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यूपी में प्रिंयका गांधी सवर्ण मतदाताओं पर डालेंगी असर

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव सभी दलों के लिये बेहद अहम है. भारतीय जनता पार्टी के सवर्ण मतदाता सबसे अधिक असमंजस में है. ब्राम्हण वर्ग ने योगी सरकार पर खुलेआम ठाकुरवाद का आरोप लगाया है. वह भाजपा से नाराज है. बनिया वर्ग भाजपा की केन्द्र और प्रदेश सरकार की आर्थिक नीतियों ने नाखुश है. भाजपा भी इस बात का डर लग रहा है. यही वजह है कि वह पिछडा वर्ग पर अधिक भरोसा करती दिख रही है. भाजपा के सवर्ण मतदाता बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का वोट नहीं दे सकती है. ऐसे में कांग्रेस उनके लिये विकल्प की तरह है. विधानसभा चुनाव में सवर्ण मतदाता भाजपा को आइना दिखा सकते है.

कांग्रेस नेता और केन्द्रीय मंत्री रहे श्रीप्रकाश जायसवाल कहते है ‘कांग्रेस के संगठन को कमजोर बता कर उसकी ताकत को कमतर करके आंका जा रहा है. कांग्रेस हमेशा से ऐसे ही काम करती रही है. इमरजेंसी के बाद उसको खत्म मान लिया गया था. इसके बाद पार्टी सत्ता में आई. 2004 के चुनाव में कांग्रेस को खत्म मान लिया गया था. पार्टी ने 10 साल सरकार चलाई. कांग्रेस जिस तरह से जातिधर्म से उपर उठकर काम करती है. इससे लोगों के मन मंे उसके प्रति आस्था है. भाजपा के राज में समाज का ढांचा जिस तरह से टूटा है और आपस में दूरियां बढी है. इससे कांग्रेस की तरफ उम्मीद की तरह लोग देख रहे है.’

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कांग्रेस की वापसी:
यह सच है कि कांग्रेस के लिये उत्तर प्रदेश में सत्ता की वापसी बेहद कठिन काम है. 1988 में नारायण दत्त तिवारी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री थे. इसके बाद मंडल कमीशन और राम मंदिर आन्दोलन ने जिस तरह से जाति और धर्म के सहारे राजनीति को बढावा दिया उससे कांग्रेस के लिये सत्ता में वापसी करना कठिन हो गया. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता से बाहर हुये करीब 30 साल बीत चुके है. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल 7 विधानसभा क्षेत्रों में जीत मिली थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी की रायबरेली सीट ही कांग्रेस जीत पाई. अमेठी से राहुल गांधी तक चुनाव हार गये. ऐसे में प्रियंका गांधी को जीरो से कांग्रेस को आगे बढाना है.

2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बिना किसी दल से तालमेल के चुनाव लडने का मन बनाया है. कांग्रेस ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है. कांग्रेस ने 100 सीटों पर अपने प्रत्याशी तय कर लिये है. कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी की अगुवाई में कांग्रेस उत्तर प्रदेश के पूर्व, मध्य, पश्चिम और बुदंेलखंड इलाकों से 4 यात्राएं निकाली जायेगी. इसका नाम ’कांग्रेस प्रतिज्ञा यात्रा’ दिया गया है. 12 हजार किलोमीटर की इस यात्रा के दौरान 48 जिलों को कवर करना है. उत्तर प्रदेश विधानसभा में 403 सीटें है. कांग्रेस यह मान कर चल रही है कि वह 100 सीटों को जीतेगी. वह उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने का हिस्सा बनना चाहती है. प्रियंका गांधी को जिस तरह से महिलाओं का समर्थन मिल रहा है उससे वह भाजपा के लिये खतरा बन सकती है.

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प्रियंका का असर:
औल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस लखनऊ चैप्टर 2 की अध्यक्ष और आर्किटैक्ट प्रज्ञा सिंह कहती है ‘प्रियंका गांधी ने जिस तरह से जनता के हर मुददे पर योगी सरकार के खिलाफ सडक पर उतर कर लडाई लडी है. किसी और दल के नेता ने यह साहस नहीं दिखाया. नागरिकता बिल के विरोध की बात हो या किसानों की लडाई. मंहगाई और बेरोजगारी के खिलाफ वह सडको पर उतरी है. इससे प्रदेश की जनता में एक उम्मीद की किरण जगी है. इसके अलावा कांग्रेस संगठन को भी सही दिशा में ले जाने का काम किया है. 2022 के चुनाव में इसका असर दिखेगा. कांग्रेस के वोटर वापस पार्टी की तरफ आ रहे है. जिससे कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनते दिख रहा है. महिलाओं में प्रियंका गांधी का असर बहुत है.’

कांग्रेस के आधार वोट ब्राम्हण, दलित और मुसलिम रहे है. भाजपा के बहुत सारे प्रयासों के बाद भी ब्राहमण उसके प्रति उदार नहीं दिख रहा है. मुसलिम रणनीतिक वोट डालता है. ऐसे में जिन सीटों पर कांग्रेस के नेता भाजपा को हराते दिखेगे वह वहां वोट देगा. दलित वोटबैंक पर मायावती का प्रभाव पहले जैसा नहीं है. ऐसे में वह भी कांग्रेस के पक्ष में खडा हो सकता है. कांग्रेस के आधारभूत वोट जैसे ही उसकी तरफ बढेगे कांग्रेस चुनाव जीतने की हालत में खडी हो जायेगी. 2022 के चुनाव में अगर कांग्रेस उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और गुजरात में बेहतर प्रदर्शन कर ले गई तो 2024 के लोकसभा चुनाव में उसकी दावेदारी मजबूत हो जायेगी.

