुग दस्तक दे चुका है. सो, हमें इस से निबटने की तैयारी कर लेनी चाहिए.

सिद्धू की बैटिंग पर कैप्टन की लंच पॉलिटिक्स

पंजाब के राजनीति में इन दिनों भूचाल आया हुआ है. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के बीच लम्बे समय से जारी विवाद ने दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान की नींद उड़ा रखी है. तेरह साल तक भारतीय जनता पार्टी में रहने के बाद साल 2017 में जब नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस का दामन थामा था तो उन्होंने कहा था वह घर वापसी कर रहे हैं. मगर अब उन्होंने घर में उत्पात मचाना शुरू कर दिया है. सिद्धू पंजाब में एक सम्मानजनक स्थान यानी प्रदेश अध्यक्ष पद हासिल करना चाहते हैं और कैप्टन उनको तवज्जो ही नहीं देना चाहते. ऐसे में सिद्धू का उखड़े-उखड़े घूम रहे थे और लगातार बयानों के ज़रिये अपनी नाराजगी प्रकट कर रहे थे.

पिछले दिनों नवजोत सिंह सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर पर निजी हमला बोलते हुए कहा था कि वह दो परिवारों के सिस्टम के खिलाफ हैं. उनका सीधा इशारा प्रकाश सिंह बादल के परिवार और कैप्टन अमरिंदर सिंह की ओर था. उनके इस बयान को पार्टी ने ठीक नहीं माना. अपने ही मुख्यमंत्री के खिलाफ पब्लिक में इस तरह के बयान को नवजोत सिंह सिद्धू का हिट विकेट माना जा रहा था. सिद्धू को भी इस बात का अहसास हो गया कि उनके बयानों से आलाकमान नाराज़ हो गयी हैं तो पिछले कई दिनों से उन्होंने दिल्ली में डेरा डाला हुआ था. उन्होंने राहुल गाँधी से मिलने की अर्जी लगाई. पहले तो राहुल उनसे मिले नहीं, बाद में बड़ी मुश्किल से सिद्दू प्रियंका गाँधी वाड्रा से मिलने में कामयाब हुए. उन्होंने उनके सामने अपने गिले-शिकवे रखे, तो उसके बाद राहुल ने भी उनको मिलने का मौक़ा दिया.

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सिद्धू के दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाने से कैप्टन भी सजग हो गए हैं. इधर दिल्ली में नवजोत सिंह सिद्धू पार्टी आलाकमान के साथ मैराथन बैठकें कर कलह का हल निकालने के फॉर्मूले के इंतजार में हैं तो वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह भी पार्टी नेताओं के साथ अपना धड़ा मजबूत करने की तैयारी कर रहे हैं.    कैप्टन ने अपने करीबी नेताओं के साथ दोपहर के खाने पर बैठक की, जैसी पहले कभी नहीं हुई. आने वाले दिनों में ऐसी लंच बैठकें और भी हो सकती हैं. माना जा रहा है कि कैप्टन की ये लंच पॉलिटिक्स एक तीर से दो निशाने लगाएगी.

पंजाब के करीबी नेताओं के साथ हुई बैठक से साफ जाहिर हो रहा है कि कैप्टन शक्ति प्रदर्शन कर अपना जोर दिखाने की कोशिश में हैं तो वहीं पार्टी आलाकमान को वह यह संदेश भी दे रहे हैं कि सिद्धू को लेकर जो भी फॉर्मूला तैयार किया जाएगा उसे पंजाब कांग्रेस के नेता मानेंगे, और सभी को एकराय करने के लिए ही लंच मीटिंग बुलाई गयी है.गौरतलब है कि कैप्टन के इस ‘शक्ति प्रदर्शन’ में 5 सांसद, 20 विधायक, 8 कैबिनेट मंत्री, 30 जिलाध्यक्ष समेत कई बड़े नेता मौजूद थे. बैठक में यह तय किया गया कि अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह के चेहरे पर राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ा जाता है तो सिद्धू को आलाकमान की ओर से जो जिम्मेदारी दी जाएगी पंजाब के नेता उसका स्वागत करेंगे.

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दरअसल पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले घर को दुरुस्त करने में जुटी कांग्रेस अब सिद्धू से मुलाक़ात के बाद जल्द कोई रास्ता निकाल सकती है. पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू दोनों के बीच समझौता और तालमेल पैदा करने के लिए कोई सम्मानजनक फॉर्मूला निकालना आवश्यक भी है. कैप्टन को समझाने की कोशिश जारी है. पर अंदर की बात यह है कि मुख्यमंत्री के रवैये और चुनावी वादों को पूरा नहीं करने से पार्टी नेतृत्व उनसे भी कुछ नाराज है. इसलिए सत्ता विरोधी लहर पर अंकुश लगाने के लिए राज्य मंत्रिमंडल में जल्द फेरबदल किया जा सकता है.

इसके साथ पार्टी प्रदेश कांग्रेस में भी बदलाव की तैयारी कर रही है. पार्टी के एक नेता ने कहा कि कैप्टन को दो सौ यूनिट फ्री बिजली के वादे को पूरा करने का ऐलान करने की हिदायत दी गई थी, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया. जबकि दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने फ्री बिजली देने की घोषणा कर दी है. नवजोत सिंह सिद्धू की कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी से मुलाकात के बाद साफ है कि उन्हें अहम जिम्मेदारी सौंपी जाएगी. कैप्टन अभी तक सिद्धू को कोई जिम्मेदारी देने का विरोध करते रहे हैं. इसके बावजूद पार्टी अगले सप्ताह फामूर्ले का ऐलान कर सकती है. अब दिल्ली में राहुल गाँधी से सिद्धू की सवा घंटे की गुफ्तगू क्या रंग लाती है देखना दिलचस्प होगा.

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माना जा रहा है कि सोनिया गांधी पंजाब को लेकर कोई बड़ा ऐलान कर सकती हैं. राज्य के प्रभारी के तौर पर काम कर रहे हरीश रावत को भी हटाया जा सकता है. इसकी वजह उत्तराखंड में भी अगले साल होने वाले चुनाव हैं. इस राज्य के वह मुख्यमंत्री रह चुके हैं और अब भी कांग्रेस पार्टी का राज्य में बड़ा चेहरा हैं. उनकी जगह पर जेपी अग्रवाल को पंजाब के प्रभारी की जिम्मेदारी दी जा सकती है. हालांकि अभी प्रदेश अध्यक्ष के नाम को लेकर कोई सहमति नहीं बन सकी है. इस पद के लिए ही नवजोत सिंह सिद्धू जम कर बैटिंग कर रहे हैं. और इसीलिए उन्होंने डिप्टी सीएम के पद का ऑफर भी खारिज कर दिया था.

दरअसल नवजोत सिंह सिद्धू जरूरत से ज्यादा महत्वाकांक्षी हैं. कांग्रेस का दामन थामने के वक़्त से ही उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर निगाहें  गड़ा दीं थीं, जो पार्टी के पुराने योद्धा कैप्टन अमरिंदर सिंह को मंजूर नहीं था. वो सिद्धू को अपने आसपास भी नहीं फटकने देना चाहते थे.  सिद्धू को उपमुख्यमंत्री या पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए भी कैप्टन तैयार नहीं थे. वहीं, हाईकमान हर हाल में सिद्धू का कद पंजाब में बढ़ाना चाहता था. दरअसल सिद्धू में राजनितिक समझ और ठहराव भले ना हो, मगर वह चुटकुलेबाज इतने बढ़िया हैं कि चुटकियों में भीड़ इकट्ठा कर लेते हैं. यही उनका सबसे बड़ा गुण है. टीवी के कपिल कॉमेडी शो ने उन्हें और लोकप्रिय बना दिया है. सिद्धू मदारी के अंदाज में कुछ समय तक के लिए जोश का माहौल अवश्य बना देते हैं, मगर उन्हें गंभीरता से कोई नहीं लेता है. मगर कांग्रेस की भी मजबूरी है. पंजाब में सिद्धू की फैन फ्लोइंग बहुत है.

