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Romantic Story: मानिनी – भाग 3

रवि कमरे से निकल गया. मगर उस की आंखों के पटल से मोनाली का वह दृश्य मिट नहीं पाया था. रवि ने भी फोन पर तनु को सम झाया कि जो कुछ उस ने देखा है वह ऐक्सिडैंटल एनकाउंटर मात्र था. एक दिन मोनाली ने रवि के कमरे में अपना मनपसंद रूम फ्रैशनर स्प्रे किया था. रवि कमरे में घुसते के साथ बोल पड़ा, ‘‘आज कोई स्पैशल खुशबू आ रही है कमरे में.’’

मोनाली वहीं कमरे में कुछ सजावट के सामान रख रही थी. उस ने कहा, ‘‘हां, मैं ने नया स्प्रे किया है. अच्छा नहीं लगा?’’

‘‘नो, नो. तुम्हारी चौइस लाजवाब है. बहुत अच्छा लगा.’’

उसी समय तनु वहां से गुजर रही थी और उस ने उन की बात सुनी. उसे पहली बार भय हुआ कि कहीं शायद अब वह रवि की प्रेमिका नहीं रही.

अगले दिन नए साल का पहला दिन था. नए मेहमान, मोनाली के पिता सुजीत अपनी पत्नी के साथ आए थे. प्रतीक ने रवि से उन का परिचय कराया. फिर प्रतीक और सुजीत दंपती आपस में बातें करने लगे.

सुजीत बोले, ‘‘क्यों न हम नए साल के दिन नए रिश्ते की बात करें? हम लोगों को और मोनाली को तो रवि बहुत पसंद है. आगे आप लोगों की क्या राय है?’’

प्रतीक बोले, ‘‘हम दोनों को तो मोनाली बहुत प्यारी लगी. एक बार रवि से बात कर सगाई की डेट रख लेते हैं.’’

उसी समय तनु चायनाश्ता ट्रे में ले कर आई और टेबल पर सजा गई. उस ने उन लोगों की बातें भी सुनी थीं. उस के दिल में बिजली सी कौंध गई. प्रतीक ने बेटे को आवाज दे कर बुलाया और सुजीत से परिचय करा उन के आने का मकसद बताया.

सुजीत ने रवि से कहा, ‘‘बेटे, तुम को पता है, हम लोग मोनाली के रिश्ते के बारे में तुम्हारी राय जानना चाहते हैं. सबकुछ तुम पर निर्भर करता है. निसंकोच बताना.’’

रवि बोला, ‘‘मु झे थोड़ा वक्त चाहिए.’’

सुजीत बोले, ‘‘हां, कोई जल्दी नहीं. सोच कर अपने पापा को बता देना. वैसे, शुभस्य शीघ्रं.’’

प्रतीक ने बेटे से कहा, ‘‘रात में न्यू ईयर की आतिशबाजी मोनाली को दिखा लाओ.’’

रवि का मन नहीं था, मगर सभी लोगों की जिद के आगे उसे  झुकना पड़ा था. आतिशबाजी की जगह तनु भी अपने मातापिता के साथ गई थी. दोनों ने एक दूसरे को देखा, पर कोई बात नहीं हुई थी.

रवि बोला, ‘‘तो क्या हुआ? हम अमेरिकी हैं. यहां कर्म ही धर्म है. और तनु का परिवार भी एक तरह से हिंदू ही है, वे सब शाकाहारी भी हैं.’’

‘‘तुम्हें पता है कि मोनाली भी पांडे की इकलौती संतान है. वह परिवार भी काफी धनी है. उस पूरे परिवार की संपत्ति भी तुम्हीं लोगों को मिलेगी.’’

‘‘वाह पापा, अब धर्म से धन पर उतर आए. मैं नहीं मानता यह सब.’’

प्रतीक चिल्ला उठे, ‘‘तुम मानो, न मानो. तनु से शादी के पहले तुम्हें अपने मातापिता का क्रियाकर्म करना होगा.’’

दूसरे दिन प्रभा ने तनु की मां आशा को बुला कर उस से कहा कि वह उसे सम झाए कि वह रवि के रास्ते से हट जाए. आशा ने कहा, ‘‘मैं खुद नहीं चाहती कि दोनों की शादी हो. हमारे धर्म, रीतिरिवाज बिलकुल अलग हैं. अपनी बिरादरी में ही हम लोग शादी करते हैं. तनु के पापा भी यही चाहते हैं. वैसे, आप हमारी ओर से क्या चाहती हैं?’’

‘‘आशा, कुछ दिनों के लिए तनु हमारे घर नहीं आए. तुम ही कुछ समय निकाल कर काम कर दिया करो.’’

आशा बोलीं, ‘‘मुश्किल वक्त में आप ने हमें काम दिया था. मैं पहले जितना काम तो नहीं कर सकती, पर आप के कुछ जरूरी काम कर दिया करूंगी.’’

आशा ने घर जा कर तनु को सारी बातें बताईं. उसे सुन कर बहुत बुरा लगा. रवि को अगले दिन लौटना था. उस ने फोन कर तनु से मिलने को कहा.

रवि ने उस से कहा, ‘‘जो कुछ हम दोनों के घर में हो रहा है, तुम्हें पता ही होगा. मेरे मातापिता का कहना है कि उन के जीतेजी मैं तुम से शादी नहीं कर सकता हूं. पर मैं तुम्हें भी खोना नहीं चाहता. मु झ पर भरोसा करो, मोनाली में मेरी कोई रुचि नहीं है. वह मु झ पर थोपी जा रही है.’’

तनु बोली, ‘‘हर प्यार करने वाले को मनचाहा अंजाम मिले, जरूरी नहीं.’’

‘‘पर मैं खोना नहीं चाहता. 4-5 महीनों में दोनों की पढ़ाई पूरी हो रही है. मु झे फ्रीमौंट के विश्वविख्यात इलैक्ट्रिक कार बनाने वाली कंपनी टेस्ला में प्लेसमैंट मिल गया है. मेरा मन करता है विद्रोह कर तुम्हारे साथ घर बसा लूं. क्या तुम तैयार हो?’’

‘‘हरगिज नहीं. दोनों में से किसी परिवार में प्यार या आदर नहीं मिलेगा, न मु झे न तुम्हें. और तुम पुरुष हो, धनी भी हो, साहस कर सकते हो, पर मैं क्या करूं? मां ने मेड का काम कर के हमें पालपोस कर बड़ा किया है. उन की भी कुछ अपेक्षाएं होंगीं. और हम दोनों अपने परिवार की इकलौती संतान हैं. मैं मां की उपेक्षा नहीं कर सकती, भले ही अपने प्यार की बलि देनी पड़े.’’

रवि बोला, ‘‘तुम ने, तुम्हारे मातापिता ने संघर्ष किया है और इस की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, मैं मानता हूं. पर मेरे मम्मीपापा तो बस पुरानी सोच और रूढि़वादिता के शिकार हैं.’’

तनु ने कहा, ‘‘जैसे भी हों, हैं तो हमारे जन्मदाता. प्यार में जीतना ही हमारा लक्ष्य नहीं होना चाहिए. मेरे कुछ खोने से किसी को खुशी मिले, तो मु झे दोगुनी खुशी मिलती है.’’

रवि ने तनु का एक हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तुम अब उपदेश देने लगीं. मैं तो चाहता था कि यह हाथ कभी न छोड़ूं.’’

‘‘दोनों के परिवार की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए हमें कुछ त्याग करना होगा. विडंबना है कि हम अमेरिकी हो कर इतने दिनों बाद भी पुरानी सोच और ढोंग से उबर नहीं सके हैं. उम्मीद करो कि हम से आगे की पीढ़ी को ऐसी स्थिति का सामना न करना पडे़,’’ तनु बोली.

