Illegal Migrants : अमेरिका, कनाडा आदि देशों में अनेक देशों के लोग वैध या अवैध रूप से काम करने के लिए पहुंचते हैं. इन्हें एजेंट ले कर जाते हैं. अवैध रूप से रहने वाले पकड़े भी जाते हैं और वापस भी भेजे जाते हैं मगर देश की जनता ने इस से पहले कभी भी किसी भी सरकार के समय ऐसा दृश्य नहीं देखा कि भारत के लोग हथकड़ी व बेड़ियों में जकड़े किसी दूसरे देश के सैनिक विमान में ठूंस कर वापस किए गए हों.

5 फरवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी सेना के विमान में 104 प्रवासी भारतीयों को जंजीरों में जकड़ कर भारत वापस भेजा. बिलकुल ऐसे जैसे वे कोई खूंखार अपराधी या आतंकी हों. अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको आदि जगहों पर करोड़ों की संख्या में अलग अलग देशों के लाखों नागरिक काम करने और पैसा कमाने की इच्छा से रह रहे हैं. इन में अधिकांश ऐसे हैं जिन के पास वहां रहने के लिए पर्याप्त दस्तावेज नहीं हैं. इन्हें एजेंट्स द्वारा वहां ले जाया जाता है. एजेंट्स लाखों रुपए ले कर अवैध तरीकों से इन देशों में उन को एंट्री दिलवा देते हैं.

भारत में भी ऐसे लोगों की भरमार है जो एजेंट्स द्वारा अच्छी कमाई का लालच दे कर यहां लाए जाते हैं. बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार के लाखों लोग भारत में अवैध तरीके से रह रहे हैं. यहां रहते हुए ये कुछ जरूरी मगर फर्जी दस्तावेज एजेंटों के माध्यम से बनवा लेते हैं. कुछ ऐसी ही स्थिति अमेरिका, कनाडा में रहने वाले प्रवासियों की है. पैसा कमाना और परिवार को ठीक से पालने की ख्वाहिश उन्हें वहां ले जाती है. मगर वे कोई ऐसे खूंखार अपराधी नहीं हैं जिन्हें जेल की सलाखों में ठूंस कर रखा जाए, प्रताड़ित किया जाए, उन्हें खानेपीने को न दिया जाए, बाथरूम तक न जाने दिया जाए या जंजीरों में बांध कर उन के देश वापस भेजा जाए.

भारतीय नागरिकों की इस तरह देश वापसी शर्मनाक तो है ही, उस से भी ज्यादा शर्मनाक है अमेरिकी सैनिक विमान को इस तरह चुपचाप अपनी जमीन पर उतरने देना. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आखिर वह साहस क्यों नहीं दिखा सके जो कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो ने दिखाया?

कोलंबिया के भी अनेक नागरिक अवैध रूप से अमेरिका में रह रहे हैं, इन में से कइयों को गिरफ्तार कर डिटेंशन सेंटर में रखा गया था. जब उन्हें अमेरिकी सैनिक विमान से कोलंबिया भेजने की कवायद अमेरिका ने की तो कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो ने उस विमान को अपनी धरती पर उतरने की इजाजत नहीं दी. उन्होंने अमेरिकी अधिकारियों से बात की और फिर अपने नागरिकों को सम्मान के साथ वापस लाने के लिए अपना यात्री विमान अमेरिका भेजा.

कोलंबिया के नागरिकों के विमान से उतरने की तस्वीरें इंटरनेट पर हैं. उन के चेहरे मास्क से ढके हुए हैं मगर उन के पैरों और कमर में कोई जंजीरें और हाथों में हथकड़ी नहीं लगी है. कोलंबिया के राष्ट्रपति ने अपनी पोस्ट में लिखा – अमेरिका से आने वाले हमारे साथी आजाद हैं. वे सम्मान के साथ उस जमीन पर वापस आ गए हैं जहां उन्हें प्यार किया जाता है. हम उन के लिए आसान क्रेडिट प्लान तैयार करेंगे. प्रवासी अपराध नहीं हैं. वे स्वतंत्र हैं. वे काम करना चाहते हैं और जीवन में तरक्की करना चाहते हैं.

किसी भी देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को यही करना चाहिए जो कोलंबिया के राष्ट्रपति ने किया. लेकिन अमेरिका द्वारा भारतीयों के अपमान और प्रताड़ना पर हमारे प्रधानमंत्री खामोश रहे. यही नहीं अमेरिकी विमान को इस तरह पंजाब के हवाई अड्डे पर उतारा गया ताकि राष्ट्रीय मीडिया उन प्रवासियों तक पहुंच कर उनके साथ हुए व्यवहार को उजागर न कर सके.

