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Casteism : सोशल मीडिया ने फिर पैदा किए जाति के टोले

Casteism : सोशल मीडिया कोई दूसरी दुनिया की चीज नहीं है, यह वह भोंडी, सड़ीगली जगह है जो आम लोग बाहर की दुनिया में भीतर से महसूस करते हैं और अपनी उलटी बेझिझक यहां उड़ेलते हैं. ये भड़ास के वे अड्डे हैं, जहां वे अपनी असल पहचान जाहिर करते हैं.

भारत एक ऐसा देश है जहां विविधता और संस्कृति की आड़ में ऊंची जातियां जातिवाद के बचाव में आने से नहीं कतराते. यहां अलगअलग भाषाएं, खानपान और रहनसहन का मोजैक बेशक है मगर सम्प्रदायों और जातियों के तनाव की ऊंची दीवारें भी हैं, जो सदियों से हमारे समाज को विभाजित करती आई हैं.

जाति व्यवस्था भारतीय समाज की एक ऐसी वास्तविकता है जिस ने न केवल हमारे गांवों और शहरों को बांटा है, बल्कि अब यह डिजिटल दुनिया में भी अपनी जड़ें जमा चुकी है. यहां तक कि सोशल मीडिया का मंच जाति के टोलों में बंट चुका है.

फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप जैसे प्लेटफौर्म्स पर जाति का प्रदर्शन, जातिवादी टिप्पणियां और जाति आधारित ग्रुप्स ने एक नए तरह के सोशल पार्टीशन को जन्म दिया है. गांवदेहातों में जैसे बामनटोला, ठाकुरबाड़ी, चमारटोला, प्रजापति महल्ला, बंसल व अहिरवाल गांव हुआ करते हैं, जिन के घाट, तालाब, पगडंडियां, नल सब बटे हुए होते हैं वैसे ही सोशल मीडिया पर जातियां बंट गई हैं. लोग अपनी जाति के मुताबिक अपने ग्रुप चुनते हैं, अपने दोस्त चुनते हैं, अपने लिए गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड को चुनते हैं, कई बार शादी के लिए लड़कालड़की इन्हीं ग्रुप्स के इश्तेहारों को देखते हैं.

सोशल मीडिया पर ऊंची जातियों के यूजर्स उपनाम के बहाने अपनी जातियों की घोषणा करते हैं और बताते हैं कि वे शर्मा, श्रीवास्तव, झा, सिन्हा, जोशी, मिश्रा, तिवारी, पांडे, चौहान, पवार, सोलंकी, राजपूत इत्यादि हैं और बाकियों से श्रेष्ठ हैं.

जातिवादी तो छोड़िए, कितने ही ऐसे कथित जातिविरोधी यूजर्स सोशल मीडिया पर जातीय उत्पीड़न संबंधित लंबीलंबी पोस्ट करते नहीं थकते पर जब उन के उपनाम की बात आती है तो गर्व से सिंह, उपाध्याय, बनर्जी, ठाकुर लगाते हैं. यह खुद को सुपीरियर या मसीहा देखने की प्रवर्ती है जो किसी आत्ममुग्द्धा से कम नहीं.

दूसरी तरफ यादव, कुर्मी, पटेल, जाट लठमार अंदाज में दिखाई देते हैं. वे अपनी शक्ति और अपनी संख्या का बखान करते हैं. इन जातियों के युवा इंस्टा रील्स में गैंग बना के घूमते दिखाई देते हैं, बुलेट पर यादव, जाट, गुर्जर लिखवा लेते हैं, तमंचे और दूनाली लहरा रहे होते हैं.

बचीकुची निचली जातियों की ऊपरी जातियां अब कुछ आर्थिक संपन्न होने के चलते जाति व्यवस्था को स्वीकार कर पंडो की दी जाति पर ही गर्व करने लगी हैं.

लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ पहचान का मामला है या फिर यह एक तरह का जातिवादी अहंकार है? जब लोग अपनी जाति को अपने नाम के साथ जोड़ कर प्रदर्शित करते हैं, खासकर सोशल मीडिया पर, तो क्या वे अनजाने में ही सामाजिक विभाजन को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं? बात सिर्फ उपनाम की नहीं बात उन सोशल मीडिया ग्रुप्स की है जिस से वे चाहेअनचाहे जुड़ते चले जाते हैं.

उदाहरण के लिए, फेसबुक पर ‘आल इंडिया ब्राह्मण सेवा मंच’ एक ग्रुप है. इसे लगभग 48 हजार लोग फौलो करते हैं. फौलोवर्स की लिस्ट देखें तो त्यागी, झा, दीक्षित, दुबे, पाठक, कौशिक जैसे उपनाम वाले दिखाई देते हैं. इसे चलाने वाले खुद को सोशल मीडिया एक्टिविस्ट कहते हैं. इन की क्या एक्टिविज्म है आइए देखते हैं.

यह ग्रुप हालिया 10 फरवरी को खेल जगत से जुड़ी जानकारी पोस्ट करता है. पोस्ट में रोहित शर्मा के शतक का जिक्र होता है. यह अपने कैप्शन में लिखता है, “भारतीय ब्राह्मण कप्तान रोहित शर्मा लंबे अरसे बाद शतक बना कर जब लौटे तो नजारा खुशी भरा था. कट्टर हिंदू ब्राह्मण शेर रोहित गुरुनाथ शर्मा.”

ऐसी ही एक पोस्ट हौकी प्लेयर राधिका शर्मा पर भी है, जिस में लिखा गया है, “ब्राह्मण समाज की बेटी राधिका शर्मा को राष्ट्रीय स्तर हौकी टीम में चयन पर बधाई. ब्राह्मण स्वर्ण समाज आप पर गर्व करता है.” यानी कि ब्राह्मण है वही गर्व की बात है.

यह एकमात्र ब्राह्मण ग्रुप नहीं है. फेसबुक पर ब्राह्मण टाइप करते ही दसियों ग्रुप लाइनअप हो जाते हैं. किसी के 2 लाख फौलोअर्स हैं तो किसी के 5 लाख. इन में बधाई संदेश और जातीय श्रेष्टता खूब दिखाई देती है. उम्मीद के मुताबिक़ यहां ऊंची जाति के युवा दिखाई देते हैं. यह हैरानी वाली बात नहीं कि हाल में बेंगलुरु बेस्ड आंत्रप्रेन्योर अनुराधा तिवारी ने एक्स पर अपने मसल्स फ्लेस्क्स करते हुए एक फोटो पोस्ट की जिस का कैप्शन ‘ब्राह्मण जीन्स’ लिखा. विवाद बढ़ा तो वह

सिर्फ ब्राह्मण ग्रुप ही नहीं, सोशल मीडिया पर दूसरी जातियों के ग्रुप्स की भी भरमार है. फेसबुक पर ‘यादव समाज’ टाइप करते ही ढेरों ग्रुप्स दिखाई पड़ते हैं जैसे, ‘यादव ब्रांड’, ‘अहीर औफ इंडिया’, ‘यादव किंगडम’. ऐसे ही ‘जाट समुदाय’, ‘जाट परिवार’, ‘जाट एकता’, ‘जाट के ठाट हुक्का और खाट’ जैसे ग्रुप्स आसानी से मिल जाएंगे. कोई भी जाति जो ब्राह्मवाद की देन है लगभग उन सब जातियों के ग्रुप्स फेसबुक पर दिखाई देते हैं. इन ग्रुप्स में लोग अपनी जाति के बारे में चर्चा करते हैं, अपने समुदाय की समस्याओं को उठाते हैं और कई बार दूसरी जातियों के खिलाफ नफरत फैलाते हैं.

ऐसा ही इंस्टाग्राम पर भी है. इंस्टाग्राम पर किसी जाति का कोई शख्स प्रशासनिक पद पर पहुंचा हो, कोई पार्षदी जीता हो, खेल से जुड़ा हो या गैंगस्टर ही क्यों न हो, उस के स्लो मोशन के साथ बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ रील में जाति विशेष के गाने चलने लगते हैं.

ऊंची जातियों के बहुत से गाने पहले ही सोशल मीडिया पर हैं, जैसे-

“हाथ में लेके लट्ठ बामन चाले से
देख के सारा सिस्टम थरथर काम्पे से
दब गया जो बामन तो बामन कौन कवेगा से”

इसी तरह निचली जातियों ने भी खासे गाने बना लिए हैं, जैसे

“जय भीम लिखा रे शीशे पे
वीआईपी नंबर कारा ते
थारे रेंज के बाहर बालक से
छोरे देख चमारा के”

इंस्टाग्राम पर निचली जाति के युवा ज्यादा वोकल नहीं हो पाए हैं. इन में अधिकतर वे ही एक्सप्रेसिव हुए हैं जो इन में भी मजबूत जातियां हैं और आगे बढ़ गए हैं, पर जितनी संख्या में भी हुए हैं उन्होंने अपनी जाति से जुड़े ग्रुप्स जरूर ज्वाइन किए हैं. जैसे, “बेस्ड चमार’, ‘जाटव किंग’, ‘औफिशियल वाल्मीकि समाज’ इत्यादि ये इंस्टाग्राम के कुछ ग्रुप्स हैं. फेसबुक में ऐसे ग्रुप्स की भरमार है क्योंकि वहां ऐसे युवाओं की एक्सेप्टेंसी ज्यादा है वहां रील्स नहीं बनानी पड़तीं और सुंदर दिखने का उतना प्रेशर नहीं है.

हालांकि जातियों के ग्रुप्स में होने वाली चर्चाएं कई बार सकारात्मक होती हैं, जैसे शिक्षा, रोजगार और सामाजिक उत्थान से जुड़े मुद्दे, लेकिन कई बार यहां जातिवादी टिप्पणियां और दूसरी जातियों के प्रति नफरत भरी बातें भी देखने को मिलती हैं. उदाहरण के लिए, ‘भीमटा मुक्त भारत’ ऐसा ग्रुप है जो निचली जातियों व मुस्लिमों को टार्गेट करने के लिए बनाया गया है. इस ग्रुप की अबाउटरी में व्याकरण गलतियों के साथ लिखा हुआ है, “मुसलिम सोचसमझ कर एड होना क्यों कि इस ग्रुप में हलाला पुत्रों का आना मतलब आते ही हिंदू धर्म अपनाना पड़ेगा.”

इस में एक पोस्ट में लिखा गया है, “भीमटादास (दलित) दोहा, क्रमांक 15, अज्ञानी, मूर्ख बेवकूफ सब भीमचट्टों के नाम, ज्ञान की बात पर भी गाली देना जिन का काम.” ऐसे ही ‘इंडिया अगेंस्ट रिजर्वेशन’ नाम से ग्रुप है जो दलितों को टारगेट करने के लिए बनाया गया है.

हालांकि एकदूसरे को टारगेट करने वाले ग्रुप्स सभी जातीयों द्वारा बनाए गए हैं, बावजूद धन, बल और सिस्टेमेटिक तरीके से ऊंची जातियां नीची जातियों को टारगेट करती हैं. दरअसल उन्हें अपनी बातें, ट्रेंड कराने की समझ और टैक्नीक अच्छे से पता हैं, वे संसाधन से लैस हैं, वे ज्यादा टैक्निकल हैं, एआई चलाते हैं, तो सोशल मीडिया पर हावी दिखाई देते हैं. वे यहां तक कि एक्स जैसे प्लेटफौर्म्स पर हैशटैग्स ट्रेंड चलाने की क्षमता रखते हैं.

आंकड़ा 5 साल पुराना है जिसे सीएसडीएस सर्वे ने पब्लिश किया था जो बताता है कि भारत में सोशल मीडिया जैसे, फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम पर सब ज्यादा कब्जा ऊंची जातियों का है.

सोशल मीडिया पर जातिवाद होने के पीछे कई कारण हैं. कोई कुछ तर्क दे सकता है कोई कुछ कह सकता है पर सब से बड़ा और बुनियादी कारण है बाहरी समाज में सोशल मीडिया से ज्यादा अनुपात में जातिवाद का व्याप्त होना है. सोशल मीडिया कोई दूसरी दुनिया की चीज नहीं है, यह वह भोंडा, सड़ा गला रूप है जो आम लोग बाहर की दुनिया में भीतर से महसूस करते हैं और अपनी उलटी बेझिझक यहां उड़ेलते हैं. ये भड़ास के अड्डे हैं. दरअसल अपनी असली पहचान जाहिर करने के आसियाने हैं.

Real Love Story : विस्थापन की कड़वी यादें और वेरा स्लोमिन का साथ

Real Love Story : कम्युनिस्ट क्रान्ति के बाद मात्र 20 साल की उम्र में व्लादिमीर नाबोकोव को रूस छोड़ कर जाना पड़ा. विस्थापन की यादें कड़वी जरूर थीं मगर उन्होंने अपनी लेखनी में इसे जाहिर करना बेहतर समझा और इस में उन की पत्नी वेरा ने उन की सहायता की.

साल 1917. रूस में 2 क्रांतियां हुईं, फरवरी क्रांति और अक्तूबर क्रांति. फरवरी क्रांति के बाद जार निकोलस द्वितीय का शासन यानी राजशाही खत्म हुआ. वह राजशाही जो ‘खूनी रविवार’ जैसी अनेकों घटनाओं के खून से रंगी हुई थी. राजशाही खत्म हुई तो मेंशेविकों (बुर्जुआ) की अंतरिम सरकार सत्ता में आई. मगर यह ज्यादा समय टिक नहीं पाई और अक्टूबर क्रांति में बोल्शेविकों (कम्युनिस्टों) ने सत्ता पलट दी. व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व में एक कम्युनिस्ट सरकार बनी. इस के बाद रूस में गृहयुद्ध छिड़ गया, जिसे वैचारिक युद्ध भी कहा गया.

इस दौरान रूस की अर्थव्यवस्था चरमरा गई, खाद्य संकट गहरा गया और आम लोगों का जीवन अस्तव्यस्त हो गया. कम्युनिस्ट क्रांति के बाद कुलीनों व अमीरों को निशाना बनाया गया, क्योंकि बोल्शेविकों ने उन्हें ‘शोषक वर्ग’ के रूप में देखा.

इस की गाज व्लादिमीर नाबोकोव के परिवार पर भी गिरी जो इसी वर्ग से आते थे. उन के परिवार की संपत्ति जब्त कर ली गई और 1919 में उन के पास अपनी सुरक्षा के लिए भागने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा. तब वे महज 20 साल के थे.

नाबोकोव और उन के परिवार ने पहले क्रीमिया से एक जहाज़ के जरिए रूस छोड़ा. इस्तांबुल की यात्रा की फिर वे यूरोप में बस गए. उन्होंने जरमनी, फ्रांस और अंत में अमेरिका में शरण ली. वही अमेरिका जो आज ट्रम्प युग में शरणार्थी भगाओ मोर्चे में जुटा है.

नाबोकोव ने क्रांति और बोल्शेविकों के प्रति गहरी नाराजगी जताई. वे कम्युनिस्ट विचारधारा के विरोधी बने और इसे फ्रीडम औफ स्पीच और क्रिएटिविटी के लिए खतरनाक माना. जिस का असर आगे चल कर जीवन पर पड़ा और वे चर्चित लेखक बने. उन के लेखन में क्रांति और उस के परिणामों के प्रति एक तीखी आलोचना दिखी. उदाहरण के लिए, उन के उपन्यास ‘द गिफ्ट’ (1938) में रूसी क्रांति और उस के बाद के समाज की जटिलताओं को दर्शाया गया.

अपने विस्थापन की कड़वी यादें भले उन्होंने जाहिर नहीं की मगर उन के लेखनों में यह छाप दिखाई देने लगी. उन के लिखे उपन्यास ‘द गिफ्ट’ और ‘स्पीक, मेमोरी’ (उन की आत्मकथा) में उन्होंने रूस छोड़ने के दर्द और निर्वासन के अनुभव को व्यक्त किया.

व्लादिमीर नाबोकोव की सब से प्रसिद्ध नोवल ‘लोलिता’ (1955) है, जो एक विवादास्पद उपन्यास है और साहित्यिक दुनिया में उन की पहचान बनाने में महत्वपूर्ण रही. मगर वे इस प्रसिद्धि तक शायद उस स्तर तक न पहुंच पाते यदि उन का साथ यहूदी परिवार से आने वाली वेरा स्लोनिम न देतीं.

वेरा स्लोनिम, व्लादिमीर नाबोकोव की पत्नी, उन के जीवन और लेखन में एक अहम भूमिका निभाती रहीं. उन की मुलाकात 1923 में बर्लिन में हुई थी. दोनों ने 1925 में शादी कर ली. वेरा स्लोनिम नाबोकोव की साहित्यिक सहयोगी, संपादक, अनुवादक और उन की सब से बड़ी प्रशंसक थीं. वे उन के लेखन को कम्पोज करती थीं, उन के व्याख्यानों को संगठित करती थीं और यहां तक कि उन के साथ यात्राएं भी करती थीं.

नाबोकोव ने अपनी कई किताबों को वेरा को समर्पित किया और उन के बीच का रिश्ता गहरा प्रेम और साझेदारी पर आधारित था. वेरा नाबोकोव के जीवन में इतनी महत्वपूर्ण थीं कि उन के बिना उन की साहित्यिक उपलब्धियों की कल्पना करना मुश्किल है. नाबोकोव का वेरा के लिए प्यार और समर्पण उन के द्वारा वेरा को लिखे पत्रों से ही जाहिर हो जाता है, जिसे आज की रील्स में डूबे युवाओं को जरूर पढ़ना चाहिए.

(बौक्स)

मेरी प्यारी, मेरी जान, मेरी जिंदगी, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं. तुम मेरे बिना कैसे रह सकती हो? मैं तुम्हारे साथ इतना अभ्यस्त हो चुका हूं कि अब खुद को खोया हुआ और खाली महसूस करता हूं. तुम मेरी जिंदगी को कुछ हल्का, अद्भुत, इंद्रधनुषी बना देती हो. तुम हर चीज पर खुशी की एक चमक डाल देती हो, कभी तुम धुंधले गुलाबी, मुलायम होती हो, कभी गहरी, पंखों वाली और मैं नहीं जानता कि मुझे तुम्हारी आंखें कब ज्यादा पसंद हैं जब वे खुली होती हैं या बंद. अभी ग्यारह बजे हैं मैं तुम्हें इस दूरी में देखने की कोशिश कर रहा हूं.

आज मैं तुम्हारे लिए अपनी तड़प के अलावा कुछ नहीं लिख सकता. मैं उदास और डरा हुआ हूं. मूर्खतापूर्ण विचार मन में घूम रहे हैं कि तुम मेट्रो से कूदते समय ठो कर खा जाओगी, या कोई तुम से सड़क पर टकरा जाएगा. मैं नहीं जानता कि इस हफ्ते को कैसे काटूंगा.

मेरी कोमलता, मेरी खुशी, मैं तुम्हारे लिए कौन से शब्द लिखूं? कितना अजीब है कि भले ही मेरा जीवन का काम कागज पर कलम चलाना है, मैं यह नहीं जानता कि तुम्हें कैसे बताऊं कि मैं तुम से कितना प्यार करता हूं, तुम्हें कितना चाहता हूं. मैं तुम्हारे साथ, तुम में तैर रहा हूं, जल रहा हूं और पिघल रहा हूं.

जब हम पिछली बार कब्रिस्तान में थे, मैं ने इसे इतनी गहराई से और स्पष्ट रूप से महसूस किया. तुम सब जानती हो, तुम जानती हो कि मृत्यु के बाद क्या होगा. तुम इसे बिल्कुल सरलता और शांति से जानती हो जैसे एक चिड़िया जानती है कि डाली से फड़फड़ाते हुए वह उड़ेगी और नीचे नहीं गिरेगी और इसीलिए मैं तुम्हारे साथ इतना खुश हूं, मेरी प्यारी. और यह भी तुम और मैं इतने खास हैं जो चमत्कार हम जानते हैं, कोई नहीं जानता और कोई भी हमारी तरह प्यार नहीं करता.

तुम अभी क्या कर रही हो? किसी कारण से मुझे लगता है कि तुम अध्ययन कक्ष में हो. तुम उठी हो, दरवाजे तक गई हो, तुम दरवाजे के पंखों को एक साथ खींच रही हो और एक पल के लिए रुकी हो—यह देखने के लिए कि क्या वे फिर से अलग हो जाएंगे. मैं थक गया. मैं बहुत अब आराम चाहता हूं. कल मैं तुम्हें रोजमर्रा की चीजों के बारे में लिखूंगा. मेरा प्यार.