सीएम उम्मीदवार से बनेगी बात:
राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के सामने 2017 में यह प्रस्ताव रखा था कि वह उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में प्रियंका गांधी को अपना चेहरा बनाए तो उत्तर प्रदेष के लोग पार्टी से जुड सकेगे. कांग्रेस उस समय इसके लिये तैयार नहीं हुई. लिहाजा यह बात आगे नहीं बढी. 2022 के विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस नेता और कैबिनेट मंत्री रहे सलमान खुर्शीद ने कहा कि 2022 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश में ‘सीएम फेस’ बना सकती है. सलमान खुर्शीद की बात पर कांग्रेस की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है. लेकिन जनता के बीच उनकी बात घर कर गई है.

कांग्रेस नेता और सोशल एक्टीविस्ट सदफ जफर कहती है ‘जनता को नेता के रूप में जिस जुझारू पर्सनाल्टी की तलाश होती है प्रियंका गांधी उसका उदाहरण है. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने हर नेता तो पुलिस का डर दिखाकर अपने खिलाफ सडक पर उतरने और मुंह खोलने से रोकने का काम किया है. लेकिन प्रियंका गांधी ने बिना डरे योगी सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने का काम किया है. नागरिका बिल के विरोध में सडक पर उतरी. पुलिस ने कई बार उनके साथ अभद्र व्यवहार भी किया. लेकिन वह डरी नहीं. कांग्रेसियों में उनकी वजह से उत्साह है. वह बेहतर नेता के रूप में जनता के बीच होती है.’

यह सच बात है कि प्रियंका गांधी के मुख्यमंत्री का चेहरा बनने के बाद यूपी की लडाई में जोरदार मोड आ सकता है. सपा-बसपा और भाजपा को जनता 30 साल से बारीबारी देख चुकी है. अब उसे कांग्रेस से उम्मीद दिख रही है. प्रियंका के ‘मुख्यमंत्री का चेहरा’ बनने से जनता में कांग्रेस के प्रति विश्वास बढेगा. जनता को यह लगेगा कि अब कांग्रेस यूपी को लेकर गंभीर है. भाजपा का यह आरोप निराधार है कि प्रियंका गांधी के लिये उत्तर प्रदेश केवल घूमने की जगह है. प्रिंयका यूपी की मुख्यमंत्री बन सकती है. इसका मनोवैज्ञानिक लाभ भी कांग्रेस को मिलेगा.

बिग बॉस 15 से आया शिवांगी जोशी और मोहसिन खान को ऑफर, दे रहे हैं मुंहमांगी रकम

बिग बॉस ओटीटी के खत्म होने में अब बहुत कम समय बचा हुआ है, ओटीटी को अलविदा कहने के बाद सलमान खान जल्द ही बिग बॉस सीजन 15 की वापसी करने वाले हैं. बिग बॉस सीजन 15 की तैयारी अभी से शुरू हो गई है.

ऐसे में कई सितारों का नाम इस सीजन के लिए जुड़ गया है. इस शो के लिए कई सारे बड़े स्टार्स को अप्रोच किया जा रहा है. कई सारे स्टार्स इस शो में आने के लिए तैयार भी हो गए हैं तो वहीं कुछ लोग अभी भी स्पेंस में हैं. इसी बीच फेम सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है के स्टार मोहसिन खान और शिवांगी जोशी को भी इस शो के लिए अप्रोच किया जा रहा है.

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खबरों की माने तो बिग बॉस 15 के मेकर्स ने शिवांगी जोशी और मोहसिन खान को इस शो में आने के लिए न्योता भेजा है. इतना ही नहीं शो का हिस्सा बनाने के लिए मेकर्स इन दोनों पर पानी कि तरह पैसा बहाने को भी तैयार हैं. खबर है कि मेकर्स इन दोनों को मोटी रकम देने के लिए मेकर्स तैयार हो चुके हैं.

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वहीं एक पोर्टल में खुलासा हुआ है कि मेकर्स इन दोनों को 4 करोड़ रूपये की मोटी रकम देने के लिए तैयार हो गए हैं. हालांकि मोहसिन खान और शिवांगी जोशी ने इस शो में आने के लिए अभी तक हां नहीं किया है. मोहसिन खान और शिवांगी जोशी अभी भी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है कि शूटिंग में व्यस्त हैं.

अब फैंस सवाल ये खड़े कर रहे हैं कि क्या मोहसिन खान और शिवांगी जोशी बिग बॉस के घर का सदस्य बन पाएंगे या नहीं.  अब मेकर्स शिवांगी जोशी और मोहसिन खान को राजी करने के लिए हर हद तक जाने के लिए राजी हैं.

Shehnazz Gill के भाई ने अपने हाथ पर बनवाया सिद्धार्थ शुक्ला के फेस का टैटू, फैंस ने लुटाया प्यार

बिग बॉस 15 के विनर सिद्धार्थ शुक्ला इस दुनिया को 15 दिन पहले ही अलविदा कह गए हैं. 15 दिन पहले ही दिल का दौरा पड़ने से सिद्धार्थ शुक्ला का देहांत हो गया है. सिद्धार्थ के जाने के बाद फैंस अभी भी शॉक में हैं. फैंस को यकिन नहीं हो रहा है कि सिद्धार्थ अब इस दुनिया में नहीं रहें.

वहीं शहनाज गिल के भाई शहबाज भी सिद्धार्थ शुक्ला को लगातार याद कर रहे हैं, हाल ही में शहबाज ने सिद्धार्थ की याद में अपने हाथों पर टैटू बनवाया है, जिसमें वह सिद्धार्थ शुक्ला के फेस का टैटू बनवाएं हैं.

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शहबाज ने इस तस्वीर को अपने सोशल मीडिया पर शेयर किया है, इस तस्वीर में शहबाज के हाथ पर सिद्धार्थ शुक्ला का फेस साफ नजर आ रहा है. इस टैटू की फोटो को शेयर करते हुए शहबाज ने लिखा है कि तुम्हारी याद तुम्हारी तरह ही जिंदा है, तुम हमारे बीच में हमेशा जिंदा रहोगे.