थोड़ी देर दोनों खामोश रहे. फिर तनु ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘एक खुशखबरी है. मेरा भी प्लेसमैंट टेस्ला के अकाउंट डिपार्टमैंट में हो गया है. पिछले वर्ष इंडियन प्राइम मिनिस्टर भी इस प्लांट में आए थे, तुम्हें याद होगा.’’

रवि बोला, ‘‘यह तो बहुत अच्छा है, तुम से मुलाकात तो होती ही रहेगी.’’

तनु बोली, ‘‘मैं कभी तुम्हारी मानिनी प्रियतमा थी, मानिनी पत्नी होने के सपने देखा करती थी. मौजूदा हालात में मु झे बहुत खुशी होगी अगर तुम मु झे आजीवन मानिनी मित्र सम झोगे. यह मेरे लिए सुकून की बात होगी.’’

तनु ने अपनी दोस्ती का दूसरा हाथ भी रवि की ओर बढ़ा दिया.

चंद्रमणि-भाग 2 : मुरझाया गुलाब बन कर क्यों रह गई थी चंद्रमणि

‘‘राजीव, आज इतने सालों बाद मिले हो, क्यों मेरे घावों को हरा करना चाहते हो?’’

‘‘मैं तुम्हारे घावों को हरा नहीं करना चाह रहा, मैं सिर्फ एक दोस्त के नाते तुम्हारी मदद करना चाहता हूं.’’ ‘‘जब मेरी अपनी परछाईं ही मेरा साथ छोड़ गई तो तुम मेरी क्या मदद कर पाओगे? मुझ से ज्यादा दुखी इस दुनिया में और कौन होगा?’’

‘‘दुख कह देने से दिल का भार कम हो जाता है चंद्रमणि.’’ वह बताने लगी, ‘‘मेरे बीकौम करने के बाद की बात है. एक दिन मेरे मातापिता ने वैष्णो देवी जाने का कार्यक्रम बनाया. दूसरे दिन वे ड्राइवर को ले कर निकल पड़े. लौटने समय ट्रक व गाड़ी की टक्कर में ड्राइवर सहित तीनों घटनास्थल पर ही खत्म हो गए. शक्ल तक पहचानी नहीं जा रही थी. कहने को तो सोनाचांदी, खेतखलिहान, हवेली सबकुछ था. लाखों की जायदाद थी पर वसीयत न होने से सबकुछ चाचा, ताऊ ने हड़प लिया.

‘‘ताऊजी ने अमीर खानदान के इकलौते वारिस से मेरी शादी करा दी क्योंकि लड़के वालों को दानदहेज की जरूरत तो थी नहीं, बस, मैं पसंद आ गई. बड़ी धूमधाम से हमारी शादी कर दी गई. मेरे पति राजेश मुझे से बहुत प्यार करते थे. सास, ससुर भी अच्छे ही लगे थे. शादी के 2 माह बाद ही की बात है. हमारा कमरा ऊपर था. राजेश रात को सोने ऊपर आए तो उन्हें चक्कर आने लगे. थोड़ी देर बाद ही बोले कि मेरा जी घबरा रहा है. मैं ने कहा कि छत पर जरा खुली हवा में बैठने से ठीक रहेगा. बस, इतने में ही उन्हें खून की उलटी हुई. यह देख कर मैं एकदम घबरा गई व दौड़ कर पिताजी को बताया. उन्होंने उसी समय डाक्टर को बुला लिया व उन्हें अस्पताल ले गए. 2-3 दिन की सारी जांच के बाद पता चला कि उन्हें ‘ब्लड कैंसर’ है. बस, उसी दिन से मुझे मनहूस माना जाने लगा. ‘‘डाक्टर ने मुझे सारी बातें बताईं. राजेश की जिंदगी के अंतिम पड़ाव में मैं उसे खुश रखूं, यह भी सलाह दी. अब तो मेरी अग्निपरीक्षा थी. घर पर सब का व्यवहार मेरे प्रति बेहद रूखा व तनावपूर्ण था. पर मैं सारी परेशानियों को अपने सीने में दफन किए मुसकराना सीख गई, क्योंकि राजेश को मेरा उदास चेहरा कभी नहीं भाया करता था. ‘‘राजेश की हालत बराबर गिरती जा रही थी, कई बार खून चढ़ चुका था पर उन्हें बीचबीच में खून की हलकीहलकी सी उलटी हो जाया करती थी. इस से ज्यादा परेशानियों का पहाड़ मुझ पर और भला क्या टूट सकता था.

‘‘मैं मां बनने वाली थी, इस बात से राजेश बहुत खुश थे, कहते कि हमारे बेटी होनी चाहिए जिस का नाम तुम मणि रखना क्योंकि वह तुम जैसी सुंदर व सुशील बनेगी. राजेश बच्चे के होने तक उसे देखने के लिए जिंदा रहना चाहते थे. जैसेतैसे बच्चा होने के दिन नजदीक आते गए, मैं राजेश की जिंदगी के तेजी से कम होते दिनों के एहसास से सिहर उठती थी. ‘‘एक दिन राजेश को बेचैनी ज्यादा ही हो गई थी. मैं पास ही बैठी उन का सिर व पीठ सहला रही थी, पर किसी भी तरह उन्हें आराम नहीं आ रहा था. मैं अपनेआप को बेबस समझ रही थी कि तभी राजेश बोले, ‘काश, मैं उसे देख पाता.’ कहतेकहते उन की आंखों से आंसू व आवाज से बेबसी झलकने लगी. मैं अब झूठी हंसी हंसतेहंसते बहुत थक चुकी थी. मेरे भी आंसू रुक नहीं रहे थे. न ही मेरे पास हिम्मत बची थी जो मैं राजेश को दे पाती. बस, क्रूर नियति के हाथों मजबूर, अपनी बरबादी को अपनी तरफ बढ़ते देख राजेश को अपने सीने में इस तरह छिपाए थी कि काश, ऐसा कुछ हो जाए व मैं इस खेल में जीत जाऊं, पर नहीं, नियति को यह मंजूर नहीं था.

‘‘डाक्टर आए तो राजेश को यों बच्चे की तरह मुझ से लिपटा देख कर बोले कि क्या बात है? तबीयत कैसी है? मैं ने कहा कि बहुत घबराहट थी, किसी भी तरह बेचैनी कम नहीं हो रही थी. शायद इस स्थिति में थोड़ा आराम मिला है. डाक्टर को उन्हें यों गतिहीन देख समझते देर न लगी. मेरे सिर पर हाथ रख कर बोले, ‘बेटी, इन्हें अपने से दूर करो. मुझे देखना है.’ ‘‘मैं इस बात के लिए तैयार न थी, यह सोच कर कि उन्हें तकलीफ होगी. इतने में नर्स ने डाक्टर का इशारा पा कर उन्हें मुझ से दूर कर पलंग पर लिटा दिया. डाक्टर ने स्टेथस्कोप लगा कर देखा व बिना कुछ बोले मुंह तक चादर ढक कर चले गए. नर्स ने एक परदा पलंग के चारों ओर लगा दिया. अब तो मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं जैसे बीच बाजार किसी ने मेरा सबकुछ लूट लिया हो. मैं अपने नाथ के बिना अनाथ हो गई थी. मुझे अपने चारों तरफ का माहौल बेमानी सा लगने लगा था.

