Download App

Emotional Story : बेटियां – क्या श्वेता बन पायी उस बूढ़ी औरत की बुढ़ापे का सहारा

Emotional Story : ‘‘ओफ्फो, आज तो हद हो गई…चाय तक पीने का समय नहीं मिला,’’ यह कहतेकहते डाक्टर कुमार ने अपने चेहरे से मास्क और गले से स्टेथोस्कोप उतार कर मेज पर रख दिया.

सुबह से लगी मरीजों की भीड़ को खत्म कर वह बहुत थक गए थे. कुरसी पर बैठेबैठे ही अपनी आंखें मूंद कर वह थकान मिटाने की कोशिश करने लगे.

अभी कुछ मिनट ही बीते होंगे कि टेलीफोन की घंटी बज उठी. घंटी की आवाज सुन कर डाक्टर कुमार को लगा यह फोन उन्हें अधिक देर तक आराम करने नहीं देगा.

‘‘नंदू, देखो तो जरा, किस का फोन है?’’

वार्डब्वाय नंदू ने जा कर फोन सुना और फौरन वापस आ कर बोला, ‘‘सर, आप के लिए लेबर रूम से काल है.’’

आराम का खयाल छोड़ कर डाक्टर कुमार कुरसी से उठे और फोन पर बात करने लगे.

‘‘आक्सीजन लगाओ… मैं अभी पहुंचता हूं्…’’ और इसी के साथ फोन रखते हुए कुमार लंबेलंबे कदम भरते लेबर रूम की तरफ  चल पड़े.

लेबर रूम पहुंच कर डाक्टर कुमार ने देखा कि नवजात शिशु की हालत बेहद नाजुक है. उस ने नर्स से पूछा कि बच्चे को मां का दूध दिया गया था या नहीं.

‘‘सर,’’ नर्स ने बताया, ‘‘इस के मांबाप तो इसे इसी हालत में छोड़ कर चले गए हैं.’’

‘‘व्हाट’’ आश्चर्य से डाक्टर कुमार के मुंह से निकला, ‘‘एक नवजात बच्चे को छोड़ कर वह कैसे चले गए?’’

‘‘लड़की है न सर, पता चला है कि उन्हें लड़का ही चाहिए था.’’

‘‘अपने ही बच्चे के साथ यह कैसी घृणा,’’ कुमार ने समझ लिया कि गुस्सा करने और डांटडपट का अब कोई फायदा नहीं, इसलिए वह बच्ची की जान बचाने की कोशिश में जुट गए.

कृत्रिम श्वांस पर छोड़ कर और कुछ इंजेक्शन दे कर डाक्टर कुमार ने नर्स को कुछ जरूरी हिदायतें दीं और अपने कमरे में वापस लौट आए.

डाक्टर को देखते ही नंदू ने एक मरीज का कार्ड उन के हाथ में थमाया और बोला, ‘‘एक एक्सीडेंट का केस है सर.’’

डाक्टर कुमार ने देखा कि बूढ़ी औरत को काफी चोट आई थी. उन की जांच करने के बाद डाक्टर कुमार ने नर्स को मरहमपट्टी करने को कहा तथा कुछ दवाइयां लिख दीं.

होश आने पर वृद्ध महिला ने बताया कि कोई कार वाला उन्हें टक्कर मार गया था.

‘‘माताजी, आप के घर वाले?’’ डाक्टर कुमार ने पूछा.

‘‘सिर्फ एक बेटी है डाक्टर साहब, वही लाई है यहां तक मुझे,’’ बुढि़या ने बताया.

डाक्टर कुमार ने देखा कि एक दुबलीपतली, शर्मीली सी लड़की है, मगर उस की आंखों से गजब का आत्म- विश्वास झलक रहा है. उस ने बूढ़ी औरत के सिर पर हाथ फेरते हुए तसल्ली दी और कहा, ‘‘मां, फिक्र मत करो…मैं हूं न…और अब तो आप ठीक हैं.’’

वृद्ध महिला ने कुछ हिम्मत जुटा कर कहा, ‘‘श्वेता, मुझे जरा बिठा दो, उलटी सी आ रही है.’’

इस से डाक्टर कुमार को पता चला कि उस दुबलीपतली लड़की का नाम श्वेता है. उन्होंने श्वेता के साथ मिल कर उस की मां को बिठाया. अभी वह पूरी तरह बैठ भी नहीं पाई थी कि एक जोर की उबकाई के साथ उन्होंने उलटी कर दी और श्वेता की गुलाबी पोशाक उस से सन गई.

मां शर्मसार सी होती हुई बोलीं, ‘‘माफ करना बेटी…मैं ने तो तुम्हें भी….’’

उन की बात बीच में काटती हुई श्वेता बोली, ‘‘यह तो मेरा सौभाग्य है मां कि आप की सेवा का मुझे मौका मिल रहा है.’’

श्वेता के कहे शब्द डाक्टर कुमार को सोच के किसी गहरे समुद्र में डुबोए चले जा रहे थे.

‘‘डाक्टर साहब, कोई गहरी चोट तो नहीं है न,’’ श्वेता ने रूमाल से अपने कपड़े साफ करते हुए पूछा.

‘‘वैसे तो कोई सीरियस बात नहीं है फिर भी इन्हें 5-6 दिन देखरेख के लिए अस्पताल में रखना पड़ेगा. खून काफी बह गया है. खर्चा तकरीबन….’’

‘‘डाक्टर साहब, आप उस की चिंता न करें…’’ श्वेता ने उन की बात बीच में काटी.

‘‘कहां से करेंगी आप इंतजाम?’’ दिलचस्प अंदाज में डाक्टर ने पूछा.

‘‘नौकरी करती हूं…कुछ जमा कर रखा है, कुछ जुटा लूंगी. आखिर, मेरे सिवा मां का इस दुनिया में है ही कौन?’’ यह सुन कर डाक्टर कुमार निश्ंिचत हो गए. श्वेता की मां को वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया.

इधर डाक्टर ने लेबररूम में फोन किया तो पता चला कि नवजात बच्ची की हालत में कोई सुधार नहीं है. वह फिर बेचैन से हो उठे. वह इस सच को भी जानते थे कि बनावटी फीड में वह कमाल कहां जो मां के दूध में होता है.

डाक्टर कुमार दोपहर को खाने के लिए आए तो अपने दोनों मरीजों के बारे में ही सोचते रहे. बेचैनी में वह अपनी थकान भी भूल गए थे.

शाम को डाक्टर कुमार वार्ड का राउंड लेने पहुंचे तो देखा कि श्वेता अपनी मां को व्हील चेयर में बिठा कर सैर करा रही थी.

‘‘दोपहर को समय पर खाना खाया था मांजी ने?’’ डाक्टर कुमार ने श्वेता से मां के बारे में पूछा.

‘‘यस सर, जी भर कर खाया था. महीना दो महीना मां को यहां रहना पड़ जाए तो खूब मोटी हो कर जाएंगी,’’ श्वेता पहली बार कुछ खुल कर बोली. डाक्टर कुमार भी आज दिन में पहली बार हंसे थे.

वार्ड का राउंड ले कर डाक्टर कुमार अपने कमरे में आ गए. नंदू गायब था. डाक्टर कुमार का अंदाजा सही निकला. नंदू फोन सुन रहा था.

‘‘जल्दी आइए सर,’’ सुन कर डाक्टर ने झट से जा कर रिसीवर पकड़ा, तो लेबर रूम से नर्स की आवाज को वह साफ पहचान गए.

‘‘ओ… नो’’, धप्प से फोन रख दिया डाक्टर कुमार ने.

नवजात बच्ची बच न पाई थी. डाक्टर कुमार को लगा कि यदि उस बच्ची के मांबाप मिल जाते तो वह उन्हें घसीटता हुआ श्वेता के पास ले जाता और ‘बेटी’ की परिभाषा समझाता. वह छटपटा से उठे. कमरे में आए तो बैठा न गया. खिड़की से परदा उठा कर वह बाहर देखने लगे.

सहसा डाक्टर कुमार ने देखा कि लेबर रूम से 2 वार्डब्वाय उस बच्ची को कपड़े में लपेट कर बाहर ले जा रहे थे… मूर्ति बने कुमार उस करुणामय दृश्य को देखते रह गए. यों तो कितने ही मरीजों को उन्होंने अपनी आंखों के सामने दुनिया छोड़ते हुए देखा था लेकिन आज उस बच्ची को यों जाता देख उन की आंखों से पीड़ा और बेबसी के आंसू छलक आए.

डाक्टर कुमार को लग रहा था कि जैसे किसी मासूम और बेकुसूर श्वेता को गला घोंट कर मार डाला गया हो.

India’s Got Latent : क्या विचहंट का शिकार हुए रणवीर और समय रैना

India’s Got Latent : इंटरनेट के जमाने में कंटेंट का क्या कोई देश है? क्या आप सोशल मीडिया से पारिवारिकता की उम्मीद लगा कर बैठे हैं? सोशल मीडिया पहले ही गटर बन चुका है. सब के पास चौइस है अपनी पसंद का कंटेंट देखने की और न देखने की. फिर रणवीर और समय से कैसी उम्मीद?

सोशल मीडिया पर अचानक ‘हाए अश्लीलता, हाए अश्लीलता’ का रोना चलने लगा है. क्या आप यकीन कर पाएंगे यह उस देश में हो रहा है जहां के टौप 6 शहर दुनिया के टौप 10 पोर्न देखने वाले शहरों में से बन चुके हैं. दिल्ली, पुणे, मुंबई, कलकत्ता, कुवाला लम्पुर और बैंगलोर.

जहां मिल्फ, चाइल्ड, टीनेज पोर्नोग्राफी देखने वालों की भारी संख्या है. जिस के कीवर्ड में ‘चचेरी बहन की’, ‘सौतेली मां की’, ‘सौतेली बहन के साथ’, ‘कामवाली’, ‘पड़ोसवाली’ यही सब होता है. यह अचानक उस देश में मुद्दा बन गया है जहां रेप के सब से ज्यादा मामले सामने आते हैं और इस के मुकाबले काफी कम कन्विक्शन की दर. यह उस देश का मुद्दा बन गया है जहां दुनिया में सब से ज्यादा बच्चे पैदा होते हैं.

सवाल यह कि अचानक देश अश्लीलता विरोधी कैसे हो गया? जो युवा गलीनुक्कड़ों पर किलोकिलो भर गालियां परोसता है वह गाली विरोधी कैसे हो गया? वो भी उस सोशल मीडिया में जहां का बाजार ही इसी पर टिका है. सवाल यह भी कि मांबहनों की गलियों में, अर्धनग्न रील्स खोजने, उन्हें लाइक व फौलो करने वालों, गलियों में विभिन्नता, स्वाद और चटकारे ढूंढने वाले देश में आखिर ऐसी कौन सी अश्लीलता विरोधी लहर अंदर ही अंदर पनप रही थी कि अचानक आके फूट पड़ी?

मामला ‘इंडियाज गोट लैटेंट’ का है. विवाद इस के कंटेट का और लपेटे में इस के होस्ट हैं. ऐसा शो जिस का कोई पोइंट नहीं लेकिन पोपुलेरिटी में इस ने अच्छेअच्छों को धो दिया. बात इस के डार्क कौमेडी की जो माना गया कि सब के लिए नहीं है, क्योंकि इसे पचाना और पचा कर त्याग देना आसान नहीं. मगर जेनजी और मिलेनियल्स ने इसे हाथोंहाथ लिया. हर एपिसोड पर लगभग 3 करोड़ व्यूज मिले. इस का होस्ट समय रैना विवादित ही सही पर आइडियल बन गया और सोशल मीडिया पर धड़ाधड वायरल हुआ.

यह शो शुरू से ही सुर्ख़ियों में तो रहा ही पर बड़ा विवाद इन्फ्लुएंसर रणवीर अलाहबादिया के उस टिप्पणी पर मचा जिस ने क्रिएटिव फील्ड को ले कर फिर से अलगअलग बहस छेड़ दिए. रणवीर ने शो में आए एक कंटेस्टेंट को उस के पेरैंट्स के सैक्स संबंध पर ऐसा सवाल किया कि यह आग की तरह वायरल हो गया और मामला अश्लीलता परोसने तक पहुंच गया.

फिर क्या किसी ने फांसी पर लटकाए जाने की वकालत की, किसी ने जेल में डालने की. किसी ने शो के मेकर्स को आतंकवादी और देशद्रोही बाताया तो किसी ने एनकाउंटर करने वाले को पैसे देने की बात कही.

हालत इस कदर बिगड़े कि देश भर में इस शो से जुड़े कुल 30 लोगों पर एफआईआर दर्ज की गई. और समय रैना और रणवीर अलाहबादिया पर 7 धाराओं में मुक़दमे दर्ज किए गए. जोड़ यह कि रणवीर का जहां मार्किट वैल्यू डाउन हो गया वहीँ समय रैना को यूट्यूब से अपने सारे शो डिलीट करने पड़ गए.

अब यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या यह विवाद इतना बड़ा है जितना इसे बना दिया गया है? क्या इसे जबरन तूल दिया जा रहा है? अगर अश्लीलता सही में बड़ा मुद्दा है तो फिर पूरे सोशल मीडिया को ही बैन क्यों नहीं किया जा रहा? कायदे से इस शो की अश्लीलता तो सोशल मीडिया की अश्लीलता में समुन्दर में बूंद सामान है. नेताओं से ले कर फिल्मी सितारों के सोशल मीडिया अकाउंट हैं क्या उन्हें सोशल मीडिया यह सब दिखाई नहीं देता?