गौरतलब है कि जिस दिन दिल्ली में विधानसभा चुनाव था और जिस दिन प्रधानमंत्री मोदी कुंभ स्नान के लिए प्रयागराज के संगम तट पर थे, अमेरिकी विमान को उस दिन पंजाब में उतारा गया. यानी जिस दिन देश भर का मीडिया इन दो महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को कैप्चर करने में जुटा था, उस दिन चुपके से अमेरिकी सैन्य विमान को पंजाब में उतारा गया. देश की जनता और मीडिया की नजरों से बचा कर यात्रियों को विमान से उतार कर एक स्थान पर एकत्रित किया गया और उसके बाद उन्हें फटाफट उन के शहरों को रवाना कर दिया गया.

इस खबर के बाहर आने के बाद गोदी मीडिया सरकार की इस शर्मनाक हरकत को बैलेंस करने के लिए बताता रहा कि कैसे अमेरिका ने सिर्फ भारत नहीं मैक्सिको, कोलंबिया, ग्वाटेमाला के अवैध माइग्रेंट भी भेजे. यानी मोदी सरकार की कमजोरी छिपाने के लिए भारत को मैक्सिको और ग्वाटेमाला की कतार में खड़ा करते वक़्त गोदी मीडिया को रत्ती भर शर्म नहीं आई. भारत ने अमेरिका के सैनिक विमान को भारत की जमीन पर क्यों उतरने दिया, इस सवाल पर अभी तक चुप्पी पसरी हुई है.

उल्लेखनीय है कि अमेरिका में लैटिन अमेरिकी प्रवासियों की संख्या सब से अधिक है. लैटिन अमेरिका से अमेरिका आने वाले ज़्यादातर लोग मैक्सिको और मध्य अमेरिका से आते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका की आबादी में 17.6% लोग हिस्पैनिक या लातीनी हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, 1 फरवरी, 2025 तक लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई क्षेत्र की आबादी 66 करोड़ 67 लाख 45 हजार 551 थी.

यह आबादी दुनिया की कुल आबादी का 8.14% है. अर्जेंटीना, बोलीविया, ब्राजील, चिली, कोलंबिया, इक्वाडोर, पैराग्वे, पेरू, उरुग्वे, और वेनेजुएला जैसे दक्षिण अमेरिकी देश और क्यूबा, डोमिनिकन गणराज्य, और प्यूर्टो रिको जैसे कुछ कैरेबियाई देश लैटिन अमेरिकी देश कहलाते हैं जिन की अधिकांश आबादी अमेरिका में बसती है.

इस के बाद यहां चीन के लोग प्रवासी के तौर पर बसते हैं. खुद अमेरिकी सरकार के मुताबिक उन की संख्या 28,000 के ऊपर है यानी हमारे करीब 18,000 के डेढ़ गुना से ज्यादा, लेकिन ट्रंप की हिम्मत नहीं है कि उन को हाथों में हथकड़ी और पांवों में बेड़ियां डाल कर किसी मुजरिम की तरह अपने सैनिक विमान में भर के चीन भेज दे. वह चीन से डरता है क्योंकि चीन अपने नागरिकों के साथ अपने देश में चाहे जैसा बर्ताव करे मगर देश के बाहर किसी अन्य देश में वह अपने नागरिकों के सम्मान को देश का सम्मान मानता है.

यदि उस का कोई नागरिक किसी देश में किसी गलत कार्य के लिए पकड़ा भी जाता है तो कानूनी सीमा के भीतर ही उस के खिलाफ कार्रवाई होती है. यह चीन का रौब है. कानूनी सीमा के बाहर जा कर यदि किसी चीनी नागरिक के साथ किसी प्रकार का कोई दुर्व्यवहार होता है तो चीन दुर्व्यवहार करने वाले देश के नागरिकों को पकड़ के अपनी जेलों में बंद कर देता है. सम्मानित कूटनीतिक जर्नल फौरेन पौलिसी की पिछली साल की रपट कहती है कि चीनी जेलों में 5,000 से ज्यादा विदेशी कैदी हैं और इन में सब से ज्यादा अमेरिकी हैं.

चीन अमेरिका को अपनी धौंस में रखता है. चीनी राष्ट्रपति शी जिंगपिंग अपने राष्ट्र और अपने नागरिकों के सम्मान को सर्वोपरि रखते हैं. उन्होंने ‘दोस्त ट्रंप’ जैसा उद्घोष भी कभी नहीं किया मगर ‘दोस्त ट्रंप’ का उद्घोष करने वाले अपने प्रधानमंत्री मोदी और उन के नागरिकों को ट्रंप ने जिस तरह अपमानित किया उस के बाद भी मोदी यदि उन्हें दोस्त कहें तो यह दोस्ती नहीं उन का डर है. कूटनीति की ज़रा सी भी समझ रखने वाले बता सकते हैं कि क्या यह बराबरी का व्यवहार है ? दोस्ती का व्यवहार है ? भारतीयों के हाथों में पैरों में और कमर में जंजीरें बांधी गईं, क्या यह शर्मनाक नहीं?