‘‘अभी उन्हें गुजरे 15 दिन भी नहीं बीते थे. एक दिन मैं अपने कमरे में सो रही थी. कुछ आहट सुन मेरी नींद खुली तो पिताजी को पलंग पर बैठे पाया. यह क्या, उन के मुंह से शराब की गंध पा, मेरे पैरों तले धरती खिसक गई. मैं बड़ी मुश्किल से अपनेआप को उन से बचा कर सास की शरण में भागी. उन्हें यह सबकुछ बताया तो वे बोलीं, ‘अरे, इस में इतना डरने की क्या बात है. यह भरपूर जवानी और खूबसूरती दुनिया वालों के काम आए उस से तो तेरे अपने ससुर क्या बुरे हैं.’ मैं माताजीमाताजी करते रोती रही पर वे बस इतना कह कर कमरे से बाहर चली गईं कि यह तो राजपूत घरानो में होती आई रीत है. ‘‘बस, उस रोज जो घर छोड़ा, आज तक मुड़ कर पीछे नहीं देखा. यों जिल्लत की जिंदगी जी कर रोज मरने से तो अच्छा है एक ही बार मरूं. राजेश की यह अमानत व ममता मुझे मरने नहीं देती. तुम नहीं जानते राजीव, मैं किस तरह हर घड़ी इन पुरुषों की खाल में छिपे भेडि़यों से अपनेआप को बचाती रही हूं. अब मुझे इस बेटी की चिंता खाए जा रही है. मेरी समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूं. अब तो मैं इतनी टूट चुकी हूं कि मुझे अच्छेबुरे इंसान की भी पहचान नहीं रही.’’ चंद्रमणि की आंखों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी जिसे रोकना न उचित था, न ही मेरे वश में था, ‘‘हिम्मत रखो, हम तुम्हारे हितैषी हैं,’’ इतना कह कर मैं लौट आया.

घर आ कर सविता को चंद्रमणि का सारा अतीत कह सुनाया. सविता के नेत्र भी सजल हो उठे. वह बोली, ‘‘सच, नारी की सब से बड़ी दुश्मन भी नारी ही है व सब से बड़ी हमदर्द भी नारी ही है. नारी के दुख को नारी ही समझ सकती है.’’ तभी जैसे सविता को एकदम कुछ याद आया हो. एक अंतर्देशीय पत्र पकड़ाते हुए बोली, ‘‘लो, तुम्हारे प्यारे जयसिंह का.’’ मेरी खुशी का तो ठिकाना न था. जल्दीजल्दी पत्र पढ़ा व बोला, ‘‘अरे सुनो, जय अगले महीने की 25 तारीख को जयपुर यूनिवर्सिटी में किसी सैमिनार में भाग लेने आ रहा है व उस के बाद 2-4 दिन ठहरेगा, मजा आ जाएगा. सविता तुम्हें मालूम है उस की व मेरी शादी…’’

सविता बीच में ही हंस कर बोल पड़ी. ‘‘हांहां, एक ही दिन हुई थी और इसीलिए वह हमारी शादी में नहीं आ सका. तुम दोनों एकदूसरे को बहुत प्यार करते हो. पर पिछले 1 साल से दोनों के बीच समाचारों का आदानप्रदान नहीं हो सका.’’ और सविता व राजीव जोर से हंसे. पिछले कुछ दिनों से सविता व चंद्रमणि का मेलजोल काफी बढ़ गया था. अब तो चंद्रमणि जब स्कूल जाती तो अपनी बेटी को सविता के पास ही छोड़ जाती व स्कूल से आ कर थोड़ी देर के लिए मेरे बेटे को अपने साथ ले जाती. दोनों बच्चों को भी एकदूसरे का साथ मिल गया था. सो, वे भी खुश रहने लगे थे. चंद्रमणि सविता को भाभी कह कर बुलाती व सविता उसे स्नेह से चंद्र कह कर पुकारती. एक दिन मैं औफिस से जल्दी आ गया था. देखा सविता बड़े अधिकार से चंद्रमणि से कह रही थी, ‘‘देखो चंद्र, तुम्हें कल से 1 सप्ताह की छुट्टी लेनी होगी क्योंकि इन के एक दोस्त सैमिनार के लिए 5 दिनों के लिए जयपुर आ रहे हैं और तुम्हें काम में मेरा हाथ बंटाना होगा.’’

आर्केस्ट्रा ग्रुप में शामिल होने पर कैसी है कमाई

गानेबजाने की कला कुछ लोगों में जन्मजात होती है, वहीं जिन को गीतसंगीत का शौक होता है, वे इसे सीख भी लेते हैं, मगर अच्छा गानेबजाने वाला अब हर कोई तो अरिजीत सिंह या लता मंगेशकर बन नहीं सकता, पर इस हुनर से घर चलाने के लिए अच्छा पैसा कमाया जा सकता है. अगर अच्छा मौका मिलने लगा तो लोग लखपतिकरोड़पति बनते भी देखे जा रहे हैं.

लखनऊ, उत्तर प्रदेश के रहने वाले प्रमोद श्रीवास्तव की उंगलियां बचपन से ही बढ़िया ताल देती थीं यानी जो भी बरतन मिले, डब्बा मिले या स्कूल की बैंच ही क्यों न हो, प्रमोद की उंगलियां उस पर बिलकुल ऐसी बजतीं, जैसे कोई बड़ा उस्ताद तबला बजा रहा हो. उस का एक दोस्त गाना बहुत अच्छा गाता था, तो दोनों की जोड़ी स्कूल में काफी मशहूर थी.

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घर वालों को लगा कि प्रमोद की गीतसंगीत में दिलचस्पी है, तो उन्होंने उस का एडमिशन भातखंडे संगीत महाविद्यालय में करवा दिया, जहां शाम को वह एक घंटे की क्लास में तबला बजाने की प्रैक्टिस करने लगा.

जल्दी ही प्रमोद तबला बजाने में उस्ताद हो गया. उस ने अपने गायक दोस्त और भातखंडे महाविद्यालय के कुछ दूसरे कलाकारों के साथ मिल कर एक छोटी सी संगीत मंडली बना ली. पहले यह मंडली अपने महल्ले में होने वाले पूजा समारोहों में भजन संध्या करती थी, जिस के लिए वह 3,000 रुपए से 5,000 रुपए तक लेती थी बाकी वहां आए लोग ही काफी भेंट चढ़ा देते थे.

रातभर के कीर्तन के बाद सुबह प्रमोद के पास कोई 7,000-8,000 रुपए जमा हो जाते थे, जिन्हें वे आपस में बराबर बांट लेते थे.

धीरेधीरे जब कुछ पैसे जमा हो गए तो प्रमोद ने कीपैड और गिटार जैसे वाद्य यंत्र खरीद कर अपना छोटा सा आर्केस्ट्रा ग्रुप बना लिया. यह ग्रुप शादीब्याह में धमाकेदार फिल्मी गीत सुनाता और बीच बीच में चुटकुलेबाजी भी होती रहती. रातभर लोगों का जबरदस्त मनोरंजन होता.

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जल्दी ही प्रमोद को अच्छे औफर मिलने लगे. उस ने अपने आर्केस्ट्रा की कीमत भी बढ़ा दी. एक डांसर को भी साथ ले लिया. यह आर्केस्ट्रा ग्रुप अब बुकिंग पर शहर के बाहर के प्रोग्राम भी लेने लगा. पैसा अच्छा मिले तो आसपास के गांवदेहात में भी वे प्रोग्राम करने जाने लगे, जहां गांव वाले रातभर जमघट लगा कर जोश बढ़ाए रखते थे.