सिद्धू में आलाकमान को कांग्रेस का भविष्य नज़र आ रहा है. पंजाब प्रभारी बनने के बाद हरीश रावत भी बार-बार इस बात को दोहरा रहे हैं कि कैप्टन वर्तमान के नेता हैं जबकि सिद्धू भविष्य का चेहरा हैं. इसी कशमकश में पार्टी उलझी हुई है और कांग्रेस नेताओं के बीच घमासान मचा हुआ है. बीते चार सालों से पंजाब कांग्रेस में अंतर्कलह चल रही है, लेकिन विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वर्चस्व की लड़ाई कुछ ज़्यादा ही तेज़ होती नज़र आ रही है. और आलाकमान इस फैले रायते को समेटने की भरसक कोशिशों में जुटा है.

पंजाब की सियासत में लंबी राजनीतिक पारी खेलते आ रहे मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह सूबे में पार्टी के वर्तमान होने के साथ-साथ अब अगली पारी के लिए भी पिच तैयार कर रहे हैं.  हालांकि, 2017 में कैप्टन ने कहा था कि यह उनका अंतिम चुनाव होगा, लेकिन चार साल के बाद अब वो एक और पारी खेलने का दम भर रहे हैं. कांग्रेस हाईकमान भी यह बात समझ रहा है कि पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ही पार्टी का चेहरा बन चुके हैं और अगला चुनाव भी उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाएगा.जानकारों की मानें तो सिद्धू पर बहुत भरोसा करना भविष्य में कांग्रेस के लिए नुकसानदेह भी साबित हो सकता है. क्योंकि सिद्धू में ठहराव नहीं है. वे चाटुकार भी हैं. वक़्त आने पर गधे को बाप बना लेने से भी ना हिचकने वाले सिद्धू आजकल जहाँ सोनिया गांधी और राहुल गांधी की स्तुति करते नहीं थकते, वही जब भाजपा में थे तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चंद सालों के शासनकाल को कांग्रेस के लंबे शासनकाल से श्रेष्ठ बताया करते थे. सिद्धू ने कहा था – ‘मोदी जी देश को सोने की चिड़िया बनाना चाहते हैं, जबकि कांग्रेस देश को सोनिया की चिड़िया बनाना चाहती है.’

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए सिद्धू ने कहा था – ‘आगे-आगे मनमोहन सिंह पीछे-पीछे चोरों की बारात है.’ये वही सिद्धू हैं, कांग्रेस में शिफ्ट होने के बाद जिनकी जुबान और तेवर तत्काल बदल गये. इस बात को भी नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है कि अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी पंजाब का दांव जीतने के लिए सिद्धू पर नज़रें जमाये बैठी है.

नवजोत सिंह सिद्धू को समझना चाहिए कि वो पंजाब के वरिष्ठ मंत्री रह चुके हैं. कांग्रेस अगर उनमें पंजाब का भविष्य देख रही है तो उन्हें भी देशहित को देखते हुए बयानबाजी करनी चाहिए. सिद्धू की वाकपटुता से आम जन प्रभावित होता है, लेकिन उन्हें अपनी जुबान पर काबू नहीं है और वो जब फिसलती है तो उनकी खुद की प्रतिष्ठा तो तार-तार होती ही है, वो जिस पार्टी में होते हैं वहां भी छीछालेदर मचा देते हैं.

डेल्टा वैरियंट को रोकने में यूपी रहा सफल: क्रैग केली

ऑस्‍ट्रेलिया के संसद सदस्‍य क्रेग केली ने सूबे के मुखिया सीएम योगी आदित्‍यनाथ के कोरोना प्रबंधन की तारिफ की. उन्‍होंने आइवरमेक्टिन के प्रयोग साथ प्रदेश में कोरोना वायरस के नए वेरिएंट डेल्‍टा को नियंत्रित करने के लिए प्रदेश सरकार की नीतियों को सराहा है.  सांसद क्रेग केली ने कहा कि 24 करोड़ की आबादी वाले उत्‍तर प्रदेश ने आइवरमेक्टिन टैबलेट का प्रयोग कर  दूसरी लहर पर अंकुश लगाया है.

केली ने ट्वीट करते हुए कहा कि भारतीय राज्‍य उत्‍तर प्रदेश की जनसंख्‍या 230 मिलियन है. इसके बावजूद कोरोना संक्रमण के नए वेरिएंट डेल्‍टा पर लगाम लगाई है. यूपी में आज कोरोना के दैनिक केस 182 है जबकि यूके की जनसंख्‍या 67 मिलियन है और दैनिक केस 20 हजार 479 हैं.

कोरोना वायरस से संक्रमित रोगियों के इलाज के लिए यूपी सरकार ने स्‍वास्‍थ्‍य विभाग की सलाह अनुसार प्रदेश में आइवरमेक्टिन को कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए प्रयोग किया इसके साथ ही डॉक्‍सीसाइक्लिन को भी उपचार के लिए प्रयोग में लाया गया. बता दें कि उत्‍तर प्रदेश देश का पहला राज्‍य था जिसने बड़े पैमाने पर रोगनिरोधी और चिकित्‍सीय उपयोग में  आइवरमेक्टिन का प्रयोग किया.

योगी के यूपी मॉडल की चर्चा चारो ओर

योगी के यूपी मॉडल की चर्चा चारो ओर है. कोरोना संक्रमण पर लगाम लगाने के लिए प्रदेश सरकार की नीतियों को बांबे हाईकोर्ट, सुप्रीमकोर्ट, डब्‍ल्‍यूएचओ ने भी सराहा है. ट्रिपल टी, मेडिकल किट वितरण समेत ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में सैनिटाइजेशन का कार्य युद्धस्‍तर पर किया गया.

फीस में 15% कटौती : पेरेंट्स को थोड़ी राहत

कोरोना काल में जब सभी आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, किसी की नौकरी चली गयी है, किसी का व्यवसाय ठप्प हो गया है तो कहीं घर का कमाऊ व्यक्ति  ही कोरोना की भेंट चढ़ गया है. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई और खर्चे को लेकर अधिकाँश माता पिता गहरे तनाव से गुज़र रहे हैं.

अर्जुन दिल्ली के स्प्रिंगडेल्स स्कूल में तीसरी का छात्र है. उसकी दो साल से ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है. वह कभी क्लास करता है तो कभी माँ से नज़र बचा कर मोबाइल पर गेम्स खेलता रहता है. उसके ज्ञान में क्या वृद्धि हो रही है, शारीरिक और मानसिक विकास समुचित हो रहा है या नहीं, यह जानने में ना तो स्कूल के टीचर्स की दिलचस्पी है और ना माता पिता को इतनी समझ है कि कैसे पता करें. वो तो बस हर महीने स्कूल की फीस भरने में ही पस्त हुए जा रहे हैं. महीने की 15 तारीख बीतते ही अर्जुन की क्लास टीचर का फ़ोन आना शुरू हो जाता है कि आपने फीस नहीं जमा की.

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अर्जुन की माँ इसी बात का रोना रोती रहती है, कि पढ़ाई तो कुछ हो नहीं रही है, बस स्कूल वाले फीस लिए जा रहे हैं. ये कहानी करीब करीब हर उस घर की है जहाँ बच्चे पढ़ रहे हैं. अब दिल्ली सरकार के एक फैसले से इन परिवारों को कुछ राहत मिलने की उम्मीद है. दिल्ली के मुख्यमंत्री  अरविंद केजरीवाल सरकार ने सभी प्राइवेट स्कूलों को आदेश दिया है कि उन्हें अपनी फीस में 15% की कटौती करनी होगी. ये आदेश पिछले साल के शैक्षणिक सत्र यानी 2020-2021 के लिए लागू होगा. सरकार ने अपने आदेश में ये भी कहा है कि अगर स्कूलों ने पैरेंट्स से ज्यादा फीस ली है, तो उन्हें पैसे लौटाने होंगे या फिर आने वाले साल में एडजस्ट करना होगा. दिल्ली के 460 प्राइवेट स्कूलों की फीस में 15 फीसदी कटौती का आदेश कोरोना काल में आर्थिक तंगी झेल रहे अभिभावकों को राहत पहुंचाने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है.

उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि कोरोना काल में जब सभी पेरेंट्स आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, इस दौरान फीस में 15% की कटौती उनके लिए बड़ी राहत होगी. स्कूल मैनेजमेंट पेरेंट्स की आर्थिक तंगी के कारण बकाया फीस का भुगतान न करने के आधार पर स्कूल की किसी भी गतिविधि में छात्रों को भाग लेने से नहीं रोकेगा.