जाहिर है रणवीर के कमेंट्स निश्चित रूप से आपत्तिजनक थे, दरअसल पूरे शो का थीम ही विवादास्पद है. वेस्टर्न में यह नौर्मल है. वहां पारंपरिकता और संस्कृति का हल्ला रहता है पर उसे क्रिएटिविटी के आड़े नहीं आने दिया जाता, लेकिन क्या इस के लिए पूरे शो को बैन कर देना उचित है? क्या इन्हें फांसी देने या जेल भेजने की डिमांड करना उचित है? क्या 25-30 साल के इन युवा चेहरों को अपराधी से ज्यादा ट्रीट करना और कई दोगुना तीखे अंदाज में गालियों देना, जान से मारने की धमकी देना सही है? क्या यह अश्लीलता नहीं?

इंटरनेट के जमाने में कंटेंट का क्या कोई देश है? क्या आप सोशल मीडिया से पारिवारिकता की उम्मीद लगा कर बैठे हैं? सोशल मीडिया पहले ही गटर बन चुका है. जो लोग सोशल मीडिया पर हैं उन के पास चौइस है अपनी पसंद का कंटेंट देखने की और न देखने की. कोई जबरन किसी को अपना कंटेंट नहीं दिखाता. आप के पास फौलो करने या न करने का आप्शन है. आप के पास उस के व्यूज कम करने का हक है लेकिन हिंसक होने का हक नहीं.

जो मातापिता अपने बच्चों के संस्कारों के बिगड़ने को ले कर परेशान हैं क्या वे खुद सोशल मीडिया पर घंटों समय नहीं बरबाद कर रहे? क्या वे खुद अपने बच्चों को फ़ोन नहीं थमा रहे? क्या वे अधनंगी लड़कियों की रील्स नहीं देख रहे? यदि अश्लीलता से समस्या है तो खुद के अकाउंट बंद करें, सरकार से मांग करें कि सोशल मीडिया ही बैन करे.

क्रिएटिव फील्ड हमेशा से ही विवादास्पद रहा है. फिल्मों, वेब सीरीज और स्टैंडअप कौमेडी में अकसर ऐसा कंटेंट देखने को मिलता है, जो कुछ लोगों को पसंद आता है और कुछ को नहीं लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि हर विवादास्पद कंटेंट को बैन कर दिया जाए. अगर किसी को कंटेंट पसंद नहीं है, तो वह उसे न देखे. यही डिजिटल युग की खूबसूरती है कि आप के पास चुनने की आजादी है. इन्फ्लुएंसर या कंटेंट क्रिएटर खुद समझ जाएगा कि उसे इस तरह का कंटेंट नहीं बनाना.

कुछ लोग इस विवाद को भारतीय संस्कृति और परंपरा पर हमला बता रहे हैं लेकिन क्या सच में ऐसा है? हां, यह जरूरी है कि कौमेडी की सीमाएं हों, लेकिन यह सीमाएं इतनी सख्त भी नहीं होनी चाहिए कि क्रिएटिविटी दम तोड़ दे. फिल्मों में भी खूब गालियां और अश्लील दृश्य होते हैं, लेकिन उन्हें बैन नहीं किया जाता. कई फिल्मों में तो राजनीतिक एजेंडे चलाए जाते हैं, सरकार उन्हें प्रोमोट करती है तो फिर स्टैंड-अप कौमेडी से साफ़सुथरे होने की उम्मीद करना क्या बैइमानी नहीं?

सवाल यह भी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस एक मुद्दे को उछाल कर सरकार अपना उल्लू सीधा करना चाहती है? सभी जानते हैं सरकार सोशल मीडिया पर नकेल कसना चाहती है इस के लिए वह पहले भी पिछले साल ब्रोडकास्टिंग बिल संसद में ला चुकी है. वह तय करना चाहती है कि कंटेंट कैसा जाए, किस का जाए. कहीं इस के बहाने इस बिल को फिर से हवा देने का मसला तो नहीं, क्योंकि यह मामला पार्लियामेंट्री कमिटी तक पहुंच चुका है.

(बौक्स)

भारत में अश्लीलता के खिलाफ 2 मुख्य कानून हैं

भारतीय दंड संहिता की धारा 294 – इस धारा के तहत, अगर कोई व्यक्ति अश्लील सामग्री बेचता, दिखाता, प्रचार करता या किसी और तरीके से वितरित करता है, तो उसे सजा हो सकती है. यह कानून औनलाइन अश्लील सामग्री को भी शामिल करता है. अगर कोई सामग्री बहुत ज्यादा यौन आकर्षक और समाज को खराब करने वाली मानी जाती है, तो उस पर कार्रवाई की जा सकती है. पहले बार दोषी पाए जाने पर, उस पर 2 साल तक की सजा और 5000 रुपए तक का जुरमाना हो सकता है.

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67- इस कानून के तहत औनलाइन अश्लील सामग्री को प्रसारित करने पर कड़ी सजा दी जाती है, इस में वही परिभाषा दी गई है जो भारतीय दंड संहिता की धारा 294 में दी गई है. हालांकि इस कानून में सजा कड़ी है, क्योंकि इस में पहली बार दोषी पाए जाने पर 3 साल तक की सजा और 5 लाख रुपए तक जुरमाना हो सकता है.

Hindi Poem : कुछ तो बोलो न

Hindi Poem : गुम सुम से क्यों बैठ गए हो, आओ कुछ तो बोलो न
अपने मधुर कंठ से अब तुम, कुछ मिश्री सी घोलो न

मुसकराते मुखड़े से अपने अंधियारा ये दूर करो
आलिंगन में आ कर मेरे, प्यार मुझे भर पूर करो
इन सुंदर कोमल नयनो के, अवगुंठन को खोलो न
अपने मधुर कंठ से अब तुम, कुछ मिश्री सी घोलो न

सुंदर मुखड़े पर गिरने दो, रेशम सी काली जुल्फें
चमक रहीं हैं मीन के जैसे, ये दोनों सुंदर पलकें
तड़प रहा है दिल ये मेरा, मेरे दिल को छूलो न
अपने मधुर कंठ से अब तुम, कुछ मिश्री सी घोलो न

गुमसुम से क्यों बैठ गए हो, आओ कुछ तो बोलो न
अपने मधुर कंठ से अब तुम, कुछ मिश्री सी घोलो

लेखक : संजय कुमार गिरि

Sanam Teri Kasam : रीरिलीज ने चौंकाया, नेपोकिड्स खुद डूबे और बौलीवुड को भी डुबाया

Sanam Teri Kasam : फरवरी 2025 माह के पहले सप्ताह यानी कि 7 फरवरी की शुरूआत धमाकेदार रही. इस सप्ताह ओटीटी पर ‘मिसेज’ और ‘द मेहता बौयज’ यह दो फिल्में रिलीज हुईं तो वहीं सिनेमाघरों में तीन पुरानी फिल्में ‘सनम तेरी कसम’, ‘बरेली की बर्फी ’ और ‘पद्मावत’ रीरिलीज हुईं. जबकि 3 नई फिल्में ‘लवयापा’, ‘बैडएस रवि कुमार’ और तेलुगु की हिंदी में डब फिल्म ‘थंडेल’ रिलीज हुई. ‘लवयापा’ का निर्माण मशहूर अभिनेता आमिर खान ने किया है और इस के निर्देशन की जिम्मेदारी आमिर खान के साथ बतौर सहायक 30 वर्षों से कार्यरत अद्वैत चंदन ने किया है.

‘लवयापा’ से दो नेपोकिड्स की अपने कैरियर की शुरूआत

फिल्म ‘लवयापा’ से एक नहीं दोदो नेपोकिड्स जुनैद खान व खुशी कपूर ने अपने कैरियर की शुरूआत की है. यूं तो इन दोनों की फिल्में ओटीटी पर क्रमश: ‘महाराज’ और ‘आर्चीज’ आ चुकी हैं, पर बड़े परदे पर ‘लवयापा’ से दोनों ने शुरूआत की है. यह दोनों नेपोकिड सोने का चम्मच ले कर पैदा हुए हैं. यह हैं आमिर खान के बेटे जुनैद खान और श्रीदेवी व बोनी कपूर की बेटी तथा अभिनेत्री जान्हवी कपूर की बहन खुशी कपूर. आमिर खान ने खुद ‘लवयापा’ के प्रमोशन में पूरी मेहनत झोंक रखी थी.

यहां तक कि उन्होंने अपने बेटे जुनैद खान की फिल्म ‘लवयापा’ के प्रमोशन के लिए लगभग पूरी फिल्म इंडस्ट्री को लगा रखा था. खुद जुनैद खान कभी औटो की सवारी की रील्स सोशल मीडिया पर पोस्ट करते तो कभी, खुशी कपूर के साथ प्रमोशनल इवेंट में डांस करते हुए वीडियो अपलोड करते हुए लगातार ट्रोल हो रहे थे. यहां तक कि उन की पीआर टीम ने उन्हें चंद टीवी चैनलों, यूट्यूबरों व प्रिंट मीडिया के पत्रकारों से इंटरव्यू भी करवाएं.

कहा जा रहा है कि सही पत्रकारों तक जुनैद खान को पहुंचाया ही नहीं गया. यह अच्छा ही किया गया. आमिर खान ने अपनी तरफ से ऐसा माहौल बना दिया था कि लग रहा था कि ‘‘लवयापा’’ बौक्स औफिस पर सारे रिकौर्ड तोड़ देगी. हुआ भी वही, मगर ‘लवयापा’ ने जो रिकौर्ड तोड़ा, उस से दोनों नेपोकिड यानी कि जुनैद खान और खुशी कपूर के कैरियर पर सवालिया निशान लग गया, ‘लवयापा’ बौक्स औफिस पर बुरी तरह से असफल हो गई.

इस से फिल्म ‘लवयापा’ के निर्माता की पूरी लागत डूब गई तो वहीं फिल्म इंडस्ट्री व सिनेमा का नुकसान हुआ. जुनैद खान व खुशी कपूर की फिल्म ‘लवयापा’ पूरे 7 दिन के अंदर साढ़े 6 करोड़ रूपए भी नहीं एकत्र कर सकी. इस में से निर्माता की जेब में शून्य रकम ही आएगी. शर्मनाक बात यह है कि इसी वर्ष 17 जनवरी को रिलीज हुई दो नेपोकिड्स, अमन देवगन और राशा थडाणी की फिल्म ‘आजाद’ ने एक सप्ताह में 7 करोड़ से कुछ अधिक रकम बौक्स औफिस पर एकत्र कर लिए थे.

आमिर खान के साथ ही जुनैद खान व खुशी कपूर के लिए इस से भी बड़ी शर्मनाक बात यह रही कि, 2016 में 18 करोड़ की लागत से बनी फिल्म ‘सनम तेरी कसम’ रिलीज हुई थी, तब इस फिल्म ने महज 9 करोड़ रुपए ही बौक्स औफिस पर एकत्र किए थे. लेकिन पूरे 9 वर्ष बाद जब यह फिल्म 7 फरवरी को ‘रीरिलीज’ हुई तो इस ने एक सप्ताह में लगभग बीस करोड़ रूपए एकत्र कर लिए. मतलब यह कि पुरानी फिल्म बीस करोड़ रुपए एकत्र कर रही है और जुनैद खान व खुशी कपूर की फिल्म ‘लवायापा’ साढ़े 6 करोड़ रुपए भी नहीं कर पाई.

मजेदार बात यह है कि ‘लवयापा’ और ‘सनम तेरी कसम’ दोनों ही रोमांटिक फिल्में हैं. ‘सनम तेरी कसम’ के हीरो हर्षवर्धन राणे और पाकिस्तानी अभिनेत्री मावरा हुसैन को आज भी कोई नहीं जानता. इस फिल्म में अभिनय करने के बाद मावरा हुसैन पाकिस्तान वापस चली गई थीं. तब से वह वापस बौलीवुड नहीं आई.

महज 20 करोड़ के बजट में बनी ‘बैडएस रवि कुमार’

7 फरवरी को ही गायक, संगीतकार व अभिनेता हिमेश रेशमिया की फिल्म ‘बैडएस रवि कुमार’ भी रिलीज हुई. फिल्म के रिलीज से पहले ही हिमेश रेशमिया ने ऐलान कर दिया था कि उन की फिल्म का बजट महज 20 करोड़ रुपए ही है, जिसे वह संगीत व अन्य राइट्स बेच कर वसूल कर चुके हैं.

अब यह फिल्म बौक्स औफिस पर जो कुछ एकत्र करेगी, वह उन का शुद्ध मुनाफा होगा. ‘बैडएस रवि कुमार’ ने 7 दिन के अंदर बौक्स औफिस पर आठ करोड़ रुपए एकत्र कर हिमेश रेशमिया को खुशी दे दी है. जुनैद व खुशी की फिल्म ‘लवयापा’ तो ‘बैडएस रवि कुमार’ से भी काफी पीछे रह गई.

7 फरवरी को ही तेलुगु भाषा में बनी और हिंदी में डब हो कर रिलीज हुई फिल्म ‘थंडेल’ का बजट 50 करोड़ रुपए बताया जा रहा है. यह फिल्म पूरे भारत में हिंदी व तेलुगु मिला कर लगभग 50 करोड़ रुपए एकत्र कर लिए.

रीरिलीज हुई ‘बरेली की बर्फी’ को दर्शकों ने नहीं पूछा

7 फरवरी को ही राजकुमार राव की 2013 की फिल्म ‘बरेली की बर्फी’ रीरिलीज हुई, पर इन्हें दर्शकों ने नहीं पूछा. यह फिल्म 7 दिन में बामुश्किल 7 लाख रुपए ही एकत्र कर सकी. यही हाल संजयलीला भंसाली की रीरिलीज फिल्म ‘पद्मावत’’ का रहा. यह दोनों रीरिलीज फिल्में 10 लाख का भी आंकड़ा नहीं छू सकीं.

