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संपादकीय
काश, मेरी बेटी होती
शोभा अपनी बहू को बेटी की तरह प्यार देने लगी थी. उसे भी एहसास होने लगा कि बहू को भी बेटी बनाया जा सकता है.
भाग - 1
घर वालों को जाति और धर्म में ध्यान में रखकर अपने बेटे की शादी करनी थी इसलिए दिक्कत आ रही थी.
भाग - 2
रक्षा की बहू भी तो कोई पुरानी फिल्मों की नायिका न थी. आखिर जयंति की बेटी जैसी ही एक लड़की रक्षा की बहू बन कर घर आ गई थी.
भाग - 3
तेरी पसंद अच्छी होगी तो क्यों नहीं पसंद करेंगे. पर तू विस्तार से बताएगा उस के बारे में.’’ ‘‘क्या सुनना है आप को? लड़की सुंदर है, शिक्षित है. मेरी तरह इंजीनियर है.
भाग - 4
सुबह शोभा की देर से नींद खुली. उठ कर वह बाथरूम में फ्रैश होने चली गई. मुंह धो कर वह तौलिए से पोंछती हुई बाहर आ रही थी कि सुबहसुबह कोयल सी कुहुक कानों में मधुर संगीत घोल गई.
भाग - 5
शोभा अपनी बहू का यह रूप देखकर खुशी से झूम उठी , उन्होंने कहा कि अगर बेटी होती तो शायद ऐसा नहीं करती.
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