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दरअसल, दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय ने एक आदेश जारी कर दिल्ली के निजी स्कूलों को पैरेंट्स से वार्षिक और विकास शुल्क वसूलने पर रोक लगा दी थी. इसके बाद ये मामला हाई कोर्ट चला गया था. दिल्ली सरकार के आदेश के खिलाफ प्राइवेट स्कूल कोर्ट चले गए थे, कि यदि हम पूरी फीस नहीं लेंगे तो स्कूल के रखरखाव और टीचर्स की तनख्वाह कहाँ से देंगे. हाई कोर्ट ने प्राइवेट स्कूलों को 2020-2021 में वार्षिक और विकास शुल्क वसूलने की छूट तो दे दी लेकिन साथ ही ये भी कहा कि उन्हें अपनी फीस में 15% की कटौती भी करनी होगी.

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उदाहरण के लिए, यदि वित्त वर्ष 2020-21 में स्कूल की मासिक फीस 3000 रुपये रही है तो स्कूल उसमें 15℅ की कटौती करने के बाद अभिभावकों से केवल 2550 रुपये ही चार्ज करेंगे.  स्कूलों को ये निर्देश दिया गया है कि यदि स्कूलों ने अभिभावकों से इससे ज्यादा फीस ली है तो स्कूलों को वो फीस लौटाना होगा या आगे के फीस में एडजस्ट करना होगा.

Barrister Babu : बैरिस्टर की डिग्री लेकर वापस लौटेगी बोंदिता, अनिरुद्ध का बदला रूप देखकर होगी परेशान

कलर्स टीवी के जाने माने सीरियल ‘बैरिस्टर बाबू’ में 8 साल का गैप लिया गया है, जिसके बाद से इस सीरियल की कहानी में जमकर हंगामा देखने को मिल रहा है.

अब तक आपने  इस सीरियल  देखा होगा  कि अनिरुद्ध बोंदिता को लेकर भाग जाता है, उसके बाद बोंदिता को समझाता है कि तुम्हें इन सबसे बाहर निकलकर अपने सपने को पूरा करना ही होगा, जिसके बाद से बोंदिता अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए लंदन में  चली जाती है, औऱ अनिरुद्ध उसके रहने की व्यवस्था हॉस्टल में कराकर वापस आ जाता है. जिसके बाद दोनों एक -दूसरे को काफी मिस करते हैं.

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अनिरुद्ध नहीं चाहता है कि ठाकु मां को कुछ भी पता चले,  वही  बोंदिता  भी अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद से इंडिया वापस आ रही होती है. ट्रेन में बैठी बोंदिता अनिरुद्ध के ख्यालों मेंं खोई रहती है.

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उसका इंतजार करना थोड़ा मुश्किल हो रहा है उसे लग रहा है जाए और जल्दी से जाकर अनिरुद्ध से मिले, लेकिन वहां पहुंच कर जब देखती है तो उसे सदमा लगता है अनिरुद्ध पहले से ज्यादा बदल गया होता है. उसका एक नया रूप देखने को मिलता है. इस सदमें को बोंदिता बर्दाश्त नहीं कर पाएगी, जिसके बाद वह टूट जाएगी आगे की कहानी में आपको देखने को मिलेगा कि फिर क्या दोनों का प्यार एक-दूसरे के लिए पहले कि तरह खूबसूरत हो पाएगा.

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लेकिन फैंस को इंतजार है इस बात को जानने का कि आखिर किस कारण से अनिरुद्ध खुद को इतना ज्यादा बदल लिया है. क्या बोंदिता फिर से उसके दिल में जगह बना  पाएगी.

किचन का वह कोना जिसकी सफाई है बेहद जरुरी 

लॉक डाउन में घर में ही रहना है और सुरक्षित रहना है. जब सभी लोग घर में ही है, तो हर घर के किचन में पकवानों का डिमांड तेजी से बढ़ेगा . इन दौरान आपको स्वच्छता का पूरा ध्यान रखना हैं. आप किचन को साफ करने के लिये जितनी सफाई करें उतनी कम है. क्योंकि किचन एक ऐसी जगह है जहां भोजन बनाने के दौरान गंदगी हो ही जाती है. हम किचन की तौलिया, बरतन, स्टोहव, स्लैअब और जमीन तो साफ कर लेते हैं. लेकिन किचन में कुछ एक ऐसी जगह रह ही जाती हैं, जिसे हम नजरअंदाज कर जाते हैं. आइये जानते हैं कौन सी हैं वह पांच जगह है , जिसे हमें विशेष रूप से ध्यान देकर साफ करना चाहिए .

1 . सब्जी काटने वाला बोर्ड :- कटिंग बोर्ड पर सब्जि यां काटना रोज का काम होता है. लेकिन इसे केवल खाली पानी और सर्फ से साफ करने से ही काम नहीं चलता. बोर्ड के हैंडल और गहराई में कीटाणु इकठ्ठा हो जाते हैं. टमाटर के बीज और मिर्च के बीच गहराई तक चले जाते हैं, जिन्हेंल बाद में निकालना मुश्किकल हो जाता है. इसलिये बोर्ड को हर रोज प्रयोग करने के बाद अच्छी तरह से साफ करें. साथ में मीट तथा सब्जियों को काटने वाला बोर्ड अलग-अलग रखें.

2 . किचन सिंक :- सिंक में गंदे बरतनों को ज्यारदा देर तक रखने से बीमारी पनप सकती है. इसलिए  सिंक में बरतन रखन से पहले उसका बचा हुआ जूठा खाना, बाहर फेंक दें. अपने किचन सिंक को गरम पानी तथा सर्फ से धोएं। साथ ही बेकिंग सोडा का प्रयोग सिंक के कोने-कोने में करें जिससे बैकटीरिया ना पनपे.

3 . स्पॉन्ज  और स्क्र्ब : – आपको पता होगा कि नमी तथा गीली जगह पर कीटाणु ज्यादा तेजी से फैलते हैं। इसलिइ  स्पॉन्जॉ और बरतन माजने वाले तार को हर महीने में एक बार जरुर बदल लेना चाहिये। हर प्रयोग के बाद स्पॉेन्जे को पानी से धो कर निचोड़ दिया करें और सूखने के लिये रख दिया करें.

  1. नाइफ स्टैंड :- लकडी़ के नाइफ स्टैंड बैक्टीनरिया का घर होते हैं. स्टैंड में कभी भी गीला चाकू ना रखें. लकडी़ बहुत ही आसानी से पानी सोख लेती हैं, जिससे वह रोगाणु और बैक्टीरिया का घर बन जाती है. हमेशा स्टीडल या प्लानस्टिूक के हैंडल वाले चाकू का प्रयोग करें, जिससे उसे धोने, सूखने और सफाई करने में परेशानी ना हो.
  2. किचन रैक हैंडल हम किचन रैक का प्रयोग हमेशा कुछ ना कुछ लेने के लिए करते ही हैं. कभी कभार हम किचन हैंडल को अपने गंदे हाथ से ही छू देते हैं. इसलिए जब भी समय मिले तब अपने किचन रैक को सर्फ और पानी से धोना बिल्कुंल ना भूले .

 

इन बातों का विशेष ध्यान रखे .

– खाना पकाने से  पहले भी हाथों को सही तरह से धोना जरूरी है.

– किचेन का डस्टबिन का उपयोग करने के बाद हाथों को अच्छे तरह धोएं.

– बर्तन धोने के बाद उसे साफ कपड़ों से पोछकर रखे .

– इस बात का हमेशा ध्यान रखे कि बर्तन पोछने वाले कपड़े काटीणु मुक्त हो.

– खाना बनाए के बाद दिन में एक बार और रत में सोने के पहले फ़र्श की अच्छी तरह से सफाई करे .

– किचेन के सिंक .

– सप्ताह में दो बार  किचेन के रखे फ्रिज, माइक्रोवेव और आर.वो को क्लीनर से साफ करें.

चंद्रमणि-भाग 1 : मुरझाया गुलाब बन कर क्यों रह गई थी चंद्रमणि

  1. उफ, इतनी गरमी. गाड़ी को भी आज ही खराब होना था. जेब देखी तो पर्स भी नदारद. सिर्फ 5 रुपए का नोट था. अब तक 3 टैंपो को इसलिए छोड़ चुका था कि सवारियां बाहर तक लटक रही थीं. पर इस बार अपना मन मजबूत किया कि बेटा राजीव, टैंपो में इसी तरह सवार हो कर घर पहुंचना पड़ेगा. सो, इस बार मैं भी बाहर ही लटक गया. थोड़ी देर में खिसकतेखिसकते बैठने की जगह मिल ही गई.