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शहबाज का यह टैटू देखकर शिडनाज के फैंस काफी ज्यादा इमोशनल हो गए, फैंस लगातार शहबाज की सोशल मीडिया पर तारीफ कर रहे हैं. एक फैंस ने सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर करते हुए लिखा है कि हम सब सिद्धार्थ शुक्ला को काफी ज्यादा मिस कर रहे हैं.

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तो वहीं दूसरे ने लिखा कि शहबाज तुम बेस्ट हो तुम्हारा टैटू देखकर हमारा दिल भर आया, वहीं कुछ लोग ये भी पूछ रहे हैं कि शहनाज गिल की हालत कैसी है. कुछ वक्त पहले ही खबर आई थी कि शहनाज गिल ने खाना पीना छोड़ दिया है.

शिल्प को सम्मान शिल्पियों का स्वावलंबन: सीएम योगी

लखनऊ. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अगले 03 महीने में प्रदेश के 75 हजार कारीगरों और शिल्पियों को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य तय किया है. इन तीन माह में 75 हजार शिल्पियों को प्रशिक्षित कर इन्हें विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना से जोड़ते हुए स्वावलम्बन से जोड़ा जाएगा आजादी के अमृत महोत्सव पर शिल्पियों और करीगरों के लिए यह सबसे बड़ा तोहफा होगा.

मुख्यमंत्री ने यह बातें विश्वकर्मा दिवस के मौके पर शुक्रवार को ‘विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना’ के तहत 21,000 लाभार्थियों को टूलकिट और 11 हजार लाभार्थियों को ‘प्रधानमंत्री मुद्रा योजनांतर्गत ऋण वितरण करते हुए कहीं. लोकभवन में आयोजित मुख्य समारोह के साथ-साथ जिला मुख्यालयों पर भी कार्यक्रम आयोजित हुए.

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि 26 दिसम्बर 2018 में हमने प्रदेश में विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना का शुभारंभ किया, तब से परंपरागत हस्तशिल्पियों, कारीगरों को सम्मान देने, उनको स्वावलंबी बनाने और प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने का यह सिलसिला चलता आ रहा है. हस्तशिल्पियों ने योजनाओं का लाभ लेकर एक जनपद एक उत्पाद और विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना ने रोजगार उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि कोरोना काल में हर व्यक्ति चिंता में था कि उत्तर प्रदेश का क्या होगा. लेकिन हमारे पारंपरिक करीगरों, हस्तशिल्पियों ने मिलकर ऐसा तंत्र विकसित किया जिससे हर प्रवासी को शासन की योजनाओं से जुड़ने और प्रधानमंत्री की आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा करने का काम किया. आज बेरोजगारी की दर चार पांच फीसदी है. यह प्रसन्नता प्रदान करने वाला है.  हमने दिसम्बर 2018 से 68412 से अधिक शिल्पियों को 100 करोड़ के उन्नत टूल किट वितरित किये हैं. सीएम ने कहा कि बहनें और माताएं यदि ठान लें तो उत्तर प्रदेश को रेडीमेड गारमेंट का हब बनाने में देरी नहीं लगेगी.

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री कहते हैं कि हमें अपने परंपरागत उद्यम और कारीगरी को एक मंच देना ही होगा. उनका प्रशिक्षित कराएं. आज प्रदेश के 21,000 से अधिक कारीगरों व हस्तशिल्पियों को टूलकिट वितरित किए जा रहे हैं. प्रदेश सरकार अपने परंपरागत कारीगरों व उद्यमियों को स्वावलंबी बना रही है, जिससे वह आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने में अपना योगदान दे सकें.

मुख्यमंत्री ने कहा कि गांव के मोची, नाई, बढ़ई को मंच मिलना चाहिए. उन्हें सबल बनाना है. उन्हें उच्च प्रशिक्षण देकर तकनीकी से जोड़ना है और सर्टिफिकेट देकर साथ ही ट्रेनिंग के दौरान 250 रुपये प्रतिदिन प्रशिक्षण भत्ता देते हुए  मजबूत बनाना है. उन्होंने बताया कि आज तक 1 लाख हस्तशिल्पियों को इस योजना से जोड़ा गया है, प्रशिक्षित करके टूलकिट उपलब्ध करवाए हैं. उन्होंने अधिकारियों से कहा कि अगले 03 महीनों में 75 हजार करीगरों और हस्तशिल्पियों को टूल किट और ऋण उपलब्ध कराने की कार्ययोजना बनाएं.

उन्होंने विभाग के मंत्रियों से कहा कि वो गांव-गांव में करीगरों, हस्तशिल्पियों के यहां पहुंचकर उनको प्रोत्साहित करने का भी काम करें. उन्होंने कहा कि हमें कारीगरों को सम्मान देना होगा वो ही हमारी धरोहर हैं. उन्होंने कहा कि आज इस कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए विभाग को और आपको धन्यवाद बधाई देता हूं. प्रधानमंत्री जी के जन्मदिन के दिन से और सेवा के उनके 20 वर्ष के उपलक्ष्य में अगले 20 दिनों तक अलग अलग कार्यक्रम होंगे.

मुख्यमंत्री ने पीएम मोदी को दी जन्मदिन की बधाई

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि आज दो महत्वपूर्ण दिन है एक तो विश्वकर्मा जी की जयंती और दूसरा दुनिया के सबसे लोकप्रिय राजनेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का जन्मदिन. प्रधानमंत्री जी के इस वर्ष 6 अक्टूबर को सेवा के 20 वर्ष के रूप में पूरे हो रहे हैं. मैं प्रदेश की जनता की तरफ से देश में जो उनकी ओर से की गई सेवाएं हैं उनके लिए हृदय से अभिनन्दन करता हूं.