Education Department : करप्शन की भेंट चढ़ते सहायता प्राप्त स्कूल

Education Department : सहायता प्राप्त स्कूलों का प्रबंधन शिक्षा विभाग और खर्चे सरकार के जिम्मे होते हैं. बावजूद इन में से कई स्कूल डोनेशन और करप्शन की भेंट चढ़े होते हैं. ऐसे मामले बहुत हैं पर कार्यवाही कुछ नहीं.

शिक्षा विभाग (डिपार्टमेंट औफ एजुकेशन) के तहत सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में भर्ती और प्रवेश के मामलों में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है. दिल्ली के स्कूल दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम और नियमों के तहत आते हैं, जिन का प्रबंधन शिक्षा विभाग द्वारा किया जाता है. इस के अनुसार, हर नियमित शिक्षक को 7वीं वेतन आयोग के मानकों के हिसाब से वेतन मिलता है. दिल्ली के स्कूलों के नियमित शिक्षकों का वेतन औसतन 50,000 रुपए से 1.8 लाख रुपए तक होता है. शिक्षा विभाग के तहत सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन का 95% खर्च सरकार वहन करती है, जबकि 5% स्कूल सोसाइटी द्वारा दिया जाता है.

नियमों का जम कर उल्लंघन

मानदंडों के अनुसार, सहायता प्राप्त स्कूलों को छात्रों से किसी भी रूप में डोनेशन या शुल्क लेने की अनुमति नहीं है, लेकिन यह नियम अधिकांश स्कूलों द्वारा उल्लंघन किया जाता है. ये स्कूल प्रवेश के समय भारी डोनेशन एकत्रित करते हैं और मासिक भुगतान के रूप में फीस के बदले डोनेशन लेते हैं. बहुत बार यह कहते हैं कि स्कूल में पंखे, टाइल्स या टोयलेट बनाने के लिए पैसों की जरूरत है जिस के एवज में ये पैसे मांगते हैं. प्रबंध समिति के भ्रष्ट सदस्य इन फंड्स का बड़ा हिस्सा हड़प लेते हैं और इस का रिकौर्ड भी नहीं रखते.

यह विडंबना है कि सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत पंजीकृत स्कूल सोसाइटी बिना किसी जवाबदेही, निगरानी या नियंत्रण के चलाए जाते हैं. सोसाइटी रजिस्ट्रार द्वारा इन सोसाइटियों पर कोई निगरानी नहीं रखी जाती है, जो अपनी वार्षिक रिटर्न, औडिट रिपोर्ट और प्रबंध समिति के मिनट्स जमा नहीं करतीं या अपनी सामान्य बैठकें नहीं आयोजित करतीं.

स्कूल सोसाइटी पर आयकर और जीएसटी लागू नहीं होने से स्कूलों में व्यावसायिक गतिविधियों के बावजूद उन के लेखाजोखा में विसंगतियां आती हैं. एक सामान्य स्कूल की वार्षिक आय और खर्च 5 से 10 करोड़ रुपए के बीच होता है और बड़े स्कूलों में ये आंकड़े दोगुने हो जाते हैं. शिक्षा विभाग के पास स्कूल सोसाइटी और उन के कार्यों पर ज्यादा नियंत्रण नहीं है.

स्कूल सोसाइटी के पदाधिकारी वे होते हैं जो उच्च-शिक्षित और उच्च वेतन पाने वाले शिक्षकों और कर्मचारियों को नियुक्त करते हैं. शिक्षा विभाग ने प्रबंध समिति के सदस्य के लिए न्यूनतम योग्यता स्नातक निर्धारित की है, लेकिन कई स्कूलों में तो अध्यक्ष और कार्यालयधारी भी स्नातक नहीं होते. शिक्षा विभाग ने स्कूलों की प्रबंध समितियों पर भर्ती, कर्मचारी मूल्यांकन और अनुशासनात्मक कार्यवाही जैसी जिम्मेदारियां डाली हैं, लेकिन इन के मूल्यांकन और नियंत्रण के लिए कोई ठोस ढांचा नहीं है.

जोनल डिप्टी डायरेक्टर मुख्य रूप से सरकारी स्कूलों के कामों में लगे रहते हैं, जबकि निजी स्कूलों की अपनी रुचियां होती हैं, लेकिन सहायता प्राप्त स्कूलों को इस मामले में छोड़ दिया जाता है.

भ्रष्टाचार का अड्डा

कई सहायता प्राप्त स्कूलों की प्रबंध समितियां भ्रष्टाचार और अक्षमता का अड्डा बन गई हैं, जिस कारण स्कूलों में वित्तीय गड़बड़ी, गलत लेखाजोखा और मनमाने फैसले होते हैं, जिस से बच्चों का भविष्य प्रभावित हो रहा है.

अल्पसंख्यक स्कूलों के मामलों में यह स्थिति और भी जटिल हो जाती है, क्योंकि शिक्षा विभाग के पास नियुक्ति और प्रशासन पर कोई नियंत्रण नहीं होता, जो उन के विशिष्ट संस्कृति और मूल्यों को बनाए रखने में मदद कर सके. यह एक तरह का बहाना भी बन जाता है अपनी मनमानी चलाने का.

दुर्भाग्यवश, स्वायत्तता का दुरुपयोग हो रहा है और यह कुछ लोगों के नियंत्रण में तानाशाही का रूप ले चुका है. शिक्षा विभाग के नियंत्रक भी अधिकार का गलत उपयोग कर रहे हैं, जिस से सामंजस्यपूर्ण कार्यवाही की दिशा में कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं.

स्वायत्तता का दुरुपयोग

शिक्षा विभाग ने अल्पसंख्यक सहायता प्राप्त स्कूलों के लिए भर्ती और पदोन्नति जैसे मानदंडों की निगरानी के लिए कोई उचित तंत्र नहीं बनाया है, जिस से स्वायत्तता का दुरुपयोग हो रहा है और स्कूल भ्रष्टाचार का केंद्र बनते जा रहे हैं.

नाम न छापने की शर्त पर एक सूत्र ने बताया कि दिल्ली के मंदिर मार्ग स्तिथ बंगाली स्कूल में भी इन दिनों खूब मनमानी हो रही है. बंगाली सीनियर सेकेंडरी स्कूल में बिना अनुमति के डोनेशन लेने और मासिक भुगतान के बदले फीस लेने का आरोप है, जिस में 45 कर्मचारियों की सीधी भर्ती का मामला है.बिना किसी जवाबदेही और नियंत्रण के.

सूत्रों के मुताबिक इस मामले में प्रबंध समिति का गठन ठीक से नहीं किया गया. 50% पद रिक्त है और सभी शक्तियां अध्यक्ष अरुण घोषाल के पास ही हैं, जो स्कूल के पूर्व मुख्य लिपिक हैं. यहां तक कि प्रबंध समिति के सदस्य भी स्नातक नहीं हैं. प्रबंध समिति प्रत्येक भर्ती के लिए 20-25 लाख रुपए की रिश्वत ले रही है. जिस की कंप्लेंट सदतपुर बंगीय समाज द्वारा पिछले साल दिसंबर 2024 को की गई थी,जिस की एकएक कौपी शिक्षा निदेशक, ईडी और सीबीआई को भी संलग्न की गई.

सूत्र कहते हैं कि स्कूल में अभी कोई आधिकारिक प्रिंसिपल नहीं है और स्कूल प्रभारी संजय योगी और एक प्रभावशाली सहायक शिक्षक मंजीत राणा उम्मीदवारों से रिश्वत ले रहे हैं.जब इस मामले को ले कर हम ने संजय जोगी से बात की तो उन्होंने बताया कि ये सबआरोप गलत हैं.जहां तक भर्ती का मामला है तो इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है.

विडंबना यह है कि इस स्कूल का कोई भाषाई अल्पसंख्यक दर्जा नहीं है और अब तक की सभी भर्तियां सामान्य भर्ती मानदंडों के तहत की गई हैं. प्रबंध समिति शिक्षा विभाग के नियंत्रण को दरकिनार कर रही है, लेकिन यह देखना बाकी है कि वेतन निर्धारण के समय क्या होगा. वर्तमान में भर्तियों के खिलाफ सतर्कता जांच चल रही है.

रायसीना बंगाली सीनियर सेकेंडरी स्कूल (सी आर पार्क) में भी स्थिति अलग नहीं है, जहां अध्यक्ष प्रणब शाश्मोल (जो स्नातक नहीं हैं) और मुख्य लिपिक चिन्मय सरकार भर्ती के बदले भारी रिश्वत ले रहे हैं. स्कूल पहले ही बैंक में डिफौल्टर है और पूरा स्कूल भवन बैंक द्वारा कब्जे में लिया जा सकता है.

यहां तक कि दोनों स्कूलों के अध्यक्ष नियमित रूप से एकदूसरे से संपर्क में हैं और अपनी अवैध गतिविधियों को योजना बना रहे हैं.

भर्ती में धांधली

यह सिर्फ कुछेक मामले नहीं हैं. साल 2023 में सरकार के सतर्कता निदेशालय ने सहायता प्राप्त स्कूलों में पिछले 10 सालों में भर्ती प्रक्रिया की जांच की सिफारिश की. निदेशालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि एक साल में ही फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बड़े मामले सामने आए.

इन में से एक मामला वी एस एग्रीकल्चर सीनियर सेकेंडरी स्कूल खेड़ा गढ़ी का था, जिसे वैदिक संस्कृति एग्रीकलचर सोसाइटी द्वारा चलाया जा रहा था. सीबीआई ने प्रथम स्तर पर जांच के बाद शिक्षक प्रवीण बाज, चित्ररेखा, सोनिया, प्रतिभा, पिंकी आर्य व मनीष कुमार के मामले में फर्जी दस्तावेजों के उपयोग का पता लगाया था.

दूसरा मामला, दिल्ली सरकार के सतर्कता निदेशालय ने पकड़ा. यह मामला 2008 बैच के निलंबित आईएएस उदित प्रकाश राय की पत्नी शिल्पी राय द्वारा सहायता प्राप्त स्कूल में नौकरी पाने के दस्तावेजों की जांच के बाद सामने आया था.

बेशक दिल्ली के शिक्षा के क्षेत्र में सहायता स्कूलों का भी योगदान माना जाता है. दिल्ली में लगभग 200 से अधिक ऐसे स्कूल हैं. इन में कुल मिला कर 8000 के करीब शिक्षक हैं. एकएक स्कूल में 40 से ले कर 50 तक शिक्षकों के पद सृजित हैं. यहां पद रिक्त भी हैं.

समयसमय पर यहां पद भरे जाने के लिए प्रक्रिया चलती रहती है. कई स्कूलों में भर्ती प्रक्रिया को ले कर कई बार विवाद हुआ है मगर जांच के नाम पर खानापूर्ति होती रही है.

बात सिर्फ दिल्ली के सहायता प्राप्त स्कूलों की नहीं है, अन्य राज्यों में भी यही हाल है. इस तरह के घोटालों से स्कूल या प्रशासन का तो कुछ नहीं बिगड़ता पर जो छात्र उन स्कूलों में पढ़ते हैं उन के भविष्य पर बट्टा लग जाता है. जब स्कूल ही करप्शन की भेंट चढ़ा हो वहां छात्रों से कैसी उम्मीद करें कि वे देश व समाज को संवारेंगे.

Hindi Kahani : डबल सैलिब्रेशन – क्या मां को खुशियां दे पाया अंगद

Hindi Kahani : मां 50 प्लस हैं लेकिन जिंदगी में खुशियों की हकदार तो वे भी हैं. खुशियां और इच्छाएं उम्र की मुहताज नहीं होतीं. हर उम्र के अपने अलग एहसास होते हैं. उन्हें वही समझ सकता है जो उम्र के उस दौर से गुजरा हो. जिंदगी में सुखद लमहों को बारबार जीने की तमन्ना तो कोई हमउम्र ही समझ सकता है. समाज के डर से मां की जिंदगी में आती खुशियों को क्यों रोका जाए?

जैसे ही अंगद के बौस चौहान सर ने उस के प्रमोशन की खबर अनाउंस की, सारा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा क्योंकि प्रमोशन के साथसाथ उसे औफिस की तरफ से एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में 2 साल के लिए शिकागो भेजा जा रहा था. अंगद की टीमवर्क के नेचर व जौब के प्रति उस की डैडिकेशन की आदत ने सिर्फ 2 साल में ही उसे इस प्रमोशन का हकदार बनाया था. उस के प्रमोशन से सभी बहुत खुश थे.
‘‘वाऊ, यू आर सो लकी अंगद, तेरी तो लौटरी खुल गई, यार,’’ उस के खास दोस्त नितिन ने उस के कंधे पर धौल जमाते हुए कहा. उस के कहने पर अंगद थोड़ा सा मुसकराया.
‘‘चल, पार्टी दे बढि़या सी,’’ नितिन आगे बोला.
तभी चौहान सर अंगद की तरफ आए, ‘‘क्या हुआ यंग बौय, इतनी बड़ी खुशखबरी सुन कर तुम खुश नहीं नजर आ रहे, एनी प्रौब्लम?’’
‘‘नो, नो सर, नथिंग,’’ कहते हुए न चाहते हुए भी उस की जबान लड़खड़ा गई थी.
‘‘नो, एवरीथिंग इज नौट ओके, तुम्हारा चेहरा कुछ कह रहा है और आंखें कुछ और ही बयां कर रही हैं. तुम अपनी प्रौब्लम शेयर कर सकते हो. शायद, मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं.’’
‘‘ओके सर. थैंक्स, सो नाइस
औफ यू.’’
‘‘घर जाओ, पार्टी करो और अपनी इस खुशी को एंजौय करो,’’ चौहान सर ने कहा.
चौहान सर के यह कहने पर अंगद मिठाई का डब्बा ले कर घर पहुंचा और मां को गुड न्यूज सुनाई, ‘‘मां, तेरी बरसों की मेहनत ने रंग दिखा दिया है. मुझे आज प्रमोशन मिला है और साथ ही, 2 साल के लिए विदेश जाने का मौका भी.’’
मां मानसी के चेहरे पर प्रमोशन की बात सुन कर खुशी की लहर दौड़ गई लेकिन दूसरे ही क्षण 2 साल के लिए शिकागो जाने की बात सुन कर चेहरे पर कई रंग आए और गए.
मानसी अपनी आंखों की नमी छिपाते हुए बोली, ‘‘इतने लंबे समय के लिए जा रहा है तो शादी कर के मीरा को भी साथ ले कर जा. वह बेचारी तो तेरे लौटने के इंतजार में 2 साल में सूख कर आधी हो जाएगी.’’
‘‘और तुम्हारा क्या मां, तुम भी तो इतने बड़े घर में एकदम अकेली पड़ जाओगी.’’
मां चुप रह गई यह सुन कर. अंगद मां की आंखों की नमी देख कर परेशान हो गया, उसे सम?ा ही नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में वह क्या निर्णय ले. उस ने मीरा को फोन मिलाया. उसे मालूम था कि मीरा बहुत प्रैक्टिकल है, वह इस परिस्थिति का कोई न कोई हल जरूर निकाल ही देगी.
मीरा अंगद की मंगेतर थी. अंगद और मीरा का रिश्ता अंगद के पिता रमाकांत ने अपने दोस्त विश्वनाथ से बात कर के बचपन में ही पक्का कर दिया था. मीरा व अंगद भी युवावस्था तक आतेआते अपने इस रिश्ते को स्वीकार कर चुके थे. मीरा भी एमबीए कर के एक मल्टीनैशनल कंपनी में मार्केटिंग हैड के पद पर कार्यरत थी.

अंगद के पिता की मृत्यु जब वह 15 साल का था, तभी हो गई थी एक सड़क दुर्घटना में. मानसी के सुखी दांपत्य को दुख की काली छाया ने ढक लिया था. मानसी ने अंगद के सुनहरे भविष्य की खातिर इस दुर्घटना को विधि का विधान मान कर अपने मन को सम?ा लिया था.
मानसी अधिक शिक्षित नहीं थी. लेकिन व्यावहारिकता व कर्मठता कूटकूट कर भरी थी उस में. बचपन में सीखे बुनाई के हुनर को तराशा. मानसी के हाथ के बुने स्वेटर मार्केट के रेडीमेड स्वेटरों को मात देते. मानसी ने मीरा की मदद से अपने इस काम में बुनाई में रुचि रखने वाली कई महिलाओं को जोड़ लिया जिस से मार्केट से मिलने वाले और्डर को सही समय पर पूरा किया जा सके. थोड़ा समय जरूर लगा लेकिन कुछ ही दिनों में काम काफी बढ़ गया और सफलता मिलने लगी.

अपने व्यस्त कार्यकारी जीवन में भी उस ने अंगद की हर छोटीबड़ी जरूरत का ध्यान रखा और देखतेदेखते अंगद ने इंजीनियरिंग पास कर के एमबीए भी कर लिया व नामी कंपनी हिंदुस्तान लीवर में नौकरी भी मिल गई.
मीरा का अंगद के घर जबतब आनाजाना लगा रहता था. दोनों ही अपनीअपनी हर छोटीबड़ी बात शेयर करते, फोन पर घंटों बात करते और फ्यूचर के रंगीन सपने बुनते. वीकैंड दोनों साथ ही गुजारते कभी लौंग ड्राइव पर जा कर तो कभी रोमांटिक फिल्म देख कर.
अंगद ने फोन कर के मीरा को अपने प्रमोशन व शिकागो जाने की बात शेयर की तो मीरा खुशी से उछल पड़ी, ‘‘ओह, व्हाट अ प्लेजेंट सरप्राइज. मुझ से तो रुका ही नहीं जा रहा. मैं औफिस से सीधे तुम्हारे घर आ रही हूं इस खुशी को सैलिब्रेट करने के लिए.’’
मीरा के आने पर अंगद ने बताया कि मां चाहती है, शिकागो जाने से पहले शादी कर के तुम्हें भी साथ ले कर जाऊं.
‘‘वह सब तो ठीक है, यदि मैं और तुम दोनों चले गए तो मां बेचारी तो एकदम अकेली पड़ जाएंगी न.’’
‘‘हां, मैं भी तो तब से यही सोच रहा था और प्रमोशन व शिकागो की ट्रिप पर जाने की न्यूज को एंजौय ही नहीं कर पा रहा था. क्या शिकागो जाने का औफर ठुकरा दूं?’’ अंगद ने पूछा.
‘‘अरे नहींनहीं, समय का दरवाजा हर समय सब के लिए नहीं खुलता. तुम तो इस मौके को लपक लो दोनों हाथों से, बाकी सब मुझ पर छोड़ दो. रही मेरी और तुम्हारी शादी की बात, सो मेरी एक शर्त है, मैं तुम से शादी
तभी करूंगी जब तुम मां को भी सैटल कर दो.’’
‘‘मतलब?’’ अंगद ने चौंकाते हुए कहा.
‘‘मतलब सीधा सा है, अपनी शादी करने से पहले मां की भी शादी करा दो.’’
‘‘यह क्या अंटशंट बोल रही हो. नातेरिश्तेदार सब क्या कहेंगे ये सब सुन कर. कुछ भी बोल देती हो बिना सोचेसमझे. यह कोई उन की शादी करने की उम्र है क्या? तुम भी कभीकभी सिरफिरों जैसी बातें करती हो. मां भला मानेगी शादी के लिए इस उम्र में?’’
‘‘आजकल यह सब कोई नई बात नहीं है,’’ मीरा ने जवाब दिया, ‘‘हमतुम तो शादी कर के उड़नछू हो जाएंगे लेकिन मां की तो सोचो. मां आसानी से तो राजी नहीं होगी परंतु मैं उन्हें मना लूंगी और फिर, मां की अभी उम्र ही क्या है, मुश्किल से 50-55 वर्ष के बीच की होगी. सोचो, कितना संघर्ष कर के मां ने तो तुम को इस मुकाम तक पहुंचाया है.
‘‘जिंदगी में खुशियों की हकदार तो वे भी हैं. खुशियां और इच्छाएं उम्र की मुहताज नहीं होतीं. हर उम्र के अपने अलगअलग एहसास होते हैं. उन्हें वही समझ सकता है जो उम्र के उस दौर से गुजरा हो. जिंदगी में सुखद लमहों को बारबार जीने की तमन्ना तो कोई हमउम्र ही समझ सकता है. लोग क्या कहेंगे जैसे पूर्वाग्रह से डर कर क्या हम मां की जिंदगी में आती खुशियों को नहीं रोक रहे. क्या फर्क पड़ेगा किसी को यदि मां बाकी की अपनी जिंदगी हंस कर गुजारें तो. जिंदगी इतनी कठोर भी नहीं होती कि उम्मीद की संभावनाओं को अनदेखा कर दिया जाए.’’
मीरा की कही बातों का अंगद पर काफी प्रभाव पड़ रहा था.