यह क्या, सामने वाली सीट पर बैठी सवारी जानीपहचानी सी लग रही थी. उन दिनों उस के चेहरे पर मृगनयनी सुदंरता के साथ गुलाब की कली से अधखिले होंठों पर हर क्षण मधुर मुसकान फैली रहती थी. लंबे, काले, घुंघराले बाल कभीकभी हवा के साथ गोरे चेहरे को ऐसे ढक लेते थे जैसे काली घटा में छिपा चांद हो. जिस के नाखून भी काबिलेतारीफ हों, उस रूपलावण्य को कैसे भुलाया जा सकता है. यदि मैं कवि होता तो उस पर शृंगार रस की कविता या गजल कह डालता.

राजपूत घराने से संबंध रखने वाली चंद्रमणि 9वीं कक्षा से बीकौम तक मेरे साथ पढ़ी थी. स्कूल स्तर तक तो उस से विशेष बोलचाल नहीं थी, पर कालेज में एक अच्छे दोस्त की भांति बोलचाल के साथसाथ खाली पीरियड में हम कैंटीन में बैठ कर चाय भी पिया करते थे. हमारे विभाग में 40 लड़के व सिर्फ 5 लड़कियां थीं. एक बार बारिश के मौसम में सब ने मिल कर पिकनिक का कार्यक्रम बनाया. 2-3 लैक्चरर भी हमारे साथ थे. 5-7 छात्रों के अतिरिक्त पूरी कक्षा ही थी. तभी एक लड़की बोली कि चंद्रमणि, आज गाना सुनाएगी. इतने में सब ने शोर मचाना शुरू कर दिया. सभी उसे गाने को कहने लगे. एक बार मैं ने भी धीरे से कहा, तब उस ने गाना ‘बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझ को सुखी संसार मिले, मायके की कभी न याद आए ससुराल में इतना प्यार मिले…’ सुनाया. एक तो गाने के बोल, दूसरे उस की दर्दभरी आवाज ने सब की आंखें नम कर दी थीं.

‘यह मुरझाया चेहरा, उलझे बिखरे बाल, सूनी आंखें जिन में कभी सुखद सपने बसा करते थे, ये फीकेफीके रंग के कपड़े. क्या यह वही ताजा गुलाब सी खिली रहने वाली चंद्रमणि है?’ मैं सोच रहा था.

‘‘मालवीय नगर, मालवीय नगर, सैक्टर 5,’’ टैंपो पर हाथ मारता हुआ लड़का जोर से चिल्लाया तो हम दोनों ही टैंपो से उतर गए.

मैं ने कहा, ‘‘चंद्रमणि.’’

उस ने धीरे से ऊपर देखते हुए कहा, ‘‘राजीव, तुम ने मुझे पहचान लिया?’’

‘‘चंद्रमणि, अगर मैं पहल न करता तो तुम मुझे पहचान कर भी मुझ से बात नहीं करती?’’

जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. वह कुछ पल रुक कर बोली, ‘‘नहीं…नहीं, ऐसी बात नहीं. तुम यहां कैसे? पहले कभी नहीं देखा? मैं तो काफी समय से टैंपो से ही आतीजाती हूं.’’

‘‘मैं यहां 1 साल से हूं. सीए कर चुका हूं. जौहरी बाजार में औफिस है. वहां से वापस आते वक्त यूनिवर्सिटी के बाहर गाड़ी खराब हो गई, सो आज टैंपो से आया हूं. तुम्हारी यह हालत देख कर मैं कुछ समझ नहीं पा रहा.’’ तभी उस ने कहा, ‘‘मेरा घर आ गया. फिर कभी बात करेंगे.’’ घर क्या यह तो मात्र एक कमरा था जिस की हालत भी कुछ अच्छी नहीं थी. घर पहुंचते ही सविता बोली, ‘‘क्या बात है राज, आज इतने लेट व परेशान?’’

सविता मेरे जरा भी लेट होने पर बहुत चिंतित हो जाती थी. मैं ने कहा, ‘‘पानी.’’ वह फौरन पानी का गिलास ले आई व चाय की ट्रे भी साथ ही ले आई जैसे चाय भी सविता की तरह मेरी ही प्रतीक्षा में हो. पानी पी कर मैं ने कहा, ‘‘सविता, अगर आज मैं अपनी गाड़ी से आता तो वह सब नहीं होता जो आज हुआ.’’ सविता बोली, ‘‘जरा मैं भी तो सुनूं आज ऐसा क्या हो गया?’’

इतने में बेटे के रोने की आवाज सुन उस ने तेजी से अंदर की ओर कदम बढ़ा दिए. इतने में फिर मन का घोड़ा बेलगाम हो, दौड़ने लगा. अगर आज गाड़ी खराब न होती तो चंद्रमणि से मुलाकात कैसे होती. पर अब इस बात की बेचैनी थी कि अब कैसे दोबारा उस से मुलाकात हो ताकि उस के अतीत के बारे में कुछ जान सकूं. आखिर पिछले 7 साल में ही ऐसा क्या घटनाक्रम घूम गया…चंद्रमणि के पिता आर्थिक दृष्टि से तो संपन्न ही थे. मैं पिछले 7 सालों में कालेज की जिंदगी को कितना पीछे छोड़ आया था. बीकौम के बाद 7 साल से सीए की प्रैक्टिस कर रहा हूं. शादी हुए भी 2 साल हो चुके हैं. सविता एक पढ़ीलिखी, सुसंस्कृत परिवार से है. हमारा एक बेटा है जो एक साल का हो चुका है. सविता को भी चंद्रमणि के बारे में यह जानकारी थी कि वह स्वयं सुंदर थी उतना ही सुंदर गाती भी थी. सविता सोनू को गोद में ले आई व मुझ से बोली, ‘‘राज, आज कुछ सोच रहे हो?’’ बस, जैसे मैं उस के पूछने का ही इंतजार कर रहा था. अपनी सारी उलझन उस को कह सुनाई.

इस पर वह बोली, ‘‘अरे, इस में इतना परेशान होने की क्या बात है? आखिर तुम उस के दोस्त हो. जब वह पास ही रहती है तो एक दिन जा कर मिल आना, सारी गुत्थी सुलझ जाएगी.’’ मैं ने सोचा कि सुलझ जाएगी या और उलझ जाएगी, पता नहीं. फिर मैं ने सविता से पूछा, ‘‘तुम नहीं चलोगी?’’ ‘‘नहीं, पहली बार मेरा जाना उचित नहीं. वह खुल कर बात नहीं कर पाएगी.’’ दस्तक के साथ ही चंद्रमणि ने साबुन से सने हाथों से दरवाजा खोला. कुछ असमंजस में साड़ी के पल्लू से हाथ पोंछते हुए बोली, ‘‘अरे, आओ राजीव.’’ पलंग के सहारे एक पुरानी सी कुरसी रखी थी, उस पर बैठने का इशारा किया. चारपाई पर एक छोटी बच्ची सो रही थी. मैं कमरे के खालीपन व दयनीय स्थिति से कुछ समझने की कोशिश कर रहा था. तभी चंद्रमणि के हाथ में 2 चाय के प्याले देख कर बोला, ‘‘अरे, बैठते ही चाय बना लाई. क्या बात है, जल्दी भगाना चाहती हो?’’

इस पर वह ठंडी सांस ले कर बोली, ‘‘आज अरसे बाद तो कोई हितैषी आया है, उसे भला जल्दी जाने को क्यों कहूं.’’ चाय का प्याला हाथ में दे कर वह स्वयं जमीन पर बैठ गई. मैं अपनी उत्सुकता पर ज्यादा काबू नहीं रख सका और सीधे ही पूछ बैठा, ‘‘मैं तुम्हारी पिछली जिंदगी के बारे में जानना चाहता हूं?

 

अपना कौन : मधुलिका आंटी पर क्यों जान छिड़कती थी कशिश

वैसे तो कशिश को मम्मी की सभी सहेलियां पसंद थीं लेकिन मधुलिका आंटी की कुछ बात ही अलग थी. यद्यपि आते ही गले मिलने और हालचाल पूछने के बाद वह एक तरह से कशिश की ओर से तटस्थ हो जाती थीं फिर भी जब तक वह घर में रहती थीं उसे पूरे घर में जैसे अपनेपन की ऊष्मता महसूस होती थी.