5 साल के अंदर ही प्रमोद की आर्केस्ट्रा पार्टी खूब पैसा कमाने लगी, हालांकि बीते 2 साल से कोरोना के चलते उन का काम ठप पड़ा है, मगर ग्रुप के सभी सदस्यों के अकाउंट में इतना पैसा तो जमा था कि कोरोना काल में उन्हें किसी से उधार नहीं लेना पड़ा.

दिल्ली के कीर्ति क्लब में करवाचौथ के दिन श्यामली मेहरा शाम से ही अपनी कीर्तन मंडली के साथ आ जाती है. पिछले 6 साल से उन्हीं की कीर्तन मंडली को यहां बुलाया जा रहा है. वे इस के लिए 30,000 रुपए लेती हैं. व्रत करने वाली सुहागिनों को करवा की कहानी सुनाने के बाद श्यामली की कीर्तन मंडली 4-5 घंटे भजन संध्या करती है. दूरदूर से औरतें यहां भजन सुनने के लिए आती हैं. वे मंडली के लिए तोहफे और चढ़ावे भी लाती हैं.

श्यामली मेहता माता की चौकी भी करती हैं. साईं बाबा के मंदिरों में भी भजन का प्रोग्राम करती हैं, जिस से काफी कमाई हो जाती है. बाकी दिनों में वे अपना बुटीक चलाती हैं.

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मनोज तिवारी के गीतों ने भोजपुरी संगीत को काफी लोकप्रिय किया है. आजकल भोजपुरी आर्केस्ट्रा में भी अच्छी कमाई हो रही है. पूर्वांचल में तो भोजपुरी आर्केस्ट्रा के बिना अब शादीब्याह अधूरा जान पड़ता है. आधी रात तक धमाकेदार गीतसंगीत पर नचनिया का नाच हुए बिना शादी समारोह पूरा नहीं होता है. भोजपुरी कलाकार आजकल आर्केस्ट्रा पार्टी बना कर धड़ल्ले से कमाई कर रहे हैं.

हरियाणवी कलाकार सपना चौधरी को देख लीजिए. 4-5 गानेबजाने वालों को ले कर कुछ बेहूदा ठुमकों से शुरू हुई यह कहानी आज सपना चौधरी को उस मुकाम पर ले आई है कि वे करोड़ों में खेल रही हैं.

सपना चौधरी आज एक बड़ा नाम हैं. उन्हें देखने के लिए तो भीड़ में गोलियां तक चल जाती हैं. सपना अत्रि (चौधरी ) का जन्म 1990 में दिल्ली के महिपालपुर में हुआ था. उन के पिता उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में छोटे से गांव स्यारोल में रहने वाले थे.

सपना के जन्म से कुछ दिन पहले ही उन का परिवार उन के बड़े भाई के पास महिपालपुर आ गया था. साल 2008 में सपना के पिता भूपेंद्र अत्रि की लंबी बीमारी से मौत हो गई थी, तब वे महज 18 साल की थीं.

पिता की मौत के बाद अपने परिवार की जिम्मेदारियों को संभाले लिए सपना चौधरी ने अपने शौक ‘डांस’ को अपना कारोबार बना लिया और इस के जरीए ही वे खूब पैसा और शोहरत कमा रही हैं.

थोड़ा गीतसंगीत आता हो, कुछ वाद्य यंत्रो जैसे हारमोनियम, तबला, कीपैड, गिटार बजाने वाले साथ हों, एक खूबसूरत कमसिन डांसर और एक चुटकुलेबाज साथ हो तो आर्केस्ट्रा ग्रुप बना कर बढ़िया कमाई की जा सकती है. शहरों में होने वाली शादी पार्टियों, लेडीज संगीत, बच्चों के बर्थडे पार्टी वगैरह में कुछ घंटों की पेशकश के लिए 15,000 रुपए से 50,000 रुपए तक आजकल आर्केस्ट्रा ग्रुप ले रहे हैं. वहीं गांवदेहात की शादियों में भी ठीकठाक कमाई तो हो ही जाती है.

आजकल जहां नौकरियों का टोटा पड़ा है, नौकरियां सुरक्षित नहीं हैं, एक बंधीबंधाई रकम के आगे कोई और कमाई नहीं है, ऐसे में 4-5 लोग मिल कर अगर आर्केस्ट्रा ग्रुप बना लें तो कमाई के मौके बढ़ते ही जाएंगे. फिर गीतसंगीत के कार्यक्रम शाम और रात में होते हैं, ऐसे में पूरा दिन किसी और काम में भी लगाया जा सकता है जिस से कमाई के कई स्रोत एकसाथ बन सकते हैं.

अगर अपना ग्रुप नहीं बना सकते, मगर गाने या बजाने का शौक है तो किसी दूसरे के आर्केस्ट्रा में शामिल हो कर कमाई की जा सकती है. इस से अपना शौक भी पूरा हो जाता है और पैसा भी मिलता है. वहीं अगर लोग आप को पसंद करने लगें और आप की बदौलत आर्केस्ट्रा ग्रुप की कमाई बढ़ने लगे, तो आप के रेट और धमक अपनेआप बढ़ जाएगी. तो सोच क्या रहे हैं… गानेबजाने का शौक है तो रियाज शुरू कीजिए.

Kumkum Bhagya: तनु के जेल जाते ही होगी अभि-प्रज्ञा की मुलाकात, ताजा होंगी सालों पुरानी याद

सीरियल कुमकुम भाग्य कि कहानी में पूरी तरह से बदलाव आ चुका है लीप के बाद से, अब इस सीरियल में सुपर मॉडल तनु अपनी जिंदगी बहुत ज्यादा गरीबी में बीता रही है. जिसके बाद से वह कई दफा चोरी करने पर भी मजबूर हो जाती है. जिससे उसे हिरासत में ले लिया जाता है.

प्रज्ञा केे जाने के बाद से अभि ने खुद को शराब के नशे में डूबो लिया है. वह हर वक्त शराब पीए रहता है. वह अपनी प्रज्ञा को नहीं भूला पा रहा है. अभी तक के एपिसोड में आपने देखा होगा कि प्रज्ञा कपड़े खरीदने बुटिक जाती है तो वह वहां तनु को देख लेती है.

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प्रज्ञा तनु को नजर अंदाज करने की कोशिश करती है हांलांकि तनु प्रज्ञा को देख नहीं पाती है. लेकिन मौका पाते ही तनु प्रज्ञा का बैग चुरा लेती है और जैसे ही इस बात का पता प्रज्ञा को लगता है उसका खून खौल जाता है.

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जिसकी शिकायतो को लेकर प्रज्ञा पुलिस स्टेशन पहुंच जाती है, जिसके बाद से वहां रणवीर अपने बीमार पिता से मिलने आया होता है. जहां रणवीर को पुराने दिन याद आने लगते हैं, इसी बीच प्रची रेहा को देख लेती है.

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इसी दौरान प्रज्ञा को पुलिस की कॉल आ जाती है कि उसके बैग का पता चल चुका है, तो प्रज्ञा अपना बैग लेने अभि के घर पुलिस वालों के साथ पहुंच जाती है. यहां पर अभि और तनु को साथ में देखकर प्रज्ञा के होश उड़ने लगते हैं. जिसके बाद अब कहानी में नया ट्विस्ट आने वाला है. देखना यह है कि इस कहानी में आगे अब क्या होगा.

Imlie : अनु और मीठी के बीच होगी बहस तो आदित्य से दूर होगी इमली

टीवी सीरियल इमली की कहानी काफी ज्यादा बोरिंग हो गई थी, ऐसे में मेकर्स ने इस सीरियल में ट्विस्ट लाने के लिए कहानी में कुछ नया मोड़ लाए हैं.