‘‘तुम को मेरे पापा के दोस्त शर्मा
अंकल याद हैं न. अचानक
मीरा ने चहकते हुए कहा,’’ आंटी के गुजर जाने के बाद एकदम अकेले पड़ गए थे. फिर बहूबेटे उन्हें अपने साथ जिद कर के अमेरिका ले गए. जाने से पहले अंकल यहां की सारी प्रौपर्टी बेच कर गए थे. मन में था कि अब शेष लाइफ बच्चों के साथ उन के पास रह कर ही गुजारेंगे लेकिन 6 महीने में ही उन का मोहभंग हो गया. अकेलेपन से तो वहां भी पीछा नहीं छूटा. हालांकि बेटाबहू अपनी तरफ से भरसक प्रयास करते लेकिन जौब की मजबूरियां उन्हें बांधे रखतीं. चाहते हुए भी वे दोनों शर्मा अंकल को उतना समय नहीं दे पाते.
‘‘शर्मा अंकल के लिए इस उम्र में वहां की लाइफस्टाइल अपनाना मुसीबत सा लगता. काफी सोचविचार के बाद अपने देश इंडिया आने का निर्णय कर लिया, ‘पराधीन सपनेहु सुख नाहीं’ वाली कहावत उन्हें याद आई.
‘‘हां, इंडिया वापस आ कर अपने लिए एक लाइफ पार्टनर के साथ शेष लाइफ गुजारने का सपना जरूर
साथ लाए.
‘‘एक दिन पापा के पास आ कर जब अपने लिए लाइफ पार्टनर तलाशने की बात की तो पहले तो पापा को उन की बातों पर यकीन नहीं हुआ, पापा ने पूछा, ‘क्या तू सच में सीरियस है इस शादी की बात को ले कर?’
‘‘उन्होंने कहा, ‘पहले मुझे कुछ दिन कहीं पेइंगगेस्ट बन कर रहने का इंतजाम करना होगा, फिर आगे का प्लान पूरा करना है.’

अंगद, मेरे मन में आइडिया आया है, सोचो, तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारा रूम तो खाली हो ही जाएगा और मां अकेली हो जाएंगी. सो, क्यों न शर्मा अंकल को तुम्हारे घर में बतौर पेइंगगेस्ट शिफ्ट करवा दें. घर में रौनक भी रहेगी और मां का अकेलापन भी नहीं रहेगा. दोनों साथ रहेंगे तो मेलजोल भी बढ़ेगा और एकदूसरे की पसंद व नापसंद भी जान जाएंगे. फिर साथ रहतेरहते कौन जाने इन दोनों का मन भी मिल जाए.’’
अंगद को मीरा का आइडिया क्लिक कर गया.
अंगद के जाने के बाद मीरा ने उस की मां मानसी से बात कर के शर्मा अंकल को उस के घर में बतौर पेइंगगेस्ट शिफ्ट करवा दिया. कुछ दिनों तक तो शर्माजी मानसी से सिर्फ जरूरतभर की ही बातचीत करते, जिस का जवाब मानसी हां या हूं में ही देती.

मानसी सरल स्वभाव की महिला थी. उसे बेवजह किसी से बात करना पसंद नहीं था. शायद, इस का कारण उस की परिस्थितियां थीं. उस का अधिकांश समय अपनी बुनाई के और्डर पूरा करने में ही व्यतीत होता.
शर्माजी को मानसी का ऐसा व्यवहार नागवार लगता. वे चाहते कि मानसी उन से खुल कर बातचीत करे, उन के साथ हंसेबोले, घूमने जाए. इस के लिए शर्माजी मानसी को विदेश का उदाहरण दे कर बताते कि वहां लोग लाइफ को कैसे एंजौय करते हैं.
एक दिन वे बोले, ‘‘मानसी, तुम को अपनेआप को सिर्फ काम में ही नहीं मगन रहने देना चाहिए. यू नो, मानसी, लाइफ में एंजौयमैंट भी बहुत जरूरी है. तुम अपनी इस बोरिंग लाइफ से बाहर निकलो. घर के पास की टौकीज में एक पुरानी मूवी लगी है ‘हम दिल दे चुके सनम.’ मैं ने कल की 2 टिकटें बुक करवा ली हैं. कल हमतुम दोनों पहले मूवी देखने जाएंगे, फिर किसी अच्छे रैस्तरां में डिनर करेंगे. तुम अच्छी तरह तैयार हो कर चलना.’’
मानसी को शर्माजी का उस की लाइफ में इस तरह घुसते जाना व जिंदगी जीने के बारे में समयसमय पर अपने सुझाव देना नागवार लगने लगा. हद तो तब हो गई जब शर्माजी एक दिन बाहर से पी कर लौटे और घर में घुसते ही उन्होंने मानसी का हाथ पकड़ लिया. उस समय मानसी ने उन को धक्का दे कर अपनेआप को बचाया और अपने रूम में जा कर दरवाजा बंद कर लिया.
मानसी उस पूरी रात सो न सकी. उस ने मन ही मन शर्माजी को अपने घर से निकालने के बारे में सोचा. दूसरे दिन जब वह अपनी बुनाई का औडर देने दुकान पर गई तो उस दुकान के मालिक ने उसे टोका, ‘‘क्या बात है, आप कुछ परेशान लग रही हैं. यदि आप चाहें
तो अपनी समस्या मुझ से शेयर कर सकती हैं.’’
मानसी चूंकि उस दुकानदार को अच्छी तरह जानती थी, क्योंकि बुनाई का व्यवसाय शुरू करने में इन मिस्टर यादव ने काफी मदद की थी, सो यादवजी से घरेलू ताल्लुकात हो गए थे. मानसी ने शर्माजी के अब तक के व्यवहार के बारे में सारी बातें यादवजी को बता दीं, साथ ही, यह इच्छा भी जाहिर कर दी कि वह अब शर्माजी को अपने घर से निकालना चाहती है.

मिस्टर यादव के उस शहर में कई बड़े शोरूम थे, उस का उठनाबैठना कई रसूखदारों से था. उस ने मानसी को विश्वास दिलाया कि इस शर्मा नाम की मुसीबत से छुटकारा दिलाने में वह उस की पूरी मदद करेगा.
वादे के मुताबिक यादव ने शर्माजी को मानसी के घर से निकलवा दिया. यादव 45-50 वर्ष की उम्र का आदमी था, सो अब मानसी के घर उस का आनाजाना बराबर लगा रहता. यादव की पत्नी एक फैशनेबल महिला थी, किटी, जिम, मौल में शौपिंग व सैरसपाटा उस की आदतों में शामिल था. यादव का मानसी के घर आनाजाना लगा रहता, कभी पत्नी के साथ तो कभी अकेले भी आ जाता. मानसी उस के एहसान तले दब सी गई थी, सो कुछ कह भी न पाती.

अड़ोसपड़ोस के लोगों ने जब यादव को इस तरह खुलेआम उन के घर आतेजाते देखा तो उन को यह सब अच्छा नहीं लगा. यादव की फैशनपरस्त बीवी ने मानसी को अपने साथ ले जा कर किटी पार्टी का मैंबर बनवा दिया था. इतना ही नहीं, वह अपने साथ मानसी को शौपिंग करवाने के लिए मौल भी ले जाने लगी. देखा जाए तो मानसी एक तरह से उन के हाथों की कठपुतली सी बन गई थी. यादव ने व्यावसायिक रूप से उस की इतनी मदद की थी कि वह कुछ कह ही न पाती.
जब मीरा को इन सब बातों का पता चला तो उस ने इस बाबत अंगद से फोन पर बात कर के सारा हाल उसे बताया. अंगद ने सारी बातें सुनने के बाद कहा, ‘‘मीरा, क्या टैलीपैथी है मेरेतुम्हारे बीच, इनफैक्ट मैं भी अब चाहता हूं कि मां का घर भी बसा ही दूं ताकि आसपड़ोस वालों की उंगलियां उठनी बंद हो जाएं.
‘‘यहां मेरी मुलाकात मेरे बचपन के दोस्त समीर से अचानक हुई. वह भी अपने डैड के अकेलेपन को दूर करने के लिए किसी जानपहचान में शादी करवा के उन का घर फिर से बसाना चाहता है.
‘‘मैं ने मां की बाबत जब सबकुछ बताया तो वह बहुत खुश हुआ, कहने लगा, ‘अरे, हम दोनों तो एक ही कश्ती में सवार हैं, फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द हम दोनों इंडिया आने का प्रोग्राम बनाते हैं. अब तो मेरे डैड व तेरे सिर पर सेहरा एकसाथ ही बंधेगा.’ यानी डबल सैलिब्रेशन.’’ और मीरा सैलिब्रेशन की तैयारी में जुट गई.

लेखिका : माधुरी

Hindi Story : फोन कॉल्स – आखिर कौन था देर रात मीनाक्षी को फोन करने वाला

Hindi Story : ‘ट्रिंग ट्रिंग… लगा फिर से फोन बजने,‘ फोन की आवाज से पूरा हौल गूंज उठा. आज रात तीसरी बार फोन बजा था. उस समय रात के 2 बज रहे थे. मीनाक्षी गहरी नींद में सो रही थी. उस के पिता विजय बाबू ने फोन उठाया. उस तरफ से कोई नाटकीय अंदाज में पूछ रहा था, ‘‘मीनाक्षी है क्या?’’

‘‘आप कौन?’’ विजय बाबू ने पूछा तो उलटे उधर से भी सवाल दाग दिया गया, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘यह भी खूब रही, तुम ने फोन किया है और उलटे हम से ही पूछ रहे हो कि मैं कौन हूं.’’

‘‘तो यह मीनाक्षी का नंबर नहीं है क्या? मुझे उस से ही बात करनी है, मैं बुड्ढों से बात नहीं करता?’’

‘‘बदतमीज, कौन है तू? मैं अभी पुलिस में तेरी शिकायत करता हूं.’’

‘‘बुड्ढे शांत रह वरना तेरी भी खबर ले लूंगा,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया.

विजय बाबू गुस्से से तिलमिला उठे. उन्हें अपनी बेटी पर बहुत गुस्सा आ रहा था. उन का मन हुआ कि जा कर दोचार थप्पड़ लगा दें मीनाक्षी को.

‘2 दिन से इसी तरह के कई कौल्स आ रहे हैं. पहले ‘हैलोहैलो’ के अलावा और कोई आवाज नहीं आती थी और आज इस तरह की अजीब कौल…’ विजय बाबू सोच में पड़ गए.

मीनाक्षी ने अच्छे नंबरों से 12वीं पास की और एक अच्छे कालेज में बी कौम (औनर्स) में दाखिला लिया था. पहले स्कूल जाने वाली मीनाक्षी अब कालेज गोइंग गर्ल हो गई थी. कालेज में प्रवेश करते ही एक नई रौनक होती है. मीनाक्षी थी भी गजब की खूबसूरत. उस के काफी लड़केलड़कियां दोस्त होंगे, पर ये कैसे दोस्त हैं जो लगातार फोन करते रहते हैं तथा बेतुकी बातें करते हैं.

अगली सुबह जब विजय बाबू चाय की चुसकियां ले रहे थे और उधर मीनाक्षी कालेज के लिए तैयार हो रही थी, तभी विजय बाबू ने मीनाक्षी को बुलाया, ‘‘मीनाक्षी, जरा इधर आना.’’

डरतेडरते वह पिता के सामने आई. उस का शरीर कांप रहा था. वह जानती थी कि पिताजी आधी रात में आने वाली फोन कौल्स के बारे में पूछने वाले हैं क्योंकि परसों रात जो कौल आई थी, मीनाक्षी के फोन उठाते ही उधर से अश्लील बातें शुरू हो गई थीं. वह कौल करने वाला कौन है, उसे क्यों फोन कर रहा है, ये सब उसे कुछ भी मालूम नहीं था. वह बेहद परेशान थी. इस समस्या के बारे में किस से बात की जाए, वह यह भी समझ नहीं पा रही थी.

‘‘कालेज जा रही हो?’’ विजय बाबू ने बेटी से पूछा.

मीनाक्षी ने सिर हिला कर हामी भरी.

‘‘मन लगा कर पढ़ाई हो रही है न?’’

‘‘हां पिताजी,’’ मीनाक्षी ने जवाब दिया.

‘‘कालेज से लौटते वक्त बस आसानी से मिल जाती है न, ज्यादा देर तो

नहीं होती?’’

‘‘हां पिताजी, कालेज के बिलकुल पास ही बस स्टौप है. 5-10 मिनट में बस मिल ही जाती है.’’

‘‘क्लास में न जा कर दोस्तों के साथ इधरउधर घूमने तो नहीं जाती न,’’ मीनाक्षी को गौर से देखते हुए विजय बाबू ने पूछा.

‘‘ऐसा कुछ भी नहीं है पिताजी.’’

‘‘देखो, अगर कोई तुम्हारे साथ गलत व्यवहार करता हो तो मुझे फौरन बताओ, डरो मत. मेरी इज्जतप्रतिष्ठा को जरा भी ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए. मैं इसे कभी बरदाश्त नहीं करूंगा.’’

मीनाक्षी ने ‘ठीक है’, कहते हुए सिर हिलाया. आंखों में भर आए आंसुओं को रोकते हुए वह वहां से जाने लगी.

‘‘मीनाक्षी’’, विजय बाबू ने रोका, मीनाक्षी रुक गई.

‘‘रात को 3 बार तुम्हारे लिए फोन आया. क्या तुम ने किसी को नंबर दिया था?’’

‘‘नहीं पिताजी, मैं ने अपने क्लासमेट्स को वे भी जो मेरे खास दोस्त हैं, को ही अपना नंबर दिया है.’’

‘‘उन खास दोस्तों में लड़के भी हैं क्या?’’ विजय बाबू ने पूछा.

‘‘नहीं, कुछ परिचित जरूर हैं, पर दोस्त नहीं.’’

‘‘ठीक है, अब तुम कालेज जाओ.’’

इस के बाद विजय बाबू ने फोन कौल्स के बारे में ज्यादा नहीं सोचा, ‘कोई आवारा लड़का होगा,’ यह सोच कर निश्चिंत हो गए.

शाम को जब विजय बाबू दफ्तर से लौटे तो मीनाक्षी की मां लक्ष्मी को कुछ परेशान देख उन्होंने इस का कारण पूछा तो वे नाश्ता तैयार करने चली गईं.

दोनों चायबिस्कुट के साथ आराम से बैठ कर इधरउधर की बातें करने लगे, लेकिन विजय बाबू को लक्ष्मी के चेहरे पर कुछ उदासी नजर आई.

‘‘ऐसा लगता है कि तुम किसी बात को ले कर परेशान हो. जरा मुझे भी तो बताओ?’’ विजय बाबू ने अचानक सवाल किया.

‘‘मीनाक्षी के बारे में… वह… फोन कौल…‘‘ लक्ष्मी ने इतना ही कहा कि विजय बाबू सब मामला समझते हुए बोले, ‘‘अच्छा रात की बात? अरे, कोई आवारा होगा. अगर उस ने आज भी कौल की तो फिर पुलिस को इन्फौर्म कर ही देंगे.’’

लक्ष्मी ने सिर हिला कर कहा, ‘‘नहीं. पिछले 2-3 दिन से ही ऐसे कौल्स आ रहे हैं. मैं ने मीनाक्षी को फोन पर दबी आवाज में बातें करते हुए भी देखा है. जब मैं ने उस से पूछा तो उस ने ‘रौंग नंबर‘ कह कर टाल दिया. आज दोपहर में भी फोन आया था. मैं ने उठाया तो उधर से वह अश्लील बातें करने लगा. मुझे तो ऐसा लगता है कि हमारी बेटी जरूर हम से कुछ छिपा रही है.’’

‘‘तुम्हारा क्या सोचना है कि ऐसे लड़के मीनाक्षी के बौयफ्रैंड्स हैं?’’

‘‘कह नहीं सकती. पर क्या बौयफ्रैंड्स ऐसे लफंगे होते हैं. हमारे समय में भी कालेज हुआ करते थे. उस वक्त भी कुछ लड़के असभ्य होते थे. लड़कियां, लड़कों से बातें करने में शरमाती थीं कि कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा. वे तो हमें कीड़ेमकोड़े की तरह दिखते थे.

फिर भी वहां लड़केलड़कियों में डिग्निटी रहती थी.’’

‘‘ऐसे कीड़े तो हर जगह होते हैं लक्ष्मी, जरूरी होता है कि हम उन कीड़ों से कितना बच कर रहते हैं. आज रात अगर फोन कौल आई तो हम इस की खबर पुलिस में करेंगे, तुम भी मीनाक्षी से प्यार से पूछ कर देखो,’’ विजय बाबू ने समझाया.

लक्ष्मी ने गहरी सांस लेते हुए सिर हिला कर हामी भरी और गहरी सोच में डूब गई. जवान होती लड़कियों की समस्याओं के बारे में वे भी जानती थीं. प्रेमपत्र, बदनामी, जाली फोटो, बेचारी लड़कियां न किसी को बता पाती हैं और मन में रख कर ही घुटघुट कर जीती हैं. कुछ कहने पर लोग उलटे उन्हीं पर शक करते हैं. कितनी यातनाएं इन लड़कियों को सहनी पड़ती हैं.

पहले जमाने में लोग लड़कियों को घर से बाहर पढ़ने नहीं भेजते थे बल्कि घरों में ही कैद रखते थे. लोग सोचते थे कि कहीं ऊंचनीच न हो जाए जिस से समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. इस से उन के व्यक्तित्व पर कितना बुरा असर पड़ता है, लेकिन अब समय के साथ लोगों की मानसिकता बदली है. लोग बेटियों को भी बेटे के समान ही मानते हैं. उन्हें जीने की पूरी आजादी दे रहे हैं. इस से इस तरह की कई समस्याएं भी सामने आ रही हैं.

लक्ष्मी ने मन ही मन सोचा कि मीनाक्षी को बेकार की बातों से परेशान नहीं करेंगी तथा प्यार से सारी बातें पूछेंगी.

उस रात भी फोन कौल्स आईं. फोन एक बार तो विजय बाबू ने उठाया, फिर लक्ष्मी ने उठाया तो कोई जवाब नहीं आया. जब तीसरी बार फोन आया तो उन दोनों ने मीनाक्षी से फोन उठाने को कहा और उस का हौसला बढ़ाया. मीनाक्षी ने डरतेडरते फोन उठाया. मीनाक्षी बोली, ‘‘मैं तुम्हें बिलकुल नहीं जानती. मैं ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो मेरे पीछे पड़े हो. मेरा पीछा छोड़ दोे.’’ यह कह कर वह फफक पड़ी. ‘अभी पूछना सही नहीं होगा,‘ यह सोच मीनाक्षी को चुप करा कर सभी सो गए. पर नींद किसी की आंखों में नहीं थी. अगली सुबह दोनों ने मीनाक्षी से पूछा, ‘‘बेटी, यह क्या झमेला है?’’

मीनाक्षी रोंआसी हो कर बोली, ‘‘मुझे नहीं मालूम.’’

‘‘रात को फोन करने वाले ने तुझ से क्या कहा.’’

‘‘कह रहा था कि मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम बहुत खूबसूरत हो. क्या तुम कल सुबह कालेज के पास वाले पार्क में मिलोगी.’’

‘‘ठीक है, अब तुम निडर हो कर कालेज जाओ. बाकी मैं देखता हूं, इस के बारे में तुम बिलकुल मत सोचो, अब तुम अकेली नहीं, बल्कि तुम्हारे मातापिता भी तुम्हारे साथ हैं.’’

‘‘मीनाक्षी ने हामी भरी और कालेज जाने की तैयारी करने लगी. विजय बाबू सीधे पुलिस स्टेशन गए और वहां उन्होंने शिकायत दर्ज कराई और सारा माजरा बता दिया. इंस्पैक्टर ने उन्हें जल्द कार्यवाही करने की तसल्ली दे कर घर जाने को कहा.’’

2-3 दिन गुजर गए. अगले दिन पुलिस स्टेशन से फोन आया. मीनाक्षी को भी साथ ले कर आने को कहा गया था. विजय बाबू जल्दीजल्दी मीनाक्षी को साथ ले कर थाने पहुंचे.

पुलिस इंस्पैक्टर ने उन्हें बैठने को कहा और कौंस्टेबल को बुला कर उसे कुछ हिदायतें दीं. वह अंदर जा कर एक लड़के के साथ वापस आया.