मम्मीपापा अचानक ही देहरादून छोड़ कर दिल्ली आ बसे. यहां का स्कूल और सहेलियां कशिश को बहुत पसंद आईं. देहरादून पिछली कक्षा की किताबों की तरह पीछे छूट गया. बस, मधुलिका आंटी की याद गाहेबगाहे आ जाती थी.

‘‘देहरादून से सभी लोग आप से मिलने आते हैं. बस, मधुलिका आंटी नहीं आतीं,’’ कशिश ने एक रोज हसरत से कहा.

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‘‘मधुलिका आंटी डाक्टर हैं और देवेन अंकल वकील. दोनों ही अपनी प्रैक्टिस छोड़़ कर कैसे आ सकते हैं?’’ मां ने बताया.

मां और भी कुछ कहना चाह रही थीं लेकिन उस से पहले ही पापा ने कशिश को पानी पिलाने को कहा. वह पानी ले कर आई तो सुना कि पापा कह रहे थे, ‘कशिश की यह बात तुम मधु को कभी मत बताना.’

कशिश को समझ में नहीं आया कि इस में न बताने वाली क्या बात थी.

जल्दी ही उम्र का वह दौर शुरू हो गया जिस में किसी को खुद की ही खबर नहीं रहती तो मधु आंटी को कौन याद करता.

मम्मीपापा न जाने कैसे उस के मन की बात समझ लेते थे और उस के कुछ कहने से पहले ही उस की मनपसंद चीज उसे मिल जाती थी. उस की सहेलियां उस की तकदीर से रश्क किया करतीं. कशिश का मेडिकल कालिज में अंतिम वर्ष था. मम्मीपापा दोनों चाहते थे कि वह अच्छे नंबरों से पास हो. वह भी जीजान से पढ़ाई में जुटी हुई थी कि दादी के मरने की खबर मिली. दादादादी अपने सब से छोटे बेटे सुहास और बहू दीपा के साथ चंडीगढ़ में रहते थे. पापा के अन्य भाईबहन भी वहां पहुंच चुके थे. घर में काफी भीड़ थी. दादी के अंतिम संस्कार के बाद दादाजी ने कहा, ‘‘शांति बेटी, तुम्हारी मां के जो जेवर हैं, मैं चाहता हूं कि वह तुम सब आपस में बांट लो. तू सब से बड़ी है इसलिए सब के जाने से पहले तू बराबर का बंटवारा कर दे.’’

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रात को जब कशिश दादाजी के लिए दूध ले कर गई तो दरवाजे के बाहर ही अपना नाम सुन कर ठिठक गई. दादाजी शांति बूआ से पूछ रहे थे, ‘‘तुझे कशिश से चिढ़ क्यों है. वह तो बहुत सलीके वाली और प्यारी बच्ची है.’’

‘‘मैं कशिश में कोई कमी नहीं निकाल रही पिताजी. मैं तो बस, यही कह रही हूं कि मां के गहने हमारी पुश्तैनी धरोहर हैं जो सिर्फ  मां के अपने बच्चों को मिलने चाहिए, किसी दूसरे की औलाद को नहीं. मां के जो भी जेवर अभी विभा भाभी को मिलेंगे वह देरसवेर देंगी तो कशिश को ही, यह नहीं होना चाहिए.’’ शांति बूआ समझाने के स्वर में बोलीं.

कशिश इस के आगे कुछ नहीं सुन सकी. ‘दूसरे की औलाद’ शब्द हथौड़े की तरह उस के दिलोदिमाग पर प्रहार कर रहा था. उस ने चुपचाप लौट कर दूध का गिलास नौकर के हाथ दादाजी को भिजवा दिया और सोचने लगी कि वह किसी दूसरे यानी किस की औलाद है.

दूसरी जगह और इतने लोगों के बीच मम्मीपापा से कुछ पूछना तो मुनासिब नहीं था. तभी दीपा चाची उसे ढूंढ़ती हुई आईं और बरामदे में पड़ी कुरसी पर निढाल सी लेटी कशिश को देख कर बोलीं, ‘‘थक गई न. जा, सो जा अब.’’

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तभी कशिश के दिमाग में बिजली सी कौंधी. क्यों न दीपा चाची से पूछा जाए. दोनों की उम्र में ज्यादा फर्क न होने के कारण उस की दीपा चाची से बहुत बनती थी और पिछले 3-4 रोज से एकसाथ काम करते हुए दोनों में दोस्ती सी हो गई थी.

‘‘आप से कुछ पूछना है चाची, बताएंगी ?’’ उस ने निवेदन करने के अंदाज में कहा.

‘‘जरूर,’’ दीपा ने प्यार से उस का सिर सहलाया.

‘‘मैं कौन हूं?’’

कशिश के इस प्रश्न से दीपा चौंक पड़ी फिर संभल कर बोली, ‘‘मेरी प्यारी भतीजी, कशिश.’’

‘‘मगर मैं आप की असली भतीजी तो नहीं हूं न, क्योंकि मैं डा. विकास और डा. विभा की नहीं किसी दूसरे की औलाद…’’

‘‘यह तू क्या कह रही है?’’ दीपा ने बात काटी.

‘‘जो भी कह रही हूं  चाची, सही कह रही हूं’’ और कशिश ने शांति बूआ और दादाजी के बीच हुई बातचीत दोहरा दी.

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दीपा झल्ला कर बोली, ‘‘तुम्हारी शांति बूआ को भी बगैर बवाल मचाए खाना नहीं पचता…’’

‘‘उन्होंने कोई बवाल नहीं मचाया, चाची, सिर्फ सचाई बताई है पर अगर आप मुझे यह नहीं बताएंगी कि मैं किस की औलाद हूं तो बवाल मच सकता है.’’

‘‘मैं जो बताऊंगी उस पर तू यकीन करेगी?’’

अगर यकीन नहीं करना होता तो आप से पूछती ही क्यों? असलियत जानने के बाद मैं मम्मीपापा से कुछ नहीं पूछूंगी और कम से कम यहां तो कतई नहीं.

‘‘कभी भी और कहीं भी नहीं पूछना बेटे, वरना वे बहुत दुखी होंगे कि शायद उन की परवरिश में ही कोई कमी रह गई. तुम डा. मधुलिका और देंवेंद्र नाथ वर्मा की बेटी हो. विभा भाभी और मधुलिका बचपन की सहेलियां हैं. यह स्पष्ट होने पर कि बचपन में हुई किसी दुर्घटना के चलते विभा भाभी कभी मां नहीं बन सकतीं, मधुलिका ने उन की गोद में तुम्हें डाल दिया था. विभा भाभी और विकास भाई साहब ने तुम्हें शायद ही कभी शिकायत का मौका दिया हो.’’

कशिश ने सहमति में सिर हिलाया.

‘‘मम्मीपापा से मुझे कोई शिकायत नहीं है लेकिन मधु आंटी ने मुझे क्यों और कैसे दे दिया?’’

‘‘दोस्ती की खातिर.’’

‘‘दोस्ती ममता से ज्यादा…’’

तभी अंदर से बहुत उत्तेजित स्वर सुनाई देने लगे. सब से ऊंचा स्वर विकास का था.

‘‘मेरे लिए मेरे जीवन की सब से अमूल्य निधि मेरी बेटी है, जिस के लिए मैं देहरादून से सरकारी नौकरी छोड़ कर चला आया. उस के लिए क्या चंद गहने नहीं छोड़ सकता? मैं कल सवेरे यानी आप के बंटवारे से पहले ही यहां से चला जाऊंगा’’

‘‘लेकिन मां की उठावनी?’’ शांति बूआ ने पूछा.

‘‘उस के लिए आप सब हैं न. मां की अंत समय में सेवा कर ली, मेरे लिए यही बहुत है,’’ विकास ने कड़वे स्वर में कहा, ‘‘जो लोग मेरी बेटी को पराया समझते हों उन के साथ रहना मुझे गवारा नहीं है.’’

दीपा ने कशिश की ओर देखा और उस ने चुपचाप सिर झुका लिया.

‘‘यह अब नहीं रुकेगा. रोक कर शांति तुम बात मत बढ़ाओ,’’ दादाजी का स्वर उभरा. उसी समय विकास कशिश को पुकारता हुआ वहां आया और उसे इस तरह बांहों में भर कर अपने कमरे में ले गया जैसे कोई कशिश को उस से छीन न ले, ‘‘कल हम दिल्ली लौट रहे हैं कशिश, सो अब तुम सो जाओ. सुबह जल्दी उठना होगा,’’ विकास ने कहा.

