Real Love Story : कम्युनिस्ट क्रान्ति के बाद मात्र 20 साल की उम्र में व्लादिमीर नाबोकोव को रूस छोड़ कर जाना पड़ा. विस्थापन की यादें कड़वी जरूर थीं मगर उन्होंने अपनी लेखनी में इसे जाहिर करना बेहतर समझा और इस में उन की पत्नी वेरा ने उन की सहायता की.
साल 1917. रूस में 2 क्रांतियां हुईं, फरवरी क्रांति और अक्तूबर क्रांति. फरवरी क्रांति के बाद जार निकोलस द्वितीय का शासन यानी राजशाही खत्म हुआ. वह राजशाही जो ‘खूनी रविवार’ जैसी अनेकों घटनाओं के खून से रंगी हुई थी. राजशाही खत्म हुई तो मेंशेविकों (बुर्जुआ) की अंतरिम सरकार सत्ता में आई. मगर यह ज्यादा समय टिक नहीं पाई और अक्टूबर क्रांति में बोल्शेविकों (कम्युनिस्टों) ने सत्ता पलट दी. व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व में एक कम्युनिस्ट सरकार बनी. इस के बाद रूस में गृहयुद्ध छिड़ गया, जिसे वैचारिक युद्ध भी कहा गया.
इस दौरान रूस की अर्थव्यवस्था चरमरा गई, खाद्य संकट गहरा गया और आम लोगों का जीवन अस्तव्यस्त हो गया. कम्युनिस्ट क्रांति के बाद कुलीनों व अमीरों को निशाना बनाया गया, क्योंकि बोल्शेविकों ने उन्हें ‘शोषक वर्ग’ के रूप में देखा.
इस की गाज व्लादिमीर नाबोकोव के परिवार पर भी गिरी जो इसी वर्ग से आते थे. उन के परिवार की संपत्ति जब्त कर ली गई और 1919 में उन के पास अपनी सुरक्षा के लिए भागने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा. तब वे महज 20 साल के थे.
नाबोकोव और उन के परिवार ने पहले क्रीमिया से एक जहाज़ के जरिए रूस छोड़ा. इस्तांबुल की यात्रा की फिर वे यूरोप में बस गए. उन्होंने जरमनी, फ्रांस और अंत में अमेरिका में शरण ली. वही अमेरिका जो आज ट्रम्प युग में शरणार्थी भगाओ मोर्चे में जुटा है.
नाबोकोव ने क्रांति और बोल्शेविकों के प्रति गहरी नाराजगी जताई. वे कम्युनिस्ट विचारधारा के विरोधी बने और इसे फ्रीडम औफ स्पीच और क्रिएटिविटी के लिए खतरनाक माना. जिस का असर आगे चल कर जीवन पर पड़ा और वे चर्चित लेखक बने. उन के लेखन में क्रांति और उस के परिणामों के प्रति एक तीखी आलोचना दिखी. उदाहरण के लिए, उन के उपन्यास ‘द गिफ्ट’ (1938) में रूसी क्रांति और उस के बाद के समाज की जटिलताओं को दर्शाया गया.
अपने विस्थापन की कड़वी यादें भले उन्होंने जाहिर नहीं की मगर उन के लेखनों में यह छाप दिखाई देने लगी. उन के लिखे उपन्यास ‘द गिफ्ट’ और ‘स्पीक, मेमोरी’ (उन की आत्मकथा) में उन्होंने रूस छोड़ने के दर्द और निर्वासन के अनुभव को व्यक्त किया.
व्लादिमीर नाबोकोव की सब से प्रसिद्ध नोवल ‘लोलिता’ (1955) है, जो एक विवादास्पद उपन्यास है और साहित्यिक दुनिया में उन की पहचान बनाने में महत्वपूर्ण रही. मगर वे इस प्रसिद्धि तक शायद उस स्तर तक न पहुंच पाते यदि उन का साथ यहूदी परिवार से आने वाली वेरा स्लोनिम न देतीं.