मोदी जी के प्रयास से जो खुशहाली आपके जीवन में प्रारंभ हुई है, देश-समाज को नई दिशा मिली है. उसको विकास के उत्सव में रूप में प्रदेश में 7 अक्टूबर तक मनाया जाएगा. हुनरमंदों, कारीगरों और हस्तशिल्पियों को सम्मान देने वाले कार्यक्रम से इसकी शुरुआत की जा रही है.

आयोध्या में इस बार हम साढ़े 7 लाख दिए जलाने जा रहे : सीएम योगी

मुख्यमंत्री ने कहा कि 2017 में अयोध्या में दीपोत्सव के लिए 51 हजार दीप जुटाने के लिए हमें पूरे प्रदेश की खाक छाननी पड़ी थी. इस वर्ष हम साढ़े सात लाख दिए जलाने जा रहे हैं. हमने तकनीक से करीगरों को जोड़ा तभी यह संभव हो पाया है. हमारे कारीगर लक्ष्मी गणेश की मूर्ति बनाना छोड़ दिया था. चीन जैसे नास्तिक देश मूर्तियां बनाने लगा. पिछली सरकारों ने चिंता नहीं की. आज हमारे कारीगर मूर्तियां बना रहे हैं. चीन से अच्छी, सुंदर, सस्ती और टिकाऊ. उन्हीं कारीगरों के चेहरों पर आज खुशहाली आ गयी है.

मुख्यमंत्री योगी के आर्थिक मॉडल से प्रदेश बन रहा आत्मनिर्भर: सिद्धार्थनाथ सिंह

एमएसएमई विभाग के मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आर्थिक मॉडल ने प्रदेश को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने का काम किया है. बहुत कम लोगों को इसकी समझ है. पंडित दीनदयाल जी कह गये कि आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्ति तक लाभ पहुंचना चाहिये. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की प्रेरणा से यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उसको प्रदेश में पूरा करने का काम किया है.

एक जनपद एक उत्पाद योजना ने उन गरीबों को जिनके पास हुनर है उनको आगे ले जाने का काम किया है. ओडीओपी और विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना ने प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने का काम किया है. उन्होंने कहा कि कोरोना के होते हुए भी प्रदेश में 68412 लोगों ने विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना से प्रशिक्षण लिया है.

इस अवसर पर अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए मुख्यमंत्री की अभिनव सोच को आगे बढ़ाने का और 17 दिसम्बर को एक बड़ा आयोजन कर 75 हजार लोगों को विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना से प्रशिक्षण दिलाकर टूलकिट वितरित किये जाने का आश्वासन दिया.

Breast cancer: अब पुरुषों में भी स्तन कैंसर की समस्या

वह एक हृष्ट-पुष्ट किशोर थे, जिनका स्तन बिल्कुल सामान्य था. हर कोई उनसे यही कहता था कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनकी देह भी दुरुस्त होती जाएगी. लिहाजा उन्होंने अपने शरीर पर ध्यान नहीं दिया. यही अनदेखी 45 वर्षीय संजय गोयल के लिए भारी पड़ी. अपने मांसल देह में उभरे उन लक्षणों को वह नहीं पकड़ पाए, जो बाद में एक पूर्ण विकसित स्तन कैंसर के कारण बने. ‘इसके लक्षण मुझे हमेशा से दिखे. 24 वर्ष की उम्र में मैंने महसूस किया कि मेरे दाहिने स्तन से कोई द्रव निकल रहा है, जबकि 30 की उम्र आते-आते उसमें गांठ दिखने लगी थी. मगर मैं तब डॉक्टर के पास गया, जब मेरे स्तन से खून निकलने लगा.’ यह कहना है संजय का, जो पेशे से दूरसंचार विभाग में इंजीनियर हैं.

दुर्भाग्य से संजय के डॉक्टर भी लक्षणों को नहीं पढ़ पाए और उन्हें एंटीबायोटिक्स खाने की सलाह दी. संजय बताते हैं कि ‘एंटीबायोटिक्स खाने के बाद तमाम लक्षण खत्म से हो गए, मगर करीब एक साल के बाद फिर से वे उभर आए. डॉक्टर ने मुझे दोबारा वही दवाई खाने को कहा. मगर जब मेरी छाती में दर्द बढ़ने लगा, तो मैंने दूसरे डॉक्टर के पास जाने का फैसला किया.’ संजय ने एक पारिवारिक मित्र की सलाह ली, जो पेशे से सजर्न हैं. संजय बताते हैं, ‘जब मैंने उन्हें बताया, तो उन्होंने मेरे स्तन को देखकर चिंता जाहिर की. मुझे एक खास टेस्ट- फाइन नीडल ऐस्परेशन साइटोलॉजी (एफएनएसी) कराने को कहा. इस टेस्ट की रिपोर्ट पॉजिटिव आई, जो कैंसर के होने का सूचक था. यानी अब मुझे ऑपरेशन कराना था.’

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बाइऑप्सी से पता चला कि संजय को स्टेज-दो का कैंसर है. इससे चिंता बढ़नी स्वाभाविक थी. वह बताते हैं, ‘मैं तो यही समझता था कि कैंसर का मतलब है, मौत. इसलिए जब मैंने अपनी रिपोर्ट देखी, तो कुछ घंटों तक मैं और मेरी पत्नी बिल्कुल सन्न रह गए. हम बिना एक शब्द बोले, चुपचाप बैठे रहे. मेरे लिए यह कबूल करना कठिन था कि इतनी स्वस्थ जीवन शैली जीने के बाद भी आखिर कैसे मुझे कैंसर हो सकता है? मैं काफी देर तक योग-अभ्यास किया करता था, इसलिए रिपोर्ट से मैं काफी चकित था.’ कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के बाद संजय को हॉरमोनथेरेपी भी करवानी पड़ी, जो अब भी जारी है.