‘‘जी, पापा,’’ कशिश ने कहा और चुपचाप बिस्तर पर लेट गई. विकास ने बत्ती बुझा दी.

‘‘विकास,’’ कुछ देर के बाद विभा का स्वर उभरा, ‘‘मुझे लगता है इस तरह लौट कर तुम सब की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हो.’’

‘‘शांति बहनजी ने जिस बेदर्दी से मेरी भावनाओं को कुचला है न उस के मुक ाबले में मेरी ठेस तो बहुत मामूली है,’’ विकास ने तल्खी से कहा, ‘‘जो भी मेरी बेटी को नकारेगा उसे मैं कदापि स्वीकार नहीं करूंगा… चाहे वह कोई भी हो… यहां तक कि तुम भी.’’

अगली सुबह उन्हें विदा करने को केवल दादाजी, सुहास और दीपा ही थे और सब शायद अप्रिय स्थिति से बचने के लिए नींद का बहाना कर के उठे ही नहीं.

घर आ कर विभा और विकास अपने काम में व्यस्त हो गए और कशिश पढ़ाईर् में. हालांकि कशिश को लग रहा था कि चंडीगढ़ से लौटने के बाद पापा उसे ले कर कुछ ज्यादा ही पजेसिव हो गए हैं लेकिन वह अपने असली मातापिता से मिलने और यह जानने को बेचैन थी कि उन्होंने उसे अपनी गोद से उठा कर दूसरे की गोद में क्यों डाल दिया? उस ने मम्मी की डायरी में से मधुलिका मौसी का फोन नंबर और पता तो नोट कर लिया था मगर वह खत या फोन के जरिए नहीं, स्वयं मिल कर यह बात पूछना चाहती थी.

परीक्षा सिर पर थी और पढ़ाई में दिल नहीं लग रहा था. कशिश यही सोचती रहती थी कि क्या बहाना बना कर देहरादून जाए. समीरा उस की खास सहेली थी. उस से कशिश की बेचैनी छिप नहीं सकी. उस के पूछने पर कशिश को बताना ही पड़ा.

‘‘समझ में नहीं आ रहा कि देहरादून किस बहाने से जाऊं.’’

‘‘तू भी अजब भुलक्कड़ है. कई बार तो बता चुकी हूं कि सालाना परीक्षा खत्म होते ही मेरे बड़े भाई की शादी है और बरात देहरादून जाएगी. मैं तुझे बरात में ले चलती हूं. वहां जा कर तू जहां कहेगी तुझे पहुंचवाने का इंतजाम करवा दूंगी. सो अब सारी चिंता छोड़ कर पढ़ाई कर.’’

समीरा की बात से कशिश को कुछ राहत मिली. और फिर शाम को समीरा उस के मम्मीपापा से मिल कर बरात में चलने की स्वीकृति लेने उस के घर आ गई.

‘‘बरात में जाने के बारे में सोचने के बजाय फिलहाल तो तुम दोनों पढ़ाई में ध्यान लगाओ,’’ पापा ने समीरा की बात सुन कर बड़े प्यार से दोनों का सिर सहलाया.

‘‘अंतिम साल की परीक्षा है. इस के नतीजे पर तुम्हारा पूरा भविष्य निर्भर करता है. कशिश को तो मैं कार्डियोलोजी में महारत हासिल करने के लिए अमेरिका भेज रहा हूं. तुम्हारा क्या इरादा है, समीरा?’’

‘‘अगर मैं भी कार्डियोलोजिस्ट बन गई अंकल, तो मुझ में और कशिश में दोस्ती के  बजाय स्पर्धा हो जाएगी और हमारी दोस्ती खत्म हो ऐसा रिस्क मुझे नहीं लेना है. सो कुछ और सोचना पडे़गा मगर सोचने को फिलहाल आप ने मना कर दिया है,’’ समीरा हंसी.

समीरा को विदा कर के कशिश जब अंदर आई तो उस ने अपने पापा को यह कहते सुना, ‘‘मैं नहीं चाहता विभा कि कशिश देहरादून जाए और मधुदेवेन से मिले. इसलिए समीरा के भाई की शादी से पहले ही कशिश को ले कर कहीं और घूमने चलते हैं.’’

‘‘कैसे जाओगे विकास? इस बार आई.एम.ए. का वार्षिक अधिवेशन तुम्हारी अध्यक्षता में होगा और वह उन्हीं दिनों में है.’’

कशिश लपक कर कमरे में आई और कहने लगी, ‘‘मेरी एक बात मानेंगी, मम्मा? आप प्लीज, मधु मौसी को मेरे देहरादून आने के बारे में कुछ मत बताना क्योंकि मैं शादी की रौनक छोड़ कर उन से मिलने नहीं जाने वाली.’’

पापा के चेहरे पर यह सुन कर राहत के भाव उभरे थे.

‘‘ठीक कहती हो. अपनी सहेलियों को छोड़ कर मां की सहेली के साथ बोर होने की कोई जरूरत नहीं है.’’

‘‘थैंक यू, पापा,’’ कह कर कशिश बाहर आ कर दरवाजे के पास खड़ी हो गई.

पापा, मम्मी से कह रहे थे कि अच्छा है, कशिश उन दिनों शादी में जा रही है क्योंकि हम दोनों तो अधिवेशन की तैयारी में व्यस्त हो जाएंगे और यह घर पर बोर होती रहने से बच जाएगी. इस तरह समस्या हल होते ही कशिश जीजान से पढ़ाई में जुट गई.

देहरादून स्टेशन पर बरात का स्वागत करने वालों में कई महिलाएं भी थीं. लड़की के पिता सब का एकदूसरे से परिचय करवा रहे थे. एक अत्यंत चुस्तदुरुस्त, सौम्य महिला का परिचय करवाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह डा. मधुलिका हैं. कहने को तो हमारी फैमिली डाक्टर और पड़ोसिन हैं लेकिन हमारे परिवार की ही एक सदस्य हैं. हमारे से ज्यादा शादी की धूमधाम इन की कोठी में है क्योंकि सभी मेहमान वहीं ठहरे हुए हैं.’’

कशिश को यकीन नहीं हो रहा था कि उस का काम इतनी आसानी से हो जाएगा. उस ने आगे बढ़ कर मधुलिका को अपना परिचय दिया. मधुलिका ने उसे खुशी से गले से लगाया और पूछा कि विभा क्यों नहीं आई?

‘‘आंटी, मम्मीपापा आजकल एक अधिवेशन में भाग ले रहे हैं. मैं भी इस बरात में महज आप से मिलने आई हूं,’’ कशिश ने बिना किसी हिचक के कहा, ‘‘मुझे आप से अकेले में बात करनी है.’’

मधुलिका चौंक पड़ी फिर संभल कर बोली, ‘‘अभी तो एकांत मिलना मुश्किल है. रात को बरात की खातिरदारी से समय निकाल कर तुम्हें अपने घर ले चलूंगी.’’

‘‘उस में तो बहुत देर है, उस से पहले ही घर ले चलिए न,’’ कशिश ने मनुहार की.

‘‘अच्छा, दोपहर को क्लिनिक से लौटते हुए ले जाऊंगी.’’

दोपहर को मधुलिका ने खुद आने के बजाय उसे लाने के लिए अपनी गाड़ी भेज दी. वह अपने क्लिनिक में उस का इंतजार कर रही थी.

‘‘तुम अकेले में मुझ से बात करना चाहती हो, जो फिलहाल घर पर मुमकिन नहीं  है. बताओ क्या बात है?’’ मधुलिका मुसकराई.

‘‘मैं यह जानना चाहती हूं कि आप ने मुझे क्यों नकारा, क्यों मुझे दूसरों को पालने के लिए दे दिया? मां, मुझे मालूम हो चुका है कि मैं आप की बेटी हूं,’’ और कशिश ने चंडीगढ़ वाला किस्सा उन्हें सुना दिया.

‘‘विभा और विकास ने तुम्हें क्या वजह बताई?’’ मधुलिका ने पूछा.

‘‘उन्हें मैं ने बताया ही नहीं कि मुझे सचाई पता चल गई है. वह दोनों मुझे इतना ज्यादा प्यार करते हैं कि  मैं कभी सपने में भी उन से कोई अप्रिय बात पूछ कर उन्हें दुखी नहीं कंरूगी.’’