वेरा स्लोनिम, व्लादिमीर नाबोकोव की पत्नी, उन के जीवन और लेखन में एक अहम भूमिका निभाती रहीं. उन की मुलाकात 1923 में बर्लिन में हुई थी. दोनों ने 1925 में शादी कर ली. वेरा स्लोनिम नाबोकोव की साहित्यिक सहयोगी, संपादक, अनुवादक और उन की सब से बड़ी प्रशंसक थीं. वे उन के लेखन को कम्पोज करती थीं, उन के व्याख्यानों को संगठित करती थीं और यहां तक कि उन के साथ यात्राएं भी करती थीं.
नाबोकोव ने अपनी कई किताबों को वेरा को समर्पित किया और उन के बीच का रिश्ता गहरा प्रेम और साझेदारी पर आधारित था. वेरा नाबोकोव के जीवन में इतनी महत्वपूर्ण थीं कि उन के बिना उन की साहित्यिक उपलब्धियों की कल्पना करना मुश्किल है. नाबोकोव का वेरा के लिए प्यार और समर्पण उन के द्वारा वेरा को लिखे पत्रों से ही जाहिर हो जाता है, जिसे आज की रील्स में डूबे युवाओं को जरूर पढ़ना चाहिए.
(बौक्स)
मेरी प्यारी, मेरी जान, मेरी जिंदगी, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं. तुम मेरे बिना कैसे रह सकती हो? मैं तुम्हारे साथ इतना अभ्यस्त हो चुका हूं कि अब खुद को खोया हुआ और खाली महसूस करता हूं. तुम मेरी जिंदगी को कुछ हल्का, अद्भुत, इंद्रधनुषी बना देती हो. तुम हर चीज पर खुशी की एक चमक डाल देती हो, कभी तुम धुंधले गुलाबी, मुलायम होती हो, कभी गहरी, पंखों वाली और मैं नहीं जानता कि मुझे तुम्हारी आंखें कब ज्यादा पसंद हैं जब वे खुली होती हैं या बंद. अभी ग्यारह बजे हैं मैं तुम्हें इस दूरी में देखने की कोशिश कर रहा हूं.
आज मैं तुम्हारे लिए अपनी तड़प के अलावा कुछ नहीं लिख सकता. मैं उदास और डरा हुआ हूं. मूर्खतापूर्ण विचार मन में घूम रहे हैं कि तुम मेट्रो से कूदते समय ठो कर खा जाओगी, या कोई तुम से सड़क पर टकरा जाएगा. मैं नहीं जानता कि इस हफ्ते को कैसे काटूंगा.
मेरी कोमलता, मेरी खुशी, मैं तुम्हारे लिए कौन से शब्द लिखूं? कितना अजीब है कि भले ही मेरा जीवन का काम कागज पर कलम चलाना है, मैं यह नहीं जानता कि तुम्हें कैसे बताऊं कि मैं तुम से कितना प्यार करता हूं, तुम्हें कितना चाहता हूं. मैं तुम्हारे साथ, तुम में तैर रहा हूं, जल रहा हूं और पिघल रहा हूं.
जब हम पिछली बार कब्रिस्तान में थे, मैं ने इसे इतनी गहराई से और स्पष्ट रूप से महसूस किया. तुम सब जानती हो, तुम जानती हो कि मृत्यु के बाद क्या होगा. तुम इसे बिल्कुल सरलता और शांति से जानती हो जैसे एक चिड़िया जानती है कि डाली से फड़फड़ाते हुए वह उड़ेगी और नीचे नहीं गिरेगी और इसीलिए मैं तुम्हारे साथ इतना खुश हूं, मेरी प्यारी. और यह भी तुम और मैं इतने खास हैं जो चमत्कार हम जानते हैं, कोई नहीं जानता और कोई भी हमारी तरह प्यार नहीं करता.
तुम अभी क्या कर रही हो? किसी कारण से मुझे लगता है कि तुम अध्ययन कक्ष में हो. तुम उठी हो, दरवाजे तक गई हो, तुम दरवाजे के पंखों को एक साथ खींच रही हो और एक पल के लिए रुकी हो—यह देखने के लिए कि क्या वे फिर से अलग हो जाएंगे. मैं थक गया. मैं बहुत अब आराम चाहता हूं. कल मैं तुम्हें रोजमर्रा की चीजों के बारे में लिखूंगा. मेरा प्यार.