इंस्पैक्टर ने पूछा, ‘‘क्या आप इस लड़के को जानती हैं?’’

‘‘जी नहीं, मैं इसे नहीं जानती.’’

‘‘मैं बताता हूं, यह कौन है और इस ने क्या किया है.’’ इंस्पैक्टर ने कहना जारी रखा, ‘‘आप अपनी सहेली नीलू को जानती हैं न.’’

‘‘जी हां, मैं उसे बखूबी जानती हूं. वह मेरी कालेज में सब से क्लोज फ्रैंड है.’’

‘‘और यह आप की क्लोज फ्रैंड का सगा भाई नीरज है. यह बहुत आवारा किस्म का इंसान है. यह अपनी बहन नीलू के मोबाइल में आप का फोटो देख कर आप का दीवाना हो गया और फिर उसी के मोबाइल से आप का नंबर ले कर आप को कौल्स करने लगा. इसी तरह यह आप के सिवा और भी कई लड़कियों के नंबर्स नीलू के मोबाइल से ले कर चोरीछिपे उन्हें तंग करता है. इस के खिलाफ कईर् शिकायतें हमें मिलीं हैं. अब यह हमारे हाथ आया है और मैं इस की ऐसी क्लास लूंगा कि यह हमेशा के लिए ऐसी हरकतें करना भूल जाएगा. मैं ने इस के मातापिता तथा नीलू को खबर कर दी है. वे यहां आते ही होंगे.’’

‘‘मैं इस पर केस करना चाहता हूं. इस तरह के अपराधियों को जब सजा मिलेगी तभी ये ऐसी घिनौनी हरकतें करना बंद करेंगे,’’ विजय बाबू ने जोर दे कर कहा.

मीनाक्षी चुपचाप उन की बातें सुन रही थी. वह अंदर ही अंदर उबल रही थी कि 4-5 थप्पड़ जड़ दे उसे.

इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘आप का कहना भी सही है पर ऐसे केस जल्दी सुलझते नहीं हैं. बारबार कोेर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं. इन्हें बेल भी चुटकी में मिल जाती है.’’

इतने में नीरज के मातापिता तथा बहन नीलू भी वहां आ पहुंचे. नीलू को देख कर मीनाक्षी उस के गले लिपट कर रोने लगी. नीलू की मां ने नीरज को जा कर 4-5 थप्पड़ जड़ दिए और बोलीं, ‘‘नालायक तुझे इतना भी खयाल नहीं आया कि तेरी भी एक बहन है और बहन की सहेली भी बहन ही तो होती है. इंस्पैक्टर साहब, इसे जो सजा देना चाहते हैं दीजिए.’’

नीरज के पिता, विजय बाबू से विनती कर बोले, ‘‘भाई साहब, इसे माफ कर दीजिए. मैं मानता हूं कि इस ने गलती की है.  इस में इस की उम्र का दोष है. इस उम्र के बच्चे कुछ भी कर बैठते हैं. ये अब ऐसी हरकतें नहीं करेगा. इस की जिम्मेदारी मैं लेता हूं और आप को विश्वास दिलाता हूं कि यह दोबारा ऐसे फोन कौल्स नहीं करेगा.’’ फिर बेटे की तरफ देख कर बोले, ‘‘देखता क्या है जा अंकल से सौरी बोल.’’

नीरज सिर झुका कर विजय बाबू के पास गया और उन के सामने हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए अंकल, अब मुझ से ऐसी गलती कभी नहीं होगी. आज से मेरे बारे में कोई शिकायत आप के पास नहीं आएगी,’’ फिर वह मीनाक्षी की ओर मुखातिब हो कर बोला, ‘‘आई एम वैरी सौरी मीनाक्षी दीदी, प्लीज मुझे माफ कर दो. आज से मैं तुम्हें तो क्या कभी किसी और लड़की को तंग नहीं करूंगा.’’

गुस्से से लाल मीनाक्षी ने सिर उठा कर नीरज की तरफ देखा और फिर सिर हिला दिया.

Online Hindi Story : सबक – आखिर कैसे बदल गई निशा?

Online Hindi Story : सुबह सैर कर के लौटी निशा ने अखबार पढ़ रहे अपने पति रवि को खुशीखुशी बताया, ‘‘पार्क में कुछ दिन पहले मेरी सपना नाम की सहेली बनी है. आजकल उस का अजय नाम के लड़के से जोरशोर के साथ इश्क चल रहा है.’’ ‘‘मुझे यह क्यों बता रही हो?’’ रवि ने अखबार पर से बिना नजरें उठाए पूछा.

‘‘यह सपना शादीशुदा महिला है.’’ ‘‘इस में आवाज ऊंची करने वाली क्या बात है? आजकल ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं.’’

‘‘आप को चटपटी खबर सुनाने का कोई फायदा नहीं होता. अभी औफिस में कोई समस्या पैदा हो जाए तो आप के अंदर जान पड़ जाएगी. उसे सुलझाने में रात के 12 बज जाएं पर आप के माथे पर एक शिकन नहीं पड़ेगी. बस मेरे लिए आप के पास न सुबह वक्त है, न रात को,’’ निशा रोंआसी हो उठी. ‘‘तुम से झगड़ने का तो बिलकुल भी वक्त नहीं है मेरे पास,’’ कह रवि ने मुसकराते हुए उठ कर निशा का माथा चूमा और फिर तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया.

निशा ने माथे में बल डाले और फिर सोच में डूबी कुछ पल अपनी जगह खड़ी रही. फिर गहरी सांस खींच कर मुसकराई और रसोई की तरफ चल पड़ी. उस दिन औफिस में रवि को 4 परचियां मिलीं. ये उस के लंच बौक्स, पर्स, ब्रीफकेस और रूमाल में रखी थीं. इन सभी पर निशा ने सुंदर अक्षरों में ‘आईलवयू’ लिखा था.

इन्हें पढ़ कर रवि खुश भी हुआ और हैरान भी क्योंकि निशा की यह हरकत उस की समझ से बाहर थी. उस के मन में तो निशा की छवि एक शांत और खुद में सीमित रहने वाली महिला की थी.

रोज की तरह उस दिन भी रवि को औफिस से लौटने में रात के 11 बज गए. उन चारों परचियों की याद अभी भी उस के दिल को गुदगुदा रही थी. उस ने निशा को अपनी बांहों में भर कर पूछा, ‘‘आज कोई खास दिन है क्या?’’ ‘‘नहीं तो,’’ निशा ने मुसकराते हुए

जवाब दिया. ‘‘फिर वे सब परचियां मेरे सामान में क्यों रखी थीं?’’

‘‘क्या प्यार का इजहार करते रहना गलत है?’’ ‘‘बिलकुल नहीं, पर…’’

‘‘पर क्या?’’ ‘‘तुम ने शादी के 2 सालों में पहले कभी ऐसा नहीं किया, इसलिए मुझे हैरानी हो रही है.’’

‘‘तो फिर लगे हाथ एक नई बात और बताती हूं. आप की शक्ल फिल्म स्टार शाहिद कपूर से मिलती है.’’ ‘‘अरे नहीं. मजाक मत उड़ाओ, यार,’’ रवि एकदम से खुश हो उठा था.

‘‘मैं मजाक बिलकुल नहीं उड़ा रही हूं, जनाब. वैसे मेरा अंदाजा है कि आप बन रहे हो. अब तक न जाने कितनी लड़कियां आप से यह बात कह चुकी होंगी.’’ ‘‘आज तक 1 ने भी नहीं कही है यह बात.’’

‘‘चलो शाहिद कपूर नहीं कहा होगा, पर आप के इस सुंदर चेहरे पर जान छिड़कने वाली लड़कियों की कालेज में तो कभी कमी नहीं रही होगी,’’ निशा ने अपने पति की ठोड़ी बड़े स्टाइल से पकड़ कर उसे छेड़ा. ‘‘मैडम, मेरी दिलचस्पी लड़कियों में नहीं, बल्कि पढ़नेलिखने में थी.’’

‘‘मैं नहीं मानती कि कालेज में आप की कोई खास सहेली नहीं थी. आज तो मैं उस के बारे में सब कुछ जान कर ही रहूंगी,’’ निशा बड़ी अदा से मुसकराई और फिर स्टाइल से चलते हुए चाय बनाने के लिए रसोई में घुस गई. उस दिन से रवि के लिए अपनी पत्नी के बदले व्यवहार को समझना कठिन होता चला

गया था. उस रात निशा ने रवि से उस की गुजरी जिंदगी के बारे में ढेर सारे सवाल पूछे. रवि शुरू में झिझका पर धीरेधीरे काफी खुल गया. उसे पुराने दोस्तों और घटनाओं की चर्चा करते हुए बहुत मजा आ रहा था.

वैसे वह पलंग पर लेटने के कुछ मिनटों बाद ही गहरी नींद में डूब जाता था, लेकिन उस रात सोतेसोते 1 बज गया.

‘‘गुड नाइट स्वीट हार्ट,’’ निशा को खुद से लिपटा कर सोने से पहले रवि की आंखों में उस के लिए प्यार के गहरे भाव साफ नजर आ रहे थे.

अगले दिन निशा सैर कर के लौटी तो उस के हाथ में एक बड़ी सी चौकलेट थी. रवि के सवाल के जवाब में उस ने बताया, ‘‘यह मुझे सपना ने दी है. उस का प्रेमी अजय उस के लिए ऐसी 2 चौकलेट लाया था.’’ ‘‘क्या तुम्हें चौकलेट अभी भी पसंद है?’’

‘‘किसी को चौकलेट दिलवाने का खयाल आना बंद हो जाए, तो क्या दूसरे इंसान की उसे शौक से खाने की इच्छा भी मर जाएगी?’’ निशा ने सवाल पूछने के बाद नाटकीय अंदाज में गहरी सांस खींची और अगले ही पल खिलखिला कर हंस भी पड़ी. रवि ने झेंपे से अंदाज में चौकलेट के कुछ टुकड़े खाए और साथ ही साथ मन में निशा के लिए जल्दीजल्दी चौकलेट लाते रहने का निश्चय भी कर लिया.

‘‘आज शाम को क्या आप समय से लौट सकेंगे?’’ औफिस जा रहे रवि की टाई को ठीक करते हुए निशा ने सवाल किया. ‘‘कोई काम है क्या?’’

‘‘काम तो नहीं है, पर समय से आ गए तो आप का कुछ फायदा जरूर होगा.’’ ‘‘किस तरह का फायदा?’’

‘‘आज शाम को वक्त से लौटिएगा और जान जाइएगा.’’ निशा ने और जानकारी नहीं दी तो मन में उत्सुकता के भाव समेटे रवि को औफिस जाना पड़ा.

मन की इस उत्सुकता ने ही उस शाम रवि को औफिस से जल्दी घर लौटने को मजबूर कर दिया था. उस शाम निशा ने उस का मनपसंद भोजन तैयार किया था. शाही पनीर, भरवां भिंडी, बूंदी का रायता और परांठों के साथसाथ उस ने मेवा डाल कर खीर भी बनाई थी.

‘‘आज किस खुशी में इतनी खातिर कर रही हो?’’ अपने पसंदीदा भोजन को देख कर रवि बहुत खुश हो गया. ‘‘प्यार का इजहार करने का यह क्या बढि़या तरीका नहीं है?’’ निशा ने इतराते हुए पूछा तो रवि ठहाका मार कर हंस पड़ा.

भर पेट खाना खा कर रवि ने डकार ली और फिर निशा से बोला, ‘‘मजा आ गया, जानेमन. इस वक्त मैं बहुत खुश हूं… तुम्हारी किसी भी इच्छा या मांग को जरूर पूरा करने का वचन देता हूं.’’ ‘‘मेरी कोई इच्छा या मांग नहीं है, साहब.’’

‘‘फिर पिछले 2 दिनों से मुझे खुश करने की इतनी ज्यादा कोशिश क्यों की जा रही है?’’ ‘‘सिर्फ इसलिए क्योंकि आप को खुश देख कर मुझे खुशी मिलती है, हिसाबकिताब रख कर काम आप करते होंगे, मैं नहीं.’’ निशा ने नकली नाराजगी दिखाई तो रवि फौरन उसे मनाने के काम में लग गया.

रवि ने मेज साफ करने में निशा का हाथ बंटाया. फिर उसे रसोई में सहयोग दिया. निशा जब तक सहज भाव से मुसकराने नहीं लगी, तब तक वह उसे मनाने का खेल खेलता रहा. उस रात खाना खाने के बाद रवि निशा के साथ कुछ देर छत पर भी घूमा. बड़े लंबे समय के बाद दोनों ने इधरउधर की हलकीफुलकी बातें करते हुए यों साथसाथ समय गुजारा.

अगले दिन रविवार होने के कारण रवि देर तक सोया. सैर से लौट आने के बाद निशा ने चाय बनाने के बाद ही उसे उठाया. दोनों ने साथसाथ चाय पी. रवि ने नोट किया कि निशा लगातार शरारती अंदाज में मुसकराए जा रही है. उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या आज भी मुझे कोई सरप्राइज मिलने वाला है?’’

‘‘बहुत सारे मिलने वाले हैं,’’ निशा की मुसकान रहस्यमयी हो उठी. ‘‘पहला बताओ न?’’

‘‘मैं ने अखबार छिपा दिया है.’’ ‘‘ऐसा जुल्म न करो, यार. अखबार पढ़े बिना मुझे चैन नहीं आएगा.’’

‘‘आप की बेचैनी दूर करने का इंतजाम भी मेरे पास है.’’ ‘‘क्या?’’

‘‘आइए,’’ निशा ने उस का हाथ पकड़ा और छत पर ले आई. छत पर दरी बिछी हुई थी. पास में सरसों के तेल से भरी बोतल रखी थी. रवि की समझ में सारा माजरा आया तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा और उस ने खुशी से पूछा, ‘‘क्या तेल मालिश करोगी?’’

‘‘यस सर.’’ ‘‘आई लव तेल मालिश.’’ रवि फटाफट कपड़े उतारने लगा.

‘‘ऐंड आईलवयू,’’ निशा ने प्यार से उस का गाल चूमा और फिर अपने कुरते की बाजुएं चढ़ाने लगी.

रवि के लिए वह रविवार यादगार दिन बन गया.

तेल मालिश करातेकराते वह छत पर ही गहरी नींद सो गया. जब उठा तो आलस ने उसे घेर लिया.

‘‘गरम पानी तैयार है, जहांपनाह और आज यह रानी आप को स्नान कराएगी,’’ निशा की इस घोषणा को सुन कर रवि के तनमन में गुदगुदी की लहर दौड़ गई.

रवि तो उसे नहाते हुए ही जी भर कर प्यार करना चाहता था पर निशा ने खुद को उस की पकड़ में आने से बचाते हुए कहा, ‘‘जल्दबाजी से खेल बिगड़ जाता है, साहब.

अभी तो कई सरप्राइज बाकी हैं. प्यार का जोश रात को दिखाना.’’ ‘‘तुम कितनी रोमांटिक…कितनी प्यारी…कितनी बदलीबदली सी हो गई हो.’’

‘‘थैंक यू सर,’’ उस की कमर पर साबुन लगाते हुए निशा ने जरा सी बगल गुदगुदाई तो वह बच्चे की तरह हंसता हुआ फर्श पर लुढ़क गया. निशा ने बाहर खाना खाने की इच्छा जाहिर की तो रवि उसे ले कर शहर के सब

से लोकप्रिय होटल में आ गया. भर पेट खाना खा कर होटल से बाहर आए तो यौन उत्तेजना का शिकार बने रवि ने घर लौटने की इच्छा जाहिर की. ‘‘सब्र का फल ज्यादा मीठा होता है, सरकार. पहले इस सरप्राइज का मजा तो ले लीजिए,’’ निशा ने अपने पर्स से शाहरुख खान की ताजा फिल्म के ईवनिंग शो के 2 टिकट निकाल कर उसे पकड़ाए तो रवि ने पहले बुरा सा मुंह बनाया पर फिर निशा के माथे में पड़े बलों को देख कर फौरन मुसकराने लगा.

निशा को प्यार करने की रवि की इच्छा रात के 10 बजे पूरी हुई. निशा तो कुछ देर पार्क में टहलना चाहती थी, लेकिन अपनी मनपसंद आइसक्रीम की रिश्वत खा कर वह सीधे घर लौटने को राजी हो गई. रवि का मनपसंद सैंट लगा कर जब वह रवि के पास पहुंची तो उस ने अपनी बांहें प्यार से फैला दीं.

‘‘नो सर. आज सारी बातें मेरी पसंद से हुई हैं, तो इस वक्त प्यार की कमान भी आप मुझे संभालने दीजिए. बस, आप रिलैक्स करो और मजा लो.’’ निशा की इस हिदायत को सुन कर रवि ने खुशीखुशी अपनेआपको उस के हवाले कर दिया.

रवि को खुश करने में निशा ने उस रात कोईर् कसर बाकी नहीं छोड़ी. अपनी पत्नी के इस नए रूप को देख कर हैरान हो रहा रवि मस्ती भरी आवाज में लगातार निशा के रंगरूप और गुणों की तारीफ करता रहा. मस्ती का तूफान थम जाने के बाद रवि ने उसे अपनी छाती से लगा कर पूछा, ‘‘तुम इतनी ज्यादा कैसे बदल गईर् हो, जानेमन? अचानक इतनी सारी शोख, चंचल अदाएं कहां से सीख ली हैं?’’

‘‘तुम्हें मेरा नया रूप पसंद आ रहा है न?’’ निशा ने उस की आंखों में प्यार से झांकते

हुए पूछा. ‘‘बहुत ज्यादा.’’

‘‘थैंक यू.’’ ‘‘लेकिन यह तो बताओ कि ट्रेनिंग कहां से ले रही हो?’’

‘‘कोई देता है क्या ऐसी बातों की ट्रेनिंग?’’ ‘‘विवाहित महिला एक पे्रमी बना ले तो उस के अंदर सैक्स के प्रति उत्साह यकीनन बढ़ जाएगा. कम से कम पुरुषों के मामले में तो ऐसा पक्का होता है. कहीं तुम ने भी तो अपनी उस पार्क वाली सहेली सपना की तरह किसी के साथ टांका फिट नहीं कर लिया है?’’

‘‘छि: आप भी कैसी घटिया बात मुंह से निकाल रहे हो?’’ निशा रवि की छाती से और ज्यादा ताकत से लिपट गई, ‘‘मुझ पर शक करोगे तो मैं पहले जैसा नीरस और उबाऊ ढर्रा फिर से अपना लूंगी.’’ ‘‘ऐसा मत करना, जानेमन. मैं तो तुम्हें जरा सा छेड़ रहा था.’’

‘‘किसी का दिल दुखाने को छेड़ना नहीं कहते हैं.’’ ‘‘अब गुस्सा थूक भी दो, स्वीटहार्ट. आज तुम ने मुझे जो भी सरप्राइज दिए हैं, उन के लिए बंदा ‘थैंकयू’ बोलने के साथसाथ एक सरप्राइज भी तुम्हें देना चाहता है.’’

‘‘क्या है सरप्राइज?’’ निशा ने उत्साहित लहजे में पूछा. ‘‘मैं ने तुम्हारी गर्भनिरोधक गोलियां फेंक

दी है?’’ ‘‘क्यों?’’ निशा चौंक पड़ी.

‘‘क्योंकि अब 3 साल इंतजार करने के बजाय मैं जल्दी पापा बनना चाहता हूं.’’ ‘‘सच.’’ निशा खुशी से उछल पड़ी.

‘‘हां, निशा. वैसे तो मैं भी अब ज्यादा से ज्यादा समय तुम्हारे साथ बिताने की कोशिश किया करूंगा, पर अकेलेपन के कारण तुम्हारे सुंदर चेहरे को मुरझाया सा देखना अब मुझे स्वीकार नहीं. मेरे इस फैसले से तुम खुश हो न?’’ निशा ने उस के होंठों को चूम कर अपना जवाब दे दिया.

रवि तो बहुत जल्दी गहरी नींद में सो गया, लेकिन निशा कुछ देर तक जागती रही. वह इस वक्त सचमुच अपनेआप को बेहद खुश व सुखी महसूस कर रही थी. उस ने मन ही मन अपनी सहेली सपना और उस के प्रेमी को धन्यवाद दिया. इन दोनों के कारण ही उस के विवाहित जीवन में आज रौनक पैदा हो गई थी.

पार्क में जानपहचान होने के कुछ दिनों बाद ही अजय ने सपना को अपने प्रेमजाल में फंसाने के प्रयास शुरू कर दिए थे. सपना तो उसे डांट कर दूर कर देती, लेकिन निशा ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.