‘‘यानी कि तुम्हें विभा और विकास से कोई शिकायत नहीं है?’’

‘‘कतई नहीं. लेकिन आप से है. आप ने क्यों मुझे अपने से अलग किया?’’

‘‘कमाल है, बजाय मेरा शुक्रिया अदा करने के कि तुम्हें इतने अच्छे मम्मीपापा दिए, तुम शिकायत कर रही हो?’’

‘‘सवाल अच्छेबुरे का नहीं बल्कि उन्हें दिया क्यों, यह है?’’

‘‘मान गए भई, पली चाहे कहीं भी हो, रहीं वकील की बेटी,’’ मधुलिका ने बात हंसी में टालनी चाही.

‘‘मगर वकील की बेटी को डाक्टर की बेटी कहलवाने की क्या मजबूरी थी?’’

‘‘मजबूरी कुछ नहीं थी बस, दोस्ती थी. विभा मां नहीं बन सकती थी और अनाथालय से किसी अनजान बच्चे को अपनाने में दोनों हिचक रहे थे. बेटे और बेटी के जन्म के बाद मेरा परिवार तो पूरा हो चुका था. सो जब तुम होने वाली थीं तो हम लोगों ने फैसला किया कि चाहे लड़का हो या लड़की यह बच्चा हम विभा और विकास को दे देंगे. ऐसा कर के मैं नहीं सोचती कि मैं ने तुम्हारे साथ कोई अन्याय किया है.’’

‘‘अन्याय तो खैर किया ही है. पहले तो सब ठीक था मगर असलियत जानने के बाद मुझे अपने असली मातापिता का प्यार चाहिए…’’

तभी कुछ खटका हुआ और एक प्रौढ़ पुरुष ने कमरे में प्रवेश किया. मधुलिका चौंक ०पड़ी.

‘‘आप इस समय यहां?’’

‘‘कोर्ट से लौट रहा था तो बाहर तुम्हारी गाड़ी देख कर देखने चला आया कि खैरियत तो है.’’

‘‘ऋचा की बरात में कशिश भी आई है. मुझ से अकेले में बात करना चाह रही थी, सो यहां बुलवा लिया,’’ मधुलिका ने कहा और कशिश की ओर मुड़ी,‘‘यह तुम्हारे देवेन अंकल हैं.’’

‘‘अंकल क्यों, पापा कहिए न?’’ कशिश नमस्ते कर के देवेन की ओर बढ़ी लेकिन देवेन उस की अवहेलना कर के मधुलिका के जांच कक्ष में

जाते हुए कड़े स्वर में बोले, ‘‘इधर आओ, मधु.’’

मधुलिका सहमे स्वर में कशिश को रुकने को कह कर परदे के पीछे चली गई.

‘‘यह सब क्या है, मधु? मैं ने तुम्हें कितना समझाया था कि अपने बेटेबेटी का प्यार और हक बांटने के लिए मुझे तीसरी औलाद नहीं चाहिए, तुम गर्भपात करवाओ. मगर तुम नहीं मानीं और इसे अपनी सहेली के लिए पैदा किया. खैर, उन के दिल्ली जाने के बाद मैं ने चैन की सांस ली थी मगर यह फिर टपक पड़ी मुझे पापा कहने, हमारे सुखी परिवार में सेंध लगाने के लिए. साफ कहे दे रहा हूं मधु, मेरे लिए यह अनचाही औलाद है. न मैं स्वयं इस का अस्तित्व स्वीकार करूंगा न अपने बच्चों…’’

कशिश आगे और नहीं सुन सकी. उस ने फौरन बाहर आ कर एक रिकशा रोका. अब उसे दिल्ली जाने का इंतजार था, जहां उस के मम्मीपापा व्यस्तता के बावजूद उस के बगैर बेहाल होंगे. प्यार जन्म से नहीं होता है. प्यार तो प्यार करने वालों से होता है और जो प्यार उसे अपने दिल्ली वाले मातापिता से मिला, उस का तो कोई मुकाबला ही नहीं.

मानसून में खाने पीने का रखें खास ख्याल

मानसून ने दस्तक दे दी है. ऐसे में गर्मी से तो कुछ राहत मिली है मगर उमस बढ़ जाने की वजह से पसीना है कि सूखने का नाम ही नहीं ले रहा. इस मौसम में खाने के प्रति बरती गई जरासी भी लापरवाही आपकी तबीयत बिगाड़ सकती है. आइये जानते है किन बातो का रखे विशेष ख्याल …   

बरसात के मौसम में कुछ भी तला-भुना या स्पाइसी खाने से बचे . क्यों कि इससे बदहजमी होने की पूरी संभावना होती हैं लेकिन गर्मी और बरसात के मौसम में खानपान में थोड़ी सी भी लापरवाही बरतने पर सेहत का बैंड बज सकता है. इस अनहाइजीन मौसम में फूड प्लान या डाइट चार्ट बनाना बेहद जरूरी है.

बरसात में गर्मागरम पकौड़े और समोसा की खुशबू भले ही खुद पर नियंत्रण खोने के लिए काफी हो लेकिन इनसे जितना दूर रहा जाए उतना ही बेहतर है.अगर खाने का इतना ही शौक रखते हैं तो घर पर ही साफ-सुथरे तरीके से बनी इन चीजों को बाहर के गंदगी से भरे समोसों और पकौड़ियों की ओर देखें भी नहीं.

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बरसात के मौसम में वातावरण में काफी नमी रहती है. जिसके कारण प्यास कम लगती है. लेकिन इस मौसम में शरीर में पानी की कमी होना बड़ी समस्या बन सकती है. सादे पानी की तो शरीर को जरूरत रहती ही है लेकिन अगर दिनभर में एक या दो गिलास नींबू की शिकंजी मिल जाए तो ताजगी का एहसास बना रहता है.

1.बरसात में नींबू की शिकंजी न सिर्पफ शरीर की रोग-पतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है बल्कि इससे सर्दी और गर्मी के चलते छोटी-मोटी बीमारियां भी नहीं होती हैं. इस मौसम में फलों के जूस का सेवन न करें.

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2.बारिश में फल पानी में भीगते रहते हैं इससे फलों में रस की तुलना में पानी ज्यादा भर जाता है.

3.बरसात में पत्तेदार सब्जियों के सेवन से बचें. अगर पत्तेदार सब्जियां ले भी रही हैं तो इन्हें अच्छी तरह धोकर और एक-एक पत्ती को देखकर ही कुछ बनाएं. फलों को साबुत खाने के बजाय सलाद के रूप में लें. इससे कई तरह के फल थोड़ी-थोड़ी मात्रा में शरीर की जरूरत को पूरा करते हैं.

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4.इस मौसम में आप जो भी डाइटचार्ट बनाएं, उसमें ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर में क्या लेना है और किससे बचना है इसका विशेष ध्यान रखें.

5.बरसात में मौसम तेजी से बदलता है कभी-कभी तेज धूप निकल आती है या कभी बादलों के साथ भयानक उमस रहती है. ऐसे में थोड़ा-थोड़ा पानी पीते रहें. भयानक उमस होने पर शरीर चिपचिपा बना रहता है. इस चिपचिपाहट के चलते शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. पानी इस ऑक्सीजन की कमी को दूर करता है. उमस भरे मौसम में जितना हो सके कम खाएं. ज्यादा खाने से जी मिचलाने की परेशानी हो सकती है. बरसात में ग्रीन टी सेहत के लिए अच्छी रहती है.

रोहित : 9वीं क्लास के छात्र किस वजह से परेशान थें

हमेशा की तरह आज भी स्टाफरूम में चर्चा का विषय था 9वीं कक्षा का छात्र रोहित, जिस की दादागीरी से उस के सहपाठी ही नहीं बल्कि अन्य कक्षाओं के छात्रों सहित टीचर्स भी परेशान थे. प्राचार्य भी उस की शिकायत सुनसुन कर परेशान हो गए थे. न जाने कितनी बार उसे अपने औफिस में बुला कर हर तरह से समझाने की कोशिश कर चुके थे, पर नतीजा सिफर ही था.