ओटीटी की बजाय सिनेमाघरों में ‘द मेहता बौयज’ को किया जाना चाहिए था रिलीज

7 फरवरी को ही ओटीटी प्लेटफौर्मस पर मलयालम फिल्म का हिंदी रीमेक ‘मिसेज’ और बोमन ईरानी के निर्देशन में बनी पहली मौलिक फिल्म ‘द मेहता बौयज’ स्ट्रीम होना शुरू हुई हैं. इन में से ‘द मेहता बौयज’ की काफी प्रशंसा हो रही है. कहा जा रहा है कि बोमन ईरानी को चाहिए था कि उन्हें अपनी फिल्म ‘द मेहता बौयज’ को ओटीटी की बजाय सिनेमाघरों में रिलीज करना चाहिए था.

Stay Positive Tips : अपनी समस्याओं से भागें नहीं बल्कि उन का सामना करना सीखें

Stay Positive Tips : सब कुछ समय पर छोड़ कर, हाथ पर हाथ रख कर बैठने से कुछ सही नहीं होगा. चीजें और ज्यादा खराब ही होंगी. अपनी समस्याओं से भागे नहीं बल्कि उन का सामना करते हुए कोशिश करते रहें और सब कुछ खुद से ही ठीक करने की कोशिश करें.

अगर कोई दूसरी कक्षा का छात्र शिकायत करे कि उस से दसवीं कक्षा के सवाल नहीं हल हो रहे, तो उसे आप समझदार कहेंगे या उस की बात पर हंस देंगे? दसवीं कक्षा के सवाल हल करने की कोशिश आठवींनौवीं में आ कर करना, अभी जो सामने है उस को समझें और उचित कदम उठाएं. कुछ लोग हर बात में कह देते हैं कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाता है. अरे भईया, अगर आप की टांग टूटी है और आप डाक्टर के पास नहीं गए, आप ने प्लास्टर नहीं करवाया. तो बेशक आप की टांग ठीक हो जाएगी. लेकिन आप जिंदगी भर लंगड़ाते रहोगे.

क्यूंकि जिस तरीके वो टूटी है न वो वैसे ही वह उलटी सीधी जुड़ जाएगी. लेकिन अगर उसे सही जगह जुड़वाना है तो वह खुद नहीं जुड़ेगी बल्कि डाक्टर की मदद से सही जगह जोड़नी पड़ेगी. वक्त पर छोड़ कर हाथ पर हाथ रख कर बैठने से सिर्फ नुकसान ही होगा, चीजें और उलझ सकती हैं आप को ठीक करना पड़ता है. इसी तरह वक्त के साथ सब ठीक नहीं होता. इसलिए प्रोफेशनल गाइडेंस ले, अपने आसपास के लोगों से मदद लें.

ये मत समझिए कि वो तो वीक लोगों का काम है. अगर आप को अपने को पूरी तरह से ठीक करना है तो ये तो करना ही पड़ेगा. अपनी समस्याओं का हल भी निकालना पड़ेगा और उन्हें ठीक भी करना पड़ेगा. जो ये सोचते हैं ठीक हो जाएगा उन के अपने घर में कमजोरी है. वो अपनी कमजोरी पर ध्यान नहीं दे रहें और सोचते हैं कि सब अपने आप ठीक हो जाएगा.

अगर लड़का पढ़ा नहीं, तो पिता का खुद का मध्यम वर्ग है, मां पढ़ीलिखी तो है पर नौकरी नहीं करती, वो जो 40 -50 हजार की आमदनी है उसी में खुश है. लड़के को पढ़ाने में उन्होंने कोई रूचि नहीं दिखाई, लड़के ने कोई स्किल भी सीखने की कोशिश नहीं की. क्यूंकि उसे लाइफ में कुछ करने, आगे बढ़ने की प्रेरणा कहीं से मिली ही नहीं, वह भी मां की तरह जो जैसा है उसी में खुश है. उसे भी लाइफ में आगे बढ़ कर कुछ नया करने की सोच या इच्छा नहीं है. फिर सब सोचते हैं सब ठीक हो जाएगा. अरे, ठीक कहां से होगा जब सारे इनपुट खराब है.

ये वही परिवार हैं जो चमत्कारों के भरोसे बैठे हैं. और बड़ाबड़ा चढ़ावा पंडितों को देते हैं, वो भी इन की कुंडली देख कर बेतुके हल बताते हैं कि अपने आप सब ठीक हो जाएगा. अभी ग्रह नक्षत्र की दिशा कुछ सही नहीं है, समय सही नहीं चल रहा, कुछ समय बाद अपने आप सब ठीक हो जाएगा.

अपनी जमीनी हकीकत को देखों चीजें अपने आप नहीं ठीक होती हैं. आप बगैर इट, सीमेंट लाए पक्का मकान नहीं बना सकते. कच्चा मकान घासफूस से बना भी लिया तो इस तरह पहली बारिश में वो ढह जाएगा. इसलिए पहले अपने घर की नींव मजबूत करें. अपने घर की समस्याएं हल करें.

इस के लिए किसी की मदद लें सही करने के लिए हाथपैर मारें और इन पंडितों के जाल से बाहर निकल कर हकीकत की दुनिया में कदम रखें और वक्त के साथ सब सही नहीं होता बल्कि वक्त के साथ कदम से कदम मिला कर चलें और सब सही करने की कोशिश में खुद जुट जाएं. आइए जाने कुछ ऐसे ही सिचुएशन के बारे में जिन का हल खुद नहीं निकलता बल्कि निकालना पड़ता है.

सिचुएशन-1 लड़का कमाता नहीं, तो कोई नहीं शादी करा दो जिम्मेवारी आ जाएगी

कई घरों में देख ने में आता है कि अगर लड़का घर पर बेकार बैठा है, वो कुछ कमाता नहीं है, उसे किसी भी चीज कि कोई जिम्मेवारी नहीं है, तो अक्सर मातापिता को लगता है या रिश्तेदार ऐसा कहते हैं कि कोई नहीं अब इस की शादी करा देते हैं जिम्मेवारी पड़ेगी बीवी आएगी तो कमाना सीख ही लेगा. जब सर पर पड़ती है तो सब आ ही जाता है, समय के साथ सब ठीक हो जाएगा.

हल क्या है-

अपने निकम्मे लड़के की शादी करा देने से वह जिम्मेवार हो जाएगा यह सोच ही अपने आप में गलत है. बल्कि उस के बाद तो आप दोदो लोगों की जिम्मेवारी झेलेंगे. इस से तो अच्छा है अपने घर को ठीक करें, पहले जाने की बेटा पढ़ा क्यूं नहीं? क्या उस की रूचि किसी और चीज में है? उसे कोई प्रोफेशनल हेल्प दिलाएं, उस की समस्याओं का पहले हल निकाले, उसे किसी और स्किल में तैयार करें, किसी के साथ कोई बिजनेस कराएं और अगर वह चल पड़े तब शादी का सोचें.
किसी पंडित के कहने में आ कर कि शादी के बाद बेटा कमाने लगेगा यह बात ठीक नहीं है. शादी के बाद कोई चमत्कार नहीं होने वाला. बल्कि ऐसा कर के आप लड़की की जिंदगी भी खराब कर रहे हैं. जब तक बेटा कमाने लायक ना हो जाएं तब तक उस की शादी करना ठीक नहीं.

सिचुएशन 2- शादी में कुछ ठीक नहीं चल रहा कोई नहीं बच्चा कर लो सब ठीक हो जाएगा

कई बार देखने में आता है कि शादी में अगर पतिपत्नी की आपस में बन नहीं रही हो. दोनों के बीच झगड़े बढ़ते ही जा रहे हो, दोनों को एकदूसरे की शकल तक पसंद नहीं, बात इतनी बढ़ती जा रही है कि घरवालों तक पहुंच गए. बस फिर क्या था उन्होंने निकाल लिया एक हल कि बच्चा कर लो सब ठीक हो जाएगा. अब यहां यह बात समझ नहीं आई कि लड़ाई पतिपत्नी की है उस में बच्चे का क्या रोल.

उलटे बच्चे के आने से दोनों का रिश्ता और ज्यादा खराब हो जाएगा, बच्चे की जिम्मेवारी को ले कर झगड़े और बढ़ेंगे. तब तो हालत यह हो जाएगी कि न छोड़ते बनेगा और न ही साथ रहते. इसलिए सब ठीक करने का यह तरीका बहुत गलत है. कई बार पतिपत्नी बच्चे के चलते अपनी टोक्सिक शादी को निभाने के लिए मजबूर हो जाते हैं और फिर आधी जिंदगी लड़तेमरते बीत जाने पर बच्चों के बड़ा होने पर अलग होने का कोई फैसला करते है इस में ताउम्र बच्चे भी पिसते है.

हल क्या है-

पतिपत्नी में अनबन है तो समय के साथ बच्चा होने पर कुछ भी ठीक नहीं होगा बल्कि अब 2 नहीं 3 लोग इस शादी में पीसेंगे इसलिए अगर नहीं बन रही है तो साथ बैठ कर बातचीत के जरिए अपने मसलों को सुलझाएं.

अगर फिर भी बात नहीं बन रही और लग रहा है गलत साथी का चुनाव हो गया है तो बच्चा लाने की तो सोचिए भी मत बल्कि इस टोक्सिक शादी से बाहर कैसे निकला जाए इस पर विचार करें ऐसे शादी में बच्चा समस्या का हल नहीं बल्कि खुद एक बड़ी समस्या बन कर पतिपत्नी के सामने आ जाता है.

सिचुएशन 3- पढ़ाई में मन नहीं है तो भी कौमर्स दिला दो, एडमिशन हो जाएगा तो पास भी हो ही जाएगा

अगर टीनएजर का मन नहीं है पढ़ाई में और उस ने स्कूल भी बहुत रो रो कर पास किया है, तो फिर ऐसे में यह सोचना कि कोई नहीं कालेज में एडमिशन तो लेना ही पड़ेगा, जब एडमिशन हो जाएगा तो पढ़ भी लेगा ही. ये सोच गलत है. ऐसे में वह और भी फ़्रस्टेटिड हो जाएगा. उसे पता ही नहीं चलेगा कि उसे लाइफ में करना क्या है. पढ़ाई वह कर नहीं पा रहा बिजनेस की उसे समझ नहीं. इसलिए कुछ सालों बाद न उसे जौब मिलेगी न ही कोई और स्किल उस के पास होंगे.

हल क्या है-

अगर टीनएजर की पढ़ने में रूचि कम है तो उस के साथ बैठे उस की समस्याओं को समझें कि आखिर क्या वजह है जो वह पढ़ नहीं पा रहा. उसे कोई गाइडेंस चाहिए तो वो दें. उस का इंट्रेस्ट पढ़ाई में नहीं है और वो डांस, सिंगिंग या किसी और लाइन में कुछ करना चाहता है तो उसे वह कराएं. कई बार टीनएजर अपने मन के काम के ज्यादा सफल हो सकते हैं. पढ़ाई तो प्राइवेट भी पूरी कराई जा सकती है.

सिचुएशन 4- सासबहू की नहीं बन रही हो भी साथ में रहो समय लगेगा सब ठीक हो जाएगा

अगर सासबहू की नहीं बन रही, उन की पटरी साथ में नहीं जम रही, दोनों एकदूसरे को टार्चर करने और नीचे देख ने का एक भी मौका नहीं छोड़ रहीं तो भी साथ में रहों क्यूंकि सब ठीक जो करना है. भले ही इस ठीक करने के चक्कर में सासबहू के साथसाथ और भी रिश्ते दांव पर क्यूं न लग जाए, पतिपत्नी का रिश्ता तलाक तक क्यूं न पहुंच जाएं? पर साथ में रहना जरुरी है. क्या ये सही है?

हल क्या है –

अगर सासबहू की नहीं बन रही, तो ये किस किताब में लिखा है कि दोनों को पूरा जीवन लड़तेमरते एक ही घर में रहना जरुरी है? क्यूं बहू अलग घर में नहीं रह सकती? जब कि अगर नहीं बन रही और अलगअलग रहना शुरू कर दें तो एक संभावना है कि रिश्ते आगे जा कर इतने तो रही जाएंगे कि दोनों कभीकभार खुशी या गम के मौके पर एक साथ खड़े हो जाएं लेकिन अगर साथ रहें तो कुछ सालों बाद एकदूसरे की शकल भी बर्दाश नहीं करेंगे.
इसलिए ये सब अपने आप ठीक नहीं होगा बल्कि दोनों को उन की जिंदगी अपनेअपने ढंग से जीने दें तभी दोनों एकदूसरे की थोड़े इज्जत कर पाएंगी.

सिचुएशन 5- जौब में सही नहीं चल रहा, तो भी उसी में टिके रहो कुछ समय में सब ठीक हो जाएगा

अभी हाल ही में पुणे की कंपनी की एक सीए लड़की की मौत की खबरें खूब पढ़ने में आई जो अपने ज्यादा काम के बोझ की वजह से परेशां थी और इसलिए उसे अटैक आ गया क्यूंकि उस ने भी सोचा होगा सब ठीक हो जाएगा. लेकिन जब जौब का वर्कप्रेशर वो नहीं झेल पा रही थी, तो जौब छोड़ने का फैसला उस ने क्यूं नहीं लिया? परेशां होते रहना लेकिन फिर भी अपनी समस्या का हल न निकालना और उसे वक्त पर छोड़ देना कहां की समझदारी है.