‘‘सपना, मैं देखना चाहती हूं कि वह तुम्हारा दिल जीतने के लिए क्याक्या तरकीबें अपनाता है. यह बंदा रोमांस करने में माहिर है और मैं तुम्हारे जरीए कुछ दिनों के लिए इस की शागिर्दी करना चाहती हूं.’’

निशा की इस इच्छा को जान कर सपना हैरान नजर आने लगी थी. ‘‘पर उस की शागिर्दी कर के तुम्हें हासिल क्या होगा?’’ आंखों में उलझन के भाव लिए सपना ने पूछा.

‘‘अजय के रोमांस करने के नुसखे सीख कर मैं उन्हें अपने पति पर आजमाऊंगी, यार.

उन्हें औफिस के काम के सिवा आजकल और कुछ नहीं सूझता है. उन के लिए कैरियर ही सबकुछ हो गया है. मेरी खुशी व इच्छाएं ज्यादा माने नहीं रखतीं. उन के अंदर बदलाव लाना मेरे मन की सुखशांति के लिए जरूरी हो गया

है, यार.’’ अपनी सहेली की खुशी की खातिर सपना ने अजय के साथ रोमांस करने का नाटक चालू रखा. सपना को अपने प्रेमजाल में फंसाने को वह जो कुछ भी करने की इच्छा प्रकट करता, निशा उसी तरकीब को रवि पर आजमाती.

पिछले दिनों निशा ने रवि को खुश करने के लिए जो भी काम किए थे, वे सब अजय की ऐसी ही इच्छाओं पर आधारित थे. उस ने कुछ महत्त्वपूर्ण सबक भविष्य के लिए भी सीखे थे. ‘विवाहित जीवन में ताजगी, उत्साह और नवीनता बनाए रखने के लिए पतिपत्नी दोनों को एकदूसरे का दिल जीतने के प्रयास 2 प्रेमियों की तरह ही करते रहना चाहिए,’ इस सबक को उस ने हमेशा के लिए अपनी गांठ में बांध लिया.

‘अपने इस मजनू को अब हरी झंडी दिखा दो,’ सपना को कल सुबह यह संदेशा देने की बात सोच कर निशा पहले मुसकराई और फिर सो रहे रवि के होंठों को हलके से चूम कर उस ने खुशी से आंखें मूंद लीं.

Love Story : संतुलन – रोहित उस लड़की को खोने से क्यों डरता था?

Love Story : ‘‘जोरू के गुलाम, तुझे अपनी मां और मेरी जरा भी फिक्र नहीं रही है. अब मुझे भी नहीं रखना है तुझे इस घर में,’’ ससुरजी की इस बात ने आग में घी का काम करते हुए रोहित के गुस्से को इतना बढ़ा दिया कि वे उसी समय अपने जानकार प्रौपर्टी डीलर से मिलने चले गए. मैं बहुत सुंदर हूं और रोहित मेरे ऊपर पूरी तरह लट्टू हैं. मेरी ससुराल वालों के अलावा उन के दोस्त और मेरे मायके वाले भी मानते हैं कि मैं उन्हें अपनी उंगलियों पर बड़ी आसानी से नचा सकती हूं. मेरे सासससुर ने अपनी छोटी बहू यानी मुझे कभी पसंद नहीं किया. वे दोनों हर किसी के सामने यह रोना रोते कि मैं ने उन के बेटे को अपने रूपजाल में फंसा कर मातापिता से दूर कर दिया है. वैसे मुझे पता था कि रोहित की घर से अलग हो जाने की धमकी से घबरा कर मेरी सास बिगड़ी बात संभालने के लिए जल्दी मुझे से मिलने मेरे कमरे  में आएंगी. गुस्से में घर से अलग कर देने की बात मुंह से निकालना अलग बात है, पर मेरे सासससुर जानते हैं कि हम दोनों के अलावा उन की देखभाल करने वाला और कोई नहीं है. ऊपरी मंजिल पर रह रहे बड़े भैया और भाभी मुझ से तो क्या, घर में किसी से भी ढंग से नहीं बोलते हैं.

मैं बहुत साधारण परिवार में पलीबढ़ी थी. इस में कोई शक नहीं कि अगर मैं बेहद सुंदर न होती, तो मुझ से शादी करने का विचार अमीर घर के बेटे रोहित के मन में कभी पैदा न होता. मेरे मातापिता ने बचपन से ही मेरे दिलोदिमाग में यह बात भर दी थी कि हर तरह की खुशियां और सुख पाना उन की परी सी खूबसूरत बेटी का पैदाइशी हक है. अपनी सुंदरता के बल पर मैं दुनिया पर राज करूंगी, किशोरावस्था में ही इस इच्छा ने मेरे मन के अंदर गहरी जड़ें जमा ली थीं. रोहित से मेरी पहली मुलाकात अपनी एक सहेली के भाई की शादी में हुई थी.वे जिस कार से उतरे उस का रंग और डिजाइन मुझे बहुत पसंद आया था. सहेली से जानकारी मिली कि वे अच्छी जौब कर रहे हैं. इस से उन से दोस्ती करने में मेरी दिलचस्पी बढ़ गई थी. उन की आंखों में झांकते हुए मैं 2-3 बार बड़ी अदा से मुसकराई, तो वे फौरन मुझ में दिलचस्पी लेने लगे. मौका ढूंढ़ कर मुझ से बातें करने लगते, तो मैं 2-4 वाक्य बोल कर कहीं और चली जाती. मेरे शर्मीले स्वभाव ने उन्हें मेरे साथ दोस्ती बढ़ाने के लिए और ज्यादा उतावला कर दिया. उस रात विदा लेने से पहले उन्होंने मेरा फोन नंबर ले लिया. अगले दिन से ही हमारे बीच फोन पर बातें होने लगीं. सप्ताह भर बाद हम औफिस खत्म होने के बाद बाहर मिलने लगे.

हमारी चौथी मुलाकात एक बड़े पार्क में हुई. वहां एक सुनसान जगह का फायदा उठाते हुए उन्होंने अचानक मेरे होंठों से अपने होंठ जोड़ कर मुझे चूम लिया. अपनी भावनाओं पर नियंत्रण न रख पाने के कारण मैं बहुत जोर से उन से लिपट गई. बाद में उन की बांहों के घेरे से बाहर आ कर जब मैं सुबकने लगी, तो उन की उलझन और बेचैनी बहुत ज्यादा बढ़ गई. बहुत पूछने पर भी न मैं ने उन्हें अपने आंसू बहाने का कारण बताया और न ही ज्यादा देर उन के साथ रुकी. पूरे 3 दिनों तक मैं ने उन से फोन पर बात नहीं की तो चौथे दिन शाम को वे मुझे मेरे औफिस के गेट के पास मेरा इंतजार करते नजर आए. उन के कुछ बोलने से पहले ही मैं ने उदास लहजे में कहा, ‘‘आई ऐम सौरी पर हमें अब आपस में नहीं मिलना चाहिए, रोहित.’’

‘‘पर क्यों? मुझे मेरी गलती तो बताओ?’’ वे बहुत परेशान नजर आ रहे थे.

‘‘तुम्हारी कोई गलती नहीं है.’’

‘‘तो मुझ से मिलना क्यों बंद कर रही हो?’’

उन के बारबार पूछने पर मैं ने नजरें झुका कर जवाब दिया, ‘‘मैं तुम्हारे प्यार में पागल हो रही हूं…तुम्हारे साथ नजदीकियां बढ़ती रहीं तो मैं अपनी भावनाओं को काबू में नहीं रख सकूंगी.’’

‘‘तुम कहना क्या चाह रही हो?’’ उन की आंखों में उलझन के भाव और ज्यादा बढ़ गए.

‘‘हम ऐसे ही मिलते रहे तो किसी भी दिन कुछ गलत घट जाएगा…तुम मुझे चीप लड़की समझो, यह सदमा मुझ से बरदाश्त नहीं होगा. साधारण से घर की यह लड़की तुम्हारे साथ जिंदगी गुजारने के सपने नहीं देख सकती है. तुम मुझ से न मिला करो, प्लीज,’’ भरे गले से अपनी बात कह कर मैं कुछ दूरी पर इंतजार कर रही अपनी सहेली की तरफ चल पड़ी. बाद में रोहित ने बारबार फोन कर के मुझे फिर से मिलना शुरू करने के लिए राजी कर लिया. मेरी हंसीखुशी उन के लिए दिनबदिन ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती चली गई. मेरे रंगरूप का जादू उन के सिर चढ़ कर ऐसा बोला कि महीने भर बाद ही उन के घर वाले हमारे घर रिश्ता पक्का करने आ पहुंचे. उस दिन हुई पहली मुलाकात में ही मुझे साफ एहसास हो गया कि यह रिश्ता उन के परिवार वालों को पसंद नहीं था. मेरी शादी को करीब 6 महीने हो चुके हैं और अब तक मेरे सासससुर और जेठजेठानी की मेरे प्रति नापसंदगी अपनी जगह कायम है. अपने पिता से झगड़ा करने के बाद रोहित को घर से बाहर गए 5 मिनट भी नहीं हुए होंगे कि सासूमां मेरे कमरे में आ पहुंचीं. उन की झिझक और बेचैनी को देख कर कोई भी कह सकता था कि बात करने के लिए मेरे पास आना उन्हें अपमानित महसूस करा रहा है.

मेरे सामने झुकना उन की मजबूरी थी. उन का अपनी बड़ी बहू नेहा से 36 का आंकड़ा था, क्योंकि बेहद अमीर बाप की बेटी होने के कारण वह अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझती थी. मेरे सामने बैठते ही सासूमां मुझे समझाने लगीं, ‘‘ घर में छोटीबड़ी खटपट, तकरार तो चलती रहती है, पर तू रोहित को समझाना कि वह घर छोड़ कर जाने की बात मन से बिलकुल निकाल दे.’’ मैं ने बेबस से लहजे में जवाब दिया, ‘‘मम्मी, आप तो जानती ही हैं कि वे कितने जिद्दी इनसान हैं. मैं उन्हें घर से अलग होने से कब तक रोक सकूंगी? आप पापा को भी समझाओ कि वे घर से निकाल देने की धमकी तो बिलकुल न दिया करें.’’

‘‘उन्हें तो तब तक अक्ल नहीं आएगी जब तक गुस्से के कारण उन के दिमाग की कोई नस नहीं फट जाएगी.’’ ‘‘ऐसी बातें मुंह से न निकालिए, प्लीज,’’ मेरा मन ससुरजी के अपाहिज हो जाने की बात सोच कर ही बेचैनी और घबराहट का शिकार हो उठा था. कुछ देर तक अपनी व ससुरजी की गिरती सेहत के दुखड़े सुनाने के बाद सासूजी चली गईं. हम घर से अलग नहीं होंगे, मुझ से ऐसा आश्वासन पा कर उन की चिंता काफी हद तक कम हो गई थी. उस रात मुझे साथ ले कर रोहित अपने दोस्त की शादी की सालगिरह की पार्टी में जाना चाहते थे. उन का यह कार्यक्रम खटाई में पड़ गया, क्योंकि ससुरजी को सुबह से 5-6 बार उलटियां हो चुकी थीं. औफिस से आने के बाद जब उन्होंने मेरे जल्दी तैयार होने के लिए शोर मचाया, तो घर में क्लेश शुरू हो गया और बात धीरेधीरे बढ़ती चली गई.

सचाई यही है कि कुछ कारणों से मैं खुद भी रोहित के दोस्त द्वारा दी जा रही कौकटेल पार्टी में नहीं जाना चाहती थी. आज मैं जिंदगी के उसी मुकाम पर हूं जहां होने के सपने मैं हमेशा देखती आई हूं. संयोग से मैं ने जिस ऐशोआराम भरी जिंदगी को पाया है, उसे नासमझी के कारण खो देने का मेरा कोई इरादा नहीं था. रोहित की एक निशा भाभी हैं, जिन के अपने पति सौरभ के साथ संबंध बहुत खराब चल रहे हैं. उन के बीच तलाक हो कर रहेगा, ऐसा सब का मानना है. मैं ने पिछली कुछ पार्टियों में नोट किया कि फ्लर्ट करने में एक्सपर्ट निशा भाभी रोहित को बहुत लिफ्ट दे रही हैं. यह सभी जानते हैं कि एक बार बहक गए कदमों को वापस राह पर लाना आसान नहीं होता है. रोहित को निशा से दूर रखने के महत्त्व को मैं अपने अनुभव से बखूबी समझती हूं, क्योंकि अपने पहले प्रेमी समीर को मैं खुद अब तक पूरी तरह से नहीं भुला पाई हूं.

वह मेरी सहेली शिखा का बड़ा भाई था. मैं 12वीं कक्षा की परीक्षा की तैयारी करने उन के घर पढ़ने जाती थी. मेरी खूबसूरती ने उसे जल्दी मेरा दीवाना बना दिया. उस की स्मार्टनैस भी मेरे दिल को भा गई. उन के घर में कभीकभी हमें एकांत में बिताने को 5-10 मिनट भी मिल जाते थे. इस छोटे से समय में ही उस के जिस्म से उठने वाली महक मुझे पागल कर देती थी. उस के हाथों का स्पर्श मेरे तनमन को मदहोश कर मेरे पूरे वजूद में अजीब सी ज्वाला भर देता था. एक रविवार की सुबह जब उस की मां बाजार जाने को निकलीं. मां के बाहर जाते ही समीर बाहर से घर लौट आया. हमें कुछ देर की मौजमस्ती करने के लिए किसी तरह का खतरा नजर नहीं आया, तो हम बहुत उत्तेजित हो आपस में लिपट गए. फिर गड़बड़ यह हुई कि उस की मां पर्स भूल जाने के कारण घर से कुछ दूर जा कर ही लौट आई थीं. दरवाजा खोलने के बाद समीर और मैं अपनी उखड़ी सांसों और मन की घबराहट को उन की अनुभवी नजरों से छिपा नहीं पाए थे. उन्होंने मुझे उसी वक्त घर भेज दिया और कुछ देर बाद आ कर मां से मेरी शिकायत कर दी. इस घटना का नतीजा यह हुआ कि मेरी शिखा से दोस्ती टूट गई और अपने मातापिता की नजरों में मैं ने अपनी इज्जत गंवा दी.

कच्ची उम्र में समीर के साथ प्यार का चक्कर चलाने की मूर्खता कर मैंने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी थी. मेरे सजनेसंवरने पर भी पूरी तरह से पाबंदी लग गई. मां की रातदिन की टोकाटाकी और पापा का मुझ से सीधे मुंह बात न करना मुझे बहुत दुखी करता था.  उन कठिन दिनों से गुजरते हुए एक सबक मैं अच्छी तरह सीख गई कि अगर मेरी ऐशोआराम की जिंदगी जीने की इच्छा और सारे सपने पूरे नहीं हुए तो जीने का मजा बिलकुल नहीं आएगा. घुटघुट कर जीने से बचने के लिए मुझे फौरन अपनी छवि सुधारना बहुत जरूरी था. ‘‘केवल सुंदर होने से काम नहीं चलता है. सूरत के साथ सीरत भी अच्छी होनी चाहिए,’’

मां से रातदिन मिलने वाली चेतावनी को मैं ने हमेशा के लिए गांठ बांध कर अपने को सुधार लेने का संकल्प उसी समय कर लिया. तभी से अपने जीवन में आने वाली हर कठिनाई, उलझन और मुसीबत से सबक ले कर मैं खुद को बदलती आई हूं. रोहित के विवाहेत्तर संबंध न बन जाएं, इस डर के अलावा एक और डर मुझे परेशान करता था. उन्हें सप्ताह में 1-2 बार ड्रिंक करने का शौक है. आज भी उन के गुस्से को बहुत ज्यादा बढ़ाने का यही मुख्य कारण था कि दोस्तों के साथ शराब पीने का मौका उन के हाथ से निकल गया. मेरे लिए यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि अगर हम अलग मकान में रहने चले गए, तो दोस्तों के साथ उन का पीनापिलाना बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा. समीर वाले किस्से के बाद मेरी मां मेरे साथ बहुत सख्त हो गई थीं. उन की उस सख्ती के चलते मेरे कदम फिर कभी नहीं भटके थे. यहां मेरे सासससुर मां वाली भूमिका निभा रहे थे. रोहित और मुझे नियंत्रण में रख कर वे दोनों एक तरह से हमारा भला ही कर रहे थे. अब मुझे यह बात समझ में आने लगी थी.

पिछले दिनों तक मैं घर से अलग हो जाने की जरूर सोचती थी, पर अब इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए मैं ने ऐसा करने का इरादा बदल दिया है. रोहित 2 घंटे बाद जब लौटे, तब भी उन की आंखों में तेज गुस्सा साफ झलक रहा था. फिर भी मैं ने रोहित को अपनी बात कहने का फैसला किया. उन्हें कुछ कहने का मौका दिए बिना मैंने आंखों में आंसू भर कर भावुक लहजे में पूछा, ‘‘तुम मुझे सब की नजरों में क्यों गिराना चाहते हो?’’

‘‘मैं ने ऐसा क्या किया है?’’ उन्होंने गुस्से से भर कर पूछा.

‘‘टैंशन के कारण पापा को ढंग से सांस लेने में दिक्कत हो रही है. आपसी लड़ाईझगड़े की वजह से उन्हें कभी कुछ हो गया, तो मैं समाज में इज्जत से सिर उठा कर कभी नहीं जी सकूंगी.’’

‘‘वे लोग बात ही ऐसी गलत करते हैं…पार्टी में न जाने दे कर सारा मूड खराब कर दिया.’’

‘‘पार्टी में जाने का गम मत मनाओ, मैं हूं न आप का मूड ठीक करने के लिए,’’ मैं ने उन के बालों को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया.

‘‘तुम तो हो ही लाखों में एक जानेमन.’’

‘‘तो अपनी इस लाखों में एक जानेमन की छोटी सी बात मानेंगे?’’

‘‘जरूर मानूंगा.’’ मेरी सुंदरता मेरी बहुत बड़ी ताकत है और अब इसी के बल पर मैं सारे रिश्तों के बीच अच्छा संतुलन और घर में हंसीखुशी का माहौल बनाना चाहती हूं. इस दिशा में काफी सोचविचार करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंची हूं कि सासससुर के साथ अपने रिश्ते सुधार कर उन्हें मजबूत बनाना मेरे हित के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है. अपने इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मैं ने रोहित के कान के पास मुंह ले जा कर प्यार भरे लहजे में पूछा, ‘‘क्या मैं तुम्हें कभी किसी भी बात से नाराज हो कर सोने देती हूं?’’

‘‘कभी नहीं और आज भी मत सोने देना,’’ उन के होंठों पर एक शरारती मुसकान उभरी.

‘‘आज आप भी मेरी इस अच्छी आदत को अपनाने का वादा मुझ से करो.’’

‘‘लो, कर लिया वादा.’’

‘‘तो अब चलो मेरे साथ.’’

‘‘कहां?’’

‘‘अपने मम्मीपापा के पास.’’

‘‘उन के पास किसलिए चलूं?’’

‘‘आप उन के साथ कुछ देर ढंग से बातें कर लोगे, तो ही वे दोनों चैन से सो पाएंगे.’’

‘‘नहीं,’’ यह मैं नहीं…

मैं ने झुक कर पहले रोहित के होंठों पर प्यार भरा चुंबन अंकित किया और फिर उन की आंखों में प्यार से झांकते हुए मोहक स्वर में बोली, ‘‘प्लीज, मेरी खुशी की खातिर आप को यह काम करना ही पड़ेगा. आप मेरी बात मानेंगे न?’’ तुम्हारी बात कैसे टाल सकता हूं ब्यूटीफुल चलो,’’ रोमांटिक अंदाज में मेरा हाथ चूमने के बाद जब वे फौरन अपने मातापिता के पास जाने को उठ खड़े हुए, तो मैं मन ही मन विजयीभाव से मुसकराते हुए उन के गले लग गई.

Best Hindi Story : साथी – रजत छवि से क्यों दूरियां बनाने लगा था?

Best Hindi Story : रजत औफिस से घर पहुंचा, घंटी बजाई तो छवि ने दरवाजा खोल दिया. छवि पर नजर पड़ते ही रजत का मन खिन्नता से भर गया. उस ने एक उड़ती सी नजर छवि पर डाली और सीधे बैडरूम में चला गया. कपड़े बदल कर वह बाथरूम में फ्रैश हो कर निकला तो छवि कमरे में आ गई.