असल में, पुरुषों में स्तन कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसे पुरुष आसानी से नहीं पकड़ पाते या उसके बारे में सहज तौर पर बात करने से कतराते हैं. मुंबई के डॉ एलएच हीरानंदानी अस्पताल के वरिष्ठ कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ आशीष बक्षी कहते हैं, ‘मेरे पास पुरुषों में स्तन कैंसर के मामले तीन महीनों में एक से ज्यादा शायद ही आते हैं, पर वे ऐसे मामले होते हैं, जिनमें देर से इलाज शुरू किया गया होता है. यानी रोग गंभीर स्थिति में होता है.’ विशेषज्ञ भी मानते हैं कि महिलाओं में स्तन कैंसर भले ही सामान्य है, पर पुरुषों में होने वाले कैंसर में स्तन कैंसर के मामले महज दो प्रतिशत हैं. इतना ही नहीं, 35 वर्ष से कम उम्र के पुरुषों में यह रोग शायद ही होता है, पर यदि परिवार में किसी महिला सदस्य का स्तन कैंसर का इतिहास है, तो पुरुषों को भी सचेत रहना चाहिए.

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डॉ बक्षी बताते हैं, ‘टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन के स्तर में असंतुलन की वजह से यदि कोई पुरुष गायनेकोमास्टिया यानी स्तन में वृद्धि का शिकार है, तो उसे यह बार-बार देखते रहना चाहिए कि उसके निपल से कोई द्रव तो नहीं निकल रहा या उसमें गांठ तो नहीं बन रही? ये दरअसल, कैंसर के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं.’हीरानंदानी अस्पताल के प्लास्टिक ऐंड कॉस्मेटिक सजर्न डॉ विनोद विज बताते हैं कि चूंकि स्तन के आस-पास ऐसे किसी रोग की आशंका पुरुषों में बहुत कम होती है, इसलिए वे शुरुआती अवस्था में गांठ पर ध्यान नहीं दे पाते. हालांकि ट्यूमर का छोटा आकार होने से भले ही पुरुषों के लिए कैंसर का पता लगा पाना मुश्किल होता हो, पर वह ट्यूमर शरीर के बाकी हिस्सों में तेजी से फैल सकता है. वैसे डॉ विज के ही शब्दों में कहें, तो राहत की बात यह कि ‘महिलाओं की तुलना में पुरुषों में इसके इलाज का असर कहीं सुखद दिखा है, खासतौर से हॉरमोनथेरेपी का. इसीलिए पुरुषों को इसे लेकर कोई द्वंद्व नहीं पालना चाहिए कि उन्हें अपने स्तन पर गांठ महसूस हुई है और इसके बारे में उन्हें परिवार या करीबी मित्रों को बताना चाहिए.’ अगर समय पर डॉक्टर से सलाह ले ली जाए, तो स्तन कैंसर का कहीं बेहतर इलाज संभव है.

नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में कार्यरत वरिष्ठ कैंसर सजर्न डॉ समीर कौल कहते हैं कि ‘आमतौर पर कैंसर के विशेषज्ञ डॉक्टरों के पास 60 फीसदी से अधिक ऐसे मामले आते हैं, जिसमें मरीज को तीसरे या चौथे चरण का कैंसर होता है, और इस अवस्था में उसके ठीक होने की संभावना 14-49 फीसदी तक ही होती है. यह निराश करने वाली तस्वीर है.’ डॉक्टर बार-बार यही बताते हैं कि यदि शुरुआती अवस्था यानी पहले या दूसरे चरण में कैंसर का पता लग जाए, तो उसके ठीक होने की संभावना 95 फीसदी तक होती है. इतना ही नहीं, शुरू में पता चल जाने पर ज्यादातर मामलों में स्तन काटने की नौबत नहीं आती. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा तैयार समेकित कैंसर रजिस्ट्री के आंकड़े बताते हैं कि साल 2016 में भारत में 14.5 लाख कैंसर के नए मामले सामने आए थे, जिनमें से 7.36 लाख पीड़ितों की मौत हो गई, क्योंकि 12.5 फीसदी मामलों में ही इलाज समय पर शुरू हो सका था. इससे पहले इस रजिस्ट्री के आंकड़े 2011 में सामने आए थे. दोनों आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन बताता है कि हर साल कैंसर के नए मामलों में 3.5 लाख की वृद्धि हो रही है. साफ है कि कैंसर महामारी की तरह हमारे देश में फैल रहा है. अगर रफ्तार यूं ही बनी रही, तो आशंका है कि साल 2020 तक देश में कैंसर के सालाना 17.3 लाख नए मामले सामने आएंगे. यह इस अनुमान को सच साबित करता दिखता है कि भारत में अगले पांच वर्षो में गैर-संक्रामक रोगों में सबसे अधिक मामले कैंसर के सामने आएंगे.

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यह देखा गया है कि पुरुषों में मुंह और फेफड़े के कैंसर अधिक होते हैं, जबकि महिलाओं में स्तन और गर्भाशय के कैंसर. इन सबमें स्तन कैंसर सबसे ज्यादा उपचार योग्य कैंसर माना जाता है, क्योंकि इसके इलाज की तकनीक लगातार विकसित हो रही है. लिहाजा इसके ठीक होने के मामले भी बढ़ रहे हैं.डॉ कौल बताते हैं, ‘स्तन कैंसर के बेहतर इलाज की एक वजह निश्चित तौर पर जीन टेस्टिंग है, क्योंकि यह बताती है कि दवा असर दिखाएगी अथवा नहीं, कैंसर किस तरह का है और ट्यूमर के कैंसर बनने की कितनी आशंका है? इससे इलाज की दिशा को तय करना आसान हो जाता है. मगर सच यह भी है कि ऐसी कोई जांच काफी खर्चीली होती है. यह 30 हजार रुपये से लेकर 3.5 लाख रुपये तक की हो सकती है.’ हालांकि डॉक्टरों का एक वर्ग ऐसा भी है, जो मानता है कि स्तन और गर्भाशय कैंसर के लिए होने वाली बीआरसीए-1 और बीआरसीए 2 जैसी जीन प्रोफाइलिंग डॉक्टरों को समझ-बूझकर करानी चाहिए.