हल क्या है –

अगर आप की कंपनी में आप के साथ कोई पोलटिक्स हो रही है, वर्कप्रेशर ज्यादा है, वहां काम करना अच्छा नहीं लग रहा, तो ये चीजें अपने आप ठीक नहीं होंगी. आप को ठीक करनी पड़ेगी. जो चीज पसंद नहीं या जिस के साथ एडजस्ट नहीं कर पा रहें उसे बताना पड़ेगा. अपने लिए खुद ही माहौल सही करना पड़ेगा, ज्यादा काम के लिए न बोलना पड़ेगा. लेकिन ऐसा कुछ करने के बजाए आप सोचें की कुछ समय में ये सब खुद ही ठीक हो जाएगा तो ये खुद कभी ठीक नहीं होगा. ठीक करने के लिए आप को मेहनत करनी होगी. आवाज उठानी होगी, और फिर भी अगर सही नहीं होता तो खुद ही ये जौब छोड़ कर दूसरी लेनी होगी.

जब समय ठीक न चल रहा हो, तो ये काम करने से मदद मिल सकती है:

सकारात्मक सोच रखें- क्यूंकि आप की सोच ही है जो आप को मुश्किल समय से निकाल सकती है.

परिवार का सहारा लें- परिवार की एकता में बहुत शक्ति होती है अपनों के साथ के भरोसे बड़ी से बड़ी कठिनाई को पार किया जा सकता है.

खुद को खुश रखें- जब आप हर हाल में खुश होंगे तभी तो आगे बढ़ने के बारे में रिलैक्स माइंड से कुछ सोच पाएंगे.

बारबार कोशिश करते रहें- अगर किसी काम में सफलता नहीं मिल रही तो भी कोशिश करते रहें. हिम्मत न हारे. एक दिन सफलता जरूर मिलेगी.

अपनी असफलता के कारणों का विश्लेषण करें- यह करना बहुत जरुरी है ताकि पता चल सके कि आप का मनचाहा आखिर हो क्यूं नहीं रहा. उन कारणों को ढूंढें और उन्हें खुद ही दूर करने का प्रयास करें.

अपनी कार्यशैली में बदलाव करें- हो सकता है जो काम आप कर रहे थे वह सही न हो. जिस तरह से कर रहे थे वह तरीका ही गलत हो. इसलिए पहले अपनी कार्यशैली में बदलाव लाएं.

किसी भरोसेमंद व्यक्ति से सलाह लें- अगर खुद कुछ समझ नहीं आ रहा तो किसी की मदद लें और अपनी समस्याओं को समझाने की कोशिश करें नाकि उन से भागें.

फिजिकल एक्टिविटीज करें- जी हां, डेली एक्सरसाइज, योग करने से मन शांत होता है और नएनए आईडिया आते हैं जिस से काम में मदद मिलती है.

काउंसलर से मिलें- काउंसलर से मिलने को कोई हौवा न बनाए वो आप की मदद के लिए ही हैं. उन से बात कर के बहुत सी ऐसी बातें आप के बारें में जान लेंगे जिन के बारे में आप को खुद भी पता नहीं होगा. फिर समस्या का हल भी बताएंगे.

अच्छे समय खुद नहीं आता – जीवन में हमें कभी किसी भी खास समय का इंतजार नहीं करना चाहिए, बल्कि अपने हर समय को खास बनाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए.

धैर्य बनाए रखें: बारबार कोशिश करते रहें और हार न मानें. जब जीवन में कुछ भी सही नहीं होता है, तो हमें अपने मन को बदलने के लिए क्या करना चाहिए?

जब जीवन में कुछ भी सही नहीं हो रहा है, तो आप सब से पहले अपने मन को शांत करने की कोशिश करें, आप भी जानते हैं कि जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं होता है. इसलिए सब्र रखिए मित्र ये समय भी ‌‌‌‌‌‌‌निकल जाएगा, इस दौरान अपने परिवार, मित्रों के साथ समय बिताएं, उस से बात करें.

मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें- ध्यान, योग, या अन्य विश्राम तकनीकों का इस्तेमाल करें.

थोड़ी देर के लिए आराम करें- इस से ताजगी महसूस होती है और बेहतर फैसले लिए जा सकते हैं.

पौजिटिव गाने सुनें: इस से शरीर में एंडोफिन हार्मोन रिलीज होता है और बेहतर महसूस होता है.

विश्वास बनाए रखें: यह याद रखें कि कुछ भी हमेशा के लिए नहीं रहता. जीवन में उतारचढ़ाव आते रहते हैं.

इसलिए ऐसा हो सकता है कि रौशनी कम है और आप को मंजिल तक का पूरा रास्ता साफ नहीं दिख रहा, पर फिर भी दो कदम चलने लायक रौशनी है, तो आप का दायित्व है कि आप दो कदम चलें, आप जैसे ही थोड़ा आगे पहुंचेंगे आप को फिर कुछ कदम लेने लायक रौशनी मिल जाएगी, बस यह मांग मत रखिए कि आप को आखिरी कदम तक सब एक बार में क्यों नहीं दिख रहा.

Religion : धार्मिक आयोजन और भगदड़, औरतों पर गिरती गाज

Religion : एक औरत केरल के एक धर्मगुरु के यहां अपनी मानसिक शांति के लिए जाती थीं. उस धर्मगुरु ने अपने दबदबे का इस्तेमाल कर उन का कई दिनों तक शोषण किया. उन औरत के कोई बच्चा नहीं था और वे पेट से भी हो गईं. आज उन के पास उस घिनौने शोषण की निशानी हैं और वे चुपचाप उसे पाल रही हैं. पति बड़े खुश हैं कि बीवी को शादी के 15 साल बाद बच्चा हो गया है.

ऐसे ही एक और जानने वाले हैं, जिन की पत्नी को तो उन के दोस्त एक ऐसे ही बाबाजी के यहां से बेहद बुरी हालत में छुड़वा कर लाए थे. वे भी उस बाबा की बेहद भक्त हुआ करती थीं. पता चला कि बेहद पढ़ेलिखे अलीम जनाब और उन के 2 भाई उन की पत्नी को एक हफ्ते से घर में कैद कर के अपनी इच्छाएं मिटा रहे थे.

ये ज्यादातर ऐसी औरतें हैं जो घरों में कैद रहती हैं, उन के पति भी खूब धर्म भीरु होते हैं या फिर उन के पास पैसा तो है, पर पत्नी के लिए समय नहीं है. ऐसी औरतों को जन्म से घुट्टी में धर्म पिलाया गया होता है. ये भगवान की महिमा सुनसुन कर बड़ी होती हैं.

कई बार ऐसी औरतें मन की शांति के लिए इन महात्माओं के पास जाती हैं, पर उन के आसपास एक अजीब सी भीड़ होती है. यही वजह है कि ऐसी औरतों को महात्माजी बड़े हीरो टाइप लगने लगते हैं.

यकीन मानिए, इन औरतों का तकरीबन 80 फीसदी तबका वह होता है, जो कभी अपने पति के आलावा किसी और मर्द से शायद जिंदगीभर में 2 घंटे ढंग से बात भी नहीं कर पाया होगा. अब मिल जाते हैं एक हीरो के माफिक बाबाजी जो औरतों से घिरे हैं, बड़ा प्यार लुटा रहे हैं, आश्रम में रुकने का आग्रह कर रहे हैं. इन बाबाओं को कहीं न कहीं अच्छे से पता होता हैं की ग्लैमर दिखा कर इन औरतों को कैसे वश में में करना है.

नामचीन बाबाजी रचाते थे रास

वृंदावन के पास एक बेहद नामचीन बाबाजी, जो अब नहीं रहे हैं, बेहद लंबे थे और रोज रात को रास रचाते थे, मतलब कुछ चुनिंदा जवान औरतों को बेसमैंट के एयरकंडीशनर हाल में खूब सजधज कर आने को कहा जाता था. स्वामीजी अपने कपड़े उतार कर इन औरतों के सामने नाचा करते थे.

आप को यकीन नहीं होगा कि करोड़पति धन्ना सेठों की बहुएं सुदूर कोलकाता और उत्तर प्रदेश से आ कर उन के साथ खुद को उन की प्रेमिका के रूप में नाचने के लिए करोड़ों रुपए की बोली लगाती थीं.

3 साल बाद वापस आई लड़कियां

एक गुजराती बाबाजी एक बार उत्तर प्रदेश गए. वहां एक गरीब पुलिस वाले की लड़कियां उन के चक्कर में फंस गईं. तकरीबन 3 साल के बाद जब वे लड़कियां वापस आईं, तो उन को 2-2 लाख रुपए दे कर वापस भेज दिया गया था. दोनों बहनों का रातोंरात चुपचाप कहीं गांव में ब्याह दिया गया. बाद में पता चला कि वे दोनों बहनें सऊदी अरब के हथियारों के एक सौदागर के पानी के जहाज पर रही थीं. दोनों के गर्भाशय तक निकाल लिए गए थे. जब तक भगवान के नाम पर धर्म के ठेकेदारों की दुकाने चलेंगी, तब तक यह शोषण चलता रहेगा और औरतें यों ही उल्लू बन कर इज्जत लुटाती रहेंगी.

क्या आधुनिक युग में जी रहे हैं हम ?

सवाल उठता है कि क्या हम आधुनिक युग में जी रहे हैं? बिलकुल नहीं. अब लोग कहीं घूमने जाते हैं, तो तीर्थ का बहाना बना देते हैं. एक औरत को अगर मसूरी जाना होता था तो वे बोलती थीं कि हरिद्वार जाना है. मनाली जाना होता था, तो वे बोलती थीं कि मणिकर्ण जाना है. मतलब उन को सारे टूरिस्ट प्लेस के पास के तीर्थ स्थानों पर जाना होता था, ताकि वे खुद को धार्मिक कह सकें.

और तो और आप कह दीजिए कि मुझे आज कुछ मन का खाने बाहर जाना है, तो आप को सौ नसीहतें मिल जाएंगी, पर एक बार कह दीजिए कि मंदिर जा रहे हैं, सत्संग जा रहे हैं, तो कोई नहीं रोकेगा.

हाथरस धार्मिक आयोजन के हादसे में सबसे ज्यादा औरतों की हुई थी मौत

हाथरस, उत्तर प्रदेश में एक धार्मिक आयोजन के दौरान मची भगदड़ के बाद जबरदस्त हादसा हो गया. इस में हादसे की ज्यादा शिकार औरतें हुई थीं. पर क्या आप जानते हैं कि क्यों औरतें ही ऐसे मामलों में ज्यादा मरती हैं?

हाथरस में बाबा नारायण साकार हरि भोला के एक सत्संग में मची भगदड़ में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी, जिस में ज्यादातर औरतें थीं.

जिस देश में जितने बाबा, उस देश में सिस्टम उतना ही खराब

किसी देश मे जितने ज्यादा बाबा हैं, तो समझिए कि सिस्टम उतना ही खराब है. जो राहत सरकार को अपनी जनता को देनी चाहिए, वह लोगों को नहीं मिलती, तो लोग परेशान हो कर बाबाओं के पास जाते हैं. जितना ज्यादा धर्म और अंधविश्वास का बोलबाला उतनी ही बाबागीरी चमकती है. जितनी पढ़ाई लिखाई, डाक्टरी सेवाओं और रोजगार की बदहाली, उतनी ही बाबाओं की चांदी.

देश को मिली आजादी के बाद शहरों और गांवों में जहां ज्ञान और विज्ञान की चर्चा होनी चाहिए थी, लोगों को शिक्षित किया जाना चाहिए था, इस के उलट अंधविश्वासों के प्रचार और प्रवचनों का रेला आ गया है.

औरतों पर तो सब से ज्यादा गाज गिरती है. यही वजह है कि आज जिस तरह से हमारे देश की औरतें फिर से अंधविश्वासों की तरफ लौट रही हैं, महंतोंबाबाओं की तरफ दौड़ रही हैं और प्रवचनों में भीड़ की शोभा बढ़ा रही हैं, उसे देख कर लगता है कि वे शायद 21वीं सदी में नहीं, बल्कि 12वीं या 13वीं सदी में जी रही हैं.

ससुराल में जब औरत को इज्जत और हिफाजत नहीं मिलती, न मायका ही उन्हें सहारा दे पाता है, तब ऊपरवाले की चौखट बचती है और यहां से शुरू होता है धर्म के प्रति विश्वास और अंधविश्वास का चक्कर.

आसाराम बापू और बाबा राम रहीम के कारनामे

आसाराम बापू और बाबा राम रहीम के कारनामे देखें. बाबा राम रहीम जैसे ढोंगीपाखंडी साधु कुसूरवार पाए जाने के बावजूद आएदिन पैरोल पर रिहा कर दिए जाते हैं. इस पर हमेशा सवाल उठाए जाते रहे हैं, पर आज इन सवालों को भी पीछे धकेला जा रहा है.

सब से बड़ी त्रासदी है कि धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा को औरतें भी समझ नहीं पातीं और इसे समर्थन देती हैं. धर्म भारत की औरतों की कमजोर नब्ज है. महिलाएं पितृसत्ता की वाहक और शिकार दोनों हैं. धर्म औरत को कब्जे में रखने का उपकरण है. औरत को बचना है और आगे निकलना है तो उसे कट्टरवादी धार्मिक सत्ता को नकारना होगा.

कई गांवों में आज भी है ‘सती मैया’ के मंदिर

आज भी कई गांवों में ‘सती मैया’ के मंदिर हैं, जहां औरतें पूजापाठ करती हुई अपने सुहाग को बनाए रखने और भाग्य का दुख नहीं भोगने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हैं. धार्मिक आचार संहिता ने भाग्य को पूर्व जन्मों का फल बताया है, जिस का कठिन प्रायश्चित औरतें करती हैं. पूजापाठ, व्रतउपवास, मंदिरमूर्तियों के समूचे विधिविधान औरतों के जिम्मे है.

