Hindi Poem : गुम सुम से क्यों बैठ गए हो, आओ कुछ तो बोलो न
अपने मधुर कंठ से अब तुम, कुछ मिश्री सी घोलो न

मुसकराते मुखड़े से अपने अंधियारा ये दूर करो
आलिंगन में आ कर मेरे, प्यार मुझे भर पूर करो
इन सुंदर कोमल नयनो के, अवगुंठन को खोलो न
अपने मधुर कंठ से अब तुम, कुछ मिश्री सी घोलो न

सुंदर मुखड़े पर गिरने दो, रेशम सी काली जुल्फें
चमक रहीं हैं मीन के जैसे, ये दोनों सुंदर पलकें
तड़प रहा है दिल ये मेरा, मेरे दिल को छूलो न
अपने मधुर कंठ से अब तुम, कुछ मिश्री सी घोलो न

गुमसुम से क्यों बैठ गए हो, आओ कुछ तो बोलो न
अपने मधुर कंठ से अब तुम, कुछ मिश्री सी घोलो

लेखक : संजय कुमार गिरि

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