‘‘चलो, चायनाश्ता रख दिया है…’’ छवि कोमल स्वर में बोली. रजत और भी चिढ़ गया. चप्पलें घसीटता हुआ डाइनिंगटेबल की तरफ बढ़ गया. तब तक बच्चे भी आ गए. सब खातेपीते बातें करने लगे. बच्चों के साथ बात करतेकरते उस का मूड कुछ ठीक हो गया.

अभी वे बातें कर ही रहे थे छवि फिर उठ गई और जूठे बरतन समेटने लगी. उस ने छवि पर नजर दौड़ाई. फैला बेडौल शरीर, बढ़ा पेट, कमर में खोंसा साड़ी का पल्ला, बेतरतीब बालों को ठूंस कर बनाया जूड़ा, बेजान होता चेहरा. बच्चों के साथ बातें करतेकरते रजत का ठीक होता मूड फिर उखड़ गया.

छवि बरतन उठा कर किचन में चली गई. उस के प्रैशर कुकर, चकलाबेलन और बरतनों की खनखन ने अपना बेसुरा संगीत शुरू कर दिया था. रजत ने झुंझला कर अखबार उठाया और बाहर बरामदे में चला गया. थोड़ी देर सुबह के पढ़े बासी अखबार को दोबारा पढ़ता रहा. फिर शाम का धुंधलका छाने लगा तो दिखाई देना कम हो गया. उस ने लाइट नहीं जलाई. अंदर जाने का मन नहीं किया. कुरसी पर पीछे सिर टिका कर यादों में खो गया…

इसी छवि को कभी रजत ने लड़कियों की भीड़ में पसंद किया था. घर वालों की मरजी के खिलाफ जा कर अपनाया था. उस के जेहन में वह दुबलीपतली, बड़ीबड़ी आंखों वाली सलोनी सी छवि तैर गई.

चाचा की बेटी की शादी में लखनऊ गया रजत जब लौटा तो अकेला नहीं आया. छवि का वजूद भी उस के जेहन से लिपटा साथ आ गया. बरातियों से हंसीठिठोली करती दुलहन की सहेलियों के बीच उस की नजर गोरी, लंबी, छरहरी छवि पर अटक गई.

छवि की लंबी वेणी दिल से लिपट गई. छवि के गुलाबी गाल, बड़ीबड़ी आंखों की झील सी गहराई, रसीले होंठों की चमक भुलाए न भूली. जब भी आंखें बंद करता हंसतीमुसकराती छवि उस की आंखों में उतर जाती.

रजत इंजीनियर था. बहुत अच्छी नौकरी में था. उस के पिता रिटायर्ड आर्मी औफिसर थे. बहुत अच्छेअच्छे घरों से शादी के प्रस्ताव उस के पिता के पास उस के लिए आए हुए थे. उन सब पर घर में सलाहमशवरा चल रहा था. वह खुद भी बहुत खूबसूरत था. इंजीनियरिंग कालेज में कई लड़कियां उस पर जान छिड़कती थीं, पर वह किसी की गिरफ्त में नहीं आया. रीतिका से तो उस की बहुत अच्छी दोस्ती थी. वह उसे केवल दोस्त मानता था. रीतिका ने उसे कई तरह से जताया कि वह उस से शादी करना चाहती है, पर साधारण शक्लसूरत की रीतिका उसे शादी के लिए पसंद नहीं आई.

मगर छवि अपना जादू चला चुकी थी. घर में आए सारे विवाह प्रस्तावों को नकार कर जब उस ने मां के सामने अपनी बात रखी तो मां ने चाचा को फोन कर के सारी बात बताई. फिर उन्होंने छवि के बारे में सबकुछ पता लगाया. छवि बीए पास एक सामान्य घर की लड़की थी. दूसरी जाति की भी थी. मातापिता ने रजत को बहुत समझाया कि सुंदरता ही सब कुछ नहीं होती. लड़की किसी भी तरह उस के योग्य नहीं हैं. आजकल के हिसाब से उसे ज्यादा पढ़ीलिखी भी नहीं कहा जा सकता.

‘‘बीए पास तो है… कौन सा मुझे उस से नौकरी करवानी है,’’ रजत बोला.

‘‘बात नौकरी की नहीं है बेटा… घर का रहनसहन, स्कूलिंग ये सब भी माने रखते हैं. इन सब बातों का असर इंसान के विचारों पर पड़ता है… आज समय बहुत बदल गया है. कुछ समय बाद तुझे खुद यह बात महसूस होने लगेगी. बीए तो हमारी कामवाली की बेटी भी कर रही है तो क्या तू उस से शादी कर सकता है?’’

पिता का ऐसा कहना रजत को खल गया. काम करने वाली की बेटी की तुलना छवि से करने से उस का दिल टूट गया. फिर चिढ़ कर बोला, ‘‘बाकी बातें तो सीखने की हैं… सिखाई जा सकती हैं, पर जो चीज कुदरत देती है वह पैदा नहीं की जा सकती… मेरे साथ रहेगी तो सब सीख जाएगी.’’

अपनी दलीलों से रजत ने मातापिता को चुप कर दिया था. आखिर मातापिता मान गए. छवि उस के जीवन में क्या आई, वह उस के रूपसौंदर्य व भोलीभाली बातों में पूरी तरह डूब गया. छवि जितनी सुंदर थी उस का स्वभाव भी उतना ही अच्छा था. सासससुर ने उसे खुले मन से स्वीकार कर लिया. वे उसे बहुत प्यार करते थे.

प्यार तो रजत भी उसे दीवानों की तरह करता था. औफिस से छूटते ही सीधे घर की दौड़ लगाता. लेकिन घर आ कर देखता छवि किचन में उलझी हुई कभी ससुरजी के लिए सूप बना रही होती है, कभी सास के लिए घुटनों का तेल गरम कर रही होती है, कभी गरम पानी की थैली भर रही होती है, कभी सब्जी काट रही होती है, तो कभी उस के लिए बढि़या नाश्ता बनाने में मसरूफ होती है.

‘‘छोड़ो न छवि ये सब… मुझे ये सब नहीं चाहिए,’’  कह रजत गैस बंद कर देता, ‘‘मांपापा का काम तुम पहले निबटा लिया करो… जब मैं आऊं तो सिर्फ मेरे पास रहा करो,’’ वह उसे अपनी बांहों में कसने की कोशिश करता.

छवि कसमसा जाती, ‘‘क्याकरते हो… मां आ जाएंगी,’’ कह वह जबरन खुद को छुड़ा लेती.

‘‘तो फिर कमरे में चलो,’’ रजत शरारत करते हुए कहता.

‘‘अरे कैसे चल दूं… खाना बनाने में देर हो जाएगी,’’ वह उसे चाय का कप थमा देती, ‘‘देखो, मैं ने आप के लिए ब्रैडरोल बनाए हैं. खा कर बताओ कैसे बने हैं.’’

वह कुढ़ कर कहता, ‘‘हमारी नईनई शादी हुई है छवि… तुम समझती क्यों नहीं,’’ और वह उसे फिर पास खींच कर चूमने का प्रयास करता.

छवि परे छिटक जाती. अपने मचलते अरमानों को काबू कर रजत पैर पटकता किचन से बाहर निकल जाता. उस का बहुत मन करता कि छवि सबकुछ उस के आने से पहले निबटा कर अच्छी तरह सजधज कर उस का इंतजार करे और उस के आने के बाद उस के पास बैठे, उस के साथ घूमने चले, फिल्म देखने चले, बाहर खाना खाने चले, आइसक्रीम खाने चले.

मगर शायद छवि की जिंदगी में इन सब बातों की प्राथमिकता नहीं थी, उस ने अपनी मां को भी ऐसे ही काम में उलझा देखा था और यही सोचती थी कि काम करने से ही सब खुश होते हैं. यहां तक कि पति भी… पतिपत्नी के बीच इस के अलावा दूसरी बातें भी हैं, जो इस से भी जरूरी हैं, पतिपत्नी के रिश्ते के लिए यह वह नहीं समझती थी.

यहां तक कि अखबार पढ़ना, टीवी पर खबरें सुनना, इन सब बातों से भी उस का कोई मतलब नहीं रहता था. उस के लिए घर और घर का काम, सासससुर की सेवा, पति की देखभाल बस यही सबकुछ था.

रजत का मन करता उस की नईनवेली बीवी उस से कभी रूठे और वह उसे मनाए या उस के नाराज होने पर वह उसे मनाए, मीठी छेड़छाड़ करे. पर धीरेधीरे उसे लगने लगा कि इस माटी की खूबसूरत गुडि़या से ऐसी बातों की उम्मीद करना बेकार है.

समय बीतता रहा. उन के 2 बच्चे भी हो गए. अब तो छवि और भी ज्यादा व्यस्त हो गई. उस के पास पलभर की भी फुरसत नहीं रहती.

वह कई बार कहता, ‘‘छवि, खाना बनाने के लिए कोई रख लो. तुम बस अपनी देखरेख में बनवा लिया करो… काम में इतनी उलझी रहती हो… मेरे लिए तो तुम्हारे पास कभी समय नहीं रहता.’’

‘‘कब समय नहीं रहता आप के लिए,’’ छवि हैरानी से कहती, ‘‘कौन सा काम नहीं करती हूं आप का?’’

‘‘छवि, काम ही तो सबकुछ नहीं होता… तुम समझती क्यों नहीं… हमारी यह उम्र लौट कर नही आएगी… बहुत सी जरूरतें होती हैं तनमन की… इन्हें तुम समझना नहीं चाहती… बिस्तर पर एक मशीन की तरह जरूरत पूरी कर के सो जाना, तो सबकुछ नहीं… इस के अलावा भी बहुत कुछ है जीवन में…’’

छवि रजत की सारी जरूरतों को समझती पर उस के मन को न समझती. वह अच्छी बहू थी, अच्छी मां थी, अच्छी पत्नी थी पर अच्छी साथी नहीं थी. और एक साथी की कमी रजत को हमेशा अकेलेपन, एक अजीब तरह की तृष्णा व भटकन से भर देती.

रजत का मन करता उस के दोस्तों की बीवियों की तरह छवि भी तरहतरह की ड्रैसेज पहने, जो शालीन पर फैशनेबल हों. कम से कम चूड़ीदार सूट, अनारकली सूट ये तो वह पहन ही सकती है. यही सोच कर वह एक दिन उसे किसी तरह पटा कर बाजार ले गया. लेकिन छवि कोई भी ड्रैस, यहां तक कि सूट खरीदने को भी तैयार नहीं हुई.

‘‘अरे ये सब… मांपापा क्या कहेंगे… मैं नहीं पहन सकती ये सब.’’

‘‘मेरे सभी दोस्तों की पत्नियां पहनती हैं छवि… यह अनारकली सूट ले लो… तुम पर खूब फबेगा… अभी तुम्हारी उम्र  ही क्या है… आजकल तो 60 साल की औरतें भी ये सब पहनती हैं.’’

‘‘जो पहनती हैं उन्हें पहनने दो. मैं नहीं पहन सकती. उन के सासससुर उन के साथ नहीं रहते होंगे… मांपापा क्या कहेंगे.’’

‘‘छवि मैं जानता हूं अपने मम्मीपापा को… वे पुराने विचारों के नहीं हैं… मैं ने हर तरह का माहौल देखा है… वे आर्मी अफसर की पत्नी हैं… वे तुम्हें ये सब पहने देख कर खुश ही होंगे.’’

मगर छवि ने रजत का प्रस्ताव सिरे से नकार दिया. जब छवि अनारकली सूट जैसी शालीन ड्रैस पहनने को तैयार नहीं हुई तो जींसटौप क्या पहनेगी. पापा सही कहते थे, घर का रहनसहन, स्कूलिंग, शिक्षादीक्षा इन सब का असर इंसान की पर्सनैलिटी और विचारों पर पड़ता है. पत्नी को तरहतरह से सजानेसवारने का रजत का शौक धीरेधीरे दम तोड़ गया.

रजत नौकरी में ऊंचे पदों पर पहुंचता गया. बच्चे बड़े होते गए. मातापिता वृद्ध होते गए और फिर एक दिन इस दुनिया से चले गए. छवि की जैसेजैसे उम्र बढ़नी शुरू हुई तो खुद से बेपरवाह उस का शरीर भी फैलना शुरू हो गया. चेहरे की रौनक जो उम्र की देन थी बिना देखभाल के बेजान होने लगी. लंबे लहराते बाल उम्र के साथ पतली पूंछ जैसे रह गए. वह उन्हें लपेट कर कस कर जूड़ा बना लेती, जो उस के मोटे चेहरे को और भी अनाकर्षक बना देता.

रजत कहता, ‘‘छवि मैं तुम में 20-22 साल की लड़की नहीं ढूंढ़ता, पर चाहता हूं कि तुम अपनी उम्र के अनुसार तो खुद को संवार कर रखा करो… 42 की उम्र ज्यादा नहीं होती है.’’

मगर छवि पर कोई असर नहीं पड़ता. धीरेधीरे रजत ने बोलना ही छोड़ दिया. वह खुद 46 की उम्र में अभी भी 36 से अधिक नहीं लगता था. अपने मोटापे, पहनावे और रहनसहन की वजह से छवि उम्र में उस से बड़ी लगने लगी थी. अब रजत का उसे साथ ले जाने का भी मन नहीं करता. ऐसा नहीं था कि वह दूसरी औरतों की तरफ आकर्षित होता था पर तुलना स्वाभाविक रूप से हो जाती थी.

‘‘आप अभी तक यहां बैठे हैं… लाइट भी नहीं जलाई,’’ छवि लाइट जलाते हुए बोली, ‘‘चलो खाना खा लो.’’

खाना खा कर रजत सो गया. आज पुरानी बातें याद कर के उस के मन की खिन्नता और बढ़ गई थी. छवि के प्रति जो अजीब सा नफरत का भाव उस के मन में भर गया था वह और भी बढ़ गया.

दूसरे दिन रजत औफिस पहुंचा. उस के एक कुलीग का तबादला हुआ था. उस की जगह कोई महिला आज जौइन करने वाली थी. रजत अपने कैबिन में पहुंचा तो चपरासी ने आ कर उसे सलाम किया. फिर बोला, ‘‘साहब आप को बुला रहे हैं.’’

रजत बौस के कमरे की तरफ चल दिया. इजाजत मांग कर अंदर गया तो उस के बौस बोले, रजत ये रीतिका जोशी हैं. सहदेव की जगह इन्होंने जौइन किया है. इन्हें इन का काम समझा दो.’’

रजत ने पलट कर देखा तो खुशी से बोला, ‘‘अरे, रीतिका तुम?’’

‘‘रजत तुम यहां…’’ रीतिका सीट से उठ खड़ी हुई.

‘‘आप दोनों एकदूसरे को जानते हैं?’’

‘‘जी, हम दोनों ने साथ ही इंजीनियरिंग की थी.’’

‘‘फिर तो और भी अच्छा है… रीतिका रजत आप की मदद कर देंगे…’’

‘‘जी, सर,’’ कह कर दोनों बौस के कमरे से बाहर आ गए.

रीतिका को उस का काम समझा कर लंचब्रेक में मिलने की बात कह कर रजत अपने लैपटौप में उलझ गया. लंचब्रेक में रीतिका उस के कैबिन में आ गई, ‘‘लंचब्रेक हो गया… अभी भी लैपटौप पर नजरें गड़ाए बैठे हो.’’

‘‘ओह रीतिका,’’ वह गरदन उठा कर बोला. फिर घड़ी देखी, ‘‘पता ही नहीं चला… चलो कैंटीन चलते हैं.’’

‘‘क्यों, तुम्हारी पत्नी ने जो लंच दिया है उसे नहीं खिलाओगे?’’

‘‘वही खाना है तो उसे खा लो,’’ कह रजत टिफिन खोलने लगा. खाने की खुशबू चारों तरफ बिखर गई.

दोनों खातेखाते पुरानी बातों, पुरानी यादों में खो गए. रजत देख रहा था रीतिका में उम्र के साथसाथ और भी आत्मविश्वास आ गया था. साधारण सुंदर होते हुए भी उस ने अपने व्यक्तित्व को ऐसा निखारा था कि अपनी उम्र से 10 साल कम की दिखाई दे रही थी.

रजत छेड़ते हुए बोला, ‘‘क्या बात है, तुम्हारे पति तुम्हारा बहुत खयाल रखते हैं… उम्र को 7 तालों में बंद कर रखा है.’’

‘‘हां,’’ वह हंसते हुए बोली, ‘‘जब उम्र थी तब तुम ने देखा नहीं… अब ध्यान दे रहे हो.’’

‘‘ओह रीतिका तुम भी कहां की बात ले बैठी… ये सब संयोग की बातें हैं,’’ उस का कटाक्ष समझ कर रजत बोला.

‘‘अच्छा छोड़ो इन बातों को. मुझे घर कब बुला रहे हो? तुम्हारी पत्नी से मिलने का बहुत मन है. मैं भी तो देखूं वह कैसी है, जिस के लिए तुम ने कालेज में कई लड़कियों के दिल तोड़े थे.’’

रजत चुप हो गया. थोड़ी देर अपनेअपने कारणों से दोनों चुप रहे. फिर रीतिका ही चुप्पी तोड़ती हुई बोली, ‘‘लगता है घर नहीं बुलाना चाहते.’’

‘‘नहींनहीं ऐसी बात नहीं. जिस दिन भी फुरसत हो फोन कर देना. उस दिन का डिनर घर पर साथ करेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’

फिर अगले काफी दिनों तक रीतिका बहुत बिजी रही. नयानया काम संभाला था. जब फुरसत मिली तो एक रविवार को फोन कर दिया, ‘‘आज शाम को आ रही हूं तुम्हारे घर, कहीं जा तो नहीं रहे हो न?’’

‘‘नहींनहीं, तुम आ जाओ… डिनर साथ करेंगे.’’

शाम को रीतिका पहुंच गई. उस दिन तो वह और दिनों से भी ज्यादा स्मार्ट व सुंदर लग रही थी. रजत को उसे छवि से मिलाते हुए भी शर्म आ रही थी. फिर खुद को ही धिक्कारने लगा कि क्या सोच रहा है वह.

तभी छवि ड्राइंगरूम में आ गई.

‘‘छवि, यह है रीतिका… मेरे साथ इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ती थी.’’

छवि का परिचय कराते हुए रजत ने रीतिका के चेहरे के भाव साफ पढ़ लिए. वह जैसे कह रही हो कि यही है वह, जिस के लिए तुम ने मुझे ठुकरा दिया था, वह थोड़ी देर तक हैरानी से छवि को देखती रही.

‘‘बैठिए न खड़ी क्यों हैं,’’ छवि की आवाज सुन कर वह चौकन्नी हुई. छवि और रीतिका की पर्सनैलिटी में जमीनआसमान का फर्क था. दोनों की बातचीत में कुछ भी कौमन नहीं था, इसलिए ज्यादा बातें रजत व रीतिका के बीच ही होती रहीं पर साफ दिल छवि ने इसे अन्यथा नहीं लिया.

खाना खा कर रीतिका जाने लगी तो रजत कार की चाबी उठाते हुए बोला, ‘‘छवि, मैं रीतिका को घर छोड़ आता हूं.’’

अपनेअपने झंझावातों में उलझे रजत व रीतिका कार में चुप थे. तभी रजत अचानक बोल पड़ा, रीतिका छवि पहले बहुत खूबसूरत थी.

‘‘हूं.’’

‘‘पर उसे न सजनेसंवरने, न पहननेओढ़ने और न ही पढ़नेलिखने का शौक है… किसी भी बात का शौक नहीं रहा उसे कभी.’’

‘हूं,’ रीतिका ने जवाब दिया.

‘‘बहुत कोशिश की उसे बदलने की… बहुत समझाया पर वह समझती ही नहीं… थकहार कर मैं भी चुप हो गया.’’

‘‘क्या खूबसूरती ही सबकुछ होती है रजत?’’ रीतिका का स्वर इतना थका था जैसे मीलों की दूरी तय कर के आया हो.

रजत उस के थके स्वर के मतलब को समझ रहा था. वह चुप हो गया. थोड़ी देर दोनों चुप रहे.

फिर एकाएक रीतिका बोली, ‘‘बातों से समझा कर नहीं मानती, तो कुछ कर के समझाओ… जब तक दिल पर चोट नहीं लगेगी, तब तक नहीं समझेगी… जब तक कुछ खो देने का डर नहीं होगा… तब तक कुछ पाने की कोशिश नहीं करेगी.’’

रजत चुप रहा. रीतिका की बात कुछ समझा, कुछ नहीं. तभी उस ने कार एक जगह रोक दी.

‘‘यहां कहां रोक दी कार?’’