ज्यादातर औरतों की जिंदगी में धर्म उन्हें घर के बाहर निकल कर एकदूसरे से मिलने का मौका देता है, इसलिए वे धार्मिक गतिविधियों के लिए घर से बाहर निकलती हैं, एकदूसरे से मिलती, बतियाती और समय बिताती हैं तो धर्म और पितृसत्ता इसे खतरा नहीं समझता.

पर वे ही औरतें जब सामाजिक सरोकार और खुद से जुड़े मुद्दों को ले कर जुटने लगती हैं, तो इसे धर्म और पितृसत्ता दोनों ही खतरनाक घोषित करते हैं, इसलिए कई औरतें पितृसत्ता पर सवाल तो उठाती हैं, पर धर्म का पूरी ताकत से विरोध नहीं करती हैं.

बाबा लोग उन को भविष्य में होने वाली अनहोनी से काफी डरा देते हैं, जिस से बिना तर्क वे उन के बताए रास्ते पर चलने को मजबूर हो जाती हैं. धर्मभीरु होने से औरतें बाबाओं के शोषण की शिकार होती हैं. देश में अब भी एक बड़े तबके में लड़कियों की पढ़ाईलिखाई उन की प्राथमिकता में शामिल नहीं है. तालीम की कमी में लड़कियां अकसर ढोंगी बाबाओं के जाल में फंस कर रह जाती हैं.

आज भी लड़की को अकेले घूमने की मनाही है

इस देश में आज भी लड़की को अकेले स्कूल भेजने, सहेली के घर जाने, बाहर घूमने की मनाही है. आज भी ऐसे घरों की कमी नहीं जो लड़की को सिर्फ मंदिर के लिए ही बाहर जाने देते हैं. लड़की बाहर जाए तो घर के किसी मर्द के साथ वरना नहीं. वजह, सुरक्षा की भावना या फिर यह डर कि लड़की किसी से प्यार न कर बैठे.

ऐसे में वही लड़कियां या औरतें जब इन बाबाओं को अपनी समस्याओं के बारे में बताती हैं, तो वे लोग इन का गलत फायदा उठाते हैं. समाज में बदनामी का डर औरतों को हमेशा सच बताने से रोकता है, इसलिए ऐसे लोगों की हिम्मत बढ़ती जाती है, जिस से जन्म होता है आसाराम, राम रहीम, वीरेंद्र देव दीक्षित जैसे लोगों का. वीरेंद्र देव दीक्षित के दिल्ली में बने आश्रम से कई लड़कियों को बड़ी मशक्त के बाद मुक्त कराना संभव हो पाया था. यह घटना कई दिनों तक सुर्खियों में बनी रही थी.

बाबाओं के आश्रम में लड़कों से ज्यादा तादाद लड़कियों की क्यों ?

ऐसा क्यों है कि बाबाओं के आश्रम में लड़कों से ज्यादा तादाद लड़कियों की होती है? इस की मूल वजह है भारतीय सामाजिक संरचना और घर और घर में फैली पितृसत्ता. इस संरचना में लड़के की अहम भूमिका है. लड़कों को सेवाभाव से दूर रखा जाता है, जबकि लड़की में सेवाभाव वाले सारे गुण बचपन से ही भरे जाते ही हैं, इसलिए बाबाओं के आश्रम में लड़कियों को भेज दिया जाता है. वहां बहलाफुसलाकर, बड़े सपने दिखा कर मोक्ष के बहाने सताने का अंतहीन सिलसिला शुरू होता है.

हैरानी की बात यह है कि लड़कियों को ऐसे डरायाधमकाया जाता है कि वे मुंह से कुछ नहीं बोल पाती हैं. कुछ तो इसी पसोपेश में खुदकुशी तक कर लेती हैं. इस से कभीकभार ही इन बाबाओं का सच सामने आ जाता है, पर होता कुछ नहीं है.

Driving Skills : महिलाओं की ड्राइविंग स्किल्स पर क्यों बनते हैं जोक?

Driving Skills : आज महिलाएं बड़ीबड़ी कंपनी संभाल रही हैं, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि महिला गाड़ी का स्टीयरिंग नहीं संभाल सकती हैं. लोगों का मानना है कि अगर महिला सड़क पर गाड़ी ले कर निकली है, तो पक्का किसी का काम तमाम करेंगी. क्या यह सिर्फ लोगों की मैंटेलिटी है या रियलिटी? आइए जानते हैं.

“ड्राइविंग सीट पर बैठ 2 लड़कियों ने मचाया बवाल यूपी पुलिस का जवाब हुआ वायरल”

हाल ही में एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ जिस में 2 महिलाएं गाड़ी चलाते हुए डांस करती नजर आ रही हैं. उन्हें इस तरह लापरवाही से ड्राइविंग करते हुए देख लोग काफी गुस्सा हो रहे हैं और इस पर पुलिस का भी जवाब आया है. “लड़की गाड़ी चला रही है एक्सीडैंट तो होना ही था” साथ ही सोशल मीडिया पर महिलाओं को उन की इस हरकत पर कोसा भी जा रहा है.

जब ड्राइविंग की बात आती है तो अधिकांश लोगों की यही सोच सामने आती है कि महिलाएं कभी भी अच्छी ड्राइवर नहीं हो सकतीं और लड़कियों/महिलाओं का काम घर संभालना है न कि गाड़ी के ब्रेक.

यही कारण है कि निम्न कुछ आम स्टेटमैंट सड़क पर कोई भी व्हीकल चलाने वाली लगभग हर लड़की को सुनने को मिलते हैं –

‘खुद तो मरेंगी और दूसरों की जान भी लेंगी, पता नहीं कौन इन्हें गाड़ी चलाने को दे देता है.’
‘लड़की चला रही है दूर ही रहो नहीं तो हाथ पैर टूट जाएंगे.’
‘सड़क पर कहीं जाम लग गया तो पक्का ड्राइव करने वाली लड़की ही होगी.’
‘ये देखो, राइट इंडिकेटर दे कर लेफ्ट टर्न ले रही, पक्का कोई लड़की गाड़ी चला रही होगी.’
‘कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि औरतें अच्छी गाड़ी नहीं चलातीं, क्योंकि वे डरपोक होती हैं.’
‘गाड़ी अगर रौंग साइड पर है तो पक्का ड्राइवर महिला ही होगी.’

महिलाओं को ड्राइविंग के रूल्स नहीं पता होते

भले ही आज महिलाएं बड़ीबड़ी कंपनी संभाल रही हैं, चांद पर जा रही हैं लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि महिलाएं गाड़ी का स्टेयरिंग नहीं संभाल सकती हैं. यहां कुछ कारणों पर चर्चा की गई है कि आखिर क्यों औरतों की ड्राइविंग स्किल्स का मजाक बनाया जाता है और इसे कैसे बदला जा सकता है.

गाड़ी चलाते समय भी मल्टीटास्कर

अधिकांश महिलाएं गाड़ी चलाते समय भी मल्टीटास्किंग करती हैं, जैसे फोन पर बात करना, अगर बच्चे साथ हैं तो लगातार पीछे मुड़ कर बच्चों को चिप्स या जूस न गिराने के लिए कहना, अपने ‘गर्लगैंग’ के व्हाट्सएप ग्रुप पर हो रही चैट के मैसेज पर नजर रखना, मेकअप टचअप करना और फिर रियर व्यू मिरर को वापस उसी स्थिति में लाना भूल जाना, अपने मूड के हिसाब से सही गाना ढूंढने के लिए लगातार चैनल बदलना, मेड, मां या टेलर को फोन करना. किसी भी महिला के ये सब निश्चित रूप से रोड और स्टीयरिंग से ध्यान हटाने के लिए पर्याप्त होते हैं, जिस के कारण ही उन की गाड़ी किसी से टकराती है और उन्हें सुनने को मिल जाता है “क्यों देते हो इन्हें गाड़ी चलाने के लिए.”

गियरअप बिल्कुल नहीं…

देखा गया है, अधिकांश महिलाएं दूसरे या तीसरे गियर में गाड़ी चलाती हैं और एक्सीलेटर दबाती रहती हैं और ऐसे में बेचारा इंजन भी अपनी किस्मत को रोता है और दया की भीख मांगता है कि मुझे बक्श दो लेकिन मैडम इस पर ध्यान देने के मूड में नहीं होती हैं.

ब्रेक- कभी भी, कहीं भी

वे बिना कोई सिग्नल दिए या स्पीड कम किए अचानक कहीं भी ब्रेक लगा देती हैं. कई बार उन्हें याद नहीं रहता कि उन्हें किस मोड़ पर टर्न लेना था और वे अचानक कहीं भी टर्न ले लेती हैं.
महिलाओं को उन की ड्राइविंग स्किल्स पर जोक्स का सामना न करना पड़े इस के लिए महिलाओं को ड्राइविंग करते समय निम्न बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए.

* फोन पर बात न करें, फोन ड्राइव करते समय सब से बड़ा डिस्टरैक्शन होता है, सड़क पर से ध्यान हटाने के लिए, इसलिए ड्राइव करते समय फोन कौल्स अटेंड न करें.
* माना कि आज की महिलाओं को घर और औफिस दोनों को देखना पड़ता है और आज शाम को खाने में क्या बनेगा, औफिस में मीटिंग में क्या होगा, बच्चे स्कूल पहुंच गए होंगे. इन सब बातों की चिंता करनी पड़ती है लेकिन कृपया महिलाएं ड्राइव करते समय इन बातों के बारे में न सोचें सिर्फ अपनी ड्राइविंग पर ध्यान दें.
* कुछ महिलाएं इतनी मल्टीटास्कर होती हैं या कहें उन्हें ढेरों काम के बीच जल्दबाजी में घर में खाना खाने का समय नहीं मिलता तो वे बहुत बार एक हाथ से स्टैयरिंग थामे दूसरे हाथ से खाना खाती हैं. ऐसा न करें, एक समय में एक ही काम करें वरना पक्का आप की गाड़ी किसी से भिड़ेगी और आप को सुनने को मिल ही जाएगा ‘खुद तो मरेंगी और दूसरों की जान भी लेंगी पता नहीं कौन इन्हें गाड़ी चलाने को दे देता है.”

• कुछ महिलाएं जल्दबाजी में ट्रैफिक रूल्स की धज्जियां उड़ाते हुए रेडलाइट जंप करने से बाज नहीं आतीं, इसलिए भी साथ में गाड़ी चलाने वालों को मुसीबत का सामना करना पड़ता है और उन के मुंह से निकल ही जाता है “लड़की चला रही है दूर ही रहो नहीं तो हाथ पैर टूट जाएंगे.”
•कई महिलाओं को देखा है वे ओवरकौन्फिडैंस में गाड़ी बहुत तेज स्पीड में चलाती हैं और आसपास वालों की जान से खेलने का काम करती हैं ऐसा हरगिज न करें .

• गाड़ी चलाते हुए महिलाओं का एक और सब से फेवरेट काम होता है अपने मेकअप या लिपस्टिक को टचअप करना जिस के कारण उन्हें साथी पुरुषों ड्राइवर्स के कमेंट्स का सामना करना पड़ता है, आप ही सोचिए सड़क पर गाड़ी चलाते हुए मेकअप टचअप करना भला कहां की समझदारी है.

महिलाएं कृपया सुरक्षित ड्राइव करें, स्मार्ट ड्राइव करें!

हाल ही में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि महिला चालक पुरुषों की तुलना में कम समय गाड़ियां चलाती हैं. जहां एक पुरुष औसतन 60 फीसदी समय गाड़ी चलाने में बिताता है, वहीं महिलाएं 40 फीसदी समय ही स्टेयरिंग पर बिताती हैं और वे ज्यादा असुरक्षित तरीके से गाड़ी चलाती हैं. महिलाओं के दुर्घटना का शिकार होने का खतरा अधिक रहता है.
शोधकर्ताओं के मुताबिक महिलाओं को क्रौस रोड, टीजंक्शन और स्लिप रोड पर स्वाभाविक तौर पर गाड़ी चलाने में दिक्कत पेश आती है. शोध में एक अन्य अनोखी बात भी सामने आई है कि पुरुषों की तुलना में ऊंचाई कम होने के कारण महिलाएं आमतौर पर अपनी बाईं ओर से आने वाली गाड़ियों को ठीक नहीं देख पातीं और दुर्घटना कर बैठती हैं.

42 वर्षीय वंदिता इस बारे में कहती हैं कि मेरे पापा ने मुझे कार चलाना सिखाया था और शुरूशुरू जब मैं कालेज गाड़ी ले कर जाती थी तो मेरे दोस्त मेरा मजाक उड़ाते थे. वे कहते थे कि आज कितनों को अस्पताल पहुंचा कर आई हो. शुरुआत में काफी डर लगता था, लोग देखते थे कि लड़की गाड़ी चला रही है तो ओवरटेक करने की कोशिश करते या आगे से जा कर रास्ता रोक लेते, लेकिन मैं ने लोगों की बातों को ध्यान नहीं दिया और आज मुझे गाड़ी चलाते हुए 20 साल हो गए हैं. मैं गाड़ी चलाते समय सिर्फ सड़क पर ध्यान रखती हूं और ट्रैफिक के रूल्स को फौलो करती हूं,फोन पर बात नहीं करती, मेकअप टचअप नहीं करती और मैं ने आज तक कोई एक्सीडैंट नहीं किया.

