हरजीत सिंह भारज ‘‘अरे रामू, क्या हुआ?’’ चनकू बाई ने पूछा. ‘‘यह लड़की धंधा करने को तैयार नहीं हो रही है,’’ रामू ने कहा. रामू की बात सुन कर चनकू बाई कुछ सोचने लगी. कुछ याद आते ही वह बोली, ‘‘रामू, फौरन डीडी को बुलाओ, वही चुटकियों में ऐसे केस हल कर देता है.’’ डीडी उर्फ दामोदर गांव का एक सीधासादा नौजवान था. गांव के ऊंचे घराने की लड़की से उसे इश्क हो गया था. वह लड़की भी उसे बहुत प्यार करती थी.

लेकिन उन दोनों के प्यार के बीच दौलत की दीवार थी, जिसे दामोदर तोड़ न सका. दामोदर के सामने ही उस की प्रेमिका किसी और की हो गई. उस दिन दामोदर बहुत रोया था. उसे एहसास हो गया था कि दौलत के बिना इनसान अधूरा है. उस के पास दौलत होती, तो शायद उस का प्यार नहीं बिछुड़ता. अपने प्यार का घरौंदा उजड़ते देख कर दामोदर ने फैसला किया कि वह बहुत दौलत कमाएगा, चाहे यह दौलत पाप की कमाई ही क्यों न हो. इश्क में हारा दामोदर घर में अपने मांबाप से बगावत कर के शहर में दौलत कमाने का सपना ले कर मुंबई आ गया. मुंबई में दामोदर बिलकुल अकेला था. काम की तलाश में वह बहुत भटका, मगर उसे काम नहीं मिला. एक दिन दामोदर की मुलाकात रामू से हो गई.

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दामोदर ने उसे अपनी आपबीती सुनाई, तो रामू को अपनापन महसूस हुआ. वह बोला, ‘‘मैं तुम्हें काम दिला सकता हूं, पर उस काम में जोखिम बहुत है और पुलिस का डर भी है.’’ ‘‘मो सिर्फ पैसा चाहिए, काम चाहे कितना भी खतरनाक ही क्यों न हो.’’ दामोदर की बात सुन कर रामू ने एक बार उसे ऊपर से नीचे तक देखा. वह समा चुका था कि दामोदर के सिर पर दौलत कमाने का भूत सवार है. इस से कुछ भी काम कराया जा सकता है. रामू दामोदर को ले कर चनकू बाई के कोठे पर पहुंचा. चनकू बाई ने दामोदर से बात की, फिर उसे एक वैन दे दी, जिस से वह लड़कियां सप्लाई करने लग पड़ा. इस काम में दामोदर को अच्छीखासी रकम मिलती थी. अब रामू व दामोदर एकसाथ रहने लगे थे.

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