‘‘आइसक्रीम खाने के लिए. तुम्हें आइसक्रीम बहुत पसंद है न और वह भी आइसक्रीम पार्लर में खाना.’’

‘‘तुम्हें याद है अभी तक?’’ रीतिका संजीदगी से बोली.

‘‘हां, क्यों नहीं. दोस्तों की आदतें भी कोई भूलता है क्या? चलो उतरो,’’ रजत कार का दरवाजा खोलते हुए बोला.

दोनों उतर कर आइसक्रीम पार्लर में चले गए. उन्हें पता ही नहीं चला कि काफी समय हो गया है. फिर रीतिका को छोड़ कर जब रजत घर पहुंचा तो छवि उस के इंतजार में चिंतित सी बैठी थी. उसे देखते ही बोली, ‘‘बहुत देर कर दी. मोबाइल भी आप घर भूल गए थे.’’

‘‘हां, देर हो गई. दरअसल आइसक्रीम खाने रुक गए थे. रीतिका को आइसक्रीम बहुत पसंद है.’’

‘‘आइसक्रीम तो हमेशा घर पर रहती है. घर पर ही खिला देते?’’ छवि का स्वर हमेशा से अलग कुछ झुंझलाया हुआ था.

रजत ने चौंक कर छवि के चेहरे पर नजर डाली. उस के स्वभाव के विपरीत हलकी सी ईर्ष्या की छाया नजर आई. बोला, ‘‘उसे आइसक्रीम पार्लर में ही खाना पसंद है… फिर बातचीत में भी देर हो गई…’’ और फिर कपड़े बदलने लगा.

छवि थोड़ी देर खड़ी रही, फिर बिस्तर पर लेट गई. कपड़े बदल कर रजत भी बिस्तर पर लेट गया. नींद उसे भी नहीं आ रही थी. पर उसे आश्चर्य हुआ कि हमेशा लेटते ही घोड़े बेच कर सो जाने वाली छवि आधी रात तक करवटें बदलती रही. रजत को रीतिका की बात याद आ गई कि जब तक दिल पर चोट नहीं लगेगी, कुछ खोने का डर नहीं होगा. तब तक कुछ पाने की भी कोशिश नहीं करेगी.

अब रजत अकसर औफिस से घर आने में कुछ देर करने लगा. कभी उस से कुछ भी न पूछने वाली छवि अब कभीकभी उस से देर से आने का कारण पूछने लगी. वह भी लापरवाही से जवाब दे देता, ‘‘रीतिका को कुछ शौपिंग करनी थी. उस के साथ चला गया था… उस के पति तो यहां पर हैं नहीं अभी,’’ और फिर छवि के चेहरे के भाव देखना नहीं भूलता. वह देखता कि रीतिका का नाम सुन कर छवि का चेहरा स्याह पड़ जाता.

पतिपत्नी के बीच के उस महीन से अदृश्य अधिकारसूत्र को उसने कभी पकड़ा ही नहीं था. अब अकसर ही यही होने लगा. रजत किसी न किसी कारण से देर से घर आता. छुट्टी वाले दिन भी निकल जाता. कभीकभी शाम को भी निकल जाता और खाना खा कर घर पहुंचता. छवि के पूछने पर कह देता कि रीतिका के साथ था.

छवि कसमसा जाती. कुछ कह नहीं पाती. खुद की तुलना रीतिका से करने लगती. कब, कहां, किस मोड़ पर छोड़ दिया उस ने पति का साथ… वह आगे निकल गया और वह वहीं पर खड़ी रह गई.

वापस आ कर रजत मुंह फेर कर सो जाता और वह तकिए में मुंह गड़ाए आंसू बहाती रहती. ऐसा तो कभी नहीं हुआ उस के साथ. उस ने इस नजर से कभी सोचा ही नहीं रजत के लिए.

रजत को खो देने का डर कभी पैदा ही नहीं हुआ, मन में तो आंसू आने का सवाल ही पैदा नहीं होता. घर, बच्चे, सासससुर की सेवा, घर का काम और पति की देखभाल, जीवन यहीं तक सीमित कर लिया था उस ने. पति इस के अलावा भी कुछ चाहता है इस तरफ तो उस का कभी ध्यान ही नहीं गया.

छवि छटपटा जाती. दिल करता झंझोड़ कर पूछे रजत से ‘क्यों कर रहे हो ऐसा… रीतिका क्या लगती है तुम्हारी…’ पर पता नहीं क्यों कारण जैसे उस की समझ में आ रहा था. रीतिका के व्यक्तित्व के सामने वह अपनेआप को बौना महसूस कर रही थी.

एक दिन रविवार को छवि तैयार हो कर घर से निकल गई. रीतिका खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. तभी घंटी बज उठी. रीतिका ने दरवाजा खोला तो छवि को खड़ा देख कर चौंक गई. पूछा, ‘‘छवि, तुम यहां? इस समय? रजत कहां है?’’

‘‘वे घर पर नहीं थे… मैं तुम से मिलने आई हूं रीतिका,’’ छवि सहमी हुई सी बोली.

छवि के बोलने के अंदाज पर रीतिका को उस पर दया सी आ गई, ‘‘हांहां, छवि अंदर आओ न.’’ वह उस का हाथ पकड़ कर खींचती हुई अंदर ले आई, ‘‘बैठो.’’

छवि थोड़ी देर चुप रही. कभी उस का चेहरा देखती, तो कभी नीचे देखने लगती जैसे तोल रही हो कि क्या बोले और कैसे बोले.

‘‘छवि घबराओ मत खुल कर बोलो क्या काम है मुझ से?’’

‘‘वह… आजकल रजत कुछ बदल से गए हैं…’’ बोलतेबोलते वह हकला सी गई, ‘‘जब से तुम आई हो…’’

सुन कर रीतिका जोर से हंस पड़ी.

‘‘अकसर घर से गायब रहने लगे हैं… तुम्हारे पास आ जाते हैं…’’ कहतेकहते उस की आंखों में आंसू आ गए. ‘‘तुम तो शादीशुदा हो रीतिका… मुझ से मेरा पति मत छीनो…’’

रीतिका हंसतेहंसते चुप हो गई. थोड़ी देर चुप रह कर फिर बोली, ‘‘तुम्हारा पति मैं ने नहीं छीना छवि… तुम ने खुद उसे अपने से दूर कर दिया है.’’

‘‘मैं ने कैसे कर दिया है? वे आजकल तुम्हारे साथ रहते हैं… तुम्हारे साथ पिक्चर जाना, तुम्हें शौपिंग कराना, तुम्हारे साथ घूमना… न बच्चों पर ध्यान देते हैं न घर पर…’’

‘‘छवि, सब से पहले तो इस बात का विश्वास करो कि जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं है हमारे बीच… ऐसा कुछ होता, तो बहुत पहले हो जाता… तब तुम रजत की जिंदगी में न होती… हम दोनों के बीच दोस्ती से अधिक कुछ नहीं… वह कभीकभी मेरी मदद के लिए जरूर आता है पर हमेशा मेरे साथ नहीं होता.’’

‘‘फिर कहां जाते हैं?’’

‘‘अब यह तो रजत ही जाने कि वह कहां जाता है, लेकिन क्यों जाता है, यह मैं समझ सकती हूं…’’

‘‘क्यों जाते हैं?’’ छवि अचंभित सी रीतिका को देखते हुए बोली.

‘‘छवि, शिक्षा का मतलब डिग्री लेना ही नहीं होता, नौकरी करना ही नहीं होता, एक गृहिणी होते हुए भी तुम ने ऐसा कुछ किया जो सिर्फ खुद के लिए किया हो… अब वह जमाना नहीं रहा छवि, जब कहते थे कि पति के दिल पर राज करना है तो पेट से रास्ता बनाओ… मतलब कि अच्छा खाना बनाओ… अब सिर्फ खाना बनाना ही काफी नहीं है…

‘‘अच्छा खाना बनाना आए या न आए पर पति के दिल को समझना जरूर आना चाहिए… अब एक गृहिणी की प्राथमिकताएं भी बहुत बदल गई हैं… क्यों नहीं तुम ने खुद को बदला समय के साथ… कभी रजत की बगल में खड़े हो कर देखा है खुद को…

रजत एक खूबसूरत, उच्चशिक्षित व सफल पुरुष है… और तुम खुद कहां हो… न तुम ने अपनी शिक्षा बढ़ाई, न तुम ने अपने रखरखाव पर ध्यान दिया. न पहनावे पर, न अपना सामान्य ज्ञान बढ़ाने पर… तुम्हारा उच्चशिक्षित पति तुम्हारे साथ आखिर बात भी करे तो किस टौपिक पर…वह समय अब नहीं रहा छवि जब उच्चशिक्षित पतियों की पत्नियां अनपढ़ भी हुआ करती थीं.’’

रीतिका थोड़ी देर चुप रह कर फिर बोली, ‘‘नौकरी करना ही जरूरी नहीं है… एक शिक्षित, स्मार्ट, सामान्य ज्ञान से भरपूर, अंदरबाहर के काम संभालने वाली गृहिणी भी पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी होने की ताकत रखती है… पर तुम ने किचन से बाहर निकल कर खुद के बारे में कभी कुछ सोचा हो तब तो…

‘‘क्या रजत का दिल नहीं करता होगा कि उस के दोस्तों की बीवियों की तरह उस की पत्नी भी स्मार्ट व शिक्षित दिखे, इतना वजन बढ़ा लिया है तुम ने… इस बेडौल शरीर को ढोना तुम्हें क्या उच्छा लगता है? तुम अच्छी पत्नी तो बनी छवि पर अच्छी साथी न बन सकी अपने पति की… सोचो छवि, कई लड़कियों को ठुकरा कर रजत ने तुम्हें पसंद किया था. कहां खो गईर् वह छवि, जिसे वह दीवानों की तरह प्यार करता था?’’

रीतिका की बातें सुन कर छवि को याद आने लगा कि ऐसा कुछ रजत भी कहता था. कई तरह से कई बातें समझाना चाहता था पर उस ने कभी ध्यान ही नहीं दिया. रजत की बातें कभी समझ में नहीं आईं पर रीतिका की बातें उस के कहने के अंदाज से समझ में आ रही थीं.

रीतिका उसे चुप देख कर फिर बोली, ‘‘छवि आज यह बात स्त्रियों पर ही नहीं पुरुषों पर भी समान रूप से लागू होती है… स्मार्ट और शिक्षित स्त्री भी अपने पति में यही सब गुण देखना पसंद करती है… बड़ी उम्र की महिलाएं भी आज अपने प्रति उदासीन नहीं हैं… वे अपने रखरखाव के प्रति सजग हैं… बेडौल पति तो उन्हें भी अच्छा नहीं लगता. फिर पुरुष की तो यह फितरत है.’’

‘‘तो मैं अब क्या करूं रीतिका?’’ छवि हताश सी बोली.

‘‘करना चाहोगी तो सबकुछ आसान लगेगा… पहले तो घर के पास वाला जिम जौइन कर लो… तरहतरह के पकवान बनाना थोड़ा कम करो… रोज का अखबार पढ़ो… टीवी पर समाचार सुनो… बाहर के हर कार्य के लिए बेटे और रजत पर निर्भर मत रहो, खुद करो… इन सब बातों से विश्वास बढ़ता है और विश्वास बढ़ने से व्यक्तित्व निखरता है और व्यक्तित्व निखरने से पति पर अधिकारभावना खुद आ जाएगी.’’

रीतिका की बात सुन कर छवि खुद में गुम हो गई. फिर खुद से एक वादा सा करते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ करना रीतिका… मैं ने तुम्हें गलत समझा… मैं आज ही से तुम्हारी बात पर अमल करूंगी. बस एक बात की उम्मीद कर सकती हूं तुम से?’’

‘‘हां, क्यों नहीं.’’

‘‘तुम्हारीमेरी यह मुलाकात रजत को कभी पता न चले.’’

‘‘कभी पता नहीं चलेगी मुझ पर विश्वास करो. मैं कभी नहीं चाहूंगी कि किसी भी कारण से तुम दोनों के बीच दूरी आए… हमारी यह मुलाकात मेरे सीने में दफन हो गई. तुम बेफिक्र हो कर घर जाओ.’’

छवि घर आ गई. घर लौटते हुए जिम में बात करती आई. 4 महीने का पैकेज था. जिम चलाने वाले ने शर्तिया 15 किलोग्राम वजन घटाने का वादा किया था… उसे एक डाइट चार्ट भी दिया कि उसे सख्ती से इस का पालन करना होगा.

रजत से बिना कुछ बोले छवि अपने अभियान में जुट गई. सच है कोई कितना भी बदलना चाहे किसी को तब तक नहीं बदल सकता, जब तक कोई खुद न बदलना चाहे. अब छवि का नियम बन गया था रोज अखबार पढ़ना और टीवी पर समाचार सुनना. उस ने अखबार वाले से कई पत्रपत्रिकाएं भी लगा ली थीं.

घर की साफसफाई और पकवान बनने कुछ कम हो गए थे पर किसी के जीवन पर इस का कोई खास असर नहीं पड़ा. अलबत्ता छवि की जिंदगी बदलने लगी थी. अब वह अकसर किसी न किसी काम से घर से निकल जाती. इस से खुद को तरोताजा महसूस करती.

बाहर के काम खुद करने से उसे संतुष्टि महसूस होती, जिस से उस में आत्मविश्वास आना शुरू हो गया था. रजत उस में धीरेधीरे आने वाले परिवर्तन को देख रहा था, पर सोच रहा था कि थोड़े दिन की बात है, जो उस की बेरुखी की वजह से शायद छवि में आ गया हो. थोड़े दिनों में अपने फिर पुराने ढर्रे पर आ जाएगी.

लेकिन छवि अपनी उसी दिनचर्या पर कायम रही. 4-5 महीने होतेहोते छवि का वजन 15 किलोग्राम कम हो गया. बदन के उतारचढ़ाव की प्रखरता फिर अपनी मौजूदगी का एहसास कराने लगी. चेहरे की चरबी घट कर कसाव आने से चेहरा कांतिमय हो गया. बड़ीबड़ी झील सी आंखें, जो चरबी बढ़ने से छोटी हो गई थीं, फिर से अपनी गहराई नापने लगीं.

रजत देखता कि अकसर वह खाली समय में पत्रपत्रिकाएं पढ़ते हुए मिलती या फिर बच्चों से कंप्यूटर सीखने का प्रयास करती. वह छवि को फोन पर किसी से बात करते हुए सुनता तो उसे छवि के लहजे व बातचीत पर हैरानी होती. उस की बातचीत का अंदाज तक बदल चुका था.

एक दिन उस ने पार्लर जा कर अपने पूंछ जैसे बाल भी कटवा लिए. कंधों तक लहराते बालों में जब उस ने शीशे में अपना चेहरा देखा तो खुद को ही नहीं पहचान पाई. उस ने कटे बालों को रबड़बैंड से बांधा और घर आ गई.

दूसरे दिन उन्हें सपरिवार मामाजी के घर जाना था. बच्चे तैयार हो कर बाहर निकल गए थे. रजत भी तैयार हो कर बाहर निकला. कार बैक कर के खड़ी की और छवि के बाहर आने का इंतजार करने लगा. थोड़ी देर इंतजार करने के बाद छवि को देर करते देख वह उसे बुलाने अंदर चला गया.

‘‘कहां हो छवि… कितनी देर लगा रही हो… जल्दी करो, देर हो रही है,’’ कहता हुआ वह बैडरूम में चला गया. उस ने देखा चूड़ीदार सूट पहने एक सुंदर व स्मार्ट सी युवती अपने कंधों तक लहराते बालों पर कंघी फेर रही है.

‘‘छवि,’’ आवाज सुन कर छवि ने पलट कर देखा.

‘‘छवि यह तुम हो,’’ रजत उसे खुशी मिश्रित आश्चर्य से देख रहा था. उसे सामने देख कर छवि ऐसे शरमा रही थी जैसे कल ही शादी हुई हो.

रजत उस के करीब आ गया, ‘‘विश्वास नहीं हो रहा कि यह तुम हो… तुम्हें देख कर तो आज 17-18 साल पहले के दौर में पहुंच गया हूं… ‘‘कितनी सुंदर लग रही हो,’’ वह उस की झील सी गहरी आंखों में डुबकी लगाते हुए बोला.

‘‘चलो हटो… ऐसे ही बोल रहे हो… बहुत सताया आप ने मुझे.’’

‘‘सच कह रहा हूं छवि… प्यार तो मैं तुम्हें हमेशा ही करता था पर पतिपत्नी को एकदूसरे को प्यार करने के लिए, प्यार के माध्यम कभी कम नहीं होने देने चाहिए,’’ वह उसे बांहों में कसते हुए बोला, ‘‘आज तो दिल बहकने को कर रहा है.’’

‘‘मुझे माफ कर दो रजत… मैं ने आप की बातें समझने में बहुत देर कर दी.’’

‘‘कोई बात नहीं… आखिर समझ तो गई, पर अब मेरा मामाजी के घर जाने का मूड नहीं है… बच्चों को भेज देते हैं…’’ रजत शरारत से उस के कान के पास मुंह ला कर बोला.

‘‘ठीक है,’’ रजत की बात समझ खिलखिलाती हुई छवि ने अपनी बांहें रजत के गले में डाल दीं.

Romantic Story : कमजोर नस – शिखा और राजीव की शादी क्यों नहीं हुई?

Romantic Story : किरण से मेरी पहली मुलाकात राजीव से शादी होने के करीब 6 महीने बाद हुई थी. वह अपनी भाभी के साथ स्कूल आई थी. तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले उस के भतीजे समीर की मैं क्लास टीचर हूं.

‘‘मैं किरण हूं. राजीव और मैं कालेज में साथसाथ पढ़े हैं और हम बहुत अच्छे दोस्त भी थे,’’ उस की भाभी जब दूसरी टीचर से मिलने चली गई तो उस ने मुसकराते हुए अपना परिचय मुझे दिया था.

उस का नाम सुनते ही मेरा दिमाग एक बार को सुन्न सा हो गया. एकदम से समझ में ही नहीं आया कि मैं आगे क्या बोलूं.

उस ने मेरी चुप्पी का गलत अर्थ लगाया और बिदा लेते हुए बोली, ‘‘कभी राजीव को ले कर घर जरूर आना. बाय.’’

‘‘उसे यों जाते देख कर मैं चौंकी और फिर हड़बड़ाती सी बोली, ‘‘मैं अकेले में आप से कुछ बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘श्योर,’’ उस का जवाब सुन कर मैं कुरसी से उठी और उसे हौल के एक कोने में ले आई. फिर मैं ने इधरउधर की बातें करने में समय नष्ट किए बिना उस से सीधा सवाल पूछा, ‘‘तुम ने राजीव से शादी क्यों नहीं करी?’’

‘‘मुझे राजीव से शादी क्यों करनी चाहिए थी?’’ उस ने मुसकराते हुए उलटा सवाल पूछा.

‘‘क्योंकि तुम दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. राजीव विजातीय थे तो क्या हुआ? तुम्हें अपने मातापिता की इच्छा के खिलाफ जा कर उन से शादी करनी चाहिए थी.’’

‘‘क्योंकि उन्होंने आज भी तुम्हारी तसवीर को दिल में बसा रखा है. तुम से जुड़ी यादों के कारण मैं कभी उन के दिल की रानी नहीं बन पाऊंगी,’’ मैं गुस्सा हो उठी थी.

‘‘क्या मेरे साथ जुड़ी यादें तुम्हारे व राजीव के प्यार में बीच में आ रही है?’’ वह चौंक पड़ी.

‘‘हां, उन्होंने सिवा प्यार की गरमाहट के मुझे सबकुछ दे रखा है,’’ न चाहते हुए भी मेरा गला भर आया था.

‘‘यह तो राजीव बहुत गलत कर रहा है,’’ उस ने सहानुभूति भरे अंदाज में मेरा कंधा पकड़ कर दबाया.

‘‘तुम ने अपने मातापिता की क्यों सुनी? जब प्यार किया था तो शादी क्यों नहीं करी?’’

उस ने कुछ देर खामोश रहने के बाद जवाब दिया, ‘‘इन सवालों के जवाब देने मैं तुम्हारे घर आती हूं.’’

‘‘नहीं, तुम्हारा मेरे घर आना ठीक नहीं रहेगा,’’ मैं एकदम घबरा उठी.

क्या तुम्हें डर है कि अगर मैं ने तुम्हारे घर आनाजाना शुरू कर दिया तो तुम कहीं राजीव को पूरी तरह से ही न खो दो?’’