दिल्ली में एम्स के एक वरिष्ठ डॉक्टर बताते हैं कि हमें ऐसी किसी जांच का इस्तेमाल कैंसर से लड़ने के लिए करना चाहिए, न कि मरीजों में डर या आशंका बढ़ाने के औजार के रूप में. खासतौर से सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों के लिए ये टेस्ट संभव नहीं हैं. एम्स के एक अन्य वरिष्ठ कैंसर विशेषज्ञ बताते हैं, ‘हमारे पास ऐसे-ऐसे गरीब मरीज आते हैं, जिनके लिए कुछ सौ रुपये इकट्ठे चुकाना भी मुश्किल होता है. मगर हम नियमित तौर पर ली जाने वाली दवाइयों के सहारे भी बेहतर इलाज कर सकते हैं, पर इसके लिए जरूरी है कि मरीज समय पर हमारे पास आएं.’

जाहिर है, अब कैंसर मौत का पैगाम नहीं है, जैसा कि पहले माना जाता था. संजय गोयल के शब्दों में ही कहें, तो ‘कैंसर के बाद भी जीवन संभव है, और इसका मैं एक बड़ा उदाहरण हूं. शुरू में मुङो लगता था कि मैं बस वक्त बीता रहा हूं, मगर अब मैं अपना जीवन जी रहा हूं. मैं जहां-तहां घूमने जाता हूं, योगाभ्यास करता हूं और वे सब चीजें करता हूं, जो पहले नहीं करता था. मैंने और मेरी पत्नी ने एक बच्ची को गोद भी लिया है. मैं अब जीवन के भरपूर मजे ले रहा हूं.’

ऐसे बनाएं लसोड़े का अचार और सब्जियां

हमारे आसपास कई ऐसे पेड़पौधे होते हैं, जिन्हें हम बेकार सम?ा कर ध्यान नहीं देते हैं, जबकि इस में से कुछ ऐसे होते हैं, जो सेहत का खजाना होते हैं. इन में से बहुत से ऐसे पौधे होते हैं, जिन के पत्ते, फलफूल, तना व छाल का उपयोग खाने के साथ ही औषधियों के रूप में भी किया जाता है. ऐसा ही एक खास पौधा है लसोड़ा, जिसे कैरी गुंदा, गोंदी, निशा, रेठू या टेंटी के नाम से भी जाना जाता है.

लसोड़े का पौधा हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान सहित पूरे भारत में पाया जाता है. यह पोषक तत्त्वों और औषधीय गुणों से भरपूर होता है. इस के फल सुपारी के समान होते हैं.

लसोड़े के कच्चे फलों की बहुत ही स्वादिष्ठ सब्जी और अचार बनाया जाता है. इस के पके हुए फल मीठे होते हैं और इस के अंदर चिकना और मीठा गोंद होता है.

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  1. लसोड़े के फल में मौजूद प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, फाइबर, आयरन, फास्फोरस व कैल्शियम की प्रचुर मात्रा पाई जाती है.
  2. बहुत सी जगहों पर लसोड़े के फलों को सुखा कर चूर्ण बनाया जाता है, जिसे मैदा, बेसन और घी के साथ मिला कर लड्डू बनाए जाते हैं.
  3. इसे मांस से भी 10 गुना ज्यादा ताकतवर माना जाता है. इस का सेवन शरीर के लिए बहुत ही उत्तम और ताकत से भरपूर होता है.
  4. लसोड़े में भरपूर मात्रा में कैल्शियम और फास्फोरस होता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है और शरीर को ताकत देता है.
  5. इस फल को खाने से शरीर में ताकत आती है और शरीर को कई अन्य बीमारियों से राहत मिलती है. इस फल का उपयोग मस्तिष्क को भी तेज करता है.
  6. लसोड़ा खाने से शरीर में खून की कमी दूर होती है. इस की फल और पत्तियां महिलाओं में होने वाले कई रोगों के निदान में कारगर होती हैं.

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इस सेहतमंद पौधे के कच्चे फल का बेहद लजीज अचार और सब्जियां बनाई जाती हैं. लसोड़े का स्वादिष्ठ अचार और जायकेदार सब्जी बनाने की विधि इस प्रकार है :

  1. लसोड़े का अचार बनाने के लिए जरूरी चीजें

अचार बनाने के लिए लसोड़े के साबुत कच्चे फलों का चयन करें.  आधा किलोग्राम लसोड़े के फलों का अचार बनाने के लिए जिन चीजों की जरूरत होती है, उस के लिए सब से पहले 1 छोटा चम्मच हलदी पाउडर, दरदरी पिसी 3 चम्मच राई या पीली सरसों, नमक स्वाद के मुताबिक, आधा कप सरसों का तेल, 2 छोटी चम्मच सौंफ, 1 छोटी चम्मच लाल मिर्च पाउडर, एकचौथाई चम्मच हींग, आधा चम्मच जीरा, आधा चम्मच अजवायन, एक से 2 कच्चे आम और एक चम्मच मेथी दाना की जरूरत पड़ती है.

अचार बनाने की विधि

लसोड़े का अचार बनाने के लिए सब से पहले उस के डंठल को तोड़ कर फलों से अलग कर लिया जाता है. इस के बाद फलों को साफ पानी से अच्छी तरह धो लेते हैं, फिर लसोड़े के फलों को उबालने के लिए ऐसे बरतन का चयन करते हैं, जिस में रखने के बाद लसोड़े पानी में अच्छी तरह डूब जाएं.