पिछले एपिसोड में आपने देखा होगा कि अनु और मीठी का पहली बार एक-दूसरे से सामना होगा, जिसके बाद से अनु मीठी के सामने इमली को देव की नजायज औलाद कहेगी, जिसे  सुन मीठी को धक्का लगेगा इसी दौरान इमली वहां आ जाएगी.

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एक लंबे इंतजार के बाद इमली को अपने असली पिता का नाम पता चल जाएगा जैसे ही इमली को पता चलेगा कि देव ही उसका असली पिता है तो वह चौक जाएगी, उसके पैर तले जमीन खिसक जाएगी. मौके पर देव भी पहुंच जाएगा और मीठी इमली के साथ किए पर मांफी मांगेगा.

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सबकुछ जानने के बाद इमली ये बर्दाश्त नहीं कर पाएगी और वहां से अकेली बाहर आ जाएगी. बारिश में भींगते हुए इमली अपने आंसूओं को छुपा तो लेगी लेकिन उसका दर्द उसके चेहरे पर साफ नजर आएगा.

इमली के पीछे-पीछे आदित्या भी आएगा लेकिन वह उसे समझाने की कोशिश करेगा कि ये जो कुछ भी हुआ है इसमें इसकी कोई गलती नहीं है. तभी इमली को एहसास होगा कि इसकी वजह से मालिनी को कितनी चोट पहुंची है.जिसके बाद फैसला करेगी कि मालिनी को अब उसकी सही जगह जरुर मिलेगी.

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अब इमली यह फसला करेगी कि वह आदित्या को छोड़ दे, क्योंकि उसे एहसास होगा कि मालिनी को उसकी वजह से कितनी ज्यादा तकलीफ पहुंची है.

आगे इमली फैसला लेगी कि वह किसी को नहीं छोड़ेगी, अब यह देखना होगा कि इमली के इश फैसले से आदित्या को कितना चोट पहुंचेगा.

 

उत्तर प्रदेश में निराश्रित महिलाओं के लिए बनेगी कार्ययोजना

सूबे के मुखिया योगी आदित्‍यनाथ ने जब से सत्‍ता की बागडोर संभाली है तब से लेकर अब तक वो प्रदेश की महिलाओं व बेटियों की सुरक्षा, स्‍वावलंबन और सम्‍मान के लिए प्रतिबद्ध है. प्रदेश में कवच अभियान और मिशन शक्ति जैसा वृहद अभियान इसके साक्षी हैं. प्रदेश में महिलाओं के लिए कई स्‍वर्णिम योजनाओं का संचालन किया जा रहा है जिससे सीधे तौर पर महिलाओं को लाभ मिल रहा है. प्रदेश में अब जल्‍द ही कोरोना के कारण निराश्रित महिलाओं से जुड़ी एक बड़ी योजना की शुरूआत होने जा रही है. जिसके लिए सीएम ने मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना की तर्ज पर महिला एवं बाल विकास विभाग को विस्तृत कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं. जिसपर विभाग द्वारा तेजी से कार्य शुरू कर दिया गया है.

निराश्रित महिला पेंशन के लिए पात्र महिलाओं को पेंशन वितरण के लिए ब्लॉक व न्याय पंचायत स्तर पर विशेष शिविर आयोजित किए जाने के भी निर्देश दिए हैं. उन्‍होंने राजस्व विभाग द्वारा ऐसी महिलाओं को प्राथमिकता के साथ नियमानुसार पारिवारिक उत्तराधिकार लाभ दिलाए जाने की व्‍यवस्‍था को सुनिश्चित करने के लिए कहा है.

विभाग द्वारा काम किया गया शुरू, सीधे तौर पर मिलेगा महिलाओं को लाभ

कोरोना काल में निराश्रित हुई महिलाओं के लिए एक विशेष योजना को विभाग द्वारा तैयार किया जा रहा है. महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से सीएम के निर्देशानुसार कार्ययोजना पा काम शुरू कर दिया गया है. विभाग के निदेशक मनोज कुमार राय ने बताया कि प्रदेश में कोरोना काल में निराश्रित हुई महिलाओं को पहले चरण में चिन्हित किया जाएगा जिसके बाद इन चिन्हित महिलाओं को राज्‍य सरकार की स्‍वर्णिम योजनाओं से जोड़ते हुए उनको स्‍वावलंबी बनाने का कार्य किया जाएगा. उन्‍होंने बताया कि जल्‍द ही योजना को तैयार कर ली जाएगी.

वृद्धजनों की जरूरतों व समस्याओं का त्वरित लिया जाएगा संज्ञान

सीएम ने आला अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि ओल्ड एज होम में रह रहे सभी वृद्धजनों की जरूरतों और समस्याओं का त्वरित संज्ञान लिया जाए. इनके पारिवारिक विवादों का समाधान जल्‍द से जल्‍द कराने संग इनके स्वास्थ्य की बेहतर ढंग से देखभाल किए जाने के निर्देश दिए.

बैंकिग सेवाओं को गांव-गांव तक पहुंचाने का काम करेगी बैंक सखी

राज्य सरकार ने महिलाओं को रोजगार देने की में उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी पहल की है. गांव-गांव तक बैंकिंग सेवाओं को पहुंचाने के लिये उसने 17500 बीसी सखी (बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट) बनाने का काम पूरा कर लिया है.

प्रदेश के ग्रामीण विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने बताया कि 17500 बीसी सखी का प्रशिक्षण पूरा हो चुका है और उनको पैसा हस्तांतरित किया जा रहा है.  इसके अलावा 58 हजार बीसी सखी को प्रशिक्षण देने का काम तेज गति से किया जा रहा है.

सरकार के इस प्रयास से बैंकिंग सेवाएं लोगों के घरों तक पहुंची हैं. ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को अपने बैंक खातों से धनराशि निकालने और उसे जमा करने में बड़ी आसानी हुई है. उनका बैंक शाखाओं तक जाने का खर्चा बच रहा है और घर के करीब ही बैंक के रूप में बीसी सखी मिल जा रही हैं.

सीएम योगी आदित्यनाथ ने आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश बनाने के लक्ष्य को पूरा करने के लिये मिशन रोजगार, मिशन शक्ति और मिशन कल्याण योजनाओं को शुरु किया है. इसके तहत तैयार किये गये मास्टर प्लान को सरकार से सम्बद्ध संस्थान तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं. इस क्रम में बैंक ऑफ बड़ौदा और यूको बैंक के सहयोग से यूपी इंडस्ट्रियल कंसलटेंट्स लिमिटेड (यूपीकॉन) ने 1200 बीसी सखी (बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट) बना लिये हैं. कम्पनी अगले साल तक 7000 बीसी सखी बनाने के लक्ष्य को पूरा करने में लगी है. गांव से लेकर शहरों में बीसी सखी 24 घंटे बैंकिंग सेवाएं दे रहे हैं.

22 मई 2020 से उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य की सभी महिलाओं को लाभ पहुंचाने के लिये बीसी सखी योजना की शुरुआत की. इस योजना के तहत उत्तर प्रदेश राज्य की सभी महिलाओं को रोजगार के नए अवसर मिले हैं. उत्तर प्रदेश् राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन की ओर से प्रदेश में 30 हजार हजार बीसी सखी बनाने का कार्यक्रम बैंक ऑफ बड़ौदा के साथ मिलकर किया जा रहा है. यूपी इंडस्ट्रियल कंसलटेंट्स लिमिटेड (यूपीकॉन) इसमें भी सहयोगी की भूमिका निभा रहा है. इससे पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति, वित्त एवं विकास निगम लिमिटेड के माध्यम से 500 अनुसूचित जाति के युवक-युवतियों को रोजगार के अवसर देते हुए बीसी सखी बनाए हैं.