रोहित पर किसी भी बात का कोई असर नहीं होता था. उस के गलत आचरण को निशाना बना कर उस पर कोई कड़ी कार्यवाही भी नहीं की जा सकती थी कारण कि वह फैक्टरी मजदूर यूनियन के प्रमुख का बेटा था और उन से सभी का वास्ता पड़ता रहता था. कैमिस्टरी की टीचर संगीता को देखते ही बायोलौजी टीचर मीना ने कहा, ‘‘मैडम, इस बार तो 9वीं कक्षा की क्लास टीचर आप होंगी. संभल कर रहिएगा, रोहित अपने आतंक से सभी को परेशान करता रहता है.’’

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‘‘कोई बात नहीं मिस. हम उसे देख लेंगे. है तो 15 साल का किशोर ही न. उस से क्या परेशान होना. आप तो बायोलौजी से हैं. आप को पता ही होगा, इस उम्र के बच्चों के शरीर में न जाने कितने हारमोनल बदलाव होते रहते हैं. अगर सभी तरह के वातावरण अनुकूल नहीं हुए तो नकारात्मक प्रवृत्तियां घर कर लेती हैं. समय पर अगर उन्हें हर प्रकार की भावनात्मक मदद व प्रोत्साहन मिले तो वे अपनेआप ही अनुशासित हो जाते हैं.’’

‘‘ठीक है मैम. लेकिन उस पर उद्दंडता इतनी हावी है कि उस का सुधरना नामुमकिन है.’’

मैथ्स के सर भी चुप नहीं रहे, ‘‘जो भी हो मैडम, पर मैथ्स में उस का दिमाग कमाल का है. कठिन से कठिन सवाल को चुटकियों में हल कर लेता है. पता नहीं अन्य विषयों में उस के इतने कम अंक क्यों आते हैं?’’

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‘‘डिबेट वगैरा में तो अच्छा बोलता है. बस, उसे टोकाटाकी अच्छी नहीं लगती. हां, यह अलग बात है कि वह बस में खिड़की के पास बैठने के लिए हमेशा मारपीट पर उतर आता है. वहां बैठे टीचर्स की भी उसे कोई परवा नहीं रहती.’’

‘‘मैं ने तो न जाने कितनी बार उसे लड़कियों की ओर कागज के गोले फेंकते पकड़ा है, जिन में अनर्गल बातें लिखी रहती हैं,’’ हिंदी वाले सर बोले. हिंदी वाले सर की बात को काटते हुए संगीता मैम ने कहा, ‘‘छोडि़ए सर, अब उस आतंकवादी को मुझे देखना है,’’ कहते हुए वे स्टाफरूम से निकल गईं. 9वीं कक्षा में क्लास टीचर के रूप में संगीता मैम का आज पहला दिन था. वे अटैंडैंस ले रही थीं कि अचानक उन्हें लगा जैसे अभीअभी कोई क्लास में आया हो.

‘‘क्लास में कौन आया है अभी?’’ संगीता मैम ने पूछा, लेकिन कोई उत्तर न पा कर दोबारा बोलीं, ‘‘जो भी अभी आया है खड़ा हो जाए.’’ प्रत्युत्तर में रोहित को खड़ा होते देख कर संगीता मैम ने कहा, ‘‘रोहित, तुम क्लास से बाहर जाओ और आने की आज्ञा ले कर क्लास में आओ.’’ रोहित ने इसे अपनी बेइज्जती समझा. उस ने क्रोध भरी नजरों से संगीता मैम को देखा और दरवाजे को जोर से बंद करते हुए बाहर चला गया. क्लास समाप्ति की घंटी बजते ही संगीता मैम बाहर आईं तो उन्होंने रोहित को बाहर खड़ा पाया. उसे कैमिस्टरी लैब में आने को कहते हुए वे आगे बढ़ गईं. उम्मीद तो नहीं थी कि रोहित उन के कहने पर वहां आएगा, लेकिन अपने आने से पहले रोहित को वहां पर देख कर वे मुसकरा उठीं.

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‘‘अच्छा रोहित, मुझे यह बताओ कि तुम क्लास में फिर क्यों नहीं आए? इस से तो तुम्हारा ही नुकसान हुआ न. आज मैं ने ‘औरगैनिक कैमिस्टरी, कैमिस्टरी की कौन सी ब्रांच है, इस की क्या उपयोगिता है?’ नामक पाठ पढ़ाया है. अब तुम्हें कौन समझाएगा? अनुशासित हो कर पढ़ने के लिए बच्चे स्कूल आते हैं. सभी टीचर्स को तुम से कोई न कोई शिकायत है. तुम ऐसे क्यों हो? क्यों इतनी उद्दंडता पर उतर आते हो? घर में अपने मम्मीपापा के साथ भी ऐसे ही करते हो क्या?’’ कहते हुए संगीता मैम ने उस की पीठ क्या सहलाई रोहित रो पड़ा. संगीता मैम ने उसे पहले जीभर कर रोने दिया. फिर जब उस के मन का सारा गुबार निकल गया तो उन्होंने रोहित को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘संकोच की कोई बात नहीं है रोहित. अपने मन की बात कहो. जो भी दुख है उसे बाहर निकालो. तुम्हारी जो भी समस्या है तुम बेझिझक मुझ से कह सकते हो. यहां कोई नहीं है तुम्हें कुछ कहने वाला. तुम्हारा मजाक कम से कम मैं तो नहीं उड़ाऊंगी. इतना विश्वास तुम मुझ पर कर सकते हो.’’

आज तक किसी टीचर ने उस की दुखती रग पर हाथ नहीं रखा था. उन सभी से डांटफटकार के साथ आतंकवादी की उपाधि पा कर वह दिनोदिन उद्दंड होता ही गया. आज पहली बार किसी ने उस के असामान्य व्यवहार का कारण पूछा तो वह भी स्वयं को रोक नहीं पाया. संगीता मैम का प्यार एवं विश्वास भरा आश्वासन पाते ही वह सबकुछ उगलने लगा.

‘‘घर में हम दोनों भाइयों को देखने वाला है ही कौन मैम. जब से होश संभाला मम्मीपापा को हमेशा झगड़ते हुए ही पाया. प्यारदुलार के बदले उन दोनों का क्रोध हम दोनों भाइयों पर कहर बन कर टूटता रहा है. अकारण ही हम भी उन की गालियों का शिकार हो जाते हैं. घर का ऐसा माहौल है कि हंसना तो दूर की बात है, हम खुल कर सांस भी नहीं ले पाते. मम्मीपापा का प्यार हम दोनों ने आज तक जाना नहीं,’’ कहता हुआ रोहित सुबकने लगा. रोहित के बारे में जान कर संगीता मैम को बहुत दुख हुआ. वे उस दिन स्कूल से ही रोहित के घर गईं और अपने अनगिनत प्रश्नों के घेरे में उस के मम्मीपापा को खड़ा कर के समझाते हुए उन की भर्त्सना की. बच्चों के भविष्य का वास्ता दिया, तो उन दोनों ने भी अपने सुधरने का आश्वासन दे कर संगीता मैम को निराश नहीं किया.

दूसरे दिन सर्वसम्मति से रोहित को क्लास मौनीटर बनाते हुए संगीता मैम ने उसे ढेर सारी जिम्मेदारी सौंप दी. फिर तो रोहित के अंतरमन से वर्षों का दबा हीनभावना का सारा अंधकार जाता रहा. अब आत्मविश्वास की ज्योति से जगमगाते हुए एक नए रोहित का जन्म हुआ. देखते ही देखते सब टीचर्स का मानसम्मान करता वह सब का प्रिय बन गया. संगीता मैम ने भी ऐसे चमत्कार की उम्मीद नहीं की थी. हर साल लुढ़क कर पास होने वाला रोहित अब क्लास में ही नहीं स्कूल की भी सारी गतिविधियों में प्रथम आ कर सब को आश्चर्यचकित करने लगा था. ‘यूथ पार्लियामैंट’ नामक एकांकी में प्रधानमंत्री की भूमिका निभा कर वह सारे जोन में प्रथम आया. दिल्ली के मावलंकर सभागार में उसे पुरस्कृत किया गया. सारे अखबार, टीवी चैनल्स पर वह न जाने कितने दिन तक छाया रहा.

‘‘अरे भाई, रोहित तो हमारे स्कूल का बड़ा होनहार छात्र है,’’ जो टीचर्स उस की शिकायतें करते नहीं थकते थे उन की जबान पर अब यही शब्द थे. रोहित के मम्मीपापा के पैर तो जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे. वे संगीता मैम को धन्यवाद देते नहीं थक रहे थे. स्कूल को सभी तरह से गौरवान्वित करता रोहित अब सब का प्रिय छात्र बन गया था.

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