जब पानी में उबाल आने लगे, तभी उस पानी में लसोड़े डालते हैं. जब 3-4 मिनट तक लसोड़े उबल जाएं, तो उसे गैस से उतार कर ठंडा होने के लिए रख देते हैं. जब लसोड़े ठंडे हो जाएं, तो उसे पानी से निकाल कर अलग कर लेते हैं, जिस से उस का सारा पानी निकल जाए.

2. लसोड़े की कांजी

लसोड़े के गूदे में चिपचिपा तरल गोंद भरा होता है. इसलिए सब से पहले इस के चिपचिपेपन को खत्म करने के लिए पानी में डाल कर कांजी बनाई जाती है. यह कांजी एक तरह का पेय पदार्थ होता है, जो बेहद ही चटपटा और स्वादिष्ठ होता है.

लसोड़े की कांजी बनाने के लिए सब से पहले एक लिटर पानी लेते हैं, जिसे उबाल कर ठंडा कर लेना चाहिए.

इस के बाद इस उबाले गए पानी को कांच या प्लास्टिक के जार में डाल कर उस में उबाले गए लसोड़ों को डाल दिया जाता है.

इस के बाद इस में एक छोटी चम्मच हलदी पाउडर, नमक स्वादानुसार और लाल मिर्च पाउडर भी स्वादानुसार, पीली सरसों का पाउडर और सरसों का तेल मिलाया जाता है.

लसोड़ों को इस घोल में मिला कर जार का ढक्कन बंद कर 3 से 4 दिन के लिए रख देते हैं, जिस से खट्टी कांजी बन कर तैयार हो जाती है.

लसोड़े की कांजी बनाने से उन के अंदर की गुठली का चिपचिपापन खत्म हो जाता है. लसोड़े से तैयार कांजी को हम पी भी सकते हैं या फिर चपाती, परांठे के साथ खा सकते हैं.

कांजी से अलग किए गए लसोड़े अब पूरी तरह से अचार बनाने के लिए तैयार होते हैं. इस के लिए सब से पहले इस को बीच से काट कर उस की गुठलियों को अलग कर लेते हैं.

अब इन लसोड़ों को सूखे कांच के जार में रख कर सरसों का तेल गरम करने के बाद उसे ठंडा कर लसोड़े में डाल देते हैं. तेल की मात्रा इतनी रखी जाती है, जितने में लसोड़े डूब जाएं.

इस के बाद इस में एक से दो कच्चे आम के गूदे को छील कर उस के गूदे को पीस लेते हैं और उस में दरदरे पीसे गए 2 चम्मच नमक, एक छोटी चम्मच हलदी पाउडर, 2 चम्मच मैथी दाना,  2 चम्मच पीली सरसों, 2 छोटी चम्मच अजवायन, 1 छोटी चम्मच लाल मिर्च और एकचौथाई छोटी चम्मच हींग को आम के पेस्ट के साथ मिला कर लसोड़े में मिला देते हैं. इस के बाद मसाले वाले साबुत लसोड़े के अचार को कुछ दिन धूप में रख देते हैं.

लसोड़े का यह तैयार अचार, जहां खाने में बेहद लजीज होता है, वहीं यह सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद माना जाता है.

अचार को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है कि अचार बनाते समय जो भी बरतन इस्तेमाल करें, वे सब सूखे और साफ हों.

अचार में किसी तरह की नमी और गंदगी नहीं जानी चाहिए. साथ ही, जब भी अचार को जार से निकालें, तो साफ और सूखे चम्मच का ही इस्तेमाल करें.

लसोड़े के अचार को 3 महीने में 1 दिन के लिए धूप दिखाना न भूलें.

3. लसोड़े की लजीज सब्जी

250 ग्राम लसोड़े की सब्जी बनाने के लिए जिन चीजों की जरूरत पड़ती है, वो इस प्रकार हैं…

  • तेल  4 चम्मच,
  • जीरा 1 चम्मच,
  • अजवाइन आधा चम्मच,
  • तेजपत्ता 2 पीस,
  • आवश्यकतानुसार नमक,
  • हल्दी पाउडर आधा चम्मच,
  • लाल मिर्च पाउडर 1 चम्मच,
  • धनिया पाउडर 1 चम्मच,
  • जीरा पाउडर 1 चम्मच,
  • सौंफ पाउडर 1 चम्मच,
  • हींग एक चुटकी और आधा चम्मच अमचूर पाउडर की जरूरत पड़ती है.

बनाने की विधि

सब से पहले लसोड़े के फलों के ऊपर की कैप को हटा लेते हैं.

इस के बाद लसोड़े के फल को किसी बरतन में 2-3 कप पानी डाल कर उबाल लीजिए.

लसोड़े जल्दी उबलें, इस के लिए बरतन को ढक दीजिए. कोशिश करें कि लसोड़ों को नरम होने तक या 10 मिनट ढक कर उबालें.

इस के बाद उबाले गए लसोड़ों को ठंडा होने के बाद काट कर उस की गुठलियों को अलग कर लेते हैं.

इस के बाद पैन या कड़ाही में जब तेल गरम हो जाए, तो इस में जीरा, अजवाइन, तेजपत्ता डाल कर हलका लाल कर लें. गैस धीमी कर लें, फिर लाल मिर्च पाउडर, धनिया पाउडर, जीरा पाउडर, सौंफ पाउडर, अमचूर पाउडर, हलदी पाउडर डाल कर लसोड़े डाल दें.

सारी चीजों को अच्छी तरह मिक्स कर के धीमी आंच पर भूनें. उस के बाद स्वादानुसार नमक डालें. 5 मिनट धीमी आंच पर पकने दें.

लीजिए 5 मिनट बाद बन कर तैयार है स्वादिष्ठ मसालेदार लसोड़े की सब्जी. इसे भोजन की थाली में साइड डिश की तरह परोसा जा सकता है.

इस सब्जी को किसी भी पिकनिक या यात्रा पर पूरी या परांठे के साथ ले जा कर खाने का भरपूर मजा ले सकते हैं.

पशुओं में खुरपका-मुंहपका रोग

लेखक-डा. नरेश प्रसाद, डा. संजीव कुमार वर्मा, डा. मेघा पांडे, डा. नेमी चंद

पशुओं में खुरपकामुंहपका रोग यानी एफएमडी बेहद संक्रामक वायरल है. यह रोग वयस्क पशुओं में घातक नहीं होता है, लेकिन बछड़ों के लिए यह घातक होता है. यह गायभैंसों, बकरियों, भेड़ों, सूअरों और जुगाली करने वाले जंगली पशुओं को प्रभावित करता है. इस के कारण थूथन, मसूड़ों, अयन और अन्य गैर बालों वाले भागों पर छाले व घाव हो जाते हैं. यह सभी उम्र के पशुओं को प्रभावित करता है. रोग का कारण यह पिकोरनाविरिडाए परिवार के अपथो वायरस जाति की एफएमडी वायरस के कारण होता है. एफएमडी वायरस के 7 प्रकार के अलग सीरम होते हैं. भारत में एफएमडी ओ, ए और सी सीरम प्रकारों के कारण होता है. यह बहुत कठोर वायरस है और महीनों तक दूषित चारा, कपड़ा, वातावरण इत्यादि में जीवित रहता है.

महामारी विज्ञान एफएमडी वायरस सभी उम्र के पशुओं को प्रभावित करता है और 100 फीसदी रोगकारक है. इस वायरस से वयस्कों में मृत्युदर कम है, लेकिन बछड़ों में 100 फीसदी है. इस का प्रकोप मुख्य रूप से मानसून के आगमन के दौरान होता है. सूअर एफएमडी वायरस के गुणक के रूप में काम करता है और इस से जुगाली करने वाले पशुओं को रोग फैल सकता है. रोग संचरण

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* रोगग्रस्त पशुओं के आवाजाही से, संक्रमित जानवरों के साथ संपर्क से और दूषित निर्जीव वस्तुओं (जूते, कपड़े, वाहन इत्यादि) के साथ संपर्क से रोग फैल सकता है.

* संक्रमित सांड़ के साथ गर्भाधान से, बछड़ों के द्वारा संक्रमित दूध पीने से, प्रभावित पशुओं से वायु संचरण से और रोगग्रस्त पशुओं के साथ लगे हुए श्रमिकों से स्वस्थ पशुओं को यह रोग फैल सकता है.

* संक्रमित जानवर का सभी स्राव और उत्सर्जन (दूध, मूत्र, लार, मल, वीर्य इत्यादि) से भी रोग फैल सकता है.

लक्षण

* खुरपकामुंहपका का लक्षण पशुओं में संक्रमण के 2-8 दिन के अंदर दिखाई देता है.

* इस बीमारी में पशु को तेज बुखार (103-105), भूख नहीं लगती और सुस्त रहता?है. थूथन, दंत पैड, मसूड़ों, नाक, तालु, अयन, खुरों व चमड़ी के जोड़ों पर और अन्य गैर बालों वाले भागों पर छाला और घाव बन जाता है.

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* इस में अत्यधिक लार निकलती है. लार रस्सी की तरह लंबाई में गिरती है और नाक से श्लेष्म निकलता है.

* खुरपकामुंहपका में पशु पैर को पटकता या ठोकर मारता है. खुरों में घाव की वजह से पशु लंगड़ाने लगता है.

* इस में पशु होंठ चटकाता और दांत घिसता है. जीभ के पार्श्व पृष्ठीय हिस्से पर अल्सर हो जाता है. शरीर की त्वचा मोटी और खुरदरी हो जाती है.

* इस रोग से गर्भपात हो जाता है और दूध उत्पादन में कमी आ जाती है.

* इस रोग से बछड़ों की मौत हो जाती है. बछड़ों में रोगकारक 100 फीसदी और मृत्युदर अधिक होती है.

उपचार

* इस का कोई विशेष इलाज नहीं है. सिर्फ परोक्ष संक्रमण को रोकने के लिए और लक्षणों का असर कम करने के लिए दवाएं दी जाती हैं.

* खुर व मुंह के घावों की लाल दवा (पोटैशियम परमैगनेट) के हलके घोल (1 फीसदी)/फिटकरी के 2 फीसदी घोल से दिन में 2 बार धोएं और खुरों पर बीटाडीन लगा कर पट्टी बांधें.

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* धोने के बाद छालों पर बोरोग्लिसरीन का लेप लगाना लाभदायक होता है.

* इस दौरान पशुओं को मुलायम आहार (गेहूं का दलिया, बारीक कटा हुआ हरा चारा आदि) ही दें.

* तापरोधी, विटामिन बी कौंप्लैक्स इंजैक्शन, एंटीबायोटिक्स दवाएं डाक्टर की सलाह पर दें.

ऐसे करें रोग की रोकथाम

* सूचित अधिकारियों को जल्द से जल्द नियंत्रण के उपायों को आरंभ करना चाहिए, जिस से रोग के प्रसार को रोकने में मदद मिलेगी.

* संक्रमित क्षेत्रों से पशुओं के अन्य क्षेत्रों में प्रवेश पर रोक लगाएं.

* रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं के संपर्क से बचाएं.

* रोग के प्रसार को सीमित करने के लिए प्रभावित क्षेत्रों के चारों ओर रिग टीकाकरण कराएं.

* सभी दूषित वस्तुओं, परिसर और व्यक्ति का कीटाणुशोधन करें.

* लोगों के बीच जागरूकता पैदा करें.

* अपने पशुओं का नियमित टीकाकरण कराएं.

* प्रथम टीकाकरण 4 महीने पर, बूस्टर डोज प्रथम टीकाकरण से 6 महीने के बाद और पुन: टीकाकरण साल में 2 बार (पहला वर्षा ऋतु शुरू होने से पहले और दूसरा शीत ऋतु शुरू होने से पहले).

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