बिना किसी भेदभाव के हो सेफ ड्राइविंग

कार खरीदने में महिलाओं की बढ़ी हिस्सेदारी ड्राइविंग की बात करें तो अब सिर्फ पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाएं भी कार ड्राइव करने में पीछे नहीं हैं. वे लंबे ट्रैवल और अपनी पर्सनल जरुरत के लिए ड्राइविंग करने लगी हैं. ड्राइविंग एक ऐसी स्किल है जो न केवल किसी की आजादी को बढ़ाती है बल्कि आत्मनिर्भर भी बनाती है, जरूरत है बिना किसी भेदभाव के उस स्किल को सही तरह से सीखने और ट्रैफिक रुल्स को फौलो करते हुए अपनी और सब की जान की सुरक्षा करते हुए अपनी अपनी मंजिल पर पहुंचने की फिर चाहे वह पुरुष हो या महिला.

Romantic Story : एक दूजे के वास्ते – क्यों तूलिका अपने पति के पास लौट आई?

Romantic Story : ‘‘शादी की सालगिरह मुबारक हो तूलिका दी,’’ मेरी भाभी ने मुझे फोन पर मुबारकबाद देते हुए कहा.

‘‘शादी की सालगिरह मुबारक हो बेटा. दामादजी कहां हैं?’’ पापा ने भी फोन पर मुबारकबाद देते हुए पूछा.

‘‘पापा, वे औफिस गए हैं.’’

‘‘ठीक है बेटा, मैं उन से बाद में बात कर लूंगा.’’

मेरी छोटी बहन कनिका और उस के पति परेश सब ने मुझे बधाई दी, पर मेरे पति रवि ने मुझ से ठीक से बात भी नहीं की. आज हमारी शादी की सालगिरह है और रवि को कोई उत्साह ही नहीं है. माना कि उन्हें औफिस में बहुत काम होता है और सुबह जल्दी निकलना पड़ता है, पर शादी की सालगिरह कौन सी रोजरोज आती है.’’

रवि कह कर गए थे, ‘‘तूलिका, आज मैं जल्दी आ जाऊंगा… हम बाहर ही खाना खाएंगे.’’

‘सुबह से शाम हो गई और शाम से रात. रवि अभी तक नहीं आए. हो सकता है मेरे लिए कोई उपहार खरीद रहे हों, इसलिए देरी हो रही है,’ मन ही मन मैं सोच रही थी.

‘‘मां भूख लगी है,’’ मेरी 5 साल की बेटी निया कहने लगी. वह सो न जाए, उस से पहले ही मैं ने उसे कुछ बना कर खिला दिया.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. वे आते ही बोले, ‘‘बहुत थक गया हूं… तूलिका माफ करना लेट हो गया… अचानक मीटिंग हो गई. शादी की सालगिरह मुबारक हो मेरी जान… यह तुम्हारा उपहार… फूलों सी नाजुक बीवी के लिए गुलदस्ता… आज हमारी शादी को 6 साल हो गए और तुम अभी भी पहले जैसी ही लगती हो.’’

पर मैं ने उन की किसी भी बात पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की और उन के लाए गुलदस्ते को एक तरफ रख दिया. फिर बोलने लगे, ‘‘आज होटल में बहुत भीड़ थी… तुम्हारी पसंद का सारा खाना पैक करवा लाया हूं. जल्दी से निकालो… जोर की भूख लगी है.’’

‘‘जोर की भूख लगी थी तो बाहर से ही खा कर आ जाते… यह खाना लाने की तकलीफ क्यों की और इस गुलदस्ते पर पैसे खर्च करने की क्या जरूरत थी? आप खा लीजिए… मेरी भूख मर गई… मैं सोने जा रही हूं.’’

‘‘माफी तो मांग ली अब क्या करूं? बौस ने अचानक मीटिंग रख दी तो क्या करता? मुझे भी बुरा लग रहा है… खाना खा लो तूलिका भूखी मत सो,’’ रवि बोले.

कितना कहा पर मैं नहीं मानी और भूखी सो गई. मैं रात भर रोतीसिसकती रही कि किस बेवकूफ से मेरी शादी हो गई… शादी के 6 साल पूरे हो गए पर आज तक कभी मुझे मनचाहा उपहार नहीं दिया. मैं ने सुबह से कितना इंतजार किया, कम से कम होटल में तो खिला ही सकते थे.

आज तक कौन सी बड़ी खुशी दी है मुझे… हर छोटी से छोटी चीज के लिए

तरसती आई हूं. एक मेरी बहन का पति है, जो उसे कितना प्यार करता है. भूख से नींद भी नहीं आ रही थी. सोचा कुछ खा लूं पर मेरा गुस्सा भूख से ज्यादा तेज था. एक गिलास ठंडा पानी पी कर मैं सोने की कोशिश करने लगी पर नींद नहीं आ रही थी. क्या कभी रवि को महसूस नहीं होता कि मैं क्या चाहती हूं? फिर पता नहीं कब मुझे नींद आ गई.

‘‘गुड मौर्निंग मेरी जान…’’ कह रवि ने मुझे पीछे से पकड़ लिया जैसा हमेशा करते हैं. आज रवि की पकड़ से मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरे बदन पर बिच्छू रेंग रहा हो.

मैं ने उन्हें धक्का देते हुए कहा, ‘‘झूठे प्यार का दिखावा करना बंद कीजिए… इतने भी सीधे और सरल नहीं हैं आप जितना दिखाने की कोशिश करते हैं.’’

‘‘अब जैसा भी हूं तुम्हारा ही हूं. हां, मुझे पता है कल मैं ने तुम्हारे साथ बहुत ज्यादती की पर मैं क्या करूं तूलिका नौकरी भी तो जरूरी है. अचानक मीटिंग रख दी बौस ने. अब बौस से जवाबतलब तो नहीं कर सकता न… इसी नौकरी पर तो रोजीरोटी चलती है हमारी,’’ रवि बोले.

‘‘कौन सा महीने का लाख रुपए देती है यह नौकरी? आज तक कौन सी बड़ी खुशी दी है आप ने मुझे? बस दो वक्त की रोटी, तन पर कपड़ा और यह घर. इस के अलावा कुछ भी तो नहीं दिया है,’’ मैं ने गुस्से में कहा.

‘‘बस इन्हीं 3 चीजों की तो जरूरत है हम सब की जिंदगी में… किसीकिसी को तो ये भी नहीं मिलती हैं तूलिका… जो भी हमारे पास है उसी में खुश रहना सीखो. अब छोड़ो यह गुस्सा.. गुस्से में तुम अच्छी नहीं लगती हो.

चलो आज कहीं बाहर घूमने चलेंगे और बाहर ही खाना खाएंगे… तुम कहो तो फिल्म भी देखेंगे… आज छुट्टी का दिन है… यार अब छोड़ो यह गुस्सा.’’

‘‘मुझे कहीं नहीं जाना है दोबारा बोलने की कोशिश भी मत कीजिएगा. पछता रही हूं आप से शादी कर के… पता नहीं क्या देखा था मेरे पापा ने आप में… कितना कुछ ले कर आई थी मैं… सभी कुछ आप के परिवार वालों ने रख लिया. कितने अरमान संजोए आई थी ससुराल में… सब चकनाचूर हो गया. अब मुझे जो भी जरूरत होगी अपने पापा से मांगूंगी. आप से उम्मीद करना ही बेकार है. आप जैसे आदमी को तो शादी ही नहीं करनी चाहिए,’’ जो मन में आया वह बोले जा रही थी.

‘‘मैं ने पहले ही तुम्हारे पापा से कहा था कि मुझे कुछ नहीं चाहिए. मेरे जीवन का एक संकल्प है, उद्देश्य है और बिना संकल्प जीवन और मृत्यु का भेद समाप्त हो जाता है. क्या बेईमानी से करोड़ों कमा कर या किसी से पैसे मांग कर मैं तुम्हें ज्यादा सुखी रख सकता हूं?

मैं अपने परिवार को अपने बलबूते पर रखना चाहता हूं. मुझे किसी का 1 रुपया भी नहीं लेना है. अपने पापा का भी नहीं. अब तुम्हारे पापा ने दिए औैर मेरे पापा ने लिए तो इस में मैं क्या कर सकता हूं? अभी हमारे घर का लोन कट रहा है इसलिए पैसे की थोड़ी किल्लत है. फिर सब ठीक हो जाएगा तूलिका… मुझे भरोसा है अपनेआप पर कि मैं सारी खुशियां दूंगा तुम्हें एक दिन,’’ रवि बोले.

रवि ने मुझे बहुत मनाने की कोशिश की पर मैं अपने गुस्से पर कायम थी. रविवार की छुट्टी ऐसे ही बीत गई. शाम को निया बाहर घूमने की जिद्द करने लगी. रवि उसे घुमाने ले गए. मुझे भी कितनी बार कहा रवि ने पर मैं नहीं गई.

तभी भाभी का फोन आया. ‘‘भाभी प्रणाम.’’ ‘‘तूलिका, कैसी हैं? आप दोनों को परेशान तो नहीं किया न?’’

‘‘अरे नहीं भाभी.. कहिए न.’’

‘‘कनिका अपने पति के साथ आई हुई है तो पापा चाह रहे थे कि अगर कुछ दिनों के लिए आप सब भी आ जाते तो अच्छा लगता,’’ भाभी ने मुझ से कहा.

‘‘हां भाभी, देखती हूं. वैसे भी आप सब से मिलने का बहुत मन कर रहा है,’’ कह फोन काट कर मैं सोचने लगी कि कितनी खुशहाल है कनिका… कुछ दिन पहले ही सिंगापुर घूम कर आई है अपने पति के साथ और एक मैं…

मैं ने सोचा कि कुछ दिनों के लिए पापा के पास चली ही जाऊं. कम से कम कुछ दिनों के लिए इस घर के काम से दूर तो रहूंगी और फिर मुझे अपने पति को सबक भी सिखाना था, जो सिर्फ मुझे इस्तेमाल करना जानते हैं.

‘‘मां,’’ कह कर निया मुझ से लिपट गई. कहांकहां घूमी, क्याक्या खाया, सब बताया.

फिर बोली, ‘‘पापा आप के लिए भी आइसक्रीम लाए हैं.’’

‘‘मुझे नहीं खानी है… जाओ बोल दो अपने पापा को कि वही खा लें और यह भी बोलना कि तुम और मैं नाना के घर जाएंगे… टिकट करवा दें.’’

‘‘पापा, हमें नाना के घर जाना है. मां ने बोला है कि टिकट करवा दो,’’ निया बोली.

‘‘आप की मां आप के पापा से गुस्सा हैं, इसलिए पापा को छोड़ कर जाना चाहती हैं. ठीक है मैं टिकट करवा दूंगा,’’ रवि मेरी तरफ देखते हुए बोले.

रवि जब मुझे और निया को ट्रेन में बैठा कर अपना हाथ हिलाने लगे और ट्रेन भी अपनी गति पकड़ने लगी, तो निया पापा पापा कह कर चिल्लाने लगी. रवि का चेहरा उदास हो गया.

वे मुझे ही देखे जा रहे थे. तभी लगा कि आवेग में आ कर कहीं गलती तो नहीं कर रही हूं मायके जाने की? पर ट्रेन की रफ्तार तेज हो चुकी थी. पूरा रास्ता यही सोचती रही कि इतना नहीं बोलना चाहिए था मुझे… सुबह ही हम पटना पहुंच गए.

सब से मिल कर अच्छा लगा. पापा तो बहुत खुश हुए. सब रवि के बारे में पूछने लगे तो मैं ने कह दिया कि उन्हें काम था, इसलिए नहीं आ पाए.’’

यहां आए 4-5 दिन हो गए. रवि रोज सुबह शाम फोन करते. एक रोज कनिका ने पूछ ही लिया कि रवि ने सालगिरह पर मुझे क्या उपहार दिया तो मैं ने हंस कर टाल दिया.

कनिका और परेश हमेशा यही जताने की कोशिश करते कि दोनों में बहुत प्यार है. पापा ने ही दोनों के टिकट करवाए थे, सिंगापुर जाने के लिए. पापा ने रवि से भी पूछा था कि कहीं घूमने जाना हो तो टिकट करवा दूं पर मेरे पति तो राजा हरीशचंद हैं, उन्होंने मना कर दिया.

एक रात पापा और भाभी भैया किसी की शादी में गए थे. निया और मैं कमरे में टैलीविजन देख रहे थे.

‘‘दीदी, मैं ने खाना बना दिया है… मैं अपने घर जा रही हूं,’’ कामवाली कह कर चली गई.

थोड़ी देर बाद निया के खाने का वक्त हो गया. निया सो न जाए यह सोच कर मैं किचन मैं खाना लेने जाने लगी कि तभी कनिका के कमरे से हंसने की और अजीब सी आवाजें आने लगीं.

ये कनिका भी न… कम से कम कमरे का दरवाजा तो लगा लेती. मैं ने सोचा परेश के साथ अभी उसे समय मिला. मैं बुदबुदाई पर जैसे ही मैं किचन से खाना ले कर निकली तो मैं ने देखा कि कनिका तो बाहर से आ रही है.

‘‘कनिका तुम? तो तुम्हारे कमरे में कौन है? तुम कहीं बाहर गई थीं?’’ मैं ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘हां दीदी, मैं पड़ोस की स्वाति भाभी के घर गई थी. कब से बुला रही थीं… देखो न कितनी देर तक बैठा लिया.’’

‘‘कनिका, निया के लिए खाना ले कर मेरे कमरे में आओ न जरा कुछ बातें करनी हैं तुम से,’’ मैं ने हड़बड़ाते हुए कनिका के हाथ में खाने की प्लेट थामते हुए कहा. मुझे लगा कहीं कनिका कुछ ऐसावैसा देख न ले, पर कौन है कमरे में? जैसे ही मैं पलटी देख कर दंग रह गई. सोना अपने ब्लाउज का बटन लगाते हुए कनिका के कमरे से निकल रही थी. उस के  बाल औैर कपड़े अस्तव्यस्त थे. मुझे देखते ही सकपका गई और भाग गई.