मैं जवाब में खामोश रही तो उस ने प्यार से मेरा गाल थपथपा कर कहा, ‘‘मुझे तुम आज से अपनी बड़ी बहन समझो. मैं कभी तुम्हारा अहित नहीं करूंगी.’’

‘क्या तुम और राजीव मिलते रहते हो?’’

‘‘तुम्हारे सब सवालों के जवाब अगली मुलाकात में तुम्हारे घर आ कर दूंगी.’’

‘‘कब आओगी?’’

‘‘जल्द ही,’’ उस ने मुझ से हाथ मिलाया और अपनी भाभी की तरफ चली गई.

मैं ने राजीव को किरण से हुई इस मुलाकात की जानकारी शाम को दी तो उन्होंने सब से पहला सवाल यह पूछा, ‘‘कैसी लगी किरण की पर्सनैलिटी तुम्हें?’’

‘‘तुम बिना बात गुस्सा हो रही हो. अरे, वह मुझ से प्यार जरूर करती थी पर अब हमारे बीच कोई चक्कर नहीं चल रहा है.’’

‘‘चक्कर नहीं चल रहा है पर आप उसे भूले भी कहां हैं,’’ मेरा मूड खराब होता जा रहा था.

‘‘तुम सचसच बताओ कि क्या उस जैसी शानदार शख्सीयत को कोई भुला सकता है?’’ उन्होंने गहरी आह सी भरी.

‘‘यह बिडंबना ही है कि मेरी सेवा और समर्पण की आप की नजरों में कोई कीमत नहीं है,’’

मैं बुरी तरह से चिड़ उठी, ‘‘आप मेरी यह बात कान खोल कर सुन लो. मैं बिलकुल नहीं चाहती हूं कि उस का मेरे घर में आनाजाना शुरू हो.’’

‘‘किसी का दिल ईर्ष्या की आग में जलने की बू आ रही है,’’ मेरा मजाक सा उड़ाते ये कमरे से बाहर चले गए और मैं देर तक किलसती रही.

अगले रविवार सुबह 11 बजे के करीब किरण अपनी 2 सहेलियों शिखा व नेहा के साथ अचानक हमारे घर आ पहुंची. ये दोनों भी कालेज में राजीव के साथ पढ़ी थीं. इन के आते ही घर का माहौल तो एकदम से खुशनुमां हो गया, पर मैं खिंचीखिंची सी बनी रही.

‘‘राजीव, जितनी तुम तारीफ फोन पर करते थे, वंदना तो उस से कहीं गुणा ज्यादा सुंदर और स्मार्ट है,’’ शिखा के मुंह से मेरी तारीफ सुन कर राजीव खुश हो गए.

‘‘तुम्हारी तो लौटरी निकल आई इै इतनी अच्छी पत्नी पा कर. इसी बात पर आज पार्टी हो जाए?’’ नेहा की आंखों में भी मैं ने अपने लिए प्रशंसा के भाव साफ देखे.

‘‘बिलकुल हो जाए,’’ राजीव ने फौरन खुशी से जवाब दिया.

‘‘मिठाई में हमारी पसंद याद है या भूल गए हो?’’ किरण ने बड़ी अदा से पूछा.

‘‘नेहा को रसमलाई, शिखा को रसगुल्ले और तुम्हें काजू की बरफी पसंद है. मैं कुछ नहीं भूला हूं.’’

‘‘तो किस की पसंद की मिठाई खिलाओगे?’’

‘‘मेरी.’’

‘‘मेरी.’’

‘‘नहीं, मेरी.’’

‘‘अरे, परेशान मत होओ.

मैं तीनों की पसंद की मिठाई ले आता हूं.’’

‘‘यह हुई न बात. तुम बिलकुल नहीं बदले हो. कितना बड़ा दिल है तुम्हारा,’’ किरण के मुंह से अपनी तारीफ सुनते ही राजीव ने विजयी भाव से मेरी तरफ देखा.

‘मैं अभी गया और अभी आया,’’ कह वे एकदम बाजार जाने को उठ खड़े हुए.

‘‘अभी रुको. थोड़ी देर बाद सब साथ चलेंगे. पहले तुम्हारी जानेमन वंदना के हाथ की बनी चाय तो पी लें.’’

‘‘चाय तो मैं अभी बना कर लाती हूं पर मुझे इन की जानेमन समझने की भूल न करें. इन की जानेमन तो कोई और है,’’ अपनी शिकायत बताने के बाद मैं रसोई में जाने को उठ खड़ी हुई.

‘‘लगता है कालेज में इस के सिर के ऊपर हर लड़की से प्रेम करने का जो भूत सवार रहता था, वह अभी भी उतरा नहीं है,’’ शिखा की इस टिप्पणी पर वे तीनों खिलखिला कर हंसीं.

किरण ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे किचन में जाने से रोका और अपने पास बैठाते हुए बोली, ‘‘हमें जाने की कोई जल्दी नहीं है. चाय कुछ देर बाद पी लेंगे. वैसे सहेलियां आज बहुत समय बाद राजीव के हाथ की बनी चाय पी जाए तो

कैसा रहेगा?’’

राजीव तो चाय बनाने को फौरन तैयार हो गए थे. वे तीनों उन के साथ रसोई में चली आई. वहां उन्होंने मुझे कोई काम नहीं करने दिया.

कुछ देर बाद ही रसोई में बहुत शोर मचने लगा.

‘‘अरे, इतनी ज्यादा चाय की पत्ती मत डालो.’’

‘‘अरे, अभी से चीनी क्यों डाल रहे हो?’’

‘‘कैसे भोंदू हो गए हो जो ढंग की चाय बनाना भी भूल गए हो. लगता है वंदना कोई काम तुम से नहीं कराती है.’’

‘‘आज पकौड़े बना कर नहीं खिलाओगे?’’

‘‘पकौड़ों को रहने दें… हमें पेट खराब नहीं करना है.’’

वे तीनों राजीव का खूब मजाक उड़ा रही थीं. लेकिन उन का व्यवहार बहुत दोस्ताना था. कभीकभी मुझे भी अपनी हंसी रोकना मुश्किल हो जाता था.

कुछ देर बाद हम सब ड्राइंगरूम में बैठ कर राजीव द्वारा बनाई गई चाय का आनंद ले रहे थे. चाय अच्छी बनी थी और सब के मुंह से अपने काम की प्रशंसा सुन वे फूले नहीं समा रहे थे.

‘‘राज, आज एक बढि़या सा गाना भी हो जाए,’’ किरण के मुंह से निकला तो बाकी दोनों भी गाना सुनाने के लिए उन के पीछे पड़ गई.

‘‘अब प्रैक्टिस नहीं रही है. मैं नहीं गा पाऊंगा,’’ राजीव ने गाने से बचने की कोशिश करी.

‘‘मेरी खातिर गाओ न,’’ किरण ने बड़ी अदा से जोर डाला तो ये गाना गाने को सचमुच तैयार हो गए और कमरे में एकदम से वे तीनों हल्ला मचाने लगीं.

‘‘कौन सा गाना सुनाओगे?’’

‘‘जब मुझ से इश्क लड़ा रहे थे तब ‘चौहदवीं का चांद हो…’ सुनाया था. आज वही सुना दो.’’

‘‘नहीं, पार्क में मेरे साथ घूमते हुए मेरी तारीफ में जो ‘तेरे हुस्न की क्या तारीफ करूं…’ गीत गुनगुनाते थे वही सुना दो.’’

‘‘नहीं, वह मेरी पसंद का गाना सुनाइगा.’’

कुछ देर बाद जब राजीव ने किरण की पसंद का गाना गाया तो हम सब की हंसतेहंसते हालत खराब हो गई. उन से न सुर सध रहा था, न ताल. आवाज कहीं की कहीं जा रही थी.

वे बारबार रुक जाते थे पर उन तीनों ने पीछे पड़ कर गाना पूरा करवा ही लिया. गाना खत्म कर के इन्होंने मुझे सफाई सी दी, ‘‘मैं कालेज के दिनों में अच्छा सिंगर होता था. कुछ दिन रियाज करने के बाद देखना मैं कितना बढि़या गाने लगूंगा.’’

‘‘यह राजीव लड़कियों में भी सब से पौपुलर युवक होता था हमारे कालेज का, वंदना.’’

‘‘जब यह लड़कियों पर अनापशनाप खर्चा करने को हमेशा तैयार रहता था तो पौपुलर कैसे न होता?’’

‘‘मुझे इस ने कम से कम 20 फिल्में तो दिखाई ही होंगी.’’

‘‘मैं ने 50 देखी होंगी.’’

‘‘मैं ने 100 से ऊपर.’’

‘‘तू तो खास सहेली थी न इस की.’’

वे राजीव की पुरानी बातें याद कर खूब देर तक हंसती रहीं और फिर अचानक किरण ने कहा, ‘‘अब चलो भी. देर हो रही है. मेरा बेटा और पति लंच करने को तैयार बैठे होंगे.’’

‘‘ऐसे कैसे जाओगी? अभी तो तुम लोगों ने मनपसंद मिठाई भी नहीं खाई है,’’ राजीव बाजार जाने को फौरन उठ खड़े हुए.

‘‘मिठाई फिर कभी खा लेंगे. अभी तो तुम बस कोल्ड ड्रिंक ही पिला दो अपने हाथों से ला कर,’’ किरण ने राजीव को रसोई की तरफ जबरदस्ती धकेल दिया.

वे चले गए तो किरण ने संजीदा हो कर मुझ से कहा, ‘‘मैं ने राजीव से शादी क्यों नहीं करी, अब जल्दी से अपने सवाल का जवाब सुनो, वंदना. हमारे आज के व्यवहार से तुम्हें अंदाजा हो गया होगा कि राजीव को हम ने मनोरंजन के माध्यम से ज्यादा कभी कुछ नहीं समझा था. उस जैसे सीधेसादे लड़केलड़कियों के अच्छे दोस्त बन ही जाते हैं पर उस से शादी करने का विचार कभी हम में से किसी के दिल में आया ही नहीं था.

‘‘मैं इस के साथ बस फ्लर्ट करती थी पर जब यह सीरियस हो गया तो मुझे मजबूरन अपनी मम्मी को बीच में लाना पड़ा था. वे विजातीय लड़के से मेरी शादी करने को बिलकुल तैयार नहीं हैं, यह कह कर मैं ने अपनी जान छुड़ाई थी.

‘‘अब मेरी एक बात ध्यान से सुनो. अगर तुम हमारी तरह इसे अपनी उंगलियों पर नचाना चाहती हो तो इस की एक कमजोर नस मैं तुम्हें बताती हूं. यह दूसरों की नजरों में खास बने रहने को कुछ भी करेगा और कहेगा. इस के डींग मारने वाले व्यवहार से नाराज व दुखी रहने के बजाय तुम इस की झूठीसच्ची तारीफ कर के इस से कुछ भी करा सकती हो.’’

राजीव के लौट आने के कारण वह आगे और कुछ नहीं कह पाई थी. कोल्ड ड्रिंक पीने के बाद उन तीनों ने बारीबारी से मेरा माथा चूमा और खूब होहल्ला मचाते हुए अपनेअपने घर चली गईं.

उन के जाते ही राजीव ने मुझ से छाती चौड़ी करते हुए पूछा, ‘‘तुम्हें बुरा तो नहीं लग रहा है न?’’

‘‘किस बात का?’’ मैं ने उन की आंखों में प्यार से झांक कर पूछा.

‘‘यही कि मेरी चाहने वालियों की आज भी कोई कमी नहीं है.’’

‘‘बिलकुल भी नहीं. आप हो ही इतने स्मार्ट,’’ पहले वाले अंदाज में नाराज हो कर मुंह फुलाने के बजाय मैं ने इन के गले में प्यार से बांहें डाल कर यह जवाब दिया तो इन का चेहरा खिल उठा.

‘‘वैसे आज की तारीख में ये सब तुम्हारे सामने कुछ भी नहीं हैं,’’ इन के मुंह से यों उलटी गंगा बहती देख मैं मन ही मन खुशी से झूम उठी और मन ही मन किरण को धन्यवाद दिया जिस ने मुझे इन की कमजोर नस पकड़वा दी थी.

Emotional Story : बेटियां – क्या श्वेता बन पायी उस बूढ़ी औरत की बुढ़ापे का सहारा

Emotional Story : ‘‘ओफ्फो, आज तो हद हो गई…चाय तक पीने का समय नहीं मिला,’’ यह कहतेकहते डाक्टर कुमार ने अपने चेहरे से मास्क और गले से स्टेथोस्कोप उतार कर मेज पर रख दिया.

सुबह से लगी मरीजों की भीड़ को खत्म कर वह बहुत थक गए थे. कुरसी पर बैठेबैठे ही अपनी आंखें मूंद कर वह थकान मिटाने की कोशिश करने लगे.

अभी कुछ मिनट ही बीते होंगे कि टेलीफोन की घंटी बज उठी. घंटी की आवाज सुन कर डाक्टर कुमार को लगा यह फोन उन्हें अधिक देर तक आराम करने नहीं देगा.

‘‘नंदू, देखो तो जरा, किस का फोन है?’’

वार्डब्वाय नंदू ने जा कर फोन सुना और फौरन वापस आ कर बोला, ‘‘सर, आप के लिए लेबर रूम से काल है.’’

आराम का खयाल छोड़ कर डाक्टर कुमार कुरसी से उठे और फोन पर बात करने लगे.

‘‘आक्सीजन लगाओ… मैं अभी पहुंचता हूं्…’’ और इसी के साथ फोन रखते हुए कुमार लंबेलंबे कदम भरते लेबर रूम की तरफ  चल पड़े.

लेबर रूम पहुंच कर डाक्टर कुमार ने देखा कि नवजात शिशु की हालत बेहद नाजुक है. उस ने नर्स से पूछा कि बच्चे को मां का दूध दिया गया था या नहीं.

‘‘सर,’’ नर्स ने बताया, ‘‘इस के मांबाप तो इसे इसी हालत में छोड़ कर चले गए हैं.’’

‘‘व्हाट’’ आश्चर्य से डाक्टर कुमार के मुंह से निकला, ‘‘एक नवजात बच्चे को छोड़ कर वह कैसे चले गए?’’

‘‘लड़की है न सर, पता चला है कि उन्हें लड़का ही चाहिए था.’’

‘‘अपने ही बच्चे के साथ यह कैसी घृणा,’’ कुमार ने समझ लिया कि गुस्सा करने और डांटडपट का अब कोई फायदा नहीं, इसलिए वह बच्ची की जान बचाने की कोशिश में जुट गए.

कृत्रिम श्वांस पर छोड़ कर और कुछ इंजेक्शन दे कर डाक्टर कुमार ने नर्स को कुछ जरूरी हिदायतें दीं और अपने कमरे में वापस लौट आए.

डाक्टर को देखते ही नंदू ने एक मरीज का कार्ड उन के हाथ में थमाया और बोला, ‘‘एक एक्सीडेंट का केस है सर.’’

डाक्टर कुमार ने देखा कि बूढ़ी औरत को काफी चोट आई थी. उन की जांच करने के बाद डाक्टर कुमार ने नर्स को मरहमपट्टी करने को कहा तथा कुछ दवाइयां लिख दीं.

होश आने पर वृद्ध महिला ने बताया कि कोई कार वाला उन्हें टक्कर मार गया था.

‘‘माताजी, आप के घर वाले?’’ डाक्टर कुमार ने पूछा.

‘‘सिर्फ एक बेटी है डाक्टर साहब, वही लाई है यहां तक मुझे,’’ बुढि़या ने बताया.

डाक्टर कुमार ने देखा कि एक दुबलीपतली, शर्मीली सी लड़की है, मगर उस की आंखों से गजब का आत्म- विश्वास झलक रहा है. उस ने बूढ़ी औरत के सिर पर हाथ फेरते हुए तसल्ली दी और कहा, ‘‘मां, फिक्र मत करो…मैं हूं न…और अब तो आप ठीक हैं.’’

वृद्ध महिला ने कुछ हिम्मत जुटा कर कहा, ‘‘श्वेता, मुझे जरा बिठा दो, उलटी सी आ रही है.’’

इस से डाक्टर कुमार को पता चला कि उस दुबलीपतली लड़की का नाम श्वेता है. उन्होंने श्वेता के साथ मिल कर उस की मां को बिठाया. अभी वह पूरी तरह बैठ भी नहीं पाई थी कि एक जोर की उबकाई के साथ उन्होंने उलटी कर दी और श्वेता की गुलाबी पोशाक उस से सन गई.

मां शर्मसार सी होती हुई बोलीं, ‘‘माफ करना बेटी…मैं ने तो तुम्हें भी….’’

उन की बात बीच में काटती हुई श्वेता बोली, ‘‘यह तो मेरा सौभाग्य है मां कि आप की सेवा का मुझे मौका मिल रहा है.’’

श्वेता के कहे शब्द डाक्टर कुमार को सोच के किसी गहरे समुद्र में डुबोए चले जा रहे थे.

‘‘डाक्टर साहब, कोई गहरी चोट तो नहीं है न,’’ श्वेता ने रूमाल से अपने कपड़े साफ करते हुए पूछा.

‘‘वैसे तो कोई सीरियस बात नहीं है फिर भी इन्हें 5-6 दिन देखरेख के लिए अस्पताल में रखना पड़ेगा. खून काफी बह गया है. खर्चा तकरीबन….’’

‘‘डाक्टर साहब, आप उस की चिंता न करें…’’ श्वेता ने उन की बात बीच में काटी.

‘‘कहां से करेंगी आप इंतजाम?’’ दिलचस्प अंदाज में डाक्टर ने पूछा.

‘‘नौकरी करती हूं…कुछ जमा कर रखा है, कुछ जुटा लूंगी. आखिर, मेरे सिवा मां का इस दुनिया में है ही कौन?’’ यह सुन कर डाक्टर कुमार निश्ंिचत हो गए. श्वेता की मां को वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया.

इधर डाक्टर ने लेबररूम में फोन किया तो पता चला कि नवजात बच्ची की हालत में कोई सुधार नहीं है. वह फिर बेचैन से हो उठे. वह इस सच को भी जानते थे कि बनावटी फीड में वह कमाल कहां जो मां के दूध में होता है.

डाक्टर कुमार दोपहर को खाने के लिए आए तो अपने दोनों मरीजों के बारे में ही सोचते रहे. बेचैनी में वह अपनी थकान भी भूल गए थे.

शाम को डाक्टर कुमार वार्ड का राउंड लेने पहुंचे तो देखा कि श्वेता अपनी मां को व्हील चेयर में बिठा कर सैर करा रही थी.

‘‘दोपहर को समय पर खाना खाया था मांजी ने?’’ डाक्टर कुमार ने श्वेता से मां के बारे में पूछा.

‘‘यस सर, जी भर कर खाया था. महीना दो महीना मां को यहां रहना पड़ जाए तो खूब मोटी हो कर जाएंगी,’’ श्वेता पहली बार कुछ खुल कर बोली. डाक्टर कुमार भी आज दिन में पहली बार हंसे थे.

वार्ड का राउंड ले कर डाक्टर कुमार अपने कमरे में आ गए. नंदू गायब था. डाक्टर कुमार का अंदाजा सही निकला. नंदू फोन सुन रहा था.

‘‘जल्दी आइए सर,’’ सुन कर डाक्टर ने झट से जा कर रिसीवर पकड़ा, तो लेबर रूम से नर्स की आवाज को वह साफ पहचान गए.

‘‘ओ… नो’’, धप्प से फोन रख दिया डाक्टर कुमार ने.

नवजात बच्ची बच न पाई थी. डाक्टर कुमार को लगा कि यदि उस बच्ची के मांबाप मिल जाते तो वह उन्हें घसीटता हुआ श्वेता के पास ले जाता और ‘बेटी’ की परिभाषा समझाता. वह छटपटा से उठे. कमरे में आए तो बैठा न गया. खिड़की से परदा उठा कर वह बाहर देखने लगे.

सहसा डाक्टर कुमार ने देखा कि लेबर रूम से 2 वार्डब्वाय उस बच्ची को कपड़े में लपेट कर बाहर ले जा रहे थे… मूर्ति बने कुमार उस करुणामय दृश्य को देखते रह गए. यों तो कितने ही मरीजों को उन्होंने अपनी आंखों के सामने दुनिया छोड़ते हुए देखा था लेकिन आज उस बच्ची को यों जाता देख उन की आंखों से पीड़ा और बेबसी के आंसू छलक आए.

डाक्टर कुमार को लग रहा था कि जैसे किसी मासूम और बेकुसूर श्वेता को गला घोंट कर मार डाला गया हो.

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