ब्राजील के नागरिकों को हथकड़ियां पहनाई गई तो ब्राजील सरकार ने इस की निंदा की. वहां की मीडिया रिपोर्ट से पता चलता है की ब्राजील की सरकार ने ट्रंप प्रशासन से स्पष्टीकरण मांगा है कि ब्राजील के 88 अवैध प्रवासियों के मूल अधिकारों का अपमान क्यों किया गया? इस तरह मैक्सिको ने एक अमेरिकी सैन्य विमान को लैंड करने से रोक दिया. इस विमान में 80 मैक्सिकन नागरिक थे. भारत ने कुछ इस तरह का किया होता तो हमारी छाती भी गर्व से फूल जाती.

देश की जनता ने इससे पहले कभी भी किसी भी सरकार के समय ऐसा दृश्य नहीं देखा कि भारत के लोग किसी हथकड़ी व बेड़ियों में किसी दूसरे देश के सैनिक विमान में ठूंस कर वापस किए गए क्योंकि वे अवैध तरीके से उस देश में घुसने का प्रयास कर रहे थे या रह रहे थे.

अमृतसर-पंजाब के संत रविदास अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अमेरिका से भेजे यात्रियों तक मीडिया ना पहुंच पाए इस के पूरे इंतजाम थे क्योंकि सरकार भी जानती है कि यह मामला किसी भी देश के लिए शर्मनाक है. यही वजह है कि अमेरिकी विमान के अंदर की तस्वीरें, प्रवासी भारतीयों की तस्वीरें, उन के बयान आदि मीडिया के पास नहीं हैं. सिर्फ इतनी जानकारी है कि विमान में 79 पुरुष, 25 महिलाएं और 12 नाबालिग बच्चे थे. ये तमाम लोग पंजाब के अलावा गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से थे. विमान में 11क्रू मेंबर और 45 अमेरिकी अधिकारी थे.

इन यात्रियों में 33 लोग गुजरात से थे, वही गुजरात जिसे मोदी सरकार विकास का मौडल बताते नहीं थकती है. अगर गुजरात में सचमुच विकास की लहर चल रही है तो गुजरात से लोग अवैध रास्तों से अमेरिका में काम करने या बसने के लिए क्यों जा रहे हैं? अब जब वे बेड़ियों व हथकड़ियों में जकड़ कर भेजे गए हैं तो उन्हें अपने ही देश में छुपा कर रखा जा रहा है. ताकि कोई इन्हें देख न ले. गुजरात की सच्चाई बाहर न आ जाए.

बेरोजगारी की समस्या से सिर्फ गुजरात नहीं जूझ रहा है. यह समस्या पूरे देश में कैंसर की तरह फैली हुई है, मगर प्रधानमंत्री मोदी हमारे विश्वगुरु होने का ढोल पीटते नहीं थकते हैं. अगर मोदी सरकार ने रिकौर्ड स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा कर दिए हैं और भारत सब से तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यस्था बन गई है तो इस तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को छोड़ने के लिए करोड़ों लोग क्यों मजबूर हैं? क्या भारत में उन के लिए जौब नहीं है?

अमेरिका में सात लाख 25 हज़ार अवैध भारतीय प्रवासी हैं. हाल के वर्षों में कनाडा की सीमा से भी बिना दस्तावेज़ वाले भारतीय कामगारों ने अमेरिका में दाखिल होने की कोशिश की. पिछले साल 30 सितंबर तक अमेरिकी बौर्डर पेट्रोल पुलिस ने कनाडा बौर्डर से 14 हज़ार से ज़्यादा भारतीयों को गिरफ़्तार किया, जो अवैध रूप से अमेरिका में घुसने की कोशिश कर रहे थे. अमेरिका में भारत के जितने अवैध प्रवासी हैं, उनमें ज्यादातर पंजाब और गुजरात के हैं.

प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, भारत से बड़े पैमाने में लोग अवैध तरीके से अमेरिका पहुंचते हैं. भारतीय कानून प्रवर्तन अधिकारियों के आंकड़ों का हवाला देते हुए खुद विदेश मंत्री जयशंकर ने सदन में कहा कि 2009 में 734, 2010 में 799, 2011 में 597, 2012 में 530 और 2013 में 550 निर्वासित किए गए. 2014 में जब एनडीए सरकार सत्ता में आई तो 591 निर्वासित किए गए, इस के बाद 2015 में 708 निर्वासित किए गए. 2016 में कुल 1,303 निर्वासित किए गए, 2017 में 1,024, 2018 में 1,180 लोग वापस भेजे गए. सब से अधिक निर्वासन 2019 में देखा गया जब 2,042 अवैध भारतीय अप्रवासियों को देश वापस भेजा गया. 2020 में निर्वासन संख्या 1,889 थी, 2021 में 805, 2022 में 862, 2023 में 670 और पिछले साल 1,368 और इस साल अब तक 104 भारतीयों को वापस भारत भेजा गया है. मगर यह पहली बार है कि भारतीय नागरिक बेड़ियों में जकड़ कर भेजे गए. दोस्त ट्रंप की ऐसी दोस्ती मोदी को मुबारक.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...