परेश का शारीरिक संबंध एक नौकरानी के साथ… छि:…

‘‘ दीदी, निया का खाना ले आई… कुछ बातें करनी थीं आप को मुझ से?’’

उफ, दिमाग से निकल गया कि क्या बातें करनी थीं. सुबह कर लूंगी… अभी तू जा कर आराम कर.’’

‘‘ठीक है दीदी.’’ उफ, क्या समझा था मैं ने परेश को और वह क्या निकला… अब तो परेश से घिन्न आने लगी है… और यह कनिका अपने पति की बड़ाई करते नहीं थकती है.

रवि तो मेरी खुशी में ही अपनी खुशी देखते हैं और मैं ने कितना कुछ सुना दिया उन्हें. आज तक कभी उन्होंने पराई औरत की तरफ नजर उठा कर नहीं देखा… मुझे रवि की याद सताने लगी. मन हुआ कि अभी फोन लगा कर बात कर लूं.

सुबह जब रवि का फोन नहीं आया तो मैं ने ही फोन लगाया पर उन्होंने फोन नहीं उठाया. बारबार फोन लगा रही थी पर वे नहीं उठा रहे थे. मेरा मन बहुत बैचेन होने लगा. अब मुझे चिंता भी होने लगी, इसलिए मैं ने उन के औफिस में फोन किया तो रिसैप्शनिस्ट ने बताया कि  रवि आज औफिस नहीं आए और कल भी जल्दी चले गए थे. उन की तबीयत ठीक नहीं लग रही थी.

यह सुन कर मुझे और चिंता होने लगी.

‘‘पापा, रवि की तबीयत ठीक नहीं है. अभी औफिस से पता चला, इसलिए मैं कल की गाड़ी से चली जाऊंगी,’’ मैं ने पापा से कहा.

‘‘कोई चिंता की बात तो नहीं है न? मैं हवाईजहाज की टिकट करवा देता हूं,’’ पापा ने मुझ से कहा.

मैं ने सोचा कि जो बात मेरे पति को नहीं पसंद वह मैं नहीं करूंगी. अत: बोली, ‘‘नहीं पापा मैं ट्रेन से चली जाऊंगी. आप चिंता न करें. वैसे भी पटना से दिल्ली ज्यादा दूर नहीं है.’’

रास्ते भर मैं परेशान रही कि क्या हुआ होगा. ऐसा लग रहा था कि उड़ कर अपने घर पहुंच जाऊं. करीब 7 बजे सुबह हम अपने घर पहुंच गए. मैं बारबार दरवाजा खटखटा रही थी पर रवि दरवाजा नहीं खोल रहे थे. फिर मैं ने घर की दूसरी चाबी से दरवाजा खोला. अंदर गई तो देखा रवि बेसुध सोए थे. उन का बदन बुखार से तप रहा था. मैं ने तुरंत डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने रवि को इंजैक्शन दिया. धीरेधीरे उन का बुखार उतरने लगा.

जब उन की आंखें खुलीं तो चौंक कर बोले, ‘‘अरे तुम. मैं ने तुम्हें परेशान नहीं करना चाहा इसलिए बताया नहीं. माफ कर दो कि मायके से जल्दी आना पड़ा,’’ कहते हुए रवि रो पड़ा.

‘‘माफ आप मुझे कर दीजिए. मैं ही गलत थीं,’’ मेरी आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. फिर सोचने लगी कि मैं अपने अरमान उन पर लादती रही. कभी रवि के बारे में नहीं सोचा. कितने सौम्य, शालीन और सुव्यवस्थित किस्म के इनसान हैं मेरे पति. कितना प्यार और समर्पण दिया रवि ने मुझे पर मैं ही अपने पति को पहचान नहीं पाई.

‘‘अब कुछ मत सोचो तूलिका जो हुआ उसे भूल जाओ… हम दोनों एक हैं और कभी अलग नहीं होंगे, यह वादा रहा.’’

मैं ने भी हां में अपना सिर हिला दिया. सच में हम दोनों एकदूजे के वास्ते हैं.

Hindi Story : फूलमती – अपनी मां के सपने को जीती एक बेटी

Hindi Story : नाम से ही कल्पना की जा सकती है कि फूलों की तरह नाजुक सुंदर सी कोई लड़की हो सकती है. नीलम ने उसे पहली बार देखा तो मन ही मन सोचती रह गई कि क्या सोच कर मांबाप ने इस का नाम फूलमती रखा है.

फलसब्जियों के बड़े बाजार में बैठती है फूलमती की मां भूरी. तीखे नैननक्श के साथ जबान भी धारदार है. और क्यों ना हो, आखिर मर्दों के वर्चस्व वाले इस बाजार में भूरी को भी तो अपनी रोटी कमानी है.

आंखों के भूरे रंग की वजह से शायद इस औरत का नाम भूरी रखा गया होगा, अकसर नीलम सोचती. आजकल की लड़कियां और औरतें तो इस रंग के लिए आंखों पर लैंस लगाए फिरती हैं, पर भूरी की तेज तीखी आंखें बेमिसाल हैं. 10 ग्राहकों को एक समय पर सब्जी तौल कर देती है. मजाल है कि किसी का कोई हिसाब चूक जाए या सब्जी गलत चली जाए.

पिछले तकरीबन 7-8 सालों से नीलम उसी से सब्जी खरीदती है. एक तो नीलम का स्कूल इस बाजार के बहुत ही पास है और दूसरा कहीं ना कहीं इस सब्जी वाली भूरी के व्यक्तित्व से प्रभावित थी वो.

छात्राओं के इस एकमात्र स्कूल की वरिष्ठ शिक्षिका है नीलम. हिंदी भाषा के साथ कुछ व्यवहार एवं संस्कार के पाठ भी पढ़ा दिया करती है. हाईस्कूल में पढ़ने वाली लड़कियां उम्र की उस दहलीज पर खड़ी होती हैं, जहां सारी दुनिया उन्हें अपनी दुश्मन दिखाई देती है. किसी की रोकटोक किशोर मन बरदाश्त नहीं कर पाता. समुद्री ज्वार की तरह संवेगों का उफान रहता है, जो सबकुछ अपने में समेट लेने को लालायित होता है. बधंन में बंध कर रहना, इन तेज लहरों को नापसंद होता है.

नीलम एक परिपक्व साथी की तरह अपनी छात्राओं से व्यवहार करती थी. उस के कड़क नियमों को भी छात्राएं आत्मसात कर लिया करतीं.

भूरी से जब इस सब्जी बाजार में जानपहचान बनी, तब फूलमती सिर्फ 7 साल की थी. अपनी मां के चारों ओर खेलती रहती, कभी चिपक कर बैठ जाती.

‘‘क्या ये तुम्हारी बेटी है?’’ ना जाने क्यों पूछ लिया था नीलम ने.

‘‘हां, मैडमजी. ऐसे क्यों पूछ रही हो?’’ सब्जी झोले में डालती हुई भूरी मानो चिढ़ सी गई.

‘‘नहीं, बस ऐसे ही,’’ झेंपते हुए नीलम ने बात टाल दी, पर मन स्वीकार ही नहीं कर पा रहा था कि इतनी सुंदर मां की बेटी ऐसी कैसी है? 7 साल में 10-12 की लगने लगी थी, बेतरतीबी से बहती नाक, बालों के जटाजूट और उस की चाल. अजीब सा चलती थी मानो धरती पर अहसान कर रही हो. पूरा भार एक पैर पर फिर आराम से दूसरा उठाती.
कभीकभी नीलम को खुद की सोच पर शर्म आ जाती कि वो एक छोटी सी बच्ची को अपने पैमानों पर क्यों कस रही है?

हर एकदो दिन की आड़ में नीलम सब्जीफल लेने जाती और अब समय के साथसाथ भूरी और फूलमती भी उस से खुलने लगे थे.

‘‘दिनभर साथ में लिए बैठती हो लड़की को, स्कूल क्यों नहीं भेजती?’’ एक दिन नीलम ने भूरी से पूछा था.

‘‘भेजी थी मैडमजी, पर इस का शरीर देखा ना आप ने, बच्चे खूब हंसते हैं और मजाक भी उड़ाते हैं. सब से बड़ी, ऊंची पूरी दिखती है ना, जानवरों का नाम ले कर बुलाते हैं इसे,’’ एक मां की आत्मा का दुख नीलम के हृदय को व्यथित कर गया.

‘‘तो क्या इसे अनपढ़ बना कर रखोगी?’’ नीलम में समाई शिक्षिका जाग गई.

‘‘नहीं मैडम, घर पर पढ़ाने के लिए एक लड़की आती है. कालेज में पढ़ने वाली है शोभा, वही सुबह और रात को इसे पढ़ा देती है,’’ एक लंबी सांस भर कर भूरी बोली, ‘‘पढ़ेगीलिखेगी, तभी तो कुछ कामधंधा संभाल सकेगी ये.’’

‘‘मैं सब लिखती हूं, नाम, मम्मी का नाम, घर का पता, सब सब्जी का नाम…’’ न जाने क्या बताती चली गई थी फूलमती.

‘‘गणित और हिसाबकिताब बिलकुल नहीं आता इस को,’’ भूरी ने बताया.

‘‘ठीक है, मैं तो आती हूं सब्जी लेने, थोड़ाबहुत सिखा दूंगी,’’ कह कर नीलम चली गई थी.

अगले दिन नीलम ने पहाड़े वाली पुस्तिका, स्लेटकलम सब फूलमती को दिया और दो के पहाड़े से गणित की शुरुआत हुई. लिखलिख के, रट कर वो तैयार रहती थी कि मैडमजी को सही बताएगी तो चौकलेट मिलेगी.

समाजसेवा करने के लिए सिर्फ दिल की जरूरत होती है, बाकी तो अपनेआप जुटता चला जाता है. नीलम की मेहनत रंग लाने लगी थी और फूलमती अब छोटेछोटे गुणाभाग, जोड़घटाना अच्छी तरह सीख गई थी.

भूरी ने भी अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी, सब्जियों के अलावा अपनी ओर से कोई भी मौसमी फल, नीलम के बच्चों के लिए जरूर थैली में भर देती थी.

गरीब थी, परंतु खुद्दार भी. चाहती थी कि जो मैडमजी उस की बेटी के लिए इतना समय देती है, उस के बच्चों के लिए वह थोड़ा तो कुछ दे सके. नीलम ने भी कभी मना नहीं किया. नीलम भी किसी को अहसान के बोझ तले दबा हुआ देखना पसंद नहीं करती थी.

पिछले 1-2 साल से फूलमती में अंतर आने लगा था. अब वह अपने बालों को संवारनेसजाने लगी थी, हाथपैरों को साफ रखती थी. और हां, नाक भी नहीं बहती थी. हाथ में रूमाल रख कर वह पढ़ती थी.

भूरी के साथसाथ नीलम ने भी अनुभव किया कि ग्राहकों की संख्या बढ़ गई है और लोग एक चीज लेने के लिए ज्यादा समय खड़े रहते थे.

‘‘अब फूलमती बड़ी हो रही है भूरी, क्या इसे साथ में रोज लाना जरूरी है?’’ नीलम ने एक दिन पूछा था.

‘‘कहां छोडूं मैडमजी इस को, घर पर ताला मार कर आती हूं. मैं इसे कैसे अकेले छोडूं?’’ मां की आखों में चिंता तैर रही थी.

‘‘जिंदगीभर आंचल से बांध कर तो नहीं रख सकती तुम. खदु सीखने दो. तुम भी तो अपनी जिंदगी की लड़ाई लड़ ही रही हो ना,’’ नीलम ने समझाया.

बोलते समय नीलम का दिल अपनी बेटी की ओर दौड़ गया, जो फर्स्ट ईयर इंजीनियरिंग के लिए होस्टल में रह रही थी.

‘‘हां मैडमजी, इस की उम्र से बड़े शरीर और नासमझी के कारण ही मैं परेशान हो जाती हूं. मैं ने भी आगे इसे काम सिखाने की सोची है. मेरी मदद करते हुए इस बाजार को समझने लगेगी,’’ भूरी की आंखों में उत्साह का रंग था.

शरीर से बड़ी फूलमती दिल से बिलकुल बच्ची थी. किसी ग्राहक का थैला छुपा देती, किसी के पैसे देते समय हाथ नचाती. भूरी लगातार उसे दुनियादारी और ऊंचनीच समझाया करती. उसे स्कर्ट ठीक पहनने, कुरती और शर्ट की बटनें ठीक से लगाना भी सिखाना पड़ रहा था. धीरेधीरे फूलमती का मन सब्जियों के इस लेनदेन में रमने लगा.

एक फूल के खिलने के पहले भौरों का गुंजार सुनाई देता है, बस ग्राहकों की नजरों से वही अहसास भूरी को होने लगा था.

13-14 साल की, दोहरे कदकाठी की फूलमती का आकर्षण सब को भूरी के सब्जी के ठीहे पर खींच लाता. कभीकभी ग्राहकों के दोहरे अर्थ वाली बातों से तिलमिला कर भूरी भिड़ जाती थी. कितना कठिन होता है, पुरुषों के वर्चस्व वाली जगहों पर किसी स्त्री का निबाह होना और अपनी अगली पीढ़ी को भी तैयार करना.

‘‘फूलमती कोई दूसरा काम कर लेगी भूरी. जरूरी तो नहीं कि सब्जी ही बेचे,’’ नीलम ने सलाह देते हुए कहा.