बीसी सखी बनाने के लिये पूर्व सैनिकों, पूर्व शिक्षकों, पूर्व बैंककर्मियों और महिलाओं को प्राथमिकता दी गई है. बीसी सखी बनने के लिये योग्यता में 12वीं कक्षा पास होना अनिवार्य किया गया है. अभ्यर्थी को कम्यूटर चलाना आना चाहिये, उसपर को वाद या पुलिस केस नहीं होना चाहिये. ऐसे अभ्यर्थी के चयन से पहले एक छोटी सी परीक्षा भी ली जाती है. इसमें उत्तीर्ण होने वाला अभ्यर्थी बीसी सखी बन सकता है.

इज्जतदार काम मिला और लोगों की सेवा का अवसर भी

बड़हलगंज जिला गोरखपुर में बीसी सखी योजना से जुड़ने वाले धर्मेन्द्र सिंह ने बताया कि वो पहले वस्त्र उद्योग से जुड़े थे. बीसी सखी योजना से जुड़ने के बाद उनको काफी फायदा हुआ. उनका कहना है कि इज्जदतार काम मिलने के साथ लोगों की सेवा का भी बड़ा अवसर मिला है. लोगों को तत्काल बैंकिंग सेवा मिलने से खुद को भी खुशी होती है.

बीसी सखी योजना से जुड़कर प्रत्येक माह मिलने लगी एक निश्चित आमदनी

कस्बा सेथल जिला बरेली के आसिफ अली ने बताया कि बीसी सखी बनने के बाद भविष्य सुरक्षित करने के लिये प्रत्येक माह एक निश्चित आमदनी का माध्यम बना है. इससे पहले मैं ऑनलाइन कैफे चलाता था, ऑनलाइन आधार बनाने का भी काम करता था. इन सेंटरों के बंद होने के बाद रोजगार नहीं था. इसके बाद बीसी सखी योजना से जुड़कर एक स्थायी रोजगार मिला है.

लोगों को बैंकों में लाइन लगाना और समय लगाना हुआ बंद

लखनऊ में नक्खास निवासी मोहसिन मिर्जा ने बताया कि बीसी सखी योजना के तहत बैंकिंग सेवाओं को देना रोजी-रोटी का बेहतर साधन बना है. सबसे अधिक फायदा इससे बैंक के ग्राहकों को हुआ है. उनको बैंक में लाइन लगाने और समय लगाना बन्द हो गया है और बैंक तक जाने का किराया भी उनका बचा है. छोटे स्तर पर बैंकिंग सेवाएं लोग हमारे केंन्द्रों से ले रहे हैँ.

बैंकिंग सेवाओं को आसानी से प्राप्त करने की बड़ी पहल

सोनभद्र के भगवान दास बताते हैं कि बीसी सखी योजना से उनको रोजगार मिला है. प्रत्येक माह उनकी आमदनी बढ़ती जा रही है. सबसे अधिक सुविधा ग्राहकों को मिली है. सरकार की ओर से बैंकिंग सेवाओं की बड़ी सौगात खासकर गांव के लोगों को दी गई है. ग्रामीण पहले बैंक से पैसा निकालने और जमा करने में आने-जाने में जो खर्चा करते थे उसकी भी बचत हो रही है.

उत्तर प्रदेश में कोविड के समय घर लौटे श्रमिकों की व्यवस्था के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को सराहा

योगी सरकार ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई पूरी प्रतिबद्धता के साथ जारी रखते हुए विकास और जनकल्‍याणकारी योजनाओं को प्रभावी ढंग से प्रदेश में लागू किया. उच्‍चतम न्‍यायालय ने भी अपने फैसले में कोविड 19 के कारण दूसरे प्रदेशों से घर वापस आने वाले श्रमिकों के लिए प्रदेश सरकार द्वारा की गई व्यवस्थाओं की तारीफ की है. कोर्ट ने संज्ञान लिया कि पोर्टल पर अपलोड डाटा के अनुसार उस दौरान कुल 37,84,255 श्रमिकों की घर वापसी हुई थी. स्किल मैपिंग के बाद अब तक 10,44,710 श्रमिकों को सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत संघटित क्षेत्र में रोजगार दिया जा चुका है. इसके अलावा अधिकांश को रोजगार से जोड़े जाने के कारण दूसरी लहर में सिर्फ चार लाख प्रवासी ही आए. कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ते हुए रोजगार के साथ-साथ विकास की कड़‍ियों को जोड़ते हुए प्रदेश सरकार ने न सिर्फ प्रवासी मजदूरों की घर वापसी कराई बल्कि उनके भरण पोषण की व्‍यवस्‍था करते हुए श्रमिकों को सरकार की स्‍वर्णिम योजनाओं के तहत रोजगार भी दिलाया है.

प्रवासी श्रमिकों की परेशानियों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने दो याचिकाओं को निस्‍तारित करते हुए यूपी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की तारिफ की. कोरोना काल के दौरान प्रदेश सरकार ने श्रमिकों व कामगारों, ठेला, खोमचा,  रेहड़ी लगाने वालों की भरण-पोषण की व्‍यवस्‍था को सुनिश्‍चित किया. लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्‍या में यूपी लौटे श्रमिकों को एक हजार रुपए का भरण-पोषण भत्ता दिया गया. उनको राशन किट का वितरण करने का बड़ा काम किया. बता दें क‍ि नीत‍ि आयोग, बाम्‍बे हाईकोर्ट, डब्‍ल्‍यूएचओ के बाद सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार की सराहना की है.

दक्षता के अनुसार श्रमिकों को दिया गया रोजगार

प्रदेश सरकार ने जिला मुख्‍यालय पर इनकी स्किल मैपिंग कराई और उनकी दक्षता के अनुसार स्थानीय स्तर पर उनको रोजगार देने का भी भरसक प्रयास किया. प्रदेश सरकार के इन प्रयासों का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार के इन प्रयासों का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस बाबत पंजीकरण से लेकर स्किल मैपिंग तक के कार्यो को खुद में बड़ा काम माना है. बता दें कि प्रदेश सरकार ने अपनी कई योजनाओं से इन श्रमिकों को जोड़ते हुए रोजगार दिया.

पारदर्शिता के लिए बनाया गया पोर्टल

सरकार अपने इन कर्यो के बारे में सुप्रीमकोर्ट में शपथपत्र भी दे चुकी है. यही नहीं पारदर्शिता के लिए  http://www.rahat.up.nic.in नाम से एक पोर्टल भी बनवाया था. इसमें वापस आए श्रमिकों और उनके हित में सरकार द्वारा उठाए गए सभी कदमों की अपडेट जानकारी थी.

कम्युनिटी किचन की पहल

जरूरतमंद प्रवासी श्रमिकों और अन्य को भूखा न रहना पड़े इसके लिए प्रदेश सरकार ने कम्युनिटी किचन की शुरुआत की जिसका उल्लेख सुप्रीम कोर्ट ने भी किया और अन्य राज्यों को भी यह व्यवस्था चलाने को कहा.

1,51,82,67,000 रुपये 15.18 लाख प्रवासियों को किए गए हस्तांतरित

योगी सरकार ने कोरोना संक्रमण के दौरान प्रवासी कामगारों व श्रमिकों को सभी तरह की सुविधाएं पहुंचाई. जिसके तहत परिवहन निगम की बसों के जरिए लगभग 40 लाख प्रवासी कामगरों व श्रमिकों को उनके गृह जनपदों तक भेजने, चिकित्‍सकीय सुविधाएं उपलब्‍ध कराने व उनको स्‍थानीय स्‍तर पर रोजगार दिलाने के लिए बड़े पैमाने पर व्‍यवस्‍था की गई. इसके साथ ही प्रवासी श्रमिकों को राशन किट वितरण के साथ ही आर्थिक सहायता देते हुए प्रति श्रमिक एक हजार रुपए की धनराशि भी ऑनलाइन माध्‍यम से दी. इन लाभों में से 20.67 लाख परिवारों ने लाभ उठाया, जिसमें से 16.35 लाख को 15-दिवसीय राशन किट प्रदान किया गया. कुल 1,51,82,67,000 रुपये 15.18 लाख प्रवासियों को हस्तांतरित किए गए हैं. राशन किट के अलावा योगी सरकार ने सामुदायिक रसोई की भी स्थापना की.

सबक-भाग 1: भावेश की मां अपनी बहू को हमेशा सताती रहती थी

कांच का टूटना अच्छा नहीं होता. जरा संभल कर काम किया कर,’ पुष्पा ने अपनी बहू अंजना को  टोकते हुए कहा.

अंजना चाह कर भी कुछ न कह पाई… पिछले एक हफ्ते से उस की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी, उस पर नौकरानी के न आने के कारण काम भी बढ़ गया था. चाय का कप धोते हुए न जाने कैसे उस के हाथ से फिसल गया और टूट गया… उस ने झाड़ू उठाई और फर्श पर पड़े कप के टुकड़े साफ करने लगी.

‘तेरी मां ने कुछ सिखाया है या नहीं, अरे शाम ढले घर में झाड़ू लगाने से लक्ष्मीजी घर में प्रवेश नहीं करतीं. झाड़ू से नहीं कपड़े से इन टुकड़ों को उठा,’ पुष्पा ने क्रोध भरे स्वर में अंजना से कहा.

उसी समय भावेश ने घर में प्रवेश किया. मां को अंजना पर क्रोधित होते देख उस ने शांत स्वर में कहा, ‘मां तुम्हें याद है, जब मैं इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा के लिए जा रहा था तो मुझे अचानक छींक आ गई. तुम ने मुझे दही, पेड़ा दोबारा खिला कर उस अपशगुन को शगुन में बदला, किंतु जैसे ही मैं घर के दरवाजे से बाहर निकला, एक काली बिल्ली मेरे सामने से निकल गई. तुम ने तुरंत मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा था कि 10 मिनट के अंदर 2-2 अपशगुन… आज मैं तुझे कहीं नहीं जाने दूंगी.

‘तुम्हारी हर बात सुन कर सदा शांत रहने वाले पिताजी ने उस दिन मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा था कि बेटा जल्दी चल. हम पहले ही लेट हो गए हैं. अगर अपनी मां की बात सुनता रहा, परीक्षा में लेट हो गया तो उस से बड़ा अपशगुन कोई नहीं होगा.

‘मां तुम्हारे उस अपशगुन के बावजूद उस वर्ष हायर सेकंडरी की परीक्षा में मेरिट लिस्ट में न केवल मेरा नाम आया, वरन उसी वर्ष मेरा आईआईटी, कानपुर के लिए चयन भी हो गया. इस के बावजूद भी तुम आज तक शगुनअपशगुन के चक्कर में, यह न करो वह न करो में लगी हुई हो. जिसे जैसा करना है करने दो… दुनिया बदल रही है, तुम भी स्वयं को बदलो. अब यह टोकाटोकी बंद करो.’

मां को छोटी सी बात पर बिगड़ते देख सदा शांत रहने वाले भावेश के स्वर में आज न जाने कैसे तीखापन आ गया था.’बहुत आया बीवी की तरफदारी करने वाला… ऐसे ही तोड़तीफोड़ती रही तो जम चुकी तेरी गृहस्थी. तिलतिल कर के जोड़ी जाती है गृहस्थी.

‘एक तुम लोग हो… पूरा कप का सेट बिगड़ गया और कुछ फर्क ही नहीं पड़ा. तभी तो आज की पीढ़ी दोनों के कमाने पर भी सदा पैसे की कमी का रोना रोती रहती है. एक हम लोग थे… पाईपाई जोड़ी तभी तुम्हें आज इस लायक बना पाए हैं.’

बेटे का तीखा स्वर सुन कर भी पुष्पा चुप न रह सकी और अंजना पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए आदतन बोल उठी.‘क्यों राई का पहाड़ बनाने पर तुली हो? जब देखो तब जराजरा सी बात पर टोकाटोकी… परेशान हो गया हूं रोज की चिकचिक सुन कर. एक कप ही तो टूटा है…

‘घर आ कर थोड़ा सुकून पाना चाहता हूं, पर यहां भी चैन नहीं. वह कोशिश तो कर रही है तुम्हारे साथ निभाने की. तुम यह क्यों नहीं समझती कि तुम मेरी मां हो, तो वह मेरी पत्नी है…’‘तो निभा न पत्नी के प्रति दायित्व… मां का क्या, वह तो कैसे भी रह लेगी. भले की बात समझाओ तो वह भी बुरी लगने लगती है… न जाने कैसा जमाना आ गया है?’ पुष्पा ने कहा.

‘मां, मैं तुम्हारी अवमानना नहीं कर रहा हूं… सिर्फ यह समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि अगर अंजना से कभी कोई गलती हो भी जाती है, तो उसे ताना मार कर समझाने के बजाय प्यार से भी तो समझाया जा सकता है…’ भावेश ने स्वर में नरमी लाते हुए कहा.

‘अब तो मेरी हर बात तुम लोगों को बुरी लगती है… इस के कदम रखते ही तू इतना बदल जाएगा, मैं सोच भी नहीं सकती… अब तो तेरे लिए सबकुछ वही है, वह सही, मैं गलत…’ क्रोध से बिफरते हुए मां पुष्पा बोली.’मैं नहीं जानता कि क्या सही है और क्या गलत? मैं घर में सुखशांति चाहता हूं,’ इस बार भावेश के स्वर में फिर तल्खी आ गई.

‘इस का मतलब तो यही है कि मैं ही बेवजह लड़ाई करती हूं?’ पुष्पा ने क्रोधित स्वर में कहा.अंजना ने बीचबचाव करने का प्रयत्न किया तो वे बिफरते हुई बोलीं, ‘पहले तो स्वयं आग लगाती है, फिर अच्छी बनने के लिए पानी डालने आ जाती है…

‘हट, मेरे सामने से, तेरी जैसी मैं ने खूब देखी हैं… पहले मेरे बेटे को फंसा लिया, अब उसे मुझ से दूर करने पर तुली है…’मां की जलीकटी सुन कर अंजना की आंखों में आंसू भर आए और वह अंदर चली गई… पर, भावेश चुप न रह पाया.

बहुत दिनों से मां का अंजना पर छोटीछोटी बात पर क्रोधित होना व चिल्लाना, यह न करो वह न करो की बंदिशों में बांधना उस से सहन नहीं हो रहा था और आज कप टूटने पर इतना बखेड़ा… उस ने बीचबचाव करते हुए मां को समझाना चाहा तो बात संभलने के बजाय बिगड़ती ही चली गई.

उस ने सोचा कि जब बात इतनी बढ़ ही गई है तो आज निबटारा कर ही लिया जाए. कम से कम रोजरोज की चिकचिक से तो नजात मिलेगी. अतः वह भी ऊंचे स्वर से बोला, ‘तुम से तुम्हारा बेटा दूर उस ने नहीं, बल्कि तुम्हारी रोज की टोकाटोकी ने किया है. तुम समझती नहीं या समझना नहीं चाहती कि वह अब तुम्हारी बहू के साथ इस घर की सदस्य भी है. जब तुम उस से ठीक से बात करोगी, तभी वह तुम्हारा सम्मान कर पाएगी.’

‘हां, हां, मैं ही बुरी हूं… कितना कृतघ्न हो गया है तू…? तेरे लिए मैं ने क्याक्या नहीं किया… सब भूल गया. उस कल की छोकरी के लिए आज तू मेरा अपमान करने से भी नहीं चूक रहा है. इस से तो पैदा ही न हुआ होता तो कम से कम यह दुर्दिन तो नहीं देखना पड़ता…

एक रिश्ता किताब का -भाग 1

‘‘बीमार हो तुम, इलाज कराओ अपना. तुम तो इनसान ही नहीं लगते हो मुझे…’’

‘‘तो क्या मैं जानवर हूं?’’

‘‘शायद जानवर भी नहीं हो. जानवर को भी अपने मालिक पर कम से कम भरोसा तो होता है…उसे पता होता है कि उस का मालिक उस से प्यार करता है तभी तो खाना देने में देरसवेर हो जाए तो उसे काटने को नहीं दौड़ता, जैसे तुम दौड़ते हो.’’

‘‘मैं काटने को दौड़ता हूं तुम्हें? अरे, मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं.’’

‘‘मत करो मुझ से प्यार…मुझे ऐसा प्यार नहीं चाहिए जिसे निभाने में मेरा दम ही घुट जाए. मेरी एकएक सांस पर तुम ने पहरा लगा रखा है. क्या मैं बेजान गुडि़या हूं जिस की अपनी कोई पसंदनापसंद नहीं. तुम हंसो तो मैं हंसू, तुम नाचो तो मैं नाचूं…हद होती है हर चीज की…तुम सामान्य नहीं हो सोमेश, तुम बीमार हो, कृपा कर के तुम किसी समझदार मनोचिकित्सक को दिखाओ.’’

ऐसा लग रहा था मुझे जैसे मेरे पूरे शरीर का रक्त मेरी कनपटियों में समा कर उन्हें फाड़ने जा रहा है. आवेश में मेरे हाथपैर कांपने लगे. मैं जो कह रही थी वह मेरी सहनशक्ति समाप्त हो जाने का ही नतीजा था. कोई इस सीमा तक भी स्वार्थी और आधिपत्य जताने वाला हो सकता है मेरी कल्पना से भी परे था. ऐसा क्या हो गया जो सोमेश ने मेरी पसंद की उस किताब को आग ही लगा दी. वह किताब जिसे मैं पिछले 1 साल से ढूंढ़ रही थी. आज सुबह ही मुझे सोमेश ने बताया था कि शाम 4 बजे वह मुझ से मिलने आएगा. 4 से 5 तक मैं उस का इंतजार करती रही, हार कर पास वाली किताबों की दुकान में चली गई.

समय का पाबंद सोमेश कभी नहीं होता और अपनी जरूरत और इच्छा के अनुसार फैसला बदल लेना या देरसवेर करना उस की आदत है, जिसे पिछले 4 महीने से मैं महसूस भी कर रही हूं और मन ही मन परेशान भी हो रही हूं यह सोच कर कि कैसे इस उलझे हुए व्यक्ति के साथ पूरी उम्र गुजार पाऊंगी.

कुछ समय बीत गया दुकान में और सहसा मुझे वह किताब नजर आ गई जिसे मैं बहुत समय से ढूंढ़ रही थी. किताब खरीद कर मैं बाहर चली आई और उसी कोने में सोमेश को भुनभुनाते हुए पाया. इस से पहले कि मैं किताब मिल जाने की खुशी उस पर जाहिर करूं उस ने किताब मेरे हाथ से छीन ली और जेब से लाइटर निकाल यह कहते हुए उसे आग लगा दी, ‘‘इसी की वजह से मुझे यहां इंतजार करना पड़ा न.’’

10 मिनट इंतजार नहीं कर पाया सोमेश और मैं जो पूरे घंटे भर से यहां खड़ी थी जिसे हर आताजाता घूर रहा था. अपनी वजह से मुझे परेशान करना जो अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है और अपनी जरा सी परेशानी का यह आलम कि उस वजह को आग ही लगा दी.

अवाक् रह गया सोमेश मुझे चीखते देख कर जिसे पुन: हर आताजाता रुक कर देख भी रहा था और सुन भी रहा था. मेरा तमाशा बनाने वाला अपना भी तमाशा बनना सह नहीं पाया और झट से मेरी बांह पकड़ अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ने का प्रयास करने लगा.

‘‘बस, सोमेश, अब और नहीं,’’ इतना कह कर मैं ने अपना हाथ खींच लिया और मैं ने सामने खड़े रिकशा को इशारा किया.

रिकशा पर बैठ गई मैं. सोमेश के चेहरे के उड़ते रंग और उस के पैरों के पास पड़ी धूधू कर जलती मेरी प्रिय किताब इतना संकेत अवश्य दे गई मुझे कि सोमेश सामान्य नहीं है. उस के साथ नहीं जी पाऊंगी मैं.

पापा के दोस्त का बेटा है सोमेश और उसे मैं इतनी पसंद आ गई थी कि सोमेश के पिता ने हाथ पसार कर मुझे मांग लिया था जबकि सचाई यह थी कि सोमेश की हैसियत हम से कहीं ज्यादा थी. लाखों का दहेज मिल सकता था उसे जो शायद यहां नहीं मिलता क्योंकि मैं हर महीने इतना कमा रही थी कि हर महीने किस्त दर किस्त दहेज उस घर में जाता.

मैं ही दहेज के विरुद्ध थी जिस पर उस के पिता भारी मन से ही राजी हुए थे. बेटे की जिद थी जिस पर उन का लाखों का नुकसान होने वाला था.

‘‘मेरे बेटे में यही तो कमी है, यह जिद्दी बहुत है…और मेरी सब से बड़ी कमजोरी है मेरा बेटा. आज तक इस ने जिस भी चीज पर हाथ रखा मैं ने इनकार नहीं किया…बड़े नाजों से पाला है मैं ने इसे बेटी. तुम इस रिश्ते से इनकार मत करो.’’

दिमाग भन्ना गया मेरा. मैं ने बारीबारी से अपने मांबाप का चेहरा देखा. वे भी परेशान थे मेरे इस निर्णय पर. शादी की सारी तैयारी हो चुकी थी.

‘‘मैं तुम्हारे लिए वे सारी किताबें लाऊंगा शुभा बेटी जो तुम चाहोगी…’’ हाथ जोड़ता हूं मैं. शादी से इनकार हो गया तो मेरा बेटा पागल हो जाएगा.’’

‘‘आप का बेटा पागल ही है चाचाजी, आप समझते क्यों नहीं? सवाल किताबों का नहीं, किताबें तो मैं भी खरीद सकती हूं, सवाल इस बात का है कि सोमेश ने ऐसा किया ही क्यों? क्या उस ने मुझे भी कोई खिलौना ही मान लिया था कि उस ने मांगा और आप ने लाखों का दहेज ठुकरा कर भी मेरा हाथ मांग लिया…सच तो यही है कि उस की हर जायजनाजायज मांग मानमान कर ही आप ने उस की मनोवृत्ति ऐसी स्वार्थी बना दी है कि अपनी खुशी के सामने उसे सब की खुशी बेतुकी लगती है. बेजान चीजें बच्चे की झोली में डाल देना अलग बात है, आज टूट गई कल नई भी आ सकती है. लेकिन माफ कीजिए, मैं बेजान खिलौना नहीं जो आप के बच्चे के लिए शहीद हो जाऊं.

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