‘‘स्कूल से तो पढ़ी नहीं है ये मैडमजी. काम कौन देगा इस को? कुछ अपने बूते लिखनापढ़ना जान गई है बस. किसी के घर के अंदर काम करने से अच्छा है कि खुले बाजार में बैठ कर सब्जियों का धंधा करे और फिर मैं भी जीते तक साथ दे सकती हूं,’’ बेटी के भविष्य को संजो रही थी भूरी.

हर आर्थिक स्थिति के मातापिता अपने बच्चों के सुरक्षित और सुंदर भविष्य की चाहत लिए जिंदगी बिता देते हैं.

खुद नीलम स्कूल और घर दोनों संभालती है, अपने दोनों बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए उस ने पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम किया है.

पिछले कुछ दिनों से तबियत ठीक न होने के कारण नीलम ने स्कूल से छुट्टी ले ली थी. 8-10 दिन बाद स्कूल से लौटते हुए सब्जी मंडी जाने की हिम्मत नहीं हुई उस की, और वह सीधे घर आने लगी.

बस स्टाप के सामने ही भूरी मिल गई और भूरी ने आवाज लगाई, ‘‘मैडमजी.’’

‘‘अरे, तुम यहां,’’ भूरी को देख कर चौंक गई नीलम.

‘‘आप कैसी हो मैडमजी? 8-10 दिनों से कोई खबर नहीं. मैं तो सोच रही थी कि आजकल में स्कूल जा कर पता करूं,’’ एक ही सांस में बोल गई भूरी. उस का स्नेह उस की आंखों की नमी से छलक रहा था. नीलम का हृदय भीग गया. शरद पूर्णिमा के चंद्रमा से झरते अमृत की तरह, संध्या समय तुलसी चौरे पर जलते दीप की तरह और सागर की खिलखिलाती लहरों की तरह पवित्र भाव था उस की भूरी आंखों में. एक औरत का दूसरी के प्रति निश्छल प्रेम, यही शायद एक अटूट बधंन बन गया था.

‘‘तबियत ठीक नहीं थी मेरी, बुखार से थकान भी लग गई, इसलिए आज स्कूल तो आई, पर सब्जियां लेने नहीं आई,’’ नीलम ने बताया.

‘‘तुम इस समय अपने ठीहे पर नहीं हो, आज बंद रखा है क्या?’’ आश्चर्य से नीलम ने पूछा.

‘‘नहीं मैडमजी, आज फूलमती संभाल रही है और मैं बिजली बिल भरने गई थी,’’ भूरी ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘फूलमती को अकेले छोड़ दिया तुम ने,’’ अगला आश्चर्यभरा प्रश्न था नीलम का.

‘‘आओ ना मैडमजी, अपनी शिष्या को देखो कि कैसा काम संभाल रही है. और, नीलम सचमुच भूरी के साथ खींची हुई सब्जी मंडी की ओर चल पड़ी. थोड़ी दूर से दोनों औरतें, एक सधी हुई लड़की को निहारने लगे, जो ग्राहकों से बात करती हुई सब्जी तौल कर, हिसाब से पैसे ले रही थी.

‘‘8-10 दिनों में ऐसा कैसे हो गया भूरी,’’ आश्चर्य पर आश्चर्य हुआ जा रहा था नीलम को.

‘‘जिस दिन आप सब्जी ले कर गईं, उसी शाम को एक आदमी आया. उस ने करीब 500 रुपए की सब्जियां खरीद लीं और बोला, ‘थैली नहीं है. कार में रखवा दो.’ 500 का नोट दे वह दूर खड़ी कार की ओर चला गया.’’

भूरी ने लंबी सांस भर कर अपनी बात फिर शुरू की, ‘‘शाम को ग्राहकों की भीड़ थी, तो मैं ने सब्जियां टोकरी में भर कर फूलमती को उस कार वाले के पीछे भेज दिया.’’

‘‘मैं ने ग्राहक को सब्जी तौल कर दी और सहसा चीखने की आवाज कार की तरफ से आई.’’

भूरी ने अपने स्वर को नियंत्रित करते हुए कहा, ‘‘मैं ठीहा छोड़ कर कार की ओर भागी. आगे देखा तो कार वाला जमीन पर गिरा था और फूलमती उसे लातों से मार रही थी. फूलमती का चेहरा लाल था. वह जोरजोर से बोल रही थी, ‘‘कार में सब्जी रख. बोल कर हाथ लगाया मेरे को, गंदी बात की मेरे से. मार ही दूंगी तेरे को.’’

भूरी की बात सुन कर नीलम की आखें फैल गईं और होंठ भी.

‘‘बस मैडमजी, मेरी तपस्या सफल हो गई. फूलमती को अपना अच्छाबुरा समझ आ गया और उस दिन का उस का वो रूप पूरे बाजार में चर्चा का विषय था.

“कार वाले को मारपीट कर छोड़ दिया सब ने. मैं ही पुलिस में ना जाने की बात रखी. उस दिन से ठीहे पर फूलमती मेरी मदद भी करती है और बीचबीच में अकेले भी काम देखती है.’’

एक मां अपनी बच्ची के सचेतन व्यवहार से सुकून महसूस कर रही थी. नीलम ने भूरी के कंधे पर हाथ रख दिया और दोनों फूलमती की ओर बढ़ चले.

Hindi Kahani : हिम्मती गुलाबो – कैसे उन मनचलों लड़कों को गुलाबो ने सबक सिखाया

Hindi Kahani : गांव में रह कर राजेंद्र खेतीबारी का काम करता था. उस के परिवार में पत्नी शैलजा, बेटा रोहित व बेटी गुलाबो थी. रोहित गांव के ही प्राइमरी स्कूल में चौथी जमात में पढ़ता था, जबकि उस की बहन गुलाबो इंटरमीडिएट स्कूल में 10वीं जमात की छात्रा थी. परिवार का गुजारा ठीक ढंग से हो जाता था, इसलिए राजेंद्र की इच्छा थी कि उस के दोनों बच्चे अच्छी तरह से पढ़लिख जाएं. गुलाबो अपने नाम के मुताबिक सुंदर व चंचल थी. ऐसा लगता था कि वह संगमरमर की तराशी हुई कोई जीतीजागती मूर्ति हो. वह जब भी साइकिल से स्कूल आतीजाती थी, तो गांव के आवारा, मनचले लड़के उसे देख कर फब्तियां कसते और बेहूदा इशारे करते थे.

गुलाबो इन बातों की जरा भी परवाह नहीं करती थी. वह न केवल हसीन थी, बल्कि पढ़ने में भी हमेशा अव्वल रहती थी. वह स्कूल की सभी सांस्कृतिक व खेलकूद प्रतियोगिताओं में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी. वह स्कूल की कबड्डी व जूडोकराटे टीम की भी कप्तान थी. एक दिन जब गुलाबो स्कूल से घर लौट रही थी, तो गांव के जमींदार प्रेमलाल के दबंग बेटे राजू ने जानबूझ कर उस की साइकिल को टक्कर मार दी और उसे नीचे गिरा दिया, फिर उसे खुद ही उठाते हुए बोलने लगा, ‘‘जानेमन, न जाने कब से मैं तुम्हें पकड़ने की…’’ इतना कह कर राजू ने उस के उभारों को छू लिया था.

उस समय राजू की इस हरकत का गुलाबो ने कोई जवाब नहीं दिया था. राजू ने उस की कलाई पकड़ते हुए उस के हाथ में सौ रुपए का एक नोट रखते हुए कहा, ‘‘यह मेरी ओर से हमारे पहले मिलन का उपहार है.’’ गुलाबो घर पहुंच गई. उस ने इस बात का जिक्र किसी से नहीं किया. उसे पता था कि अगर उस ने इस घटना के बारे में किसी को बताया, तो घर में कुहराम मच जाएगा और फिर उस की मां उस की पढ़ाईलिखाई छुड़वा कर उसे घर पर बिठा देंगी. गुलाबो पूरी रात सो नहीं पाई थी. उसे जमींदार के लड़के पर रहरह कर गुस्सा आ रहा था कि कैसे वह उस के शरीर को छू गया था और उसे सौ रुपए का नोट देते हुए बदतमीजी पर उतर आया था, मानो वह कोई देह धंधेवाली हो.

अब गुलाबो ने मन ही मन यह सोच लिया था कि राजू से हर हाल में बदला लेना है. सुबह जब गुलाबो उठी, तो उस की सुर्ख लाल आंखें देख उस के पिता राजेंद्र कह उठे, ‘‘अरे बेटी, क्या तुम रात को सोई नहीं? देखो कैसी लाललाल आंखें हो रही हैं तुम्हारी.’’

‘‘नहीं पिताजी, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो स्कूल के एक टैस्ट की तैयारी कर रही थी, इसलिए रात को देर से सोई थी.’’ स्कूल पहुंचते ही गुलाबो ने खाली समय में अपनी मैडम सरला को चुपके से कल वाली घटना बताई और उन को अपना मकसद बताया कि वह राजू को सबक सिखाना चाहती है कि लड़कियां किसी से कम नहीं हैं.

मैडम सरला ने कहा, ‘‘गुलाबो, तू डर मत. मैं तुम्हारे इस इरादे से बहुत खुश हूं. क्या राजू जैसों ने लड़कियों को अपनी हवस मिटाने का जरीया समझ रखा है कि जब दिल आए, तब अपना दिल बहला लो?’’ अगले दिन रविवार था. गुलाबो ने अपनी मां को बताया था कि वह अपनी मैडम सरला के साथ सुबह शहर जा रही है और शाम तक गांव लौट आएगी. शहर पहुंचते ही मैडम सरला गुलाबो को अपने भाई सौरभ के पास ले गईं. वह पुलिस महकमे में हैडक्लर्क था. उस ने गुलाबो से सारी घटना की जानकारी ली और उस से कहा कि एक दिन वह राजू को खुद बुलाए, फिर उसी दिन उसे फोन कर देना. उस के बाद गांव का कोई भी मनचला किसी लड़की की तरफ आंख भी नहीं उठा पाएगा.

इधर राजू गुलाबो के ही सपनों में खोया रहता था. जब 5-6 दिनों तक उस ने गुलाबो की ओर से उस के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं देखी, तो उस की बांछें खिल गईं. उसे लगा कि चिडि़या शिकारी के जाल में फंस गई है. अगले दिन गुलाबो स्कूल से घर लौट रही थी, तो उस ने राजू को अपना पीछा करते हुए पाया. जब राजू की साइकिल उस के करीब आई, तो वह कह उठी, ‘‘अरे राजू, कैसे हो?’’

राजू यह बात सुन कर खुश हो गया. उस ने कहा, ‘‘गुलाबो, मैं ठीक हूं. हां, तू बता कि तू ने उस दिन के बारे में क्या सोचा?’’

‘‘राजू, अपनों से ऐसी बातें नहीं पूछा करते हैं. तुम परसों 4 बजे पार्क में मुझे मिलना. मैं तुम से अपने मन की बहुत सारी बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘सच?’’ राजू खुश हो कर बोल उठा था, ‘‘गुलाबो, चल अब इसी बात पर तू एक प्यारी सी पप्पी दे दे.’’

‘‘नहीं राजू, आज नहीं, क्योंकि पिताजी आज स्कूल की मीटिंग में गए हैं. वे आते ही होंगे. फिर जहां तुम ने इतना इंतजार किया है, वहां चंद घंटे और सही…’’ गुलाबो बनावटी गुस्सा जताते हुए बोल उठी. घर पहुंच कर उस ने पुलिस वाले को सारी बात बता दी थी. राजू पार्क के इर्दगिर्द घूम रहा था. आखिर गुलाबो ने ही तो उसे यहां बुलाया था. उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. जैसे ही गुलाबो पार्क के पास पहुंची, राजू एक शिकारी की तरह उस पर झपट पड़ा. पर गुलाबो ने भी अपनी चप्पल उतार कर उस मजनू की पिटाई करते हुए कहा, ‘‘तेरे घर में मांबहन नहीं है. सौ रुपए दे कर तू गांव की बहूबेटियों की इज्जत से खेलना चाहता है. तू ने मुझे भी ऐसी ही समझ लिया था.’’

‘‘धोखेबाज, पहले तो तुम खुद ही मुझे बुलाती हो, फिर मुकरती हो,’’ लेकिन तभी राजू की घिग्घी बंध गई. सामने कई फोटो पत्रकार व पुलिस वालों को देख कर वह कांप उठा था.

‘‘हां, तो गुलाबो, तुम अब पूरी बात बताओ कि इस गुंडे ने तुम से कैसे गलत बरताव किया था?’’ डीएसपी राधेश्याम ने गुलाबो से पूछा. लोगों की भीड़ बढ़ गई थी. उन्होंने भी लातघूंसों से राजू की खूब पिटाई की. पुलिस वालों ने राजू को कोर्ट में पेश किया और पुलिस रिमांड ले कर उसे छठी का दूध याद दिला दिया. अगले दिन सभी अखबारों में गुलाबो की हिम्मत के ही चर्चे थे. जिला प्रशासन ने गुलाबो को न केवल 10 हजार रुपए का नकद इनाम दिया था, बल्कि उसे कालेज तक मुफ्त पढ़ाई देने की भी सिफारिश की थी. राजू के पिता की पूरे गांव में थूथू हो गई थी. उस ने अपने बेटे की जमानत करवाने में खूब हाथपैर मारे, पर उसे अभी तक कोई कामयाबी नहीं मिली थी.

गांव के मनचले अब उस को देखते ही रफूचक्कर हो जाते थे. उस का कहना था कि अगर वह इन दरिंदों से डर जाती, तो आज कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहती.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें